शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बदलेंगे राजनीतिक समीकरण!


दंगों की तपिश पर दो फरवरी को मोदी की रैली
ओ.पी.पाल 
लोकसभा चुनाव की तैयारियों में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी की दो फरवरी को मेरठ में हो रही विजय शंखनाद रैली को इस लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि मुजफ्फरनगर दंगों की तपिश में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण धीरे-धीरे बदल रहे हैं। यहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन पर भाजपाई दिग्गजों की परीक्षा भी होगी।
लोकसभा चुनावों के राजनीतिक पारे को नया आयाम देने के लिए मेरठ में होने वाली मोदी की इस रैली को अभी तक यूपी में हुई सात रैलियों को बोना साबित करने के लिए उत्तर प्रदेश खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भाजपाई दिग्गज जोरदार तैयारियों में जुटे हुए हैं। वैसे भी यह रैली मुजफ्फरनगर और आसपास के दंगों की तपिश की कसौटी पर एक चुनौती से कम नहीं है। मोदी की इस रैली से दंगों के कारण बिगड़े पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण बदलने की संभावना देखी और तलाशी जा रही है। रैलियों के घमासान में नए सियासी बादल उमड़ने की स्थिति पैदा करने के लिए मोदी की इस रैली को महारैली की शक्ल देने के प्रयास किये जा रहे हैं। राजनीतिक जानकारों की माने तो दो फरवरी को नरेन्द्र मोदी की महारैली की आहट से ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति करवट बदलती नजर आने लगी है। बाकी रैली तय करेगी कि दंगों की तपिश में अन्य दलों की सियासत के मुकाबले शह और मात का खेल में कौन बाजी मारता है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण कौन सी करवट बैठते हैं। सही मायने में तो मेरठ में मोदी की यह महारैली भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह, प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के अलावा मुख्तार अब्बास नकवी, हुकुम सिंह, नैपाल सिंह, सतपाल मलिक, राजबीर सिंह 'राजू भैया' व विजयपाल तोमर जैसे दिग्गजों के लिए अनुकूल माहौल को वोट में तब्दील करने की चुनौती होगा।
सभी ने की दंगों पर सियासत
मोदी की रैली से पहले स्व. चौधरी चरण सिंह की जयंती के मौके पर रालोद की संकल्प रैली में कांग्रेस और जदयू ने भी मेरठ की जमीन से ही दंगों पर सियासत की है। इससे पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी दो बार दंगा पीड़ितों को मरहम लगाने के लिए दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा कर चुके हैं,जबकि यूपी की सत्तारूढ़ सपा के मुख्यमंत्री अखिलेश और उसके सिपहसालार के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, रालोद प्रमुख अजीत सिंह व महासचिव जयंत चौधरी और यूपीए के घटक दल सियासी दांव आजमा चुके हैं। जबकि दंगों की इस सियासत में अभी तक भाजपा पहले से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने रंग को गाढ़ा मानकर चल रही है। 
जाट व मुस्लिम वोट पर लगी नजरें 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बदले सियासी समीकरण में सभी दलों का ध्यान जाट व मुस्लिम वोट पर है। मुजफ्फरनगर दंगे के बाद सपा को इस रणभूमि में मुस्लिम वोट बैंक खिसकता हुआ नजर आ रहा है। ऐसे में मुस्लिमों को लुभाने के लिए सपा वेस्ट यूपी के तीन मुस्लिम राज्यमंत्री को कैबिनेट मंत्री पद पर प्रमोशन, सात जाट व मुस्लिम नेताओं को राज्यमंत्री पद का दर्जा व सहारनपुर से इमरान मसूद के स्थान पर शादान मसूद को टिकट दे चुकी है। बसपा बूथवार सभा करके दलित-मुस्लिम समीकरण को जोड़ने को प्रयासरत है। अब रालोद आगरा रैली कल गुरूवार 30 जनवरी को अपने बलबूते करके अपने टूटे गढ़ को संवारने में जुटी है। रालोद 16 फरवरी को शामली और 23 फरवरी को मुरादाबाद में भी रैली करके जाट-मुस्लिमों के टूटे गढ़जोड़ को संजोने के प्रयास में है।
30Jan-2014

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