आज होने वाला शक्ति प्रदर्शन करेगा भविष्य तय
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
लोकसभा में मोदी मैजिक के सामने धराशाही हुए गैर भाजपाई व गैर कांग्रेसी दलों ने बिछड़े हुए जनता परिवार के कुनबे को एकजुट करके एकीकृत दल के रूप में समाजवादी जनता दल बनाने की कवायद की। सोमवार को धरना प्रदर्शन करके शक्ति प्रदर्शन करके ये दल मोदी सरकार के खिलाफ हुंकार भरेंगे, लेकिन इस नए विकल्प की राह आसान नहीं लगती?
समाजवादी पार्टी की अगुवाई में सपा, राजद, जद-यू, जद-एस, इनेलो और सजपा जैसे गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी दलों के नेताओं ने 22 दिसंबर यानि कल सोमवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर शक्ति प्रदर्शन करके एकजुटता के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोकसभा चुनाव के दौरान किए गए वादों का हिसाब मांगने आ रहे हैं। इससे पहले दो बैठकों में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान संसद के दोनों सदनों में एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाकर सरकार को घेरने का दम भरने का दावा करने के बावजूद अपने
मिशन से भटके ये दल फिर से जनता परिवार के कुनबे को एक नये एकीकृत राजनीतिक दल का रूप देने का ऐलान कर सकते हैं और इस संयुक्त दल का नाम समाजवादी जनता दल का ऐलान कर सकते हैं जिसका मसौदा तैयार करने के लिए पिछली बैठक में सपा प्रमुख मुलायम सिंह को सौंपा गया था। हालांकि अभी भी इस एकजुटता के विकल्प में उसी तरह के पेंच फंसे नजर आ रहे हैं जिनके कारणों से देश की सियासत के इतिहास में आज तक तीसरा मोर्चा या तीसरे विकल्प की हांडी सियासी चूल्हे पर पक नहीं पायी है। इसलिए यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए कि नए एकीकृत दल ‘समाजवादी जनता दल’ के गठन की राह इतनी आसान नहीं है, जिसका अनुमान ये दल मानकर चल रहे हैं। राजनीतिक गलियारे में इस विकल्प को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं जिनमें एक ऐसा सवाल भी है कि क्या नया दल मौजूदा केंद्र सरकार की बदली हुई विकास केंद्रित राजनीति के सामने चुनौती पेश कर सकेगाा? क्या इन नेताओं के पास मौजूदा आर्थिक नीति का कोई वैकल्पिक मॉडल है। नए समाजवादी जनता दल की ऐसी ही चुनौतियों पर गौर की जाए तो चारो तरफ झोल ही झोल नजर आते हैं।
नेतृत्व का वर्चस्व
नए एकीकृत समाजवादी जनता दल के गठन बनाने की कवायद में जुटे इन सभी गैर भाजपाई व गैर कांगे्रसी दलों के सभी प्रमुख नए दल का मुखिया बनने की जुगत में हैं और कोई भी नेता अपने राष्टÑीय नेतृत्व के वर्चस्व को बनाने का प्रयास करेगा। इसी प्रकार के वर्चस्व के कारण आज तक देश में तीसरी ताकत एकजुट होने से पहले ही बिखरती पाई गई हैं। यह तो राजनीति का इतिहास गवाह है कि जनता परिवार में कई बार टूटन आईं और फिर कई दल इकठ्ठे हुए और फिर अलग-थलग हो गये। यहां तो नरेन्द्र मोदी की तर्ज पर पीएम बनने का दावा कर रहे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, सपा प्रमुख मुलायम सिंह और लालू जैसे नेता इस एकजुटता के आयने पर है। ऐसे में सवाल यहां भी है कि यदि किसी तरह समाजवादी जनता दल का गठन उभर कर सामने आ भी गया तो उसका नेतृत्व कौन करेगा? क्या मुलायम सिंह इसके नेता होंगे और अन्य दलों के नेता क्या मुलायम सिंह पर भरोसा कर पाएंगे? ऐसे सवाल इसलिए भी जायज हैं क्यो कि सियासी गलियारों में मुलायम सिंह को सर्वाधिक गैर भरोसेमंद नेता बताया जाता रहा है। 2014 के आम चुनावों से पहले मुलायम सिंह यूपीए सरकार के खिलाफ कई बार मुद्दों पर अलग गठजोड़ बनाने के बाद पलटते देखे गये हैं, लेकिन हालांकि अब केंद्र में यूपीए की सरकार नहीं है और इस बात की संभावना कम है कि मुलायम भाजपा के साथ जाएंगे।
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
लोकसभा में मोदी मैजिक के सामने धराशाही हुए गैर भाजपाई व गैर कांग्रेसी दलों ने बिछड़े हुए जनता परिवार के कुनबे को एकजुट करके एकीकृत दल के रूप में समाजवादी जनता दल बनाने की कवायद की। सोमवार को धरना प्रदर्शन करके शक्ति प्रदर्शन करके ये दल मोदी सरकार के खिलाफ हुंकार भरेंगे, लेकिन इस नए विकल्प की राह आसान नहीं लगती?
