शनिवार, 26 अगस्त 2017

मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव का अध्ययन कराए सरकार

जीएम फसलों पर संसदीय समिति ने की सिफारिश
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
संसद की एक समिति ने केंद्र सरकार से सिफारिश की है कि देश में जीएम फसलों को बढ़ावा देने से पहले जीएम फसलों के उत्पादों का उपयोग से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन कराएं। वहीं जीएम फसलों के  व्यावसायीकरण की मंजूरी देने से पर्यावरणीय खतरों का भी वैज्ञानिक शोध कराने पर बल दिया गया है।
राज्यसभा की विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन संबन्धी संसदीय स्थायी समिति की चेयरमैन श्रीमती रेणुका चौधरी ने शुक्रवार को जीएम फसलें यानि जैनेटिकली मोडिफाइड क्रॉप और इनके पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर एक रिपोर्ट सभापति एम. वेंकैया नायडू को सौंपी है। इस रिपोर्ट में रेणुका चौधरी की अध्यक्षता में 31 सदस्यीय समिति की इस रिपोर्ट में इस बात पर गहरी चिंता जताई है कि स्वास्थ्य विभाग ने जीएम फसलों के बढ़ने के अलावा जीएम फसलों के प्रभाव की जांच के अलावा अन्य देशों में किए गए अध्ययनों को छोड़कर कोई कार्रवाई नहीं की है। इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग ने मानव स्वास्थ्य पर जीएम फसलों के प्रभाव का वैज्ञानिक अध्ययन कराए बिना ही भारत में जीएम फसलों के व्यावसायीकरण के लिए अपनी मंजूरी दे दी है। समिति ने केंद्र सरकार से अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि जीएम फसलों को बढ़ावा देने वाली इस मंजूरी पर पुनर्विचार किया जाए और पहले जीएम फसलों के मानव स्वास्थ्य पर गहनता के साथ मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के साथ ऐसा वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए कदम उठाए जाएं। वहीं समिति ने जीएम फसलों से पर्यावरण के लिए कोई खतरा तो नहीं है, का भी तकनीकी अध्ययन कराने की सिफारिश की है।
जल्दबाजी से आपदा की आशंका
समिति ने देश में जीएम फसलों के व्यावसायीकरण के लिए जल्दबाजी में मंजूरी देने को नुकसान का कारण बताते हुए माना है कि अभी तक वैज्ञानिक रूप से यह साबित नहीं किया गया है कि जीएम फसलों का मानव स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर नहीं होगा और केवल उन अध्ययनों पर निर्भर करेगा जो भारत में और हमारे अपने लोगों पर नहीं किए गए हैं, मानव पर प्रतिकूल असर का नतीजा स्वास्थ्य पर पड़ने की आशंका जताते हुए कहा कि स्वास्थ्य विभाग का इस मुद्दे के प्रति दृष्टिकोण एक उदासीन रवैये जैसा रहा है जो भविष्य में हमारे लिए एक आपदा ही नहीं ,बल्कि पीढ़ियों के लिए भी जोखिम भरा साबित हो सकता है। हालांकि समिति ने जीएम उत्पादों को लेबल करने की प्रक्रिया शुरू करने के उठाए गये सरकार के कदमों की सराहना की है और सरकार से जोरदार अनुशंसा की है कि जीएम खाद्य पदार्थों पर लेबलिंग प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से तेज किया जाए।

