रविवार, 24 अप्रैल 2016

राग दरबार: मुंगेरी के हसीन सपनों का स्यापा....

मुक्तिदाता के फेर में नीतीश 
देश की सियासत में कौन क्या करने का दम भ्‍रने लगे और अपने वजूद को नापे बिना ही मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखने लगे। ऐसे ही बिहार के सीएम ने अपने सीनियर को साइड करके उस भाजपा के खिलाफ सभी सियासी दलो को एकजुट होने का राग छेड़ा है, जिसके सहारे वह मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफर करते आ रहे हैं। जबकि इतिहास गवाह है आजतक तीसरे सियासी गठजोड सिरे नही चढ़ सका है। दरअसल नीतीश 1919 के लोकसभा चुनाव में पीएम बनने का हसीन सपना देखना शुरू कर दिया है। जदयू प्रमुख के इस प्रस्ताव को कांग्रेस व वामदल बेतुका करार देकर बिना आधार की राजनीति को नजरअंदाज कर दिया। यही नही ये सीएम साहब ने तो देश में उन मुक्तिदाताओं के भी सिरमौर बनने का प्रयास कर रहे हैं कि जैसे देश को आरआरएस मुक्त कराकर वह सेक्युलर का स्यापा अपने नाम कर लेंगे। इससे तो ऐसा लगने लगा जैसे मुक्तिदाताओं की बाढ़ सी आ गयी है। मसलन सत्तर के दशक में इंदिरा गांधी ने गरीबी से मुक्ति दिलाने का वादा किया पर गरीबी नहीं मिटी, उल्टे तब से गरीब ही मिट रहे हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने कांग्रेसमुक्त भारत का नारा दिया। इसमें भी खास दम नहीं दिखता। कभी लोकसभा में मात्र दो सांसदों वाली भाजपा ने जब अकेले अपने दम पर केंद्र में सरकार बना ली तो यह कैसे माना जाए कि 45 सांसदों वाली कांग्रेस मिट जाएगी? फिलहाल तो उसने राज्यस•ाा की बदौलत ही सरकार की नाक में दम कर रखा है। भय, भूख और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने वाले जुमले भी हर बार चुनाव में सुनायी देते हैं पर इनसे मुक्ति मिलने के दूर-दूर तक आसार नजर नहीं आते। मुक्तिदाताओं की इसी कड़ी में अब बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार का नाम जुड़ गया है। शायद उन्होंने नया मुगालता पाल लिया है कि देश को आरएसएस से मुक्त करेंगे। जो बिहार में अकेले अपने दम पर सरकार बनाने में सक्षम नहीं, वह देश में संघ को मिटाने का दम भर रहे हैं। है ना जुमला..कहां राजा भोज और कहां मंगू तेली? 
सियासत की मोहरे
उत्तराखंड में सियासत की चौसर पर जिस तरह का उतार चढ़ाव चल तहा है, उसमें अदालती फैसलों को लेकर भी बाजियां बारी बारी से उलटफेर का सबब बन तही है। नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा राष्टÑपति शासन हटाने के आदेश होते ही हरीश रावत ने जिस तरह की जल्दबाजी दिखाते हुए बैठेकें करके कई निर्णय ले लिये, जबकि आदेश की प्रति कोर्ट से बाहर भी नहीं आ पाई थी। कुछ घंटो बाद सुप्रीम कोर्ट के नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगी, तो उत्त्राखंड में फिर राष्टÑपति शासन लागू होते ही रावत की सियासी मोहरें चौसर पर बिखरती नजर आयी। मसलन उत्तराखंड की सियासत इस समय केंद्र और अदालत के बीच ऐसी उतझी हुई है, जैसे कोई शतरंज चैंपियनशिप चल रही हो।
दो साल की उपलब्धियों में मशगूल सरकार...
वर्ष 2014 के लोस चुनावों को 26 मई को दो साल पूरे हो जाएंगे। लेकिन इससे पहले आम जनता को इन 24 महीनों के दौरान किए गए जरूरी कार्यों से रूबरू कराए जाने की योजना बनाई जा रही है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से इस बाबत सभी मंत्रालयों को निर्देंश जारी कर दिए गए हैं कि वो जल्द से जल्द अपनी विभागीय जानकारी को उनके साथ साझा करें जिससे वो 26 मई से पहले कुछ जनउपयोगी कार्यक्रमों का निमार्ण कर जनता के साथ रख सके। मंत्रालयों के सूचना अधिकारी इन दिनों अपने-अपने विभागों से दो सालों की उपलब्धियों से जुड़ी जानकारी एकत्रित करने में लगे हुए हैं। पत्र सूचना कार्यालय से लेकर सरकार के अन्य मंत्रालयों में चहलकदमी करने पर होने वाली चर्चाओं में यह  मुद्दा प्रमुखता से सुनाई पड़ जाता है। ऐसे में यही कहेंगे की दो सालों की उपलब्धियों के आंकड़ें जुटाने में व्यस्त है सरकार।  
-ओ. पी. पाल व कविता जोशी
24Apr-2016

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें