तीन सालों
में 13 से 18 फीसदी हुए झूठे साबित
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सुप्रीम
कोर्ट में एससी/एसटी एक्ट पर दिये गये फैसले का सियासी दलों द्वारा जारी विरोध के
कारण केंद्र सरकार ने कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल करने की तैयारी कर ली है।
वहीं केंद्र सरकार का दावा है कि देश में एससी/एसटी कानून का दुरुपयोग हो रहा है,
जिसकी पुष्टि तीन साल में दर्ज मामलों में 13 से 18 फीसदी झूठे साबित होने से हो
चुकी है।
गृहमंत्रालय
ने एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजनीतिक दलों में छिड़ी बहस
के बाद पिछले तीन साल के आंकड़े जारी करते हुए इस कानून के दुरुपयोग होने की
पुष्टि की है। मंत्रालय के अनुसार इस मामले में आंकड़ों के तथ्य साफ जाहिर करते
हैं कि पिछले तीन साल में इस कानून का कितना दुरुपयोग हुआ है, जिसमें दोनों 13
प्रतिशत से 18 प्रतिशत से ज्यादा और औसतन 16 फीसदी मामले झूठे साबति हुए हैं।
आंकड़ो के मुताबिक के कोर्ट के निर्णय के खिलाफ
हैं तो वहीं दूसरी तरफ आंकड़े भी इस मामले पर कुछ तथ्य साफ तौर पर बता रहे हैं। गृह
मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि इन तथ्यों से साफ है कि एससी-एसटी एक्ट 1989 के तहत
गैर जमानती मामलों के तहत झूठे मामले दर्ज कराकर कितना दुरुपयोग हो रहा है।
तीन साल में औसतन 16 फीसदी फर्जी मामले
गृह
मंत्रालय के आंकड़ो के मुताबिक वर्ष 2014-16 के तीन साल के दौरान एससी/एसटी के तहत
कुल 1,29,303 मामले दर्ज हुए, जिनमें 20708 यानि औसतन 16 फीसदी मामले झूठे साबित
हुए। इन कुल मामलों में अनुसूचित जाति से जुडे कुल 1,19,638 मामले शामिल हैं। एससी
के तहत दर्ज मामलों में 17,354 यानि 14.50 फीसदी फर्जी पाए गये, जबकि इस दौरान
अनुसूचित जनजाति के तहत दर्ज कुल 9665 मामलों में जांच के बाद 3354 यानि 34.70
फीसदी झूठे साबित हुए। यदि हर साल के अलग अलग मामलों पर गौर की जाए तो वर्ष 2014 में
अनुसूचित जाति के दर्ज 40300 मामलों में 6144 यानि 15.25 फीसदी मामले तथा अनुसूचित
जनजाति के दर्ज कराए गये 6826 मामलों में 1265 यानि 18.54 फीसदी मामले झूठे साबित हुए
हैं। इसी प्रकार वर्ष 2015 में अनुसूचित जाति के 38564 मामलों में 5866 यानि 15.22
फीसदी और अनुसूचित जनजाति से जुड़े 6275 मामलों में 1177 यानि 18.76 मामले साबित
नहीं हो सके। वर्ष 2016 में भी अनुसूचित जाति के कुल 40774 मामले दर्ज हुए, जिसमें
5344 यानि 13.11 प्रतिशत मामले झूठे पाए गये। जबकि इस साल अनुसूचित जनजाति के दर्ज
कराए गये 6564 मामलों में 912 यानि 13.90
फीसदी मामले झूठे साबित हुए हैं।
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पीएम मोदी से मिले सांसद
मामले को लेकर
केंद्रीय मंत्री एवं लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख राम विलास पासवान और सामाजिक न्याय
एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोह के नेतृत्व में राजग के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित
जनजाति वर्ग के 18 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट करके एससी/एसटी अत्याचार
निवारण अधिनियम पर उच्चतम न्यायालय के फैसले पर चर्चा की। गौरतलब है कि एससी-एसटी एक्ट
के तहत कार्रवाई और सजा के प्रावधानों में बदलाव पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी गाइडलाइन
पर फिर से विचार करने के लिए रामविलास पासवान की लोजपा ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार
याचिका दाखिल की है, जिसमें इस मामले को संवैधानिक पीठ के समक्ष भेजने की मांग की
गई है। वहीं लोजपा ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर सरकार की ओर से भी एक याचिका दायर
करने की अपील की है। सूत्रों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बढ़ते विरोधी
स्वर के मद्देनजर केंद्र सरकार जल्द ही सुप्रीम कोर्ट मे इस मामले पर पुनरीक्षण
याचिका दायर करेगी।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
पिछले
सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श गोयल और जस्टिस उदय उमेश ललित की पीठ ने अपने
फैसले में कहा था कि एससी-एसटी एक्ट के तहत तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी। इस आदेश के
तहत सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग की आशंका के मद्देनजर
उनकी गिरफ्तारी से पहले उनके विभाग के सक्षम अधिकारी की मंजरी जरूरी होगी। बाकी लोगों
को गिरफ्तार करने के लिए जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की इजाजत जरूरी होगी और इस एक्ट
के तहत शिकायत मिलने पर डीएसपी स्तर के अधिकारी प्राथमिक जांच करेंगे, जिसके बाद
ही मुकदमा दर्ज होगा और गिरफ्तारी हो सकेगी। इस आदेश पर लोजपा नेता और सांसद चिराग
पासवान की दलील है कि सख्त प्रावधानों के बावजूद दलितों पर अत्याचार बन्द नहीं हुआ
है। ऐसे में प्रावधानों में ढील खतरनाक हो जाएगी।
29Mar-2018
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