रविवार, 30 अप्रैल 2017

अब पूरा हो सकेगा घर का सपना!

आज से देशभर में लागू होगा रियल एस्टेट कानून
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
एक मई से देशभर में लागू हो रहे रियल एस्टेट कानून से जहां बिल्डरों व प्रोपर्टी डीलरों पर शिकंजा कसना शुरू हो जाएगा, वहीं घर का सपना संजोए लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। माना जा रहा है कि रेरा कानून देश के रीयल एस्टेट क्षेत्र की तस्वीर बदल देगा।
संसद द्वारा पिछले साल बजट सत्र के दौरान मई में नए रियल एस्टेट यानि भू-संपदा (विनियमन और विकास)
विधेयक को पारित कर दिया गया था, जिससे रियल एस्टेट क्षेत्र में घर का सपना देखने वालों की राह आसान नजर आने लगी थी। इस नए कानून को देशभर में कल एक मई से लागू किया जा रहा है। रियल एस्टेट कानून राज्यों की सूची में शामिल है, इसलिए एक मई से सभी राज्यों को इसे लागू करना है। इसके लिए केंद्र सरकार पहले ही अधिसूचना जारी कर चुकी है। मसलन कल से देशभर में बिल्डरों और प्रोपर्टी डीलरों व एजेंओं पर कानूनी शिकंजा कसना शुरू हो जाएगा। यानि इस कानून के लागू होने के बाद 3 महीने के भीतर सभी बिल्डरों और एजेंटों को इसमें पंजीकरण करवाना अनिवार्य होगा। रियल एस्टेट कानून राज्यों की सूची में शामिल है। इसलिए एक मई से सभी राज्यों को इसे लागू करना है।
कानून के ये हैं प्रावधान
इस नए कानून के प्रावधानों के तहत सरकार द्वारा गठित विनियामक प्राधिकरण मेेंं बिल्डर को किसी भी परियोजना शुरू करने से उसमें पंजीकरण कराना होगा और उसकी जमीन खरीदने से लेकर अन्य सभी मंजूरी संबंधित दस्तावेज आदि का ब्योरा जमा करना होगा। यही नहीं इसकी जानकारी उपभोक्ताओं के लिए सार्वजनिक होगी, ताकि घर या प्रोपर्टी खरीदने वाले ग्राहक अपनी पसंद की परियोजना का चयन कर सके। इस कानून के तहत बिल्डर को ग्राहकों से ली गई रकम का 70 फीसदी एस्क्रो अकाउंट में डालना होगा, ताकि एक परियोजना की रकम दूसरी परियोजना में ट्रांसफर न की जा सके। यदि कोई बिल्डर इन नियमों का पालन नहीं करता तो उन पर पेनल्टी भी लगाई जा सकेगी। किसी प्रोजेक्ट के लिए खरीदारों से मिला पैसा अब बिल्डर को एस्क्रो अकाउंट में जमा करवाना होगा, जिसकी मंजूरी बिल्डर के इंजीनियर और चार्टड अकाउंटेंट द्वारा ली जाएगी। मसलन अब बिल्डरों यानि डवलपर्स को अब सारी मंजूरी मिलने के बाद ही प्रोजेक्ट बेच पाएंगे। यही नहीं कानून के तहत यदि बिल्डर अपने प्रोजेक्ट में किसी तरह का बदलाव करता है तो उसे खरीदारों की लिखित मंजूरी लेना जरूरी किया गया है।
आज से सक्रिय अथॉरिटी
कानून के प्रावधानों के तहत हरेक राज्य में रेगुलेटरी संस्था और ट्रिब्यूनल बनाए गये हैं, जो बिल्डर और ग्राहक के किसी भी विवाद 120 दिन के भीतर सुलझाएंगे। सभी राज्यों में रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी एक मई से काम करने लगेंगी। इसके बाद 90 दिन के भीतर सभी रियल एस्टेट डेवलपर्स और प्रॉपर्टी डीलर्स को अथॉरिटी में अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। एक मई से डेवलपर्स प्रोजेक्ट्स की प्री-लांचिंग नहीं कर पाएंगे और प्रोजेक्ट लांच करने से पहले उन्हें अप्रूवल्स व एनओसी लेने होंगे। अथॉरिटी के निर्देश की पालन न करने पर अपीलेट ट्रिब्यूनल बिल्डर और प्रॉपर्टी डीलर को जेल तक भेज सकता है। यानि प्रोमोटर्स बिना खरीदार की मर्जी से प्रोजेक्ट के ले आउट में बदलाव नहीं कर पाएंगे।

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

राग दरबार: लोकतंत्र की नकारात्मक राजनीति..

लोकतांत्रिक व्यवस्था का सवाल..
देश की सियासत में वैसे तो ऐसी कहावत रही है कि इसमें न कोई दोस्ती और न ही कोई दुश्मनी..। भले ही चुनावी समर में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर मतदाताओं को आकर्षित किया जाता रहा हो, यही नहीं जीतने को को बधाई और हारने वाले दलों की स्वीकृति इस लोकतांत्रिक व्यवस्था की मिसाल रही है, लेकिन पिछले दिनों पांच राज्यों में हुए चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत से घबराए विपक्षी दलों की जिस नकारात्मक रणनीति ने जन्म लिया है, वह भारत जैसे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को लेकर बेहद चिंता का विषय है। मसलन हालत यह हो गई कि चुनावी जीत होती तो ठीक अन्यथा हार स्वीकार करने के बजाए समूचा दोष ईवीएम मशीन के सिर मंढने की परंपरा नासूर बनती नजर आ रही है। यूपी में बसपा ने बुरी हार के बाद ऐसी परंपरा को जन्म दिया तो उसे दिल्ली सरकार चला रही आम आदमी पार्टी के संयोजक ने अंगीकृत कर लिया। दिल्ली नगर निगम चुनाव में आप की हार से बौखलाए केजरीवाल ने आंदोलन की ही धमकी दे डाली। राजनीतिकार तो इसका सीधा मतलब यही निकाल रहे हैं कि देश की संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग को संदेह के घेरे में लेना, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था यानि चुनाव सुधार के लिए दुनियाभर के देशों की नजर में बेमिसाल साबित हो चुका है। दरअसल विपक्षी दल ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी के आरोप लगाकर अतीत में जाने का भी प्रयास नहीं करते जो ईवीएम की वोटिंग से ही प्रचंड जीत के हकदार बनते रहे है और खासकर केजरीवाल की पार्टी तो दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में 67 सीटों पर जीतकर आई थी। राजनीतिकार मान रहे है कि ऐसी नकारात्मक राजनीति अब सीधे लोकतांत्रिक व्यवस्था का सवाल बनकर हावी होने का संकेत है..।
खोने का दुख
कांग्रेस में दिन दिनों सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। एआईसीसी से लेकर प्रदेश संगठनों तक बेहद निराशा का माहौल है। राष्टÑीय नेतृत्व की शून्यता या यूं कहें कि हर छोटे-बड़े मसलों पर चुप्पी ने पार्टी को रसातल में पहुंचा दिया है। राहुल गांधी पप्पू की छवि से बाहर खुद को नहीं निकाल पा रहे हैं। सोनिया गांधी स्वास्थ्य कारणों से अनमने ढंग संगठन का कामकाज संभाल रही हैं। अधिकांश पुराने नेता राहुल गांधी को नेता मानने को मन से तैयार नहीं। तो अधिकांश पुराने नेताओं के साथ राहुल काम करने को तैयार नहीं। कशकश की स्थिति ऐसी कि जिनमें कुछ दम था सब इधर-उधर हो लिए। कुछ नेताओं ने अपनी पार्टी बना ली तो कुछ ने राजनीति से ही तौबा करने की घोषणा कर दी। उनमें से किसी की खास चर्चा एआईसीसी में नहीं होती। मगर, असम के घुटे हुए नेता हेमंत बिस्वशर्मा को लेकर जरूर पार्टी का हर नेता मानता है कि उनके जाने से पार्टी केवल असम में ही नहीं पूरे उत्तर-पूर्व राज्य में खत्म हो रही है। लगभग सभी बड़े नेता हेमंत की अगुवाई में भाजपा में शामिल हो रहे हैं। मणिपुर में पिछले हμते एक भाजपा विधायक कांग्रेस में गया तो सभी चार बड़े कांग्रेसी नेताओं को हेमंत बिस्वशर्मा ने भाजपाई बना दिया। उत्तरपूर्व शीघ्र ही कांग्रेस मुक्त होने की कगार पर है।
तथ्यों को जांचे-परखे बिना हो-हल्ला...
कामकाज के सामान्य प्रचलन में यह देखने को मिलता है कि कोई भी संस्था या संगठन एक-दूसरे पर बिना तथ्यों को जांचे-परखे कोई बात नहीं कह सकती है। लेकिन कभी-कभार ऐसी स्थिति भी देखने को मिलती है, जहां बिना सोचे-समझे एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की झड़ी लगा दी जाती है। इससे वाद-विवाद का हो-हल्ला ही नतीजे के रूप में सामने होता है और कुछ नहीं। बीते दिनों सरकार के दो विभागों के बीच ऐसी स्थिति बनी। जिसमेंएक कहता कि मैंने फलां कार्य को कितनी बखूबी पूरा किया है, तो दूसरा कहता कि ये तो मैंने किया है। अंत में ये सिर्फ गुथमगुत्था बनकर रह गई, परिणाम सिफर। तू-तू मैं-मैं के बीच तो यही कहेंगे कि तथ्यों को जांचे-परखे बिना हो-हल्ला व्यर्थ है। काम कीजिए और परिणाम दीजिए...क्योंकि सरकार में काम करने वालों की ही पूछ है और होगी। 

जल्द तैयार होगा ‘गोल्डन नेकलस’ का निर्माण

ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे का 60 फीसदी निर्माण पूरा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वाहनों का बोझ कम करने की दिशा में चल रहे 7558 करोड़ रुपये की लागत वाली इस्टर्न पैरीफेरल एक्सप्रेस-वे और वेस्टर्न पैरीफेरल एक्सप्रेस-वे यानि ‘गोल्डन नेकलस’ के निर्माण का काम अगले साल पूरा हो जाएगा। इस मेगा सड़क परियोजना से दिल्ली जैसे महानगर में प्रवेश किये बिना अन्य राज्यों के वाहन अन्य राज्यों में जा सकेंगे।
केंद्र सरकार की दिल्ली के चारो ओर पैरीफेरल एक्सप्रेस-वे की महत्वाकांक्षी सड़क परियोजना के लिए 7558 करोड़ रुपये की लागत तय की गई है, जिसमें वेस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे का निर्माण इसी साल अगस्त तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है, जबकि 4418 करोड़ रुपये की लागत से देश के पहले एक्सेस कंट्रोल के रूप में 135 किमी लम्बाई वाले ‘ईस्टन पेरीफेरी एक्सप्रेस-वे’ का निर्माण कार्य करीब 60 फीसदी पूरा हो चुका है। शुक्रवार को केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने नेशनल मीडिया को इस निर्माण कार्य का हैलीकाप्टर से हवाई अवलोकन कराया है। उन्होंने कहा कि अगले साल के पहले तिमाही तक इसका निर्माण पूरा होने की संभावना है। गत 5 नवंबर 2015 को पीएम ने 400 दिन में पूरा करने का समय दिया था, लेकिन किसानों के विरोध के कारण विलंब हुआ है। किसानों की अधिग्रहीत भूमि के लिए सरकार ने उन्हें भूमिअधिग्रहण का 4,100 करोड़ रूपए का अतिरिक्त भुगतान बढ़ाकर अब तक 7,700 करोड़ का मुआवजा दिया गया। अब उम्मीद है कि वर्ष 2017 तक इसका निर्माण पूरा कर लिया जाएगा। इस दौरान ग रहे।
यहां से गुजरेगा इस्टर्न पैरीफेरल एक्सप्रेस-वे
दिल्ली का ‘गोल्डन नेकलेस’ बनाने वाला 135 किमी लंबा ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे का निर्माण हरियाणा राज्य के सोनीपत जिले के 13.035 किमी व फरीदाबाद-पलवल जिले के 35.513 किमी समेत कुल 48.55 किमी में होगा, जबकि शेष 86.45 किमी राजमार्ग का निर्माण उत्तर प्रदेश के हिस्से में गौतमबुद्धनगर जिले में 41.608 किमी, गाजियाबाद जिले में 24.665 किमी तथा बागपत जिले में 20.158 किमी तक किया जा रहा है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने हरिभूमि को बताया कि इस एक्सप्रेस-वे का निर्माण एनएच-1 पर सोनीपत के कुंडली गांव के पास से शुरू होगा, जो यमुना नदी को पार करते हुए बागपत जिले के एसएच-57 को पार करते हुए मवीकलां गांव से निकट से गुजरेगा। यहां से एनएच-58 पर दुहाई गांव से होते हुए एनएच-24 पर डासना के निकट से होते हुए एनएच-91 पर अकबरपुर और कासना सिंकंदरा बाद रोड के निकट सिरसा को पार करके ताज एक्सप्रेस-वे पर जगनपुर अफजलपुर गावं तक करीब 92 किमी का नर्माण होगा। यहां फिर यमुना नदी को पार करते हुए मौजपुर गांव के निकट अटाली-छैनसा रोड होते हुए पलवल तक पहुंचेगा। खास बात यह भी है कि पलवल जाने के बाद यह वेस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे के साथ स्वत: ही लिंक हो जाएगा, जो सोनीपत के कुंडली में ईस्टर्न एक्सप्रेस-वे से जुड़ेगा।
98 गांवों की बदलेगी तस्वीर
इस 135 किमी लंबे ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे यानि ईपीई के दायरे में हरियाणा के 32 गांव आएंगे, जिसमें सोनीपत जिले के आठ व फरीदाबाद-पलवल जिले के 24 गांव शामिल हैं। जबकि उत्तर प्रदेश के 66 गांव इस राजमार्ग के रूप में बनने वाले एक्सप्रेस-वे के दायरे में होंगे, जिनमें बागपत जिले के 12, गाजियाबाद जिले के 16 तथा गौतमबुद्धनगर के 39 गांव शामिल हैं। इसके निर्माण में जहां हाइवे को पार करना होगा, उसके लिए ऊपरी पुलों का निर्माण किया जाएगा। ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे के रास्ते में प्रमुख रूप से यमुना नदी, हिंडन नदी और आगरा कैनाल के ब्रिज होंगे। इस दृष्टि से इस परियोजना के तहत 45 छोटे ब्रिज, आठ रेलवे ओवर ब्रिज, चार μलाई ओवर, 77 अंडर पास, 152 पेड्रेस्ट्रियन अंडरपास और 116 कल्वर्ड बनाए जा रहे हैं।
देश में बनेंगे 11 नए एक्सप्रेस-वे 
राष्ट्रीय राजमार्गो की लंबाई का होगा विस्तार
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश में परिवहन व्यवस्था को दुरस्त करने की दिशा में मोदी सरकार की चलाई जा रही ताबड़तोड़ सड़क परियोजनाओं के जरिए देश में 96 हजार किमी लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई बढ़ाकर दो लाख किमी करने का लक्ष्य रखा है। इन्हीं परियोजनाओं के तहत देश में 11 नए एक्सप्रेस-वे बनाने की योजना को आगे बढ़ाया गया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने शुक्रवार का ‘ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे’ के जारी निर्माण का हवाई अवलोकन कराने के दौरान नेशनल मीडिया को बताया कि देश में 52 लाख किमी लम्बी सड़क में दो साल पहले 96 हजार किमी राष्ट्रीय राजमार्ग था, जिसकी लंबाई को दो लाख किमी करने का लक्ष्य के तहत सरकार ने अब तक 1.78 लाख किमी हाइवे पर सैद्धांतिक सहमति के बाद निर्माण कार्य शुरू करा दिया गया है। उन्होंने कहा कि देश में 11 नए एक्सप्रेस-वे की परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है, जिनमें तीन एक्सप्रेस-वे के निर्माण का कार्य वर्ष 2017 के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा।
ये बनेंगे नए एक्सप्रेस-वे
-ईस्टन पेरीफेरल 135 किमी
-वेस्टर्न पेरीफेरल 135 किमी
-दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे 90 किमी
-दिल्ली-जयपुर एक्सप्रेस-वे 196 किमी
-दिल्ली-लुधियाना-अमृतसर-कटरा 600 किमी
-मुम्बई-बदोदरा एक्सप्रेस-वे 375 किमी
-बंगलुरू-चेन्नई एक्सप्रेस-वे 350 किमी
-हैदराबाद-विजयबाड़ा-अमरावती
-हैदराबाद- बंगलुरू एक्सप्रेस-वे
-नागपुर-हैदराबाद एक्सप्रेस-वे
-अमरावती रिंग रोड एक्सप्रेस-वे

