सोमवार, 27 सितंबर 2021

मंडे स्पेशल: बेमौसम बारिश ने किसानों को दी दोहरी मार!

कपास, धान, बाजरा और बागवानी फसलों के नुकसान ने तोड़ी आर्थिक कमर 
धान के किसानों को नुकसान के मुआवजे की संभावना नगण्य 
ओ.पी. पाल.रोहतक। 
बेमौसमी बरसात ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। लगातार चार दिनों तक बेमौसमी बारिश ने कपास, धान, बाजरा यहां तक कि सब्जियों उत्पादक किसानों की भी कमर तोड़ दी है। रही सही कसर जलभराव ने पूरी कर दी। एक तरफ जहां बरसात ने कपास में सूंडी को प्रकोप बढ़ा दिया, वहीं खेतों में खड़े पानी ने कीटनाशक से फसल बचाव की उम्मीद ही खत्म कर दी। हालांकि सरकार ने विशेष गिरदावरी करवाकर मुआवजे का ऐलान कर दिया है, लेकिन इससे नुकसान की भरपाई की उम्मीद काफी कम है। किसानों को लग रहा है कि मुआवजा महज सरसरी उपाय के अलावा कुछ भी नहीं। जहां तक फसल बीमा का प्रश्न है तो पानी में होने वाली धान की फसल के पानी से खराब होने पर बीमा कंपनियां मानने को तैयार नहीं होती। 
कृषि प्रधान राज्य के रूप में पहचाने जाने वाले हरियाणा में किसानों के हित में सरकार ने भले ही उनकी आय बढ़ाने के मकसद से विभिन्न योजनाओं को कार्यान्वित कर रही हो, लेकिन पिछले सप्ताह चार दिन की बेमौसमी बरसात ने किसानों की उम्मीदों पर ऐसा पानी फेर दिया कि तेज हवाओं और जल भराव के कारण खेतों में खड़ी किसानों की फसले बर्बाद हो गई हैं। सबसे ज्यादा 60 फीसदी से ज्यादा कपास की फसल को नुकसान हुआ, जिसमें किसान पहले ही गुलाबी सूंडी नामक कीट प्रकोप के नुकसान से परेशान थे कि बेमौसमी बारिश ने किसानों को दोहरी मार का सामना करने के लिए मजबूर कर दिया। हालांकि किसान हितैषी राज्य सरकार ने किसानों की फसलों के नुकसान की भरपाई करने के लिए परंपरागत घोषणाओं में मुआवजा देने हेतु विशेष गिरदावरी यानि आंकलन कराने का निर्देश जारी कर दिया है। जिला स्तर पर प्रदेश में ऐसे क्षेत्रों में फसलों के नुकसान की सरकार ने तत्काल रिपोर्ट तलब की है, जहां 100 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश और और बारिश के कारण जलभराव के हालात है। ऐसे क्षेत्रों में सरकार ने विशेष गिरदावरी का कार्य जल्द पूरा कराकर बागवानी व दलहन जैसी उन फसलों के नुकसान का भी मुआवजा देने का भी ऐलान किया है, जो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के दायरे में शामिल नहीं हैं। 
चार श्रेणियों में आकलन 
राज्य सरकार के बेमौसम बारिश से बर्बाद हुई फसलों के मुआवजा सर्वेक्षण और नुकसान दावे को 25 से 50, 75 और 100 प्रतिशत के रूप में चार श्रेणियों में बांटा गया है। किसानों को मेरी फसल मेरा ब्यौरा (एमएफएमबी) पोर्टल पर अपनी फसल और क्षेत्र का पंजीकरण करना होगा। इसके बाद सर्वे करके मुआवजे का लाभ दिया जाएगा। गौरतलब है कि पिछले सप्ताह हुई बेमौसम बारिश के कारण किसानों की मेहनत पानी में फिरता नजर आ रहा है। प्रदेश में कई जिलों में बारिश व तेज हवाओं से किसानों की गन्नें व धान की फसल जमीन पर चादर की तरह बिछ गई है। बहुत से किसानों की कटी हुई धान की फसल खेतों में बारिश में डूबने से खराब हो गई है। वहीं दूसरी ओर सब्जी की फसलों को भी भारी नुकसान हुआ है। 
धान की फसल का मुआवजा नहीं 
कृषि विभाग भी मान रहा है कि जलभराव से अगर धान की फसल तबाह होती है तो उसका मुआवजे का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि धान पानी में पैदा होता है। बीमा कंपनियां भी बीमा होने के बावजूद इसी तर्क को आधार मानकर धान की फसलों का नुकसान की मुआवजा देने को तैयार नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब धान की फसल का पानी से नुकसान होने पर मुआवजा नहीं दिया जा सकता तो बीमा कंपनियों ने धान की फसल के लिए किसानों से प्रीमियम की राशि क्यों जमा करवाई है। 
इन क्षेत्रों में फसलों को नुकसान 
सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक केएमपी के आस-पास के क्षेत्र में करीब साढ़े सात हजार एकड़ में जलभराव की समस्या भी सामने आई है, उसमें जिन-जिन किसानों को नुकसान हुआ है, रिपोर्ट आने के बाद गिरदावरी करवाकर प्रभावित किसानों क्षतिपूर्ति के लिए मुआवजा दिया जाएगा। हालांकि इस वर्ष फसलों के नुकसान की नियमित गिरदावरी की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने बीमा कंपनियों को मुआवजे का भुगतान जल्द से जल्द करने निर्देश दे दिए गए हैं। खासतौर पर हिसार, सिरसा और फतेहाबाद में तीन दिन की बारिश ने कपास उगाने वाले किसानों का भारी नुकसान किया है। जबकि पिछले एक सप्ताह में करनाल, कैथल, कुरुक्षेत्र में धान और रेवाड़ी, भिवानी, जींद समेत अन्य जिलों के किसानों ने बाजरे की फसल खराब होने की शिकायत दर्ज कराई हैं। नारनौल व आसपास के क्षेत्र के खेतों में बारिश के जलभराव के कारण किसानों के बाजरा, कपास व पशु चारा गलने व सड़ने से किसानों को भारी आर्थिक नुकसान की आशंका जताई गई है। 
यहां पड़ी दोहरी मार 
रोहतक जिले के महम शहर का वाटर ट्रीटमेंट प्लांट गंगानगर गांव के किसानों के लिए आफत बनकर सामने आया, जब पहले से ही बेमौसम बारिश का पानी खेतों में भरने से फसले बर्बादी के कगार पर थी, वहीं वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से लगातार पानी का बहाव भी खेतों में जाने से करीब 200 एकड़ में खड़ी फसलें जलमग्न होकर नष्ट हो गई। इसमें कपास व बाजरा सहित कई अन्य फसलें जल भराव से से बर्बाद हो गई हैं। 
प्रदेश में 55 हजार किसानों ने मांगा  मुआवजा
हरियाणा में पिछले दिनों बेमौसमी बारिश ने किसानों की फसलें तबाह करनी शुरू कर दी है। कई जिलों में फसलों में पानी जमा होने से फसलें खराब हो गई हैं तो कई जगहों पर खराब होने की स्थिति में पहुंच गई है। हरियाणा के अलग-अलग जिलों से करीब 55 हजार किसानों ने फसलें बर्बाद होने का दावा करते हुए कृषि विभाग से मुआवजा मांगा है। हालांकि किसानों के इस दावे के बाद नुकसान का आकलन कराने के लिए सरकार ने सर्वे कराना शुरू कर दिया है। 
जान की दुश्मन बनी बारिश 
सोनीपत के गांव गढ़ी बाला में बेमौसम बारिश के कारण पट्टे पर ली गई करीब 10 एकड़ जमीन में उगाई गई धान, कपास व बाजरे की फसल बर्बाद हो गई। इस नुकसान के सदमे को किसान विकास उर्फ मोनू बर्दाश्त नहीं कर पाया और आर्थिक तंगी के चलते खेत में ही फंदे से लटक गया। मृतक किसान खेती के साथ एक जिम ट्रेनर भी था। का मिला। 
बागवानी बीमा योजना 
हरियाणा सरकार ने बागवानी किसानों के हित में पहली बार बागवानी बीमा योजना शुरू करने का निर्णय लिया है। देश में एकसी पहली बीमा योजना के तहत किसानों, बागवानी एवं सब्जियों की फसलों को बीमित किया जाएगा। इस बीमा योजना में 21 फलों, सब्जियों एवं मसाला फसलों को शामिल किया जा रहा है। सरकार का मानना है कि बागवानी किसानों को भी विभिन्न कारकों के कारण भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ता था। इसलिए बागवानी किसानों फसलों में अचानक बीमारी फैलने, कीटों के संक्रमण, बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि, सूखा, पाला आदि से किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सकेगी। इस बीमा योजना के तहत किसानों को सब्जी एवं मसाला फसलों के 30 हजार रुपये और फल वाली फसलों के 40 हजार रुपये का बीमा करने का प्रावधान किया गया। इसके लिए बीमित किसानों को केवल 2.5 प्रतिशत यानि 750 रुपये और 1000 रुपये के रूप में प्रीमियम का भुगतान करना होगा, जिसमें 750 रुपये और 1000 रुपये ही अदा करने होंगे। 
27Sep-2021

