शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बदलेंगे राजनीतिक समीकरण!


दंगों की तपिश पर दो फरवरी को मोदी की रैली
ओ.पी.पाल 
लोकसभा चुनाव की तैयारियों में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी की दो फरवरी को मेरठ में हो रही विजय शंखनाद रैली को इस लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि मुजफ्फरनगर दंगों की तपिश में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण धीरे-धीरे बदल रहे हैं। यहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन पर भाजपाई दिग्गजों की परीक्षा भी होगी।
लोकसभा चुनावों के राजनीतिक पारे को नया आयाम देने के लिए मेरठ में होने वाली मोदी की इस रैली को अभी तक यूपी में हुई सात रैलियों को बोना साबित करने के लिए उत्तर प्रदेश खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भाजपाई दिग्गज जोरदार तैयारियों में जुटे हुए हैं। वैसे भी यह रैली मुजफ्फरनगर और आसपास के दंगों की तपिश की कसौटी पर एक चुनौती से कम नहीं है। मोदी की इस रैली से दंगों के कारण बिगड़े पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण बदलने की संभावना देखी और तलाशी जा रही है। रैलियों के घमासान में नए सियासी बादल उमड़ने की स्थिति पैदा करने के लिए मोदी की इस रैली को महारैली की शक्ल देने के प्रयास किये जा रहे हैं। राजनीतिक जानकारों की माने तो दो फरवरी को नरेन्द्र मोदी की महारैली की आहट से ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति करवट बदलती नजर आने लगी है। बाकी रैली तय करेगी कि दंगों की तपिश में अन्य दलों की सियासत के मुकाबले शह और मात का खेल में कौन बाजी मारता है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण कौन सी करवट बैठते हैं। सही मायने में तो मेरठ में मोदी की यह महारैली भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह, प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के अलावा मुख्तार अब्बास नकवी, हुकुम सिंह, नैपाल सिंह, सतपाल मलिक, राजबीर सिंह 'राजू भैया' व विजयपाल तोमर जैसे दिग्गजों के लिए अनुकूल माहौल को वोट में तब्दील करने की चुनौती होगा।
सभी ने की दंगों पर सियासत
मोदी की रैली से पहले स्व. चौधरी चरण सिंह की जयंती के मौके पर रालोद की संकल्प रैली में कांग्रेस और जदयू ने भी मेरठ की जमीन से ही दंगों पर सियासत की है। इससे पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी दो बार दंगा पीड़ितों को मरहम लगाने के लिए दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा कर चुके हैं,जबकि यूपी की सत्तारूढ़ सपा के मुख्यमंत्री अखिलेश और उसके सिपहसालार के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, रालोद प्रमुख अजीत सिंह व महासचिव जयंत चौधरी और यूपीए के घटक दल सियासी दांव आजमा चुके हैं। जबकि दंगों की इस सियासत में अभी तक भाजपा पहले से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने रंग को गाढ़ा मानकर चल रही है। 
जाट व मुस्लिम वोट पर लगी नजरें 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बदले सियासी समीकरण में सभी दलों का ध्यान जाट व मुस्लिम वोट पर है। मुजफ्फरनगर दंगे के बाद सपा को इस रणभूमि में मुस्लिम वोट बैंक खिसकता हुआ नजर आ रहा है। ऐसे में मुस्लिमों को लुभाने के लिए सपा वेस्ट यूपी के तीन मुस्लिम राज्यमंत्री को कैबिनेट मंत्री पद पर प्रमोशन, सात जाट व मुस्लिम नेताओं को राज्यमंत्री पद का दर्जा व सहारनपुर से इमरान मसूद के स्थान पर शादान मसूद को टिकट दे चुकी है। बसपा बूथवार सभा करके दलित-मुस्लिम समीकरण को जोड़ने को प्रयासरत है। अब रालोद आगरा रैली कल गुरूवार 30 जनवरी को अपने बलबूते करके अपने टूटे गढ़ को संवारने में जुटी है। रालोद 16 फरवरी को शामली और 23 फरवरी को मुरादाबाद में भी रैली करके जाट-मुस्लिमों के टूटे गढ़जोड़ को संजोने के प्रयास में है।
30Jan-2014

बुधवार, 29 जनवरी 2014

हुड्डा की 'राज'नीति को करारा झटका!

सियासतःहरियाणा में कांग्रेस के नए समीकरण बनने के आसार

ओ.पी.पाल
कांग्रेस हाईकमान ने कुमारी सैलजा को हरियाणा से राज्यसभा का प्रत्याशी घोषित करके राज्य के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा गुट को करारा झटका दिया है,जिन्होंने एक दिन पहले ही कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष फूलचंद मुलाना को राज्यसभा भेजने की कांग्रेस हाईकमान से जोरदार वकालत की थी।
हरियाणा से राज्यसभा चुनाव के लिए मंगलवार को माथापच्ची के बाद कांग्रेस हाईकमान ने कुमारी सैलजा को प्रत्याशी बनाकर राज्य के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की उस कवायद पर पानी फेर दिया है जो दलित चेहरे के रूप में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष फूलचन्द मुलाना को राज्यसभा में भेजने की वकालत कर रहे थे। हरियाणा में कांग्रेस की गुटबाजी में राज्यसभा के उम्मीदवारों को लेकर चल रही रस्साकशी में आखिर वीरेन्द्र सिंह-कुमारी सैलजा गुट की जीत हुई और भूपेन्द्र सिंह हुड्डा गुट को करारा झटका लगा है। राज्यसभा की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद कुमारी सैलजा ने केंद्रीय मंत्रिमंडल और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को धन्यवाद देते हुए कहा है कि पार्टी पीसीसी अध्यक्ष या जो भी जिम्मेदारी उन्हें सौंपेगी उसे वे निष्ठा के साथ निभाएंगी। इस प्रकार पार्टी हाईकमान द्वारा राज्यसभा के लिए सैलजा के नाम की घोषणा को मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा गुट के लिए दोहरे झटके के रूप में देखा जा रहा है।
मुलाना की कुर्सी खतरे में
कांग्रेस हाईकमान ने हुड्डा गुट की बात न मानकार अंबाला से लोकसभा सदस्य और केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा को प्रत्याशी बनाकर यह संदेश भी दे दिया है कि भूपेन्द्र सिंह हुड्डा गुट से पिछले पांच साल से राज्य में कांग्रेस की कमान संभाल रहे फूलचंद मुलाना की कुर्सी भी अब खतरे में हैं।हरियाणा में कांग्रेस की गुटबाजी के मद्देनजर ऐसी भी अटकले पहले से ही लग रही हैं कि कांग्रेस हाईकमान कुमारी सैलजा को राज्यसभा भेजने के बाद दलित चेहरे के रूप में ही हरियाणा कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बनाने की तैयारी भी कर रहा है। सैलजा के लिए इससे पहले प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए चली खींचतान के दौरान राज्यसभा सांसद वीरेन्द्र सिंह भी इस पद के लिए हाईकमान से पैरवी कर चुके हैं।
 हुड्डा की ये दलील मानी
राज्यसभा की दो सीटों के लिए होने वाले चुनाव में जहां मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष फूलचन्द मुलाना को राज्यसभा भेजने के लिए हाईकमान में जोड़तोड़ करने में लगे थे। कांग्रेस हाईकमान के सामने भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने दलित चेहरा राज्यसभा में भेजने की वकालत करते हुए फूलचंद मुलाना को राज्यसभा के लिए बेहतर प्रत्याशी पेश किया। कांग्रेस हाईकमान ने हुड्डा की इस दलील को पानी देते हुए दलित चेहरे के रूप में ही कुमारी सैलजा को राज्यसभा का प्रत्याशी घोषित करके बीच का रास्ता निकाला। लेकिन विरोधी गुट से सैलजा के नाम की घोषणा होते ही मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा गुट के मंसूबों पर पानी फिरता नजर आया। हालांकि इससे पहले कुमारी सैलजा-वीरेन्द्र सिंह ने ईश्वर सिंह को ही फिर से राज्यसभा भेजने की वकालत की थी। गौरतलब है कि एक दिन पहले ही फूलचंद मुलाना को राज्यसभा भेजने के लिए स्वयं भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी व उनके राजनीतिक सलाहाकार अहमद पटेल से मुलाकात की थी।
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हरियाणा कांग्रेस चुनाव समिति का ऐलान:
आगामी लोकसभा चुनाव की दृष्टि से कांग्रेस हाईकमान ने हरियाणा प्रदेश चुनाव समिति का भी ऐलान किया है, जिसमें हरियाणा कांग्रेस में सभी गुटों का समावेश करने का प्रयास किया गया है। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि पार्टी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने 20 सदस्यीय हरियाणा प्रदेश चुनाव समिति को अंतिम रूप दिया है, जिसमें प्रदेशाध्यक्ष फूलचंद मुलाना, मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, राज्यसभा सांसद बिरेन्द्र सिंह, राज्यसभा उम्मीदवार कुमारी सैलजा,सांसद अशोक तंवर, अवतार सिंह भड़ाना, एचएस चट्टा, कैप्टन अजय यादव, रणदीप सिंह सुरजेवाला, श्रीमती किरण चौधरी, श्रीमती गीता भुक्कल, श्रीमती सावित्री जिंदल, चौधरी आफताब अहमद, डा. राम प्रकाश, विनोद शर्मा, बलबीर पाल शाह, सादीलाल बत्रा, जगदीश नेहरा, सुरेश गुप्ता व राजकुमार बाल्मिकी शामिल हैं। इसके अलवा समिति के चार अतिरिक्त सदस्यों में अमित सेहाग, संदीप बूरा, विधायक श्रीमती सुमिता सिंह व छोटा सिंह चौहान के नाम को हरी झंडी दी गई है।
29Jan-2014


हुड्डा की 'राज'नीति को करारा झटका!

