मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

साक्षात्कार: साहित्य में हिंदी को नया आयाम देते डॉ. विश्वबंधु शर्मा

हरियाणवी भाषा के व्याकरण लेखन ने दी खास पहचान व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. विश्वबंधु शर्मा 
जन्मतिथि: 02 सितम्बर, 1953 
जन्म स्थान: ग्राम-पुर, तहसील-बवानी खेड़ा, जिला-भिवानी (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए(इतिहास), एमए (हिन्दी), पीएचडी, डी.लिट् सम्प्रति: सेवानिवृत्तअध्यक्ष, हिन्दी विभाग, वैश्य कॉलेज, रोहतक (हरियाणा), पूर्व प्रो. बीएमयू, स्वतंत्र लेखन 
संपर्क: 97-98, नेहरु कॉलोनी, रोहतक(हरियाणा), मोबा. 9050998171 
BY-ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में साहित्यकारों, लेखकों एवं कवियों ने किसी न किसी विधा में साहित्य सृजन करते हुए सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर समाज को सकारात्मक विचारधारा के लिए नई ऊर्जा देने में अहम योगदान दिया है। वहीं अपनी संस्कृति तथा परंपराओं के संवर्धन के लिए भी साहित्य साधना के माध्यम से नई पीढ़ियों की राह प्रशस्त करने का प्रयास में जुटे साहित्यकारों में सुप्रसिद्ध लेखक एवं कवि डा. विश्वबंधु शर्मा एक ऐसे मूर्घन्य विद्वानों में शुमार हैं, जिन्होंने हरियाणा की लोक कलाओं और संस्कृति के स्वरुप व उसे पहचान दिलाने के मकसद से साहित्य सेवा करते हुए हरियाणवी, हिंदी और संस्कृत भाषा में साहित्य सृजन कर रहे हैं। उन्होंने हरियाणा भाषा का व्याकरण लिखकर हरियाणवी भाषा के साहित्यकार के रुप में तो लोकप्रियता हासिल की है, वहीं वे पिछले दस साल से हिन्दी भाषा के व्याकरण करके ‘शब्द निर्माण विज्ञान’ पर गहनता से कार्य करने में जुटे हुए हैं। उनकी यह साहित्य साधना हिंदी जगत के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी? विभिन्न विधाओं में गद्य एवं पद्य में लेखन करने वाले वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विश्वबंधु शर्मा ने अपने साहित्यिक सफर के बारे में हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में कई ऐसे महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें उनकी साधना साहित्य जगत को नया आयाम देने में सक्षम हो सकती है। 
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रियाणा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा‍. विश्वबंधु शर्मा का जन्म 02 सितम्बर, 1953 को भिवानी जिले के पुर गांव में संस्कृत के प्रकांड पंडित ब्रजलाल शास्त्री और श्रीमती अंती देवी के घर में हुआ। उनके पिता ब्रजलाल उस समय के उत्तर भारत के एक मात्र अग्निहोत्री थे। मसलन उनके परिवार में दियासलाई से आग जलाना प्रतिबंधित था और परिवार में पांच कुंड से अग्नि लेकर ही चूल्हे के अलावा अन्य आग जलाई जाती थी। परिवार में साहित्य और संस्कृति के माहौल में डा. विश्वबंधु को उनके पिता ने संस्कृत श्लोक कंठस्थ करा दिये थे। डॉ. विश्वबंधु शर्मा ने बताया कि विरासत में मिली साहित्य-संस्कृति की वजह से बचपन से ही उन्हें साहित्य, कला एवं परंपरागत संस्कृति में रुचि हो गई। छात्र जीवन में स्कूल में साप्ताहिक बाल सभाओं में वे कविताएं सुनाने लगे थे और सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा भाषण प्रतियोगिताओं में जहां भी वह हिस्सा लेते थे, तो प्रथम पुरस्कार उन्हीं को मिलता था। जब वह कक्षा सात में पढ़ रहे थे, तो साल 1967 में उनके पिता का बीमारी के चलते निधन हो गया। इस वजह से स्कूल जाना कम हो गया और घर की जिम्मेदारियां बढ़ गई। किसी तरह से द्वितीय श्रेणी में मैट्रिक पास कर ली। भिवानी में उनके विज्ञान के शिक्षक रामेश्वरदास पुरी उनसे प्रेम करते थे, जो उसे अपनी ससुराल साहनेवाल (पंजाब) ले गये, जहां उनकी ससुराल में लाला छज्जूमल को काम करने वाले लड़के की जरुरत थी। दो साल तक उनके यहां काम किया और वहीं से लाला की मेहरबानी ने उन्होंने साल 1970 में प्रभाकर पास किया। लाला छज्जूमल ने उन्हें गुरुनानक हायर सेकेंडरी स्कूल प्रतापपुरा, जालंधर में हिंदी अध्यापक लगवा दिया, जहां वे प्रबंधन समिति के सदस्य थे। उसके बाद वह हिसार आ गये, जहां से ओटी की परीक्षा पास की। बकौल डा. विश्वबंधु शर्मा उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी संभालते हुए अपने छोटे भाईयों को भी पढ़ाया, जिनमें से एक फौज में गया और कारगिल युद्ध में शहीद हुआ और दो भाई शास्त्री हो गये। उन्होंने खुद दो विषयों में एमए किया। राजस्थान यूनिवर्सिटी जयपुर से उन्होंने साठोत्तरी हिंदी में शोधकार्य कर पीएचडी की, जबकि आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों का समाजशास्त्रीय अध्यन कर डीलिट की उपाधि हासिल की है। सितंबर 1981 में डा. शर्मा वैश्य कालेज रोहतक में हिंदी विभाग में लेक्चरार के रुप में नियुक्त हुए और 