रविवार, 9 अप्रैल 2017

राग दरबार:- सियासी मजबूरी का सवाल...

जीएसटी कानून  पर  धर्मसंकट में कांग्रेस
देश में मोदी सरकार की योजनाओं और फैसलों को जनहित में जानते हुए भी विपक्षी दल खासकर कांग्रेस आलोचना करके कमियां निकालकर मानने को तैयार नहीं दिखी। शायद इसी वजह से उसकी सियासी जमीन खिसक रही है। यह सब जानते हुए ही कांग्रेस कहीं ज्यादा ही हताश है। इसी हताशा का कारण है कि कांग्रेस देश और जनहित के मुद्दों पर कमियां निकालने का प्रयास करने मशगूल दिखी। जहां तक देश की अर्थव्यवस्था और कर प्रणाली के सुधार वाले जीएसटी जैसे कानून का सवाल है को की योजना कांग्रेसनीत यूपीए सरकार की ही थी, जिसे मोदी सरकार ने आगे बढ़ाया है। मसलन ऐसे में जीएसटी पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान कांग्रेस बंटती ही नजर आई। चर्चा की शुरूआत करने वाले कांग्रेस के आनंद शर्मा ने पहले दिन जीएसटी में आशंकाओं की झड़ी लगाई तो दूसरे दिन पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जीएसटी कानून को कर व्यवस्था और आर्थिक सुधार के लिए ऐतिहासिक कदम बताकर कांग्रेस में इस मुद्दे पर पनपे धर्मसंकट को उजागर कर दिया। सियासी गलियारों में चर्चा की बात की जाए तो कांग्रेस इसलिए भी धर्मसंकट में उलझी रही कि उच्च सदन में लगभग सभी दल जीएसटी के समर्थन में खडे थे, तो ऐसे में सबसे बड़ा दल होने के बावजूद कांग्रेस सदस्य एवं पूर्व मंत्री जयराम रमेश ने सपा सदस्य की एक टिप्पणी पर यह कहकर जगजाहिर कर दिया कि विपक्षी खेमे में बैठने वालों की भी कुछ मजबूरियां हैं। कांग्रेस की इस पलटी शिष्टाचार की राजनीति की आड़ में कनबतियां का नतीजा यह हुआ कि वामदल व टीएमसी जैसे दलो के संशोधन भी खारिज हो गये और जीएसटी से संबन्धित चारो विधेयक बिना किसी संशोधन के पारित हो गये।
दिल्ली कांग्रेस का झगड़ा
‘सूत न कपास जुलाहे लठमलठा’ ये हाल आजकल दिल्ली कांग्रेस का है। शीला दीक्षित से लेकर डॉ. ए.के.वालिया तक कई नेता दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन पर निशाना साध रहे हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में खाता खोलने में भी नाकाम रही कांग्रेस पार्टी के भीतर सिर फटौव्वल का ताजा माहौल नगर निगम चुनाव में टिकटों को लेकर हुआ है। संदीप दीक्षित, मंगतराम सिंघल, परवेज हाशमी, अरविंदर सिंह लवली से लेकर हारून यूसुफ तक हर कोई माकन पर मनमानी करने का आरोप लगा रहा है। उधर अजय माकन अकेले मैदान में मोर्चा संभाले हुए हैं। माकन का कहना है कि हर वार्ड में मजबूत दावेदार का ही टिकट दिया गया है। दिल्ली में नगर निगम चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच ही माना जा रहा है। लिहाजा राजनैतिक जानकार तो इस बात से हैरान हैं कि कांग्रेस के नेता झगड़ क्यों रहे हैं। कहा यही जा रहा है कि चुनाव के बाद माकन को निपटाने के रणनीति के तहत कांग्रेस के बड़े नेता अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं ताकि हारने के बाद कहा जा सके कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन से अपनों चेहतों को टिकट बांटकर पार्टी की लुटिया डूबो दी।
फिर मचेगा महकमों में हडकंप...
सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्यों की। सरकारी महकमों को लेकर यही आम मशहूर पंक्ति अक्सर सुनने को मिलती है कि वहां काम कम और आराम ज्यादा होता है। तभी तो देश का हर कोई व्यक्ति सरकारी नौकरी पाने के लिए लालायित रहता है। लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में नई सरकार आने के बाद जैसे माहौल ही बदलने लगा। केंद्रीय मंत्रालय व उनमें काम करने वाले अधिकारी, कर्मचारी खासकर हरकत में आए। लोग समय पर आॅफिस आने लगे व काम करने लगे। यह एक प्रकार से सरकारी महकमों में हडकंप जैसी स्थिति से कम नहीं था। क्योंकि जहां कभी आराम पसरा था, अब वहां काम को लेकर मारा-मारी मची हुई थी। ऐसा ही एक और हडकंप जल्द ही सरकार के तमाम केंद्रीय मंत्रालयों में फिर से मचने की तैयारी कर रहा है। इस बार मौका मोदी सरकार के 26 मई को तीन साल पूरा होने के जश्न को लेकर होगा। इसमें सिर्फ इंतजार संसद सत्र के खत्म होने का किया जा रहा है। जैसे ही सत्र खत्म होगा, मंत्रालयों में तीन वर्षों की गतिविधियों को लेकर जानकारी एकत्रित करने, मंत्रियों द्वारा प्रेस कॉंफ्रेंस करने, ग्राफ बनाने, चित्रात्मक गतिविधियां तैयार करने का दौर शुरू हो जाएगा। खैर जो भी हो काम को लेकर मचने वाले इस हडकंप को सुखद कहा जा सकता है।
सांसदी छोड़ विधायक की तैयारी में कई नेताजी...
मप्र के विधानसभा चुनावों में भले ही अभी डेढ़ वर्ष का समय हो,लेकिन पार्टी के अंतर ही चुनावों को लेकर सुगबुगाहट तेज है। सभी लोग अपनी जोड़ तोड़ में जुट गए है। 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश से कुछ विधायकों को पार्टी ने सांसद का चुनाव लड़वाया था। अब वहीं नेताजी फिर से विधायक बनने की होड़ में शामिल हो गए हैं। कुछ तो ऐसे है जिन्हें सांसद बन जाने के बाद भी दिल्ली रास नहीं आ रही है। उनकी नजरे अभी भी राज्य की राजनीति की ओर लगी है। इसलिए वे अपना ज्यादा समय राज्य में देते है। उन्हें इंतजार है तो केवल पार्टी से सिंग्नल मिलने का। इसके बाद कई नेताजी सांसदी छोड विधानसभा की तैयारी शुरू कर देंगे। अगर पार्टी 2018 में फिर से सत्ता पर काबिज होती है तो ऐसे यह लोग मंत्री पद की दौड में भी शामिल हो जाएंगे।
-ओ.पी. पाल, आनंद राणा, कविता जोशी व राहुल
09Apr-2017

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