सियासतःहरियाणा में कांग्रेस के नए समीकरण बनने के आसार
ओ.पी.पाल
कांग्रेस हाईकमान ने कुमारी सैलजा को हरियाणा से राज्यसभा का प्रत्याशी घोषित करके राज्य के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा गुट को करारा झटका दिया है,जिन्होंने एक दिन पहले ही कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष फूलचंद मुलाना को राज्यसभा भेजने की कांग्रेस हाईकमान से जोरदार वकालत की थी।
हरियाणा से राज्यसभा चुनाव के लिए मंगलवार को माथापच्ची के बाद कांग्रेस हाईकमान ने कुमारी सैलजा को प्रत्याशी बनाकर राज्य के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की उस कवायद पर पानी फेर दिया है जो दलित चेहरे के रूप में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष फूलचन्द मुलाना को राज्यसभा में भेजने की वकालत कर रहे थे। हरियाणा में कांग्रेस की गुटबाजी में राज्यसभा के उम्मीदवारों को लेकर चल रही रस्साकशी में आखिर वीरेन्द्र सिंह-कुमारी सैलजा गुट की जीत हुई और भूपेन्द्र सिंह हुड्डा गुट को करारा झटका लगा है। राज्यसभा की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद कुमारी सैलजा ने केंद्रीय मंत्रिमंडल और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को धन्यवाद देते हुए कहा है कि पार्टी पीसीसी अध्यक्ष या जो भी जिम्मेदारी उन्हें सौंपेगी उसे वे निष्ठा के साथ निभाएंगी। इस प्रकार पार्टी हाईकमान द्वारा राज्यसभा के लिए सैलजा के नाम की घोषणा को मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा गुट के लिए दोहरे झटके के रूप में देखा जा रहा है।
मुलाना की कुर्सी खतरे में
कांग्रेस हाईकमान ने हुड्डा गुट की बात न मानकार अंबाला से लोकसभा सदस्य और केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा को प्रत्याशी बनाकर यह संदेश भी दे दिया है कि भूपेन्द्र सिंह हुड्डा गुट से पिछले पांच साल से राज्य में कांग्रेस की कमान संभाल रहे फूलचंद मुलाना की कुर्सी भी अब खतरे में हैं।हरियाणा में कांग्रेस की गुटबाजी के मद्देनजर ऐसी भी अटकले पहले से ही लग रही हैं कि कांग्रेस हाईकमान कुमारी सैलजा को राज्यसभा भेजने के बाद दलित चेहरे के रूप में ही हरियाणा कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बनाने की तैयारी भी कर रहा है। सैलजा के लिए इससे पहले प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए चली खींचतान के दौरान राज्यसभा सांसद वीरेन्द्र सिंह भी इस पद के लिए हाईकमान से पैरवी कर चुके हैं।
 हुड्डा की ये दलील मानी
राज्यसभा की दो सीटों के लिए होने वाले चुनाव में जहां मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष फूलचन्द मुलाना को राज्यसभा भेजने के लिए हाईकमान में जोड़तोड़ करने में लगे थे। कांग्रेस हाईकमान के सामने भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने दलित चेहरा राज्यसभा में भेजने की वकालत करते हुए फूलचंद मुलाना को राज्यसभा के लिए बेहतर प्रत्याशी पेश किया। कांग्रेस हाईकमान ने हुड्डा की इस दलील को पानी देते हुए दलित चेहरे के रूप में ही कुमारी सैलजा को राज्यसभा का प्रत्याशी घोषित करके बीच का रास्ता निकाला। लेकिन विरोधी गुट से सैलजा के नाम की घोषणा होते ही मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा गुट के मंसूबों पर पानी फिरता नजर आया। हालांकि इससे पहले कुमारी सैलजा-वीरेन्द्र सिंह ने ईश्वर सिंह को ही फिर से राज्यसभा भेजने की वकालत की थी। गौरतलब है कि एक दिन पहले ही फूलचंद मुलाना को राज्यसभा भेजने के लिए स्वयं भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी व उनके राजनीतिक सलाहाकार अहमद पटेल से मुलाकात की थी।
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हरियाणा कांग्रेस चुनाव समिति का ऐलान
आगामी लोकसभा चुनाव की दृष्टि से कांग्रेस हाईकमान ने हरियाणा प्रदेश चुनाव समिति का भी ऐलान किया है, जिसमें हरियाणा कांग्रेस में सभी गुटों का समावेश करने का प्रयास किया गया है। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि पार्टी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने 20 सदस्यीय हरियाणा प्रदेश चुनाव समिति को अंतिम रूप दिया है, जिसमें प्रदेशाध्यक्ष फूलचंद मुलाना, मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, राज्यसभा सांसद बिरेन्द्र सिंह, राज्यसभा उम्मीदवार कुमारी सैलजा,सांसद अशोक तंवर, अवतार सिंह भड़ाना, एचएस चट्टा, कैप्टन अजय यादव, रणदीप सिंह सुरजेवाला, श्रीमती किरण चौधरी, श्रीमती गीता भुक्कल, श्रीमती सावित्री जिंदल, चौधरी आफताब अहमद, डा. राम प्रकाश, विनोद शर्मा, बलबीर पाल शाह, सादीलाल बत्रा, जगदीश नेहरा, सुरेश गुप्ता व राजकुमार बाल्मिकी शामिल हैं। इसके अलवा समिति के चार अतिरिक्त सदस्यों में अमित सेहाग, संदीप बूरा, विधायक श्रीमती सुमिता सिंह व छोटा सिंह चौहान के नाम को हरी झंडी दी गई है।
29Jan-2014

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

मुस्लिम वोट बैंक को ‘इन-कैश’ करने में जुटा रालोद!

भोज में मिठास घोलकर नाराजगी दूर करने का प्रयास
ओ.पी.पाल 
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे ही राजनीतिक दलों में मुजफ्फरनगर व आसपास हुए दंगों के कारण टूटे जाट-मुस्लिम गठजोड़ का सियासी लाभ लेने की नीयत से मुस्लिमों को लेकर खींचतान करने की राजनीति तेज होती जा रही है। ऐसे में खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में टूटे गढ़ को संभालने के लिए राष्ट्रीय लोकदल भी मुस्लिमों की सियासत को तेज करने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहता।
रालोद अपने राजनीतिक गढ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन बिगड़े सियासी समीकरणों को संवारने का प्रयास करने में जुटा है। सिर पर लोकसभा चुनाव को देखते हुए रालोद ने मुजμफरनगर व आसपास हुए दंगों को सपा और भाजपा की सियासी साजिश करार देते हुए मुस्लिमों को जाटों के साथ रहने का वास्ता देने वाली अपनी रणनीति खुद के चुनावी क्षेत्र बागपत जिले से शुरू की। सोमवार को बागपत जिले के मुस्लिमों को दोपहर के भोज पर बुलाकर उनकी नाराजगी दूर करने और उनके मनो को जीतने की भरसक कोशिश की। रालोद नेता कोकब हमीद तथा सलीम चौधरी के नेतृत्व में आए बागपत जिले के मुस्लिमों ने एकजुटता का आश्वासन देकर रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह की इस सियासी मुहिम को राहत अवश्य दी। इससे पहले चौधरी चरण सिंह की जयंती पर भी रालोद ने कांग्रेस और जदयू के साथ मिलकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खिसकी राजनीतिक जमीन को हासिल करने के लिए जाट-मुस्लिम गठजोड़ की दुहाई देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
मुस्लिमों वोट बैंक पर सबकी नजरें
रालोद भी यूपीए का घटक दल है, लेकिन यूपीए का नेतृत्व कर रही कांग्रेस भी दंगों की सियासत में मुस्लिम वोट बैंक पर नजरें गड़ाये हुए है। वहीं सपा इन दंगों से नाराज मुस्लिमों को मनाने के लिए हर हथकंडे अपना रही है, तो बसपा भी दलित-मुस्लिम गठजोड़ का हवाला देकर मुस्लिमों को मरहम लगाने में लगी हुई है। भाजपा को छोड़ सभी दलों में मुस्लिमों पर खींचतान जारी है और सभी भाजपा को निशाना बनाकर दंगों की सियासत करने का प्रयास कर रहे हैं। दिलचस्प बात है कि सपा कांग्रेस और भाजपा, बसपा कांग्रेस-सपा और भाजपा, कांग्रेस और रालोद सपा-भाजपा को इन दंगों की साजिश करार देकर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में भी पीछे नहीं हैं।
किसी को नहीं मिलेगा बहुमत
यूपीए के घटक दल राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख चौधरी अजित सिंह दंगों के कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी जमीन कमजोर होने की बात तो स्वीकारते हैं। वहीं उन्होंने यह भी दावा किया है कि राजनीतिक दंगे कराकर भी भाजपा और सपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कोई राजनीतिक लाभ मिलने वाला नहीं है। उन्होंने इस बात को तो माना कि भाजपा का ग्राफ बढ़ा है, लेकिन चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों को पूरी तरह खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि आने वाले लोकसभा चुनाव में जहां यूपीए को बहुमत नहीं मिल पाएगा, तो वहीं भाजपा भी सत्ता में आने की स्थिति में नहीं होगी। उनका कहना था कि इन चुनाव में खंडित जनादेश के ज्यादा आसार हैं। एक सवाल के जवाब में अजित सिंह ने कहा कि दंगों के कारण लोगों की नाराजगी स्वाभाविक है, लेकिन उनका जनाधार कायम रहेगा।
28Jan-2014

सोमवार, 27 जनवरी 2014

दंगो पर बढ़ने लगी यूपी सरकार की मुश्किलें!

यूपी की हिंसक घटनाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू
ओ.पी.पाल

मुजफ्फरनगर और आसपास के अलावा उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों में हुई हिंसक घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट की गंभीरता और इन दंगों की सुनवाई शुरू कर दिये जाने से राज्य की सपा सरकार की मुश्किलें बढ़ाना शुरू कर दिया है। वहीं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी दंगों की जांच में यूपी सरकार को कठघरे में खड़ा करती नजर आ रही है।
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और उसके आसपास के जिलों में सितंबर 2013 में हुए दंगों को लेकर जिस प्रकार की सियासत हुई है और उत्तर प्रदेश सरकार ने एक तरफा कार्यवाही करके एक ही वर्ग के दंगा पीड़ितों को आर्थिक मदद व आंसू पौंछने का काम किया है उससे सुप्रीम कोर्ट से यूपी की अखिलेश सरकार को कई बार फटकार भी मिली है। यूपी में सपा सरकार की मुश्किलें इसलिए भी बढ़ना तय माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट इन दंगों की जांच सीबीआई से कराने के साथ-साथ अपना विशेष जांच दल भी गठित करने जैसे आदेश जारी कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अब यूपी में सांप्रदायिक दंगों की अंतिम सुनवाई शुरू कर दी है। प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ इन दंगों की निष्पक्ष जांच के सवाल पर विचार करने के साथ ही दंगा प्रभावित लोगों के लिये राहत और पुनर्वास दायरे की निगरानी भी कर रही है। इस प्रकार की याचिकाएं दंगा प्रभावित क्षेत्रों के वकीलों के अलावा गैर सरकारी संगठनों और दूसरे व्यक्तियों ने सुप्रीम कोर्ट में दायर कर रखी हैं, जिन्हें स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया है। न्यायालय ने दंगों की सुनवाई करते हुए कहा कि वह इस समय दंगा प्रभावित जिलों के मुख्य मुद्दे पर विचार केन्द्रित कर रहा है और शीर्ष अदालत के निदेर्शों के कथित उल्लंघन के आरोप में उत्तर प्रदेश सरकार तथा समाजवादी पार्टी के नेतृत्व के खिलाफ अवमानना कार्रवाई के लिये दायर याचिका पर सुनवाई के बारे में बाद में निर्णय करेगा।
याचिकाओं में की गई मांग
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाके में हुए दंगों में सरकार और प्रशासन पर लगे आरोप लगाते हुए याचिकाओं में यह भी मांग की गई है कि असामाजिक तत्वों को दूर रखने के लिये प्रशासन को आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिये जायें और राहत तथा पुनर्वास के उपाय बगैर किसी भेदभाव के सभी दंगा प्रभावित लोगों तक पहुंचाने का निर्देश दिया जाये। याचिका में यह भी अनुरोध किया गया है कि इस तरह की स्थिति से निबटने में हुई चूक के लिये प्रशासन को जिम्मेदार ठहराने की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
सरकार को जारी हुए नोटिस
उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री मो. आजम खां को मुजफ्फरनगर दंगों की बाबत सुप्रीम कोर्ट की ओर से सात नोटिस जारी किये जा चुके हैं। गौरतलब है कि आजम खां पर मुजफ्फरनगर दंगों की साजिश जैसे आरोप लगे हैं और वह एक भी बार मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान या उसके बाद पीड़ितों की सुध लेने भी नहीं गये, लेकिन उन पर आरोप है कि कवाल में दोनों पक्षों की ओर से हुई मौतों में पुलिस द्वारा सबूतों के साथ पकड़े गये आरोपियों को छुड़ाया, जो इन दंगों का कारण बना।
23Jan-2014

मंगलवार, 21 जनवरी 2014

गणतंत्र दिवस: सरकार के सामने केजरी ‘वॉल’

