सोमवार, 29 नवंबर 2021

चौपाल:वेशभूषा, भाषा, बोली ही हरियाणवी संस्कृति की पहचान

-ओ.पी. पाल 
हरियाणा के कलाकार अपनी विविध्या कलाओं के जरिए इस आधुनिक युग और पाश्चत्य संस्कृति की चकाचौंध में लुप्त होती हरियाणवी संस्कृति को जीवंत करने में जुटे हुए हैं। ऐसे ही कलाकारों में शुमार सोनीपत के भजन गायक कलाकार मास्टर श्रीभगवान दीक्षत हैं, जो चाहे वॉलीवुड या हरियाणवी फिल्मों, नाटक मंचन के अलावा संगीत हो या धार्मिक संगीत अथवा फिर स्टेज शो ही क्यों न हो,उन सभी मंचो से हरियाणवी संस्कृति को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ बढ़ावा दे रहे हैं। धार्मिक आयोजनों में भजनो और किस्सों में हरियाणवी संस्कृति और सभ्यता को संजोने में लगे श्रीभगवान दीक्षित का अपनी मातृभूमि, भाषाशैली और संस्कृति से लगाव ही है कि वे अपने सूबे के रीतिरिवाज, वेशभूषा, बोली और सभ्यता को अपनी कला के हुनर से प्रदर्शित करते आ रहे हैं। हरियाणा के गीतों, रागणियों और सांगियों जैसे पुरोधाओं की विरासत को आगे बढ़ाने में जुटे कलाकार श्रीभगवान ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत करते हुए अपनी कला के विभिन्न आयामों को सहजता के साथ साझा किया। प्रदेश के सोनीपत जिले में खरखौदा क्षेत्र के गांव सोहटी में दस दिसंबर 1969 को एक साधारण किसान जयनारायण के घर में जन्मे श्रीभगवान दीक्षित को अपने दादा द्वारा गुणगुनाने और रामलीलाओं में स्टेज पर जाने की लालसा बचपन से ही थी। उन्होंने बताया कि सोनीपत के एसएम हिंदू कालेज में शिक्षण के दौरान उन्होंने इसी कला में अपनी किस्मत आजमाने के लिए अपने एक साथी के साथ कमरा लेकर रहना शुरू किया। 1991 में जब रामलीला में मौका मिला तो उसे सर्वश्रेष्ठ कलाकार के रूप में आंका गया। इसके बाद उनकी कला में विभिन्न आयाम आए, जिन्हें उन्हें बखूबी निभाया। वर्ष 1994 में एमए करने के बाद उन्होंने हिंदू कालेज में अध्यापक के रूप में कार्य शुरू किया, जहां उन्होंने बच्चों को भी कला के गुर सिखाने शुरू कर दिये। उन्होंने मुंबई में भी वॉलीवुड फिल्मों में भी अपनी किस्मत आजमायी। जबकि हरियाणवी फिल्मों व मंचीय नाटकों में उन्होंने अभिनय करके लोकनृत्य तक की कला को प्रस्तुत किया है। खासबात ये है कि उनकी हरियाणवी संस्कृति से जुड़ी वेशभूषा किसी भी मंच पर आकर्षक का केंद्र रहती है। धीरे धीरे उनकी कला का हुनर रंग में आता रहा और वर्ष 2003 में प्रसिद्ध संगीतकार एवं निर्देशक सतीश रंगीला ने स्कूल में उनकी कला को पहचाना और तभी से वह धार्मिक मौकों पर अपने ग्रुप के साथ गीत व भजनों के साथ लोकनृत्य और अभिनय करते आ रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने नेपाल और दुबई जैसे दूसरे देशों में भी हरियाणवी संस्कृति को ही सर्वोपरि रखा है। आधुनिक युग में हरियाणा संस्कृति को पुनर्जीवित करने के मकसद से ही वे पिछले दो दशक से अपने स्टेज शो में हरियाणवी वेशभूषा, भाषा और संस्कृति को आगे रखते हैं, जिसके लिए आज की युवा पीढ़ी को भी अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने की जरुरत है। पाश्चत्य संस्कृति का परित्याग और अपनी संस्कृति से जुड़ने से ही हर किसी जिंदगी आगे बढ़ सकती है और अपनी संस्कृति और सभ्यता को पुनर्जिवित किया जा सकता है। श्रीभगवान बताते हैं कि बचपन में गांव में रामलीला देखकर मन करता था खुद भी रामलीला में हिस्सा लेना का। सपना पूरा हुआ 90 के दशक में कॉलेज समय में। रात के समय रामलीला करने के लिए गांव से आने-जाने में दिक्कत थी, इसीलिए शहर में एक कमरा किराए पर लिया। रामलीला का मंचन दे-तीन दिन ही किया था कि इसी दौरान मंडल कमीशन के आरक्षण के फैसले के चलते आंदोलन शुरू हो गया और हिंसा भड़क गई थी। रामलीला पूरी नहीं हो पाई। हालांकि इसे बैंगन सीनियर रहे कुमार विशु के सानिध्य में अंदर से कलाकार बाहर निकल तथा यूथ फेस्टिवेल के जरिये स्टेज का डर भी निकला। भार माधवन के साध भी किया काम.लकिन निराशा ही हाथ लगो, लेकिन कोशिशे जारी रही। श्रीभगवान ने बताया कि उन्होंने कलाकार मनफूल सिंह डांगी को गुरु बना लिया और चमनलाल मास्कर से संगीत को शिक्षा ली। वर्ष 1996 में वे बिना तनख्वाह के हुही लेकर मुंबई चले गए थे। उस समय मुंबई में काफी संघर्ष किया। एक फिल्म में आर माधवन के साथ काम भी किया, लेकिन वो फिल्म आज तक रिलीज नहीं हुई। इस तरह से कई संघर्ष और परिजनों द्वारा शादी के दबाव के चलते उन्हें वापस आना पड़ा। दो भजनों ने दी दिशा अदरक कलाकार को स्टनमो ने बरकरार रखाका चौधरी, नसीब रुडा, मनफूल सिंह डागी. सुरंट संध. रणवीर बड़वासनिया के साथ उन्होंने स्टेज को जारी रखे। 2003 में गायक सतीश रंगीला की सलाह पर बसंत पंचमी के दिन ये भजन गर उस दिन के बाद से अब तक हरियाणाची संस्कृति को लेकर भजन गाते हैं। लमीचंद मांगेराम की रागनियों के गरिव परियामवी का प्रसार करते है। 29Nov-2021

सोमवार, 22 नवंबर 2021

मंडे स्पेशल: पहचान को महरूम प्रदेश के हजारों रणबांकुरे!

देश का दिया सर्वत्र, फिर भी नहीं मिल पाया सम्मान परिजन लड़ रहे हैं अपनों को पहचान दिलाने की जंग 
ओ.पी. पाल.रोहतक। 
आजादी के 74 साल बाद भी प्रदेश के हजारों रणबांकुरे जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, पहचान को मोहताज हैं। इन वीरों का नाम सरकारी दस्तावेजों में तो दर्ज है, लेकिन न तो उन्हें कभी पहचान मिली और न ही कोई सम्मान। इनके वंशज अपनो को साढ़े सात दशकों से शहीद का दर्जा और धूल फांक रही सरकारी फाइलों से निकालकर मुक्कमल सम्मान दिलाने की जदोजहद कर रहे हैं। कई वीर शहीद तो ऐसे भी हैं जिन्होंने देश को अपना सर्वत्र अर्पित कर दिया, लेकिन उनके परिजनों को इसकी जानकारी तक नहीं है। वे अब तक उसे गुमशुदा ही मान रहे हैं। ऐसे वीरों की सबसे ज्यादा तादाद हिसार जिले में हैं। प्रदेशभर में ऐसे अब तक 287 वीर शहीदों का रिकार्ड मिल चुका है, जिनकी शहादत को मकसद तो मिला, लेकिन उन्हें पहचान नहीं मिल पाई। प्रदेश में अनेक योद्धा ऐसे भी थे, जिन्होंने आजादी के लिए घर परिवार छोड़ दिया और आज तक लौटकर वापस नहीं आए। इनके अलावा ऐसे करीब 450 रणबांकुरे भी रिकार्ड में पाए गये, जिनकी जानकारी से उनके परिजन अनजान हैं। आजादी की जंग में बलिदान देने वाले दिवानों की हालात यह है जब दादरी के स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय राम सिंह फौगाट के रिकार्ड को खोजा गया तो उनके बेटे श्रीभगवान फौगाट ने राष्ट्रीय अभिलेखागार में धूल फांक रही फाइलों से अब तक करीब 287 गुमनाम शहीदों के नाम खोज डाले हैं, जिनमें से सबसे ज्यादा 37 शहीद हिसार, सिरसा, फतेहाबाद व भिवानी जिला(पुराने हिसार जिले) के हैं। इसके बावजूद इन गुमनाम वीरों को अब तक पहचान नहीं दिलाई जा सकी। एक स्वतंत्रता सेनानी ने अपने पिता के साथ समूचे सूबे के ऐसे शहीद वीरों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा और सम्मान दिलाने की मुहिम चलाकर अब तक 287 ऐसे गुमनाम शहीदों को ढूंढ लिया है, लेकिन सरकार की आजादी के दिवानों को एक तरह से भुला सी रही है। 
आजाद हिंद फौज में थे 2,715 हरियाणवी योद्धा 
रिकार्ड के अनुसार द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों से लोहा लेने वाली नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज में हरियाणा के करीब 2,715 सैनिक शामिल थे, जिनमें 398 अफसर और 2317 जवान थे। इनमें तत्कालीन रोहतक जिले (रोहतक, सोनीपत तथा झज्जर) से सर्वाधिक 149 अफसर तथा 724 सैनिकों समेत 873 योद्धा शामिल थो। जबकि उस समय के गुड़गाँव जिले (गुड़गाँव, फरीदाबाद, पलवल, मेवात, रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़) के 106 अफसर तथा 580 जवानों समेत 686 सैनिक इस मुक्ति सेना का हिस्सा रहे। इन वीरों ने ‘मित्र राष्ट्रों’ की सेनाओं से जमकर लोहा लिया। जनवरी 1944 में आजाद हिन्द फौज की सुभाष ब्रिगेड को जनरल शाहनवाज खां के नेतृतव में अंग्रेजों से सशस्त्र युद्ध करने का अवसर प्राप्त हुआ। इस बिग्रेड की दूसरी बटालियन (कुल 3 बटालियन) का नेतृत्व झज्जर जिले में जन्मे ले. कर्नल रणसिंह ने किया। इस ब्रिगेड की प्रथम बटालियन में भी हरियाणा से मेजर सूरजमल ने कलादान घाटी से अंग्रेजों को खदेड़ा। इस बटालियन ने मोदोक पर अधिकार कर लिया। 
पुरखों के बलिदान से अनजान परिजन 
देश की आजादी की जंग में आजाद हिंद फौज में हरियाणा के शहीद हुए रणबांकुरों में 450 सैनिक तो ऐसे हैं, जिन्होंने देश की खातिर अपने आपको बलिदान कर दिया, लेकिन अभी तक उनके अपने परिजनों को इसका इलम तक नहीं। आजादी की जंग में फरीदाबाद क्षेत्र के शहीद सैनिकों के पुरखों को पता नहीं है कि उनके परिवार के किसी बुजुर्ग ने अंग्रेजों से विद्रोह करने वाले नेताजी की आजाद हिंद फौज में भर्ती होकर शाहदत दी है। ऐसे सैनिकों के मिले रिकार्ड को अब सरकारी रिकार्ड में शामिल कराने की कवायद हो रही है। 
पुराने हिसार जिले के सर्वाधिक सैनिक 
प्रदेश के पुराने हिसार जिले जिसमें हिसार, सिरसा, फतेहाबाद भी शामिल था के 37 वीर शहदों के नाम जिला प्रशासन को सौंपे गये हैं। इनमें जेवरा गांव के रिसाल सिंह, राजली के हरके राम, देशराज व मुंशी सिंह, नियाना के भगवान सिंह और उजाला राम, हांसी में खानपुर के अमर सिंह, ठसका के छोटूराम, फ्रांसी के ज्ञानी राम, बांडाहेड़ी के भलेराम, जुगलान के रामजी लाल, काबरेल के बहादुर सिंह, कालीरावण के हरफूल सिंह, नहला के दीवान सिंह, मिर्जापुर के छोटूराम, हरि सिंह, भैणी बादशाहपुर के सुरजा राम, मोडाखेड़ा के हरेराम और पेटवाड़ के निहाल सिंह शामिल हैं। इसके साथ ही जिला फतेहाबाद के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों में जाखल क्षेत्र के चांदपुरा के नारायण सिंह, भट्टू क्षेत्र के मंदोरी के सुरजा राम, फतेहाबाद के खबरा कलां के रामजी लाल, समैन के दयाराम, चंद्रावल के अमी लाल शामिल हैं। सिरसा जिले में रामपुरा के लक्ष्मी चंद, रूपावास के मोजीराम, अली मोहम्मद के मोना राम, उमेदपुरा के सोहन लाल, भुरतवाला के बलबीर सिंह के नाम सामने आए। जबकि भिवानी जिले में तालु गांव के छोटूराम, कैरू के जयराम व जय सिंह, बहल के सुरजा राम, मतानी के एडी राम, बड़वा के काना राम, बढ़ेसरा के हरफूल और फुलपुरा गांव निवासी निहाल सिंह शामिल हैं। 
इसलिए इस जांबाज को नहीं दिया सम्मान 
हिसार जिले के जेवरा गांव निवासी रिसाल सिंह 21 फरवरी, 1941 में सेना में भर्ती हुए और वे हांगकांग सिंगापुर रॉयल आर्टिलरी में तैनात रहे। 15 फरवरी 1942 में दुश्मनों ने उनको बंदी बना लिया और 11 अगस्त, 1944 को प्रिजनर ऑफ वार के तौर पर शहीद हो गए। जब इनके परिजनों ने स्वतंत्रता सेनानी आश्रितों के लाभ के लिए आवेदन किया तो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 9 फरवरी, 1982 को जवाब दिया कि इनके पिता व पत्नी को 27 जुलाई, 1957 तक 16 रुपये मासिक पेंशन दी गई थी, लेकिन इनका आईएनए का सदस्य होने का कोई रिकार्ड नहीं मिला है और कोई लाभ नहीं दिया। ऐसे ही राजली गांव के हरके राम की विधवा फूलपति ने 14 सितंबर 1972 में पेंशन के लिए आवेदन किया था, लेकिन उनके पति का 25 साल पुराना रिकार्ड बताते हुए उसे नष्ट कर दिया गया और जो रिकार्ड मिला उसके अनुसार हरके राम आईएनए के सदस्य नहीं थे। यही हालात आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे राजली गांव निवासी देशराज व मुंशी सिंह का है जिनके परिवार को भी खाक छानने के बाद निराशा ही हाथ लगी। 
रोहतक के सामने आए 58 वीर 
आजाद हिंद फौज के गुमनाम सिपाहियों को पहचान दिलाने के मकसद से श्रीभगवान फौगाट ने पुराने रोहतक जिले(रोहतक, सोनीपत व झज्जर) के 25 रणबांकुरों के नाम व गांव की सूची जिला प्रशासन को सौंपी है। इस सूची में गांव सैमाण के कालूराम व मुंशीराम, कटेसरा के मातूराम व मांगेराम, कहानौर के मोहम्मद यासिन, बैंसी के अब्दुल रजाक व मोहम्मद इलियास, सुनारिया के नानकराम, रामस्वरुप व रामपत, बहुअकबरपुर के सुल्तान सिंह, चन्दगी राम व गोकल राम, पिलाना के कंवल सिंह, सुडाना के शीशराम, चांदी के लाल खान, रिटौली के जुम्मा खान, भाली के घुपल राम, निंदाना के रामस्वरूप, मकड़ौली के गोरधन, डिगल के बदलु राम, हरफूल व बले राम, दुबलधन के वलवनत, खाचरोली के भगवान सिंह, कुनजिया के श्रीगोपाल,मदिना के हर नारायण, डाबोधाकला के हरदवारी, खानपुर खोजता हशराम,सापला के मीरसिंह, सापला के मौ. अली, ढाकला के प्यारेलाल, मानडौढी के रंधवीर, भुरास के रामकुमार,रेवाड़ी खेड़ा के स्वरुप, खरमान के राम सिहं तथा खेर वहादरगढ के रतन सिंह के अलावा झज्जर जिले के झाड़ली गांव के श्रीचंद, छारा के गोधाराम व कांशी राम के साथ सोनीपत के गांव नूना माजना के छतर सिंह, जांटी के मक्खन सिंह और खेड़ी खुमार के प्रेम सिंह शामिल है। हालांकि पुराने रोहतक के करीब 100 वीर शहीदों का रिकार्ड मिला है। 
अब तक इन्हें मिली पहचान
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजाद हिंद फौज में शामिल भिवानी के केहरपुरा गांव निवासी वेदप्रकाश के पिता नेतराम तो घर आ गये थे और उन्हें स्वतंत्रता सैनानी का दर्जा व पेंशन मिल गई, लेकिन उनके बड़े भाई जगनराम को रिकार्ड के अभाव में आज तक कोई पहचान नहीं मिल पाई। पहचान दिलाने की जंग में जगनराम का रिकार्ड भी राष्ट्रीय अभिलेखागार से मिल गया, जो आजादी की जंग में शहीद हो गये थे। 
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शहीदों को पहचान दिलाना उनका कर्तव्य: फौगाट 
प्रदेश के आजदी के दीवानों को पहचान दिलाने के मकसद से पिछले एक दशक से मुहिम में जुटे रेवाड़ी निवासी श्रीभगवान फौगाट का कहना है कि उसने अपने पिता को ही नहीं, बल्कि प्रदेशभर के ऐसे तमाम गुमनाम शहीदों को पहचान व सम्मान दिलाने की मुहिम चला रखी है। उनका मानना है कि वे ऐसे वीर शहीदों के परिजनों को भी खोज रहे हैं जिनके नाम उन्होंने राष्ट्रीय अभिलेखागार के रिकार्ड से एकत्र किये हैं, ताकि वे अपने ऐसे पूर्वजों को जान सके जिन्होंने देश की आजादी के लिए जंग के दौरान अपना सर्वत्र न्यौछावर कर दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अभिलेखागार आजाद हिद फौज पाये जाने पर राज्य व जिला प्रशासन द्वारा परिवारों तक यह रिकार्ड इतिहास गौरवगाथा स्वतंत्रता दर्जा पहुचाने के लिए बार बार फिर से भी आगामी कार्यवाही पुनः किया जाता है, लेकिन सालों से अभी तक कार्यवाही को आगे न बढ़ाना शहीदों को दरकिनार करने जैसा है। जबकि शहीदों के नाम सामने लाने के बाद उनके आश्रितों के लिए ढूंढना भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। इसके बावजूद वे ऐसे गुमनाम शहीदों को उनको स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिलवाने का भी प्रयास करते रहेंगे। 
22Nov-2021

