शनिवार, 29 नवंबर 2014

कोर्ट के आर्थिक क्षेत्र में होगी दस गुणा बढ़ोतरी!

दिल्ली उच्च न्यायालय में आर्थिक मामलों का कम होगा बोझ
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद में लंबित दिल्ली उच्च न्यायालय(संशोधन) विधेयक को संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में पारित कराए जाने की संभावनाएं हैं। इस विधेयक के पारित होने से दिल्ली हाई कोर्ट और दिल्ली के 11 जिला न्यायालयों के आर्थिक क्षेत्राधिकार को दस गुणा बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
केंद्र सरकार का प्रयास है कि इस विधेयक को मौजूदा संसद के सत्र में ही पारित कर दिया जाए। सरकार के इन इरादों के मुताबिक शुक्रवार को इस विधेयक की जांच पड़ताल कर रही विधि और न्याय संबन्धी संसदीय स्थायी समिति ने दिल्ली उच्च न्यायालय (संशोधन) विधेयक-2014 पर अपनी रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश कर दी है। इस विधेयक के पारित होने पर दिल्ली उच्च न्यायालय और दिल्ली के जिला न्यायालयों के आर्थिक क्षेत्राधिकार को 20 लाख रुपये से बढ़ाकर दो करोड़ करने का प्रस्ताव है।
समिति मानती है कि देश के सभी उच्च न्यायालयों के आर्थिक क्षेत्राधिकारों में एकरूपता होनी चाहिए और सरकार से सिफारिश की है कि वह औपनिवेशिक काल के चार्टर्ड उच्च न्यायालयों के मूल क्षेत्राधिकार की विरासत की समीक्षा करे। मसलन सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 6 के उपबंधों के अनुरूप मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली महानगरीय शहरो के शहरी दीवानी न्यायालयों सहित देश के सभी जिला दीवानी न्यायालयों को असीमिति आर्थिक क्षेत्राधिकार दिए जाने की आवश्यकता है। समिति ने माना कि इस प्रावधान को संशोधन विधेयक में शामिल करने से देश में उच्च न्यायालयों का बोझ भी कम हो जाएगा। इन सिफारिशों के साथ विधेयक पारित होने के बाद आर्थिक क्षेत्राधिकार यानि दो करोड़ तक के आर्थिक मामलों की सुनवाई करने का अधिकार मिलने पर दिल्ली के जिला न्यायालयों में दो करोड़ से कम रुपये की राशि के वाद दायर करना आसान हो जाएगा।
निचली अदालतों में आ जाएंगे हजारो मामले
समिति की रिपोर्ट पर नजर डाले तो इस विधेयक के पारित होते ही जब हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में प्रस्तावित दस गुणा बढ़ोतरी हो जाएगी तो दो करोड़ से कम राशि वाले करीब 12211 मामले दिल्ली उच्च न्यायालय से दिल्ली की संबन्धित जिला न्यायालयों में अंतरित कर दिये जाएंगे और हाई कोर्ट में मूल पक्ष के केवल 1547 दीवानी वाद ही लंबित रह जाएंगे। इसके अलावा दिल्ली की तीस हजारी, पटियाला हाउस, रोहिणी, कडकड़डूमा, द्वाराका और साकेत स्थित जिला न्यायालयों में दो करोड़ रुपये से कम राशि के वाद दायर करना भी आसान हो जाएगा और वादकर्ताओं को घर के पास ही सुलभ और सस्ता न्याय उपलब्ध हो सकेगा।
दिल्ली हाई कोर्ट होगा अव्वल
देश में अभी तक दो करोड़ रुपये की राशि तक के वाद किसी भी उच्च न्यायालय के पास दायर करने का आर्थिक क्षेत्रााधिकार हासिल नहीं है। इस विधेयक के पारित होते ही दिल्ली उच्च न्यायालय 20 लाख रुपये से बढ़कर दो करोड़ तक की राशि के आर्थिक वादों की सुनवाई कर सकेगा। इसके अलावा मुंबई व कोलकाता हाई कोर्ट के पास एक-एक करोड़ के मूल आर्थिक क्षेत्राधिकार हैं, जबकि मद्रास हाईकोर्ट के पास 25 लाख रुपये के आर्थिक क्षेत्राधिकार हैं।
यह भी हुई सिफारिश
संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष डा. ईएम सुदर्शन नाच्चीयप्पन ने इस विधेयक के बारे में बताया कि दिल्ली सरकार की सिफारिश पर इस विधेयक को लोकसभा में गत 17 फरवरी 14 को पेश किया गया था, लेकिन 15वीं लोकसभा भंग होने के कारण इसका अस्तित्व समाप्त हो गया, लेकिन राज्यसभा में यह लंबित रहा है। समिति ने इस विधेयक के अलावा दिल्ली उच्च न्यायालय को वाणिज्य खंडपीठ विधेयक-2009 को भी संसद में पेश करने की सिफारिश की है, जिसके पारित होने से देश के प्रत्येक उच्च न्यायालय को एक करोड़ से अधिक मूल्य के विणिज्यक मामले सुनने के मूल अधिकार हासिल हो जाएंगे। यह विधेयक भी लोकसभा भंग होने के कारण लुप्त हो गया है।
29Nov-2014



बुधवार, 26 नवंबर 2014

उच्च सदन में बदला दलीय गणित!

राज्यसभा में दस सदस्यों का कार्यकाल समाप्त
तीन पुन: निर्वाचित समेत 11 नए सदस्य आज लेंगे शपथ
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
राज्यसभा में यूपी के दस सदस्यों का कार्यकाल मंगलवार को समाप्त हो गया है, जिन्हें सदन ने विदाई देकर उनके देशहित में प्रशासनिक व राजनीतिक सहयोग की सराहना की। हालांकि इन दस में से तीन सदस्य बुधवार को नए सदस्यों के साथ फिर से उच्च सदन की सदस्यता और गोपनीयता की शपथ लेंगे।
इसी महीने उत्तर प्रदेश की दस और उत्तराखंड की एक रिक्त सीटों पर चुनाव कराए गये। उत्तर प्रदेश की दस सीटों पर हुए द्विवार्षिक चुनाव में सभी निर्विरोध सदस्य बने हैं, जिनमें मोदी मंत्रिमंडल में हाल ही में शामिल होकर रक्षा मंत्री बने मनोहर पार्रिकर उत्तर प्रदेश से भाजपा के टिकट पर राज्यसभा सदस्य बने हैं। जबकि प्रो. रामगोपाल यादव समेत समाजवादी पार्टी के छह, बसपा के दो तथा कांग्रेस का एक उम्मीदवार भी राज्यसभा के लिए निर्विरोध सदस्य बने हैं, जो बुधवार को शपथ लेंगे। यूपी से जिन दस सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हुआ है उसमें सपा के प्रो. रामगोपाल यादव तथा बसपा के वीर सिंह व राजाराम पुन: निर्वाचित हुए हैं। जबकि नए सदस्यों में बुधवार को सपा के यूपी में कैबिनेट मंत्री आजम खां की पत्नी तंजीन फातिमा, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर, रवि प्रकाश वर्मा, जावेद अली खान और चंद्रपाल सिंह यादव के अलावा कांग्रेस के पीएल पुनिया शामिल हैं। इसके अलावा उत्तराखंड से कांग्रेस की निर्विरोध निर्वाचित सदस्य मनोरमा डोबरियाल शर्मा भी शपथ लेने वाले सदस्यों में शामिल होंगी, जो भाजपा के भगत सिंह कोशियारी के लोकसभा सदस्य बनने के बाद रिक्त सीट से चुनी गई हैं।
सदन में बदला दलीय समीकरण
उच्च सदन में इस निर्वाचन के बाद दलीय समीकरण बदल गये हैं। 245 सदस्य वाले उच्च सदन में फिलहाल आंकडों पर गौर करें तो कांग्रेस को दो सीटो का फायदा होने से वह 68 से 70 के आंकड़े पर जा पहुंची है, जबकि भाजपा को उत्तराखंड की सीट गंवाने के बाद अब 44 के बजाए 43 सीटों पर ही सब्र करना होगा, हालांकि हरियाणा की दो सीटों का तोहफा भाजपा को इसी माह मिलना तय है। राज्यसभा से जिन दस सदस्यों का कार्यकाल मंगलवार को समाप्त हो गया है उनमें छह बसपा, दो निर्दलीय और एक-एक भजापा व सपा की सीटें थी। सपा के प्रो. रामगोपाल की फिर से वापसी हो रही है, तो उसके साथ उसके पांच अतिरिक्त सदस्यों की संख्या में इजाफा हुआ है, जबकि बसपा के छह में से दो सदस्य वीर सिंह व राजाराम फिर ही वापसी कर रहे हैं, तो बसपा के सदन में चार सदस्य कम हो गये हैं, जबकि भाजपा की कुसुम राय के स्थान पर मनोहर पार्रिकर और निर्दलीय मोहम्मद अदीब के स्थान पर कांग्रेस के पीएल पुनिया सदन के सदस्य होंगे। अब राज्यसभा में उत्तर प्रदेश की निर्धारित 31 सीटों में से इस निर्वाचन के बाद सपा की दस से बढ़कर 15 हो गई है, जबकि बसपा की 14 के बजाए दस हो गई है। जबकि भाजपा व कांग्रेस के अब यूपी से तीन-तीन सदस्य ही रह गये हैं। जबकि उत्तराखंड में कांग्रेस की सदस्य निर्वाचित होने से भाजपा को एक सीट का घाटा हो गया है।
इनका कार्यकाल हुआ पूरा
उच्च सदन में जिन दस सदस्यों का कार्यकाल पूरा हुआ है उनमें भाजपा की कुसुम राय, सपा के प्रो. रामगोपाल यादव के अलावा बसपा के ब्रजेश पाठक, अखिलेश दास गुप्ता, वीर सिंह, राजाराम, अवतार सिंह करीमपुरी, ब्रजलाल खबरी, सपा से निर्दलीय सदस्य हुए अमर सिंह सपा और कांग्रेस से निर्दलीय सदस्य माने गये मोहम्मद अदीब शामिल है। राज्यसभा में सभापति हामिद अंसारी ने सभी को सदन में बोलने का मौका दिया, वहीं बाद में सदन नेता अरुण जेटली ने भी इन सदस्यों की देश के लिए की सेवा को सराहा। इनमें तीन की वापसी हो रही है, तो आठ नए सदस्य उच्च सदन में पहली बार नजर आएंगे।
26Nov-2014

सोमवार, 24 नवंबर 2014

भारी भरकम एजेंडे के साथ आएगी सरकार!

लंबित बिलों व मुद्दों की संसद में है भरमार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार कल सोमवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में भारी भरकम एजेंडे के साथ आने की तैयारी कर चुकी है, जिसमें नए विधेयक, मसौदों और संशोधनों के अलावा संसद में लंबित बिलों व अन्य सैकड़ो मुदÞदों का निपटान करने का भी प्रयास किया जाएगा।
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान केवल 22 बैठकें तय की गई हैं, जिसमें सरकार के एजेंडे में कोयला खनन(विशेष प्रावधान) अध्यादेश-2014,टेक्सटाइल अंडरटेकिंग (राष्टÑीयकरण) कानून में संशोधन व वैधता से संबन्धित अध्यादेश को समाप्त करके इनके स्थान पर नए विधेयक पेश किये जाएंगे। पिछले सत्र के बाद केंद्रीय कैबिनेट में पारित मर्चेन्ट शिपिंग (संशोधन) विधेयक-2014 के अलावा स्कूल आॅफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर विधेयक-2014 भी प्रमुख हैं। वहीं लघु फैक्ट्री (रोजगार का नियमन एवं सेवाओं की दशा) विधेयक-2014, गर्भावस्था के दौरान मेडिकल उपचार (संशोधन) विधेयक-2014,नागरिकता एक्ट 1955 (संशोधन) और सड़क परिवहन एवं सुरक्षा विधेयक-2014 के अलावा नई नागर विमानन नीति से जुड़े विधेयक प्रमुख रूप से नए रूप में पारित कराना सरकार का लक्ष्य है। हालांकि बीमा (कानून) संशोधन विधेयक-2008 को एक बार फिर से सरकार सदन के पटल पर रखेगी, जिसमें बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 26 से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है। इनके अलावा सरकार के लक्ष्य पर संसद में पेश करने की कोशिश वाले विधेयकों में विवाह कानून (संशोधन) विधेयक, खान एवं खनिज (विकास एवं नियमन) संशोधन विधेयक, वस्तु एवं सेवा कर संविधान संशोधन विधेयक, लोकपाल एवं लोकायुक्त संशोधन विधेयक के अलावा भूमि अधिग्रहण (संशोधन) कानून में बदलाव करने के लिए विधेयक ला सकती है। तो एंटी हाइजैकिंग बिल और राष्ट्रीय महिला आयोग को कानूनी शक्तियां देने सहित जैसे कई महत्वपूर्ण विधेयक भी सरकार के एजेंडे में शामिल हैं।
लंबित विधेयक व मुद्दे
संसदीय कार्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक संसद में इस करीब 67 लंबित विधेयकों की सूची सरकार के सामने है, जिसमें 59 विधेयक राज्यसभा और आठ विधेयक लोकसभा में लंबित हैं। वहीं 722 महत्वपूर्ण मुद्दे संसद में लंबित पड़े हुए है, जिनमें राज्य सभा में विशेष उल्लेख के 399 मामले और लोकसभा में नियम 377 के तहत 323 मुद्दे लंबित पड़े हुए हैं। जहां तक लंबित विधेयकों का सवाल है उसमें मानसिक स्वास्थ्य सेवा बिल-2013, ड्रग्स एंड कास्मेटिक्स (संशोधन) विधेयक-2013, एचआईवी (रोकथाम एवं नियंत्रण) विधेयक-2014 समेत 11 बिल तो स्वास्थ्य मंत्रालय के ही लंबित हैं, जबकि कारखाना(संशोधन) विधेयक-2014, दि अप्रेंटिसेंस (संशोधन) विधेयक-2014 के अलावा बाल श्रम (प्रतिषेध एवं नियमन)विधेयक-2012 तथा भवन और अन्य निर्माण कामगार संबन्धित कानून-2013 समेत नौ विधेयक श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से संबन्धित लंबित हैं। हालांकि अपे्रंटिस बिल को पिछले सत्र में लोकसभा ने पारित कर दिया था जिस पर राज्यसभा की मुहर लगनी है। इसी प्रकार लोकसभा में नियम 377 के तहत लंबित मुद्दों के अंबार में रेलवे के सर्वाधिक 48, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग के 38, मानव संसाधन विकास के 25, जल संसाधन के 21, वन एवं पर्यावरण के 19, कृषि मंत्रालय के 18 मामले समेत कई दर्जन मंत्रालयों से जुड़े मामलों पर विचार होना शेष है। वहीं राज्यसभा में विशेष उल्लेख के लिए उठाए जाने वाले लंबित 399 मुद्दों में सर्वाधिक 50 मामले मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़े हैं, जबकि रेलवे के 41, स्वास्थ्य मंत्रालय के 38, गृहमंत्रालय के 37, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता के 21, सड़क परिवहन मंत्रालय के 20 प्रमुख रूप से लंबित पड़े हुए हैँ।
संसदीय समितियों के समक्ष बिल
सरकार के एजेंडे में ऐसे भी कई महत्वपूर्ण बिल हैं जो अभी विभाग संबन्धी संसदीय स्थायी समितियों के पास हैं और वे सत्र के दौरान सदन में अपनी रिपोर्ट पेश कर सकती हैं। ऐसे विधेयकों में अशक्त व्यक्तियों के अधिकार संबन्धित विधेयक-2014, जुवेनाइल जस्टिस (बच्चों का संरक्षण एवं सुरक्षा) विधेयक-2014, रेलवे (संशोधन) विधेयक-2014, प्राधिकरण, अपीलीय प्राधिकरण और अन्य प्राधिकरण (सेवाओं की दशा)-2014 प्रमुख रूप से शामिल हैं। समितियों की रिपोर्ट आने पर संसद में इन्हें भी विचार के लिए पेश किये जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
बैठकों का कार्यक्रम
संसद के शीतकालीन सत्र में 24 नवंबर से 23 दिसंबर तक होने वाली 22 बैठकों में हालांकि केंद्र सरकार ज्यादा से ज्यादा विधायी कार्य निपटाने का प्रयास करेगी। फिर भी उम्मीद की जा रही है कि इस सत्र सरकार ने प्राथमिकता के आधार पर 26 एसे विधेयकों को सूचीबद्ध किया है जिन्हें सरकार इस दौरान पारित कराना चाहती है। इन 22 बैठकों में चार दिन तो सांसदों के निजी विधेयकों पर चर्चा के लिए निर्धारित किये गये हैं। हालांकि सरकार इस सत्र में 40 से भी ज्यादा विधेयक पेश करने के इरादे से हिस्सा लेगी।
24Nov-2014

संसद का शीतकालीन सत्र: आर्थिक एजेंडे को आगे बढाएगी सरकार ।

हंगामेदार होगा संसद का शीतकालीन सत्र!
कालेधन समेत कई मुद्दो पर भारी पड़ेगा विपक्ष
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
सोमवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में विदशों से काला धन वापस लाने, देश में साम्प्रदायिक तनाव की घटनाओं तथा सीबीआई के कथित दुरूपयोग जैसे मुद्दों पर विपक्ष लामबंद होता नजर आ रहा है, इसलिए शीतकालीन सत्र की शुरूआत हंगामेदार हो सकती है। विपक्षी दलों की एकजुटता व उनके कड़े तेवरों से विपक्षी दल संसद के भीतर मोदी सरकार पर भारी पड़ सकते हैं। हालांकि सरकार भी विपक्ष को माकूल जवाब देने की तैयारी में संसद में आने की तैयारी कर चुकी है।
संसद के शीतकालीन सत्र में जहां सरकार के पास देश के विकास और आर्थिक सुधारों से जुड़े कई विधायी कार्य हैं और सरकार ने रविवार को सर्वदलीय बैठक में महत्वपूर्ण बिलों व मुद्दों पर विपक्षी दलों से सहयोग की अपेक्षा की है। सरकार की ओर से रविवार को संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया द्वारा संसदीय संग्राहलय के सभागार में बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में विपक्षी दलों के तेवरों से नहीं लगता कि वह मोदी सरकार से खुश हैं, जबकि सरकार विपक्षी दलों के मुद्दों को भी संसद में रखने का वादा करके आमसहमति बनाने का प्रयास कर रही है। सरकार द्वारा रविवार को बुलाई गई बैठक तृणमूल कांग्रेस ने हिस्सा नहीं लिया, जो शारदा चिटफंड घोटाले में सीबीआई. द्वारा उसके नेताओं को गिरफ़तार किए जाने से नाराज इस जांच एजेंसी के दुरूपयोग का आरोप सरकार पर मंढ रही है और यह मुद्दा भी संसद में उठना तय है। उधर कांग्रेस लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद नहीं मिलने से नाराज है। वह मनरेगा को कमजोर करने का भी सरकार पर आरोप लगा रही है तो वहीं पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे अपने बडे नेताओं की स्मृति को सरकार द्वारा नजरअंदाज किए जाने और सरदार पटेल की विरासत पर भाजपा द्वारा अधिकार जमाए जाने की तोहमद भी दे रही है। वहीं वामदल भी सरकार के आर्थिक सुधारों और श्रम कानूनों में बदलाव करने की मंशा का विरोध कर रहे हैं। इसके अलावा तीसरे विकल्प के रूप में जनता परिवार को एकजुट करके सपा, राजद, जदयू, जदएस,इनेलो जैसे गैरभाजपाई व गैर कांग्रेसी दल संसद के दोनों सदनों में एक सशक्त भूमिका निभाकर सरकार को घेरने के इरादे से लामबंद नजर आ रहे हैं, जिन्हें वामदलों के समर्थन मिलने के संकेत पहले ही दिये जा चुके हैं। मोदी सरकार से नाराज इन विपक्षी दलों की धमाचौकड़ी के इरादों से लगता है कि शीतकालीन सत्र हंगामेदार होगा। जबकि सरकार इस सत्र के दौरान होने वाली 22 बैठकों में ज्यादा से ज्यादा विधायी काम निपटाना चाहती है। संसद के दोनों सदनों में बड़ी संख्या में विधेयक लंबित हैं और सरकार कुछ नए विधेयक भी संसद के इस सत्र में लाना चाहती है, लेकिन विभिन्न मुद्दों पर विपक्षी दलों के बीच बढ़ती एकजुटता के कारण सरकार के लिए सदन को सुचारू ढंग से चलाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। मोदी सरकार से नाराज इन विपक्षी दलों की धमाल चौकड़ी के इरादों से लगता है कि शीतकालीन सत्र हंगामेदार होगा। हालांकि सरकार भी विपक्षी दलों को माकूल जवाब देने के लिए पूरी रणनीति के साथ संसद के शीतकालीन में आने का इरादा कर चुकी है। फिर भी पहले लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और फिर रविवार को सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर विवादित मुद्दों पर आमसहमति बनाने का प्रयास किया है। अब देखना यह है कि कल सोमवार से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र में मोदी सरकार या फिर विपक्षी दल में कौन किस पर भारी पड़ता है।
लोकसभा में बदले समीकरण
लोकसभा में राजनीतिक समीकरण इसलिए भी बदलते दिखाई दे रहे हैं कि राजग की घटक शिवसेना महाराष्ट्र में भाजपा के साथ अपना 25 साल पुराना गठबंधन तोड़कर विपक्ष में बैठ गई है, लेकिन केंद्र में उसके मंत्री अभी भी मोदी सरकार में बने हुए हैं। हालांकि शिवसेना के स्थान पर पिछली सरकार में कांग्रेस के शामिल रही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया है, लेकिन संसद के दोनों सदनों में ही अभी शिवसेना व राकांपा का रूख स्पष्ट नहीं है।
24Nov-2014

रविवार, 23 नवंबर 2014

राग दरबार: धर्मनिरपेक्षता के सहारे राहुल बाबा

धर्मनिरपेक्षता के सहारे राहुल बाबा
कांग्रेस अपनी सियासी सेहत सुधारने के लिए अब भाजपा की तर्ज पर धर्मनिरपेक्षता का संदेश लेकर यात्राओं का सहारा लेने की जुगत में है। जबकि सर्वविदित है कि भारत विभिन्न भाषाओं और धर्मो के समावेशी देश है फिर भी पता नहीं कांग्रेस किस धर्मनिरपेक्षता का संदेश देना चाहती है। शायद इसी कारण राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद पर लोगों की स्वाभाविक पसंद और आक्रामक विपक्षी नेता के रूप में खुद को प्रस्तुत करने की गरज से भारत दर्शन यात्रा पर निकलने वाले हैं। इस यात्रा की शुरूआत भी सारनाथ से होने की खबर है तो यह एक बार फिर बड़ी गलती करने वाले हैं? पहली बात तो सारनाथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चुनाव क्षेत्र होने के कारण पहले दिन से ही उनकी इस यात्रा की कवरेज में बार-बार मोदी का उल्लेख होना तय है। दूसरे उन्हें सारनाथ से क्या मिलेगा? बौद्ध धर्म के सहारे यूपी के दलित वोट तो मायावती के पाले से फिलहाल छिटकने वाले नहीं। फिर वहीं बात आती है कि कब किस चीज को कहां भुनाना है, यह उन्हें शायद आता ही नहीं। मोदी भले ही सारनाथ नहीं गये, लेकिन बौद्ध धर्म के जरिए उन्होंने नेपाल, भूटान और फिर जापान में अपनी खूब ब्रांडिंग कर ली। फिलहाल राहुल बाबा उससे आगे नहीं निकल पाएंगे या यूं कहिए कि उन्हें अभी सियासत ने स्वीकारा ही नहीं। राजनीतिकार तो यह मानकर चल रहे हैं कि राहुल बाबा के लिए यह अच्छा होता कि नेहरू जी की 125वीं जयंती वर्ष के मद्देनजर वह यह यात्रा इलाहाबाद के आनंद भवन से शुरू करते तो यात्रा का औचित्य भी कुछ मायने रखता। वैसे तो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश भर में मंदिरों, पीर-मजारों और गुरूद्वारों में मत्था टेक कर सर्वधर्मसमभाव का संदेश दिया जाता रहा है। राजनीति गलियारे में अब यही चर्चा है कि फिलहाल यूं ही बिना सूत-कपास भारत दर्शन से कांग्रेस की सियासी सेहत सुधरने की उम्मीद नहीं है। इससे अच्छा तो कांग्रेस को नवजीवन देने के लिए जरूरी है कि चाटुकारों का घेरा तोड़ कर लोगों से संवाद करें। अब यह मान लेने में ही भलायी है कि नेहरू परिवार का करिश्मा सिर्फ चेहरे से नहीं चलने वाला।
नेता जी की शाही सवारी
कांग्रेस ने नेहरू के समाजवाद को कारपोरेटवाद में बदल दिया, तो फिर सपा प्रूमुख मुलायम सिंह यादव ही भला पीछे कैसे रहें। उन्होंने लोहिया के समाजवादी प्रतीकों को तिलांजलि देकर राजशाही की निशानी को पसंद कर लिया। चलो कोई बात नहीं नजारा दिलचस्प ही रहा होगा, जब समाजवादी नेता जी शाही बग्धी पर गुजरेे और सड़कों के किनारे मैले-कुचैले कपड़ों से तन ढके लोहिया के गरीब-गुरबा उन्हें ललचाई नजरों से निहारा। जन्मदिन की बधाई हो नेताजी। आप लंबी उम्र जिये ताकि अंग्रेेजों के जाने के बाद भी उनके प्रतीक निहारने को मिलते रहें। नेताजी के इस शाही बर्थ-डे पर इस बार नवाबों के शहर रामपुर में आजम खां ने विशेष जलसा किया, जिसमें खास बात यह रही कि अपने नेता के लिए आजम खां साहब को इंग्लैंड से विक्टोरिया के नाम की बग्घी मंगाने की जरूरत पेश की और नेता जी इंग्लैंड से मंगायी गयी खास विक्टोरिया बग्घी पर सवार होकर रामपुर की सड़कों से गुजर कर जौहर यूनिवर्सिटी पहुंचें। यूं तो रामपुर के लिए शाही सवारियां कोई नयी बात नहीं हैं, यदि कुछ नया है तो वह नवाबों के शहर में एक समाजवादी का शाही सवारी से सफर करने का गवाह बनना। ऐसे में यह चर्चा आम है कि इंग्लैंड की विक्टोरिया..जी हां वही मल्लिका-ए-ब्रितानिया रही विक्टोरिया, जिनकी किस्मत से भी बेहतर किस्मत है सूबे के वजीर जनाब आजम खां साहब की भैंसों की। खैर किसकी किस्मत किससे बेहतर है, यह तो आजम खां साहब जैसे दानिश्वर सियासतदां ही जान सकते हैं पर इतना तो सबको पता हो गया कि इंग्लैंड को आजम की भैंसों की दरकार नहीं हुई, लेकिन आजम खां साहब को देश के बड़े नेता व समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव जी का जन्मदिन पर इंग्लैंड से विक्टोरिया के नाम की बग्घी मंगाने की जरूरत पेश आ गयी। 
संत रामपाल गाथा
हरियाणा के बरवाला में संत रामपाल के लिए यह गनीमत रही कि उनका सतलोक आश्रम मदरसा नहीं और न ही रामपाल मौलाना। अगर रामपाल की जगह किसी मौलाना ने इतना जमावड़ा जोड़ कर कानून को चुनौती दी होती तो यकीन मानिए फिर निजी ब्लैककैट कमांडो के तार सीधे सिमी, पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई, लश्करे तइबा और ना जाने किस-किस से जुड़ते। चूंकि रामपाल हिंदू हैं सो इनके तार आतंकवादियों से जोडना मुश्किल है। पटकथा सच्ची नहीं लगेगी, सो जितना मुमकिन था उतना पुलिस कर रही है। हालांकि अब इनके हथियारबंद समर्थकों में नक्सली कनेक्शन खोजा जाना स्वाभाविक है। सुखद है कि कम से कम बल प्रयोग के बाद रामपाल पुलिस के हत्थे चढ़ गये। उन्हें यह पता था कि ऐसे मामलों में पुलिस कंबल परेड़ करती है, सो खुद ही कंबल ओढ़ कर एम्बुलेंस में सवार हो गये। इति श्री रामपाल गाथा।
23Nov-2014

