शनिवार, 31 अगस्त 2013

कहीं रोड़ा न बन जाए कोसी परिक्रमा का मुद्दा!

लोकसभा में आज होगी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर चर्चा
कांग्रेस के लिए दाल-रोटी की गारंटी का महत्वपूर्ण दिन
ओ.पी.पाल

कांग्रेसनीत यूपीए सरकार का गेम चेंजर माने जाने वाले राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर सोमवार को चर्चा निर्धारित है, लेकिन अयोध्या में 84 कोसी परिक्रमा को रोके जाने का मुद्दा इस चर्चा में खलल डाल सकता है। हालांकि सरकार के साथ विपक्ष इस विधेयक पर चर्चा कराने में सहयोग देने की हामी भर चुका है।
संसद के मानसून सत्र के अंतिम सप्ताह की कार्यवाही कल सोमवार से शुरू होगी,जिसमें सरकार की प्राथमिकता राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को पारित करना होगा। इस विधेयक पर संशोधन के प्रस्तावों के साथ चर्चा के लिए विपक्ष भी तैयार है, लेकिन यह चर्चा के बाद ही पता चलेगा कि सरकार विभिन्न दलों की ओर से आने वाले किन-किन संशोधनों को इस विधेयक में शामिल करने के लिए स्वीकार करती है, जो खाद्य सुरक्षा विधेयक को अध्यादेश से एक काननू में बदलने का रास्ता तय करेगा। इसी के साथ यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के ड्रीम प्रोजेक्ट माने जा रहे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के साथ भूमि अधिग्रहण विधेयक को भी सोमवार को ही पारित कराने की गरज से शामिल किया गया है। राजनीतिक गलियारों में जो चर्चा है उसके अनुसार आगामी लोकसभा चुनाव और उससे पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में गेम चेंजर मानने वाली कांग्रेस पार्टी खाद्य सुरक्षा विधेयक के साथ ही भूमि अधिग्रहण विधेयक को भी संसद में जल्द से जल्द पारित कराना चाहती है। यही कारण है कि कांग्रेसनीत सरकार ने खासकर खाद्य सुरक्षा विधेयक में समर्थन हासिल करने के इरादे से विपक्षी दलों के आने वाले संशोधन प्रस्तावों पर भी नरमी बरतने के संकेत दिये हैं। लिहाजा सोमवार 26 अगस्त का दिन देश के गरीबों की दाल-रोटी की गारंटी तय करने के लिए अहम माना जा रहा है, लेकिन उत्तर प्रदेश में विहिप की अयोध्या तक 84 कोसी परिक्रमा को रोक देने का मामला भी राजनीतिक गलियारे में गरमाया हुआ है, जिसकी गूंज सोमवार को संसद के दोनों सदनों में सुनाई देना भी तय है। इसे देखते हुए ऐसी संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कहीं राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक की चर्चा में 84 कोसी परिक्रमा का मुद्दा रोड़ा न बन जाए। वैसे सोमवार की कार्यवाही के लिए लोकसभा की कार्यसूची में इन दोनों विधेयकों के अलावा आरटीआई संशोधन विधेयक, पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकार विधेयक 2011 समेत छह और विधेयक सूचीबद्ध हैं।
कांग्रेस ने जारी किया व्हिप
संसद में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के साथ भूमि अधिग्रहण विधेयकों पर मुहर लगवाने की दृष्टि से कांग्रेस ने अपनी पार्टी के सांसदों के लिए व्हिप जारी किया है जिसमें जिसमें कहा गया है कि सोमवार, मंगलवार, गुरूवार और शुक्रवार को सरकार के कामकाज का समर्थन करने के लिए सभी कांग्रेस सांसद सदन में मौजूद रहें। यदि 84 कोसी परिक्रमा के मुद्दे को सरकार संभालने में सफल रही तो राष्टीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर सोमवार में लोकसभा की मुहर लग सकती है अन्यथा सरकार और विपक्ष के बीच फिर गतिरोध की दीवार खड़ी हो जाएगी।
25Aug-2013

रविवार, 25 अगस्त 2013

आखिर पटरी पर आई लोकसभा की कार्यवाही!


तीन विधेयक पारित, जनहित के मुद्दों पर भी हुई निर्विघ्न चर्चा
ओ.पी. पाल

संसद के मानसून सत्र में शनिवार को पहली बार लोकसभा की कार्यवाही निर्विघ्न चलती रही, जिसमें चर्चा के बाद तीन विधेयकों को भी पारित कर दिया गया और अन्य जनहित के मुद्दों पर भी खुलकर चर्चा हुई।
गत पांच अगस्त से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र में अभी तक हुई 11 बैठकों के दौरान राज्यसभा में तो हंगामे के बावजूद कामकाज होता रहा, जहां आधा दर्जन विधेयक भी पारित हुए, लेकिन लोकसभा की कार्यवाही इस दौरान विभिन्न मुद्दों पर हुए लगातार हंगामे के कारण सुचारू रूप से नहीं चल पा रही थी। सरकार ने शुक्रवार को लोकसभा अध्यक्ष मीराकुमार ने आंध्र प्रदेश के विभाजन के विरोध में लगातार हंगामा करने वाले कांग्रेस व तेदेपा के 12 सांसदों को इस सत्र की पांच दिन की कार्यवाही से निलंबित करने का फैसला शायद लोकसभा की कार्यवाही को पटरी पर ले आया। लगातार सदन में हंगामे के कारण बाधित हुई कार्यवाही और कुछ अवकाश के कारण बर्बाद हुए समय की पूर्ति करने के उद्देश्य से सरकार ने शनिवार को भी लोकसभा की कार्यवाही शुरू करने का निर्णय लिया था जो विधायी कार्य की दृष्टि से कारगर साबित भी हुआ। मसलन शनिवार को लोकसभा की कार्यवाही आंरभ से छुटपुट व्यवधान को छोड़कर सुचारू रूप से चली और सदन की कार्यवाही शुरू होते ही लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने आवश्यक दस्तावेज सदन के पटल पर रखवाये, जिसमें राज्यसभा में पारित संसद(निरर्हरता निवारण) संशोधन विधेयक की जानकारी भी शामिल थी। इसके बाद नियम 377 के तहत सांसदों ने जनहित के मुद्दे भी उठाये और चर्चा की। वहीं सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही की अधूरे पड़े विधायी कार्यो का भी निपटान करने का प्रयास किया गया, जिसमें पहले गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह द्वारा पेश किये गये राज्यपाल(उपलब्धियां, भत्ते और विशेषाधिकार) संशोधन विधेयक-2012 विचार और पारित करने के लिए पेश किया, जिसे चर्चा के बाद पारित कर दिया गया। वहीं मानसून सत्र के पहले दिन केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्री कुमारी सैलजा द्वारा पेश किये जा चुके संविधान(अनुसूचित जातियां) आदेश संशोधन विधेयक-2012 तथा केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री वी. किशोर चन्द्र देव द्वारा पेश किये गये संविधान(अनुसूचित जनजातियां) आदेश (दूसरा संशोधन) विधेयक-2012 को भी चर्चा के बाद आये संशोधनों के साथ सर्वसम्मिति से पारित कर दिये गये। जबकि शनिवार की कार्यवाही में पांच विधेयकों को शामिल किया गया था।
विशेषाधिकार हनन नोटिस विचाराधीन
लोकसभा में शनिवार को अध्यक्ष मीरा कुमार ने बिहार के धमारा घाट रेल हादसे पर सदन से बाहर दिये गए रेल राज्य मंत्री अधीर रंजन चौधरी के बयान पर विशेषाधिकार हनन का नोटिस उनके विचाराधीन है। जदयू सदस्य दिनेश चंद्र यादव एवं अन्य ने इस विषय पर अधीर रंजन चौधरी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया था। मीरा ने कहा कि कि उन्हें दिनेश चंद्र यादव एवं 11 अन्य सदस्यों का रेल राज्य मंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस मिला है। यह नोटिस धमारा घाट हादसे पर रेल राज्य मंत्री अधीर रंजन चौधरी के संसद के बाहर बयान देने से संबंधित है जबकि संसद चल रही थी, इसलिए यह नोटिस कार्यवाही के लिए विचाराधीन है।
25Aug-2013

शनिवार, 24 अगस्त 2013

तेदेपा सदस्यों के शोर में दबी पीएम की आवाज!

राज्यसभा में लोकसभा सांसदों के निलंबन का असर
मात्र दो सांसदों के सामने बेबस सरकार
ओ.पी. पाल

