शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

सख्त नियमों से सड़क सुरक्षा में आयेगा सुधार!

मंत्रियों के समूह की बैठक में एजेंडे पर आज होगा मंथन
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश में सड़क सुरक्षा यानि सड़क हादसों पर लगाम कसने के लिए केंद्र सरकार की जारी कवायद में परिवहन नियमों को सख्त करने की तैयारी हो रही है। केंद्र द्वारा गठित राज्यों के परिवहन मंत्रियों के समूह ने इस समस्या के समाधान निकालने के लिए एक व्यापक एजेंडा तैयार कर लिया है, जिसका खुलासा समूह की कल शुक्रवार को होने वाली पहली बैठक में पेश किया जाएगा।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क परियोजनाओं में सड़क सुरक्षा को प्राथमिकता दी है, जिसके लिए उन्होंने वर्ष 2020 तक देशभर में सड़क हादसों को आधा यानि 50 फीसदी कम करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए केंद्र सरकार ने राज्यों के साथ समन्वय करके इस कैंसररूपी समस्या के समाधान तलाशने के लिए राजस्थान के परिवहन मंत्री युनुस खान की अध्यक्षता में राज्यों के परिवहन मंत्रियों का समूह गठित किया था, जिसने एक ऐसा एजेंडा तैयार किया है, जिसमें देश की परिवहन व्यवस्था को आसान बनाने के साथ सुरक्षित बनाने के लिए सख्त नियमों को लागू करने जैसी सिफारिशें की है। हालांकि इसका खुलासा कल शुक्रवार को होने वाली मंत्रियों के समूह की पहली बैठक में किया जाएगा, जिसमें केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की मौजूदगी में देश में सड़क परिवहन के क्षेत्र में आ रही समस्याओं के साथ सड़क सुरक्षा और परिवहन को सुगम बनाने के उपायों पर चर्चा होगी। उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक में सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने और सभी हितधारकों की संतुष्टि हेतु एक तत्कालिक प्रशासनिक बदलाव के तहत मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन करने और प्रौद्योगिकी का इष्टतम उपयोग करने की जरूरत पर मंथन हो सकता है। इसी मकसद से राज्यों के परिवहन मंत्रियों से एक रोडमैप विकसित करने को कहा गया है।
जल्द आएगा सख्त सड़क सुरक्षा  कानून 
केंद्रीय सड़क मंत्रालय के अनुसार सड़क सुरक्षा और परिवहन व्यवस्था में आमूल-चूलन परिवर्तन की दिशा में सरकार द्वारा प्रस्तावित नया सड़क सुरक्षा और परिवहन विधेयक संसद में लंबित है, जिसे लोकसभा ने तो मंजूरी दे दी है, लेकिन राज्यसभा में वह अभी तक अटका हुआ है। राज्यों के परिवहन मंत्रियों की सिफारिश के बाद इस विधेयक में कुछ संशोधन भी करने पड़े तो उसके लिए विचार करने के बाद जल्द ही इस विधेयक को सरकार पारित कराने का प्रयास करेगी। विधेयक की मंजूरी से पहले इस समूह की बैठक में सार्वजनिक स्थानों पर पैदलपथ और साइकिल चालक जैसे गैर मोटर चालित परिवहन से निपटने के उपायों के अलावा ड्राईविंग लाईसेंस, जरूरी ड्राईवर प्रशिक्षण, लाइसेंस के नवीकरण की श्रेणियों और अवधि के युक्तिकरण बनाने पर जोर दिया जाएगा।

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

आॅड-इवन की छूट में आय सकते हैं माननीय!

संसद में जोरदार तरीके से उठाई गई मांग 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
दिल्ली में प्रदूषण और यातायात नियंत्रण के लिए जारी आॅड-इवन फार्मूले के फेर में फंसते सांसदों ने संसद सत्र और संसदीय समितियों की बैठकों में हिस्सा लेने के लिए जिस प्रकार छूट मिलने की जोरदार वकालत की है, उससे केंद्र सरकार भी ऐसे रास्ते की तलाश कर रही है, जिसमें सांसदों के संसद पार्किंग के स्टीकर लगे वाहनों को छूट मिल सके।
दरअसल दिल्ली की केजरीवाल सरकार द्वारा दूसरी बार शुरू किये गये आॅड-इवन फार्मूले के बीच संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण शुरू हो गया। आज सोमवार को जिस तरह से इस फार्मूले से इवन नंबर की गाड़ी वाले सांसदों को दो-चार होना पड़ा उसके कारया आॅड-इवन का मुद्दा संसद के दोनों सदनों की सुर्खियां भी बना। दोनों सदनों में ही आॅड-इवन में सांसदों ने छूट की उसी तरह विशेषाधिकार मिलने की दलील दी, जिस तरह से अन्य कुछ श्रेणी को दी गई है। मसलन संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेना सांसदों का दायित्व है तो उसके आवागमन का इंतजाम भी जरूरी है। कुछ दलों के सांसदों ने तो दलील दी है कि यदि वह प्राइवेट वाहनों से भी संसद आते हैं तो उन्हें संसद परिसर में आने की अनुमति नहीं होगी, वहीं दिल्ली सरकार द्वारा सांसदों के लिए डीटीसी की शुरू की गई बसों के लिए भी इसी तरह की समस्या सामने आएगी। ज्यादातर दलों ने आॅड-इवन फार्मूले को दिल्ली सरकार का अनुचित फैसला करार दिया है, जबकि आप समर्थक जदयू जैसे दल इस फार्मूले की वकालत करते नजर आए। सोमवार को संसद सत्र केपहले ही दिन कुछ सांसदों ने बस में सफर किया, तो दो-चार पहले से ही साईकिल की सवारी करके संसद भवन आ रहे हैं। भाजपा के परेश रावल जैसे करीब आठ सांसदों को इवन नंबर के वाहन से संसद आना महंगा पड़ा।
केजरीवाल की मुराद पूरी
बहरहाल कुछ भी हो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आॅड-इवन फार्मूले से प्रदूषण कम हुआ हो या नही, लेकिन इस फार्मूले को संसद की सुर्खियां बनाने की मंशा को पूरा कर लिया। यही नहीं सपा के नरेश अग्रवाल ने तो सदन में यहां तक कहा कि दिल्ली सरकार ने इस फार्मूले के जरिए सांसदों को उनकी औकात दिखाने का प्रयास किया है, जिसके लिए केंद्र सरकार को सांसदों की लेबल लगी गाड़ियों को छूट देने की कार्यवाही तत्काल करने की मांग की। अग्रवाल ने तो यहां तक तर्क दिया कि दिल्ली की पुलिस केंद्र सरकार के गृहमंत्रालय के अधीन है जो पुलिस या यातायात पुलिस के लिए सांसदो के हित में दिशानिर्देश कर छूट का रास्ता बना सकती है। हालांकि इसके लिए सरकार ने जल्द ही कोई रास्ता निकालने का भरोसा दिया है।
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फार्मूले का फल
राज्यसभा में जदयू सांसद केसी त्यागी ने तो दिल्ली सरकार के इस फार्मूले की तारीफो के पुल बांधते हुए यहां तक कहा कि वे आॅड इवन के एक हिस्से का समर्थन करते हैं, जिसके कारण दिल्ली में यायातात और प्रदूषण में कमी आई है। यह फार्मूला जनहित में है। जबकि नरेश अग्रवाल ने दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री पर कटाक्ष करते हुए कहा कि ऐसे तो उनकी सरकार भविष्य में दिल्ली की भीड़ को कम करने के लिए एक दिन महिलाओं और एक दिन पुरुषों को घर से बाहर निकलने का फार्मूला भी ला सकते हैं।
सस्ती लोकप्रियता आॅड-इवन
लोकसभा में सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सम विषम योजना पर करारा प्रहार करते हुए यहां तक आरोप लगाया कि यह एक ऐसी योजना है, जिसमें भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने, आम लोगों, गृहणियों और स्कूली बच्चों को परेशान करके सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास है।
26Apr-2016

संसद में उत्तराखंड मुद्दे पर घिरी मोदी सरकार!

दोनों सदनों में बरपा कांग्रेस का हंगामा, कार्यवाही बाधित
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण शुरू होते ही दोनों सदनों में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के मुद्दे पर विपक्ष खासकर कांग्रेस ने मोदी सरकार को घेरते हुए जबरदस्त हंगामा किया। कांग्रेस ने उत्तराखंड में राष्टÑपति शासन की कार्यवाही को लोकतंत्र की हत्या करार देते हुए इस मुद्दे पर संसद में चर्चा कराने की मांग की। इस मुद्दे पर सरकार ने विपक्ष की इस मांग को सुप्रीम कोर्ट में मामला होने की दलील देते हुए खारिज कर दिया।
सोमवार को संसद सत्र की कार्यवाही शुरू होते ही लोकसभा में उत्तराखंड के मामले पूरे प्रश्नकाल के दौरान कांग्रेसी सांसद आसन के करीब जाकर नारेबाजी करते रहे, जबकि विपक्ष के नेता मल्लकिार्जुन खड़गे स्पीकर के पास जाकर बैठ गए। शून्यकाल में इस मुद्दे को उठाने की अनुमति दी गई तो कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने परोक्ष रूप से सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निशाना साधा और कहा कि संविधान दिवस की दुहाई देकर वह लोकतांत्रिक और संवैधानिक ढंग से चुनी गई विपक्ष शासित राज्य की सरकारों को अस्थिर करने में लगी हुई है। उन्होंने उत्तराखंड में राष्टÑपति शासन लगाने की कार्यवाही को लोकतंत्र की हत्या करार देते हुए विपक्ष शासित राज्यों को अस्थिर करने का आरोप लगाया। इस मुद्दे पर लोकसभा में राजद, राकांपा, जदयू और वामदल भी कांग्रेस के समर्थन करते नजर आए और सभी ने सदन में चर्चा कराने की मांग की। जबकि बीजद के भर्तहरि महताब ने राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की खिलाफत तो की, लेकिन यह मामला अभी संसद और अदालत में विचाराधीन होने के कारण किसी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया और फैसले का इंतजार करने की सलाह दी।
राज्यसभा की कार्यवाही बाधित
राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होने पर उत्तराखंड में राष्टÑपति शासन को लेकर कांग्रेस ने जमकर हंगामा किया और आसन के करीब आकर लोकतंत्र के हत्यारों शर्म करो जैसे नारे तक लगाए। कांग्रेस के हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही शून्यकाल में ही दो बजे तक स्थगित करनी पड़ी, जिसके बाद आॅड-इवन मामला उठने के तत्काल बाद कांग्रेसी सदस्यों ने फिर आसन के करीब आकर उत्तराखंड मामले पर सरकार के खिलाफ नारेबाजी करके हंगामा शुरू कर दिया। इस प्रकार राज्यसभा की कार्यवाही पटरी पर नहीं आ सकी। प्रतिपक्ष नेता गुलाम नबी आजाद ने आरोप लगाया कि शीतकालीन सत्र के दौरान अरूणाचल प्रदेश की सरकार को अपदस्थ करते हुए पहले वहां राष्ट्रपति शासन लागू किया गया और फिर जब तक वहां भाजपा की सरकार नहीं बन गई, केंद्र ने चैन की सांस नहीं ली। अब उत्तराखंड में यही किया जा रहा है। माकपा के सीताराम येचुरी ने कहा कि सदन के नेता अरूण जेटली ने पिछले सत्र में कहा था कि सदन में किसी मुद्दे पर चर्चा को इसलिए नहीं टाला जा सकता कि वह मुद्दा अदालत में विचाराधीन है। आपको अपनी बात याद रहनी चाहिए।

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

सरकार के सामने काम से ज्यादा चुनौती!


