बुधवार, 24 दिसंबर 2014

आर्थिक सुधारों के बिलों पर अध्यादेश लाएगी सरकार?

संसद में जीएसटी व बीमा विधेयक समेत कई महत्वपूर्ण बिल अटके
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र की राजग सरकार संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान आर्थिक सुधारों जैसे कई महत्वपूर्ण विधायी कार्यो को पूरा नहीं करा सकी है। इस कारण इस सत्र में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी संशोधन) विधेयक, बीमा कानन(संशोधन) विधेयक, कोयला खान(विशेष उपबंध) विधेयक, भूमि अधिग्रहण, प्रादेशिक ग्रामीण बैंक (संशोधन) विधेयक जैसे कई ऐसे महत्वपूर्ण विधेयक अधर में लटक गये हैं, जिनमें से खासकर जीएसटी विधेयक, बीमा कानून विधेयक और कोयला खान विधेयक पर सरकार अध्यादेश का सहारा ले सकती है?
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान आर्थिक सुधारों के लिए संबन्धित विधेयक मोदी सरकार की प्राथमिकता में शामिल थे, लेकिन सरकार जीएसटी संशोधन विधेयक, क ोयला खान(विशेष उपबंध) विधेयक, मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक-2014, प्रादेशिक ग्रामीण बैंक (संशोधन) विधेयकों को लोकसभा में तो पारित करा चुकी है, लेकिन राज्यसभा में ये विधेयक अटक गये हैं। सबसे महत्वपूर्ण बीमा काूनन(संशोधन) विधेयक को राज्यसभा में पेश किया जाना था, जिसे सदन की प्रवर समिति की रिपोर्ट के बाद केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष के हंगामे में होम होती रही कार्यवाही के कारण लगातार कार्यसूची में होने के बावजूद पेश ही नहीं किया जा सका। इसलिए संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू ने भी ऐसे संकेत दिये हैं कि जिन विधेयकों को संसद में पारित नहीं किया जा सका उनमें महत्वपूर्ण और जरूरी विधेयकों पर अध्यादेश लाकर कानून बनाने का प्रयास किया जाएगा। मसलन भूमि अधिग्रहण, कोयला और बीमा जैसे कानूनों में संशोधन के लिए सरकार के सामने अब अध्यादेश लाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। जबकि लोकसभा में सरकार लोकपाल और लोकायुक्त विधि (संशोधन) विधेयक एवं विद्युत (संशोधन) विधेयक को संसदीय समिति को सौंप चुकी है।
सरकार की मजबूरी
संसद में बीमा, कोयला और जीएसटी जैसे आर्थिक सुधारों वाले विधेयकों को पारित कराने मेें विफल रही मोदी सरकार के सामने अध्यादेश लाने की भी मजबूरी होगी। कोयला अधिनियम संशोधन विधेयक और बीमा अधिनियम संशोधन विधेयक को भी अब तक संसद से पारित नहीं कराया जा सका है। सूत्रों के मुताबिक भूमि अधिग्रहण के लिए सामाजिक आॅडिट की बाध्यता बड़ी कठिनाई बन सकती है, जिसे खत्म कराया जाएगा। जमीन अधिग्रहण में 80 फीसद भूमि स्वामियों की मंजूरी की शर्त को भी हटाने या इसे घटाने पर अहम फैसला हो सका है। आकस्मिक परिस्थितियों के प्रावधान में आमूल तब्दीली के साथ सरकार के अधिकार बढ़ाए जा सकते हैं। रक्षा परियोजनाओं में निजी हिस्सेदारी के संबंध में भी अधिग्रहण शर्तों को सरल बनाये जाने की शर्तों को सरल बनाये जाने की संभावना है। विदेशी सहयोग से प्रस्तावित रक्षा से जुड़ी परियोजनाओं की स्थापना में दिक्कत आ सकती है।
चौधरी बीरेन्द्र की टीस
ऐसी स्थिति में ही यह कारण बना कि भूमि अधिग्रहण विधेयक में को लेकर वैकल्पिक उपाय तलाशने की बाबत ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ने भूमि संसाधन विभाग के आला अफसरों के साथ सोमवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात की है। संप्रग सरकार ने भूमि अधिग्रहण का जो कानून पारित कराया है, मौजूदा सरकार को इसमें तमाम खामियां दिख रही हैं। खासतौर से बुनियादी ढांचे वाली परियोजनाओं के लिए भूमि उपलब्धता बहुत कठिन हो गई है। सूत्रों के मुताबिक सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए सामाजिक आॅडिट की बाध्यता जैसी बड़ी कठिनाई को खत्म करना चाहती है। वहीं जमीन अधिग्रहण में 80 फीसद भूमि स्वामियों की मंजूरी की शर्त को भी हटाने या इसे घटाने पर अहम फैसला सरकार ले चुकी है, लेकिन संसद में इसमें संशोधन नहीं हो पाया तो सरकार अब इसके विकल्प की तलाश में है। ऐसी संभावना है कि सरकार आकस्मिक परिस्थितियों के प्रावधान में आमूलचूल परिवर्तन के साथ अपने अधिकार बढ़ाने का प्रावधान् के लिए अध्यादेश ला सकती है।
24Dec-2014

सोमवार, 22 दिसंबर 2014

संसद में मोदी सरकार के दो दिन चुनौती से कम नहीं!

धर्मांतरण पर राज्यसभा में हंगामे बरकरार हैं आसार
संसद में आज पेश होंगे बीमा विधेयक व लोकायुक्त विधेयक!
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
संसद के शीतकालीन सत्र के दो दिन शेष रह गये हैं और सोमवार को उच्च सदन में बीमा कानून(संशोधन) विधेयक और कोयला खान(विशेष उपबंध) विधेयक पेश करने और उन्हें पारित कराना मोदी सरकार के लिए आसान राह नहीं है। इसका कारण साफ है कि उच्च सदन में धर्मांतरण के मुद्दे पर विपक्षी दलों का हंगामा बरकरार रहने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। वहीं सोमवार को लोकसभा में लोकपाल और लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक पेश होना है। मसलन संसद में काम कराने के लिए मोदी सरकार के पास केवल दो दिन शेष बचे हैं, जो चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं।
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान हालांकि मोदी सरकार विधायी कार्यो को निपटाने में पिछले एक दशक में रिकार्ड कायम करने की उम्मीद लगाए हुए है, लेकिन लोकसभा में तो सरकार बहुमत में होने के कारण करीब डेढ़ दर्जन विधेयकों को मंजूर कराने में सफल रही, लेकिन लोकसभा में पारित विधेयकों और उसके अलावा सरकार की प्राथमिकता वाले बीमा कानून कानून(संशोधन) विधेयक को राज्यसभा में पारित कराना एक बड़ी चुनौती है। इसका कारण है कि पिछला सप्ताह लगभग धर्मांतरण के मुद्दे पर हंगामे की भेंट चढ़ चुका है, जिसके कल सोमवार को भी थमने के आसार नहीं हैं। सोमवार को संसद के दोनों सदनों में सरकार के एजेंडे में बहुत काम है, लेकिन उच्च सदन में धर्मांतरण का बवाल सरकार के विधायी कार्यो में बाधक बना हुआ है, यही कारण है कि राज्यसभा में अभी तक करीब दस विधेयक ही पारित हो सके हैं।
उच्च सदन में मुश्किल में सरकार
सोमवार को जब संसद की कार्यवाही शुरू होगी तो लोकसभा में सरकार के सामने विधायी कार्यो में मुख्य रूप से लोकपाल एवं लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (संशोधन) विधेयक के अलावा राज्यसभा में लाये गये विनियम (संख्या-4) विधेयक जैसे विधायी कार्य हैं। जबकि राज्यसभा में बीमा कानून कानून(संशोधन) विधेयक के अलावा लोकसभा में पारित हो चुके राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कानून (विशेष प्रावधान संशोधन) विधेयक-2014, सार्वजनिक भवन (अनधिकृत कब्जाधारियों को हटाने) विधेयक 2014, कोयला खान(विशेष उपबंध) विधेयक-2014, मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक-2014 के साथ श्रम संबन्धी कारखाना (संशोधन) विधेयक-2014 भी सोमवार की कार्यसूची में शामिल किये गये हैं। इसके अलावा उच्च सदन में सरकार के एजेंडे में सोमवार की कार्यसूची में ऊर्जा, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा, राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना, योजना आयोग की मौजूदा आर्थिक स्थिति और नितिगत विकल्प संबन्धी प्रतिवेदन के साथ ही रक्षा मंत्रालय के रक्षा बजट, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली, सूचना प्रौद्योगिकी, संचार व सूचना प्रौद्योगिकी, डाक विभाग की अनुदान मांगे जैसे मुद्दे भी शामिल हैं। राज्यसभा में इन विधायी कार्यो को विपक्षी दलों की धर्मांतरण के मुद्दे पर जारी जिदबंदी के सामने आगे बढ़ाना केंद्र सरकार के लिए आसान राह नहीं लगती।
सरकार को बड़ी उम्मीदें
संसद के शीतकालीन सत्र के शेष दो दिनों में मोदी सरकार को बीमा विधेयक जैसे कई अन्य विधायी कार्यो को पूरा करने की उम्मीद है और सरकार का तर्क है कि विपक्षी दलों के मुद्दे को हल करने के प्रयास किये जा रहे हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली की चिंता वित्तीय विधेयको को लेकर है, लेकिन जेटली का कहना है कि सरकार बीमा क्षेत्र में सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है और इसमें राजनीतिक अवरोध को आड़े नहीं आने दिया जाएगा। जेटली और संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू को उम्मीद है कि बीमा विधेयक पर चर्चा के बाद पारित करा लिया जाएगा। गौरतलब है कि बीमा विधेयक को संसद की स्थायी समिति और राज्यसभा की प्रवर समिति मंजूरी दे चुकी है, जिसे अब केवल संसद की मंजूरी का इंतजार है।
22Dec-2014

