सोमवार, 24 जुलाई 2023

चौपाल: समाज में कला संस्कृति की अलख जगाते कृष्ण नाटक

गांव से बॉलीवुड तक बजाया अपनी कला का डंका
   व्यक्तिगत परिचय 
नाम: कृष्ण नाटक 
जन्मतिथि: 07 जून 1982 
जन्म स्थान: सलारा मोहल्ला, रोहतक 
शिक्षा:‍ एमए इतिहास एमए थिएटर 
संप्रत्ति:‍ कलाकार, नाटक निर्देशक 
संपर्क:158/8 सलारा मोहल्ला, रोहतक(हरियाणा), मोबा. 7015830207 
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BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा के रंगकर्मी एवं कलाकार कृष्ण नाटक का सामाजिक चेतना के लिए अपना अलग ही अंदाज है। सामाजिक सरोकार से जुड़े ज्वलंत मुद्दों पर स्वयं नाटकों की पटकथा लिखकर उनका मंचन करके समाज को अपनी संस्कृति एवं सभ्यता से जुड़े रहने का संदेश तो दे ही रहे हैं। वहीं वे भारतीय संविधान में समान अधिकार के प्रति भी अपने नाटकों से समाज में जागरुकता पैदा कर रहे हैं। हरियाणवी संस्कृति के प्रति समर्पित कृष्ण नाटक कुछ बॉलीवुड फिल्मों में भी अभिनय करके अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। यही नहीं वे हरियाणा के एक मात्र ऐसे कलाकार है जिन्होंने प्रदेश में गांव से गांव तक रंग-गली नामक अभियान शुरु करके नाटकों के माध्यम से समाज को नया आयाम देने का प्रयास किया। नाटक लेखक, निर्देशक और अभिनय से कला को समृद्ध करने में जुटे कृष्ण नाटक ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपनी परिवारिक पृष्ठभूमि से लेकर एक रंगकर्मी कलाकार तक के सफर को लेकर अपने अनुभव साझा किये। 
रियाणा के रोहतक में 07 जून 1982 को भगवान दास के यहां जन्में रंगकर्मी कृष्णा नाटक के परिवार में साहित्य या लोक कला जैसा कोई माहौल नहीं था, बल्कि पिता ने मेहनत मजदूरी करके परिवार का पालन पोषण किया। उन्होंने बेटे कृष्णा को पढ़ा लिखाने पर फोकस करते हुए तंगहाल में भी उसे आगे बढ़ाया। खर्च निकालने के लिए कृष्ण ने खुद भी अखबार वितरण करके हॉकर का काम किया। उन्होंने बताया कि सरकारी स्कूल और कालेज में शिक्षा ग्रहण करते हुए जब वे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में एमफिल करने पहुंचे तो उन्होंने परिजनों को बिना बताए उसे बीच में छोड़ दिया और पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में थिएटर में एमए में दाखिला ले लिया और थियेटर में मास्टर डिग्री ली। कृष्ण नाटक ने बताया कि 2005 में नाटक देखने पर उन्हें भी कला के प्रति रुझान हुआ और वे यूथ फैस्टिवल से जुड़े, तो उन्होंने पहली बार डांस करके प्रथम पुरस्कार लिया। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने अपनी कला को आगे बढ़ाने के लिए शुरु में हरियाणा ज्ञान-विज्ञान समिति के साथ जुड़कर हरियाणवी नुक्कड़ नाटक किए। खासबात ये है कि उनकी धर्मपत्नी श्रीमती संगीता नाटक भी कलर गैलरी फिल्म एंड थियेटर प्रमोशन सोसायटी के जरिए इस कला को आगे बढ़ाने में उनके साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रही है, जो खुद भी एक कलाकार है। बकौल कृष्ण नाटक उन्होंने 2012 में पहला हरियाणवी नाटक काल कोठरी का निर्देशन किया। इसके बाद महिला कलाकारों को लेकर ‘प्रथा’ नामक नाटक में रविंद्र नाथ टैगोर की कहानी का नाट्यरूपांतरण किया। इसके अलावा उन्होंने 1857 में शहीद हुए हरियाणा के गुमनाम क्रांतिकारी उदमी राम को पहचान दिलाने के लिए चार साल तक अपनी टीम के साथ कम से कम 15 गांव में उनके जीवन पर आधारित नाटक मंचन किया। इन नाटकों के जरिए उनका मकसद यही है कि नाटक लोगों तक पहुंचे, न कि लोग नाटक तक आएं। पिछले करीब दो दशक से कला के क्षेत्र में काम कर रहे कृष्ण नाटक अब तक स्कूल और कालेजों में कार्यशालाओं के दौरान करीब 300 ऐसे बच्चों को अभिनय और रंगकर्मी जैसी कला का प्रशिक्षण दे चुके हैं, जिनमें ज्यादातर कला के क्षेत्र में बुलंदियां भी छू रहे हैं। उनके नाटकों के लेखन और मंचन का फोकस सामाजिक, राजनीतिक और कॉमेडी पर भी रहा है। 
बॉलीवुड फिल्मों में किरदार 
हरियाणा के रंगकर्मी कृष्णा नाटक को अभिनय के रुप में मंजिल मिलती गई तो उन्हें सर्वश्रेष्ठ फिल्म अवार्ड ले चुकी बॉलीवुड फिल्म एनएच-10 में अभिनय करने का पहला मौका मिला, जिसमें अभिनेत्री अनुष्का शर्मा के साथ उन्होंने एक बिहारी का किरदार निभया। इसी प्रकार उन्होंने बॉलीवुड की चार फिल्मों में से राजकुमार राव की बालीवुड फिल्म ‘बधाई दो’ में पुलिस हवलदार का अभिनय किया। जबकि साल 2019 में नेशनल अवार्ड ले चुकी ‘इब आले ऊ’ फिल्म में बिचौलिए अभिनय किया। जबकि एमएक्स प्लेयर पर 2 कैंपस डायरी और विद्रोह फिल्म में भी काम किया है। ओटीटी प्लेटफार्म पर सबसे चर्चित बेवसीरीज फिल्म ‘पाताल लोक-टू’ में अभिनय के अलावा उन्होंने हरियाणा की पहली वेबसीरिज फिल्म ‘मेरे यार की शादी’ में नाई की भूमिका निभाई। जबकि कैम्पस डायरी और विरोध जैसी फिल्मों में भी उन्होंने अपनी कला का लोहा मनवाया है। उनकी फिल्मों व नाटकों के मंचन पर करीब एक सौ वेबसीरिज बनाई जा चुकी हैं। 
इन नाटकों से मिली लोकप्रियता 
रंगकर्मी कृष्ण नाटक की कला को लेकर इतने संवेदनशील हैं कि उन्हें कृष्ण नाटक के नाम से ही पहचाना जाने लगा है। उनके लिखित, निर्देशित एवं किरदार वाले नाटकों में काल कोठरी, हम देर करते नहीं-देर हो जाती है, भूख हड़ताल, प्रथा, उदमी राम के मंचन में महिलाओं, किसानों, क्रांतिकारी, कलाकारों के साथ सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों को उजाकर करने के कारण सुर्खियों में रहे। उन्होंने हरियाणा के विभिन्न शहरों के अलावा जम्मू, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, केरल, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश जैसे अनेक राज्यों में नाटकों का मंचन करके अपनी कला का प्रदर्शन किया है। यही नहीं वे विज्ञापन के लिए भी अभिनय करते आ रहे हैं, जिसके तहत इसी साल वे दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में भी शूटिंग करने गये थे। 
कला नर्सरियां खोलने की जरुरत 
आज के आधुनिक युग में कला के प्रति खासकर युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए कृष्ण नाटक का मत है कि जिस प्रकार से हरियाणा सरकार खेल नर्सरियां खोल रही हैं, उसी तर्ज पर कला नर्सरियां भी खोलनी चाहिए, ताकि कलाकार भी देश विदेश में हरियाणा की लोक कला और संस्कृति के जरिए खिलाड़ियों की तरह तरह हरियाणा को रोशन कर सके। चूंकि हरियाणा में रंगकर्मियों की कमी नहीं है, लेकिन फिर कला समृद्ध नहीं हो पा रही है। इसका कारण फंडिंग और रिहर्सल के लिए जगह का अभाव है। प्रदेश में कला के क्षेत्र में नई रंगशालाओं की भी स्थापना करके सरकार को कला और कलाकारों को प्रोत्साहित करने की जरुरत है। 
पुरस्कार व सम्मान 
प्रसिद्ध कलाकार कृष्ण नाटक के नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से समाज में समता के अधिकार का संदेश देने की मुहिम का पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल भी सराहना कर चुकी है। इस क्षेत्र में नाटकों के जरिए समाज में कला और संस्कृति को जीवंत करने के लिए उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें एमडी यूनिवर्सिटी रोहतक से सर्वश्रेष्ठ नाटककार और श्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार दिया जा चुका है। जबकि देश के विभिन्न राज्यों में अनेक संस्थाएं उन्हें सम्मानित कर चुकी हैं। 
24July-2023

