बुधवार, 1 सितंबर 2021

साक्षात्कार: समाज को समर्पित साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर का रचना संसार

ओ.पी.पाल 
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व्यक्तिगत परिचय 
नाम: सुदर्शन रत्नाकर 
जन्म: 11 सितंबर 1942 
जन्म स्थान: माण्टगुमरी, पंजाब प्रांत (अविभाजित भारत)
शिक्षा: एम.ए.(हिन्दी), बी.एड., स्नातकोत्तर अनुवाद डिप्लोमा, साहित्यवाचस्पति 
संप्रति: केन्द्रीय विद्यालय, फ़रीदाबाद में शिक्षिका के पद से सेवानिवृत्त
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हिंदी साहित्य में बहुआयामी प्रतिभाग की धनी महिला साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2019 के लिए महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान दिया है। हिन्दी-जगत की प्रसिद्ध महिला साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर एक ऐसी संवेदनशील व्यक्तित्व है, जो पिछले साढ़े पांच दशक से ज्यादा समय से समाज को नई दिशा देने के लिए साहित्य क्षेत्र में सेवा कर रही हैं। साहित्य जगत में उनका रचना-संसार इतना विस्तृत है कि उन्होंने कहानी, उपन्यास, कविता, लघुकथा, हाइकु, ताँका, सेदोका, चोका, माहिया जैसी विधाओं में अपनी रचनाओं और लेखनी से साहित्य के क्षेत्र मे एक विशेष पहचान बनाई है। हिंदी साहित्य में विभिन्न विधाओं में समाज को दिशा देने के लिए लेखन कार्य में जुटी प्रसिद्ध साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर ने अपने अनुभवों को हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान साझा किया। हिंदी साहित्य के जरिए समाज को रोशन करने वाली सुप्रसिद्ध महिला साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर का कहना है कि समाज का हित साहित्य में निहित है। वर्तमान जीवन की आपाधापी एवं भागदौड़ में आदमी अपनी सुख-सुविधाओं को जुटाने की होड़ में जिस तरह से अविराम संघर्षरत है। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जीवन की इस गहमा-गहमी एवं अंधी भागदौड़ ने साहित्य क्षेत्र को भी प्रभावित किया है। आज के आधुनिक इंटरनेट युग में हिंदी साहित्य पर पड़ रहे प्रभाव के बावजूद हिंदी साहित्य की प्रासंगिकता बरकरार है। वहीं हिंदी साहित्य के प्रसार और प्रचार को भी बढ़ावा भी मिला है। आज की नई पीढ़ी को साहित्यकारों की पुस्तकों को पढ़ने की जरुरत है, भले ही उसका जरिया इंटरनेट ही हो। लेखन कार्य में भले ही कम लिखा जाए, लेकिन जो लिखा हो वह सामाजिक दृष्टि से भावनात्मक और रचनात्मक होना चाहिए। प्रकृति चित्रण में विशेष रुचि रखने वाली सुदर्शन के रचना संसार में अधिकांश कहानियाँ नारी प्रधान है, जिनमें उन्होंने मध्यमवर्गीय नारी-जीवन की विसंगतियों को उकेरने का प्रयास किया है। पारिवारिक सम्बन्धों का क्षरण, सामाजिक शोषण, राजनैतिक अवसरवाद आदि अनेक समस्याएं उनकी लघुकथाओं का विषय रही हैं, जिनमें समाधान के संकेत भी दिये गये हैं। उनका यह भी मानना है कि जीवन मूल्यों के परिवर्तन के साथ जीवन के जहाँ अर्थ बदले हैं, वहीं कविता के मूलरूप में भी परिवर्तन आया है। एक व्यक्ति की समस्या पूरे समाज की समस्या है, जिसकी अनुभूति सबकी अनुभूति होनी चाहिए। श्रीमती सुदर्शनरत्नाकर का जन्म माण्टगुमरी, पंजाब प्रांत (अविभाजित भारत) में एक शिक्षित एवं उदारवादी ज़मींदार परिवार में हुआ था। विभाजन की त्रासदी का दंश झेलते हुए उनके माता-पिता हरियाणा के पानीपत शहर में आकर बस गये थे। यहीं रहकर सुदर्शन ने पंजाब