फिल्म: हरियाणवी संस्कृति संस्कार और सामाजिक मूल्यों का संदेश देती फिल्म ‘दिल हो गया लापता’

नवोदित कलाकारों ने अपने अभिनय से दिखाया अपनी कला का हुनर 
-ओ.पी. पाल 
हरियाणवी संस्कृति, संस्कार और समाज के मौलिक मूल्यों को लेकर एक सकारात्मक संदेश देती हरियाणवी फिल्म ‘दिल हो गया लापता’ में ज्यादातर नवोदित युवा कलाकारों ने अभिनय करके यह साबित कर दिया है कि अभिनय सीखा नहीं जा सकता और इसके लिए आत्मविश्वास और जज्बा होना चाहिए। फिल्म निर्देशक और निर्माता जगबीर राठी ने ही इस फिल्म की जो पटकथा लिखी है। इस नई हरियाणवी फिल्म में निर्माता ने ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओं’ की थीम को भी बल देते हुए नारी शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान पर फोकस किया है, जो अभिनय क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि हास्य कवि और लेखक के रूप में हरियाणवी संस्कृति को बढ़ावा देते आ रहे हैं। महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक में निदेशक युवा कल्याण के पद पर कार्यरत जगबीर राठी ने इस फिल्म की कथा, पटकथा और संवाद के जरिए खासकर युवा पीढ़ी को दिये गये संदेश के बारे में हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में फिल्म की पृष्ठभूमि को स्पष्ट किया है। फिल्म निर्माता जगबीर राठी के अनुसार इस फिल्म की विशेषता यह है कि इसमें अभियन करने वाले तमाम कलाकार हरियाणवी ग्रामीण पृष्ठभूमि में जन्मे और पले बढ़े हैं। रोहतक में ही बनाई गई इस फिल्म में कलाकार, सहायक कलाकार, संगीतकार, गायक, पार्श्व गायक समेत 95 प्रतिशत रोहतक के ही हैं। इससे ज्यादा दिलचस्प बात ये है कि युवा पीढ़ी को पौराणिक सामाजिक मान्यताओं को स्वच्छ परिवेश प्रस्तुत करने के लिए 60 प्रतिशत कलाकारों ने पहली बार सराहनीय अभिनय करके यह संदेश दिया है, कि अभिनय को सीखा नहीं जाता, बल्कि आत्मविश्वास ही कला को उजागर करता है। राठी का कहना है कि इस पूरी फिल्म की मूल आत्मा हरियाणवी जनजीवन और उससे जुड़े परिवेश को जीवंत करती है, जिसमें मूल मर्म नारी सम्मान से जुड़ा हुआ है। पाश्चत्य संस्कृति से इतर हरियाणवी संस्कृति और संस्कारों में नारी के प्रति सम्मान के साथ बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का संदेश देती इस फिल्म की कहानी में कालेजों में दैनिक कार्याकलापों और घटनाओं का फिल्मांकन करके कलाकारों ने संवेदनशीलता के साथ मनोरंजक प्रस्तुतियां देकर जो संदेश दिया गया है, उसके कारण इस नई फिल्म को चौतरफा सराहना मिल रही है। दरअसल इस फिल्म की कहानी तीन ऐसे युवा छात्रों के ईर्द गिर्द घूम रही है, जिन्हें दाखिले के बावजूद कालेज के हॉस्टल में जगह नहीं मिलती और उन्हें पीजी में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इत्तफाक से उसी कालेज में पढ़ने वाली एक छात्रा पीजी के पास ही एक मकान में रहती है। तीनो छात्रों को उसी लड़की से प्यार हो जाता है। इसी फिल्म में दूसरा पक्ष यह भी है कि उसी छात्रा से कालेज के गुंडई करने वाला छात्र जबरन प्यार करके शादी रचाना चाहता है। मसलन इस फिल्म में हरियाणवी संस्कृति के साथ कालेज में नई पीढ़ी के युवाओं के माहौल भाषा, बोली जैसे पहलुओं का समावेश भी किया गया है। 
अभिनेता की भूमिका पर खरे उतरे प्रभप्रीत 
नई हरियाणवी फिल्म ‘दिल हो गया लापता’ के मुख्य अभिनेता प्रभप्रीत सिंह ने पहली बार किसी फिल्म के पर्दे पर आए हैं, जिन्हें किसी फिल्म में काम करने का मौका मिलने पर बेहद खुशी हो रही है। प्रभप्रीत का कहना है कि बॉलीवुड फिल्मे देखते हुए उन्हें भी बचपन से अभिनय में गहरी दिलचस्पी थी और स्कूली समय में मंचन भी किया। आईएमएसएआर एमडीयू से एमबीए करने के दौरान भी उन्होंने मंचन किया, लेकिन किसी फिल्म में और वह भी हीरो की भूमिका में काम करने का मौका मिलना उसके लिए आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला अनुभव रहा और कई अनुभवी कलाकारों का साथ मिलने से इस क्षेत्र में बहुत कुछ सीखने को भी मिला है। इसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी कि वह एक अभिनेता की भूमिका में अभिनय करने का मौका मिलेगा। उन्होंने बताया कि जब फिल्म निर्माता जगबीर राठी ने उन्हें ओडिसन के लिए बुलाया तो उसके अभिनय को उन्होंने मुख्य अभिनेता के रूप में परखा और फिल्म में अभिनय को मिल रही सराहना से उसे विश्वास भी नहीं हो रहा है कि पहली बार फिल्म में अभिनय के लिए वह कसौटी पर खरा उतरा। हालांकि वह इस दौरान घबराया हुआ भी था, लेकिन फिल्म निर्देशक के हौंसले और उनकी माता के प्रोत्साहन ने उसमें जज्बा पैदा किया कि उसने फिल्मी डायलॉग के साथ अपने अभिनय को अंजाम दिया। इससे पहले वह फिल्म उद्योग से जुड़े कई लोगों से भी संपर्क कर चुका था, लेकिन इस फिल्म में अभिनय करना वास्वत में उसके लिए एक सपने का सच होने जैसा था। इस फिल्म में काम करने का अनुभव उसके लिए भविष्य की राह प्रशस्त करेगा ऐसा उसका विश्वास भी है। आईसीसीआई बैंक में कार्यरत प्रभप्रीत सिंह ने इस फिल्म में विक्रमजीत सिंह गिल की भूमिका निभाई है। 
स्कूली छात्रा बनी अभिनेत्री 
रोहतक के डीएलएफ कालोनी निवासी कक्षा 12वीं की छात्रा कुमारी सांची गुप्ता ने हरियाणवी संस्कृति पर आई नई फिल्म ‘दिल हो गया लापता’ में मुख्य अभिनेत्री का अभिनय करके कला के क्षेत्र को निश्चित रूप से चौंकाया है। इस फिल्म की हीरोइन पम्मी के रूप में अपने अभिनय की सफलता को लेकर सांची गुप्ता बेहद उत्साहित है और अभिनय को अपनी पढ़ाई के साथ भविष्य में कैरियर के रूप में अपनाने का सपना संजोए हुए है। इसके लिए उसके पिता अमित गुप्ता और माता नेहा गुप्ता पूरा प्रोत्साहित कर रहे हैं। उसने बताया कि उसका छोटे भाई प्रणव ने भी उसके अभिनय को देखकर इस क्षेत्र में दिलचस्पी दिखाई है। स्थानीय मॉडल स्कूल में पढ़ रही सांची एक मेधवी छात्रा का सम्मान भी हासिल कर चुकी है। रोहतक में 4 अगस्त 2004 को जन्मी सांची गुप्ता का कहना है कि फिल्म में एक अनुभवी अभिनेत्री की तरह अभिनय की प्रशंसा होने के बाद उसमें आत्मविश्वास का संचार हुआ है और वह एक बेहतर अनुभव के साथ फिल्म उद्योग में कलाकार की भूमिका को और ज्यादा मजबूत करना चाहती है। फिल्म निर्देशक ने इस फिल्म के लिए जब ऑडिशन लिया तो उसे मुख्य अभिनेत्री के अभिनय के लिए चुना गया। सांची का कहना है कि बचपन से उसे डांसिंग का शोंक है। हालांकि उसने स्कूली कार्यक्रमों में नाटकों के मंचन में भी हिस्सा लिया है। इस फिल्म में अभिनय के बाद अब उसका बॉलीवुड फिल्मों में अभिनय करने का सपना है। हांलकि हरियाणवी फिल्म में उसकी भूमिका को जिस प्रकार से सराहा जा रहा है और उसे उम्मीद है कि वह फिल्म उद्योग में अपनी अभिनय की कला को और ज्यादा मजबूत करके अपने सपने को पूरा करेगी। इसके लिए उसके अभिभावक भी संभावनाओं को तलाश रहे हैं। 
नेता से बने अभिनेता 
फिल्मों या अन्य क्षेत्रों से राजनीति में आते तो बहुत देखे हैं, लेकिन राजनीति से फिल्मों में अभिनय करना रोहतक निवासी कपिल सहगल के लिए किसी सपने को पूरा करने से कम नहीं है। हरियाणवी संस्कृति को लेकर जगबीर राठी की नई फिल्म ‘दिल हो गया लापता’ में कालेज हॉस्टल के मुख्य वार्डन की भूमिका में काम करने वाले कपिल सहगल ने बताया कि उन्होंने फिल्मों में अभिनय का सपना साल 2018 में उस समय संजोया था, जब उन्होंने हरियाणवी वेब सीरिज ‘केम्प’ बनवास में एक शिक्षिका के पति के रूप में अभिनय किया था। वह एक साधारण परिवार से आते हैं जिनका स्वभाव बचपन से ही चंचल है। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वे राजनीति में आए और भाजपा में मंडल से प्रदेश स्तर पर कई पदों पर रहे और , लेकिन उनका सपना कुछ अलग करने का था, जिसका मौका उन्हें इस फिल्म में फिल्म निर्माता जगबीर राठी ने दिया। उन्होंने बताया कि इस फिल्म में उनकी भूमिका वास्तविक वार्डन जैसी रही, जो फिल्म देखने वालों को काफी पसंद आ रही है। सहगल ने बताया कि इस फिल्म में अलग अलग भाषा क्षेत्रों से आने वाले तीनों छात्र उससे अपनी भाषा में हास्टल में कमरा मांग रहे हैं और वह उन्हें उन्हीं की भाषा व बोलचाल में जवाब देकर पीजी दिलावाने में मदद करते हैं। इसमें उनके अभिनय के लिए उसके परिजनों का प्रोत्साहन और उनके अनुभवी साथियों को भी श्रेय है। उनका कहना है कि वह फिल्म उद्योग में एक कलाकार के रूप में भविष्य में भी अभिनय के लिए तैयार हैं, क्योंकि इस फिल्म ने उन्हें जो एक कलाकार के रूप में अनुभव दिया और कुछ सीखने को मिला, उसे वह एक अनुभवी कलाकार के रूप में सार्थक करना चाहते हैं। 
13Nov-2021