मंडे स्पेशल: पानी के नाम पर जहर पीने को मजबूर प्रदेश के लोग

प्रदेशभर में 66 फीसदी पानी के नमूनों में मिले विषाक्त तत्व 
झज्जर समेत 13 जिलों की जलापूर्ति के 50 फीसदी से ज्यादा नमूने फेल 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश सरकार जल जीवन मिशन के तहत भले ही राज्य में 29 लाख घरों तक जल नल के जरिए पेयजल पहुंचाने का दावा कर रही हो, लेकिन यह जलापूर्ति आमजन की सेहत पर भारी पड़ रही है। गांवों ही नहीं शहरों में भी गंदे व दूषित पानी की सप्लाई हो रही है। पब्लिक लगातार अफसरों से शिकायत भी कर रही है, लेकिन समाधान होने की बजाए हालात और बिगड़ते जा रहे हैं। जल जीवन मिशन की रिपोर्ट भी कहती है कि प्रदेश में जांच के लिए भेजे गए पेयजल के नमूनों में करीब 66 फीसदी फेल हैं, जिनमें झज्जर जिले का पानी सबसे जहरीला पाया गया है। मसलन पानी में बीमारियों को बढ़ावा देने वाले जहरीले तत्वों का मिश्रण पाया गया है। इस पानी में पानी कैंसर से किड़नी तक की बीमारी देने फ्लोराइड जैसे कई विषाक्त तत्व घुले पाए जा रहे हैं। यानी लोग जल के नाम पर जहर पीने को मजबूर है। राज्य सरकार जलापूर्ति को घर घर तक पहुंचाने और दूषित जल के शुद्धिकरण के लिए करोड़ो रुपये खर्च कर रही है, लेकिन इसके बावजूद प्रदेश के लगभग सभी जिलों के पानी में फ्लोराइड जैसा खतरनाक जहर का मिश्रण है तो वहीं 16 जिलों में के जल में आर्सेनिकयुक्त जैसे तत्व बीमारियां बांट रहे हैं। यदि दूषित जल की रिपोर्ट पर गौर करें तो अधिकांश जिलों के लोग आर्सेनिक, यूरेनियम, कैडमियम, क्रोमियम और बैक्टिरियल कंटेमिनेशन जैसे विषैले जल का इस्तेमाल करने को मजबूर है। 
रियाणा में पेयजल के स्रोतों में सरकार की जलापूर्ति के अलावा हैंडपंप, ट्रयूबवैल भी शामिल है, लेकिन नल से घर घर पहुंचने वाला पानी अधिकांश नहरी पानी है। प्रदेशवासियों को स्वच्छ और शुद्ध पेयजल की आपूर्ति का विस्तार करने के लिए जल जीवन मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्रों तक भी नई पाइप लाइन बिछाने का काम पर करोड़ो खर्च कर चुकी है। मिशन में दूषित जल के परीक्षण कर उसके शुद्धिकरण के लिए भी संयंत्र लगाए जा रहे हैं। मौजूदा वर्ष के लिए राज्य सरकार ने शुद्ध पेयजल की आपूर्ति बढ़ाने के लिए राज्य के जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग को 5017 करोड़ का बजट आवंटित किया है, जिसमें 200 करोड़ रुपये शहरों की तर्ज पर ग्रामीण क्षेत्रों में सीवरेज सिस्टम स्थापित करने के लिए है। जहां तक घरो में दूषित जलापूर्ति का सवाल है इसका मुद्दा विधानसभा में उठा था, जिसके लिए सरकार ने एक समिति गठित की। जबकि जन शिकायत पर पानी के नमूने लेकर उनका परीक्षण करने की भी प्रदेश में व्यवस्था है। जल परीक्षण के नमूनों की जांच के अधिकांश नतीजे भी हैरान कर रहे हैं। जल जीवन मिशन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के सभी जिलों के विभिन्न क्षेत्रों से जल के 24712 नमूनों की जांच की गई, जिनमें 16218 नमूनों में खतरनाक तत्व पाए गये यानी 65.64 फीसदी पानी के नमूने ऐसे थे, जो पीने लायक नहीं हैं और बीमारियों को आमंत्रण देने वाले हैं। 
झज्जर में पीने लायक नहीं पानी 
जल जीवन मिशन की टीम ने ड्रिंकिंग वॉटर टेस्टिग के लिए हरियाणा के ग्रामीण जल आपूर्ति के स्रोतों, वॉटर सप्लाई पाइंट के साथ सार्वजनिक और निजी जल निकायों को मिलकार हरियाणा से 77 हजार से ज्यादा नमूने लिये थे, जिनमें अभी तक 24712 नमूनों की जांच के नतीजे सामने आ चुके हैं। इनमें से 16218 नमूनों में विषैले तत्वों का मिश्रण पाया गया है। इन नमूनों के नतीजों के अनुसार फरीदाबाद को छोड़कर बाकी सभी जिलों के पानी के नमूनों में बीमारी को दावत देने वाले खतरनाक तत्वों का मिश्रण पाया गया है। इसमें झज्जर जिले के पानी के नमूनों के परीक्षण के बाद 91.84 फीसदी नमूनों में विषाक्त तत्व पाए गये हैं। इसके अलावा जींद जिले में पानी के 80.25 फीसदी नमूने फेल हो गये हैं। इसके अलावा पंचकुला में 79.6, अंबाला में 78.3, यमुनानगर में 77.34, पानीपत में 77.1, सोनीपत में 76.55, हिसार में 74.82, फतेहाबाद में 71.89, रोहतक में 71.24, कैथल में 70.10 भिवानी में 68.34, करनाल में 66.75, रेवाडी में 57.92, कुरुक्षेत्र में 57.30 और सिरसा में 50.93 फीसदी पानी के नमूनों में आर्सेनिक, मरकरी, यूरेनियम की मात्रा अधिक पाई गई है। बाकी जिलों में 50 फीसदी से कम नमूने विषाक्तयुक्त पाए गये हैं, इनमें सबसे कम 6.67 फीसदी नमूने महेंद्रगढ़ जिले में फेल हुए हैं। 
प्रदेश में 170 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट 
दूषित जल का शोधन करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाए जा रहे हैं। हरियाणा सरकार प्रदेश में अब तक हरियाणा में 170 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का दावा कर रही है, जिसमें प्रतिदिन 1985 मिलियन लीटर अपशिष्ट जल उत्पन्न करते हैं। इस समय 187 एमएलडी उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग गैर-पेय उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है। सरकार ने उन क्षेत्रों के लिए उपचारित अपशिष्ट जल के उपयोग के लिए टैरिफ भी अधिसूचित की है, जिसका किया है, जिसका जल हरियाणा जल संसाधन प्राधिकरण द्वारा अनिवार्य से उपयोग करने का प्राविधान किया गया है। इसके बावजूद दूषित पेयजल की समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। 
जलापूर्ति में सुधार के प्रयास 
प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने हाल में कहा है कि सरकार प्रदेश में जलापूर्ति में सुधार की दिशा में काम कर रही है। हर इंसान को शुद्ध पेयजल मुहैया हो सके इसके लिए सरकार ने ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में 500 करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत से 271 नहर आधारित जल घर तथा 229 नलकूप आधारित जल घर स्थापित किये हैं। इसके अलावा 1457 करोड़ रुपये खर्च करके अन्य 4774 नलकूप और 1246 बूस्टिंग स्टेशन स्थापित किये। जबकि जलापूर्ति का विस्तार करने की दिशा में 3299 करोड़ रुपये की लागत से 19,515 किलोमीटर लम्बी पेयजल पाइप लाइनें बिछाई गई है, जिनके जरिए प्रदेश के करीब 29 लाख घरों में नल कनेक्शन के जरिए पानी पहुंच रहा है। दूषित जल का शोधन करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाए जा रहे हैं। 
भूजल में खुला ज्यादा जहर 
 हरियाणा में भूजल संकट इससे भी ज्यादा गहराता रहा है, जहां कुल 141 ब्लॉकों में से 85 ब्लॉक डार्क जोन में आ चुके हैं। वहीं हरियाणा में पानी के संकट की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्रदेश के 14 जिलों अंबाला, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, हिसार, झज्जर, भिवानी, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, सिरसा, सोनीपत, पानीपत और जींद का पानी पाताल में पहुंच गया है। 
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हरियाणा में पेयजल की जांच 
जिला                जांच    पास    फेल ( प्रतिशत)
अंबाला:            1198    260     938 
भिवानी :          1118    354    764 
चरखी दादरी:   594     362     232 
फरीबादाबाद : 175      175    000 
फतेहाबाद :    1046    294    752 
गुरुग्राम :       676      483    193 
हिसार :       1128     284    844 
झज्जर :     1703     139   1564 
जींद :           1575     281  1264 
कैथल :        1077     322   755 
करनाल :    1594    530   1064 
कुरुक्षेत्र :      1431    611    820 
महेंद्रगढ़ :    1080   1008    72 
नूंह(मेवात): 566      413   153 
पलवल :      633     333    300
पंचकूला :    647    132    515 
पानीपत :   1570   361   1209
रेवाड़ी :       1281  539     742 
रोहतक :    379     109     270
सिरसा :     1127     553    574 
सोनीपत :  2384    559    1825 
यमुनानगर :1730  392    1338 
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कुल          24712  8494    16218 
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24July-2023

