मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

राग दरबार बदल रहा है मेरा भारत..

राजनीतिक दलों में भूचाल 
देश बदल रहा है तो हरेक क्षेत्र में परिवर्तन महसूस होने लगा, भले ही वह देश की सियासत ही क्यों न हो। हाल ही में विधानसभा चुनाव के नतीजों ने बता  नाम पर सियासत करने वाले राजनीतिक दलों की भी पहचान कर ली, जो बदलते भारत को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। मसलन पीएम मोदी की योजनाओं में देश ने विश्वास व्यक्त करना शुरू कर दिया तो देश की अर्थव्यवस्था, बुनयिादी ढांचे का विकास और गरीबी उन्मूलन की मुहिम के परिणाम सामने आने से अभी तक देश पर सत्ता करते रहे राजनीतिक दलों में ऐसा भूचाल मचा है कि वह सकारात्मक मुद्दों को भी नकरात्मक नजर से देखकर मोदी सरकार की आलोचना करने से बाज नहीं आ रहे हैं। विधाननसभ चुनाव में करारी शिकस्त के बाद विपक्षी दलों ने आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए तो महागठबंधन की कवायद शुरू की है, वह तो हमेशा होती रही है, लेकिन आज तक महागबंधन बनने से पहले ही बिखरते नजर आए हैं। राजनीतिकारों की माने तो इस बार सियासी दलों में धुर प्रतिद्वंी दल भी आपस में हाथ मिलाने को राजी नजर आ रहे हैं, जिसमें यूपी चुनाव में बसपा की प्रमुख मायावती ने समाजवादी पार्टी के साथ जाने की तैयारी को अंजाम दिया था, लेकिन वो तो जनता ने बसपा को किसी लायक नहीं समझा। लिहाजा अब इन दलों की 2019 के लोकसभा चुनाव में केंद्र की सत्ता में फिर से मोदी को रोकने की सियासत गर्म है। यानि लोकसभा चुनाव के लिए महागठबंधन को लेकर बहुजन समाज पार्टी की मायावती ने कांग्रेस के अहमद पटेल, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, टीएमसी की ममता बनर्जी और राजद अध्यक्ष लालू यादव से हाथ मिलाने की कवायद को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। सियासी गलियारों में हो रही चर्चा पर गौर की जाए तो जिस प्रकार से पिछले अनुभव रहे हैं यानि जितनी मोदी की आलोचना हुई उतने ही वह देश में ही नहीं विश्वस्तर पर भी लोकप्रिय हुए और उनकी पार्टी बुलंदियों पर नजर आई।
नाम का है प्रमोशन, काम का नहीं...
भाजपा द्वारा 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में लोकसभा चुनाव जीतने से पहले सरकारी दμतरों को लेकर समाज में यही धारणा बनी हुई थी कि इनमें काम कम, आराम ज्यादा होता है। तभी ज्यादातर लोग सरकारी नौकरी पाने के लिए आतुर यहां से वहां घूमते नजर आते हैं। लेकिन मोदी के पीएम बनते ही इस विचार में परिवर्तन आना शुरू हुआ और लोगों को पहली बार यह अहसास हुआ कि सरकारी आॅफिसों में भी बाबू व कर्मचारी समय पर आकर अपना काम कर रहे हैं। अब इन्हीं सरकारी गलियारों के अहम ठिकाने शास्त्री •ावन में यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि वहां अधिकारियों को प्रमोशन तो समय से मिल गया है। लेकिन उनके पास काम करने के लिए जरुरी संसाधन नहीं हैं। बिना संसाधनों के हुई इस तरक्की पर अधिकारी भी यह कहने से नहीं चूक नहीं रहे हैं कि यह तो केवल नाम का ही प्रमोशन है, काम का नहीं।

कार्यकर्ताओ को कैसे मनाएं...
मध्यप्रदेश में चौथी बार सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही भाजपा अब अंदरूनी परेशानी से जुझ रही है। परेशानी का कारण कोई ओर नहीं उनके ही कार्यकर्ता है।भाजपा के कार्यकर्ताओ ने अपने ही विधायकों और कुछ नेताओ के खिलाफ संगठन को शिकायत कर दी है कि यह न तो हमारी सुनते है और न ही हमारे कार्यक्रमों में शामिल होते है। अगर हमारी बातों को नजर अंदाज किया गया तो हम यह शिकायत उपर तक ले जाएगे। इस शिकायत के बाद मप्र भाजपा के पदाधिकारी डेमेज कंट्रोल में जुट गए है। अब सभी नेताजी अपने क्षेत्र के कार्यकर्ताओ को तरजीह देने में जुट गए है। मायावती ने बनाई नई रणनीति, पूरा नहीं होगा मोदी के दोबारा ढट बनने का सपना!
-ओ.पी. पाल, कविता जोशी व राहुल
02Apr-2017

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