बुधवार, 10 नवंबर 2021

साक्षात्कार: शोषण के सृजनात्मक विरोध में ही रचनाशीलता की सार्थकता

चन्द्रकान्ता के साहित्य में फलक पर कश्मीर की त्रासदी का वर्णन 
-ओ.पी. पाल. 
व्यक्तिगत परिचय नाम: चन्द्रकान्ता 
जन्म: 3 सितम्बर 1938 
जन्म स्थान: श्रीनगर, कश्मीर 
शिक्षा: बी.ए., एम.ए., बी.एड., हिन्दी प्रभाकर, 
संप्रत्ति: बी.एड. में जम्मू-कश्मीर यूनिवर्सिटी में प्रथम और एम.ए.(हिन्दी) में बिड़ला आर्टस कॉलेज में द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
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हरियाणा की ही नहीं, बल्कि देश की वरिष्ठ महिला साहित्यकार चन्द्रकान्ता ने गद्य, पद्य, कहानी, उपन्यास आदि कई विधाओं में समग्र लेखन के जरिए हिन्दी साहित्य क्षेत्र में योगदान और उत्कृष्ट कार्य से समाज को दिशा देने का प्रयास किया है। चन्द्रकान्ता के हिंदी साहित्य के विशिष्ट लेखन कश्मीर की पृष्ठभूमि पर है, जिसे उन्होंने हिन्दी साहित्य के विशाल फलक पर कश्मीर की लोक संस्कृति और प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्विरोधों से उपजी लोकयातना के साथ बेहद संवेदनात्मक घनत्व से उकेरा है। कश्मीर पर उनके तीन महत्वपूर्ण उपन्यास लिखने के बावजूद इनका लेखन समय के ज्वलंत प्रश्नों एवं वृहत्तर मानवीय सरोकारों से जुड़ा है। कशमीर की सामाजिक एवं सौहार्द पूर्ण संस्कृति का वर्णन करते हुए उन्होंने ‘ऐलान गली जिन्दा है' समेत तीन उपन्यास लिखे हैं, जिनमें सांप्रदायिक उन्माद के कारण एक वर्ग का निष्कासन, आतंक से जर्जरवादी का त्रासद वर्णन उनके 'कथा सतीसर' उपन्यास में शामिल है। अपने साहित्यिक सफर के बारे में उन्होंने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत करते हुए कश्मीर में मानवीय प्रसंगों एवं समकालीन ज्वलंत समस्याओं के साथ राष्ट्रीय गौरव, हिंसा का प्रतिरोध, सर्वधर्म समभाव आदि पर अपनी मुख्य चिंता प्रकट की है। सुप्रसिद्ध महिला साहित्यकार चन्द्रकान्ता को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म होने के बाद कश्मीर घाटी के हालातों में सुधार की संभावना है। उनका मानना है कि यह भी उम्मीद बढ़ी है कि जिस वर्ग का जबरन निष्कासन हुआ था वे अनुकूल समझेंगे तो जरुर अपनी जन्म भूमि में वापसी करेंगे। हालांकि अभी समय लगेगा। उनकी कृति कथा सतीसर में तो कशमीरियत की त्रासदी या विवेक-शून्यता का साहित्य प्रतिरोध मात्र नहीं है, बल्कि दुनियाभर में चल रही उन सभी त्रासदियों और यातनाओं का प्रतिरोध साफतौर से झलकता है। चन्द्रकान्ता का कहना है कि उनकी कृतियाँ सामयिक व्यवस्था के विदूपों एवं स्त्री विमर्श की जटिलताओं की तहें खोलती हैं। उन्होंने अपने लेखन में हिंदी साहित्य के जरिए मनुष्य के स्वप्नों, स्मृतियों और उम्मीदों को जिन्दा रखने का प्रयास किया है। उनका मानना है कि शोषण के सृजनात्मक विरोध में ही रचनाशीलता की सार्थकता है। चन्द्रकान्ता ने अपनी साहित्यिक जीवन के सफर के बारे में कहा कि जब वह 1965 में परिवार के साथ हैदराबाद गयी, तो वहीं से उन्होंने स्वतंत्र लेखन करने का निर्णय लिया और उनकी पहली कहानी साल 1967 में साहित्यिक पत्रिका 'कल्पना' में 'खून के रेशे' शीर्षक से प्रकाशित हुई। इसी साल अक्तूबर में इलाहाबाद से प्रकाशित 'नई कहानियाँ पत्रिका में 'कैक्टस' कहानी प्रकाशित हुई। इसके बाद उनकी लेखनी लगातार चली और उन्होंने कहानी, उपन्यास, कविता, संस्मरण, आलेख, यात्रा वर्णन आदि के लेखन ने उन्हें हिंदी साहित्य में जगह दी। उन्होने बताया कि उन्होंने ने देश-विदेश में अनेक गोष्ठियों, सेमिनारों में हिंदी साहित्य की चमक बिखेरी। अमेरिका में सैन्फ्रांसिसको में स्वतंत्रता की 50वीं जयंती के उपलक्ष्य में उन्होंने गदर मेमोरियल हॉल हुए समारोह में काव्य पाठ किया। वहीं कैलिफोर्निया के मिलपीटस शहर, फ्रीमांट शहर और सैनहोजे जैसे शहरों में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कथा पाठ एवं काव्य पाठ करने का उन्हें गौरव हासिल है। उनके उपन्यास कथा सतीसर और समग्र साहित्य पर करीब पचास छात्र-छात्राओं ने ने शोध कार्य किया। वहीं विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में उनकी अनक कई कृतियां व कहानियों को सम्मिलित किया गया है। 