राज्यसभा में सबकुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन जैसे ही भोजनावकाश के बाद सदन की कार्यवाही हुई तो विपक्ष की मांग पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी कोलगेट की गुम फाइलों पर बयान देने पहुंच गये थे, लेकिन लोकसभा में सांसदों के निलंबन पर आंध्र प्रदेश विभाजन के विरोध में तेदपा के मात्र दो सदस्यों के तेज नारो से गूंजे सदन में पीएम तो क्या कोयला मंत्री को भी अपने बयान को सदन के पटल पर रखने के लिए मजबूर होना पड़ा।
दरअसल लोकसभा में आंध्र प्रदेश के एक दर्जन सांसदों का निलंबन होने से उत्तेजित राज्यसभा में तेदेपा सांसद बेहद गुस्से में नजर आए। शायद यही कारण था कि राज्यसभा की कार्यवाही सुबह से लगभग ठीक-ठाक चली और शुक्रवार को लंबे अंतराल के बाद प्रश्नकाल भी हुआ, लेकिन लोकसभा में सांसदों के निलंबन का असर राज्यसभा में भोजनावकाश की कार्यवाही के बाद साफ नजर आया। जैसे ही ढाई बजे सदन की कार्यवाही आरंभ हुई तो तेदेपा के सीएम रमेश और वाईएस चौधरी सेव आंध्र प्रदेश के नारे लिखी शर्ट पहने उपाध्यक्ष पीजे कुरियन के समीप जाकर जोर-जोर से नारेबाजी करने लगे,जबकि दूसरी ओर कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल अपना बयान पढ़ रहे थे और उन्होंने पीठ की भी नहीं सुनी, जबकि कुरियन ने जायसवाल से बयान की प्रतियां सदस्यों को उपलब्ध कराने की बात कई बार दोहराई। उधर तेदपा सदस्यों के नारेबाजी इतनी तेज थी कि कुछ भी साफ सुना नहीं जा सकता था। तभी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी सदन में बयान देने आ गये। पीठ से कुरियन ने वेल में आकर प्रदर्शन कर रहे दोनों सांसदों को समझाने का प्रयास किया और साथ ही नियम 255 की कार्यवाही करने की भी चेतावनी दी, लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ तो सदन की कार्यवाही आधे घंटे के लिए स्थगित कर दी गई। इस दौरान प्रधानमंत्री को भी कुरियन के कक्ष में बुला लिया गया, जहां संससदी कार्य मंत्री राजीव शुक्ला भी मौजूद रहे। इसके बाद सदन की कार्यवाही शुरू हुई तो पीजे कुरियन ने सदन से इन दो सांसदों के खिलाफ कार्यवाही करने में सहयोग की अपील की, लेकिन सदन में शोरशराबा गूंजता रहा और तेदपा के दोनों सदस्यों की बुलंद आवाज ने प्रधानमंत्री को बयान देने हेतु खड़े होने तक का मौका नहीं दिया। इस पर चेतावनी देने के बाद उपसभापति कुरियन ने सदन की कार्यवाही को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया।
कुरियन ने बयां किया दर्द
सदन की कार्यवाही स्थगित करने से पहले उपाध्यक्ष पीजे कुरियन ने सदन को अपना दर्द कहने के लिए शांत किया, तो उन्होंने वह बहुत दुखी हैं और उपाध्यक्ष होने के नाते वह सदन को सुचारू रूप से चलाना चाहते हैं लेकिन सभी सदस्य कोलगेट पर चर्चा चाहते हैं जिसके लिए प्रधानमंत्री भी सदन में मौजूद हैं, लेकिन तेदेपा के मात्र दो सदस्यों द्वारा सदन की कार्यवाही में लगातार बाधा डाली जा रही हैं। उन्होंने सदस्यों को दोहरे मापदंड की नसीहत दी और कहा कि एक तरफ वह इस मुद्दे पर पीएम का जवाब चाहते हैं और दूसरी ओर इन सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही करने में भी सहयोग नहीं करना चाहते। इसलिए यदि सदन इन दो सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही करने में सहयोग देता है तो सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चलेगी और पीएम का बयान होगा, वरना वह सदन की कार्यवाही को स्थगित कर रहे और यही कहते हुए उन्होंने सदन की कार्यवाही को दिनभर के लिए स्थगित कर दिया।
सरकार समस्या, वो ही जाने
पीठ से जब उपाध्यक्ष कुरियन ने अन्नाद्रमुक के डा. मैत्रेयन को तेदपा के सदस्यों को वापस सीट पर ले जाने और समझाने का अनुरोध किया तो मैत्रेयन ने दो टूक शब्दों में कहा कि यह समस्या सरकार ने पैदा की है वही इसका समाधान निकाले। इसी प्रकार अन्य दलों ने भी इसका ठींकरा सरकार के सिर पर ही फोड़ा।
24Aug-2013

बुधवार, 21 अगस्त 2013

सोनिया की प्रतिष्ठा से जुडा है खाद्य सुरक्षा विधेयक!

खाद्य सुरक्षा विधेयक पास कराना सरकार का मकसद
ओ.पी.पाल
संसद के मानसून सत्र में लोकसभा में सरकार अभी तक एक भी विधेयक पारित नहीं करा पाई है, लेकिन कांग्रेसनीत यूपीए सरकार का राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को पारित कराना मकसद ही नहीं, बल्कि इसके लिए कांग्रेस प्रमुख की प्रतिष्ठा भी दांव पर है।
संसद के मानसून सत्र की अभी तक की कार्यवाही में चार विधेयक राज्यसभा में पारित कराए गये हैं, लेकिन लोकसभा में हंगामे के चलते एक भी विधेयक को पारित नहीं कराया जा सका है। यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में देखे जा रहे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को लोकसभा में पेश तो कर दिया गया है,लेकिन उस पर चर्चा नहीं हो सकी है, जिसे सत्र की आगामी संभावित सात या आठ बैठकों में सरकार इस विधेयक को पारित कराने के लिए अड़िग है। सरकार ने इस बिल को पारित कराने के लिए नरम रूख अपनाया है और विपक्ष की ओर से आने वाले संशोधनों को विधेयक के प्रावधानों में शामिल करने का पहले ही ऐलान कर दिया है। यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन देती आ रही उसकी संकट मोचक माने जाने वाली समाजवादी पार्टी को कांग्रेस ने उसके द्वारा लाये जाने वाले संशोधनों को बिल में शामिल करने का भरोसा देकर राजी कर लिया है। जिसका ऐलान सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने मंगलवार को पार्टी की संसदीय बैठक में कर दिया है। जबकि बसपा सुप्रीमों ने भी मंगलवार को साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी खाद्य सुरक्षा विधेयक का समर्थन करेगी। वहीं जद-यू ने भी संसद में खाद्य सुरक्षा विधेयक का समर्थन करने का ऐलान कर दिया है। जहां तक प्रमुख विपक्षी भाजपा की छत्तीसगढ़ मॉडल को इस विधेयक में शामिल करने की मांग सरकार के समक्ष रखी हुई है। उधर विपक्षी दलों की ओर से चर्चा के दौरान आने वाले संशोधनो पर सरकार का नरम रूख है, लेकिन सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि सरकार उन्हीं संशोधनों को इस विधेयक में लाएगी, जो स्वीकार करने योग्य होंगे। बहरहाल इस मौजूदा सत्र में सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को पारित कराने के लिए अड़ी हुई है चाहे उसे किसी भी प्रकार की नीति ही क्यों न अपनानी पड़े।
मंत्रणा करने का दौर जारी
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को पारित कराने के लिए विपक्षी दलों के समर्थन के लिए जहां संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ सभी दलों के साथ मंत्रणा जारी रखे हुए हैं, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल और स्वयं केंद्रीय खाद्य मत्री केवी थॉमस विभिन्न दलों के प्रमुख नेताओं के संपर्क में हैं। इसी मंत्रणा के नतीजे के रूप में यह भी माना जा रहा है कि प्रमुख विपक्षी दल भाजपा भी इस विधेयक को सशर्त समर्थन देने के लिए तैयार है जैसे कि पहले भी भाजपा की ओर से संकेत दिये जा चुके हैं। विपक्षी दलों की ओर आये संशोधनों पर विचार करने और रणनीति तय करने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री भी बैठक कर चुके हैं।
शनिवार को भी चलेगी कार्यवाही
लोकसभा सचिवालय के सूत्रों के अनुसार इस सत्र में ज्यादा अवकाश होने के कारण लोकसभा की कार्यवाही को शनिवार 24 अगस्त को भी चलेगी। इसका कारण भी राष्ट्रीय  खाद्य सुरक्षा विधेयक की चर्चा को पूरा करने का मकसद माना जा रहा है।
21Aug-2013

मंगलवार, 20 अगस्त 2013

अब हो सकेगी वक्फ संपत्तियों की हिफाजत!

वक्फ विधेयक पर लगी उच्च सदन की मुहर
ओ.पी. पाल
देश में वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और हिफाजत के उद्देश्य से कड़े प्रावधान करने वाले वक्फ (संशोधन) विधेयक-2011 को उच्च सदन ने अपनी मंजूरी दे दी है, जिस पर लोकसभा तीन साल पहले ही अपनी मुहर लगा चुकी है।
उच्च सदन में सोमवार को शोर-शराबे और हंगामे के बावजूद सरकार ने आधा दर्जन विधेयकों को पेश किया, जिसमें केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान ने वक्फ (संशोधन) विधेयक-2011 को पारित कराने का प्रस्ताव रखा, जिस पर चर्चा हुई। चर्चा के बाद इस विधेयक को पारित कर दिया गया। संसद से पारित इस विधेयक पर अब राष्टÑपति की मंजूरी मिलना बाकी रह गया है, जिसके बाद यह विधेयक संशोधन काननू के रूप में लागू हो जाएगा। वक्फ विधेयक को वर्ष 2010 में वक्फ अधिनियम-1955 के स्थान पर लागू किया गया था, जिसमें और भी सुधार की आवश्यकता महसूस की गई और उसके बाद इस विधेयक में संशोधन का प्रस्ताव आया। इससे पहले इस विधेयक को संशोधित रूप में गत मई 2010 में लोकसभा ने पारित कर दिया था, लेकिन तीन सालों से राज्यसभा में पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य मुस्लिम संगठनों की मांग पर सदन ने आपत्तियां दर्ज कराई थी, जिसके कारण इसके मसौदे की जांच के लिए इस विधेयक को सैफद्दीन सोज की अध्यक्षता वाली प्रवर समिति को भेज दिया गया था। संसद की प्रवर समिति ने संशोधनों के साथ इस विधेयक पर दिसंबर 2011 में अपनी रिपोर्ट राज्यसभा को सौंप दी थी और बाद में इसी साल फरवरी में कैबिनेट ने भी वक्फ संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी थी, जिसे किन्हीं कारणों से बजट सत्र में पारित नहीं कराया जा सका था, लेकिन मानसून सत्र के दौरान आज सोमवार के दिन राज्यसभा में पेश किया गया और इसे सर्वसम्मिति से पारित कर दिया गया।
क्या थी आपत्ति
पर्सनल लॉ बोर्ड की मुख्य आपत्ति विधेयक में वक्फ की परिभाषा को लेकर थी। उसका कहना था कि उन संपत्तियों को भी वक्फ के तहत माना जाए जो कानूनी तौर पर पंजीकृत नहीं हैं, लेकिन उनका निर्माण मुस्लिम समुदाय की भलाई के मकसद से किया गया है। इसके साथ ही उसने अवैध कब्जों को हटाने के लिए सख्त प्रावधान करने की मांग की गई थी। नए वक्फ विधेयक में गैर कानूनी कब्जे को संज्ञेय और गैर जमानती अपराध बताया गया है तथा इसके दोषी के लिए दो साल के सश्रम कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है।
ये बिल भी हुए पेश
राज्यसभा में सोमवार को वाणिज्य पोत परिवहन(दूसरा संशोधन) विधेयक, भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) विधेयक, मानसिक स्वास्थ्य देखरेख विधेयक, भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (संशोधन) विधेयक भी पेश किये गये, लेकिन चर्चा वक्फ विधेयक पर ही हो सकी।
20Aug-2013

सोमवार, 19 अगस्त 2013

रालोद ने शुरू की हाईकोर्ट बैंच की सियासत!

