सोमवार, 22 नवंबर 2021

मंडे स्पेशल: पहचान को महरूम प्रदेश के हजारों रणबांकुरे!

देश का दिया सर्वत्र, फिर भी नहीं मिल पाया सम्मान परिजन लड़ रहे हैं अपनों को पहचान दिलाने की जंग 
ओ.पी. पाल.रोहतक। 
आजादी के 74 साल बाद भी प्रदेश के हजारों रणबांकुरे जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, पहचान को मोहताज हैं। इन वीरों का नाम सरकारी दस्तावेजों में तो दर्ज है, लेकिन न तो उन्हें कभी पहचान मिली और न ही कोई सम्मान। इनके वंशज अपनो को साढ़े सात दशकों से शहीद का दर्जा और धूल फांक रही सरकारी फाइलों से निकालकर मुक्कमल सम्मान दिलाने की जदोजहद कर रहे हैं। कई वीर शहीद तो ऐसे भी हैं जिन्होंने देश को अपना सर्वत्र अर्पित कर दिया, लेकिन उनके परिजनों को इसकी जानकारी तक नहीं है। वे अब तक उसे गुमशुदा ही मान रहे हैं। ऐसे वीरों की सबसे ज्यादा तादाद हिसार जिले में हैं। प्रदेशभर में ऐसे अब तक 287 वीर शहीदों का रिकार्ड मिल चुका है, जिनकी शहादत को मकसद तो मिला, लेकिन उन्हें पहचान नहीं मिल पाई। प्रदेश में अनेक योद्धा ऐसे भी थे, जिन्होंने आजादी के लिए घर परिवार छोड़ दिया और आज तक लौटकर वापस नहीं आए। इनके अलावा ऐसे करीब 450 रणबांकुरे भी रिकार्ड में पाए गये, जिनकी जानकारी से उनके परिजन अनजान हैं। आजादी की जंग में बलिदान देने वाले दिवानों की हालात यह है जब दादरी के स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय राम सिंह फौगाट के रिकार्ड को खोजा गया तो उनके बेटे श्रीभगवान फौगाट ने राष्ट्रीय अभिलेखागार में धूल फांक रही फाइलों से अब तक करीब 287 गुमनाम शहीदों के नाम खोज डाले हैं, जिनमें से सबसे ज्यादा 37 शहीद हिसार, सिरसा, फतेहाबाद व भिवानी जिला(पुराने हिसार जिले) के हैं। इसके बावजूद इन गुमनाम वीरों को अब तक पहचान नहीं दिलाई जा सकी। एक स्वतंत्रता सेनानी ने अपने पिता के साथ समूचे सूबे के ऐसे शहीद वीरों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा और सम्मान दिलाने की मुहिम चलाकर अब तक 287 ऐसे गुमनाम शहीदों को ढूंढ लिया है, लेकिन सरकार की आजादी के दिवानों को एक तरह से भुला सी रही है। 
आजाद हिंद फौज में थे 2,715 हरियाणवी योद्धा 
रिकार्ड के अनुसार द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों से लोहा लेने वाली नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज में हरियाणा के करीब 2,715 सैनिक शामिल थे, जिनमें 398 अफसर और 2317 जवान थे। इनमें तत्कालीन रोहतक जिले (रोहतक, सोनीपत तथा झज्जर) से सर्वाधिक 149 अफसर तथा 724 सैनिकों समेत 873 योद्धा शामिल थो। जबकि उस समय के गुड़गाँव जिले (गुड़गाँव, फरीदाबाद, पलवल, मेवात, रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़) के 106 अफसर तथा 580 जवानों समेत 686 सैनिक इस मुक्ति सेना का हिस्सा रहे। इन वीरों ने ‘मित्र राष्ट्रों’ की सेनाओं से जमकर लोहा लिया। जनवरी 1944 में आजाद हिन्द फौज की सुभाष ब्रिगेड को जनरल शाहनवाज खां के नेतृतव में अंग्रेजों से सशस्त्र युद्ध करने का अवसर प्राप्त हुआ। इस बिग्रेड की दूसरी बटालियन (कुल 3 बटालियन) का नेतृत्व झज्जर जिले में जन्मे ले. कर्नल रणसिंह ने किया। इस ब्रिगेड की प्रथम बटालियन में भी हरियाणा से मेजर सूरजमल ने कलादान घाटी से अंग्रेजों को खदेड़ा। इस बटालियन ने मोदोक पर अधिकार कर लिया। 
