रविवार, 12 सितंबर 2021

आजकल: ब्रिक्स में भारत की चिंता के मायने

अफगानिस्तान के हालात को लेकर चिंता

-प्रशांत दीक्षित, विदेशी मामलों के विशेषज्ञ 
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भारत के प्रस्ताव पर आतंकवाद के खिलाफ एक कार्य योजना को स्वीकृति दी गई, लेकिन इससे भारत की अफगानिस्तान में तालिबान की नवगठित सरकार को लेकर चिंताएं कम होने वाली नहीं हैं। ब्रिक्स देशों में शामिल दुनिया के पांच बड़े देशों ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ने सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाले भारत के साथ के सुर में सुर मिलाते हुए अफगानिस्तान के हालात को लेकर चिंता जताते हुए इसकी धरती को आतंकवाद की पनाहगाह बनने से रोकने की अपील करते हुए संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया गया। तालिबान को आतंकी संगठन तालिबान को समर्थन कर रहा पाकिस्तान हालांकि ब्रिक्स संगठन का हिस्सा नहीं है, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ दुहाई दे रहे ब्रिक्स देशों में शामिल चीन और रुस तालिबान सरकार के दरवाजे पर मदद के लिए खड़े हो चुके हैं। चीन ने तालिबान सरकार को मान्यता न देने के बावजूद उसे 3.1 करोड़ डॉलर की सहायता का ऐलान तक कर दिया है। ऐसे में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में आतंकवाद या अफगानिस्तान की चिंता को लेकर हुई चर्चा या निर्णयों में भारत का भारत की चिंताओं के लिए कोई मायने नहीं रखता। 
अफगानिस्तान को लेकर जहां तक अमेरिका की नीतियों का सवाल है उसमें तालिबान की सरकार के मद्देनजर एक दिलचस्प मोड़ भी सामने आया है। आज 9/11 का दिन अमेरिका के लिए काला दिन माना जाता है, जब 2001 में आतंकी संगठन अल कायदा ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर दुनिया को दहलाने वाला आतंकी हमला किया था, जिसके बाद अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ सबसे ज्यादा योजनाओं को अंजाम दिया। लेकिन जिस अमेरिका ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर आतंकी हमले के बाद आतंकवाद के खिलाफ मुहिम चलाई थी और अफगानिस्तान में अल कायदा, जैश व तालिबानी जैसे आतंकी संगठन के खिलाफ मुहिम चलाने के साथ खासतौर से अफगानिस्तान के सैनिकों को प्रशिक्षित किया। यही नहीं 9/11 हमले के बीस साल बाद अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार बनवाने के बाद अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी कराई है। अफगानिस्तान के हालातों में पेंटागन आतंकी हमले के बीस साल बाद अमेरिका के वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ प्रतिबद्धता में भी यूटर्न झलक रहा है, जिसे लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या अमेरिका के चरमपंथी आतंकवाद के खिलाफ प्रतिबद्धता और को लेकर दृष्टिकोण में बदलाव आया है? जबकि तालिबान को लेकर संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त समिति के फैसलों में भी स्पष्ट किया गया था, जिसके तहत तालिबान संभावित आतंकवाद समर्थित संगठन के रूप में नामित रहा है। हालांकि यह भी गौर करने वाली बात है कि अफगानिस्तान पहले से ही अपनी वित्तीय समस्या से जूझ रहा है और अमेरिका ने अफगान सेंट्रल बैंक से संबंधित लगभग 9.5 बिलियन डॉलर की संपत्ति को फ्रीज कर दिया है। वह नहीं चाहता कि तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार को यह पैसा मिले। अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार का गठन भारत की सामरिक नीतियों और अफगानिस्ता के विकास में किये गये निवेश किसी चिंता से कम नहीं है। पिछले बीस साल में भारत ने अफगानिस्तान के विकास, बुनियादी ढांचों, ऊर्जा, औद्योगिक विकास, बंदरगाह, कृषि, व्यापार जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सैकड़ो परियोजनाओं में 3 अरब डॉलर का निवेश करके अपनी मौजूदगी दी है। अब तालिबान सरकार के कब्जे में आए अफगानिस्तान को लेकर भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अफगानिस्तान के सभी 34 प्रांतों में भारत द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं का जिक्र किया और समय समय पर अफगानिस्तान की हाथ खोलकर मदद भी की है। शायद इसी उम्मीद के साथ तालिबान की नवनियुक्त सरकार भारत को लेकर सहयोग की नीति के प्रति उदारता को प्रकट कर रही है। लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है, कि तालिबान को विश्व में आतंकी संगठन के रूप में पहचाना गया है। तालिबान को पाकिस्तान का खुला समर्थन और चीन का परदे के पीछे से मदद की नीति को फिलहाल भारत के खिलाफ देखा जा रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान शासन को लेकर ऐसे सवाल भी हैं कि क्या आने वाले दिनों में अफगानिस्तान पाकिस्तान केंद्रित राजनीतिक, कूटनीतिक गतिविधि और अब अफगानिस्तान में आर्थिक अतिक्रमण को और झेलेगा? यदि ऐसा हुआ तो यह रणनीतिक फोरप्ले के विपरीत आर्थिक यथार्थवाद पर आधारित एक पहेली है। इसमें चीन पहले ही अफगानिस्तान को शामिल करने के लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर पाकिस्तान में 60 अरब डॉलर के निवेश का विस्तार करने की अपनी योजना तैयार कर चुका है। इस योजना के हिस्से में ही पाकिस्तान पर कर्ज के बोझ से दबे सीपीईसी ने चीन को दक्षिण एशियाई देश की रणनीतिक संपत्ति तक पहुंच हासिल करने के लिए 'कर्ज-जाल कूटनीति' का उपयोग करने की अनुमति दी है।
 -(ओ.पी.पाल से बातचीत पर आधारित)
12Sep-2021

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