समाजवादी जनता दल की राह नहीं आसान!

आज होने वाला शक्ति प्रदर्शन करेगा भविष्य तय
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
लोकसभा में मोदी मैजिक के सामने धराशाही हुए गैर भाजपाई व गैर कांग्रेसी दलों ने बिछड़े हुए जनता परिवार के कुनबे को एकजुट करके एकीकृत दल के रूप में समाजवादी जनता दल बनाने की कवायद की। सोमवार को धरना प्रदर्शन करके शक्ति प्रदर्शन करके ये दल मोदी सरकार के खिलाफ हुंकार भरेंगे, लेकिन इस नए विकल्प की राह आसान नहीं लगती?
समाजवादी पार्टी की अगुवाई में सपा, राजद, जद-यू, जद-एस, इनेलो और सजपा जैसे गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी दलों के नेताओं ने 22 दिसंबर यानि कल सोमवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर शक्ति प्रदर्शन करके एकजुटता के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोकसभा चुनाव के दौरान किए गए वादों का हिसाब मांगने आ रहे हैं। इससे पहले दो बैठकों में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान संसद के दोनों सदनों में एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाकर सरकार को घेरने का दम भरने का दावा करने के बावजूद अपने
मिशन से भटके ये दल फिर से जनता परिवार के कुनबे को एक नये एकीकृत राजनीतिक दल का रूप देने का ऐलान कर सकते हैं और इस संयुक्त दल का नाम समाजवादी जनता दल का ऐलान कर सकते हैं जिसका मसौदा तैयार करने के लिए पिछली बैठक में सपा प्रमुख मुलायम सिंह को सौंपा गया था। हालांकि अभी भी इस एकजुटता के विकल्प में उसी तरह के पेंच फंसे नजर आ रहे हैं जिनके कारणों से देश की सियासत के इतिहास में आज तक तीसरा मोर्चा या तीसरे विकल्प की हांडी सियासी चूल्हे पर पक नहीं पायी है। इसलिए यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए कि नए एकीकृत दल ‘समाजवादी जनता दल’ के गठन की राह इतनी आसान नहीं है, जिसका अनुमान ये दल मानकर चल रहे हैं। राजनीतिक गलियारे में इस विकल्प को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं जिनमें एक ऐसा सवाल भी है कि क्या नया दल मौजूदा केंद्र सरकार की बदली हुई विकास केंद्रित राजनीति के सामने चुनौती पेश कर सकेगाा? क्या इन नेताओं के पास मौजूदा आर्थिक नीति का कोई वैकल्पिक मॉडल है। नए समाजवादी जनता दल की ऐसी ही चुनौतियों पर गौर की जाए तो चारो तरफ झोल ही झोल नजर आते हैं।
नेतृत्व का वर्चस्व
नए एकीकृत समाजवादी जनता दल के गठन बनाने की कवायद में जुटे इन सभी गैर भाजपाई व गैर कांगे्रसी दलों के सभी प्रमुख नए दल का मुखिया बनने की जुगत में हैं और कोई भी नेता अपने राष्टÑीय नेतृत्व के वर्चस्व को बनाने का प्रयास करेगा। इसी प्रकार के वर्चस्व के कारण आज तक देश में तीसरी ताकत एकजुट होने से पहले ही बिखरती पाई गई हैं। यह तो राजनीति का इतिहास गवाह है कि जनता परिवार में कई बार टूटन आईं और फिर कई दल इकठ्ठे हुए और फिर अलग-थलग हो गये। यहां तो नरेन्द्र मोदी की तर्ज पर पीएम बनने का दावा कर रहे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, सपा प्रमुख मुलायम सिंह और लालू जैसे नेता इस एकजुटता के आयने पर है। ऐसे में सवाल यहां भी है कि यदि किसी तरह समाजवादी जनता दल का गठन उभर कर सामने आ भी गया तो उसका नेतृत्व कौन करेगा? क्या मुलायम सिंह इसके नेता होंगे और अन्य दलों के नेता क्या मुलायम सिंह पर भरोसा कर पाएंगे? ऐसे सवाल इसलिए भी जायज हैं क्यो कि सियासी गलियारों में मुलायम सिंह को सर्वाधिक गैर भरोसेमंद नेता बताया जाता रहा है। 2014 के आम चुनावों से पहले मुलायम सिंह यूपीए सरकार के खिलाफ कई बार मुद्दों पर अलग गठजोड़ बनाने के बाद पलटते देखे गये हैं, लेकिन हालांकि अब केंद्र में यूपीए की सरकार नहीं है और इस बात की संभावना कम है कि मुलायम भाजपा के साथ जाएंगे।
22Dec-2014