विश्वविद्यालय से शिक्षा दीक्षा ग्रहण की। उसके बाद वे फरीदाबाद के केंद्रीय विद्यालय में एक अध्यापिका के रूप में कार्यरत रही, जहां से करीब 39 की सेवा के बाद 2003 में सेवानिवृत्त हो गई। उसके बाद उन्होंने पूरी तरह से अपना जीवन साहित्य सेवा के लिए समर्पित करके लेखन कार्य को तेज कर दिया। श्रीमती रत्नाकर की रचनाओं को कमलेश्वर जैसे सुविख्यात साहित्यकारों ने भी सराहा है। साहित्य के क्षेत्र में कर्मवादी महिला के दृष्टिकोण और उनकी संवेदनशीलता के साथ कला प्रेमी व्यक्तित्व का भी विभिन्न साहित्यकार व लेखक सम्मान करने से पीछे नहीं रहे। हिंदी साहित्य जगत में सुदर्शन रत्नाकर ने जीवन में खट्टे-मीठे अनुभवों और विशेषकर नारी-मन की संवेदनाओं,भावनाओं को केन्द्र में रखकर आधुनिक भावबोध से सजी-सँवरी अनेक विधाओं में अमूल्य रचनाएँ हिन्दी-जगत को दी हैं। 
प्रकाशित रचनाएँ: 
साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर ने वर्ष 1962 से लेखन कार्य शुरू किया। इसके तहत उनकी डेढ दर्ज ने ज्यादा मौलिक पुस्तकों के कहानी संग्रह में फूलों की सुगंध, दोष किस का था, बस अब और नहीं, मैंने क्या बुरा किया है, नहीं यह नहीं होगा, मैं नहीं जानती, कितने महायुद्ध, चुनिंदा कहानियाँ, अलकनंदा। कविता संग्रह में युग बदल रहा है, आसमान मेरा भी है, एक नदी एहसास की और 'उठो, आसमान छू लें। ताँका संग्रह में हवा गाती है, माहिया एवं हाइकु संग्रह में तिरते बादल व मन पंछी सा। लघुकथा संग्रह में साँझा दर्द के अलावा दो उपन्यास में क्या वृंदा लौट पाई और यादों के झरोखे प्रमुख रूप से शामिल हैं। वहीं विश्व की विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन, कई रेडियो स्टेशन से प्रसारण। उनकी छह दर्जन से अधिक संपादित संकलनों में रचनाएँ संगृहीत और पंजाबी, उर्दू, सिन्धी, अवधी, नेपाली, गुजराती में रचनाएँ अनुदित हैं। इसके अलावा अनुभूति, अभिव्यक्ति, साहित्य कुंज, त्रिवेणी, सहज साहित्य, लघुकथा डॉट कॉम, हिन्दी हाइकु आदि वेब-साइट पर भी प्रकाशन हुआ है। देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी रोहतक एवं दिल्ली से कविता, कहानी, वार्ता, चर्चाओं का प्रसारण भी उनकी उपलब्धियों में शामिल हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी ने हिन्दी-जगत की प्रसिद्ध महिला साहित्यकार सुदर्शन रत्नाकर को पांच लाख रुपये वाले ‘महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान-2019 से पहले वर्ष 2013 में 'श्रेष्ठ महिला रचनाकार' सम्मान से भी नवाजा है। यही नहीं अकादमी ने उनके 'दोष किसका था' कहानी-संग्रह को श्रेष्ठ कृति पुरस्कार के अलावा उनकी कहानियों को चार बार पुरस्कृत किया है। हरियाणा साहित्य अकादमी की मासिक हरिगंधा पत्रिका के हाइकु विशेषांक का 2017 में सम्पादन और केन्द्रीय विद्यालय संगठन से श्रेष्ठ शिक्षक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी हासिल कर चुकी हैं। इसके अलावा सुदर्शन जी को दो दर्जन से अधिक देश की विभिन्न साहित्यिक संस्थानों से भी पुरस्कार व सम्मान हासिल है। वहीं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एम.फिल तथा पी.एच.डी की उपाधि हेतु छात्रों द्वारा शोध कार्य भी किये गये हैं। भाषा चंद्रिका स्वर संगम, भाषा मंजरी पाठ्य पुस्तकों में उनकी रचनाएं शामिल होना भी उनके सम्मान से कम नहीं है। 
संपर्क:ई-29/ नेहरू ग्राँऊड, फ़रीदाबाद-121001/मो. 09811251135
30Aug-2021

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