मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

दो दशक बाद फिर कम हुए सियासी योद्धा!

यूपी चुनावः लोकतंत्र में इतिहास बनने लगा चुनाव
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश की 17वीं विधानसभा के गठन के लिए इस बार पिछले दो दशक पहले की तरह चुनावी जंग लड़ने वाले प्रत्याशियों में कमी देखी गई है। पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार 28.73 फीसदी कम उम्मीदवार ही चुनाव मैदान में हैं। इस बार चुनावी मैदान में उतरे कुल 4874 प्रत्याशियों में राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और गैर मान्यता प्राप्त दलों के अलावा 30 फीसदी निर्दलीय रूप से अपनी किस्मत आजमा रहे है।
देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया चुनाव सुधार की दिशा में चुनाव आयोग द्वारा सख्ती और नये नियमों का राजनीतिक दलों पर कसते शिकंजे ने ही शायद चुनावी समर की तस्वीर बदली है। मसलन अब बदलते इस चुनावी परिवेश में उम्मीदवारों की तादात में कमी देखी जा रही है। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की 17वीं विधानसभा के लिए 403 सीटों पर हो रहे चुनावों पर ही नजर डाली जाए तो यूपी इस बार चुनाव मैदान में सियासी जंग के मैदान में पिछले 2012 के चुनाव की अपेक्षा 28.73 फीसदी उम्मीदवारों में कमी दर्ज की गई है। मसलन यूपी की 403 सीटों पर चुनाव लड़ रहे कुल 4874 प्रत्याशियों में 1461 यानि 30 फीसदी निर्दलीय प्रत्याशी शामिल है। जबकि 16वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में 1691 यानि 24.73 फीसदी निर्दलीयों समेत 6839 प्रत्याशी चुनाव लड़े थे, लेकिन 5760 यानि 84 फीसदी की जमानत जब्त हो गई थी, जिनमें 487 महिला उम्मीदवार भी शामिल थी। इससे पहले वर्ष 2007 में 6086 तथा वर्ष 2002 के चुनाव में 5533 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। पिछले दो दशक में निर्दलीय प्रत्याशियों में भी कमी आई और और उनकी विधानसभा में भी संख्या घटती आ रही है। यूपी में अब तक 16 विधानसभा चुनाव में वर्ष 1993 के चुनाव में सर्वाधिक 9716 प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमायी थी, लेकिन 8652 प्रत्याशियों की जमानत जब्त होने का रिकार्ड आज तक कायम है।
बसपा के सर्वाधिक उम्मीदवार
यूपी मिशन 2017 के चुनाव में राजनीतिक दलों के कुल 3413 प्रत्याशियों में बसपा ही एक ऐसा दल है जिसके सभी 403 सीटों पर उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे है। अन्यथा राष्ट्रीय दलों में शामिल भाजपा व कांग्रेस भी गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में है। भाजपा ने करीब 25 सीटें अपने सहयोगी दलों अपना दल और सहदेव भारतीय समाज पार्टी को दी है। जबकि कांग्रेस ने सत्तारूढ. सपा के साथ गठबंधन में 105 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इसके अलावा चैधरी अजीत सिंह की पार्टी रालोद ने चुनाव मैदान में उतरे करीब 222 दलों के मुकाबले सर्वाधिक प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है।
क्या मानते हैं विशेषज्ञ
चुनावी जंग में योद्धाओं की घटती संख्या के बारे में राजनीतिकारों का मानना है कि यह चुनाव आयोग के सख्त नियमों और नई व्यवस्था का परिणाम है जिसमें अब हरेक व्यक्ति के लिए चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटाना संभव नहीं है। चुनाव सुधार की दिशा में चुनाव प्रचार, चुनावी खर्च और अन्य कई तरह की बंदिशों की जकड़ में आई चुनावी व्यवस्था में यह बात तो सामने आई है कि प्रत्याशियों के खर्चो में भी बेहताशा कमी आई है यानि चुनाव अब इतने खर्चीले नहीं रह गये जिस तरह प्रत्याशी पहले चुनाव में दिल खोलकर खर्च करता रहा है। हालांकि कुछ जानकार इस बार नोटबंदी का असर भी बता रहे हैं, लेकिन दो दशक पूर्व 1996 के यूपी चुनाव में 2031 निर्दलीयों समेत इस बार से भी कम 4429 प्रत्याशी चुनाव लड़े थे तो उस समय तो आर्थिक तंगी का भी सवाल नहीं था। इसलिए नोटबंदी का तर्क कोई मायने नहीं रखता।

सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

यूपी विधानसभा में बढ़ सकता है दागियों का ग्राफ

यूपी में 313 सीटों पर आए 17 फीसदी अपराधिक छवि वाले नेता
करीब 32 फीसदी अमीरों ने भी दांव पर लगाई अपनी किस्मत
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की विधानसभा के लिए आज सोमवार को संपन्न हुए पांचवे चरण के चुनाव में 403 में से 313 सीटों पर 3673 प्रत्याशी अपनी किस्मत ईवीएम में कैद करा चुके हैं, जिनमें 1784 यानि 48.58 फीसदी दागियों और अमीरों ने दांव आजमाया है। चुनावी जंग में अपनी किस्मत आजमाते ऐसे प्रत्याशियों से ऐसी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस बार यूपी विधानसभा में दागियों और अमीरों का ग्राफ बढ़ेगा।
यूपी के पहले पांच चरणों में कुल 313 सीटों पर अपनी किस्मत आजमा चुके 3673 उम्मीदवारों में प्रमुख दलों भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद, सीपीआई, सीपीआईएम, राकांपा के प्रत्याशियों के अलावा 1288 यानि 35.1 फीसदी प्रत्याशियों ने पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त दलों के बैनर पर चुनाव लड़ा है, जबकि इन पांच चरणों में 1146 यानि 31.20 फीसदी निर्दलीय रूप से अपनी किस्मत आजमा रहे है। जिन प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में कैद हो चुका है उनमें 365 यानि 9.94 फीसदी महिलाएं भी शामिल हैं। इनमें शामिल 618 यानि 16.83 फीसदी दागियों और 1166 यानि 31.75 फीसदी अमीरों का दांव इस बार यूपी विधानसभा की तस्वीर दागदार कर सकता है। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो गरीबों के हितों और कानून व्यवस्था दुरस्त करने के दावे कर सत्ता में आने का प्रयास कर रहे राजनीतिक दल ऐसे उम्मीदवारोें के सहारे कैसे साफ-सुधरी सरकार दे सकते हैं। राजनीतिक जानकारों का तो यहां तक कहना है कि यदि किसी तरह ईवीएम में अपनी किस्मत कैद करा चुके संगीन मामलों में लिप्त 82 फीसदी यानि 500 उम्मीदवारों में आधे भी जीतते हैं तो उत्तर प्रदेश का भविष्य किस दिशा में जाएगा यह वक्त ही बता सकेगा।
81 फीसदी पर संगीन संगीन मामले
उत्तर प्रदेश में पिछले चुनाव में 16वीं विधानसभा के गठन के लिए हुए चुनाव में 403 सीटों पर विभिन्न दलों ने 759 दागियों पर दांव खेला था, जिनमें से सपा के 111 समेत कुल 189 अपराधिक छवि वाले विधायक निर्वाचित हुए थे। इस बार अभी तक पांच चरणों की 313 सीटों पर 618 दागी उम्मीदवार अपनी किस्मत ईवीएम में कैद करा चुके हैं, जिनमें 500 यानि करीब 81 फीसदी ऐसे दागी हैं जिनके खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार, अपहरण जैसे संगीन मामलों में मुकदमें दर्ज हैं। मसलन सात चरणों में होने वाले चुनावों में आज सोमवार को 51 सीटों पर हुए चुनाव समेत पांच चरणों में 313 सीटों के लिए ईवीएम में अपनी तकदीर कैद करा चुके 3673 प्रत्याशियों में ऐसे दागी उम्मीदवार भी शामिल हैं।
दागियों से ज्यादा धनकुबेर
उत्तर प्रदेश की विधानसभा के लिए अभी तक पांच चरणों के संपन्न हुए चुनावों में सियासी दलों ने 1166 यानि करीब 32 फीसदी करोड़पति प्रत्याशियों पर दांव खेला है। पहले चरण में 73 सीटों पर 839 उम्मीदवारों में से 302 यानि 36 फीसदी, तो दूसरे चरण के चुनाव में भी 721 प्रत्याशियों में 36 फीसदी यानि 256 करोड़पति, तीसरे चरण में 826 में से 250, चौथे चरण के चुनाव में 680 में से 189 तथा पांचवे चरण में 607 में 168 करोड़पति प्रत्याशी चुनावी महासंग्राम का हिस्सा बन चुके हैं। पांचों चरणों के चुनाव में बसपा ने सबसे ज्यादा 268, भाजपा ने 246, सपा ने 194, रालोद ने 84 व कांगे्रस ने 62 धनकुबेरों को प्रत्याशी बनाकर चुनावी दांव खेला है। जबकि 142 करोड़पति प्रत्याशी निर्दलीय रूप से अपनी किस्मत आजमाकर यूपी विधानसभा में दाखिल होने का प्रयास कर चुके हैं।

रविवार, 26 फ़रवरी 2017

यूपी चुनाव: पांचवे चरण में दिग्गजों का लिटमस टेस्ट

 यूपी चुनाव: पांचवे चरण में 51 सीटों पर आज पडेंगे वोट
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
यूपी में कल सोमवार को पांचवे चरण के लिए 11 जिलों की 51 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनाव में 607 प्रत्याशियों की तकदीर का फैसला करने के लिए करीब 1.82 करोड़ मतदाता वोटिंग करेंगे। इस चरण में करीब दर्जनभर सियासी दिग्गजों की किस्मत दांव पर होगी। इनमें सपा सरकार के केबिनेट मंत्री भी शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश की 403 सदस्यीय विधानसभा सीटों में से पहले चार चरणों में 262 सीटों के संपन्न हुए चुनाव के बाद अब कल 27 फरवरी सोमवार को पांचवे चरण में 51 सीटों के लिए मतदान होगा। इस चरण में अवध के आठ और पूर्वांचल के तीन जिलों की 51 सीटों पर खासकर भाजपा की रणनीति सपा के गढ़ को ध्वस्त करने की है। हालांकि बसपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन इस गढ़ को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक चुका है, लेकिन रालोद और क्षेत्रीय दल भी वोट काट बनकर बड़े दलों के मंसूबों पर पानी फेर सकते हैं। चुनाव आयोग ने पुराने अनुभव के आधार पर हर विधानसभा क्षेत्र में कड़े सुरक्षा प्रबंध कराकर सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। खास बात है कि प्रमुख दलों ने अवध और पूर्वांचल में जातिगत समीकरण के आधार पर अपने ऐसे प्रत्याशी उतारे हैं, जिन बिरादरियों का इस क्षेत्र में दबदबा बताया जाता है।
इन दिग्गजों का भी लिटमस टेस्ट
यूपी चुनाव के इस चरण में अखिलेश सरकार के मंत्रियों में अमेठी सीट पर गायत्री प्रसाद प्रजापति, अयोध्या से पवन पांडेय, अकबरपुर से राममूर्ति वर्मा, महादेवा सुरक्षित क्षेत्र से रामकरन आर्य ,तरबगंज क्षेत्र से विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह, मिल्कीपुर से अवधेश प्रसाद, जलालपुर से शंखलाल मांझी, गैंसड़ी सीट से शिव प्रताप यादव और मटेरा सीट पर यासर शाह की किस्मत दांव पर होगी। जबकि यूपी विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय, भाजपा सांसद ब्रजभूषण सिंह के पुत्र प्रतीक भूषण सिंह, पूर्व मंत्री राजकिशोर सिंह, योगेश प्रताप सिंह व उमेश्वर पांडेय के अलावा बसपा प्रदेश अध्यक्ष रामअचल राजभर, बसपा सरकार में मंत्री रहे लालजी वर्मा और पीस पार्टी मुखिया डॉ. अय्यूब जैसे दिग्गज नेताओं की अग्नि परीक्षा होनी है।
राहुल व वरुण की प्रतिष्ठा भी दांव पर
सोमवार को होने वाले चुनाव में जहां कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र अमेठी और उनके चचेरे भाई वरुण गांधी के संसदीय क्षेत्र सुलतानपुर की विधानसभा सीटें भी शामिल हैं। खासकर अमेठी सीट पर अखिलेश सरकार के चर्चित कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति अमेठी राजघराने के वारिस व कांग्रेस सांसद संजय सिंह की दोनों पत्नियों के साथ त्रिकोणीय दंगल में उलझे हुए हैं। मसलन सपा के मुकाबले जहां गठबंधन के बावजूद कांग्रेस के टिकट पर सांसद संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह चुनाव मैदान में हैं तो वहीं उनकी पहली पत्नी गरिमा सिंह को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है।

पूर्वांचल फतह करने को भाजपा की खास रणनीति!