साक्षात्कार: भारतीय संस्कृति को जीवंत करने में साहित्य की अहम भूमिका: डा. विनोद बब्बर

साहित्य साधना से किया हरियाणा को गौरवान्वित ओ.पी. पाल
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व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. विनोद बब्बर 
जन्म: 1 जुलाई 1950 
जन्म स्थान: जुंडला, जिला करनाल (हरियाणा) 
 पता: ए-2/9ए, हस्तसाल रोड, उत्तम नगर, नई दिल्ली। शिक्षा: बीए, एमए, बी.एड. पीएचडी।
संप्रत्ति: पूर्व प्रधानाचार्य एवं आचार्य विनोबा भावे के सद्प्रयासों से गठित नागरी लिपि परिषद के मंत्री।
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हिंद और हिंदी की सेवा में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित वरिष्ठ साहित्यकार डा. विनोद बब्बर की मातृभाषा भले ही हिंदी नहीं है, लेकिन भारतीय भाषाओं के प्रबल समर्थन करते हुए उन्होंने अपना पूरा साहित्य हिंदी में ही लिखा है। उनका हिंदी प्रेम ही है कि वे पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से पूवोत्तर की लिपि रहित बोलियों को देवनागरी लिपि से जोड़ने के अभियान में सक्रीय हैं। हिंदी और देवनागरी लिपि के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने देश के सभी राज्यों के सुदूर क्षेत्रों के अलावा विदेशों की यात्राएं करके साहित्य और संस्कृति को सर्वोपरि रखा है। भारतीय संस्कृति के उदात्त गुणो से देश की युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिए प्रयासरत विनोद बब्बर की भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका है। राष्ट्र को अपना परिवार मानने वाले विनोद बब्बर साहित्यकार ही नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी हैं जो एक संत की तर्ज पर साधनहीन छात्रों के अभिभावक के रूप में उन्हें हिंदी और राष्ट्र का पाठ पढा रहे हैं। इसी साहित्यक सफर पर उन्होंने हरिभूमि से हुई खास बातचीत में कई ऐसे पहुलुओं को साझा किया, जिनसे साबित होता है कि वे एक सन्यासी के जीवन में भारतीय भाषाओं को किस प्रकार से हिंदी के साथ समायोजित कर रहे हैं। 
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हरियाणा के करनाल जिले के जुंडला गांव में जन्मे सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. विनोद बब्बर को प्रदेश से बाहर रहकर अपनी साहित्य साधना से हरियाणा को गौरवान्वित करने के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2018 के हरियाणा गौरव सम्मान से नवाजा गया है। देश और मातृभाषा हिंदी को प्रोत्साहन देते आ रहे डा. विनोद बब्बर का कहना है कि आज के आधुनिक युग में इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते इस्तेमाल से साहित्य निश्चित रूप से प्रभावित हुआ है। आज की युवा पीढ़ी पुस्तक पढ़ने के बजाए सोशल मीडिया पर सक्रीय है। पुस्तकें और ग्रंथों का अध्ययन करने से ही देश की संस्कृति, भाषा और सभ्यता को जीवंत रखा जा सकता है। इसलिए खासकर युवाओं को पुस्तकों को पढ़ने में ज्यादा रुचित लेनी चाहिए। उनका मानना है कि आज हम किसी अतिथि का स्वागत करने के लिए फूलों का गुच्छा भेंट करते हैं। इससे बेहतर ये होगा कि हम स्वागत के लिए पुस्तक भेंट करें। इस संदर्भ में विद्वानों का यह कथन कटुसत्य है कि पुस्तकालय एक अच्छा मित्र होता है, जिसमें पुस्तक ही एक सच्ची मित्र होती है और एक पुस्तक सौ मित्रों के बराबर है। व्यंग्यकार, निबंधकार, कहानीकार, उपन्यास व कविता जैसी विधाओं में समाज सेवा करने के साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने वाले डा. विनोद बब्बर ने कहा कि सत्तर के दशक में उनका परिवार हरियाणा से दिल्ली आ गया, जहां से उनकी शिक्षा दीक्षा गुडगांव में हुई और वे चंदामामा जैसी पुस्तकों को पढ़ते थे। बचपन में उनकी अनपढ़ माता उन्हें कहानी सुनाती थी और उन्हें अधूरी छोड़कर पूरी करने का काम उन पर छोड़ देती थी। ऐसे ही साहित्य के प्रति बढ़ती रुचि उस समय परवान चढ़ी, जब उनके बड़े भाई ने किताबों की लाइब्रेरी खोली और वह बंद हो गई और सैकड़ो साहित्यक पुस्तके कमरे में बरसात के दिनों में गलने लगी, लेकिन उन्होनें उन्हें सूखाकर सभी किताबों को पढ़ा और साहित्य की विभिन्न विधाओं में लिखना शुरू किया। उन्होंने कहा कि हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने 18 देशों की साहित्यिक सांस्कृतिक यात्राएं करके वहां का अध्ययन करके पुस्तकें लिखीं। जिसमें उन्होंने लन्दन, पेरिस, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, वेनिस, रोम, वेटिकन सिटी, पीसा, मिलान जैसी यूरोपीय पहचानों का वर्णन भी किया है। डा. बब्बर राष्ट्रीय चैनल डी.डी.-1 सहित विभिन्न टी.वी चैनलों एवं आकाशवाणी पर प्रस्तुति, देश के विभिन्न भागों में काव्य पाठ, स्कूल वकालेजों में भारतीय संस्कृति पर व्याख्यान, डीडी-4 के व्यास चैनल तथा यूजीसी की कार्यशालाओं में वक्ता के रुप में सहभागिता, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक लेख एवं रचनाएं प्रकाशित, मुंबई, हैदराबाद सहित अनेक ,राष्ट्रीय समाचार पत्रों में नियमित कालम भी लिख रहे हैं। वह नागरी लिपि परिषद के मुखपत्र ‘नागरी संगम’ का प्रबंध संपादक और राष्ट्रीय किंकर पत्रिका भी चला रहे हैं। 
प्रकाशित पुस्तकें 
प्रसिद्ध साहित्यकार डा. विनोद बब्बर ने हिंदी साहित्य में विभिन्न विधाओं में राष्ट्र एवं हिंदी को सर्वोपरि रखते हुए तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तके लिखी हैं। उनकी आठ पुस्तकें विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुदित है। कुछ किताबों का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। उनकी कृतियों में चाहे व्यंग्य, कथा, कहानी, कविता, निबंध या अन्य कोई भी विधा रही हो, सभी में राष्ट्र एकता और हिंदी को प्रोत्साहित करने वाला अभियान प्रमुखता से शामिल रहा है। उनकी पुस्तकों में ज्येष्ठ में बसंत और जूतों का संसैक्स(व्यंग्य-संग्रह), पीर पराई और फटा कोट (कहानी-संग्रह), प्रताप महान और खरी खोटी (कविता-संग्रह), चेतना के स्वर और लक्ष्मणरेखा (निबंध संग्रह), मांगे सबकी खैर (कथा-संग्रह), इब्सन के देश में, इन्द्रप्रस्थ से रोम तक और फिर-फिर भारत (यात्रा-वृतांत) के अलावा कन्या भ्रूण-हत्या विरोधी अभियान को लेकर लिखी र्ग अजन्मी चीख जैसी पुस्तकें सुर्खियों में रही हैं। उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार से संबंधित आलेख संग्रह के रूप में भाषा और संस्कृति पुस्तक से एक राष्ट्र और हिंदी के प्रेम को बेहतर तरीके दर्शाते हुए समाज को सीख देने का प्रयास किया है। इसके अलावा उनकी प्रतिनिधि कहानियां भी हैं। फटा कोट गुजराती भाषा में भी अनुदित/प्रकाशित, जिसमें कुछ अंश कन्नड़ में प्रकाशित हैं। वहीं मांगे सबकी खैर पुस्तक गुजराती भाषा में अनुदित है। विनोद बब्बर के साहित्य पर चार लघुशोध प्रबंध और देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पांच शोध कार्य हो चुके हैं तो कुछ जारी हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हिंदी के प्रखर समर्थक डा. विनोद बब्बर को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2018 के लिए दो लाख रुपये के हरियाणा गौरव सम्मान देकर उनकी साहित्य साधना को पुरस्कृत किया। इससे पहले बब्बर को देश व विदेश में हिंदी व भारतीय संस्कृति के प्रचार के लिए हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट कार्य व सेवा के लिए सैकड़ो पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं। हिंदी के प्रचार हेतु 16 देशों की साहित्यिक-सांस्कृतिक यात्राएं, सम्मान, कन्या भ्रूण हत्या के विरूद्ध जनजागरण के लिए ’बेटी बचाओ आंदोलन’ विशेष सम्मान, डॉ. विजेन्द्र स्नातक सम्मान, तुलसी सम्मान, स्वामी ज्ञान अर्पितम् सम्मान, गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता सम्मान, बाबू गुलाबराय हिन्दीसेवी सम्मान, नार्वे, कनाडा में अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान, अहिंदी भाषी हिन्दी लेखक संघ द्वारा शिखर सम्मान के अलावा विद्यावाचस्पति, साहित्यमहोपाध्याय, विद्यासागर सहित 250 से अधिक सम्मान मिले हैं। 
22Nov-2021