साक्षात्कार: समाज की बेहतरी के लिए साहित्य अहम: डा. भाटिया

श्रेष्ठ साहित्य पेश करने में जुटे साहित्यकार डा.अशोक भाटिया 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. अशोक भाटिया 
जन्म तिथि: 05 जनवरी 1955 
जन्म स्थान: अम्बाला छावनी (हरियाणा) 
मातृभाषा: पंजाबी 
शिक्षा: एम.ए.(हिंदी) स्वर्ण पदक, एम.फिल., पी.एच.डी.(कुरुक्षेत्र वि.वि.) 
संप्रति: एसोसिएट प्रोफेसर(रिटायर्ड), हरियाणा के विभिन्न राजकीय महाविद्यालयों में अध्यापन के बाद अब स्वतन्त्र लेखन। 
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BY-ओ.पी. पाल 
हिंदी साहित्य क्षेत्र में विभिन्न विधाओं में अपनी रचनाओं और लेखो के जरिए समाज के सामने श्रेष्ठ साहित्य पेश करने में जुटे करनाल निवासी सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. अशोक भाटिया को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2017 के लिए ‘बाबू बालमुकुंद गुप्त सम्मान’ से नवाजा है। उनकी साहित्यिक रचनाओं में कलात्मकता और रचनात्मकता साफतौर से सामाजिक सरोकार का दर्शन कराती है, जो बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक के लिए साहित्य के प्रति प्ररेणादायक साबित हो रही है। हरियाणा के विभिन्न राज्यकीय महाविद्यालयों में अध्यापन की भूमिका निभाने वाले सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर साहित्यकार डा. अशोक भाटिया ने हरिभूमि संवाददाता से खास बातचीत में समाजहित में जारी अपने साहित्यिक सफर के अनुभवों को साझा किया है। 
हरियाणा के अंबाला छावनी में जन्मे साहित्यकार डा. अशोक भाटिया साहित्य को समाज का दर्पण करार देते हुए कहा कि समाज के सामने श्रेष्ठतम साहित्य को सर्वोपरि रखना जरुरी है। लेकिन रचनाकार अपने आपको स्थापित करने के प्रयास में हड़बड़ी में जल्द ही साहित्यकार का दर्जा पाने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि साहित्य क्षेत्र को समाज की बेहतरी के लिए विस्तार देना जरुरी है। आज के आधुनिक तकनीक और इंटरनेट के युग में साहित्य क्षेत्र के दायरे को लेकर उनका कहना है कि पहले पत्र-पत्रिकाओं में संपादकों के संपादित रचनाओं में कलात्मक और रचनात्मक विचार समाज के हितों को साधते नजर आते थे, लेकिन आज इंटरनेट खासकर सोशल मीडिया में हड़बड़ी में अपनी रचनाओं की होड़ साहित्य की सार्थकता के मायने कमजोर भ्रम भी पैदा कर रही है। हालांकि इससे कहीं ज्यादा इंटरनेट युग में साहित्य का प्रसार और प्रचार से साहित्यकारों की श्रेष्ठ रचनाओं और उनके इतिहास को पढ़ना बेहद आसान हो गया है। 
सुप्रसिद्ध साहित्यकारों में शुमार डा. भाटिया ने बताया कि जब वह बीए प्रथम वर्ष में अध्ययनरत थे, तो एक वाहन से कुचले गये बच्चे को देखकर दो पंक्तियां लिखी। जबकि एमए में अध्ययनरत के दौरान उन्होंने बुक स्टाल से कुछ पुस्तकों में लधुकथाओं का अध्ययन करते हुए साहित्य के क्षेत्र में अपने कदम बढ़ाए। उन्होंने बाल साहित्य में दो खंडो में लघुकथा बालकांड लिखा, जिसमें नए प्रयोग के साथ पशु पक्षियों से बहलाने के बजाए बच्चों को की सोच और मनोवैज्ञानिक आधार पर उन्हें ही नायक बनाया। उन्होंने लघुकथाओं को सत्तर के दशक के बाद की देन बताने वालों को जवाब देने के लिए उससे पहले विष्णु प्रभाकर और कन्हैयालाल नंदन जैसे 29 लेखकों व साहित्यकारों की 179 पुस्तकों का अध्ययन करके ‘नीव के नायक’ नामक पुस्तक तैयार कर डाली। आत्मविश्वास के साथ उन्होंने अपनी रचनाओं के साथ संपादन और आलोचना पुस्तकों में कई नए प्रयोग किये। वर्ष 1990 में डा. भाटिया ने श्रेष्ठ पंजाबी लघुकथाएं के चार संस्करणों को हिंदी अनुवाद किया, जिसके बाद कई भाषाओं में साहित्य को आगे बढ़ाया। डा.भाटिया के निर्देशन में चौदह विद्यार्थियों ने कुरुक्षेत्र व अन्य विश्वविद्यालयों से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। साहित्यकार के रूप में दो विदेश यात्राएं कर चुके डा. अशोक भाटिया के पाठालोचन,लघुकथा, हिंदी भाषा, पत्रकारिता, समकालीन कविता,गीत, नागरी लिपि आदि के विभिन्न आयामों पर वर्ष 1981 से 2020 तक पांच दर्जन से भी अधिक शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। दो वर्ष तक हरियाणा साहित्य अकादमी की शासी परिषद के सदस्य रहे डा. भाटिया ने दूरदर्शन के दिल्ली, जालंधर, हिसार, पटना केन्द्रों और आकाशवाणी रोहतक के लगभग चालीस साहित्यिक कार्यक्रमों में भागीदारी की है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
लघुकथा रचना और आलोचना के प्रमुख हस्ताक्षर डा. अशोक भाटिया की कविता, आलोचना, लघुकथा, बाल-साहित्य, व्यंग्य आदि की 20 मौलिक व 16 सम्पादित समेत तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके कविता-संग्रह ‘सूखे में यात्रा’ और ’कठिन समय में हम’ के अलावा लघुकथा संग्रह में जंगल में आदमी, अँधेरे में आँख, क्या क्यूँ कैसे, अशोक भाटिया की 66 लघुकथाएँ शामिल हैं। बाल-साहित्य में समुद्र का संसार, हरियाणा से जान-पहचान, बालकाण्ड के अलावा व्यंग्य: लोकल विद्वान के साथ ही आलोचना में समकालीन हिंदी समीक्षा, समकालीन हिंदी कहानी का इतिहास, सूर-काव्य: विविध आयाम, समकालीन हिंदी लघुकथा, परिंदे पूछते हैं, लघुकथा:आकार और प्रकार, तथा लघुकथा में प्रतिरोध की चेतना भी शामिल है। डा. भाटिया की संपादित पुस्तकों में नवागत, श्रेष्ठ पंजाबी लघुकथाएँ, चेतना के पंख, श्रेष्ठ साहित्यिक निबंध, निर्वाचित लघुकथाएं, विश्व-साहित्य से लघुकथाएँ, नींव के नायक, आधुनिक हिंदी काव्य, पड़ाव और पड़ताल, पंजाब से लघुकथाएँ, तारा पांचाल की निर्वाचित कहानियाँ, हरियाणा से लघुकथाएँ, देश-विदेश से कथाएं, सियाह हाशिए, कथा-समय शामिल हैं। वहीं ज्ञान व सूचना-साहित्य: शबाना आज़मी (2015) भी उनकी कृतियों में शामिल है। उन्होंने पंजाबी में प्रकाशित पुस्तकों धुंध चीरदी किरन, तारा मंडल नामक लघुकथाओं का अनुवाद व संपादन का कार्य भी किया।
प्रमुख पुरस्कार/सम्मान
साहित्यकार डा. अशोक भाटिया को साहित्य क्षेत्र में दिये गये योगदान और उत्कृष्ट कार्य के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी की साहित्कार सम्मान योजना तहत वर्ष 2017 के लिए दो लाख रुपये के बाबू बालमुकुंद गुप्त सम्मान से नवाजा है। इससे पहले अकादमी उन्हें वर्ष 1991 में उनकी पुस्तक‘समुद्र का संसार’ को कृति पुरस्कार दे चुकी है। डा. भाटिया हरियाणा लेखिका मंच के बलदेव कौशिक स्मृति सम्मान, हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मलेन गुरुग्राम से ’समकालीन हिंदी समीक्षा’ पुस्तक को प्रथम समीक्षा-पुरस्कार, साहित्य सभा,कैथल से श्री ब्रिजभूषण भारद्वाज अधिवक्ता स्मृति साहित्य सम्मान, पंजाब कला साहित्य अकादमी के लघुकथा श्रेष्ठ सम्मान और विशिष्ट अकादमी सम्मान, पंजाबी लघुकथा हेतु प्रथम अ.भा.माता शरबती देवी सम्मान, अन्तर्राष्ट्रीय लघुकथा सम्मलेन(छत्तीसगढ़) से लघुकथा-गौरव सम्मान, पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी शिलॉंग से डा.महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा,हैदराबाद से सारस्वत सम्मान, विश्व हिंदी मंच पीलीभीत से विश्व हिंदी सेवी सम्मान, क्षितिज इंदौर से विशिष्ट लघुकथा-सम्मान, भोपाल से मातुश्री धनुवंती देवी सम्मान, त्रिवेणी साहित्य-संस्कृति-कला अकादमी कोलकाता से विशिष्ट अकादमी सम्मान, अ.भा.प्रगतिशील लघुकथा मंच पटना से नागेंद्र प्रसाद सिंह लघुकथा शोध एवं आलोचना शिखर सम्मान हासिल कर चुके हैं। यही नहीं उन्होंने अखिल विश्व हिंदी, टोरंटो (कनाडा) का सारस्वत सम्मान हासिल करके अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने साहित्य रचनाओं की छाप छोड़ी है। इसके अलावा उनके साहित्य क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए विभिन्न साहित्यक और सामाजिक मंचों पर वे लगातार सम्मान करती आ रही हैं। 
  27Sep-2021

मंगलवार, 21 सितंबर 2021

चौपाल: ‘कजरिया’ ने दी अभिनेत्री मीनू हुड्डा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान

