सोमवार, 29 नवंबर 2021

चौपाल:वेशभूषा, भाषा, बोली ही हरियाणवी संस्कृति की पहचान

-ओ.पी. पाल 
हरियाणा के कलाकार अपनी विविध्या कलाओं के जरिए इस आधुनिक युग और पाश्चत्य संस्कृति की चकाचौंध में लुप्त होती हरियाणवी संस्कृति को जीवंत करने में जुटे हुए हैं। ऐसे ही कलाकारों में शुमार सोनीपत के भजन गायक कलाकार मास्टर श्रीभगवान दीक्षत हैं, जो चाहे वॉलीवुड या हरियाणवी फिल्मों, नाटक मंचन के अलावा संगीत हो या धार्मिक संगीत अथवा फिर स्टेज शो ही क्यों न हो,उन सभी मंचो से हरियाणवी संस्कृति को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ बढ़ावा दे रहे हैं। धार्मिक आयोजनों में भजनो और किस्सों में हरियाणवी संस्कृति और सभ्यता को संजोने में लगे श्रीभगवान दीक्षित का अपनी मातृभूमि, भाषाशैली और संस्कृति से लगाव ही है कि वे अपने सूबे के रीतिरिवाज, वेशभूषा, बोली और सभ्यता को अपनी कला के हुनर से प्रदर्शित करते आ रहे हैं। हरियाणा के गीतों, रागणियों और सांगियों जैसे पुरोधाओं की विरासत को आगे बढ़ाने में जुटे कलाकार श्रीभगवान ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत करते हुए अपनी कला के विभिन्न आयामों को सहजता के साथ साझा किया। प्रदेश के सोनीपत जिले में खरखौदा क्षेत्र के गांव सोहटी में दस दिसंबर 1969 को एक साधारण किसान जयनारायण के घर में जन्मे श्रीभगवान दीक्षित को अपने दादा द्वारा गुणगुनाने और रामलीलाओं में स्टेज पर जाने की लालसा बचपन से ही थी। उन्होंने बताया कि सोनीपत के एसएम हिंदू कालेज में शिक्षण के दौरान उन्होंने इसी कला में अपनी किस्मत आजमाने के लिए अपने एक साथी के साथ कमरा लेकर रहना शुरू किया। 1991 में जब रामलीला में मौका मिला तो उसे सर्वश्रेष्ठ कलाकार के रूप में आंका गया। इसके बाद उनकी कला में विभिन्न आयाम आए, जिन्हें उन्हें बखूबी निभाया। वर्ष 1994 में एमए करने के बाद उन्होंने हिंदू कालेज में अध्यापक के रूप में कार्य शुरू किया, जहां उन्होंने बच्चों को भी कला के गुर सिखाने शुरू कर दिये। उन्होंने मुंबई में भी वॉलीवुड फिल्मों में भी अपनी किस्मत आजमायी। जबकि हरियाणवी फिल्मों व मंचीय नाटकों में उन्होंने अभिनय करके लोकनृत्य तक की कला को प्रस्तुत किया है। खासबात ये है कि उनकी हरियाणवी संस्कृति से जुड़ी वेशभूषा किसी भी मंच पर आकर्षक का केंद्र रहती है। धीरे धीरे उनकी कला का हुनर रंग में आता रहा और वर्ष 2003 में प्रसिद्ध संगीतकार एवं निर्देशक सतीश रंगीला ने स्कूल में उनकी कला को पहचाना और तभी से वह धार्मिक मौकों पर अपने ग्रुप के साथ गीत व भजनों के साथ लोकनृत्य और अभिनय करते आ रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने नेपाल और दुबई जैसे दूसरे देशों में भी हरियाणवी संस्कृति को ही सर्वोपरि रखा है। आधुनिक युग में हरियाणा संस्कृति को पुनर्जीवित करने के मकसद से ही वे पिछले दो दशक से अपने स्टेज शो में हरियाणवी वेशभूषा, भाषा और संस्कृति को आगे रखते हैं, जिसके लिए आज की युवा पीढ़ी को भी अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने की जरुरत है। पाश्चत्य संस्कृति का परित्याग और अपनी संस्कृति से जुड़ने से ही हर किसी जिंदगी आगे बढ़ सकती है और अपनी संस्कृति और सभ्यता को पुनर्जिवित किया जा सकता है। श्रीभगवान बताते हैं कि बचपन में गांव में रामलीला देखकर मन करता था खुद भी रामलीला में हिस्सा लेना का। सपना पूरा हुआ 90 के दशक में कॉलेज समय में। रात के समय रामलीला करने के लिए गांव से आने-जाने में दिक्कत थी, इसीलिए शहर में एक कमरा किराए पर लिया। रामलीला का मंचन दे-तीन दिन ही किया था कि इसी दौरान मंडल कमीशन के आरक्षण के फैसले के चलते आंदोलन शुरू हो गया और हिंसा भड़क गई थी। रामलीला पूरी नहीं हो पाई। हालांकि इसे बैंगन सीनियर रहे कुमार विशु के सानिध्य में अंदर से कलाकार बाहर निकल तथा यूथ फेस्टिवेल के जरिये स्टेज का डर भी निकला। भार माधवन के साध भी किया काम.लकिन निराशा ही हाथ लगो, लेकिन कोशिशे जारी रही। श्रीभगवान ने बताया कि उन्होंने कलाकार मनफूल सिंह डांगी को गुरु बना लिया और चमनलाल मास्कर से संगीत को शिक्षा ली। वर्ष 1996 में वे बिना तनख्वाह के हुही लेकर मुंबई चले गए थे। उस समय मुंबई में काफी संघर्ष किया। एक फिल्म में आर माधवन के साथ काम भी किया, लेकिन वो फिल्म आज तक रिलीज नहीं हुई। इस तरह से कई संघर्ष और परिजनों द्वारा शादी के दबाव के चलते उन्हें वापस आना पड़ा। दो भजनों ने दी दिशा अदरक कलाकार को स्टनमो ने बरकरार रखाका चौधरी, नसीब रुडा, मनफूल सिंह डागी. सुरंट संध. रणवीर बड़वासनिया के साथ उन्होंने स्टेज को जारी रखे। 2003 में गायक सतीश रंगीला की सलाह पर बसंत पंचमी के दिन ये भजन गर उस दिन के बाद से अब तक हरियाणाची संस्कृति को लेकर भजन गाते हैं। लमीचंद मांगेराम की रागनियों के गरिव परियामवी का प्रसार करते है। 29Nov-2021

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