यूपी सरकार से केंद्र को नहीं मिला कोई प्रस्ताव
ओ.पी. पाल

भले ही उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अभी तक केंद्र सरकार के पास पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाई कोर्ट की बैंच स्थापित करने का कोई प्रस्ताव न हो, लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी को देखते हुए राष्ट्रीय लोकदल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में हाई कोर्ट बैंच के मुद्दे पर सियासत शुरू कर दी है।
आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटा राष्ट्रीय लोकदल खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक जमीन को बनाये रखने की कवायद में रणनीति बनाने लगा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में रालोद ने पहले ही इलाहाबाद हाई कोर्ट बैंच की स्थापना, पश्चिमी उत्तर प्रदेश को हरित प्रदेश के रूप में अलग प्रदेश बनाने तथा जाटों को आरक्षण देने के मुद्दों पर संघर्ष करने का ऐलान कर दिया है। आगामी लोकसभा में रालोद इन्हीं खास तीन मुद्दों पर चुनाव में जाने की तैयारी कर रहा है। इनमें से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ की स्थापना के लिए रालोद के महासचिव जयंत चौधरी ने केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल को एक दृष्टिकोण यानि स्मरण पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि उन्होंने केंद्रीय कानून मंत्री को गत नौ अप्रैल को इलाहाबाद हाई कोर्ट की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बैंच की स्थापना के लिए एक पत्र लिखा था, जिस पर गंभीरता के साथ विचार किया जाना चाहिए। यही नहीं रालोद अध्यक्ष एवं नागर विमानन मंत्री अजित सिंह व सांसद जयंत चौधरी ने कानून मंत्री कपिल सिब्बल से मुलाकात भी की। हालांकि केंद्रीय कानून मंत्री ने इस पत्र के जवाब में स्पष्ट कर दिया है कि आज तक इस तरह का कोई भी प्रस्ताव केंद्र सरकार को उत्तर प्रदेश सरकार ने नहीं भेजा है। इसलिए इस मुद्दे पर केंद्र सरकार तब तक विचार नहीं कर सकती जब तक राज्य सरकार से कोई प्रस्ताव केंद्र सरकार को प्राप्त नहीं हो जाता। कानून मंत्री के इस पत्र के जवाब के बाद मथुरा के सांसद जयंत चौधरी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी इस संबन्ध में पत्र लिखा है कि वे ऐसा प्रस्ताव भेजने पर विचार करें। इसमें उन्होंने तर्क दिया है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों को इलाहाबाद जाना पड़ता है यदि हाईकोर्ट बैंच पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थापित होगी तो इस क्षेत्र के लोगों को न्याय के लिए लंबी दूरी तय नहीं करनी पड़ेगी।
सपा सरकार पर सियासी वार
राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय महासचिव जयन्त चौधरी यह जानते हुए कि अस्सी के दशक से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वकीलों की हाईकोर्ट बैंच की स्थापना के लिए चल रहे आंदोलन के बावजूद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, भाजपा, बसपा व सपा की सरकारें रही हैं, लेकिन व्यापक स्तर पर हुए आंदोलनों में वकीलों को आश्वासन के अलावा किसी भी पार्टी की सरकार ने केंद्र सरकार को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट की खंडपीठ की स्थापना के लिए कोई प्रस्ताव भेजने की जहमत नहीं उठाई। ऐसे में यही माना जा रहा है कि रालोद ने आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह मुद्दा उठाकर उत्तर प्रदेश की सपा सरकार पर सियासी वार करके उसे जनता के सामने कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है।
19 Aug-2013


तो फिर लगेगा महत्वपूर्ण बिलों पर ग्रहण!


मानसून सत्र: सरकार लक्ष्य से कोसो दूर
ओ.पी. पाल 
संसद का मानसून सत्र की अभी तक संपन्न हुई लगभग आधी बैठकों में जिस प्रकार सरकार मात्र तीन ही विधेयकों को पारित करा पाई है। संसद की इस तरह बाधित कार्यवाही को देखते हुए ऐसी कोई संभावना नजर नहीं आती कि शेष अवधि में सरकार इस के लिए निर्धारित लक्ष्य को हासिल कर लेगी। ऐसे में अनेक महत्वपूर्ण विधेयकों जो लंबे समय से लंबित चल रहे हैं पर फिर से ग्रहण लग सकता है।
संसद के गत पांच अगस्त से आरंभ हुए मानसून सत्र के लिए विधायी कार्यो में सरकार के लक्ष्य में 62 विधेयक शामिल थे,जिनके लिए 16 बैठकें निर्धारित हुई थी। इन बैठकों में अभी तक सात बैठकों के दौरान लोकसभा में एक भी विधेयक पर सदन की मुहर नहीं लग सकी हैं और केवल कंपनी(संशोधित) विधेयक और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (संशोधित) विधेयकों के अलावा नेशनल वाटरवे विधेयक ही पारित हो चुके हैं। ये तीनों बिल राज्यसभा में पारित हुए, जिनमें कंपनी विधेयक और नेशनल हाइवे बिल लोकसभा के पिछले सत्रों में पारित हो चुके थे। लोकसभा में हालांकि यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के ड्रीम प्रोजेक्ट माने जाने वाले राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को भी अन्य कुछ बिलों के साथ पेश किया जा चुका है, लेकिन अभी तक खाद्य सुरक्षा विधेयक की चर्चा अधूरी पड़ी हुई है। यहां तक कि लोकसभा में पहले दिन ही सिर पर मैला ढोने की प्रथा को रोकने वाले संविधान(अजा) आदेश(संशोधन) विधेयक को केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री कुमारी ने पेश किया था, जिसके लिए अभी तक चर्चा ही शुरू नहीं कराई जा सकी। संसद के इस सत्र में करीब सात बैठकें ही और होने की संभावना है जिसमें दूर तक भी ऐसा नजर नहीं आता कि केंद्र सरकार एजेंडे में शामिल विधायी कार्यो के लक्ष्य को हासिल कर पाये। ऐसे में भूमि अधिग्रहण विधेयक, लोकपाल विधेयक, पेंशन फंड रेगुलेटरी बिल, सेबी बिल, न्यूक्लियर सेफ्टी अथॉरिटी रेगुलेटरी बिल, नागर विमानन प्राधिकरण विधेयक, व्हीसल ब्लोअर विधेयक, डीटीसी विधेयक जैसे अनेक महत्वपूर्ण विधेयकों के एक बार फिर से ठंडे बस्ते में जाने की आसार बने हुए हैं।
इन विधेयकों पर सब एकजुट
संसद के मौजूदा सत्र में केंद्र सरकार की प्राथमिकता में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर जहां प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, वहीं केंद्रीय सूचना आयोग के उस आदेश को बेअसर करने की दिशा में सूचना का अधिकार(संशोधन) विधेयक भी लोकसभा में पेश कर दिया गया है। इसके साथ ही राजनीतिक दलों पर शिकंजा कसने वाले सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को भी ध्वस्त करने की तैयारियों में जनप्रतिनिधित्व कानून(संशोधन) विधेयक को पारित कराने के लिए तमाम राजनीतिक दल एकजुट है, जिसमें दागियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने के आदेश दिये गये थे। राजनीतिक दलों की एकजुटता के सामने इन दोनों विधेयकों को पारित कराना तय माना जा रहा है। भले ही खाद्य सुरक्षा बिल पर राजनीतिक दलों की किचकिच सामने आ जाए।
आज नहीं होगी लोकसभा की कार्यवाही?
मानूसन सत्र के दौरान छत्तीसगढ़ के भाजपा मौजूदा लोकसभा सांसद दिलीप सिंह जूदेव के निधन के कारण 19 अगस्त सोमवार को लोकसभा की कार्यवाही श्रद्धांजलि के बाद पूरे दिन के लिए स्थगित हो सकती है, जैसा की संसद की परंपरा भी है कि मौजूदा सांसदों के निधन के कारण कार्यवाही स्थगित कर दी जाती है। वहीं 20 अगस्त को रक्षा बंधन के पर्व के कारण भी संसद सत्र की कार्यवाही न चलाने का निर्णय लिया जा सकता है, लिहाजा इस सत्र में बामुश्किल छह दिन या सात दिन की बैठक और होगी, जिसमें तमाम महत्वपूर्ण विधेयकों पर ग्रहण लगने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
19Aug-2013

रविवार, 18 अगस्त 2013

राग दरबार-नेता जी की टीस/ प्रचार का मौका

अब बढ़ेंगी राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की शक्तियां!


उच्च सदन ने लगाई विधेयक पर मुहर
ओ.पी. पाल

दुनियाभर में सड़क दुर्घटनाओं के दौरान हो रही मौतों के मामले में पहले स्थान पर चल रहा भारत इस कलंक को मिटाने के भरकस प्रयास कर रहा है, जिसकी दिशा में संसद में लंबित पड़े भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्रधिकरण (संशोधन) विधेयक को उच्च सदन से मिली मंजूरी से सरकार को दुर्घटनाओं में मौतों को कम करने के लिए बनाई जाने वाली परियोजनाओं में मदद मिलने का रास्ता साफ हो गया है।
देश में सड़कों का जाल बिछाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय प्राधिकरण अधिनियम 1988 के तहत गठित भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्रधिकरण निर्माण का जिम्मा लिये हुए है, जिसमें सरकार प्राधिकरण को ज्यादा शक्तियां देने के लिए इस कानून में संशोधन करने का निर्णय लिया था। संशोधन करने वाला यह विधेयक लोकसभा में पिछले साल ही पारित हो गया था, लेकिन राज्यसभा में पारित नहीं हो पाया था। आखिर मंगलवार को केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री आस्कर फर्नांडीस ने उच्च सदन में पेश किया, जिससे चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया गया है। हालांकि विधेयक में अधिनियम 1988 की धारा 3 की उपधारा(3)के स्थान पर धारा 3 का संशोधन किया गया है जिसके तहत एनएचएआई के ढांचे को और मजबूत किया जा सकेगा। मसलन प्राधिकरण में अध्यक्ष के अलावा पांच के स्थान पर छह पूर्णकालिक तथा चार के स्थान पर छह अंशकालिक सदस्यों को नियुक्त किया जा सकेगा। अब इस विधेयक पर केवल राष्ट्रपति की मुहर लगनी है। राज्यसभा में इससे पहले इस विधेयक पर चर्चा के दौरान विभिन्न दलों ने दुनियाभर में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों लोगों में भारत की फजीहत पर चिंता जताई, जिन्हें रोकने के लिए सरकार से राष्ट्रीय राजमार्गो को विकसित करने पर जोर दिया गया और इसके लिए सुझाव भी दिये गये। हालांकि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने मुफ्त कैशलेस इलाज की योजना को भी शुरू कराने की बात कही गई है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री आस्कर फर्नांडीज ने कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण कानून 1980 में संशोधन करने वाले इस विधेयक में पूर्णकालिक सदस्यों की संख्या पांच से बढ़ाकर छह करने और अल्पकालिक सदस्यों की संख्या चार से बढ़ाकर छह करने का प्रावधान करने से हालांकि देश में सड़कों पर यातायात की समस्या नहीं सुलझने वाली है। इसके लिए सरकार ठोस योजनाओं पर काम किया जा रहा है।
प्राधिकरण में मुखिया ही नहीं
राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा के बाद यह खुलासा भी हुआ है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अध्यक्ष पद पर पिछले करीब 17 महीनों से नियुक्ति तक नहीं की जा सकी। जदयू के सांसद एनके सिंह ने कहा कि इस पद से आरके सिंह के हटने के बाद अभी तक वह खाली पड़ा है। इसे सरकार ने भी स्वीकारा है, तो सवाल उठाए गये कि जिस अथोरिटी का मुखिया ही न हो तो उससे सरकारी परियोजनाओं के लक्ष्य को पूरा करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
लक्ष्य पाने में मिलेगी मदद
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के एक अधिकारी ने इस विधेयक के राज्यसभा में पारित होने के बाद कहा कि इसके जरिए प्राधिकरण के अधिकारों में बढ़ोतरी होगी और प्राधिकरण को सड़क निर्माण एजेंसियों को आकर्षित करने की योजनाओं को तैयार करने का भी अधिकार होगा। पिछले सालों में पिछड़े सड़क निर्माण के लक्ष्य को सरकार ने स्वीकार करते हुए यह भी माना कि भविष्य में इस संशोधन के बाद प्राधिकरण अपने अधिकारों के साथ जिस तरह काम करेगा उससे सड़क निर्माण परियोजनाओं के लक्ष्य को भी पूरा किया जा सकेगा।
14Aug-2013