रविवार, 21 दिसंबर 2014

राग दरबार

ओ.पी. पाल 
अजब है भारत का दिली कोना
धर्मांतरण पर जारी सियासी गर्महाट में सभी जानते हैं कि धर्म परिवर्तन पर संविधान में खासकर शादी-ब्याह करने के मामले में जायज है, लेकिन आगरा में धर्मांतरण की घटना में विपक्ष जबरन और प्रलोभन का प्रतीक करार दे रहा है। इसके लिए संसद में जो सियासी बवाल जारी है उसमें सत्ता और विपक्ष दोनों ही जबरन धर्मांतरण को संविधान के विपरीत बताकर कानून बनाने की बात कर रहे है। राज्यसभा में तो धर्मपरिवर्तन की सियासी गर्मी इस पूरे सप्ताह खत्म होने का नाम ही नहंी ले सकी। इस मुद्दे पर बहराल सत्ता और विपक्ष उच्च सदन में असमंजस की स्थिति में नजर आए हैं? चाहे वह चर्चा कराने या फिर प्रधानमंत्री के बयान की मांग पर अडिग विपक्ष की जिदबंदी। आम गलियारें में यही चर्चा हो रही है कि अजब है अपने भारत का दिल उत्तर प्रदेश! जहां की गतिविधियां संसद के गलियारे से होते हुए अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियां बन जाती हैं, चाहे वह बलात्कार जैसे संगीन अपराधों का मामला हो या फिर धर्म परिवर्तन का मुद्दा। मसलन पांच-छह महीने पहले ऐसा लगता था कि तमाम दुनिया-जहान के बलात्कारी यूपी में आ धमके हैं। ऐसा कोई दिन नहीं रहा, जब अखबार की सुर्खियां बलात्कार की खबरें न बनती हों। बलात्कार के बाद पीडिताओं की हत्या कर शव पेड़ पर लटकाने की खबरें आने लगीं। फिर क्या पुलिस पेड़ों से लाशें उतारने में व्यस्त हो गयी। बलात्कार थमे तो लव जिहाद का तराना शुरू हुआ। योगी आदित्यनाथ ने तो अपना पूरा शोध ही पेश कर दिया। उपचुनाव निपटने के साथ ही लवजिहाद राग भी बेसुरा हो गया। फिर बात शुरू हो गयी ताजमहल की। ऐसा लगा कि ताजमहल को जमींदोज कर कोई शाहजहां तो कोई मुमताज की कब्र उखाड़ ले जाएगा। खैर इस हंगामें पर भी जब किसी ने कान नहीं दिए, तो दीन-ईमान के लेनदेन का बाजार ऐसा गर्म हुआ कि ताज नगरी में ही धर्म परिवर्तन का मुद्दा ठिठुरती ठंड व भी शीतकालीन सत्र में संसद में बेहद गर्मी पैदा कर रहा है। संसद सत्र दो दिन और चलेगा जिसमें धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाले सियासी दल इस मुद्दे को किस मुकाम पर लेजाकर छोड़ेंगे या फिर सत्ता पक्ष इसे विराम लगाने का कोई रास्ता निकालता है यह तो अभी भविष्य के गर्भ में ही है।
ढ़ाह दो नफरत की दीवारें
दुनियाभर में ऐसी परंपरा तेजी से जन्म ले रही है कि इंसा नही इंसायित का दुश्मन बनता जा रहा है। बाते तो सियातदानों में बड़ी बड़ी हो रही हैं, लेकिन भारत की सियासत में कुछ अजीब सा ही है, जहां केवल नेताओं का लक्ष्य सियासत के जरिए जनता को अपने पक्ष में गुमराह करने जैसा है। आजकल देश में सत्तासीन राजग या मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए ऐसे सियासतदानों ने दूसरे पक्ष ने कोई न कोई बहाना तलाशकर एकजुटता का प्रदर्शन करने की मुहिम चलाई हुई है, लेकिन देश की जनता व समाज ऐसी सियासत को शायद सबसे गिरी नजर से उसे देखता है जिसका कोई दीन-ईमान न हो। मसलन कुछ राजनीतिक दलों की आदत बन गई है कि सरकार को टेंशन देते रहना है। दरअसल जमाने की बलिहारी भी देखिए ऐसे लोगों की इन दिनों एकाएक कीमत बढ़ी हुई है कोई इन्हें घर बुलाने को आतुर तो कोई इन्हें जहां हैं वहीं संभाले रखने को फिक्रमंद। क्या करोगे इन्हें बंटोर कर? कुनबा बढ़ा भी लोगे तो क्या हासिल हो जाएगा? जिसके पास जितने हैं उन्हें ही सुख-चैन से रहने का इंतजाम कर लो। हाथ-पांव मारने का बहुत ही ज्यादा शौक है तो गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा और बेकारी से बाहर निकलने का जतन करो। दीवारें तोडनी है तो नफरत की दीवारें ढहा दो। हर इंसान में अपना लहू और उसके घड़कते दिल को अपना महसूस करो। फिर जो जहां और जैसा भी है, अपना ही भाई लगेगा।
बहादुर बनाम धोखेबाज
हरियाणा में कुछ दिनों पहले ऐसी ही घटना एक बस में घटी तो वह मीडिया की सुर्खिंया भी बनी रही तो राज्य की सरकार ने भी युवकों की पिटाई करने वाली हरियाणा की दो सगी बहनो को आनन-पफानन में बहादुरी का पुरस्कार देने का ऐलान कर दिया, लेनि जांच पड़ताल शुरू हुई तो बस के प्रदर्शियों के बोलों ने हकीकत उगलनी शुरू कर दी और इस कहानी की पटकथा लिखनें वालों के माथे पर पसीने आना शुरू हो गये। इस पर हरियाणा सरकार भी चैकस हुई और पुरस्कार देने की घोषणा के बजाए कहा जांच के बाद सरकार कोई निर्णय लेगा। तभी तो चर्चा शुरू हुई कि ओ रोहतक की छोरियो, सच बताना तुम बहादुर हो या धोखेबाज? जब तुम टीवी पर उन लड़कों को पीट रही थीं, और समाचार वाचक बता रहा था कि उन लड़कों ने तुम्हारे साथ छेड़खानी की थी, तो सभी को लगा तुम तो झांसी की रानी का अवतार हो। फिर उलटी खबर आई। बदतमीजी उन लड़कों ने नहीं, तुमने की थी। झगड़े की वजह लड़कों की छेड़खानी नहीं, सीट का झगड़ा था। तुमने ही बदतमीजी की और लड़कों की पिटाई भी कर दी। जल्दी बताओ छोरियो, सच क्या है? अगर दूसरी खबर सच है तो तुम झांसी की रानी तो छोड़ो, फूलन देवी कहलाने के काबिल भी नहीं हो।
21Dec-2014

इसलिए सुर्खियों में है जीएसटी!

आम उपभोक्ताओं को होगा लाभ
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
लोकसभा में केंद्र सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी संशोधन) विधेयक को पेश कर दिया है, जिसका जो पिछले कई सालों से वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी चर्चा में रहा और इसका इंतजार खत्म होने की राह पर है। इस विधेयक को संसद की मंजूरी और फिर राष्टÑपति की मुहर लगते ही आम जनता को देशभर में पेट्रोल-डीजल व अन्य एक जैसे सामान का दाम एक ही हो जाएगा।
सरकार का मकसद देश में वस्तु और कर में एक रूपता लाना है। हां इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता जहां इस विधेयक का लाभ होगा तो कहीं न कहीं इसके नुकसान को भी आंका जा सकेगा। सूत्रों के अनुसार जीएसटी लागू होने से लाभों का आकलन किया जाए तो देश की जीडीपी दो प्रतिशत फीसदी तक बढ़ सकती है?
और वहीं कर चोरी पर लगाम लगने के साथ कर वसूली भी बढ़ना तय है। सरकार का मकसद है कि जीएसटी के जरिए कर के स्वरूप में पारदर्शिता आए यानि भेदभाव या असमानता किसी परिदृश्य पर न हों। विशेषज्ञों का तो मानना है कि इससे कहीं हद तक कर विवादों में भी कमी आएगी और लंबित विवादों का निपटारा सहजता से किया जा सकेगा। इसका कारण है कि जीएसटी लागू होने से कर कानूनों और विनियमन जैसे मामलों से छुटकारा मिलेगा। इस विधेयक में प्रावधानों के मुताबिक वस्तु और कर संबन्धी आॅनलाइन कर दिया जाएगा। मसलन बिक्रीकर, सेवाकर और उत्पादन शुल्क की जगह जीएसटी ले लेगा। जीएसटी लागू होने के बाद सरकार का कर सुधारों के लिए यह विधेयक मिल का पत्थर साबित होगा, क्योंकि जीएसटी के तहत पूरे देश में एक ही दाम पर कर लागू होगा, तो एक वस्तु देशभर में एक ही दाम पर मिल सकेगी। विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक जीएसटी लागू होने के बाद चुंगी,केंद्रीय बिक्रीकर (सीएसटी), राज्य स्तर के बिक्रकर या वैट, प्रवेश कर, लॉटरी टैक्स, स्टैप ड्यूटी, टेलीकॉम लाइसेंस फीस, टर्नओवर टैक्स, बिजली के इस्तेमाल या बिक्री पर लगने वाले टैक्स, सामान के ट्रांसपोटेर्शन पर लगने वाले सभी करों का खात्मा हो जाएगा। इस व्यवस्था में वस्तु और सेवा की खरीद पर अदा किए गए जीएसटी को उनकी आपूर्ति के समय ही समायोजित कर दिया जाएगा। ऐसा प्रस्ताव वर्ष 2006-07 में तत्कालीन वित्त मंत्री एवं मौजूदा राष्टÑपति प्रणब मुखर्जी ने भी दिया था, जिसके बाद यूपीए सरकार में वित्त मंत्री पी. चिदंबरन ने जीएसटी के कदम को आगे बढ़ाया, लेकिन 15वीं लोकसभा भंग होने के बाद इसका अस्तित्व खत्म होने के बाद राजग सरकार ने इसमें आगे कदम बढ़ाए हैं।
राज्यों की चिंताएं
दूसरी ओर जीएसटी को लेकर राज्य सरकारों में चिंता में एक महत्वपूर्ण सवाल यह बना हुआ है कि टैक्स स्लैब क्या होगा और नुकसान हुआ तो उसकी भरपाई कौन करेगा। विशेषज्ञों के मुताबिक जीएसटी का सिस्टम पूरी तरह तैयार नहीं है। इसलिए राज्य और केंद्र के बीच टैक्स बंटवारे को लेकर भी खामी सामने आ सकती है। कर बढ़ाने या घटाने का फैसला कौन करेगा इसका भी विधेयक में कोई जिक्र नहीं है। हां इतना जरूर है कि जीएसटी लागू होने से राज्यों को कर वसूलने की छूट खत्म हो जाएगी। इसलिए राज्यों की
मांग है कि सरकार इस मुद्दे का कोई हल निकाले, या फिर उन्हें भारी-भरकम मुआवजा दे। पिछले सप्ताह ही राज्यों के वित्त मंत्रियों की अरुण जेटली के साथ हुई बैठक में राज्य सरकारों ने मांग की थी कि पेट्रोलियम और प्रवेश कर को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाए। हालांकि सरकार कह चुकी है कि जीएसटी लागू होने के बाद भी इस विधेयक में संशोधन किये जा सकेंगे।
20DEc-2014