सरकार की उड़ान योजना में होगा बदलाव

क्षेत्रीय हवाई संपर्क को आसान बनाया जाएगा
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की आम आदमी को हवाई यात्रा कराने के इरादे से चलाई जा रही क्षेत्रीय हवाई संपर्क योजना उड़ान में बदलाव करने का ऐलान करते हुए इस योजना में प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए आरसीएस के तहत हेलीकॉप्टर संचालित करने का भी निर्णय लिया है।
नई दिल्ली में गुरुवार को एक संवाददाता सम्मेलन में केंद्रीय विमानन मंत्री अशोक गजपति राजू ने क्षेत्रीय हवाई संपर्क योजना उड़ान में बदलाव करते हुए हेलिकॉप्टर परिचालकों के लिए परियोजना को व्यावहारिक बनाने के लिए मदद (वायबिलिटी गैप फंडिंग) बढ़ाने का ऐलान किया। वहीं छोटे विमानों को भी इस योजना के तहत संचालन की अनुमति देते हुए क्षेत्रीय हवाई संपर्क योजना में सुधार लाने की बात कही। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय हवाई संपर्क योजना-उडान गत 15 जून 2016 को नागर विमानन मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय नागर विमानन नीति का एक महत्वपूर्ण घटक है, जिसमें आम लोगों के लिए सस्ती विमानन सेवा क्षेत्रीय एयर कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाने के मकसद से पिछले साल अक्टूबर पहली उडान शुरू की थी। इस पहले दौर की योजना की सार्थकता को देखते हुए अब सरकार ने कुछ बदलाव करते हुए दूसरे दौर की बोली शुरू की है। राजू ने कहा कि इस वर्ष सितंबर के अंत तक क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना-उडान के पहले दौर के तहत कुल 29 अनवरत या अन्तर्गत एयरपोर्टों को जोड़ा जाएगा। इसमें से 8 अब तक जुड़ चुके हैं तथा 21  और जल्द ही जुड़ जाएंगे। पहले दौर के तहत जुड़ने वाले 43 अनवरत/ अन्तर्गत एयरपोर्टों में से शेष 14 एयरपोर्ट उन्नयन की प्रक्रिया में हैं। सिन्हा ने आगे कहा कि प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को जोड़ने और इसकी नई लचीलापन सुविधाओं के कारण, उडान का दूसरा दौर पहले दौर की तुलना में ज्यादा सही साबित होगा।
पहाड़ी क्षेत्रों में योजना का विस्तार
अशोक गजपति राजू ने कहा कि दूसरे दौर में पूर्वोत्तर और पहाड़ी क्षेत्रों जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, के अलावा अंडमान और निकोबार द्वीप-समूह और लक्षद्वीप जैसे क्षेत्रों को प्राथमिकता देने के मकसद से परिचालन में लचीलापन तथा हेलीकॉप्टर सेवा की शुरूआत कर हवाई संपर्कता (कनेक्टिविटी) में सुधार लाने पर जोर रहेगा। ऐसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए वीजीएफ के साथ अधिकतम उड़ानों को बढ़ाकर 14 किया जा रहा है। उन्होंने हुए कहा कि उडान योजना में दूसरे दौर के लिए यह बदलाव पिछले चार महीनों में सभी हितधारकों से व्यापक विचार-विमर्श के बाद किया गया है। उन्होंने बताया कि महत्वपूर्ण परिवर्तनों के तहत 150 किलोमीटर से कम लंबाई के वायु मार्गों को निश्चित विंग विमानों के माध्यम से आरसीएस रूट के रूप में संचालन के लिए अनुमति दी जाएगी। बेहतर हवाई कनेक्टिविटी प्रदान करने और नेटवर्क के निर्माण को कम करने के मकसद से जल्द ही संबंधित आरसीएस मार्ग पर संचालन के लिए चुनिंदा एयरलाइन ऑपरेटर (एसएओ) अन्य एयरलाइन ऑपरेटरों को तीन साल की अवधि के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र (एनओसी) जारी कर सकता है।
25Aug-2017

अक्टूबर तक ईटीसी मोड़ पर होंगे हाइवे टोल!