संसद में सरकार को घेरने को तैयार विपक्ष !

विपक्ष के साथ आमसहमति के प्रयास में सरकार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
सोमवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में विभिन्न मुद्दों पर मोदी सरकार की घेराबंदी करने के लिए जहां विपक्षी दल लामबंद हो रहे हैं, वहीं सरकार कुछ विवादित मुद्दों पर विपक्षी दलों के साथ आम सहमति बनाने की जुगत में जुटी हुई है। इसी कारण शनिवार शाम को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सर्वदलीय बैठक में विचार किया है, तो वहीं रविवार को संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू भी सरकार की और से सर्वदलीय बैठक बुलाकर उसमें विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने की तैयारी कर रहे हैं।
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान मोदी सरकार चाहती है कि बीमा विधेयक और वस्तु एवं सेवा कर विधेयक समेत कई महत्वपूर्ण विधेयकों पर विपक्ष के साथ आम सहमति बनाकर आगे बढ़ा जा सके। सरकार के एजेंडे में पुराने जमाने के सैकड़ो विधेयक को निरस्त करने के लिए भी एक विधेयक का मसौदा है, जिसके लिए भी विपक्ष के साथ सर्वदलीय बैठकों में सरकार चर्चा कर रही है, ताकि संसद सत्र में इन विधायी कार्यो को आगे बढ़ाने में ज्यादा दिक्कत या विरोध का सामना न करना पड़े। संसद के शीतकालीन सत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए शनिवार को लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने सर्वदलीय बैठक में चर्चा की है। वहीं सूत्रों के अनुसार रविवार को संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने भी सत्र शुरू होने से एक दिन पहले सर्वदलीय बैठक बुलाई है, इसकी पुष्टि संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने की है। इस बैठक में संसद सत्र के दौरान लाये जाने वाले विधेयकों और मुद्दों पर आम सहमति बनाने पर विचार विमर्श होगा। वहीं वेंकैया नायडू पहले से ही कहते आ रहे हैं कि विपक्षी दलों के मुद्दों को भी सदन में सहानुभूतिपूर्वक विचार और चर्चा कराने में सरकार पीछे नहीं हटेगी। सरकार की मंशा है कि आम सहमति से ही देश के विकास एवं अन्य जनहित की योजनाओं पर आगे बढ़ा जाए। दूसरी और कालाधन, महंगाई और किसानों से जुड़े मुद्दों पर विपक्ष लामबंद होता नजर आ रहा है, जिसमें गैर भाजपाई व गैर कांग्रेसी दलों का एक विपक्षी धड़ा महामोर्चा के रूप में सदन में आने की तैयारी पहले ही कर चुका है और वह 25 नवंबर को बैठक करके संसद के दोनों सदनों के लिए एक संयुक्त नेता का चुनाव करके सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाने का दावा भी कर रहे हैं।
सकारात्मक और रचनात्मक हो सत्र
संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने शनिवार को कहा कि सोमवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र को सकारात्मक और रचनात्मक बनाने के लिए सरकार ईमानदार प्रयास कर रही है, जिसमें वह विपक्ष को साथ लेकर चलने की पहल करेगी। नकवी का कहना है कि ‘उत्पादक सत्र’सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने भी कल रविवार को सर्वदलीय बैठक बुलाकर विभिन्न मुद्दों पर आपसी सहमति के लिए विचार विमर्श करने का फैसला किया है। वहीं केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि सरकार आर्थिक सुधारों की दिशा में आगे बढ़ना जारी रखेगी। संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार की प्राथमिकता के तहत कई बिलों को मंजूरी दिलाना होगा। इसमें बीमा बिल भी शामिल है, जिसपर विपक्ष के तेवर नरम नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कई मुद़दों पर विभिन्न पार्टियों में आपसी सहमति बनाने के लिए संयुक्त सत्र बुलाया जा सकता है। हालांकि उन्होंने माना कि कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों के तेवर नरम नहीं हैं। जबकि कांग्रेस लोकसभा में प्रतिपक्ष नेता का दर्जा न मिलने पर सरकार से पहले से ही नाराज होकर लगातार मोदी सरकार पर हमले बोल रही है। हालांकि लोकसभा में सीटों के आबंटन में सरकार ने लोकसभा सचिवालय के सहयोग से सदन में कुछ संतुलन बनाने का प्रयास किया है।
23Nov-2014

शनिवार, 22 नवंबर 2014

शीतकालीन सत्र में नियत सीट पर बैठेंगे माननीय!


विपक्षी दलों के प्रमुखों को एक साथ दी गई जगह

लोकसभा में मंत्रियों व सांसदों की सीटों के नंबर हुए आबंटित
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।

लोकसभा सचिवालय ने आखिर माथापच्ची के बाद लोकसभा में केंद्र सरकार के मंत्रियों और विभिन्न दलों के सांसदों की सीटों का आबंटन करने की व्यवस्था को पूरा कर लिया है। मसलन संसद के शीतकालीन सत्र में सदन में नियत की गई सीटों से कार्यवाही में हिस्सा लेंगे। सदन में इन माननीयों के सीटों पर बैठने की इस व्यवस्था में नौ सीटों को खाली रखा गया है।

संसद का शीतकालीन सत्र के 24 नवंबर से शुरू हो रहा है, जिसके लिए 545 सदस्यीय सदन में पार्टी स्तर पर निर्वाचित सांसदों के बैठने की व्यवस्था में हरेक सांसद की सीट का नंबर आवंटित करने की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। हालांकि सदन में 550 सीटों की व्यवस्था है, फिर भी लोकसभा सचिवालय में तैयार किये गये रोडमैप के अनुसार सांसदों के लिए सदन में बैठने की व्यवस्था को अंजाम देने में करीब छह माह लग गये। सूत्रों के अनुसार सीटों के नंबर आबंटित होने में विलंब का कारण विपक्षी दलों के नेताओं का अग्रिम पंक्तियों में बैठने पर विवाद रहा है, हालांकि इस विवाद को देखते हुए सांसदों के लिए आबंटित सीटों में फिलहाल आठ सीटें ऐसी हैं जिन्हें किसी भी सांसद के लिए निर्धारित न करके उन्हें रिक्त रखा गया है। लोकसभा में विपक्ष का नेता नहीं है और विपक्षी खेमे में 44 सांसदों के साथ सबसे बड़ा समूह कांग्रेस का है। सदन के भीतर सामने की कतार यानि अग्रिम पंक्तियों में बैठने की सभी नेताओं को प्रतिष्ठा की खातिर बैठने आस रहती है। सदन में सत्तापक्ष के अलावा विपक्षी दलों के सदस्यों की स्थिति देखें तो कांग्रेस के 44, अन्नाद्रमुक के 37, तृणमूल कांग्रेस के 34 और बीजद के 20 सांसद हैं। तृणमूल के एक सांसद का पिछले महीने निधन हो गया, जिसके बाद उसके 33 सांसद रह गये हैं। इन दलों के सदन में नेताओं को अग्रिम पंक्ति में स्थान दिया गया है।
अग्रिम पंक्तियों की सीटों का आबंटन
सत्तापक्ष में अग्रिम पंक्ति की पहले नंबर की सीट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए निर्धारित है, जिसमें छह सीटें हैं। इसके बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, वरिष्ठ भाजपा सांसद एलके आडवाणी और पांच नंबर की सीट खाली रखी गई है, जबकि इस पंक्ति में छठे नंबर की सीट सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नीतिन गडकरी को आबंटित की गई है। जहां तक सदन में अग्रिम पंक्ति की सीटों का सवाल उसमें दूसरे वर्ग में 98 व 99 नंबर की सीटें हैं जो क्रमश: विधि मंत्री डीवी सदानंद गौडा व सांसद डा. मुरली मनोहर जोशी को दी गई है। तीसरे वर्ग में अग्रिम पंक्ति की दो सीटों 187 व 188 को क्रमश:उर्वरक मंत्री अनंत कुमार और भारी उद्योग मंत्री अनंत गीते को दी गई है। चौथे वर्ग की अग्रिम पंक्ति में 273 से 277 तक छह सीटें हैं, जिन्हें क्रमश: सांसद रोडमल नागर, सुभाष पटेल, सुधीर गुप्ता, नागर विमानन मंत्री अशोक गजपति राजू तथा उपभोक्ता एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान के लिए तय की गई हैं। इसके बाद पांचवे वर्ग में अग्रिम दो सीटों 365 व 366 क्रमश: बीजद के सांसद भृतुहरि महताब व तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंदोपाध्याय को आबंटित की गई है। सदन में लोकसभा अध्यक्ष के बाएं यानि विपक्षी खेमे के अंतिम वर्ग की पहली छह सीटों के आबंटन में कई दलों के नेताओं को स्थान दिया गया है। मसलन सीट संख्या 454 से लेकर 459 तक क्रमश: अन्नाद्रमुक के सदन में नेता पी.वेणुगोपाल, जद-एस प्रमुख एचडी देवगौडा, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, कांग्रेस प्रमुख श्रीमती सोनिया गांधी, सदन में कांग्रेस नेता मलिकार्जुन खडगे और लोकसभा उपाध्यक्ष डा. एम.थंबीदुरई के लिए निर्धारित की गई है।
रिक्त सीटे रहेंगी रहस्य
सूत्रों के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष के दायीं और पहली सीट पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बांयी ओर यानि ठीक पीएम के सामने वाली सीट लोकसभा उपाध्यक्ष के लिए निर्धारित होती है। सदन में सीटों के निर्धारण में रिक्त रखी गई सीट संख्या 5 जो पीएम वाली सीट में शामिल है को परंपरागत रूप से बजट के दौरान बजट भाषण करने के दौरान प्रयोग में लाई जाती है, जहां से रेल या वित्त मंत्री बजट भाषण देते हैं। जबकि उससे पीछे की दूसरी पंक्ति में सीट संख्या सात को भी रिक्त रखा गया है। इसके अलावा रिक्त सीटों की संख्या क्रमश: 20, 304, 314, 346, 347, 361 तथा 404 किसी के लिए आबंटित नहीं की गई है। सूत्रों के अनुसार इन रिक्त सीटों के रिक्त रखने के पीछे का रहस्य अभी रहस्य बना हुआ है। हालांकि माना जा रहा है कि सीटों के आबंटन पर कुछ दलों के नेताओं की प्रतिष्ठा सामने आने पर उन्हें आबंटित जा सकती है।
विपक्षी खेमे में थी खींचतान
सोलहवीं लोकसभा के पहले दो सत्रों में सदन में सीटों की व्यवस्था के मुद्दे को विभिन्न राजनीतिक दल के नेता लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन के समक्ष उठा भी चुके थे और सुमित्रा महाजन इस मुद्दे पर पहले भी बैठक कर चुकी हैं। सूत्रों के मुताबिक इस मुद्दे पर पिछले दिनों से ही राजनीतिक दलों के बीच खींचतान और दबाव से निपटने के लिए संसदीय कार्य मंत्रालय के सुझाव के साथ लोकसभा सचिवालय ने अपने आपको प्रमुख विपक्ष के रूप में देखने वाले कांग्रेस, अन्नाद्रमुक व टीएमसी के अलावा सपा, जद-एस, बीजद व अन्य विपक्षी दलों को अग्रिम पंक्तियों में स्थान देकर इस मुद्दे का समाधान करने का प्रयास किया गया है। सत्ता पक्ष भाजपा के बाद कांग्रेस, अन्नाद्रमुक और तृणमूल कांग्रेस व बीजद के करीब 90 सांसद हैं, तो प्रमुख विपक्षी दल की अग्रिम पंक्ति में इन दलों के नेताओं के बैठने का मुद्दा बेहद फंसा हुआ था, जो लगभग दूर हो गया है। 
22Nov-2014 