बुधवार, 19 जुलाई 2023

साक्षात्कार: साहित्य में कविता भावनाओं का एक संप्रेषण: यशकीर्ति

समाज को संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहने का संदेश
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: विकास यशकीर्ति 
जन्म-तिथि: 22 जुलाई 1976 
जन्म-स्थान: भिवानी (हरियाणा)। 
शिक्षा: स्नातकोत्तर (हिंदी, इतिहास) 
सम्प्रत्ति: अकाउंट ऑफिसर (वित्त विभाग, हरियाणा सरकार)
संपर्क: 'ॐ सुन्दरम' नजदीक बंसीलाल पार्क, आजाद नगर, भिवानी (हरियाणा)।
मोबाइल : 9466850000, 7015494953 
By-- ओ.पी. पाल 
साहित्यिक जगत में कविताओं और गीतों की विधा में लेखन एवं गायन के जरिए समाज को नई दिशा देने वाले साहित्यकारों में आधुनिक युग के कवि एवं गीतकार विकास यशकीर्ति ऐसा नाम है, जिन्होंने अपनी कविताओं में गीत, गजल और मुक्तक विधा में प्रकृति, पौराणिक, ऐतिहासिक, सामाजिक और वैज्ञानिक जैसे मुद्दों पर अत्याधुनिक प्रतीकों का प्रयोग किया है। वहीं उन्होंने अपने गीत एवं काव्य लेखन में देशभक्ति, करुणा, पीड़ा, संघर्ष, आशा निराशा और द्वंद्व जैसी अनुभूतियों को पाठकों और श्रोताओं के समक्ष रखने में महारथ हासिल की है। साहित्य क्षेत्र में कविता को भावनाओं का संप्रेषण मानने वाले विकास का भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति समर्पण उनकी सांस्कृतिक आस्था का प्रतीक भी है। साहित्य जगत को नया आयाम देने के प्रयास में जुटे कवि एवं गीत विधा के साहित्यकार विकास यशकीर्ति ने हरिभूमि से बातचीत के दौरान अपने सहित्यिक सफर को लेकर विस्तार से जिन पहलुओं का जिक्र किया है, उसमें उनका मकसद समाज को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहने का संदेश देना है। 
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रियाणा के साहित्यकार कवि विकास यशकीर्ति का जन्म 22 जुलाई 1976 को छोटी काशी के नाम से जाने वाले भिवानी शहर में सुंदरलाल एवं श्रीमती रतनी देवी के साधारण परिवार में हुआ। परिवार में किसी भी तरह का कोई साहित्यिक माहौल नहीं था, लेकिन बताते हैं कि दादा परदादा कभी कविता लिखा करते थे, जिनकी पुरानी डायरियां उनके हाथ लगी, जिनमें कुछ अशआर कहीं कहीं अटके हुए मिले थे। पिता एक लिपिक की नौकरी से परिवार का पालन पोषण करते थे, लेकिन एक लंबी बीमारी के कारण उनका आकस्मिक निधन हो गया, उस समय विकास महज 12 साल के थे। बकौल विकास यशकीर्ति उनकी माता अपनी विधवा पेंशन से उसके महंगे स्कूल की फीस भरती रही, अपने बच्चों की शिक्षा के लिए वचनबद्ध थी। इसलिए उन्होंने किसी भी तरह उनके सभी भाई बहनों को पढ़ाया, सभी की शादी की और एक मकान भी बनाया। हाई स्कूल की परीक्षा में स्कूल में टॉप टेन में शामिल होने के बावजूद उन्हें स्कूल बदलना पड़ा और इंजीनियरिंग के सपने देखे, इंटरमिडिएट करने के बाद उन्हें पिता की जगह एक्सग्रेशिया स्कीम में लिपिक की नौकरी मिल गई, अब वह खुद हरियाणा वित्त विभाग में अकाउंट आफिसर के पद पर कार्यरत हैं और धर्मपत्नी रीतू भी हरियाणा सरकार में अध्यापिका हैं, एक बेटी व दो बेटों के साथ परिवार चल रहा है। साहित्यिक जगत में कविताओं और गीतों के जरिए उनका यही सपना है कि हमारी संस्कृति से भली भांति परिचित हो सकें। उन्होंने बताया कि जब वह दसवीं कक्षा में थे, तो साथ में बैठने वाला दोस्त अमन गजलों के बहुत भावुक भावुक शेर लिखा करता था, जिनको लेकर चर्चा होती रहती थी, तो उन्हें भी अभिरुचि होने लगी। जब लिपिक के तौर पर 1997 में हिसार में थे, तो उनका एक सहकर्मी विजयंत कुमार काव्य जगत और साहित्य की दुनिया मे एक वरिष्ठ और कद्दावर लेखक के रूप में सदोष हिसारी के नाम से पहचाने गये, जिन्होंने उनके मन में भी कविता और शायरी की लौ जगा दी और उन्हें विकास के साथ यश्याकीर्ति का उपनाम दे दिया गया। उसके बाद वह अपने मित्र डा. मनोज भारत के साथ धीरे धीरे मंच करने लगे। मंच पर उनकी पहली ही कविता की प्रस्तुति ने उन्हें सम्मानजनक पहचान दी। यशकीर्ति की साहित्यिक रचनाओं का फोकस समाज, देश, नैतिकता और श्रृंगार पर आधारित है और इन्हीं मुद्दों पर कविताओं का लेखन किया है, जिनमें पिता, मां, बहन और बेटी जैसे मार्मिक रिश्ते शामिल हैं। बेटियो और पिताओं पर लिखी मेरी कविताएं देश के कोने कोने में मेरे नाम के साथ पढ़ी और कही जाती हैं। उन्होंने राष्ट्रवाद और देशभक्ति के बहुत से गीत काव्य मंचो पर प्रस्तुत किये हैं। उन्होंने बताया कि कविताई का शौक महज़ कोई शौक नहीं है, बल्कि वह इसे संघर्षो और अभावों से गुफ्तगू मानते हैं, वहीं वह एक अपवादी लेखक भी हैं। राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में निरंतर सहभागिता के अलावा विकास यशकीर्ति वर्ष 2006 से नियमित रूप से रेडियो एवं टीवी चैनल पर काव्य प्रस्तुति करते आ रहे हैं। उनकी साहित्यिक गीतों की एलबम ‘यादें तेरी मधुशाला’ ज़ी न्यूज़ के कार्यक्रम ‘कवि युद्ध’ में प्रस्तुत हा चुकी है। 
साहित्यकारों की बढ़ी जिम्मेदारी 
आज के आधुनिक युग में साहित्य की चुनौतियों के बारे में विकास का कहना है कि साहित्य किसी भी राष्ट्र की संस्कृति का आईना होता है, जो हमें अपनी जड़ो से जोड़ता है। साहित्य के पठन पाठन से ही हम संस्कृति, सामाजिक रीतियों और परंपराओं से भली भांति परिचित होते हैं, परंतु इस युग में युवाओं का साहित्य से मुंह मोड़ना किसी चिंता से कम नहीं है। इसलिए आज अच्छा और सच्चा साहित्य अलमारियों और दराज़ो में धूल फांक रहा है। इसका बड़ा कारण यह भी है कि इस इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रचलन में हर इंसान हर मुश्किल का समाधान मोबाइल में ही ढूंढने का प्रयास करता है। यही विडंबना है कि हम सब खासतौर से युवा पीढ़ी पुस्तकों और साहित्य से दूर भाग रहे हैं। ऐसे में हम साहित्यकारों का यह दायित्व कि युवा पीढ़ी को साहित्य और संस्कारों की समझ समझ प्रदान करने के लिए उनकी रुचि को देखते हुए अच्छे साहित्य और रचनाओं का सृजन करें। साहित्य की सार्थकता तभी होगी, लेखक की रचनाओं कोई न कोई सार्वभौमिक संदेश समाहित होगा। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार एवं कवि विकास यशकीर्ति की प्रकाशित पुस्तकों में दो काव्य संग्रह ‘गीतों से संवाद’ और ‘दर्द का दावानल’ के अलावा मुक्तक संग्रह ‘मेरा तुम मौन सुन लेते’ तथा गजल संग्रह ‘जिंदगी एक तंग का काफिया’ ग़ज़ल और यश-यष्टिका शामिल है। जबकि उनका दोहा संग्रह ‘दोहे मोहे मोय’ अभी प्रकाशनाधीन है और एक उपन्यास ‘उगती सांझ’ पर काम चल रहा है। उनकी पहली पुस्तक ‘गीतों से संवाद’ पर वैश्य आर्य कन्या महाविद्यालय की प्रोफेसर डॉ मंजीत ने ‘विकास यशकीर्ति कृत गीतों से संवाद में संवेदना एवम शिल्प’ विषय पर शोध प्रबंध लिखा है। वहीं विकास यशकीर्ति के जीवन के संवेदनात्मक रंग पर अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका 'आलोचना दृष्टि' में शोध पत्र प्रकाशित हो चुका है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा के कवि यशकीर्ति को हिंदी साहित्य की काव्य विधा में योगदान के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2021 का ग़ज़ल संग्रह ‘जिंदगी एक तंग काफिया’ को श्रेष्ठ कृति पुरुस्कार दिया गया है। वहीं चाणक्य प्रगतिशील मंच द्वारा 'चाणक्य सम्मान', अखिल भारतीय साहित्य परिषद करनाल का 'विशेष सम्मान', शब्द संस्था नवलगढ़ राजस्थान द्वारा का ' शब्द शिल्पी सम्मान', बाबलिया बाबा समिति झुंझनु राजस्थान द्वारा ' काव्य मनीषी सम्मान', अखिल भारतीय साहित्य परिषद फरीदाबाद द्वारा 'साहित्य सेवा सम्मान', आनंद कला मंच एवं शोध संस्थान द्वारा 'काव्य रत्न सम्मान' एवं स्वर सम्राट सम्मान, हिंदी साहित्य प्रेरक संस्थान जींद द्वारा 'साहित्य श्री सम्मान', चंदन बाला जैन साहित्य मंच द्वारा 'डॉ जयदेव जैन स्मृति सम्मान' के अलावा कलमवीर कला मंच बहादुरगढ़ का ‘कलमवीर सम्मान’ और राजेश चेतन पुरस्कार मिल चुके हैं। 
17July-2023

