सोमवार, 3 जुलाई 2023

साक्षात्कार: मातृभाषा का मिठास का प्रयाय है हिंदी साहित्य: किरण यादव

समाज को जोड़ने के लिए प्रकृति, प्रेम, आध्यात्मिक रचनाएं का किया लेखन 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: किरण यादव 
जन्म-तिथि: 1 जनवरी 1980 
जन्म-स्थान : बादशाहपुर, गुरुग्राम (हरियाणा) 
शिक्षा: बीकॉम 
सम्प्रत्ति: स्वतंत्र लेखन एवं गजलकार संपर्क: मोबा. 9891426131, ईमेल: kiranyadav0181@icloud.com 
----BY-ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में विभिन्न विधाओं में लेखन करके समाज में सकारात्क विचाराधारा का संचार करने वाले साहित्यकारों का हरियाणवी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत करने के मकसद से अहम योगदान दिया है। ऐसे ही साहित्यकारों में शामिल महिला कवियत्री किरण यादव ने सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों के ही अभिन्न अंग माने जाने वाले प्रकृति, प्रेम, रिश्ते व जिंदगी जैसे विषयों पर अपनी साहित्यक रचनाओं को विस्तार दिया है। प्रकृति और अध्ययन अपनी रगों बसा चुकी किरण यादव ने कविताओं, गजलों, दोहों जैसी रचनाओं के माध्यम से समाज को नई दिशा देने का प्रयास किया है। हिंदी साहित्य में मातृभाषा का मिठास महसूस करने वाली महिला साहित्यकार एवं गजलकार किरण यादव ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में हिंदी साहित्य के प्रचार और प्रसार को भारतीय संस्कृति के लिहाज से अत्यंत आवश्यक बताया है। 
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साहित्यकार किरण यादव का जन्म 1 जनवरी 1980 को गुरुग्राम के बादशाहपुर कस्बे में हुआ। उनके परिवार या मायके में किसी तरह का कोई साहित्यिक माहौल नहीं रहा। पिता एक व्यापारी हैं और ससुराल में पति भी एक व्यापारी हैं। दरअसल बचपन ही अख़बार,मैगजीन, डिक्शनरी, धार्मिक किताबें पढ़ने लगी थी और यह शौक पाठ्यक्रम के साथ लगातार बना रहा। जब वह दसवीं कक्षा में थी तो उन्होंने ‘सोनजुही’ सुमित्रा ननद पंत जी की कविता पढी, और यह लुसी ग्रे’ विलियम वर्ड्सवर्थ द्वारा लिखित एक कविता है। यहीं से उनका कविताओं की तरफ़ आकर्षण पैदा हुआ। वैसे भी बचपन में उन्होंने अपनी दादी, माँ और पिता जी सभी को रामायण का पाठ, गीता पाठ, भजन जैसी धार्मिक किताबों को पढ़ते हुए देखा। उन्हीं के ज्ञान से पठन-पाठन की ललक के बीच उन्हें भी साहित्यिक क्षेत्र में कविताएं लिखने की प्रेरणा भी मिली, जिनके मार्गदर्शन से साहित्य क्षेत्र में उनकी कविताओं सबसे ज्यादा योगदान भी रहा है। पढ़ते पढ़ते शादी हो गई तो फिर बहुत सालो तक लिखने की तरफ़ ध्यान नहीं गया! लेकिन पढ़ना बादस्तूर जारी था। उन्होंने साल 2002 में श्रीमद् भागवत गीता पढ़ी और केई पुराण पढ़े, जिन्हें वह आज तक भी याद रखती हैं। मसलन अनगिनत लेखकों की किताबें, कहानियाँ, उपन्यास, गीत ग़ज़ल सब आज भी पढ़ती आ रही हैं। प्रकृति और अध्ययन उनकी रगों में ऐसा बस गया है, जैसे खाना खाने की भूख हो। 2002 में कुछ थोड़ा बहुत लिखना शुरू किया था, फिर पहली संतान के जन्म के बाद सब छुट गया और 10 सालों तक कुछ भी नहीं लिख सकी! फिर दोबारा साहित्य से परिचय हुआ और मेधावी जैन की की पुस्तक ‘मनन और खोज’ पढ़ी, जिसके बाद मेरा उनसे परिचय हुआ और साहित्य लेखन पर बातचीत हुई। हिन्दी साहित्य में एक गुरू की भाँति उन्हें उनका सानिध्य मिला, जिनकी इस प्रेरणा से उन्होनें फिर दोबारा 2018 में लेखन कार्य शुरू किया। उन्होंने समाज, प्रकृति, प्रेम, रिश्ते और आध्यात्मिक पर आधारित रचनाओं को लिखने पर ज्यादा फोकस किया है। बकौल किरण यादव जब से वह लिखने लगी हैं, तो उनके स्वभाव में जो बदलाव आये हैं, उन्हें लेकर वह स्वयं भी चकित हैं। शायद इसी वजह से वह अपने आस-पास जो वह महसूस करती हैं, उसे ही लिखने का प्रयास भी करती हैं। समाज को जोड़ने की दिशा में घर, परिवार, समाज, रिश्ते नाते और साहित्य सब उतना ही ज़रूरी है, क्योंकि प्रेम