मंगलवार, 21 सितंबर 2021

चौपाल: ‘कजरिया’ ने दी अभिनेत्री मीनू हुड्डा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान

हरियाणवी संस्कृति और लोक कला को सेहजने की मुहिम में निभा रही हैं अहम भूमिका 
साक्षात्कार-ओ.पी. पाल 
रियाणवी लोक कला और संस्कृति की पहचान जहां अंतर्राष्ट्रीय पर बन चुकी है, वहीं सामाजिक, रूढ़िवादिता और अंधविश्वास के अंधेरे ने भी हरियाणा को नकारात्मक रूप से पहचाना गया है? प्रदेश में लिंगानुपात का बिगड़ा गणित भ्रूण हत्या,ऑनर किलिंग और अन्य कई तरह की सामाजिक बुराईयों से घिरे रहे हरियाणा का भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन पिछले कई अरसे से प्रदेश में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिला है, जिसका श्रेय लोक कलाकारों, साहित्यकारों और शिक्षा के बढ़ते प्रचार प्रसार को है, जो लुप्त होती हरियाणवी संस्कृति और लोक कला को पुनर्जीवित करने में जुटे हुए हैं। उन्हीं कलाकारों में रोहतक की रहने वाली महिला कलाकार मीनू हुड्डा भी शुमार है, जिनमें शायद बचपन से ही एक कला विद्यमान थी। आज उनकी यही कला उनके बेमिसाल अभिनय का वो सबब बनकर उभरी, जो समाज को नई दिशा दे रही है। हरियाणा में भ्रूण हत्या और बच्चों त महिलाओं पर होती हिंसा व अत्याचार को लेकर मधुरिता आनंद के निर्देशन में बनाई गई डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘कजरिया’ में उनके अभिनय ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी धूम मचाई, जिसमें मीनू हुड्डा को एक अभिनेत्री के रूप बड़ी पहचान मिली। अभिनय के क्षेत्र में हरियाणा की लोक कला और भारतीय संस्कृति को सहेजने में जुटी महिला कलाकार मीनू हुड्डा ने हरिभूमि संवाददाता से खास बातचीत में अपनी कला के बचपन से फिल्मी जगत तक की बुलंदियों तक के अनुभव साझा किये। 
कला प्रधान बनने लगा हरियाणा 
हरियाणा की पहचान एक कृषि प्रधान राज्य के रूप में होती है, लेकिन प्रदेश में साहित्य, लोक संस्कृति और समाजहित के क्षेत्र के कलाकारों की रचनात्मक भूमिका बढ़ रही है, उससे यह राज्य अब कला प्रधान बनने की राह पर है। अभियन के क्षेत्र में रोहतक की रहने वाली अभिनेत्री मीनू हुड्डा ने शायद सपने में भी नहीं सोचा था कि उसमें विद्यमान अभिनय की कला समाज और जनमानस की समस्याओं को उजागर करने का माध्यम भी बनेगी। पिछले 15 साल से लगातार थियेटर करती आ रही मीनू हुड्डा का साफ कहना है कि ये सारा संसार ही एक मंच की तरह हैं जिसमें समाज कलाकार की भूमिका में हैं। एक कलाकार या अभिनय के रूप में समाज को दिशा देने और लुप्त होती लोक संस्कृति को पुनर्जीवित करने के प्रयास में जुटी मीनू हुड्डा ने बताया कि जब वह छह साल की थी तो तभी उनके माता पिता ने उसके अंदर की कला का परख लिया था। कक्षा पांच में सरकारी स्कूल रहा हो या फिर कालेज या फिर यूनिवर्सिटी हर जगह उसका मंच से लगाव रहा है और उसके अभिनय को प्रोत्साहन भी मिलता रहा। इससे उसके अंदर मंच पर अभिनय को लेकर आत्मविश्वास बढ़ता चला गया। परिवार में हमेशा उसकी पढ़ाई पर फोकस रहा है, लेकिन मंच के प्रति भी उनके पिता ने जिस प्रकार से उसे हर कदम पर प्रोत्साहित किया है उन्हीं की वजह से आज वह फिल्मी जगत तक का सफर कर पा रही हूं। खास बात ये भी है कि मंच के लिए उन्होंने अपनी शिक्षा को कतई प्रभावित नहीं होने दिया और उसने अंग्रेजी साहित्य और जनसंचार में डबल पोस्ट ग्रेजुएशन किया। 
यहां से मिला फिल्मी स्पेस 
मीनू हुड्डा के अनुसार भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान, पुणे में तीन साल के प्रशिक्षण ने उनके मंच के अभिनय को जिस प्रकार से परिपक्व किया, तभी से उसने अभिनय के मंच को नई दिशा दी। उन्होंने कहा कि एफटीआईआई की ओल्ड कैंटिन, जहां ऋषिकेश मुखर्जी ने अभिनेत्री जया बच्चन को अपनी फिल्म के लिए साइन किया था, उसी जगह को उन्होंने अपना स्पेस चुना और अपनी कला के लिए तैयार किये नए तरकश में एक्टिंग के नए तीन भरने शुरू किये। एफटीआईआई में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने अभिनय कार्यशालाओं और थिएटर प्रस्तुतियों में खुद को व्यस्त रखते हुए इसे कैरियर में शामिल कर लिया। बचपन से मंच पर सक्रीय मीनू हुड्डा राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय नाटक प्रतियोगिताओं और युवा उत्सवों में एक बार नहीं, बल्कि कई बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार भी जीत चुकी हैं। मीनू के नाटक ‘डा. आप भी’ के अब तक दस शो हो चुके है, इसके अलावा उन्होंने कई शॉर्ट फिल्म और मंच के अभिनय में अनेक पुरस्कार हासिल किये हैं। 