पुरखों के बलिदान से अनजान परिजन 
देश की आजादी की जंग में आजाद हिंद फौज में हरियाणा के शहीद हुए रणबांकुरों में 450 सैनिक तो ऐसे हैं, जिन्होंने देश की खातिर अपने आपको बलिदान कर दिया, लेकिन अभी तक उनके अपने परिजनों को इसका इलम तक नहीं। आजादी की जंग में फरीदाबाद क्षेत्र के शहीद सैनिकों के पुरखों को पता नहीं है कि उनके परिवार के किसी बुजुर्ग ने अंग्रेजों से विद्रोह करने वाले नेताजी की आजाद हिंद फौज में भर्ती होकर शाहदत दी है। ऐसे सैनिकों के मिले रिकार्ड को अब सरकारी रिकार्ड में शामिल कराने की कवायद हो रही है। 
पुराने हिसार जिले के सर्वाधिक सैनिक 
प्रदेश के पुराने हिसार जिले जिसमें हिसार, सिरसा, फतेहाबाद भी शामिल था के 37 वीर शहदों के नाम जिला प्रशासन को सौंपे गये हैं। इनमें जेवरा गांव के रिसाल सिंह, राजली के हरके राम, देशराज व मुंशी सिंह, नियाना के भगवान सिंह और उजाला राम, हांसी में खानपुर के अमर सिंह, ठसका के छोटूराम, फ्रांसी के ज्ञानी राम, बांडाहेड़ी के भलेराम, जुगलान के रामजी लाल, काबरेल के बहादुर सिंह, कालीरावण के हरफूल सिंह, नहला के दीवान सिंह, मिर्जापुर के छोटूराम, हरि सिंह, भैणी बादशाहपुर के सुरजा राम, मोडाखेड़ा के हरेराम और पेटवाड़ के निहाल सिंह शामिल हैं। इसके साथ ही जिला फतेहाबाद के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों में जाखल क्षेत्र के चांदपुरा के नारायण सिंह, भट्टू क्षेत्र के मंदोरी के सुरजा राम, फतेहाबाद के खबरा कलां के रामजी लाल, समैन के दयाराम, चंद्रावल के अमी लाल शामिल हैं। सिरसा जिले में रामपुरा के लक्ष्मी चंद, रूपावास के मोजीराम, अली मोहम्मद के मोना राम, उमेदपुरा के सोहन लाल, भुरतवाला के बलबीर सिंह के नाम सामने आए। जबकि भिवानी जिले में तालु गांव के छोटूराम, कैरू के जयराम व जय सिंह, बहल के सुरजा राम, मतानी के एडी राम, बड़वा के काना राम, बढ़ेसरा के हरफूल और फुलपुरा गांव निवासी निहाल सिंह शामिल हैं। 
इसलिए इस जांबाज को नहीं दिया सम्मान 
हिसार जिले के जेवरा गांव निवासी रिसाल सिंह 21 फरवरी, 1941 में सेना में भर्ती हुए और वे हांगकांग सिंगापुर रॉयल आर्टिलरी में तैनात रहे। 15 फरवरी 1942 में दुश्मनों ने उनको बंदी बना लिया और 11 अगस्त, 1944 को प्रिजनर ऑफ वार के तौर पर शहीद हो गए। जब इनके परिजनों ने स्वतंत्रता सेनानी आश्रितों के लाभ के लिए आवेदन किया तो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 9 फरवरी, 1982 को जवाब दिया कि इनके पिता व पत्नी को 27 जुलाई, 1957 तक 16 रुपये मासिक पेंशन दी गई थी, लेकिन इनका आईएनए का सदस्य होने का कोई रिकार्ड नहीं मिला है और कोई लाभ नहीं दिया। ऐसे ही राजली गांव के हरके राम की विधवा फूलपति ने 14 सितंबर 1972 में पेंशन के लिए आवेदन किया था, लेकिन उनके पति का 25 साल पुराना रिकार्ड बताते हुए उसे नष्ट कर दिया गया और जो रिकार्ड मिला उसके अनुसार हरके राम आईएनए के सदस्य नहीं थे। यही हालात आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे राजली गांव निवासी देशराज व मुंशी सिंह का है जिनके परिवार को भी खाक छानने के बाद निराशा ही हाथ लगी। 
रोहतक के सामने आए 58 वीर 