सहयोगी दलों के जरिए सपा के गढ़ में सेंध
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश विधानसभा के सात चरणों में हो रहे चुनावों में चार चरण के 262 सीटों पर पूरे हुए मतदान के बाद अब पांचवे चरण में 11 जिलों की 51 सीटों पर 27 फरवरी को वोटिंग होनी है। पूर्वांचल के इन तीनों चरणों में बाकी सभी 141 सीटों को जीतने के लिए भाजपा ने खास तैयारी के साथ मास्टर प्लान तैयार किया है! सूत्रों की माने तो इस सियासी मास्टर प्लान में भाजपा की पूर्वांचल फतेह के लिए तय की गई खास रणनीति में राजभर और कुर्मी वोटबैंक में सेंधमारी करना बताया जा रहा है। इसी रणनीति के तहत भाजपा ने अपने सहयोगी दलों अपना दल और भारतीय समाज पार्टी को पूर्वांचल में 20 सीटें दी हैं।
ऐसे राजभर वोट साधने का प्रयास
दरअसल यूपी के पूर्वांचल में राजभर वोट ऐसा है जो करीब-करीब हर सीट पर अपना प्रभाव रखता है। राजभर जाति का वोट पूर्वांचल के मऊ, बलिया,गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिजार्पुर, देवरिया, आजमगढ़, अंबेडकरनगर,गोरखपुर, कुशीनगर, सोनभद्र, मिजार्पुर सहित कई जिलों पर अपना प्रभाव रखता है। इसी रणनीति के तहत भाजपा ने पूर्वांचल को ध्यान में ओम प्रकाश राजभर की पार्टी भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है। गठबंधन के तहत भासपा को 9 सीटें दी गई हैं। राजभर जाति के वोटों को लुभाने के लिए भाजपा ने अपने कोटे से सपा पूर्व राज्यमंत्री अनिल राजभर को शिवपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया है। इसके अलावा मऊ से हरिनारायण राजभर सांसद भी हैं। राजभर वोटों की घेरेबंदी के लिए केंद्र सरकार ने राजभर जाति के राजा सुहैलदेव के नाम पर गाजीपुर से दिल्ली राजा सुहैलदेव एक्सप्रेस भी चलाया है।
अपना दल का सहारे कुर्मियों पर नजर
पूर्वांचल में कुर्मी वोटर भी एक फैक्टर है। वाराणसी, मिजार्पुर, जौनपुर,इलाहाबाद, मछलीशहर, सोनभद्र, चंदौली, गाजीपुर, गोरखपुर और प्रतापगढ़ सहित कई जिलों में खासा प्रभाव रखते हैं। ओबीसी जातियों में यादव के बाद कुर्मी वोटर ही दूसरी सबसे बड़ी जाति है। भाजपा ने कुर्मी वोटरों को लुभाने के लिए अपना दल के साथ गठबंधन किया है। केंद्र की मोदी सरकार में अनुप्रिया पटेल मंत्री भी हैं। इसके अलावा भाजपा के कद्दावर कुर्मी नेता ओम प्रकाश सिंह के बेटे अनुराग सिंह को चुनार से टिकट भी दिया गया है।
केशव के सहारे कोईरी
पूर्वांचल में यादव, कुर्मी के बाद तीसरी सबसे बड़ी ओबीसी कोइरी(कुशवाहा, मौर्या) है। बीजेपी ने कोइरी वोटों के लिए पहले ही केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। इसके अलावा बसपा से आए स्वामी प्रसाद मौर्या और उनके बेटे को टिकट दिया है। कोइरी जाति का प्रभाव वाराणसी,चंदौली, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर, महाराजगंज, कुशीनगर, फूलपुर और इलाहाबाद सहित कई जिलों में है। इन जिलों में कोइरी वोट हराने और जीताने का माद्दा रखता है।
अब होगी असली परीक्षा
यूपी की 403 में से 262 सीटों पर 4 चरणों के मतदान के बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। यानि अगले तीन चरणों में राज्य के जिन 141 सीटों के लिए चुनाव होने हैं, उनमें से 60 फीसदी पर सपा काबिज है। मुस्लिम और यादव के साथ अन्य पिछड़ा वर्ग की बाकी जातियों के साथ गठजोड़ कर 2012 में सपा ने इन इलाकों में जबरदस्त प्रदर्शन किया था। बसपा ने भी इन इलाकों में अपनी ठीक-ठाक मौजूदगी बना रखी है, लेकिन दलित और अति पिछड़े वर्ग के गठजोड़ में पड़ चुकी दरार बसपा के लिए बड़ी चुनौती दिख रही है।

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यूपी: पांचवे चरण का 27 फरवरी को होगा 51 सीटों पर मतदान 
उत्तर प्रदेश में पांचवें चरण में 27 फरवरी को होने वाले चुनाव के लिए चुनाव प्रचार अभियान शनिवार शाम को थमने से पहले पूर्वांचल में बनाई गई रणनीतियों के तहत सभी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा ने पूर्वांचल इलाके में सियासी जंग जीतने के लिए जो नीति बनाई है, वह अन्य दलों पर भारी पड़ सकती है। पांचवे चरण में विभिन्न दलों के दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
चुनाव आयोग ने पूर्वांंचल की परंपरागत सियासत और चुनावी अनुभव के मद््देनजर कड़े सुरक्षा प्रबंध के साथ चुनाव कराने की सभी तैयारियां पूरी कर ली। उत्तर प्रदेश की 403 सीटों में से पहले चार चरणों में 262 सीटों पर हुए चुनाव के बाद अब बाकी 141सीटों पर अगले तीन चरणों के चुनाव सूबे के पूर्वांचल इलाके में होने हैं। पांचवे चरण में 27 फरवरी को पूर्वांचल के 11 जिलों की 51 सीटों पर वोट डाले जाने हैं। खास बात है कि सियासी जंग जीतने के इरादे से वैसे तो सभी दलों के स्टार प्रचारकों ने भी इन्हीं क्षेत्रों में डेरा डाल रखा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, बसपा मुखिया मायावती और सपा सरकार के मंत्री आजम खां समेत कई दिग्गजों ने धुआंधार सभाएं करके हर हथकंडों के साथ चुनाव प्रचार के आखिरी दिन तक पूरी ताकत झोंकी है। गौरतलब है कि पूर्वांचल इलाके की 60 फीसदी सीटों पर सपा काबिज है। मुस्लिम और यादव के साथ अन्य पिछड़ा वर्ग की बाकी जातियों के साथ गठजोड़ कर 2012 में सपा ने इन इलाकों में जबरदस्त प्रदर्शन किया था। बसपा ने भी इन इलाकों में अपनी ठीक-ठाक मौजूदगी बना रखी है लेकिन दलित और अति पिछड़े वर्ग के गठजोड़ में पड़ चुकी दरार बसपा के लिए बड़ी चुनौती दिख रही है।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

यूपी चुनाव: धन व बाहुबल में सबसे आगे बसपा!

पांचवे चरण में उतरे 117 दागी व 168 करोड़पति उम्मीदवार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पहले चार चरणों के संपन्न हुए चुनाव के बाद 27 फरवरी को होने वाले पांचवे चरण में 51 सीटों पर भी सभी दलों ने 168 अमीरों और 117 दागियों पर दांव खेला है। खास बात यह है कि अभी तक यूपी की सत्ता तक पहुंचने के प्रयास में बहुजन समाज पार्टी अमीरों और दागियों का सहारा लेने में सबसे आगे है।
देश में चुनाव सुधार की दुहाई देते आ रहे सभी राजनितिक दल भले ही चुनाव प्रचार में गरीबों के हितों और कानून व्यवस्था दुरस्त करने का वादा करके चुनाव मैदान में हों, लेकिन हकीकत है कि कोई भी दल यूपी जैसे सूबे की सत्ता की खातिर अमीरों और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों का सहारा लेने में पीछे नहीं है। धनबल और बाहुबल के सहारे चुनावी दांव खेलने में मायावती के नेतृत्व वाली बसपा सबसे आगे हैं, जिसने 27 फरवरी को पूर्वांचल के 11 जिलों की 51 सीटों पर होने वाले विधानसभा चुनाव में उतरी छह राष्टÑीय और चार क्षेत्रीय दलों समेत 75 राजनीतिक पार्टियों की ओर से बसपा ने सबसे ज्यादा दागियों और अमीरों को टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा है। पांचवे चरण में इन सीटों पर 200 निर्दलीयों समेत अपनी किस्मत आजमा रहे कुल 617 प्रत्याशियों में 117 के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, जिनमें 96 के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, बलात्कार, लूट व अवैध वसूली जैसे संगीन धाराओं में मामले चल रहे हैं। वहीं 168 प्रत्याशी करोड़पतियों की फेहरिस्त में शामिल हैं।
किसके कितने दागी
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पांचवे चरण के चुनाव में जिन 617 प्रत्याशियों का फैसला होना है, उनमें आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 117 प्रत्याशियों में 51 में से 23 दागी प्रत्याशी बसपा के हैं, जिसके बाद भाजपा व उसके सहयोगियों ने ऐसे 21 प्रत्याशियों पर दांव खेला है। इसके अलावा सपा के 17, रालोद के आठ, कांग्रेस तीन और 19 निर्दलीय प्रत्याशी भी दागियों की सूची में हैं। जबकि संगीन मामलों में लिप्त 96 प्रत्याशियों में बसपा के 19, भाजपा के 14, सपा के 12, रालोद के सात, कांग्रेस के दो के अलावा 17 निर्दलीय प्रत्याशी शामिल हैं। इनमें से नौ पर हत्या, 24 पर हत्या का प्रयास, चार पर अपहरण तथा आठ के खिलाफ महिलाओं के प्रति अपराध करने के मामले विचाराधीन हैं।

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

सड़क की खामियों पर निर्माताओं की खैर नहीं!

हादसे में मौत का कारण बनने पर दर्ज होगा मुकदमा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में निरंतर बढ़ते सड़क हादसों से चिंतित केंद्र सरकार सड़क परियोजनाओं में सुरक्षा के लिहाज से  अंतर्राष्‍ट्रीय मानकों के साथ तकनीक के इस्तेमाल को अनिवार्य बना चुकी है। सरकार ने सड़कों के निर्माण की गुणवत्ता और उसके रखरखाव के लिए सीधे निर्माण एजेंसियों को जिम्मेदार बनाया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार संसद में लंबित नए मोटर वाहन विधेयक में भी सड़क हादसों पर अंकुश लगाने की दिशा में केंद्र सरकार ने ऐसे प्रावधान लागू किये हैं, जिसमें सुरक्षित सड़क निर्माण के बावजूद यदि सड़क हादसें में कोई मौत हो जाती है और उस हादसे का कारण सड़क की गुणवत्ता में कमी या खराब सड़क पाया गया तो सीधेतौर पर इसकी जिम्मेदारी सड़क निर्माण एजेंसी की होगी। मसलन एजेंसी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत मामला दर्ज किया जाएगा। मसलन सड़क पर गड्ढे और दोषपूर्ण डिजाइन के कारण होने वाली दुर्घटनाओं के मामले को इस दंडात्मक दायरे में शामिल करने का फैसला किया गया है। ऐसी धारा को नए मोटर वाहन संशोधन विधेयक में शामिल करने के लिए संसदीय स्थायी समिति ने भी सिफारिश की है। परिवहन संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने दोषपूर्ण सड़क डिजाइन, निर्माण और रखरखाव के लिए निर्माण एजेंसियों और ठेकेदारों को जवाबदेह बनाने के साथ उनके खिलाफ दंड के प्रावधान लागू करने की सिफारिश भी की है। सड़क मंत्रालय ने समिति की सिफारिशों को मंजूर कर लिया गया है। मंत्रालय ने शराब के नशे में वाहन चलाने पर मौत होने के मामले को आईपीसी के तहत गैर इरादतन हत्या का मामला मानना मंजूर कर लिया है। हालांकि ऐसे मामलों को हत्या के जुर्म के दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन इसमें 10 साल की जेल की सजा या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया जा रहा है।
समिति के सुझाव अहम
संसदीय समिति के एक सदस्य की माने तो संसद में पेश किए गए मोटर वाहन संशोधित विधेयक में सड़कों के दोषपूर्ण डिजाइन और खराब रखरखाव के कारण होने वाली दुर्घटनाओं के मामले शामिल नहीं थे, जिनके कारण ज्यादा सड़क हादसे होते हैं। समिति के अनुसार हालांकि विधेयक में यातायात नियमों के उल्लंघन के मामलों में जुर्माने और सजा के सख्त प्रावधान किये गये हैं। सड़क मंत्रालय द्वारा तैयार किये गये सड़क परिवहन सुरक्षा विधेयक के मसौदे मेें समिति की सड़क की खामियों के कारण सड़क हादसे का जिम्मेदार निर्माण ऐजेंसी को ठहराने की सिफारिश को अहम मानते हुए विधेयक में बदलाव किया है। इसके तहत किये गये प्रावधान में निर्माण एजेंसियों पर 10 लाख रुपए प्रति व्यक्ति की मौत या दिव्यांग होने पर जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान किया गया है, जिनकी खराब डिजाइन के कारण हादसे होते हैं।

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

तो दागी-कुबेर मुहरों से सजेगी यूपी विधानसभा!