चर्चा के जवाब को लेकर फंसा पेच

धर्मांतरण पर कौन देगा जवाब पीएम या फिर गृहमंत्री
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
उच्च सदन में धर्मांतरण के मुद्दे पर चर्चा कराने के लिए 17 दिसंबर तय हो चुकी थी, लेकिन विपक्ष के दिन प्रतिदिन बदलते पैंतरों और हंगामे के कारण गुरूवार को भी चर्चा नहीं हो सकी। इसका कारण है कि इस मुद्दे पर चर्चा का जवाब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देंगे या फिर गृहमंत्री राजनाथ सिंह इसी पशोपेश में सरकार ही नहीं उच्च सदन की पीठ भी है। जबकि सरकार पीएम के जवाब की मांग को खारिज कर चुकी है और सरकार गृहमंत्री को इस मुद्दे जवाब के लिए अधिकृत अब सोमवार को चर्चा कराने के लिए तैयार है।
आगरा में कथित धर्मांतरण के मसले पर राज्यसभा में विपक्षी दलों के लगातर चार दिन के हंगामे के बाद सरकार ने कहा कि वह सोमवार से ही इस मसले पर चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन इसका जवाब प्रधानमंत्री नही, बल्कि संबंधित विभाग के मंत्री यानी गृह मंत्री राजनाथ सिंह देंगे। विपक्ष की इस मुद्दे पर कभी पीएम के जवाब तो कभी चर्चा के दौरान पीएम की मौजूदगी की मांग भी इस मुद्दे को सरकार और विपक्ष की तल्खी बढ़ा रही है। यही नहीं सरकार विपक्ष पर और विपक्ष पर इस मुद्दे पर चर्चा से भागने का आरोप-प्रत्यारोप भी लगाने में पीछे नहीं है। हालांकि गुरुवार को उच्च सदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में ही सदन के नेता और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विपक्ष को आडे हाथों लेते हुए कहा कि विपक्ष कैसे यह तय कर सकता है कि किस नियम के तहत चर्चा होगी और कौन जवाब देगा। जेटली ने तो प्रधानमंत्री की मौजूदगी में ही चर्चा कराने पर भी जोर दिया था, लेकिन लेकिन उस समय विपक्ष सहमत होता नजर नहीं आया। सहमति बनती न देख सभापति हामिद अंसारी ने भोजनावकाश के बाद 2 बजे तक के लिए नियम 267 के तहत चर्चा भी शुरू करा दी, जिस पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बयान देना भी शुरू कर दिया और उप सभापति पीजे कुरियन पी. राजीव को चर्चा शुरू कराने के लिए बार-बार कहते भी रहे, लेकिन कांग्रेस के आनंद शर्मा ने खड़े होकर फिर पैंतरा बदला और चर्चा के दौरान पीएम की मौजूदगी की मांग की और कांग्रेस सदस्यों ने आसन के करीब आकर हंगामा शुरू कर दिया।
कांग्रेस ज्यादा असमंजस में धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ज्यादा असमंजस में नजर आ रहा है, जो चर्चा कराने की मांग पर अन्य दलों के समर्थन पर इस सप्ताह सदन की कार्यवाही बाधित करने पर आमदादा है। दो बजे बाद जब कुछ देर के लिए सदन स्थगित हुआ तो सरकार व विपक्ष के बीच रास्ता निकालने पर बात हुई, लेकिन आनंद शर्मा फिर पैंतरा बदलते नजर आए और सदन में कहा कि अब इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बिना बात नहीं बनेगी, तो इसके जवाब में संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि कांग्रेस के रहमोकरम पर सरकार नहीं बनी, सरकार खुद तय करेगी कि कौन सदन में होगा और कौन जवाब देगा।
19Dec-2014

मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

सार्वजनिक भूमि अतिक्रमण रोकने एक पड़ाव पार!

लोकसभा ने दी सार्वजनिक परिसर के संशोधन विधेयक को मंजूरी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में सार्वजनिक भूमियों और भवनों पर अवैध रूप से कब्जे और अतिक्रमण जैसे मामलों से सख्ती से निपटने के लिए कानून में सख्त प्रावधान करने की तैयारी का सरकार ने एक पड़ाव पार कर लिया है। मसलन लोकसभा में सार्वजनिक भवन (अनधिकृत कब्जाधारियों को हटाने) विधेयक-2014 को मंजूरी मिल गई है।
संसद का शीतकालीन सत्र के चौथे सप्ताह में प्रवेश होते ही सोमवार को शहरी विकास मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने सार्वजनिक भूमि एवं भवनों पर अवैध कब्जा हटाने के लिए सख्त कानून बनाने वाले सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों को हटाने) विधेयक-2014 पेश किया। इस विधेयक की चर्चा की शुरूआत कांग्रेस की असम के सिचर की सांसद सुष्मिता देव ने की और चर्चा के बाद नायडू ने जवाब देकर इस विधेयक के उद्देश्य और और राष्टÑ व जनहित में मकसद की जानकारी दी। इसके बाद इस विधेयक को लोकसभा में ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। खास बात यह रही कि कांगे्रेस जैसे कई विपक्षी दलों ने इस विधेयक के समर्थन में सरकार द्वारा उठाए गये कदमों को उचित ठहराया। इस विधेयक में यह चौथा संशोधन पेश करके पारित कराया गया। इससे पहले सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत लोगों की बेदखली) अधिनियम 1971 सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा जमाए अनधिकृत लोगों की बेदखली की व्यवस्था को चुस्त बनाने के लिए चौथा संशोधन पारित किया गया है। इससे पहले 1980, 1984, 1994 में संशोधन किया गया है।
अदालती पेंच में फंसा था विधेयक
इससे पहले सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत लोगों की बेदखली) संशोधन विधेयक लोकसभा में यूपीए सरकार द्वारा 23 नवंबर 2011 को पेश कर दिया था, लेकिन तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने पांच जनवरी 2012 को इस विधेयक को शहरी विकास पर संसद की स्थाई समिति को जांच पड़ताल के लिए भेजा दिया और समिति ने भी 14 मई 1012 को अपनी कुछ सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट संसद में पेश कर दी, लेकिन तभी इसी दौरान उच्चतम न्यायालय ने एस डी बंदी बनाम डिवीजनल ट्राफिक आॅफीसर कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम तथा अन्य के मामले में अपील संख्या 4064/2004 में 5 जुलाई 2013 को अपने फैसले में सार्वजनिक स्थानों से (अनधिकृत लोगों की बेदखली) पर छूट में तेजी लाने के बीस सुझाव दिये। इस प्रक्रिया के चलते ही 15वीं लोकसभा भंग हो गई और संशोधन विधेयक-2011 अधर में लटका रह गया था। अब सोलहवीं लोकसभा में मोदी सरकार ने संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों और उच्चतम न्यायालय के सुझावों पर अमल करते हुए सार्वजनिक परिसर(अनधिकृत लोगों की बेदखली) अधिनियम 1971 की धारा 2, 4, 5, 7 तथा 9 में उचित संशोधन का प्रस्ताव नए संशोधन विधेयक-2014 का मसौदा तैयार करके इसे लोकसभा ने पारित करा लिया है।
दायरे में आई मेट्रो रेल परियोजना
इस संशोधन विधेयक के पारित होने से दल्ली मेट्रो रेल कापोर्रेशन यानि डीएमआरसी के अलावा भविष्य में आने वाले मेट्रो रेल की संपत्तियों तथा नई दिल्ली पालिका परिषद यानि एनडीएमसी की संपत्तियों को सार्वजनिक परिसर में अनधिकृत लोगों की बेदखली अधिनियम 1971 भी दायरे में शामिल हो गया है।
16Dec-2014

सोमवार, 15 दिसंबर 2014

हंगामे में होम संसद में बहुत हुआ काम!