संसद में भारी-भरकम काम के साथ आएगी सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सोमवार से शुरू हो रहे संसद सत्र में जहां विपक्ष कई मुद्दों पर सरकार को घेरने की तैयारी कर चुका है, वहीं सरकार जीएसटी और कई महत्वपूर्ण वित्तीय कामों को अंजाम देने का प्रयास करेगी। सरकार के सामने इस सत्र के लिए दोनों सदनों में दो दर्जन विधेयकों को अंजाम देने के अलावा कई मामलों को विकास की पटरी पर लाने की चुनौती होगी।
संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार सोमवार से शुरू हो रहे संसद सत्र के लिए सरकार की के एजेंडे में लोकसभा में 13 और राज्यसभा में 11 विधेयकों को पारित कराने की प्राथमिकता होगी, जिसमें सरकार की प्राथमिकता वाला जीएसटी विधेयक भी शामिल है। संसद में इन विधेयकों के अलावा वित्तीय व्यवसायों में लोक सभा में विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान मांगों एवं राज्य सभा में कुछ मंत्रालयों के कामकाज के तहत रेल विनियोग विधेयक 2016 पर चर्चा और उसे पारित कराने के साथ वित्त विधेयक 2016 भी प्रमुख हैं। वहीं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास, आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन, कौशल विकास एवं उद्यमशीलता, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता और नागरिक उड्डयन की अनुदान मांगों पर चर्चा होगी। जबकि राज्य सभा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, सूक्ष्म लघु एवं मझोले उद्यम मंत्रालय और विदेश मंत्रालय की कार्यप्रणाली पर चर्चा करेगी। इसके बाद वित्त विधेयक 2016 एवं गिलोटिन के उपयोग मामले को उठाया जाएगा।

संसद में सरकार को घेरने को तैयार विपक्ष!

संसद सत्र: हंगामेदार शुरूआत होने के आसार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सोमवार से शुरू हो रहे संसद सत्र में उत्तराखंड में राष्ट्र्पति शासन, डिफॉल्टर विजय माल्या और देश में सूखे जैसे कई मुद्दों पर विपक्षी दल मोदी सरकार की घेराबंदी करने को तैयार हैं, जबकि केेंद्र सरकार भी विपक्षी दलों की इस चुनौती से निपटने की रणनीति के साथ संसद में आने की तैयारियां पूरी कर चुकी है। मसलन सरकार संसद में कामकाज निपटाने के लिए विपक्षी दलों के सहयोग के लिए सकारात्मक नीति के तहत विपक्षी दलों के हरेक मुद्दे पर चर्चा कराने का भरोसा दे रही है।
संसद के इस सत्र की हंगामेदार शुरूआत के संकेत तो कांग्रेस ने उत्तराखंड के राजनीतिक संकट यानि राष्ट्र्पति शासन को लेकर चल रहे ताजा मामले पर कार्यस्थगन का नोटिस देकर चर्चा कराने की मांग करके दे दिये हैं। वहीं देश के करीब एक दर्जन राज्यों में सूखे और जल संकट की स्थिति भी विपक्षी दलों के निशाने पर है, जिस पर कई विपक्षी दल चर्चा कराने की मांग करते नजर आ रहे हैं। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन द्वारा रविवार को बुलाई गई बैठक में भी उत्तराखंड व सूखे का मुद्दा छाया रहा। वहीं दूसरी ओर सरकार ने स्पष्ट कर दिया है उत्तराखंड का मुद्दा अदालत के विचाराधीन है इसलिए 27 अप्रैल से पहले संसद में किसी भी सूरत में इस मामले पर चर्चा की इजाजत नहीं दी जाएगी। सरकार के इस दो टूक जवाब से जाहिर है कि संसद के सत्र की शुरूआत हंगामेदार होगी।
ऐसे करेगी सरकार बचाव
यदि ऐसी नौबत भी आई तो उत्तराखंड में राष्ट्र्पति शासन पर संसद में विपक्ष को जवाब देने का सवाल है उसके लिए सरकार ने कांग्रेस के शासनकाल में अनुच्छेद 356 के उपयोग के विशिष्ट मामलों की मिसाल पेश कर पलटवार करने की तैयारी की है। इसी हथियार से सरकार उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की कार्रवाही का ‘संवैधानिक संकट’ की दुहाई देकर बचाव करने का प्रयास करेगी। संसदीय कार्य राज्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी द्वारा दिये जा रहे संकेतों पर भरोसा करें, तो उत्तराखंड के मुद्दे पर सरकार की रणनीति के तहत यह तथ्य भी पेश किये जाएंगे कि आजादी से अब तक अब तक विभिन्न राज्यों में लागू हुए 111 बार राष्ट्रपति शासन में 91 बार कांग्रेस तथा कांग्रेस समर्थित सरकारों ने राष्ट्रपति शासन जैसी कार्रवाही की है। मसलन सरकार संसद में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेन्द्र मोदी तक राष्ट्रपति शासन लगाए जाने वाले आंकड़ों का खाका तैयार कर चुकी है।

रविवार, 24 अप्रैल 2016

राग दरबार: मुंगेरी के हसीन सपनों का स्यापा....

मुक्तिदाता के फेर में नीतीश 
देश की सियासत में कौन क्या करने का दम भ्‍रने लगे और अपने वजूद को नापे बिना ही मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखने लगे। ऐसे ही बिहार के सीएम ने अपने सीनियर को साइड करके उस भाजपा के खिलाफ सभी सियासी दलो को एकजुट होने का राग छेड़ा है, जिसके सहारे वह मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफर करते आ रहे हैं। जबकि इतिहास गवाह है आजतक तीसरे सियासी गठजोड सिरे नही चढ़ सका है। दरअसल नीतीश 1919 के लोकसभा चुनाव में पीएम बनने का हसीन सपना देखना शुरू कर दिया है। जदयू प्रमुख के इस प्रस्ताव को कांग्रेस व वामदल बेतुका करार देकर बिना आधार की राजनीति को नजरअंदाज कर दिया। यही नही ये सीएम साहब ने तो देश में उन मुक्तिदाताओं के भी सिरमौर बनने का प्रयास कर रहे हैं कि जैसे देश को आरआरएस मुक्त कराकर वह सेक्युलर का स्यापा अपने नाम कर लेंगे। इससे तो ऐसा लगने लगा जैसे मुक्तिदाताओं की बाढ़ सी आ गयी है। मसलन सत्तर के दशक में इंदिरा गांधी ने गरीबी से मुक्ति दिलाने का वादा किया पर गरीबी नहीं मिटी, उल्टे तब से गरीब ही मिट रहे हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने कांग्रेसमुक्त भारत का नारा दिया। इसमें भी खास दम नहीं दिखता। कभी लोकसभा में मात्र दो सांसदों वाली भाजपा ने जब अकेले अपने दम पर केंद्र में सरकार बना ली तो यह कैसे माना जाए कि 45 सांसदों वाली कांग्रेस मिट जाएगी? फिलहाल तो उसने राज्यस•ाा की बदौलत ही सरकार की नाक में दम कर रखा है। भय, भूख और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने वाले जुमले भी हर बार चुनाव में सुनायी देते हैं पर इनसे मुक्ति मिलने के दूर-दूर तक आसार नजर नहीं आते। मुक्तिदाताओं की इसी कड़ी में अब बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार का नाम जुड़ गया है। शायद उन्होंने नया मुगालता पाल लिया है कि देश को आरएसएस से मुक्त करेंगे। जो बिहार में अकेले अपने दम पर सरकार बनाने में सक्षम नहीं, वह देश में संघ को मिटाने का दम भर रहे हैं। है ना जुमला..कहां राजा भोज और कहां मंगू तेली? 
सियासत की मोहरे
उत्तराखंड में सियासत की चौसर पर जिस तरह का उतार चढ़ाव चल तहा है, उसमें अदालती फैसलों को लेकर भी बाजियां बारी बारी से उलटफेर का सबब बन तही है। नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा राष्टÑपति शासन हटाने के आदेश होते ही हरीश रावत ने जिस तरह की जल्दबाजी दिखाते हुए बैठेकें करके कई निर्णय ले लिये, जबकि आदेश की प्रति कोर्ट से बाहर भी नहीं आ पाई थी। कुछ घंटो बाद सुप्रीम कोर्ट के नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगी, तो उत्त्राखंड में फिर राष्टÑपति शासन लागू होते ही रावत की सियासी मोहरें चौसर पर बिखरती नजर आयी। मसलन उत्तराखंड की सियासत इस समय केंद्र और अदालत के बीच ऐसी उतझी हुई है, जैसे कोई शतरंज चैंपियनशिप चल रही हो।
दो साल की उपलब्धियों में मशगूल सरकार...
वर्ष 2014 के लोस चुनावों को 26 मई को दो साल पूरे हो जाएंगे। लेकिन इससे पहले आम जनता को इन 24 महीनों के दौरान किए गए जरूरी कार्यों से रूबरू कराए जाने की योजना बनाई जा रही है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से इस बाबत सभी मंत्रालयों को निर्देंश जारी कर दिए गए हैं कि वो जल्द से जल्द अपनी विभागीय जानकारी को उनके साथ साझा करें जिससे वो 26 मई से पहले कुछ जनउपयोगी कार्यक्रमों का निमार्ण कर जनता के साथ रख सके। मंत्रालयों के सूचना अधिकारी इन दिनों अपने-अपने विभागों से दो सालों की उपलब्धियों से जुड़ी जानकारी एकत्रित करने में लगे हुए हैं। पत्र सूचना कार्यालय से लेकर सरकार के अन्य मंत्रालयों में चहलकदमी करने पर होने वाली चर्चाओं में यह  मुद्दा प्रमुखता से सुनाई पड़ जाता है। ऐसे में यही कहेंगे की दो सालों की उपलब्धियों के आंकड़ें जुटाने में व्यस्त है सरकार।  
-ओ. पी. पाल व कविता जोशी
24Apr-2016

