शनिवार, 31 मार्च 2018

लोकसभा के साथ हो सकते हैं आधी विधानसभाओं के चुनाव!


दो चरणों में चुनाव कराने के समर्थन में बन रहा है माहौल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में चुनाव सुधार की दिशा में मोदी सरकार द्वारा एक देश-एक चुनाव की वकालत करते हुए देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव को एकसाथ कराने की कवायद की है। कुछ सियासी दलों को छोड़कर ज्यादातर दल भी निति आयोग और संसदीय समिति द्वारा दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने के फार्मूले पर सत्तारूढ भाजपा की रिपोर्ट की सहमति के बाद बन रहे माहौल के मद्देनजर ऐसी संभावना है कि यदि सर्वसम्मिति बनी तो आगामी लोकसभा चुनाव के साथ देश के आधे राज्यों की विधानसभा के चुनाव कराए जा सकते हैं।
दरअसल भाजपा के उपाध्यक्ष और राज्यससभा सदस्य विनय सहस्त्रबुद्धे के नेतृत्व वाली समिति ने एक दे-एक चुनाव पर हुई जन-बहस की एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सौंपी है, जिसमें देश के 16 विश्वविद्यालयों और संस्थानों के विशेषज्ञों द्वारा एक देश-एक चुनाव विषय पर प्रस्तुत शोधपत्र भी शामिल किये गये हैं। भाजपा की इस रिपोर्ट में पीएम मोदी के अलावा चुनाव आयोग, नीति आयोग के उस फार्मूले का समर्थन किया गया है, जिसमें कुछ राज्यों की विधानसभओं के कार्यकाल को छोटा करने और कुछ राज्यों के कार्यकाल में विस्तार करके दो चरणों में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं। गौरतलब है कि भाजपा को छोड़ अन्य राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी और सीपीआई ने एक साथ चुनाव कराए जाने पर आपत्ति जताई है। गौर करने वाली बात है कि अक्टूबर 2017 में इलेक्शन कमिश्नर ओपी रावत ने कहा था कि चुनाव आयोग सितंबर 2018 तक संसाधनों के स्तर एक साथ चुनाव कराने में सक्षम हो जाएगा, लेकिन ये सरकार पर है कि वो इस बारे में फैसला लें और अन्य कानूनी सुधारों को लागू करे।
क्या कहती है भाजपा की रिपोर्ट
प्रधानमंत्री को सौंपी गई रिपोर्ट में भाजपा ने मध्यावधि और उपचुनाव की प्रक्रिया को खारिज कर दिया है, रिपोर्ट के अनुसार देश में एक साथ चुनाव कराने से अविश्वास प्रस्ताव और सदन भंग करने जैसे मामलों में भी मदद मिलेगी। वहीं एक देश-एक चुनाव प्रणाली के तहत सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाते हुए विपक्षी पार्टियों को अगली सरकार के समर्थन में विश्वास प्रस्ताव भी लाना जरूरी होगा। ऐसे में समय से पहले सदन भंग होने की स्थिति को टाला जा सकता है। इस अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक उपचुनाव के मामले में दूसरे स्थान पर रहने वाले व्यक्ति को विजेता घोषित किया जा सकता है, अगर किसी कारणवश सीट खाली होती है। रिपोर्ट में हर साल होने वाले चुनावों के कारण जनजीवन पर पड़ने वाले असर को समाप्त करने की दिशा में देश में दो चरणों में एक साथ चुनाव कराए जाने की सिफारिश की गई है। इस रिपोर्ट में भाजपा ने निति आयोग 'एनालिसिस ऑफ साइमल्टेनीअस इलेक्शंस: द व्हाट, व्हाई एंड हाऊ' का हवाला देते हुए एक साथ चुनाव के पहले चरण में लोकसभा और कम से कम आधे राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ 2019 में कराए जाने और बाकी विधानसभाओं के फिर 2021 में बाकी राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने की सिफारिश की है।
क्या कहती है नीति आयोग की रिपोर्ट
लोकसभा व विधानसभा चुनाव के एक साथ कराने की प्रणाली पर नीति आयोग में बिबेक देबरॉय और किशोर देसाई के तैयार विमर्श-पत्र 'एनालिसिस ऑफ साइमल्टेनीअस इलेक्‍शंस: द व्‍हाट, व्‍हाई एंड हाऊ'' में सभी चुनाव एक साथ कराने का समर्थन किया गया है। इसमें भी एक साथ चुनाव कराने के लिए आधे राज्यों की सरकारों का कार्यकाल तीन से 15 महीने तक छोटा करना करने की बात कही गई है। वहीं बाकी राज्‍यों की विधानसभाओं का कार्यकाल एक साल तक बढ़ाना होगा। नीति आयोग के अनुसार एक साथ चुनाव पर लगभग 4500 करोड़ रुपये का खर्च आ सकता है। गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनावों पर 3870 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।