सोमवार, 12 अगस्त 2013

साइबर अपराधों में नौवें पायदान पर भारत!

अंतर्राष्ट्रीय  सम्मेलन में तलाशे जाएंगे समाधान
ओ.पी. पाल

दुनियाभर में लगातार बढ़ रही साइबर अपराधों पर अंकुश लगाने के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र भी कवायद करते हुए चिंता व्यक्त कर चुका है, लेकिन यह सच है कि दुनियाभर में होने वाले साइबर अपराधों में करीब दस प्रतिशत का भागीदार भारत भी हो चुका है,जहां साइबर अपराधों को रोकना केंद्र सरकार की भी एक चुनौती बना हुआ है।
यह चौंकाने वाला आंकड़ा साइबर अपराध पर जारी अंतर्राष्ट्रीय संस्था नार्टन (सीमैन्टेक) की ताजा रिपोर्ट से हुआ है, जिसके अनुसार भारत में हर साल 42 मिलियन साइबर अपराध घटित होते हैं, जिसके शिकार करीब 52 प्रतिशत लोग मैलवेयर,वायरसेज, हैकिंग, स्कैम्स, जालसाजी एवं चोरी जैसी घटनाओं से पीड़ित होते हैं। इस सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में हर मिनट में 80 से अधिक लोग साइबर अपराध की चपेट में आते हैं। रिपोर्ट में यह तथ्य भी सामने आया है कि हर साल साइबर अपराध के अनुमानित वैश्विक प्राइस टैग 110 बिलियन यूएस डालर की कीमत में भारत की हिस्सेदारी आठ बिलियन यानि 7 प्रतिशत है। सिक्योरिटी फर्म कास्पर्सकी ने कंप्यूटर आक्रमणों के उच्चतम प्रतिशत वाले देशों की सूची में भारत को नौवें स्थान पर शामिल किया है।
चुनौती से निपटने की नीति
भारत ने हाल ही में अपनी नेशनल साइबर सिक्योरिटी पॉलिसी 2013 (एनसीएसपी 2013) को जारी की है। हालांकि इस पॉलिसी पर एक पेशेवर प्रमाणन निकाय ईसी-काउंसिल का कहना है कि भारत आधारभूत संरचना एवं निवेश के अभाव के कारण आगामी 5 वर्षों में पांच लाख साइबर सुरक्षा पेशेवरों के कार्यदल के सृजन के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगा। भारत ने यह नीति इसलिए जारी की है कि वह अपने पड़ोसी देशों द्वारा किये जा रहे साइबर घुसपैठ का शिकार हो चुका है। एक हालिया रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि चीन अपने साइबर वारफेयर आर्मी के माध्यम से भारतीय वेबसाइट्स पर बार-बार साइबर आक्रमक करता आ रहा है। सूत्रों के अनुसार साइबर अपराध को चुनौती मानते हुए भारत की साइबर अपराध विशेषज्ञों की एक टीम ने इस समस्या से निपटने के लिए इसी साल नवंबर में ‘दी ग्राउंड जीरो’ सम्मेलन आयोजित करने का   ऐलान किया है, जिसमें एशिया की प्रमूख सूचना सुरक्षा से जुड़े विशेषज्ञ हिस्सेदारी करेंगे।
12Aug-2013



संसद में हंगामे के बादल छंटने के आसार नहीं!

सरकार के पास विधायी कार्यो का अंबार
ओ.पी. पाल

संसद के मानसून में सत्र जब सोमवार से दूसरे सप्ताह की कार्यवाही शुरू होगी तो सरकार और विपक्ष के बीच कई मुद्दों पर गतिरोध उसी तरह फूटकर सामने आएगा जैसा पहले सप्ताह में सामने आया था। इस सत्र की 16 बैठकों में 62 विधायी कार्य कराने के लक्ष्य को लेकर आई सरकार पहले हμते में केवल एक विधेयक ही पारित करा पाई है।
संसद के मानसून सत्र के पहले सप्ताह पांच दिन चली संसद में तेलंगाना मुद्दे के साथ पाक सेना के हमले में भारतीय सैनिकों की मौत पर रक्षा मंत्री एके एंटनी के बयान पर बवाल मचा रहा, जिसके कारण प्रश्नकाल भी नाम मात्र का ही चल पाया। कल सोमवार से संसद के मानसून सत्र की दूसरे सप्ताह की कार्यवाही शुरू होगी, जिसमें सरकार ने लोकसभा में पिछले सप्ताह पेश किये गये कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के ड्रीम प्रोजेक्ट राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को पारित कराने का बीड़ा उठाया है, जिसके लिए चर्चा कराई जाएगी तो उस दौरान सरकार को विपक्ष से दो-दो चार होना पड़ेगा ऐसी  संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। लोकसभा में सोमवार के लिए सूचीबद्ध चार विधेयकों में सबसे पहले राजनीतिक दलों पर लटकी आरटीआई की तलवार को हटाने के लिए कैबिनेट की मंजूरी के बाद सूचना का अधिकार(संशोधित) विधेयक-2013 पेश किया जाना है। हालांकि इस विधेयक के समर्थन में सभी राजनीतिक दल पहले से ही लामबंद हैं यानि इसे पारित कराने में सरकार को काई दिक्कत नहीं है। इन सबके बावजूद तेलंगाना मुद्दे के साथ सरकार और विपक्ष खाद्य सुरक्षा बिल पर तकरार होने से वंचित रहे ऐसा संभव नहीं है यानि सोमवार को भी सदन में हंगामे के आसार बने रहने की संभावना है। उधर राज्यसभा में सोमवार को पांच विधेयक पेश किये जाने हैं जिनमें संविधान(119वां संशोधन) विधेयक-2013 वापस किया जाएगा।
चार दिन में एक विधेयक पारित
मानसून सत्र के पहले सप्ताह चार दिन हुई कार्यवाही के दौरान सरकार केवल राज्यसभा में कंपनी विधेयक ही पारित करा पाई है जो लोकसभा में पहले ही पारित हो चुका था। जबकि राज्यसभा में इस बिल समेत छह बिल पेश किये गये। जबकि लोकसभा में पहले दिन केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री कुमारी सैलजा संविधान(अजा) आदेश(संशोधन) विधेयक पेश किया था, जिसकी सरकार चर्चा भी पूरी नहीं करा सकी है। इसके अलावा लोकसभा में सात अगस्त को खाद्य सुरक्षा अध्यादेश का विवरण पटल पर रखते हुए उसे विधेयक के रूप में पेश किया गया। इसके अलावा विधायी कार्यो में कई महत्वपूर्ण बिल एजेंडे में रहे लेकिन हंगामे के कारण पेश नहीं किये जा सके।
12Aug-2013

रविवार, 11 अगस्त 2013

भारत में लगातार बढ़ रही हैं अवैध विदेशियों की संख्या!

इस साल बांग्लादेशियों व पाकिस्तानियों में कमी
इराकियों,अफगानियों व श्रीलंकाईयों में इजाफा
ओ.पी. पाल
भारत में बिना दस्तावेज के घुसपैठ करने वालों के पास तो केंद्र सरकार के  पास हिसाब किताब नहीं है, लेकिन दस्तावेजों के सहारे आने वाले ऐसे विदेशी  नागरिकों की संख्या भारत में लगातार बढ़ रही है जो वीजा अवधि समाप्त होने के बावजूद कहीं न कहीं चोरी छिपे अवैध रूप से भारत में रह रहे है। ऐसे  नागरिकों की संख्या पिछले दो साल में दो लाख से भी ज्यादा हो गई है।
गृहमंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि मान्य दस्तावेजों पर वीजा लेकर भारत  आए ऐसे विदेशी नागरिकों की संख्या वर्ष 2012 में दिसंबर तक 71164 थी, जो  वीजा अवधि समाप्त होने के बावजूद अभी अवैध रूप से देश में कहीं न कहीं  चोरी छिपे रह रहे हैं। इसके अलावा वर्ष 2011 में ऐसे विदेशी नागरिकों की  करीब एक लाख 37 हजार संख्या के बाद यह नया इजाफा हुआ। हालांकि केंद्र  सरकार के पास ऐसे विदेशियों का कोई ब्यौरा नहीं हैं जो बिना कानूनी  दस्तावेज के भारत में घुसपैठ करके रह रहे हैं। वर्ष 2011 में 67945 तथा  वर्ष 2010 में 69188 विदेशी नागरिक ऐसे थे जो वीजा अवधिक के बाद वापस ही  नहीं गये। ऐसे विदेशियों में सबसे ज्यादा संख्या बांग्लादेशियों की है।  वीजा अवधि समाप्ति के बाद अवैध रूप से देश में रूके विदेशी नागरिकों में इस साल हालांकि पाकिस्तानियों व बांग्लादेशियों में कमी आई है जबकि  अफगानियों व इराकियों के अवैध प्रवास का आंकड़ा बढ़ा है। इस साल अवैध रूप  से ठहरने वाले बांग्लादेशियों की संख्या 16530 व पाकिस्तानियों की संख्या 1411 तथा अफगानियों की संख्या 13999 है, जो पिछले साल क्रमश: 24364, 8037 व 13744 थी। इसके अलावा ताजा आंकड़ों में अमेरिका, श्रीलंका के नागरिकों ने भी ज्यादा विदेशी अधिनियम का उल्लंघन किया है। ऐसे विदेशियों की तलाश  करके कानूनी कार्यवाही करके उन्हें वापस भेजने के लिए राज्य सरकारों के  माध्यम से विदेशी नागरिक अधिनियम 1946 की धारा 3(2)(ग) के तहत कार्यवाही करती है।
बांग्लादेशी-पाकिस्तानियों पर कड़ी नजर
सरकार हमेशा देश में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों की गतिविधियों  पर नजर रखने के लिए बनाये गये तंत्रों की नजरे रखने का दावा भी करती है, लेकिन इसके विपरीत देश में लगातार ऐसे विदेशियों की संख्या में इजाफा हो  रहा है। सरकार के सूत्र यह भी दावा करते हैं कि अवैध रूप से भारत में चोरी-छिपे रह रहे विदेशी नागरिकों में खासकर बांग्लादेशियों, पाकिस्तानियों और अफगानिस्तानियों समेत विदेशी नागरिकों की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जा रही है, जिसके लिए विधि परिवर्तन एजेंसियां और खुफिया को चौकस रहने के स्पष्ट निर्देश हैं। विदेशी नागरिक अधिनियम 1946 की धारा 3(2)(ग) के तहत केंद्र सरकार को किसी भी विदेश नागरिक को वापस भेजने की शक्तियां प्राप्त है, जिसके तहत ऐसे विदेशियों की पहचान होने पर राज्य
सरकारों और एजेंसियों के सहयोग से काूननी कार्रवाही अमल में लाने का प्रावधान है।
11Aug-2013