मंत्रालयों में ठप रहा कामकाज
ओ.पी.पाल

आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल रेल भवन के सामने धरने पर बैठने से केंद्र सरकार के मंत्रालयों में कामकाज को ही ठप नहीं कर दिया, बल्कि गणतंत्र दिवस के सामने भी केजरी की ‘वॉल’ खड़ी हो गई है। ड्यूटी में कोताही के बरतने का आरोप चस्पां करते हुए तीन थाना प्रभारियों खिलाफ निलंबन की मांग ने ऐसा तूल पकड़ा कि सरकार के दरवाजे पर भी तालाबंदी के आसार नजर आने लगे हैं। 
सोमवार को धरनास्थल रेल भवन के आसपास स्थित विभिन्न मंत्रालयों में एक भी फाइलें नहीं सरकीं। मंत्रियों को मिलने जुलने का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। लंच से पहले हर विभाग में छोटे-बड़े अधिकारी टीवी पर नजरें गड़ाए रहे। लंच के समय धरनास्थल पर तफरीह कर आए। तब तक आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं का कारवां बढ़ता गया। पुलिस की नाकेबंदी का असर भी तेजी से हुआ। संसद भवन, रेलभवन, कृषि भवन, शास्त्री भवन, श्रमशक्ति भवन, परिवहन भवन,योजना आयोग ही नहीं अपेक्षाकृत दूर स्थित उद्योग भवन और निर्माण भवन स्थित मंत्रालयों में बस मुद्दा-केजरीवाल ही छाया रहा। रेलमंत्रालय में तयशुदा आठ अप्वाइंटमेंट्स रद्द करनी पड़ी, जबकि सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी जाम के हालात से पैदल ही सड़कें नापते हुए श्रममंत्री से मिलने मंत्रालय पहुंचे। गणतंत्र दिवस परेड की तैयारियों के रिहर्सल पर तो असर पड़ा ही 26 जनवरी के कार्यक्रम पर इसका क्या असर पड़ेगा, बहस इस पर भी तेज हो गई है। वहीं दिल्ली के लोगों की लाइफ लाइन मेट्रो के कुछ महत्वपूर्ण स्टेशनों को पीक टाइम में बंद किया गया। लोग जाम में फंसे रहे। शाम को पांच बजे से लेकर 7 बजे तक मध्य दिल्ली जाम के कारण जैसे ठहर सी गई थी।
पुलिस ने बनाया ज्यादा हव्वा
रेल मंत्रालय के सामने गोविंद बल्लभ पंत पार्क में जारी धरने के समर्थन में आप समर्थकों के आवागमन के कारण दिल्ली पुलिस ने जिस तरह की एक किमी पहले ही नाकेबंदी करके पुलिस बल ने आम आदमी या फिर मंत्रालय और अन्य कार्यालयों में आने जाने वाले संबन्धित अधिकारियों और कर्मचारियों को किसी भी कीमत पर आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी, जिसके कारण जगह-जगह पुलिसकर्मियों के साथ किसी न किसी की नोंकझोंक चलती रही। पुलिस बलों का जिस तरह का जमावड़ा रहा उसने इस आंदोलन का ज्यादा हौव्वा दिखाने का प्रयास किया। वहीं पुलिसकर्मियों की बदसलूकी ने पुलिस के रवैये पर सवाल खड़े किये।
रोजमर्रा की कमाई पर भी मार
मंत्रालयों वाले भवनों के पास छोटे दुकानदारों और रेहड़ी पटरी वालों का भी रोजगार आम आदमी पार्टी के कारवां ने ठप रखा और उनकी रोजमर्रा कमाई से परेशान आम आदमी भी इस आंदोलन की मार का शिकार हुआ। इस धरने से ऐसे सैकड़ो रोजगारदारों का कहना था कि ऐसा कभी नहीं देखा कि यहां आंदोलन हुआ हो। एक तो उनकी रोजी मारी गई, वहीं पुलिस वालों की बदसलूकी उनकी परेशानी का कारण बनी।
21Jan-2014

सोमवार, 20 जनवरी 2014

लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने में जुटा रालोद!

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गढ़ बचाने की चुनौती
ओ.पी.पाल

मुजफ्फरनगर व आसपास के दंगों से बिखरे अपने वोट बैंक को संजोने के लिए यूपी की सरकार के खिलाफ आंदोलन के जरिए सड़कों पर उतरकर किसानों व गांव की राजनीति के साथ आम आदमी की बुनियादी सुविधाओं के लिए राष्ट्रीय लोकदल ने आंदोलन की रणनीति शुरू की है। इसी रणनीति से रालोद आगामी लोकसभा की चुनावी रणनीतियों को अमलीजामा पहनाने की तैयारी में है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यूपी की सरकार और उसका नेतृत्व कर रही समाजवादी पार्टी की वोट बैंक नीतियों और उसके बाद मुजफ्फरनगर और आसपास हुए दंगों से अपना राजनीतिक वजूद खोता देख रालोद ने चुनावी रणनीति को मजबूत बनाने में सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है। दंगों के कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम गठजोड़ के बिखराव से आहत रालोद ने वैसे तो चौधरी चरण सिंह की जयंती पर अपनी राजनीतिक जमीन को संवारने की कवायद शुरू कर दी थी, लेकिन रालोद के गढ़ में सपा के बिछाए जाल से वह अभी उबरती नजर नहीं आई। इसलिए आगामी लोकसभा चुनाव को नजदीक आते देख रालोद ने सूबे की सपा सरकार के खिलाफ किसानों की समस्याओं के साथ आम जनता की मांगों और प्रशासनिक व सपा कार्यकर्ताओं की कथित तानाशाही के खिलाफ सड़कों पर उतरकर आंदोलनों के जरिए आर-पार की लड़ाई को अंजाम दिया। रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह ने हाल ही में नई दिल्ली में उत्तर प्रदेश के पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाकर इस रणनीति को अंतिम रूप दिया। सूत्रों के अनुसार रालोद हाईकमान ने यूपी के सभी सांसदों और विधायकों को इन आंदोलन का नेतृत्व करने का भी फरमान दिया है, ताकि यूपी में सपा कार्यकर्ताओं के इशारे पर प्रशासन के तानाशाह रवैये के खिलाफ सपा की जनविरोधी नितियों को उजागर किया जा सके। रालोद के सामने आम चुनाव में अपने गढ़ को बचाने की भी चुनौती है इसलिए रालोद कार्यकर्ताओं को गांव-गांव जाकर किसानों और ग्रामीणों का दर्द सुनने की हिदायत दी गई है।
उत्पीड़न का आरोप
रालोद के सांसद संजय सिंह चौहान ने आरोप लगाया है कि प्रदेश का किसान सपा सरकार की नीतियों के कारण भुखमरी के कगार पर हैं और दूसरी ओर सपा नेताओं के इशारों पर रालोद कार्यकर्ताओं को किसानों की आवाज बुलंद करने पर उत्पीड़न करने की नीति ही नहीं अपनाई जा रही, बल्कि उन्हें गिरफ्तार तक किया जा रहा है। मुजफ्फरनगर  के जिलाधिकारी पर आरोप है कि रालोद कार्यकर्ताओं के आंदोलन में उनका ज्ञापन तो नहीं लिया , बल्कि रालोद कार्यकर्ताओं को जबरदस्ती जेल भेजा गया। इसी कारण रोलाद को सपा सरकार के खिलाफ आंदोलन करके आर-पार की लड़ाई की रणनीति को अंजाम देना पड़ा है। एमएलसी मुश्ताक चौधरी ने सपा सरकार को किसान व विकास विरोधी बताते हुए चेतावनी दी है कि रालोद आर-पार की लड़ाई को
तैयार है।
20Jan-2014

राग दरबार-झूठ की राजनीति में सच्च का हौव्वा

आप पर संकट के बादल....
झूठ का का कोई भविष्य नहीं होता जबकि सच की उम्र बहुत लम्बी होती है! इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता। लेकिन लगता है इस कलयुग में सच्चाई पर झूठ की राजनीति इतनी हावी हो चुकी है कि सच्च को झुपाने के लिए बार-बार झूठ का सहारा लेना पड़ता है। दिल्ली में जब से आमा आम आदमी पार्टी की सत्ता आई तो सच्च और झूठ के सहारे ईमानदारी को प्रकट करने का हर दल प्रयास करता नजर आ रहा है। आप की ईमानदारी में भी  फूट पड़ने लगी तो परते खुलने से आप खुद ही जज बनकर उसे ढकने का प्रयास हो रहा है। बहरहाल राजनीति हो या कोई सार्वजनिक स्थल सभी गलियारों में आप सुर्खियों में बनी हुई है। सोसाल साइटों में इस सच्च और झूट के साथ ईमानदारी और बेइमानी के किस्से सामने आ रहे हैं, जिन पर टिप्पणियां भी चौंकाने वाली प्रकाशित हो रही हैं। आप के निरंतर बदलते बयान और वादों का ही यह कारण हो सकता है कि लोग फूल, कांटे और पत्थर लेकर सुबह से जुट जाते हैं। कोई खामियां ढूंढता है तो कोई आप को बेहतर बताने पर आमदा है जो बड़े दलों की परेशानी का भी कारण बन रही हैं। बने भी क्यों न सिर पर आम चुनाव जो हैं। ऐसे में सुर्खियों में चल रहे आम लोगोें के अलग-अलग बर्ताव यही कहता है कि झूठ की राजनीति में सच्च का हौव्वा बैठाने का प्रयास किया जा रहा है। मजे की बात तो यह है कि जो अपने को मूल निवासी यानी आम आदमी बताते नही थकते, यह समझ से परे होता जा रहा है कि सभी आम आदमी कहेंगे तो खास का क्या होगा।
19Jan-2014

रविवार, 19 जनवरी 2014

प्रवासी दुल्हनों की सुध लेगी सरकार!