श्रम नियमों में बदलाव की तैयारी में सरकार

नौकरी गंवाने के बाद भी मिलेगा सकेगा पैसा
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने ईपीएफओ के सदस्यों के हित में एक बड़ा फैसला करते हुए श्रम नियमों में बदलाव करने का प्रस्ताव किया है। इसके लिए ईपीएफओ ने एक प्रस्ताव तैयार किया है, जिसमें पीएफ खाताधारकों को अग्रिम पेंशन दी जा सकेगी और नौकरी छूटने के एक माह बाद ही कर्मचारी अपने पीएफ खाते से 60 फीसदी रकम अग्रिम तौर पर निकाल सकेंगे।
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अनुसार हाल ही में केंद्र सरकार ने संगठित क्षेत्र के साथ असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को भी सामाजिक सुरक्षा के दायरे में शामिल करके पीएफ की सुविधा देने का फैसला किया है। सरकार के निर्णय के निर्णय के तहत  कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानि ईपीएफओ ने एक ऐसी योजना तैयार की है, जिसमें कर्मचारियों की नौकरी छूटने या खुद छोड़ने के बावजूद भी तीन माह तक वेतन मिलता रहेगा और नौकरी गंवाने के एक माह बाद आवेदन करके अपने पीएफ खाते से 60 फीसदी रकम अग्रिम तौर पर निकाल सकेंगे। हालांकि ईपीएफओ के इस प्रस्ताव पर अभी केंद्रीय न्यासी बोर्ड की मुहर लगना बाकी है।
क्या है प्रस्ताव
मंत्रालय के सूत्रों ने ईपीएफओ के इस प्रस्ताव में यह प्रावधान भी किया है कि यदि नौकरी छूटने के बाद कोई पीएफ खाताधारक तीन माह तक बेरोजगार रहता है तो उसे 80 फीसदी पीएफ की रकम निकालने की अनुमति होगी। वहीं अन्य संस्थान में नौकरी मिलने के बाद ऐसे कर्मचारी को नए खाते की जरूरत नहीं होगी, बल्कि उसी खाते में उसका पीएफ योगदान शुरू हो जाएगा। खासबात यह है कि इस पैसे को वापस जमा करने की जरूरत भी नहीं होगी। ईपीएफओ के इस प्रस्ताव के तहत यह भी प्रवाधान है कि यदि मौजूदा स्थिति में पीएफ फंड से नौकरी जाने के 2 माह बाद फुल एंड फाइनल सेटलमेंट होता है और खाता बंद कर दिया जाता है, तो भी उसका पीएफ खाता चालू रहेगा और अग्रिम राशि निकाली जा सकेगी और नौकरी पाने की स्थिति में इसी खाते को फिर से सक्रिय कर दिया जाएगा। यदि इस प्रस्ताव पर मुहर लगती है तो ईपीएफओ के संगठित क्षेत्र में काम कर रहे पांच करोड़ से भी ज्यादा सक्रिय सदस्यों को इस सुविधा का फायदा होगा।
न्यासी बोर्ड में होगा अंतिम फैसला
मंत्रालय के अनुसार ईपीएफओ द्वारा इस प्रस्ताव को अंतिम रूप दे दिया है, जिसे अगले महीने होने वाली ईपीएफओ के केंद्रीय न्यासी बोर्ड की बैठक में पेश किया जाएगा। मंत्रालय को उम्मीद है कि इस प्रस्ताव की बोर्ड से मंजूरी मिल जाएगी और मंजूरी मिलने के बाद नौकरी गंवाने की स्थिति में पीएफ धारकों को वेतन मिलते रहने के कारण आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ेगा। इस प्रस्ताव के तहत पीएफ खाते से रकम निकालने की स्थिति में भी उनका खाता सेवानिवृत्ति तक चलता रहेगा यानि संबन्धित कर्मचारी के खाते में सेवानिवृत्ति की स्थिति में पेंशन के रूप में पीएफ खता बना रहेगा।   
31Mar-2018

शुक्रवार, 30 मार्च 2018

वाहन प्रदूषण रोकने को लागू होगी स्क्रैप नीति!