मंडे स्पेशल: आखिर कब तक बाढ़ विभिषिका का दंश झेलते रहेगा प्रदेश

ठंडे बस्ते में बंद हथनी कुंड बैराज पर बांध का निर्माण न होना बड़ी नाकामी 
प्रदेश के करीब एक दर्जन जिलें बाढ़ विभिषिका की चपेट में फंसे 
यमुना के साथ घग्गर, मारकंडे और रांगड़ी नदी ने मचाई तबाही 
ओ.पी. पाल.रोहतक। हरियाणा में बाढ़ का कहर अभी खत्म नहीं हुआ है और यमुना के अलावा घग्गर, मारकंडे तथा रांगडी जैसी नदियों के खतरे के निशान से ऊपर बहने से पानी के उबाल से ऐसी तबाही मची हुई कि प्रदेश के 12 जिले बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं, जिनके एक हजार से ज्यादा गांव में बाढ़ का के कारण पानी भरा हुआ है, जिसमें किसानों की फसलों को भी भारी नुकसान हुआ है। हालांकि बाढ़ से प्रभावित इलाकों में बचाव और राहत का काम तेजी से चल रहा है, जिसमें एनडीआरएफ और सेना की मदद ली जा रही है। हरियाणा व यूपी की सीमा से लगती बह रही यमुना नदी के पानी के उबाल से तो बाढ़ की विभिषिका ने ऐसा विकराल रुप धारण कर लिया कि यमुनानगर से दिल्ली तक तबाही मची हुई है। यही नहीं इस विभिषिका का दंश यमुना नदी के साथ लगते ग्रामीण इलाके के लोग दशकों के झेलते आ रहे हैं। दरअसल इस विभिषिका का सबसे बड़ा कारण हिमाचल की पहाड़ियों पर बारिश के पानी पर यमुना नदी पर नियंत्रण करने की दिशा में हिमाचल व हरियाणा की सीमा पर हथनी कुंड बैराज के पास सशक्त बांध का निर्माण ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। वहीं दूसरी ओर नदी के बेहट पर अवैध कब्जे, नियमों के विपरीत खनन करना और सरकारी योजनाओं पर समय से कार्यान्वयन न होना बड़ी खामी है, जिसका अंजाम आमजन को भुगतने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। 
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राज्य सरकार ने प्रदेश को वर्ष 2026 तक हरियाणा को बाढ़ मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा था। इसी साल जनवरी में हरियाणा राज्य सूखा राहत एवं बाढ़ नियंत्रण बोर्ड की बैठक के दौरान मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने प्रदेश के जलभराव की समस्या से जूझ रहे दस जिलों रोहतक, झज्जर, भिवानी, हिसार, जींद, फतेहाबाद, सोनीपत, कैथल, पलवल और सिरसा के इलाकों में स्थायी समाधान के लिए 528 परियोजनाओं को मंजूरी दी थी। दूसरी ओर हथनीकुंड बैराज के ऊपर बड़ा बांध बनाने का प्रस्ताव भी अभी तक ठंडे बस्ते में है। दरअसल हथनीकुंड बैराज के अप स्ट्रीम यमुना नदी पर बांध बनाने की योजना इसलिए भी खटाई में है कि हिमाचल प्रदेश में सरकार इसमें सहयोग नहीं कर ही है। हालांकि राज्य सरकार ने अभी भी अप स्ट्रीम पर प्रस्तावित बांध की संभावनाएं तलाशना बंद नहीं किया है। यहां तक कि इस बांध के लिए सर्वे और अन्य प्रक्रिया के बाद मुख्यमंत्री के समक्ष संबन्धित विभाग ने बांध परियोजना का प्रजेंटेशन भी दिया है। वहीं केंद्रीय जल आयोग के नियमों के तहत बांध के पानी का वितरण व निर्माण पर भी खाका तैयार किया गया है। विभाग द्वारा पत्रचार के बावजूद हिमाचल प्रदेश सरकार ने एनओसी या सहमति नहीं मिल पाई है। सरकार को उम्मीद है कि इस एनओसी के बाद राज्य सरकार बांध बनाने के लिए आगे की प्रक्रिया शुरु करेगी। 
योजनाओं पर काम नहीं 
राज्य सरकार द्वारा मंजूर की गई ज्यादातर योजनाओं पर काम पूरा न होने की वजह से इस बार प्रदेश के कई जिलों को बाढ़ का दंश झेलना पड़ रहा है। इसके लिए हरियाणा राज्य सूखा राहत एवं बाढ़ नियंत्रण बोर्ड की बैठक में मुख्यमंत्री ने 312 करोड़ रुपए से ज्यादा की योजनाओं को अनुमोदित किया था। जिनमें इस बार जलभराव की निकासी के लिये क्लस्टर एप्रोच के माध्यम से योजनाएं तैयार की गई हैं। इनमें जिला भिवानी के जल निकासी वाले इलाकों के लिए 47 करोड़, जिला हिसार के लिए 70 करोड़ की योजनाएं भी शामिल थी। वहीं ड्रेनों में पानी के समुचित बहाव के लिये मरम्मत व नए स्ट्रक्चर बनाने के लिये 59 योजनाओं पर 110 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि मंजूर की गई है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने ज्यादा जल भराव वाले इलाकों खासतौर से एनसीआर ज़िलों में लगभग 100 झीलें बनाने की एक योजना तैयार करने के भी निर्देश दिये थे। 
केंद्र ने जारी की फौरी मदद 
हरियाणा के कई जिलों में बाढ़ को देखते हुए केंद्र सरकार ने अन्य राज्यों के साथ हरियाणा राज्य आपदा मोचन निधि के तहत तीन दिन पहले ही 216.80 करोड़ की धनराशि जारी की गई है। यह राशि उस धनराशि से अलग है, जो केंद्र साल आपदा प्रबंधन के लिए राज्यों को पहले ही ही जारी कर चुका है। बाढ़, सूखा या अन्य प्राकृतिक आपधा से निपटने के लिए खर्च होने वाली राशि में केंद्र और राज्यो को अनुपात 75:25 निर्धारित है। इससे पहले केंद्र द्वारा हरियाणा राज्य आपदा निधि में वित्तीय वर्ष 2020-21 में 98.20 करोड़ की धनराशि जारी की थी, जबकि राज्य सरकार ने 131 करोड़ राशि इस निधि में आवंटित की। गत मार्च तक केंद्र ने साल 2021-22 और 2022-23 की राशि राज्य सरकार को नहीं भेजी है, जबकि राज्य सरकार इन दोनों सालों की जारी का क्रमश: 131 करोड़ रुपये व 137.60 करोड़ रुपये की राशि आवंटित कर चुका है। 
राज्य ने किया 1200 करोड़ का प्रावधान 
राज्य सरकार ने जनता को बाढ़ की विकराल समस्या से स्थाई तौर पर निजात दिलवाने के लिए वर्तमान बजट में 1200 करोड़ रूपए का प्रावधान किया है। इस धनराशि से चयनित नौ जिलों के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र पर खर्च किया जाएगा, ताकि बारिश के दौरान बाढ़ आने से किसानों की फसल खराब होने से बचाई जा सके। सरकार की ओर से इस दावे में किसानों को सभी बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बोर लगाकर राहत देने का प्रयास किया जा रहा है। 
कब बना हथनी कुंड बैराज 
हिमाचल की पहाड़ियों में हर वर्ष होने वाली बारिश के पानी को नियंत्रण करने के लिए हरियाणा की सीमा पर अंग्रेजी शासनकाल में 1873 में ताजेवाला बैराज बना था। लेकिन 1978 में पहाड़ी इलाकों में बारिश होने से यमुना नदी में भारी बाढ़ आई और हरियाणा के साथ दिल्ली व उत्तर प्रदेश के इलाकों में भी पानी ने भारी तबाही मचाई थी। इसके बाद हथनी कुंड बैराज का शिलान्यास 12 मई 1994 को पांच राज्यों के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों हरियाणा के भाजनलाल,उत्तर प्रदेश मुलायम सिंह यादव, राजस्थान के भैरोसिंह शेखावत, दिल्ली के मदनलाल खुराना तथा हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की मौजूदगी में हुआ। इसके बाद हथनीकुंड बैराज 2002 में अस्तित्व में आया। हथनी कुंड बैराज पर पानी की क्षमता 9. 95 लाख क्यूसेक है। अब तक हथनीकुंड बैराज ने 8 लाख 28 हजार क्यूसेक पानी का बहाव सहन किया है। 
क्या है बाढ़ आने का कारण 
देश आजाद होने से पहले तक यमुना नदी का बेहट (चौड़ाई) छह कोस (मील) का था। लेकिन यमुना के बेहट में लोगों ने धड़ल्ले से खाली पड़ी जमीन पर कब्जा करके फसलें उगानी शुरू कर दी। मसलन यमुना नदी का एरिया धीरे-धीरे करके सिमटता गया। वहीं अवैध खनन भी यमुना नदी के पानी को तबाही मचाकर बाढ़ के लिए मजबूर कर रहा है। इसके अलावा बाढ़ का बड़ा कारण यमुना नदी के तटबंधो को स्थाई रुप से गंगा की तर्ज पर अभी तक पक्का न करना है, जबकि नदियों से बाढ़ नियंत्रण के लिए राज्य सरकार हर साल बजट आवंटित करती है, जिसमें केंद्र सरकार भी धनराशि आवंटित करता है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार के साथ मिलकर राज्य सरकारों ने बारिश के पानी की विभिषिका की रोकथाम के लिए हथनीकुंड क्षेत्र से ऊपर कोई ऐसा बड़ा बांध बनाने की आवश्यकता महसूस की, जिसमें बीस लाख क्यूसिक से अधिक पानी रोकने की क्षमता हो। लेकिन आज तक इस बांध निर्माण का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है, जिसका दंश हरियाणा के लोग झेलने को मजबूर हैं। 
17July-2023

सोमवार, 10 जुलाई 2023

चौपाल: सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्यों को समर्पित रंगमंच कलाकार नागेन्द्र शर्मा