पुस्तक प्रकाशन 
साहित्यकार चन्द्रकान्ता के लिखित 14 कहानी संग्रह में सलाखों के पीछे (दो संस्करण), ग़लत लोगों के बीच(दो संस्करण),पोशनूल की वापसी, दहलीज़ पर न्याय(दो संस्करण), ओ सोनकिसरी! (दो संस्करण), कोठे पर कागा, सूरज के उगने तक, काली बर्फ(दो संस्करण), कथा नगर, बदलते हालात में,अब्बू ने कहा था, रात में सागर और अलकटराज देखा? शामिल हैं। जबकि नौ कथा संकलन में चर्चित कहानियाँ, प्रेम कहानियाँ, आंचलिक कहानियाँ, कथा संग्रह (वितस्ता दा जहर), यादगारी कहानियाँ, दस प्रतिनिधि कहानियाँ, चयनित कहानियाँ, चुनी हुई कहानियाँ, लोकप्रिय कहानियाँ नामक पुस्तके प्रकाशित हुई हैं। उनके सात उपन्यासों में अन्तिम साक्ष्य और अर्थान्तर (द्वितीय संस्करण), बाकी सब खैरियत है (द्वितीय संस्करण),ऐलान गली जिन्दा है, अपने-अपने कोणार्क, यहां वितस्ता बहती है और कथा सतीसर प्रमुख रही। उनकी अन्य कृतियों में यहीं कहीं आसपास (कविता संग्रह),हाशिये की इबारतें (आलकथामक संस्मरण), मेरे भोजपत्र (संस्मरण एवं आलेख), प्रश्नों के दायरे में (साक्षात्कार) और चार खंडों में कथा समग्र का प्रकाशन भी हो चुका है। 
पुरस्कार व सम्मान 
प्रसिद्ध महिला साहित्यकार चन्द्रकान्ता को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2019 के लिए महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान से नवाजने से पहले वर्ष 2013 का बाबू बालमुकुंद गुप्त पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। वहीं अकादमी ने उनकी अपने-अपने कोणार्क, अब्बू ने कहा था और हाशिए की इबारत पुस्तकों को भी पुरस्कृत किया है। वहीं जम्मू-कश्मीर कल्चरल अकादमी द्वारा उन्हें अर्थान्तर, ऐलान गली जिन्दा है, ओ सोनकिसरी तथा कथा सतीसर कृतियों को बेस्ट बुक्स एवार्ड दिया जा चुका है। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा भी उनकी वाकी सब खैरियत है, पोशनूल की वापसी और बदलते हालात में नामक पुस्तकों को पुरस्कृत किया गया है। दिल्ली अकादमी ने उनकी कृति कथा सतीसर को पुरस्कृत करने के अलावा उन्हें हिन्दी अकादमी के साहित्यकार सम्मान से सम्मानित कर चुकी है। इसके अलावा के.के.बिड़ला फाउंडेशन, दिल्ली उनकी कृति कथा सतीसर का व्यास सम्मान से पुरस्कृत कर चुका है। हरियाणा की ही नहीं, बल्कि देश की वरिष्ठ महिला साहित्यकार चन्द्रकान्ता ने गद्य, पद्य, कहानी, उपन्यास आदि कई विधाओं में समग्र लेखन के जरिए हिन्दी साहित्य क्षेत्र में योगदान और उत्कृष्ट कार्य से समाज को दिशा देने का प्रयास किया है। साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट लेखनी की धनी चन्द्रकान्ता को चन्द्रावती शुक्ल सम्मान, कल्पतरु सम्मान, कल्पना चावला सम्मान, ऋचा लेखिका रत्न, वाग्मणि सम्मान, राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान, सौहार्द सम्मान, रत्नीदेवी वाग्देवी पुरस्कार, महात्मा गांधी साहित्य सम्मान और ऑल इण्डिया कश्मीरी समाज द्वारा कम्यूनिटी आइकॉन एवार्ड से भी नवाजा गया है। इसके अलावा राष्ट्र की प्रथम महिला श्रीमती विमला शर्मा द्वारा सम्मानित, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, गुड़गाँव, हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, गुड़गाँव, जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल में 'ए स्ट्रीट इन श्रीनगर', डीएससी साउथ एशियन लिटरेरी पुरस्कार में शार्ट लिस्टेड व सम्मानित होने का गौरव भी उन्हें हासिल है। 
08Nov-2021

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