बीस साल पुराने कॉमर्शियल वाहनों पर कसेगा शिकंजा
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।  
देश में वाहन प्रदूषण को रोकने की दिशा में केंद्र सरकार की वाहन स्क्रैप नीति को लागू करने के लिए भले ही एक पड़ाव पार हो गया है, लेकिन अभी इसमें कई बाधाओं को पार करने की चुनौती होगी। शायद इसी कारण एक अप्रैल 2020 से बीस साल पुराने कामर्शियल वाहनों के सड़को पर दौड़ाने पर पाबंदी लगाने का लक्ष्य तय किया गया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी द्वारा वाहन प्रदूषण को रोकने की दिशा में पुराने वाहनों खासकर कॉमर्शियल वाहनों पर शिकंजा कसने हेतु वाहन स्क्रैप नीति तैयार की गई थी, जिसे पिछले सप्ताह केंद्र सरकार की अंतर-मंत्रालय समूह की उच्च स्तरीय बैठक में मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन अभी इस नीति को स्क्रैप सेंटर के बारे में स्टील मंत्रालय और पर्यावरण नियमों के निर्धारण के लिए पर्यावरण मंत्रालय से हरी झंडी मिलना बाकी है, जो इस नीति में तय करने के लिए अपनी सिफारिश जारी करेगा। हालांकि उम्मीद है कि इसके लिए इन दोनों मंत्रालयों की सिफारिशें जल्द ही मंत्रालय को मिल जाएगी, जिसके बाद इस नीति के मसौदे को जीएसटी परिषद को भेजा जाएगा। मंत्रालय के अधिकारी का कहना है कि इस नीति की सैद्धांतिक मंजूरी चूंकि केंद्र सरकार की पीएमओं में सचिव की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने दी है, जिसमें नीति आयोग के अलावा संबन्धित सभी मंत्रालयों में सचिवों की सहमति शामिल है। फिर भी जरूरत पड़ी तो इस नीति को लागू करने के लिए कैबिनेट की अनुमति ली जा सकती है।
क्या हैं स्क्रैप नीति के प्रावधान
मंत्रालय के अनुसार प्रदूषण बढ़ाने का कारण बन रहे पुराने वाहनों को सड़कों से हटाने की दिशा में तैयार की गई इस वाहन स्क्रैप नीति को मिली मंजूरी में एक अप्रैल 2020 से लागू करने का निर्णय लिया गया है, जिसके तहत 20 साल पुराने कॉमशियल वाहन सड़कों पर नहीं दौड़ सकेंगे। जीएसटी परिषद से स्क्रैप किए गए वाहन के बदले नया वाहन खरीदने पर जीएसटी रेट 28 प्रतिशत की जगह 18 प्रतिशत करने का आग्रह किया गया है। पुराने वाहन को स्क्रैप के लिए देकर नया वाहन खरीदा तो दाम में 15-20 प्रतिशत तक का फायदा देने पर बल दिया जा रहा है। वहीं इसके लिए स्क्रैप में बदले जाने वाले वाहनों को वाहन मालिक को प्रमाण पत्र देने का प्रावधान भी किया गया है। मसलन गैर-पंजीकृत यानी पंजीकरण रद्द होने पर वाहनों के मालिकों को कबाड़ के हिसाब से मूल्य, जीएसटी छूट और नए वाहन की खरीदारी पर वाहन निर्माताओं से छूट देने का प्रावधान भी है।  
कई शहरों में लागू हो प्रतिबंध
मंत्रालय के अनुसार हालांकि नई दिल्ली समेत कई शहरों में इतने पुराने वाहनों को शहर की सीमा के अंदर परिचालन करने की अनुमति नहीं है। मसलन एक अंतर-मंत्रालयी समूह द्वारा लिए गए निर्णय के तहत वर्ष 2000 से पहले पंजीकृत सभी वाणिज्यिक वाहनों का पंजीकरण 2020 में नई नीति के प्रभावी होने के बाद रद्द हो जाएगा। फिर भी वाहनों से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए वाहन स्क्रैप नीति लागू करना जरूरी समझा गया है। एक अनुमान के अनुसार देशभर में पंजीकृत वाहनों में 2.8 करोड़ कॉमर्शियल वाहन ऐसे हैं जो बीस साल या उससे ज्यादा पुराने हैं।
हितधारकों का तर्क
केंद्र सरकार की सड़को से पुराने वाहनों को हटाने के लिए स्क्रैप नीति लागू करने की योजना के बारे में ट्रासपोर्टरों और अन्य हितधारको का मानना है कि नीति के तहत जिन पुराने वाहनों का पंजीकरण रद्द होगा, उनमें से ज्यादातर छोटे शहरों और देश के आंतरिक हिस्सों में परिचालन कर रहे वाहन शामिल होंगे। इंडियन फाउंडेशन ऑफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग के समन्वयक एसपी सिंह का कहना है कि  2020 से पुराने वाहनों को प्रतिबंधित से वाहन बाजार मजबूत होगा, लेकिन यह मजबूती कबाड़ वाहनों के मालिकों को दिए जाने वाले लाभ या रियासत पर निर्भर करेगी। 
30Mar-2018