लोकसभा में 13 व राज्य सभा में नौ बिल पास
सरकार को उम्मीद बनेगा विधायी कामकाज का रिकार्ड
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
कुछ विवादित मुद्दों पर हंगामे में होम होती रही संसद में मोदी सरकार को मौजूदा शीतकालीन सत्र में विधायी कार्य करने का रिकार्ड बनने की उम्मीद है, लेकिन सरकार के सामने खासकर राज्यसभा में बीमा, कंपनी, कोयला खान जैसे कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। सरकार अभी तक एक पखवाड़े में तेरह विधेयक पारित कराने में सफल रही है।
संसद के 24 नवंबर से आरंभ हुए शीतकालीन सत्र में 12 दिसंबर तक 15 दिनों की बैठक हो चुकी है, जिसमें लोकसभा में तेरह और राज्यसभा में नौ विधेयकों को पारित कराने में सरकार सफल रही है। संसद में ऐसे कई विवादित मुद्दे सामने आए जिसमें विपक्ष ने सरकार को घेरकर जमकर हंगामा करके दोनों ही सदनों की कार्यवाही बाधित भी की है। इसके बावजूद विधायी कार्यो की गति को देखते हुए सरकार ने उम्मीद जताई है कि एक दशक बाद संसद के शीतकालीन सत्र में विधायी कार्यो के निपटान का रिकार्ड कायम होगा। लोकसभा में पहले पारित और चार विधेयकों को राज्य सभा में चर्चा के बाद पारित कराने की चुनौती होगी। वहीं उच्च सदन की कार्य कार्य मंत्रणा समिति ने अपहरण रोधी (संशोधन) विधेयक-2014 और सार्वजनिक भवन विधेयक-2014 के अलावा पेट्रोल और डीजल पर मूल आबकारी शुल्क में वृद्धि के लिए 2 दिसंबर 2014 के केंद्र सरकार की अधिसूचना को रद्द और संशोधित करने से संबंधित दो प्रस्तावों पर चर्चा का समय आवंटित कर दिया है।
यह सप्ताह महत्वपूर्ण
सोमवार 15 दिसंबर से संसद के शीतकालीन सत्र का चौथा सप्ताह सरकार के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण होगा, कि उसे सरकार बीमा कानून (संशोधन) विधेयक-2008, कंपनी(संशोधन) विधेयक 2014 तथा कोयला खान(विशेष उपबंध) विधेयकों जैसे विधेयकों को दोनों सदनों में पारित कराने के लिए पेश करने हैं, हालांकि कोयला खान विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है, लेकिन राज्यसभा में उसकी राह आसान नहीं है। इसी दौरान संसद के दोनों सत्रों में लोकपाल और लोकायुक्त संशोधन विधेयक 2014 पर भी विचार किया जा सकता है। लोकसभा में पारित हो चुके कोयला खान विधेयक के अलावा विनियोजन विधेयक-2014, भुगतान और प्रणाली(संशोधन) विधेयक तथा निरस्त करना (द्वितीय संशोधन)विधेयक को अभी राज्यसभा की मंजूरी का इंतजार है। बाकी नौ विधेयक जिन्हें मौजूदा सत्र के एक पखवाड़े में दोनों सदनों की मंजूरी मिल चुकी है उनमें दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (संशोधन) विधेयक-2014, श्रम कानून (कुछ प्रतिष्ठानों द्वारा रिटर्न जमा कराने और रजिस्टर रखने से छूट) संशोधन विधेयक-2014, वस्त्र उपक्रम (राष्ट्रीयकरण)कानून (संशोधन और वैधता)विधेयक-2014, मर्चेंट शिपिंग (संशोधन) विधेयक, मर्चेंट शिपिंग (द्वितीय संशोधन) विधेयक-2014, संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश (संशोधन) विधेयक-2014, योजना और वास्तुकला विधेयक-2014,केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2014 तथा भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान विधेयक-2014 शामिल है।
इनके भी पेश होने की संभावना
मौजूदा सत्र के बाकी दिनों में लोकसभा में सरकार द्वारा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक संशोधन विधेयक-2014, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कानून (विशेष प्रावधान संशोधन) विधेयक-2014, सार्वजनिक भवन (अनधिकृत कब्जाधारियों को हटाने) विधेयक 2014, विमान अपहरण रोधी (संशोधन) विधेयक-2014 और वेयर हाऊसिंग कापोर्रेशन (संशोधन) विधेयक-2014 भी पारित कराने के लिए पेश किये जाने हैं।
15Dec-2014

रविवार, 14 दिसंबर 2014

गंगा संरक्षण की दिशा में बढ़े नए कदम

सचिवों के समूह की सिफारिशों पर कार्यक्रम को दिया अंतिम रूप
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार के गंगा संरक्षण अभियान को एक जनांदोलन के रूप में चलाने के लिए केंद्र सरकार ने सचिवों के समूह की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए गंगा संरक्षण अभियान को अंतिम रूप दे दिया है।
केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार ने गंगा संरक्षण अभियान को एक जनांदोलन के रूप में चलाने का ऐलान अपने एजेंडे में प्रमुखता से रखा हुआ है, जिसके लिए केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती द्वारा इसके लिए कार्यक्रम शुरू करने हेतु तकनीकी और अन्य मानवीय पहलुओं को दृष्टिगत रखते हुए जल संसाधन समेत अन्य केई मंत्रालयों के सचिवों के एक समूह गठित किया था, जिसकी रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए सरकार ने उसकी सिफारिशों के आधार पर गंगा संरक्षण कार्यक्रम को अंतिम रूप दे दिया है। इसके लिए जल संसाधन मंत्रालय ने तीन समूह, सात उद्देश्य और 21 बिन्दु शामिल करके इसके लिए नए कदम बढ़ाने का निर्णय किया है। गंगा और यमुना की सफाई सुनिश्चित करने के लिए सीडब्ल्यूसी विशेषज्ञों की 41 टीमों ने इन नदियों में खुले नालों के गिरने के प्रभाव और सीवेज प्रशोधन संयंत्रों (एसटीपी) की स्थिति का जायजा लेने के लिए कई स्थानों का दौरा किया। नए एसटीपी स्थापित करने और मौजूदा एसटीपी के आधुनिकीकरण के लिए उपायों के बारे में सलाह देने के लिए तीन विशेषज्ञ टीम गठित की गई हैं। जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक ये समितियां अब तक 18 प्रमुख सुझावों की जांच पड़ताल कर चुकी हैं। नदी के आगे के भाग के विकास और घाटों के सौन्दर्यीकरण के लिए डीपीआर ने दिल्ली और हरिद्वार में इस तरह के दो घाट तैयार किए हैं। मथुरा, वृंदावन और अन्य स्थानों पर पीपीपी प्रणाली में घाटों के विकास के लिए जल्द ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा। गंगा संरक्षण कार्यक्रम का समुचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए गंगा कार्यबल गठित करने का निर्णय लिया गया है। रक्षा मंत्रालय इसके लिए श्रमशक्ति उपलब्ध कराएगा।
एक और रिपोर्ट का इंतजार
गंगा के अविरल प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए गठित मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों और सात आईआईटी के संकायों की एक समिति इस महीने के अंत तक अपनी अंतिम रिपोर्ट सौपेगी। उमा भारती ने केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूडी) को गैर मानसून सीजन के दौरान गंगा, यमुना और उसकी सहायक नदियों के पास जलाश्यों का निर्माण करने के लिए योजना तैयार करने के निर्देश दिए।
14Dec-2014

बुधवार, 10 दिसंबर 2014

उलटा पड़ा साध्वी मुद्दे पर निंदा प्रस्ताव का दावं!