शनिवार, 23 अप्रैल 2016

भारत में कितना बढ़ा साइबर क्राइम


-ओमप्रकाश पाल
भारत में दिनों दिन बढ़ते क्राइम में सबसे ज्यादा तेजी से फैल रहा साइबर क्राइम है जो आज भारत के राज्यों में अपनी जड़े फैला चुका है। जैसे-जैसे इंटरनेट के इस्‍तेमाल में बढ़ोतरी हो रही है, वैसे-वैसे साइबर अपराध में भी इजाफा देखा जा रहा है। और इसके लिए भारत में कई कानून भी बने हुए है लेकिन फिर भी अपराधों में कमी नहीं हो रही है।  
बता दें कि नेशनल काइम रिकॉर्ड्स ब्‍यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, 2013 में समाप्‍त हुए तीन वर्षों के दौरान साइबर क्राइम के मामले 966 से बढ़ कर 5,508 हो गए, इसमें 350 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। तो वही दूसरी तरफ ताजा रिपोर्ट ने अनुसार साइबर अपराध के मामलों में वर्ष 2014 में 69 प्रतिशत की वृद्धि हुई और इस दौरान आईटी कानून और भारतीय दंड संहिता आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत 9,622 मामले दर्ज किए गए है।
सबसे ज्यादा साइबर क्राइम वाले राज्य
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, साइबर क्राइम के मामले में चार राज्य सबसे आगे महाराष्ट्र- 907, आंध्र प्रदेश- 631, उत्तर प्रदेश- 682 और कर्नाटक- 533 मामले दर्ज किए गए है। ऐसा लगता है कि साबइर क्राइम उन राज्‍यों में ज्‍यादा है जहां प्रमुख शहरें हैं, जो संकेत करता है कि शहरीकरण बढ़ने के साथ ही इंटरनेट की बढ़ती पहुंच भी एक कारक है। आईटी एक्‍ट 2000 के तहत सबसे ज्‍यादा लोग महाराष्‍ट्र में गिरफ्तार किए गए और उत्‍तर प्रदेश ऐसा राज्‍य रहा जहां सबसे ज्‍यादा लोग भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत गिरफ्तार किए गए। 
सबसे कम साइबर क्राइम वाले राज्य
तो वही दूसरी तरफ सबसे कम वाले राज्यों में मणिपुर -01, अरूणाचल प्रदेश- 10, त्रिपुरा- 14, और मेघालय- 17 मामले दर्ज किए गए। जहां पर इनका आंकड़ा सबसे कम रहा। ये राज्य वो राज्य है जो देश के पूर्वोतर राज्यों में आते हैं।  
मुख्य उद्देश्य- अवैध लाभ, धोखेबाजी, ऑनलाइन डाटा चोरी और तंग करना,
 गौरतलब है कि आंकड़ों से स्‍पष्‍ट होता है कि साइबर क्राइम का मुख्य उद्देश्‍य अवैध कमाई करना, धोखेबाजी करना और तंग करना है। तो वही ज्‍यादातर अपराधों का पंजीकरण अन्य की श्रेणी में किया गया है, इस श्रेणी में 2,042 मामले दर्ज किए गए थे। इन आकड़ों से पता चलता है कि अन्य मामले ज्यादा रहे है। उद्यमियों, व्यापारियों द्वारा ऑनलाइन वाणिज्यिक लेनदेन, ऑनलाइन व्यापारिक गतिविधियां व ऑनलाइन निजी दैनिक जीवन प्रबंधन के डाटा की चोरी कर ली जाती है। इसके माध्यम से कई प्रकार के अपराध साइबर अपराधियों द्वारा किए जाते हैं।
16Apr-2016

सड़क सुरक्षा पर आएगी नई कार्ययोजना!

सरकार को 2020 तक सड़क हादसों को आधा करने का लक्ष्य
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देशभर में सड़क हादसों पर अंकुश लगाने की जारी कवायद के बीच सरकार ने जल्द ही नई कार्ययोजना को अमलीजामा पहनाने का फैसला किया है। वहीं पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने सड़क हादसों के समय घायलों की मदद करने वालों को कानूनी झंझट से बचाने के लिए जारी निर्देशों को लेकर केंद्र सरकार ने शुक्रवार को अधिसूचना जारी की है, जिसमें हादसों के दौरान बेफिक्र होकर कोई भी व्यक्ति किसी की जान बचाने के लिए आगे आ सकेगा।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों ने देश की सड़कों पर सफर को ज्यादा से ज्यादा सुरक्षित बनाने की दिशा में सड़क सुरक्षा में सुधार लाने के लिए किये जा रहे कदमों को लेकर राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के प्रधान परिवहन सचिवों की बैठक में केंद्रीय सड़क परिवहन तथा राजमार्ग सचिव संजय मित्रा ने देश में सुरक्षित और बाधारहित परिवहन व्यवस्था बनाने के अपने मंत्रालय के संकल्प को दोहराया। वहीं इस दिशा में तत्कालिक प्रयासों वाले प्रमुख विषयों पर मंथन करते हुए सड़क परिवहन को सुधारने, दुर्घटनाओं में कमी लाने तथा परिवहन तथा पुलिस विभाग के साथ लोगों के कार्य संबंधी अनुभवों जैसे उपायों को आगे बढ़ाने पर चर्चा की गई। केंद्र सरकार का मकसद सड़कों पर सड़क हादसों और उनके कारण बढ़ रही मौतों में ज्यादा से ज्यादा कमी लाना है, जिसके लिए मोटर परिवहन कंपनियों, राज्य सड़क परिवहन प्रतिष्ठानों तथा बस आॅपरेटरों के प्रतिनिधियों को भी इस बैठक में स्थान देकर चिंताओं पर गौर किया गया। इस दिशा में नई कार्ययोजना की तैयारी में सरकार के सड़क सुरक्षा एजेंडा में गैर-मोटर वाहन, पैदल यात्रियों, आॅटोमोबिल सुरक्षा विशेषताओं, आॅटोमोबिल गुणवत्ता नियंत्रण, ड्राइविंग लाइसेंस, वाहन फिटनेस,सार्वजनिक शिक्षा,यातायात व्यवस्था को मजबूत बनाने तथा परिवहन और पुलिस के साथ लोगों के संपर्क और कार्यों के बारे में अनुभवों को बढ़ाने के कदमों तथा परिवहन सहजता को शामिल करने की योजना है।

मैरीकॉम, स्वामी, सिद्धू राज्यसभा सदस्य मनोनीत!

राज्यसभा में बढ़ी मोदी सरकार की ताकत
अर्थशास्त्री नरेन्द्र जाधव, मलयाली अभिनेता सुरेश गोपी व स्वपन दासगुप्ता भी मनोनीत 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार द्वारा राज्यसभा में अपने वजूद को बढ़ाने के लिए की जा रही कवायद में पांच रिक्त मनोनीत सीटों पर जिन नामों की संतुति की थी, उन्हें उच्च सदन के लिए नामित कर लिया गया है। इन सदस्यों के मनोयन को सत्तापक्ष की ताकत के रूप में देखा जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार राज्यसभा की 245 सीटों में से केंद्र सरकार 12 सदस्यों को नामित करने के लिए राष्ट्रपति को सूची भेजती है, जिस पर राष्ट्रपति को नामित करने के लिए अपनी मंजूरी देनी होती है। राज्यसभा में सात मनोेनीत सीटों की रिक्तियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा भेजी गई सूची में से भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी व नवजोत सिंह सिद्धू, पत्रकार स्वपन दासगुप्ता के अलावा ओलंपिक पदक विजेता महिला मुक्केबाज मैरीकॉम व मलयाली अभिनेता सुरेश गोपी और अर्थशास्त्री नरेन्द्र जाधव को राज्यसभा के लिए नामित करने की मंजूरी दे दी है। राज्यसभा में अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने पिछले महीने रिक्त हुई इन सीटों को भरने के लिए केंद्र सरकार ने इन नामों की सूची तैयार की थी। गौरतलब है कि गत 21 मार्च को ही राज्यसभा में मनोनीत सदस्य मणिशंकर अय्यर,जावेद अख्तर, बी. जयश्री, मृणाल मिरी और बालचंद्र मुंगेकर ने अपना कार्यकाल पूरा किया था, जबकि दो मनोनीत सदस्य अशोक गांगुली और एचके दुआ पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके थे। इन छह सदस्यों के नामित होने के बाद अभी भी एक सीट रिक्त है, जिस पर जल्द ही मनोयन होने की संभावना है। सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार ने राज्यसभा में मनोनीत सदस्यों के रूप में सातवें नाम के रूप में मशहूर पटकथा लेखक और अभिनेता सलमान खान के पिता सलीम खान का नाम भी भेजा था, लेकिन उनके नामित होने की पुष्टि नहीं हुई है। सरकार की सिफारिश पर जिन सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जाता है, उनमें ज्यादातर साहित्य, कला, खेल,विज्ञान या समाजसेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट सहयोग देने वाले शामिल किये जाते हैं।
सत्ता पक्ष को मिलेगा फायदा
आगामी 25 अप्रैल से संसद के बजट सत्र का दूसरा हिस्सा शुरू हो रहा है, इसलिए शुक्रवार को नामित छह सदस्यों से भाजपा की ताकत मजबूत होना तय है। यानि उच्च सदन में किसी विधेयक पर मतदान की नौबत आएगी तो ऐसे में इन मनोनीत सदस्यों का लाभ भाजपा को मिल सकता है। हालांकि मनोनीत सदस्यों पर सरकार और विपक्षी किसी का दवाब नहीं दिया जा सकता है।
23Apr-2016

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

बुंदेलखंड बनने की राह पर वेस्ट यूपी!

समस्या से जल्द न निपटा गया तो भयावह होंगे हालात
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देशभर में जल संकट के छाये बादलों ने गंगा और युमना के बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश को भी बुंदेलखंड की राह पर जल संकट के खतरे में धकेलना शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों का मत है कि यदि समय रहते सतर्कता न बरती गई तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जल संकट और सूखे की स्थिति बुंदेलखंड से भी ज्यादा भयावह साबित होगी।
देशभर के करीब 18 राज्यों में तेजी से गिरते भूजल स्तर के कारण जहां मराठवाडा और बुंदेलखंड में किसानों पर पड़ रही सूखे की मार के साथ आम लोगों के गले सूखने की नौबत आ खड़ी हुई है। उसी तरह जीवनदायिनी गंगा-यमुना भी सूखने के कगार पर आ खड़ी हुई है। उत्तर प्रदेश भूगर्भ जल विभाग के निदेशक एसके साहनी का कहना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आधा दर्जन से ज्यादा जिलों में इन दिनों उपलब्ध भूजल का 69.51 प्रतिशत पानी इस्तेमाल हो रहा है। मसलन भविष्य के लिए महज 30 फीसदी पानी ही बचा है। अगर रिचार्ज सिस्टम नहीं बढ़ाएंगे तो आने वाले समय में संकट तेजी से बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। मसलन गंगा और यमुना की सहायक नदियां भी बीमार होती जा रही है। ऐसे में भूजल पर निर्भर इस इलाके की किसानी खेती और उद्योग आदि पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं, इस इलाके में हर साल 55 सेंटीमीटर की दर से भूमि जल का स्तर गिरता आ रहा है। यानि हर साल करीब ढाई फीसदी की दर से भूजल का दोहन बढ़ रहा है।
तेजी से गिरा भूजल स्तर
भूजल विभाग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इतनी तेजी से गिरते भूजल स्तर जल संकट के खतरे के संकेत दे रहा है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 22 ब्लॉकों में भू-जल का अतिदोहन हो रहा है, जिनमें 9 ब्लॉक अकेले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामिल है। वेस्ट यूपी के हैं। इस रिपोर्ट की माने तो सेमीक्रिटीकल श्रेणी में शामिल 53 ब्लॉकों में भी पचास फीसदी से ज्याद यानि 28 ब्लॉक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं। पश्चिमी यूपी के मेरठ जिले का मुख्यालय मेरठ, रजपुरा, मवाना और खरखौदा ब्लॉक जल्द ही क्रिटीकल की श्रेणी की तरफ बढ़ रहे हैं, जबकि बागपत के बिनौली और बागपत ब्लॉक पहले ही डार्क जोन में शामिल हैं।

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

पहली बार बिछा सबसे लंबा सड़कों का जाल!