'मैरिजिस टू ओवरसीज इंडियन' नामक एक निर्देश पुस्तिका जारी
ओ.पी.पाल

भारतीय युवतियों से छल करके विदेश में रह रहे भारतवंशियों द्वारा शादी करने और बाद में उनसे संबन्ध विच्छेद करने या तलाक लेने से परेशान प्रवासी दुल्हनों की रक्षा के लिए केंद्र सरकार ने उनकी सुध लेते हुए कठोर कदम उठाने का दावा किया है। प्रवासी मामलों के मंत्रालय ने 'मैरिजिस टू ओवरसीज इंडियन' नामक एक निर्देश पुस्तिका जारी करके जागरूकता फैलाने की कोशिश की है, लेकिन विदेशों में स्थापित भारतीय मिशनों में तलाकशुदा महिलाओं की शिकायतें इस बात की गवाह है कि प्रवासी भारतीयों के विवाह पंजीकरण को अनिवार्य करने के बावजूद ऐसी तलाकशुदा महिलाएं न्याय पाने के लिए संघर्ष करने को मजबूर हैं।
विदेशों में रह रहे भारतवंशियों द्वारा भारत की युवतियों से शादी करने का ज्यादा क्रेज देखा गया है, लेकिन शादी के बाद विदेश जाने के बाद भारतीय दुल्हनों को उनके साथ किये गये छल का आभास हुआ तो वे न्याय पाने के लिए संघर्ष करती नजर आई और विदेशों में स्थापित भारतीय मिशनों में न्याय के लिए शिकायतों का अंबार लगने लगा तो भारत सरकार के प्रवासी मामलो के मंत्रालय ने पिछले दिनों ऐसी तलाकशुदा महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रवासी भारतीयों के विवाह के लिए पंजीकरण अनिवार्य करके योजनाओं में संशोधन भी किया। सरकार के दावों के बावजूद अनिवासी पतियों द्वारा छोड़ी गई भारतीय दुल्हनों की दुर्दशा को लेकर विभाग संबन्धित संसदीय समिति ने भी सरकार की प्रवासी मामलों की योजनाओं पर लगातार सवाल खड़े किये हैं। संसदीय समिति के रिकार्ड बताते हैं कि पिछले पांच साल में विदेशों में स्थापित भारतीय मिशनों को चार सौ से भी ज्यादा ऐसी शिकायतें मिली हैं जबकि एक चौथाई तलाकशुदा महिलाओं को ही वित्तीय सहायता मिलने की बात सामने आई। समिति की रिपोर्ट के बावजूद सरकार इस दिशा में संबन्धित अन्य मंत्रालयों व विभागों में समन्वय बनाने का कोई प्रयास नहीं हुआ। यही कारण है कि राष्ट्रीय महिला आयोग के पृथक गठित एनआरआई प्रकोष्ठ में आए पांच सौ से ज्यादा मामलों में किया गया निपटारा ऊंट के मुहं में जीरा के समान है। हालांकि प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय ने विदेशों में परित्यक्त भारतीय महिलाओं को कानूनी सहायता प्रदान करने की योजना लागू करने का दावा किया है। इस योजना के अंतर्गत भारतीय दूतावासों की सूची में शामिल गैर सरकारी संगठनों द्वारा विकसित देशों में 3000 डॉलर और विकासशील देशों में 2000 डॉलर की वित्तीय सहायता और कानूनी सहायता प्रदान की जायेगी।
प्रवासी सम्मेलन में उठा मुद्दा
हाल ही में संपन्न हुए प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन में भी तलाकशुदा दुल्हनों की दुर्दशा का मामला सामने आया, जिसमें केंद्र सरकार ने विदेशों में भारतीय मिशनों को इस संबन्ध में गंभीरता से कार्यवाही करने के जारी दिशा निर्देशों का हवाला दिया और आश्वासन दिया कि ऐसे मामलों के प्रति भारत सरकार गंभीर है और विदेशों में महिलाओं को तलाक देने या छोड़ने के दोषी प्रवासी भारतीयों के खिलाफ कार्यवाही को अमल में लाना सुनिश्चित किया जा रहा है। इसके तहत आरोपी प्रवासी पतियों पर वारंट या सम्मन जारी होने पर न्यायालय के समक्ष उपस्थिति होकर कार्रवाही में सहयोग के लिए बाध्य करने की दिशा में उनके पासपोर्ट कानूनों के प्रावधान के तहत जब्त या निरस्त करने जैसी योजना भी लागू की जा रही है।
जागरूकता पर बल
प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय ने प्रवासी भारतीयों से शादी करने वाली भारतीय दुल्हनों के लिए एक शैक्षणिक कम जागरूक अभियान शुरू किया है। जिसके तहत 'मैरिजिस टू ओवरसीज इंडियन'' नामक अंग्रेजी, हिन्दी, तेलगू, मलयालम और पंजाबी भाषा में एक निर्देश पुस्तिका प्रकाशित की है। इस पत्रिका में प्रवासी भारतीयों द्वारा परित्यक्त महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित जानकारी, कानूनी सलाह, शिकायतों का निवारण करने वाले प्राधिकारी वर्ग तथा गैर सहायता प्राप्त संगठनों से संपर्क करने से संबंधित जानकारी दी गई है।
17Jan-2014

गुरुवार, 16 जनवरी 2014

दंगों की सियासत में माया ने भी दी सपा को चुनौती!


मुलायम की तरह माया भी पीएम बनने की ख्वाहिश
ओ.पी.पाल

केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है यह सभी राजनीतिक दल मानकर चलते हैं। तभी तो लोकसभा चुनाव की शुरू हो चुकी उलटी गिनती के मद्देनजर केंद्र में सत्ता का सपना देख रहे सभी बड़े दलों के लिए इस सूबे में चुनावी रणनीति बनाने के लिए सियासी स्पर्धा चल रही है। तो ऐसे में बहुजन समाजवादी पार्टी ही क्यों पीछे रहती, जिसने राज्य में दंगों की सियासत में सपा को कड़ी चुनौती देने के लिए लोकसभा चुनाव का बिगुल बजा दिया है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर व आसपास के अलावा पूरे उत्तर प्रदेश में हो रहे दंगों को लेकर बसपा प्रमुख मायावती ने बुधवार को लखनऊ में रैली के जरिए शक्ति प्रदर्शन के साथ सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी को तो आड़े हाथों लिया ही, वहीं केंद्र की यूपीए सरकार के अलावा भाजपा पर भी जमकर बरसी। दरअसल लोकसभा चुनाव नजदीक है और सभी दलों की नजरें खासकर उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर लगी है, जिसके लिए यूपी में हुए दंगों से बदले राजनीतिक समीकरण को अपने-अपने पक्ष में संवारने के लिए कांग्रेस और उसके सहयोगी दल के अलावा भाजपा व अन्य दल भी लगे हुए हैं। जबकि दंगों के कारण चौतरफा घिरी सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी दंगों के दाग को धोने के प्रयास में जुटी हुई है। मायावती ने सियासी रणनीति के तहत ही बुधवार को अपना जन्म दिन दिल्ली में न मनाकर चुनावी रणनीति के लिए समर्पित कर दिया, जहां वह अपने शक्ति प्रदर्शन करने में भी कामयाब मानी जा रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम गठजोड़ को जिस तरह से मुजफ्फरनगर व आसपास के दंगों ने तितर-बितर किया है उसे लेकर सियासत इतनी गर्म है कि कोई भी राजनीतिक दल इन दंगों को भूलने नहीं देना चाहता। मसलन सभी राजनीतिक दलों में वोटबैंक संवारने की होड़ लगी हुई है। मुस्लिमों को अपने वोट बैंक में जमा करने के लिए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव जिस प्रकार केंद्र की सत्ता में पीएम बनने का सपना संजोकर चुनावी कार्यक्रम चला रहे हैं उसी तरह इस रैली के जरिए बसपा प्रमुख मायावती ने भी पीएम बनने की ख्वाहिश जाहिर करते हुए अपने कार्यकर्ताओं को सतर्क कर दिया है कि इस बार लोकसभा चुनाव में बसपा का सीधा मुकाबला भाजपा, कांग्रेस व सपा के गठजोड़ से होगा तो एक दलित महिला भी केंद्र का नेतृत्व कर सकती है। यही कारण था कि मायावती ने अपना 58वां जन्मदिन सावधान रैली के रूप में मनाकर ठीक उसी तरह शक्ति प्रदर्शन किया, जैसे चौधरी चरण सिंह की जयंती पर रालोद की आड़ में कांग्रेस ने मेरठ में सियासी रंग जमाने का प्रयास किया था।
मुस्लिमों को लेकर खींचतान
उत्तर प्रदेश में सपा मुस्लिमों का हितैषी करार देती है, तो कांग्रेस भी मुस्लिमों को दंगों से बिखरने के बाद अपना बनाने के प्रयास में लगी है। जबकि रालोद टूटे जाट-मुस्लिम गठजोड़ को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रही है। इसी प्रकार बुधवार की रैली में बसपा सुप्रीमों ने भी वर्ष 2007 में पूर्ण बहुमत की यूपी में सरकार बनाने में दलित-मुस्लिम गठजोड़ को श्रेय देकर यह संदेश देने का प्रयास किया कि बसपा मुसलमानों की रहनुमा है। तभी तो मायावती ने भाजपा की ओर से पीएम के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल खड़े करने का प्रयास किया। इस सियासत के मौसम में मुस्लिम कार्ड खेलते हुए मायावती ने यहां तक कहा कि बसपा शासन में मुस्लिम लोग खुद को काफी हद तक सुरक्षित महसूस करते रहे हैं यदि मुस्लिम वोट आगामी लोकसभा चुनाव में बंटने के बजाय एकजुट होकर बसपा के पक्ष में जाएगा तो निश्चित रूप से साम्प्रदायिक ताकतें काफी कमजोर हो सकती हैं।
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मानवाधिकार आयोग ने उड़ाई यूपी सरकार की नींद
नई दिल्ली।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के यूपी में होने वाले तीन दिवसीय कैंप ने प्रदेश सरकार की नींद उड़ा दी है। पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्णन की अगुवाई वाली मुख्य पीठ मुजफ्फरनगर और शामली के दंगा राहत शिविरों में हुई बच्चों की मौत की सच्चाई जानेगी। इसके साथ ही चार अन्य मामलों की भी सुनवाई मुख्य पीठ के समक्ष होगी।
आयोग सभी मामलों की सुनवाई लखनऊ स्थित योजना भवन के सभागार में करेगा। मुजफ्फरनगर के राहत शिविरों में हुई बच्चों की मौत का मामला सबसे अहम है। इसे लेकर राज्य सरकार की काफी किरकिरी भी हुई थी। पहले सरकार ने मुजफ्फरनगर और शामली के राहत शिविरों में सिर्फ दो बच्चों की मौत होने की बात कही थी, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद राज्य सरकार द्वारा कराई गई जांच में 31 बच्चों की मौत होने की बात सामने आई थी। राहत शिविरों में रहने वाले परिवारों की अनदेखी को लेकर पहले ही सरकार सवालों के घेरे में है। अगर आयोग सुनवाई के बाद कोई और गंभीर कदम उठाता है तो सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, आयोग की दो टीमों ने राहत शिविरों का दौरा किया है।
16Jan-2014

बुधवार, 15 जनवरी 2014

हवाई अड्डों के निजीकरण पर उठे सवाल!

आम चुनाव से पहले प्रक्रिया पूरी करने में जुटी सरकार
ओ.पी.पाल

देश के हवाई अड्डों का निजीकरण करने के प्रस्तावों पर संसदीय स्थायी समिति द्वारा बार-बार उठाए गये सवालों को दरकिनार करके केंद्र सरकार ने विमानपत्तनों के निजीकरण की प्रक्रिया में तेजी लाना शुरू कर दिया है और फिलहाल सरकार ने छह बड़े हवाई अड्डों को निजी हाथों में सौंपने का ऐलान कर चुकी है, जिससके लिए सरकार आम चुनाव से पहले प्रक्रिया का निपटान करने के प्रयास में है।
लोकसभा चुनाव से पहले सरकार हवाई अड्डों के निजीकरण प्रक्रिया को पूरा करने की जुगत में हैं। मंगलवार को ही नागर विमानन मंत्री चौधरी अजित सिंह ने स्वयं कहा कि आगामी आम चुनाव के मद्देनजर छह हवाई अड्डों के निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए समय कम बचा है, लेकिन किसी तरह यदि प्रक्रिया पूरी भी न हुई तो लोकसभा चुनाव के बाद यदि यह सरकार भी नहीं रहती तो भी यह प्रक्रिया नहीं रूकेगी। उनका तर्क था कि नागर विमानन मंत्रालय ने निजीकरण के इस प्रस्ताव के मसौदे को पहले ही मंजूरी दे चुका है। लेकिन अभी इस प्रक्रिया को कई समितियों से गुजरना होगा और जल्द होने वाली अंतरमंत्रालयीय समूह में भी इस प्रस्ताव पर विचार होना है। सरकार द्वारा हवाई अड्डों की सेवाओं का निजीकरण करने के प्रस्तावों पर विभाग संबन्धित परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबन्धी संसदीय स्थायी समिति ऐतराज जताकर सवाल भी खड़े कर चुकी है।
समिति ने ऐसे किया था ऐतराज
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान ही दोनों सदनों में इस प्रस्ताव पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपने के बाद संसदीय समिति के अध्यक्ष सीताराम येचुरी ने सवाल उठाए थे कि जब इन हवाई अड्डों के आधुनीकीरण में हजारों करोड़ की धनराशि सरकार खर्च कर चुकी है तो अब किसलिए निजी हाथों में सौँपा जा रहा है? समिति ने विमानन मंत्रालय और उसकी समिति कार्यबल के प्रस्ताव पर असहमत होते हुए तर्क दिया था कि एएआई द्वारा अपनी निहित बाध्यताओं के कारण कार पार्किंग, मालवाही सुविधाओं, होटलों, यात्री सुविधाओं की खरीददारी आदि से गैर वैमानिक राजस्वों हेतु संभावनाओं का पूरी तरह से दोहन नहीं किया जा सकता। समिति ने सिफारिश की थी कि हवाई अड्डों पर सेवाओं के निजीकरण के स्थान पर भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण यानि एएआई इनके प्रबंधन का काम अपने हाथों में रख सकता है। सरकार को निजी हाथों में सौंपने के बजाए चेन्नई और कोलकाता व अन्य हवाईअड्डों का संचालन करने की कुछ वर्षो के लिए एएआई को अनुमति दे। सरकार ने समिति की ऐसी सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डालकर आम चुनाव से पहले देश के छह बड़े हवाई अड्डों का निजीकरण करने की प्रक्रिया पूरी करने की पूरी तैयारी कर ली है।
निजीकरण में ये हवाई अड्डे शामिल
नागर विमान मंत्री के अनुसार सरकार ने निजीकरण के लिए चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, जयपुर, अहमदाबाद और गुवाहाटी के छह हवाई अड्डों को शामिल किया है जिनका हाल ही में सार्वजनिक क्षेत्र की भारतीय विमानपत्तन प्राधिकार ने आधुनिकीकरण किया है। मंत्रालय के भारतीय विमानन कंपनियों को विदेश में उड़ानें भरने के नियम में ढील देने या पाबंदी खत्म करने के प्रस्ताव पर नागर विमानन मंत्री अजित सिंह ने स्पष्ट किया कि इसके नियम खत्म कर देने पर कोई प्रतिबंध नहीं रहेगा। नियम खत्म कर देने पर नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) द्वारा तय नियम से इसका संचालन होगा। मौजूदा नियम के तहत सिर्फ उन कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय वायुमार्ग पर परिचालन की अनुमति है जिनके पास कम से कम 20 विमानें का बेड़ा है और जो पिछले पांच साल के घरेलू वायुमार्ग पर परिचालन कर रहे हैं।
15Jan-2014