मंगलवार, 16 नवंबर 2021

चौपाल: हरियाणवी संस्कृति की पैरोकार अर्चना सुहासिनी

लोकगीतों के साथ फॉक डांसिंग ने दिलाई प्रसिद्धि 
-ओ.पी. पाल 
रियाणा की प्रसिद्ध फोक डांसर अर्चना सुहासिनी एक ऐसी बहु प्रतिभा वाली कलाकार हैं, जिनमें शायद ही कोई कला ही बाकी रह गई होगी अन्यथा उनकी सर्वसंपन्न कला का हुनर सार्वजनिक है। मसलन हरियाणवी अभिनेत्री, लेखक, कवयित्री, शिक्षाविद, रेडियो व टीवी एंकर, वीडियो व फोटोग्राफी, चित्रकारी जैसी कलाओं से इतर जूडो कराटे और खेती बाड़ी जैसे तमाम कार्यो में निपुण अर्चना सुहासिनी में खासकर हरियाणवी संस्कृति और संस्कार कूट-कूटकर भरे हुए हैं, जिसे वह अपनी कला के हुनर से बढ़ावा देने में निरंतर जुटी हुई हैं। जैसा कि सुहासिनी का अर्थ सुंदर हंसने वाली यानि कलाकार अर्चना पर ‘मुस्कुराकर, दर्द भूलकर, रिश्तों में बंद थी दुनिया सारी, हर पग को रोशन करने वाली, वो शक्ति है एक नारी’ वाला मुहावरा सटीक बैठता है। अभिनय के रूप में बॉलीवुड तक सफर करने वाली अर्चना सुहासिनी एक ऐसा नाम है, जिसने समाज की बेड़ियों की जकड़न के बीच संघर्षशील जीवन को कलाओं की बुलंदियों का चोला पहनाकर देश व समाज को ही नहीं, बल्कि अपने सूबे हरियाणा को भी गौरवान्वित किया है। हरियाणवी संस्कृति को बचाने के लिए फॉक कला और संस्कृति विशेष योगदान के लिए राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सात रोड हिसार की हिंदी प्राध्यापिका अर्चना सुहासिनी को प्रदेश सरकार ‘हरियाणा गौरव’ अवार्ड से भी नवाज चुकी है। अर्चना सुहासिनी ने अपने संघर्षशील जीवन से लेकर कलाकार के रुप में बिंदास जीवन तक के अनुभवों को हरिभूमि संवाददाता के साथ हुई विस्तृत बातचीत के दौरान साझा किया। 
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प्रदेश के हिसार शहर के गूजरान पड़ाव में 30 नवंबर 1972 को बहुत ही रूढ़िवादी परिवार में जन्मी अर्चना सुहासिनी का जीवन बेहद संघर्षशील रहा। इसके बावजूद उसने अपनी बहु प्रतिभा रूपी कला से वह किसी परिचय की मोहताज नहीं है। सुहासिनी ने अपने जीवन संघर्ष के बारे में बताया कि जब उसने पढ़ाई शुरू की तो उसके गुर्जर समाज के साथ गांव वालो ने विरोध किया और उनके पिता विनोद कुमार पर दबाव डाला, कि बेटी को पढ़ाकर क्या करेंगे। अच्छा होगा चूल्हा-चौका कराकर शादी करा देना। कहीं ऊंच-नीच हो गई तो समाज में बदनामी हो जाएगी। लेकिन एक विद्यालय में लाइब्रेरी में कार्यरत उसके पिता ने इसकी परवाह किये बिना बेटी को शिक्षित करने जिद पकड़ ली। परिवार के इसी सहयोग का नतीजा आज सामने है कि वह उस अपने क्षेत्र की गुर्जर समाज की पहली शिक्षित बेटी ही नहीं बनी, बल्कि उसने समाज व प्रदेश का जिस तरह से मान बढ़ाया है उसे देखकर आज वही लोग इस बेटी की तारीफ ही नहीं बल्कि सम्मान करते नहीं थकते, जो उसकी पढ़ाई और स्कूल जाने का विरोध करते थे। अपने कांटेभरे सफर को लेकर सुहासिनी का कहना है कि समाज व प्रदेश में उसकी एक दबंग महिला के रूप में भी पहचान है। गलत करो मत और गलत सहो मत जैसे संस्कार भी परिवार से ही मिले, जो किसी भी नारी को आत्मनिर्भर बनाने में बड़ा काम करते है। उन्होंने एक किस्से का जिक्र करते हुए बताया कि जब वह 11वीं कक्षा में थी और स्कूल से घर आते समय किसी लड़के ने उस पर फब्तियां कसी, जिसके बाद वह घर आकर खूब रोई, लेकिन पिता ने उसे आत्मरक्षा का पाठ पढ़ाकर उसमें आत्मरक्षा के लिए दबंगई का जज्बा जगा दिया। उन्होंने बताया कि वह गणित से बहुत डरती थी और स्कूल में कभी प्रार्थना नहीं की और न ही मंच पर जाने की हिम्मत हुई। इसके बावजूद बचपन में ब्याह शादी जैसे घरेलू कार्यक्रमो में गीत सुनते-सुनते उसमें हरियाणवी संस्कृति और लोक गीतों के प्रति रूझान बढ़ने लगा। एक मोड ऐसा आया जब इंटरमिडिएट करते ही परिवार वालों पर शादी करने का दबाव भी बना, लेकिन वह आगे कॉलेज में उच्च शिक्षा ग्रहण करना चाहती थी। कालेज के लिए गांव, समाज व परिवार के अन्य लोगों ने यहां तक कहा कि अब वह छोरो के साथ कालेज में पढ़ेगी? यहां भी उसके लिए पिता की जिद्द ने संजीवनी का काम किया और किसी परवाह किये बना पिता ने उसे कालेज में दाखिला दिलाया और वह बीए करने में सफल रही। 

गृहस्थी में आते ही बदली जिंदगी 

उन्होंने बताया कि बीए पास होते ही परिवारवालों ने उसकी शादी हांसी के गांव ढाणीपाल में कर दी, लेकिन सौभाग्य से उसकी ससुराल वालों ने भी उसकी कला को समझा और भरपूर साथ दिया। खास बात ये भी है कि ससुराल वालों के सहयोग की बदौलत वह हिंदी व राजनीति शास्त्र में डबल एमए, एमफिल के अलावा ग्राम विकास में स्नातकोत्तर डिप्लोमा और फॉक डांसिंग का डिप्लोमा तक करने में कामयाब रही। उसके लिए साल 1999 इतना लकी रहा, जब उसे पात्र शिक्षिका की नौकरी मिली और पहली बार कृष्णलीला में डांस करने का मौका मिला। इसी साल रेडियो पर भी मौका मिला। यही वो मोड था, जहां से उनका लोक साहित्य के रुझान को विस्तार मिला तथा सांग, डांस, हरियाणवी रामलीला, कृष्ण नाटय लीला कर मंचन की शुरूआत हुई। फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 2002 में वह टीवी में आई। उसकी इन विभिन्न विधाओं की कला को बुलंदियों तक पहुंचाने में पिता विनोद के अलावा ससुरालियों और पति जसबीर सिंह बटार व बेटे शुभम का प्रोत्साहन लगातार मिल रहा है। 

नारी शक्ति को किया मजबूत 

लोक कलाकार एवं अभिनेत्री अर्चना सुहासिनी ने आर्चीज दमोडा सांस्कृतिक डांस ग्रुप बनाकर उसमें हरियाणवी संस्कृति की समझ रखने वाली 80 साल तक की बुजुर्ग ग्रामीण महिलाओं को जोड़ा है। खास बात ये है कि इस दल की महिलाओं को जन्म से लेकर मृत्यु तक के लोकगीतों की प्रस्तुति, लोकगीतों और लोकनृत्यों के साथ हरियाणवी हस्तशिल्प कला, भीति चित्रों मांडने, सांझी, फुलझड़ी इत्यादि में भी महारत हासिल है। प्रसिद्ध महिला कलाकार अर्चना सुहासिनी इस आधुनिक युग में कोरियोग्राफी के बढ़ते चलन से लुप्त होते फोक नृत्य को बढ़ावा देने में जुटी हैं, जो एक शिक्षिका की जिम्मेदारी निभाते हुए वह अपने विद्यालय की छात्राओं को फोक डांस और अन्य संस्कृति आधारित कलाओं में निपुण कर रही है। वहीं छात्राओं के परिवारों की महिलाएं भी इस लोकगीतो व लोकनृत्य में हिस्सेदार बनकर दिलचस्पी दिखा रही हैं। अर्चना सुहासिनी देशभर में हरियाणवी लोक कला और संस्कृति में शामिल पारंपरिक वेषभूषा, बोल चाल, भाषा, पहनावा, खानपान और रीतिरिवाजों को पुनर्जीवित करने के लिए ऐसी अलग जगा रही है, जिसकी गूंज विदेशो तक भी सुनाई देती है। 

बागड़ क्षेत्र की संस्कृति की भूमिका 

सुहासिनी का कहना है कि हरियाणवी संस्कृति को समृद्ध करने में बागड़ क्षेत्र की संस्कृति के महत्वपूर्ण योगदान है, जिसमें खासकर बागड़ी चित्ताणा कला के बिना हरियाणवी लोक कला अधूरी है। हरियाणवी संस्कृति की धरोहर के रूप इस कला को संरक्षित करने के लिए वह दल की महिला कलाकारों के साथ बागड़ क्षेत्र में जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त लोक कला के बागड़ी चित्ताणा को बढ़ावा देने में जुटी हैं। मसलन उन्होंने अपनी लोक कला में जन्म, छठी, ब्याह और मृत्यु तक के रीतिरिवाजों के गीतों को समाहित किया है। ग्रुप द्वारा दीपावली, धनतेरस, अहोई अष्टमी, घणघोर, गूगा नवमी, घरबत, बेहमाता और ब्याह आदि के चित्ताणा भी घर की दीवारों बनाकर महिलाएं इस संस्कृति को संजो रही हैं। इसमें बागड़ क्षेत्र में गाए जाने वाले लोकगीत और भजन एवं लोक नृत्य पर वह कार्याशालएं भी कर रही हैं, जिसमें घरेलू बर्तनों, कुठला, कोठी, ठाठिया आदि पर चित्ताणा बनाए जाते हैं।

बॉलीवुड और हरियाणवी फिल्मों में अभिनय 

बहु प्रतिभाशाली कलाकार सुहासिनी ने बालीवुड अभिनेता गुलशन ग्रोवर के साथ ‘नंगे पांव’ तथा अभिनेता राजकुमार के साथ ‘तुर्रम खां’ समेत कई फिल्म में अभिनय से बड़ी पहचान बनाई। हरियाणवी फिल्मों में भी अर्चना के अभिनय की कोई थाह नहीं। हाल ही में हरियाणा दिवस पर रिलीज हुई हरियाणवी फिल्म ‘दिल हो गया लापता’ में मुख्य अभिनेत्री पम्मी की बुआ की भूमिका में सुहासिनी का अभिनय हरियाणवी संस्कृति का परिचायक साबित हुआ। उन्होंने कई लघु फिल्मों में भी अभिनय किया है। सुहासिनी अपनी बहु प्रतिभाशाली कला की प्रसिद्धि के लिए विभिन्न पत्रिकाओं व उपन्यास आदि की कवर गर्ल के रूप में भी सामने आई हैं। हरियाणा सरकार द्वारा जुलाई 2019 में हरियाणा गौरव अवार्ड के अलावा उन्हें टीम शिक्षा दीक्षा अवार्ड का सम्मान भी दिया जा चुका है, जो इससे पहले प्रदेश में शिक्षकों के आंदोलन में भी सक्रीय होकर नेतृत्व करती रही हैं। सामाजिक गतिविधियों में बढ़चढ़ कर भागीदारी करके सुहासिनी समाज मे व्याप्त कुरीतियां मृत्युभोज प्रतिबन्ध,दहेज पर रोक के लिए भी जागरूकता का काम कर रही हैं। 