मंगलवार, 18 नवंबर 2014

मोदी की हाजिरी प्रणाली नौकरशाहों को नहीं आई रास!

...तो नहीं सुधरेंगे हम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सरकार कामकाज की गति बढ़ाने की नौकरशाहों की कार्यकुशलता में सुधार की दिशा में मोदी सरकार ने उनकी मंत्रालयों व विभागों व अन्य कार्यालयों में समय से उपस्थिति सुनिश्चित करने के बायोमेट्रिक सिस्टम लागू किया है, लेकिन शायद नौकरशाहों को यह हाजिरी प्रणाली रास नहीं आ रही है।
शासन व प्रशासन का जनता से संवाद की कार्यप्रणाली के तहत प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालते ही सबसे पहले नरेन्द्र मोदी ने नौकरशाही कार्यप्रणाली को बदलने का बीड़ा उठाया था। इसी प्रशासनिक रणनीति के तहत अधिक से अधिक कामकाज को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने सभी मंत्रालयों व विभागों के कार्यालयों में बाबुओं की समय से उपस्थिति सुनिश्चित करने हेतु बायोमैट्रिक अटेंडेंस सिस्टम लागू किया था, लेकिन शायद नौकरशाहों को यह सिस्टम रास नहीं आ रहा है। इस व्यवस्था में स्वयं प्रधानमंत्री भी नौ बजे तक अपने कार्यालय पहुंच जाते हैं, लेकिन नौकरशाहों का यह रवैये में अभी तक सुधार नजर नहीं आ रहा है। इस प्रणाली को स्थापित करने के साथ केंद्र सरकार के अधीन आने वाले कार्यालयों में कामकाज का समय भी सुबह नौ बजे से शाम 5:30 बजे तक किया गया है, जिसमें एक घंटे का भोजनावकाश का समय भी शामिल है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं भी नौकरशाहों से मिलकर समयबद्धता और कामकाज में तेजी लाने की नसीहत दे चुके हैं, लेकिन नौकरशाहों पर शायद मोदी की इस कोशिश का असर नहीं हो रहा है। तभी तो नौकरशाहों व बाबुओं की कार्यालयों में समय से उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए सात अक्टूबर को वेबसाइटhttp://attendance.gov.in  लांच की गई थी। दिलचस्प बात यह है कि केंद्र सरकार के अधीन सभी विभागों की इस वेबसाइट का नियंत्रण व निगरानी सीधे पीएमओ में है। इसके बावजूद एक दिन इस वेबसाइट का अध्ययन करने से जो तथ्य सामने आए हैं उसमें सुबह नौ बजे तक अपने कार्यालय पहुंचने वाले नौकरशाहों की औसतन संख्या मात्र 21.2 फीसदी है, जबकि नौ व दस बजे के बीच कार्यालयों में पहुंचने के लिए इस प्रणाली के जरिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले सर्वाधिक 65.3 फीसदी हैं और औसतन 10 फीसदी के करीब कर्मचारिी कार्यालयों दस बजे से 11 बजे के बीच पहुंच रहे हैं। कुछ नौकरशाहों की कार्यप्रणाली में अभी तक सुधार नहीं आया है जो 11 बजे के बाद कार्यालयों में दस्तक देते हैं, हालांकि ऐसे कर्मचारियों की संख्या मात्र तीन प्रतिशत ही सामने आई है। औसतन यदि कर्मचारियों के आठ आठ घंटे के काम करने का औसत देखा जाए तो वह एक माह में केवल 176 घंटे ही काम कर सकेगा।
नियमों से बेखबर कर्मचारी
मोदी सरकार ने लेटलतीफ कर्मचारियों की कार्यशैली में सुधार लाने के लिए नियम और निर्देर्शिका भी जारी की है। मसलन इन नियमों के तहत ऐसे कर्मचारी जो सुबह 9:30 बजे के बाद कार्यालय आते हैं उनका हाफ डे माना जाता है, लेकिन सभी विभाग के प्रमुख भी शायद इसके प्रति बेखबर हैं। यह हाल तब है जब सरकारी कर्मचारियों की लेटलतीफी को आॅनलाइन टेÑक किया जा रहा है। सरकारी सूत्रों के अनुसार नौकरशाही की हाजिरी का डाटा उसकी हाजिरी का पैमाना तय करेगा। इसलिए कर्मचारियों को उपस्थिति के डाटा टेÑक पर होने की स्थिति में खुद में सुधार करने की जरूरत पर बल दिया गया है।
दशकों से नहीं हुआ सुधार
भारतीय नौकरशाही के कामकाज की शैली सुधारने का ऐसा प्रयास कोई नया नहीं है। कार्यालयों में कर्मचारियों का समय पाबंद करने का प्रयास पिछले पांच दशक से हो रहा है, लेकिन इस दिशा में सुधार नहीं आ सका है। इसमें सुधार लाने की दिशा में केंद्र में आई मोदी सरकार ने तकनीकी का इस्तेमाल करके बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम लगभग सभी केंद्र सरकार के अधीन कार्यालयों में स्थापित किये जा चुके हैं, इसके बावजूद औसतन एक कर्मचारी का कामकाज आठ घंटे तक नहीं पहुंच सका है। 
18Nov-2014

सोमवार, 17 नवंबर 2014

‘समाजवादी जनता दल’ की शक्ल लेगा महामोर्चा!

संसद के दोनों सदनों में चुना जाएगा संयुक्त नेता
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले विभिन्न मुद्दों पर मोदी सरकार की घेराबंदी करने के मकसद से गैर भाजपाई व गैर कांग्रेसी दलों के महामोर्चा को ‘समाजवादी जनता दल’ की सियासी शक्ल दी जा सकती है। इस कवायद में जुटी इन तिसरी सियासी ताकतों ने संसद सत्र के दौरान लोकसभा और राज्यसभा में सशक्त विपक्ष की भूमिका बनाने के लिए संयुक्त नेता चुनने की रणनीति बनाई है।
देशभर में मोदी सरकार और भाजपा के तेजी से बढ़ते प्रभाव को रोकने के मकसद से फिर से एक मंच पर आए जनता परिवार के बिछड़े दलों ने दस दिन पहले ही छह नवंबर को एक महामोर्चा बनाने का ऐलान किया था। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की पहल से शुरू हुई इस कवायद में सपा के अलावा जद-यू, जद-एस, राजद, इनेलो शामिल है, जिसका विस्तार करके अन्य दलों को भी जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। इस कवायद में जदयू के महासचिव एवं राज्यसभा सांसद के.सी. त्यागी ने हरिभूमि से बातचीत के दौरान बताया कि 24 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान 25 नवंबर को महामोर्चा की बैठक होगी, जिसमें किसानों, मजदूरों, व्यापारियों और सरकार की जनविरोधी नीतियों को एकजुटता से उठाने के लिए दोनों सदनों में संयुक्त नेता चुना जाएगा। त्यागी के अनुसार उससे पहले ही महामार्चा का नामकरण कर लिया जाएगा,जिसके बारे में उनका कहना है कि समाजवादी जनता दल के नाम से इस महामार्चा को अंतिम रूप दिये जाने की संभावना है। हालांकि इसके अलावा अन्य नामों पर भी विचार किया गया, लेकिन इस नाम पर सहमति बनाई जा सकती है। जदयू नेता ने कहा कि यह गठजोड़ संसद में एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाने के दायित्व को पूरा करेगा और जनहित के मुद्दों को उठाएगा। इस महामोर्चा में अभी तक शामिल दलों के लोकसभा में 15 और राज्यसभ्ज्ञा में 25 सांसद हैं। जबकि गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी दलों के इस कुनबे को बढ़ाने के लिए अन्य दलों को भी शामिल करने के लिए बातचीत करने का भी दावा किया जा रहा है।
यूपी से पहले बिहार पर नजर
लोकसभा चुनाव से सबक लेते हुए भाजपा व कांग्रेस से अलग एक अलग विकल्प तैयार करने में जुटे इन दलो की नजरे अगले साल बिहार और 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों पर है, जहां इस महामार्चा का मकसद मोदी व भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए सियासी आधार मजबूत करना है। गौरतलब है कि जद-यू प्रमुख शरद यादव कह चुके हैं कि महामोर्चा की अगुवाई कर रहे सपा प्रमुख मुलायम सिंह की रालोद प्रमुख अजित सिंह से बातचीत हो चुकी है, हालांकि दोनों सदनों में रालोद का प्रतिनिधित्व नहीं है। वहीं ओडीसा में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल व ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को भी इस मुहिम में साथ जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। दूसरी ओर वामदलो ने इस सियासी कवायद का समर्थन करने का ऐलान करके महामोर्चा को ताकत देने का भी प्रयास किया है।
17Nov-2014 


शनिवार, 15 नवंबर 2014

बीरेन्‍द्र और सुरेश प्रभु को राज्‍यसभा भेजने की तैयारी!