उलटा पड़ा साध्वी मुद्दे पर निंदा प्रस्ताव का दावं!
बदजुबानी पर भाजपा व तृणमूल कांग्रेस आमने-सामने
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
संसद में सरकार की घेराबंदी करने के लिए विपक्ष की जिद के कारण बदजुबानी पर एक ऐसी परंपरा ने जन्म लिया जो अब विपक्ष में खासकर तृणमूल को उलटी पड़ती नजर आ रही है। केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति की एक टिप्पणी पर विपक्षी दलों ने कई दिन तक संसद खासकर राज्यसभा निंदा प्रस्ताव आने तक नहीं चलने दी।
संसद के शीतकालीन सत्र में तृणमूल कांग्रेस ने तो पहले ही दिन से कालेधन, मनरेगा और फिर केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति के एक विवादित बयान को मुद्दा बनाकर विपक्ष की लामबंदी में सरकार का विरोध करने में अन्य दलों से आगे जाकर नए-नए अंदाज में सदन और संसद से बाहर प्रदर्शन कर सरकार का विरोध किया। विपक्ष का सरकार के खिलाफ साध्वी के मुद्दे पर यह विरोध और संसद में हंगामा उस स्थिति में भी नहीं थमा, जब स्वयं केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने दोनों सदनों में मुद्दा उठने के पहले ही दिन माफी मांग ली थी और फिर दोनों सदनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साध्वी के बयान को अस्वीकार्य करते हुए बयान दे दिया था। इसके बावजूद विपक्षी दल साध्वी के खिलाफ खासकर राज्यसभा में निंदा प्रस्ताव लाने की मांग पर अडिग रहे, जहां विपक्ष का संख्याबल पर्याप्त है। सोमवार को भी निंदा प्रस्ताव लाने और मतदान कराने की मांग को लेकर उच्च सदन में विपक्ष ने हंगामा काटा,लेकिन सभापति हामिद अंसारी ने बीच का रास्ता निकालकर निंदा प्रस्ताव के रूप में ही सही एक बयान पढ़कर इस मुद्दे पर विराम लगाया।
क्या करेंगे कल्याण बनर्जी
इस मुद्दे पर खत्म हुए तकरार के अगले दिन मंगलवार को ही लोकसभा में सत्तापक्ष ने साध्वी के मुद्दे पर अपनाए गये विपक्ष के दांव को उन्हीं के सिर मंढ दिया। मसलन लोकसभा में भाजपा सांसदों ने प्रधानमंत्री नर्रेन्द्र मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस की आपत्तिजनक टिप्पणी को आधार बनाकर मुद्दा उठाया। बदजुबानी पर विपक्ष की पैदा की गई परंपरा अब तृणमूल कांग्रेस की मुसीबत बनने की संभावना है। वजह यह कि भाजपा सांसदों की मांग है कि तृणमूल कांग्रेस सांसद कल्याण बनर्जी या तो सार्वजनिक माफी मांगे अथवा उनके खिलाफ दोनों सदनों में निंदा प्रस्ताव लाने के लिए सत्ता पक्ष मजबूर हो सकते हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि साध्वी मामले पर लामबंद विपक्ष कल्याण बनर्जी के मुद्दे पर क्या तृणमूल के साथ होगा या फिर विपक्ष अपने द्वारा पैदा की गई निंदा प्रस्ताव की परंपरा पर कायम रहेगा। खैर यह अभी आने वाले दिन पर निर्भर है कि संसद में बुधवार को इस मुद्दे पर सत्तापक्ष और तृणमूल कांग्रेस क्या रूख अपनाएंगी।
10Dec-2014

सोमवार, 8 दिसंबर 2014

मोदी की ‘योजना’ नई संस्था पर मतभेद!


राज्यों की राय अलग-अलग!
नये निकाय में राज्यों की भूमिका बेहद जरूरी: मोदी
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योजना आयोग को खत्म करके उसके स्थान पर नई संस्था बनाने की योजना पर कुछ राज्यों को ऐतराज है,तो कुछ ने सरकार की योजना के साथ सुर मिलाते हुए इसके स्थान पर गठित होने वाली नई संस्था को सशक्त करने की दिशा में सुझाव दिये हैं। जबकि सरकार योजना आयोग को खत्म करके एक ऐसा सशक्त निकाय बनाने की योजना पर आगे बढ़ रही है, जिसमें देश की ताकत को मजबूती देकर योजनाओं की प्रक्रिया ऊपर से नीचे के बजाए नीचे से ऊपर की ओर शुरू हो सके।
देश के विकास को नई दिशा देने वाले एजेंडे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की साढ़े छह दशक पुराने योजना आयोग को खत्म करके उसके स्थान पर एक नया सशक्त निकाय गठित करने की योजना पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने आवास पर रविवार को राज्यों के मुख्यमंत्रियों की राय और सुझाव लिये तो सभी राज्य इस प्रस्ताव से सहमत नजर नहीं आए। इस बैठक से जहां पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जम्मू-कश्मीर के मुख्य मंत्री उमर अब्दुला व झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेने ने किनारा किया, तो बैठक में पहुंचे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री नबाम तुकी ने आयोग के अस्तित्व को खत्म करने पर घोर आपत्ति जताई। इन्होंने योजना आयोग को ही मजबूत करने की वकालत करते हुए सरकार को महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं। जबकि राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि सरकार चाहती है कि विकास संबन्धी योजनाओं की प्रक्रिया नीचे से ऊपर की ओर चले और उसमें राज्यों की अहम भूमिका जरूरी है। नई सरकार के तहत बदलते आर्थिक हालात के बीच मौजूदा योजना आयोग की जगह नई संस्था के स्वरूप, उसका दायरा और भूमिका पर खुलकर चर्चा की गई। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने पिछले स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में योजना आयोग को समाप्त करने और इसकी जगह नया संस्थान स्थापित करने की घोषणा की थी। योजना आयोग का गठन 1950 में किया गया था।
शोध संस्थान साबित हो
सरकार की योजना के मुताबिक नई संस्था के लिए तैयार किये गये प्रस्तुतिकरण पेश करते हुए योजना आयोग की सचिव सिंधूश्री खुल्लर ने मुख्यमंत्रियों के समक्ष अपने सुझाव रखते हुए कहा कि इस नये संस्थान में प्रधानमंत्री पदेन अध्यक्ष होंगे। इसके अलावा 10 नियमित सदस्य, पांच राज्यों के प्रतिनिधि और पांच सदस्य पर्यावरण, वित्त या अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञ और इंजीनियर या वैज्ञानिक जैसे को इसमें शामिल किए जाने का प्रस्ताव है। नई संस्था सरकारी विभाग के कामकाज की निगरानी कर उसके कार्यों के मूल्यांकन के आधार पर राशि के आवंटन का प्रस्ताव करेगी। मसलन आकलन, विभिन्न क्षेत्रों और मंत्रालयों से एक साथ जुड़े मामलों में विशेषज्ञता सेक्टोरल, अंतर मंत्रालयी विशेषज्ञता और आकलन व परियोजनाओं की निगरानी का कार्य करेगा। इसके अलावा यह संस्था एक शोध संस्थान के रूप में काम करेगी और विश्वविद्यालयों व अन्य संस्थानों के साथ उसका नेटवर्क होगा। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि नया संस्थान राज्यों और केंद्र को विभिन्न मामलों में आंतरिक परामर्श सेवा प्रदान कर सकता है।
इन राज्यों ने लिया हिस्सा
योजना आयोग के स्थान पर नई संस्था के गठन पर राज्यों के सुझाव के लिए प्रधानमंत्री के आवास पर दो चरणों में हुई बैठक में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, महाराष्टÑ के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत, केरल के मुख्यमंत्री ओमान चांडी और गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन शामिल ने हिस्सा लिया।
08Dec-2014

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

नेतृत्व के वजूद को लेकर उलझन में महामोर्चा!