टीवी व रेडियो कलाकार 

अर्चना सुहासिनी बहु प्रतिभा कलाकार ही नहीं, बल्कि लोकगीतों पर कार्य करते हुए उन्होंने 17 साल तक आल इंडिया रेडियो पर जीवंत कार्यक्रम पेश किये हैं और डीडी न्यूज चैनल पर एंकरिंग भी की है। वहीं टीवी चैनल एवन तहलका और एंडी हरियाणा पर लोकगीतों और लोकनृत्यों की प्रस्तुतियां देने के अलावा धार्मिक अवसरों पर गीत, भजन और लोकनृत्य जैसी प्रस्तुतियां देकर सुहासिनी की सैकड़ो वीडियों यूट्यूब पर सार्वजनिक हैं। वह हरियाणा के अलावा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में सैकड़ो सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दे चुकी हैं। उनके नेतृत्व वाला सांस्कृतिक ग्रुप अंतराष्ट्रीय गीता जयंती, कला साधक संगम, हरियाणवी फिल्म फेस्टिवल, मैराथन, राहगीरी, पिंकाथन पानीपत, फ्री स्टाइल कुश्ती प्रतियोगिता आदि समारोह में अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से हरियाणवी संस्कृति को प्रोत्साहित करने में जुटा हुआ है। 

 15Nov-2021

मंडे स्पेशल: दस्तावेजों में कैद हो रही है लाल डोरा मुक्त संपत्तियां

हरियाणा में स्वामित्व योजना में संपत्तियों की रजिस्ट्रियों का दौर जारी 
ओ.पी. पाल.रोहतक। लाल डोरा मुक्ति और स्वामित्व योजना ने भूमि विवाद निपटारे और स्वमियों को मालिकाना हक देने में बडी भूमिका अदा की है। इसी से उत्साहित सरकार अब लाल डोरे से बाहर रजिस्ट्रियां करने की तैयारी कर रही है। केवल ग्रामीण ही नहीं शहरी क्षेत्रों में नागरिकों को इस योजना का खासा लाभ हुआ है। सबसे ज्यादा फायदा उन्हें हुआ है, जो किन्हीं कारणों से बाहर से आकर बसे थे और सरकार ने उन्हें लाल डोर के तहत प्लाट या मकान आलट किए थे। अब इस योजना से वे इसके मालिक बन पाए है। लाल डोरे के तहत प्रदेशभर के गांवों में 8 लाख से ज्यादा प्रोपर्टी कार्ड भी बनाए गए। आबादी वाले ऐसे 6350 गांवों में शुरू हुई इस योजना के तहत रजिस्ट्रियां की गई। अब तक 2409 ऐसे गांवों का चयन किया गया है, जिसमें लाल डोरे के बाहर मकान बनें है।
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हरियाणा सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र में विकास करने के लिए ई-भूमि पोर्टल से लेकर ‘स्वामित्व योजना’ तक कई बदलाव किए हैं और जिनका लाभ आम आदमी को दिया जा रहा है। इन्हीं योजना में स्वामित्व योजना के तहत प्रदेश में लाल डोरे के बाहर की जमीन और मकानों को पहचान देने के लिए गांवों को लाल डोरा मुक्त योजना शुरू की गई है। जिसके तहत लाल डोरे के भीतर ग्रामीणों को मालिकाना हक देने के लिए भू-संपत्ति की रजिस्ट्रियों को कराने का काम तेजी से चल रहा है। सरकार की 'स्वामित्व योजना' शुरू करने से गांव की सम्पत्ति को विषेश पहचान मिलने के साथ ही भूमि मालिकों को मालिकाना हक देकर रजिस्ट्रियां की जा रही है। इस फायदा ये होगा कि सभी प्रापर्टी के दस्तावेज बनने से उसके आधार पर प्रापर्टी की खरीद-फरोख्त हो सकेगी। वहीं गांवों में जमीन के लिए होने वाले झगड़ों और सम्बन्धित विवादों पर भी अंकुश लगाना सरकार का मकसद है। इस योजना के माध्यम से मालिकाना हक मिलने पर किसी को भी प्रापर्टी पर आसानी से बैंक से ऋण मिल सकेगा। दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा डिजिटल को बढ़ावा देने के लिए पंचायत दिवस पर 24 अप्रैल 2020 में स्वामित्व योजना की घोषणा की थी। हालांकि हरियाणा सरकार ने इससे पहले गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी 2020 को ही ‘लाल डोरा मुक्त गांव’ योजना की शुरुआत कर दी थी। स्वामित्व योजना को भी हरियाणा सरकार ने सबसे पहले शुरू किया और प्रदेश में तीन लाख से ज्यादा लोगों को इस योजना के लाभ मिलने की संभावना पर काम शुरू किया। खास बात यह भी है कि हरियाणा के अलावा ऐसा कोई ऐसा दूसरा राज्य नहीं है जिसने शहरी क्षेत्र के गांवों के लोगों को मालिकाना हक देने की योजना बनाई हो। फिलहाल प्रदेश में लाल डोरे के भीतर ग्रामीणों को मालिकाना हक देने के लिए भू-संपत्ति की रजिस्ट्रियों का काम तेजी से चल रहा है। 
पौने दो लाख संपत्तियों को मिला मालिक 
प्रदेश में लाल डोरे के दायरे में चिन्हित 6350 गांव में आठ अलग-अलग फेज में 2409 गांवों का सर्वे हो चुका है और 8.18 लाख प्रॉपर्टी कार्ड बनाए गए हैं। इन गांवों में से 2045 गांवों में 1,74,770 से प्रॉपर्टी को रजिस्टर्ड भी किया जा चुका है। अब तक इन गांवों में से 1511 गांव की अभिलेख बन गए हैं और इनके अलावा आबादी वाली 72 हजार से ज्यादा प्रापर्टी डीड बांटी जा चुकी हैं यानि उन्हें संपत्ति की खरीदफरोख्त करने के अधिकार मिल गये हैं। लेकिन इसके जमीन का मालिक ई-भूमि पोर्टल के माध्यम से अपनी जमीन को बेच सकता है। इस योजना के माध्यम से लोगों की संपत्ति का डिजिटल ब्यौरा रखा जाएगा। स्वामित्व योजना के अंतर्गत राजस्व विभाग द्वारा गांव की जमीन की आबादी का रिकॉर्ड रखना शुरू कर दिया है। दूसरी ओर राज्य सरकार ने लाल डोरे के दायरे में आए गांव का सर्वे कराकर हजारों करोड़ की संपत्ति को कानूनी अमला पहनाने की इस पहल में पिछले सात साल में सर्वे के बाद शहरी क्षेत्र की परिधि में भी सैकड़ो गांव ऐसे चिन्हित किये गये, जो लाल डोरे के दायरे में आते हैं। इसलिए सरकार ने शहरी लोगों को भी इस योजना का लाभ देने की योजना को लागू किया। 
दो अलग अलग कानून बनेंगे 
हरियाणा सरकार को स्वामित्व योजना शहरों में लागू करने के लिए संशोधित कानून बनाना होगा और इसके लिए मसौदा कमेटी का गठन भी कर दिया गया है। इस योजना को लागू करने के लिए सरकार शहरी स्थानीय निकाय विभाग और पंचायत विभाग के लिए दो अलग-अलग संशोधित कानून लेकर आएगी। इस संशोधित कानून के लिए गठित ड्राफ्टिंग कमेटी का नेतृत्व वित्तायुक्त एवं राजस्व व आपदा प्रबंधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजीव कौशल को सौंपी जा चुकी है। 
यूपी सीमा पर सीमाबंदी 
प्रदेश में स्वामित्व योजना के तहत लाल डोरा मुक्त संपत्ति को सीमा विवाद से मुक्त करना भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी। हालांकि सर्वे ऑफ इंडिया ने सर्वे करके उत्तर प्रदेश और दिल्ली से लगी हरियाणा की सीमा के क्षेत्र का स्ट्रिप मैप भी तैयार कर लिया है, ताकि सीमा विवाद निपटाया जा सके। इन राज्यों की सीमा विवाद से जुड़े जिलों पानीपत सोनीपत पलवल फरीदाबाद और करनाल की लाल डोरे में दायरे में आ रही संपत्ति को पिल्लरों से कवर किया जा रहा है। 
क्या है लाल डोरा 
देश में अंग्रेजी हकूमत के दौरान लाल डोरे की व्यवस्था की गई थी। 1908 में बनाई गई इस व्यवस्था के तहत राजस्व रिकार्ड रखने के लिए खेतीबाड़ी की जमीन के साथ स्थित गांव की आबादी को अलग-अलग दिखाने के मकसद से नक्शे पर आबादी के बाहर लाल लाइन खींच दी जाती थी। लाल डोरे के अंदर लोग कब्जे के मालिक होते हैं। लाल लाइन की वजह से इसके तहत आने वाली जमीन या क्षेत्र लाल डोरा कहलाने लगा। 
लाल डोरा से लाभ व समस्या 
लाल डोरा के तहत आने वाली जमीनों को बिल्डिंग बाई-लॉ, निर्माण-कार्य से जुड़े नियमों और नगरपालिका कानून के तहत आने वाले नियम-कायदों से छूट होती है। इसलिए यहां रहने वाले बिना नक्शाा पास कराने के झंझट में पड़े अपनी जरूरत और सुविधा के अनुसार घर बनाते थे। जबकि ऐसी जमीन के कागज़ नहीं होते, इसलिए लाल डोरे के अंदर जमीन या घर पर जिसका कब्ज़ा वही उसका मालिक होता है, जबकि लाल डोरे से बाहर की जमीन के अलग अलग नंबर होते हैं और वह किसी न किसी के नाम रजिस्टर्ड भी होती है। रजिस्ट्री न होने से इस इलाके की जमीन खरीदने से लोग हिचकते रहे हैं, इसके अलावा इस पर लोन भी नहीं लिया जा सकता है। 
क्या है स्वामित्व योजना 
स्वामित्व योजना के अंतर्गत आने वाले सभी ग्राम समाज के काम ऑनलाइन किया जा रहा है। इस वजह से भूमाफिया और फर्जीवाड़ा और भूमि की लूट जैसी घटनाएं बंद हो जाने की उम्मीद है। वहीं ग्रामीण लोग अपनी संपत्ति का पूरा ब्यौरा ऑनलाइन देख सकेंगे। इस योजना के तहत गांव की सभी संपत्ति की मैपिंग की जा रही है, जिसमें उसकी जमीन से संबंधित ई-पोर्टल उन्हें इसका सर्टिफिकेट भी देगा। सरकार को उम्मीद है कि यह पोर्टल ग्राम पंचायत के विकास के लिए और विकसित करने के लिए केंद्र सरकार की काफी मदद करेगा। 
करनाल सबसे आगे 
करनाल जिले में अभी तक 242 गांव लाल डोरा मुक्त हो चुके हैं, जिसके तहत 30 हजार रजिस्ट्रियां हो चुकी हैं। जिले में 22 गांवों के दावे एवं आपत्तियां लंबित अभी हैं। 387 गांवों में ड्रोन मैपिंग का कार्य पूरा हो चुका है। जिले के 389 गांवों में से 242 गांवों के फाइनल नक्शे प्राप्त हो चुके हैं। सर्वे ऑफ इंडिया से अंतिम नक्शा आने के बाद प्रॉपर्टी आईडी व रजिस्टरी बनाने का कार्य जारी है। 
15Nov-2021