कला क्षेत्र में हरियाणवी, हिंदी, संस्कृत व पंजाबी नाटकों में किया अभिनय व निर्देशन 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: नागेन्द्र कुमार शर्मा जन्मतिथि: 18 जुलाई 1975 जन्म स्थान: पंजाब 
संप्रत्ति: नृत्य व नाटक निर्देशक, अतिरिक्त निदेशक हरियाणा कला परिषद 
संपर्क: अंबाला(हरियाणा), मोबा: 8295149000 
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By--ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोक कला और संस्कृति को आगे बढ़ा रहे रंगमंच एवं नृत्य कलाकार नागेन्द्र कुमार शर्मा ने देश और विदेशों में भी अभिनय से भारतीय संस्कृति की अलख जगाई है। पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से कला के क्षेत्र में हरियाणवी, हिंदी, संस्कृत व पंजाबी नाटकों का निर्देशन और अभिनय के साथ ही वह कोरियोग्राफी व लोकनृत्य के क्षेत्र में भी अहम योगदान देते आ रहे हैं। साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं अध्यात्मिक मूल्यों को समर्पित हरियाणा कला परिषद अंबाला डिवीजन में अतिरिक्त निदेशक के पद पर कार्यरत नागेन्द्र कुमार शर्मा ने हरिभूमि संवाददाता से हुई विस्तृत बातचीत में अपनी लोक कला और अभिनय के सफर में केई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिनमें समाज में सकारात्मक विचारधारा और लोक कला को नया आयाम देने के प्रयास भी शामिल है। 
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रियाणा की लोक कलाओं को प्रोत्साहित करते आ रहे रंगममंच और नृत्य कलाकार नागेन्द्र कुमार शर्मा का जन्म 18 जुलाई 1975 को पंजाब में एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में हुआ। पिता जगन्नाथ शर्मा हिंदी संस्कृत के प्रतिष्ठित आचार्य(अध्यापक) रहे और माता श्रीमती पुष्प लता एक कुशल गृहिणी हैं। परिवार में किसी भी तरह का कोई कला से संबंधित वातावरण नहीं था, लेकिन पिताश्री जैसे गुरु से मिली संस्कृत विरासत ही उनके रंगमंच में रंग भरती गई। उन्होंने बताया कि जब वह 11वीं कक्षा में थे, तो रंगमंच के प्रति उनकी अभिरुचि जागृत हुई। उसी दौरान कक्षा में राजनीतिक विज्ञान के अध्यापक किशोर जैन सफर कक्षा में आए और नाटक में भाग लेने वाले छात्रों को खड़ा होने को कहा, इस पर वह सबसे पहले खड़े हुए, लेकिन मन में कई तरह के विचार आए और उन्होंने नाटक में हिस्सा लेने का फैसला किया। हालांकि पिताश्री को उसके नाटक में भाग लेना बिल्कुल भी पसंद नहीं था। लेकिन नाटक में चयन होने के बाद रिहर्सल हुई और उसी दिन शाम को पहली बार किसी नाटक प्रतियोगिता में मंचन किया। इस नाटक में उन्हें एक वृद्ध मुस्लिम का पात्र दिया गया था। मंच पर नाटक के दौरान उनकी दोनों टांगे कांप रही थी, लेकिन दर्शक उसे अभिनय का हिस्सा समझकर तालियां बजा रहे थे, तो उन्हें चौतरफा सराहना मिली। इसके बाद उन्होंने किशोर जैन सफर को रंगमंच का गुरु मानते हुए वह इस कला क्षेत्र में आगे बढ़ते रहे। बकौल नागेन्द्र शर्मा पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से वह हिंदी, पंजाबी, हरियाणवी के साथ-साथ संस्कृत भाषा में नाटकों का निर्देशन करते आ रहे हैं, जिनमें वह खुद भी अभिनय करते हैं। रंगकर्मी नागेन्द्र शर्मा ने बताया कि कॉलेज के अंतिम वर्ष में उन्होंने खुद मात्र चार दिनों में संस्कृत नाटक में अभिनय व निर्देशन भी किया और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी प्राप्त किया। नाटकों के साथ-साथ कोरियोग्राफी व लोकनृत्य के क्षेत्र में भी काम करना शुरू किया। उनकी कोरियोग्राफी का विषय दहेज प्रथा, नारी शोषण, बाल शोषण, नशा, अंधविश्वास इत्यादि सामाजिक कुरीतियों को लेकर रहा हैं। वहीं संस्कृत नाटकों में प्राचीन नाटकों के साथ-साथ आधुनिक नाटकों को भी संस्कृत में उनके द्वारा निर्देशित किया गया। उन्होंने हरियाणा कला परिषद का अधिकारी होने के नाते कोरोना काल में देशभर में कलाकारों के घर-घर जाकर उनकी प्रस्तुतियाँ करवाई और उन्हें अपनी कला को जारी रखने के लिए प्रेरित करने में अहम भूमिका निभाई। यहीं नहीं उन्होंने अंबाला सेंट्रल जेल में 2 वर्ष तक कैदियों को नृत्य का प्रशिक्षण देकर लोक संस्कृति के प्रति प्रेरित किया है। वहीं विभिन्न स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी व नृत्य प्रतियोगिताओं में निर्णायक की भूमिका भी निभाई। हरियाणा कला परिषद में रहते हुए नागेन्द्र शर्मा ने हरियाणवी मखौल, हरियाणवी नाटक, हरियाणवी लोक संगीत के लिए सार्थक प्रयास किए हैं। 
सुर्खियां बने नाटक मंचन 
रंगकर्मी नागेन्द्र शर्मा ने अपनी कला के करीब 33 साल के दौरान 60 से ज्यादा नाटकों का निर्देशन कर उनमें अभिनय भी किया। इन नाटकों में प्रमुख रुप से कर्णभारम करण अश्वत्थामा व्यामोह:, क्षुधा, मध्यमस्य कथा, वयम कुत्र सम:, पन्नाधाय, युवव्यथा, अष्टावक्र, उरुभंगम, कुटुबैक:, क्रांति चित्रम, चारुमित्रा, नीर निरूपण, दीपदान भगवदज्जुकम्, नृत्यनी, रक्तचंदन, तीन बंदर, आत्मा जले, जब मैं सिर्फ एक औरत होती हूं, इस चौक से शहर दिखता है, शुद्र, चलती सड़क पर, भूख, नाचनी, पोस्टर, अंधायुग, करणे की कुर्बानी, रिशतेयाँ दा की रखिए नाम, टब्बर, चांडालिका, नपुंसक...जैसे नाटक सुर्खियां में रहे। इसके अलावा उन्होंने 10 लघु फ़िल्म में में भी काम किया और डीडी उर्दू चैनल पर एक चाँद मेरा भी नाटक में अभिनय किया। 
बेहतर स्थिति में नाट्य कला 
आज के इस आधुनिक में नाटकों की स्थिति को पहले से बेहतर बताते हुए नागेन्द्र शर्मा ने कहा कि पहले नाटक देखने के लिए दिल्ली और चंडीगढ़ जाना पड़ता था, लेकिन आज शहरों में नाटकों का मंचन होना आम बात हो गई है। आजकल सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक मुद्दों पर नाट्य प्रस्तुतियों के साथ हास्य नाटक दर्शको का ज्यादा पसंद आ रहे हैं। उनका कहना है कि रामलीला, रासलीला, सांग सब लोकनाट्य का हिस्सा है, लेकिन आज के आधुनिक युग के दौर में जिस प्रकार पश्चिमी सभ्यता का आकर्षण हमारी लोक कला, लोकनाट्य, लोक संगीत, लोक नृत्य प्रभावित कर रहा है। उसके लिए लोकनाट्य जैसे विषय के संरक्षण व संवर्धन की अति आवश्यकता है, जिसके लिए वह खुद लोक कला एवं संस्कृतियों की प्रस्तुतियों के लिए ज्यादा मंच देने के साथ प्रचार व प्रसार के प्रयासों को भी तेज करने का प्रयास कर रहे हैं। खासतौर से युवा पीढ़ियों को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने के लिए लोक कला,संस्कृति व लोक परंपराओं का ज्ञान देना लोक कलाकारों के साथ समाज का भी दायित्व है। इसके लिए स्कूल व कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में लोक कला व संस्कृति को शामिल करना चाहिए। लोक कला, संस्कृति और परंपराओं को जीवंत रखने के लिए द्विअर्थी गीत के लेखकों, कवियों व संगीत निर्देशकों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा के नृत्य एवं रंगमंच कलाकार नागेन्द्र शर्मा ने हरियाणवी लोक कला एवं संस्कृति को नाटकों में अभिनय के माधयम से समाज को दिशा देने में जो योगदान दिया है, उसके लिए उन्हें और उनकी टीम को 1989 से लेकर 2023 तक यूनिवर्सिटी, प्रदेश, यूनिवर्सिटी, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर करीब 250 पुरस्कार मिले हैं। थाईलैंड में वेस्ट गुरु अवार्ड मिला, तो वहीं उन्हें दुबई में भारत संस्कृति यात्रा सम्मान से नवाजा जा चुका है। इसी साल देहरादून के द्रोण महोत्सव में कला गुरु सम्मान मिला, जबकि देहरादून में ही नृत्य रत्न अवार्ड और कला रत्न अवार्ड का सम्मान, तो हरियाणा के पेहोवा में कला रत्न अवार्ड मिल चुका है। जबकि गुवाहाटी में अंतर्राष्ट्रीय गुरु नमन अवार्ड भी उनके नाम रहा। संस्कृत नाटक निर्देश में 25 साल पूरे होने पर उन्हें संस्कार भारती कला गौरव सम्मान से नवाज चुकी है। मोनो एक्ट के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 2018 में बृज तेजस्वी अवार्ड से सम्मानित किया गया। हरियाणवी व राजस्थानी समूह नृत्य में राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम व द्वितीय स्थान प्राप्त किया। 10July-2023

मंडे स्पेशल: बह गए करोड़ो रुपये, फिर भी शहर पानी पानी!