20 साल तक विभागध्यक्ष रहने के बाद सितंबर 2013 में एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद उन्होंने बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय रोहतक में प्रोफेसर तथा गुरुनानक सेंटर मीरपुर रेवाडी में निदेशक के रुप में कार्य किया। उन्होंने बताया कि साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने ज्यादा हरियाणवी में लेखन किया, जिसमें हरियाणा की लोक कलाओं पर ज्यादा अध्ययन किया और पहला ग्रंथ भी हरियाणा संस्कृति अकादमी के अनुदान से प्रकाशित हुआ। जबकि उनका आलोचानात्मक लेखन का हिंदी में हुआ। डा. शर्मा ने साहित्यकार बनाने का श्रेय रुपचंदानी खुराना और अवतार पराशर को दिया, जिन्होंने उसे आकाशवाणी रोहतक से जोड़े रखा और और हरियाणवी नाटक तथा झलकी विद्या के साथ कार्यक्रमों में मौका दिया। जबकि उनके प्रेरणा स्वरुप डा. हरीश वर्मा रहे। डा. शर्मा के एकांकी संकलन की दो एकांकियों का संस्कृत में अनुवाद भी हो चुका है। डा. विश्वबंधु शर्मा की झलकियां आकाशवाणी रोहतक केंद्र से प्रसारित हैं और उनकी कोरी हांडी की एकांकियों का मंचन कई बार एमडीयू के क्षेत्रीय युवा समारोह में भी हुआ। वहीं उनके साहित्य पर कई विद्यार्थियों ने पीएचडी के शोध कार्य भी किये हैं। डा. शर्मा के हरियाणवी लोक कलाओं पर विशेष अनुसंधन हुए और 25 से ज्यादा शोधात्मक लेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने विभिन्न शैक्षिक, सामाजिक, साहित्यक समितियों में रहते हुए प्रशासनिक कार्य में भी अहम भूमिका निभाई है। 
हिंदी का कोई भी शब्द अपना नहीं 
सुप्रसिद्ध लेखक एवं साहित्यकार डा. विश्वबंधु हिंदी के शब्दों के अर्थ शब्दों के व्याकरण पर कार्य करते हुए कर रहे है। उनका कहना है कि हिंदी का कोई भी शब्द अपना नहीं है, जिसमें विभिन्न राज्यों की बोली के शब्दों का मिश्रण है। इसलिए वे पिछले दस साल से हिंदी के शब्द निर्माण विज्ञान पर कार्य कर रहे हैं और अभी तक पहला खंड पूरा हुआ है, जबकि इसका कार्य अभी जारी है। इस आधुनिक युग में साहित्य के सामने आई चुनौतियों के बारे में उन्होंने कहा कि अपनी जड़ो से जुड़े रहना जरुरी है और पुरानी परंपराए समाज में रीड की हड्डी है, जिसमें आस्था और अनास्था दोनों जुड़ी हैं। लेकिन इंटरनेट और मोबाइल के इस युग में खासकर युवा पीढ़ी के दिमाग, शरीर व चरित्र तीनों भ्रष्ट हो रही है और समाज भी पथभ्रष्ट हो रहा है। युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ने के लिए साहित्यकारों व लेखकों को आदर्श कविता व रचना के साथ अच्छे लेखन करने की आवश्यकता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
वरिष्ठ साहित्कार डॉ. विश्वबंधु शर्मा की प्रकाशित 30 पुस्तकों में साठोत्तर हिन्दी-महाकाव्यों में पात्र-कल्पना, संक्षिप्त भाषा विज्ञान, हिन्दी भाषा भास्कर, चेत मछंदर गोरख आया( हरियाणवी उपन्यास), जामदग्नेय (उपन्यास), आपणा मरण जगत की हाँसी व कोरी हाण्डी (हरियाणवी झलकी संग्रह), भगत सुदामा (हरियाणवी खण्डकाव्य), दुर्गा चरित (हरियावणी महाकाव्य), चासणी (हरियाणवी कविता-संग्रह), हरियाणा के लोकगीत (संपादित), भारत का सूरज: सूरजमल (हरियाणवी ऐतिहासिक उपन्यास), लाला छज्जूमल (संस्मरण संग्रह), दीवानों का मसीहा (हरियाणवी जीवनी), साठोत्तरी हिन्दी कविता, हरियाणा की लोक कलाएँ, आधुनिक हिन्दी-महाकाव्यों का समाजशास्त्रीय अध्ययन, कामायनी का समाजशास्त्रीय विश्लेषण, संत जाभो जी:साधना पद्धति और सामाजिक अवदान, काहे कबीरा भया कबीर, हरियाणवी भाषा:स्वरूप और पहचान, हरियाणवी लोक-साहित्य की ज्ञान-गगरिया:पहेली, शुद्ध हिन्दी कैसे लिखें?, हरियाणवी भाषा का व्याकरण, हरियाणवी भाषा का भाषा वैज्ञानिक आधार, वंशावली, बणछटियाँ की चिंगारी, लोक-अनुभूति का सीसा और भीत्तरले की झाल प्रमुख रुप से शामिल हैं। इसके अलावा उनके दो उपन्यास द्रोणि और टुकड़े-टुकड़े दास्तान प्रकाशनाधीन हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी से झलकी संग्रह ‘अपणा मरण जगत की हांसी’ और साठोत्तरी हिंदी कविता पर प्रथम पुरस्कार हासिल करने वाले डॉ. विश्वबंधु शर्मा को अकादमी द्वारा जनकवि मेहर सिंह सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें उदयभानु हंस वरिष्ठ साहित्यकार सम्मान, रघुवीर सिंह मथाना पुरस्कार, सारस्वत सम्मान, शाश्वामृत सम्मान, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी समृति सम्मान, कलम नायक सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, विद्यासागर सम्मान, साहित्य कौस्तुभम् अलंकरण सम्मान, कबीर सम्मान के साथ ही अध्यापन सम्मान प्रशंसा प्रमाण पत्र और विद्या वारिधि की उपाधि भी दी गई है। इनके अलावा डा. शर्मा को भारत की विभिन्न साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा उन्हें सैकड़ो पुरस्कार हासिल हो चुके हैं। 
25Dec-2023