403 सीटों में 262 पर किस्मत आजमा चुके 1478 अमीर व दागी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश की विधानसभा के लिए अब तक 262 सीटों पर हुए चुनाव में दागियों और करोड़पति प्रत्याशियों के बढ़ते ग्राफ को देखते हुए तो लगता है कि इस बार उत्तर प्रदेश की विधानसभा को दागी और अमीरों की मुहरों से सजाने की सियासी कवायद चल रही है। मसलन पहले चार चरण में करीब 65 फीसदी सीटों पर हुए चुनाव में 1478 अमीरों व दागियों पर दांव खेला गया है, जो ईवीएम में अपनी किस्मत कैद करा चुके कुल 3066 प्रत्याशियों में शामिल हैं।
देश में सभी प्रमुख सियासी दलों की नजरे 403 सीटों वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा पर टिकी हुई हैं, जिसके लिए राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और गैर मान्यता प्राप्त दलों ने 17वीं विधान सभा के गठन में अपनी मोहरों को फिट करने के इरादे से दागियों और अमीर प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारने में कोई हिचक नहीं की है। यानि सात चरणों में होने वाले चुनावों में आज गुरुवार को 53 सीटों पर हुए चुनाव समेत चार चरणों में 262 सीटों के लिए प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम के ताले में बंद हो चुकी है। अब तक इन सीटों के लिए अपनी किस्मत आजमा चुके 3066 उम्मीदवारों में प्रमुख दलों भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद, सीपीआई, सीपीआईएम, राकांपा के प्रत्याशियों के अलावा 1099 प्रत्याशियों को पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त दलों ने भी चुनाव लड़ाया है, जबकि इन चार चरणों में 928 निर्दलीय रूप से अपनी किस्मत आजमा रहे है। इन सबके अलावा दिलचस्प पहलू यह है कि चुनावी सभाओं में यूपी के गरीबों के हित साधने के अलावा प्रदेश की कानून व्यवस्था को दुरस्त करने के लिए एक-दूसरे दलों पर निशाने साधे जा रहे हैं, लेकिन हरेक दल ने यूपी विधानसभा में सत्ता की खातिर अमीर और दागी मोहरों पर दांव खेला है। मसलन पहले चार चरणों में 262 सीटों के लिए संपन्न हुए चुनाव में जिन प्रत्याशियों का भाग्य कैद हो चुका है उनमें 325 महिलाएं भी शामिल हैं, लेकिन वहीं 480 दागियों और 998 अमीरों का दांव बदलते राजनीतिक परिदृश्य की तस्वीर पेश कर रहा है।
बसपा ने दी ज्यादा धनकुबरों को तरजीह
उत्तर प्रदेश की विधानसभा में बेशकिमती मुहरों के रूप में धनकुबेरों की संख्या भी कम नहीं है। अभी तक चार चरणों में 998 करोड़पति प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत पर दांव खेला है। पहले चरण में 73 सीटों पर 839 उम्मीदवारों में से 302 यानि 36 फीसदी, तो दूसरे चरण के चुनाव में भी 721 प्रत्याशियों में 36 फीसदी यानि 256 करोड़पति, तीसरे चरण में 826 में से 250 और गुरुवार को संपन्न हुए चौथे चरण के चुनाव में 680 में से 189 करोड़पति प्रत्याशी चुनावी महासंग्राम का हिस्सा बन चुके हैं। चारों चरणों के चुनाव में बसपा ने सबसे ज्यादा 225, भाजपा ने 208, सपा ने 162, रालोद ने 75 व कांगे्रस ने 55 धनकुबेरों को प्रत्याशी बनाकर चुनावी दांव खेला है। जबकि 128 करोड़पति प्रत्याशी निर्दलीय रूप से अपनी किस्मत आजमाकर यूपी विधानसभा में दाखिल होने का प्रयास कर चुके हैं।
ये जीते तो कैसी होगी विधानसभा
चुनाव सुधार के लिए अपराधमुक्त राजनीति की दुहाई देने वाले सभी सियासी दलों की रणनीति अमीरों और दागियों को गले लगाने की रही है। यहीं कारण है कि अब तक चार चरणों के चुनाव में अपनी किस्मत ईवीएम में कैद करा चुके प्रत्याशियों में 1478 अमीर और दागी शामिल हैं। जहां तक 480 दागियों का सवाल है उनमें 404 प्रत्याशियों के खिलाफ तो हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, डकैती, बलात्कार, अपहरण, अवैध वसूली जैसे संगीन अपराध करने के मामले अदालतों में विचाराधीन हैं। सबसे ज्यादा 86 प्रत्याशियों के साथ बसपा पहले पायदान पर है, जबकि दूसरे नंबर पर चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे 85 भाजपा, और 88 निर्दलीय उम्मीदवार हैं। जबकि सपा ने 62, रालोद ने 39 और कांग्रेस ने 25 दागियों पर अपना चुनावी दांव खेला है।

आज लिखी जाएगी 680 प्रत्याशियों की तकदीर!

यूपी: चौथे चरण में 53 सीटों पर मतदान आज
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश में चौथे चरण में 12 जिलों की 53 सीटों पर कल गुरुवार को वोट डालें जाएंगे, जिनमें बुंदेलखंड के सात जिलों की 19 सीटें भी शामिल हैं। इस चरण के दौरान करीब 1.85 करोड़ मतदाता 680 प्रत्याशियों के सियासी भविष्य का फैसला तय करेंगे।
उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से तीन चरणों के दौरान 209 सीटों पर चुनाव कराए जा चुके हैं। चौथे चरण में कल गुरुवार को 12 जिलों की 53 सीटों पर मतदान होगा, जिसमें 61 महिलाओं समेत 680 प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला होना है। इस चरण में करीब 1.85 मतदाताओं के चक्रव्यूह में करीब 84.5 लाख महिलाएं और 1034 तीसरे लिंग के मतदाता शामिल हैं। यूपी चुनाव के इस चरण की इन 53 सीटों ने लिए चुनाव मैदान में उतरे 680 प्रत्याशियों में बसपा के 53, सपा-कांग्रेस गठबंधन के 58,(सपा-33 व कांग्रेस-25), भाजपा के 48, रालोद के 39, सीपीआई के 17,सीपीएम व राकांपा के तीन-तीन प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। जबकि 260 प्रत्याशी छोटे दलो और 199 निर्दलीय प्रत्याशी भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इलाहाबाद उत्तरी सीट पर सबसे ज्यादा 26 प्रत्याशी, तो खागा(फतेहपुर), मंझनपुर(कौशाम्बी) और कुंडा(प्रतापगढ़) में सबसे कम छह-छह प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं।
इस आंकड़े से हलकान सियासी दल
चौथे चरण के चुनाव में गुरुवार को उत्तर प्रदेश की 53 सीटों में हो रहे चुनाव में बुंदेलखंड क्षेत्र की भी 19 सीटें शामिल हैं। बुंदेलखंड का सूखा और गरीबी किसी से छिपा नहीं हैं तो इसलिए इस क्षेत्र में गरीबी के कारण पलायन करके अन्य शहरों में रोजी-रोटी कमाने वाले लाखों मतदाताओं के चुनाव में दिलचस्पी न लेने से भी सभी सियासी दल हलकान हैं। सियासी दलों की धड़कने बढ़ने का यह भी कारण है कि बुंदेलखंड में कुछ सीटों पर हार-जीत का फैसला बहुत कम अंतर से होता है। ऐसे में यदि इस क्षेत्र के इलाके से रोजगार के लिए बहार गये श्रमिक मतदान करने नहीं आते तो चुनावी समीकरण बदलने से इंकार नहीं किया जा सकता। एक रिपोर्ट के अनुसार बुंदेलखंड इलाके में शामिल बांदा जिले से 7.4 लाख, झांसी से 5.6 लाख, जालौन से 5.4 लाख, हमीरपुर से 4.2 लाख, ललितपुर से 3.8 लाख, चित्रकूट से 3.4 लाख तथा महोबा से 3 लाख लोग रोजगार के लिए बाहर गये हुए हैं।
इन सीटों पर होगा चुनाव
चौथे चरण में प्रतापगढ़ जिले की सात, कौशाम्बी की तीन, इलाहाबाद की 12, फतेपुर तथा रायबरेली की छह-छह विधानसभा के अलावा बुंदेलखंड इलाके के जिले जालौन की तीन, बांदा व झांसी की चार-चार, ललितपुर, मोहबा, हमीरपुर तथा चित्रकूट की दो-दो विधान सभा सीटों पर मतदान होगा। इनमें पांच सुरक्षित सीटों बांदा की नरैनी, हमीरपुर की राठ, जालौन की उरई सदर, ललितपुर की महरौनी और झांसी की मउरानीपुर सीट शामिल है।

बागी बन सकते हैं सपा की मुश्किलों का सबब!

सपा ने शुरू की निष्कासन की कार्यवाही
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
यूपी की सत्ता में वापसी करने के इरादे से कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनावी जंग में उतरने वाली सत्तारूढ समाजवादी पार्टी के लिए बागी उम्मीदवार अखिलेश की मुश्किलों का सबब बनते नजर आ रहे हैं। मसलन गठबंधन के बावजूद करीब डेढ़ दर्जन सीटों पर सपा व कांग्रेस के प्रत्याशी आमने-सामने चुनावी कुश्ती लड़ रहे हैं। हालांकि सपा ने पार्टी के बागी हुए नेताओं पर निष्कासन की कार्यवाही भी शुरू की, लेकिन इससे सपा की सियासी मुश्किलों में इजाफा होने के ज्यादा आसार हैं।
देश के सबसे बड़े सूबे उत्त्तर प्रदेश की 403 सीटों में गठबंधन के तहत सपा 298 तथा कांग्रेस 105 सीट पर चुनावी तालमेल के लिए सहमति बनी थी। गठबंधन से पहले ही सपा अधिकांश सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिये थे, जिनमें गठबंधन के तहत कांग्रेस को दी गई करीब दो दर्जन विधानसभा सीटें भी शामिल रही। ऐसे में अधिकांश सपा के अधिकृत प्रत्याशियों ने नामांकन भी दाखिल कर दिये थे। जो सीटें कांग्रेस को दी गई वहां सपा ने कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन का फरमान दिया। सपा के इस फरमान से नाराज करीब दो दर्जन सपा नेताओं ने पार्टी से बगावत करते हुए चुनावी जंग जारी रखी और अभी तक तीन चरणों में दस सीटें ऐसी रही जहां कांग्रेस और सपा के प्रत्याशियों का आमने-सामने मुकाबला हुआ। बाकी बचे चरणों में भी ऐसी स्थिति से सपा जूझ रही है, टिकट कटने से बागी हुए सपा के अधिकृत प्रत्याशी चुनावी दंगल के अखाड़े में सियासी कुश्ती लड़ने पर अड़िग हैं। यही नहीं सपा की मुश्किलों का सबब ऐसे सपा नेता भी बने हुए हैं, जो सपा परिवार के विवाद में पिसने के कारण सपा के अधिकृत प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में बागी होकर चुनौती दे रहे हैं। ऐसे नेताओं में अखिलेश सरकार के मंत्री और विधायक भी शामिल हैं।
आज पांच सीटों पर मैत्री मुकाबला
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में चौथे चरण में 53 सीटों में से सपा-कांग्रेस गठबंधन के 58 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं यानि पांच सीटें ऐसी हैं, जहां सपा और कांग्रेस दोनों दलों के उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इससे पहले हुए तीन चरणों में गठबंधन ऐसी दस सीटों पर आपसी जोर आजमाइश कर चुका है। मसलन सपा-कांग्रेस गठबंधन के बीच प्रत्याशियों को लेकर सही तालमेल और आपसी सहमति न बनने से कांग्रेस से ज्यादा सपा प्रमुख अखिलेश की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। चौथे चरण में फतेहपुर की बिंदकी सीट पर कांग्रेस के अभिमन्यु सिंह व समाजवादी पार्टी के रामेश्वर दयाल चुनाव मैदान में हैं। रायबरेली की सरेनी सीट से सपा के देवेंद्र प्रताप सिंह के सामने कांग्रेस के अशोक कुमार सिंह, रायबरेली के ऊंचाहार में मंत्री रहे सपा के मनोज कुमार पांडेय तथा कांग्रेस के अजय पाल सिंह ताल ठोक रहे हैं। इसी प्रकार बुंदेलखंड में ललितपुर की महरौनी सीट से कांग्रेस ने बृजलाल खाबरी को टिकट दिया है तो उनके मुकाबले सपा के रमेश खटिक भी मैदान में डटे हैं। चित्रकूट जिले के मानिकपुर से कांग्रेस गुलाबी गैंग की कर्ताधर्ता संपत पाल चुनाव लड़ा रही है, लेकिन यहां उसके मुकाबले सपा के दिनेश मिश्रा भी सीधी टक्कर देने को तैयार हैं। ऐसे में मतदाता भी असमंजस की स्थिति में होंगे कि वह सपा प्रत्याशी को मतदान करें या फिर कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में।
आग में घी डालने का काम
उत्तर प्रदेश में कई विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी की मुश्किलों का सबब बन रहे बागी उम्मीदवारों और नेताओं के खिलाफ पार्टी द्वारा शुरू की गई निष्कासन की कार्यवाही ‘आग में घी’ डालने वाली कहावत को चरितार्थ कर सकती है। मसलन मुलायम सिंह यादव परिवार की अंतर्कलह के कोपभाजन का शिकार बने कुछ मंत्रियों, विधायकों और नेताओं ने टिकट कटने से चुनावी जंग में हिस्सेदारी करके बगावत कर रखी है। ऐसे में मुश्किलों से जूझ रही अखिलेश की सपा ने बागियों के खिलाफ निष्कासन की कार्यवाही शुरू की है। मसलन बुधवार को ही नौ नेताओं को बागी होने के कारण पार्टी से छह-छह साल के लिये निष्कासित कर दिया है। ऐसे नेता ज्यादातर शिवपाल यादव खेमे के करीबी माने जा रहे हैं।

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

ऐसे दर्ज होगा सड़क हादसों का आंकड़ा



केंद्र ने जारी किया दुर्घटना रिकार्ड प्रारूप
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में सड़क हादसों को रोकने के प्रयास में जुटी केंद्र सरकार ने दुर्घटनाओं के आंकड़ों का रिकार्ड हासिल करने के लिए एक दुर्घटना रिकार्ड प्रारूप जारी किया है। इसका मकसद सड़क हादसों का सटीक आंकड़ा एकत्र करके सुरक्षा उपायों को लागू करना है।
दुनिया के देशों के मुकाबले भारत में सर्वाधिक सड़क हादसों और उनमें मरने वालों की संख्या सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों के बावजूद कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। जबकि केंद्र सरकार ने वर्ष 2020 तक सड़क हादसों को 50 फीसदी घटाने का लक्ष्य तय करके योजनाएं शुरू की है। इसी योजना के तहत सड़क दुर्घटनाओं की सूचना के लिए प्रारूप की समीक्षा के संबंध में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। अनुसंधान शाखा की वरिष्ठ सलाहकार की अध्यक्षता वाली इस समिति में आईआईटी दिल्ली और आईआईटी खड़गपुर और डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों सहित राज्यों के पुलिस और यातायात विभाग तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल भी शामिल थे। समिति सड़क हादसों पर अंकुश लगाने संबन्धी अपनी रिपोर्ट महत्वपूर्ण सुझावों के साथ पहले ही सरकार को सौंप चुकी है और समिति की सिफारिशों को मंजूर भी कर लिया है। समिति की सिफारिश पर दुर्घटनाओं और उसके कारणों जैसे पहलुओं का डाटा एकत्र करने वाला नया प्रारूप देशभर के सभी पुलिस स्टेशनों में इस्तेमाल होगा।
पुलिस की होगी अहम भूमिका
यातायात अनुसंधान शाखा की वरिष्ठ सलाहकार और समिति की अध्यक्ष श्रीमती कीर्ति सक्सेना ने इस प्रारूप के बारे में कहा कि दुर्घटना स्थल से पर्याप्त आंकड़े और सूचना न प्राप्त होने के कारण पुलिस थानों में प्राथमिकी सही तौर पर दर्ज करने की दिशा में अब पुलिस की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। दरअसल पहले ऐसा नहीं हो रहा था। उन्होंने कहा कि विभिन्न राज्यों और देश के अन्य स्थानों पर दुर्घटनाओं की सूचना के तरीकों का अध्ययन करने के बाद मंत्रालय को नया प्रारूप बनाने का सुझाव दिया गया था, ताकि इसमें पुलिस की प्रमुख भूमिका सुनिश्चित की जा सके। वहीं समिति की सदस्य एवं आईआईटी दिल्ली की प्रो. गीतम तिवारी ने नए प्रारूप का विवरण देते हुए बताया कि वर्तमान में सूचना पुलिस थानों में की जाती हैं और राज्य सरकारें केंद्र को रिपोर्ट भेजती हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह नया प्रारूप सभी तरह की खामियों को दूर करने में मदद करेगा।
प्रारूप बताएगा पूरे हालात
समिति सदस्य एवं आईआईटी खड़गपुर की प्रो. सुदेष्णा मित्रा की माने तो उनका कहना है कि इस मामले में दुर्घटना स्थल की रिकॉर्डिंग की अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि नए प्रारूप के जरिए जीपीएस से दुर्घटना स्थल पर सड़क की बनावट को समझने में आसानी होगी, क्योंकि व्यापक चर्चा के बाद ही समिति ने यह एक एकीकृत दुर्घटना रिकॉर्डें प्रारूप तैयार किया है, जिसे सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को लागू करने की प्रक्रिया चल रही है।

यूपी: चौथा चरण-सियासी विरासत की खातिर झोंकी ताकत!