प्रदेश में दुरुस्त नहीं हो पा रहा जल निकासी व ड्रेनेज सिस्टम 
मानसून की पहली बारिश में इस बार भी तालाब बने शहर व कस्बे 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में हर साल की तरह इस साल भी मानसून की पहली ही बरसात से जलमग्न हुए शहरों और कस्बो ने सरकार के उन दावों को खोखला साबित कर दिया है, जिनमें राज्य सरकार द्वारा ड्रनेज सिस्टम और जल निकासी की व्यवस्था दुरस्त करने के दावे किये जाते रहे हैं। केंद्र सरकार की अमरुत योजना के तहत प्रदेश के 18 शहरों में चल रही 136 परियोजनाओं में अभी तक पूरी की गई 115 परियोजनाओं पर करोड़ो रुपये पानी की तरह बहा दिये गये, लेकिन शहरों व बस्तियों में लबालब भरने वाले बरसाती पानी के निकासी की व्यवस्था दुरस्त नहीं हो सकी। ये हालात तब है कि अमरुत योजना के लिए केंद्र से मिलने वाली रकम का ज्यादातर हिस्सा ड्रनेज सिस्टम और जल निकासी को दुरस्त करने पर खर्च करने का प्रावधान है, वहीं राज्य सरकार भी हर साल इसके लिए अलग से बजट आवंटित करती है। केंद्र सरकार द्वारा एक अक्टूबर 2021 को इस योजना के दूसरे चरण की शुरुआत कर दी है, लेकिन हरियाणा में अभी तक पहले चरण की परियोजनाओं का लक्ष्य ही पूरा नहीं हो सका और सरकार ने इसकी अवधि को साल 2023 तक बढ़ा दिया है। ऐसे में राज्य सरकार का अमरुत योजना के दूसरे चरण में पानी की चक्रीय अर्थव्यवस्था के माध्यम से शहरों को जल सुरक्षित और आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य हासिल करना बड़ी चुनौती होगी। 
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रियाणा राज्य सरकार ने भले ही ड्रनेज सिस्टम को विकसित करने के लिए विजन-2030 में एक रोडमैप बनाया हो, इसके लिए प्रदेश में कई योजनाओं के तहत ड्रनेज सिस्टम को तकनीकी प्रणाली के जरिए दुरस्त करने पर हर साल करोड़ो रुपये खर्च किये जाते हैं। लेकिन केंद्र सरकार की जून 2015 में शुरु की गई अटल नवीनीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमरुत योजना) के तहत हरियाणा के 18 शहरों के लिए शहरों में आवंटितन 136 परियोजनाओं का कार्यान्वयन जी का जंजाल बना हुआ है। इस योजना में पहले चरण के तहत इन शहरों जल आपूर्ति, सीवरेज, सीवेज प्रबंधन और पानी के पुनर्चक्रण, जल निकायों के कायाकल्प और पार्क व हरित स्थानों के निर्माण जैसे कार्यो के लिए केंद्र से आवंटित 2565.74 करोड़ रुपये में से 736.97 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं, जिसकी पुष्टि संसद सत्र के बजट सत्र में केंद्र सरकार ने की, जबकि राज्य सरकार ने 2929.99 करोड़ खर्च करने के लिए रोडमैप बनाया था। जबकि योजना का दूसरा चरण के काम तो अभी दूर की कोड़ी नजर आ रही है। योजना का पहला चरण का लक्ष्य मार्च 2021 तक पूरा करना था। जिसके बाद एक अक्टूबर 2021 दूसरे चरण की शुरुआत भी हो चुकी है, लेकिन राज्य पहले चरण की समयावधि को मार्च 2023 तक बढ़ाने के बावजूद पहले चरण के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया है। मसलन पहले चरण की 136 परियोजनाओं में 115 को ही पूरा करने का दावा किया गया है और बाकी 21 परियोजनाओं पर अभी काम जारी है। हालांकि केंद्र सरकार दूसरे चरण की शुरुआत करते हुए पहले चरण का विलय भी कर दिया है, जिसे साल 2025-26 तक पूरा करने का लक्ष्य दिया गया है। हरियाणा को दूसरे चरण के लिए 1494 करोड़ रुपये की केंद्रीय धनराशि जारी की गई है। अमरुत योजना 2.0 के तहत सतह और भूजल निकायों के संरक्षण और कायाकल्प को बढ़ावा दिया जाना है, जिसके तहत ‘पेयजल सर्वेक्षण’ शुरू किया जा चुका है। 
अंबाला को सर्वाधिक राशि आवंटित 
अमरुत योजना के तहत राज्य सरकार ने प्रदेश के 18 शहरों में केंद्रीय सहायता राशि के साथ इन परियोजनाओं पर कुल 2919.99 करोड़ रुपये खर्च करने का निर्णय लेकर टेंडर दिये। इनमें सर्वाधिक 552.10 करोड़ रुपये अंबाला शहर की 11 योजनाओं के लिए आवंटित किया गया। जबकि बहादुरगढ़ में 79.55 करोड़, भिवानी में 77.66 करोड़, फरीदाबाद में 351.94 करोड़, गुरुग्राम में दो योजनाओं पर 20.37 करोड़, हिसार में 104.93 करोड़, जींद में 37.14 करोड़, कैथल में 60.72 करोड़, करनाल में 305.98 करोड़, पलवल में 174.88 करोड़, पंचकुला में 69.36 करोड़, पानीपत में 283.25 करोड़, रेवाडी में 63.33 करोड़, रोहतक में 295.08 करोड़, सिरसा में 10.69 करोड़, सोनीपत में 313.76 करोड़, थानेसर में 31.24 करोड़ तथा यमुनानगर में 88.01 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च करके अमरुत योजना के तहत योजनाओं को पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया। 
हरित पार्क की सभी योजनाएं पूरी 
हरियाणा में अमरुत योजना के तहत पंचकुला, यमुनानगर, अंबाला, थानेसर, करनाल, पानीपत, सोनीपत, रोहतक, भिवानी, हिसार, जींद, कैथल, सिरसा, फरीदाबाद, पलवल, गुरूग्राम, बहादुरगढ़ और रेवाड़ी आदि 18 शहरों में आवंटित 136 परियोजनाओं में पार्क व हरित स्थलों को विकसित करने की 33 परियोजनाओं को पूरा कर लिया गया है, लेकिन जलापूर्ति की 40 में से 32, सीवरेज व सेप्टेज प्रबंधन की 44 में 36 और ड्रेनेज सिस्टम से जल निकासी की 19 में से 14 परियोजनाओं को पूरा करने की पुष्टि की गई है। इन शहरों में बहादुरगढ़(7), जींद(6), पंचकुला(8), थानेसर(4), कैथल(9), रेवाड़ी(8), गुरुग्राम(2) शहरों में ही इस योजना का लक्ष्य हासिल किया जा सका है। अब इन शहरों में दूसरे चरण के लक्ष्य को हासिल करने की चुनौती होगी। 
क्या है दूसरे चरण का लक्ष्य 
केंद्र की अमरुत योजना के दूसरे चरण के दौरान हरियाणा सरकार की प्राथमिक का फोकस पानी की सर्कुलर अर्थव्यवस्था के माध्यम से शहरों को जल-सुरक्षित और आत्मनिर्भर बनाने पर रहेगा। हालांकि अमरुत योजना के जल आपूर्ति, सीवरेज, सीवेज प्रबंधन और उपचारित उपयोग किए गए पानी के पुनर्चक्रण, जल निकायों के कायाकल्प और हरित स्थानों के निर्माण जैसे सभी घटकों जैसे के सभी घटकों को प्राप्त करने पर भी जोर रहेगा, ताकि जल निकासी और सीवरेज सिस्टम दुरुस्त किया जा सके। इसलिए लिए योजना के दूसरे चरण का काम स्थानीय निकायों के बजाए जन स्वास्थ्य विभाग को सौंपा गया है, जिसने विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करना शुरु कर दिया है। 
जल निकासी बड़ी चुनौती 
प्रदेश में हर साल मानसून से पहले राज्य सरकार सभी जिलों के उपायुक्तों को ड्रनेज सिस्टम और जल निकासी की व्यवस्था दुरस्त करने के लिए दिशा निर्देश देती है, जिसमें सीवरों व नालों की साफ सफाई का काम करने की औपचारिकता तो पूरी की जाती है, लेकिन जैसे ही मानसून की पहली बरसात होती है तो उसी में शहरों में होते जल भराव और ड्रेनेज सिस्टम की पोल खुलकर सामने आ जाती है। ये हाल तब है जब बरसाती जल की निकासी और ड्रेनेज सिस्टम पर शहरों में करोड़ो की रकम पानी की तरह बहा दी जाती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ, जब झमाझम बरसे बदरा ने रोहतक, झज्जर, यमुनानगर, सोनीपत, जींद, कैथल और अंबाला जैसे शहरी और कस्बों को तलाब में तब्दील कर दिया। जबकि इससे पहले अधिकारी यह दावा करते नहीं थकते कि बरसाती जल निकासी के व्यापक प्रबंध किया जा चुका है। इसके बावजूद आम जनता की सीवरेज व ड्रेनेस सिस्टम की समस्या से पार पाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। 
10July-2023

