गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

डेढ़ दशक में देश में होंगे सभी इलेक्ट्रिक वाहन!

केंद्र ने प्रदूषण से निपटने की शुरू की तैयारी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में बढ़ते र्इंधन के खर्च और प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार की मेगा योजना को अंतिम रूप दिया जा चुका है, जिसके तहत केंद्र सरकार ने अगले डेढ़ दशक के भीतर देशभर में चलने वाले वाहनों को शतप्रतिशत इलेक्ट्रिक मोड़ पर लाने का लक्ष्य तय किया है, जबकि डीजल और पेट्रोल चलित वाहनों को अगले दो साल के भीतर ई-वाहन में तब्दील करने का फैसला किया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की हरित राजमार्ग नीति का मकसद राष्ट्रीय राजमार्गो एवं अन्य सड़कों को हराभरा बनाकर पर्यावरण को बढ़ावा देने के साथ सड़कों पर दौड़ने वाले वाहनों को भी वैकल्पिक र्इंधन से जोड़ने की योजना है। देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के परिचालन की योजना को गति देने के लिए केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की अगुआई में एक कार्यसमूह पहले ही गठित हो चुका है, जिसमें तेल एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर शामिल हैं। इस समूह की एक सप्ताह के भीतर होने वाली बैठक में देश को 2030 तक शतप्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहनों वाला बनाने पर मंथन किया जाएगा, जिसमें समूह बड़े पैमाने पर योजना बनाने पर विचार करके ऐसा खाका तैयार करने की तैयारी में ताकि दुनिया के पीछे चलने के बजाय इस मेगा योजना में भारत अगुआई करने वाला देश साबित हो सके। इस योजना के बारे में केंद्रीय बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने भी उम्मीद जताई है कि आगामी वर्ष 2030 तक भारत 100 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहनों वाला दुनिया का पहला देश बनने का दर्जा हासिल कर सकता है।
ऐसी है सरकार की योजना
सूत्रों के अनुसार देश को ई-वाहन का परिचायक बनाने की दिशा में सरकार बैटरी चालित कारों के लिए जीरो डाउन पेमेंट वाली योजना को जल्द लाने की योजना बना रही है। जिसमें सरकार ऐसी बैटरी चालित कार मुμत यानि जीरो डाउन पेमेंट पर लोगो को देने की योजना है, जिसमें लोग पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद पर होने वाली बचत से इसकी किस्तें भर सकते हैं। वहीं सरकार इस योजना को सेल्फ फाइनेंसिंग बनाने का प्रयास कर रही है, ताकि इस महत्वकांक्षी परियोजना में सरकार के सामने वित्तीय बोझ भी न आ सके और लोगों भी इसके लिए एक रुपये का निवेश नहीं करना पड़े। मोदी सरकार की इस विजनरी योजना के तहत देश को ई-वाहन मोड़ पर लाने का मकसद न सिर्फ प्रदूषण से मुक्ति पाना है, बल्कि महंगे जीवाश्म ईंधनों के आयात पर निर्भरता को भी खत्म करना है। मसलन अगले 15 साल के भीतर भारत ऐसा देश बन जाएगा, जहां केवल बैटरी चालित वाहन चलते नजर आएंगे। सरकार इस योजना को सेल्फ फाइनेंसिंग बनाने का प्रयास कर रही है, ताकि इस महत्वकांक्षी परियोजना में सरकार के सामने वित्तीय बोझ भी न आ सके और लोगों भी इसके लिए एक रुपये का निवेश नहीं करना पड़े।
इसरो बनाएगा बैटरी
सड़क मंत्रालय के अनुसार इस योजना के तहत इसरो के साथ करार हो चुका है, जो लिथियम इओन बैटरी तैयार करेगा, जो वैज्ञानिक पद्धति पर चार्ज होगी और इसे कनवर्ट करके हर प्रकार के परिवहन वाहन में इस्तेमाल की जा सकेगी। इससे पहले इंडियन स्पेस रिसर्च आॅगेर्नाइजशन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने लिथियम इओन बैटरी को तैयार की है, जो अन्य दूसरी बैटरियों से करीब दस गुना सस्ती है। सरकार का प्रयास है कि इस इलेक्ट्रिक परिवहन प्रणाली से सिर्फ तेल को कम मात्रा में मंगवाने में ही मदद नहीं मिलेगी,बल्कि पर्यावरण को भी सुरिक्षत रखने में यह प्रणाली कारगर होगी।
ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पर अवरोध के बादल
अदालत के हस्तक्षेप से आगे बढ़ेगी सरकार
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
दिल्ली को जाम से निजात दिलाने वाली मोदी सरकार की ‘गोल्डन नेक्लेस’ की योजना में एक दिन पहले ही पश्चिमी परिधीय एक्सप्रेस वे जनता के लिए खोला गया है, जबकि पूर्वी परिधीय एक्सप्रेस-वे (ईपीई) के निर्माण को पूरा करने के लक्ष्य में सरकार के सामने अवरोध के बादल छा गये है। परियोजना के काम को तेजी से आगे बढ़ाने की दिशा में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने पहले ही सरकार के सामने पूर्वी परिधीय एक्सप्रेस-वे के निर्माण को पूरा करने की समय सीमा जुलाई 2018 निर्धारित की है। लेकिन उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बागपत और हरियाणा के सोनीपत जिले में निहित स्वार्थों द्वारा निर्माण कार्य में अवरोध पैदा करने की घटनाओं ने निर्माण कार्य की चाल धीमीकर दी है। जबकि भू-अधिग्रहण औपचारिकताएं और अन्य सब कार्य पूरे हो चुके हैं और देश की बेहतरीन कंपनियों को निर्माण ठेका दिया जा चुका है। निर्माण कार्य में तेजी लाने और कठिनाइयों को लेकर भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें अदालत से आग्रह किया गया है कि असामाजिक तत्वों तथा निहित स्वार्थों द्वारा निर्माण कार्य में किये जा रहे व्यवधान के खिलाफ निर्माण एजेंसियों को पुलिस सुरक्षा मुहैया कराई जाए। भारत के सालिसिटर जनरल ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में एनएचएआई का पक्ष रखा था। उच्चतम न्यायालय ने गत 31 मार्च यानि पिछले सप्ताह ही अपने आदेश में उत्तर प्रदेश और हरियाणा के पुलिस महानिदेशकों को आदेश दिया था, कि वे ईपीई के निर्माण करने के संबंध में एनएचएआई कर्मियों एवं ठेकेदारों को आवश्यक सुरक्षा मुहैया कराने की व्यवस्था कराई जाये। एनएचएआई ने व्यवधान के संभावित स्थानों की सूची भी सुप्रीम कोर्ट को उपलब्ध कराई है।
07Apr-2016


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