मुलायम को सौंपा जनता परिवार की एक छत बनाने का जिम्मा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
भले ही संसद में मोदी सरकार के खिलाफ समूचा विपक्ष एकजुट नजर आ रहा हो, लेकिन गैर भाजपा व गैर कांग्रेसी दलों के महामोर्चा में नेतृत्व के वजूद की उलझन पुराने जनता परिवार को एकजुट करके संयुक्त नेता का चयन अधर में लटका हुआ नजर आ रहा है। शायद इसी कारण महामोर्चा के राजनीतिक दल के नाम को भी अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है? हालांकि जनता परिवार की राजनीतिक छत बनाने का जिम्मा सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को सौंपा दिया गया।
लोकसभा चुनाव से पहले तीसरे विकल्प के टूटे सपने के बाद सपा प्रमुख की पहल पर केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए फिर से बीस साल पहले बिखरे जनता परिवार को एकजुट करने की कवायद की गई। इसका मकसद गैर भाजपाई व गैर कांग्रेसी दलों को एकजुट करके संसद के शीतकालीन सत्र में संयुक्त मंच के रूप में विभिन्न मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरना था। हालांकि संसद में कुछ मुद्दों पर समूचे विपक्ष की पिछले तीन दिनों से एकजुटता नजर आ रही है, लेकिन महामोर्चा की कवायद को दावों के बावजूद अंजाम तक नहीं पहुंचाया गया। सूत्रों की माने तो पिछले महीने छह नवंबर को मुलायम के सरकारी आवास पर हुई छह दलों की बैठक में महामोर्चा को ‘समाजवादी जनता दल’ के रूप में राजनीतिक शक्ल देने पर सहमति बनी थी और संसद का सत्र के शुरूआती दिनों में ही दोनों सदनों में एक संयुक्त नेता का चुनाव करने का निर्णय लिया गया था। बहरहाल संसद सत्र के दो सप्ताह पूरे होने वाले हैं तो गुरुवार को फिर इन दलों के नेता सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के सरकारी आवास पर महामोर्चा को संयुक्त राजनीतिक दल का नाम देने व इसका नेतृत्व को लेकर विचार विमर्श किया, लेकिन शायद तीसरे विकल्प में नेतृत्व के वजूद में पिछले कई प्रयासों की तरह किसी एक नेता पर सहमति नहीं बन पायी और न ही महामोर्चा का नामकरण हो पाया। इस बैठक में एक निर्णय जरूर लिया गया, जिसमें महामोर्चा में गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी खासकर जनता परिवार के दलों को एकजुट करने की जिम्मेदारी सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को सौंपी गई है। फिलहाल इस मोर्चा में शामिल दलों की संसद में दलीय स्थिति के अनुसार लोकसभा 15 और राज्यसभा में 30 सांसदों का संख्याबल है।
22 को फिर होगा प्रयास
सपा प्रमुख के आवास पर गुरुवार को हुई बैठक की जानकारी देते हुए जदयू नेता नीतीश कुमार ने बताया कि फिलहाल भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ असरदार मोर्चा बनाने के लिए जनता दल परिवार ने एक साथ काम करने का फैसला किया है। वहीं सभी इस एका में शामिल दलों के नेताओं की बनी सहमति के अनुसार संसद के भीतर और बाहर एक साथ मिलकर जनहित के मुद्दों पर सरकार के खिलाफ काम किया जाएगा तथा 22 दिसंबर को कालाधन, बेरोजगारी, किसानों की समस्या और महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर धरना आयोजित करने का निर्णय हुआ है, वहीं इस दौरान फिर से गंभीरता के साथ एक सशक्त राजनीतिक विकल्प तैयार करने पर विचार विमर्श होगा। इस बैठक सपा प्रमुख मुलायम सिंह के अलावा जदयू प्रमुख शरद यादव, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, सपा के महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव, पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, इंडियन नेशनल लोकदल के अभय चौटाला, समाजवादी जनता पार्टी के नीरज सिंह सहित कई नेता मौजूद थे।
05Dec-2014

सरिता की पैरवी में सचिन की पहल पर गंभीर सरकार

खेल मंत्री की भारतीय बाक्सर के निलंबन को रद्द करने की मांग
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
महान क्रिकेटर और राज्यसभा सांसद सचिन तेंदुलकर संसद के शीतकालीन सत्र में पहली बार लगातार पहले तीन दिन सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेकर राजनीतिक पिच पर गंभीरता को प्रकट ही नहीं किया, बल्कि बाक्सर सरिता देवी की पैरवी करते हुए सरकार से ठोस कार्रवाही की मांग भी की। इसी का नतीजा है कि खेल मंत्री भारतीय बॉक्सर सरिता देवी के निलंबन को रद्द करने की मांग करते हुए अंतर्राष्ट्रीय बॉक्सिंग एसोसिएशन को पत्र लिखा है।
सचिन तेंदुलकर ने पिछले सप्ताह ही खेल मंत्री सर्वदानंद सोनवाल से मुलाकात करके उन्हें भारतीय मुक्केबाज सरिता देवी के निलंबन को समाप्त कराने की कार्यवाही के लिए सुझाव के साथ पत्र दिया था। सचिन की इस पहल के बाद केंद्र सरकार भारतीय महिला मुक्केबाज सरिता देवी के मामले को सुलझाने के लिए आगे आई है। खेल मंत्री सर्बानंद अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज ऐसोसिएशन को पत्र लिखकर सरिता के निलंबन को रद्द करने का अनुरोध किया है। गौरतलब है कि सचिन तेंदुलकर ने सोनवाल से मुलाकात के दौरान कहा था कि सरिता के मामले में कैसे आगे बढ़ा जाए और एआईबीए से अपील की जाए कि सरिता देवी के प्रति नरमी बरती जाए। गौरतलब है कि इससे पहले भी सचिन ने अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज ऐसोसिएशन से सरिता पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के खिलाफ अपील की थी और केंद्र सरकार से भी सरिता देवी को जरूरी सहयोग की मांग की थी।
सोनवाल ने बढ़ाया हौंसला
खेल मंत्रालय के प्रवक्ता ने हरिभूमि को बताया कि अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज ऐसोसिएशन को भेजे पत्र में सोनवाल कहा है है कि वह एसोसिएशन से निवेदन करते हैं कि सरिता देवी एक अच्छी पृष्ठभूमि से हैं और उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और योग्यता से इस खेल में यह मुकाम हासिल किया है। सरिता के निलंबन से उन दूसरी उभरती खिलाड़ियों का हौंसला गिरेगा, जो सरिता को अपना आदर्श मानते हैं। गौरतलब है बॉक्सिंग की इंटरनेशन संस्था को यह भी अवगत कराया है कि बॉक्सिंग की अंतर्राष्ट्रीय संस्था एआईबीए ने अक्टूबर में सरिता देवी को एशियन गेम्स में विरोध की वजह से निलंबित कर दिया है। सरिता देवी के साथ ही उनके कोच और भारत के शेफ डे मिशन को भी निलंबित किया गया था। इंचिओन में हुए एशियन गेम्स में सरिता ने रेफरी के फैसले पर सवाल उठाते हुए कांस्य पदक को लेने से इंकार कर दिया था। हालांकि बाद में सरिता ने मेडल ले लिया था। इस प्रतिबंध के बावजूद सरिता किसी भी अंतर्राष्ट्रीय टूनार्मेंट में हिस्सा नहीं ले सकती हैं। अंतर्राष्ट्रीय बॉक्सिंग की इंटरनेशन एसोसिएशन ने मामले को अनुशासनात्मक समिति के पास भेज दिया था।
04Dec-2014

मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

विरासत की जद मेें एक ओर बंगले पर बवाल!