अफसरों पर भारी पड़ने लगी दंगों की राजनीति!

दंगा पीड़ितों पर मरहम लगाने में जुटी सपा
नई दिल्ली।

उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने मुजफ्फरनगर व आसपास के दंगों की सियासत की रणनीति शायद बदलना शुरू कर दिया है। दंगा पीड़ितों के राहत शिविर हटाने का ठींकरा अब अफसरों के सिर फोड़ने का सिलसिला शुरू करके हर हाल में समाजवादी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में छिटके मुस्लिम वोट बैंक पर मरहम लगाने में जुट गई है।
मुजफ्फरनगर व शामली जिलों में दंगा पीड़ितों के लिए राहत शिविरों को हटाने के आदेश भी सरकार ने दिये, जिसके बाद जिला प्रशासन ने शिविरों को हटाकर शरणार्थियों को गांव और आसपास सुरक्षित स्थानों पर भेजने की कार्यवाही की तो वह भी उनके लिए भारी पड़ती नजर आने लगी है। दरअसल दंगों के बाद मुआवजा और पीड़ितों को नौकरियां देने की यूपी सरकार की घोषणाओं के कारण ही राहत शिविरों का दायरा बढ़ा और जिला प्रशासनिक अधिकारियों को राहत राशि वितरण करने के लिए मशक्कत, वो भी सरकार के आदेशों के अनुसार करनी पड़ी। जब सर्दी के कारण शिविरों में बच्चों की मौतों की खबर आई तो सरकार ने शिविरों का हटवाने के फरमान जारी कर दिये और अधिकारियों ने उन्हें अंजाम दिया। आदेश मानने के बावजूद दंगों की राजनीति में अफसरों को भारी पड़ती दिखने लगी है। अफसरों के गले की फांस बनती जा रही दंगों की राजनीति का संकेत उस दौरान सामने आया, जब सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात करने के बाद मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों के एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले उलेमा मौलाना अरशद मदनी ने जिला प्रशासनिक अधिकारियों की शिकायत की। मदनी के अनुसार सपा मुखिया और मुख्यमंत्री ने जहां दंगों में मारे गये लोगों के परिवार को मुआवजा और सरकारी नौकरी देने की घोषणा में लापता लोगों के परिवारों को भी ऐसी सुविधाएं देने की मांग मानी है, तो वहीं इन जिलों में काम करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने की भी बात मान ली है। दरअसल सपा प्रमुख और मुख्यमंत्री से मुलाकात करके उलेमाओं ने शिकायत की थी कि उन्हें अब भी धमकियां मिल रही हैं और शामली जिला प्रशासन के कुछ अधिकारी उनकी सहायता में आनाकानी कर रहे हैं। हालांकि इससे पहले हर घोषणा और रणनीति पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सफाई देते भी नजर आए, लेकिन आम चुनाव में समय कम है और हर हालत में सपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना वोट बैंक साधना है तो उसके लिए अफसरों पर कार्यवाही करने में भी सपा को गुरेज नहीं
होगा।
मुलायम को पीएम बनाने की रणनीति
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान जिस प्रकार साइकिल रैली निकाल कर बसपा को सत्ता से बाहर करने रणनीति अपनाई गई थी, उसी प्रकार अब लोकसभा चुनाव में सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को दिल्ली के तख्त पर बिठाने के लिए साइकिल यात्रा निकालने का निर्णय सपा ने लिया है। सपा प्रवक्ता के अनुसार उत्तर प्रदेश में सपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए पार्टी ने एक से सात फरवरी को सभी विधानसभा क्षेत्रों में साइकिल यात्रा के जरिए अखिलेश सरकार की उपलब्धियों का प्रचार किया जाएगा। प्रदेश अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बूथ स्तर पर चुनाव तैयारियों की गहन समीक्षा किए जाने के निर्देश दिए हैं। बूथ प्रभारियों की बैठकों में लोकसभा क्षेत्रों के प्रत्याशी, लोकसभा क्षेत्र प्रभारी, जिला एवं महानगर अध्यक्ष, महासचिव,सभी विधायक या पिछले चुनावों के प्रत्याशी विधानसभा क्षेत्रों के अध्यक्ष, जिला पंचायत अध्यक्ष तथा जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष शामिल होंगे।
15Jan-2014

सोमवार, 13 जनवरी 2014

अब ऐसे नहीं मिलेगा खेल पुरस्कार!

सरकार ने जारी किये नए मानक व दिशानिर्देश
ओ.पी.पाल

राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों को लेकर उठने वाले सवालों को लेकर सरकार पूरी तरह से गंभीर है। इसलिए अब खिलाड़ियों के लिए राष्टÑीय पुरस्कार हासिल करना इतना आसान नहीं होगा, जितना पहले था। मसलन केंद्र सरकार ने पुरस्कारों के लिए नए सिरे से मानक और दिशा निर्देश जारी करके आमूलचूल बदलाव किया है, ताकि इन पुरस्कारों को प्रदान करने की प्रक्रिया में एकरूपता और पारदर्शिता बनी रहे।
केंद्रीय खेल एवं युवा मामलों के मंत्रालय ने राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार, अर्जुन पुरस्कार, द्रोणाचार्य पुरस्कार और और ध्यान चंद पुरस्कार जैसे विभिन्न राष्ट्रीय खेल पुरस्कार प्रदान करने की प्रक्रिया में एकरूपता लाने के उद्देश्य से नए मानक और दिशा निर्देशों को तैयार किया है, उससे खेल संघों पर भी लगाम कसी गई है। भारतीय खेल प्राधिकरण, राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी, राज्य सरकारों और राष्ट्रीय खेल महासंघों और खेल संवर्धन और नियंत्रण बोर्ड को भेजे गये नए मानक और दिशा निर्देशों को सख्त किया गया है, ताकि खेल पुरस्कार प्रदान करने के लिए पिछले दिनों उठे सवालों का सामना न करना पड़े। इन नए नियमों के तहत यह व्यवस्था भी की गयी है कि उपरोक्त पुरस्कारों के लिए नामांकन आमंत्रित करने से लेकर चयन समितियों के गठन तक  हर स्तर पर नए दिशा निदेर्शों का पालन सुनिश्चित किया जा सके। इन नए मानकों के अनुसार खेल पुरस्कारों के लिए नामांकन भेजने के लिए हर खेल संस्था के अध्यक्ष और महासचिव ही मान्य होंगे। भारतीय खेल प्राधिकरण की तरफ से महानिदेशक या सचिव नामांकन भेजने के पा़त्र होंगे। जबकि खेल मंत्रालय अपनी ओर से किसी भी खिलाड़ी या कोच का स्वतंत्र संज्ञान लेते हुए नामांकन कर सकता है।
क्रिकेट में बीसीसीआई को अधिकार
क्रिकेट के मामले में युवा मंत्रालय की ओर से किसी भी महासंघ को मान्यता प्राप्त नहीं है इसलिए क्रिकेट में पुरस्कारों के लिए नामांकन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष और महासचिव की ओर से भेजे जाने होंगे। इसके साथ राज्यों, संघशासित प्रदेशों, खेल संवर्धन एवं नियंत्रण बोर्डों की ओर से सचिव और निदेशक स्तर के अधिकारी सक्षम अधिकारियों से मंजूरी लेने के बाद नामांकन भेज सकते हैं। एसएआई अपने स्तर पर इनकी स्वतंत्र जांच करेगा।
पुरस्कार विजेता भी होंगे मान्य
खेल मंत्रालय ने उक्त अधिकारियों के अलावा किसी और पदाधिकारी द्वारा आने वाले नामांकन पर विचार न करने का निर्णय लिया है, लेकिन राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार जीत चुके खिलाड़ी अपने-अपने खेलों में राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन, ध्यान चंद और द्रोणाचार्य पुरस्कारों के लिए नामांकन भेजने के पात्र होंगे। इसी प्रकार अर्जुन, ध्यानचंद और द्रोणाचार्य पुरस्कार पा चुके खिलाड़ी और कोच इन पुरस्कारों के लिए अपने-अपने खेलों में नामांकन भेजने के लिए पात्र माने जाएंगे। जबकि खेल मंत्रालय अपनी ओर से किसी भी खिलाड़ी या कोच का स्वतंत्र संज्ञान लेते हुए नामांकन कर सकता है।
डोपिंग का दोषी को नहीं मिलेगा पुरस्कार
खेल मंत्रालय के नए दिशा निर्देशों के अनुसार यदि किसी खिलाड़ी को प्रशिक्षण के दौरान ड्रग लेने के लिए प्रोत्साहित करने वाले ऐसे कोच जिन्हे विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी की ओर से प्रतिबंधित किया गया हो द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त करने के योग्य नहीं होंगे। ऐसा कोई कोच जिसके खिलाफ डोपिंग मामले की जांच चल रही हो या लंबित हो भी पुरस्कार के लिए योग्य नहीं होगा।
13Jan-2014

मॉरिशस में भारतीयों की हर क्षेत्र में हिस्सेदारी!