देश में अगला लक्ष्य 25 हजार किमी सड़कों का निर्माण
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में बुनियादी ढांचे को मजबूत करके विकास के एजेंडे पर आगे बढ़ती सरकार ने वर्ष 2016-17 में राष्ट्रीय राजमार्गो के आवार्ड और निर्माण के लक्ष्य में ढाई गुणा बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा है। बीते वित्तीय वर्ष में छह हजार किमी राजमार्ग के निर्माण से उत्साहित सरकार ने सड़क निर्माण की रμतार को ओर तेज करके 25 हजार किमी सड़क निर्माण करने का निर्णय लिया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2015-16 में छह हजार किमी राजमार्ग निर्माण से सामने आए सकारात्मक नतीजो को लेकर सरकार उत्साहित है। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री ने देश में सुरक्षित सफर की तकनीक को सड़क निर्माण में इस्तेमाल करके वर्ष 2016-17 के लिए सड़क परियोजनाओं में तेजी लाने पर बल दिया और देश में ओर बड़ा लक्ष्य तय करके राष्ट्रीय राजमार्गों के अवार्ड और निर्माण में 2.5 गुना बढ़ोतरी यानि 25 हजार किमी सड़क निर्माण करने का लक्ष्य तय किया है। मंत्रालय का दावा है कि आजाद भारत में सड़क निर्माण के जरिए विकास को पहली बार इतनी तेज गति मिली है, जिसमें मंत्रालय ने दस हजार किमी राष्ट्रीय राजमार्ग का अवार्ड किया था और छह हजार किमी लंबाई से भी ज्यादा सड़के बनायी गई हैं। गडकरी का कहना है कि पछले साल के विकास की गति स्थापित होने से उम्मीद है कि चालू वर्ष के इस लक्ष्य की कसौटी पर भी केंद्र सरकार खरी उतरेगी। मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि वर्ष 2016-17 में तय किये गये 25 हजार किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग के लक्ष्य वाले अवार्ड के लिए लक्षित राष्ट्रीय राजमार्ग की कुल लम्बाई में 15 हजार किमी सड़कों के निर्माण को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानि एनएचएआई के अधीन होगा, जिसके निर्माण के लिए एनएचएआई के हिस्से में आठ हजार किमी तथा सात हजार किमी का लक्ष्य केंद्रीय सड़क मंत्रालय और एनएचआईडीसीएल के लिए निर्धारित किया गया है। जबकि बाकी 10 हजार किमी सड़क बनाने की जिम्मेदारी भी मंत्रालय तथा राष्ट्रीय राजमार्ग एवं बुनियादी ढांचा विकास निगम यानि एनएचआईडीसीएल के अधीन होगी। 
36 प्रतिशत बढ़ा निर्माण
मंत्रालय के मुताबिक वर्ष 2015-16 के दौरान सरकार को लक्ष्य की 60 प्रतिशत से ज्यादा परिणाम मिले, लेकिन छह हजार किमी सड़क निर्माण होने से वर्ष दर वर्ष लगभग 36 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई। सड़क निर्माण के जरिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में सड़क परियोजना के काम में तेजी लाना सरकार विभिन्न नीतिगत हस्तक्षेपों के कारण संभव हुआ। मंत्रालय का दावा है कि बीते वर्ष प्रतिदिन 18 किमी सड़क निर्माण तक पहुंची गति पिछले अरसो में सबसे तेज रही, जिसके इस साल प्रतिदिन 30 किमी के लक्ष्य से ज्यादा पहुंचने की उम्मीद है।
ऐसे बढ़ी बदलाव की डगर
मोदी सरकार ने बुनियादी ढांचों में सड़क निर्माण को विकास प्रमुख स्तंभ मानते हुए सकारात्मक कदमों को तेजी से लागू किया। इसकी पृष्ठभूमि में सड़क मंत्रालय को आपूर्ति की प्रणाली में निर्णय लेने का अधिकार दिया जाना भी बड़ा कारण माना गया है। वहीं परियोजनाओं के अनुमोदन की सीमा रेखा और अंतर-मंत्रालयी समन्वय विकास नीति में वृद्धि, हाइब्रिड वार्षिकी मॉडल की तरह नवाचार परियोजना कार्यान्वयन मॉडल को बढ़ावा देने से भी निर्माण कार्य को बल मिला। सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में खासकर राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं के मूल्यांकन और अनुमोदन के लिए सिविल लागत को पूंजीगत लागत से अलग करना तथा विलंब के लिए बीओटी प्रणाली में अटकी राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना के लिए कंसेसियनार को युक्तिसंगत मुआवजा को प्रोत्साहित करना भी शामिल है। सरकार ने परियोजनाओं के नवीकरण के संबंध में चीफ इंजीनियरों को अधिकार सौंपने और बीओटी परियोजनाओं के लिए मॉडल रियायत अनुबंध (एमसीए) में संशोधन भी किये हैं।
21Apr-2016

राजीव गांधी खेल अभियान बना ‘खेलो इंडिया’

केंद्र ने कई योजनाओं से हटाए राजीव-इंदिरा के नाम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार द्वारा देश में राजीव गांधी और इंदिरा गांधी के नाम से चल रही योजनाओं से उनके नाम हटाने की मुहिम में राजीव गांधी खेल अभियान योजना को हटाकर उसके स्थान पर ‘अब खेलो इंडिया’ की योजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। इस निर्णय के तहत 'शहरी विकास बुनियादी ढांचा योजना' और 'राष्ट्रीय खेल प्रतिभा खोज व्यवस्था योजना' को भी ‘अब खेलो इंडिया’ के दायरे में शामिल करने का ऐलान किया है
केंद्र सरकार ने खेलों के विकास के लिए 'राजीव गांधी खेल अभियान' वाले राष्ट्रीय कार्यक्रम को भी बजट के दौरान ही 'खेलो इंडिया’ योजना के रूप में करने का ऐलान किया था। केंद्रीय खेल मंत्रालय के अनुसार राजीव गांधी खेल अभियान योजना को फरवरी 2014 में राहुल गांधी और तात्कालीन खेल मंत्री जीतेंद्र सिंह ने शुरू किया था। यह योजना भी पंचायत युवा क्रीडा और खेल अभियान की जगह लाई गई थी। कांग्रेस द्वारा लागू की गई स्पोर्ट्स प्रोजेक्ट अर्बन स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर स्कीम और नेशनल स्पोर्ट्स टैलेंट सर्च स्कीम को खेलो इंडिया में शामिल किए जाने पर स्वयं केंद्रीय खेल मंत्री सरबानंद सोनोवाल ने कहा कि इसमें किसी तरह की राजनीति नहीं है, बल्कि इसे मर्ज करने का उद्देश्य बेहतर और प्रतियोगी माहौल तैयार करना था। खेलो इंडिया के दायरे में आई 'शहरी विकास बुनियादी ढांचा योजना' और 'राष्ट्रीय खेल प्रतिभा खोज व्यवस्था योजना' को यूपीए सरकार ने 'राष्ट्रमंडल खेल 2010' को आपस में मिलाकर एक नई योजना बनाई थाी।

बुधवार, 20 अप्रैल 2016

तेजी से बढ़ी बसपा की वार्षिक आय!


भाजपा सबसे अमीर राजनीतिक दल
कांग्रेस ने नहीं दिया वार्षिक आय का विवरण 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट और केंद्रीय सूचना आयोग के निर्देशों के बावजूद कांग्रेस ऐसे राष्ट्रीय दल के रूप में सामने आई है, जिसने आज तक वर्ष 2014-15 की आय-व्यय विश्लेषण पेश ही नहीं किया है। चुनाव आयोग के समक्ष जिन पांच राष्ट्रीय दलों में बसपा ने तेजी के साथ अपनी आय में इजाफा करके भाजपा को भी पीछे धकेल दिया है।
केंद्रीय चुनाव आयोग में छह राष्ट्रीय दलों को 30 नवंबर 2015 तक अपने-अपने आय-व्यय विश्लेषण की रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था, लेकिन कांग्रेस ने मंगलवार 19 अप्रैल तक 141 दिन बीत जाने के बावजूद अपना आय-व्यय ब्यौरा पेश ही नहीं किया। जबकि अन्य पांच राष्ट्रीय दल भाजपा, बसपा, राकांपा, सीपीएम व सीपीआई अपनी वार्षिक आर्थिक रिपोर्ट आयोग में प्रस्तुत कर चुकी है। इन पांच दलों में हालांकि आय की आय में पिछले वर्ष 2013-2014 की 673.81 करोड़ में सबसे ज्यादा 296.62 करोड़ रुपये का इजाफा करके 44.02 फीसदी बढ़ोतरी की है, लेकिन भाजपा से भी ज्यादा तेजी के साथ पिछले वित्तीय वर्ष की आय में बहुजन समाज पार्टी ने छलांग लगाते हुए 67.31 फीसदी का इजाफा किया है। हालांकि इस बढ़ोतरी के साथ बसपा ने पार्टी की कुल आय 111.95 करोड़ रुपये ही प्रस्तुत की है। इसके अलावा शरद पवार की पार्टी राकांपा ने 12.22 करोड़ की वृद्धि के साथ 67.64 करोड़ रुपये घोषित की है। जबकि सीपीएम की आय में 2.05 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी के साथ 123.92 करोड़ रुपये सामने आई है। इस विश्लेषण में सीपीआई ऐसी पार्टी के रूप में सामने आई है, जिसके वार्षिक आय में पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले 59 लाख रुपये की की कमी दर्शायी गई है, यानि सीपीआई की पिछले साल की 2.43 करोड़ रुपये की राशि घटकर 1.84 करोड़ ही रह गई है। जबकि कांग्रेस अपनी रिपोर्ट पेश ही नहीं कर पाई, जो पिछले वित्तीय वर्ष की आय को 598.06 करोड़ रुपये घोषित करके सबसे अमीर राजनीतिक दल के रूप में उभरी थी। हालांकि सख्त विरोध जताते हुए कांग्रेस ने पिछले साल की रिपोर्ट पेश की थी।
आय में 88.73 फीसदी चंदे का हिस्सा
चुनाव आयोग के समक्ष इन पांच दलों द्वारा पेश किये गये अपने वित्तीय ब्यौरे की 1275.80 करोड़ की आय में 1159.17 करोड़ रुपये यानि 88.73 प्रतिशत धन अनुदान या चंदे और कूपन के जरिए एकत्रीकरण होने का दावा किया गया है। इस मामले में भाजपा की कुल 970.43 करोड़ रुपये की आय में 940.39 करोड़ की राशि अनुदान, चंदे और सहयोग निधि का हिस्सा बताया गया है। जबकि इसके बाद बसपा की कुल 111.95 करोड़ में 92.80 करोड़ रुपये चंदे का रूप है। जबकि राकपां की कुल आय में 38.82 करोड़ रुपये चंदे और 27.17 करोड़ कूपन की बिक्री से आये हैं। सीपीएम को चंदे के रूप में 59.27 करोड़ तो सीपीआई को केवल 72 लाख रुपये का चंदा मिला है। इन राष्ट्रीय दलों की आय बढ़ाने वाले स्रोतों यानि दान या चंदा अथवा कूपन का हवाला दिया  गया है । 

मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

अब सरपट दौडेंगे यूपी-उत्तराखंड में वाहन

सौलह साल बाद परवान चढ़ा परिवहन समझौता
नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के अलग होने के बाद ही दोनों राज्यों के बीच परिवहन निगम की बसों को एक-दूसरे राज्यों में आने-आने को लेकर विवाद का आखिरी पटाक्षेप हो ही गया, जिसमें पूरे 16 साल बाद दोनों राज्यों के बीच परिवहन समझौते को पटरी पर उतारा जा सका। इस समझौते के बाद अब दोनों राज्यों की परिवहन निगम की बसों के चालकों के बीच आये दिन होते आ रहे झगड़े फिसाद का सिलसिला भी थम गया है। 
परिवहन समझौते के लिए चलाई थी मुहिम
सूत्रों के अनुसार उत्तराखंड ने अलग राज्य बनने के बाद से ही यूपी, हरियाणा, दिल्ली आदि राज्यों के साथ परिवहन समझौते के लिए मुहिम चलाई थी, जिसमें केवल यूपी परिवहन निगम ही ऐसे समझौते में अवरोध बनता रहा है। यही कारण था कि एक दूसरे राज्य निगम की बस एक-दूसरे राज्य में जाती तो रही है, लेकिन कई बार उनके चालकों में सिर फुटव्वल जैसी नौबत भी सामने आई है। यूपी और उत्तराखंड में परिवहन समझौते के कई प्रयास हुए, लेकिन उन्हें परवान नहीं चढ़ाया जा सका।  
विवाद का झंझट भी खत्म
सूत्रों के अनुसार हाल ही में उत्तराखंड और यूपी के परिवहन निगम के प्रबंध निदेशकों लखनऊ में हुई बैठक दोनों राज्यों के बीच सहमति बनी, जिसके बाद उत्तराखंड परिवहन निगम के एमडी बृजेश संत और यूपी परिवहन निगम के एमडी के. रविन्द्र नायक ने अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर कर किये। उत्तराखंड परिवहन निगम के महाप्रबंधक दीपक जैन ने इस समझौते की पुष्टि करते हुए बताया कि दोनों राज्यों के निगमों के बीच 15 फीसदी बस फेरे बढ़ाने पर भी सहमति बनी है। इससे पहले यूपी परिवहन निगम की अड़ंगेबाजी से हर बार समझौते की कवायद ठंडे बस्ते में चली जाती थी। इस करार के तहत समय सारिणी बनने से दोनों प्रदेशों की बसों के चालकों के बीच आय दिन होने वाले विवाद का झंझट भी खत्म हो गया है। 

नमामि गंगे पर बढ़ते कदम, पर मैली है गंगा!

दिल्ली में बेसिन प्रबंधन व अध्ययन केंद्र शुरू
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
गंगा और सहायक नदियों के पानी को स्वच्छ एवं उनकी धारा को निर्मल बनाने के लिए केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी राष्ट्रीय गंगा स्वच्छता अभियान यानि नमामि गंगे मिशन के लिए सरकार भले ही एक के बाद एक कदम उठा रही हो, लेकिन अभी गंगोत्री से निकलते ही गंगा मैली की मैली है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम मिशन के रूप में स्वच्छ गंगा परियोजना यानि ‘नमामि गंगे’ का ऐलान करने के बाद केेंद्रीय बजट 2014-15 में इसके लिए 2,037 करोड़ रुपयों का आरंभिक बजटीय प्रावधान किया, जिसे बढ़ाते हुए अगले पांच साल के लिए इस बजट को बढ़ाकर 20 हजार करोड़ कर दिया गया। ऐसा नहीं कि केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती इस परियोजना के लिए गंभीर नहीं है। उनके मंत्रालय ने गंगा टास्क फोर्स, गंगा के तटों पर वनीकरण, गंगा सफाई के प्रदूषण के लिए सवा सौ टीमें गठित करने के साथ जिन राज्यों के 118 शहरों से होकर गंगा गुजरती है वहां के स्थानीय प्रशासन, स्थानीय निकायों के अलावा सरपंचों तक को इस अभियान में सहयोग के लिए सम्मेलन किये। मसलन नमामि गंगे मिशन जमीन पर तो उतर गया है और निरंतर गठित टीमों के साथ तकनीकी अध्यन तक कराने में कोई कसर नहीं छोडी। यही नहीं कई देशों के साथ तकनीकी सहयोग के लिए समझौते भी किये जा चुके हैं, लेकिन इस परियोजना के पूरे खाके को नक्शे पर उतारने के बावजूद गंगा को प्रदूषित करते 764 औद्योगिक निर्देशों का उल्लंघन करके इसमें अभी भी रोड़ा बने हुए हैं। उमा भारती का कहना है कि प्रवाह उपचार संयंत्रों और सीवेज उपचार संयंत्रों की स्थापना से गंगा नदी को साफ करने पर जोर है और इन मुद्दों को विश्व से प्रौद्योगिकी प्राप्त करके सुलझाया जा सकता है।
घर में ही खराब गंगा की सेहत
केंद्र सरकार नमामि गंगे मिशन के लिए निरंतर एक के बाद एक कदम उठा रहा है, लेकिन इसके बावजूद सच्चाई यह है कि गंगोत्री से हरिद्वार तक का ही पानी प्रदूषित हो चुका है, भले ही देखने में उत्तराखंड में भागीरथी या गंगा का नीला पानी साफ होने का अहसास दिलाता रहे। वैज्ञानिकों इस बात की पुष्टि करते हुए कह चुके हैं कि गंगोत्री से ऋषिकेश तक गंगा का पानी स्नान करने लायक भी नहीं रहा है और हरिद्वार के बाद तो गंगा नदी के पानी का इस्तेमाल बीमारियों को न्यौता देने लगा है। मसलन गोमुख से उत्तरकाशी तक करीब दस छोटे कस्बे होने के बावजूद इनमें से कहीं पर भी सीवर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित नहीं हैं। जबकि एक रिपोर्ट के अनुसार देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा के मिलने के बाद गंगा बनती है। हालांकि ऋषिकेश में लक्ष्मणझूला और त्रिवेणी घाट में सीवर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित होने से गंगा को गंदगी से मुक्ति मिली है। गंगा की सेहत में सुधार के लिए हालांकि राज्य सरकारें 2010 के बाद जागरूक हुई हैं, तो भागीरथी, अलकनंदा के किनारे के नगरों, कस्बों में सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की शुरूआत हुई और नमामि गंगे योजना के तहत गंगा में साफ पानी के प्रवाह की दिशा में शोधन संयंत्रों की योजना को आगे बढ़ाया जा रहा है।

सोमवार, 18 अप्रैल 2016

राज्यों के सिर फूटा जल संकट का ठींकरा!


केंद्र से जारी पैकेज पर राज्यों को फटकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश के आधे राज्य जल संकट की तरफ जा रहे हैं, जिनमें तेरह राज्यों में गहराते जा रहे ज्यादा जल संकट का ठींकरा केंद्र सरकार ने राज्यों के सिर फोड़ना शुरू कर दिया है। इन राज्यों में खासकर पेयजल की समस्या से निपटने की दिशा में तल्ख भरे निर्देश जारी कर साफ कर दिया है कि केंद्र से जारी पैकेज से राज्य ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल किल्लत से निपटने में फ्रीहैंड हैं। इसलिए पानी संबन्धी शिकायत केंद्र तक नहीं पहुंचनी चाहिए।
मौसम विभाग की इस भविष्यवाणी कि इस बार सामान्य से ज्यादा बारिश होगी, लेकिन उसका इंतजार अभी दूर है। फिलहाल देश में सभी प्रमुख 91 जलाशयों में पानी का स्तर तेजी से गिरने से 18 राज्यों में जल संकट की आशंका बनी हुई है और इनमें तेरह राज्यों जिनमें मराठवाडा और बुंदेलखंड भयंकर जल संकट रडार पर आ चुके हैं। केंद्र सरकार ने इन तेरह राज्यों को ग्रामीण पेयजल योजना के तहत 819 करोड़ रुपये की पहली किस्त भी जारी कर दी है, जबकि इन राज्यों के पास पहले से ही इस योजना में 2365 करोड़ रुपये का अधिशेष है। ऐसे में केंद्र सरकार ने तर्क दिया है कि पेयजल समस्या से निपटने के लिए तमाम आर्थिक स्रोत के लिहाज से केंद्र ने इन राज्यों को फ्रीहैंड किया हुआ है। इसके बावजूद हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे नौ राज्यों में लातूर जैसे जल संकट की आशंका बनी हुई है।
ब्लॉक स्तर पर निगरानी के निर्देश
देश में जल संकट खासकर पेयजल के मामले में केंद्र सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के सचिव ने 13 राज्यों के प्रमुख सचिवों को तल्ख अंदाज वाले एक पत्र में केंद्र द्वारा जुटाए गये तमाम आर्थिक स्रोतों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया है कि राज्यों को ऐसी स्थिति मे किसी भी कीमत पर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को पीने के पानी से इंकार नहीं करना चाहिए। मसलन केंद्र की मंशा साफ है कि किसी भी स्थिति मे पानी संबन्धित शिकायत दिल्ली तक नहीं पहुंचनी चाहिए। केंद्र सरकार द्वारा जारी कड़े निर्देशों में यह भी साफ कहा गया है कि पानी की किल्लत से निपटने के लिए राज्य सरकारें अब प्रदेश स्तर से लेकर ब्लॉक स्तर तक पेयजल निगरानी प्रकोष्ठ गठित गठित करना सुनिश्चित करें। कल सोमवार को केंद्रीय पेयजल सचिव स्वयं पानी के हालातों पर राज्यों के अधिकारियों के साथ वीडियो कांफ्रेसिंग करेंगे।

रविवार, 17 अप्रैल 2016

राग दरबार: रार में फंसी अधिकारों की पहेली.....

कमजोर कड़ी पर मजबूती से वार
देश की विडंबना है कि अधिकारों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों में टकराव और तनातनी का खामियाजा देश या समाज को हीभुगतना पड़ता है। भले ही वह संसद में बनने वाले कानूनों का मामला हो या फिर अन्य कोई भी मुद्दा। संसद में ऐसे ही अधिकारों पर अतिक्रमण जैसे तथाकथित आरोपो को लेकर कई विधेयक कानूनी रूप नहीं ले पाये हैं। ऐसा ही एक ताजा मामला मीडिया निकाय की शक्तियों या अधिकारों के मुद्दे को लेकर सामने आया है, जिसमें सरकार और भारतीय प्रेस परिषद आमने सामने हैं। दरअसल प्रेस परिषद ने एक मामले में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के एक नौकरशाह को हाजिर होने के लिए समन जारी किया था। मंत्रालय के सचिव स्तर के ये अधिकारी हाजिर नहीं हुए तो प्रेस परिषद ने उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का फैसला सुना दिया। फिर क्या था केंद्र सरकार और प्रेस परिषद में टकराव होना लाजिमी था, जो अधिकारों के हक को लेकर उजागर भी हो गया। मसलन मंत्रालय ने भी अपना असर दिखाते हुए इस मामले में प्रेस परिषद पर वार करते हुए कह ही दिया कि उसके पास सीमित शक्तियां है, जो हर बात न्यायपालिका की तर्ज पर फैसला नहीं ले सकती। जबकि परिषद के अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत) सीके प्रसाद का तर्क है कि उसके पास वारंट जारी करने की शक्ति है। केंद्र सरकार और परिषद की इस तनातनी को लेकर राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि प्रेस परिषद अपने अधिकारों के दायरे में ही काम करती है और उसी के तहत यह समन जारी किया गया, तो अन्य विवादों की तरह परिषद के लिए अन्य लोगों की तरह दोनो पक्षों पर निर्णय दे सकती हैं, चाहे वह कितना ही बड़ा व्यक्ति या अधिकारी क्यों न हो। स्वयत्तशासी संस्था के रूप में परिषद को जबकि सभ्‍ाी अधिकार सरकार द्वारा ही प्रदत्त हुए हैं ,तो ऐसे में संस्था पर उंगली उठाकर मंत्रालय कुछ ऐसी कहावत को चरितार्थ करता दिख रहा है, जिसे एक कवि ने कुछ यूं कहा-‘नहीं मालूम कितना गहरा है ये दरिया, वो कुछ ना कर पाए उसे लाचार करना है। एक एक करके तोड़नी है कड़ी जंजीर की, कमजोर कड़ी पर मजबूती से वार करना है’..।

शनिवार, 16 अप्रैल 2016

देश में आईएस का मुकाबला ऐसे करेगा भारत!