 

शनिवार, 10 अगस्त 2013

जांच के चक्रव्यूह में फंसे 21 विमानन अधिकारी!

दो अधिकारियों के गले में पड़े हैं दो-दो मामले
ओ.पी. पाल

नागर विमानन महानिदेशालय के ऐसे 21 अधिकारी अभी भी जांच के चक्रव्यूह में फंसे हुए है, जिन पर नियमों के दायरों से बाहर जाकर सरकारी खजाने को करोड़ो की चपत लगाने ,अपने पदों का दुरूपयोग करते हुए परिजनों को रोजगार देने के अलावा फर्जी दस्तावेजों पर पायलट लाइसेंस जारी करने के आरोप हैं।
नागर विमानन क्षेत्र में फर्जी दस्तावेजों के जरिए कार्मशियल पायलट लाइसेंस और एयरलाइन ट्रांसपोर्ट पायलट लाइसेंस पाने वालों के गोरखधंधे पिछले सालों में सार्वजनिक हो चुके हैं और जांच में यह भी साबित हो चुका है कि इस गोरखधंधे में नागर विमानन महानिदेशालय के अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत रही है। नागर विमानन मंत्रालय के एक अधिकारी ने ऐसे हवाई फर्जीवाड़े के बारे में बताया कि डीजीसीए के कुछ अधिकारियों ने सरकार की अनुमति के बिना अपने परिवार के सदस्यों को विमानन क्षेत्र में नौकरियां दी हैं तो कुछ अधिकारियों पर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पायलट लाइसेंस जारी करने का आरोप है, जिसके कारण सरकारी खजाने को करोड़ों के राजस्व की चपत लगाई जा चुकी है। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार ऐसे अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामले भी दर्ज हैं जिनकी जांच केंद्रीय सर्तकता आयोग, मंत्रालय के सर्तकता विभाग और क्राइम ब्रांच व अन्य विशेषज्ञ जांच एजेंसियों से भी कराई जा रही है। नागर विमानन मंत्रालय के अनुसार फिलहाल डीजीसीए में 19 अधिकारियों की जांच सतर्कता विभाग व अन्य एजेंसी कर रही हैं, जिनमें आठ मामलों की जांच रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी गई हैं और इन अधिकारियों के खिलाफ सख्त से सख्त दंडनात्मक कार्यवाही की सिफारिश की गई है। जबकि दस मामलों में अभी जांच एजेंसियों की जांच जारी है। डीजीसीए में निजी सचिव टीके गोपीनाथ ने अपनी पत्नी के लिए मुμत टिकट हासिल करने के लिए नियमों का उल्लंघन करने के आरोप को स्वीकार कर लिया था, जिसके कारण उसके खिलाफ जांच नहीं की गई और भारी जुर्माना लगाकर निपटान किया गया।
ऐसे उड़ी नियमों की धज्जियां
मंत्रालय के अनुसार डीजीसीए के जांच के चक्रव्यूह में फंसे अधिकारियों में संयुक्त महानिदेशक चरणदास, निदेशक वीपी मैसी, सहायक निदेशक एमएम कौशल, राजीव गौड, सहायक निदेशक जेम्स जॉर्ज व आरके यादव के अलावा उप निदेशक आरएस पासी, कनिष्ठ पायलट कैप्टन वीएस नेहरा पर सरकार से अनुमति लिये बिना विमानन क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराने का आरोप है। जबकि जांच के दायरे में शामिल उप निदेशक ए के भारद्वाज पर डीजीसीए के एक अधिकारी की पुत्री को उड़ान घंटों के बिना समुचित सत्यापन के लाइसेंस देने में मदद करने, उप महानिदेशक बीर सिंह राय व संयुक्त महानिदेशक ए के शरण पर 28 प्लाइंग स्कूलों को नियमों से बाहर जाकर मदद करने तथा बिना सत्यापन के एआईसी जारी करके करोड़ो का चूना लगाने का आरोप है। इसके अलावा निदेशक सीपीएमपी राजू अपने परिजनों के साथ निजी यात्रा के लिए निशुल्क टिकट और एयरलाइंस का मोबाइल फोन इस्तेमाल करने के मामले की जांच झेल रहे हैं। इसी प्रकार उप महानिदेशक आरके खन्ना, निदेशक सुदीप्ता दत्ता, उड़ान योग्यता नियंत्रक व उप निदेशक राजू भटनागर जांच के दायरे में हैं।
शरण की बहाली पर सवाल
केंद्रीय सतर्कता आयोग की भारी दंडात्मक कार्यवाही करने की सिफारिश के बाद डीजीसीए में संयुक्त महानिदेशक एके शरण को मार्च 2012 में निलंबित कर दिया गया था, जिन्हें नागर विमानन मंत्री अजित सिंह ने पिछले साल अगस्त में इसी पद पर उनकी बहाली कर दी थी। इस बहाली पर उठे सवालों पर मंत्रालय ने कहा था कि उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे व मामलों की जांच जारी रहेगी। वहीं मंत्रालय ने शरण के खिलाफ मामले की जांच नागर विमानन मंत्रालय के मुख्य सतर्कता अधिकारी को सौंप दी थी। एके शरण पर 2005 में 28 μलाइंग स्कूलों को अनुचित छूट देकर सरकारी खजाने को कथित तौर पर 190 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाने का भी आरोप है जिसकी जांच जारी है।
सीबीआई का शिकंजा
पिछले साल मार्च में हुई पायलट लाइसेंस परीक्षा का तकनीकी सामान्य पत्र लीक करने के मामले में कैप्टन एचएस मल्होत्रा के खिलाफ सीबीआई जांच जारी है जिसकी मंत्रालय को रिपोर्ट का इंतजार है। इसी प्रकार डीजीसीए उप निदेशक राजू भटनागर के खिलाफ निजी कंपनी के साथ वाणिज्यक लेन-देन करने का मुकदमा सीबीआई के पाले में है। इसके अलावा जाली पायलट लाइसेंस के मामले में ए डी प्रदीप कुमार, ड्राμटमैन कासिम अंसारी व महानज्योति भट्टाचार्य के अलावा टीके गोपीनाथ, निलंबित राजू भटनागर के खिलाफ अपराध शाखा भी जांच कर रही है।
10AUG-2013

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

आखिर विपक्ष के आगे झुका उच्च सदन!

