सोमवार, 22 नवंबर 2021

साक्षात्कार: भारतीय संस्कृति को जीवंत करने में साहित्य की अहम भूमिका: डा. विनोद बब्बर

साहित्य साधना से किया हरियाणा को गौरवान्वित ओ.पी. पाल
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व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. विनोद बब्बर 
जन्म: 1 जुलाई 1950 
जन्म स्थान: जुंडला, जिला करनाल (हरियाणा) 
 पता: ए-2/9ए, हस्तसाल रोड, उत्तम नगर, नई दिल्ली। शिक्षा: बीए, एमए, बी.एड. पीएचडी।
संप्रत्ति: पूर्व प्रधानाचार्य एवं आचार्य विनोबा भावे के सद्प्रयासों से गठित नागरी लिपि परिषद के मंत्री।
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हिंद और हिंदी की सेवा में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित वरिष्ठ साहित्यकार डा. विनोद बब्बर की मातृभाषा भले ही हिंदी नहीं है, लेकिन भारतीय भाषाओं के प्रबल समर्थन करते हुए उन्होंने अपना पूरा साहित्य हिंदी में ही लिखा है। उनका हिंदी प्रेम ही है कि वे पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से पूवोत्तर की लिपि रहित बोलियों को देवनागरी लिपि से जोड़ने के अभियान में सक्रीय हैं। हिंदी और देवनागरी लिपि के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने देश के सभी राज्यों के सुदूर क्षेत्रों के अलावा विदेशों की यात्राएं करके साहित्य और संस्कृति को सर्वोपरि रखा है। भारतीय संस्कृति के उदात्त गुणो से देश की युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिए प्रयासरत विनोद बब्बर की भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका है। राष्ट्र को अपना परिवार मानने वाले विनोद बब्बर साहित्यकार ही नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी हैं जो एक संत की तर्ज पर साधनहीन छात्रों के अभिभावक के रूप में उन्हें हिंदी और राष्ट्र का पाठ पढा रहे हैं। इसी साहित्यक सफर पर उन्होंने हरिभूमि से हुई खास बातचीत में कई ऐसे पहुलुओं को साझा किया, जिनसे साबित होता है कि वे एक सन्यासी के जीवन में भारतीय भाषाओं को किस प्रकार से हिंदी के साथ समायोजित कर रहे हैं। 
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हरियाणा के करनाल जिले के जुंडला गांव में जन्मे सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. विनोद बब्बर को प्रदेश से बाहर रहकर अपनी साहित्य साधना से हरियाणा को गौरवान्वित करने के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2018 के हरियाणा गौरव सम्मान से नवाजा गया है। देश और मातृभाषा हिंदी को प्रोत्साहन देते आ रहे डा. विनोद बब्बर का कहना है कि आज के आधुनिक युग में इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते इस्तेमाल से साहित्य निश्चित रूप से प्रभावित हुआ है। आज की युवा पीढ़ी पुस्तक पढ़ने के बजाए सोशल मीडिया पर सक्रीय है। पुस्तकें और ग्रंथों का अध्ययन करने से ही देश की संस्कृति, भाषा और सभ्यता को जीवंत रखा जा सकता है। इसलिए खासकर युवाओं को पुस्तकों को पढ़ने में ज्यादा रुचित लेनी चाहिए। उनका मानना है कि आज हम किसी अतिथि का स्वागत करने के लिए फूलों का गुच्छा भेंट करते हैं। इससे बेहतर ये होगा कि हम स्वागत के लिए पुस्तक भेंट करें। इस संदर्भ में विद्वानों का यह कथन कटुसत्य है कि पुस्तकालय एक अच्छा मित्र होता है, जिसमें पुस्तक ही एक सच्ची मित्र होती है और एक पुस्तक सौ मित्रों के बराबर है। व्यंग्यकार, निबंधकार, कहानीकार, उपन्यास व कविता जैसी विधाओं में समाज सेवा करने के साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने वाले डा. विनोद बब्बर ने कहा कि सत्तर के दशक में उनका परिवार हरियाणा से दिल्ली आ गया, जहां से उनकी शिक्षा दीक्षा गुडगांव में हुई और वे चंदामामा जैसी पुस्तकों को पढ़ते थे। बचपन में उनकी अनपढ़ माता उन्हें कहानी सुनाती थी और उन्हें अधूरी छोड़कर पूरी करने का काम उन पर छोड़ देती थी। ऐसे ही साहित्य के प्रति बढ़ती रुचि उस समय परवान चढ़ी, जब उनके बड़े भाई ने किताबों की लाइब्रेरी खोली और वह बंद हो गई और सैकड़ो साहित्यक पुस्तके कमरे में बरसात के दिनों में गलने लगी, लेकिन उन्होनें उन्हें सूखाकर सभी किताबों को पढ़ा और साहित्य की विभिन्न विधाओं में लिखना शुरू किया। उन्होंने कहा कि हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने 18 देशों की साहित्यिक सांस्कृतिक यात्राएं करके वहां का अध्ययन करके पुस्तकें लिखीं। जिसमें उन्होंने लन्दन, पेरिस, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, वेनिस, रोम, वेटिकन सिटी, पीसा, मिलान जैसी यूरोपीय पहचानों का वर्णन भी किया है। डा. बब्बर राष्ट्रीय चैनल डी.