लघु भारत से भी नहीं मिला सबक!
भारत से ज्यादा सुविधाएं मॉरिशस में भोग रहे हैं भारतवंशी
ओ.पी.पाल

भारत को अंग्रेजी हकूमत से आजाद कराने के लिए वीरगाथाएं तो सुनने को मिलती हैं, लेकिन मॉरिशस को गुलजार करने में भारतवंशियों ने यातनाएं सहकर बलिदान दिया। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज मॉरिशस में 70 फीसदी आबादी भारतवंशियों की है, जिसके कारण लघु भारत के नाम से पहचाने जा रहे मॉरिशस में भारतीयों की हर क्षेत्र में हिस्सेदारी है। इससे भारत को भी सबक लेने की जरूरत है।
दुनिया में वैसे तो प्रत्येक देश का इतिहास होता है, जिसमें उसकी जय-पराजय, वीरगाथाएं, संघर्ष, अवसाद, सुनहरे क्षण दर्ज होते हैं। ऐसे ही इतिहास में मॉरिशस भी जहां का इतिहास भी कुछ इसी प्रकार से गुंथा हुआ है। इस बारे में मॉरिशस से यहां प्रवासी भारतीय सम्मेलन में आए सोमदत्त दलथुमन ने जिस वीरगाथा का वर्णन किया उससे भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मॉरिशस सनातन धर्म टेम्पल फेडरेशन और हिंदुत्व मूवमेंट के चेयरमैन सोमदत्त दलथुमन की जड़े उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से जुड़ी हैं, लेकिन उनके हाथ अभी तक असल मूल नहीं लग सकी है। हरिभूमि संवाददाता से हुई विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज 1834 में पहली बार पांच लाख की संख्या में मॉरिशस गये थे वह भी एक बंधुआ मजदूरों के रूप में या कुछ यूं कहिए कि  रोजी रोटी की तलाश में घर से हजारों मील दूर निर्दयी, आतंकी, खेतों के मालिकों के चंगुल में। वहां भी उस समय उनकी स्थिति गिद्ध के हाथों आई चिड़िया से कम नहीं थी। उनके कथनानुसार एक वर्ष में एक धोती, एक कमीज, दो टोपी, दो कंबल, पांच रुपए वेतन जैसी सुविधाओं का सहारा ही मिलता था। खेत मालिकों की शर्तो का जरा भी उल्लंघन होने पर कोड़ो की सजा और मजदूरों के लिए एक बड़ा जेलखाना। उन्होंने बताया कि इन अत्याचारों की जांच के लिए हालांकि 1838 में जांच कमीशन भी बैठाया गया, लेकिन भारतवंशियों ने हार नहीं मानी और मॉरिशस के जंगलों को मेहनत से गुलजार करके आजादी का दम भरा और धीरे-धीरे सभी सुविधाएं मिलती गई तो वहां भारतवंशियों का ही बाहुल्य हो गया। इसकी प्रेरणा महात्मा गांधी से मिली, जिनके  नेतृत्व केवल भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को ही नहीं, बल्कि मारिशस के स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसी कारण एक लंबे संघर्ष के बाद धीरे-धीरे सामाजिक और राजनीतिक जागृति की मंजिले पार की गईं।
भारत से भी बेहतर योजनाएं
मॉरिशस में सरकार की नीतियों के बारे में सोमदत्त कहते हैं कि वहां प्राइमरी शिक्षा अनिवार्य है और 12 साल तक अनिवार्य शिक्षा पूरी तरह से निशुल्क है। उच्च शिक्षा के लिए मॉरिशस सरकार आर्थिक मदद देती है। लघु भारत इसलिए भी मॉरिशस को कहा जाता है कि वहां प्राइमरी से ही हिंदी और भोजपुरी जैसी हिंदुस्तानी भाषाओं को पढ़ाया जाता है। आवास बनाने के लिए भी सरकार भारतवंशियों को अनुदान देती है, तो रोजगार की भी समस्या नहीं है। उनके अनुसार मॉरिशस में बेरोजगारी की दर केवल सात प्रतिशत है। यही नहीं शिक्षित बेरोजगारों को 20 हजार मॉरिशस रूपया का भत्ता देने की भी योजना सुचारू रूप से चल रही है।
राजनीति में बेहती हिस्सेदारी
सोमदत्त दलथुमन बताते हैं कि हमारे भारतवंशी पूर्वजों का ही बलिदान है कि आज मॉरिशस में भारतीय मूल के लोग इतनी स्वतंत्रता से रहते हैं कि शायद ऐसी कल्पना यहां भारत में भी नहीं की जाती होगी। मॉरिशस की राजनीति में हिस्सेदारी के सवाल पर उनका कहना था कि वहां भारतीय मूल के लोग प्रधानमंत्री, उप प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों में हमेशा बने रहते हैं। उन्होंने बताया कि मॉरिशस को आज लघु भारत के नाम से पहचाना जाने लगा है। इसी कारण भारत और मॉरिशस इतने करीब हैं कि हर क्षेत्र में नजदीकियां हैं और भारत का कोई भी नागरिक मॉरिशस आगमन वीजा पर मॉरिशस जा सकता है।
हिंदु-मुस्लिमों को लड़ाने का प्रयास
मॉरिशस में भारतीय मूल के सभी धर्मो के लोगों को धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक आजादी मिली हुई हैं और करीब 300 मंदिरों में सभी देवी देवताओं की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं। मॉरिशस सरकार वहां मंदिरों की मरम्मत और आयोजनों के लिए प्रति वर्ष ग्रांट के रूप में बड़ी धनराशि देती है। रामचरित्र मानस और महात्मा गांधी से प्रेरणा लेकर भारत की आजादी के लिए 15 अगस्त को भारतीय ध्वज तथा अन्य सभी भारतीय पर्वो पर भारतीय व मॉरिशस के ध्वज लहराए जाते हैं। यही भारत और मॉरिशस के प्रगाढ़ संबन्धों का प्रतीक है। ऐसा भी नहीं है कि मॉरिशस में हिंदु और मुस्लिमों को लड़ाने वाली शक्तियां प्रकट नहीं हुई। सच तो यह है कि ऐसी शक्तियों के मंसूबों पर हिंदु-मुस्लिमों की एकता के चलते राजनीति से ऊपर उठकर पानी फेरा गया है।
ऐसा रहा पूर्वजों का दर्द
सोमदत्त दलथुमन ने बताया कि जब मजदूरी के लिए भारत से लोग पानी के जहाज से मॉरिशस जाते थे तो किसी के बीमार होने पर उसका इलाज नहीं, बल्कि उसे समुद्र में फेंक दिया जाता रहा। उनके अनुसार एक गांव से दूसरे गांव में जाने की इजाजत नहीं होती थी। यहां तक के दुख सहने पड़े कि यदि एक दिन काम नहीं किया तो दो दिन का मेहनताना गंवाना पड़ता था। लेकिन पूर्वजों के इसी बलिदान से आज भारतवंशियों को इतनी आजादी है और भारत व मॉरिशस के बीच ब्लड रिलेशनशिप भी तेज हुई है। यह भी इतिहास का सच है कि जब 1968 में मॉरिशस की आजादी का समय आया तो उन्होंने 12 मार्च का समय इसलिए चुना कि इसी दिन गांधी जी ने भारत में असहयोग आंदोंलन प्रारंभ किया था।
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राग दरबार
भाजपा नहीं मोदी-केजरीवाल नहीं आप
आजकल देश की राजनीति में आम आदमी पार्टी, भाजपा के नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बीच चल रही सियासी स्पर्धा सुर्खियों में हैं। भारतीय राजनीति की उथल-पुथल पर विदेशों में होने वाली गूंज का ही कारण है कि प्रवासी भारतीय भी बेहद दिलचस्पी के साथ सियासत पर नजर रखते हैं। हाल ही में यहां प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन संपन्न हुआ, जिसमें विदेशों में रह रहे प्रवासी भारतीय बड़ी संख्या में शामिल हुए, जिनमें इस बार ज्यादातर प्रवासी युवा पीढ़ी को शिरकत करने का मौका दिया गया। तो जाहिर सी बात है कि लोकसभा चुनाव से पहले इस सम्मेलन में भी भारतीय राजनीति का प्रभाव तो होना ही था, जिसमें युवाओं को राजनीति, सामाजिक और आर्थिक विकास में हिस्सेदार बनने की अपेक्षा भी की गई। इसके बावजूद विदेशों में रह रहे भारतवंशी युवाओं के बीच भारतीय राजनीति में कितनी रूचि है उसी का परिणाम कि इस सम्मेलन में आए प्रवासी युवाओं ने उसी कहावत को चरितार्थ किया कि जो दिखता है वहीं बिकता है और वहीं सुनने को मिलता है। मसलन भारतीय राजनीति के बारे में विभिन्न देशों के युवाओं का जो मत उसमें उनके बीच नरेन्द्र मोदी का तो क्रेज है लेकिन वे भाजपा से पूरी तरह अनभिज्ञ दिखे। इसी तरह के सवालों में प्रवासी युवा भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए आप का नाम तो सुनते हैं लेकिन उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल को नहीं जानते। यहां तक कि राहुल गांधी का नाम लेने पर अलग-अलग देशोें से आए युवा यह सवाल करते नजर आए कि ये कौन है? यह नाम तो कभी सुनने को भी नहीं मिला।
जिज्ञासा की जड़
विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के उन लोगों की अपनी जड़े तलाशने के लिए सरकार ने दुनियाभर के विभिन्न देशों के 18 से 26 साल तक के 40 प्रवासी युवाओं का समूह के रूप में ‘भारत को जानो’ कार्यक्रम शुरू करके उनकी जिज्ञासा को शांत किया। प्रवासी सम्मेलन के दौरान विभिन्न सत्रों में पहली बार शिरकत करने अलग-अलग देशों से आए युवाओं के केंद्र सरकार के मंत्रियों और अन्य वक्ताओं से यही सवाल किये कि उनकी जिज्ञासा है कि वे भारत में अपनी जड़ों की खोज करें, जिन्हें उनके बड़े भी नहीं खोज पाये। दरअसल इस सम्मेलन में आए युवाओं के पूर्वज कम से कम पांच पीढ़ियों पहले ही भारत छोड़कर विदेश चले गये थे और उनका मकसद भारत आने का यही है कि वे अपनी जड़े पता लगा सके। सवाल इस बात का है कि कुछ प्रवासी युवा कह  चुके हैं कि उनके पूर्वज कई बार यहां आकर जड़ों का पता लगाने का प्रयास कर चुके हैं लेकिन उन्हेें जड़े नहीं मिली। सरकार के पास ‘भारत को जानो’ कार्यक्रम कौन से जादू की छड़ी है जिससे उनकी जड़े मिल पाएंगी? भारत में कई बार आ चुके कुछ भारतवंशियों का कहना है कि युवाओं को जड़े मिले या न मिलें, लेकिन भारत की सांस्कृतिक विरासत से तो रूबरू होने का मौका मिल ही जाता है।
12Jan-2014

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

खाड़ी देशों में भारतीय कामगारों को समर्पित हैं बिलाल?