हरियाणा की दो रास सीटों पर उपचुनाव का ऐलान
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा राज्यसभा में हरियाणा राज्य की दो रिक्त सीटों के लिए पांच दिसंबर को उप चुनाव कराने का ऐलान कर दिया गया है। इस ऐलान के साथ ही मोदी के मंत्रिमंडल में शामिल किये गये चौधरी बीरेन्द्र सिंह और सुरेश प्रभाकर प्रभु को राज्यसभा में लाने के लिए भाजपा अपना प्रत्याशी बना सकती है।
राज्यसभा में हरियाणा के लिए पांच सीटें निर्धारित हैं। हरियाणा राज्य के विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस के टिकट से राज्यसभा सदस्य चौधरी बीरेन्द्र सिंह ने भाजपा का दामन थामते ही 28 अगस्त को राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। वहीं हरियाणा विधानसभा चुनाव में विधायक निर्वाचित हुए इनेलो के रणबीर सिंह प्रजापति ने भी राज्यसभा की सदस्यता से 28 अक्टूबर को इस्तीफा दे दिया था, जो एक नवंबर को स्वीकार किया गया। इस कारण राज्यसभा में दोनों सीटों को रिक्त घोषित करते हुए चुनाव आयोग ने उप चुनाव कराने का निर्णय लिया है। चौधरी बीरेन्द्र सिंह व रणबीर प्रजापति का कार्यकाल एक अगस्त 2016 को समाप्त होना था। केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को सुबह हरियाणा की राज्यसभा के लिए इन दोनों रिक्त सीटों के लिए उप चुनाव का कार्यक्रम घोषित कर दिया है। चुनाव आयोग के अनुसार 18 नवंबर से अधिसूचना जारी होते ही नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और 25 नवंबर तक पर्चे दाखिल किये जा सकते हैं। 26 नवंबर को नामांकन पत्रों की जांच होगी और 28 नवंबर तक नामांकन वापिस लिये जा सकेंगे। आयोग के अनुसार यदि आवश्यकता पड़ी तो इन सीटों के लिए उपचुनाव में पांच दिसंबर को सुबह नौ से सायं चार बजे तक मतदान होगा और उसी दिन सायं पांच बजे से मतगणना होगी। यह चुनाव प्रक्रिया आठ दिसंबर तक पूरी हो जाएगी। फिलहाल हरियाणा से दो कांग्रेस के सदस्य कुमारी सैलजा व सादीलाल बत्रा और एक इनेलो से रामकुमार कश्यप राज्यसभा में सदस्य हैं और इन दो सीटों के उपचुनाव के बाद राज्य का निर्धारित कोटा पूरा हो जाएगा।
प्रभु के लिए आसान नहीं राह
राजनीतिक दृष्टि से कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले चौधरी बीरेन्द्र सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करके ग्रामीण विकास मंत्री बना दिया गया है, तो वहीं शिवसेना छोड़कर भाजपा में शामिल हुए सुरेश प्रभाकर प्रभु को मोदी सरकार में रेल मंत्री बनाया गया है। दोनों ही फिलहाल किसी सदन के सदस्य नहीं है। हरियाणा की दो सीटों पर उप चुनाव में इन दोनों केंद्रीय मंत्रियों को राज्यसभा में लाने के लिए भाजपा अपना प्रत्याशी बनाएगी ऐसी प्रबल संभावनाएं हैं। राज्य में दलीय स्थिति को देखते हुए बीरेन्द्र सिंह का भाजपा के टिकट पर राज्यसभा मे आना तय माना जा रहा है, जबकि दूसरे सदस्य के रूप में सुरेश प्रभु को राज्यसभा में लाने के लिए हरियाणा की सत्तारूढ़ भाजपा को गठजोड़ करने के लिए मशक्कत करनी पड़ सकती है, अन्यथा दूसरी सीट इनेलो के खाते में ही पहुंचने की गुंजाइश बनी रहेगी। हरियाणा में दलीय स्थिति के अनुसार भाजपा के 47, इनेलो के 19, कांग्रेस के 15, हजकां के दो, अकाली दल का एक और पांच निर्दलीय सदस्य हैं।
15Nov-2014

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

मनोहर पार्रिकर राज्यसभा में निर्विरोध निर्वाचित !


यूपी: दस सीटों में छह सपा, दो बसपा, एक-एक भाजपा व कांग्रेस का कब्जा
उत्तराखंड में कांग्रेस ने भाजपा की कब्जाई सीट
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी मंत्रिमंडल में हाल ही में शामिल होकर रक्षा मंत्री बने मनोहर पार्रिकर उत्तर प्रदेश से भाजपा के टिकट पर राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हो गये हैं, इनमे अलावा प्रो. रामगोपाल यादव समेत समाजवादी पार्टी के छह, बसपा के दो तथा कांग्रेस का एक उम्मीदवार भी राज्यसभा के लिए निर्विरोध सदस्य घोषित कर दिये गये हैं।
चुनाव आयोग के मुताबिक राज्यसभा में उत्तर प्रदेश से दस और उत्तराखंड से एक यानि 11 सीटों पर द्विवार्षिक निर्वाचन के लिए गुरूवार को नामांकन वापिस लेने की अंतिम तारीख थी। दोनों राज्यों में रिक्त सीटों पर एक-एक ही उम्मीदवार था, तो सभी को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया। उत्तर प्रदेश से भाजपा के मनोहर पार्रिकर के अलावा जिन उम्मीदवारों को राज्यसभा सदस्य के लिए निर्विरोध निर्वाचित किया गया है उनमें यूपी मे सत्तारूढ सपा के प्रो. रामगोपाल यादव, प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खां की पत्नी तंजीन फातिमा, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर, रवि प्रकाश वर्मा, जावेद अली खान और चंद्रपाल सिंह यादव शामिल हैं। जबकि बसपा से राजाराम और वीर सिंह निर्वाचित हुए,जबकि कांग्रेस से पीएल पुनिया राज्यसभा के लिए चुने गये हैं। उधर उत्तराखंड से भाजपा के राज्यसभा में सदस्य भगत सिंह कोशियारी के लोकसभा सदस्य निर्वाचित होने के बाद रिक्त हुई एक मात्र सीट पर कांग्रेस की प्रत्याशी मनोरमा डोबरियाल शर्मा को निर्विरोध घोषित कर दिया गया है। ये सभी सदस्य आगामी 25 नवंबर को रिक्त होने वाली 11 सीटों पर अपना स्थान लेंगे।
सपा की ताकत बढ़ी
राज्यसभा से जिन दस सदस्यों का कार्यकाल 25 नवंबर को समाप्त हो रहा है उनमें छह बसपा, दो निर्दलीय और एक-एक भजापा व सपा की सीटें थी। सपा के प्रो. रामगोपाल की फिर से वापसी हो रही है, तो उसके साथ उसके पांच अतिरिक्त सदस्यों की संख्या में इजाफा हुआ है, जबकि बसपा के छह में से दो सदस्य वीर सिंह व राजाराम फिर से वापसी कर रहे हैं, तो बसपा के सदन में चार सदस्य कम हो गये हैं, जबकि भाजपा की कुसुम राय के स्थान पर मनोहर पार्रिकर और निर्दलीय मोहम्मद अदीब के स्थान पर कांग्रेस के पीएल पुनिया सदन के सदस्य होंगे। अब राज्यसभा में उत्तर प्रदेश की निर्धारित 31 सीटों में से इस निर्वाचन के बाद सपा की दस से बढ़कर 15 हो गई है, जबकि बसपा की 14 के बजाए दस हो गई है। जबकि भाजपा व कांग्रेस के अब यूपी से तीन-तीन सदस्य हो गये हैं। जबकि उत्तराखंड में कांग्रेस की सदस्य निर्वाचित होने से भाजपा को एक सीट का घाटा हो गया है। उत्तराखंड की सीट गंवाने के बाद अब भाजपा की 43 में से 42 सीट रह गई हैं। जबकि कांग्रेस 68 से बढ़कर 70 तक आ गया, क्योंकि अदीब निर्दलीय के स्थान पर अब कांग्रेस को एक सीट का फायदा हुआ तो वहीं उत्तराखंड से भी भाजपा की सीट उसके हिस्से में आ गई हैं।
14Nov-2014

सोमवार, 10 नवंबर 2014

सियासी दलों की चुनावी चंदे पर शुरु हुई किचकिच !

उठाई दिशानिदेर्शों को वापस लेने की मांग

ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
चुनाव आयोग द्वारा चुनावी चंदे में पारदर्शिता के मद्देनजर राजनीतिक दलों के लिए जो दिशानिर्देश जारी किये थे, उसके विरोध मेें राजनीतिक दल लामबंद होते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस, राजद, जदयू व वामदल जैसे ज्यादातर राजनीतिक दलों ने कानूनी तौर पर राजनीतिक अधिकारों में हस्तक्षेप और अस्पष्ट करार देते हुए इन दिशानिर्देशों को वापस लेने की मांग उठाई है।
देश में राजनीतिक दलों को चुनावी चंदा देने के मामले में मुख्य सूचना आयोग ने भी पिछले सालों में राष्टÑीय दलों को चंदे की पारदर्शिता बनाये रखने के लिए उसे सार्वजनिक करने के आदेश दिये थे। इसके बाद से ही चुनावी चंदे को लेकर चुनाव आयोग भी दिशानिर्देश तैयार करने में जुट गया था। इसी कवायद में केंद्रीय चुनाव आयोग ने पिछले महीने ही एक अक्टूबर को सभी राजनीतिक दलों को ‘पार्टी फंड एवं चुनाव खर्च में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व’ नामक दिशानिर्देश लागू किये। इन दिशानिर्देशों में 20 हजार रुपये से ज्यादा का चंदा नकद रूप से लेने पर रोक लगाने की भी हिदायत थी,लेकिन इससे ज्यादा चैक के जरिए कोई राजनीतिक दल चंदा ले सकता है। चुनाव आयोग के ये दिशानिर्देश ज्यादातर राजनीतिक दलों को रास नहीं आए,क्योंकि इन दिशानिदेर्शों का सीधा मकसद राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों को मिलने वाले चंदे को हासिल करने में पारदर्शिता लाना है। चुनाव आयोग के जारी हुए इन दिशा निर्देर्शो के बाद ज्यादातर राजनीतिक दल बिफरते नजर आए और चुनाव आयोग के इन दिशानिर्देशों की वैधता और संवैधानिकता पर सवाल खड़े करना शुरू कर दिया और आयोग को सुझाव देकर ऐसे दिशानिर्देशों की न्यायिक समीक्षा करने की वकालत तक की। गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग ने ये दिशानिर्देश पिछले माह एक सर्वदलीय विमर्श के बाद ही जारी किए थे, जिसमें यह नियम बनाया गया था कि किसी राजनैतिक दल को किसी व्यक्ति या कंपनी से 20 हजार रूपए से ज्यादा की राशि नकद के रूप में नहीं लेनी है। इसके बावजूद राजनीतिक दलों ने सवाल खड़े कर दिये हैं।
इन तर्को से दी दलीलें
कांग्रेस की ओर से पार्टी में कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने आयोग को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि ऐसे दिशानिर्देश जारी करने से पहले आयोग को सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाकर उनकी राय लेना चाहिए और इस मुद्दे को कानूनी रूप देने के लिए विधि एवं न्याय मंत्रालय को भेजा जाना जरूरी है। इसी प्रकार का नजरिया अपनाने हुए माकपा महासचिव प्रकाश करात ने भी निर्वाचन आयोग के इन दिशानिर्देशों को पूरी तरह से अस्पष्ट बताया और दलील दी कि राजनीतिक दल जनसभाओं और सड़क पर चंदा संग्रहण अभियान चलाकर अपना फंड जुटाती है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग रसीद देना या हुंडी संग्रहण में चंदा देने वालों को कूपन देना व्यवहारिक नहीं है। माकपा ने इन दिशानिदेर्शों में उपयुक्त बदलाव करते हुए इन दिशानिदेर्शों पर अंतिम निर्णय लेने से पहले राजनैतिक दलों की बैठक बुलाने की वकालत की। वहीं जनता दल-यू के प्रमुख शरद यादव ने भी आयोग के इन दिशानिर्देशों पर आपत्ति जताते हुए दलील दी कि राजनैतिक दल को मिले चंदे की जानकारी लेने का अधिकार चुनाव आयोग को नहीं है। यह दिशानिर्देश हटाकर इस मामले को विचार के लिए संसद में भेजना चाहिए, जहां से इसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। इसी प्रकार राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद ने भी आयोग के इन दिशानिर्देशों को लेकर अपनी दलीलें पेश की और कहा कि जन प्रतिनिधि कानून-1951 में संशोधन के जरिए सिर्फ कार्यपालिका के माध्यम से किए जा सकते हैं और किए जाने चाहिए। किसी कानून के खिलाफ ये बदलाव किसी ऐसे प्राधिकरण के निदेर्शों पर नहीं होने चाहिए, जिसे ऐसे निर्देश देने का अधिकार ही नहीं है। इससे पहले बसपा ने भी इन दिशानिर्देशों को वापस लेने की मांग करते हुए इस मामले में कानूनी संशोधन के लिए सर्वदलीय बैठक की आमसहमति पर जोर दिया।
10Nov-2014

मोदी कैबिनेट विस्तार में एक तीर से कई निशाने!