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

बुंदेलखंड को बड़ी राहत देने की तैयारी!


देशभर के सूखाग्रस्त इलाकों की पटरी पर उतारी योजनाएं
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में गर्मी के दिनों में जल संकट से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने देश के बुंदेलखंड, मराठवाड़ा, कालाहांडी, बोलनगीर तथा कोरापुट जैसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए व्यापक जल संरक्षण अभियान शुरू करने की सभी तैयारियां पूरी कर ली है, जिसमें सबसे पहले शुक्रवार को यूपी व मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के लिए मध्य प्रदेश के सागर में बंद्री में इस अभियान की शुरूआत की गई ।
केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने बुंदेलखंड, मराठवाड़ा, ओडिशा के कालाहांडी, बोलनगीर तथा कोरापुट के सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए व्यापक जल संरक्षण कार्यक्रम की शुरू करने की तैयारी की है, जिसकी शुरूआत 28 अप्रैल को सागर (मध्य प्रदेश) के बंद्री से की। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने राष्ट्रीय भूजल प्रबंधन सुधार योजना (एनजीएमआईएस) के अंतर्गत कई नई पहल की है। इसका उद्देश्य दबाव वाले ब्लॉकों में भूजल की स्थिति में कारगर सुधार करना, गुण और मात्रा दोनों की दृष्टि से संसाधन को सुनिश्चित करना, भूजल प्रबंधन और संस्थागत मजबूती में भागीदारीमूलक दृष्टिकोण अपनाना है।
बुंदेलखंड का मास्टर प्लान
देश में जल संकट की चुनौतियों से निपटने के लिए जल संसाधन मंत्रालय ने बुंदेलखंड क्षेत्र में भूजल के कृत्रिम रिचार्ज के लिए मास्टर प्लान बनाया है। यूपी के बुंदेलखंड क्षेत्र में लगभग 1100 परकोलेशन (रिसाव) टैंकों, 14 हजार छोटे चैक डैम व नाला पुश्तों तथा 17 हजार रिचार्ज शॉμट्स की पहचान की है। वहीं मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में लगभग दो हजार परकोलेशन टैंको, 55 हजार छोटे चैक डैम/नाला पुश्तों तथा 17 हजार रिचार्ज शॉμट्स की पहचान हुई है। अभियान के तहत भूजल खोज के हिस्से के रूप में उत्तर प्रदेश क्षेत्र के बुंदेलखंड के 11851 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पांच जिलों बांदा, हमीरपुर, जालौन, चित्रकूट और माहोबा में 234 कुएं बनाने का प्रस्ताव है। जबकि मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के 8319 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के अंतर्गत छह जिलों में भूजल खोज के लिए 259 कुओं के निर्माण किया जाएगा।
केन-बेतवा जल का उपयोग
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बेतवा तथा गुरसराय नहर, राजघाट नहर, केन नहर प्रणाली, गुंटा नाला डैम तथा उपरी राजघाट नहर के 17,1030 हेक्टेयर को पाटने की योजना का प्रस्ताव है। इस योजना से बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी, जालौन, हमीरपुर, ललितपुर, बांदा जिलों को लाभ मिलेगा। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र की राजघाट नहर परियोजना को 68007 हेक्टेयर को पाटने की योजना का प्रस्ताव है। इस योजना से टिकमगढ़, दतिया जिलों को लाभ मिलेगा।
सिंचाई क्षमता बढ़ाना
जल संसाधन मंत्रालय द्वारा सिंचाई अंतर पाटने की योजना (आईएसबीआईजी) तैयार की जा रही है। इसका उद्देश्य सीएडीडब्ल्यूएम कार्य पूरा करना और साथ-साथ तथा सृजित सिंचाई क्षमता (आईपीसी) तथा उपयोग की गई सिंचाई क्षमता (आईपीयू) के बीच खाई को पाटने के लिए नहर नेटवर्क में कमियों को सुधारना, सिंचाई में जल उपयोग क्षमता बढ़ाना और प्रत्येक खेत को जल सप्लाई सुनिश्चित करना तथा जल उपयोगकर्ता संघों को सिंचाई प्रणाली का नियंत्रण और प्रबंधन हस्तांतरित करना है।

बुधवार, 26 अप्रैल 2017

मुनाफे में आए देश के प्रमुख बंदरगाह!

निजी क्षेत्र को पीछे छोड़ हासिल की 6.79 फीसदी वृद्धि
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की देश में समुद्री कारोबार को प्रोत्साहन देने की दिशा में देश के प्रमुख 12 बंदरगाहों को आधुनिकीकरण और विकसित करने की मुहिम रंग लाती नजर आई। ऐसी ही परियोजनाओं का नतीजा रहा है कि सरकार के अधीन इन बंदरगाहों का मुनाफा लगातार बढ़ने लगा है। बीते वित्तीय वर्ष में बंदरगाहों के मुनाफे में पिछले साल की तुलना में 6.79 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।
केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय के अनुसार देश के 12 बड़े बंदरगाहों को वित्त वर्ष 2016-17 में 5 हजार करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ है, जो पिछले वित्तीय वर्ष में हुए चार हजार करोड़ के मुकाबले एक हजार करोड़ रुपये अधिक है। सरकार का समुद्री कारोबार को बढ़ावा देने के लिए जहाजों के टर्नअराउंड टाइम को कम करने और कई नॉन-कोर कमोडिटीज को अपने फ्रेट बास्केट में जोड़ने पर अधिक जोर रहा है। यही नीति इन बंदरगाहों की आर्थिक मुनाफे की दृष्टि से फायदेमंद साबित हो रही है। मंत्रालय के अनुसार सरकार ने 116 पहलों में से 70 का कार्यान्वयन किया जा चुका है, जबकि बाकी को 2019 तक कार्यान्वित किया जाएगा। मंत्रालय का दावा है कि इन एक दर्जन बंदरगाहों के मुनाफे की बढ़ोतरी निजी क्षेत्र के बंदरगाहों से कहीं आगे निकल गई है, जबकि निजी क्षेत्र का मुनाफा चार प्रतिशत ही दर्ज किया गया है। केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने अब चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 में सात हजार करोड़ रुपये के मुनाफे का लक्ष्य तय किया है।
मॉमुर्गाओ पोर्ट अव्वल
मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2016-17 में गोवा के मॉमुर्गाओ पोर्ट का मुनाफा सर्वाधिक 60 फीसदी रहा, जो आजादी के बाद से आज तक देश में किसी भी बंदरगाह की सबसे तेज आर्थिक बढ़ोतरी है। हालांकि मुंबई के जेएनपीटी ने सबसे अधिक 1,303 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया और वर्ष 2014 के बाद से बड़े बंदरगाह का मुनाफा बेहतर रहा है, क्योंकि उस साल की वॉल्यूम ग्रोथ 55.5 करोड़ टन से बढ़कर 2016-17 में 64.8 करोड़ टन हो गई है, जहां समुद्री यातायात में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है जिसके कारण कमोडिटी में आयरन ओर की वृद्धि 163 प्रतिशत दर्ज की गई। मुंबई के इस बंदरगाह से 2.5 लाख से अधिक कारों का निर्यात भी किया गया है। उन्होंने कहा कि पूरे शिपिंग कॉरपोरेशंस का प्रॉफिट और अधिक होगा क्योंकि शिपिंग कॉरपोरेशंस आॅफ इंडिया और ड्रेजिंग कॉरपोरेशन आॅफ इंडिया ने अब तक अपने आंकड़े जारी नहीं किए हैं।
माल ढुलाई क्षमता का रिकार्ड
मंत्रालय के अनुसार देश के इन 12 प्रमुख बंदरगाहों की माल ढुलाई क्षमता एक अरब टन से अधिक हो गई है। हाल ही में समाप्त वित्त वर्ष 2016-17 में इन बंदरगाहों में 106.06 करोड़ टन की रिकॉर्ड अतिरिक्त क्षमता जोड़ी गई, जो पिछले वित्तीय वर्ष में 96.53 करोड़ टन थी। इन प्रमुख बंदरगाहों की क्षमता बढ़ाने की पहल के जरिए हमने यह उपलब्धि हासिल की है। मंत्रालय का दावा है कि इन प्रमुख बंदरगाहों के अंतरराष्ट्रीय मानकों का होने के कारण यह उपलब्धि हासिल की जा सकी है। सरकार की नीतियों के तहत माल ढुलाई क्षमता बढ़ाने के लिए उठाए गए कदमों के बाद 12 प्रमुख बंदरगाहों ने पिछले वित्त वर्ष में 64.74 करोड़ टन माल की ढुलाई कर निजी क्षेत्र के बंदरगाहों को पीछे छोड़ दिया है। एक साल पहले 2015-16 के मुकाबले इसमें 6.8 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई।
स्मार्ट सिटी बनाने की योजना
जहाजरानी मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार पारादीप पोर्ट और कांडला पोर्ट पर दो स्मार्ट सिटीज भी बना रही है। उन्होंने बताया कि शिपिंग मिनिस्ट्री का ध्यान इस वित्त वर्ष में 10.3 करोड़ टन की कैपेसिटी बढ़ाने और मुंबई पोर्ट को देश के क्रूज टूरिज्म का हब बनाने पर रहेगा। मसलन मुंबई के बंदरगाह पर देश का पहला टर्मिनल 800 करोड़ की लागत से बना रहे हैं। एक साल बाद भारत यहां 100 इंटरनेशनल क्रूज शिप्स को हैंडल करने की उम्मीद कर रहा हैं।

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

बेहतर सुधार की राह पर भारत की अर्थव्यवस्था!