डी.-1 सहित विभिन्न टी.वी चैनलों एवं आकाशवाणी पर प्रस्तुति, देश के विभिन्न भागों में काव्य पाठ, स्कूल वकालेजों में भारतीय संस्कृति पर व्याख्यान, डीडी-4 के व्यास चैनल तथा यूजीसी की कार्यशालाओं में वक्ता के रुप में सहभागिता, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक लेख एवं रचनाएं प्रकाशित, मुंबई, हैदराबाद सहित अनेक ,राष्ट्रीय समाचार पत्रों में नियमित कालम भी लिख रहे हैं। वह नागरी लिपि परिषद के मुखपत्र ‘नागरी संगम’ का प्रबंध संपादक और राष्ट्रीय किंकर पत्रिका भी चला रहे हैं। 
प्रकाशित पुस्तकें 
प्रसिद्ध साहित्यकार डा. विनोद बब्बर ने हिंदी साहित्य में विभिन्न विधाओं में राष्ट्र एवं हिंदी को सर्वोपरि रखते हुए तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तके लिखी हैं। उनकी आठ पुस्तकें विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुदित है। कुछ किताबों का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। उनकी कृतियों में चाहे व्यंग्य, कथा, कहानी, कविता, निबंध या अन्य कोई भी विधा रही हो, सभी में राष्ट्र एकता और हिंदी को प्रोत्साहित करने वाला अभियान प्रमुखता से शामिल रहा है। उनकी पुस्तकों में ज्येष्ठ में बसंत और जूतों का संसैक्स(व्यंग्य-संग्रह), पीर पराई और फटा कोट (कहानी-संग्रह), प्रताप महान और खरी खोटी (कविता-संग्रह), चेतना के स्वर और लक्ष्मणरेखा (निबंध संग्रह), मांगे सबकी खैर (कथा-संग्रह), इब्सन के देश में, इन्द्रप्रस्थ से रोम तक और फिर-फिर भारत (यात्रा-वृतांत) के अलावा कन्या भ्रूण-हत्या विरोधी अभियान को लेकर लिखी र्ग अजन्मी चीख जैसी पुस्तकें सुर्खियों में रही हैं। उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार से संबंधित आलेख संग्रह के रूप में भाषा और संस्कृति पुस्तक से एक राष्ट्र और हिंदी के प्रेम को बेहतर तरीके दर्शाते हुए समाज को सीख देने का प्रयास किया है। इसके अलावा उनकी प्रतिनिधि कहानियां भी हैं। फटा कोट गुजराती भाषा में भी अनुदित/प्रकाशित, जिसमें कुछ अंश कन्नड़ में प्रकाशित हैं। वहीं मांगे सबकी खैर पुस्तक गुजराती भाषा में अनुदित है। विनोद बब्बर के साहित्य पर चार लघुशोध प्रबंध और देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पांच शोध कार्य हो चुके हैं तो कुछ जारी हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हिंदी के प्रखर समर्थक डा. विनोद बब्बर को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2018 के लिए दो लाख रुपये के हरियाणा गौरव सम्मान देकर उनकी साहित्य साधना को पुरस्कृत किया। इससे पहले बब्बर को देश व विदेश में हिंदी व भारतीय संस्कृति के प्रचार के लिए हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट कार्य व सेवा के लिए सैकड़ो पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं। हिंदी के प्रचार हेतु 16 देशों की साहित्यिक-सांस्कृतिक यात्राएं, सम्मान, कन्या भ्रूण हत्या के विरूद्ध जनजागरण के लिए ’बेटी बचाओ आंदोलन’ विशेष सम्मान, डॉ. विजेन्द्र स्नातक सम्मान, तुलसी सम्मान, स्वामी ज्ञान अर्पितम् सम्मान, गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता सम्मान, बाबू गुलाबराय हिन्दीसेवी सम्मान, नार्वे, कनाडा में अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान, अहिंदी भाषी हिन्दी लेखक संघ द्वारा शिखर सम्मान के अलावा विद्यावाचस्पति, साहित्यमहोपाध्याय, विद्यासागर सहित 250 से अधिक सम्मान मिले हैं। 
22Nov-2021

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