बुधवार, 6 अप्रैल 2016

जल संरक्षण का सबब बनेगी विदेशी तकनीक!

कृषि सिंचाई में वैज्ञानिक तौर तरीकों पर रहेगा जोर
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में सूखा और बाढ़ की चुनौतियों के अलावा कृषि विकास के लिए जल संरक्षण और अपशिष्ट जल प्रबंधन की योजना में केंद्र सरकार विदेशी तकनीक का इस्तेमाल करेगी। देश में जल संकट से निपटने के लिए सरकार ऐसी जल संबन्धी योजनाओं को पीपीपी मॉडल पर शुरू करने का खाका तैयार कर रही है।
दरअसल दुनियाभर में जल को लेकर बनती जा रही भयावह स्थिति से निपटने के लिए हरेक देश जल संरक्षण की दिशा में तकनीकी प्रणाली अपनाई जा रही है। भारत में भी बाढ़ और सूखे की स्थिति से निपटने के लिए केंद्र सरकार की कई परियोजनाएं पटरी पर है, जिनकी दशा और दिशा को विदेशी तकनीक से रμतार देने की तैयारी है। केंद्र सरकार ने मानव सभ्यता, जल संचयन और जल प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए न्यूनतम जल का अधिकतम इस्तेमाल की नीति पर विकास की बुनियादी चुनौती में जल संरक्षण को प्राथमिकता पर रखा है। लिहाजा सरकार ने ऐसे देशों की वैज्ञानिक और तकनीकियों के इस्तेमाल को साझा करने का फैसला किया है, जिन्होंने अपने देश में जल संबन्धी चुनौतियों से निपटते हुए विकास को आगे बढ़ाया है। केंद्र सरकार के निर्णय से खासकर इजराइल,नीदरलैंड, हंगरी जैसे देशों की तकनीक भारत में जल संरक्षण के लिए बेहतर सबब बनेगी। मसलन इन देशों की तकनीक से सबक लेते हुए भारत भी कृषि विकास के अलावा मानव के उपयोग, विकास, निर्माण, उद्योग और अन्य क्षेत्रों में कम से कम जल से ज्यादा उपयोग से जल संरक्षण को बढ़ावा देने की योजना बना रहा है। इजराइल की इस तकनीक का इस्तेमाल मध्य प्रदेश में सफल होता दिखा है, तो वहीं महाराष्टÑ सरकार ने नीदरलैंड के साथ करार करके उसकी तकनीक पर काम शुरू कर दिया है। वहीं 'क्लीन वॉटर एंड ग्रीन एनर्जी इनकोरपेशन' के तकनीक को पेयजल व सिंचाई के लिए इस्तेमाल के लिए पंजाब सरकार ने हंगरी की तकनीक अपना शुरू कर दिया है। खासकर हंगरी के 'वन ड्रॉप मोर क्रॉप' (एक बूंद से अधिक फसल) के नारे के अनुकूल तकनीकी पंजाब के लिए वरदान बन सकती है।
क्या है विदेशी तकनीक
जल संरक्षण के तहत कृषि सिंचाई के लिए इजराइल में गंदे पानी को शोध संयंत्रों के बाद वैज्ञानिक तकनीक के बाद सिंचाई में प्रयोग किया जा रहा है, जबकि नीदरलैंड के अलावा हंगरी जैसे कई देशों में कम लागत पर ज्यादा जल का उपयोग करने के लिए भी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। नीदरलैंड अपशिष्ट जल को शुद्ध जल में तब्दील करने की तकनीक का भरपूर उपयोग कर रहा है। इसी प्रकार हंगरी ने भी अपने देश में जल संरक्षण और उसके उपयोग में तकनीक का सहारा लेकर चुनौतियों का मुकाबला करके अन्य देशों को सबक दिया है। भारत में जहां तक कृषि विकास और सिंचाई का सवाल है उसमें ऐसे देशों की तकनीक मोदी सरकार को पूरी तरह रास आ रही है, जिसके लिए सरकार ने इजराइल, नीदरलैंड और हंगरी की इन तकनीकों को साझा करके कृषि विकास के साथ देश के विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने का प्रयास तेज कर दिये हैं। इजराइल के कृषि मंत्री यूरी एरियल ने तो यहां चल रहे ‘भारत जल सप्ताह’ समारोह भरोसा दिया है कि भारत में जल प्रबंधन के क्षेत्र में वह विशेष सहयोग करने को तैयार है।
भू-जल स्तर सुधार
जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार उनका मंत्रालय जल प्रबंधन और जल संरक्षण की दिशा में अपनी योजनाओं में विदेशी तकनीकों को शामिल करते हुए गंदे पानी को उपयोगी बनाने के लिए संयंत्रों की स्थापना की जाएगी, वहीं भू-जल के स्तर में सुधार के लिए अपनाई जाने वाली तकनीक का भी आदान प्रदान किया जाएगा। मंत्रालय के सूत्रों की माने तो जल संरक्षण और अपशिष्ट जल प्रबंधन में नीदरलैंड की तकनीक का दुनिया ने लोहा माना है और सबसे बेहतर तकनीक के लिए भारत ने नीदरलैंड सरकार के सहयोग से देश में दिसंबर 2014 में ही वेस्ट वैल्यू संघ की स्थापना कर ली थी, जिसके तहत नीदरलैंड भारत में जल संरक्षण और अपशिष्ट जल प्रबंधन में ही सहयोग नहीं कर रहा, बल्कि नीदरलैंड भारत में अपशिष्ट जल प्रबंधन की बढ़ती मांग के मद्देनजर निवेश करने को भी तैयार है, इसके अलावा केंद्र सरकार जल संबन्धी परियोजनाओं को सार्वजनिक निजी भागीदारी के तहत करने की योजना बना रही है।
06Apr-2016

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