फिक्की-पीडब्ल्यूसी के सर्वे ने किया खुलासा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश की अर्थव्यवस्था को दुरस्त करने के लिए मोदी सरकार की योजनाएं रंग लाती नजर आ रही है। मसलन अनेक अवरोधक के बावजूद ‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत का मैन्युफैक्चरिंग बैरोमीटर आशावाद के माहौल को निरंतर आगे बढ़ा रहा है।
मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के बारे में धारणा सकारात्मक बनी हुई है, जिसमें 85 फीसदी प्रतिभागी इसे भारत में मैन्युफैक्चरिंग के लिए प्रोत्साहन की तरह देखते हैं। सर्वे से इसके अब तक के असर और जरूरी कदमों के बारे में भी आइडिया मिला है। एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है इंडस्ट्री 4.0 को अपनाना-इसे बेहतर तरीके से समझें तो यह उत्पादों के जीवन चक्र के समूचे वैल्यू चेन पर नए स्तर का संगठन और नियंत्रण होता है, जिससे ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों की व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। देश की प्रमुख उद्योग संस्था फिक्की और पीडब्ल्यूसी के ताजा सर्वेक्षण में इस बात का खुलासा किया गया है कि पिछले वर्षों की तरह इस साल भी कई साहसी, लेकिन अवरोधक सुधारों के बावजूद भारत अर्थव्यवस्था का चमकीला बिंदु बना हुआ है। फिक्की-पीडब्ल्यूसी स्ट्रेटजी ऐंड इंडिया मैन्युफैक्चरिंग बैरोमीटर (आइएमबी) सर्वे के अलावा संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वर्ष 2016 में विश्व अर्थव्यवस्था में महज 2.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है-यह साल 2009 की मंदी के बाद का अब तक का सबसे कम वृद्धि दर है, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था और इसके कोर सेक्टर के बारे में नजरिया 2016-17 में आशावादी बना हुआ था। सरकार बड़े पैमाने पर नीतिगत सुधारों की तैयारी कर रही है, लेकिन कुल मिलाकर आर्थिक वातावरण अनुकूल बना हुआ है। वैसे तो नोटबंदी से शॉर्ट टर्म के लिए सुस्ती आई है, लेकिन अर्थव्यवस्था की लांग टर्म की संभावनाएं उम्मीदपरक बनी हुई हैं।
आठ फीसदी का उछाल
इस सर्वे के 66 फिसदी प्रतिभागी अगले साल में भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावनाओं के लिए कुछ हद तक आशावादी थे, जो पिछले वर्ष (58 फीसदी) की तुलना में बड़े उछाल को दशार्ता है। जबकि जबकि 49 फिसदी का यह मानना है कि अगले 12 महीनों में उनका मार्जिन बढ़ सकता है। हालांकि एक बड़े हिस्से का यह मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7 से 8 फीसदी के बीच होगी। इसके विपरीत 62 फीसदी प्रतिभागियों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में अनिश्चितता जाहिर की है कि यह पिछले साल से 8 फीसदी ज्यादा है। इस सर्वे में आठ प्रमुख सेक्टर की कंपनियों को शामिल किया गया है, जिनमें प्रमुख रूप से आॅटोमोटिव और आॅटो कम्पोनेन्ट्स, केबल्स और ट्रांसफॉर्मर्स, कैपिटल गुड्स, सीमेंट, केमिकल्स, डाउनस्ट्रीम मेटल्स, पैकेजिंग और प्लास्टिक तथा पॉलीमर्स शामिल रही।
हर क्षेत्र में मैन्युफैक्चरिंग के मौके
फिक्की की मैन्युफैक्चरिंग कमिटी के चेयरमैन और डालमिया सीमेंट भारत लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर पुनीत डालमिया का कहना है कि सरकार की नीतियों और परियोजनाओं से शहरीकरण, स्मार्ट सिटी, डिजिटाइजेशन आदि क्षेत्रों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को नए अवसर मिल रहे हैं। उम्मीद है कि पिछले कुछ महीनों में सरकार द्वारा शुरू किए गए सुधारों और परियोजनाओं से इस सेक्टर में भी सुधार देखा जा सकेगा। हालांकि सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार दुनिया भर में सबसे तेज वृद्धि दर में से एक हासिल करने जा रही है, लेकिन बुनियादी ढांचे की कमी, ऊंचे ब्याज दर और बिजली की लागत की वजह से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गति सुस्त बनी हुई है। हालांकि इन सभी क्षेत्रों पर सरकार सक्रियता से निगाह रखे हुए है और हमें उम्मीद है कि सरकार मांग को बढ़ाने के लिए भारी निवेश करेगी। पहली बार ऐसा हो रहा है कि मैन्युफैक्चरिंग में निजी क्षेत्र का निवेश सरकारी क्षेत्र के मुकाबले पिछड़ रहा है।

सोमवार, 24 अप्रैल 2017

अब राष्ट्रपति चुनाव की तैयारी में जुटे दल!

भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की लामबंदी शुरू
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र की मोदी सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा और अन्य सभी विपक्षी दलों की निगाहें अब जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर है। पिछले दिनों यूपी समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के अलाव दर्जनों राज्यों के उपचुनाव में भाजपा की सियासी ताकत बढ़ने से बेचैन विपक्षी दलों ने एकजुटता का राग अलापते हुए राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती देने की तैयारी में लामबंदी शुरू कर दी है।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 24 जुलाई को पूरा हो रहा है और उससे पहले राष्टÑपति और उप राष्टÑपति के चुनाव होने हैं। खासकर राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में जहां भाजपा ने अपनी रणनीति बनाना शुरू कर दिया है, तो वहीं भाजपा को चुनौती देने के लिए तमाम विपक्षी दलों ने कांग्रेस की अगुवाई में महागठबंधन की तैयार शुरू कर दी है, हालांकि भारतीय राजनीति के पुराने इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो महागठबंधन कभी सिरे नहीं चढ़ पाया है। मोदी सरकार के कड़े फैसलों से क्षुब्ध विपक्षी दल संसदीय और विधानसभा चुनाव की तर्ज पर ही राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में एकजुटता की दुहाई देते आ रहे हैं। इसके लिए पिछले दिनों वामदल और अन्य दलों के वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से मुलाकात करके जिस प्रकार से राष्ट्रपति चुनाव को लेकर चर्चाओं का दौर चलाया है उससे जाहिर है कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष ने भाजपा को चुनौती देने का इरादा किया है। हालांकि यह भविष्य के गर्भ में है कि विपक्षी दलों की जारी यह लामबंदी महागठबंधन का रूप लेगी या पिछले प्रयासों की तरह पहले ही दम तोड़ देगी।
सुषमा व नायडू भाजपा का विकल्प
राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव के मद्देनजर जहां भाजपा ने प्रत्याशियों की संभावित सूची तैयार करना शुरू कर दिया है, हालांकि राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल भाजपा के दिग्गज नेताओं में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ बावरी विध्वंश मामले में केस चलाने के आदेश देकर झटका दिया है, लेकिन इसमें भाजपा कानूनी राय लेने के बाद अपना अंतिम फैसला लेगी, लेकिन भाजपा के पास अभी केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज एक बड़े विकल्प के रूप में है, जिनके नाम को भाजपा राष्ट्रपति पद के लिए आगे ला सकती है। सूत्रों की माने तो भाजपा के पास केंद्रीय मंत्री एम. वेंकैया नायडू का नाम भी इस चुनौती से निपटने के लिए मौजूद है।
विपक्षी दलों में असमंसज
राष्ट्रपति पद के लिए विपक्षी दलों में अभी राष्ट्रपति के नाम को लेकर जद्दोजहद जारी है, लेकिन विपक्षी दल भाजपा के प्रत्याशी को चुनौती देने के लिए एकजुटता बनाकर खेल बिगाड़नें की जुगत में हैं। दरअसल राजद, जदयू व वामदल राष्ट्रपति चुनाव के लिए महागठबंधन की बागडौर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में सौंपने की रणनीति बना रहे हैं, लेकिन कुछ विपक्षी दल प्रणब मुखर्जी को दोबारा मौका देने के पक्ष में है, जबकि शायद खुद प्रणब मुखर्जी फिर से राष्ट्रपति बनने के पक्ष में नहीं है और शायद कांग्रेस भी मुखर्जी को दोबारा मौका देने के मूड में नहीं है। इसलिए अभी विपक्षी दलों में प्रत्याशी को लेकर असमंजस की स्थिति नजर आ रही है। इस लामबंदी में जदयू के नीतिश कुमार, वामदल के सीताराम येचुरी कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से चर्चा कर चुके हैं। जहां तक प्रत्याशी के चयन का सवाल है कि विपक्षी दलों का मत होगा कि महागठबंधन में शामिल होने वाले दलों की राय से ही राष्टÑपति पद का उम्मीदवार तय किया जाएगा। लेकिन जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव के ताजा बयान पर गौर की जाए तो गैर-भाजपाई दलों के लिए राष्ट्रपति पद का एक साझा उम्मीदवार का चयन करके उसके लिए आम सहमति बनाना इतना आसान नहीं है, लेकिन फिर भी समय को देखते हुए प्रयास जारी हैं।
‘महागठबंधन’ का ताना-बाना
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया से चर्चा के बाद ही शायद माकपा नेता सीताराम येचुरी ने राकांपा प्रमुख शरद पवार, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, भाकपा नेता सुधाकर राव रेड्डी के साथ महागठबंधन खड़ा करने को लेकर चर्चाओं का दौर चलाया, तो वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से राष्ट्रपति चुनाव को लेकर महागठबंधन के मुद्दे पर चर्चा की है। कांग्रेस के अगुवाई में महागठबंधन का ताना-बाना बुनने के लिए विपक्षी दल अन्य विपक्षी दलों के नेताओं से भी मुलाकात करके चर्चाओं के दौर को गति देने में लगे हुए हैं। राजनीतिकारों की माने तो पुराने सियासी गठजोड़ के अनुभव की पृष्ठभूमि में नजर ड़ाली जाए तो ‘महागठबंधन’ बनाने की राह इतना आसान नहीं है? विपक्षी दलों में समाजवादी पार्टी जैसे कुछ दलों की ऐन समय पर पलटी का इतिहास ही इस महागठबंधन को ‘काठ की हांडी’ साबित करने में काफी हैं।

रविवार, 23 अप्रैल 2017

अब राष्ट्रीय राजमार्गो पर बनेंगे बस व ट्रक स्टॉप!

दिल्ली-जयपुर मार्ग पर 352 करोड़ की योजना तैयार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में सड़क सुरक्षा के तहत हादसों पर अंकुश लगाने की दिशा में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गो पर चलने वाले ट्रक जैसे भारी वाहनों की सुविधा बढ़ाने की योजना तैयार की है, जिसमें बस स्टॉप निर्माण भी शामिल है। सरकार की इस योजना में हाइवे पर बस व ट्रक स्टॉप बनाए जाएंगे। इस योजना की शुरूआत दिल्ली-जयपुर हाइवे से होगी, जिसके लिए 352 करोड़ रुपये की योजना को हरी झंडी मिल गई है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी ने वर्ष 2020 तक देश में होने वाले सड़क हादसों में 50 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य तय किया है, जिसके लिए सड़क हादसों के कारणों में राष्ट्रीय राजमार्ग पर लंबे सफर पर चलने वाले ट्रक जैसे मालवाहक वाहन भी बड़े घटकों में शामिल है। इसके लिए किये गये अध्ययन में मंत्रालय ने ट्रक चालकों को रास्तों में विश्राम देने के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाओं का खाका भी तैयार किया है। दरअसल हाइवे पर बनाई गई सर्विस लेन पर जगह-जगह ट्रक खड़े दिखाई देते है, जिसके कारण अन्य वाहन सर्विस लेन का इस्तेमाल नहीं कर पाते। वहीं हाइवे पर चलने वाली यात्री बसों के सामने भी ऐसी ही समस्या है, जो कहीं भी सवारी उतारने या चढ़ाते नजर आती हैं। इसलिए बस व ट्रकों के खड़े होने की इस समस्या से निपटने के लिए मंत्रालय ने 15 से 20 किमी के अंतर से राष्ट्रीय राजमार्गो पर ट्रक जैसे भारी मालवाहक वाहनों के अलावा बसों के लिए जगह-जगह बस और ट्रक स्टॉप बनाने की योजना को अंतिम रूप दिया है, जिसकी शुरूआत दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग से की जाएगी। इसके लिए मंत्रालय ने एनएचएआई को दिशानिर्देश जारी कर दिये हैं।
सर्विस लेन रहेगी सुरक्षित
मंत्रालय के अनुसार भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने ट्रकों के खड़े होने की सुविधा के मद्देनजर दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर करीब डेढ़ दर्जन बस और ट्रक स्टॉप बनाने वाली 352 करोड़ रुपए की योजना को अंतिम रूप दिया है, जिसके लिए जल्द ही काम शुरू कर दिया जाएगा, जिसके बाद इस मार्ग पर बनी सर्विस लेन सुरक्षित रहेगी और कोई भी ट्रक सर्विस लेने पर खड़ा नजर नहीं आएगा, वहीं बस भी अपने निर्धारित स्टैंड पर ही सवारी उतारने के लिए बाध्य होंगी। एनएचएआई के मुख्य महाप्रबंधक विष्णु दरबारी ने इस योजना के बारे में बताया कि दिल्ली-जयपुर हाइवे पर दोनों तरफ करीब 18 ट्रक स्टॉप बनाए जा रहे हैं और इनके बनने के बाद इस मार्ग पर आने जाने वाले ट्रक अपने निर्धारित जगह यानि ट्रक स्टॉप पर खड़े किये जा सकेंगे। इसी प्रकार बसों के लिए भी स्टॉप बनाने का काम इस योजना के तहत किया जाएगा। ट्रक एवं बस स्टॉप और ट्रक स्टॉप बनने के बाद जहां भी जगह तय होगी, इनको वहीं खड़ा किया जाएगा। इस योजना में इन स्टॉप पर कम से कम 30 से 40 ट्रक पार्क किए जा सकेंगे।
गडकरी की प्राथमिकता
सूत्रों के अनुसार दिल्ली-जयपुर हाइवे पर करीब दो साल पहले खुद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी घंटों जाम में फंसे रहे और इस अनुभव के बाद उन्होंने सबसे पहले दिल्ली-जयपुर हाइवे के सफर को जाम और सुविधाजनक बनाने का लक्ष्य तय कर लिया था। हाइवे के साथ मंत्रालय ने मंत्रालय ने दिल्ली-जयपुर के बीच बनने वाले एक्सेस कंट्रोल हाइवे पर करीब 16000 करोड़ रुपये की लागत की एक परियोजना को भी शुरू करा दिया है। मसलन दिल्ली और जयपुर के बीच एक नया हाइवे बनाया जाएगा जो एक्सेस कंट्रोल हाइवे परियोजना पूरी होने के बाद बाद दिल्ली-जयपुर की 270 किलोमीटर की दूरी दो घंटे में तय होगी। वहीं इस हाइवे पर 150 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से वाहन दौड़ सकेंगे। सरकार ने इस राष्ट्रीय राजमार्ग के तीन मुख्य चौराहों का करीब 1005 करोड़ रुपये की लागत से होने वाले सुधार कार्य को भी तेजी से पूरा करने के निर्देश दिये गये हैं।

राग दरबार:-‘नायक’ नहीं ‘महानायक’