सभी दलों के सामने बुंदेलखंड को साधने की चुनौती
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए 23 फरवरी को चौथे चरण में 12 जिलों की 53 सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए मंगलवार को समाप्त हुए प्रचार से पहले सभी दलों पूरी ताकत झोंकी है। इस चरण के चुनाव में बुंदेलखंड की वे 19 विधानसभा सीटें भी शामिल हैं, जिनका रूख सियासी दलों के भविष्य की तकदीर लिखने की कुबत रखता है। इन सीटों पर होने वाले चुनाव में विभिन्न दलों व उनके दिगगज नेताओं की खुद के साथ अपने बेटे-बेटियों के लिए भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
यूपी की 403 विधानसभा सीटों में से पहले तीन चरणों में 209 सीटों पर चुनाव हो चुका है और अब 23 फरवरी को चौथे चरण में 12 जिलों की 53 विधानसभा सीटों पर 61 महिलाओं समेत 680 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें बसपा सभी 53 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि गठबंधन के बावजूद 33 पर सपा और 25 सीटों कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं यानि पांच सीटों पर सपा व कांग्रेस के प्रत्याशी आमने सामने मुकाबले में हैं। भाजपा ने 48 प्रत्याशियों तथा उसके सहयोगी दल अपना दल ने पांच प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं। इसके अलावा रालोद के 39, सीपीआई के 17,सीपीएम व राकांपा के तीन-तीन प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। बाकी 260 प्रत्याशी छोटे दलो और 199 निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। चुनाव मैदान में जंग लड़ रहे कुल 680 प्रत्याशियों के सामने 84.5 लाख महिलाओं व 1034 तीसरे लिंगी समेत कुल 1.84 करोड़ 82166 मतदाताओं का जाल बुना हुआ है। इलाहाबाद उत्तरी सीट पर सबसे ज्यादा 26 प्रत्याशी मैदान में हैं। वही खागा(फतेहपुर), मंझनपुर(कौशाम्बी) और कुंडा(प्रतापगढ़) में सबसे कम छह-छह उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। साल 2012 में चौथे चरण में इन 53 सीटों पर हुए चुनाव में सपा को 24 सीटों पर सफलता प्राप्त हुई थी। इसके अलावा बसपा ने 15, कांग्रेस ने छह, बीजेपी ने पांच तथा पीस पार्टी ने तीन सीटें जीती थीं।
अपनों के लिए दांव पर प्रतिष्ठा
चौथे चरण के चुनाव में सभी दलों के सामने अपनी सियासी विरासत बचाने की चुनौती होगी, जहां कुछ प्रत्याशियों की खुद और कुछ दिग्गजों की अपने बेटों-बेटियों को जिताने के लिए प्रतिष्ठा दांव पर लगा रखी है। बसपा छोड़कर भाजपा का दामन थाम चुके विधानसभा के पूर्व प्रतिपक्ष नेता स्वामी प्रसाद मौर्य रायबरेली की ऊंचाहार सीट पर अपने बेटे उत्कर्ष मौर्य का मुकाबला सपा के मंत्री मनोज पांडेय से है। वहीं राज्यसभा सांसद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी की बेटी अराधना मिश्रा प्रतापगढ़ जिले की रामपुर खास से चुनावी जंग में हैं। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रेवतीरमण सिंह के बेटे उज्जवल रमण सिंह इलाहाबाद जिले की करछना विधानसभा सीट पर संघर्ष कर रहे हैं। यही नहीं रायबरेली सीट से पांच बार विधायक रह चुके बाहुबली नेता अखिलेश सिंह की बेटी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। इलाहाबाद पश्चिम में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव और लालबहादुर शास्त्री के पौत्र सिद्धार्थ नाथ सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व सांसद रहे शैलेंद्र कुमार के भाई व एमएलए सतवीर मुन्ना सपा के टिकट पर भाग्य आजमा रहे हैं। इनके अलावा प्रतापगढ़ की कुंडा सीट से बाहुबली रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी दंगल की कुश्ती लड़ रहे हैं। इसके अलावा विधानसभा में विपक्ष के नेता गयाचरण दिनकर बुंदेलखंड के बांदा जिले की नरैनी सीट तथा बबीना क्षेत्र सीट पर राज्यसभा सांसद चन्द्रपाल यादव के पुत्र यशपाल सिंह यादव चुनावी जंग में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
बुंदेलखंड पर असमंजस में सियासी दल
इस चौथे चरण के चुनाव में प्रमुख दलों के सामने बुंदेलखंड के सात जिलों की 19 सीटों को साधने की चुनौती है, जहां राजनीतिक दलों ने जातिगत समीकरण के आंकड़ों के आधार पर नफा-नुकसान देखते हुए अपनी-अपनी ताकत झोंकी है। हालांकि बुंदेलखंड के मौन मतदाताओं के सामने सभी दलों की धड़कने बढ़ी हुई हैं। जहां भाजपा के सामने लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है, तो वहीं सपा-कांग्रेस और बसपा जैसे दलों को अपनी खोई हुई सियासी जमीन हासिल करने की दरकार है। दरअसल बुंदेलखंड इलाके के लोग विकास या सरकार की उपलब्धियों पर नहीं, बल्कि जातिगत समीकरण के सहारे अपना नेता चुनते आ रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में इस इलाके की 19 सीटों में से बसपा को सात, सपा को छह, कांग्रेस को चार और भाजपा को दो सीटें मिली थी।

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

सोशल मीडिया के साथ डिजिटल हुआ चुनाव

 आखिर बदलने लगा चुनावी तौर-तरीका
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चल रहे चुनावों में देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में सुधार की दिशा में चुनाव आयोग द्वारा लागू की गई नई व्यवस्थाओं का असर देखने को मिल रहा है। सियासी दलों पर नियमों के शिकंजे के मद्देनजर इस बार चुनावी तौर-तरीका बदलता नजर आ रहा है। मसलन सियासी दलों का चुनाव प्रचार भी डिजिटल मोड़ पर ज्यादा रμतार पकड़ रहा है।
देश के लोकतंत्र में चुनाव में धनबल और बाहुबल की परंपरा को मौजूदा आधुनिक युग ने पीछे धकेल दिया है। वहीं चुनाव आयोग की आदर्श आचार संहिता को जिस प्रकार से सख्त किया गया है दुनिया के अन्य देश भी उसका लोहा मान रहे हैं। इन पांच राज्यों में उत्तर प्रदेश के सात चरणों में हो रहे चुनाव सभी सियासी दलों के लिए अहम माने जा रहे हैं, जिसमें चुनावी सभाओं में एक-दूसरे पर जिस प्रकार शब्दबाणों से वार हो रहा है, तो वहीं प्रमुख दलों के वाररूम भी चुनाव प्रचार का मुख्य जरिया बन रहे हैं। मोदी सरकार ने जिस प्रकार से भारत को डिजिटल इंडिया बनाने का सपना देखा है उसका असर मौजूदा चुनावों के दौरान भी नजर आ रहा है। हालांकि भाजपा व कांग्रेस जैसे कुछ प्रमुख दल इस कंप्यूटरयुग की तकनीक का इस्तेमाल पहले से ही करते रहे हैं, लेकिन इस बार सपा, बसपा और अन्य छोटे दल भी सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार करने में जुटे हैं। पिछले करीब एक दशक से सोशल मीडिया का चुनाव प्रचार में खासा इस्तेमाल होता देखा गया है, जो इस बार परिपक्व होता दिख रहा है।
वार पर पलटवार
फिलहाल उत्तर प्रदेश चुनावों की गूंज चौतरफा है, जिसके चरणवार चुनाव प्रचार में एक-दूसरे दल आरोप-प्रत्यारोप लगाने में सभी सीमाएं लांघने को तैयार हैं, तो हर वार का पलटवार सोशल मीडिया पर साफतौर से देखा जा रहा है। अब तो भाजपा व कांग्रेस के बाद सपा, बसपा, रालोद, राजद, आप, जदयू, वाम दल और तमाम क्षेत्रीय व छोटे दल भी फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं। यानि चुनाव प्रचार में हरेक दल के नेता के वार के बदले पलटवार टिप्पणी कुछ मिनटों में ही सोशल मीडिया पर कोई न कोई नेता करता नजर आ रहा है। हालांकि चुनावी सभाओं में पलटवार करके आरोप-प्रत्यारोप का दौर पूरे चरम पर है, लेकिन सोशल मीडिया पर भी ऐसी टिप्पणियां हिट हो रही हैं। मसलन आज के दौर में चुनाव प्रचार पोस्टरों और दीवार पोतने के बजाए सोशल मीडिया पर उतारा जा चुका है। यह चुनावी आदर्श आचार संहिता में किये गये व्यापक बदलाव का भी कारण है। चुनाव आयोग की नई व्यवस्थाओं में हालांकि हरेक प्रत्याशी के चुनावी खर्चो में बेताहशा कमी देखी गई है। चुनाव प्रणाली में जिस प्रकार से सोशल मीडिया की भूमिका बढ़ी है तो वहीं सियासी दलों के वार रूप का रूतबा भी बढ़ा है, जहां से आरोप का प्रत्यारोप तपाक से सोशाल मीडिया की सुर्खियों में आ रहा है।

सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

बुंदेलखंड़ फतेह की तैयारी में सियासी दल!

यूपी चुनाव: 19 सीटों पर हावी जातिगत समीकरण
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्त्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के चुनावी समीकरण किसी भी सियासी दलों के मुद्दो से कोई ताल्लुक नहीं रखते, बल्कि सात जिलों की 19 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां जातिगत समीकरण पर चुनाव की दिशा तय करते आए हैं। दलित बाहुल्य बुंदेलखंड इलाके में बसपा अपने डीबीएम फार्मूले पर बढ़त हासिल करने की जुगत में हैं, तो सपा-कांग्रेस गठबंधन जातिगत समीकरण को साधने के प्रयास में हैं। जबकि भाजपा सूखे और सिंचाई की समस्या के मद्देनजर अंतिम दौर में पहुंची केन-बेतवा परियोजना के साथ अलग राज्य के मुद्दे को लेकर बुंदेलखंड पर फतेह करने की तैयारी में है।
यूपी की 403 सीटों में से तीन चरणों के चुनाव में 209 विधानसभा सीटों पर चुनाव हो चुके हैं। चौथे चरण में 12 जिलों की 53 सीटों के लिए 23 फरवरी को चुनाव होना है। चौथे चरण में इनमें से सात जिले बुंदेलखंड इलाके में शामिल हैं, जहां 19 विधानसभा क्षेत्रों के लोगों की समस्याएं एकदम अलग है। सूखे, पेयजल, सिंचाई और अन्य बुनियादी सुविधाओं की बाट जोहते यहां के लोगों का विकास जैसे किसी मुद्दे से कोई सरोकार नहीं है, बल्कि यहां जातिगत समीकरण पर चुनाव लड़ा जाता रहा है। यही कारण है कि दलित बाहुल्य इस इलाके में बसपा की अपनी अलग ही चुनाव रणनीति रही है। बसपा के चुनावी फार्मूले ‘दलित-ब्राह्मण-मुस्लिम’(डीबीएम) को कमजोर कररने के जहां सत्तारूढ़ सपा ने कांग्रेस के गठबंधन से बुंदेलखंड की सियासी जमीन साधने की तैयारी की है,तो वहीं भाजपा ने अपने मतदाताओं के ध्रुवीकरण के सहारे लोगों की बुनियादी सुविधाओं और अलग राज्य की मांग वाले मुद्दे को चुनावी मुद्दे में तरजीह दी है, जिसके पक्ष में बसपा पहले से खाका खींच चुकी है। इसलिए बुंदेलखंड में इस बार का चुनाव कांटेदार होने की संभावना है।
उमा भारती का फार्मूला
केंद्रीय मंत्री उमा भारती का कहना है कि केंद्र सरका मंत्र विकास है और विकास और सुशासन के आधार पर बुंदेलखंड के सूखे और किसानों की बदहाली की समस्या के समाधान हेतु हमने नदी जोड़ने की महत्वाकांक्षी केन-बेतवा परियोजना को सबसे पहले अंतिम रूप दिया है, जिसकी चुनाव निपटते ही शुरूआत हो जाएगी। इस परियोजना के जरिए बुंदेलखंड क्षेत्र में पानी की समस्या दूर होगी, फसलों को सिंचाई की सुविधा मिलेगी और क्षेत्र में खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होगा। उनका दावा है कि वहीं किसानों के लिए ग्रामीण सिंचाई परियोजना, फसल बीमा योजना एवं मोदी सरकार की अन्य पहल इस क्षेत्र को विकास के मार्ग पर ला रहे हैं। वहीं उमा भारती ने इन चुनावों में बुंदेलखंड को अलग राज्य का मुद्दा भी जोरशोर से उठाया है।
उपलब्धियों पर साधने का प्रयास
बुंदेलखंड में इस बार विधान सभा चुनावों के लिए सियासी दलों के अभियान में अपने-अपने तौर तरीकों से जनता पर डोरे डालने शुरू कर दिये थे। सत्तारूढ़ सपा जहां बुंदेलखंड के लिए दिए गये विशेष पैकेज के बहाने मैदान मारना चाहती है, तो बसपा अपनी सरकार ने बुंदेलखंड के विकास को लेकर किए गये कार्यक्रमों को हलावा दने में पीछे नहीं है। इसी प्रकार भाजपा केन्द्र सरकार की ओर से बुंदेलखंड के विकास के लिए दिये गये पैकेजों के साथ समीकरण में सुधार करने में जुटी है। जबकि कांग्रेस भी यूपीए कार्यकाल में बुंदेलखंड के विशेष पैकेज का सपा के साथ मिलकर गुणगान करके चुनावी समीकरण अपने पक्ष में करने में जुटी हुई है।

ईवीएम में कैद हुए 1194 अमीर व दागी!