समाजवादी पार्टी की अगुवाई में सपा, राजद, जद-यू, जद-एस, इनेलो और सजपा जैसे गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी दलों के नेताओं ने 22 दिसंबर यानि कल सोमवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर शक्ति प्रदर्शन करके एकजुटता के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोकसभा चुनाव के दौरान किए गए वादों का हिसाब मांगने आ रहे हैं। इससे पहले दो बैठकों में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान संसद के दोनों सदनों में एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाकर सरकार को घेरने का दम भरने का दावा करने के बावजूद अपने
मिशन से भटके ये दल फिर से जनता परिवार के कुनबे को एक नये एकीकृत राजनीतिक दल का रूप देने का ऐलान कर सकते हैं और इस संयुक्त दल का नाम समाजवादी जनता दल का ऐलान कर सकते हैं जिसका मसौदा तैयार करने के लिए पिछली बैठक में सपा प्रमुख मुलायम सिंह को सौंपा गया था। हालांकि अभी भी इस एकजुटता के विकल्प में उसी तरह के पेंच फंसे नजर आ रहे हैं जिनके कारणों से देश की सियासत के इतिहास में आज तक तीसरा मोर्चा या तीसरे विकल्प की हांडी सियासी चूल्हे पर पक नहीं पायी है। इसलिए यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए कि नए एकीकृत दल ‘समाजवादी जनता दल’ के गठन की राह इतनी आसान नहीं है, जिसका अनुमान ये दल मानकर चल रहे हैं। राजनीतिक गलियारे में इस विकल्प को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं जिनमें एक ऐसा सवाल भी है कि क्या नया दल मौजूदा केंद्र सरकार की बदली हुई विकास केंद्रित राजनीति के सामने चुनौती पेश कर सकेगाा? क्या इन नेताओं के पास मौजूदा आर्थिक नीति का कोई वैकल्पिक मॉडल है। नए समाजवादी जनता दल की ऐसी ही चुनौतियों पर गौर की जाए तो चारो तरफ झोल ही झोल नजर आते हैं।
नेतृत्व का वर्चस्व
नए एकीकृत समाजवादी जनता दल के गठन बनाने की कवायद में जुटे इन सभी गैर भाजपाई व गैर कांगे्रसी दलों के सभी प्रमुख नए दल का मुखिया बनने की जुगत में हैं और कोई भी नेता अपने राष्टÑीय नेतृत्व के वर्चस्व को बनाने का प्रयास करेगा। इसी प्रकार के वर्चस्व के कारण आज तक देश में तीसरी ताकत एकजुट होने से पहले ही बिखरती पाई गई हैं। यह तो राजनीति का इतिहास गवाह है कि जनता परिवार में कई बार टूटन आईं और फिर कई दल इकठ्ठे हुए और फिर अलग-थलग हो गये। यहां तो नरेन्द्र मोदी की तर्ज पर पीएम बनने का दावा कर रहे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, सपा प्रमुख मुलायम सिंह और लालू जैसे नेता इस एकजुटता के आयने पर है। ऐसे में सवाल यहां भी है कि यदि किसी तरह समाजवादी जनता दल का गठन उभर कर सामने आ भी गया तो उसका नेतृत्व कौन करेगा? क्या मुलायम सिंह इसके नेता होंगे और अन्य दलों के नेता क्या मुलायम सिंह पर भरोसा कर पाएंगे? ऐसे सवाल इसलिए भी जायज हैं क्यो कि सियासी गलियारों में मुलायम सिंह को सर्वाधिक गैर भरोसेमंद नेता बताया जाता रहा है। 2014 के आम चुनावों से पहले मुलायम सिंह यूपीए सरकार के खिलाफ कई बार मुद्दों पर अलग गठजोड़ बनाने के बाद पलटते देखे गये हैं, लेकिन हालांकि अब केंद्र में यूपीए की सरकार नहीं है और इस बात की संभावना कम है कि मुलायम भाजपा के साथ जाएंगे।
22Dec-2014
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