सोमवार, 3 जुलाई 2023

साक्षात्कार: मातृभाषा का मिठास का प्रयाय है हिंदी साहित्य: किरण यादव

समाज को जोड़ने के लिए प्रकृति, प्रेम, आध्यात्मिक रचनाएं का किया लेखन 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: किरण यादव 
जन्म-तिथि: 1 जनवरी 1980 
जन्म-स्थान : बादशाहपुर, गुरुग्राम (हरियाणा) 
शिक्षा: बीकॉम 
सम्प्रत्ति: स्वतंत्र लेखन एवं गजलकार संपर्क: मोबा. 9891426131, ईमेल: kiranyadav0181@icloud.com 
----BY-ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में विभिन्न विधाओं में लेखन करके समाज में सकारात्क विचाराधारा का संचार करने वाले साहित्यकारों का हरियाणवी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत करने के मकसद से अहम योगदान दिया है। ऐसे ही साहित्यकारों में शामिल महिला कवियत्री किरण यादव ने सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों के ही अभिन्न अंग माने जाने वाले प्रकृति, प्रेम, रिश्ते व जिंदगी जैसे विषयों पर अपनी साहित्यक रचनाओं को विस्तार दिया है। प्रकृति और अध्ययन अपनी रगों बसा चुकी किरण यादव ने कविताओं, गजलों, दोहों जैसी रचनाओं के माध्यम से समाज को नई दिशा देने का प्रयास किया है। हिंदी साहित्य में मातृभाषा का मिठास महसूस करने वाली महिला साहित्यकार एवं गजलकार किरण यादव ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में हिंदी साहित्य के प्रचार और प्रसार को भारतीय संस्कृति के लिहाज से अत्यंत आवश्यक बताया है। 
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साहित्यकार किरण यादव का जन्म 1 जनवरी 1980 को गुरुग्राम के बादशाहपुर कस्बे में हुआ। उनके परिवार या मायके में किसी तरह का कोई साहित्यिक माहौल नहीं रहा। पिता एक व्यापारी हैं और ससुराल में पति भी एक व्यापारी हैं। दरअसल बचपन ही अख़बार,मैगजीन, डिक्शनरी, धार्मिक किताबें पढ़ने लगी थी और यह शौक पाठ्यक्रम के साथ लगातार बना रहा। जब वह दसवीं कक्षा में थी तो उन्होंने ‘सोनजुही’ सुमित्रा ननद पंत जी की कविता पढी, और यह लुसी ग्रे’ विलियम वर्ड्सवर्थ द्वारा लिखित एक कविता है। यहीं से उनका कविताओं की तरफ़ आकर्षण पैदा हुआ। वैसे भी बचपन में उन्होंने अपनी दादी, माँ और पिता जी सभी को रामायण का पाठ, गीता पाठ, भजन जैसी धार्मिक किताबों को पढ़ते हुए देखा। उन्हीं के ज्ञान से पठन-पाठन की ललक के बीच उन्हें भी साहित्यिक क्षेत्र में कविताएं लिखने की प्रेरणा भी मिली, जिनके मार्गदर्शन से साहित्य क्षेत्र में उनकी कविताओं सबसे ज्यादा योगदान भी रहा है। पढ़ते पढ़ते शादी हो गई तो फिर बहुत सालो तक लिखने की तरफ़ ध्यान नहीं गया! लेकिन पढ़ना बादस्तूर जारी था। उन्होंने साल 2002 में श्रीमद् भागवत गीता पढ़ी और केई पुराण पढ़े, जिन्हें वह आज तक भी याद रखती हैं। मसलन अनगिनत लेखकों की किताबें, कहानियाँ, उपन्यास, गीत ग़ज़ल सब आज भी पढ़ती आ रही हैं। प्रकृति और अध्ययन उनकी रगों में ऐसा बस गया है, जैसे खाना खाने की भूख हो। 2002 में कुछ थोड़ा बहुत लिखना शुरू किया था, फिर पहली संतान के जन्म के बाद सब छुट गया और 10 सालों तक कुछ भी नहीं लिख सकी! फिर दोबारा साहित्य से परिचय हुआ और मेधावी जैन की की पुस्तक ‘मनन और खोज’ पढ़ी, जिसके बाद मेरा उनसे परिचय हुआ और साहित्य लेखन पर बातचीत हुई। हिन्दी साहित्य में एक गुरू की भाँति उन्हें उनका सानिध्य मिला, जिनकी इस प्रेरणा से उन्होनें फिर दोबारा 2018 में लेखन कार्य शुरू किया। उन्होंने समाज, प्रकृति, प्रेम, रिश्ते और आध्यात्मिक पर आधारित रचनाओं को लिखने पर ज्यादा फोकस किया है। बकौल किरण यादव जब से वह लिखने लगी हैं, तो उनके स्वभाव में जो बदलाव आये हैं, उन्हें लेकर वह स्वयं भी चकित हैं। शायद इसी वजह से वह अपने आस-पास जो वह महसूस करती हैं, उसे ही लिखने का प्रयास भी करती हैं। समाज को जोड़ने की दिशा में घर, परिवार, समाज, रिश्ते नाते और साहित्य सब उतना ही ज़रूरी है, क्योंकि प्रेम एक दूसरे को जोड़ता है और वह भी सभी को साथ लेकर चलने का प्रयास करती हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें बचपन से ही प्रकृति से प्रेम रहा है और ख़ाली समय में अपने बाग़ीचे में पौधे, फूल, पत्तियों को बहुत नज़दीक से देखकर वह समय बिताती रहती थी। ऐसे संस्कार माता पिता ने भी दिये हैं, तो ससुराल में उनके व्यवसायी पति राजेश यादव भी उनके लेखन में अहम योगदान देते आ रहे हैं। जब उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई, तो मां की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। जबकि कविताओं के बारे में उनके परिवार में दूर-दूर तक कोई लेखन से ताल्लुक़ नहीं रखता। उनका यहां तक कहना है कि क़लम से गूढ़ रिश्ता बनने में काफ़ी समय लगा और इस रिश्ते के साथ शुरु हुई इस साहित्यिक यात्रा में अपनी क़लम को परिपक्व बनाकर अपनी मंज़िल तक पहुँचना उनका मकसद है।
हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार 
महिला साहित्यकार किरण यादव की रचनाएं राष्ट्रीय स्तर की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं। उनका हिंदी रेडियो पर साक्षात्कार विभिन्न देशों में प्रसारित और आकाशवाणी, दूरदर्शन, संसद टीवी एवं हिंदी रोडियो (शिकागो) व अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों में सहभागिता व काव्य-प्रस्तुति भी दी है। देश में विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं के मंच पर काव्यपाठ भी करती आ रही हैं। हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने के मकसद से वह दो साहित्यिक संस्थाओं ‘अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था’ और ‘मानसी हिंदी साहित्यिक संस्था’ से भी जुड़ी हैं, जो पिछले 30 सालों से हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार करती है और लेखकों की किताबें पाठकों तक पहुँचाती है। हिंदी साहित्य में हैं मातृभाषा का मिठास है अपनी मातृभाषा की। प्रेम, ज़िंदगी, अपनापन, प्रकृति मेरे प्रिय विषय हैं। 
साहित्य सुरक्षित रहेगा 
महिला साहित्यकार किरण यादव का इस आधुनिक युग में साहित्य के सामने चुनौतियों को लेकर मानना है कि साहित्य सुरक्षित है, जो पहले भी लिखा गया है और आज भी नए आयाम के साथ लिखा जा रहा है। क्योंकि साहित्य जोड़ने का काम करता है। इतना जरुर है कि आज की नई पीढ़ी जल्द लोकप्रियता हासिल करने के फेर में उलझे हुए है। यही कारण हिंदी साहित्य में पाठक कम होने की वजह भी है। इसका दूसरा कारण यह भी है कि सोशल मीडिया पर सबकुछ आसानी से मिल जाता है, जो किताबे खरीदकर पढ़ने के बजाए इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे है। युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति प्रेरित करने के लिए लेखकों को समाज को जोड़ने और संस्कृति को जीवंत रखने के लिए अपनी रचनाएं लिखनी चाहिए। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार किरण यादव की लिखित पुस्तकों में कविता संग्रह-अंतर्यात्रा, मौसम बहारों का और हिन्दी अकादमी द्वारा चयनित यादों के किनारे, सागर ख़ुश है (ग़ज़ल, दोहे, नज़्में), साँझा संकलन : एक स्वर मेरा भी, आज के हिंदी कवि, हरियाणा की महिला ग़ज़लकार' सुर्खियों में हैं। वहीं उनकी लिखित करीब 1000 कवितायें 500 से ज़्यादा किताबों में प्रकाशित है। इसके अलावा सैकड़ो कविताएं ऐसी हैं जो अप्रकाशित हैं। उनकी कई कविताओं का अंग्रेज़ी व पंजाबी में अनुवाद किया गया। 
पुरस्कार व सम्मान 
महिला साहित्यकार को कविता कोश से प्रथम पुरस्कार मिला है। वहीं उन्हें 2018 में महिला रचनाकार सम्मान से भी नवाजा गया और इसके अलावा 2022 में व अन्य पुरस्कार भी शामिल है। हिंदी अकादमी के चयनित कविता संग्रह में उनकी कृति ‘यादों के किनारे’ शामिल की गई है। साहित्यिक संस्थाओं के मंच से उन्हें अनेक पुरस्कार मिल रहे हैं। 
03July-2023