हंगामा करने वाले सांसदों की सूची पर बिफरी भाजपा का वाक आउट
ओ.पी. पाल

संसद के उच्चसदन राज्यसभा में कार्यवाही के दौरान हंगामा करने वाले माननीयों के नाम लिखित में सार्वजनिक किए जाने की नई परंपरा अपने पहले ही दिन सदस्यों के गुस्से और कोप का शिकार हो गयी। बुधवार को रक्षामंत्री के बयान को लेकर जिस कदर हंगामा हुआ उसे देखते हुए सभापति ने 22 सांसदों के नाम की सूची बृहस्पतिवार को क्या जारी की एक बार फिर सदन में हंगामा हो गया। जिन सांसदों को हंगामाई करार दिया गया था वे एवं उनके समर्थन में समूची भाजपा ने सदन का बहिँगमन कर दिया परिणामस्वरूप सरकार की सलाह पर पीठ ने यह नई परंपरा वापस लेने का आश्वासन दिया तब कहीं जाकर सदन को व्यवस्थित किया जा सका।
संसद के मानसून सत्र के पहले दिन से ही संसद के दोनों सदनों में हंगामे के कारण कार्यवाही बाधित होती आ रही है। उच्च सदन के प्रतिदिन जारी होने वाले संसदीय समाचार में राज्यसभा के इतिहास में शायद पहली बार उन सांसदों की सूची जारी की गई जिन्होंने सात अगस्त को सदन में हंगामा किया था। इन सूचीबद्ध सांसदों पर राज्यसभा के नियमों और शिष्टाचार का उल्लंघन करके घोर अनुचित आचरण करते हुए सभापीठ के आसन के समक्ष आ जाने और लगातार जानबूझकर सभा की कार्यवाही में बाधा पहुंचाने का आरोप है जिसके कारण सदन की कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा। सबसे खास बात ये है कि इन 22 सांसदों की सूची में भाजपा के 20 सांसदों के नाम हैं जबकि दो तेदेपा के सांसदों का नाम प्रकाशित किया गया है। सदन की कार्यवाही शुरू होते ही इसी मुद्दे पर प्रमुख विपक्षी दल बिफर गया और सख्त ऐतराज जताते हुए हंगामा किया। हंगामे के बाद भाजपा सदस्यों ने सदन से वाक आउट कर दिया। यह देख सभापति हामिद अंसारी ने 11.13 बजे सदन की कार्यवाही को 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया।
आश्वासन पर सदन में लौटै भाजपा सांसद
उच्च सदन की कार्यवाही जब तीन बार के स्थगन के बाद दो बजे पुन: शुरू हुई तो सदन में पहुंचे संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने हंगामेदार सूची वाले संसदीय समाचार पर भाजपा सांसदों की भावनाओं को सम्मान देने की अपील की। उन्होंने कहा कि इस बारे में सदस्यों से बातचीत भी की गई है। कमलनाथ ने कहा कि शुरू की गई इस पंरपरा को बंद किया जाना चाहिए और पीठ से अनुरोध किया कि वे इस सूची पर पुनर्विचार करें। इसके बाद पीठ पर मौजूद उपाध्यक्ष प्रो. पीजे कुरियन ने इस सूची को वापस लेने की बात करते हुए सभी भाजपा सदस्यों से सदन में वापस आने की अपील की और कहा कि बिना विपक्ष के संसदीय कार्यवाही चलाना उचित नहीं है। इस अपील पर संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला गैलरी में जमा सभी भाजपा सदस्यों को सदन में लेकर आए। इससे पहले करीब तीन घंटे तक भाजपा सदस्यों का वाक आउट जारी था।
भाजपा ने जताया ऐतराज
राज्यसभा में इन सांसदों की सूची जारी करने पर बिफरी भाजपा ने तर्क दिया कि बुधवार को कार्यवाही के दौरान सभी पार्टियों के सदस्यों ने हंगामा किया था, जिसमें कांग्रेस के भी सांसाद शामिल थे, लेकिन केवल विपक्षी दलों के नाम ही क्यों शामिल किये गये? इस सूची पर सदन में वेंकैया नायडू ने कहा कि भाजपा सदन में शांतिपूर्ण बहस चाहती है। प्रतिपक्ष नेता अरूण जेटली ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि बुधवार को रक्षा मंत्री के बयान पर हंगामा करने वाले उन भाजपा सदस्यों को भी सूचीबद्ध कर दिया गया है जो सदन में थे ही नहीं और जो थे वे अपनी-अपनी सीट पर बैठे थे। जेटली ने कहा कि तेलंगाना के मुद्दे पर सत्ता पक्ष के मंत्री और सांसद भी आपस में भिड़े हैं, लेकिन सूची में उनका नाम नहीं डाला गया है और कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर व सपा सदस्य नरेश अग्रवाल की तकरार को भी नजर अंदाज कर दिया गया। इन सवालों को उठाते हुए सदन का बहिष्कार करने से पहले जेटली ने सूची वापस करने की मांग भी की। तरूण विजय, धर्मेन्द्र प्रधान, माया सिंह और स्मृति ईरानी सहित कई सदस्य हैं जो आसन के करीब हंगामे में शामिल नहीं थे।
इन सांसदों के नाम हुए प्रकाशित
हंगामा करने वालों की जारी सूची में तेलगू देशम पार्टी वाई एस चौधरी व सी एम रमेश के अलाव भाजपा के सभी 20 सदस्यों में जगत प्रकाश नाड्डा, पुरुषोत्तम खोडाभाई रुपाला, अविनाश राय खन्ना, स्मृति ईरानी, धर्मेंद्र प्रधान, वी पी सिंह बदनौर, ओम प्रकाश माथुर, बी पी परमार, भूपेंद्र यादव, नातूजी हालाजी ठाकोर, दिलीपभाई पांड्या, भूषणलाल जंगड़े,प्रभाकर कोरे, तरुण विजय, फग्गन सिंह कुलस्ते, रंगासाईं रामाकृष्णा, नंद कुमार साईं, माया सिंह, मनसूख मनडाविया तथा शंकरभाई वेगाड का नाम प्रकाशित किया गया है।
09Aug-2013

बुधवार, 7 अगस्त 2013

दो सांसदों के आगे यूं बेबस दिखा उच्च सदन!

तेलंगाना मुद्दे पर बार-बार स्थगित हुई कार्यवाही
ओ.पी. पाल

संसद के मानसून सत्र में दूसरे दिन भी राज्यसभा में पृथक तेलंगाना के विरोध में तेदेपा के मात्र दो सांसदों का आसन के करीब नारेबाजी के साथ हंगामा जारी रहा। इन दो सांसदों के सामने उच्च सदन इतना बेबस दिखा कि सदन की कार्यवाही को सुचारू करने के प्रयास में बार-बार स्थगित करना पड़ा।
उच्च सदन की कार्यवाही शुरू होते ही में तेलंगाना के विरोध में ‘सेव आंध्र प्रदेश’ और ‘वी वांट जस्टिस’ के नारे लगाते हुए हाथों में अपनी मांग का पोस्टर लेकर तेलगू देशम पार्टी के दो सांसद सीएम रमेश और वाईएस चौधरी आसन के करीब वेल में आ गये। हालांकि उस समय पुंछ में पाक की गोलाबारी में शहीद हुए पांच सैनिकों के मामले पर प्रमुख विपक्षी दलो के साथ अन्य दल भी सदन में प्रधानमंत्री के बयान की मांग कर हंगामा कर रहे थे। तेदेपा सदस्यों को अपनी मांग के अलावा अन्य किसी मुद्दे से कोई सरोकार नहीं था, जिसका कारण था जब भी सदन की कार्यवाही शुरू हुई वे अपनी मुहिम पर अडिग रहे। पीठ से बार बार उन्हें शांत होकर सीट पर जाने को भी कहती रही और उनके खिलाफ संसदीय नियमों के तहत कार्यवाही की भी चेतावनी देती रही, लेकिन वे टस से मस नहीं हुए और लगातार सदन की कार्यवाही के दौरान बाधक बने रहे। सदन में उत्तराखंड त्रासदी पर चर्चा के समय सत्ता और विपक्ष के सभी डिस-आर्डर सदन को आर्डर में लाने की पीठ से मांग भी करते रहे, लेकिन सदन तेदेपा के दोनों सांसदों के सामने बेबस नजर आया।
लगातार चलती रही मंत्रणा
तेलंगाना मुद्दे की इस गूंज के कारण उच्च सदन की आठ बार के स्थगन के बाद पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिया गया। खास बात यह देखी गई पहली बार 45 मिनट के स्थगन और भोजनावकाश के एक घंटा पांच मिनट के अलावा ज्यादातर समय सदन की कार्यवाही को दस या 15 मिनट के लिए ही स्थगित किया गया है। इस अल्प अवधि के स्थगन का कारण उपसभापति और केंद्रीय मंत्रियों व विपक्षी दलों के साथ सदन की कार्यवाही को सुचारू करने के लिए तेदेपा सदस्यों को हंगामे से रोकने के लिए मंत्रणा के लिए होता रहा, लेकिन जब इस समस्या का समाधान नहीं निकला तो उप सभापति प्रो.पीजे कुरियन ने संसदीय नियमों को सहारा लेने का फैसला कर लिया। जब सदन की कार्यवाही दस मिनट के स्थगन के बाद 2.33 पर शुरू हुई तो सदन में दाखिल हो चुके संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ सख्त मूड में दिखे, जिन्होंने बोलते हुए सदन को बताया कि कल से लगातार इन सांसदों के कारण विधायी कार्य नहीं हो रहे हैं ऐसे में इन दोनों के खिलाफ नियम 255 के तहत कार्यवाही लागू होनी चाहिए, जो पीठ के अधिकार क्षेत्र में हैं।
सरकार के खिलाफ ऐसे एकजुट दिखा विपक्ष
तेदपा के दोनों सांसदों के खिलाफ नियम 255 के तहत कार्यवाही कराने की सरकार की मंशा पर उस समय पानी फिरा, जब इस तेदपा सदस्यों पर कार्यवाही के खिलाफ समूचा विपक्ष एकजुटता के सामने खड़ा नजर आया। प्रतिपक्ष नेता अरुण जेटली ने केंद्रीय मंत्री कमलनाथ को नसीहत दी कि पहले कांग्रेस अपने घर को नियंत्रित करे और इन सांसदों के खिलाफ इस कार्यवाही को करने से पहले उन नौ कांग्रेस के सांसदों पर कार्यवाही करे, जो तेलंगाना के विरोध में कल सोमवार को पूरे दिन तेदपा के साथ मिलकर लोकसभा में इसी प्रकार का हंगामा करते रहे। जेटली की इस नसीहत का सदन में उन सभी दलों ने समर्थन किया, जो तेलंगाना जैसे छोटे राज्य बनाने के पक्षधर भी हैं। मसलन तेदपा के इन दोनों सांसदो के सामने यहां भी सरकार को मुहं की खानी पड़ी। इस मसले को लेकर हंगामा होता देख फिर सदन की कार्यवाही को 15 मिनट के लिए स्थगित कर दिया और इन सांसदों के वेल में अपनी नारेबाजी जारी रखने के बावजूद उत्तराखंड त्रासदी पर अधूरी अल्पकालिक चर्चा को पूरा कराया गया।
आपस में भिड़े कांग्रेसी सांसद
आंध्र के साथ न्याय की मांग को लेकर जब जब तेदेपा सदस्यों की लगातार नारेबाजी जारी रही तो आंध्र प्रदेश के ही तेलंगाना के समर्थक कांग्रेस सांसद पी. गोवर्धन रेड्डी ने उनके खिलाफ सीमांध्र सदस्यों को तेलंगाना से बाहर चले जाना चाहिए जैसी टिप्पणी कर दी। इस टिप्पणी पर आपत्ति जताने वाले कांग्रेस के ही केंद्रीय मंत्री जेसुदासु सीलम और गोवर्धन रेड्डी के बीच तीखी झड़पों के साथ बहस शुरू हो गई। सीलम की आपत्ति का कांग्रेस की ही रेणुका चौधरी ने भी समर्थन किया। बाद में अंबिका सोनी समेत सत्तापक्ष के सदस्यों ने हस्तक्षेप करके मामला शांत कराया
07Aug-2013

सांसदों में चला सचिन तेंदुलकर का जादू !