हरियाणवी संस्कृति और लोक कला को सेहजने की मुहिम में निभा रही हैं अहम भूमिका 
साक्षात्कार-ओ.पी. पाल 
रियाणवी लोक कला और संस्कृति की पहचान जहां अंतर्राष्ट्रीय पर बन चुकी है, वहीं सामाजिक, रूढ़िवादिता और अंधविश्वास के अंधेरे ने भी हरियाणा को नकारात्मक रूप से पहचाना गया है? प्रदेश में लिंगानुपात का बिगड़ा गणित भ्रूण हत्या,ऑनर किलिंग और अन्य कई तरह की सामाजिक बुराईयों से घिरे रहे हरियाणा का भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन पिछले कई अरसे से प्रदेश में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिला है, जिसका श्रेय लोक कलाकारों, साहित्यकारों और शिक्षा के बढ़ते प्रचार प्रसार को है, जो लुप्त होती हरियाणवी संस्कृति और लोक कला को पुनर्जीवित करने में जुटे हुए हैं। उन्हीं कलाकारों में रोहतक की रहने वाली महिला कलाकार मीनू हुड्डा भी शुमार है, जिनमें शायद बचपन से ही एक कला विद्यमान थी। आज उनकी यही कला उनके बेमिसाल अभिनय का वो सबब बनकर उभरी, जो समाज को नई दिशा दे रही है। हरियाणा में भ्रूण हत्या और बच्चों त महिलाओं पर होती हिंसा व अत्याचार को लेकर मधुरिता आनंद के निर्देशन में बनाई गई डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘कजरिया’ में उनके अभिनय ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी धूम मचाई, जिसमें मीनू हुड्डा को एक अभिनेत्री के रूप बड़ी पहचान मिली। अभिनय के क्षेत्र में हरियाणा की लोक कला और भारतीय संस्कृति को सहेजने में जुटी महिला कलाकार मीनू हुड्डा ने हरिभूमि संवाददाता से खास बातचीत में अपनी कला के बचपन से फिल्मी जगत तक की बुलंदियों तक के अनुभव साझा किये। 
कला प्रधान बनने लगा हरियाणा 
हरियाणा की पहचान एक कृषि प्रधान राज्य के रूप में होती है, लेकिन प्रदेश में साहित्य, लोक संस्कृति और समाजहित के क्षेत्र के कलाकारों की रचनात्मक भूमिका बढ़ रही है, उससे यह राज्य अब कला प्रधान बनने की राह पर है। अभियन के क्षेत्र में रोहतक की रहने वाली अभिनेत्री मीनू हुड्डा ने शायद सपने में भी नहीं सोचा था कि उसमें विद्यमान अभिनय की कला समाज और जनमानस की समस्याओं को उजागर करने का माध्यम भी बनेगी। पिछले 15 साल से लगातार थियेटर करती आ रही मीनू हुड्डा का साफ कहना है कि ये सारा संसार ही एक मंच की तरह हैं जिसमें समाज कलाकार की भूमिका में हैं। एक कलाकार या अभिनय के रूप में समाज को दिशा देने और लुप्त होती लोक संस्कृति को पुनर्जीवित करने के प्रयास में जुटी मीनू हुड्डा ने बताया कि जब वह छह साल की थी तो तभी उनके माता पिता ने उसके अंदर की कला का परख लिया था। कक्षा पांच में सरकारी स्कूल रहा हो या फिर कालेज या फिर यूनिवर्सिटी हर जगह उसका मंच से लगाव रहा है और उसके अभिनय को प्रोत्साहन भी मिलता रहा। इससे उसके अंदर मंच पर अभिनय को लेकर आत्मविश्वास बढ़ता चला गया। परिवार में हमेशा उसकी पढ़ाई पर फोकस रहा है, लेकिन मंच के प्रति भी उनके पिता ने जिस प्रकार से उसे हर कदम पर प्रोत्साहित किया है उन्हीं की वजह से आज वह फिल्मी जगत तक का सफर कर पा रही हूं। खास बात ये भी है कि मंच के लिए उन्होंने अपनी शिक्षा को कतई प्रभावित नहीं होने दिया और उसने अंग्रेजी साहित्य और जनसंचार में डबल पोस्ट ग्रेजुएशन किया। 
यहां से मिला फिल्मी स्पेस 
मीनू हुड्डा के अनुसार भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान, पुणे में तीन साल के प्रशिक्षण ने उनके मंच के अभिनय को जिस प्रकार से परिपक्व किया, तभी से उसने अभिनय के मंच को नई दिशा दी। उन्होंने कहा कि एफटीआईआई की ओल्ड कैंटिन, जहां ऋषिकेश मुखर्जी ने अभिनेत्री जया बच्चन को अपनी फिल्म के लिए साइन किया था, उसी जगह को उन्होंने अपना स्पेस चुना और अपनी कला के लिए तैयार किये नए तरकश में एक्टिंग के नए तीन भरने शुरू किये। एफटीआईआई में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने अभिनय कार्यशालाओं और थिएटर प्रस्तुतियों में खुद को व्यस्त रखते हुए इसे कैरियर में शामिल कर लिया। बचपन से मंच पर सक्रीय मीनू हुड्डा राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय नाटक प्रतियोगिताओं और युवा उत्सवों में एक बार नहीं, बल्कि कई बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार भी जीत चुकी हैं। मीनू के नाटक ‘डा. आप भी’ के अब तक दस शो हो चुके है, इसके अलावा उन्होंने कई शॉर्ट फिल्म और मंच के अभिनय में अनेक पुरस्कार हासिल किये हैं। 
कवित्री के रूप में भी हुई पहचान 
मंच या थियेटर करने के साथ साथ मीनू हुड्डा को साहित्य कला में भी महारथ हासिल है, जो अब अंग्रेजी साहित्य की उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद हिंदी में कविताएं लिखती आ रही हैं। हिंदी कविताओं की उत्साही प्रेमी होने के नाते वह अब तक 53 कविताएं लिख चुकी है। कविताएं लिखना ही नहीं, बल्कि वह मंच पर भी कविता पाठ करती हैं और अपनी कविताएं आकाशवाणी रोहतक से भी प्रसारित करती आ रही हैं। 
  व्यक्तिगत परिचय 
रोहतक की रहने वाली मीनू हुड्डा वर्तमान में चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में फिल्म अध्ययन में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। वह अंग्रेजी साहित्य में डॉक्टरेट की पढ़ाई भी कर रही है। उन्होंने हरियाणवी लोक और संस्कृति को बढ़ावा देने की दिशा में काम करने वाले चैनल 'एंडी हरियाणा' में भी एक रचनात्मक निर्देशक के रूप में काम किया है। यहीं नहीं वे छात्रों को इंटरेक्ट करते समय अभिनय की विभिन्न विधाओं का ज्ञान देकर अपने अनुभव साझा करने में जुटी हैं, ताकि वे अभिनय के क्षेत्र में सकारात्मक भूमिका निभाकर समाज को नई दिशा देने का काम कर सके। 
चुनौतीपूर्ण रही कजरिया भूमिका 
हरियाणा में भ्रूण हत्या और महिलाओं पर होती हिंसा को लेकर मधुरिता आनंद के निर्देशन में बनाई गई डॉक्यूमेंट्री फिल्म यानी वृत्तचित्र ‘कजरिया’ के बारे में मीनू हुड्डा ने बताया कि कजरिया की भूमिका में अभिनय करना किसी चुनौती से कम नहीं था। दरअसल वर्ष 2015 में रिलीज हुई फिल्म ‘कजरिया’ एक भयंकर, परेशान करने वाला, गीतात्मक और रोशन करने वाला टूर डी फोर्स है, जो हमें हमारी हजारों लड़कियों की पितृसत्तात्मक हत्या का सामना करने के लिए प्रेरित करता है और कैसे संरचनात्मक और पारंपरिक उत्पीड़न महिलाओं को नष्ट कर देता है, उन्हें अपनी आत्मा के खिलाफ कर देता है। कजरिया फिल्म एक सुनिश्चित दूसरी विशेषता, और भारत में कन्या भ्रूण हत्या के बारे में एक मजबूत, मूल आवाज, फिल्म महिलाओं की मुक्ति की धारणाओं पर सवाल उठाती है। इसके फिल्मांकन के लिए हरियाणा के एक छोटे से गांव में स्थित कन्या भ्रूण हत्या पर एक संवेदनशील विषय चुना गया था। इसमें मीनू हुड्डा की भूमिका बेहद संवेदनशील नजर आती है, जिसमें मानव बलि की चल रही प्रथा, हमेशा एक बच्ची, जो पूर्णिमा की रात को देवी काली को समर्पित होती है। कजरिया (मीनू हुड्डा) अनुष्ठान करती हैं और समारोह के दौरान देवी के पास दिखाई देती हैं। यह फिल्म आंखों के लिए आसान नहीं है और परेशान करने वाली है। इस फिल्म में उनके साथ रिधिमा सूद ने अखबार की पत्रकार की भूमिका निभाई। इसके अलावा कुलदीप रुहिल, अभिनीत ने भी अपने अभिनय से दर्शकों को चौंकाया। खासबात ये भी रही कि निर्देशक मधुरीता ने इस फिल्म का ट्रेलर जारी करने के लिए नई दिल्ली का जंतर मंतर चुना, जो सभी सामाजिक आंदोलनों का केंद्र रहा है। 
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली प्रशंसा 
68वें कान्स फिल्म समारोह में मीनू हुड्डा, ऋद्धिमा सूद, सुमित व्यास और कुलदीप रुहिल के अभियन के साथ मधुरीता आनंद की फिल्म की ‘कजरिया’ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचनात्मक प्रशंसा मिली है। यही नहीं फोर्ब्स इंडिया पत्रिका द्वारा 2014 में जिन पांच शीर्ष भारतीय फिल्मों को चुना था, उनमें ‘कजरिया’ भी शामिल थी। वहीं चीन के जियान में सिल्क रोड फिल्म फेस्टिवल में ‘सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म पुरस्कार’ जीतने वाली कजरिया भारत की एक मात्र फिल्म थी। कजरिया ने तब से अमेरिका और यूरोप में 10 अन्य फिल्म समारोहों की यात्रा की है। कजरिया को लॉस एंजिल्स में लेडी फिल्म फेस्टिवल और द ला फेम फिल्म फेस्टिवल दोनों में प्रदर्शित किया गया था। कई फिल्म समीक्षकों ने भी इसे देखा है और इसके उत्कृष्ट फिल्म निर्माण के लिए इसकी सराहना की है। 
20Sep-2021