मंडे स्पेशल: स्कूल में बच्चों को टैबलेट तो मिले, पेयजल का इंतजार

प्रदेश के 14,562 सरकारी स्कूलों में से 2651 में समय पर नहीं आता पानी 
प्रदेशभर के 185 स्कूलों में शैचालय तक की सुविधा नहीं
ओ.पी. पाल.रोहतक। गर्मी की छुट्टियों के बाद प्रदेशभर के सरकारी स्कूल खुल गए हैं। परीक्षा परिणाम आने के बाद बच्चों की क्लास पहले ही बदल चुकी है। अगर कुछ नहीं बदला है तो वो है सरकारी स्कूलों को ढर्रा। हालात जस के तस हैं। आज भी जहां बच्चों को हाईटेक बनाने के लिए सरकार टैबलेट तो को बांट रही है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं का हाल बेहाल है। प्रदेशभर के 14,562 सरकारी स्कूलों में से 2651 तो ऐसे हैं जहां सुचारु रुप से पेयजल ही उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। जबकि 131 स्कूलों में तो पेयजल की कोई व्यवस्था ही नहीं है। यह सुनकर हैरानी होगी, कि प्रदेश के 185 स्कूलों में बच्चों के लिए शैचालय तो नहीं है, लेकिन 82.7 फीसदी स्कूलों में बच्चों के पास टैबलेट है। स्कूलों में आधुनिक तकनीक पहुंचाने के दावों की कड़वी सच्चाई यह भी है कि महज 13.8 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में ही स्मार्ट क्लास रुम बन पाए हैं। प्रदेश के केवल 87 सरकारी स्कूलों में ही ई-लाइब्रेरी खुल पाई है। ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में बिजली की सुचारु व्यवस्था न होने के लिए वहां इसका उपयोग भी न के बराबर हो पा रहा है। 
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रियाणा सरकार प्रदेश को शिक्षा का हब बनाने के लिए कई योजनाएं पटरी पर लाने का दावा कर रही है, जिसमें स्कूली स्तर पर तकनीकी शिक्षा को प्रोत्साहन देना भी शामिल है। प्रदेश में कुल इसके बावजूद प्रदेश के स्कूल जहां शिक्षकों की कमी से नौनिहालों की बुनियादी शिक्षा मझधार में है, तो वहीं शौचालय, नल और पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं का भी टोटा बना हुआ है। संसद सत्र में राज्यसभा के एक सांसद के सवाल के जवाब में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट चौंकाने वाली है, जिसमें हरियाणा की स्कूली शिक्षा को लेकर सवाल खड़े होना इसलिए भी स्वाभाविक है, कि प्रदेश में चल रहे केंद्र सरकार के समग्र शिक्षा अभियान के तहत स्कूलों में क्लास रूम, पीने का पानी, लड़को और लड़कियों के अलग अलग शौचालय निर्माण और मरम्मत, रैम्प, बिजली उपकरण, फर्नीचर, बाउंड्री वॉल, सौलर पैनल, हेडमास्टर रूम, साइंस, कंप्यूटर लैब और उपकरण, आर्ट एंड कल्चर रूम, फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायो और इंटीग्रेटिड लैब और उपकरण, लाइब्रेरी, फर्नीचर और विद्यार्थियों के बैठने के लिए डेस्क के साथ ही अन्य कार्य शामिल हैं। केंद्र सरकार ने इस अभियान के लिए राज्य सरकार को साल 2021-22 के लिए 517.10 करोड़ रुपये की राशि भी जारी कर दी है। 
मूलभूत सुविधाओं से जूझते स्कूल 
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं को देखा जाए तो प्रदेश में सैकड़ो सरकारी स्कूल शौचालय, नल और पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहे हैं। प्रदेश में 14,562 सरकारी स्कूलो में 185 स्कूल ऐसे हैं, जहां शौचालय की सुविधा नहीं है। जबकि हरियाणा स्कूल शिक्षा विभाग का दावा है कि केंद्र सरकार के समग्र शिक्षा अभियान के तहत प्रदेश में 2019-20 और 2021-22 के बीच 53,323 नए शौचालय बनाए गए हैं और 1,344 की मरम्मत की गई है। अभी प्रदेश में लड़कियों के लिए 535 शौचालयों समेत कुल 1585 शौचालयों के निर्माण की जरुरत है। संसद में पेश रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में लड़कों व लड़कियों के शौचालय का अनुपात 1.14 है। यानी लड़को के लिए 97.5 और लड़कियों के लिए 97.3 शौचालय की व्यवस्था है। इसी प्रकार स्कूलों में पेयजल की सुविधाओं को लेकर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट पर गौर की जाए तो हरियाणा के 2,651 स्कूल ऐसे हैं, जहां बैक्टीरिया से दूषित पानी का इस्तेमाल हो रहा है। प्रदेश में 131 सरकारी स्कूलों में तो पीने के पानी की काई भी व्यवस्था नहीं है, जिनमें 29 स्कूल प्रदेश के एक मात्र आकांक्षी जिले नूहं के शामिल हैं। नूंह जिले में 493 स्कूलों में नल का पानी उपलब्ध है। हरियाणा शिक्षा विभाग के मुताबिक प्रदेश में 236 स्कूल ऐसे हैं जहां बिजली कनेक्शन नहीं है। जहां तक बच्चों के लिए डेस्क का सवाल है उसमें प्रदेश में छह हजार डेस्क की जरुरत है। 
निजी स्कूलों से पीछे सरकारी स्कूल 
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता सांख्यिकी विभाग में डाइज यानी डिस्टिक्ट इंफार्मेशन ऑफ स्कूल एजुकेशन के वर्ष 2021-22 के सर्वे रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में प्राइमरी से हायर सकेंडरी तक कुल 23726 स्कूल हैं, जिनमें सबसे ज्यादा संख्या 14562 सरकारी सकूलों की है। जबकि सरकार से मान्यता प्राप्त केवल 16, गैरमान्यता प्राप्त 8261 तथा 887 अन्य निजी स्कल संचालित हो रहे हैं। तकनीकी तौर पर बच्चों को शिक्षा देने के मामले में सरकारी स्कूल संसाधनों की कमी से सबसे ज्यादा जूझने को मजबूर है। केवल 87 यानी 0.6 फीसदी सरकारी स्कूलों में ही अभी तक डिजिटल लाइब्रेरी स्थापित की जा सकी है, जबकि गैर मान्यता प्राप्त स्कलों में सर्वाधिक 560 यानी 6.8 फीसदी ई-लाइब्रेरी हैं। जबकि 4009 यानी 27.8 फीसदी सरकारी स्कूल कंप्यूटर (डेस्कटॉप) की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन इस मामले में भी 6309 गैरमान्यता प्राप्त स्कूल 76.4 फीसदी अंकों के साथ सबसे आगे है। 
सरकारी स्कलों में टेबलैट की कमी नहीं 
प्रदेशभर के 13451 यानी 56.7 फीसदी स्कूलों में बच्चों की तकनीकी शिक्षा के लिए टैबलेट उपलब्ध हैं। इनमें सबसे ज्यादा 12047 यानी 82.7 फीसदी सरकारी स्कूलों में बच्चों के पास टैबलेट की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन लर्निंग पीसी ड्राइव के मामले में सरकारी स्कूल सबसे फिस्सडी है, जहां केवल 687 यानी 4.7 फीसदी स्कूलों में ही यह सुविधा है। जबकि 1945 गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में इस सुविधा से बच्चों को तकनीकी शिक्षा की एबीसीडी सिखाने की सुविधा है। प्रदेश में 951 सरकारी स्कूलों में मोबाइल की सुविधा भी दी गई है। 
स्मार्ट क्लास का सपना अधूरा 
प्रदेश के स्कलों में स्मार्ट क्लास बनाने का सपना भी अभी तक अधूरा है। मसलन प्रदेश के सरकारी स्कूलों में 95,363 क्लास रूम हैं, लेकिन प्रदेश के 2013 यानी 13.8 फीसदी सरकारी स्कूलों में ही स्मार्ट बोर्ड वाली क्लास की सुविधा है। जबकि इससे ज्यादा 25 फीसदी निजी स्कलों में स्मार्ट क्लासें चलाई जा रही है। इसी प्रकार प्रोजेक्टरों की सुविधा में भी सरकारी स्कूल पीछे चल रहे हैं, जहां केवल 2337 यानी 16.1 फीसदी सरकारी स्कूलों में ही प्रोजेक्टर मुहैया कराए गये हैं, जबकि यह सुविधा 45.8 फीसदी निजी स्कूलों में उपलब्ध है। 
इंटरनेट के अभाव में ठप आईटी लैब 
प्रयोगशालाओं को डिजिटल बनाने की दिशा में 2851 स्कूलों में आईटी लैब स्थापित की गई हैं, लेकिन इंटरनेट के अभाव में 2254 यानी 38.3 फीसदी चालू हालत में हैं। राज्य सरकार ने सरकारी स्कूलों में 4022 आईटी लैब का अनुमोदन किया है, लेकिन सवाल है कि पहले से ही मौजूद लैब इंटरनेट की समस्या से जूझ रही है। सवाल है कि ऐसे में स्कूलों बच्चों को सूचना प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाओं का इस्तेमाल करने के लिए इंटरनेट की व्यवस्था कैसे की जाएगी। 
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तकनीकी शिक्षा की पहल की स्थिति  (2021-22)
संसाधन कुल      स्कूल (23726)  सरकारी(14562) मान्यता प्राप्त(16) गैर मान्यता प्राप्त(8261) अन्य(887) डिजिटल लाईब्रेरी 685(2.9%)        87(0.6%)           00(0%)                  560(6.8%)                    38(4.3%) 
कंप्यूटर/डेस्कटॉप 10820(45.6%) 4009(27.8%)    11(68.8%)              6309(76.4%)            491(55.4%) 
लैपटॉप      5628(23.7%)         261(1.8%)             3(18.8%)               4966(60.1%)           398(44.9%) 
टैबलेट     13451(56.7%)         12047(82.7%)         00(0%)                1299(15.7%)            105(11.8%) 
लर्निंग पीसी ड्राइव 2734(11.5%) 687(4.7%)           02(12.5%)             1945(23.5%)            100(11.3%) 
प्रोजेक्टर    6340(26.7%)          2337(16.1%)          08(50%)             3785(45.8%)             210(23.7%) 
स्मार्ट क्लास/बोर्ड 4171(17.6%) 2013(13.8%)        01(6.3%)             2068(25%)                 89(10%) 
मोबाईल      4208(17.7%)       951(6.5%)              02(12.5%)          2954(35.8%)              301(33.9%) 
आईटीसी लैब 5886              2254(38.3%)/2851(48.4%)      01(1.7%)/02(13.3%)
03July-2023