अब असंगठित क्षेत्र में भी लागू होगी पीएफ सुविधा


केंद्र सरकार ने बढ़ाया पीएम रोजगार प्रोत्साहन योजना का दायरा  
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे लाने की दिशा में प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना के कार्य क्षेत्र में वृद्धि की है। सरकार के इस निर्णय से असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों को भी पीएफ की सुविधा मिलेगी, जिनके नए ईपीएफ खातों में 12 प्रतिशत रकम का योगदान सरकार द्वारा किया जाएगा।
यह जानकारी गुरुवार को केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने बताते हुए कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना (पीएमआरपीवाई) के कार्य क्षेत्र में वृद्धि के इस प्रस्ताव को मंजूरी दी हैं। इस मंजूरी के तहत केंद्र सरकार अब सभी क्षेत्रों के लिए नये कर्मचारी के ईपीएफ खातों में पहले तीन साल के लिए सरकार नियोक्ता के योगदान के साथ 12 प्रतिशत का योगदान केंद्र सरकार देगी। गंगवार ने कहा कि केंद्र सरकार ने इसके लिए प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना का दायरा बढ़ा दिया है। पहले इस स्कीम के तहत केवल संगठित क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी ही आते थे, लेकिन अब इसका फायदा असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को भी मिलना शुरू हो जाएगा। इस योजना को प्रोत्साहित करने की दिशा में ही केंद्र सरकार ने असंगठित क्षेत्र के करीब एक करोड़ कर्मचारियों के नए ईपीएफ खातों में 12 फीसदी धनराशि का योगदान देने का फैसला किया है, जिसमें सरकारी खजाने पर 6500 करोड़ से दस हजार करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा।  
क्या है पीएमआरपीवाई
मोदी सरकार ने अगस्त 2016 में रोजगार सृजन और कामगारों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने की दिशा में प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना को शुरू किया था। मंत्रालय के अनुसार इस योजना में केंद्र सरकार 15 हजार रूपये प्रति महीने तक के वेतन के साथ एक नये सार्वभौमिक खाता नंबर (यूएएन) रखने वाले नए कर्मचारियों के लिए कर्मचारी पेंशन योजना में नियोक्‍ताओं के 8.33 प्रतिशत योगदान का भुगतान कर रही है। इस योजना का दोहरा लाभ है। एक तरफ नियोक्‍ताओं को प्रतिष्‍ठानों में कामगारों के रोजगार आधार में वृद्धि करने के लिए प्रोत्‍साहन दिया जाता है, तो दूसरी तरफ बड़ी संख्‍या में कामगार ऐसे प्रतिष्‍ठानों में रोजगार पा रहे हैं। इसका एक प्रत्‍यक्ष लाभ यह है कि इन कामगारों को संगठित क्षेत्र के सामाजिक सुरक्षा लाभों की सुविधा मिल सकेगी। अब इसी प्रकार की सुविधा असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को भी मिलेगी।
ये होगा फायदा
मोदी सरकार के इस निर्णय के बाद अब संगठित क्षेत्र के कामगारों की तरह ही असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारयिों को भी सामाजिक सुरक्षा के तहत पीएफ और पेंशन की सुविधा हासिल हो सकेगी। वहीं इस योजना के प्रावधानों व सहुलितों के आधार पर लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। गौरतलब है कि अभी तक असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए सामाजिक सुरक्षा कवर का कोई प्रावधान नहीं था।
क्या है असंगठित क्षेत्र
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अनुसार असंगठित क्षेत्र में ऐसे सभी संस्थान आते हैं जो 1948 के फैक्टरी एक्ट के अंतर्गत शामिल नहीं हैं। ऐसे संस्थानों में अधिक लोग काम करते हैं, लेकिन अव्यवस्थित और अनौपचारिक उद्योग के कारण ऐसे संस्थानों में काम करने वालों का ब्यौरा सरकार नहीं रखती। केंद्र सरकार ने उद्योगवार या क्षेत्रवार फुटकर संस्थानों का थोड़ा अध्ययन कराने के बाद जिस समान्य परिस्थिति का आकलन किया है उसके मद्देनजर ऐसे संस्थानों में काम करने वाले और उनके परिजनों की हालत बद से बदतर है, जिसमें सुधार करने की दिशा में केंद्र सरकार ने ऐसे संस्थानों के कर्मचारियों को भी सामाजिक दायरे में शामिल करने की पहल की है।
30Mar-2018