मंडे स्पेशल: दूध-दही के प्रदेश में खून की कमी से जूझ रही आधी आबादी

देश में शीर्ष पर रहे प्रदेश अंक बढ़ने के बावजूद चौथे स्थान पर खिसका 
गर्भवती महिलाओं में खून की कमी को दूर करने पर ज्यादा फोकस 
पांच से नौ साल के नौनिहालों की हालात बद से बदतर
ओ.पी. पाल.रोहतक। दूध-दही के खाने के लिए मशहूर हरियाणा की आधी आबादी खून की कमी से जूझ रही है। प्रदेश की 31.6 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं। वहीं 62 फीसदी से ज्यादा बच्चों में भी खून की कमी पाई गई है। सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद पांच से नौ साल तक के 93 फीसदी से ज्यादा नौनिहालों के हालात तो बद से बदतर हैं। हालांकि सरकार अटल अभियान के तहत कुपोषण व एनीमिया से मुक्ति पाने की जी तोड़ कोशिशों में जुटी है। इसके बावजूद साल 2020 में 46.7 अंक लेकर देशभर में अव्वल रहने वाला प्रदेश साल 2021 में ‘एनीमिया मुक्त भारत’ की जारी रैंकिंग में 55.9 अंक लेने के बावजूद चौथे स्थान पर खिसक गया। इन अंकों की बढ़ोतरी से यह तो साफ है कि सरकार की योजना तो कारगर है, लेकिन अन्य राज्यों की रफ्तार हमारे से कहीं तेज है। इसलिए प्रदेश में एनीमिया से निपटने की गति को बढ़ना होगा और आमजन को इससे जोड़ना पड़ेगा, तभी हम 2022 तक इससे मुक्ति के लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे।
हरियाणा सरकार केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की पहल पर ‘एनीमिया मुक्त भारत’ कार्यक्रम को अलग ही अंदाज में ‘अटल अभियान’ (एश्योरिंग एनीमिया लिमिट अभियान) के तहत चला रही है। हरियाणा में अप्रैल 2018 में शुरू किये गये इस अभियान का नतीजा दो साल बाद ही एक सकारात्मक योजना के रूप में सामने आया, जब वर्ष 2020 को राष्ट्रीय स्तर पर जारी 29 राज्यों की ‘एनीमिया मुक्त भारत’ की रैंकिंग में प्रदेश ने ऊंची छलांग लगाते हुए पहला स्थान की रैंकिंग में प्रदेश का नाम दर्ज कराया। प्रदेश सरकार के ‘अटल अभियान’-एश्योरिंग एनीमिया लिमिट के तहत 6.6.6 रणनीति को लागू करके प्रदेश में एनीमिया को कम करने के मकसद से इस योजना की घोषणा की थी। इसके तहत मासिक स्कोर कार्ड तैयार किया जा रहा है। मौजूदा वित्तीय वर्ष 2021-22 में हरियाणा सरकार कुपोषण और एनीमिया से निपटने के लिए लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में राज्य की सरकार ने ‘एनीमिया मुक्त भारत’ के तहत 1.11 करोड़ को लाभान्वित करने का लक्ष्य तय किया है, जिसमें 12.81 लाख गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं के अलावा 97.46 लाख बच्चें भी शामिल हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य पर फोकस करते हुए सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने एनीमिया से बचाने के मकसद से इस साल अभी तक 65.3 फीसदी पंजीकृत और 58.8 फीसदी गर्भवती महिलाओं को आयरन और फोलिक एसिट की गोलियां मुहैया कराई है। दरअसल राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण के चौथे चरण में प्रदेश में कुपोषण और एनीमिया जैसी गंभीर बीमारी को लेकर जो तस्वीर सामने आई थी, उसके बाद राज्य सरकार ने कम से कम 34 स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किये, जिनमें एनीमिया मुक्त भी एक है। 
सुधार की राह पर एनीमिया 
हरियाणा 2020 में 46.7 अंकों के साथ ‘एनीमिया मुक्त भारत’ में शीर्ष पर रहने के बाद भले ही इस साल चौथे स्थान पर खिसक गया हो, लेकिन अभियान के अंकों बढ़ोतरी इस बात का संकेत है कि जो राज्य एनीमिया सूची में 2018 में 22वें स्थान पर था। जो 2019 में 11वें और अगले साल 2020 में देशभर में अव्वल साबित हुआ। एनीमिया मुक्ति के लिए अप्रैल 2018 में शुरू किये गये सरकार के अटल अभियान के बाद लगातार सुधार देखा गया है। इस साल मार्च में यह एनीमिया मुक्ति का प्रदेश का सर्वाधिक 60.5 फीसदी स्कोर दर्ज किया गया, लेकिन इसके बाद हर माह इस स्कोर का ग्राफ में लगातार गिरावट आ रही है। इसका नतीजा यह हुआ कि मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में ‘एनीमिया मुक्त भारत’ का यह स्कोर 45.6 फीसदी तक आ पहुंचा, जो किसी चिंता से कम नहीं है। अभी तक प्रदेश में 68.4 फीसदी गर्भवती महिलाओं, 42.8 फीसदी 6-59 माह आयु वर्ग तथा 6.6 फीसदी पांच से नौ साल तक के बच्चों के साथ 64.4 फीसदी कक्षा छह से 12वीं तक के विद्यार्थियों को एनीमिया मुक्त किया गया है। 
एनीमिया संकट में नौनिहाल 
प्रदेश में एनीमिया मुक्त भारत अभियान के ताजा आंकड़े गवाह हैं कि पांच से नौ साल तक के 93.4 फीसदी बच्चे एनीमिया के भंवर में फंसे हुए है। इनमें प्रदेश के झज्जर, महेन्द्रगढ़, फरीदाबाद, सिरसा, गुरुग्राम, पंचकूला, भिवानी, नूहं और चरखी दादरी जिलों में ऐसे नौनिहालों की हालत बद से बदतर है। इस आयु वर्ग के बच्चों को एनीमिया से मुक्त करने में पलवल, करनाल, कैथल और यमुनानगर जिले अभियान कुछ हद तक आगे बढ़ता दिखा है। इसके अलावा प्रदेश में 6 से 59 माह तक के 57.2 बच्चे एनीमिया का दंश झेल रहे हैं। इसके अलावा सरकार के सामने अभी ‘अटल अभियान’ में कक्षा छह से 12 तक के 35.6 फीसदी विद्यार्थियों और 31.6 फीसदी गर्भवती महिलाओं को एनीमिया मुक्त करने की चुनौती खड़ी हुई है। चौथे राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण में हरियाणा की 62 फीसदी महिलाओं में खून की कमी पाई गई थी। महिलाओं में आयरन, विटामिन बी12, विटामिन सी और अन्य पोषक तत्वों की कमी की वजह से एनीमिया पाया गया था। 
क्या हैं एनीमिया और लक्षण 
एनीमिया का तात्पर्य मानव शरीर में खून की कमी होना है। जब शरीर के रक्त में लाल कणों या कोशिकाओं के नष्ट होने की दर, उनके निर्माण की दर से अधिक होती है तो रक्त से संबंधित एनीमिया जैसी गंभीर बीमारी सामने आती है। एनीमिया के लक्षण त्वचा का सफेद दिखना, चक्कर आना, सांस फूलना, हृदयगति का तेज होना और चेहरे एवं पैरों पर सूजन दिखाई देना है। एनीमिया से बचाव के लिए आहार में कुछ बदलाव करना जरुरी है और शरीर में आयरन की कमी को पूरा करने के लिए खाने में चकुंदर, गाजर, ट्माटर और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन फायदेमंद है। अगर शरीर में खून यानी एनीमिया स्टेटस अच्छा होगा तो ऐसी महिलाएं स्वस्थ बच्चे को जन्म देंगी। 
महिलाओं के स्वास्थ्य की योजनाएं 
प्रदेश सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर बड़े कदम उठाए हैं, जिसके तहत राज्य में संस्थागत प्रसूति 93.7 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ गई है। इसके लिए प्रदेश में 24 घंटे प्रसूति सुविधाएं उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया गया है। प्रदेश में इसके अलावा केंद्र द्वारा ई-स्वास्थ्य सेवाओं के तहत ई-संजीवनी ऐप को शुरू किया गया है। प्रदेश में वर्ष 2019-20 में पहली बार राज्य में 93 प्रतिशत टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त किया गया। 
जागरूकता अभियान 
हरियाणा स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेश को एनीमिया मुक्त करने की दिशा में चलाए गये कार्यक्रमों में बीसीसी यानी बिहेवियर चेंज कम्युनिकेशन भी शामिल है, जिसके तहत लोगों के बिहेवियर(व्यवहार) को बदलने की कोशिश हो रही है। वहीं टी-3 स्ट्रेटजी कार्यक्रम के तहत टेस्ट, ट्रीट और टॉक पर फोकस किया जा रहा है। इसके अलावा फूड डाइवर्सिफिकेशन कार्यक्रम के तहत लोगों को आयरन युक्त खाने के बारे जागरूक भी किया जा रहा है। 
20Sep-2021

सोमवार, 13 सितंबर 2021

साक्षात्कार: सामाजिक चेतना में साहित्य की अहम भूमिका: डॉ. निजात

BY-ओ.पी. पाल 
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नाम: डॉ. राजकुमार निजात 
जन्म तिथि: 01 अप्रैल 1953 
जन्म स्थान: सिरसा(हरियाणा) 
शिक्षा: एम.ए.(हिंदी), विद्यावाचस्पति, विद्यासागर(मानद) की उपाधि 
संप्रति: अध्यक्ष, समग्र सेवा संस्थान, सिरसा तथा पूर्व सदस्य हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला ----------------- 
हरियाणा के सिरसा निवासी सुप्रसिद्ध साहित्यकार ने हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में कथ्य और शिल्प की दृष्टि से अपनी रचनाओं और कृति से सशक्त तथा प्रभावशली छाप छोड़ी है। खास बात ये भी है कि उन्होंने हिंदी और उर्दू शब्दों का मिश्रण से अपने आपको एक गजलकार के रूप में भी पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है। यही नहीं उन्होंने साहित्य के जरिए वर्तमान सामाजिक चेतना में व्याप्त मूल संवेदना के वास्तविक रूप दर्शाकर सामान्य जनमानस को अपनी और आकर्षित किया है। प्रदेश में इस प्रकार की विभिन्न विधाओं में साहित्यिक सेवा देने वाले साहित्यकारों में शुमार डॉ. राजकुमार निजात के विषय, प्रतीक और कहने के ढंग ने निर्विवाद रूप से रूढ़िवादी पर सीधे सवालो से उनकी रचनाओं में साहित्य की प्रासंगिकता स्पष्ट नजर आती है। लोकल ऑडिट विभाग हरियाणा में रेजीडेंट ऑडिट ऑफीसर के पद पर रह चुके डॉ. राजकुमार निजात ने अपने साहित्यिक रचना संसार के इन्हीं अनुभवों को हरिभूमि संवाददाता से हुई खास बातचीत में साझा किया है। हिंदी साहित्य जगत के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. राजकुमार निजात ने समाज को नई दिशा देने के लिए विभिन्न विधाओं में साहित्य प्रस्तुत करते हुए अपनी रचानाओं में बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक को संजोया है। आलेख, कहानी और उपन्यास तथा गजल कहने और लिखने वालों की श्रृंखला में भी एक सक्रीय और सभ्रांत लेखक के रूप में अपनी पैठ बनाई है। यही नहीं डॉ. निजात की गजलों और कविताओं में बेबाक और स्पष्टता की झलक पेशकर अपने लिए एक संवेदनशील व्यक्तित्व की मिसाल पेश की है। साहित्य के क्षेत्र में कदम रखने के बारे में उनका कहना है कि जब वे 13-14 साल के थे तो उनकी अखबारों में बाल कविता छपी और इसके बाद अखबारों में कविताएं और उनकी रचनाओं के प्रकाशन ने उन्हें ऐसा प्रोत्साहित किया कि उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। चूंकि समाज को नई दिशा देने में साहित्य की भूमिका अहम होती है। इसलिए विश्व काव्य-संकलन में रचनाएं तथा शताधिक संकलनों में कहानी, लघुकथा, ग़ज़ल, गीत, दोहा, सूक्तियाँ,व्यंग्य, साक्षात्कार, बालकथा, बाल-लघुकथा, आलेख, आलोचना आदि विधाओं के प्रकाशन से उन्हें साहित्य क्षेत्र में ख्याति मिली। डॉ. निजात का मानना है कि इस तकनीकी युग में भी साहित्य की भूमिका का कालजयी है और रहेगी। उन्होंने नई पीढ़ी को साहित्य के लिए प्रेरित करते हुए संदेश दिया है कि साहित्य सामाजिक स्वरूप को पेश करता है इसलिए उन्हें साहित्य का अनुसरण करना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा साहित्य पढ़कर उसकी सार्थकता को आगे बढ़ाएं। डॉ. निजात के रचनाकर्म पर विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा छह पीएचडी और छह एमफिल के शोध कार्य पूरे किये और कई अन्य पर छात्रों द्वारा शोध किया जा रहा है। वहीं उनकी लघुकथा ‘उपेक्षित’ शीर्षक से तमिलनाडु बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन के दसवीं कक्षा के हिंदी पाठ्यक्रम में भी शामिल की गई है। ----------प्रमुख प्रकाशन
प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. राजकुमार ने हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में पुस्तके लिखी हैं। उनके दस लघुकथा संग्रह में कटा हुआ सूरज, बीस दिन, अदालत चुप थी, उमंग उड़ान और परिन्दे,नन्ही ओस के कारनामे, दिव्यांग जगत की 101 लघुकथाएं, माँ पर केंद्रित 101 लघुकथाएं, आसपास की लघुकथाएं, चित चिंतन और चरित्र तथा अम्मा फ़िर नहीं लौटी प्रमुख हैं। जबकि सात काव्य संग्रह में अब तुम रहने दो, मृत्यु की खोज में, तुम अवतार नहीं थे, नदी को तलाश है, युग से युग तक, रास्ते इंतजार नहीं करते और पीले गुलाबों वाला घर के अलावा सलवटें व अचानक दो कहानी संग्रह भी है। यही नहीं उनके एक उपन्यास साये अपने-अपने के दो संस्करण आ चुके हैं। तीन व्यंग्य संग्रह में तक धिना धिन, पत्नी की खरी-खरी व गलत पते पर के साथ ही तपी हुई ज़मीन, पत्थर में आंख व रोशनी दा सफर(पंजाबी में) गजल संग्रह भी सुर्खियों में हैं। उनके पांच बाल साहित्य में मेरा देश भारत, बँटे अगर तो मिट जाओगे, खट्टे हैं अंगूर तुम्हारे, जीवन से संघर्ष बड़ा है और शिक्षाप्रद ,ज्ञानवर्धक ,रोचक बालकथाएँ नई पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक साबित हो रहे हैं। निजात के एक आलेख संग्रह में तू भी हो जा रब तथा एक सूक्ति संग्रह में सूक्तियां मेरा अनुभव संसार भी पाठकों के बीच में है। मधुकांत का नाट्य संसार पर एक आलोचना और निर्जल तट पर लिखा एक गीत संग्रह के अलावा बेटी चालीसा व दिव्यांग चालीसा पुस्तकें भी साहित्यकार निजात की विधाओं का परिचायक हैं। जबकि एक ‘मां महिमा’ पुस्तिका समेत उनकी तीन दर्जन से ज्यादा साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अलावा उनकी संपादित पुस्तकों में हरियाणा का लघुकथा संसार, आवाजें, माहौल, हौसलों की लघुकथाएं, हरियाणा की बाल लघुकथा, ग़ज़ल के साथ-साथ सतीशराज पुष्करणा व सुरेंद्र वर्मा की प्रतिनिधि लघुकथाएं भी शामिल हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. राजकुमार निजात को हरियाणा साहित्य अकादमी ने दो लाख रुपये के वर्ष 2018 के बाबू बालमुकुंद गुप्त सम्मान से नवाजा है। इससे पहले उन्हें विश्व हिंदी सम्मेलन का राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी सम्मान-2000, गुजरात हिंदी विद्यापीठ अहमदाबाद का हिंदी गरिमा सम्मान-1994, हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग का साहित्य महोपाध्याय सम्मान-2003, हरियाणा कला परिषद हिसार मंडल एवं के. एल. थिएटर सिरसा का अनुभाव सम्मान-2021, भारतीय दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली का 1992 में प्रशस्ति पत्र दिया जा चुका है। हरियाणा प्रादेशिक पंजाबी साहित्य सम्मेलन, हरियाणा का लघुकथा संसार, उत्तर भारत की अग्रणी संस्था 'रसलोक', सर्वभारती सांस्कृति मंच पंजाब, केंद्रीय पंजाबी लेखक सभा तथा जनवादी कविता मंच पंजाब समेत देश की करीब चार दर्जन संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित होने का गौरव हासिल है। भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच पटना के सम्मान के साथ ही राही सहयोग संस्थान जयपुर के एक विशेष सर्वे में वर्ष 2021 के लिए विश्व के एक सौ विशिष्ट व सर्वश्रेष्ठ हिन्दी रचनाकारों में डॉ. राजकुमार निजात का नाम भी 94वें स्थान पर सम्मिलित किया गया है। साहित्यकार डॉ. निजात को विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ द्वारा विद्यावाचस्पति एवं विद्यासागर की मानद उपाधि से भी नवाजा जा चुका है। 
 13Sep-2021