कामकाज और सियासत के संतुलन का रहा प्रयास

ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी कैबिनेट के पहले विस्तार में जिस तरह की प्रशासनिक और सियासी रणनीतियों का मिश्रण देखने को मिला है उसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक तीर से कई निशाने साध लिये हैं? मसलन सरकार के कामकाज के आधार पर प्रशासनिक क्षमता रखने और सियासी रणनीति के तहत ऐसे केई चेहरों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है, जो हरियाणा और महाराष्ट्र फतेह करने की तर्ज पर अन्य राज्यों में भी भाजपा के कांग्रेसमुक्त करने के लिए विपक्षी दलों की जमीन खिसकाने के लिए कारगर साबित हो सकते हैं।
मोदी सरकार के पिछले छह महीने के काम-काज में कहीं ना कहीं यह सामने आ गया होगा कि मोदी सरकार में विशेषज्ञ मंत्रियों की कमी है। इस नजरिए से क्षेत्रीय-जातिगत राजनीति की जगह नेताओं के ट्रैक रेकॉर्ड को तवज्जो देने का प्रयास किया गया है। मनोहर पर्रिकर को गोवा के सीएम पद से हटाकर और महाराष्टÑ से सुरेश प्रभाकर प्रभु को केंद्र में लाने की कवायद को इसी नजरिए से देखा जा रहा है। दूसरी ओर मोदी मैजिक के चलते हाल ही में भाजपा का हरियाणा और महाराष्टÑ फतेह करके देश को कांग्रेसमुक्त करने का जो संकल्प है उस सियासी रणनीति की झलक भी मंत्रिमंडल के विस्तार में नजर आई है। मोदी ने हरियाणा के कद्दावर नेता चौधरी वीरेन्द्र सिंह को कैबिनेट मंत्री बनाकर राज्य में उस आक्रोश को भी शांत कर दिया है जो जाट मुख्यमंत्री न बनाने से विरोध की सुगबुगाहट दे रहा था। इसी तरह झारखंड में चुनावी मौसम को देखते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के बेट जयंत सिन्हा को राज्यमंत्री के रूप में टीम में शामिल कर राज्य की जनता को सकारात्म संदेश दिया है। वहीं अगले साल बिहार में विधानसभा होने हैं इसलिए वहां के जातीय समीकरण को साधने की रणनीति को राज्य से मंत्रिमंडल में शामिल किये गये तीन सांसदों राजीव प्रताप रूडी, गिरिराज सिंह और रामकृपाल यादव कारगर बनाने में बेहतर साबित होंगे। इसी तरह उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा की सियासत को मजबूत करने की दिशा में अल्पसंख्यक चेहरे के रूप में मुख्तार अब्बास नकवी, दलित चेहरे के रूप में प्रो. रमाशंकर कठेरिया, ओबीसी चेहरे के रूप में साध्वी निरंजन ज्योति और ब्राह्मण चेहरे के रूप में डा.महेश शर्मा को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल गई है। मोदी की टीम में बाबुल सुप्रिये को मंत्रिमंडल मे जगह देकर पश्चिम बंगाल की राजनीति को चौंकाया है, जिससे भाजपा को लाभ मिलना तय माना जा रहा है। वहीं बंडारू दत्तात्रेय को तेलंगाना का प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया है तो वहीं गोवा, राजस्थान, पंजाब, हिमाचल, महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्यों के अलावा सहयोगी दल में तेदेपा के वाईएस चौधरी को भी स्थान देकर संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है। हालांकि मोदी की खासियत यह मानी जाती है कि वह अपने पत्ते आखिर में खोलते हैं। कई बार उनके फैसलों ने सारे कयासों पर पानी फेरते हुए लोगों को चौंका दिया है।
10Nov-2014

शनिवार, 8 नवंबर 2014

कांग्रेस ने गठित की ‘शैडो कैबिनेट’

मोदी सरकार के मंत्रियों की होगी निगरानी
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
जब मोदी अपने केंद्रीय कैबिनेट का विस्तार कर रहे हैं तो उससे पहले ही कांग्रेस ने अपनी सात शैडो कैबिनेट कमेटियां गठित कर दी हैं, जो केंद्र सरकार के कामकाज के मद्देनजर उनके मंत्रियों और ज्यादातर मंत्रालयों के कामकाज पर नजर रखेंगी।
लोकसभा में प्रतिपक्ष का पद हासिल करने में नाकाम रही कांग्रेस ने एक सशक्त विपक्षी दल की भूमिका निभाने की दिशा में समानांतर समितियों का गठन किया है, जिसमें गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई दलों के महामोर्चा बनाने के दावे को भी ध्वस्त करने के कांग्रेस ने संकेत दिये हैं, जो संसद में सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाने का दावा कर कांग्रेस को चुनौती देने के प्रयास में हैं। सूत्रों की माने तो कांग्रेस की यह रणनीति महामोर्चा बनाने का ऐलान करने के बाद सामने आई है। दरअसल कांग्रेस नहीं चाहती कि दूसरे स्थान की कांग्रेस के अलावा संसद में कोई तीसरी ताकत विपक्ष की भूमिका में उन्हें चुनौती दे। कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार पर निगरानी रखने की दिशा में मोदी सरकार के मंत्रियों एवं मंत्रालयों की नीतियों और निर्णयों के साथ कामकाज पर नजर रखने के लिए शैडो कैबिनेट का गठन कर उनका समितियों के रूप में विभाजन किया है। कांग्रेस ने इस बात पर जोर दिया है कि समितियों का गठन विभिन्न मुद्दों को देखने के लिए किया गया है और इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कांग्रेस रचनात्मक और कारगर विपक्ष की भूमिका निभा सके। वहीं कांग्रेस का मकसद मोदी सरकार पर दबाव बनाए रखना भी है।
किसकी नजर कहां होगी?
कांग्रेस हाईकमान ने समितियों का गठन इस प्रकार किया है कि कांग्रेस के नेता अपनी सरकार के अनुभव के आधार पर संबन्धित विभागों की निगरानी तकनीकी रूप से भी कर सकें। मसलन केंद्रीय वित्त, वाणिज्य, सूचना एवं प्रसारण तथा विदेशी मंत्रालयों की निगरानी का जिम्मे वाली समिति में वीरप्पा मोइली, आनंद शर्मा और ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल है। जबकि गृह, रक्षा और कानून मंत्रालय के लिए बनाई गई समिति में ऐके एंटनी, अश्विनी कुमार और राजीव सातव को शामिल किया गया है। इसी प्रकार दिग्विजय सिंह, अशोक चव्हाण और निनांग इरिंग की नजरें कृषि, पेयजल और स्वच्छता पर रहेंगी। कांग्रेस हाईकमान ने आॅस्कर फर्नांडिस एवं रंजीत रंजन के साथ मलिकार्जुन खड़गे को रेलवे और श्रम मंत्रालयों की समिति का जिम्मा सौंपा है। इसी प्रकार स्वास्थ्य और महिला एवं बाल विकास संबंधी समिति में गुलाम नबी आजाद, जेडी सलीम और के. सुरेश को रखा गया है। जबकि मानव संसाधन विकास, पंचायती राज और पूर्वोत्तर मामलों पर समिति में मणिशंकर अय्यर, भालचन्द मुंगेकर और सुष्मिता देव की नजरें रहेंगी। ग्रामीण विकास एवं पर्यावरण पर समिति में केवी थामस, जयराम रमेश और गौरव गोगई को शामिल करके समिति का गठन किया गया है।
08Nov-2014

शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

आसान नहीं होगी महामोर्चा की सियासी राह!

कभी मजबूत नहीं हो पाई तीसरी ताकतें
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी दलों ने एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के खिलाफ महामोर्चा के रूप में एकजुट होकर सियासी तानाबाना बुनना शुरू कर दिया है। यह सियासी कवायद ठीक उसी तर्ज पर शुरू हुई जिस तरह लोकसभा चुनाव से पहले 11 दलों ने भाजपा में नरेन्द्र मोदी की ताजपोशी होने पर बदली भारतीय राजनीति की तस्वीर को धुंधला करने और उसे रोकने के लिए फेडरल फ्रंट बनाने के लिए की थी। वैसे भी भारतीय राजनीति के इतिहास में तीसरी ताकतों की जड़े कभी मजबूत हो ही नही पाई हैं। इसलिए महामोर्चा की सियासी डगर भी आसान नहीं है?
दरअसल केंद्र में भाजपानीत राजग सरकार बनने के बाद हरियाणा व महाराष्टÑ जैसे राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के प्रभाव ने सभी गैर कांग्रेस व गैर भाजपाई दलों की चिंताओं को बढ़ा दिया है। इस बात की चिंता ने ही फिर से जनता पार्टी के बिखरे कुनबे को एकजुटता का सबक दिया है। इसकी वजह यह भी मानी जा रही है कि देश की राजनीति की तस्वीर पर मोदी का साया इसी प्रकार मंडराता रहा तो बिहार में अगले साल और उत्तर प्रदेश में 2017 में विधानसभा चुनावों में दोनों ही राज्यों में सत्ताधारी पार्टियों के लिए भाजपा से मुकाबला करना एक बड़ी चुनौती साबित होगी। इसलिए उससे पहले ही गैर भाजपा और गैर कांग्रेस दलों को एकजुट करके महामोर्चा को एक तीसरी ताकत के रूप में जिंदा करने का एक बार फिर से प्रयास हो रहा है। इसी प्रकार की कवायद लोकसभा चुनावों के लिए भी की गई थी, लेकिन वह चुनाव आते आते तार-तार हो गई।
वैसे भी भारतीय राजनीति का इतिहास इस बात का गवाह है कि एक बार नहीं कई बार भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ तीसरी राजनीतिक ताकतें सक्रिय हुई हैं, लेकिन कभी भी तीसरा मोर्चा ठोस राजनीतिक आधार हासिल नहीं कर सका है। वर्ष 1996 के आम चुनाव में तीसरा मोर्चा बनाने वाली ताकतें सक्रिय हुई, तो भाजपा मजबूत हुई थी। इससे पहले ऐसा मौका वर्ष 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा बना और भाजपा व वामदलों के बाहरी समर्थन से सरकार भी बनी, लेकिन राष्ट्रीय जनमोर्चा ऐसा टूटा कि उससे जनता दल, सपा, द्रमुक, तेलुगु देशम, तिवारी कांग्रेस जैसे दलों का उदय हुआ। नतीजा यह था कि चार वामदलों और नेशनल कांफ्रेंस समेत इन दलों ने संयुक्त मोर्चा बना लिया और कांग्रेस के बाहरी समर्थन से केंद्र में सरकार भी बनाई। आखिर यह मोर्चा भी टूटने को मजबूर हुआ और 1998 में मध्यावधि चुनाव की घोषणा हुई, तो तीसरे मोर्चे की पहल हुई और भाजपा की सरकार केंद्र में बनी तो तीसरे मोर्चे में शामिल कई दल भाजपा के नेतृत्व में बने राजग में शामिल हुए, जिनमें से जदयू भी एक है,जिसके भाजपा से 17 साल के रिश्ते तोड़ने का दुष्परिणाम भी उसके सामने है।
कैसे बनेगा सशक्त विपक्ष
भाजपा और उसकी केंद्र सरकार के खिलाफ महामोर्चा बनाने की कवायद में जिस प्रकार से इन दलों ने दावा किया है कि संसद के दोनों सदनों में इस अभियान में शामिल होने वाले दलों की यदि सदन में स्थिति पर गौर की जाए तो बिना कांग्रेस, अन्नाद्रमुक और तृणमूल कांग्रेस के कभी सशक्त विपक्ष नहीं बन सकता। मसलन लोकसभा में सपा के पांच, राजद के चार, इनेलो, जद-यू व जद-एस के दो-दो यानि फिलहाल की स्थिति में 15 सदस्य ही हैं। यदि वामदलों के दस लोकसभा सदस्य भी इस अभियान में जुडते हैं तो भी सशक्त विपक्ष तैयार करने की स्थिति में नहीं होगा यह महामोर्चा। हालांकि जदयू नेता नीतीश कुमार ने कहा कि उनकी तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी और अन्य दलों से भी बात चल रही है, लेकिन सदन में सरकार को घेरने के लिए यह दावा बेमानी लगता है।
अजीत सिंह को मझधार में छोड़ा
इस तीसरी ताकत की पटकथा तो रालोद प्रमुख की मेरठ में हुई स्वाभिमान रैली में ही लिखी जा चुकी थी, जिसमें राजद को छोडकर इस अभियान का बिगुल बजाने वाले दलों के नेता भी शामिल हुए थे। इस पटकथा में लोकसभा में अपना अस्तित्व खो चुके रालोद प्रमुख को सपा के सहारे राज्यसभा भेजने की भी संभावनाएं व्यक्त की गई थी, लेकिन सपा ने राज्यसभा के लिए उन्हें दरकिनार करके इस मुहिम में भी रालोद को न्यौता न देकर मझधार में छोड़ दिया है।
07Nov-2014

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने की कवायद!