न राज रहा और न नीति
देश की राजनीति के खिलाड़ी माने जाने वाले दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव को लेकर ‘न घर के रहे और न घाट के’ जैसी कहावत चरितार्थ हेती है राजपाट छीन जाने के बाद यूपी में समाजवादी पार्टी की राजनीति का तो मानो छंद विच्छेद ही हो गय यानि न राज रहा और न नीति। मसलन एक और तो समाजवादी परिवार की अंतर्कलह और दूसरी और यूपी की सत्ता गंवाने के बाद सपा नेता मुलायम की हालत ने सभी को फिल्म ‘नायक’ का स्मरण करा दिया, जिसमें एक दिन के सीएम अनिल कपूर के एक्शन के सामने अमरीश पुरी की सारी राजनीति धाराशाही हो जाती है। यूपी में भाजपा की योगी सरकार जिस एक्शन मोड़ पर है वह सूबे की जनता को ऐसे भा रही है जिसमे सीएम योगी ‘नायक’ नही बल्कि ‘महानायक’ की भूमिका निभा रहे हों। यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी के ताबडतोड एक्शन ने तो यूपी की तस्वीर को सकारात्मक बदलाव की राह दिखना शुरू कर दिया यानि सपा नेता मुलायम के सभी धोबी पाट ऐसे ताक पर जाते नजर आ रहे हैं कि इसके लिए बेचारे नेताजी के लखनऊ स्थित आवास पर बिजली विभाग का छापा ही यह बताने के लिए काफी है कि योगी सरकार मैं बडी ब्मछलियाँ खुद को सुरक्षित न समझे। वहीं इसमें सपा नेता आजम खान के उस सवाल का जवाब भी है जिसमें उन्होंने योगी सरकार के जिला मुख्यालयों को 24 घंटे बिजली देने के ऐलान पर कहा था कि सरकार कहां से और कैसे बिजली आपूर्ति करेगी? दरअसल आजम ने जानना चाहा था कि प्रदेश में क्या कोई नया बिजली घर लग गया? मुलायम सिंह के आवास पर छापे से शायद आजम खान जैसे नेताओं को
जवाब और संदेश दोनों मिल गये हांगे। राजनीतिक गलियारों और सोशल मीडिया योगी एक्शन को लेकर टिप्पणियों से पटी पडुी है। जाहिर सी बात है कि अब ताकतवर लोग बिजली चोरी नही कर पाएंगे और बकाया भी अदा करेंगे। इतना ही नही कटिया डाल कर की जाने वाली बिजली चोरी रोकी जाएगी। योगी का संदेश साफ है कि यूपी में बिजली चोरों को अब यह जान लेना चाहिए कि यदि लखनऊ में मुलायम के घर छापा पड सकता है तो खैर किसी की भी नही...!
सरकार मेहरबान तो..
सरकार वाकई सरकार होती है। जिसे चाहे आफताब बना दे। जिसे चाहे धूल में मिला दे। यूपीए सरकार के जाने और केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद पत्र सूचना कार्यालय की तत्कालीन प्रमुख महानिदेशक रहीं नीलम कपूर और तब महानिदेश के पद पर काम कर रहे फ्रैंक नरोन्हा के पद को लेकर अदला-बदली की। नीलम कपूर को कांग्रेसियों के ज्यादा नजदीक माना जाता था इसीलिए उन्हें फील्ड पब्लिसीटी का मुखिया बनाकर शंट कर दिया गया। फ्रैंक को उसी पोस्ट से निकालकर पीआईबी मेें मीडिया और कम्यूनिकेशन का महानिदेशक बनाया गया। पहले एक ही पद प्रमुख महानिदेशक का होता था, उसे सरकार ने अब दो पद के रूप में सृजित कर दिया। फ्रैंक नरोन्हा को भी अब प्रमुख महानिदेशक बनाकर उनके साथ तीन महानिदेशक को प्रोन्नत कर अटैच किया गया। अच्छे अधिकारियों का टोटा पीआईबी लंबे समय से झेल रहा है। कुछ अच्छे अधिकारियों को इधर-उधर करने के चक्कर में केंद्र सरकार के ढेर सारे मंत्रालय की पब्लिसीटी का काम ठीक ढंग से नहीं हो रहा। सूचना मंत्रालय तक खबर पहुंचाई गई है, शायद कुछ बात बने।
कैबिनेट फेरबदल पर गुथमगुत्था
राज्यों में विधानसभ चुनाव और दिल्ली में नगर निगम चुनावों को देखते हुए एनडीए सरकार की कैबिनेट में फेरबदल फिलहाल नहीं हुआ है। लेकिन इसे लेकर सत्ता के गलियारों में चर्चा तेज हो गई है। कुछ मंत्रियों के विभाग बदलने की संभावना है, तो कुछ नए चेहरों की कैबिनेट में दस्तक की पूरी गुंजाइश है। बीते विस चुनावों में आए परिणाम के बाद सरकार में सहयोगी पार्टियों का कद कम होता जा रहा है, जिससे इनमें शामिल नेताओं को भी अपने विभाग बदले जाने या कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाए जाने का डर सताने लगा है। कुछ लोग खुलेआम इस मामले पर बात करते हुए नजर आ रहे हैं कि उनका विभाग रहेगा या छिन जाएगा। इन सबके बीच असलियत तो कैबिनेटफेरबदल के समय ही साफ हो पाएगी। तब तक तो सभी को इंतजार ही करना पड़ेगा।
-ओ.पी. पाल, शिशिर सोनीा व कविता जोशी 
23Apr-2017

शनिवार, 22 अप्रैल 2017

जल्द पूरी होगी राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजना!


विश्वबैंक से मिली 375 मिलियन डॉलर ऋण की मंजूरी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की देश में सड़क और रेल मार्ग के यातायात के बोझ को कम करने की दिशा में शुरू की गई राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजना जल्द पूरा करने के प्रयास किये जा रहे हैं। परियोजना में जलमार्ग विकास की क्षमता में बढ़ोतरी करने के लिए विश्व बैंक ने 375 मिलियन डॉलर की धनराशि के ऋण को मंजूरी दे दी है।
केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय के अनुसार विश्व बैंक से मिलने वाले ऋण से राष्ट्रीय जलमार्ग के पहले चरण को विकसित करने के काम में तेजी लाई जा सकेगी और इस परियोजना को जल्द से जल्द पूरा होने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। देश की महत्वाकांक्षी जलमार्ग परियोजना को आगे बढ़ाने और नियत समय में इसे पूरा करने की दिशा में जलमार्ग विकास परियोजना के अंतर्गत राष्ट्रीय जलमार्ग-1 की क्षमता में वृद्धि करने के लिए विश्व बैंक ने 375 मिलियन डॉलर की धनराशि को मंजूरी दी है।
वाराणसी-हल्दिया तक कई योजनाएं
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजना के पहले चरण में पश्चिम बंगाल के हल्दिया से लेकर वाराणसी तक 1390 किलोमीटर जलमार्ग विकास परियोजना के तहत 5369 करोड़ रुपये की लागत से गंगा नदी को जलमार्ग के रूप में विकसित कर रही है। इस परियोजना को पूरा करने के लिए विश्व बैंक से तकनीकी एवं वित्तीय सहायता ली जा रही है। यह परियोजना 1500-2000 डीडब्ल्यूटी की क्षमता वाले जहाजों के व्यावसायिक नेविगेशन को सक्षम करेगी। इस जलमार्ग का ट्रायल केंद्र सरकार पिछले साल अगस्त में दो मालवाहक जहाजों को वाराणसी से रवाना करके हल्दिया तक के सफर में पूरा कर चुकी है। राष्टÑीय जलमार्ग परियोजना के इस पहले चरण के तहत उत्तर प्रदेश के वाराणसी, झारखंड के साहिबगंज और पश्चिम बंगाल के हल्दिया में तीन बहुआयामी टर्मिनल स्थापित करेगी। वहीं दूसरी ओर कालुघाट और गाजीपुर में दो अंतर-मॉडल टर्मिनल, पांच रॉल आॅफ रॉल आॅन टर्मिनल (आरओ-आरओ), वाराणसी, पटना, भागलपुर, मुंगेर, कोलकाता और हल्दिया में नौका सेवा का विकास, और पोत मरम्मत और रखरखाव की सुविधाएं विकसित की जाएंगी।
दो मल्टी मॉडल टर्मिनल का काम शुरू
केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नीतिन गडकरी ने वाराणसी एवं साहिबगंज में मल्टी-मॉडल टर्मिनल और फरक्का में नवीन नेविगेशन लॉक को निर्मित करने के लिआॅए अनुंबध करने की औपचारिका पहले ही पूरी कर ली है और पिछले दिनों ही छह अप्रैल को साहिबगंज में निर्मित होने वाले मल्टी मॉडल टर्मिनल की आधारशिला पीएम नरेन्द्र मोदी ने रखी है, वहीं पिछले साल अगस्त में केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने वाराणसी में बनाए जाने वाले मल्टी मॉडल टर्मिनल की आधारशिला रखी थी। इन दोनों जगह का काम शुरू किया जा चुका है, जबकि हल्दिया में मल्टी मॉडल टर्मिनल का निर्माण जल्द शुरू किया जाएगा।

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

सरकार ऐसे रोकेगी वाहनों की तेज रफ्तार!

हर साल कराना होगा स्पीड गवर्नर का फिटमेंट
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में सड़क हादसों के बड़े कारणों में शामिल कॉमर्शियल वाहनों की अनियंत्रित गति पर अंकुश लगाने की दिशा में केंद्र सरकार ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। स्पीड गर्वनर की अनिवार्य के बाद कॉमर्शियल वाहनों की तेज रफ्तार रोकने की दिशा में ऐसे वाहनों को हर साल स्पीड गवर्नर का फिटमेंट करना जरूरी कर दिया गया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार हाल में जारी नए दिशा निर्देशों के अनुसार कॉमर्शियल वाहनों के कारण हो रही सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने की दिशा में पहले से ही स्पीड गवर्नर अनिवार्य किया जा चुका है, लेकिन ऐसे वाहनों का हर साल स्पीड गवर्नर का फिटमेंट कराकर नवीकरण सर्टिफिकेट लेना जरूरी कर दिया गया है। इन निर्देशों को जारी करने का मकसद सरकार सड़क हादसों पर अंकुश लगाने की मुहिम को मजबूत करना चाहती है। हर साल कॉमर्शियल वाहनों में लगे स्पीड गवर्नर का फिटमेंट करवाने के पीछे इस बात का पता लगाना है कि वाहनों में लगा गति नियंत्रक यंत्र सही तरीके से काम कर रहा है या नहीं। मंत्रालय के अनुसार सड़कों पर तेज रफ्तार से दौड़ने वाले वाहनों की गति पर नियंत्रण करने के लिए इस प्रकार के नियमों का अनुपालन कराना जरूरी हो गया है, जिसमें वाहन चैकिंग के दौरान भी इन दिशा निर्देशों के उल्लंघन करने वालों पर नजर रखी जाएगी। नियमों पर खरा न उतरने वाले वाहनों और उनके स्वामियों के खिलाफ सख्त कार्रवाही अमल में लाने का भी प्रावधान है।
उल्लंघन करने पर खैर नहीं
केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों के मुताबिक कामर्शियल वाहनों में डीलर ही यूनिक कोड जनरेट कर स्पीड गवर्नर लगाएगा, ताकि एक स्पीड गवर्नर को दूसरे वाहन में फिट न किया जा सके। ऐसे निर्देश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की चार सदस्यीय समिति द्वारा हाल में स्पीड गवर्नर को लेकर जारी दिशानिर्देश के तहत जारी किये हैं, जिसके तहत कॉमर्शियल वाहनों में स्पीड गवर्नर या उसके फिटमेंट के लिए वाहन निमार्ता को ही ज्यादा जिम्मेदार ठहरा जाएगा, जिन्हें एमआईएस पर दर्ज करवाने से लेकर यूनिक कोड तक जनरेट करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
क्या हैं नए दिशानिर्देश
मंत्रालय के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की समिति द्वारा जारी गाइडलाइन के तहत सरकार ने जो नए दिशा निर्देश जारी किये हैं उनमें वाहन निर्माता या डीलर को वर्तमान में लगने वाली स्पीड लिमिट डिवाइस के बजाए संबंधित वाहन में स्पेसिफिक डिवाइस लगाकर उसे सील करना होगा। इसके साथ ही स्पीड गवर्नर लगाने के बाद डाटा को आॅनलाइन फीड करने की जिम्मेदारी भी डीलर को सौँपी गई है। मसलन जिस वाहन के लिए जो स्पीड लिमिट डिवाइस बनी है, उसे उसी वाहन में लगाना जरूरी होगा। इस प्रणाली के जरिए ही चैकिंग के दौरान यूनिक कोड से लेकर आॅनलाइन जानकारी चैक की जा सकेगी। वहीं डीलर्स को स्पीड गवर्नर की जानकारी मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम (एमआईएस) सॉफ्टवेयर में दर्ज करनी होगी। हर साल स्पीड गवर्नर की जांच भी करानी होगी।

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

अब पूरे स्ट्रेच पर चलेगा नमामि गंगे मिशन!