अंजलि तेंदुलकर ने आगंतुक कक्ष से निहारी सदन की कार्यवाही
ओ.पी. पाल

दुनिया के महानतम क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर भी एक सांसद के रूप में सोमवार को संसद के मानसून सत्र में भाग लेने के लिए राज्यसभा पहुंचे, वे दूसरी बार कार्यवाही में शामिल हुए है। वे सदन में आकर्षण का केंद्र बने रहे।
केंद्रीय संसदीय राज्यमंत्री राजीव शुक्ला के साथ नीले रंग की धारीदार शर्ट और काले रंग की पैंट पहने सचिन तेंदुलकर पौने ग्यारह बजे ही संसद भवन पहुंच चुके थे। तेंदुलकर के लिए दूसरा मौका है जब वे पिछले साल मानसून सत्र के पहले दिन राज्यसभा में मनोनीत होने के बाद कार्यवाही का हिस्सा बने थे, उस समय उनके साथ सिने तारिका रेखा भी थी, लेकिन आज रेखा संसद नहीं पहुंच सकी। तेंदुलकर ने अपनी सीट पर बैठने से पहले कुछ सांसदों से हाथ मिलाया। इसके तुरंत वह अपने करीब में बैठे नामचीन गीतकार जावेद अख्तर के साथ बातचीत में मशगूल हो गए। तेंदुलकर के साथ संसद भवन आई उनकी पत्नी अंजली तेंदुलकर ने राज्यसभा की कार्यवाही को वीवीआईपी दीर्घा में बैठकर निहारा। सचिन ने अपनी सीट नं. 103 पर बैठकर उच्च सदन की कार्यावली वाला पत्र उठाया और पढ़ने लगे, तभी राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी द्वारा जिंबॉब्वे के खिलाफ वनडे श्रृंखला में 5-0 से जीतकर दर्ज करने वाली भारतीय क्रिकेट टीम को बधाई दी, तो तेंदुलकर ने मेज थपथपाकर अपनी खुशी जाहिर की। प्रश्नकाल शुरू होते ही तेलंगाना और बोडोलैंड को लेकर हंगामे के कारण सभापति द्वारा सदन की कार्यवाही 10 मिनट के लिए स्थगित करना पड़ा। इन दस मिनटों में अधिकांश सांसद अपनी सीटों से उठकर सचिन तेंदुलकर से हाथ मिलाकर मुलाकात करने में जुटे रहे आौर कई सदस्यों ने सचिन का मोबाइल नंबर भी नोट किया। इसी दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सदन में आए और संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ल ने सचिन को उनसे मिलवाया। सचिन ने उनका अभिवादन किया और हाथ मिलाया। सदन की कार्यवाही सुचारू होने पर फिर सचिन अपनी सीट पर बैठ गये।
एक साल बाद सदन में आए सचिन
क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को पिछले साल अप्रैल में बॉलीवुड अभिनेत्री रेखा और बिजनेस वुमेन अनु आगा के साथ राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था। शपथ लेने के बाद वे पहली बार रेखा के साथ उप राष्टÑपति के चुनाव के दौरान मतदान करने संसद आए और उसके बाद शुरू हुए मानसून सत्र के पहले ही दिन उच्च सदन की कार्यवाही का हिस्सा बने थे, उस दौरान उनके साथ अभिनेत्री रेखा भी थी, लेकिन रेखा इस बार उनके साथ सदन में नहीं आई। सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने के हिसाब से सचिन का आज दूसरा मौका है। बजट सत्र के दौरान सचिन तेंदुलकर 22 फरवरी से 26 मार्च तक भारत आई आस्ट्रेलिया टीम की श्रंखला में व्यस्त थे, जिसके लिए उन्होंने उच्च सदन से 21 फरवरी से छुट्टी भी मांगी थी, जिसे मंजूर कर लिया गया था।
खिलाड़ियों को दी बधाई
लोकसभा व राज्यसभा ने हाल के दिनों में क्रिकेट और हाकी सहित विभिन्न खेल स्पधार्ओं में भारतीयों द्वारा उल्लेखनीय प्रदर्शन किए जाने पर सोमवार को खिलाड़ियों को बधाई दी। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने सदन में क्रिकेट ओर हाकी के अलावा तीरंदाजी, स्नूकर और कुश्ती के क्षेत्र में विभिन्न प्रतियोगिताओं के दौरान बेहतर प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों को बधाई दी। राज्यसभा में भारतीय खिलाड़ियों को सदस्यों ने बधाई दी और कहा कि उन्होंने कहा कि ये अभूतपूर्व उपलब्धियां राष्ट्रीय गर्व का विषय है और यह देशभर में नये खिलाड़ियों को प्रेरित करेगा।
06Aug-2013

सोमवार, 5 अगस्त 2013

विपक्ष की बदलती भूमिका से घिर सकती है सरकार!

संसद का मानसून सत्र आज से
ओ.पी. पाल

सोमवार से आरंभ हो रहे संसद के मानसून सत्र के दौरान राजनीतिक दलों की सरकार को संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने के लिए दिये आश्वासन के बावजूद विपक्षी दलों की भूमिका बदलती नजर आने लगी है, जिसके कारण संसद में कई मुद्दों पर यूपीए सरकार घिर सकती है।
यूपीए सरकार के लिए संकटमोचक की भूमिका में रही समाजवादी पार्टी उसे बाहर से समर्थन देने के बावजूद आईएएस दुर्गाशक्ति नागपाल के मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के तेवरों से भड़क गयी है। नाराज सपा ने कह दिया है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर उनकी पार्टी सरकार के समर्थन में वोट नहीं करेगी। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की भूमिका में भी रविवार को पार्टी की कोर कमेटी की बैठक के बाद बदलाव देखा गया। उसने भी कई मुद्दों पर सरकार को संसद में घेरने की रणनीति तैयार कर ली है। उधर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी पेट्रोल-डीजल और अन्य आवश्यक वस्तुओं के दामों में बढ़ोतरी के साथ तेलंगाना जैसे राज्यों के गठन की कार्यवाही का विरोध करने का पहले ही ऐलान कर चुकी है। वह सरकार से सदन में यह आश्वासन चाहती है कि देश में किसी नए राज्य के गठन पर विचार नहीं होगा। यही नहीं जैसे जैसे सत्र आगे बढ़ेगा वैसे ही राजनीतिक दलों की भूमिका में सरकार के रवैये को देखकर भूमिकाएं बदलती नजर आएंगी?
62 विधेयक बनाम 16 दिन
मानसून सत्र से पहले आयोजित दो सर्वदलीय बैठकों में प्रमुख विपक्षी दलों ने मानसून सत्र के विस्तार पर विचार करने का यह कहकर अनुरोध किया था कि 16 बैठकों में 62 विधेयकों को संसद में पेश करना नामुमकिन है, जिसमें चार दिन में गैर सरकारी विधेयक भी पेश होने के लिए सामने आएंगे। सरकार के एजेंडे में इस सत्र में 62 विधेयकों में पांच अध्यादेश हैं जिन्हें संसद विधेयक के जरिए कानूनी रूप दिया जाना है, जिसमें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक सरकार की प्राथमिकता में है। जब कि 14 नये विधेयको के अलावा दोनों सदनों में पटल पर लाने के बाद पास कराने वाले 37 बिल ऐसे हैं, जिनमें से राज्यसभा में पास हो चुके तीन बिलों को लोकसभा की मंजूरी का इंतजार है, जबकि इसी प्रकार लोकसभा में पारित हो चुके सात विधेयक ऐसे हैं जिन्हें राज्य सभा में पास कराने के लिए पेश किया जाना है। इसके अलावा चार बिलों को वापस करने के लिए पेश किया जाएगा।
इन बिलों के लटकने के आसार
मानसून सत्र के विधायी कार्यो में सरकार की कार्यसूची में कई ऐसे विधेयक भी शामिल हैं जो पिछले सालों में आयोजित संसद के सत्रों की कार्यसूची में आते रहे और फिर बारी-बारी से ठंडे बस्ते में जाते रहे हैं। इस बार भी उन विधेयकों को सूचीबद्ध किया गया है। एसे प्रमुख बिलों में वर्ष मार्च 2009 में राज्यसभा में पारित हुआ महिला आरक्षण बिल भी शामिल है, इसके अलावा लोकसभा में पारित लोकपाल विधेयक के अलावा किसानों की जमीनों के अधिग्रहण के कानूनी रूप देने वाला भूमि अधिग्रहण विधेयक, विवाह कानून, व्हीसल ब्लोअर बिल, डायरेक्ट टेक्स कोड बिल आदि प्रमुख रूप से शामिल है, जो इस बार भी ठंडे बस्ते में जा सकते हैं। 
05Aug-2013

संसद का मानसून सत्र :चर्चा भी होगी और कार्यवाही भी चलेगी!

सरकार और विपक्षी दल एक-एक कदम बढ़ाने को तैयार
ओ.पी. पाल
यूपीए-2 के कार्यकाल में शायद यह पहला मौका है कि कुछ मुद्दों को छोड़कर सरकार और विपक्षी दल ज्यादातर मामलों पर आपस में एक-एक कदम बढ़ाने को तैयार हैं, जिसमें खासतौर से मानसून सत्र के दौरान सरकार विपक्षी दलों के हर मुद्दे पर चर्चा कराने का तैयार हो रही है तो विपक्ष भी संसद की कार्यवही को सुचारू रूप से चलाए जाने में सहयोग का आश्वासन दे रहे हैं।
संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ द्वारा तीन दिन पहले बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में ही सरकार और विपक्षी दलों ने ज्यादातर मामलों में आमसहमति के रास्ते को अख्तियार करने के संकेत दिये थे। उसी तरह संसद सत्र से पहले लोकसभा अध्यक्ष द्वारा आयोजित सर्वदलीय बैठक में भी शनिवार को यहां उसी औपचारिकता को पूरा किया गया है। हालांकि आगामी लोकससभा चुनाव के मद्देनजर सभी दलों को जनता के बीच जाना है और राजनीतिक दलों पर सुप्रीम कोर्ट का शिकंजा कसे जाने का भी राजनीतिक दलों की अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर एकजुट होने की मजबूरी माना जा रहा है। इसीलिए यूपीए-2 के शासनकाल में पहली बार सर्वदलीय बैठकों में एक-दूसरे के मुद्दों पर गतिरोध के स्वर नाममात्र को ही देखने पर मिले, जिनमें तेलंगाना को अलग राज्य बनाने के निर्णय पर असमंजस में पड़ी कांग्रेसनीत सरकार के सामने छोटे राज्यों के पक्षधर और इनका विरोध करने वाले दलों से मुश्किलें खड़ी होने की संभावनाएं हैं, इसलिए सरकार ने तेलंगाना को कैबिनेट की मंजूरी के बावजूद संसद के मानसून सत्र के एजेंडे से अलग ही रखा है, जिसके लिए वह संसद में राजनीतिक दलों की नब्ज टटोलने के बाद ही किसी फैसले पर आगे बढ़ सकती है। बहरहाल लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती मीराकुमार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में उन्हें राजनीतिक दलों के साथ माथापच्ची नहीं करनी पड़ी, जिसके कारण मीरा कुमार और स्वयं सरकार को भी ऐसी उम्मीद है कि संसद के पांच अगस्त से शुरू होने वाले मानसून सत्र में पिछले सत्रों की अपेक्षा ज्यादा कामकाज निपटाया जा सकेगा।
खाद्य सुरक्षा विधेयक सरकार की प्राथमिकता
सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने पर राजनीतिक दलों ने सकारात्मक संकेत दिये हैं उससे प्रधानमंत्री को भी उम्मीद है कि यह सत्र रचनात्मक और फलदायी साबित होगा। बैठक के बाद बाहर आने पर पत्रकारों के समक्ष उन्होंने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश को विधेयक में बदलने की प्रक्रिया को आवश्यक बताते हुए कहा कि अन्य लंबित बिलों में इसकी महत्ता कहीं महत्वपूर्ण हैं। हालांकि सरकार के सामने ऐसे छह विधेयक हैं जिन्हें विधेयक में बदलना है। सरकार की प्राथमिकता में प्रतिष्ठा पर लगे इस विधेयक के बदले ही शायद सरकार ने विपक्षी दलों को आश्वासन दिया है कि सरकार उनके हर मुद्दे पर चर्चा कराने को तैयार है।
यहां हो सकता है विरोध
यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन कर रही समाजवादी पार्टी ने कहा है कि उसे नहीं लगता कि मानसून सत्र सुचारू रूप से नहीं चल पाएगा। खासकर तेलंगाना मामले पर तृणमूल कांग्रेस सरकर का सदन में यह बयान चाहती है जिसमें सरकार आश्वासन दे कि वह तेलंगाना या काई अन्य नया राज्य नहीं बनाएगी। तृणमूल का तर्क है कि यदि तेलंगाना को अलग राज्य बना दिया गया तो देश में अन्य राज्यों की मांग को लेकर देशभर में अशांति फैलने की आशंका टाला नहीं जा सकेगा। उधर प्रमुख विपक्षी दल भाजपा तेलंगाना को अलग राज्य बनाने की मांग उठाते हुए उसका समर्थन करने पहले ही आश्वासन दे चुकी है।
04Aug-2013