मंडे स्पेशल: ऐसे कैसे कुपोषण मुक्त होगा हरियाणा!

राष्ट्रीय पोषण माह:भरकम पोषण आहार के नाम पर खर्च ‘ऊंट के मुहं में जीरा’ 
प्रतिदिन एक बच्चे पर 8 से 12 रुपये खर्च कर रही है सरकार ओ.पी. पाल.रोहतक। राष्ट्रीय मिशन पोषण अभियान के चौथे चरण में हरियाणा में भी सितंबर माह को पोषण माह के रूप में मनाया जा रहा है। हरियाणा सरकार ने प्रदेश में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए वर्ष 2022 तक छह फीसदी कुपोषण कम करने का लक्ष्य रखा है। राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण के अंतिम चरण के आंकड़ो पर गौर करें तो प्रदेश में कुपोषण के शिकार बच्चों में 34 प्रतिशत ठिगनापन, 21.2 प्रतिशत दुबलापन, 29.4 प्रतिशत कम वजन पाया गया है। सवाल ये है कि सरकार प्रदेश में करीब 10.91 लाख बच्चों को पोषित आहार देने का दावा कर रही है, जिसमें बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए भारी भरकम आहार में हर दिन एक बच्चे पर आठ से 12 रुपये खर्च कर रही है। सवाल उठता है कि इस ऊंट के मुहं में जीरा जैसे खर्च पर बच्चों को पोष्टिक आहर कैसे दिया जाएगा और प्रदेश से कुपोषण की समस्या से कैसे निपटा जा सकेगा। 
पोषण माह में कुपोषित बच्चों की पहचान
हरियाणा में कुपोषण से निपटने के लिए इस राष्ट्रीय मिशन के चौथे चरण में राष्ट्रीय पोषण माह के तहत महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा चार सप्ताह चार अलग-अलग थीम के तहत विभिन्न गतिविधियों आयोजित की जा रही हैं। इस अभियान में बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए भोजन के सही तरीके से पकाने व खाने के बारे में जानकारी दी जा रही हैं। अभियान के प्रथम सप्ताह में आंगनबाड़ी केन्द्रों, विद्यालयों, पंचायतों एवं अन्य सार्वजनिक भूमि आदि में उपलब्ध स्थानों पर पोषण वाटिका के रूप में पौधारोपण, किया गया। दूसरे सप्ताह में गर्भवती महिलाओं, बच्चों और किशोरियों जैसे विभिन्न समूहों के लिए आयुष और योग कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। जबिकि तीसरे सप्ताह में आईसी सामग्री के साथ आंगनवाड़ी लाभार्थियों को पोषण किट वितरित की जाएंगी और कुपोषित यानि एसएएम की पहचान और उनके लिए पौष्टिक भोजन के वितरण के लिए अभियान चलाया जाएगा। चौथे सप्ताह के दौरान एसएम बच्चों की पहचान करने से पहले आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा और एएनएम द्वारा बच्चों (पांच वर्ष तक की आयु तक) के लिए लंबाई व ऊंचाई और वजन मापन अभियान के लिए घर-घर जाकर सर्वेक्षण किया जाएगा। 
आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों पर जिम्मा 
प्रदेश में महिला एवं बाल विकास विभाग बच्चों व महिलाओं के विकास के लिए अनेक योजनाओं को अंजाम दे रहा है, जिसमें बच्चों व महिलाओं में कुपोषण और एनीमिया जैसी बीमारियों के खिलाफ जंग में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं के कंधों पर पूरा जिम्मा है। प्रदेश में चार हजार से ज्यादा आंगनवाड़ी केंद्रों पर फिलहाल 24731 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और उनके सहयोग के लिए 23635 सहायिकाएं कार्य कर रही हैं। आंगवानवाड़ी केंद्रों पर पोषाहार के रूप में बच्चों को पंजीरी, भरवा परांठा, आलू पूरी, मीठे चावल व दलिया, पुलाव, गुलगुले, चने, मूंगफली का मिक्चर और सेंवइयां जैसा आहर दिया जा रहा है। 
कुपोषण मुक्त में लगेगा लंबा समय 
एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में कम वजन के कारण बढ़ते कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए करीब तीन दशक लगेंगे। प्रदेश में फिलहाल कम वजन की समस्या 29.4 प्रतिशत है, इस अविधि तक इस समस्या से निपटने के लिए हर साल दो प्रतिशत की कमी लाना आवश्यक है, लेकिन मौजूदा स्थिति में यह वार्षिक दर 1.02 प्रतिशत ही आंकी गई है। ऐसे ही ठिगनापन और दुबलेपन की समस्या प्रदेश के सामने खड़ी हुई है। महिला एवं बाल विकास विभाग के आंकड़ो के अनुसार प्रदेश में राज्य सरकार कुपोषण के खिलाफ चल रही जंग में 06 माह से 6 साल तक के 10,90,929 बच्चों को पोषित आहार मुहैया करा रही है। इन में छह माह से एक साल तक के 77,077 लड़के व 74,382 लड़कियां, एक साल से तीन साल तक आयु वाले 2,67,784 लड़के 2,53,879 लड़कियां और तीन से छह साल आयु के 2,11,999 लड़के व 2,05,808 लड़कियां शामिल हैं।
चौथे चरण में दिखा था सुधार 
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चौथे चरण 2015-16 में हरियाणा में कुपोषण की जो स्थिति सामने आई थी, उसमें तीसरे चरण की तुलना में कुपोषण के मामले में काफी सुधार देखा गया था। शायद यही कारण रहा है कि पांचवे चरण में हरियाणा को शामिल नहीं किया गया। वर्ष 2017 जारी की गई चौथे चरण के सर्वे रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 29.4 प्रतिशत तक कम वजन, 34 प्रतिशत ठिगनापन, 21.2 प्रतिशत दुबलापन, 29.4 प्रतिशत कम वजन के कुपोषित सामने आए। कुपोषण का यह आंकड़ा वर्ष 2005-06 को किये गये तीसरे चरण के सर्वेक्षण की तुलना में सुधारात्मक था और केवल ठिगनापन के मामले में 2.1 प्रतिशत की मामूली वृद्धि देखने को मिली। जबकि कम वजन वाले कुपोषित बच्चों में 10.2 प्रतिशत की कमी आई, जो देशभर में सर्वाधिक सुधार के रूप में देखा गया। बच्चों के लिए पोषाहार 
सरकार महिला और बाल विकास विभाग के माध्यम से कुपोषण से लड़ने के लिए आंगनवाडी कार्यकत्रियों और स्वयं सेवी संगठनों की मदद ले रही है। प्रदेश में आंगनवाड़ी केन्द्र में बच्चों को पूरक पोषाहार 6 रुपये प्रतिदिन और अति कुपोषित बच्चों को 9 रुपये प्रतिदिन प्रति बच्चा की दर से दिया जाता है। वहीं गर्भवती और दूध पिलाने वाली माताओं को 7 रुपये प्रतिदिन है। प्रदेश में इस खर्च को बढ़ाकर हरियाणा सरकार ने इसी साल क्रमश: आठ रुपये, 12 रुपये प्रति बच्चा और महिला किया है। बच्चों को दिया जाने वाला यह पोषाहार प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट और विटामिन से युक्त होता है और कुपोषण से बचने के लिए 6 वर्ष तक प्रत्येक बच्चे को प्रतिदिन 500 कैलोरी और 12-15 ग्राम प्रोटीन मिलना जरुरी है। 
जब 12 हजार बच्चों की मौत ने झकझोरा 
प्रदेश के लिए वर्ष 2018-19 बच्चों पर इस कदर भारी पड़ा कि अप्रैल 2018 से मार्च 2019 के बीच कुपोषण और समुचित इलाज न मिलने और संक्रमण जैसे कारणों से एक से छह साल तक की आयु के 12031 बच्चे काल का ग्रास बने थे, जिनमें 6179 लड़के व 5852 लड़कियां शामिल थी। आयु वर्ग के हिसाब से एक साल तक के 9576 बच्चे, 1 से 3 साल तक 1502 तथा 3 से 6 साल तक के 953 बच्चे मौत का शिकार हुए। विभाग के आंकड़े के अनुसार इस वित्तीय वर्ष के दौरान प्रदेश में 3,63,375 बच्चों ने जन्म भी लिया, जिसमें 1,90,091 लड़के और 1,73,284 लड़कियां शामिल रही। सरकार छह साल तक के बच्चों के लिए मृत्यु दर कम करने, कुपोषण खत्म करने, टीकाकरण, सामान्य स्वास्थ्य जांच, रेफरल सर्विसेज व स्कूल से पहले प्री स्कूल में भेजने के नाम से समेकित बाल विकास योजना के तहत वर्ष 2018-19 में लगभग 300 करोड़ रुपये प्रदेश में खर्च किए थे। 
सर्वे में बच्चों की मौतों की स्थिति 
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)4 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में प्रति जीवित जन्म 33 प्रतिशत तक दर्ज किया गया। हरियाणा में शिशु मृत्यु दर में यह कमी अखिल भारतीय स्तर पर देखी गई 28 प्रतिशत की कमी से कम है। हरियाणा की पांच वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 41 थी, जो तीसरे चरण के सर्वे रिपोर्ट की तुलना में 21.42 प्रतिशत सुधार दर्शाती है। इसी रिपोर्ट के अनुसार 2016 में हरियाणा में डायरिया से होने वाली मौतों की संख्या 14 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2017 में यह बढ़कर 20 हो गई।
13Sep-2021