कवित्री के रूप में भी हुई पहचान 
मंच या थियेटर करने के साथ साथ मीनू हुड्डा को साहित्य कला में भी महारथ हासिल है, जो अब अंग्रेजी साहित्य की उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद हिंदी में कविताएं लिखती आ रही हैं। हिंदी कविताओं की उत्साही प्रेमी होने के नाते वह अब तक 53 कविताएं लिख चुकी है। कविताएं लिखना ही नहीं, बल्कि वह मंच पर भी कविता पाठ करती हैं और अपनी कविताएं आकाशवाणी रोहतक से भी प्रसारित करती आ रही हैं। 
  व्यक्तिगत परिचय 
रोहतक की रहने वाली मीनू हुड्डा वर्तमान में चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में फिल्म अध्ययन में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। वह अंग्रेजी साहित्य में डॉक्टरेट की पढ़ाई भी कर रही है। उन्होंने हरियाणवी लोक और संस्कृति को बढ़ावा देने की दिशा में काम करने वाले चैनल 'एंडी हरियाणा' में भी एक रचनात्मक निर्देशक के रूप में काम किया है। यहीं नहीं वे छात्रों को इंटरेक्ट करते समय अभिनय की विभिन्न विधाओं का ज्ञान देकर अपने अनुभव साझा करने में जुटी हैं, ताकि वे अभिनय के क्षेत्र में सकारात्मक भूमिका निभाकर समाज को नई दिशा देने का काम कर सके। 
चुनौतीपूर्ण रही कजरिया भूमिका 
हरियाणा में भ्रूण हत्या और महिलाओं पर होती हिंसा को लेकर मधुरिता आनंद के निर्देशन में बनाई गई डॉक्यूमेंट्री फिल्म यानी वृत्तचित्र ‘कजरिया’ के बारे में मीनू हुड्डा ने बताया कि कजरिया की भूमिका में अभिनय करना किसी चुनौती से कम नहीं था। दरअसल वर्ष 2015 में रिलीज हुई फिल्म ‘कजरिया’ एक भयंकर, परेशान करने वाला, गीतात्मक और रोशन करने वाला टूर डी फोर्स है, जो हमें हमारी हजारों लड़कियों की पितृसत्तात्मक हत्या का सामना करने के लिए प्रेरित करता है और कैसे संरचनात्मक और पारंपरिक उत्पीड़न महिलाओं को नष्ट कर देता है, उन्हें अपनी आत्मा के खिलाफ कर देता है। कजरिया फिल्म एक सुनिश्चित दूसरी विशेषता, और भारत में कन्या भ्रूण हत्या के बारे में एक मजबूत, मूल आवाज, फिल्म महिलाओं की मुक्ति की धारणाओं पर सवाल उठाती है। इसके फिल्मांकन के लिए हरियाणा के एक छोटे से गांव में स्थित कन्या भ्रूण हत्या पर एक संवेदनशील विषय चुना गया था। इसमें मीनू हुड्डा की भूमिका बेहद संवेदनशील नजर आती है, जिसमें मानव बलि की चल रही प्रथा, हमेशा एक बच्ची, जो पूर्णिमा की रात को देवी काली को समर्पित होती है। कजरिया (मीनू हुड्डा) अनुष्ठान करती हैं और समारोह के दौरान देवी के पास दिखाई देती हैं। यह फिल्म आंखों के लिए आसान नहीं है और परेशान करने वाली है। इस फिल्म में उनके साथ रिधिमा सूद ने अखबार की पत्रकार की भूमिका निभाई। इसके अलावा कुलदीप रुहिल, अभिनीत ने भी अपने अभिनय से दर्शकों को चौंकाया। खासबात ये भी रही कि निर्देशक मधुरीता ने इस फिल्म का ट्रेलर जारी करने के लिए नई दिल्ली का जंतर मंतर चुना, जो सभी सामाजिक आंदोलनों का केंद्र रहा है। 
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली प्रशंसा 
68वें कान्स फिल्म समारोह में मीनू हुड्डा, ऋद्धिमा सूद, सुमित व्यास और कुलदीप रुहिल के अभियन के साथ मधुरीता आनंद की फिल्म की ‘कजरिया’ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचनात्मक प्रशंसा मिली है। यही नहीं फोर्ब्स इंडिया पत्रिका द्वारा 2014 में जिन पांच शीर्ष भारतीय फिल्मों को चुना था, उनमें ‘कजरिया’ भी शामिल थी। वहीं चीन के जियान में सिल्क रोड फिल्म फेस्टिवल में ‘सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म पुरस्कार’ जीतने वाली कजरिया भारत की एक मात्र फिल्म थी। कजरिया ने तब से अमेरिका और यूरोप में 10 अन्य फिल्म समारोहों की यात्रा की है। कजरिया को लॉस एंजिल्स में लेडी फिल्म फेस्टिवल और द ला फेम फिल्म फेस्टिवल दोनों में प्रदर्शित किया गया था। कई फिल्म समीक्षकों ने भी इसे देखा है और इसके उत्कृष्ट फिल्म निर्माण के लिए इसकी सराहना की है। 
20Sep-2021

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