तीन चरणों में 809 धनकुबेर व 385 की आपराधिक पृष्ठभूमि
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए तीन चरणों में 209 सीटों के लिए संपन्न हुए चुनाव में 264 महिलाओं समेत 2122 उम्मीदवारों का भविष्य ईवीएम में कैद हो चुका है, जिसमें सभी दलों द्वारा चुनावी मैदान में उतारे गये 385 दागी और 809 अमीर प्रत्याशी भी शामिल हैं।
देश की राजनीतिक दिशा तय करने वाले उत्त्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर सात चरणों में होने वाले पहले तीन चरणों का 209 सीटों पर चुनाव समाप्त हो चुका है, जिसमें भाजपा, बसपा, रालोद, सपा-कांग्रेस गठबंधन तथा विभिन्न छोटे दलों के प्रत्याशियों समेत 2386 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला ईवीएम में कैद हो चुका है। यूपी मिशन में जहां सभी दल कानून व्यवस्था को लेकर एक दूसरे पर निशाना साधने से बाज नहीं आ रहे हैं और गरीबों के रहनुमा होने का दावा भी कर रहे हैं, लेकिन इन सियासी दलों की हकीकत इस रणनीति से उजागर होती है कि सत्ता की खातिर चुनावी जंग जीतने की लड़ाई में अपराधमुक्त राजनीति की दुहाई देने वाले किसी भी राजनीतिक दल ने अपराधियों और करोड़पतियों को चुनावी पटरी पर अपना सहारा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही नहीं आगामी 23 फरवरी को चौथे चरण में 12 जिलों की 53 सीटों पर हाने वाले चुनाव के लिए सियासी जंग में कूदे 680 उम्मीदवारों में से 116 दागी और 189 करोड़पति प्रत्याशियों पर दांव खेला है।
इन दागियों पर सियासी दांव
यूपी चुनाव के इन तीनों चरणों में जिन 385 आपराधिक प्रवृत्ति वाले प्रत्याशियों के भविष्य का फैसला होना हैं, उनमें 309 नेता ऐसे हैं, जिनके खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, डकैती, बलात्कार, अपहरण, अवैध वसूली जैसे संगीन अपराध करने के आरोपों में मामले अदालतों में विचाराधीन हैं। ईवीएम में बंद हुए दागी प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा 74 प्रत्याशियों के साथ बसपा पहले पायदान पर है, जबकि दूसरे नंबर पर चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे 66 भाजपा, और 64 निर्दलीय उम्मीदवार हैं। जबकि सपा ने 49, रालोद ने 30 और कांग्रेस ने 17 दागियों पर अपना चुनावी दांव खेला है। जबकि संगीन अपराधिक पृष्ठभूमि वाले 309 में हालांकि सर्वाधिक 59 प्रत्याशी बसपा के हैं, जबकि 58 प्रत्याशी निर्दलीयों का दूसरा स्थान हैं। इसके बाद भाजपा के 47, सपा के 39, रालोद के 25 तथा कांग्रेस के सात नेता शामिल हैं जिन्हें चुनाव लड़ाया गया है। खास बात यह है कि संगीन अपराध वाले प्रत्याशियों में 28 पर हत्या, 68 पर हत्या का प्रयास, 16 पर महिलाओं के प्रति अपराध और 14 प्रत्याशियों के खिलाफ अपहरण के मामले दर्ज हैं।

रविवार, 19 फ़रवरी 2017

राग दरबार:- तू डाल-डाल तो मैं पात-पात..

जन विश्वास जीतने की कोशिश
देश में सियासत करने वाले दल या नेता एक ही तत्व के बने हुए हैं यह देश की राजनीति में हमेशा ही उजागर हुआ है। मसलन देश की जनता को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने के लिए चुनावी समर में राजनीतिक दलों के बीच सत्ता की चाबी हासिल करने के लिए जनता के सामने जिस तरह के वायदों की पोटली खोली जाती है वे सब एक चासनी का हिस्सा होता है, जिसमें एक-दूसरे दल कमियों को उजागर करते हुए जनता का विश्वास जीतने की कोशिश में लगे रहते हैं। देश के पांच राज्यों के चुनावों खासकर यूपी की सियासत में सत्ताधारी दलों ने अपनी उपलब्धियों का बखान करते हुए फिर से सत्ता में आने के लिए अपने वादों से जनता को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, यहां तक दूध व घी तक देने का वादा तक किया गया है। सियासी गलियारों में सियासी दलों के वादों वाले घोषणापत्रों को लेकर खासकर यूपी के चुनावों को लेकर बात की जाए, तो कानून व्यवस्था और गरीबों का भला करने वाले सियासी दलों ने अपराधों में लिप्त और अमीरों को टिकट बांटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जहां तक सत्तारूढ़ दल की बात है तो लखनऊ में बिना चले मैट्रो का और बिना खुले एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन, हाईस्कूल के किसी भी छात्र को दिये बिना टैबलेट बांटने के दावे, धान की सरकारी खरीद हुए बिना और गन्ना किसानों को बकाया भुगतान दिलाए बिना किसानों को लाभ देने के दावे जनता भी समझ रही है। चुनाव प्रचार मेंकाम बोलता है और बोलेगा जैसे भाषणों को लेकर सियासी गलियारों में यही चर्चा है कि हरेक सियासी दलों का फार्मूला यही है कि तू डाल-डाल तो मैं पात-पात..!
मुस्करा कर रह जाते हैं नेताजी
दिल्ली नगर निगम के चुनाव अप्रैल में कराये जाने की तैयारी चल रही है। भाजपा, आप और कांग्रेस के तमाम कनिष्ठ स्तर के नेता पिछले सालभर से अपने अपने पसंदीदा वार्डों में चुनावी अभियान की तर्ज पर प्रचार में जुटे हुए थे। पार्षद बनने की चाह में दिन-रात एक किये हुए इनमें से ज्यादातर नेताओं का अब खेल बिगड़ गया है। चुनाव आयोग ने हाल ही में वार्डों का नये सिरे से आरक्षण किया है। कुल वार्डों का पचास फीसदी नये सिरे से महिलाओं के लिये आरक्षित हुआ है। नतीजा ये हुआ कि नेता जी जिस सीट से मैदान में उतरने की फिराक में थे वह महिला कोटे में चली गई है। लॉटरी नेताजी की पत्नी के लिये खुल गई है। कल तक चूल्हा चौका संभाल रही पत्नी साहिबा अब होर्डिंगों पर मुस्कराती नजर आ रही है। नेताजी कभी बड़े नेताओं के दरवाजे पर दस्तक देकर पत्नी को टिकट दिये जाने की पैरवी कर रहे हैं तो कभी इलाके में लोगों के बीच पत्नी का परिचय करवाते दिख रहे हैं। लोग मजाक में पूछ भी लेते हैं ‘नेताजी, अगर आपकी पत्नी को टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय मैदान में उतारोगे या दोबारा रसोई संभलवा दोगे।’ नेताजी मुस्करा कर रह जाते हैं।
नेताजी सन्यासी-चाचा नजरबंद
उत्तर प्रदेश की सक्रिय राजनीति से समाजवादी योद्धा मुलायम सिंह यादव का अघोषित स़ंन्यास। ऐसा महसूस होता है कि सपा में पीढी परिवर्तन के साथ चचा नजरबंद-सा हो गए। इसके पीछे अखिलेश यादव का फिर से यूपी की सत्ता काबिज माना जा रहा है। सेक्युलर अखिलेश यादव के सांप्रदायिक चेहरा भी सामने है, जिसमें अपराधिक छवि के लोगों की पहचान के मामले में नजरिया कुछ ऐसा ही घोर नजराना है। यानि एक तरफ मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद से किनाराकशी कर खुद की छवि साफसुथरी बना ली, तो दूसरी तरफ राजा भैया, अभय सिंह और मनोज पारस को टिकट देकर उस कहावत को चरितार्थ कर दिया कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। इस सियासी नजरियें में शायद अखिलेश ने सिर्फ मुस्लिम माफियाओं से दूरी बनाई है। मसलन यह साबित कर दिया कि अपराधी छवि वाला दबंग हिंदू हो या मुसलमान, उसमें संप्रदाय के आधार पर अंतर क्या करना।

शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

यूपी: तीसरे चरण में सपा का गढ़ भेदने को भाजपा ने झोंकी ताकत

एक दर्जन जिलों की 69 सीटों पर 19 को होगा मतदान
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण का चुनावी शोर थम गया है, जहां 12 जिलों की 69 सीटों पर 19 फरवरी रविवार को मतदान होगा। इस चरण में भाजपा की ठोस चुनावी रणनीति के के सामने सपा को अपना गढ़ बचाने की बड़ी चुनौती होगी, जहां अखिलेश सरकार के मंत्रियों के अलावा मुलायम परिवार की साख के साथ प्रमुख दलों के दिग्गजों की प्रतिष्ठा भी दांव पर है।
राज्य की 403 सीटों में अभी तक पहले दो चरणों में 140 सीटों पर चुनाव संपन्न हो चुका है और 19 फरवरी को तीसरे चरण में जिन 69 सीटों पर चुनाव होना है, उनमें यूपी की राजधानी लखनऊ और आसपास की हॉट सीटों के लिए सपा का गढ़ भी शामिल हैं। इस चरण का चुनाव प्रचार शुक्रवार की शाम को थम गया है। भाजपा ने जिस प्रकार की चुनावी रणनीति को पटरी पर उतारा है और सपा परिवार में पिछले दिनों हुए आंतरिक द्वंद्व का विपरीत असर देखने को मिल रहा है। यही कारण है कि सपा को अपने गढ़ को बचाने की सबसे बड़ी चुनौती हैं। इन सीटों पर पिछले 2012 के चुनावों में सपा ने शानदार परचम लहराया था, जिसे 55 सीटें मिली थी,जबकि भाजपा को पांच, बसपा को छह, कांग्रेस को दो और एक सीट निर्दलीय के हाथ लगी थी। भाजपा की चुनावी रणनीति में इटावा, मैनपुरी जैसे जिलों में पीएम मोदी व अमित शाह से लेकर राजनाथ,उमा भारती, स्वामी प्रसाद मौर्य, केशव मौर्य सपा के गढ़ में ताबड़ तोड़ रैलियां कर सेंध लगाने में अंतिम क्षणों तक जुटे रहे हैं।
दांव पर इन दिग्गजों की साख:
तीसरे चरण में लखनऊ और आसपास के जिलों में होने वाले चुनाव को देखते हुए सपा प्रमुख और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सामने सबसे ज्यादा मुलायम परिवार में हुए झगड़े का खामियाजा भुगतने का डर है। इसलिए लखनऊ और इटावा जिलों की सीटों को लेकर सपा की प्रतिष्ठा दांव पर है, जहां मुलायम की बहु अर्पणा यादव के अलावा परिवार के शिवपाल यादव और रिश्ते के भाई अनुराग यादव भी चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं अखिलेश सरकार के करीब आधा दर्जन मंत्रियों रविदास मेहरोत्रा, अभिषेक मिश्रा, अरविन्द सिंह गोप, फरीद महफूज किदवाई व राजा राजीव कुमार सिंह जैसों दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है। भाजपा की दल बदलकर आए बृजेश पाठक, रीता बहुगुणा जोशी की उम्मीदवारों के अलावा बेटे आशुतोष के लिए लालजी टंडन, प्रदेश महिला शाखा की अध्यक्ष स्वाति सिंह, पत्नी जयदेवी के लिए भाजपा सांसद कौशल किशोर के अलावा बसपा के पूर्व मंत्री आरके चौधरी के अलावा बेटे कांग्रेस प्रत्याशी तनुज पुनिया के लिए राज्यसभा सदस्य पीएल पुनिया की साख भी दांव पर है।
इन जिलों में होगा मतदान:
यूपी विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में 12 जिलों की 69 सीटों पर 19 फरवरी को मतदान होगा। इसमें फरूखाबाद की चार, हरदोई की आठ, कन्नौज की तीन, मैनपुरी की चार, इटावा व औरया की तीन-तीन, कानपुर देहात की चार तथा कानपुर नगर की दस,उन्नाव की छह, लखनऊ की नौ, बाराबंकी की छह तथा सीतापुर की नौ विधानसभा सीटों पर चुनाव होगा। इन सीटों पर 105 महिलाओं समेत कुल 826 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं, जिनमें भाजपा के 68, अपना दल का एक, बसपा के 69, सपा के 61, कांग्रेस के 14,रालोद के 40, सीपीआई के छह और, सीपीएम के तीन प्रत्याशी चुनावी जंग लड़ रहे हैं। इनके अलावा 231 निर्दलीय प्रत्याशी भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। तीसरे चरण में इन सीटों के प्रत्याशियों को 1.10 करोड़ 27390 महिलाओं समेत 2.41 करोड़ 67403 मतदाताओं के चक्रव्यूह को भेदने की चुनौती होगी।