यूपी में आ रही बाधाएं जल्द दूर होगी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी ‘नमामि गंगे मिशन’ में पूर्ववर्ती सरकार के कारण आ रही सभी अड़चने दूर होती नजर आने लगी है। इसलिए अब केंद्र सरकार ने नमामि गंगे अभियान को पूरे स्ट्रेच पर आगे बढ़ाने की योजना बनाई है।
नमामि गंगे अभियान के लिए जुटे केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय ने गंगा किनारे काम को तेज करने के लिए जिस प्रकार से पिछले साल जुलाई में सैकड़ो परियोजनाओं को पटरी पर उतारा था, उसमें केंद्रीय मंत्री उमा भारती द्वारा गठित की गई विभिन्न विशेषज्ञ समितियों के अध्ययन के बाद गंगा किनारे प्रदूषण फैलाने वाली करीब 764 औद्योगिक ईकाईयों को जल शोधन संयंत्र लगाकर शोधित जल ही नदियों में डालने के कड़े निर्देश दिये थे,जिनका कैमिकलयुक्त और प्रदूषित जल सीधे गंगा व अन्य नदियों में जाता रहा है। इसके लिए गंगा में गंदा पानी और प्रदूषित जल को रोकने के लिए जहां इन औद्योगिक ईकाईयों को चिन्हित कर सूचीबद्ध किया था, वहीं नगर निगम व नगरपालिकाओं और नगर पंचायत के अलावा ग्राम पंचायत की बसावट से निकलने वाले गंदे नालों को भी सूचिबद्ध करके जल शोधन संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई थी। वहीं गंदे नालों की गाद और अन्य पदार्थो को डम्प करने की वैकल्पिक व्यवस्था भी सरकार की परियोजना का हिस्सा रही है।
कानपुर दुनिया का सबसे गंदा स्ट्रेच
मंत्रालय के अनुसार इसके बावजूद उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती सरकार की असहयोग नीति के कारण पिछले दो साल से प्रमुख रूप से कानपुर से गुजर रही गंगा नदी में पड़ने वाली चमड़ा फैक्ट्रियों के गंदे पानी को रोकने के लिए कोई कार्यवाही नहीं की गई। इसी कारण सबसे बड़ी समस्या कानपुर में प्रदूषित गंगा इस मिशन की बड़ी अड़चन बनी रही है। इस अड़चन को कई बार खुद केंद्रीय मंत्री उमा भारती उजागर करती रही हैं।
योगी के एक फैसले का असर
दरअसल प्रदेश में भाजपा की योगी सरकार बनने के बाद केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने मुख्यमंत्रीआदित्यनाथ के साथ एक बैठक करके कई मुद्दो पर चर्चा की, जिसके बारे में उमा भारती ने आज मंगलवार कोमीडिया के साथ रूबरू होकर जानकारी दी कि अब नमामि गंगे मिशन को आगे बढ़ाने में कोई बाधा आए ऐसीसंभावनाएं यूपी सरकार के साथ बनी सहमति के बाद प्रबल हो गई है। उनका कहना है कि योगी सरकार ने कानपुर मेंगंगा को गंदा करने में लगी चमड़ा औद्योगिक ईकाईयों को वहां हटाकर अन्य स्थानों पर हस्तांतरित करने का फैसला लिया, जिसके बाद चमड़ा उद्यमियों में बेचैनी शुरू हो गई और एसटीपी की स्थापना तथा शोधित जल का उपयोग करने को राजी नजर आने लगे। जबकि सितंबर 2014 में ही उमा भारती ने गंगा किनारे चिन्हित सभी 674 उद्योगिक ईकाईयो के स्वामियों की बैठक बुलाकर नमामि गंगे मिशन के तहत आवश्यक दिशानिर्देश जारी कर दिये थे।

एमसीडी चुनाव: दागी व अमीर प्रत्याशियों का वर्चस्व!

दिल्ली नगर निगम चुनाव
ऐसे उम्मीदवारों पर कांग्रेस ने खेला बड़ा दांव
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
दिल्ली नगर निगमों की 272 सीटों के चुनाव मैदान में भी राजनीतिक दलों ने दागियों और करोड़पति उम्मीदवारों परदांव खेला है, जिसमें निगमों से भाजपा का कब्जा छिनने के इरादे से कांग्रेस ने सबसे ज्यादा दागियों और करोड़पति उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है।
दिल्ली के तीनों नगर निगमों में फिलहाल भाजपा का कब्जा है। कुल 272 वार्डो के लिए आगामी 23 अप्रैल को होने वाले चुनाव के लिए छह राष्ट्रीय, 12 क्षेत्रीय और सात गैर मान्यता प्राप्त दलों समेत 18 सियासी दलों के अलावा 1174 निर्दलीय प्रत्याशियों समेत कुल 2537 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इनमें 1127 महिलाएं भी चुनावी जंग में उतरी हुई है। गौरतलब है कि पूर्ववर्ती एकीकृत दिल्ली नगर निगम को वर्ष 2012 में तीन हिस्सों में बांट कर उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी नगर निगम बनाए गए थे। एनडीएमसी और एसडीएमसी में 104-104 वार्ड और ईडीएमसी में 64 वार्ड हैं। चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों के शपथपत्रों के आधार पर गैर सरकार संस्था एडीआर ने विश्लेषण करके जो तथ्य उजागर किये हैं उनमें आम आदमी पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि कांग्रेस 271, भाजपा 267, बसपा 211, जदयू 95, शिवसेना 56 व राकांपा 43 और सपा 28 सीटों पर चुनाव मैदान में है।
दागियों पर लगाया दांव
दिल्ली नगर निगम के चुनाव में हालांकि अपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी 173 ही हैं, लेकिन इनमें 116 प्रत्याशी ऐसे हैं, जिनके खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, अपहरण और महिला के खिलाफ अपराध जैसे संगीन मामले लंबित हैं। इन दागियों की सूची में सबसे ज्यादा 35 कांग्रेस के अलावा 26 भाजपा, 21 आम आदमी पार्टी, 13 बसपा, पांच-पांच सपा व जदयू, तीन- तीन राकांपा व शिवसेना और दो-दो लोजपा व वामदलों के साथ ही 55 निर्दलीय प्रत्याशी शामिल है। जबकि संगीन मामलों में लिप्त 116 उम्मीदवारों में भी सबसे ज्यादा 22 कांग्रेस के प्रत्याशी है, जबकि आप के 15, भाजपा के 13, बसपा के दस, सपा व जदयू के तीन-तीन तथा 42 निर्दलीय प्रत्याशी शामिल है। संगीन मामलों वाले प्रत्याशियों में दक्षिण निगम के वार्ड नंबर 42 दिचांव कलां से चुनाव लड़ रहे लोजपा के राजेश के खिलाफ हत्या का मामला लंबित है। चुनाव में 15 प्रत्याशियों के खिलाफ हत्या का प्रयास, सात के खिलाफ अपहरण का मामला और 23 उम्मीदवारों के खिलाफ महिलाओं के खिलाफ बलात्कार व अन्य आरोप के मामले लंबित चल रहे हैं।

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

तलाकशुदा महिलाओं की जिंदगी राम भरोसे!


पुरुषों के मुकाबले मुस्लिम महिलाओं की तलाक दर 3.5 गुना ज्यादा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में तीन तलाक के मुद्दे पर छिड़ी बहस के बीच सियासत भी गरमाई हुई है। ऐसे में सामने आए एक सर्वे में प्रमुख रूप से चार धर्मो हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई समाज में तलाकशुदा महिलाओं के हालात को पेश किया गया है, जिसमें खासकर तलाकशुदा 91 प्रतिशत मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी बेहद कठिन बताई गई है, जिनकी संख्या पुरुषों के मुकाबले 3.5 गुणा ज्यादा है।
देश में एक समान कानून लागू करने की दिशा में आगे बढ़ती मोदी सरकार के सामने समान नागरिक संहिता और तीन तलाक के मुद्दे पर गरमाती राजनीति के बीच एक बहस छिड़ी हुई है और सुप्रीम कोर्ट भी खासकर तीन तलाक को लेकर गंभीर नजर आ रही है। हालांकि वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि मुस्लिमों से ज्यादा हिंदू महिलाएं तीन गुणा तलाकशुदा जिंदगी जीने को मजबूर हैं, लेकिन देश में कुछ तथाकथित सेक्युलर सियासी दल इस मुद्दे पर मुस्लिमों की राजनीति करने से कोई हिचक नहीं कर रहे हैं। जब तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार और सियासी दलों के अलावा मुस्लिम संगठन आए दिन अपनी दलील देने में लगे हैं तो ऐसे में एक निजी संस्था के सामने आए सर्वे रिपोर्ट में तलाक को लेकर हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई समुदाय में जो खुलासा किया गया है वह चौंकाने वाला है। राष्ट्रीय स्तर पर पेश हुई इस सर्वे रिपोर्ट में पुरुषों की तुलना में तलाकशुदा महिलाओं की संख्या कहीं जयादा है। यानि एक हजार में 3.1 विवाहित महिलाएं तलाकशुदा हैं तो पुरुष 1.6 की संख्या में आते हैं। मसलन यह आंकड़ा इस बात की पुष्टि करता है कि पुरुषों के पास दूसरी शादी करने के ज्यादा विकल्प हैं।
ये है तलाकशुदा जिंदगी
जहां तक तलाकशुदा संख्या का सवाल है उसमें शादी के बाद 3.44 लाख हिंदू पुरुष और उससे कहीं ज्यादा 6.18 लाख हिंदू महिलाएं अलग-अलग रह रही हैं। जबकि तलाक के बाद 57,537 मुस्लिम पुरुष अलग रह रहे है तो 2.12 लाख मुस्लिम महिलाएं तलाक के कारण अलग रहकर अपनी कठिन जिंदगी जीने को मजबूर हैं। जबकि ईसाई धर्म में इस श्रेणी में 18,449 पुरुष और 37,406 महिलाएं शामिल हैं। जबकि सिख समाज में 13,732 महिलाओं की तुलना में 19,155 पुरुष तलाकशुदा हैं। मसलन सिख समुदाय ही ऐसा है जहां महिलाओं की तुलना में पुरुष तलाकशुदा जिंदगी जीने को मजबूर हैं, जबकि बाकी तीन समुदाय में पुरुषों के मुकाबले तलाकशुदा महिलाओं की संख्या कई गुणा ज्यादा है।
ऐसे टूट रही हैं जोड़ियां
देश में चार प्रमुख धर्माे के आधार पर पुरुषों और महिलाओं में तलाक लेने की दर में बढ़ोतरी देखी गई है। रिपोर्ट के अनुसार प्रति एक हजार विवाहित लोगों के हिसाब से हिंदू पुरुष 1.5 और महिला 2.6, तो मुस्लिमों में पुरुष 1.6 तोमहिला 5.6 की दर से तलाकशुदा हैं। इसी प्रकार ईसाई धर्म में यह आंकड़ा 2.9 पुरुष और 5.7 महिला का है। जबकिसिख समुदाय में बाकी तीनों धर्मो के मुकाबले यह आंकड़ा विपरीत है, जिसमें प्रति एक हजार में 2.9 पुरुष और 5.7 महिलाएं बताई गई हैं। मुस्लिम और ईसाई महिलाओं में तलाक लेने की दर कमोबेश एक समान है, लेकिन मुस्लिम पुरुषों की तुलना में मुस्लिम महिलाओं की तलाक लेने की दर 3.5 गुणा ज्यादा है, जबकि ईसाई धर्म में पुरुषों कीतुलना ईसाई महिलाओं की तलाक लेने की दर 1.9 गुणा ही अधिक है।
मौखिक तलाक बड़ा कारण
इस सर्वे रिपोर्ट में खासकर मुस्लिम समाज में तलाक के कारण 91 फिसदी महिलाएं कठिन जिंदगी जीने को मजबूर है,तो इसका सबसे बड़ा कारण मौखिक तलाक है। रिपोर्ट के अनुसार देश में मुस्लिम समुदाय में मौखिक रूप से 65.9 फीसदी तलाक लिया जा रहा है, जबकि पत्र के जरिए केवल 7.6 फीसदी तलाक के मामले सामने आए हैं। फोन के जरिए 3.4 और ईमेल व एसएमएस के जरिए 0.8 फीसदी तलाक लिये गये हैं। मुस्लिम समाज में शरई कानून जैसे अन्य तरीकों के जरिए तलाक लेने की दर 22.3 फीसदी रही है।
शादीशुदा लोगों की आबादी
देश के इन चार प्रमुख धर्मो के आधार पर विवाहित लोगों की संख्या में शादीशुदा 23.4 करोड़ हिंदू पुरुषों के मुकाबले 23.8 करोड़ हिंदू महिलाएं विवाहित है। जबकि मुसलमान पुरषों में 3.6 और महिलाएं 3.8 करोड़ विवाहित हैं। इसी प्रकार ईसाई धर्म में 60 लाख पुरुष और 70 लाख महिलाएं शादीशुदा हैं तो सिख समुदाय में यह आंकड़ा 50-50 लाख का दर्शाया गया है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने पिछले दिनो 2011 की जनगणना के आंकडों ने मोदी सरकार की चिंता बढ़ाई थी, जिसमें तलाकशुदा महिलाओं में 68 फीसदी हिन्दू और 23.3 फीसदी मुस्लिम शामिल थी।

रविवार, 16 अप्रैल 2017

उच्च न्यायालयों में 41.43 फीसदी जजों का टोटा!