वैकल्पिक ईंधन और हाइब्रिड इंजनों को बढ़ावा देगी सरकार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए मोदी मिशन मेक इन इंडिया के तहत सरकार के मंत्रालयों के साथ अन्य संस्थाओं ने भी काम शुरू कर दिया है।
केंद्र में सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री ने हरित क्रांति को बढ़ावा देने के लिए जिस तरह से हरित गांव के साथ पर्यावरण संरक्षण को एक मिशन बनाने का आव्हान किया था, उसमें सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर काम शुरू हो गया है। हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर आई पांचवी मूल्याकंन रिपोर्ट के निष्कर्षो के आधार पर जलवायु परिवर्तन के आकलन, अनुकूलन एवं इसमें कमी लाने की दिशा में मोदी के इस राष्ट्रीय अभियान के तालमेल बैठाने के लिए बुधवार को सरकार ने जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री परिषद का पुनर्गठन करने का निर्णय लिया है। उसमें केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अलावा देश की प्रमुख ऊर्जा कंपनी टाटा पावर ने भी अपनी पहल को उजागर किया है।
जैव र्इंधन का उत्पाद
केंद्रीय सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बुधवार को यहां जैव ईंधन 2014 पर यहां एक सम्मेलन के दौरान कहा कि सरकार देश में जैव र्इंधन का उत्पादन बढ़ाने और उसके इस्तेमाल में आने वाली बाधाओं को समाप्त करने का हरसंभव प्रयास करेगी। वैकल्पिक ईंधनों के विशेषज्ञों,उद्यमियों, सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को सम्बोधित करते हुए गडकरी ने कहा कि भारत में जैव ईंधन के उत्पादन की विशाल संभावनाएं हैं। वर्तमान अनुमानों के अनुसार यह संभावना 1.2 मिलियन टन है, लेकिन केवल 60,000 टन जैव ईंधन का उत्पादन किया जा रहा है, जिसमें से 80 प्रतिशत का निर्यात किया जा रहा है। गडकरी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के व्यापक उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए गैर खाद्य तिलहनों के उत्पादन से जैव ईंधन का उत्पादन करने और इसे प्रोत्साहित करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि उनका मंत्रालय वैकल्पिक ईंधन और हाइब्रिड इंजनों को बढ़ावा देगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि जैव ईंधन का इस्तेमाल बढ़ाकर भारत के कच्चे तेल आयात के बिल को कम करने के साथ-साथ प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है, क्योंकि जैव ईंधन से कम कार्बन डाइ-आॅक्साइड निकलता है। ऐसी योजनाओं को बढ़ावा देने से ही पर्यावरण को संरक्षित रखने की संभावनाओं पर गडकरी ने कहा कि जटरोफा जैसे तिलहन आदिवासी इलाकों और जंगलों में पैदा होते हैं और इसकी खेती को बढ़ावा देकर आदिवासियों और किसानों को रोजगार प्रदान किया जा सकता है और उनकी आमदनी बढ़ाई जा सकती है।
टाटा पावर ने लगाए तीन दर्जन बायोगैस सयंत्र
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राष्ट्रीय अभियान में मदद करने और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिये देश की सबसे बड़ी एकीकृत बिजली कंपनी टाटा पावर ने पहले ही हरित गांव बनाने के लिए आठ गांव गोद ले लिये थे। इस संबन्ध में कंपनी के सीईओ और ईडी के के शर्मा ने बुधवार को कहा टाटा पावर ने गुजरात में अपने परिचालन क्षेत्रों और उसके आसपास के गांवों में हरित और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने के लिए शुरूआती दौर में आठ गांवों को गोद लिया है। इस हरित गांव विचार के तहत टाटा पावर ने 8 गांवों में सफलतापूर्वक 36 बायो-गैस संयंत्र लगाए हैं। उनका कहना है कि कंपनी ने मुंद्रा और मांडवी में टाटा पावर कम्युनिटी डेवलपमेंट ट्रस्ट के साथ मिलकर अन्नपूर्णा परियोजना के तहत ये बायो-गैस संयंत्र स्थापित किए हैं। इसका उद्देश्य पर्यावरण को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण परिवारों में गोबर के इस्तेमाल के बारे में जागरूकता लाकर बायो-गैस के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना है। पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के मुकाबले बायो-गैस काफी सस्ती पड़ती है और प्रदूषण में कमी आने से ग्रामीण भी अस्थमा और मोतियाबिंद जैसी बीमारियों से सुरक्षित रह सकेंगे। प्रत्येक बायो-गैस संयंत्र में रोज 40 किलोग्राम गोबर की जरूरत होती है, जो 5-6 सदस्यों वाले परिवार की खातिर भोजन पकाने के लिए पर्याप्त होती है।
06Nov-2014

बुधवार, 5 नवंबर 2014

मातृत्व एवं शिशुओं मौतें रोकने को गंभीर सरकार


महिलाओं की परिवार नियोजन तक पहुंच का होगा विस्तार
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने परिवार नियोजन-2020 दृष्टिकोण की प्रतिबद्धता में देश की 48 मिलियन अतिरिक्त् महिलाओं एवं लड़कियों को गर्भनिरोधक दवों तक पहुंच उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया है। इस योजना के विस्तार से मातृत्व एवं शिशुओं की मौतों को रोकने के लिए स्वास्थ्य योजनाएं चलाने के लिए सरकार गंभीर है।
यहां परिवार नियोजन-2020 दृष्टिकोण द्वारा लांच की गई पार्टनरशिप इन प्रोग्रेस रिपोर्ट में महिलाओं और लड़कियों के अधिकार के लिए अपनी 2012 की प्रतिबद्धता महसूस करने के प्रति समूचे विश्व की सरकारों और सहयोगी साझीदारों की उपलब्धियों की जानकारी दी गई है। इन अधिकारों के अंतर्गत महिलायें एवं लड़कियां खुद के लिए यह फैसला करने में स्वतंत्र हैं कि उन्हें कब और कितने बच्चे चाहिये। स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक भारत सरकार का वर्ष 2020 तक 48 मिलियन अतिरिक्त महिलाओं एवं लड़कियों को गर्भनिरोधक दवाओं (कॉन्ट्रासेप्टिव्स) तक पहुंच उपलब्ध कराने का लक्ष्य है, जबकि फिलहाल पहले की तुलना में कहीं अधिक महिलाओं एवं लड़कियों की परिवार नियोजन तक पहुंच बनाए हुए है। अकेले वर्ष 2013 में ही भारत में 30 लाख अतिरिक्त महिलायें एवं लड़कियां आधुनिक गर्भनिरोधक विधियों का चयन करने के लिए आवश्यक टूल्स एवं सूचना से सुसज्जित पाई गई थीं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव (आरसीएच) डा. राकेश कुमार का कहना है कि महिलाओं को गर्भधारण में अंतर करने के लिए जरूरी उपकरण एवं जानकारी तक पहुंच प्रदान करने से उनके स्वास्थ्य में सुधार आयेगा। इससे उनके नवजात और बच्चों का स्वास्थ्य भी सुधरेगा। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में सरकार परिवार नियोजन-2020 के लिए भारत की प्रतिबद्धता महसूस करने के लिए वचनबद्ध हैं और सरकार भारत में परिवार नियोजन की आवश्यक जरूरत को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। परिवार नियोजन की निदेशिका सुश्री एलिजाबेथ श्रेष्टर ने भारत सरकार की प्रतिबद्धता की सराहना करते हैं। इसके परिणामस्वरूप अधिकतर महिलायें एवं लड़कियां भारत में स्वैच्छिक परिवार नियोजन तक पहुंच बनाने में सक्षम हुई हैं।
लंबा सफर बाकी
इस रिपोर्ट के मुताबिक परिवार नियोजन के क्षेत्र में भारत को अभी भी बहुत लंबा सफर तय करना बाकी है। भारत में पांच में से लगभग एक महिला गर्भवती नहीं होना चाहती, लेकिन फिर भी उनके द्वारा गर्भनिरोध की आधुनिक विधियों का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। जिस दर से गर्भधारण करने में सक्षम महिलाओं एवं लड़कियों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, उसे देखते हुये बंध्याकरण, कंडोम और ओसी पिल्स के अलावा अन्य गर्भनिरोधक विधियां व्यापक पैमाने पर उपलब्ध नहीं हैं। इस लगातार बढ़ती मांग की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण उपकरणों एवं सेवाओं को विस्तारित करना आवश्यक हो गया है। वहीं गर्भनिरोधकों के लिए लगातार बढ़ती पहुंच के प्रति जारी प्रतिबद्धता मातृत्व एवं शिशुओं की अनावश्यक मौत को रोकने में लंबा सफर तय करेगी। साथ ही महिलाओं एवं लड़कियों के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों को सुनिश्चित किया जायेगा। शोध बताते हैं कि पहले बच्चे के बाद तीन वर्ष के अंतराल में हुये बच्चों की तुलना में दो से कम वर्ष के अंतराल में हुये बच्चे की पहले साल में मरने की संभावना दुगुने से भी अधिक होती है।
05Nov-2014

मंगलवार, 4 नवंबर 2014

विकास के एजेंडे को अंजाम देने में जुटे माननीय!

सांसद निधियों से 91.76 फीसदी खर्च करने का खाका तैयार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार के विकास के एजेंडे को अंजाम तक पहुंंचाने के लिए सांसदों ने अपनी सांसद निधि की पहली किश्त मिलते ही ज्यादा से ज्यादा कार्यो के प्रस्ताव पर काम शुरू कर दिया है। सभी राज्यों के जिन लोकसभा और राज्य सभा सदस्यों को पहले साल की सांसद निधि की पहली किश्त में 50 फीसदी यानि ढ़ाई-ढ़ाई करोड़ के हिसाब से की राशि जारी कर दी गई है, उन्होंने जारी निधि के औसतन 91.76 प्रतिशत को खर्च करने के लिए योजनाओं का खाका तैयार कर लिया गया है।
सांसद को अपने क्षेत्र में विकास कार्य करने के लिए पांच करोड़ रुपये मिलते हैं। इस तरह पांच साल में सांसद को 25 करोड़ रुपये मिलते हैं। जबकि विधायकों को तीन करोड़ रुपये मिलते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एक अनुमान के अनुसार देश का कोई भी संसद सदस्य सांसद निधि की पूरी राशि का उपयोग नहीं कर पाता है, लेकिन मोदी सरकार का प्रयास है कि हर सांसद अपने क्षेत्र में सांसद निधि का शतप्रतिशत या उससे ज्यादा खर्च करके विकास कार्यो को अंजाम दें। सोलहवीं लोकसभा में दोनों सदनों के सांसदों के लिए केंद्र सरकार ने लोकसभा सदस्यों की सांसद निधि में 23946.85 करोड़ व राज्यसभा सदस्यों की निधि के लिए 9900.90 करोड़ यानि कुल 33847.75 करोड़ रुपये स्वीकृत किये हैं, जिसमें से 31059.91 करोड़ रुपये यानि औसतन 91.76 प्रतिशत लागत की योजनाओं के प्रस्ताव जिला कलेक्ट्ररों को सौंपे जा चुके हैं। सांख्यिकी एवं योजनागत कार्यक्रम मंत्रालय में एमपीलैंड्स निदेशक डी. साई बाबा ने सांसदों की निधि को खर्च करने के संबन्ध में सर्कुलर भी जारी कर दिया है, जिसमें सांसद स्थाानीय क्षेत्र विकास योजना के अलावा अपने क्षेत्र या अन्य राज्य में खर्च एक सांसद अपनी सांसद निधि के अंशदान में 25 लाख रुपये तक खर्च कर सकता है। मोदी सरकार के विकास के एजेंडे को अंजाम देने के लिए अंडमान निकोबार के सांसदों ने तो जारी निधि से ज्यादा यानि 110.34 फीसदी लागत की योजनाओं का प्रस्ताव रखा है,इसी प्रकार दादर नगर हवेली ने 103.60 प्रतिशत, लक्ष्यद्वीप ने 102.32 तथा चंडीगढ़ की सांसद ने 102.28 प्रतिशत खर्च करने का प्रस्ताव रखा है। इसी प्रकार राज्यसभा के दिल्ली व पुडुचेरी के सदस्यों ने भी शतप्रतिशत से ज्यादा का लक्ष्य रखा है। ज्यादातर सांसदों को हालांकि अभी निधि की पहली किश्त का इंतजार है। इस राशि का आवंटन सांसदों को अपने क्षेत्र में आधारभूत ढांचे के विकास के लिए करना होता है। सासंद निधि से बिजली, मनरेगा, इंदिरा आवास, ग्रामीण आजीविका मिशन, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, समेकित वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम, भू-अभिलेख आधुनिकीकरण, ग्रामीण पेयजल,निर्मल भारत अभियान, पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि, आश्रम पद्धति विद्यालय के निर्माण आदि योजनाओं का कार्यान्वयन करने का प्रावधान है।
किश्त जारी होने की इंतजार
सांख्यिकी एवं कार्ययोजना मंत्रालय के सूत्रों की माने तो एक अक्टूबर तक दिल्ली में अभी तक भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी, रमेश विधूडी और हर्ष वर्धन को ही सांसद निधि की राशि जारी की गई है, जिन्होंने 20-20 प्रतिशत लागत की योजनाओं के प्रस्ताव पर काम शुरू करा दिया है। अन्य सांसद पहली किश्त की इंतजार में हैं। जबकि हरियाणा में अभी तक दस लोकसभा सांसदों में से तीन सांसदों दुष्यंत चौटाला, दीपेन्द्र हुड्डा व इंद्रजीत राव को ही पहली किश्त जारी हो सकी है, जिन्होंने प्रारंभिक योजनाओं पर 20-20 प्रतिशत लागत की योजनाओं के प्रस्ताव दे दिये हैं। मध्य प्रदेश में 29 सांसदों में से छह सांसदों ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेन्द्र सिंह तोमर, सुधीर गुप्ता, रोडमल नागर, गणेश सिंह व चिंतामणि मालवीय को ही पहली किश्त में ढाई-ढाई करोड़ की राशि जारी की गई है जिन्होंने 50-50 लाख रुपये खर्च करने के कामों के प्रस्ताव सौंप दिये हैं। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ राज्य के 11 लोकसभा सदस्यों में से पांच लोकसभा सांसदों लखनलाल साहू, विक्रमदेव उसेंडी, रमेश बैस, अभिषेक सिंह, व बंसीलाल महतो को पहली किस्त में ढाई-ढाई करोड़ की सांसद निधि जारी की है जिनके आधार पर इन सांसदों ने 20-20 प्रतिशत निधि को खर्च करने की प्रारंभिक योजनाओं का खाका खींचकर प्रस्ताव अपने क्षेत्र के प्राधिकारियों को सौंप दिये हैं। चंडीगढ़ की एक मात्र लोकसभा सांसद श्रीमती किरण खेर को भी सांसद निधि की पहली किश्त जारी होने का इंतजार है। वहीं सबसे बड़े सूबे में 80 लोकसभा सांसदों में से अभी तक 31 सांसदों को स्थानीय विकास के लिए 50-50 फीसदी की पहली किस्त जारी हुई है,जिन्होंने 50-50 लाख रुपये की लागत के कामकाजों का प्रस्ताव दे दिया है।
03Nov-2014