आधार कार्ड पर ही मिलेगी पीएफ की सुविधा

ईपीएफओ ने दस्तावेज जमा करने की तिथि बढ़ाई
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की कर्मचारियों को राहत देने के लिए उठाए जा रहे कदमों के तहत पीएफ की सुविधा को भी आसान बनाने के लिए कदम उठाए हैं। इसी के तहत पीएफ की सुविधा के लिए ईपीएफओ से जुड़े खाताधारकों और पेंशनरों के लिए आधार कार्ड अनिवार्य किया गया है, जिसे अपने खाते से जोड़ने के लिए तिथि बढ़ाते हुए 31 मार्च कर दी गई है।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने नियमों में किये गये बदलावों के तहत ईपीएफओ से जुड़े खाताधारकों और पेंशनरों के लिए आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया है। ईपीएफओ ने देशभर में अपने 120 क्षेत्रीय कार्यालयों को जारी निर्देशों में खाता धारकों और पेंशनरों को 31 मार्च तक अपना आधार नंबर या उसके लिए आवेदन का सबूत जमा कराने को कहा है। वहीं ईपीएफओ इससे संबन्धित जानकारियों के लिए नियोक्ताओं के जरिये अंशधारकों और पेंशनभोगियों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए व्यापक प्रचार-प्रसार करने को भी कहा है। ईपीएफओ के केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त वीपी जॉय ने इसके बारे में कहा कि फिलहाल पेंशनभोगियों के साथ-साथ अंशधारकों को आधार या पंजीकरण प्रति 31 मार्च, 2017 तक उपलब्ध कराना होगा। यह ईपीएफओ द्वारा उपलब्ध सेवाएं हासिल करने के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस समय ईपीएफओ की कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) से चार करोड़ खाताधारक और 50,000 पेंशनर जुड़े हैं।

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

सियासी दलों का अमीरों व दागियों से बढ़ा मोह!

यूपी के तीसरे चरण में 19 फरवरी को होगा 69 सीटों पर चुनाव
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के इस शोर में कानून व्यवस्था को लेकर एक दूसरे पर निशाना साधने में जुटे सभी सियासी दल लगातार यूपी को गुंडाराज मुक्त शासन देने का दावा कर रहे हैं, तो वहीं अपने आपको गरीबों का रहनुमा बना कर भी पेश करने से बाज नहीं आ रहे हैं। जबकि सियासी दलों की हकीकत इससे कहीं उलट है। मसलन सभी दलों ने यूपी के चुनाव में अमीरों और आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को प्रत्याशी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
उत्तर प्रदेश की 403 में से 140 सीटों पर पहले दो चरणों के चुनाव में ईवीएम में कैद हुए 1560 प्रत्याशियों की किस्मत में 558 अमीरों और 275 दागियों के भाग्य का फैसला भी सुरक्षित है। जबकि आगामी 19 फरवरी को 12 जिलों की 69 सीटों पर होने वाले चुनाव में उतरे कुल 826 प्रत्याशियों में भी सभी प्रमुख दलों ने 250 अमीरों व 110 दागियों पर दांव खेला है। मसलन कोई भी दल सत्ता की जंग जीतने की होड़ में चुनाव सुधार की दिशा में जाता नजर नहीं आता। यही कारण है कि 19 फरवरी को भी इसी रणनीति पर सियासी जंग होगी। चुनाव सुधार के अभियान में जुटी गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने यूपी चुनाव के तीसरे चरण में विधानसभा चुनाव लड़ रहे इन प्रत्याशियों की कुंडली खंगालकर एक विश्लेषण रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि पहले दो चरण की तरह ही इस चरण में भी करीब सभी दलों ने दागियों और धनकुबरों के सहारे सियासी नैया पार करने की रणनीति को बढ़ावा दिया है।
इन जिलों में होगा मतदान
यूपी विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में 12 जिलों की 69 सीटों पर 19 फरवरी को मतदान होगा। इसमें फरूखाबाद की चार, हरदोई की आठ, कन्नौज की तीन, मैनपुरी की चार, इटावा व औरया की तीन-तीन, कानपुर देहात की चार तथा कानपुर नगर की दस, उन्नाव की छह, लखनऊ की नौ, बाराबंकी की छह तथा सीतापुर की नौ विधानसभा सीटों पर चुनाव होगा।

अब गरीबों को मिल सकेगा सस्ता न्याय

सुप्रीम कोर्ट ने लागू की मध्यम आय समूह योजना
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की योजना के तहत अब देश में मध्यम और गरीब आय वर्ग के लोगों के लिए कानूनी सहायता हासिल करना बेहद आसान हो गया है। इस दिशा में गुरुवार को यहां सुप्रीम कोर्ट ने एक ‘मध्यम आय समूह योजना’ लागू की है।
केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने इस योजना की जानकारी देते हुए बताया कि ‘मध्यम आय समूह योजना’ एक प्रकार की आत्म समर्थन देने वाली योजना है और इसके तहत 60 हजार रुपए प्रति महीने और 7.50 लाख रुपए वार्षिक आय से कम आय वाले लोगों के लिए कानूनी सहायता दी जा सकेगी। इस योजना के अंतर्गत मध्यम वर्ग के वैसे लोग जो उच्चतम न्यायालय में मुकद्दमों का खर्च नहीं उठा सकते, वे कम राशि देकर सोसाइटी की सेवा ले सकते है। इस योजना के लाभ लेने के इच्छुक व्यक्ति को निर्धारित फार्म भरना होगा और इसमें शामिल सभी शर्तों को स्वीकार करना होगा। योजना के अनुसार याचिका के संबंध आने वाले विभिन्न खर्चों को पूरा करने के लिए आकस्मिक निधि बनाई जाएगी। याचिका की स्वीकृति के स्तर तक आवेदक को इस आकस्मिक निधि में से 750 रुपए जमा कराने होंगे। यह सोसाइटी में जमा किये गये शुल्क के अतिरिक्त होगा। यदि एडवोकेट आॅन रिकॉर्ड यह समझते है कि याचिका आगे अपील की सुनवाई योग्य नहीं है, तो समिति द्वारा लिये गये न्यूनतम सेवा शुल्क 750 रुपए को घटाकर पूरी राशि चैक से आवेदक को लौटा दी जाएगी। मसलन समाज के कम आय वर्ग के लोगों के लिए याचिका दाखिल करने के काम को सहज बनाने के लिए उच्चतम न्यायालय ने यह योजना लागू की है। यह योजना में संलग्न अनुसूची के आधार पर होगी।
गवर्निंग बॉडी करेगी निगरानी
भारत के प्रधान न्यायाधीश के संरक्षण में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860(2) के अन्तर्गत सोसायटी के प्रबंधन का दायित्व गवर्निंग बॉडी के सदस्यों को दिया गया है। गवर्निंग बॉडी में अटार्नी जनरल पदेन उपाध्यक्ष और सोलिसीटर जनरल आॅफ इंडिया मानद सदस्य होंगे। जबकि उच्चतम न्यायालय के अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं को सदस्य के रूप में शामिल किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के नियमों के अनुसार न्यायालय के समक्ष याचिका केवल एडवोकेट आॅन रिकॉर्ड के जरिये दाखिल की जा सकती है। मसलन सेवा शुल्क के रूप में सुप्रीम कोर्ट में ‘मध्य आय समूह कानूनी सहायता सोसाइटी’(एससीएमआईजीएलएएस) को केवल 500 रुपए का भुगतान करना होगा। जबकि आवेदक को सचिव द्वारा बताई गई फीस जमा करानी होगी। यदि एडवोकेट आॅन रिकॉर्ड इस बात से संतुष्ट हैं कि यह याचिका आगे की सुनवाई के लिए उचित है, तो सोसाइटी आवेदक के कानूनी सहायता अधिकार पर विचार करेगी।

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

केंद्र सरकार ने दी ट्रांसपोर्टरों को बड़ी राहत

वाहनों के फिटनेस सर्टिफिकेट पर जुर्माना खत्म
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में सड़क हादसों पर रोक लगाने के लिए खासकर कॉमर्शियल वाहनों पर शिकंजा कसने के लिए स्पीड गवर्नर समेत केई सख्त नियम लागू करने वाली केंद्र सरकार ने अब बड़ी राहत दी है। मसलन इस सख्ती के कारण पिछले दिनों जिन कॉमर्शियल वाहनों का सड़क पर चलना बंद हो गया था, उनसे अब फिटनेस या लाइसेंस आदि के मामले पर पिछले दिनों का कोई जुर्माना नहीं वसूला जाएगा।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार ने देशभर में सभी परिवहन विभागों को ऐसे दिशानिर्देश जारी किये हैं। इसके अनुसार परिवहन विभाग घरों में खड़े ऐसे हजारों कॉमर्शियल वाहनों की फिटनेस का पेनल्टी चार्ज बैक डेट से लागू नहीं किया जाएगा। सरकार के इस फैसले से ऐसे हजारों वाहन मालिकों को बड़ी राहत देने वाले फैसले के तहत जिन वाहनों ने लंबे समय से फिटनेस नहीं कराई है,उन्हें अब 29 दिसंबर से ही 50 रुपये प्रति दिन के हिसाब से ही पेनल्टी चार्ज भरना होगा। इससे पहले की अवधि की पेनल्टी पुराने नियमों के हिसाब से ही जमा कराई जाएगी। इससे वाहन मालिकों को आर्थिक नुकसान से बचने का मौका दिया गया है।
समीक्षा के बाद फैसला
जिला स्तर पर परिवहन कार्यालयों में जिस मालिक ने भी अपने वाहन की फिटनेस का सर्टिफिकेट लेने का प्रयास किया तो अधिकारियों ने पुराने समय से ही हजारों रुपये के रूप में नए नियमों के हवाले से जुर्माना लागू करने की बात कही। ऐसे में ट्रांसपोर्टरों ने केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय में गुहार लगाई और वाहन मालिकों को हो रहे आर्थिक नुकसान की जानकारी दी, तो केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने नए नियमों की संबन्धित अधिकारियों के साथ समीक्षा की। इससे ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में हो रहे नुकसान और कॉमर्शियल वाहनों की आवाजाही पर पड़ रहे गहरे प्रभाव को देखते हुए केंद्र सरकार ने कॉमर्शियल वाहनों के फिटनेस पर पुराने समय के जुर्माना वसूल न करने का फैसला किया। क्योंकि इस नए नियम से एक-एक वाहन पर पचास हजार से एक लाख तक का पेनल्टी चार्ज बकाया निकल रहा था, जिसे केंद्र सरकार ने खत्म करके नए सिरे से फिटनेस चार्ज करने के दिशा निर्देश जारी किये।

यूपी:कुबेरों व दागियों के भरोसे सियासी दल

ईवीएम में कैद हुआ 558 धनकुबेरों व 275 दागियों का भविष्य
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश की 17वीं विधानसभा के गठन के लिए हो रहे चुनावों में सभी दलों ने इस बार दागियों व करोड़पतियों को प्रत्याशी बनाकर अपना-अपना दांव खेला है। यूपी के पहले दो चरण में 1560 प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में कैद हो चुका है। इनमें 275 प्रत्याशियों की पृष्ठभूमि आपराधिक है, तो वहीं 558 धनकुबेर प्रत्याशी भी शामिल हैं। ऐसे नेताओं को प्रत्याशी बनाने में बहुजन समाज पार्टी सबसे आगे चल रही है।
देश की राजनीतिक दिशा तय करने वाले उत्त्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर सात चरणों में पहले दो चरणों का 140 सीटों पर चुनाव समाप्त हो चुका है, जिसमें भाजपा, बसपा, रालोद, सपा-कांग्रेस गठबंधन तथा विभिन्न छोटे दलों के प्रत्याशियों समेत 1560 उम्मीदवारों की किस्मत के फैसले को सूबे की जनता ने ईवीएम में कैद कर दिया है। दिलचस्प बात है कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के इस शोर में सभी राजनीतिक दल कानून व्यवस्था को लेकर एक दूसरे पर निशाना साधने से बाज नहीं आ रहे हैं और सभी दल अपने आपको गरीबों का रहनुमा बना कर भी पेश कर रहे हैं, इन सियासी दलों की हकीकत इससे कहीं उलट है। मसलन यूपी की सत्ता पर काबिज होने के स्वार्थ में चुनावी जंग जीतने की होड़ में हमेशा चुनाव सुधार के लिए अपराधमुक्त राजनीति की दुहाई देने वाले किसी भी राजनीतिक दल ने अपराधियों और करोड़पतियों को चुनावी पटरी पर अपना सहारा बनाने में तनिक भी हिचक नहीं की है। यही नहीं आगामी 19 फरवरी को तीसरे चरण में 12 जिलों की 69 सीटों पर हाने वाले चुनाव के लिए सियासी जंग में कूदे 826 उम्मीदवारों में से 114 दागी और 250 करोड़पति प्रत्याशियों की फेहरिस्त सामने आई है, इसमें भी बसपा, भाजपा, सपा, कांग्रेस,रालोद ने ऐसे प्रत्याशियों पर दांव खेला है।
इन दागियों पर सियासी दांव:
यूपी चुनाव के पहले दो चरणों में जिन 275 आपराधिक प्रवृत्ति वाले प्रत्याशियों के भविष्य का फैसला होना हैं, उनमें 227 नेता ऐसे हैं,जिनके खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, डकैती, बलात्कार, अपहरण, अवैध वसूली जैसे संगीन अपराध करने के आरोपों में मामले अदालतों में विचाराधीन हैं। ईवीएम में बंद हुए दागी प्रत्याशियों की फेहरिस्त में सबसे ज्यादा 53 प्रत्याशियों के साथ बसपा पहले पायदान पर है, जबकि दूसरे नंबर पर चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे 499 में से 51 निर्दलीय उम्मीदवार हैं। पहले दो चरणों में भाजपा ने 45, सपा ने 36, रालोद ने 25 और कांग्रेस ने एक दर्जन दागियों पर अपना चुनावी दांव खेला है। जबकि संगीन अपराधिक पृष्ठभूमि वाले 227 में हालांकि सर्वाधिक 46 प्रत्याशी निर्दलीय हैं, लेकिन राजनीतिक दलों में सर्वाधिक बसपा के 43 प्रत्याशी अपनी किस्मत ईवीएम में बंद करा चुके हैं। इस श्रेणी के प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारने के लिए भाजपा ने 32, सपा ने 30, रालोद ने 21 तथा कांग्रेस ने चार नेताओं को अपने-अपने टिकट पर चुनाव लड़ाया है। खास बात यह है कि संगीन अपराध वाले प्रत्याशियों में 21 पर हत्या, 57 पर हत्या का प्रयास, दस पर महिलाओं के प्रति अपराध और नौ प्रत्याशियों के खिलाफ अपहरण के मामले दर्ज हैं।

बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

यूपी व उत्तराखंड में दांव पर लगी दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा!