केंद्र सरकार ने जारी किये सख्त निर्देश
हरिभूमि ब्यूरो
. नई दिल्ली। 
केंद्र सरकार की राष्ट्रीय राजमार्गों के सफर को आसान बनाने के लिए सभी टोल प्लाजाओं को डिजिटल करने की दिशा में फास्टैग की योजना को सरल बनाने के बाद अक्टूबर तक हाइवे के सभी टोल प्लाजाओं की लाइन को ईटीसी मोड़ पर लाने के निर्देश जारी किये हैं।केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार भारतीय राष्टीय राजमार्ग प्राधिकरण देश में हाइवे पर 371 टोल प्लाजाओं को ईटीसी मोड़ पर करने के निर्देश जारी करने के लिए अक्टूबर माह तक की समयसीमा तय कर दी है, जिसमें टोल नाकों की हरेक लेने डिजिटल होगी, ताकि फास्टैग लगे वाहनों को टोल प्लाजाओं से निकलने में रूकना न पड़े। मंत्रालय के अनुसार अभी तक इन टोल नाकों पर एक या दो लेन डिजिटल थी, जहां से फास्टैग युक्त वाहनों का रास्ता बनाया गया था, लेकिन एनएचआईए द्वारा अक्टूबर माह के अंत तक सभी टोल प्लाजाओं को पूरी तरह से डिजिटल करने के सख्ती के साथ दिशानिर्देश जारी किये गये हैं इससे पहले पिछले सप्ताह ही एनएचआई ने वाहन मालिकों के लिए फास्टैग की खरीद को आसान बनाने के लिए दो मोबाइल ऐप शुरू किए है, जिनके जरिए एनरॉयड और आपरेटिंग सिस्टम वाले मोबाइल में माइ ऐप स्टोर से डाउनलोड करने के बाद फास्टैग की ऑनलाइन खरीदा और इसे रिचार्ज किया जा सकेगा। वहीं इसके अलावा फास्टैग की खरीद और उन्हें रिचार्ज के लिए सभी टोल प्लाजाओं पर भी सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी) स्थापित किये गये हैं। एनएचएआई के सूत्रों के अनुसार नोटबंदी के बाद केंद्र सरकार ने टोल प्लाजाओं को इलेक्ट्रॉनिक बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर बनाई गई योजना के तहत हाईवे पर बने सभी टोल प्लाजाओं की हरेक लेन को रेडियो फ्रिक्वेंसी आईडेंटिफिकेशनल डिवाइस (आरएफआईडी) पर आधारित ईटीसी से लैस करने की प्रक्रिया को तेज कर दिया था, जिसकी धीमी गति को देखते हुए अब ओल नाकों को ईटीसी मोड पर लाने के लिए समयसीमा तय की गई है।
25Aug-2017

बुधवार, 23 अगस्त 2017

अवैध शरणार्थियों को वापस भेजने पर गंभीर सरकार!

देश में सीमा उल्लंघन घुसे थे 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर के हालातों को सुधारने की दिशा में वहां अवैध रूप से रह रहे दस हजार से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार भेजने की तैयारी में है। हालांकि देशभर में अवैध शरणार्थियों के रूप में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या 40 हजार है। इस मामले पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी केंद्र सरकार से रिपोर्ट मांगी है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार देश के विभिन्न राज्यों में गैरकानूनी तौर पर रह रहे 40 हज़ार रोहिंग्या मुसलमानों को देश से बाहर भेजने के लिए गंभीरता से कार्यवाही की जा रही है। खुफिया और कानूनी एजेंसियों के आधार पर गृह मंत्रालय यह भी मानकार चल रहा है कि देश में अलग-अलग जगहों पर रहे रहे रोहिंग्या मुसलमान अब समस्या बनते जा रहे हैं, लेकिन सरकार भारत में अवैध रूप से रह रहे इन शरणार्थियों को एक कानूनी प्रक्रिया के तहत धीरे-धीरे म्यांमार भेजे जाएंगे। मंत्रालय के अनुसार ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान जम्मू कश्मीर, हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान में रह रहे हैं। हालांकि गृह मंत्रालय के अनुसार म्यांमार के राखिने प्रांत में 2012 में भयानक हिंसा के बाद ये रोहिंग्या मुस्लिम अवैध रूप से सीमा पार कर भारत के विभिन्न प्रांतों में रहने लगे थे। सबसे ज्यादा जम्मू-कश्मीर में बताई गई है। दिलचस्प बात है कि केंद्र सरकार के रोहिंग्य और बांग्लादेश के मुसलमानों को देश के लिए खतरा मानते हुए वापस भेजने की कार्यवाही का जम्मू-कश्मीर में अवैध तरीके से रह रहे बंगलादेशी और म्यांमार के मुस्लमानों को राज्य से बाहर भेजने के निर्णय का समर्थन किया है, जिसमें पार्टी ने अनुच्छेद 35ए का हवाला देते हुए इसके साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ को बर्दाशत नहीं की जाएगी,जो राज्य की विधानसभा को स्थायी नागरिकता तय करने का विशेषाधिकार देता है।
क्या है कानूनी प्रक्रिया
गृह मंत्रालय के अनुसार भारत में अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाने और उन्हें वापस भेजने के लिए विदेशी अधिनियम 1946 की धारा 3(2) की कानूनी प्रक्रिया है, जिस एक निरंतर प्रक्रिया जिसके आधार पर राज्य सरकारों और वहां के प्रशासन को भी रोहिंग्या मुसलमानों समेत अवैध रूप से रह रहे अन्य विदेशी नागरिकों की पहचान करके उन्हें रोकने और वापस भेजने का अधिकार दिया गया है। मंत्रालय के अनुसार रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने के लिए भारत की म्यांमार और बांग्लादेश से बातचीत की प्रक्रिया चल रही है। दरअसल भारत ने 1951 में यूएन कन्वेंशन और 1967 के इंटरनेशनल प्रोटोकॉल पर दस्तखत नहीं किए हैं, लेकिन शरणार्थियों से जुड़े संयुक्त राष्ट्र के कई घोषणा पत्रों पर भारत के दस्तखत हैं। इसलिए सरकार इन्हें वापस भेजने के मामले पर गंभीर है।
मानवाधिकार ने भी मांगी रिपोर्ट
सूत्रों के अनुसार पिछले सप्ताह ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी भारत में अवैध रूप से रह रहे करीब 40 हजार रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार भेजने के मामले पर केंद्र सरकार से रिपोर्ट मांगी है। गृह मंत्रालय को आयोग द्वारा भेजे गये नोटिस में एक माह के भीतर रोहिंग्या मुसलमानों को भेजने के बारे में की जा रही कार्यवाही का विवरण मांगा है। आयोग ने सरकार से यह भी जवाब मांगा है कि यदि म्यामांर इन अवैध शरणार्थियों को वापस लेने से मना करता  है तो उस स्थिति में क्या और कौन से कदम उठाएं जाएंगे।  