केंद्र सरकार जल्द ही लागू करेगी खास नीति
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
पाकिस्तान से लगी भारतीय सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए पांच स्तरीय सुरक्षा प्रणाली के बाद अब भारत के खिलाफ हमलों की साजिश रच रहे आतंकी संगठन आईएसआईएस से निपटने की तैयारी सरकार की प्राथमिकता पर होगी। मसलन आईएस का मुकाबला करने के लिए भारत एक खास योजना बना रहा है। पाकिस्तानी सीमा से आतंकवादियों की घुसपैठ को रोकने का तो भारत ने भारत की पश्चिमी सीमाओं को सुरक्षित करने के तो पुख्ता इंतजाम कर लिये हैं, लेकिन इस्लामिक आतंकी संगठन आईएसआईएस की भारत के खिलाफ चल रही हमलों की साजिश को नेस्तनाबूत करने पर भी भारत गंभीर है। दरअसल आतंकवादी संगठन आईएसआईएस सोशल मीडिया पर अपने ग्रुप और वीडियो के जरिए भारतीय युवाओं के दिमाग में नफरत के जहर घोल रहा है, इसी चुनौती से निपटने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने वर्ल्ड साइबर जैसे खतरे को मात देने हेतु एक नेशनल सोशल मीडिया नीति तैयार की है, जिसे जल्द ही लागू किया जाएगा।
सांप्रदायिक सौहार्द्र पर फोकस
सरकार द्वारा तैयार किये जा रहे इस नीति के मसौदे में सोशल मीडिया पर फैलाई जाने वाली अफवाहों से निपटना पहली प्राथमिकता होगी, ताकि देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र को कायम रखा जा सके। गृह मंत्रालय के सूत्रों की माने तो आईएस देश में ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है, ताकि सांप्रदायिकता फैले और खासकर छात्रों का हुड़दंग या दो समुदायों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो सके। देश में युवाओं के बीच ऐसी घटनाएं होने के पीछे खुफिया विभाग की रिपोर्ट आईएस की साजिश होने की पुष्टि कर चुकी है। वैसे भी आईएस के लिए लड़ाकों की भर्ती के अभी तक सभी मामलों में इंटरनेट का जरिया बना है। इसलिए सरकार ने सोशल मीडिया के माध्यम से ही सकारात्मक संदेश देने पर जोर दिया है। दूसरी ओर हाल ही में आईएस की हिंदुओं को भी निशाने पर लेने वाली धमकी इसी साजिश का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें भारत पर बांग्लादेश और पाकिस्तान की सीमाओं से दोहरा हमले के तहत गुरिल्ला वार करने की योजना का भी खुफिया विभाग ने खुलासा किया है।

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

आधे भारत पर मंडराए जल संकट के बादल!


देश के जलाशयों में भी तेजी से गिरा जल स्तर
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में जल संकट से निपटने के लिए मोदी सरकार ने विभिन्न राज्यों में कुएं और तालाब खोदने, भूजल स्तर को सुधारने जैसी परियोजनाओं को पटरी पर उतारने का दावा किया है। वहीं सरकार ने मराठवाड़ा और बुंदेलखंड जैसे कई इलाकों के साथ देश के कम से कम 18 राज्यों में पानी की कमी होना स्वीकार किया है। मसलन आधे भारत में जल संकट के बादल छाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
केंद्र सरकार के बजट में जल संकट से निपटने के लिए जल प्रबंधन के लिए इस बार 168 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 12,517 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। इसके अलावा देश में गिरते भूजल के स्तर को सुधारने के लिए छह हजार करोड़ रुपये अलग से आवंटित किये हैं, जिसमें कुएं और तालाब खोदने की योजना का खाका तैयार किया गया है। भूजल के कुल वित्तीय परिव्यय 6000 करोड़ रुपए में से 3000 करोड़ रुपए आईबीआरडी ऋण के रूप में मिलेगा। छह साल के लिए तैयार इस परियोजना के चार प्रमुख घटक रहेंगे, जिनमें भूमि जल प्रबंधन के लिए निर्णय सहायता तंत्र, स्थायी भूमि जल प्रबंधन के लिए क्षेत्र विशिष्ट ढ़ांचा, भूमि जल पुनर्भरण को बढ़ाना और जल उपयोग दक्षता में सुधार, समुदाय आधारित प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए संस्थाओं का सुदृढ़ीकरण करना है। वहीं सरकारी की नदियों को जोड़ने की परियोजना भी जल संकट से निपटने का हिस्सा है। इसके बावजूद गर्मी बढ़ने के साथ जहां मराठवाड़ा और बुंदेलखंड में मौजूदा जल संकट से मचे हा-हाकार सुर्खियों में है, वहीं इस समस्या से निपटना सरकार के लिए चुनौती साबित हो सकती है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री भारती ने खुद माना है कि देश में बढ़ते इस जल संकट का कारण भूमि जल संसाधनों के अतिदोहन, अस्थायी सिंचाई और जल गुणवत्ता गिरने से भूजल आपूर्ति से बढ़े खतरे हैं। जबकि दुनियाभर में भारत को भूजल सबसे बड़ा प्रयोक्ता माना गया है, जहां कुल 433 क्यूबिक किलोमीटर पुनर्भरणीय स्रोतों से हर साल 245 क्यूबिक किलोमीटर भूमि जल दोहन होने अनुमान लगाया गया है, जो विश्व के कुल जल का एक चौथाई से भी अधिक है।

गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

मानव तस्करी पर लगाम कसने की तैयारी!

यूएई के बाद अन्य देशों से भी होंगे भारत के करार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार भारत मेें बढ़ते नशीली दवाओं और हथियारों के कारोबार के बाद मानव तस्करी खासकर बच्चों और महिलाओं के अवैध व्यापार पर लगाम लगाने की कवायद कर रही है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद केंद्र सरकार सख्त कानून बनाने की भी तैयारी में जुटी है। वहीं मानव तस्करी के कारोबार से जुड़े देशों के साथ समझौते करके ऐसी गतिविधियों को रोकने के प्रयास किये जा रहे हैं।
केंद्र सरकार ने मानव तस्करी के गोरखधंधे पर शिकंजा कसने के लिए बुधवार को संयुक्त अरब अमीरात से किये गये एक समझौते को मंजूरी दी है। इसी तरह जिन देशों में बच्चों, महिलाओं या अन्य व्यक्तियों को मानव तस्करी की गतिविधियां चल रही है, उनके साथ भी भारत सरकार इसी तरह के समझौते करके मानव के अवैध व्यापार को रोकने की कवायद तेज करने की तैयारी में है। भारत को एशिया में मानव तस्करी का गढ़ माना जाता है। सरकारी आंकड़ों पर गौर की जाए तो यहां देश में हर 8 मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार मानव तस्करी करने वाले गिरोह किसी व्यक्ति को डराकर, बलप्रयोग कर या दोषपूर्ण तरीके से भर्ती, परिवहन या शरण में रखने की गतिविधि तस्करी के कारोबार को चला रहे हैं। दुनियाभर में 80 प्रतिशत से ज्यादा मानव तस्करी यौन शोषण के लिए तो होती ही है, वहीं बंधुआ मजदूरी के लिए भी ऐसी गतिविधियां सक्रिय हैं।
सख्त कानून बनाएगी सरकार
केंद्र सरकार ने पिछले दिनों ही मानव तस्करी पर सख्त कदम उठाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है कि मानव तस्करी और महिलाओं को जबरन देह व्यापार में धकेलने वालों के गठजोड़ का पदार्फाश करने के लिये एक प्रभावी कानून के मसौदे को तैयार किया जा रहा है, जिसके तहत एक जांच एजेंसी का गठन करने का प्रस्ताव भी है। गौरतलब है कि जस्टिस अनिल आर दवे की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने से कहा था कि वह संगठित अपराध जांच एजेंसी का गठन करके मानव तस्करी के खिलाफ कार्रवाही अमल में लाए। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी भरोसा दिलाया था कि मानव तस्करी और यौन शोषण को रोकने के लिए सरकार जल्द ही सख्त काननू लेकर आएगी। हालांकि देश में अनैतिक तस्करी निवारण अधिनियम के तहत व्यवसायिक यौन शोषण दंडनीय है। इसकी सजा सात साल से लेकर आजीवन कारावास तक की है। भारत में बंधुआ मजदूर उन्मूलन अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम, बंधुआ और जबरन मजदूरी को रोकते हैं।

बुधवार, 13 अप्रैल 2016

ट्रांसपोर्टरों को रास नहीं आई सरकार नई बीमा योजना!

देश में लागू हुई थर्ड पार्टी मोटर वाहन बीमा पॉलिसी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार सड़क और परिवहन क्षेत्र को सुरक्षा की दृष्टि से बदलाव की कवायद कर रहा है और नई बीमा योजना भी ऐसी ही नीतियों का हिस्सा है। नई बीमा योजना को लागू करने के पीछे मोदी सरकार का मकसद बीमा कंपनियों की आर्थिक सेहत में सुधारने और आम जनता को राहत देना है, लेकिन ट्रांसपोर्टरों को यह बीमा कतई रास नहीं आ रही है।
दरअसल नए वित्तीय वर्ष से परिवहन क्षेत्र में थर्ड पार्टी मोटर वाहन बीमा 15 से 40 फीसदी तक महंगा हो गया है, जिसे ट्रांसपोर्ट सेक्टर में सरकार के इस फैसले को जोरदार चाबुक करार दिया जा रहा है। बीमा कंपनियों की मांग पर झरडा ने केंद्र सरकार के नीतिगत फैसले के आधार पर थर्ड पार्टी इंश्योरेंस बीमा में बढ़ोतरी करने से ट्रांसपोर्ट कंपनियों को जोर का झटका दिया है। आॅल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) के अध्यक्ष भीम वाधवा भी मानते हैं कि सरकार ने नई बीमा पॉलिसी बीमा कंपनियों को लाभ देने के लिए की है। बीमा नियामक संस्था इरडा की पिछले कुछ सालों में जारी रिपोर्ट का हवाला देते हुए ट्रांसपोर्टरों का यह भी तर्क है कि हर साल गाड़ियों का बीमा प्रीमियम बढ़ा है, जबकि क्लेम लगातार कम होता जा रहा है। एक बीमा कंपनी के अधिकारी केवी लक्ष्मणन का कहना है कि देश में छोटी कारों और दोपहिया वाहनों का बडा बाजार है। इस क्षेत्र में वाहन मालिक एकजुट नहीं है। इसलिए प्रीमियम में वृद्धि कर इसके जरिए अच्छी-खासी कमाई करना बीमाकतार्ओं के लिए सरल होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इरडा अन्य बीमा योजनाओं की तरह थर्ड पार्टी इंश्योरेंस को भी ओपन कर देती है, तो इसका सीधा फायदा उपभोक्ता के हक में जाता है। देश में कई बीमा कंपनियां हैं जो इस क्षेत्र में काम कर रही हैं।
क्या है थर्ड पार्टी बीमा पॉलिसी
भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण के मुताबिक मृत्यु दावेदारी में औसत हजार्ने की राशि में भी इजाफा किया गया है। इरडा ने नई छोटी कारों (1,000सीसी से कम) के लिए थर्ड पार्टी बीमा प्रीमियम में 107.79 प्रतिशत की बढ़ोतरी का प्रावधान है। जबकि ट्रक जैसी कुछ बडी श्रेणियों के वाहनों की प्रीमियम दरों में कटौती हो सकती है। ऐसे व्यक्ति जिनके पास टाटा नैनो है, वे टाटा बोल्ट की तुलना में 426 रुपए का थर्ड पार्टी प्रीमियम अदा कर रहे हैं। 75 से 350 सीसी इंजन क्षमता वाले दोपहिया वाहनों के प्रीमियम में 14-32 प्रतिशत तक की वृद्धि होगी, जबकि 350सीसी से अधिक क्षमता के इंजन वाले वाहनों में लगभग 61 प्रतिशत तक की कटौती होगी। ट्रक जैसे बड़े वाहनों के थर्ड पार्टी प्रीमियम में लगभग 14 प्रतिशत तक कटौती होगी। हालांकि इन वाहनों का कुल वजन 7,5000 किलो से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि 7500 किलो से अधिक लेकिन 12 हजार किलो से कम वजन वाले वाहनों के प्रीमियम में 20 प्रतिशत की कटौती की जाएगी।

मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

अब आएगा पहाड़ के नीचे पाक का आतंकी ऊंट!

