मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

सोशल मीडिया के साथ डिजिटल हुआ चुनाव

 आखिर बदलने लगा चुनावी तौर-तरीका
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चल रहे चुनावों में देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में सुधार की दिशा में चुनाव आयोग द्वारा लागू की गई नई व्यवस्थाओं का असर देखने को मिल रहा है। सियासी दलों पर नियमों के शिकंजे के मद्देनजर इस बार चुनावी तौर-तरीका बदलता नजर आ रहा है। मसलन सियासी दलों का चुनाव प्रचार भी डिजिटल मोड़ पर ज्यादा रμतार पकड़ रहा है।
देश के लोकतंत्र में चुनाव में धनबल और बाहुबल की परंपरा को मौजूदा आधुनिक युग ने पीछे धकेल दिया है। वहीं चुनाव आयोग की आदर्श आचार संहिता को जिस प्रकार से सख्त किया गया है दुनिया के अन्य देश भी उसका लोहा मान रहे हैं। इन पांच राज्यों में उत्तर प्रदेश के सात चरणों में हो रहे चुनाव सभी सियासी दलों के लिए अहम माने जा रहे हैं, जिसमें चुनावी सभाओं में एक-दूसरे पर जिस प्रकार शब्दबाणों से वार हो रहा है, तो वहीं प्रमुख दलों के वाररूम भी चुनाव प्रचार का मुख्य जरिया बन रहे हैं। मोदी सरकार ने जिस प्रकार से भारत को डिजिटल इंडिया बनाने का सपना देखा है उसका असर मौजूदा चुनावों के दौरान भी नजर आ रहा है। हालांकि भाजपा व कांग्रेस जैसे कुछ प्रमुख दल इस कंप्यूटरयुग की तकनीक का इस्तेमाल पहले से ही करते रहे हैं, लेकिन इस बार सपा, बसपा और अन्य छोटे दल भी सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार करने में जुटे हैं। पिछले करीब एक दशक से सोशल मीडिया का चुनाव प्रचार में खासा इस्तेमाल होता देखा गया है, जो इस बार परिपक्व होता दिख रहा है।
वार पर पलटवार
फिलहाल उत्तर प्रदेश चुनावों की गूंज चौतरफा है, जिसके चरणवार चुनाव प्रचार में एक-दूसरे दल आरोप-प्रत्यारोप लगाने में सभी सीमाएं लांघने को तैयार हैं, तो हर वार का पलटवार सोशल मीडिया पर साफतौर से देखा जा रहा है। अब तो भाजपा व कांग्रेस के बाद सपा, बसपा, रालोद, राजद, आप, जदयू, वाम दल और तमाम क्षेत्रीय व छोटे दल भी फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं। यानि चुनाव प्रचार में हरेक दल के नेता के वार के बदले पलटवार टिप्पणी कुछ मिनटों में ही सोशल मीडिया पर कोई न कोई नेता करता नजर आ रहा है। हालांकि चुनावी सभाओं में पलटवार करके आरोप-प्रत्यारोप का दौर पूरे चरम पर है, लेकिन सोशल मीडिया पर भी ऐसी टिप्पणियां हिट हो रही हैं। मसलन आज के दौर में चुनाव प्रचार पोस्टरों और दीवार पोतने के बजाए सोशल मीडिया पर उतारा जा चुका है। यह चुनावी आदर्श आचार संहिता में किये गये व्यापक बदलाव का भी कारण है। चुनाव आयोग की नई व्यवस्थाओं में हालांकि हरेक प्रत्याशी के चुनावी खर्चो में बेताहशा कमी देखी गई है। चुनाव प्रणाली में जिस प्रकार से सोशल मीडिया की भूमिका बढ़ी है तो वहीं सियासी दलों के वार रूप का रूतबा भी बढ़ा है, जहां से आरोप का प्रत्यारोप तपाक से सोशाल मीडिया की सुर्खियों में आ रहा है।
यूपी में हावी डिजीटल रणनीति
उत्तर प्रदेश में चुनाव के दौरान डिजिटल इंडिया का काफी असर हो रहा है, जहां चुनावों मं भाजपा, कांग्रेस के बाद सपा व बसपा भी वाररूम का इस्तेमाल करके डिजीटल मोड़ पर चुनाव प्रचार करने में जुटी हुई है। ऐसे दलों ने जहां चुनावी सभाओं में पूरी ताकत झोंक रखी है, वहीं फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप्प, कंप्यूटर स्क्रीनों जैसे डिजीटल माध्यमों को अपनाया है। यह डिजिटल मोड का चुनावी प्रचार चौबीसों घंटे काम कर रहा है। खास बात है कि सोशल मीडिया पर टिप्पणी या वार का पलटवार करने में किसी पार्टी के बड़े नेताओं का काम नहीं है, बल्कि इसके लिए हर पार्टी में रणनीतिकार और आईटी विशेषज्ञ तैनात किये हुए हैं, जो तत्काल ही एक-दूसरे दल के आरोपों का प्रत्यारोप पार्टी के जवाब के रूप में प्रसारित कर रहे हैं।
सियासी जासूसी का खेल
सोशल मीडिया या वार रूम में सक्रिय हर दलों के रणनीतिकारों के अलावा विधानसभा क्षेत्र वार भी एक दूसरे दल व उसके प्रत्याशी के जासूसी सियासत का खेल भी सामने आ रहा है। प्रमुख दलों के सक्रिय जासूस एक-दूसरे दलों की गतिविधियों और उनके प्रत्याशियों की रणनीतियों को भी अपने तरीके से ही टोह लेने का काम कर रहे हैं। सूत्रों की माने तो कुछ डिटेक्टिव एजेंसियों की चुनावी दौर में अच्छी खासी कमाई हो रही है, जहां से जासूसी के लिए कार्यकर्ताओं को राजनीतिक दल हायर करके विरोधियों की गतिविधियों की टोह ले रहे हैं। सियासी रणनीतिकार अपने दल के हाईकमान के वरिष्ठ नेताओं को पल-पल की रिपोर्ट दी जा रही है। ऐसी रणनीतियों का खुलासा कुछ दलों के वरिष्ठ नेताओं ने भी किया है।
21Feb-2017

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