रविवार, 12 सितंबर 2021

आजकल: ब्रिक्स में भारत की चिंता के मायने

अफगानिस्तान के हालात को लेकर चिंता

-प्रशांत दीक्षित, विदेशी मामलों के विशेषज्ञ 
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भारत के प्रस्ताव पर आतंकवाद के खिलाफ एक कार्य योजना को स्वीकृति दी गई, लेकिन इससे भारत की अफगानिस्तान में तालिबान की नवगठित सरकार को लेकर चिंताएं कम होने वाली नहीं हैं। ब्रिक्स देशों में शामिल दुनिया के पांच बड़े देशों ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ने सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाले भारत के साथ के सुर में सुर मिलाते हुए अफगानिस्तान के हालात को लेकर चिंता जताते हुए इसकी धरती को आतंकवाद की पनाहगाह बनने से रोकने की अपील करते हुए संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया गया। तालिबान को आतंकी संगठन तालिबान को समर्थन कर रहा पाकिस्तान हालांकि ब्रिक्स संगठन का हिस्सा नहीं है, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ दुहाई दे रहे ब्रिक्स देशों में शामिल चीन और रुस तालिबान सरकार के दरवाजे पर मदद के लिए खड़े हो चुके हैं। चीन ने तालिबान सरकार को मान्यता न देने के बावजूद उसे 3.1 करोड़ डॉलर की सहायता का ऐलान तक कर दिया है। ऐसे में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में आतंकवाद या अफगानिस्तान की चिंता को लेकर हुई चर्चा या निर्णयों में भारत का भारत की चिंताओं के लिए कोई मायने नहीं रखता। 
अफगानिस्तान को लेकर जहां तक अमेरिका की नीतियों का सवाल है उसमें तालिबान की सरकार के मद्देनजर एक दिलचस्प मोड़ भी सामने आया है। आज 9/11 का दिन अमेरिका के लिए काला दिन माना जाता है, जब 2001 में आतंकी संगठन अल कायदा ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर दुनिया को दहलाने वाला आतंकी हमला किया था, जिसके बाद अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ सबसे ज्यादा योजनाओं को अंजाम दिया। लेकिन जिस अमेरिका ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर आतंकी हमले के बाद आतंकवाद के खिलाफ मुहिम चलाई थी और अफगानिस्तान में अल कायदा, जैश व तालिबानी जैसे आतंकी संगठन के खिलाफ मुहिम चलाने के साथ खासतौर से अफगानिस्तान के सैनिकों को प्रशिक्षित किया। यही नहीं 9/11 हमले के बीस साल बाद अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार बनवाने के बाद अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी कराई है। अफगानिस्तान के हालातों में पेंटागन आतंकी हमले के बीस साल बाद अमेरिका के वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ प्रतिबद्धता में भी यूटर्न झलक रहा है, जिसे लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या अमेरिका के चरमपंथी आतंकवाद के खिलाफ प्रतिबद्धता और को लेकर दृष्टिकोण में बदलाव आया है? जबकि तालिबान को लेकर संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त समिति के फैसलों में भी स्पष्ट किया गया था, जिसके तहत तालिबान संभावित आतंकवाद समर्थित संगठन के रूप में नामित रहा है। हालांकि यह भी गौर करने वाली बात है कि अफगानिस्तान पहले से ही अपनी वित्तीय समस्या से जूझ रहा है और अमेरिका ने अफगान सेंट्रल बैंक से संबंधित लगभग 9.5 बिलियन डॉलर की संपत्ति को फ्रीज कर दिया है। वह नहीं चाहता कि तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार को यह पैसा मिले। अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार का गठन भारत की सामरिक नीतियों और अफगानिस्ता के विकास में किये गये निवेश किसी चिंता से कम नहीं है। पिछले बीस साल में भारत ने अफगानिस्तान के विकास, बुनियादी ढांचों, ऊर्जा, औद्योगिक विकास, बंदरगाह, कृषि, व्यापार जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सैकड़ो परियोजनाओं में 3 अरब डॉलर का निवेश करके अपनी मौजूदगी दी है। अब तालिबान सरकार के कब्जे में आए अफगानिस्तान को लेकर भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अफगानिस्तान के सभी 34 प्रांतों में भारत द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं का जिक्र किया और समय समय पर अफगानिस्तान की हाथ खोलकर मदद भी की है। शायद इसी उम्मीद के साथ तालिबान की नवनियुक्त सरकार भारत को लेकर सहयोग की नीति के प्रति उदारता को प्रकट कर रही है। लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है, कि तालिबान को विश्व में आतंकी संगठन के रूप में पहचाना गया है। तालिबान को पाकिस्तान का खुला समर्थन और चीन का परदे के पीछे से मदद की नीति को फिलहाल भारत के खिलाफ देखा जा रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान शासन को लेकर ऐसे सवाल भी हैं कि क्या आने वाले दिनों में अफगानिस्तान पाकिस्तान केंद्रित राजनीतिक, कूटनीतिक गतिविधि और अब अफगानिस्तान में आर्थिक अतिक्रमण को और झेलेगा? यदि ऐसा हुआ तो यह रणनीतिक फोरप्ले के विपरीत आर्थिक यथार्थवाद पर आधारित एक पहेली है। इसमें चीन पहले ही अफगानिस्तान को शामिल करने के लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर पाकिस्तान में 60 अरब डॉलर के निवेश का विस्तार करने की अपनी योजना तैयार कर चुका है। इस योजना के हिस्से में ही पाकिस्तान पर कर्ज के बोझ से दबे सीपीईसी ने चीन को दक्षिण एशियाई देश की रणनीतिक संपत्ति तक पहुंच हासिल करने के लिए 'कर्ज-जाल कूटनीति' का उपयोग करने की अनुमति दी है।
 -(ओ.पी.पाल से बातचीत पर आधारित)
12Sep-2021