कॉलेजियम ने केंद्र को भेजे 51 जजों के नाम
पंजाब व हरियाणा को नौ व छग को दो जज मिलेंगे
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देशभर में करीब दो दर्जन उच्च न्यायालयों में जजों के करीब 41 पद रिक्त पड़े हुए हैं, जिसका कारण जजों की नियुक्ति प्रणाली को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच टकराव है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने देश में दस उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के लिए 51 जजों के नामों की सूची भेजी है।
भारत के प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अगुआई वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने संवैधानिक न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के लिए सरकार की तैयार की गई नई ज्ञापन प्रक्रिया (एमओपी) को अंतिम रूप देने के बाद देश के 10 उच्च न्यायालयों के लिए 51 जजों के नामों की सिफारिश की है। जबकि केंद्र सरकार ने कॉलेजियम को 90 जजों के नाम भेजे थे। सूत्रों के अनुसार कॉलेजियम की इन 51 नामों की सूची में 20 जजों के अलावा 31 अधिवक्ता भी शामिल हैं, जिन्हें जज बनाने की सिफारिश की गई है। कॉलेजियम ने केंद्र सरकार से 51 नामों की सूची में से बोम्बे, पंजाब और हरियाणा, पटना, हैदराबाद, दिल्ली और छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति करने के लिए जजों के नामों की अनुशंसा की है। यदि केंद्र सरकार कॉलेजियम की अनुसंशाओं का मानती है तो जम्मू-कश्मीर, झारखंड, गोहाटी और सिक्किम हाई कोर्ट में भी जजों की नियुक्तियां संभव हो सकती हैं। दरअसल भारत के प्रधान न्यायाधीश जे. एस. खेहर की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मेमोरेन्डम आॅफ प्रोसीजर यानि एमओपी को अंतिम रूप देने के बाद इन 51 नामों को मंजूरी दी है।
छग को भी मिलेंगे जज
केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा भेजे गये 51 नामों में से सर्वाधिक 14 नामों की बॉम्बे हाई कोर्ट के लिए अनुशंसा की गई है, जहां स्वीकृत 94 जजों में से केवल 61 जज ही कार्यरत हैं। इसके बाद पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में नौ जजों की नियुक्ति की सिफारिश हुई है, स्वीकृत 85 पदों में फिलहाल 39 पद खाली हैं। यदि इन नौ जजों की नियुक्ति की जाती है तो भी पंजाब एवं हरियाणा में 30 जजों का टोटा बना रहेगा। इसी प्रकार पटना हाई कोर्ट और तेलंगाना और आंध्र प्रदेश को हाई कोर्ट के लिए 6 जजों के नामों का प्रस्ताव भेजा गया है। जबकि दिल्ली हाई कोर्ट और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के लिए 4 जजों का नामों को अंतिम रूप दिया गया है।
इसलिए लंबित हैं मामले
देश में इन 24 उच्च न्यायालयों में 1079 जजों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन अभी तक इनके विपरीत 632 जज नियुक्त हैं। मसलन इन उच्च न्यायालयों में स्वीकृत पदों में 447 यानि 41.43 प्रतिशत जजों के पद खाली हैं। यदि इन 51 जजों की नियुक्ति होती है तो भी इन उच्च न्यायालयों में 396 जजों का टोटा बना रहेगा। गौरतलब है कि वर्ष 2015 से ही देश के अलग-अलग उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों के अलावा सुप्रीम कोर्ट में जजों की भारी कमी चल रही है। सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच डेढ़ साल से बना टकराव अभी खत्म नहीं हुआ है, क्योंकि एमओपी पर गतिरोध के बावजूद सरकार ने पिछले साल अप्रैल में ही उच्च न्यायालयों के लिए 127 जजों के नामों को मंजूरी दी थी। इनके लिए कॉलेजियम को अंतिम सिफारिश देनी थी, लेकिन केंद्र सरकार को भेजी गई 51 नामों की सूची में बाकी नामों को सूची से काट दिया गया है।

राग दरबार: उत्तराधिकारी या वंशवाद...

मायावती की बदलती रणनीति
देश की सियासत में जनता तेजी के साथ बदलाव देख रही है। जनता आजादी के 70 साल में लगभग सभी दलों की वोटबैंक वाली सियासत को समझने लगी है, इसलिए अब धर्म, जाति या संप्रदाय के नाम की राजनीति किसी भी दल के लिए सिरे चढ़ती नजर नहीं आती। इसलिए जो दल अपना जनाधार खोते जा रहे हैं उन्होंने अपनी रणनीति बदलना शुरू कर दिया है। इसी सिलसिले में बसपा ने भी अपनी सियासी रणनीति में आमूल चूल परिवर्तन करना शुरू कर दिया है मसलन मायावती ने अपने भाई को पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर वंशवाद को आगे बढ़ाने की रणनीति तो अपनाई है, वहीं मायावती के इस कदम को दूसरी पंक्ति में उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है। राजनीतिकारों की माने तो बसपा में वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्रा और नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे सरीके नेताओं का कद स्वत: ही घट जाएगा और परिवारवाद की राजनीति का विरोध करती रही बसपा सुप्रीमो ने आखिर कांग्रेस की राह पकड़ ही ली, जिसे बसपा की इस बदलते सियासी परिवेश में बदलती रणनीति कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
बैकफुट पर केजरीवाल
दिल्ली नगर निगम चुनाव में लोगों से उत्साहजनक समर्थन नहीं मिलता देख आम आदमी पार्टी ने अपने चुनाव प्रचार की रणनीति को मझधार में बदलने का फैसला लिया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अलावा करीब 40 स्टार प्रचारकों को सभी 272 वार्डों में जनसभाएं करनी थी लेकिन अब इन जनसभाओं की बजाय डोर-टू-डोर पर चुनाव प्रचार पर ज्यादा फोकस करने का निर्देश उम्मीदवारों को दिया जा रहा है। बस चुनिंदा जगहों पर अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की जनसभाएं की जा रही हैं। बताया जा रहा है कि केजरीवाल की इच्छा हर जनसभा में कम से कम 25 हजार लोगों की भीड़ के बीच भाषण देने की है लेकिन वार्ड सतर के इस चुनाव में आप के ज्यादातर प्रत्याशी डेढ़-दो हजार लोग मुश्किल से जुटा पा रहे हैं। ऐसे में अरविंद केजरीवाल ने अपनी सभाओं की तादाद कम करने का निर्णय लेना पड़ा। आम आदमी पार्टी के रणनीतिकारों को उम्मीद थी कि दिल्ली विधानसभा चुनाव की तर्ज पर लोग केजरीवाल का भाषण सुनने के लिये उमड़ पडेंगे लेकिन अब कड़ी मशक्कत के बाद भी मनमाफिक भीड़ नहीं जुट पा रही है।
काम पर महकमों में हडकंप...
सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्यों की। सरकारी महकमों को लेकर यही आम मशहूर पंक्ति अक्सर सुनने को मिलती है कि वहां काम कम और आराम ज्यादा होता है। तभी तो देश का हर कोई व्यक्ति सरकारी नौकरी पाने के लिए लालायित रहता है। लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में नई सरकार आने के बाद जैसे माहौल ही बदलने लगा। केंद्रीय मंत्रालय व उनमें काम करने वाले अधिकारी, कर्मचारी खासकर हरकत में आए। लोग समय पर आॅफिस आने लगे व काम करने लगे। यह एक प्रकार से सरकारी महकमों में हडकंप जैसी स्थिति से कम नहीं था। क्योंकि जहां कभी आराम पसरा था, अब वहां काम को लेकर मारा-मारी मची हुई थी। ऐसा ही एक और हडकंप जल्द ही सरकार के तमाम केंद्रीय मंत्रालयों में फिर से मचने की तैयारी कर रहा है। इस बार मौका मोदी सरकार के 26 मई को तीन साल पूरा होने के जश्न को लेकर होगा। इसमें सिर्फ इंतजार संसद सत्र के खत्म होने का किया जा रहा है। जैसे ही सत्र खत्म होगा, मंत्रालयों में तीन वर्षों की गतिविधियों को लेकर जानकारी एकत्रित करने, मंत्रियों द्वारा प्रेस कॉंफ्रेंस करने, ग्राफ बनाने, चित्रात्मक गतिविधियां तैयार करने का दौर शुरू हो जाएगा। खैर जो भी हो काम को लेकर मचने वाले इस हडकंप को सुखद कहा जा सकता है।

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

देश में भयंकर जल संकट के आसार!



पिछले छह माह में घटा 58 फीसदी जलस्तर
सूखे की स्थिति से निपटने को सतर्क हुई सरकार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में गर्मियों में जल संकट से निपटने के लिए हालांकि केंद्र सरकार ने मेगा योजना का खाका तैयार किया है, लेकिन जिस प्रकार से देश में जल का स्तर तेजी से गिर रहा है उससे ऐसी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश में जल संकट भयंकर रूप से गहराएगा? मसलन पिछले करीब छह माह में जल स्तर में 58 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
दरअसल केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के देश के प्रमुख 91 जलाशयों में जल स्तर की ताजा रिपोर्ट जारी की है, इनमें फिलहाल 48.42 अरब घन मीटर जल का संग्रहण आंका गया है, जो छह माह पहले यानि अक्टूबर के अंत में 115.457 अरब घन मीटर जल का स्तर था। मसलन इस दौरान 67.37 अरब घन मीटर यानि 58 फीसदी से ज्यादा पानी के स्तर में गिरावट दर्ज की गई है। मंत्रालय के अनुसार मौजूदा समय में देश के 91 प्रमुख जलाशयों में 48.42 बीसीएम (अरब घन मीटर) जल स्तर है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 31 प्रतिशत है। एक सप्ताह पहले यह जल स्तर 50.632 बीसीएम यानि 32 प्रतिशत था। गौरतलब है कि इन 91 जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता 157.799 अरब घन मीटर यानि बीसीएम है, जो समग्र रूप से देश की अनुमानित कुल जल संग्रहण क्षमता 253.388 बीसीएम का लगभग 62 प्रतिशत है। मसलन पिछले साल 27 अक्टूबर को इन जलाशयों का जल स्तर उच्चतम 115.457 बीसीएम आंका गया था, जिसके बाद जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती जा रही है उसे तेजी से लगातार इस जल स्तर में गिरावट देखी जा रही है। मंत्रालय के अनुसार देश के इन प्रमुख जलाशयों में से 37 ऐसे हैं जिनमें 60 मेगावाट से ज्यादा की क्षमता के साथ पनबिजली का उत्पादन भी किया जाता है।
चुनौतियों से निपटने की तैयारी
मंत्रालय के अनुसार गर्मी के दौरान हर साल जल संकट से जूझते देश के विभिन्न राज्यों व इलाकों के लोगो को राहत देने के लिए सरकार ने पहले से ऐसी चुनौतियों से निपटने की तैयारी शुरू कर दी है, जिसके लिए तैयार किये गये रोडमैप के तहत 1600 करोड़ की योजना को शुरू कराने का दावा किया जा रहा है। इसके अलावा सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए गर्मियों के दौरान 300 करोड़ रुपये की सिंचाई योजनाओं पर काम शुरू करने के लिए दिशा निर्देश जारी किये हैं।

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

आखिर सियासी रणनीति में बदलाव पर उतरी माया!

हार से हताश दलों के प्रस्तावित महागठबंधन में जाने को तैयार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
पिछले लोकसभा और हाल ही में यूपी विधानसभा चुनाव में करारी हार से बहुजन समाज वादी पार्टी ऐसी हताश नजर आ रही है कि हमेशा अकेले दम पर चुनाव मैदान में जाने के सिद्धांत को पीछे धकेलकर बसपा सुप्रीमो मायावती ने सियासी रणनीति में बदलाव करने को मजबूर होना पड़ा है। मसलन अब वह भाजपा के खिलाफ अपने चिर प्रतिद्वंद्वी दलों के साथ प्रस्तावित महागठबंधन में शामिल होने को भी तैयार है।
देश में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर यूपी विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी के 33वें स्थापना दिवस पर पार्टी की सियासी रणनीति बदलने के साफ संकेत ही नहीं दिये, बल्कि उत्तराधिकारी के रूप में अपने छोटे भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त कर दिया है, जिसे माया के बाद सभी दस्तावेजों और फैसले लेने का अधिकार भी होगा। देश की राजनीति में बसपा ऐसे सिद्धांत पर रही है, जिसने हमेशा अकेले दम पर चुनाव लड़ा है और यदि गठबंधन करने की मजबूरी भी आई तो चुनाव के बाद ही किया है। पिछले लोकसभा चुनाव में लोकसभा में पार्टी को जगह न दे पाने वाली मायावती को पिछले महीने ही यूपी विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की हवा में करारी हार का सामना करना पड़ा है। भले ही वह इस हार का ठींकरा ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी होने के आरोप के साथ फोड़ने का प्रयास कर रही है, लेकिन जातिगत आधार पर राजनीति करने वाली बसपा का वोटबैंक भाजपा की रणनीति के सामने पूरी तरह खिसकता नजर आया। ऐसे में पार्टी के सिद्धांतों को ताक पर रखते हुए मायावती ने सियासी रणनीति में ऐसे बदलाव करके फिर से जनाधार हासिल करने के प्रयास में एक कदम बढ़ाया है।
मुद्दो पर फिसली बसपा
चुनावी रणनीति में मायावती ने शुक्रवार को जिस प्रकार के बयान देकर कई रहस्यों को भी उजागर किया है, वहीं अन्य दलों की तरह बसपा भी जनहित के मुद्दों पर पूरी तरह फिसलती नजर आई है, जिनके लिए जनता ने भाजपा पर ज्यादा विश्वास जताया है। यहां तक कि डा. भीमराव अंबेडकर के नाम पर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योजनाओं से मायावती आहात नजर आ रही है। तो तीन तलाक या मुस्लिमों के हितों को साधने वाली पटरी से उतरी सभी रणनीतियों पर फिर से विश्वास बहाल करने के लिए दलित-मुस्लिमों की समर्थक होने के लिए मायावती अपनी व पार्टी की छवि सुधारने की मुहिम में जुट गई हैं।
मुस्लिमों के मुद्दे पर ऐसे पलटी माया
देशभर में चर्चा का विषय बने तीन तलाक पर मायावती ने शुक्रवार को कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तलाक पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को न्याय नहीं दे पा रहा है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट जल्द ही इस पर फैसला ले। जबकि इससे पहले यानि पिछले साल ही हाजी अली मामले पर महिलाओं के संघर्ष पर मायावती ने एक सार्वजनिक बयान दिया था कि धार्मिक मामलों में अदालतों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। जिसमें मायावती ने हाजी अली दरगाह में महिलाओं को प्रवेश के लिए भूमाता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई की मुहीम पर बड़ा बयान दिया था और कहा कि हर धर्म के अपने रिवाज होते हैं और उसमे हस्तक्षेप करना सही नहीं है। उन्होंने यहां तक कहा था कि हाजी अली का मामला धर्म से संबंधित है इसलिए धर्मगुरुओं को ही इस पर फैसला लेना चाहिए। हालांकि अब माया का कहना है कि महिलाओं को बराबरी तो मिलनी चाहिए, लेकिन बराबरी मांगने का तरीका ठीक होना चाहिए।

गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

अब नहीं बन सकेंगे फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस!