डोकलाम विवाद का हल जल्द: राजनाथ



चीन सीमा के 1654 प्रहरियों को मिला प्रमोशन                   
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
मोदी सरकार ने भारत-चीन सीमा की हिफाजत करते आ रहे भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के 1654 अधिकारियों व जवानों को पिछले छह साल से लंबित चली आ रही पदोन्नति दे दी है। वहीं गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भारतीय सुरक्षा बलों को देश की सरहदों की सुरक्षा करने में समक्ष करार देते हुए कहा कि भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद का समाधान जल्द ही निकाल लिया जाएगा।
सोमवार को यहां विज्ञान भवन में आयोजित आईटीबीपी के एक कार्यक्रम में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने वर्ष 2011 से लंबित चली आ रही आईटीबीपी में पदोन्‍नतियां प्रदान की। देश की सीमाओं की हिफाजत करने वाले सुरक्षा बलों की लंबे समय से पदोन्नतियों के लंबे इंतजार करने पर अनुशासित आईटीबीपी कर्मियों की सराहना करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि हम जानते हैं कि जवानों और अधिकारियों की पदोन्नति से उनका मनोबल बढ़ता है, लेकिन न जाने किन कारणों से यह पदोन्नति नहीं हो पायी, लेकिन इसके बावजूद हमारे जवानों ने इस विलंब को बहुत ही संयम के साथ बर्दाश्त किया है, उसके लिए देश की सुरक्षा को सर्वोपरि रखने के साथ सीमा के प्रहरियों का यह शिष्टाचार इस बात को द्योतक है कि हमारे सुरक्षा बल देश सरहदों की हिफाजत करने में पूरी तरह से सक्षम हैं। उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय सीएपीएफ के आवास और कल्‍याण संबंधी मामलों के अलावा उनके कैरियर की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत है और जल्द ही जवानों के सामने आने वाली समस्याओं का भी समाधान किया जाएगा। उनके मंत्रालय के पास जवानों की नियुक्ति के संबंध में नए नियमों का प्रस्ताव आया है जिस पर जल्दी फैसला लिया जाएगा।  गौरतलब है कि आईटीबीपी मुख्य रूप से 3488 किमी लंबी हिमालयी सीमा की निगरानी में तैनात हैं। यही नहीं आईटीबीपी जम्मू-कश्मीर तथा अरुणाचल प्रदेश में चीन से लगी भारत की 4057 किलोमीटर लंबी सीमा की निगेहबानी करती है।
कोई विस्‍तारवादी मंसूबा नहीं
आईटीबीपी के इस कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत और चीन के बीच चल रहे डोकलाम विवाद का जिक्र करते हुए चीन पर हमला किया है और चेतावनी भरे लहजे में कहा कि दुनिया के किसी भी देश में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह भारत पर आंख उठाकर देख सके। गृहमंत्री ने सख्त लहजे में कहा कि वो अपने देश की सुरक्षा पर आंच नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि भारत का ना तो कभी कोई विस्‍तारवादी मंसूबा रहा है और ना ही उसने किसी देश पर हमला किया है। उन्‍होंने कहा कि हम टकराव नहीं, बल्कि शांति चाहते हैं। भारत अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहते हैं। उन्‍होंने कहा कि इसी मंशा के साथ प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने अपनी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए सभी पड़ोसी देशों के नेताओं को आमंत्रित किया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बि‍हारी वाजपेयी के शब्दों का उल्‍लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हम मित्र बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं। राजनाथ सिंह ने उम्मीद जताई है कि भारत और चीन के बीच डोकलाम गतिरोध का समाधान जल्द ही हो जाएगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस दिशा में चीन की ओर से भी सकारात्मक पहल की जाएगी।