ओ.पी.पाल
कहते हैं कि घर में दुश्मन भी बाहर संकट में भगवान नजर आता है। ऐसी ही कहावत कतर में रहने वाले मोहम्मद बिलाल खान के लिए चरितार्थ होती है, जहां कतर जैसे खाड़ी देशों में रोजगार करने वाले भारतीयों पर संकट की घड़ी में हर भारतीय के लिए बिलाल नामक भारतीय भगवान के रूप में खड़ा नजर आता है।
प्रवासी भारतीयों के साथ विदेशों में दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के पिछले दिनों बढ़े मामलों को भारत सरकार ने भी गंभीरता से लेते हुए उचित कदम उठाए हैं, लेकिन भारतीयों के साथ लंबे अरसे से खाड़ी देशों में रह रहे भारतीय भी चिंतित हैं इसीलिए बिहार के जहानाबाद के मूल निवासी मोहम्मद बिलाल ने भारतीय समूह का गठन करके सामाजिक सेवा को भी अंजाम देना शुरू किया। पिछले करीब 18 साल से रियाद और अब कतर में एक कंपनी में बड़े ओहदे पर तैनात मोहम्मद बिलाल खान यहां चल रहे प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन में शिरकत करने आए हुए हैं, जिनसे हरिभूमि संवाददाता की विस्तार से बातचीत हुई। उनका कहना था कि अरब देशों में भारतीयों के प्रति सम्मान है,लेकिन भारतीय ही अनिवासी कामगारों के संकट का कारण बने हुए हैं। मसलन रोजगार के लिए विदेश भेजे जाने वाले लोगों को ठगने का एक बड़ा जंजाल बुना हुआ है, जिस पर विदेश जाने वाले व्यक्ति गौर नहीं कर पाते और उन्हें किसी भी देश के कानून के तहत संकट के दौर से गुजरना पड़ता है। बिलाल खान का कहना है कि उन्होंने भारतीयों की मदद के लिए समाजसेवा करने का जिम्मा लिया और वह भारतीय दूतावास और भारत सरकार के अलावा खाड़ी देशों की सरकार के संपर्क में रहकर प्रताड़ित भारतवंशियों को स्वदेश भेजने तक का काम कर रहे हैं। हालांकि उन्होंने भारतीय सरकार की नीतियों और विदेश जाने के इच्छुक लोगों को भी जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि रोजगार की तलाश में विदेश जाने वाले व्यक्ति को यह मालूम नहीं होता कि वह जॉब वीजा या अमल वीजा अथवा जियारत वीजा पर है, जिसकी पुष्टि विदेश मंत्रालय को करनी चाहिए। यही अनदेखी विदेश में प्रवासियों के लिए संकट पैदा कर देती है। बिलाल खान की समाजसेवा की पुष्टि मेरठ के सुभाष कुमार ने भी की, जिन्होंने टेलीफोन पर हरिभूमि को बताया कि बिलाल खान खाड़ी देशों में प्रवासी कामगारों के लिए मदद ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि वहां भारतवंशियों के भगवान बने हुए हैं। मोहम्मद बिलाल खान ने बताया कि खाड़ी देशों में वे भारतीय श्रमिकों को न्याय दिलाने के लिए श्रम अदालतों या किसी भी कार्यवाही तक पहुंचने में पीछे नहीं हैं। वहीं भारतवंशियों के लिए स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन भी लगातार किया जाता है, जिसमें भारतीय दूतावास, मिशन और भारतीय मेडिकल संघ का लगातार सहयोग भी मिल रहा है। उनका कहना है कि विदेशों में रोजगार के लिए जाने वाले भारतीयों को अपने वीजा की पुष्टि विदेश मंत्रालय से कराने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकारें भी गंभीर हुई हैं जो खाड़ी देशों और भारत के प्रगाढ़ संबंधों का द्योतक है।
भारत सरकार का तर्क
भारतीय कामगारों के विदेशों में उत्पीड़न के बारे में प्रवासी मामलों के मंत्री व्यालार रवि का कहना है कि जब खासकर खाड़ी देशों में भारतीय कामगार के उत्पीड़न की शिकायत वहां बने मिशन या दूतावास को मिलती है तो सरकार भारतीय मिशन के जरिए समस्याओं का समाधान करने के लिए मामले को विदेशी नियोक्ता या संबन्धित प्राधिकरण के साथ उठाया जाता है। सरकार असुरक्षित वर्गो के कामगारों के हितों की रक्षा के लिए विदेशों में स्थित भारतीय मिशनो द्वारा रोजगार दस्तावेजों का पूर्व सत्यापन कराने की व्यवस्था करता है। मंत्रालय के अनुसार खाड़ी देशों में खासकर कतर और संयुक्त अरब अमीरात से बीते साल ऐसे उत्पीड़न की कोई शिकायत नहीं मिली, जबकि उससे पहले तीन सालों में तीन-तीन हजार से ज्यादा उत्पीड़न की शिकायतें सामने आई थी।

बुधवार, 8 जनवरी 2014

प्रवासी युवाओं में भी मोदी का क्रेज!

भ्रष्टाचार के मुद्दे की टीस उजागर
ओ.पी.पाल

भारतीय राजनीति में चल रही उथल-पुथल के बावजूद विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के युवाओं में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार एवं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का क्रेज कम नहीं हुआ है। हालांकि प्रवासी युवा आप के केजरीवाल को भी भारत में नई राजनीतिक संभावनाओं का श्रेय दे रहे हैं।
आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर भारतीय राजनीति में आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन से मची उथल-पुथल और भारतीय राजनीति के परिपेक्ष्य में हरिभूमि ने यहां पहुंचे प्रवासी युवाओं के मन को टटोलने का प्रयास किया। ज्यादातर प्रवासी युवाओं ने राजनीतिक सुधार के लिए आप के अरविंद केजरीवाल के हौंसले को तो सराहा, लेकिन उनके राजनीतिक और शासन संभालने की क्षमताओं की अपेक्षा गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को कहीं ज्यादा अनुभवी और लोकप्रिय बताया। फिजी से आई छात्रा नताशा वर्मा को यह तो नहीं पता कि वह यूपी में किस जगह से ताल्लुक रखती है, लेकिन वहां भारतीय राजनीति और अन्य गतिविधियों की खबरों से पूरी तरह से वाकिफ है। हालांकि राजनीति में दिलचस्पी न रखते हुए भी उनके जहन में नरेन्द्र मोदी का बेहतर नेता के रूप में नाम है। नताशा के भाई मोहित वर्मा भी अपनी बहन की तरह ही नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक क्षमताओं का गुणगान करते नजर आए।
दक्षिणी अफ्रीका के केपटाउन से आई छात्रा रक्षा गोंसार्इं जो गुजरात के अहमदाबाद की मूल निवासी है उनकी तो गुजरात के विकास पर नजर रहती ही है। इसलिए उनके नजरिए में देश की बागडौर नरेन्द्र मोदी को ही मिलनी चाहिए। कांग्रेस के राहुल गांधी की राजनीतिक क्षमताओं पर सवालिया निशान लगाते हुए रक्षा गोंसाइं का मानना है कि हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री बने अरविंद केजरीवाल में भी अनुभव की कमी है। दक्षिण अफ्रीका के डरबन में रहने वाली एवं आंध्र प्रदेश की मूल निवासी छात्रा देशिका मोडेली की नजर में भी नरेन्द्र मोदी का ही नाम सर्वश्रेष्ठ राजनीति के लिए सामने आया। उनका कहना था कि गुजरात सबके सामने है और नरेन्द्र मोदी के नाम का डंका विदेशों में भी बजता है। फिजी से आए प्रवासी छात्र कृथनील सिंह का भारतीय राजनीति के बारे में जो ख्याल है उसमें नरेन्द्र मोदी के साथ अरविंद केजरीवाल को भी बदलती राजनीति का द्योतक बताया, लेकिन गुजरात में विकास की दुनियाभर में चल रही गूंज की दृष्टि से नरेन्द्र मोदी में देश का शासन चलाने की क्षमताएं विद्यमान हैं। अमेरिका से आए राहुल अग्रवाल ने कांग्रेस के राहुल गांधी और आप के अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री की लाइन से अलग करते हुए कहा कि नरेन्द्र मोदी ही देश का कुछ भला कर सकते हैं।
मॉरिशस से आए छात्र-छात्राओं शिमलादेवी लक्ष्मी, छाया लाल बिहारी,रूकसार लाल मोहम्मद, परीक्षित अमृत, लक्ष्य रिदॉय तथा आइशा देवी मओमुब्बा का भारतीय राजनीति के बारे में मानना है कि मनमोहन सिंह की सरकार के शासन में भ्रष्टाचार की खबरें जो समाचार पत्रों या टीवी पर पढ़ने या देखने को मिलती है तो भारतवंशी होने के कारण उन्हें दुख होता है। ऐसे में देश की सत्ता नरेन्द्र मोदी जैसे नेता के हाथ में एक बार आना जरूरी है, जिसके कामकाज के आकलन के बाद कहा जा सकेगा कि देश किस दिशा में जा रहा है।
केजरीवाल में भी है क्षमताएं
प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन में देश की बदलती राजनीति के परिपेक्ष्य में विदेशों में रह रहे भारतवंशियों ने आप के नेता अरविंद केजरीवाल को भारत में उभरती राजनीतिक शक्ति के तौर पर आंका है। मलेशिया में रह रहे सुरेश कुमार ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में भारत की कमजोर हुई छवि का जिक्र करते हुए अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक मुहिम को भावी राजनीतिक शक्ति करार दिया। इसी प्रकार मुंबई की रहने वाली डॉ. अल्का ईरानी का कहना है कि आध्यात्मिक और सामाजिक क्षेत्र में अच्छे संगठनों, एनजीओ, आध्यात्मिक और सामाजिक पृष्ठभूमि के लोगों को भी राजनीति के लिए चुना जाना चाहिए। उन्होंने अरविंद केजरीवाल को भी इसी मुहिम का हिस्सा बताया। न्यूजीलैंड से आये महाराष्ट्र मूल के मूल निवासी अमोल पाटिल और अन्य प्रवासी भारतीयों ने अरविंद केजरीवाल के साहस का दाद दी और कहा कि उनसे अन्य राजनीतिक दलों को सबक लेकर भ्रष्टाचार के खिलाफ रणनीति बनाने में आगे आने की जरूरत है।
08Jan-2014

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

प्रवासी भारतीयों पर भी रहेगी सियासी नजर!


देश व राज्यों में निवेश कराने के बहाने होगी चर्चा
ओ.पी.पाल
आगामी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मंगलवार से आरंभ हो रहे प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन में जहां सरकार देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की कवायद करके अनिवासी भारतीयों से देश में अधिक से अधिक निवेश करने पर जोर देगी, वहीं इस निवेश के बहाने प्रवासी भारतीयों पर किसी न किसी रूप में 2014 में होने वाले आम चुनाव के मद्देनजर सियासी निशाने भी लगाए जाएंगे। इसकी शुरूआत भाजपा ने तो सोमवार को ही कर दी।
हालांकि देश में भ्रष्टाचार और घोटालों के चलते अप्रवासी भारतीय सतर्कता बरतने का प्रयास करेंगे, लेकिन स्वयं प्रधानमंत्री अपने उद्घाटन भाषण में यह कहकर प्रवासियों की शंका को दूर करने का प्रयास कर उन्हें आश्वस्त कर सकते हैं कि सरकार प्रशासनिक प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता तथा निगरानी सुनिश्चित करने के लिए अनेक उपाय करके बदलाव लाने के लिए कटिबद्ध है। इस सम्मेलन में चूंकि आधा दर्जन राज्यों को भी राज्यों में निवेश जैसे विषयों पर आयोजित सत्रों में मौका दिया जा रहा है तो जाहिर सी बात है उनकी नजर भी सियासी रूप में अनिवासी भारतीयों पर पड़ना तय माना जा रहा है। सरकार की ओर से इस सम्मेलन के एजेंडे में जिस तरह के विषय शामिल किये गये हैं उनका मकसद यही है कि प्रवासी भारतीय भी भारतीय अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनकर बुनियादी ढांचों और विकास को प्रोत्साहित करें, ताकि प्रशासनिक सुधार में अनिवासियों की भूमिका भी अहम हो सके। अनिवासी भारतीय इस प्रवास के दौरान विभिन्न दलों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भी हिस्सा ले रहे हैं तो देश की राजनीतिक दृष्टि से भी अनिवासियों से चर्चा करना लाजमी है। प्रवासी सम्मेलन की पूर्व संध्या पर भाजपा मुख्यालय में सोमवार को भाजपा ने आस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, चीन, नेपाल,नार्वे, सऊदी अरब, इजरायल, कतर, थाईलैंड, मलेशिया, जापान, इटली, वियतनाम और मॉरिशस सहित अन्य देशों से आए अनिवासी भारतीयों के समक्ष आगामी चुनाव में भाजपा के लिए समर्थन मांगा। भाजपा ने अनिवासी भारतीयों से संचार माध्यमों के जरिए समर्थन जुटाने और आर्थिक सहयोग करने की अपील की है। ऐसे में इस सम्मेलन में यूपीए सरकार का नेतृत्व कर रही कांगे्रस और अन्य सहयोगी दल भी इस तरह की कोशिशें करते नजर आएं ऐसी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
भ्रष्टाचार के मुद्दे से अनभिज्ञ नहीं प्रवासी
भले ही हर साल प्रवासी भारतीय दिवस पर प्रवासी भारतीयों की देश के बुनियादी ढांचे और विकास में भागीदारी करने के लिए अधिक से अधिक निवेश करने का पास फेंका जाता हो, लेकिन देश में छन-छनकर आ रहे भ्रष्टाचार और घोटालों के मामलों से दुनियाभर में कलंकित हो रही देश की छवि से अनिवासी भारतीय भी अनभिज्ञ नहीं हैं। इस बात को सरकार और हर भारतीय भी जानता है लेकिन बार-बार प्रवासी भारतीयों को उनकी शंका दूर करने के प्रयास में उन्हें अपनी मातृभूमि का वास्ता देकर लुभाया जाता है और उनका योगदान मिल भी रहा है। इस बार तो सिर पर आगामी लोकसभा चुनाव भी है तो जाहिर सी बात है कि उसे लेकर भी चर्चा होगी।
राहुल गांधी भी बनेंगे गवाह
इस सम्मेलन के एक सत्र के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी युवा अनिवासी भारतीयों को संबोधित करेंगे और देश की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विषयों पर भी खुलकर चर्चा करके इनमें सहयोग की अपील करेंगे। पहले ही दिन केंद्र सरकार में मंत्री जितेन्द्र सिंह को युवा प्रवासी भारतीय सम्मेलन में प्रमुखता दी गई, अन्य में केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी एवं सचिन पायलट भी संबोधित कर सकते हैं।
07Jan-2014

रविवार, 5 जनवरी 2014

तम्बू उखड़े तो बसपा को दंगा पीड़ितों की आई याद!