बुधवार, 10 नवंबर 2021

साक्षात्कार: शोषण के सृजनात्मक विरोध में ही रचनाशीलता की सार्थकता

चन्द्रकान्ता के साहित्य में फलक पर कश्मीर की त्रासदी का वर्णन 
-ओ.पी. पाल. 
व्यक्तिगत परिचय नाम: चन्द्रकान्ता 
जन्म: 3 सितम्बर 1938 
जन्म स्थान: श्रीनगर, कश्मीर 
शिक्षा: बी.ए., एम.ए., बी.एड., हिन्दी प्रभाकर, 
संप्रत्ति: बी.एड. में जम्मू-कश्मीर यूनिवर्सिटी में प्रथम और एम.ए.(हिन्दी) में बिड़ला आर्टस कॉलेज में द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
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हरियाणा की ही नहीं, बल्कि देश की वरिष्ठ महिला साहित्यकार चन्द्रकान्ता ने गद्य, पद्य, कहानी, उपन्यास आदि कई विधाओं में समग्र लेखन के जरिए हिन्दी साहित्य क्षेत्र में योगदान और उत्कृष्ट कार्य से समाज को दिशा देने का प्रयास किया है। चन्द्रकान्ता के हिंदी साहित्य के विशिष्ट लेखन कश्मीर की पृष्ठभूमि पर है, जिसे उन्होंने हिन्दी साहित्य के विशाल फलक पर कश्मीर की लोक संस्कृति और प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्विरोधों से उपजी लोकयातना के साथ बेहद संवेदनात्मक घनत्व से उकेरा है। कश्मीर पर उनके तीन महत्वपूर्ण उपन्यास लिखने के बावजूद इनका लेखन समय के ज्वलंत प्रश्नों एवं वृहत्तर मानवीय सरोकारों से जुड़ा है। कशमीर की सामाजिक एवं सौहार्द पूर्ण संस्कृति का वर्णन करते हुए उन्होंने ‘ऐलान गली जिन्दा है' समेत तीन उपन्यास लिखे हैं, जिनमें सांप्रदायिक उन्माद के कारण एक वर्ग का निष्कासन, आतंक से जर्जरवादी का त्रासद वर्णन उनके 'कथा सतीसर' उपन्यास में शामिल है। अपने साहित्यिक सफर के बारे में उन्होंने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत करते हुए कश्मीर में मानवीय प्रसंगों एवं समकालीन ज्वलंत समस्याओं के साथ राष्ट्रीय गौरव, हिंसा का प्रतिरोध, सर्वधर्म समभाव आदि पर अपनी मुख्य चिंता प्रकट की है। सुप्रसिद्ध महिला साहित्यकार चन्द्रकान्ता को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म होने के बाद कश्मीर घाटी के हालातों में सुधार की संभावना है। उनका मानना है कि यह भी उम्मीद बढ़ी है कि जिस वर्ग का जबरन निष्कासन हुआ था वे अनुकूल समझेंगे तो जरुर अपनी जन्म भूमि में वापसी करेंगे। हालांकि अभी समय लगेगा। उनकी कृति कथा सतीसर में तो कशमीरियत की त्रासदी या विवेक-शून्यता का साहित्य प्रतिरोध मात्र नहीं है, बल्कि दुनियाभर में चल रही उन सभी त्रासदियों और यातनाओं का प्रतिरोध साफतौर से झलकता है। चन्द्रकान्ता का कहना है कि उनकी कृतियाँ सामयिक व्यवस्था के विदूपों एवं स्त्री विमर्श की जटिलताओं की तहें खोलती हैं। उन्होंने अपने लेखन में हिंदी साहित्य के जरिए मनुष्य के स्वप्नों, स्मृतियों और उम्मीदों को जिन्दा रखने का प्रयास किया है। उनका मानना है कि शोषण के सृजनात्मक विरोध में ही रचनाशीलता की सार्थकता है। चन्द्रकान्ता ने अपनी साहित्यिक जीवन के सफर के बारे में कहा कि जब वह 1965 में परिवार के साथ हैदराबाद गयी, तो वहीं से उन्होंने स्वतंत्र लेखन करने का निर्णय लिया और उनकी पहली कहानी साल 1967 में साहित्यिक पत्रिका 'कल्पना' में 'खून के रेशे' शीर्षक से प्रकाशित हुई। इसी साल अक्तूबर में इलाहाबाद से प्रकाशित 'नई कहानियाँ पत्रिका में 'कैक्टस' कहानी प्रकाशित हुई। इसके बाद उनकी लेखनी लगातार चली और उन्होंने कहानी, उपन्यास, कविता, संस्मरण, आलेख, यात्रा वर्णन आदि के लेखन ने उन्हें हिंदी साहित्य में जगह दी। उन्होने बताया कि उन्होंने ने देश-विदेश में अनेक गोष्ठियों, सेमिनारों में हिंदी साहित्य की चमक बिखेरी। अमेरिका में सैन्फ्रांसिसको में स्वतंत्रता की 50वीं जयंती के उपलक्ष्य में उन्होंने गदर मेमोरियल हॉल हुए समारोह में काव्य पाठ किया। वहीं कैलिफोर्निया के मिलपीटस शहर, फ्रीमांट शहर और सैनहोजे जैसे शहरों में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कथा पाठ एवं काव्य पाठ करने का उन्हें गौरव हासिल है। उनके उपन्यास कथा सतीसर और समग्र साहित्य पर करीब पचास छात्र-छात्राओं ने ने शोध कार्य किया। वहीं विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में उनकी अनक कई कृतियां व कहानियों को सम्मिलित किया गया है। 
पुस्तक प्रकाशन 
साहित्यकार चन्द्रकान्ता के लिखित 14 कहानी संग्रह में सलाखों के पीछे (दो संस्करण), ग़लत लोगों के बीच(दो संस्करण),पोशनूल की वापसी, दहलीज़ पर न्याय(दो संस्करण), ओ सोनकिसरी! (दो संस्करण), कोठे पर कागा, सूरज के उगने तक, काली बर्फ(दो संस्करण), कथा नगर, बदलते हालात में,अब्बू ने कहा था, रात में सागर और अलकटराज देखा? शामिल हैं। जबकि नौ कथा संकलन में चर्चित कहानियाँ, प्रेम कहानियाँ, आंचलिक कहानियाँ, कथा संग्रह (वितस्ता दा जहर), यादगारी कहानियाँ, दस प्रतिनिधि कहानियाँ, चयनित कहानियाँ, चुनी हुई कहानियाँ, लोकप्रिय कहानियाँ नामक पुस्तके प्रकाशित हुई हैं। उनके सात उपन्यासों में अन्तिम साक्ष्य और अर्थान्तर (द्वितीय संस्करण), बाकी सब खैरियत है (द्वितीय संस्करण),ऐलान गली जिन्दा है, अपने-अपने कोणार्क, यहां वितस्ता बहती है और कथा सतीसर प्रमुख रही। उनकी अन्य कृतियों में यहीं कहीं आसपास (कविता संग्रह),हाशिये की इबारतें (आलकथामक संस्मरण), मेरे भोजपत्र (संस्मरण एवं आलेख), प्रश्नों के दायरे में (साक्षात्कार) और चार खंडों में कथा समग्र का प्रकाशन भी हो चुका है। 
पुरस्कार व सम्मान 
प्रसिद्ध महिला साहित्यकार चन्द्रकान्ता को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2019 के लिए महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान से नवाजने से पहले वर्ष 2013 का बाबू बालमुकुंद गुप्त पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। वहीं अकादमी ने उनकी अपने-अपने कोणार्क, अब्बू ने कहा था और हाशिए की इबारत पुस्तकों को भी पुरस्कृत किया है। वहीं जम्मू-कश्मीर कल्चरल अकादमी द्वारा उन्हें अर्थान्तर, ऐलान गली जिन्दा है, ओ सोनकिसरी तथा कथा सतीसर कृतियों को बेस्ट बुक्स एवार्ड दिया जा चुका है। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा भी उनकी वाकी सब खैरियत है, पोशनूल की वापसी और बदलते हालात में नामक पुस्तकों को पुरस्कृत किया गया है। दिल्ली अकादमी ने उनकी कृति कथा सतीसर को पुरस्कृत करने के अलावा उन्हें हिन्दी अकादमी के साहित्यकार सम्मान से सम्मानित कर चुकी है। इसके अलावा के.के.बिड़ला फाउंडेशन, दिल्ली उनकी कृति कथा सतीसर का व्यास सम्मान से पुरस्कृत कर चुका है। हरियाणा की ही नहीं, बल्कि देश की वरिष्ठ महिला साहित्यकार चन्द्रकान्ता ने गद्य, पद्य, कहानी, उपन्यास आदि कई विधाओं में समग्र लेखन के जरिए हिन्दी साहित्य क्षेत्र में योगदान और उत्कृष्ट कार्य से समाज को दिशा देने का प्रयास किया है। साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट लेखनी की धनी चन्द्रकान्ता को चन्द्रावती शुक्ल सम्मान, कल्पतरु सम्मान, कल्पना चावला सम्मान, ऋचा लेखिका रत्न, वाग्मणि सम्मान, राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान, सौहार्द सम्मान, रत्नीदेवी वाग्देवी पुरस्कार, महात्मा गांधी साहित्य सम्मान और ऑल इण्डिया कश्मीरी समाज द्वारा कम्यूनिटी आइकॉन एवार्ड से भी नवाजा गया है। इसके अलावा राष्ट्र की प्रथम महिला श्रीमती विमला शर्मा द्वारा सम्मानित, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, गुड़गाँव, हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, गुड़गाँव, जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल में 'ए स्ट्रीट इन श्रीनगर', डीएससी साउथ एशियन लिटरेरी पुरस्कार में शार्ट लिस्टेड व सम्मानित होने का गौरव भी उन्हें हासिल है। 
08Nov-2021

मंडे स्पेशल. दीवाली की खुशी ने खराब की प्रदेश की आबोहवा

प्रदेश के आधे जिले वायु प्रदूषण के खतरनाक मोड़ पर पहुंचे 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में कोरोना से ज्यादा वायु प्रदूषण जानलेवा साबित होता नजर आ रहा है, जहां मौसम के बदलाव और त्यौहारी सीजन खासकर दिपावली के पर्व पर पटाखों शोर शराबे ने ध्वनि से ज्यादा कहीं जहरीले धुंए ने वातावरण में जहर घोलकर आबोहवा को खतरनाक बना दिया है। वायु प्रदूषण की चपेट में आए प्रदेश के आधे जिले की आबोहवा जहरीले और खतरनाक मोड पर है। प्रदेश के गुरुग्राम, जींद, हिसार, पानीपत, चरखी दादरी जैसे कई जिलों का वायु गुणवत्ता का सूचंकाक दिवाली के चार दिन बाद भी खरनाक मोड पर है। हालांकि दिवाली के बाद 11 जिलों में वायु गुणवत्ता के सूचकांक में सुधार देखा गया है, जबकि नौ जिले ऐसे हैं जिनमें वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता नजर आ रहा है। प्रदेश की आबोहवा में घुले जहर के कारण लोगों को सांस लेने में दिक्कते हो रही हैं और कुछ जिलों में सुबह शाम कोहरे की चादर बिछी नजर आ रही है। प्रदेश में फरीदाबाद और गुरुग्राम दो ऐसे जिले हैं जहां प्रतिदिन चार स्मॉग टावर से वायु गुणवत्ता की मानकता के लिए चार-चार केंद्र हैं, जबकि बाकी जिलों में एक-एक केंद्र से प्रतिदिन वायु प्रदूषण का आकलन किया जा रहा है। सभी प्रकार का प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के साथ लोगों की मनोवैज्ञानिक तंदुरुस्ती पर भी हानिकारक प्रभाव डालता है। सरकार ने सभी प्रकार के पर्यावरणीय प्रदूषणों की रोकथाम करने तथा विशिष्ट पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के लिए पर्यावरण(संरक्षण)अधिनियम को समय समय पर केंद्र सरकार संशोधित कर रही है।
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प्रदेश में पंचकूला को छोड़कर कोई जिला ऐसा नहीं है, जहां की आबोहवा सांस न घोट रही हो। मसलन दिवाली के बाद तो लोगों को सांसद लेने में परेशानी का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। प्रदेश में वायु गुणवत्ता सूचकांक के खराब या बहुत खराब और कई जिलों में बेहद खतरनाक हुए वायु प्रदूषण ने सुबह शाम कोहरे की चादर बिछाने का काम शुरू कर दिया है। हरियाणा में वायु गुणवत्ता पर गौर करें तो यहां पिछले साल दिवाली की तुलना में इस साल दिवाली पर ज्यादा वायु प्रदूषण ने आबोहवा को खराब किया है। दीपावली पर पटाखों के शोरशराबे से पहले प्रदेश के हिसार और जींद दो जिले ही वायु गुणवत्ता के सूचकांक में गंभीर मोड पर थे, लेकिन दीपावली के बाद आठ जिलों भिवानी, फरीदाबाद, गुरूग्राम, हिसार, जींद, पानीपत, रोहतक व चरखी दादरी का गुणवत्ता सूचंकाक 400 से ज्यादा यानि गंभीर मोड पर था। जबकि अंबाला, फतेहाबाद, करनाल, कुरुक्षेत्र, पलवल और सोनीपत भी ज्यादा खराब वायु गुणवत्ता के सूचकांक में शामिल हो गये। पंचकूला एक ऐसा जिला रहा जो दिवाली पर संतोषजनक सूचकांक से मध्यम सूचकांक पर अभी तक सीमित है। मसलन प्रदेश के करीब आधे जिलों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्थिति में हैं और बाकी जिले भी खराब या बहुत खराब सूचकांक के दायरे में हैं। प्रदेश में पलवल व पानीपत जिले में पीएम10 तथा बाकी जिलों में पीएम2.5 का स्तर माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के रूप में सूचकांक नापा जाता है। 
दीपावली पर जिलों में ऐसी थी वायु गुणवत्ता
दीपावली की शाम से देर रात तक आतिशबाजी के धुंए ने वातावरण में जिस प्रकार का जहर घोला है, उसमें प्रदूषण मीटर(पीएम2.5) का वायु गुणवता सूचकांक अंबाला में 301, भिवानी में 418, फरीदाबाद में 469, फतेहाबाद में 330, गुरुग्राम में 472, हिसार में 405, जींद में 462, कैथल में 377, करनाल में 329, कुरुक्षेत्र में 354, नारनौल में 377, पलवल में 314, पंचकूला में 161, पानीपत में 413, रोहतक में 437, सिरसा में 290, सोनीपत में 400, झज्जर में 351, बहादुरगढ़ में 414, यमुनानगर में 205 और चरखी दादरी में 424 दर्ज किया गया। जबकि रविवार सात नवंबर को वायु गुणवता सूचकांक अंबाला में 341, भिवानी में 389, फरीदाबाद में 372, फतेहाबाद में 373, गुरुग्राम में 419, हिसार में 428, जींद में 463, कैथल में 367, करनाल में 323, कुरुक्षेत्र में 355, नारनौल में 203, पलवल में 278, पंचकूला में 144, पानीपत में 426, रोहतक में 377, सिरसा में 286, सोनीपत में 349, झज्जर में 385, बहादुरगढ़ में 304, यमुनानगर में 219 और चरखी दादरी में 376 पर आंका गया है। 
कुछ जिलों में सुधार तो कुछ में बढ़ा प्रदूषण 
दिवाली के कारण वायु प्रदूषण बढ़ने के बाद रविवार के ताजा आंकड़ो के अनुसार भिवानी, फरीदाबाद, गुरुग्राम, कैथल, करनाल, नारनौल, पलवल, पंचकूला, रोहतक, सिरसा, बहादुरगढ़ व चरखी दादरी की वायु गुणवत्ता में सुधार दर्ज किया गया है। जबकि अंबाला, फतेहाबाद, हिसार, जींद, कुरुक्षेत्र, पानीपत, सोनीपत, यमुनानगर और झज्जर जिले में वायु गुणवत्ता के सूचकांक में उछाल देख गया है। 
मानव शरीर पर कैसा हो सकता है प्रभाव 
वायु गुणवत्ता के सूचकांक में प्रदूषण की मानकता किस सूचकांक स्तर का मानव स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है इसका भी आकलन किया गया है। इसमें 0-51 को अच्छा माना गया है, जिसका न्यूनतम प्रभाव है। जबकि 51-100 संतोषजनक, जिसमें संवेदनशील लोगों को सांस लेने में मामूली तकलीफ हो सकती है। मध्यम सूचकांक में 101-200 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर प्रदूषण स्तर फेफड़ों, अस्थमा और हृदय रोगों वाले लोगों को सांस लेने में तकलीफ पैदा करता है। 201-300 को खराब माना गया है, जिसमें लंबे समय तक एक्सपोजर पर ज्यादातर लोगों को सांस लेने में तकलीफ महसूस करते हैं। इससे ज्यादा 301-400 बहुत खराब स्तर पर होता है, जिसमें लंबे समय तक संपर्क में रहने पर सांस की बीमारी हो सकती है। सबसे ज्यादा 401-500 स्तर को गंभीर स्तर पर रखा गया है, जो स्वस्थ्य लोगों को भी प्रभावित करता है और हर मानव के लिख खतरनाक वायु गुणवत्ता मौजूदा बीमारियों वाले लोगों को तो और भी गंभीर रूप से बढ़ा सकती है। 
बेहद जानलेवा है वायु प्रदूषण 
पुरानी बीमारियों से ग्रस्त लोग और बच्चे वायु प्रदूषण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। वायु प्रदूषण न केवल फेफड़ों को बल्कि शरीर के अन्य हिस्सों को भी प्रभावित कर रहा है। प्रत्येक व्यक्ति जिसे हृदय रोग जैसी कोई पुरानी समस्या है, वह अत्यधिक पीड़ित होगा। प्रदूषण सीधे उस व्यक्ति की सांस को प्रभावित करता है, जहां आप इन सभी विषाक्त पदार्थों को अपने फेफड़ों में ले जा रहे हैं। इसके कारण आपका ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है, यदि आप पहले से ही दिल के दौरे की स्थिति से पीड़ित हैं तो आपके दिल की धड़कन बढ़ सकती है। बच्चों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव ज्यादा चिंताजनक हैं। प्रदूषण के कारण ही लोग सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ की शिकायत कर रहे हैं, खासकर जिन्हें अस्थमा और फेफड़ों की अन्य पुरानी बीमारियां हैं। प्रदूषण जैसे सभी उत्सर्जन से निकलने वाले नाइट्रिक विषाक्त पदार्थ उनके मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करते हैं। वायु प्रदूषण साल दर साल हो रहा है और हर साल इस समय के आसपास हम इस तरह की चर्चा करते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से इसे कभी भी सही ढंग से नहीं लिया गया है। इस पर काबू पाने के लिए निर्णायक कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि फिर से ऐसा न हो। क्योंकि जब इस तरह से होता है और लोग बीमार होते हैं, वह क्षति स्थायी होती है। 
-डॉ. नरेश त्रेहन, प्रबंध निदेशक मेदांता अस्पताल गुरुग्राम।
 08Nov-2021

