सोमवार, 10 नवंबर 2014

सियासी दलों की चुनावी चंदे पर शुरु हुई किचकिच !

उठाई दिशानिदेर्शों को वापस लेने की मांग

ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
चुनाव आयोग द्वारा चुनावी चंदे में पारदर्शिता के मद्देनजर राजनीतिक दलों के लिए जो दिशानिर्देश जारी किये थे, उसके विरोध मेें राजनीतिक दल लामबंद होते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस, राजद, जदयू व वामदल जैसे ज्यादातर राजनीतिक दलों ने कानूनी तौर पर राजनीतिक अधिकारों में हस्तक्षेप और अस्पष्ट करार देते हुए इन दिशानिर्देशों को वापस लेने की मांग उठाई है।
देश में राजनीतिक दलों को चुनावी चंदा देने के मामले में मुख्य सूचना आयोग ने भी पिछले सालों में राष्टÑीय दलों को चंदे की पारदर्शिता बनाये रखने के लिए उसे सार्वजनिक करने के आदेश दिये थे। इसके बाद से ही चुनावी चंदे को लेकर चुनाव आयोग भी दिशानिर्देश तैयार करने में जुट गया था। इसी कवायद में केंद्रीय चुनाव आयोग ने पिछले महीने ही एक अक्टूबर को सभी राजनीतिक दलों को ‘पार्टी फंड एवं चुनाव खर्च में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व’ नामक दिशानिर्देश लागू किये। इन दिशानिर्देशों में 20 हजार रुपये से ज्यादा का चंदा नकद रूप से लेने पर रोक लगाने की भी हिदायत थी,लेकिन इससे ज्यादा चैक के जरिए कोई राजनीतिक दल चंदा ले सकता है। चुनाव आयोग के ये दिशानिर्देश ज्यादातर राजनीतिक दलों को रास नहीं आए,क्योंकि इन दिशानिदेर्शों का सीधा मकसद राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों को मिलने वाले चंदे को हासिल करने में पारदर्शिता लाना है। चुनाव आयोग के जारी हुए इन दिशा निर्देर्शो के बाद ज्यादातर राजनीतिक दल बिफरते नजर आए और चुनाव आयोग के इन दिशानिर्देशों की वैधता और संवैधानिकता पर सवाल खड़े करना शुरू कर दिया और आयोग को सुझाव देकर ऐसे दिशानिर्देशों की न्यायिक समीक्षा करने की वकालत तक की। गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग ने ये दिशानिर्देश पिछले माह एक सर्वदलीय विमर्श के बाद ही जारी किए थे, जिसमें यह नियम बनाया गया था कि किसी राजनैतिक दल को किसी व्यक्ति या कंपनी से 20 हजार रूपए से ज्यादा की राशि नकद के रूप में नहीं लेनी है। इसके बावजूद राजनीतिक दलों ने सवाल खड़े कर दिये हैं।
इन तर्को से दी दलीलें
कांग्रेस की ओर से पार्टी में कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने आयोग को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि ऐसे दिशानिर्देश जारी करने से पहले आयोग को सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाकर उनकी राय लेना चाहिए और इस मुद्दे को कानूनी रूप देने के लिए विधि एवं न्याय मंत्रालय को भेजा जाना जरूरी है। इसी प्रकार का नजरिया अपनाने हुए माकपा महासचिव प्रकाश करात ने भी निर्वाचन आयोग के इन दिशानिर्देशों को पूरी तरह से अस्पष्ट बताया और दलील दी कि राजनीतिक दल जनसभाओं और सड़क पर चंदा संग्रहण अभियान चलाकर अपना फंड जुटाती है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग रसीद देना या हुंडी संग्रहण में चंदा देने वालों को कूपन देना व्यवहारिक नहीं है। माकपा ने इन दिशानिदेर्शों में उपयुक्त बदलाव करते हुए इन दिशानिदेर्शों पर अंतिम निर्णय लेने से पहले राजनैतिक दलों की बैठक बुलाने की वकालत की। वहीं जनता दल-यू के प्रमुख शरद यादव ने भी आयोग के इन दिशानिर्देशों पर आपत्ति जताते हुए दलील दी कि राजनैतिक दल को मिले चंदे की जानकारी लेने का अधिकार चुनाव आयोग को नहीं है। यह दिशानिर्देश हटाकर इस मामले को विचार के लिए संसद में भेजना चाहिए, जहां से इसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। इसी प्रकार राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद ने भी आयोग के इन दिशानिर्देशों को लेकर अपनी दलीलें पेश की और कहा कि जन प्रतिनिधि कानून-1951 में संशोधन के जरिए सिर्फ कार्यपालिका के माध्यम से किए जा सकते हैं और किए जाने चाहिए। किसी कानून के खिलाफ ये बदलाव किसी ऐसे प्राधिकरण के निदेर्शों पर नहीं होने चाहिए, जिसे ऐसे निर्देश देने का अधिकार ही नहीं है। इससे पहले बसपा ने भी इन दिशानिर्देशों को वापस लेने की मांग करते हुए इस मामले में कानूनी संशोधन के लिए सर्वदलीय बैठक की आमसहमति पर जोर दिया।
10Nov-2014

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