सोमवार, 6 सितंबर 2021

चौपाल: संग्रहालय की बाट जोहती हरियाणवी संस्कृतिक विरासत


-ओ.पी. पाल 
आधुनिक युग में लुप्त होती भारतीय संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों की समाज में अलख जगाते आ रहे लोक कलाकार रघुवेंद्र मलिक को करीब साढ़े तीन दशक से जिन सांस्कृतिक विरासत और वस्तुओं का संग्रह करते आ रहे हैं। उनकी इन सांस्कृति और परंपारिक संग्रहित वस्तुओं को सुरक्षित रखने राज्य सरकार की तरफ से कई बार संग्रहालय बनाने की घोषणा भी हो चुकी है, लेकिन अब तक संग्राहलय न मिलने के कारण इस सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण खुद ही करते आ रहे रघुवेंद्र मलिक का मानना है कि सामाजिक और सभ्यता की संस्कृति को पुनर्जीवित करने के मकसद से इन संग्रहित परंपरागत वस्तुओं और विरासत के प्रति समाज को जागरूक करना वह अपना दायित्व समझते हैं। समाज को भी खासकर आज की युवा पीढ़ी को भी अपनी सांस्कृतिक विरासत की समझ होना जरुरी है। उनके पास संग्रहित की गई ऐसी वस्तुएं हैं जिनका आज के युवा और भावी पीढ़ी को कुछ भी पता नहीं है। इन सांस्कृतिक विरासत का वे मुंबई तक प्रदर्शनी के माध्यम से प्रदर्शन भी कर चुके हैं। उनका कहना है कि बुजुर्गों को अपनी समाज और संस्कृति से युवा पीढ़ी को जीवन से जुड़े अनुभव साझा करना चाहिए। लोक कलाकार रघुवेंद्र मलिक ने हरिभूमि संवाददाता से विशेष बातचीत में खासकर हरियाणवी संस्कृति से जुड़ी पंरागत वस्तुओं के संग्रह के बारे में बताया कि समूचे राज्य से रसोई, बर्तन, धातुएं, घरेलू सामान, कृषि यंत्र, परिधान, हाथ चक्की, पशुओं के लिए इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के अलावा सामाजिक जीवन में इस्तेमाल होने वाली परंपारिक विरासत से जुड़े विभिन्न वस्तुओं का संग्रह किया गया है। इन वस्तुओं के लिए घर में रंगशाला बनाई हुई, जिसमें इनकी सुरक्षा के लिए परिजनों को भरपूर सहयोग मिल रहा है। इस संग्रह का मकसद यही है कि हमारी संस्कृति का ज्ञान एक दूसरी पीढ़ी तक निरंतर चलता रहना चाहिए। अपनी इस विरासत के बारे में वे गांव व शहरों में भ्रमण करते हैं, तो युवाओं या बुजुर्गो के समूह में अपनी इस संस्कृति और सभ्यता का जिक्र करके उन्हें अपनी संस्कृति के प्रति प्रेरित करते हैं। इसी दौरान ऐसा अहसास होता है कि इस युग में हमारी संस्कृति व सभ्यता किस कदर लुप्त होने के कगार पर है। इस संजोयी गई विरासत को देखने के लिए उनकी रंगाशाला पहुंचकर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के अलावा फिजी के पीएम रहे महेन्द्र चौधरी व विदेशी पर्यटक भी उनके द्वारा सेहजी गई सांस्कृति धरोहर को सराह चुके हैं। 
कई विधाओं के धनी हैं रघुवेंद्र मलिक 
रोहतक शहर के प्रेम नगर में रहने वाले रघुवेंद्र मलिक एक ऐसे लोक कलाकार है जिनके अभियन की धमक हरियाणा में ही नहीं, बल्कि बॉलीवुड तक सांस्कृतिक मूल्यों का प्रदर्शन कर चुके हैं। कला और अभिनय के क्षेत्र में कई विधाओं के धनी रघुवेंद्र मलिक का जन्म सोनीपत के गांव रेवड़ा में 23 अक्टूबर 1952 को हुआ था, जो एक फुटबालर और बच्चों को फुटबाल की अकादमिक जानकारी भी देते रहे। रघुवेंद्र मलिक लोक कलाकार, सामाजिक परोधा ह नहीं, बल्कि एक जादूगरी में भी अपना जलवा दिखाने में माहिर हैं। मसलन नजरबंदी का खेल दिखाकर अपने प्रशंसकों को हैरत में डाल देते हैं। यान किसी भी चीज को गायब करना, सिक्के या नोट का स्वरूप बदलने में माहिर मलिक एक जादूगर के रूप में भी पहचाने जाने लगे हैं। 
सत्तर के दशक से अभिनय का जलवा 
अपनी संस्कृति से जुड़े ऐसे कई अनुभव साझा करते हुए मलिक ने बताया कि 1970 से वे कला अभियन के रूप में थियेटर करते रहे हैं। उसी दौरान श्याम बेनेगल के साथ उन्होंने ‘चमत्कार’ और ‘कृषि पंडित’ नामक दो डॉक्यूमेंट्री में सुमित्रा हुड्डा, पींचू कपूर, पायल, युद्धबीर मलिक के साथ एक कलाकार की भूमिका निभाई। यहीं से अभिनय के क्षेत्र में उनमें आत्मविश्वास पैदा हुआ, जिसके बाद बहू रानी, सांझी, छोरा जाट का, फूल बदल व लाडो से लेकर बालीवुड की फिल्म ‘मेरे डैड की मारुति’ तक में एक कलाकार के रूप में भी अपनी संस्कृति की चमक बिखर चुके हैं। अभी भी उनकी लखमी चंद, नंगे पांव और अन फेयर एंड लवली फिल्में आने वाली हैं। इस विरासत के संग्रहण को देखने के लिए 13 फरवरी 1991 को इंडियन इंस्टीट्यूट एंड मास कम्यूनिकेशन के शिष्टमंडल में 15 देशों के मीडियाकर्मियों ने उनसे हरियाणवी कल्चर की जानकारी लेकर उनके प्रयास की प्रशंसा की थी। 
त्यौहारों में भी अहम भूमिका 
लोक कलाकार के रूप में अपनी विधाओं का परिचय देते आ रहे मलिक लुप्त होते जा रहे लोक गीतों और शादी ब्याहों के गीतों से जुड़ी हरियाणवी संस्कृति को भी पुनर्जीवित करने में जुटे है। वे 1985 से होली, दीपावली, तीज जैसे त्यौहारों का हिस्सा ही नहीं बन रहे, बल्कि प्रशासन के साथ मिलकर विशेष आयोजन के जरिए पारंपरिक गीतों के प्रति महिलाओं और लोगों को प्रेरित करने में पीछे नहीं हैं। यही नहीं हरियाणा के विकास पर भी वे सांस्कृतिक विरासत के नाम से प्रदर्शनी लगाकर समाज के लोगों को मान्यताओं से अवगत कराते आ रहे हैं। मलिक को राष्ट्रीय युवा महोत्सव में कला और वस्तु संग्रह के लिए वर्ष 2014 लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिल चुका है। वहीं हरियाणा दिवस पर एक नंवबर 2009 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा ने उन्हें पुरावस्तु पुरस्कार से सम्मानित किया था। जबकि मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने वर्ष 2017 में राष्ट्रीय युवा महोत्सव के दौरान मलिक को विरासत संरक्षण पुरस्कार से नवाजा है। 
06Sep-2021

बुधवार, 1 सितंबर 2021

साक्षात्कार: समाज को समर्पित साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर का रचना संसार

ओ.पी.पाल 
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व्यक्तिगत परिचय 
नाम: सुदर्शन रत्नाकर 
जन्म: 11 सितंबर 1942 
जन्म स्थान: माण्टगुमरी, पंजाब प्रांत (अविभाजित भारत)
शिक्षा: एम.ए.(हिन्दी), बी.एड., स्नातकोत्तर अनुवाद डिप्लोमा, साहित्यवाचस्पति 
संप्रति: केन्द्रीय विद्यालय, फ़रीदाबाद में शिक्षिका के पद से सेवानिवृत्त
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हिंदी साहित्य में बहुआयामी प्रतिभाग की धनी महिला साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2019 के लिए महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान दिया है। हिन्दी-जगत की प्रसिद्ध महिला साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर एक ऐसी संवेदनशील व्यक्तित्व है, जो पिछले साढ़े पांच दशक से ज्यादा समय से समाज को नई दिशा देने के लिए साहित्य क्षेत्र में सेवा कर रही हैं। साहित्य जगत में उनका रचना-संसार इतना विस्तृत है कि उन्होंने कहानी, उपन्यास, कविता, लघुकथा, हाइकु, ताँका, सेदोका, चोका, माहिया जैसी विधाओं में अपनी रचनाओं और लेखनी से साहित्य के क्षेत्र मे एक विशेष पहचान बनाई है। हिंदी साहित्य में विभिन्न विधाओं में समाज को दिशा देने के लिए लेखन कार्य में जुटी प्रसिद्ध साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर ने अपने अनुभवों को हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान साझा किया। हिंदी साहित्य के जरिए समाज को रोशन करने वाली सुप्रसिद्ध महिला साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर का कहना है कि समाज का हित साहित्य में निहित है। वर्तमान जीवन की आपाधापी एवं भागदौड़ में आदमी अपनी सुख-सुविधाओं को जुटाने की होड़ में जिस तरह से अविराम संघर्षरत है। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जीवन की इस गहमा-गहमी एवं अंधी भागदौड़ ने साहित्य क्षेत्र को भी प्रभावित किया है। आज के आधुनिक इंटरनेट युग में हिंदी साहित्य पर पड़ रहे प्रभाव के बावजूद हिंदी साहित्य की प्रासंगिकता बरकरार है। वहीं हिंदी साहित्य के प्रसार और प्रचार को भी बढ़ावा भी मिला है। आज की नई पीढ़ी को साहित्यकारों की पुस्तकों को पढ़ने की जरुरत है, भले ही उसका जरिया इंटरनेट ही हो। लेखन कार्य में भले ही कम लिखा जाए, लेकिन जो लिखा हो वह सामाजिक दृष्टि से भावनात्मक और रचनात्मक होना चाहिए। प्रकृति चित्रण में विशेष रुचि रखने वाली सुदर्शन के रचना संसार में अधिकांश कहानियाँ नारी प्रधान है, जिनमें उन्होंने मध्यमवर्गीय नारी-जीवन की विसंगतियों को उकेरने का प्रयास किया है। पारिवारिक सम्बन्धों का क्षरण, सामाजिक शोषण, राजनैतिक अवसरवाद आदि अनेक समस्याएं उनकी लघुकथाओं का विषय रही हैं, जिनमें समाधान के संकेत भी दिये गये हैं। उनका यह भी मानना है कि जीवन मूल्यों के परिवर्तन के साथ जीवन के जहाँ अर्थ बदले हैं, वहीं कविता के मूलरूप में भी परिवर्तन आया है। एक व्यक्ति की समस्या पूरे समाज की समस्या है, जिसकी अनुभूति सबकी अनुभूति होनी चाहिए। श्रीमती सुदर्शनरत्नाकर का जन्म माण्टगुमरी, पंजाब प्रांत (अविभाजित भारत) में एक शिक्षित एवं उदारवादी ज़मींदार परिवार में हुआ था। विभाजन की त्रासदी का दंश झेलते हुए उनके माता-पिता हरियाणा के पानीपत शहर में आकर बस गये थे। यहीं रहकर सुदर्शन ने पंजाब विश्वविद्यालय से शिक्षा दीक्षा ग्रहण की। उसके बाद वे फरीदाबाद के केंद्रीय विद्यालय में एक अध्यापिका के रूप में कार्यरत रही, जहां से करीब 39 की सेवा के बाद 2003 में सेवानिवृत्त हो गई। उसके बाद उन्होंने पूरी तरह से अपना जीवन साहित्य सेवा के लिए समर्पित करके लेखन कार्य को तेज कर दिया। श्रीमती रत्नाकर की रचनाओं को कमलेश्वर जैसे सुविख्यात साहित्यकारों ने भी सराहा है। साहित्य के क्षेत्र में कर्मवादी महिला के दृष्टिकोण और उनकी संवेदनशीलता के साथ कला प्रेमी व्यक्तित्व का भी विभिन्न साहित्यकार व लेखक सम्मान करने से पीछे नहीं रहे। हिंदी साहित्य जगत में सुदर्शन रत्नाकर ने जीवन में खट्टे-मीठे अनुभवों और विशेषकर नारी-मन की संवेदनाओं,भावनाओं को केन्द्र में रखकर आधुनिक भावबोध से सजी-सँवरी अनेक विधाओं में अमूल्य रचनाएँ हिन्दी-जगत को दी हैं। 
प्रकाशित रचनाएँ: 
साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर ने वर्ष 1962 से लेखन कार्य शुरू किया। इसके तहत उनकी डेढ दर्ज ने ज्यादा मौलिक पुस्तकों के कहानी संग्रह में फूलों की सुगंध, दोष किस का था, बस अब और नहीं, मैंने क्या बुरा किया है, नहीं यह नहीं होगा, मैं नहीं जानती, कितने महायुद्ध, चुनिंदा कहानियाँ, अलकनंदा। कविता संग्रह में युग बदल रहा है, आसमान मेरा भी है, एक नदी एहसास की और 'उठो, आसमान छू लें। ताँका संग्रह में हवा गाती है, माहिया एवं हाइकु संग्रह में तिरते बादल व मन पंछी सा। लघुकथा संग्रह में साँझा दर्द के अलावा दो उपन्यास में क्या वृंदा लौट पाई और यादों के झरोखे प्रमुख रूप से शामिल हैं। वहीं विश्व की विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन, कई रेडियो स्टेशन से प्रसारण। उनकी छह दर्जन से अधिक संपादित संकलनों में रचनाएँ संगृहीत और पंजाबी, उर्दू, सिन्धी, अवधी, नेपाली, गुजराती में रचनाएँ अनुदित हैं। इसके अलावा अनुभूति, अभिव्यक्ति, साहित्य कुंज, त्रिवेणी, सहज साहित्य, लघुकथा डॉट कॉम, हिन्दी हाइकु आदि वेब-साइट पर भी प्रकाशन हुआ है। देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी रोहतक एवं दिल्ली से कविता, कहानी, वार्ता, चर्चाओं का प्रसारण भी उनकी उपलब्धियों में शामिल हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी ने हिन्दी-जगत की प्रसिद्ध महिला साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर को पांच लाख रुपये वाले ‘महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान-2019 से पहले वर्ष 2013 में 'श्रेष्ठ महिला रचनाकार' सम्मान से भी नवाजा है। यही नहीं अकादमी ने उनके 'दोष किसका था' कहानी-संग्रह को श्रेष्ठ कृति पुरस्कार के अलावा उनकी कहानियों को चार बार पुरस्कृत किया है। हरियाणा साहित्य अकादमी की मासिक हरिगंधा पत्रिका के हाइकु विशेषांक का 2017 में सम्पादन और केन्द्रीय विद्यालय संगठन से श्रेष्ठ शिक्षक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी हासिल कर चुकी हैं। इसके अलावा सुदर्शन जी को दो दर्जन से अधिक देश की विभिन्न साहित्यिक संस्थानों से भी पुरस्कार व सम्मान हासिल है। वहीं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एम.फिल तथा पी.एच.डी की उपाधि हेतु छात्रों द्वारा शोध कार्य भी किये गये हैं। भाषा चंद्रिका स्वर संगम, भाषा मंजरी पाठ्य पुस्तकों में उनकी रचनाएं शामिल होना भी उनके सम्मान से कम नहीं है। 
संपर्क:ई-29/ नेहरू ग्राँऊड, फ़रीदाबाद-121001/मो. 09811251135
30Aug-2021