रास सांसद नीरज शेखर को आवास खाली करने का नोटिस
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह के पुत्र चौधरी अजित सिंह से 12 तुगलक रोड खाली होने के बाद अब पूर्व पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्र शेखर के पुत्र नीरज शेखर के तीन साउथ एवेन्यू लेन वाले सरकारी बंगले को खाली कराने का मामला विरासत का मुद्दे में शामिल हो
गया है। सरकार द्वारा राज्यसभा सांसद नीरज शेखर को उस बंगले को खाली करने के लिए नोटिस देने वाली केंद्र सरकार अब सपा व कांग्रेस के निशाने पर है जिस पर चन्द्र शेखर की विरासत को खत्म करने का आरोप मंढना शुरू हो गया है।
दरअसल सोमवार को सपा के राज्यसभा सांसद नीरज शेखर को सरकारी आवास खाली कराने के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिये गये नोटिस पर उच्च सदन में हंगामा हुआ। यह मामला सपा सांसद जया बच्चन ने उठाया और तर्क दिया कि दो बार लोकसभा सदस्य रह चुके नीरज शेखर अब उच्च सदन के सदस्य हैं, इसलिए उन्हें अधिकारिक सरकारी आवास खाली कराने के लिए नोटिस देने को औचित्य नहीं है। इस मुद्दे पर सपा के साथ कांग्रेस भी खड़ी नजर आई और राजग सरकार पर पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चन्द्र शेखर की
विरासत को खत्म करने का आरोप लगाया। इसी सरकारी बंगले में चन्द्र शेखर वर्ष 1967 से रहते आ रहे हैं जिनके निधन के बाद उनके सांसद पुत्र नीरज शेखर इस बंगले में रह रहे थे। इसलिए विपक्ष का तर्क है कि ऐसे नीरज से उनका आधिकारिक आवास खाली नहीं कराया जा सकता, जिसे स्व. चन्द्र शेखर की विरासत के रूप में देखा जा रहा है, जिसे बदले की भावना से कार्यवाही करके राजग सरकार खत्म करने का प्रयास कर रही है। इससे पहले इसी प्रकार 12 तुगलक रोड स्थित सरकारी बंगले को भी चौधरी अजित
सिंह से खाली कराया गया, जहां 1965 से पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह के बाद अजित सिंह रहने लगे थे। 12 तुगलक रोड को स्मारक बनाने की मांग को लेकर पिछले दिनों काफी बवाल हुआ है। फिलहाल तीन साउथ एवेन्यू लेन वाला बंगला भाजपा सांसद बीएस येद्दयुरप्पा को आवंटित किया जा चुका है।
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‘‘राज्यसभा सदस्य नीरज ने कहा कि यह बंगला उनके पिता को आवंटित किया गया था, तभी से वह इस बंगले में रह रहे हैं। उनके पिता इस बंगले में 40 साल रहे। बंगले से मेरा भावनात्मक लगाव है, इसलिए वह सरकार से आग्रह करते हैं कि मुझे यहां रहने की इजाजत दी जाए। उन्होंने कहा कि वह इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर उनके समक्ष उठाएंगे।’’
-नीरज शेखर, सदस्य राज्यसभा
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‘‘तीन साउथ एवेन्यू लेन का बंगला किसी अन्य को आबंटित किया जा चुका है और और उच्चतम न्यायालय के दिशानिदेर्शों और नियमों के तहत आवास को खाली कराने की एक प्रक्रिया के तहत नोटिस दिया गया है। फिर भी जो नियमों के अनुसार होगा उसके तहत कार्यवाही कराकर सरकार इस मुद्दे का समुचित हल निकालेगी।’’

-मुख्तार अब्बास नकवी, संसदीय कार्य राज्यमंत्री 


02Dec-2014

राग दरबार: मोेदी की लोकप्रियता की कुंठा

मोेदी की लोकप्रियता की कुंठा
क्हते हैं कि लोग अपने दुख से दुखी नहीं, बल्कि दूसरो के सुख से दुखी जरूरत हो जाते हैं। आजकल कांग्रेस और कुछ विपक्षी दलों के लिए कुछ ऐसी ही कुंठा नजर आ रही है। मसलन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश दौरों या देश में बढ़ती लोकप्रियता से खासकर कांग्रेस ज्यादा ही कुंठा के दौर से गुजर रही है। मोदी की विदेशों में भारतीयों को संबोधित करना या अन्य किसी विदेश नीति पर सकारात्मक रूख अपनाना कांग्रेस को कतई रास नहीं आ रहा है। खुद तो कांग्रेस ऐसा कर नहीं पाई, अब जब एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसे लोग पसंद कर रहे हैं उसकी लोकप्रियता से कांग्रेस की कुंठा बनते ही दिखती है। चर्चा यही है कि अभी तक इस तरह की लोकप्रियता विदेशों में किसी अन्य प्रधानमंत्री को नहीं मिली। मोदी की लोकप्रियता से दुनिया में देश की ही साख बढ़नी है, जो कांग्रेस के शासन में लाख प्रयासों से नहीं दिखाई दिया। देश मे लोगों में कम से कम यह चर्चा तो हो रही है कि अब कुछ सकारात्मक होता देखने लगा है, लेकिन कांग्रेस तो हर पहलुओं को नकारात्मक चश्में से देखने पर तुली हुई है, भले ही वह कालेधन की वापसी के लिए उठाए गये कदम या पिफर पेट्रोल-डीजल के लगातार गिरते दाम। हालांकि कांग्रेस इसे राजग सरकार की उपलब्धि मानने को तैयार नहीं है। बकौल कांग्रेस के प्रवक्ता आनंद शर्मा महंगाई की दर का आंकड़ा घट रहा है जरूर, लेकिन कागजों में घट रहा है। आनंद शर्मा ने यहां तक तोहमद कर डाली कि वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम लगातार घट रहे हैं और देश में भी ईंधन की कीमतें गिर रही है, लेकिन जरूरी वस्तुओं के दाम कम नहीं हो रहे हैं। 
महामोर्चा में निकला एक हीरा
केंद्र की मोदी सरकार को घेरने के लिए गैरभाजपाई व गैर कांग्रेसी दलों ने जनता परिवार के बिछड़ो को एकजुट करके महामोर्चा बनाने की कवायद की थी। सपा, जदयू, राजद, इनेलो जैसे छह दलों को साथ लेकर यह पहल सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने की। इस महामोर्चा का दावा था कि संसद के शीतकालीन सत्र में मोदी सरकार को उसकी गलत नीतियों पर एक जुट होकर संयुक्त रूप से एक सशक्त विपक्ष की भूमिका में जनता परिवार एकजुट होगा, लेकिन संसद सत्र का एक सप्ताह गुजर चुका है, लेकिन महामोर्चा का संसद में संयुक्त नेता दावों के बावजूद नहीं चुना गया। इसका कारण है कि महामोर्चा में सभी अपने को नेता मानकर चल रहे हैं। खैर महामोर्चा की एकता पटरी पर आई हो या नहीं लेकिन इस कवायद में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की दोस्ती प्रगाढ़ रिश्तों में जरूर बदल गई और इस महामोर्चा के घर्षण में एक हीरा निकला जिसका नाम है तेज प्रताप सिंह यादव जो लोकसभा का सांसद और मुलायम का पोता है। इस हीरे को आखिर लालू ने लपक लिया वो भी अपनी बेटी के लिए। मसलन इस नजदीकी में मुलायम सिंह के पोता अब लालू का दामाद बनने जा रहा है।
जब गच्चा खा गये माननीय
सोलहवीं लोकसभा में ज्यादातर नए सांसद निर्वाचित होकर आए हैं, जिन्हें अभी बहुत कुछ सीखना है और कुछ ओरिएंटेशन प्रोग्राम में भी सिखा दिया गया था, लेकिन बड़े-बडे़ महारथी सदन में ऐनमौके पर गच्चा खाते देखे गये। दरअसल सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति के लिए चयन समिति संबन्धी एक विधेयक में संशोधन पारित कराया गया, जिसमें लोकसभा में प्रतिपक्ष नेता के पद की मान्यता न होने पर भी बड़े विपक्षी दल का नेता की इस पद पर नियुक्ति करने में भूमिका शामिल हो गई। जब इस विधेयक को पारित कराने की बारी आई तो कांग्रेस व बीजद ने मतविभाजन की मांग तो कर दी, लेकिन स्वचालित मतदान प्रक्रिया के प्रयोग करने में ज्यादातर मं़त्री व माननीय गच्चा खाते नजर आए। इससे पहले इस प्रक्रिया को लोकसभा महासचिव ने बेहतर तरीके से समझा भी दिया था, फिर भी अनभिज्ञता के कारण इस प्रक्रिया को तीसरी बार में अंतरिम माना गया। इसके बाद माननीयों में आपसी चर्चा यही रही कि अभी तो शुरूआत है आगे सब कुछ समझ में आ जाएगा।
30Nov-2014