गुरुवार, 29 मार्च 2018

एसस/एसटी कानून का हो रहा है दुरुपयोग



तीन सालों में 13 से 18 फीसदी हुए झूठे साबित
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट में एससी/एसटी एक्ट पर दिये गये फैसले का सियासी दलों द्वारा जारी विरोध के कारण केंद्र सरकार ने कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल करने की तैयारी कर ली है। वहीं केंद्र सरकार का दावा है कि देश में एससी/एसटी कानून का दुरुपयोग हो रहा है, जिसकी पुष्टि तीन साल में दर्ज मामलों में 13 से 18 फीसदी झूठे साबित होने से हो चुकी है।
गृहमंत्रालय ने एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजनीतिक दलों में छिड़ी बहस के बाद पिछले तीन साल के आंकड़े जारी करते हुए इस कानून के दुरुपयोग होने की पुष्टि की है। मंत्रालय के अनुसार इस मामले में आंकड़ों के तथ्य साफ जाहिर करते हैं कि पिछले तीन साल में इस कानून का कितना दुरुपयोग हुआ है, जिसमें दोनों 13 प्रतिशत से 18 प्रतिशत से ज्यादा और औसतन 16 फीसदी मामले झूठे साबति हुए हैं। आंकड़ो के मुताबिक  के कोर्ट के निर्णय के खिलाफ हैं तो वहीं दूसरी तरफ आंकड़े भी इस मामले पर कुछ तथ्य साफ तौर पर बता रहे हैं। गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि इन तथ्यों से साफ है कि एससी-एसटी एक्ट 1989 के तहत गैर जमानती मामलों के तहत झूठे मामले दर्ज कराकर कितना दुरुपयोग हो रहा है।
तीन साल में औसतन 16 फीसदी फर्जी मामले
गृह मंत्रालय के आंकड़ो के मुताबिक वर्ष 2014-16 के तीन साल के दौरान एससी/एसटी के तहत कुल 1,29,303 मामले दर्ज हुए, जिनमें 20708 यानि औसतन 16 फीसदी मामले झूठे साबित हुए। इन कुल मामलों में अनुसूचित जाति से जुडे कुल 1,19,638 मामले शामिल हैं। एससी के तहत दर्ज मामलों में 17,354 यानि 14.50 फीसदी फर्जी पाए गये, जबकि इस दौरान अनुसूचित जनजाति के तहत दर्ज कुल 9665 मामलों में जांच के बाद 3354 यानि 34.70 फीसदी झूठे साबित हुए। यदि हर साल के अलग अलग मामलों पर गौर की जाए तो वर्ष 2014 में अनुसूचित जाति के दर्ज 40300 मामलों में 6144 यानि 15.25 फीसदी मामले तथा अनुसूचित जनजाति के दर्ज कराए गये 6826 मामलों में 1265 यानि 18.54 फीसदी मामले झूठे साबित हुए हैं। इसी प्रकार वर्ष 2015 में अनुसूचित जाति के 38564 मामलों में 5866 यानि 15.22 फीसदी और अनुसूचित जनजाति से जुड़े 6275 मामलों में 1177 यानि 18.76 मामले साबित नहीं हो सके। वर्ष 2016 में भी अनुसूचित जाति के कुल 40774 मामले दर्ज हुए, जिसमें 5344 यानि 13.11 प्रतिशत मामले झूठे पाए गये। जबकि इस साल अनुसूचित जनजाति के दर्ज कराए गये 6564 मामलों में 912  यानि 13.90 फीसदी मामले झूठे साबित हुए हैं।
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पीएम मोदी से मिले सांसद
मामले को लेकर केंद्रीय मंत्री एवं लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख राम विलास पासवान और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोह के नेतृत्व में राजग के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के 18 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट करके एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम पर उच्चतम न्यायालय के फैसले पर चर्चा की। गौरतलब है कि एससी-एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई और सजा के प्रावधानों में बदलाव पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी गाइडलाइन पर फिर से विचार करने के लिए रामविलास पासवान की लोजपा ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है, जिसमें इस मामले को संवैधानिक पीठ के समक्ष भेजने की मांग की गई है। वहीं लोजपा ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर सरकार की ओर से भी एक याचिका दायर करने की अपील की है। सूत्रों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बढ़ते विरोधी स्वर के मद्देनजर केंद्र सरकार जल्द ही सुप्रीम कोर्ट मे इस मामले पर पुनरीक्षण याचिका दायर करेगी।