सोमवार, 1 नवंबर 2021

चौपाल: रागनियों को नए आयाम के साथ संजोने में जुटे कलाकार हरविन्दर

हरियाणवी संस्कृति को दी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक पहचान 
-ओ.पी. पाल 
हरियाणा की लोक संस्कृति की अपनी एक पहचान रही है, लेकिन इस आधुनिक युग में लुप्त होती संस्कृति को जीवंत करने में जुटे प्रसिद्ध कलाकार हरविन्दर मलिक ने लोक जीवन का दर्पण बोलियों और भाषाओं को ही नहीं, बल्कि लोक संस्कृति को अपनी विभिन्न विधाओं की कला के जरिए संरक्षित करने का काम किया है। हरियाणवी बोली और भाषा के प्रति संवेदनशील कलाकार मलिक ने अब हरियाणा की लोक संस्कृति में एक लंबा इतिहास रखने वाली लुप्त होती रागनियों की संस्कृति को नए आयाम के साथ जीवंत करने का बीड़ा उठाया है, ताकि रागनियों जैसे लोकगीतों को नए रूप में संजोकर प्रस्तुत किया जा सके। एक लेखक, निर्देशक, निर्माता और कलाकार के रूप में अपने संगीत वीडियो, फिल्मों और चित्रों के जरिए हरियाणवी संस्कृति की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पहचान देने वाले ऐसे हरफनमौला कलाकार हरविन्दर सिंह मलिक ने हरिभूमि संवाददाता के साथ विस्तृत हुई खास बातचीत के दौरान ऐसे कई अनुछुए पहलुओं का जिक्र किया, जिसमें उनकी कला की तमाम विधाएं हरियाणवी संस्कृति को समर्पित रही हैं। 
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अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हरियाणवी संस्कृति को सकारात्मक पहचान देने वाले रोहतक निवासी कलाकार हरविन्दर सिंह मलिक का जन्म 1969 में झज्जर जिले के बेरी कस्बा में हुआ, जो मुंबई में रहते हैं। पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से इतिहास और भारतीय रंगमंच में डबल एमए की डिग्री हासिल करने वाले हरविन्दर मलिक हरियाणा के एक ऐसे इकलौते कलाकार है जिन्होंने फिल्म, संगीत में अभिनय के साथ निर्देशक और निर्माता के रूप में खासतौर से संस्कृति और लोकशैली को नया आयाम देने में अहम योगदान दिया है। यही नहीं वे एक लेखक और चित्रकार भी हैं। खासबात ये है कि फिल्म, वृत्तचित्र, संगीत वीडियो या ऑडियो अथवा मंच कला व चित्रकार आदि सभी कलाओं में हरियाणवी संस्कृति को सर्वोपरि रखा है। उन्होंने प्रदेश में सबसे पहले पहला ऑनलाइन हरियाणा टीवी का शुभारंभ करके अकेले दम पर लुप्त होती हरियाणवी संस्कृति को जीवंत करके अपनी मातृभूमि के प्रति समर्पित होने के लिए कुछ नया करने के लिए प्रसिद्ध और नवीनतम नंबर वन हरियाणा अभियान के जरिए समाज को प्रेरित करने का प्रयास किया। हरविन्दर मलिक का कहना है कि समाज अपनी संस्कृति के लिए गंभीर हो, जिसमें हरियाणवी संस्कृति में रागनियों के इतिहास को संजोने के मकसद से उन्होंने रागिनी टीवी शुरू किया है, जिसमें हरियाणा के करीब 100 किस्सों को तलाशकर उनकी कहानियों और रागनियों को पहली बार ऑडियो और वीडियो के रूप में रिकार्ड करके विशेष कार्यक्रम की पहल की गई है। अब तक संस्कृति के चैनल रागनी टीवी की थीम ‘अपनी बोल्ली-अपणा कल्चर’ के तहत 1500 रागनियों का वीडियो बनाया जा चुका है। ऐसा प्रदे में किसी सरकारी या निजी कंपनियां अभी तक नहीं कर सकी थी। बकौल मलिक इस कार्यक्रम में इसके अलावा प्रदेश में रागनियों से जुड़े या संबनध रखने वाले लेखकों, गायकों, संगीतकारों के अलावा इस लोकसंस्कृति को प्रोत्साहन देने वालों पर भी 100 वृत्तचित्र के निर्माण का कार्य चल रहा है। इस अभियान में उनका प्रयास है कि शहरी सभ्रांत और विदेशों में बसे लोग गर्व से रागनियों के सारांश को समझे और उनके लेखकों और गायकों से जुड़ सकें। उनका मानना है कि हरियाणवी बोली के दायरे में केवल हरियाणा ही नहीं, बल्कि पश्चिमी यूपी, उत्तरी राजस्थान और दिल्ली देहात भी है, जिसके लिए अपनी बोल्ली अपणा कल्चर संस्कृति और सभ्यता को संजोने का काम करेगा। 
हरियाणवी पॉप के अग्रदूत 
बहु प्रतिभाशाली कलाकार हरविन्दर मलिक को ललित कला, टेलीविजन और सिनेमा के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल है, जिनका बॉलीवुड से लेकर हरियाणवी फिल्मों और टेलीफिल्मों के निर्माण में अहम योगदान रहा। उन्होंने बताया कि वर्ष 1997 पहली बार हरियाणावी पॉप एलबम ‘गिट पिट-गिट पिट’ बनाने वाले वे पहले व्यक्त रहे, जिसकी वीडियो नेशनल चैनलों पर पर सुर्खियों में आई तो उन्होंने गुटुरघुन, देसी का पाववा, धारे जब पहूँचा इंग्लैंड व टॉप गियर जैसी वीडियों वाली एलबम देश ही नहीं विदेशों में भी चर्चा में आई। देसी का पाववा एलबम को वीडियो तो लंदन में सुपरहिट रहा, जिसमें वे हरियाणवी संस्कृति में पॉप एलबम के अग्रदूत के रूप में सामने आए। सिनेमा व टीवी में भी संस्कृति
हरियाणवी संस्कृति की बॉलीवुड में छाप छोड़ने वाले कलाकार हरविंदर मलिक ने प्रसिद्ध फिल्म निर्माता महेश भट्ट के साथ जूनून, सिरो, हम हैं रही प्यार के, मिलान, ताड़ीपार और फिर तेरी कहानी याद आई जैसी फिल्मों में सहायक निर्देशक के रूप में काम किया किया। उन्होंने टेलीविजन क्षेत्र में भी लेखक, संपादक, निर्माता, निर्देशक और प्रस्तुतकर्ता के रूप में विभिन्न प्रसारण कार्यक्रमों के लिए गैलेक्सजी, ये है बॉम्बे मेरी जान, क्या सीन है!, कहां से कहां तक, थ्रिलर एट और रिश्ते जैसे दो हजार से भी ज्यादा एपिसोड का निर्माण किया। साल 2001 यूट्यूब की परंपरा को प्रदेश में हरियाणवी बोली और संस्कृति में शुरू कराने में भी मलिक का योगदान कम नहीं है। उन्होंने कई पंजाबी वीडियो जैसे ढोल जगीरों दा, जिस दिन ते सोनिये नी, रूप दा नज़र, साहिबान आदि और हिंदी वीडियो एल्बम में सपना अवस्थी की 'परदेसिया', ऋचा शर्मा की 'ढोला रे', 'परदेसी परदेस गया', 'मुंबईया नंबर 1', 'धुंधू माई सांवरिया' आदि का निर्देशन भी किया। जबकि 2004-05 में उन्होंने रेडिफडॉटकॉम के साथ पहला ऑनलाइन हरियाणा टीवी शुरू किया था, जिसके बाद एवन तहलका हरियाणा न्यूज चैनल हरियाणवी भाषा में चलाया और एंडी हरियाणा चैनल का भी संचालन कर रहे हैं। 
वृत्तचित्रों के जरिए प्रचार प्रसार 
हरविन्दर मलिक ने सरकार के लिए कई वृत्तचित्रों/कॉर्पोरेट फिल्मों का निर्माण और निर्देशन को एक पेशे के रूप में अपनाया। सरकारी और गैर एजेंसियों के लिए इस क्षेत्र में उन्होंने हरियाणा सरकार के लिए मछली पालन-रोजगार का उत्तम साधन मत्स्य पालन विभाग, धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र- केडीबी के लिए कुरुक्षेत्र पर एक फिल्म, सूर्यगढ़ मेला कुरुक्षेत्र पर एक पवित्र गंतव्य, 48 कोस धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र पर दस्तावेज-नाटक प्रारूप में एक वृत्तचित्र, जिसके धोराई मुर्रा उस्का लांबा तुर्रा-पशुपालन और डेयरी विभाग, सहकारी समितियों के लिए सहकारिता की भावना सुंदर भविष्य की कामना आदि वृत्तचित्रों का निर्माण और निर्देशन किया। यही नहीं उन्होंने राजनीतिक दलों के लिए भी टेलीफिल्मों का निर्माण किया, जिसमें कांग्रेस पार्टी के लिए 'नंबर वन हरियाणा' के बाद 'ऐसा पहली बार हुआ है', 'चार साल-मनोहर छवि' और 2019 के चुनावों के लिए जननायक जनता पार्टी के लिए प्रचार आदि जैसे राजनीतिक अभियान में भी अपनी कला का इस्तेमाल किया। 
चित्रकारी में सर्वोच्च पुरस्कार 
बहु प्रतिभाशाली कलाकार के धनी हरविन्दर मलिक ने अपनी चित्रकारी में भी हरियाणा की संस्कृति और परंपरा पर गहरी छाप हरियाणा के गांवों से लेकर लंदन और न्यूयॉर्क तक प्रदर्शनियों का हिस्सा बन रही हैं। उनकी पेंटिंग में राज्य के ग्रामीण जीवन को संस्कृति के साथ स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं। खासबात है कि राजभवन या सचिवालय अथवा कोई भी सरकारी विभाग हो, उन सभी कार्यालयों में हरविन्दर मलिक की बनाई हुई पेंटिंग नजर आती है। साल 2009 में हरियाणा दिवस के अवसर पर हरियाणा के तत्कालीन राज्यपाल ने उन्हें पेंटिंग के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए सर्वोच्च 'मंजीत बावा राज्य पुरस्कार' से सम्मानित किया था। राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हरियाणवी फिल्म 'लाडो' के सह-निर्माता भी हरविन्दर मलिक ही रहे हैं। उन्होंने हिंदी फीचर फिल्म 'नंगे पांव' का भी निर्माण किया है। 01Nov-2021