आजाद हिंद फौज के गुमनाम सिपाहियों को पहचान दिलाने के मकसद से श्रीभगवान फौगाट ने पुराने रोहतक जिले(रोहतक, सोनीपत व झज्जर) के 25 रणबांकुरों के नाम व गांव की सूची जिला प्रशासन को सौंपी है। इस सूची में गांव सैमाण के कालूराम व मुंशीराम, कटेसरा के मातूराम व मांगेराम, कहानौर के मोहम्मद यासिन, बैंसी के अब्दुल रजाक व मोहम्मद इलियास, सुनारिया के नानकराम, रामस्वरुप व रामपत, बहुअकबरपुर के सुल्तान सिंह, चन्दगी राम व गोकल राम, पिलाना के कंवल सिंह, सुडाना के शीशराम, चांदी के लाल खान, रिटौली के जुम्मा खान, भाली के घुपल राम, निंदाना के रामस्वरूप, मकड़ौली के गोरधन, डिगल के बदलु राम, हरफूल व बले राम, दुबलधन के वलवनत, खाचरोली के भगवान सिंह, कुनजिया के श्रीगोपाल,मदिना के हर नारायण, डाबोधाकला के हरदवारी, खानपुर खोजता हशराम,सापला के मीरसिंह, सापला के मौ. अली, ढाकला के प्यारेलाल, मानडौढी के रंधवीर, भुरास के रामकुमार,रेवाड़ी खेड़ा के स्वरुप, खरमान के राम सिहं तथा खेर वहादरगढ के रतन सिंह के अलावा झज्जर जिले के झाड़ली गांव के श्रीचंद, छारा के गोधाराम व कांशी राम के साथ सोनीपत के गांव नूना माजना के छतर सिंह, जांटी के मक्खन सिंह और खेड़ी खुमार के प्रेम सिंह शामिल है। हालांकि पुराने रोहतक के करीब 100 वीर शहीदों का रिकार्ड मिला है। 
अब तक इन्हें मिली पहचान
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजाद हिंद फौज में शामिल भिवानी के केहरपुरा गांव निवासी वेदप्रकाश के पिता नेतराम तो घर आ गये थे और उन्हें स्वतंत्रता सैनानी का दर्जा व पेंशन मिल गई, लेकिन उनके बड़े भाई जगनराम को रिकार्ड के अभाव में आज तक कोई पहचान नहीं मिल पाई। पहचान दिलाने की जंग में जगनराम का रिकार्ड भी राष्ट्रीय अभिलेखागार से मिल गया, जो आजादी की जंग में शहीद हो गये थे। 
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शहीदों को पहचान दिलाना उनका कर्तव्य: फौगाट 
प्रदेश के आजदी के दीवानों को पहचान दिलाने के मकसद से पिछले एक दशक से मुहिम में जुटे रेवाड़ी निवासी श्रीभगवान फौगाट का कहना है कि उसने अपने पिता को ही नहीं, बल्कि प्रदेशभर के ऐसे तमाम गुमनाम शहीदों को पहचान व सम्मान दिलाने की मुहिम चला रखी है। उनका मानना है कि वे ऐसे वीर शहीदों के परिजनों को भी खोज रहे हैं जिनके नाम उन्होंने राष्ट्रीय अभिलेखागार के रिकार्ड से एकत्र किये हैं, ताकि वे अपने ऐसे पूर्वजों को जान सके जिन्होंने देश की आजादी के लिए जंग के दौरान अपना सर्वत्र न्यौछावर कर दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अभिलेखागार आजाद हिद फौज पाये जाने पर राज्य व जिला प्रशासन द्वारा परिवारों तक यह रिकार्ड इतिहास गौरवगाथा स्वतंत्रता दर्जा पहुचाने के लिए बार बार फिर से भी आगामी कार्यवाही पुनः किया जाता है, लेकिन सालों से अभी तक कार्यवाही को आगे न बढ़ाना शहीदों को दरकिनार करने जैसा है। जबकि शहीदों के नाम सामने लाने के बाद उनके आश्रितों के लिए ढूंढना भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। इसके बावजूद वे ऐसे गुमनाम शहीदों को उनको स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिलवाने का भी प्रयास करते रहेंगे। 
22Nov-2021

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