राज्यसभा: सचिन व रेखा समेत 40 सदस्यों की विदाई




पीएम मोदी ने दी शुभकामनाएं, हंगामे पर जताई चिंता
कुछ ने कसे तंज, तो कुछ ने बयां किया दर्द
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
राज्यसभा में अप्रैल व मई में सेवानिवृत्त होने वाले 40 सदस्यों को विदाई दी गई, जिन्हें पीएम मोदी समेत समूचे सदन ने शुभकामनाएं दी। जहां सेवानिवृत्त होने वाले सांसदों ने भी अपने अनुभव को साझा किया, वहीं कुछ सदस्यों ने एक-दूसरे दलों पर तंज भी कसे और कुछ सदस्य ऐसे भी रहे जिन्होंने अपना दर्द भी उच्च सदन में बयां किया।
संसद में बजट सत्र के दूसरे चरण में लगातार 16 दिनों तक विपक्ष के हंगामे में होम होती रही राज्यसभा में पहली बार बुधवार को सेवानिवृत्त हो रहे सदस्यों के विदाई भाषण की कार्यवाही चलाने के लिए शांति का माहौल नजर आया। इस कार्यवाही के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सदन से विदाई लेने वाले सदस्यों को शुभकामनाएं दी और संसद में हो रहे हंगामे पर चिंता जताते हुए कहा कि कार्यकाल पूरा होने से पहले ये सभी सदस्य तीन तलाक जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा में शामिल होकर इसके गवाह बनते, तो बेहद खुशी होती और उनके लिए वह यादगार पल होता। वहीं पीएम मोदी ने सदन में नए सदस्यों और पुन: निर्वाचित हुए सदस्यो का स्वागत भी किया। पीएम मोदी ने राज्यसभा के महत्व को विशेष करार देते हुए कि कि उन्हें उम्मीद है कि लोकसभा में हो रहे व्यववधान का उच्च सदन में सदस्यों को अनुसरण करने की जरूरत नहीं है। पीएम मोदी ने सेवानिवृत्त सदस्यों का आव्हान किया कि सेवानिवृत्ति के बाद भी वे भले ही सदन का हिस्सा न हो, लेकिन उनके लिए महत्वपूर्ण मुद्दों को साझा करने के लिए पीएमओ के दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे। 
विदाई है जुदाई नहीं: आजाद
उच्च सदन के सेवानिवृत्त सदस्यों के सम्मान में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि यह विदाई है, यह जुदाई नहीं है। उन्होंने कहा कि विदाई तत्कालिक है और नेता कभी रिटायर नहीं होता है। नेता संसद सदस्य न होते हुए भी देश व समाज में अपनी सेवाएं देता रहता है। आजाद ने सदन से विदाई लेने वाले सदस्यों को शुभकामनाएं दी। वहीं उन्होंने सेवानिवृत्त होने वाले सासंदों में शामिल नरेश अग्रवाल पर तंज कसते हुए कहा कि वह एक ऐसा सूरज है जो इधर डूबे, उधर निकले, इधर निकले तो