मंडे स्पेशल: अवैध कब्जे संपत्ति को मुक्त कराना वक्फ बोर्ड की बड़ी चुनौती!

प्रदेश में 754 वक्फ़ संपत्तियों पर अभी अवैध कब्जा
संपत्ति के डिजीटलीकरण में अव्वल हरियाणा 
वक्फ़ बोर्ड और किराएदारों को राहत के लिए कानून में संशोधन का प्रस्ताव केंद्र के पाले में 
 ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश से सबसे धनवान संस्थानों में शुमार वक्फ बोर्ड क्बजाधारियों और सरकार के नए कानून से परेशान है। एक तरफ तो उसकी संपत्तियों पर अवैध कब्जों की भरमार है वहीं दूसरी ओर नए कानून के चलते अदालती मामलों की संख्या बढ़ रही है। बीते एक साल में ही इन केसों की तादाद दो गुणा हो गई है। प्रदेश भर में वक्फ़ बोर्ड की 12642 संपत्तियों में से 754 तो पहले से ही अवैध क्ब्जे की चपेट में हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद अनेक किरायेदारों ने अदालत का रुख कर लिया है। हालांकि प्रदेश में बोर्ड की संभी संपत्तियों का ब्यौरा डिजीटल कर दिया है और ऑनलाइन पंजीकरण को भी अपनाया गया है, लेकिन बोर्ड नए केसों और पुराने कब्धारियों के आगे बेबस नजर आ रहा है। उधर राज्य सरकार ने वक्फ़ संपपत्ति के किराएदारों को राहत देने के लिए नए कानून में संशोधन करने के लिए केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है।
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देश में अल्पसंख्यक कल्याण के लिए वक्फ़ संपत्तियों के इस्तेमाल करने की प्राथमिकता के लिए केंद्र सरकार ने इन संपत्तियों का डिजीटल कराने के लिए मैपिंग कराने के साथ कई योजनाएं बनाई और वक्फ़ कानून मे संशोधन किया। हरियाणा सरकार ने प्रदेश की वक्फ़ संपत्तियों ब्यौरा रखने के लिए ऑनलाइन प्रणाली के साथ पंजीकरण की पद्धति अपनाई। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हरियाणा ऐसा पहला राज्य बना जहां सभी वक्फ़ संपत्तियों का डिजीटल पूरा किया जा चुका है। अल्पसंख्यकों में शिक्षा का प्रसार करना बोर्ड का मुख्य उद्देश्य के लिए वक्फ़ की जमीन पर शैक्षणिक संस्थान, कोचिंग सेंटर, छात्रावास आदि गतिविधियों को तेज किया गया है। पिछले वित्त वर्ष में राज्य सरकार ने ऐसी शैक्षिक गतिविधियों पर 2.03 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। बोर्ड ने शिक्षा बजट को लगभग 4 करोड़ रुपये से अधिक करने का फैसला किया है। वक्फ़ बोर्ड की आमदनी बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने उसके अधीन संपत्ति पर मैरीज होम, शॉपिंग मॉल आदि व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ाने की योजना बनाई है। 
शहर से ज्यादा देहात में ज्यादा संपत्तियां 
हरियाणा वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर सरकार द्वारा कराए गये एक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में वक्फ़ की 12642 संपत्तियां हैं, जिनमें 8207 ग्रामीण व 4317 संपत्तियां शहरी क्षेत्र में हैं। इन सभी संपत्तियों का कुल क्षेत्रफल 20919.3 एकड़ पाया गया है। वक्फ़ की 30 फीसदी संपत्तियों पर व्यवसायिक व 55 फीसदी पर रिहायशी गतिविधियां चल रही हैं। जबकि बचे जमीन पर कृषि का कार्य हो रहा है। हरियाणा वक्फ़ बोर्ड प्रदेश में अरबो रुपये कीमत की 12,642 वक्फ़ संपत्तियों यानि जमीनों का नियंत्रण तो करता ही है, वहीं प्रदेश में अधिसूचित 4272 मस्जिदों में से 405 मस्जिदों तथा 597 दरगाहों में से 24 दरगाहों का प्रबंध भी करता है। प्रदेश में 23117 वक्फ संपत्तियों को किराए पर दिया है और इन संपत्तियों से बोर्ड को करीब 20 करोड़ की आमदनी होती है। 
इन जिलों में ज्यादा संपत्ति 
प्रदेश के अंबाला जिले में वक्फ़ बोर्ड की 1080 संपत्तियां हैं, इनमें 388 शहरी व 692 संपत्तियां ग्रामीण में हैं। जबकि पंचकूला में बोर्ड की कुल 104 संपत्तियों में 72 ग्रामीण व 32 संपत्तियां शहरी क्षेत्र में हैं। इसी प्रकार यमुनानगर में 591 संपत्तियों में 533 ग्रामीण व 58 शहरी क्षेत्र में हैं। धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में 699 संपत्तियां ग्रामीण व 286 शहरी क्षेत्र में हैं। इसक अलावा कैथल में 543 संपत्तियों में 381 ग्रामीण व 162 शहरी क्षेत्र में वक्फ़ बोर्ड की संपत्तियां हैं। 
वक्फ- की जमीन पर अवैध कब्जाी 
प्रदेश में वक्फ़ की 754 संपत्तियां अभी भी अवैध कब्जे में हैं, जबकि वक्फ कानून 1995 के अनुच्छेंद 32 के संशोधित प्रावधानों के अनुसार वक्फ की संपत्तिम के प्रबंधन तथा ऐसी संपत्तिियों पर अवैध कब्जे या अतिक्रमण के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की पूरी शक्तियां होती हैं। वहीं इस वक्फ कानून के अनुच्छे द 54 और 55 के अनुसार राज्य् वक्फ बोर्ड उसकी संपत्ति यों पर से अवैध कब्जा छुड़ाने के लिए कब्जा करने वाले के खिलाफ उचित कार्रवाई कर सकता है। वक्फ परिसंपत्तिियों का निर्धारित अवधि मे वक्फ की संपत्तिोयों का समूचा सर्वेक्षण कराना भी संपत्तियों को अवैध कब्जे से मुक्त रखना है। फिर भी राज्यं वक्फ बोर्डो की अनुमति के बगैर किसी भी वक्फ संपत्तित पर कब्जा या हड़पने वालों के लिए सख्त जेल की सजा का प्रावधान किया गया है। इसे गैर जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है। 
संपत्ति विवादों के निपटारे को ट्रिब्यूनल 
राज्य सरकार ने ऐसी संपत्तिलयों में रहने वाले किराएदारों को खाली कराने से जुड़े विवादों की सुनवाई के लिए अधिक अधिकार संपन्नो तीन सदस्यी्य न्याययाधिकरण भी बनाया ह । राज्य और संघ शासित वक्फ बोर्डों द्वारा कानून की व्यतवस्थाओं के अनुपालन पर केन्द्र सरकार समय समय पर नजर रखती है। इसके बावजूद राज्य में अभी भी वक्फ़ की संपत्तियों को लेकर 70 मामले न्यायालय में लंबित है, जिनकी संख्या पिछले साल 34 थी। यानी एक साल में विवादित मामलों की संख्या भी दोगुना बढ़ गई है। 
क्या है वक्फ कानून में नया संसोधन 
वक्फ का पहला एक्ट वर्ष 1995 में आया। इसके बाद वर्ष 2013 में इसमें संसोधन हुआ कि जो वक्फ प्रापर्टी है। उनका अब प्रति स्कवेयर प्रति वर्ष प्रतिशत किराया लिया जाएगा। इस संशोधन का काफी विरोध देश भर में हुआ। फिर हरियाणा वक्फ बोर्ड ने इस मामले में संशोधन की पहल की। इसके बाद दिसंबर 2015 में इसमें फिर से संशोधन हुआ। इसके तहत आवासीय खेतीहर प्रापर्टी पर 2 और व्यवसायिक प्रापर्टी पर ढाई प्रतिशत बढ़़ा हुआ किराया लिया जाएगा। वहीं राज्य के गृह मंत्रालय के इस आदेश से वक्फ़ बोर्ड के संपत्ति को लीज पर देने के अधिकार छीनते नजर आए। इन आदेशों के अनुसर सरकार की मंजूरी के बिना वक्फ़ बोर्ड जमीन का लीज पर नहीं दे सकता। 
लीज नियम में संशोधन का प्रस्ताव 
हरियाणा सरकार ने वक्फ़ संपत्ति लीज रूल में संशोधन का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है। बोर्ड की संपत्तियों को लीज या फिर किराए पर देने के लिए नए कानून में बोली पर देने की व्यवस्था की गई थी। यह व्यवस्था लागू भी हो गई थी, लेकिन किराएदारों की मांग पर इसकी जांच के लिए गठित तीन सदस्यीय कमेटी ने ऐसी सिफारिश को भेजी थी। इसकी मंजूरी मिलने के बाद किराएदारों को राहत मिलेगी। राज्य सरकार को उम्मीद है कि किराएदारों और हरियाणा वक्फ़ बोर्ड के सामने नए कानून से आई परेशानी का समाधान के लिए केंद्र सरकार जल्द अधिसूचना जारी करेगी। 
नई व्यवस्था से मुसीबत में थे किराएदार 
कुछ साल पहले हरियाणा वक्फ बोर्ड के लीज रूल में संशोधन के बाद यह तय हुआ था कि अब बोर्ड की कोई संपत्ति सीधे लीज या फिर किराए पर नहीं दी जाएगी। बोली के जरिए ही इस संपत्ति को अलॉट किया जा रहा था। इस संशोधन से सबसे बड़ी मुश्किल उन किराएदारों को हो गई थी जिन्होंने अलॉटमेंट के बाद जमीन पर बड़े रिहायशी व व्यवसायिक भवन खड़े कर लिए थे। मोटे निवेश की वजह से ये किराएदार इस संशोधन से सकते में थे। इसी वजह से इसका लगातार विरोध हो रहा था। ज्यादातर किराएदार भी इस व्यवस्था में बदलाव की मांग कर रहे थे। राज्य सरकार ने वर्ष 2014 के कानून में संशोधित प्रस्ताव में कहा गया है कि 2014 से पुरानी वक्फ संपत्ति यह तो पट्टा अवधि के दौरान पट्टेदार की मृत्यु हो जाने की स्थिति में पट्टे की अवसान अवधि के लिए मृत पट्टेदार के पट्टा करार को उसके पुत्र या पुत्री अथवा पति या पत्नी के नाम में अंतरित कर दिया जाएगा, जिसके लिए वक्फ बोर्ड द्वारा तीन मास के किराए के समतुल्य अंतरण शुल्क प्रभारित किया जाएगा। इसमें वक्फ बोर्ड पट्टेदार से जो पट्टा आरक्षित कीमत 2.5 प्रतिशत प्रति वर्ष समय पर भुगतान करने पर पट्टा स्वचालित नवीकरण करने का प्रावधान करने का प्रस्ताव है। 
01Nov-2021