भारत-पाक सीमा पर पांच स्तरीय सुरक्षा मंजूर
योजना कामयाब रही तो आतंकी नहीं लांघ पाएंगे सीमा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
पाकिस्तान की ओर से भारत-पाक सीमाओं के जरिए ना-पाक हरकतों यानि आतंकवादियों की घुसपैठ को पूरी तरह से खत्म करने की योजना को आखिर केंद्र सरकार ने अंतिम रूप दे दिया है। सरकार द्वारा मंजूर की गई पांच स्तरीय सीमा सुरक्षा व्यवस्था में सीसीटीवी कैमरों और तेज लाईटिंग, नदी क्षेत्र में लेजर दीवारों के नर्माण, कंटीली बाडबंडी में घंटियां लगाना शामिल है। मसलन इस खास योजना से पाकिस्तान से लगी भारतीय सीमा का सुरक्षा अलर्ट ऐसा चाकचौबंद होगा, कि शायद ही कोई आतंकी पाकिस्तान से सीमा लांघ कर भारत में घुसपैठ कर पाये।
केंद्र सरकार ने पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले से सबक लेते हुए भारत-पाक सीमा पर आतंकी घुसपैठ को पूरी तरह रोकने की दिशा सुरक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से दुरस्त रखने की योजना का रोडमैप बनाना शुरू कर दिया था। केंद्र सरकार ने पाकिस्तान के करवट बदलने वाले रवैये को मुहंतोड़ जवाब देने के लिए पाकिस्तान के साथ लगी 2900 किलोमीटर लंबी सीमा की सुरक्षा को और ज्यादा मजबूत करने की योजना 'कॉम्प्रिहेंसिव बॉर्डर मैनेजमेंट सिस्टम' यानि सीआईबीएमएस को मंजूरी दे दी है। इस तकनीक के जरिए भारत-पाक सीमा की 24 घंटे निगरानी रखी जा सकेगी और आतंकियों की घुसपैठ, तस्करी और अन्य अप्रिय घटनाओं को रोकने में मदद ही नहीं मिलेगी, बल्कि इस योजना के तहत सीमापार से भारत के हिस्से की ओर होने वली हर गतिविधि तेज सीसीटीवी कैमरों,थर्मल इमेज, अंडर ग्राउंड मॉनिटरिंग सेंसर और आधुनिक नाइट विजन उपकरणों से सुरक्षा बलों की नजरें में रहेगी। गृह मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा मंजूर की गई इस पांच स्तरीय सुरक्षा प्रणाली में सीमापार से घुसपैठ रोकने के अलावा युद्ध के मैदान में निगरानी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रडार, भूमिगत मॉनिटरिंग सेंसर और लेजर बैरियर्स के भी इंतजाम शामिल हैं। सरकार मानती है कि आतंकियों की घुसपैठ को नाकाम करने के से इससे बेहतर कोई उपाय नहीं हो सकता।

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

इसलिए अटकी है भ्रष्ट अफसरो पर कार्यवाही!

मुकदमे की मंजूरी का इंतजार करने को मजबूर सीवीसी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्रीय सतर्कता आयोग ने बैंक और अन्य आय संबन्धी मामलों में फंसे सरकारी बैंकों के भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ इसलिए कानूनी कार्रवाही को आगे नहीें बढ़ा पा रहा है कि संबन्धित विभागों ने आयोग की रिपोर्ट पर मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं दी है।
दरअसल केंद्रीय सतर्कता आयोग ने सरकारी बैंकों के भ्रष्टाचार और वित्तीय घोटाले में शामिल अधिकारियों के खिलाफ पिछले साल जांच की थी, जिसमें करीब 98 बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों पर वित्तीय हेराफेरी और भारी घोटाले करने के आरोप हैं। इन अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए विभागीय मंजूरी मांगी गई थी, लेकिन करीब चार माह से मंजूरी न मिलने के कारण ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मुकदमे जैसी कानूनी कार्रवाही शुरू ही नही हो सकी। सीवीसी की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि जिन बैंक अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलना है उनमें वरिष्ठ प्रबंधक, मुख्य प्रबंधक और जनरल मैनेजर स्तर के अधिकारी भी शामिल हैं। आयोग की फरवरी में सामने आई प्रगति रिपोर्ट के अनुसार 43 मामलों में 49 सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमे के लिए मंजूरी का इंतजार किया जा रहा है।
जांच के घेरे में कई बैंक अफसर
ऐसे सात मामले इंडियन ओवरसीज बैंक, दो-दो एसबीआई और बैंक आॅफ इंडिया और एक-एक मामले ओबीसी, कॉरपोरेशन बैंक, स्टेट बैंक आॅफ पटियाला, एक्जिम बैंक, बैंक आॅफ बड़ौदा के खिलाफ चलाए जाने हैं। सीवीसी के सूत्रों के अनुसार ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए चार महीने के भीतर फैसला करना होता है। कार्यवाही शुरू करने के मकसद से सीवीसी भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने में हो रहे विलंब मामले को इंटर-मिनिस्ट्रियल मीटिंग्स में भी उठा चुके हैं, लेकिन अभी तक मंजूरी न मिलने के कारण फिर से विभागों को पत्र लिखने की तैयारी में हैं। सीवीसी का मानना है कि इस तरह विलंब के कारण ऐसी मामले बढ़ने से मामले विभागों में अटकने की आशंका बनी रहती है।

देश ने नहीं लिया पिछले हादसों से सबक!

केरल से पहले भी झेले हैं देश ने दर्दनाक हादसे
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केरल में कोल्लम के पुत्तिंगल मंदिर में रविवार तड़के सैकड़ो लोगों को काल बनाने वाली आग की घटना देश में कोई पहला दर्दनाक हादसा नहीं है। इससे पहले भी देश में धार्मिक स्थलों पर भगदड़ से बड़े हादसे झेलने पड़े हैं, लेकिन पिछली घटनाओं से सरकारों या स्थानीय प्रशासन या फिर आयोजकों ने कोई सबक लेने का प्रयास नहीं किया। इसी का नतीजा है कि देश में पिछले कई दशकों से हादसों के बाद ही सरकार या प्रशासन सक्रिय होकर केवल राहत तक सीमित हो जाता है।
केरल के पुत्तिंगल मंदिर में हुए हादसे पर बदइंतजामों पर सवाल उठना लाजिमी है, जिसकी तरह भारत में पिछले तीन दशकों में कई ऐसे ही भयावह हादसे होने के बावजूद हमने सबक लेने का कोई प्रयास नहीं किया। देशभर में मंदिरों और पूजन स्थलों या अन्य धार्मिक आयोजनों के अलावा ऐसे हादसों पर नजर डाली जाए तो सवाल यही होगा कि इसके बावजूद सरकारें और प्रशासनों द्वारा सतर्कता बरतने के प्रयास क्यों नहीं किये जाते है, जबकि ऐसे हादसों को रोका जा सकता है। केरल में ही पिछले साल एक हादसा हुआ था, जिसके बाद रविवार को फिर दिल दहलाने वाली घटना सामने आई। जानकार सूत्रों की माने तो केरल में ताजा हादसे पर आतिशबाजी के भारी जखीरे के मंदिर के मेले तक पहुंचना स्थानीय प्रशासन व सुरक्षा एजेंसियों की लापरवाही का नतीजा है, जिसके कारण इतनी भयंकर घटना ने पो फटते ही दस्तक दी।

रविवार, 10 अप्रैल 2016

कसौटी के मोड़ पर खरी उतरी मोदी सरकार


संसद में सकारात्मक सांचे में ढ़ले जनप्रतिनिािध!
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में देश के विकास और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के इरादे से से आगे बढ़ रही केंद्र की राजग सरकार के लिए संसद का बजट सत्र पहली बार कसौटी पर खरा उतरा नजर आया, जिसमें शायद मोदी की अदावत करने वालों के लिए पहला मौका था कि उन्होंने सरकार के कामकाज में सहयोगात्मक और कुछ सकारात्मक रणनीतियों से सरकारी कामकाज और विधायी कार्यो को आगे बढ़वाने की पहल की। यह बात दिगर है कि सरकार बजट सत्र के पहले चरण में भले ही जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण विधेयक को दशा नहीं दे पाई, लेकिन रियल एस्टेट और आधार विधेयक जैसे कई महत्वपूर्ण विधेयकों पर संसद की मुहर लगवाकर मोदी सरकार ने खुद को सुखद महसूस जरूर किया होगा।
राजनीतिकारों की माने तो केंद्र में शुरूआत से मोदी सरकार पर निशाना साधने में जुटे रहे विपक्ष खासकर कांग्रेस ने बजट सत्र के पहले चरण में सरकार की राह में ज्यादा रोड़ा इसलिए नहीं अटकाया, कि सत्र के पहले ही दिन अभिभाषण के दौरान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राजग सरकार की ओर से संयुक्त बैठक के दौरान जनप्रतिनिधियों को संसदीय और मर्यादाओं का पाठ पढ़ाने के साथ उनके जनता के प्रति जवाबदेही और कर्तव्य की भूमिका की याद दिलाते हुए नसीहत तक दी थी। हालांकि वह मोदी सरकार की सकारात्मक और सहयोगात्मक रणनीति का एक हिस्सा माना जा रहा है, लेकिन राष्टÑपति के मुख से निकले इन शब्दों का असर सत्तापक्ष पर ही नहीं, बल्कि हरेक विपक्षी दलों पर भी पूरी तरह से नजर आया। हालांकि सरकार की इस सत्र में रणनीति साफ थी, जिसके लिए सर्वदलीय बैठकों के दौरान स्वयं पीएम मोदी ने भी विपक्षी दलों से देश व जनहित के मुद्दों पर सहयोग की अपील के साथ विपक्ष के मुद्दो को भी सदन में चर्चा के लिए शामिल करने का भरोसा दिया था। सरकार ने अपने इस भरोसे को कायम रखते हुए सत्र के शुरूआती दिनों में ही जेएनयू व रोहित वेमुला और अन्य तथाकथित देशद्रोही मुद्दों पर चर्चा कराकर विपक्ष की रणनीतियों को नियंत्रित करने की प्राथमिकता रखी। लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में पीएम मोदी ने विपक्षी दलों के प्रति नरम रूख रखते हुए संसद के सत्र में सहयोग की नीति के लिए विपक्षी दलों को श्रेय देने में भी कोई कंजूसी नहीं बरती, जिसका असर सरकार के कामकाजों को आगे बढ़ने में साफतौर से नजर आया। मसलन कई अरसे बाद संसद में सरकार और विपक्ष में तालमेल की डोर मजबूत होती देखी गई।

साइबर क्राइम के खिलाफ सख्त कानून की तैयारी!