एक दूसरे को जोड़ता है और वह भी सभी को साथ लेकर चलने का प्रयास करती हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें बचपन से ही प्रकृति से प्रेम रहा है और ख़ाली समय में अपने बाग़ीचे में पौधे, फूल, पत्तियों को बहुत नज़दीक से देखकर वह समय बिताती रहती थी। ऐसे संस्कार माता पिता ने भी दिये हैं, तो ससुराल में उनके व्यवसायी पति राजेश यादव भी उनके लेखन में अहम योगदान देते आ रहे हैं। जब उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई, तो मां की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। जबकि कविताओं के बारे में उनके परिवार में दूर-दूर तक कोई लेखन से ताल्लुक़ नहीं रखता। उनका यहां तक कहना है कि क़लम से गूढ़ रिश्ता बनने में काफ़ी समय लगा और इस रिश्ते के साथ शुरु हुई इस साहित्यिक यात्रा में अपनी क़लम को परिपक्व बनाकर अपनी मंज़िल तक पहुँचना उनका मकसद है।
हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार 
महिला साहित्यकार किरण यादव की रचनाएं राष्ट्रीय स्तर की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं। उनका हिंदी रेडियो पर साक्षात्कार विभिन्न देशों में प्रसारित और आकाशवाणी, दूरदर्शन, संसद टीवी एवं हिंदी रोडियो (शिकागो) व अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों में सहभागिता व काव्य-प्रस्तुति भी दी है। देश में विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं के मंच पर काव्यपाठ भी करती आ रही हैं। हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने के मकसद से वह दो साहित्यिक संस्थाओं ‘अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था’ और ‘मानसी हिंदी साहित्यिक संस्था’ से भी जुड़ी हैं, जो पिछले 30 सालों से हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार करती है और लेखकों की किताबें पाठकों तक पहुँचाती है। हिंदी साहित्य में हैं मातृभाषा का मिठास है अपनी मातृभाषा की। प्रेम, ज़िंदगी, अपनापन, प्रकृति मेरे प्रिय विषय हैं। 
साहित्य सुरक्षित रहेगा 
महिला साहित्यकार किरण यादव का इस आधुनिक युग में साहित्य के सामने चुनौतियों को लेकर मानना है कि साहित्य सुरक्षित है, जो पहले भी लिखा गया है और आज भी नए आयाम के साथ लिखा जा रहा है। क्योंकि साहित्य जोड़ने का काम करता है। इतना जरुर है कि आज की नई पीढ़ी जल्द लोकप्रियता हासिल करने के फेर में उलझे हुए है। यही कारण हिंदी साहित्य में पाठक कम होने की वजह भी है। इसका दूसरा कारण यह भी है कि सोशल मीडिया पर सबकुछ आसानी से मिल जाता है, जो किताबे खरीदकर पढ़ने के बजाए इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे है। युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति प्रेरित करने के लिए लेखकों को समाज को जोड़ने और संस्कृति को जीवंत रखने के लिए अपनी रचनाएं लिखनी चाहिए। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार किरण यादव की लिखित पुस्तकों में कविता संग्रह-अंतर्यात्रा, मौसम बहारों का और हिन्दी अकादमी द्वारा चयनित यादों के किनारे, सागर ख़ुश है (ग़ज़ल, दोहे, नज़्में), साँझा संकलन : एक स्वर मेरा भी, आज के हिंदी कवि, हरियाणा की महिला ग़ज़लकार' सुर्खियों में हैं। वहीं उनकी लिखित करीब 1000 कवितायें 500 से ज़्यादा किताबों में प्रकाशित है। इसके अलावा सैकड़ो कविताएं ऐसी हैं जो अप्रकाशित हैं। उनकी कई कविताओं का अंग्रेज़ी व पंजाबी में अनुवाद किया गया। 
पुरस्कार व सम्मान 
महिला साहित्यकार को कविता कोश से प्रथम पुरस्कार मिला है। वहीं उन्हें 2018 में महिला रचनाकार सम्मान से भी नवाजा गया और इसके अलावा 2022 में व अन्य पुरस्कार भी शामिल है। हिंदी अकादमी के चयनित कविता संग्रह में उनकी कृति ‘यादों के किनारे’ शामिल की गई है। साहित्यिक संस्थाओं के मंच से उन्हें अनेक पुरस्कार मिल रहे हैं। 
03July-2023

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