बुधवार, 24 दिसंबर 2014

आर्थिक सुधारों के बिलों पर अध्यादेश लाएगी सरकार?

संसद में जीएसटी व बीमा विधेयक समेत कई महत्वपूर्ण बिल अटके
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र की राजग सरकार संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान आर्थिक सुधारों जैसे कई महत्वपूर्ण विधायी कार्यो को पूरा नहीं करा सकी है। इस कारण इस सत्र में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी संशोधन) विधेयक, बीमा कानन(संशोधन) विधेयक, कोयला खान(विशेष उपबंध) विधेयक, भूमि अधिग्रहण, प्रादेशिक ग्रामीण बैंक (संशोधन) विधेयक जैसे कई ऐसे महत्वपूर्ण विधेयक अधर में लटक गये हैं, जिनमें से खासकर जीएसटी विधेयक, बीमा कानून विधेयक और कोयला खान विधेयक पर सरकार अध्यादेश का सहारा ले सकती है?
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान आर्थिक सुधारों के लिए संबन्धित विधेयक मोदी सरकार की प्राथमिकता में शामिल थे, लेकिन सरकार जीएसटी संशोधन विधेयक, क ोयला खान(विशेष उपबंध) विधेयक, मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक-2014, प्रादेशिक ग्रामीण बैंक (संशोधन) विधेयकों को लोकसभा में तो पारित करा चुकी है, लेकिन राज्यसभा में ये विधेयक अटक गये हैं। सबसे महत्वपूर्ण बीमा काूनन(संशोधन) विधेयक को राज्यसभा में पेश किया जाना था, जिसे सदन की प्रवर समिति की रिपोर्ट के बाद केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष के हंगामे में होम होती रही कार्यवाही के कारण लगातार कार्यसूची में होने के बावजूद पेश ही नहीं किया जा सका। इसलिए संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू ने भी ऐसे संकेत दिये हैं कि जिन विधेयकों को संसद में पारित नहीं किया जा सका उनमें महत्वपूर्ण और जरूरी विधेयकों पर अध्यादेश लाकर कानून बनाने का प्रयास किया जाएगा। मसलन भूमि अधिग्रहण, कोयला और बीमा जैसे कानूनों में संशोधन के लिए सरकार के सामने अब अध्यादेश लाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। जबकि लोकसभा में सरकार लोकपाल और लोकायुक्त विधि (संशोधन) विधेयक एवं विद्युत (संशोधन) विधेयक को संसदीय समिति को सौंप चुकी है।
सरकार की मजबूरी
संसद में बीमा, कोयला और जीएसटी जैसे आर्थिक सुधारों वाले विधेयकों को पारित कराने मेें विफल रही मोदी सरकार के सामने अध्यादेश लाने की भी मजबूरी होगी। कोयला अधिनियम संशोधन विधेयक और बीमा अधिनियम संशोधन विधेयक को भी अब तक संसद से पारित नहीं कराया जा सका है। सूत्रों के मुताबिक भूमि अधिग्रहण के लिए सामाजिक आॅडिट की बाध्यता बड़ी कठिनाई बन सकती है, जिसे खत्म कराया जाएगा। जमीन अधिग्रहण में 80 फीसद भूमि स्वामियों की मंजूरी की शर्त को भी हटाने या इसे घटाने पर अहम फैसला हो सका है। आकस्मिक परिस्थितियों के प्रावधान में आमूल तब्दीली के साथ सरकार के अधिकार बढ़ाए जा सकते हैं। रक्षा परियोजनाओं में निजी हिस्सेदारी के संबंध में भी अधिग्रहण शर्तों को सरल बनाये जाने की शर्तों को सरल बनाये जाने की संभावना है। विदेशी सहयोग से प्रस्तावित रक्षा से जुड़ी परियोजनाओं की स्थापना में दिक्कत आ सकती है।
चौधरी बीरेन्द्र की टीस
ऐसी स्थिति में ही यह कारण बना कि भूमि अधिग्रहण विधेयक में को लेकर वैकल्पिक उपाय तलाशने की बाबत ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ने भूमि संसाधन विभाग के आला अफसरों के साथ सोमवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात की है। संप्रग सरकार ने भूमि अधिग्रहण का जो कानून पारित कराया है, मौजूदा सरकार को इसमें तमाम खामियां दिख रही हैं। खासतौर से बुनियादी ढांचे वाली परियोजनाओं के लिए भूमि उपलब्धता बहुत कठिन हो गई है। सूत्रों के मुताबिक सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए सामाजिक आॅडिट की बाध्यता जैसी बड़ी कठिनाई को खत्म करना चाहती है। वहीं जमीन अधिग्रहण में 80 फीसद भूमि स्वामियों की मंजूरी की शर्त को भी हटाने या इसे घटाने पर अहम फैसला सरकार ले चुकी है, लेकिन संसद में इसमें संशोधन नहीं हो पाया तो सरकार अब इसके विकल्प की तलाश में है। ऐसी संभावना है कि सरकार आकस्मिक परिस्थितियों के प्रावधान में आमूलचूल परिवर्तन के साथ अपने अधिकार बढ़ाने का प्रावधान् के लिए अध्यादेश ला सकती है।
24Dec-2014

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