रविवार, 17 अप्रैल 2016

राग दरबार: रार में फंसी अधिकारों की पहेली.....

कमजोर कड़ी पर मजबूती से वार
देश की विडंबना है कि अधिकारों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों में टकराव और तनातनी का खामियाजा देश या समाज को हीभुगतना पड़ता है। भले ही वह संसद में बनने वाले कानूनों का मामला हो या फिर अन्य कोई भी मुद्दा। संसद में ऐसे ही अधिकारों पर अतिक्रमण जैसे तथाकथित आरोपो को लेकर कई विधेयक कानूनी रूप नहीं ले पाये हैं। ऐसा ही एक ताजा मामला मीडिया निकाय की शक्तियों या अधिकारों के मुद्दे को लेकर सामने आया है, जिसमें सरकार और भारतीय प्रेस परिषद आमने सामने हैं। दरअसल प्रेस परिषद ने एक मामले में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के एक नौकरशाह को हाजिर होने के लिए समन जारी किया था। मंत्रालय के सचिव स्तर के ये अधिकारी हाजिर नहीं हुए तो प्रेस परिषद ने उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का फैसला सुना दिया। फिर क्या था केंद्र सरकार और प्रेस परिषद में टकराव होना लाजिमी था, जो अधिकारों के हक को लेकर उजागर भी हो गया। मसलन मंत्रालय ने भी अपना असर दिखाते हुए इस मामले में प्रेस परिषद पर वार करते हुए कह ही दिया कि उसके पास सीमित शक्तियां है, जो हर बात न्यायपालिका की तर्ज पर फैसला नहीं ले सकती। जबकि परिषद के अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत) सीके प्रसाद का तर्क है कि उसके पास वारंट जारी करने की शक्ति है। केंद्र सरकार और परिषद की इस तनातनी को लेकर राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि प्रेस परिषद अपने अधिकारों के दायरे में ही काम करती है और उसी के तहत यह समन जारी किया गया, तो अन्य विवादों की तरह परिषद के लिए अन्य लोगों की तरह दोनो पक्षों पर निर्णय दे सकती हैं, चाहे वह कितना ही बड़ा व्यक्ति या अधिकारी क्यों न हो। स्वयत्तशासी संस्था के रूप में परिषद को जबकि सभ्‍ाी अधिकार सरकार द्वारा ही प्रदत्त हुए हैं ,तो ऐसे में संस्था पर उंगली उठाकर मंत्रालय कुछ ऐसी कहावत को चरितार्थ करता दिख रहा है, जिसे एक कवि ने कुछ यूं कहा-‘नहीं मालूम कितना गहरा है ये दरिया, वो कुछ ना कर पाए उसे लाचार करना है। एक एक करके तोड़नी है कड़ी जंजीर की, कमजोर कड़ी पर मजबूती से वार करना है’..।
जनाधार पर बसपा की उलझन
दलित वोट बैंक के सहारे उत्तर प्रदेश में सत्ता सुख भ्‍ााेगती रही बहुजन समाज पार्टी में आजकल परेशानी का माहौल है। बसपा सुप्रीमो मायावती को अपना जनाधार खिसकता दिख रहा है। दरअसल भ्‍ााजपा और कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी तक ने डॉ.भीमराव अंबेडकर की जय-जयकार कर दलितों को लुभ्‍ााने में ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया हैै। अगले साल यूपी में विधानसभ्‍ाा चुनाव होना है। बसपा की रणनीति थी कि एक बार फिर कुछ अगड़ी जातियों पर डोरे डाले जाएं। कुछ साल पहले मायावती अपनी पार्टी के सांसद और वकील सतीश चंद्र मिश्र की अगुवाई में ब्राह्मणों को बसपा के पक्ष में लुभ्‍ााने का दांव कामयाबीपूर्वक चल चुकी हैं। लिहाजा इसी राह पर 2017 की रणनीति बनाई जा रही थी लेकिन जिस प्रकार भ्‍ााजपा और मोदी सरकार ने डॉ. अंबेडकर की 125वीं जयंती पर राष्टव्यापी कार्यक्रमों की घोषणा की बसपा को अपना वोटबैंक खिसकता नजर आया। मायावती को आशंका है कि अगर दलित भ्‍ााजपा की तरफ मुड़े तो यूपी में गद्दी पाने का बसपा का सपना बिखर जाएगा। किसी ने मायावती को सलाह दी है कि यह वक्त अगड़ी जातियों में पैठ बनाने की बजाय दलितों को अपने पाले में बनाये रखने का है। देखते हैं मायावती इस नयी उलझन से निपटने में सफल हो पाती है या नहीं।
पीआईबी में बाबूओं का टोटा...
सरकार के तमाम प्रमुख कार्यों का आमजन के बीच प्रचार-पसार करने वाले पत्र सूचना वि•ााग (पीआईबी) में इन दिनों बाबूओं का टोटा नजर आ रहा है। ऐसे में केंद्र की तमाम महत्वपूर्ण प्रचार योजनाओं को लेकर कुछ अधिकारी काम के अतिरिक्त बोझ से हलकान हुए जा रहे हैं। इन लोगों की परेशानी ऐसी कि इन्हें सरकारी छुट्टियों के दिन भी  घर या कार्यालय आकर काम करना पड़ रहा है। लेकिन अधिकारियों की इस परेशानी का जल्दी हल होता हुआ नजर नहीं आ रहा है। इसमें कुछ समय तो जरूर लगेगा। शास्त्री भवन स्थित पीआईबी कार्यालय के कॉरिडोरों में चल रही चर्चा तो यहां तक  बता रही है कि जब ज्यादातर अधिकारी और बाबू राज्यों के विस चुनावों से लेकर अन्य जरूरी सरकारी प्रशिक्षण प्राप्त करने को लेकर बाहर गए हुए हैं तो कमी तो रहेगी ना। अब तो राजधानी में बाहर गए हुए तमाम अधिकारियों की वापसी के बाद ही माहौल बदलेगा।
--ओ.पी. पाल, आनंद राणा व कविता जोशी
17Apr-2016

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