दिल्ली में बेसिन प्रबंधन व अध्ययन केंद्र शुरू
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
गंगा
और सहायक नदियों के पानी को स्वच्छ एवं उनकी धारा को निर्मल बनाने के लिए
केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी राष्ट्रीय गंगा स्वच्छता अभियान यानि नमामि
गंगे मिशन के लिए सरकार भले ही एक के बाद एक कदम उठा रही हो, लेकिन अभी
गंगोत्री से निकलते ही गंगा मैली की मैली है।

प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी के ड्रीम मिशन के रूप में स्वच्छ गंगा परियोजना यानि ‘नमामि
गंगे’ का ऐलान करने के बाद केेंद्रीय बजट 2014-15 में इसके लिए 2,037 करोड़
रुपयों का आरंभिक बजटीय प्रावधान किया, जिसे बढ़ाते हुए अगले पांच साल के
लिए इस बजट को बढ़ाकर 20 हजार करोड़ कर दिया गया। ऐसा नहीं कि केंद्रीय जल
संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती इस परियोजना
के लिए गंभीर नहीं है। उनके मंत्रालय ने गंगा टास्क फोर्स, गंगा के तटों पर
वनीकरण, गंगा सफाई के प्रदूषण के लिए सवा सौ टीमें गठित करने के साथ जिन
राज्यों के 118 शहरों से होकर गंगा गुजरती है वहां के स्थानीय प्रशासन,
स्थानीय निकायों के अलावा सरपंचों तक को इस अभियान में सहयोग के लिए
सम्मेलन किये। मसलन नमामि गंगे मिशन जमीन पर तो उतर गया है और निरंतर गठित
टीमों के साथ तकनीकी अध्यन तक कराने में कोई कसर नहीं छोडी। यही नहीं कई
देशों के साथ तकनीकी सहयोग के लिए समझौते भी किये जा चुके हैं, लेकिन इस
परियोजना के पूरे खाके को नक्शे पर उतारने के बावजूद गंगा को प्रदूषित करते
764 औद्योगिक निर्देशों का उल्लंघन करके इसमें अभी भी रोड़ा बने हुए हैं।
उमा भारती का कहना है कि प्रवाह उपचार संयंत्रों और सीवेज उपचार संयंत्रों
की स्थापना से गंगा नदी को साफ करने पर जोर है और इन मुद्दों को विश्व से
प्रौद्योगिकी प्राप्त करके सुलझाया जा सकता है।
घर में ही खराब गंगा की सेहत

केंद्र
सरकार नमामि गंगे मिशन के लिए निरंतर एक के बाद एक कदम उठा रहा है, लेकिन
इसके बावजूद सच्चाई यह है कि गंगोत्री से हरिद्वार तक का ही पानी प्रदूषित
हो चुका है, भले ही देखने में उत्तराखंड में भागीरथी या गंगा का नीला पानी
साफ होने का अहसास दिलाता रहे। वैज्ञानिकों इस बात की पुष्टि करते हुए कह
चुके हैं कि गंगोत्री से ऋषिकेश तक गंगा का पानी स्नान करने लायक भी नहीं
रहा है और हरिद्वार के बाद तो गंगा नदी के पानी का इस्तेमाल बीमारियों को
न्यौता देने लगा है। मसलन गोमुख से उत्तरकाशी तक करीब दस छोटे कस्बे होने
के बावजूद इनमें से कहीं पर भी सीवर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित नहीं हैं।
जबकि एक रिपोर्ट के अनुसार देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा के मिलने के
बाद गंगा बनती है। हालांकि ऋषिकेश में लक्ष्मणझूला और त्रिवेणी घाट में
सीवर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित होने से गंगा को गंदगी से मुक्ति मिली है।
गंगा की सेहत में सुधार के लिए हालांकि राज्य सरकारें 2010 के बाद जागरूक
हुई हैं, तो भागीरथी, अलकनंदा के किनारे के नगरों, कस्बों में सीवर
ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की शुरूआत हुई और नमामि गंगे योजना के तहत गंगा में
साफ पानी के प्रवाह की दिशा में शोधन संयंत्रों की योजना को आगे बढ़ाया जा
रहा है।
जल संसाधन
मंत्रालय ने आईआईटी कानपुर के साथ गंगा नदी बेसिन प्रबंधन योजना के गतिशील
विकास और कार्यान्वयन में लगातार वैज्ञानिक सहायता के प्रावधान के लिए एक
10 वर्षीय अनुबंध ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। एक दिन पहले ही दिल्ली में
गंगा नदी बेसिन प्रबंधन और अध्ययन यानि सीजीआरवीएमएस के लिए एक नये केंद्र
को भी शुरू कर दिया गया है। आईआईटी के प्रोफेसर डॉ.विनोद तारे के अनुसार
केंद्र सरकार के लिए यह केंद्र एक थिंकटैंक के रूप में कार्य करने के अलावा
गंगा नदी बेसिन के तहत सभी गतिविधियों में समन्वय के लिए एक ज्ञान केंद्र
के रूप में कार्य करेगा और इसकी गतिविधियों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी
अनुसंधान,नवाचार, सामाजिक, अर्थिक, वित्तीय और निवेश से संबंधित पहलू शामिल
होंगे। वहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गंगा और सहायक नदियों में पानी की
गुणवत्ता जांचने के लिए गंगोत्री, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, लक्ष्मणझूला,
रायवाला, बाल कुंवारी में केंद्र बनाए हैं।
19Apr-2016
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