रेल सुरक्षा व संरक्षा के लिए कसी कमर



सभी मंडलों प्रमुख क्षेत्रों में चलेगा संरक्षा अभियान
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।  
देश में हो रहे रेल हादसों पर अंकुश लगाने की दिशा में उत्तर-मध्य रेलवे के महाप्रन्धक के साथ उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक पद का अतिरिक्त कार्यभार संभालते ही एम.सी चौहान ने उत्तर रेलवे के पॉंचों मंडलों के मंडल रेल प्रबंधकों के साथ वीडियों कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बैठक करके प्रमुख क्षेत्रों में संरक्षा अभियान चलाने के निर्देश जारी किये।
उत्तर रेलवे के प्रधान कार्यालय बड़ौदा हाउस में सोमवार को उत्तर रेलवे के अतिरिक्त महाप्रबंधक का पदभार ग्रहण करने के बाद एमसी चौहान ने उत्तर रेलवे के सभी मंडलों के रेल प्रबंधकों की वीडियो कांफ्रेंस के जरिए बैठक की। इस दौरान उन्होंने रेल परिचालन में संरक्षा पर जोर देते हुए सभी मंडलों के प्रमुख क्षेत्रों में संरक्षा अभियान चलाने के निर्देश दिए। उन्‍होंने चल रही  संरक्षा संबंधी परियोजनाओं की समीक्षा भी की और विभागाध्यक्षों व मंडल प्रमुखों से संरक्षा चुनौतियों पर विशेष रूप से ध्‍यान देने पर बल दिया।
रेलवे स्टेशन का निरीक्षण
चौहान ने उत्तर रेलवे पर चल रहे स्‍वच्‍छता पखवाड़े के अंतर्गत चलाई जा रही गतिविधियों का जायजा लेने के लिए नई  दिल्‍ली रेलवे स्‍टेशन का गहन निरीक्षण किया। उन्‍होंने प्‍लेटफार्म नं0-1, 3 और 5  के साथ-साथ रेलवे लाइनों और स्‍टेशन परिसरों में  स्‍वच्‍छता के स्तर की जांच की। उन्‍होंने खान-पान स्‍टॉलों और कॉनकोर्स हाल में भी स्‍वच्‍छता संबंधी निरीक्षण किया। महाप्रबंधक ने नई दिल्‍ली रेलवे स्‍टेशन के प्‍लेटफॉर्म नं0-1 के प्रथम तल पर स्थित अंतर्राष्‍ट्रीय पर्यटक ब्‍यूरो का भी निरीक्षण किया। उन्‍होंने प्‍लेटफॉर्म नं0-1 पर खड़ी 12005 नई दिल्‍ली-कालका शताब्‍दी एक्‍सप्रेस का भी निरीक्षण किया और रेलगाड़ी में खान-पान सेवाओं का जायजा लिया।  प्‍लेटफॉर्म नं0-3 पर खड़ी 64492 नई दिल्‍ली-पलवल महिला स्‍पेशल ईएमयू रेलगाड़ी का भी निरीक्षण के दौरान महाप्रबंधक के साथ उत्तर रेलवे के मुख्य यांत्रिक इंजीनियर, प्रमुख मुख्य इंजीनियर, मुख्य सिगनल एवं दूरसंचार इंजीनियर, मुख्य सुरक्षा आयुक्त, मुख्य बिजली इंजीनियर और उत्तर रेलवे, दिल्‍ली मंडल के अपर मंडल प्रबंधकों के साथ रेल संरक्षा के अलावा स्वच्छता पर भी विचार विमर्श किया। 
22Aug-2017

शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

राष्ट्रीय दलों के कारपोरेट चंदे में आई गिरावट


 चार साल में पांच दलों को मिला 11 सौ करोड़ का चंदा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश की सियासत में खासकर राष्ट्रीय दलों को कारपोरेट घरानों से चंदा लेने की होड़ में अभी भी भाजपा और कांग्रेस अन्य दलों के मुकाबले काफी आगे हैं। वर्ष 2012-13 से 2015-16 के दौरान चार सालों में पांच राष्ट्रीय दलों की मिले चंदे की करीब 11 सौ करोड़ में 89 फीसदी चंदा कारपोरेट घरानों से प्राप्त हुआ है। हालांकि इन चार सालो के बीच कारपोरेट चंदे में 86.58 फीसदी की गिरावट देखी गई है।
चुनाव आयोग को राष्ट्रीय दलों द्वारा सौंपे गये आय-व्यय के ब्यौरे का विश्लेषण करते हुए यह खुलासा चुनाव सुधार में सक्रिय गैर सरकारी संगठन डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के लिए एसोसिएशन ने एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय दलों को वर्ष वर्ष 2012-13 से 2015-16 के दौरान कारपोरेट घरानों से मिले चंदे का विवरण दिया है, जिसमें पांच राष्ट्रीय दलों भाजपा, कांग्रेस, राकांपा, सीपीएम और सीपीआई को इन चार सालों के दौरान 20 हजार रुपये से ज्यादा के चंदे में कुल 1070.68 करोड़ रुपये की धनराशि मिली है, जिसमें 956.77 करोड़ रुपये यानि 89 फीसदी देश के नामी कारपोरेट घरानों से मिली है। हालांकि राष्ट्रीय दलों में बसपा भी शामिल है, लेकिन बसपा ने 20 हजार से ज्यादा किसी चंदे मिलने से इंकार किया है। बाकी पांच दलों को मिले इस चंदे में 2014 के लोकसभा चुनावी वर्ष के दौरान सबसे ज्यादा 60 फीसदी ज्यादा चंदा मिला है।
किस दल को कितना मिला चंदा
इन चार सालों के दौरान पांच राष्ट्रीय दलों में सबसे ज्यादा 705.81 करोड़ रुपये का चंदा 2987 कारपोरेट और व्यापारिक घरानों से भाजपा को मिला है, जबकि 167 कारपोरेट घरानों से मिले 198.16 करोड़ रुपये के चंदे के साथ कांग्रेस दूसरे पायदान पर है। इसके बाद राकांपा को 40 कारपोरेट घरानों से 50.73 करोड़ रुपये, सीपीएम को 45 कारपोरेट घरानों से 1.89 करोड़ रुपये तथा सीपीआई को 17 कारपोरेट घरानों से सबसे कम 18 लाख रुपये का चंदा हासिल हुआ है। इस चंदे समेत अन्य स्रोतों से मिले चंदे को मिलाकर इन पांचों दलों को प्राप्त हुए कुल 1070.68 करोड़ रुपये में सबसे ज्यादा 768.25 करोड़ रुपये भाजपा, 233.18 करोड़ रुपये कांग्रेस, 53.60 करोड़ रुपये राकांपा, 11.14 करोड़ रुपये सीपीएम तथा 4.51 करोड़ रुपये सीपीआई ने घोषित किये हैं।
किस साल कितना मिला चंदा
राजनीतिक दलों के चंदे में वित्तीय वर्ष 2012-13 के मुकाबले वर्ष 2015-16 में कारपोरेट घरानों से मिलने वाले चंदे में कमी दर्ज की गई है। जहां इन पांचों दलों को वर्ष 2012-13 में व्यापारिक घरानों से 82.04 करोड़ रुपये का चंदा मिला था, वहीं वर्ष 2015-16 में यह घटकर 76.94 करोड़ रह गया है। हालांकि वर्ष 2013-14 के दौरान इन दलों को कारपोरेट घरानों से 224.61 करोड़ रुपये का चंदा मिला था तो अगले वित्तीय वर्ष 2014-15 के दौरान सर्वाधिक 573.18 करोड़ का चंदा कारोबारियों से मिला था। यदि लोकसभा चुनावी वर्ष 2014-15 में मिले कारपोरेट चंदे की तुलना वर्ष 2015-16 में मिले चंदे से की जाए तो इसमें 86.58 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

