रविवार, 5 जनवरी 2014

तम्बू उखड़े तो बसपा को दंगा पीड़ितों की आई याद!

चार महीने तक जुबानी बयानों में ही उलझी रही मायावती
ओ.पी.पाल

आखिर बसपा ने भी मुजफ्फरनगर दंगों के पीड़ितों की सुध लेने की सियासी रणनीति को जगह दी। वह भी दंगों के चार महीने बाद उस समय, जब राहत शिविरों में रह रहे पीड़ितों के तम्बू उखाड़ दिये गये। सितंबर की सात तारीख को एक पंचायत के बाद मुजफ्फरनगर व आसपास भड़की हिंसा के बाद जो सियासी समीकरण सामने आए थे उसमें मुस्लिमों को बुनियादी वोट बैंक मानकर चल रही सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी से मुस्लिम छिटकते नजर आने लगे थे और खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम गठजोड़ की परंपरा टूट चुकी थी। इस सुगबुगहाट पर कांग्रेस ने सीधा दांव खेला और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के साथ कांग्रेस युवराज राहुल गांधी भी दंगा पीड़ितों की सुध लेने दंगाग्रस्त क्षेत्रों में गये। यह सियासी रणनीति का ही परिणाम था कि इन इलाकों में अन्य किसी भी दल यहां तक कि जाटो में पैठ रखने वाले यूपीए सरकार में ही शाामिल रालोद प्रमुख चौधरी अजीत सिंह को भी दंगा पीड़ितों की सुध लेने की इजाजत नहीं दी गई। इन दंगों के सियासी निष्कर्ष को इस नजर में देखा जा रहा था कि जाट-मुस्लिम गठजोड टूटने से सपा और रालोद का राजनीतिक समीकरण गड़बड़ाया है और भाजपा, बसपा को इसका फायदा हो रहा है। इसी राजनीतिक तराजू में दंगे को तौलने की वजह रही कि यूपी में सत्तारूढ़ सपा सरकार ने दंगा पीड़ितों के नाम पर सरकारी खजाने का मुंह खोलकर एक विशेष वर्ग के राहत शिविरों में पहुंचे पीड़ितों को आर्थिक मदद और मुआवजा देने की रणनीति अपनाई गई। जहां तक राजनीतिक दलों के दंगा पीड़ितों का दर्द सुनने की बात है उसमें शांति कायम होने के बाद सपा, बसपा व कांग्रेस के अलावा भाजपा, रालोद और राजद सहित अन्य दलों ने भी राजनीतिक रोटियां सेकीं।
ऐसे बदली बसपा की रणनीति
ऐसा भी नहीं था कि बसपा इन दंगों और दंगा पीड़ितों के दर्द से अनजान थी। बसपा सुप्रीमो के नेतृत्व में संसद के दोनों सदनों में हंगामा करके यूपी की सपा सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग को बुलंद किया था। संसद का शीतकालीन सत्र स्थगित होने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर 22 दिसंबर को राहत शिविरों में दंगा पीड़ितों के बीच गये तो अगले ही दिन 23 दिसंबर को मेरठ में रालोद की चौधरी चरण सिंह की जयंती पर दंगे को भुनाने के लिए कांग्रेस और जनता दल-यू ने भी मंच साझा करके अपना फोकस दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने पर रखा। 29 को लालू प्रसाद पहुंच गए। कांग्रेस, रालोद व जदयू की इस रणनीति से सकपकाए सत्तारूढ़ सपा प्रमुख मुलायम सिंह भी गरजे, तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राहत शिविरो को उखाड़ फेंकने और पीड़ितों को गांवों में वापस भेजने का फरमान जारी कर दिया। इस आदेश पर जब करीब-करीब सभी तंबू उखड़ गये तो बसपा को दंगा पीड़ितों की याद आई और बसपा सुप्रीमों मायावती ने अपने दूत के रूप में यूपी में उनके करीबी माने जाने वाले राष्ट्रीय महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दकी और बसपा प्रदेशाध्यक्ष रामअचल राजभर, विधानसभा में बसपा नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य तथा सांसद मुनकाद अली को दंगा पीड़ितों की सुध लेने का निर्देश जारी किया।
उलेमा व मौलानाओं को भी दिया संदेश
मुजफ्फरनगर व शामली जिलों के सांझक, शाहपुर, लोई, जौला आदि गांवों के बाहर बनाए गये राहत शिविरों का दौरा तो किया, लेकिन वहां तम्बू उखड़े मिले, जिसके कारण मायावती के दूतों ने विभिन्न गांवों में जाकर दंगा प्रभावित लोगों की पीड़ा सुनी और भाजपा व सपा के सिर इन दंगों का ठींकरा फोड़ा। इससे पहले चार महीने तक मुजफ्फरनगर दंगों के कारण राहत शिविरों में बसे शरणार्थियों बहुजन समाज पार्टी को याद नहीं आई, बल्कि बसपा सुप्रीमों मायावती तो अब भी इस रस्म अदायगी के लिए फुरसत नहीं निकाल पाई है।
03Jan-2014

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