यूपी में बड़े दलों के सामने सपा के गढ़ को भेदने की चुनौती
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों की 67 सीटों और उत्तराखंड की 69 सीटों पर कल बुधवार को मतदान करके जनता अपना दम दिखाते हुए चुनावी जंग में शामिल विभिन्न दलों के नेताओं का भविष्य तय करेगी। दोनों ही राज्योें में बड़े-बड़े सियासी दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
उत्तर प्रदेश की 403 सीटों के लिए हो रहे चुनाव के दूसरे चरण में सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, संभल, रामपुर, बरेली, अमरोहा,पीलीभीत, खीरी, शाहजहांपुर और बदायूं जिलों की 67 सीटों के लिए बुधवार 15 फरवरी को मतदान हो रहा है। इस चरण में 82 महिला प्रत्याशियों समेत 721 उम्मीदवार चुनावी जंग में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। जिनमें छह राष्ट्रीय दलों, छह प्रादेशिक दलों और 80 गैर मान्यता प्राप्त दलों के अलावा 206 निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इस चरण के चुनाव में भाजपा व बसपा के 67-67, रालोद के 53, सपा के 51, सीपीआई के 22, कांग्रेस के 18, एनसीपी के तीन प्रत्याशी भी शामिल हैं। जबकि 247 गैरमान्यता प्राप्त दलों तथा 207 निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। मतदाताओं के लिहाज से सबसे बड़ी सीट मुरादाबाद शहर और सबसे छोटी सीट धामपुर है। इस चुनाव में कांठ विधानसभा सीट पर सर्वाधिक 28 उम्मीदवार हैं, तो अमरोहा की धनौरा सीट पर सबसे कम पांच प्रत्याशी ही चुनाव लड़ रहे हैं। इन प्रत्याशियों का फैसला करने के लिए कुल 2.28 करोड 79185 मतदाताओं का चक्रव्यूह बना हुआ है, जिसमें करीब 1.04 करोड़ 93671 महिला और 1065 तीसरे लिंग के मतदाता भी शामिल हैं।
सपा के गढ़ वर्चस्व की लड़ाई
भाजपा, बसपा, रालोद, सपा-कांग्रेस गठबंधन ने इन 67 सीटों पर काबिज होने के महासंग्राम में अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा रखी है। सपा का गढ़ मानी जा रही इस मुस्लिम बाहुल इलाके में पिछले चुनाव में यूपी की सत्तारूढ समाजवादी पार्टी को 34 सीटें मिली थी। बसपा 18 सीटें जीतकर दूसरे पायदान पर रही, तो भाजपा को दस और कांग्रेस को तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा था। जबकि अन्य दलों के हिस्से में दो सीटें आई थी। इस चरण में जिन प्रमुख नेताओं की साख दांव पर हैं। उसमें रामपुर विधानसभा सीट पर सूबे की सपा सरकार के वरिष्ठ मंत्री आजम खां और इसी जिले की स्वार सीट से उनके साहबजादे अब्दुला आजम पहली बार अपनी सियासी पारी खेल रहे हैं। वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जफर अली नकवी के बेटे सैफ अली नकवी, तिलहर सीट से पूर्व केन्द्रीय मंत्री जितिन प्रसाद चुनावी जंग में हैं तो शाहजहांपुर से भाजपा विधान दल के नेता सुरेश खन्ना भी चुनावी वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
मायावती की रणनीति की परीक्षा
यूपी के इस दौर के चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती की मुस्लिमों के प्रति बनाई गई रणनीति की भी परीक्षा होनी है। जबकि यहां भाजपा नहीं चाहती कि मुस्लिम मतदाताओं का रुझान समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन की तरफ पूरी तरह हो जाए। बसपा इस इलाके में मजबूती से चुनाव लड़ती है तो भाजपा को भी फायदा होगा। इसीलिए दूसरे चरण में भी मुस्लिम मतदाताओं के रुझान पर सब की नजरे रहेंगी। इसी चरण से यह बात भी साफ हो जाएगी कि सौ मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारने की मायावती की रणनीति कामयाब हो रही है या नहीं।

विदेशों में छायी भारतीय चुनावी प्रणाली

तेरह देशों के प्रतिनिधि देखेंगे उत्तराखंड के चुनाव
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की चुनाव प्रक्रिया में तकनीकी तौर और चुनाव सुधार की दिशा में जिस प्रकार से नई-नई व्यवस्थाएं लागू की जा रही हैं, उन्हें दुनिया के दूसरे देश भी सीखने के लिए भारतीय चुनाव आयोग की मदद ले रहे हैं। यही कारण है कि भारत के दौरे पर आये 13 देशों के चुनाव निकायों के प्रमुख व प्रतिनिधि उत्त्तराखंड पहुंच गये हैं, जहां वे बुधवार को होने वाले मतदान के दौरान मतदान केंद्रों का दौरा करके चुनाव प्रणाली को देखेंगे।
केंद्रीय चुनाव आयोग के प्रवक्ता ने यह जानकारी देते हुए बताया कि रूस, नामीबिया, किर्गिस्तान, मिस्र और बांग्लादेश समेत 13 देशों के चुनाव प्रबंधन निकायों के प्रतिनिधि और प्रमुख देश में चल रहे विधानसभा चुनावों को देखने के लिए उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में पहुंच गये हैं। इस तेरह देशों के प्रतिनिधिमंडल में प्रमुख रूप नामीबिया के निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष एवं एक आयुक्त, मिस्र के सुप्रीम कोर्ट के दो सदस्य, रूसी संघ के केंद्रीय निर्वाचन आयोग के सदस्य तथा बांग्लादेश और किर्गिस्तान के निर्वाचन आयोग के वरिष्ठ प्रतिनिधि भी शामिल हैं।
मतदान केंद्रों का दौरा
इस अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि बुधवार को उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान मतदान के दौरान चुनाव प्रक्रिया देखने के मकसद से मतदान केंद्रों का भी दौरा करेंगे। इससे पहले विदेशी चुनाव अधिािकरयों ने देहरादून में चुनावी तैयारियों, मतदान केन्द्रों पर सामान भेजे जाने वाले स्थलों का दौराकर व्यवस्था का जायजा लिया। इससे पहले इस विदेशी प्रतिनिधिमंडल ने भारत में चुनाव प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं, मौजूदा विधानसभा चुनाव में चुनाव तैयारियों की मुख्य विशेषताएं आदि से संबंधित व्यापक ब्रीफिंग में भारत निर्वाचन आयोग पहुंचकर आपसी सहयोग के तहत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर भी विस्तार चर्चा की। भारतीय चुनाव आयोग के अधिकारियों ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों को इन चुनावों में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के उपयोग और वोटर वेरिफिएबल पेपर आॅडिट ट्रायल (वीवीपीएटी) के उपयोग के अलावा विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रबंधन की प्रक्रिया जैसी जानकारी भी दी। इसके अलावा उन्हें चुनाव प्रबंधन, आईटी के उपयोग, चुनावी कानूनों, व्यय निगरानी, ईवीएम और वीवीपीएटी,और स्वीप जैसी योजनाओं से भी अवगत कराया।
15Feb-2017

आखिर दम तोड़ गई केंद्र की ‘वन बंधु योजना’

छग व मप्र समेत दस राज्यों में योजना पर लगाई रोक
आदिवासियों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराना था मकसद
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश के आदिवासी बाहुल्य खासकर नक्सल प्रभावित राज्यों समेत दस प्रदेशों में शुरू की गई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी ‘वन बंधु कल्याण योजना’ को केंद्र सरकार को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसका कारण पायलट योजना की धीमी चाल और योजना के कार्यान्वयन के प्रति सभी दस राज्यों की सरकारों द्वारा रूचि न लेना माना जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिसंबर 2014 में नक्सल प्रभावित राज्यों समेत दस आदिवासी बाहुल राज्यों में 100 करोड़ रुपये वाली ‘वन बंधु कल्याण योजना’ को पायलट योजना के रूप में लागू किया था, लेकिन इस योजना की धीमी चाल और राज्यों द्वारा इस योजना में रूचि न लेने के कारण दो सालों में यह लक्ष्य सिरे नहीं चढ़ पाया। इस योजना के कार्यान्वयन में राज्यों की सरकारों द्वारा रूचि न लेने से केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम ने पिछले दिनों नाराजगी भी प्रकट की थी। जबकि मोदी सरकार के आदिवासी मामलों के मंत्रालय ने परिणाम आधारित अभिमुखीकरण के साथ उपलब्ध संसाधनों को जनजातीय जनसंख्या के समग्र विकास में बदलने की दृष्टि से ‘वन बंधु कल्याण योजना’ (वीकेवाई) नामक एक प्रयास आरंभ किया था। मंत्रालय के अनुसार इस योजना को प्रमुख मकसद अनुसूचित जनजाति और अन्य सामाजिक समूहों के बीच मानव विकास सूचकांक ढांचागत कमियों और अंतर को पूरा करने पर केंद्रित किया गया था, लेकिन केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्रालय को इस योजना की प्रगति की समीक्षा करने के बाद लगा कि इससे लोग लाभान्वित नहीं हो पा रहे हैं। इसलिए केंद्र सरकार ने इस पायलट परियोजना को बंद करने का फैसला किया है।
योजना का यह था मकसद
मोदी सरकार द्वारा ‘वन बंधु कल्याण योजना’ को लागू करने का मकसद आदिवासी क्षेत्रों का व्यापक विकास को बढ़ावा देना था,जिसमें प्रमुख लक्ष्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के आदिवासियों को उनकी कल्याणकारी योजनाओं और विकास के जरिए सामाजिक विचाराधारा में शामिल करना रहा है। केंद्र ने शुरूआत में ब्लॉक की कुल आबादी की तुलना में जनजातीय आबादी का कम से कम 33 प्रतिशत को लक्षित करके योजना को अमलीजामा पहनाने का लक्ष्य रखा। इसी मकसद से पायलट परियोजना के रूप में इस योजना को छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान तथा हिमाचल प्रदेश जैसे दस राज्यों में शुरू की गई थी, ताकि देशभर में आदिवासी लोगों की बुनियादी सुविधाओं के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य, जल, कृषि एवं सिंचाई,बिजली, स्वच्छता, कौशल विकास, खेल के अलावा उनके सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण, हाउसिंग और आजीविका जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र का विकास किया जा सके। इसके तहत इन राज्यों के दस विकास खंड़ क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए 10-10 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया गया था। हालांकि ऐसी समानांतर परियोजनाएं इन राज्यों में पहले से भी चलाई जा रही हैं।

