शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

प. यूपी में दांव पर लगी दिग्गजों की प्रतिष्ठा!

यूपी चुनाव: पहले चरण में 73 सीटों पर चुनाव आज
गैरभाजपाई दलों की मुस्लिम वोटरों पर नजरें
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 73 सीटों पर कल शनिवार को मतदान होगा। यूपी की सियासत का रास्ता तय करने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा और रालोद आदि दलों के दिग्गज नेताओं की साख दांव पर लगी हुई है। इस क्षेत्र में भाजपा को छोड़ अन्य सभी दलों को मुस्लिम वोटबैंक साधने में होड़ लगी हुई है।
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर सात चरणों में हो रहे चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्त्तर प्रदेश के 15 जिलों की 73 विधानसभा सीटों के लिए कल शनिवार को वोट ड़ाले जाएंगे। जाट और मुस्लिम बाहुल्य पश्चिमी उत्तर प्रदेश कीसियासत राज्य की सत्ता का रास्ता तय करने के लिए मानी जाती रही है। इस चरण में अपने अपने दलों की प्रतिष्ठा बचाने की होड़ में कई बड़े दिग्गज नेताओं ने पूरी ताकत झोंक रखी है, जिनकी प्रतिष्ठा इस सियासी दंगल में तय होगी। पश्चिमी उत्त्तर प्रदेश में जातीय गणित, वोटबैंक और सियासी दमखम के नजरिये से प्रमुख रूप से रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह के साथ ही भाकियू अध्यक्ष नरेश टिकैत, केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के अलावा केंद्र में मंत्री डा. संजीव बालियान व सांसद हुकुम सिंह के साथ ही मुजμफरनगर दंगों में चर्चित रहे भाजपा के संगीत सोम, सुरेश राणा, भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी, सात बार विधायक रहे राजपाल त्यागी के अलावा बसपा के पूर्व सांसद कादिर राणा, सपा सरकार में मंत्री शाहिद मंजूर, सपा एमएलसी वीरेन्द्र सिंह, जैसे दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इस चरण के चुनाव में उक्त दिग्गज या तो खुद चुनावी जंग में है या फिर उनके परिजन व रिश्तेदार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
चुनाव मैदान में हैं ये दिग्गज
यूपी के पहले चरण में राजनीतिक दलों के जिन नेताओं की साख दांव पर उनमें से सरधना से भाजपा के संगीत सोम, थानाभवन से सुरेश राणा, मेरठ शहर से लक्ष्मीकांत वाजपेयी, किठौर से सपा के शाहिद मंजूर खुद चुनाव मैदान में हैं तो वहंीं केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिं के बेटे पंकज सिंह नोएडा विधानसभा सीट पर चुनावी जंग में हैं। जबकि कैराना सीट से भाजप सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका के खिलाफ हुकुम सिंह भतीजे अनिल चौहान बगावत करके रालोद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, तो वहीं कैराना सीट पर पूर्व सांसद स्व. मुनव्वर हसन के बेटे नाहिद हसन सपा से ताल ठोके हुए हैं। इसी प्रकार बुलंदशहर की अतरौली सीट से राजस्थान के राज्यपाल एवं पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पौत्र चुनाव मैदान में है। शामली में सपा एमएलसी वीरेंद्र सिंह के बेटे मनीष चौहान (निर्दलीय) रूप से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जबकि गाजियाबाद में मुरादनगर सीट पर पूर्व मंत्री राजपाल त्यागी के बेटे अजीत पाल त्यागी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
जातीय समीकरण पर नजरें
पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़,मथुरा, हाथरस, आगरा, फिरोजाबाद, एटा और कासगंज जिलों में मतदान होना है। इस इलाके में मेरठ, बागपत, बुलंदशहर,गौतमबुद्धनगर, हापुड़, गाजियाबाद, शामली और मुजफ्फरनगर हैं। मेरठ-सहारनपुर मंडल के इन जिलों में आबादी के लिहाज से तीन जातियों का वर्चस्व है। इसमें सर्वाधिक आबादी मुस्लिमों की है, जोकि कुल जनसंख्या का यहां 26 प्रतिशत हिस्सा है। जबकि 21 फीसदी आबादी के हिसाब से दूसरा स्थान दलितों का है और 17 प्रतिशत के हिसाब से तीसरे स्थान पर जाट हैं। अकेले मुजμफरनगर और मेरठ के आसपास के इलाकों में मुस्लिमों की आबादी 35 से 45 प्रतिशत तक है, जिसमें मुजफ्फरनगर में 38.09 फीसदी, मेरठ में 32.81 फीसदी, बागपत में 24.73 फीसदी, गाजियाबाद में 23.73 फीसदी और अलीगढ़ में 17.78 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं। शायद यही कारण है कि मुस्लिम वोट बैंक साधने की फिराक में बसपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 140 सीटों में से 50 मुस्लिम प्रत्याशी खड़े किये हैं, जबकि सपा-कांग्रेस ने भी मुस्लिमों की ताकत भांपते हुए 42 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है।
रालोद की ये चुनौती
देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पुत्र व राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया अजित सिंह को पश्चिमी यूपी का कद्दावर नेता माना जाता है। रालोद नेता अजित सिंह ‘गन्ना बेल्ट' के नाम से मशहूर इस क्षेत्र की जाट बहुल सीटों पर खासा प्रभाव है। हालांकि 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को झटका जरूर लगा था, लेकिन अब हालात बदले नजर आ रहे हैं। पिछले 2012 विधानसभा चुनाव में 46 उम्मीदवारों को खड़ा किया था और पार्टी ने नौ सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद परंपरागत जाट-मुस्लिम वोटबैंक दरक गया था। यही वजह थी कि 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी का खाता तक नहीं खुला था, लेकिन इस बार फिर से अपने खोए सियासी रसूख को वापस पाने की कोशिशों में हैं।
11Feb-2017

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