चार महीने तक जुबानी बयानों में ही उलझी रही मायावती
ओ.पी.पाल

आखिर बसपा ने भी मुजफ्फरनगर दंगों के पीड़ितों की सुध लेने की सियासी रणनीति को जगह दी। वह भी दंगों के चार महीने बाद उस समय, जब राहत शिविरों में रह रहे पीड़ितों के तम्बू उखाड़ दिये गये। सितंबर की सात तारीख को एक पंचायत के बाद मुजफ्फरनगर व आसपास भड़की हिंसा के बाद जो सियासी समीकरण सामने आए थे उसमें मुस्लिमों को बुनियादी वोट बैंक मानकर चल रही सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी से मुस्लिम छिटकते नजर आने लगे थे और खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम गठजोड़ की परंपरा टूट चुकी थी। इस सुगबुगहाट पर कांग्रेस ने सीधा दांव खेला और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के साथ कांग्रेस युवराज राहुल गांधी भी दंगा पीड़ितों की सुध लेने दंगाग्रस्त क्षेत्रों में गये। यह सियासी रणनीति का ही परिणाम था कि इन इलाकों में अन्य किसी भी दल यहां तक कि जाटो में पैठ रखने वाले यूपीए सरकार में ही शाामिल रालोद प्रमुख चौधरी अजीत सिंह को भी दंगा पीड़ितों की सुध लेने की इजाजत नहीं दी गई। इन दंगों के सियासी निष्कर्ष को इस नजर में देखा जा रहा था कि जाट-मुस्लिम गठजोड टूटने से सपा और रालोद का राजनीतिक समीकरण गड़बड़ाया है और भाजपा, बसपा को इसका फायदा हो रहा है। इसी राजनीतिक तराजू में दंगे को तौलने की वजह रही कि यूपी में सत्तारूढ़ सपा सरकार ने दंगा पीड़ितों के नाम पर सरकारी खजाने का मुंह खोलकर एक विशेष वर्ग के राहत शिविरों में पहुंचे पीड़ितों को आर्थिक मदद और मुआवजा देने की रणनीति अपनाई गई। जहां तक राजनीतिक दलों के दंगा पीड़ितों का दर्द सुनने की बात है उसमें शांति कायम होने के बाद सपा, बसपा व कांग्रेस के अलावा भाजपा, रालोद और राजद सहित अन्य दलों ने भी राजनीतिक रोटियां सेकीं।
ऐसे बदली बसपा की रणनीति
ऐसा भी नहीं था कि बसपा इन दंगों और दंगा पीड़ितों के दर्द से अनजान थी। बसपा सुप्रीमो के नेतृत्व में संसद के दोनों सदनों में हंगामा करके यूपी की सपा सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग को बुलंद किया था। संसद का शीतकालीन सत्र स्थगित होने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर 22 दिसंबर को राहत शिविरों में दंगा पीड़ितों के बीच गये तो अगले ही दिन 23 दिसंबर को मेरठ में रालोद की चौधरी चरण सिंह की जयंती पर दंगे को भुनाने के लिए कांग्रेस और जनता दल-यू ने भी मंच साझा करके अपना फोकस दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने पर रखा। 29 को लालू प्रसाद पहुंच गए। कांग्रेस, रालोद व जदयू की इस रणनीति से सकपकाए सत्तारूढ़ सपा प्रमुख मुलायम सिंह भी गरजे, तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राहत शिविरो को उखाड़ फेंकने और पीड़ितों को गांवों में वापस भेजने का फरमान जारी कर दिया। इस आदेश पर जब करीब-करीब सभी तंबू उखड़ गये तो बसपा को दंगा पीड़ितों की याद आई और बसपा सुप्रीमों मायावती ने अपने दूत के रूप में यूपी में उनके करीबी माने जाने वाले राष्ट्रीय महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दकी और बसपा प्रदेशाध्यक्ष रामअचल राजभर, विधानसभा में बसपा नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य तथा सांसद मुनकाद अली को दंगा पीड़ितों की सुध लेने का निर्देश जारी किया।
उलेमा व मौलानाओं को भी दिया संदेश
मुजफ्फरनगर व शामली जिलों के सांझक, शाहपुर, लोई, जौला आदि गांवों के बाहर बनाए गये राहत शिविरों का दौरा तो किया, लेकिन वहां तम्बू उखड़े मिले, जिसके कारण मायावती के दूतों ने विभिन्न गांवों में जाकर दंगा प्रभावित लोगों की पीड़ा सुनी और भाजपा व सपा के सिर इन दंगों का ठींकरा फोड़ा। इससे पहले चार महीने तक मुजफ्फरनगर दंगों के कारण राहत शिविरों में बसे शरणार्थियों बहुजन समाज पार्टी को याद नहीं आई, बल्कि बसपा सुप्रीमों मायावती तो अब भी इस रस्म अदायगी के लिए फुरसत नहीं निकाल पाई है।
03Jan-2014

स्वागत 2014: भारतीय ओलंपिक संघ की बहाली रहेगी चुनौती!

पूरे साल की मशक्कत से भी नहीं हटी खिलाड़ियों के भविष्य पर लटकी तलवार
ओ.पी.पाल

बीते साल खेल मंत्रालय भारतीय ओलंपिक संघ के निलंबन को रद्द कराने के लिए संघर्ष करता रहा, लेकिन इस दौरान केंद्र सरकार का यह संघर्ष किसी काम नहीं आ सका। अब नए साल में केंद्र सरकार के लिए भारतीय खिलाड़ियों के भविष्य पर लटकी तलवार को हटाने के लिए चुनौती होगा कि वह भारतीय ओलंपिक संघ पर लगे प्रतिबंध को हटवाए।
अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करके भारतीय ओलंपिक संघ का चुनाव कराने के कारण भारत को यह प्रतिबंध झेलना पड़ रहा है, जिसके कारण आगामी ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों पर भारतीय झंडे तले हिस्सा लेने पर तलवार लटकी हुई है। अजय माकन के बाद खेल मंत्री बने जितेन्द्र सिंह का बीता साल इसी कवायद में लगा रहा कि किसी तरह से भारतीय ओलंपिक संघ पर लगे प्रतिबंध को हटवाया जाए। आईओसी ने चार दिसंबर 2012 को भारतीय ओलंपिक संघ को निलंबित कर दिया था। हालांकि खेल मंत्रालय ने आईओसी के निर्देश और चेतावनी के मद्देनजर हस्तक्षेप करके संविधान संशोधन कराने जैसे कई ठोस कदम भी उठाए हैं। वर्ष 2013 में आईओए के निलंबन को रद्द कराने के लिए स्वयं खेल मंत्री आईओसी मुख्यालय तक भी पहुंचे और पत्राचार भी किये, लेकिन आईओसी के सख्त रवैये के चलते खेल मंत्रालय की कवायद साल के अंत तक किसी काम न आ सकी। इसलिए खेल मंत्रालय के सामने इस नए साल में यह एक बड़ी चुनौती होगी कि वह जल्द से जल्द भारतीय ओलंपिक संघ पर लगे प्रतिबंध को हटवाए। ओलंपिक संघ पर लगे प्रतिबंध को हटवाना इस दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण कदम होगा कि भारतीय खिलाड़ी ओलंपिक खेलों, एशियाई खेलों तथा कॉमनवेल्थ खेलों में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के तले खेल सकेंगे।
दागियों पर चुनाव लड़ने पर रोक
खेल मंत्रालय के निर्देश पर भारतीय ओलंपिक संघ ने गत आठ दिसंबर को ही एक बैठक में संविधान में संशोधन करते हुए आईपीसी व भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत दोषी व्यक्तियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाकर भारतीय ओलंपिक संघ की बहाली के लिए उम्मीद जगाई है। भारतीय ओलंपिक संघ के चुनाव नौ फरवरी 2014 को प्रस्तावित हैं। गौरतलब है कि ऐसे दागियों में निलंबित ओलंपिक संघ के अध्यक्ष अभय सिंह चौटाला और महासचिव ललित भनोट शामिल हैं। आईओसी के निर्देशानुसार यदि संविधान संशोधन के बिना चुनाव कराए जाते तो भारतीय ओलंपिक संघ की मान्यता भी रद्द की जा सकती थी। अब भारतीय ओलंपिक संघ का भविष्य आईओसी की कार्यकारी परिषद की नौ फरवरी को होने वाली बैठक में तय होगा।
बीते साल यह भी हुआ प्रयास
केंद्रीय खेल मंत्रालय ने देश में बड़े खेल-कूद आयोजनों के काम पर नजर रखने की दृष्टि से 2020 तक ओलंपिक समिति और संचालन समिति गठित किया है। वहीं शहरी और ग्रामीण खेल-कूद बुनियादी सुविधा स्कीमें भी लागू करने का दावा किया है। ओलंपिक संघ पर लगे प्रतिबंध के बावजूद सरकार ने ब्यूनस आयर्स में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति की गत 08 सितम्बर, 2013 बैठक में 2020 के ओलंपिक खेलों में कुश्ती को शामिल कराने की पहल की है, लेकिन यदि निलंबन वापस न हुआ तो वह भारतीय ध्वज के बैनर तले नहीं होगी। खेलकूद में मानव संसाधन विकास की शुरूआत जैसी योजनाओं को अमलीजामा पहनाया है। खेल संघों से राजनीतिक वर्चस्व को कम करने की दिशा में राष्ट्रीय खेल महासंघों के पदाधिकारियों की आयु तथा उनका कार्यकाल निश्चित करने की भी पहल की गई है। मसलन देश के सभी 53 राष्ट्रीय खेल महासंघों ने राष्ट्रीय खेल विकास कोड 2011 के नियमों का पालन होना अनिवार्य किया गया है। हालांकि पूर्व खेल मंत्री अजय माकन की अधूरी हसरत को संशोधनों के साथ खेल मंत्री जितेन्द्र सिंह ने राष्ट्रीय खेल विकास मसौदा विधेयक 2013 व खेलों में धोखाधड़ी की रोकथाम संबंधी विधेयक-2013 के मसौदे तैयार तो करा लिये हैं लेकिन उन पर संसद की मुहर लगवाने में अभी पीछे ही रहे हैं।
02Jan-2014