राग-दरबार/दिल्ली के दिल में गड्ढे-झाडू बड़े काम की

शनिवार, 3 अगस्त 2013

डीजीसीए की जगह जल्द लेगा नागर विमानन प्राधिकरण!

मानसून सत्र में पेश होगा नागर विमानन प्राधिकरण विधेयक
ओ.पी. पाल

केंद्र सरकार की नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) की जगह नए नियामक के रूप में नागर विमानन प्राधिकरण यानि सीएए के गठन संबन्धी विधेयक मानसून सत्र में पेश किया जाएगा, जिसे सरकार ने विधायी कार्यो की सूची में भी शामिल कर लिया है। मसलन डीजीसीए से कहीं ज्यादा शक्तियों वाला नया नियामक सीएए जल्द ही अस्तित्व में आ जाएगा,ऐसी उम्मीद नागर विमानन मंत्रालय ने भी जताई है।
आगामी पांच अगस्त से आरंभ होने वाले संसद के मानसून सत्र में विमानन क्षेत्र के बेहतर विनियमन के लिए एक शक्तिशाली नागर विमानन प्राधिकरण गठित करने वाले नागर विमानन प्राधिकरण विधेयक-2013 को सरकार के एजेंडे में वरीयता क्रम के पांचवे स्थान पर सूचीबद्ध किया गया हैं। मौजूदा डीजीसीए के पास वित्तीय अधिकार सीमित होने के कारण वह गतिशील नागर विमानन क्षेत्र की मांगों को पूरा करने में असमर्थ है। इसीलिए पिछले कई सालों से सरकार की डीजीसीए के स्थान पर नया नियामक बनाने की जारी कवायद कर रहा था, जिसके प्रस्तावित मसौदे को पिछले महीने जुलाई में ही केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दी है। नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों ने हरिभूमि से बातचीत के दौरान बताया कि इस नये नियामक को गठित करने का मकसद विमानन क्षेत्र के ढांचे को मजबूत करना है, क्योंकि नए नियामक के पास कामकाज और वित्तीय मामले में पूर्ण स्वायतत्ता होगी। सीएए हवाई परिवहन आपरेटरों, हवाई सेवा निगरानी एवं अन्य नागर विमानन सुविधाओं के आलावा आपरेटरों की व्यवस्था पर निगरानी जैसे प्रबंध करने के साथ नागर विमानन सुरक्षा का नियमन भी करेगा। वहीं इस विधेयक में उपभोक्ता संरक्षण और नागर विमानन क्षेत्र में पर्यावरण नियमन संबंधी मामलों को देखने के लिए सीएए को अधिकार देने का प्रावधान किया गया है। इस प्राधिकरण के गठन के साथ ही सरकार एक ऐसे स्वतंत्र विमान दुर्घटना जांच बोर्ड का भी गठन करेगी, जिससे विमान यात्रियों के हितों की रक्षा के उपाय कर सके।
ऐसा होगा सीएए का ढांचा
नागर विमानन मंत्रालय के अनुसार इस नए नागर विमानन प्राधिकरण में एक चेयरपर्सन, एक महानिदेशक और सात से नौ सदस्यों के अलावा पांच पूर्णकालिक सदस्य भी शामिल किये जाएंगे। सूत्रों के अनुसार नागर विमानन प्राधिकरण के गठन पर करीब 112 करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है। वहीं इस प्राधिकरण का एक अलग से कोष होगा, जिसका इस्तेमाल कर्मचारियों के वेतन सहित उसके कार्य संचालन संबधी सभी खर्चो के लिए किया जा सकेगा। इस प्राधिकरण को ऐसी शक्तियां दी जाएंगी, जिसमें वह आदेशो और निदेर्शों का पालन न करने वाले अधिकारियों, कर्मचारियों, आॅपरेटरों, कंपनी और सरकारी विभाग को भी दंडित कर सके। 
03Aug-2013

शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

दागियों के बचाव में लामबंद हुए सभी दल!

बैठक में सरकार और विपक्षी दलों का एक सुर
ओ.पी. पाल

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का फैसला किसी भी राजनीतिक दल को रास नहीं आ रहा है। शायद यही कारण है कि मानसून सत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए सर्वदलीय बैठक में सत्ता और विपक्षी दलों ने एक सुर में लामबंद होते हुए जन प्रतिनिधि कानून में संशोधन लाने पर आम सहमति जता दी है। मसलन इस बार सरकार और विपक्षी दलों ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर आपस में एक-एक कदम आगे बढ़ाने की राह का रास्ता अख्तियार कर लिया है।
मानसून सत्र आरंभ होने से पहले केंद्र सरकार की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में सरकार और विपक्षी दलों में अनेक मुद्दों पर आमसहमति की ओर बढ़ने की राह देखने को मिली। इस बैठक में सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह देखने को मिला कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दागियों पर चुनाव न लड़ने का निर्णय और इससे पहले केंद्रीय सूचना आयोग का राष्ट्रीय दलों को आरटीआई के दायरे में शामिल करने जैसे आदेश किसी भी राजनीतिक दल को रास नहीं आ रहे हैं। खासकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दो साल जेल में बंद रहने और आरोप सिद्ध होने पर संसद या विधायक की सदस्यता समाप्त करने का पिछले महीने जारी फैसले पर असहमति की राजनीति अन्य मुद्दों की अपेक्षा हावी रही। राजनीति में दागियों के बचाव में सभी राजनीतिक दलों ने एक सुर में जल्द से जल्द जनप्रतिनिधि कानून में संशोधन लाने पर जोर दिया। राजनीतिक दलों का मानना था कि इस लोकतांत्रिक देश के संविधान में संसद सर्वोच्च है जहां बनाए गये कानूनों पर ही न्यायपालिका भी चलती हैं ऐसे में संसद में ही राजनीतिक दलों में आपराधिकरण के मामले पर जनप्रतिनिधि कानून में आवश्यक संशोधन करके निर्णय होना चाहिए। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने दागियों पर शिकंजा कसने वाले इस आदेश को जारी करके केंद्र सरकार के उस आदेश को ग्रहण लगा दिया है, जिसमें केंद्र सरकार ने करीब 24 साल पहले 15 अप्रैल 1989 को नेताओं को अपराध के साथ राजनीति करने की छूट प्रदान की थी।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट के पिछले महीने 10 जुलाई को भारतीय राजनीति में आपराधिक छवि वाले लोगों के प्रवेश पर शिकंजा कसने के तहत जेल में रहने वाले नेताओं के चुनाव लडने पर रोक लगाते हुए यह भी निर्णय सुनाया था कि आपराधिक मामलों में कम से कम दो साल की सजा सुनाए गए सांसदों और विधायकों सहित अन्य जनप्रतिनिधियों की सदस्यता रद्द हो जाएगी। ऐसा ही एक मामले में पटना हाईकोर्ट ने वर्ष 2004 में चुनाव आयोग को जेल में बंद लोगों के नाम मतदाता सूचियों से हटाने के निर्देश दिए थे, लेकिन उस समय सुप्रीमकोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के उस फैसले पर स्थगन आदेश जारी किया था। भारत की राजनीति को नई दिशा देते हुए अपने इस ऐतिहासिक फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उस स्थगन को निरस्त करते हुए पटना हाईकोर्ट के उस फैसले की पुष्टि कर दी है। यानि जेल में रहने वाले लोगों पर चुनाव लड़ने की पाबंदी के साथ वोटर लिस्ट से नाम भी हटाए जा सकते हैं।
अन्य मुद्दों पर आमसहमति की राह
इस सर्वदलीय बैठक में पहली बार यह भी देखने को मिला कि विपक्ष जिन मुद्दों पर सरकार को घेरता रहा है उन पर भी एक-एक कदम आगे बढ़ाकर आमसमिति बनाने के संकेत सामने आए। इन सकारात्मक पहल में जहां सभी दलों ने मानसून सत्र को सुचारू ढंग से चलाने सहमति जताई है। जहां तक राष्टÑीय खाद्य सुरक्षा विधेयक और भूमि अधिग्रहण विधेयक जैसे अन्य कई महत्वपूर्ण विधेयकों का सवाल है उन पर भी भाजपा समेत सभी दलों ने कमोबेश कुछ संशोधनों के साथ सहमति के साथ पारित कराने के संकेत दिये गये, ताकि इन्हें इसी सत्र में पारित किया जा सके।
मानसून सत्र के विस्तार पर चर्चा
बैठक में मानसून सत्र में 16 दिन की बैठक होगी और सरकार के पास पांच दर्जन से ज्यादा विधायी कार्य एजेंडे में होंगे, ऐसे में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने मानसून सत्र को विस्तार करने का प्रस्ताव भी रखा। इसके लिए दोनों सदनों में प्रतिपक्ष के नेताओं सुषमा स्वराज व अरूण जेटली का तर्क था कि इतने कम दिनों में इतने विधायी कार्य का निपटान संभव ही नहीं है,बल्कि नामुमकिन भी है।
02Aug-2013