तेजी से पैर पसारते इंटरनेट अपराध से चिंता में सरकार 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
दुनियाभर में भारत में इंटरनेट के सबसे ज्यादा इस्तेमाल की रिपोर्ट के साथ ही साइबर क्राइम के मामले भी तेजी के साथ पैर पसारने से केंद्र सरकार चिंतित नजर आ रही है। केंद्र सरकार साइबर क्राइम पर शिकंजा कसने की दिशा में बेअसर होते मौजूदा कानून को सख्त करने की तैयारी में है।
भारत में दिनों दिन बढ़ते क्राइम में सबसे ज्यादा तेजी से फैल रहा साइबर क्राइम है जो आज भारत के राज्यों में अपनी जड़े फैला चुका है। जैसे-जैसे इंटरनेट के इस्तेमाल में बढ़ोतरी हो रही है, वैसे-वैसे साइबर अपराध में भी इजाफा देखा जा रहा है। मसलन सोशल वेबसाइट पर भी अपशब्दों वाली भाषा का इस्तेमाल करना कानूनी दायरे में है। यही नहीं केंद्र सरकार ऐसे साइबर अपराधों को रोकने के लिए देश में मौजूदा सूचना तकनीक कानून-2000 और सूचना तकनीक (संशोधन) कानून-2008 को सख्त बनाने की कवायद कर रही है। हालांकि इसी श्रेणी के कई मामलों में देश में भारतीय दंड संहिता, कॉपीराइट कानून-1957, कंपनी कानून, सरकारी गोपनीयता कानून और यहां तक कि आतंकवाद निरोधक कानून के तहत भी कार्रवाई करने के प्रावधान किये गये, लेकिन मौजूदा कानून साइबर क्राइम की बढ़ती रμतार को रोकने में नाकाफी साबित हो रहे हैं। इस दिशा में ऐसे इंटरनेट क्राइम पर निगरानी के लिए केंद्र सरकार एक अलग से सॉμटवेयर विकसित करने की जुगत में है, जिसके तहत कानून में भी सख्त प्रावधान करने की तैयारी कर रही है। साμटवेयर सुरक्षा समाधन उपलब्ध कराने वाली फर्म नोर्टन इंडिया के कंट्री मैनेजर रितेश चोपड़ा की माने तो उनका अनुमान है कि व्यक्तिगत डेटा में सेंधमारी के कारण 11.3 करोड़ भारतीयों को पिछले साल औसतन लगभग 16,558 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है।
क्या है साइबर अपराध
आज का युग कम्प्यूटर और इंटरनेट का युग है। कम्पयूटर की मदद के बिना किसी बड़े काम की कल्पना करना भी मुश्किल है। ऐसे में अपराधी भी तकनीक के सहारे हाईटेक हो रहे हैं। जो जुर्म को अंजाम देने के लिए कम्प्यूटर, इंटरनेट, डिजिटल डिवाइसेज और वर्ल्ड वाइड वेब आदि का इस्तेमाल करने में कोई चूक नहीं करते। आॅनलाइन ठगी या चोरी की भी इसी श्रेणी का अहम गुनाही हिस्सा बनने लगा है। यहां तक कि किसी की वेबसाइट को हैक करना या सिस्टम डेटा को चुराना ये सभी तरीके साइबर क्राइम की श्रेणी में शामिल है। मसलन साइबर क्राइम दुनियाभर में सुरक्षा और जांच एजेंसियां के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है। किसी कंप्यूटर, डिवाइस, इंफॉर्मेशन सिस्टम या नेटवर्क में अनधिकृत रूप से घुसपैठ डेटा से छेड़छाड़ करने और किसी व्यक्ति, संस्थान या संगठन आदि के निजी या गोपनीय डेटा या सूचनाओं की चोरी करना करने की वारदाते भी बढ़ रही है, जो साइबर क्राइम की श्रेणी का हिस्सा है, जिसके लिए सजा का प्रावधान है।

राग दरबार: सियासी चक्रव्यूह में देश प्रेम....

दारुल उलूम देवबंद के फतवे
देश प्रेम जताने के लिए हिंदुस्तान में ‘भ्‍ाारत माता की जय’ बोलना जरूरी है या नही, इसी पर छिड़ी बहस पर कुछ सियासीदान सुर्खियोंं में बने रहना ज्यादा पसंद करते हैं, जिन्हें शायद न तो देश प्रेम और न ही संविधान की परवाह है। ऐसी सियासत करने वाले केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करके देश व समाज को बांटने का ही प्रयास करते हैं। जरा इस मामले में इस्लामी दीनी तालीम के मरकज दारुल उलूम देवबंद के फतवे को ही देखें, तो इस्लाम के नजरिए से यह फतवा दुरुस्त माना जा रहा है। इसीलिये तमाम मुसलमानों ने दारुल उलूम से जानना चाहा था कि इसलामी एतबार से भ्‍ाारत माता की जय बोलना उनके लिए जायज है या नहीं? दारुल इफ्ता के आठ मुफ्तियों ने तमाम माथापच्ची के बाद जो तर्क दिये हैं उनमें मुसलमानों के लिए भ्‍ाारत माता की जय बोलना जायज नहीं है, लेकिन अपने वतन से मोहब्बत करना दिनी इमान है। इसका तात्पर्य मुसलमान वतन को अपना माबूत यानि भ्‍ागवान नहीं समझते। मुफ्तियों ने वतन परस्ती को लेकर अपने खयाल के इजहार में यहां तक कहा कि हम और हमारे पूर्वज यही पैदा हुए तो वतन से मोहब्बत स्वाभ्‍ााविक है, लकिन इसे देवी मान कर पूजा नहीं कर सकते। ऐसे बयान के बाद तमाम लोग दारुल उलूम पर नजला उतारते नजर आए। मसलन विहिप ने तो दारूल उलूम के फतवे को आतंकवाद का समर्थक बताया, लेकिन वहीं इस मामले में संघ प्रमुख मोहन भ्‍ाागवत ने सही बात को तकदीद करते हुए कहा कि भ्‍ाारत माता की जय बोलना किसी के ऊपर थोपना उचित नहीं है। ये विचार करने की बात यह है कि आखिर यह नौबत क्यों आयी कि देवबंद को फतवा देना पड़ा? राजनीतिक गलियारं में इस मामले पर चर्चा होना लाजिमी है और इतिहास भी गवाह है कि जंग-ए-आजादी के दौरान हिंदू और मुसलमान दोनों ने मिलकर भ्‍ाारत माता की जय का नारा लगाया, तब विवाद पैदा नही हुआ? तो अब किस बात का विवाद। एक तरह का ये विवाद उन लोगों की देन है जिन्होंने देश प्रेम जताने वाले इस नारे को धार्मिक निष्ठा से जोड़ दिया या फिर धार्मिक निष्ठा के प्रतिकार के रुप में एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ शुरू हुई है। जबकि भ्‍ाारत माता की जय वाला भ्‍ााव ही हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे में निहित है।

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

नई रणनीति से जल संकट से निपटने की तैयारी!

केंद्र सरकार ने राज्यों से जल लिकेज को जीरो करने को कहा
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश में जल संकट की चुनौतियों से निपटने के लिए मोदी सरकार ने नई रणनीतियों और विदेशी तकनीक से जल संरक्षण और जल प्रबंधन को बेहतर बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से खासकर पानी की बर्बादी यानि वाटर लिकेज को जीरो करने के लिए पत्र लिखकर खासकर पेयजल को सुरक्षित करने पर बल दिया है।
दरअसल पानी की समस्या दुनियाभर के सामने विकराल रूप धारण करती जा रही है। मसलन जल संकट से अकेला भारत ही ही नहीं जूझ रहा है। इसीलिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जल को कानून के दायरे में लाने पर भी बहस चल रही है। यह दिगर बात है कि कुछ देश पानी की सुरक्षा करने के लिए वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करके कुछ हद तक राहत की सांस ले रहे हैं, लेकिन भारत में जिस तरह से पानी की बर्बादी हो रही है उसके लिए यदि केंद्र और राज्य सरकारें सचेत होकर जनता को ‘जल है तो कल है’ के महत्व को न समझाते हुए जल के प्रति जागरूक न कर सकी, तो भविष्य में देश पानी की बूंद-बंूद से तरस जाएगा। ऐसा वैज्ञानिकों ने अध्ययन करके अकेले भारत के लिए ही नहीं, बल्कि समूची दुनिया के सामने खुलासा करते हुए चेतावनी तक दे डाली है कि वर्ष 2025 तक दुनिया के दो तिहाई देशों को पानी की भारी किल्लत झेलने को मजबूर होना पड़ सकता है। जबकि एशिया और खासतौर से भारत में ऐसी स्थिति उससे भी पहले यानि वर्ष 2020 तक ही होने की आशंका है। मसलन एशिया में यह समस्या कहीं अधिक विकराल होने की संभावनाएं जताई जा रही है। मोदी सरकार ने इस चेतावनी को गंभीरता से लिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जल चिंता के तहत केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ने जल संसाधन मंत्रालय के साथ समन्वय करके गत एक अप्रैल को ही सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों और जल आपूर्ति सचिवों को पत्र लिखकर शहरी और ग्रामीण जल आपूर्ति योजना में पानी के लिकेज को जीरो करने के लिए कदम उठाने को कहा है।
समूचे एशिया पर खतरा
जल से जुड़े वैज्ञानिकों और जल क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं की माने तो तिब्बत के पठार पर मौजूद हिमालयी ग्लेशियर समूचे एशिया में 1.5 अरब से अधिक लोगों को मीठा जल मुहैया करता है। इस ग्लेशियर से नौ नदियों में पानी की आपूर्ति होती है, जिनमें भारत की गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियां भी शामिल हैं। मसलन इन नदियों से अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल और बांग्लादेश में जलापूर्ति हो रही है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और ‘ब्लैक कार्बन’ जैसे प्रदूषक तत्वों ने हिमालय के कई ग्लेशियरों पर जमी बर्फ की मात्रा को कम कर दिया है, जिसके कारण इनमें से कुछ इस सदी के अन्त तक निश्चित रूप से खत्म हो जाएंगे। इसका तात्पर्य ग्लेशियरों पर जमी बर्फ की मात्रा के घटने से लाखों लोगों की जलापूर्ति पर असर पड़ेगा और बाढ़ का खतरा पैदा हो सकता है जिससे जान-माल को भारी नुकसान होगा। वैज्ञानिकों का मत है जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या बढ़ोत्तरी के कारण अगले दो दशक में पानी की मांग, आपूर्ति से 40 फीसदी ज्यादा होगी यानी दस में से चार लोग पानी से वंचित रह सकते हैं। यही नहीं कृषि क्षेत्र, जिस पर जल की कुल आपूर्ति का 71 फीसदी खर्च होता है, सबसे बुरी तरह प्रभावित होगा। इससे दुनिया के साथ भारत के खाद्य उत्पादन पर विपरीत असर पड़ेगा।