राष्ट्रीय पोर्टल व आधार से जोड़े जाएंगे लाइसेंस
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
भले ही यातायात नियमों को सख्त बनाने वाला नया मोटर वाहन अधिनियम विधेयक संसद में लटका रह गया हो, लेकिन केंद्र सरकार ने फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने वालो पर शिकंजा कसते हुए यातायात नियमों में बदलाव करके ऐसे नियम लागू कर दिये हैं, जिसमें फर्जी लाइसेंस धारक सरकार के रडार पर आ जाएगा यानि सरकार ने ड्राइविंगलाइसेंसों को तैयार किये जा रहे नेशनल पोर्टल से जोड़ना शुरू कर दिया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार देश में परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में हाल में यह नियम लागू कर दिया है। इस नियम के तहत यदि कोई व्यक्ति फर्जी तरीके से लाइसेंस बनवा भी लेता है तो उसका खुलासा होना आसान होगा। इस नियम के तहत सरकार ने ड्राइविंग लाइसेंस को जहां तैयार किये गये राष्ट्रीय पोर्टल से जोड़ा है, वहीं इन्हें आधार कार्ड से भी जोड़ने की तैयार कर दी है। मसलन यदि किसी का लाइसेंस यातायात नियमों के तय सीमा से ज्यादा उल्लंघन करता है तो उसका ड्राइविंग लाइसेंस निरस्त करने का प्रावधान है और ऐसे में वह व्यक्ति देश में कहीं भी फिर से ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनवा सकेगा।
प्रक्रिया आसान, लेकिन नियम सख्त
मंत्रालय के अनुसार सरकार ने हालांकि ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया को आॅनलाइन करके आसान कर दिया है, लेकिन इसके लिए बनाए गये नियम बहुत ही सख्त किये गये हैं। इसका मकसद यही है कि फर्जी लाइसेंसों की कुप्रथा को खत्म करना और यातायात नियमों का अनुपालन कराना है। सरकार के इस ठोस कदम के तहत देश के सभी राज्यों में बनाए जाने वाले ड्राइविंग लाइसेंस को नेशनल पोर्टल से जोड़ने प्रक्रिया की जा रही है। यानि अब किसी भी राज्य के शहर में यातायात नियमों का उल्लंघन करने पर यदि लाइसेंस रद्द होता है तो वह नियमों की प्रक्रिया के तहत स्वत: ही नेशनल पोर्टल पर अपडेट हो जाएगा, जिसके बाद संबन्धित व्यक्ति का लाइसेंस देशभर में किसी भी शहर से नहीं बन सकेगा।

जीएसटी कानून की और आसान हुई राह!

राष्ट्रपति ने भी दी जीएसटी के चारों विधेयकों को मंजूरी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार की देश में एक समान कर प्रणाली लागू करने की दिशा में एक जुलाई से जीएसटी कानून लागू करने के लिए हो रहे प्रयासों की राह आसान हो गई है। मसलन गुरुवार को संसद से पारित जीएसटी से जुड़े चार विधेयकों पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी अपनी मुहर लगा दी है।
केंद्र सरकार का प्रयास है कि देश में हर हालत में एक जुलाई से जीएसटी कानून लागू करके एक समान कर प्रणाली की व्यवस्था शुरू कर दी जाए। इसी कवायद में जुटी केंद्र सरकार ने हाल में संपन्न हुए संसद के बजट सत्र में लोकसभा के बाद पिछले सप्ताह ही राज्यसभा में देश की ऐतिहासिक कर सुधार व्यवस्था ‘जीएसटी’ को लागू करने वस्तु एवं सेवा कर से जुड़े चार विधेयकों यानि केंद्रीय माल एवं सेवा कर विधेयक (सी-जीएसटी), एकीकृत माल एवं सेवा कर विधेयक(आई-जीएसटी), संघ राज्य क्षेत्र माल एवं सेवाकर विधेयक(यूटी जीएसटी) और माल एवं सेवाकर(राज्यों को प्रतिकर) (एस-जीएसटी) विधेयक को मंजूरी दी थी। संसद से पारित जीएसटी से जुड़े इन चारों विधेयकों को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास भेजा गया था, जहां से आज गुरुवार को मंजूरी मिल गई। मसलन अब केंद्र सरकार के लिए एक जुलाई से जीएसटी कानून लागू करने की राह और भी आसान हो गई है। अब एक विधेयक को राज्यों से मंजूरी मिलना बाकी है।
एक राष्ट्र-एक टैक्स
देश में एक समान कर प्रणाली की व्यवस्था के तहत जीएसटी कानून लागू होने के देशभर में कारोबारियों को कर चुकाना आसान हो जाएगा। अब जैसे ही इनमें से राज्यों से जुड़े जीएसटी विधेयक को कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी मिल जाती है तो तभी यह कानून देश में लागू किया जा सकेगा। इससे पहले देश में जीएसटी व्यवस्था लागू करने के लिए गठित जीएसटी परिषद ने एक दर्जन से ज्यादा बैठकों में विचार विमर्श करके जीएसटी प्रणाली के लिए विभिन्न नियमों को अंतिम रूप देकर मंजूरी पहले ही दे रखी है। इसी दिशा में राज्यों के वित्त मंत्रियों वाली जीएसटी परिषद ने जीएसटी के लिए चार दरें 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत तय कर नियमों को अंतिम रूप दिया था। मसलन अब इन दरों में वस्तुओं एवं सेवाओं को रखने का काम किया जा रहा है।
सरकार का ये है तर्क
संसद में पारित हुए जीएसटी विधेयकों के बाद केंद्रीय वित्त्त मंत्रालय ने कहा था कि कुछ कारोबारियों की ओर से की गई देरी की मांग के बावजूद भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कानून को एक जुलाई को ही लागू कर दिया जाएगा और सरकार का यह लक्ष्य पहले से ही तय है, ताकि देश के आर्थिक विकास और राज्य के राजस्व को बढ़ाने के लिए इस कर प्रणाली को लागू किया जा सके। दरअसल जीएसटी लागू होने की समय सीमा 15 सितंबर है, लेकिन सरकार एक जुलाई को जीएसटी कानून को हर हालत में लागू करना चाहती है।
ऐतिहासिक आर्थिक सुधार का सबब 
वित्त मंत्रालय में राजस्व सचिव हसमुख अधिया का कहना है कि केंद्रीय और राज्य सरकारें जीएसटी को लाने को लेकर पूरी तरह से तैयार हैं, उन्होंने कहा कि सिर्फ फर्मों के चलते उस कर को और नहीं टाला जाना चाहिए, जिसके बनने में एक दशक से भी अधिक का समय लगा है। आजादी के बाद भारत का सबसे बड़ा कर सुधार माना जाने वाला जीएसटी कानून दो ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदलने में समक्ष साबित होगा और करीब 1.3 अरब की अर्थव्यवस्था को एक अप्रत्यक्ष कर के साथ एकल आर्थिक जोन में तब्दील कर देगा।

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

जल कानून पर आगे बढ़ी केंद्र सरकार!

गंगा अधिनियम पर समिति ने सरकार को सौंपी मसौदा रिपोर्ट
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार के महत्वकांक्षी नमामि गंगे मिशन के मद्देनजर जल संरक्षण और जल प्रबंधन को लेकर जल कानून की कवायद में एक कदम आगे बढ़ाया गया है। मसलन गंगा अधिनियम के मसौदे को तैयार करने वाली मालवीय समिति ने सरकार का ेअपनी रिपोर्ट सौंप दी है। सरकार जल्द ही कानूनी मसौदे का अध्ययन कराकर उसे कैबिनेट में भेजने की तैयारी में है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार देश में जल संरक्षण और जल प्रबंधन को व्यवस्थित करने की दिशा में केंद्र सरकार ने जल को कानूनी दायरे में शामिल करने पर विचार विमर्श किया था, जिसके लिए विशेषज्ञओं और कानूनविदों की राय के बाद केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सरंक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने ‘गंगा अधिनियम’ का मसौदा तैयार करने के लिए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) गिरिधर मालवीय की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। मालवीय समिति ने बुधवार को यहां नई दिल्ली में केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती को अपनी मसौदा रिपोर्ट पेश सौंप दी है।
मिशन का ऐतिहासिक क्षण: उमा
जल कानून के मसौदे वाली इस रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए सुश्री उमा भारती ने इसे एक ‘ऐतिहासिक क्षण’ करार देते हुए कहा कि वह रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए बहुत ही रोमांचित हैं, जिससे उनके अभियान को कानून बनाने में जल्द ही मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार सभी संबंधित पक्षों से इस पर व्यापक विचार विमर्श के बाद इसे शीघ्र ही कानून का रूप देगी। सुश्री भारती ने अपने मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया कि वे इस रिपोर्ट का बारीकी से अध्ययन करने के लिए तत्काल एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करें और यह समिति जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट दे। उमा भारती ने उम्मीद जताई कि इस रिपोर्ट में गंगा की अविरलता एवं निर्मलता का ध्यान रखते हुए पर्याप्त प्रावधान किये गए हैं।
जिम्मेदारी मुश्किल थी: मालवीय
देश में जल पर कानून लागू करने की दिशा में कानूनी मसौदा तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय ने कहा कि यह एक बड़ी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी थी, जिसे समिति के सदस्यों ने बखूबी निभाया। उन्होंने कहा कि इस कार्य में उन्हें केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन का भरपूर सहयोग मिला। गौरतलब है कि प्रस्तावित गंगा अधिनियम का प्रारूप तैयार करने के लिए न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय की अध्यक्षता में गत वर्ष जुलाई में गठित इस समिति के अन्य सदस्यों में वीके भसीन, पूर्व सचिव विधायी विभाग,, प्रोफेसर ए के गोसाई, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली और प्रोफेसर नयन शर्मा, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रूड़की और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के निदेशक संदीप समिति के सदस्य सचिव थे। 79 वर्षीय श्री गिरिधर मालवीय लंबे समय से गंगा संरक्षण अभियान से जुड़े रहे हैं और गंगा से उनका भावनात्मक लगाव है। वे गंगा महासभा के अध्यक्ष भी हैं। महासभा की स्थापना उनके पितामह और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक और जाने माने स्वतत्रंता सेनानी महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने ही की थी।
क्या हो सकते हैं कानूनी प्रावधान
केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती को सौंपी गई समिति की रिपोर्ट में गंगा की निर्मलता एवं अविरलता को
सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त प्रावधान किए हैं। रिपोर्ट में गंगा के संसाधनों का उपयोग करने के बारे में जिम्मेदारी एवं जवाबदेही तय करने के बारे में कई कड़े प्रावधानों का उल्लेख है। समिति ने अपनी रिपोर्ट तैयार करते समय राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के पास पूर्व में उपलब्ध कानूनी प्रारूपों का भी अध्ययन किया। सरकार का जल कानून लागू करने का मकसद है कि देश में गंगा व सहायक नदियों की धारा को अविरल और स्वच्छ बनाने के अलावा जल संकट से निपटना भी है। कानूनी प्रावधान लागू होने जरूरत से ज्यादा जल दोहन पर अंकुश लगाया जा सकेगा।
13Apr-2017

ऐतिहासिक मिसाल बना संसद का बजट सत्र!

आजाद भारत में पहली बार समय पूर्व शुरू हुई बजट प्रक्रिया
देश के आर्थिक सुधार में जीएसटी कानून की राह तेज
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश के इतिहास में पहली बार संसद का बजट सत्र ऐसे ऐतिहासिक फैसले के रूप में मिसाल बना है, जिसमें मोदी सरकार को देश के विकास में वार्षिक बजट प्रक्रिया को समय से शुरू करने में सफलता मिली और वहीं आर्थिक सुधार की दिशा में एक समान कर प्रणाली के रूप में जीएसटी कानून लागू करने की राह को भी संसद ने आसान बना दिया है। बजट सत्र में मोदी सरकार के रेल बजट को आम बजट में समायोजित करने जैसी नई परंपरा वाले कई अन्य फैसलों पर भी संसद ने मुहर लगाकर सभी दलों के सांसदों की साख भी जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप बदलती नजर आई है।
संसद के इस बजट सत्र में मोदी सरकार ने अंग्रेजी हुकूमत से चली आ रही कई परंपराओं को इतिहास के पन्नों में समेटकर देश की व्यवस्था बदलने के लिए नई राह का दिशा देने वाले कई ऐसे फैसले लिये जिनसे आजाद भारत में पहली बार संसद ने इतिहास रचा है। पिछले साल जुलाई में मोदी कैबिनेट के देश के विभिन्न राज्यों को आवंटित होने वाले वार्षिक बजटीय प्रावधान को समय से लागू करने की दिशा में आम बजट को वित्तीय वर्ष समाप्त होने से पहले संसद की मंजूरी लेने की दिशा में समय से पूर्व यानि 31 जनवरी को बजट सत्र बुलाया, जिसका सकारात्मक नतीजा एक इतिहास के रूप में सामने आया। देश के इतिहास में यह पहला मौका रहा जब संसद ने बजट प्रक्रिया को नए वित्तीय वर्ष यानि एक अप्रैल से पहले ही पूरा करके बजट आवंटन की प्रक्रिया को शुरू कराया गया और देश को विकास की पटरी पर बरकरार रखने की परंपरा को जन्म दिया गया। यही नहीं देश के इतिहास में अलग से पेश होने वाले रेल बजट को पहली बार आम बजट में समायोजित किया गया। सबसे महत्वपूर्ण फैसला देश में एक समान कर प्रणाली वाले जीएसटी कानून को एक जुलाई से लागू करने के लक्ष्य की राह संसद के दोनों सदनों ने जीएसटी से जुड़े चार विधेयकों को बिना किसी विध्न के पारित कर दिया गया, जो देश के आर्थिक सुधार के लिए वरदान साबित होने वाला है।
विपक्ष की भूमिका भी सकारात्मक
संसद के बजट सत्र के पहले चरण में हालांकि मोदी सरकार को नोटबंदी के कारण कांग्रेस की अगुवाई में विपक्षी दलों के विरोध का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन दूसरे चरण में छिटपुट विरोध को छोड़कर संसद के दोनों सदनों में विपक्षी दलों की भूमिका सकारात्मक रही और देश व जनहित के मुद्दो पर सरकार का एकजुटता के साथ सरकार के फैसलों और विधायी कार्यो का समर्थन किया, जिसके परिणाम स्वरूप महत्वपूर्ण विधेयक पारित किये गये। खासबात मोदी सरकार के लिए अत्यंत सार्थक, उत्पादक और सांसदों की साख के अनुरूप साबित हुए बजट सत्र में सभी दलों की जनता के प्रति जवाबदेही साफतौर से नजर आई।
संसद में 18 विधेयकों को मंजूरी
संसद के बजट सत्र में दोनों सदनों की 29 बैठ“कों के दौरान लोकसभा ने 23 और राज्यसभा ने 14 विधेयकों को मंजूरी दी है। इसके बावजूद संसद में केवल 18 विधेयक ही ऐसे रहे जो संसद के दोनों सदनों में पारित होकर अंजाम तक पहुंचे। संसद से मिली मंजूरी वाले प्रमुख विधेयकों में जीएसटी से जुड़े सी-जीएसटी, आई-जीएसटी, यूटी जीएसटी व माल एवं सेवाकर(राज्यों को प्रतिकर) विधेयकों के अलावा शत्रु सम्पत्ति संशोधन एचं विधिमान्यकरण विधेयक, विनिर्दिष्ट बैंक नोट दायित्व समाप्ति विधेयक, मजदूरी संदाय संशोधन विधेयक, प्रसूति प्रसुविधा संशोधन विधेयक, नावधिकरण समुद्री दावा की अधिकारिता और निपटारा विधेयक और मानसिक स्वास्थ्य देखरेख विधेयक प्रमुख रूप से शामिल हैं। मसलन बाकी ऐसे विधेयक अभी संसद में लटक गये हैं, जिसमें एक-दूसरे सदन में लंबित विधेयकों को किसी न किसी कारण एक-दूसरा सदन मंजूरी नहीं दे सका है। ऐसे में लोकसभा में पुर:स्थापित किये गये 24 विधेयकों में से 23 विधेयकों को पारित कर दिया गया है।

संसद का बजट सत्र अनिश्चितकालिन स्थगित!