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

उत्तराखंड: राजनीतिक दलों ने झोंकी ताकत

चुनावी प्रचार थमा, 15 को होगा 69 सीटों का भाग्य तय
हरिभूमि ब्यूरो
. नई दिल्ली।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए जोरशोर से चल रहा सियासी दलों का चुनावी शोर थम गया है, जहां की 70 में से 69 सीटों पर 15 फरवरी को मतदान होगा। राज्य की कर्णप्रयाग सीट के एक बसपा प्रत्याशी की सड़क हादसे में मौत होने के कारण इस सीट का चुनाव रद्द कर दिया गया है।
उत्तराखंड के चुनाव में हालांकि भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला रहा है, लेकिन अन्य दल भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। रविवार को उत्तराखंड की कर्णप्रयाग विधानसभा सीट से बीएसपी प्रत्याशी कुलदीप कनवासी की एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी, जिसके बाद चुनाव आयोग ने इस सीट पर होने वाले मतदान को टाल दिया है। राज्य में सोमवार को अंतिम दिन के प्रचार में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंकने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। हालांकि चुनावी शोर थमने के बाद भी नेता जनसंपर्क के माध्यम से अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर सकते हैं। हालांकि नए नियमों के तहत 13 फरवरी को शाम पांच बजे के बाद इलेक्ट्रोनिक मीडिया व सोशल मीडिया पर भी प्रचार नहीं किया जा सकेगा। इसके साथ ही बल्क मैसेजेज और इंटरएक्टिव वॉयस रेस्पांस सर्विस (आईवीआरएस) के माध्यम से प्रचार पूर्णतया प्रतिबंधित होगा। वहीं प्रिंट मीडिया में प्रकाशित किए जाने विज्ञापनों के लिए प्रत्याशियों या पार्टी को अनुमति लेनी होगी। प्रचार का शोर थमने के साथ ही तमाम प्रत्याशियों की कोशिश घर घर जाकर मतदाताओं से संपर्क करने पर होगी।
15 सीटों पर सीधा मुकाबला
उत्तराखंड विधानसभा की 70 सीटों पर 3578995 महिलाओं समेत कुल 7512559 मतदाताओं के चक्रव्यूह को भेदने के लिए 637 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इसमें भजापा और कांग्रेस के 70-70, बसपा के 69, सपा के 21, उत्तराखंड क्रांतिदल के 20, शिवसेना के सात, सीपीआई और सीपीएम के पांच-पांच, रालोद के तीन, राकांपा के दो प्रत्याशियों के साथ ही 103 प्रत्याशी पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त दलों के चुनाव मैदान में हैं। इनके अलावा 262 प्रत्याशियों ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोक रखी है, जिनमें भाजपा व कांग्रेस के बागी नेता भी शामिल हैं। राज्य की 70 विधानसभा सीटों के लिए कुल 10 हजार 854 मतदान केंद्र बनाए गए हैं, जिनमें हरिद्वार की सभी 11 सीटों के अलावा कोटद्वार, लोहाघाट, चंपावत तथा रुद्रपुर में सीधा मुकाबला है।
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यूपी चुनाव में कालेधन पर शिकंजा
जब्त हुई 107.05 करोड़ रुपये की रकम
हरिभूमि ब्यूरो
. नई दिल्ली।
केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा बाहुबल और धनबल पर शिकंजा कसने की दिशा में चलाए जा रहे अभियान में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान अब तक कालेधन के रूप में 107.05 करोड़ रुपए जब्त किये गये हैं। वहीं हथियारों और मतदाताओं को परोसी जाने वाली शराब भी बड़ी मात्रा में पकड़ी जा चुकी है।
चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तहत आदर्श आचार संहिता के अनुपालन कराने की दिशा में कालेधन के इस्तेमाल को रोकने की दिशा में चुनाव आयोग द्वारा हरेक विधानसभा क्षेत्रों में μलाइंग स्क्वाड, पुलिस टीम एवं आयकर विभाग की टीमें निगरानी कर रही है और संदिग्ध जगहों पर छापेमारी या फिर चैंकिंग के दौरान तलाशी अभियान भी चलाया जा रहा है। इस अभियान के तहत उत्तर प्रदेश में अब तक 107.05 करोड़ रुपये की नकदी जब्त की गई है, जिसमें एक दिन पहले पकड़े गये 41.25 लाख रुपये भी शामिल है। चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार सरकारी एवं निजी सम्पत्ति से 23.07 लाख वाल राइटिंग, पोस्टर, बैनर्स आदि विरूपित करते हुए अब तक 814 मामलों में एफआईआर दर्ज कराई गई है। इसी प्रकार वाहन पर अवैध रूप से लाल, नीली बत्ती, झंडे एवं लाउडस्पीकर लगाने के विरुद्ध चलाए गए अभियान के अन्तर्गत 36604 प्रकरणों में कार्यवाही करते हुए 1617 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जा चुकी है।

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

यूपी: छोटे दल बिगाडेंगे बड़ो का सियासी खेल!

भीतरघात भी बड़े राजनीतिक दलों की चिंता
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पहले चरण के चुनाव के बाद अब 15 फरवरी को दूसरे चरण के चुनाव पर सियासी दलों की नजरें टिकी हैं। यूपी में भले ही भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच तीसरे दल के रूप में बसपा का मुकाबला माना जा रहा हो, लेकिन पहले दो चरण में इस मुकाबले में रालोद के शामिल होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। इस चुनाव में बड़े दल जहां भीतरघात से जूझ रहे हैं, वहीं छोटे दल भी इनका चुनावी समीकरण बिगाड़ सकते हैं।
उत्तर प्रदेश में 403 विधानसभा सीटों सहारनपुर से वाराणसी तक कई सीटों पर प्रमुख राजनीतिक दलों को अपनी ही पार्टी के नेताओं की नाराजगी के कारण उनका विरोध झेलना पड़ रहा है। कई सीटों पर तो इन दलों के बागी भी चुनाव मैदान में ताल ठोक चुके हैं। भाजपा ही नहीं, बल्कि सपा, कांग्रेस व बसपा ने भी अन्य दलों को छोड़कर आए नेताओं को बड़ी संख्या में टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा है, तो इन दलों के टिकट के दावेदारों ने बगावती तेवर दिखाते हुए अपने दलों को चुनाव मैदान में उतरकर या फिर अप्रत्यक्ष रूप से सबक सिखाने के लिए कमर कसी हुई है। वहीं दूसरी ओर चुनाव आयोग के दिखाए गये भय के कारण वे छोटे दल भी वोटकाट बन सकते हैं, जो मान्यता लेकर अब तक चुनाव तक नहीं लड़े। ऐसे छोटे दल भी भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस जैसे बड़े दलों का सिरदर्द बने हुए हैं। मसलन प्रमुख दलों की अंदरूनी कलह का विरोध और छोटे दलों का चुनावी संग्राम में डटे रहने से यूपी के सियासी समीकरण बदलने की संभावना बनी हुई है। ऐसे छोटे दल जीतने के लिए ही न सही, बल्कि प्रदेश में अपने दलों का माहौल बनाकर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिए चुनाव मैदान में ऐडी से चोटी तक के जोर लगाकर सियासत की जंग में पूरी तरह से सक्रिय चुनाव प्रचार भी कर रहे हैं। इस प्रकार के कई दल तो ऐसे हैं जो जिस पार्टी का पलड़ा भारी दिखाई दे तो वह उनके पक्ष में कई दलों का भाग्य पलटने की कुबत भी रखते हैं। इसलिए इन चुनावों में तो बड़े दलों के लिए सिरदर्द बने ये छोटे दल
दलों की सक्रियता से राजनीतिक तौर पर एक बात तो साफ है कि जितना भी मत ये दल अपने पक्ष में करने में सफल होते हैं उतना ही नुकसान बड़े दलों को होना तय है। इन छोटे दलों की राजनीतिक जमीन तैयार करने में वे प्रत्याशी भी सामने है, जिन्हें बड़े दलों ने इस बार टिकट से वंचित किया या उन्हें दरकिनार किया है तो वे निर्दलीय चुनाव लड़ने के बजाए छोटे दलों के टिकट पर जोर अजमाइश कर रहे हैं। यानि छोटे दलों से या निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ रहे बागियों का कुनबे के कारण अपने-अपने वोट बैंक में सेंध लगने का भय बड़े राजनीतिक दलों की नींद हराम किये हुए है, लेकिन इन छोटे दलों से किस दल को कितना नुकसान होगा यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही सामने आयेगा।
बगावती तेवरों से परेशान सभी दल
भाजपा में टिकट बंटवारे से नाराज नेताओं का अंदरखाने विरोध और कुछ बागियों के चुनाव मैदान में आना चिंता का कारण बना हुआ है। सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में परिवारिक दंगल के दौरान प्रत्याशियों के टिकट कटने और दूसरों को प्रत्याशी बनाने के कारण चुनावी संकट बढ़ा है, जिसके कारण सपा को कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इसलिए सपा-कांग्रेस गठबंधन में भी इन दलों के नेता बागी होकर चुनाव मैदान में हैं। यही हाल बसपा का है जिनके टिकट कटने से बगावती तेवर जगजाहिर है और कुछ तो पाला बदलकर अन्य दलों का दामन थामकर बसपा को चुनौती दे रहे हैं। ऐसा हालात का सामना अन्य कई दलों को भी करना पड़ रहा है। भाजपा ने इस बार दूसरे दलों से आए नेताओं को बड़ी संख्या में टिकट दिया गया है। अन्य प्रमुख दलों ने भी इसी रणनीति को चुनावी पटरी पर उतारा है, तो ऐसी सीटों पर पुराने नेताओं की नाराजगी स्वाभाविक है।
छोटे दलों ने की नींद हराम
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार प्रमुख राष्टÑीय एवं क्षेत्रीय दलों के लिए छोटे एवं अपंजीकृत दलों की भी भरमार हैं यानि डेढ़ सौ दलों के करीब दल अपने प्रत्याशियों को खड़े करके बड़े दलों को चुनौती दे रहें हैं। इनमें 30 दल तो ऐसे हैं जिन्हें चुनाव आयोग ने पिछले महीने जनवरी में ही पंजीकृत गैरमान्यता प्राप्त दलों के रूप में मान्यता दी है। जिनमें महिला सशक्तिकरण पार्टी, इंडियन सर्वहित पार्टी, अखंड राष्ट्रवादी पार्टी, भारतीय बेरोजगारी पार्टी, भारतीय राष्टÑीय जागरूक दल, सबका दल-यूनाइटेड, भारतीय जन-जन पार्टी,भारतीय कामगार पार्टी, बहुजन आवाम पार्टी, भारतीय संगम पार्टी, दलित शोषित पिछडा अधिकार दल, गरीब उत्थान पार्टी, पूर्ण स्वराज मंच, इंसाफवादी पार्टी, किसान पार्टी प्रमुख हैं, जबकि लोकदल, पीस पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, राष्ट्रीय कृषक दल, बहुजन मुक्ति पार्टी, जन अधिकार मोर्चा जैसे सैकड़ो दल चुनावी जंग लड़ रहे हैं। इन छोटे दलों ने बड़े राष्टÑीय व क्षेत्रीय दलों की नींद हराम कर रखी है। कई छोटे दल तो ऐसे हैं जिनमें कई प्रत्याशी तो ऐसे हैं जो जीत नहीं सकते, लेकिन अपना मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए जिस प्रकार जोर आजमाइश कर रहे हैं। ऐसे दलों के प्रत्याशी किसी जीतने वाले बड़े दल के प्रत्याशी को हराने की कुबत रखते ही हैं।

उत्तराखंड: भाजपा से ज्यादा संकट में कांग्रेस!

15 फरवरी को 70 सीटों पर चुनाव में होगा इम्तिहान
ओ.पी. पाल.
देहरादून।
उत्तराखंड के सत्ता संग्राम में भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला माना जा रहा है, जहां भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के सामने सत्ता से खिसकने का खतरा बना हुआ है और उसी का इन चुनाव में कड़ा इम्तिहान होने वाला है। 15 फरवरी को उत्तराखंड की 70 विधानसभा चुनाव में एक किन्नर और 62 महिलाओं समेत 637 उम्मीदवारों को लेकर बड़े-बड़े सियासी दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
उत्तराखंड सत्ता का इतिहास रहा है कि वर्ष 2002 से अभी तक भाजपा और कांग्रेस के अलावा किसी अन्य दल की सरकार नहीं बन पाई है। जहां तक कांग्रेस की सत्ता का का सवाल है उसमें पहले चुनाव में नरायणदत्त तिवारी के अलावा कांग्रेस के किसी भी मुख्यमंत्री ने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है। इसका मुख्य कारण कांग्रेसी मुख्यमंत्री के खिलाफ कांग्रेस विधायकों की बगावत रही है। इसलिए कांग्रेस राज्य में होने वाले चुनाव में टिकटों के बंटवारें पर हुई बगावत को लेकर संकट में हैं, हालांकि ऐसे हालातों का सामना भाजपा को भी करना पड़ा है, जिसने बागियों को पार्टी से निकालने की कार्यवाही भी की है। शायद यह कांग्रेस का सियासी संकट ही उजागर हो रहा है कि कांग्रेस के उम्मीदवार हरीश रावत इतिहास में ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ना पड़ रहा है। इसी प्रकार उत्तराखंड में पहली बार एक किन्नर नेता रजनी रावत भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में दो सीटों धरमपुर व रायपुर से चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रही है। कांग्रेस के लिए उनके प्रदेशाध्यक्ष यशपाल आर्य के भाजपा के टिकट पर बाजपुर सीट से चुनाव लड़ना भी कांग्रेस के लिए चुनौती है।
इन दलों के मजबूत गढ़
उत्तराखंड के पिछले तीन विधानसभा चुनाव राज्य में करीब डेढ़ दर्जन विधानसभा सीट कांग्रेस, भाजपा और बसपा के ऐसे मजबूत गढ़ हैं, जहां इनके प्रत्याशी को हमेशा जीत ही मिली है। राज्य की ऐसी तमाम सीटों में उत्तराखंड में हुए अभी तक के चुनाव में कांग्रेस जसपुर, द्वारहाट, जागेश्वर, धारचूला, टिहरी, देवप्रयाग, पौडी, चकराता व धरमपुर ऐसी सीटें हैं, जिन पर कांग्रेस का ही प्रत्याशी विजय पताका फहराता आया है। जबकि काशीपुर, हरिद्वार शहर, देहरादून कैंट, डीडीहाट और यमकेश्वर सीटों पर पिछले तीनों विधानसभाचुनावों में भाजपा का गढ़ साबित हुआ है, जहां भाजपा कभी नहीं हारी। इसके अलावा बसपा की भी सियासी पैठ बनी दो सीटें हैं, जहां उसका प्रत्याशी नहीं हार सका है। इसके अलावा हरिद्वार जिले की मंगलौर, लंढोरा व झबरेडा विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहांभाजपा व कांग्रेस का उम्मीदवार आज तक नहीं जीत पाया और इन सीटों पर जीत का सेहरा बसपा के सिर बंधा है। मसलन इन सीटों पर कोई भी दल एक दृसरे को शिकस्त नहीं दे पाया है।
छोटे दल भी जंग में
उत्तराखंड विधानसभा की 70 सीटों पर 3578995 महिलाओं समेत कुल 7512559 मतदाताओं के चक्रव्यूह को भेदने के लिए 637 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इसमें भजापा और कांग्रेस के 70-70, बसपा के 69, सपा के 21, उत्तराखंड क्रांतिदल के 20, शिवसेनाके सात, सीपीआई और सीपीएम के पांच-पांच, रालोद के तीन, राकांपा के दो प्रत्याशियों के साथ ही 103 प्रत्याशी पंजीकृत गैरमान्यता प्राप्त दलों के चुनाव मैदान में हैं। इनके अलावा 262 प्रत्याशियों ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोक रखी है, जिनमेंभाजपा व कांग्रेस के बागी नेता भी शामिल हैं। राज्य की 70 विधानसभा सीटों के लिए कुल 10 हजार 854 मतदान केंद्र बनाए गए हैं,जिनमें हरिद्वार की सभी 11 सीटों के अलावा कोटद्वार, लोहाघाट, चंपावत तथा रुद्रपुर में सीधा मुकाबला है।