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव खतरनाक और अपरिवर्तनीय

पाांचवी मूल्यांकन रिपोर्ट के निष्कर्षः
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने के विकल्प  मौजूद
नई दिल्ली
- मनुष्य का जलवायु पर प्रभाव स्पष्ट रूप से बढ़ रहा है, इसके प्रभावों को सभी महाद्वीपों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसके परिणाम लोगांे और पारिस्थितिक तंत्र के लिए घातक एवं अपरिवर्तनीय हो सकते है। हालांकि, इसे अनुकूलित करने के लिए कुछ विकल्प अभी भी उपलब्ध हें। ऐसी सख्त गतिविधियों को अपनाया जा सकता है जो प्रबन्धनीय तरीके से जलवायु बदलाव के प्रभावों पर नियन्त्रण करें।
रविवार को जलवायु परिवर्तन पर आयोजित अन्तरसरकारी पैनल के द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के कुछ परिणाम यहां दिए गए हैं। रिपोर्ट के ये परिणाम पिछले 13 महीनों के दौरान 800 वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए अध्ययन एवं सर्वेक्षण पर आधारित हैं-जिसके तहत जलवायु परिवर्तन पर व्यापक मूल्यांकन किया गया है।
आईपीसीसी के अध्यक्ष आर. के. पचैरी के अनुसार ‘‘हमारे पास जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के विकल्प उपलब्ध हैं। ऐसे कई समाधान हैं जिनके द्वारा सतत मानव विकास को सुनिश्चित करते हुए जलवायु परिवर्तन को नियन्त्रित किया जा सकता है। इसके लिए हमें केवल जलवायु परिवर्तन के विज्ञान को समझना होगा, इसके बारे ज़रूरी जानकारी जुटानी होगी तथा इसे रोकने के लिए मानवमात्र को प्रोत्साहित करना होगा। रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन आज दुनिया भर के लिए चिंता का विषय है और हमारे वातावरण के लिए अपने आप में एक बड़ी चेतावनी है। 1950 के बाद से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कई परिणाम स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। ‘‘हमारे मूल्यांकन से ज्ञात हुआ है कि वातावरण और समुद्र गर्म हो रहें हैं, बर्फ और हिमपात की मात्रा कम हो रही है, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और कार्बनडाईआॅक्साईड का स्तर अप्रत्याशित रूप से बढ़ रहा है। आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप 1 के सह अध्यक्ष थाॅमस स्टाॅकर ने बताया। रिपोर्ट में बताया गया कि बीसवीं सदी के माध्यम से बढ़ती ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को ग्लोबल वार्मिंग के रूप में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सभी महाद्वीपों और सभी महासागरों पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार मनुष्य की गतिविधियां जलवायु को बाधित कर रही हैं, इसी के साथ जोखिम बढ़ता जा रहा है। ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ती मात्रा ग्लोबल वार्मिंग का कारण बन रही है, समाज के सभी वर्गों पर इसके प्रभाव स्पष्ट हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि विकासशील देशों और संवेदनशील समुदायों के लिए स्थिति और भी अधिक चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि उनके पास इन स्थितियों से निपटने के लिए सीमित क्षमता है। सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, संस्थागत रूप से सीमित एवं वंचित समुदायों के लोग इस दृष्टि से अधिक संवेदनशील हैं। अनुकूलन इस जोखिम को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विकास को बढ़ावा दे सकता है और पहले से हो चुके गैसे के उत्सर्जन से निपटन के लिए हमें तैयार कर सकता है।’’ आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप 2 के सह अध्यक्ष विसेन्टे बैरोस ने बताया। लेकिन केवल अनुकूलन पर्याप्त नहीं है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन स्तर में कमी लाना बेहद अनिवार्य है। ओर चूंकि इससे वार्मिंग का स्तर बढ़ रहा है, ऐसे में इसके गम्भीर सम्भावी प्रभावों को कम करने के लिए प्रयास करने होंगे।
अगले कुछ दशकों में गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के पर्याप्त प्रयास किए जा सकते हैं, इसे 66 फीसदी तक कम करके वार्मिंग को 2 डिग्री तक कम करना सरकारों का लक्ष्य है। हालांकि इन प्रयासों में देरी 2030 तक धरती के तापमान को 2 डिग्री तक बढ़ा भी सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है। कम कार्बन की अर्थव्यवस्था की ओर रुख करना तकनीकी रूप से व्यवहारिक प्रयास होगा। लेकिन इसके लिए उचिन नीतियों का अभाव है। हम कार्रवाई करने में जितनी देर करेंगे, उतना ही परिणामों को नियन्त्रित करना मुश्किल हो जाएगा। आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप के सह अध्यक्ष यूबा सोकोना ने बताया। पचैरी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन पर स्पष्ट एवं प्रभावशाली नियन्त्रण आज की प्राथमिकता है। हमारे पास समय बहुत कम है, क्योंकि वार्मिंग 2 डिग्री के स्तर पर पहुंच गई। इसे 2 डिग्री से नीचे रखने के लिए हमें दुनिया भर में उत्सर्जन के स्तर को 2010 से 2050 के बीच 40 से 70 फीसदी तक कम करना होगा, और 2100 तक इसे शून्य के स्तर तक लाना होगा। अभी स्थिति हमारे हाथ में है, हम चाहें तो इस पर नियन्त्रण कर सकते हैं।
04Nov-2014

शनिवार, 1 नवंबर 2014

ईटीसी प्रणाली से जुडेेंगे 350 टोल प्लाजा!

हरियाणा समेत पांच राज्यों में 55 टोल प्लाजा पर लागू प्रणाली
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देशभर में राष्ट्रीय राजमार्गो पर टोल वसूली को आसान बनाने की कवायद में केंद्र सरकार ने डिजिटल इंडिया विजन को पंख लगाते हुए दिल्ली-मुंबई राजमार्ग के लिए इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह (ईटीसी) प्रणाली को शुरू कर दिया है। इस प्रणाली से हरियाणा,राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के रास्ते दिल्ली से मुंबई तक के 55 टोल प्लाजा पर यह प्रणाली लागू हो गई है। सरकार ने एक साल के भीतर देशभर में राष्ट्रीय राजमार्गो के 350 टोल प्लाजा को ईटीसी प्रणाल से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने शुक्रवार को हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के रास्ते दिल्ली-मुंबई राजमार्ग के लिए ईटीसी प्रणाली का उद्घाटन करने के बाद कहा कि इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह प्रणाली प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया विजन को मूर्त रूप देने की दिशा में एक अहम कदम साबित होगा। उन्होंने कहा कि निकट भविष्य में इस प्रणाली में नई तकनीकों और सुविधाओं जैसे टच-कार्ड, डेबिट कार्ड इत्यादि को समाहित किया जाएगा। उन्होंने इस प्रणाली को राष्ट्र को समर्पित किया, जो सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती मना रहा है। उन्होंने कहा कि फास्टैग को निकट भविष्य में राज्यों की सीमा पर स्थित चेक पोस्ट पर ईंधन तथा प्रवेश शुल्क के भुगतान के लिए भी सुलभ कराया जाएगा। कुछ खास बैंक शाखाओं में स्थापित किए गए विक्रय केंद्रों पर फास्टैग उपलब्ध है। मौजूदा समय में आईसीआईसीआई बैंक फास्टैग की पेशकश कर रहा है। जल्द ही एक्सिस बैंक की ओर से भी फास्टैग उपलब्ध हो जाएगा। निकट भविष्य में टोल प्लाजा पर भी इस तरह के विक्रय केन्द्र स्थापित किए जायेंगे। गडकरी ने बताया कि ईटीसी को अब तक 55 टोल प्लाजा पर स्थापित किया जा चुका है और सेन्ट्रल क्लीयरिंग हाउस (सीसीएच) आॅपरेटरों के साथ इनका एकीकरण भी लगभग पूरा हो गया है। दिसंबर 2015 तक सभी राष्ट्रीय राजमार्गों पर 350 इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह प्रणाली लागू करने की योजना है। मुंबई (चरौती) और अहमदाबाद के बीच 10 टोल प्लाजा की अंत: प्रचालनीय ईटीसी प्रणाली के लिए शुरू की गई पॉयलट परियोजना का भी परीक्षण कर लिया गया है। इस मार्ग पर समेकित ईटीसी प्रणाली सफलतापूर्वक काम कर रही है। इस मौके पर सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्य मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर,एनएचएआई के चेयरमैन आर.पी.सिंह, एनएचबीएफ के अध्यक्ष वी.सी. वर्मा तथा अन्य अधिकारी भी मौजूद थे। इस नई ईटीसी प्रणाली से न केवल वाहन चालकों के समय, ईंधन और पैसे की बचत होगी, बल्कि प्रदूषण को कम करने में भी मदद मिलेगी। यही नहीं, जब इस प्रणाली को देश भर में स्थित सड़कों पर भी सुलभ करा दिया जाएगा तो यह प्रणाली राष्ट्र को विकास के पथ पर आगे ले जाने में भी मददगार साबित होगी।
क्या है ईटीसी प्रणाली
मंत्रालय के अनुसार देश भर में ईटीसी लागू करने के लिए कंपनी अधिनियम-1956 के तहत एक नई कंपनी ‘भारतीय राजमार्ग प्रबंधन कंपनी लिमिटेड’बनाई गई है। जहां तक ईटीयी प्रणाली का सवाल है इसके लिए इस्तेमाल होने वाला फास्टैग दरअसल एक आरएफआईडी लेबल है जिसे वायुरोधी ग्लास के बीच में चिपकाया गया है। आपको सिर्फ अपने टैग खाते को रिचार्ज करना है और टोल प्लाजा पर स्थित तेज लेन से होकर गुजर जाना है। उपयुक्त टोल स्वत: ही आपके खाते की राशि में से कट जाएगा। इसके साथ ही वाहन चालक द्वारा पंजीकृत किए गए मोबाइल नंबर पर एसएमएस अलर्ट आएगा, जिसमें काटे गए टोल शुल्क और खाते में शेष बची राशि का जिक्र होगा। दिल्ली से मुंबई तक 55 टोल प्लाजा पर लागू हुई ईटीसी प्रणाली में से मौजूदा समय में पांच राज्यों में इस मार्ग पर स्थित 24 टोल प्लाजा पर फास्टैग की सुविधा उपलब्ध हैं।
राजस्व की बचत
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार पथ कर संग्रह की ईटीसी प्रणाली से फिलहाल दिल्ली-मुंबई मार्ग पर 1200 करोड़ रुपये की सालाना बचत होगी और पूरे देश में यह प्रणाली शुरू होते ही हर साल 34 हजार करोड़ रुपये के राजस्व की बचत होने का अनुमान है। वहीं टोल के कारण होने वाली देरी की वजह से 27 हजार करोड़़ रुपए की बचत में मदद मिलेगी और सात हजार करोड़ रुपये का ईंधन भी बचेगा। मसलन दिल्ली-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग पर 18 टोल प्लाजा हैं और वाहनों को इन ठिकानों पर शुल्क अदा करने में करीब 10 मिनट का समय लगता हैं जिससे कुल यात्रा में करीब 180 मिनट या तीन घंटे बर्बाद होते हैं। इस प्रणाली के लागू होने से जहां समय की बचत होगी, वहीं आर्थिक लाभ भी होगा।
01Nov-2014