मंडे स्पेशल: गरीबो का निवाला डकार रहे अमीर!

हरियाणा में पाए गये 75 हजार फर्जी बीपीएल कार्ड सरकार पात्र लोगों के बनाएगी 82 हजार नए कार्ड 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश के अमीर गरीबों के राशन पर डाका डाल रहे हैं? ऐसे 75 हजार परिवार सामने आए हैं, जो अपनी पहुंच और प्रभाव से बीपीएल राशन कार्ड बनवाकर जरुरतमंदों का राशन डकारते रहे। जबकि 82 हजार परिवार दो जून की रोटी को मोहताज रहे। प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई परिवार पहचान पत्र योजना से खुलासा हुआ कि ऐसे लोगों ने गरीब के निवाले को डकारने के मकसद से अपनी पहुंच का इस्तेमाल किया। सरकार अब इन 75 हजार परिवारों को बीपीएल सूची से निकालकर 82 हजार जरुरतमंदों को बीपीएल दायरे में शामिल कर रही है। सरकार प्रदेश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत करीब 1.23 करोड़ लाभार्थियों को खाद्यान्न जैसी आवश्यक वस्तुओं को मुहैया कराने के लिए ठोस कदम उठा रही है। हरियाणा खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता विभाग के रिकार्ड में प्रदेश में कुल 27,04,855 राशनकार्ड पर 1,22,51,366 लाभार्थियों को 9690 डिपो के माध्यम से आवश्यक वस्तुओं का वितरण किया जा रहा है। इनमें गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले करीब 8,92,774 बीपीएल कार्ड धारक हैं जिनके परिवार के 41,00,546 सदस्यों को सरकार की और से मुफ्त राशन दिया जा रहा है। वहीं 2,48,134 अन्त्योदय अन्न योजना यानि एएवाई कार्ड पर 9,98,340 और 15,63,947 ओपीएच यानी खाकी कार्ड पर 71,52,480 सदस्य शामिल हैं। राज्य सरकार ने पिछले दिनों ही बीपीएल के दायरे में सालाना आय की सीमा को 1.20 लाख रुपये से 1.80 लाख रुपये से कम सालाना आमदनी वालों को बीपीएल श्रेणी में शामिल करने का फैसला किया है। इस बदलाव से परिवार पहचान पत्र योजना के तहत हुए आय सत्यापन सर्वे में अभी तक 82 हजार ऐसे परिवारों की पहचान की गई है, जिनकी सालाना आमदनी एक लाख 80 हजार रुपये से कम है। इन सभी के गरीबी रेखा से नीचे यानि बीपीएल राशन कार्ड बनाए जाएंगे। वहीं सर्वे में बीपीएल श्रेणी का राशन लेने वाले 75 हजार परिवारों की सालाना आमदनी 1.80 लाख रुपये से पाई गई है। गरीबों का राशन डकारने वाले ऐसे फर्जी बीपीएल परिवारों का नाम बीपीएल सूची से काटना शुरू कर दिया है। किस कार्ड पर कितना राशन 
देश में गरीबों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार राशन कार्ड धारकों को प्रत्येक व्यक्ति को हर महीने पांच किलो गेहूं और चावल दो से तीन रुपये में उपलब्ध करा रही है। इसके लिए आम तौर पर तीन श्रेणी के राशन कार्ड बनाए गये है, जिनमें गरीबी रेखा के ऊपर रहने वाले लोगों को एपीएल(हरा), गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों के लिए बीपीएल(पीला) राशन कार्ड शामिल है। जबकि सबसे गरीब परिवारों के लिए अन्त्योलदय राशन कार्ड एएवाई (गुलाबी) राशनकार्ड बनाए गये हैं। एपीएल परिवार को हर महीने 15 किलो, बीपीएल परिवार को 25 किलो तथा एएवाई राशन कार्ड पर हर महीने 35 किलो राशन यानि खाद्य साम्रगी प्रदान की जाती हैं।
गरीब कल्याण अन्न योजना
हरियाणा सरकार ने राज्य में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत एएवाई, बीपीएल और ओपीएच राशन कार्ड धारकों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 5 किलोग्राम गेहूं प्रति सदस्य निशुल्क उपलब्ध करवाया जा रहा है। इसमें एएवाई व बीपीएल कार्ड धारकों को हर माह चीनी का वितरण भी किया जा रहा है। इन दोनों कार्ड धारकों को एक किलोग्राम चीनी 13.50 रुपये के अनुसार प्रति परिवार वितरित की जा रही है, जिसमें इन दोनों राशन कार्ड धारकों को 20 रुपये प्रति लीटर की दर से दो लीटर हर माह वितरित करने का प्रावधान है।
प्रवासियों को भी राशन 
एक देश एक राशन योजना के तहत अंतर्राज्यीय राशन के ट्रांजेक्शन यानि पोर्टिब्लिटी के तहत प्रदेश में ताजा डाटा के अनुसार सबसे ज्यादा 78 फीसदी उत्तर प्रदेश था 17 फीसदी बिहार के राशनकार्ड धारक हैं। इसमें 53 फीसदी अंतर्राज्यीय राशन ट्रांजेक्शन फरीदाबाद, गुरुग्राम, पंचकूला एवं पानीपत में किए जा रहे हैं। 
सरसों के तेल के बदले पैसा 
प्रदेश में बीपीएल परिवारों को हर माह दो किलो सरसों का तेल भी दिया जाता है, लेकिन सरकार के निर्णय के तहत तेल की कमी के कारण गत जून माह से सरसों के तेल की बजाए 250 रुपये प्रति परिवार प्रति माह प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से उनके बैंक खाते में भेजे जा रहे हैं। हरियाणा में अभी तक करीब 4.88 लाख परिवारों के बैंक खातों में करीब 12.21 करोड़ रुपये की रकम सरसों तेल के बदले ट्रांसफर की है। जबकि 2.20 लाख परिवारों की सूची में आए करीब 2.20 लाख बीपीएल परिवारों के खातों में लगभग 5.50 करोड़ रुपये की राशि जल्द ही हस्तांतरित की जाएगी। 
कांग्रेस शासन में हुआ था सर्वे 
प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा बीपीएल राशनकार्ड के लिए हुए सर्वे से पहले 2006-07 में कांग्रेस सरकार के दौरान बीपीएल लिस्ट यानी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों में नाम जोड़ने के लिए सर्वे किया गया था। इस लंबे इंतजार के बाद फिर से परिवार पहचान पत्र के तहत किये गये सर्वे के बाद फर्जी बीपीएल राशन कार्ड धारकों का खुलासा हुआ। मौजूदा सरकार ने एक लाख नए बीपीएल राशनकार्ड बनाने का लक्ष्य रखा है, जिनमें अभी तक 82 हजार बीपीएल परिवारों की पहचान हो चुकी है। 
आसान नहीं प्रक्रिया 
प्रदेश में पात्र बीपीएल परिवारों के राशनकार्ड बनाने के लिए ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया के लिए सरल पोर्टल या फिर जिलों में लघु सचिवालय में सरल केंद्र स्थापित किये हैं। इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए किये जा रहे सर्वे में स्थलीय निरीक्षण करके यह भी जांच हो रही है आवेदक वास्तव में गरीब है या नहीं।
सजा व जुर्माने का प्रावधान 
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत गलत दस्तावेजों के आधार पर राशन कार्ड बनवाने पर पांच साल की सजा और जुर्माने का भी प्रावधान है। अधिनियम में पहचान पत्र के रूप में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर राशन कार्ड के जरिए पात्र लोगों की सुविधाएं लेकर गरीबों का हक मारना भी दंडनीय अपराध की श्रेणी में शामिल है। यही नहीं यदि गलत दस्तावेजो के बावजूद खाद्य विभाग का अधिकारी या कर्मचारी अपने स्वार्थवश राशन कार्ड बनाता है तो दोषी पाए जाने पर उसके लिए भी सजा व जुर्माने का प्रावधान है। 
30Aug-2021