गुरुवार, 17 अगस्त 2017

फिर शुरू होगी 24 साल से बंद कोयल जलाशय परियोजना



बिहार और झारखंड में बढ़ेगी सिंचाई क्षेत्र की क्षमता
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
बिहार और झारखंड में जल संकट का कारण बने उस उत्तरी कोयल जलाशय की परियोजना को केंद्र सरकार ने फिर से शुरू कराने का फैसला किया है, जिसके निर्माण कार्य को 24 साल पहले रोका गया था। केंद्र सरकार ने इस परियोजना के बकाया काम को पूरा करने के लिए 1622.27 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत को भी मंजूरी दी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए बिहार और झारखंड में इस अधूरी उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के काम को पूरा करने के लिए अगले तीन सालों में अनुमानित खर्च के रूप में 1622.27 करोड़ रुपये की राशि को मंजूरी दी गई है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने परियोजना के तहत बांध के जल स्तर को पहले के परिकल्पित स्तर के मुकाबले सीमित करने का भी फैसला किया गया, ताकि कम इलाका बांध के डूब क्षेत्र में आए और बेतला राष्ट्रीय उद्यान और पलामू टाइगर रिजर्व को बचाया जा सके। गौरतलब है कि यह परियोजना सोन नदी की सहायक उत्तरी कोयल नदी पर स्थित है जो बाद में गंगा नदी में जाकर मिलती है। उत्तरी कोयल जलाशय झारखंड राज्य में पलामू और गढ़वा जिलों के अत्यंत पिछड़े जनजातीय इलाके में स्थित है। इस परियोजना का निर्माण कार्य वर्ष 1972 में शुरू हो चुका था, लेकिन 21 साल बाद यानि वर्ष 1993 में बिहार सरकार के वन विभाग ने इसे रुकवा दिया था और तभी से बांध का निर्माण कार्य ठप्प हुआ है। इस परियोजना की कुल लागत 2391.36 करोड़ रुपये आंकी गई है, जिसमें अभी तक 769.09 करोड़ रुपये की राशि इस परियोजना पर खर्च की जा चुकी है। यानि शेष बचे कार्यों के 1013.11 करोड़ रुपये के सामान्य घटकों का वित्त पोषण केन्द्र सरकार द्वारा पीएमकेएसवाई कोष से अनुदान के रूप में किया जाएगा।
क्या है परियोजना
मंत्रालय के अनुसार प्रमुख रूप से दो घटकों में शामिल यह परियोजना बिहार और झारखंड के जल संकट की समस्या को दूर करने के लिए शुरू की गई थी। इसके पहले घटक में 67.86 मीटर ऊंचे और 343.33 मीटर लम्बे कंक्रीट बांध के निर्माण को पहले मंडल बांध नाम दिया गया था, जिसकी क्षमता 1160 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) जल संग्रह करने की निर्धारित की गयी थी। इसके अलावा परियोजना के तहत नदी के बहाव की निचली दिशा में मोहनगंज में 819.6 मीटर लंबा बैराज और बैराज के दांये और बांये तट से दो नहरें सिंचाई के लिए वितरण प्रणालियों समेत बनायी जानी थी। मंत्रालय के अनुसार परियोजना के पूरा हो जाने पर झारखंड के पलामू और गढ़वा जिलों के साथ-साथ बिहार के औरंगाबाद और गया जिलों के सबसे पिछड़े और सूखे की आशंका वाले इलाकों में 111,521 हैक्टेयर जमीन की सिंचाई की व्यवस्था की जा सकेगी। हालांकि फिलहाल अधूरी परियोजना से 71,720 हैक्टेयर जमीन की पहले ही सिंचाई हो रही है। इसके पूरा हो जाने पर इससे 39,801 हैक्टेयर अतिरिक्त भूमि की सिंचाई होने लगेगी और बिहार झारखंड दोनों राज्यों में सिंचाई क्षमता में बढ़ोतरी होगी। मसलन परियोजना के बाद कुल 1,11,521 हेक्टेयर क्षमता में इजाफा होगा, जिसमें बिहार में सिंचाई क्षमता 91,917 हेक्टेयर और झारखंड में सिंचाई क्षमता 19,604 हेक्टेयर होगी।