लोकसभा में हुआ राज्यसभा से ज्यादा कामका
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के संपन्न हुए बजट सत्र मेें मोदी सरकार ने कई ऐसे महत्वपूर्ण फैसलों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है, जिससे देश विकास और आर्थिक सुधार की दिशा में बदलाव महसूस कर सके। बजट सत्र के दौरान शुरू की गई कई नई परंपराओं की शुरूआत के रूप में ऐतिहासिक माने जा रहे बजट सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया है। इस दौरान राज्यसभा के मुकाबले लोकसभा में ज्यादा कामकाज किया गया।
संसद सत्र के समापन पर केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने कहा कि गत 31 जनवरी को संयुक्त सदन की बैठक में राष्टकृपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण से शुरू हुए संसद के बजट सत्र में दोनों सदनों की हुई 29 बैठकों का आयोजन किया गया। सरकारी और विधायी कार्यो की तुलना की जाए तो लोकसभा में 113.27 प्रतिशत और राज्यसभा में 92.43 प्रतिशत कामकाज आंका गया है।अनंत कुमार ने संसद के बजट सत्र को देश का ऐतिहासिक संसद सत्र करार देते हुए कहा कि पहली बार बजट सत्र को समय से पूर्व 31 जनवरी को शुरू कराया गया और इसके मकसद को भी सरकार ने हासिल किया है। खासबात है कि वर्ष 2017-18 का केंद्रीय बजट एक फरवरी 2017 को सामान्य और रेल दोनों बजटों को एक साथ मिलाकर पेश किया गया, जो एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। इस सत्र में कुछ ऐतिहासिक परिवर्तनों से देश में बदलाव की पहल के लिए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी सरकार और सभी दलों के सांसदों श्रेय देते हुए सराहा है, जिसमें संसद ने कई महत्वपूर्ण विधायी कार्यो को अंजाम तक पहुंचाने में एकजुटता दर्शायी।
लोकसभा में हुआ ज्यादा काम
लोकसभा में हुई 29 बैठकों के दौरान 176 घंटे 39 मिनट की कार्यवाही हुई, जिसमें राष्ट्रपति अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर 10.38 घंटे और केंद्रीय बजट पर 9.58 घंटे और वित्त विधेयक पर 8.41 घंटे की चर्चा होने के बाद पारित हुए। इसके अलावा विभिन्न मंत्रालयों की अनुदानों की मांग पर संबन्धित विनियोग विधेयक के साथ रल की अनुपूरक मांगों जैसे विनियोग विधेयक भी पारित हुए। लोकसभा में पुनरूस्थापित किये गये 24 विधेयकों में से 23 को मंजूरी दी गई। सदन में रेल, कषि एवं किसान कल्याण, रक्षा, गह मंत्रालयों की अनुदन की मांगों पर 28 घंटे से अधिक समय तक चर्चा के बाद उसे स्वीकृति दी गई। लोकसभा में हंगामे के कारण जहां 8.12 घंटे का समय बर्बाद हुआ, वहीं इसकी क्षतिपूर्ति के लिए सदन की कार्यवाही देर रात तक चलाकर 28.40 मिनट अतिरिक्त समय के रूप में चलाई और आवश्यक कामकाज को पूरा कराया गया। हालांकि लोकसभा में कई विधेयक पर सदन की कार्यवाही स्थगित होने तक अधूरी है। सदस्यों ने प्रश्नकाल के बाद और सभा के औपचारिक कार्य के समापन के बाद शाम को देर तक बैठ कर 541 लोक महत्व के मामले उठाए। सदन में सदस्यों ने नियम 377 के अधीन भी 494 मामले उठाए। इस सत्र के दौरान विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों ने 68 प्रतिवेदन प्रस्तुत किए। सभा में सतत विकास लक्ष्यों के बारे में नियम 193 के अधीन अल्पकालीक चर्चा की और यह चर्चा अभी जारी है।

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

देश में जल्द बदलेगी परिवहन की सूरत!

केंद्र तैयार कर रहा है 10 लाख करोड़ की मेगा योजना
नेशनल ट्रांसपोर्ट मास्टर प्लान में जुटे कई मंत्रालय
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश की परिवहन व्यवस्था को दुरस्त करने की कवायद में जुटी केंद्र सरकार ने मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्ट हब बनाने के लिए दस लाख करोड़ रुपये की लागत वाली ऐसी योजना तैयार की है, जिसमें देश के ट्रांसपोर्टेशन की सूरत बदल सकती है। मसलन सरकार की इस योजना के तहत यात्रियों व माल ढुलाई के लिए परिवहन के कई तरीकों का निर्बाध रूप से इस्तेमाल होने वाली व्यवस्था बनाना प्रमुख मकसद है।
केंद्रीय सड़क परिहवन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार ने एक नेशनल ट्रांसपोर्ट मास्टर प्लान पर काम करना शुरू कर दिया है, जिसके तहत दस लाख करोड़ रुपये की योजना को पटरी पर उतारने की तैयारी है। इस योजना के तहत सरकार ऐसी परिवहन व्यवस्था को बहाल करने का प्रयास कर रही है जिसमें यात्रियों के आने-जाने और माल ढुलाई के लिए परिवहन के अलग-अलग तरीकों का निर्बाध रूप से इस्तेमाल किया जा सके। मंत्रालय के अनुसार आजादी के बाद मंत्रालय ने देश में पहली बार नेशनल ट्रांसपोर्ट मास्टर प्लान बनाने की योजना को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने इस योजना के तहत देशभर में ऐसे 10 मल्टी मॉडल परिहवन हब विकसित करने की योजना बनाई है, जिसमें रेलवे और शिपिंग मंत्रालय की साझीदारी शामिल होगी। सूत्रों की माने तो इस योजना को अंतिम रूप देने के लिए यह भी तय किया जा रहा है कि ऐसे ट्रांसपोर्ट हब कहां-कहां बनाए जाएंगे। इन मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्ट हब के निर्माण कार्य का जिम्मा कार्य का जिम्मा भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को सौंपने की तैयारी है।
मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्ट हब सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार की इस योजना को सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, शिपिंग, नागर विमानन और रेलवे मंत्रालय मिलकर तैयार कर रहे हैं। मसलन सरकार का इरादा इस योजना के तहत देश में मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट हब बनाने का है। यानि इस योजना में जहां रेलवे स्टेशन, मेट्रो स्टेशन और बस टर्मिनल का निर्माण किया जाएगा। सरकार का प्रयास होगा कि हवाई अड्डा भी इस मास्टर प्लान में शामिल किया जाए। सूत्रों के अनुसार सड़क एवं परिवहन, रेल, नागर विमानन मंत्रालय मिलकर इस मेगा योजना पर विस्तार से चर्चा करने के बाद इसके मसौदे को तैयार कर रहे हैं।
मसौदे में भविष्य की रणनीति
केंद्रीय सड़क परिहवन मंत्रालय के सूत्रों की माने तो इस इस योजना को अंतिम रूप देने के लिए तैयार किये जा रहे मसौदे में ‘नेशनल ट्रांसपोर्ट मास्टर प्लान’ यानि एनटीएमपी भी शामिल है, जिसके तहत देश में ट्रांसपोर्ट से जुड़ी आधारभूत संरचना के सतत् विकास के लिए एक रणनीतिक रूपरेखा और निवेश की योजना बनाई जा रही है। मसौदे के अनुसार यह योजना भविष्य में सामने आ सकने वाली परिवहन संबंधी मांगों का भी अनुमान लगाएगी। वहीं यह अनुमानित इंफ्रास्ट्रक्चर और सर्विस संबंधी जरूरतों का भी आकलन किया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार इस मुहिम में परिवहन रणनीति और निवेश की योजनाएं तैयार होंगी, ताकि परिवहन से जुड़ी मांगें पूरी की जा सकें और परिवहन की रणनीति को अमल में लाने के उपायों को आगे बढ़या जा सके।

सोमवार, 10 अप्रैल 2017

मोटर यान विधेयक लोकसभा में पारित!

नए कानून में यातायात के सख्त प्रावधान
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश की परिवहन व्यवस्था को सुरक्षा मानकों पर ई-प्रणाली में बदलने वाले ऐतिहासिक नए मोटर वाहन अधिनियम (संशोधन) विधेयक को दो दिन की चर्चा के बाद लोकसभा में पारित कर दिया गया है। अब इसे मंजूरी के लिए राज्यसभा में पेश किया जाएगा, जिस पर मंगलवार को चर्चा शुरू होने की उम्मीद है।
देश में परिवहन व्यवस्था को दुरस्त करने और सड़क हादसों पर अंकुश लगाने की दृष्टि से यातायात नियमों के प्रावधानों को सख्त करते हुए नए विधेयक में 1988 के कानून में व्यापक संशोधन किये गये हैं। मसलन याताया नियमों का उल्लंघन करने पर भारी जुमार्ना लगाने तथा सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति की मदद करने वालों को कानूनी उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करने वाले इस नए कानूनी विधेयक को लोकसभा में पारित कराकर केंद्र सरकार ने एक कदम आगे बढ़ा दिया है, इस नये विधेयक में यातायात के विभिन्न नियमों के उल्लंघनकतार्ओं पर भारी जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है। वहीं संशोधित विधेयक में नाबालिग द्वारा गाड़ी चलाने के दौरान हुई दुर्घटना पर गाड़ी के मालिक को तीन साल जेल की सजा तथा दुर्घटना का शिकार हुए पीड़ित को 10 गुना अधिक मुआवजा प्रदान करने का प्रावधान है। मोदी सरकार के इस नए मोटर वाहन अधिनियम (संशोधन) विधेयक, 2016 को केंद्रीय कैनिबेट ने 31 मार्च को ही मंजूरी दी थी। हालांकि इससे पहले यह विधेयक को बीते साल अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था, जिसे अध्ययन के लिए संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया। समिति के सुझावों का केंद्रीय कैबिनेट ने मानते हुए मंजूरी देकर पिछले सप्ताह लोकसभा में पेश किया था, जिस पर हुई चर्चा सोमवार को पूरी हुई और इसे निचले सदन में मंजूर कर लिया। अब इस विधेयक को राज्यसभा में पेश किया जाएगा, हालांकि मंगलवार की कार्यसूची में इस विधेयक को देर शाम तक शामिल नहीं किया गया था।
क्या हैं कानूनी प्रावधान?
लोकसभा में पारित मोटर वाहन अधिनियम (संशोधन) विधेयक सड़क सुरक्षा, यात्रियों की सुविधा, सार्वजनिक और ग्रामीण परिवहन को बढ़ावा देने तथा देश में परिवहन परिदृश्य में सुधार के साथ ही यातायात नियमों के उल्लंघन में दंड की राशि बढ़ाए जाने संबंधी प्रस्तावित विधेयक है। इस विधेयक के प्रमुख प्रावधानों पर गौर की जाए तो इसके तहत यह विधेयक वर्तमान मोटर वाहन अधिनियम-1988 में संशोधन का प्रावधान करता है। वर्तमान में मोटर वाहन अधिनियम में 223 धाराएं हैं, जिसमें से 68 धाराओं को इस विधेयक द्वारा संशोधित करने का प्रस्ताव है। खासतौर से इस विधेयक में तीसरे पक्ष के बीमा दावों और निपटान की प्रक्रिया को सरल बनाने हेतु मोटर वाहन अधिनियम-1988 से अध्याय-10 को हटाने तथा अध्याय-11 को नए प्रावधानों से बदलने का प्रावधान किया गया है। विधेयक में लाइसेंस या परमिट जारी करने, फॉर्म या आवेदन भरने, पता बदलने तथा धन की प्राप्ति (जैसे-जुमार्ना) हेतु कंप्यूटरीकरण का प्रावधान है। यही नहीं इस संशोधन विधेयक में ‘राष्ट्रीय परिवहन नीति’ का निर्माण करने का प्रावधान है, जिसे केंद्र सरकार राज्यों से विचार-विमर्श द्वारा विकसित करेगी।
11Apr-2017