उधर डूबे। आजाद की इस टिप्पणी से सदन में ठहाके लगने लगे और खुद नरेश अग्रवाल भी मुस्कराते नजर आए। हालांकि आजाद ने कहा कि उन्हें यकीन है कि वह जिस पार्टी में भी जा रहे हैं वह पार्टी उनकी क्षमता का पूरा उपयोग करेगी। आजाद ने कहा कि सांसदों ने लोकतंत्र को जिंदा रखा है, जो अपने लिए नहीं, बल्कि हम पानी, बिजली, बैंकों की लूट के लिए लड़ रहे हैं।
सुर्खियों में रहे नरेश अग्रवाल व रेणुका चौधरी
राज्यसभा से विदाई के मौके पर सपा से भाजपा में गये नरेश अग्रवाल व कांग्रेस सदस्य रेणुका चौधरी सुर्खियों में रहे। मसलन नरेश अग्रवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को धन्यवाद देते हुए कहा कि वह कई बार उनके लिए कटु शब्द कहे इसके बावजूद उन्होंने मुझे स्वीकार किया। अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने कभी अपमान सहा नहीं है और उनकी चौथी पीढ़ी राजनीति में है। भाजपा में शामिल होने पर नरेश अग्रवाल ने कहा कि उनके अंदर कुछ तो विशेषता होगी, जिसकी वजह से उनके कुछ गलत बयानों के बाद भी मुझे पार्टी में शामिल किया गया। वहीं राज्यसभा में विदाई भाषण के दौरान रेणुका चौधरी ने पुरानी यादे ताजा करते हुए कहा कि सदन में महिलाओं की भागीदारी बढ़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि महिलाओं पर आज भी सूर्पनखा जैसी टिप्पणी की जा रही है। उन्होंने सोनिया गांधी का उल्लेख करते हुए कहा कि राजनीति में उनका योगदान देश भूल नहीं पाएगा। उन्होने कहा कि हमने ऐसे-ऐसे नेता सदन में देखे हैं जो रात-दिन जनता के लिए तैयार रहते हैं।
बिना बोले जाएंगे सचिन व रेखा
राज्यसभा में विदाई लेने वालों में क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर व सिने तारिका रेखा गणेशन भी शामिल है, जो बिना सदन में बिना बोले सेवानिवृत्त हो रहे हैं। सचिन तेंदुलकर के नाम क्रिकेटर के तौर पर भले ही कई विश्व रिकॉर्ड दर्ज हों, लेकिन वे राज्यसभा में बिना कोई रिकॉर्ड बनाए विदा हो रहे हैं। अप्रैल में सचिन की राजनीतिक पिच पर पारी खत्म हो जाएगी। सचिन सदन में एक बार भी नहीं बोल सके हैं, जब बोलने का मौका मिला तो कांग्रेस उनके रास्ते का कांटा बनकर उभरी। इसी प्रकार सिने तारिका रेखा भी भले ही फिल्म जगत में छाई रही हों, लेकिन राज्यसभा में छह साल में एक भी बार नहीं बोली। ये दोनों सदस्य ऐसे रहे जिनकी सदन में उपस्थिति भी मात्र सदस्यता बचाने तक ही सीमित रही।

बुधवार, 28 मार्च 2018

कर्नाटक विधानसभा चुनाव का ऐलान



12 मई को मतदान, 15 मई को आएंगे नतीजे  
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।   
कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए पहले से ही ताकत झोंकने में लगे भाजपा एवं कांग्रेस जैसे सियासी दलों का चुनाव की तारीखों के लिए इंतजार खत्म हो गया है। मसलन मंगलवार को केंद्रीय चुनाव आयोग ने कर्नाटक विधानसभा चुनावों क लिए चुनाव कार्यक्रम का ऐलान कर दिया है। कर्नाटक में 224 सीटों पर 12 मई को मतदान कराया जाएगा, जबकि 15 मई को चुनाव के नतीजे घोषित हो जाएंगे।
मंगलवार को यहां निर्वाचन सदन में एक संवाददाता सम्मेलन में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम का ऐलान करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ओ.पी. रावत ने कहा कि 225 सदस्यीय कर्नाटक विधानसभा में 224 सीटों के लिए 12 मई को एक चरण में मतदान कराया जाएगा। कर्नाटक विधानसभा में एक सीट पर ऐंग्लो-इंडियन समुदाय से सदस्य मनोनीत किया जाएगा। चुनाव  के नतीजे 15 मई को होने वाली मतगणना के दौरान घोषित होंगे। उन्होंने बताया कि राज्य की 224 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हेतु 17 अप्रैल को अधिसूचना जारी होते ही नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाएगी ओर 24 अप्रैल तक नामांकन दाखिल किये जा सकेंगे। इसके बाद 25 अप्रैल को नामांकन पत्रों की जांच की जाएगी और 27 अप्रैल तक प्रत्याशी अपना नामांकन वापस ले सकेंगे। रावत के अनुसार 28 मई से पहले सारी चुनाव प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान चुनावी खर्च पर पूरी तरह नजर रखी जाएगी। सभी सीटों पर चुनाव के लिए वीवीपैट ईवीएम मशीन का इस्तेमाल होगा, जिसके लिए 56 हजार से ज्यादा मतदान केंद्र बनाये जाएंगे, जिनमें महिलाओं और दिव्यांगों के लिए पोलिंग बूथ पर खास इंतजाम किया गया है। वहीं सभी मतदान केंद्रों पर महिलाएं प्रबंधन का काम संभालेंगी। इस विशेष व्यवस्था के तहत चुनाव आयोग ने चुनाव प्रक्रिया में लैंगिक समानता को लागू करने और महिलाओं की अधिक रचनात्मक भागीदारी की दिशा में यह भी निर्देश दिया है कि यथासंभव सभी मतदान केंद्रों पर महिलाओं के लिए विशेष इंतजाम किए जाएं। विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में पुलिस और सुरक्षा कर्मियों सहित पूरे मतदान स्टाफ में महिलाएं होंगी।
मतदाताओं की संख्या
कर्नाटक राज्य में सभी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के मौजूदा मतदाता सूची को संशोधित करने के बाद अंतिम प्रकाशन कर दिया गया है, जिसके अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या 6.4 करोड़ में 4,96,82,357 (करीब 4.968 करोड़) मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इनमें 15.4 लाख युवा मतदाताओं की संख्या है। वर्ष 2013 के चुनाव में 4,90,06,901 (करीब 4.90 करोड़) मतदाता थे, जिसमें इस बार करीब 6.76 लाख मतदाताओं की बढ़ोतरी हुई है। कर्नाटक राज्य विधानसभा की 224 सीटों में 36 अनुसूचित जाति(एससी) और 15 अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए सुरक्षित सीट के रूप में घोषित की गई हैं।  कर्नाटक में 84 फीसदी हिंदू, 12.92 फीसदी मुसलमान, 1.87 फीसदी ईसाई और 0.72 प्रतिशत जैन हैं।
चुनाव आचार संहिता लागू
आयोग के अनुसार चुनावी तिथियों की घोषणा के साथ ही राज्य में तत्काल प्रभाव से आदर्श आचार संहिता प्रभावी रूप से लागू हो गई है। आदर्श आचार संहिता के प्रावधान केंद्र और कर्नाटक सरकार के साथ सभी राजनीतिक दलों के लिए लागू होंगे। आदर्श आचार संहिता केंद्र सरकार के लिए भी लागू होते हैं क्योंकि उसकी नीतियां और योजनाओं का संबंध राज्य से होता है।  
ये है पिछले चुनाव का गणित
कर्नाटक में पिछले वर्ष 2013 में हुए विधासभा चुनावों में कांग्रेस को 36.53 वोट प्रतिशत के साथ 122 सीटें, भाजपा को 19.89 वोट प्रतिशत के साथ 44 और जेडीएस को 20.19 प्रतिशत वोट के साथ 40 सीटें मिली थी। इसके एक साल बाद हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने मोदी लहर में राज्य की 28 सीटों में से 17 पर जीत दर्ज की थी, जबकि कांग्रेस के खाते में 9 सीट और जेडीएस को 2 सीटें मिली थी।
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कर्नाटक विधानसभा चुनाव कार्यक्रम
अधिसूचना जारी करने की तिथि                   17.04.2018 (मंगलवार)
नामांकन की तिथि                                 24.04.2018 (मंगलवार)
नामांकन जांच की तिथि                           25.04.2018 (बुधवार)
नामांकन वापस लेने की तिथि                     27.04.2018 (शुक्रवार)
मतदान की तिथि                                  12.05.2018 (शनिवार)
मतगणना की तिथि                                15.05.2018 (मंगलवार)
चुनावी कार्यक्रम संपन्न की तिथि                 18.05.2018 (शुक्रवार)
28Mar-2018