सोमवार, 18 दिसंबर 2023

साक्षात्कार: संस्कृत भाषा में साहित्य सृजन करते महावीर शर्मा

समाज को कंठस्थ गीता के संदेश से संस्कारों की अलख जगाने में जुटे 
 व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. महावीर प्रसाद शर्मा 
जन्मतिथि: 21 सितम्बर 1945 
जन्म स्थान: गाँव कालवन, जिला जींद (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए (संस्कृत), एमए (हिंदी), पीएचडी, शास्त्री, साहित्याचार्य। 
संप्रत्ति:‍ लेखक, साहित्य सृजन करना, सेवानिवृत्त संस्कृत लेक्चरार 
संपर्क: 317/7,यू.ई., करनाल(हरियाणा), मोबाइल: 9896944707 
BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य के जगत में सुविख्यात साहित्यकार एवं संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान डॉ. महावीर प्रसाद शर्मा ऐसे लेखकों में शामिल है, जिन्होंने हिंदी, संस्कृत और हिरयाणवी भाषाओं में लेखन करके साहित्य सृजन किया है। उन्होंने विभिन्न विधाओं में अपनी रचनाओं को विस्तार देते हुए काव्य संग्रह, बाल काव्य संग्रह, महाकाव्य, खंड काव्य जैसी कृतियों को अपनी श्रेष्ठ लेखनी से समाज को नई दिशा देने का प्रयास किया। भारत की सभी भाषाओं की जननी कही जाने वाली संस्कृत भाषा तो उन्हें विरासत में मिली, जिस कारण वह संस्कृत भाषा में लेखन करने वाले शायद हरयिाणा के ऐसे पहले साहित्यकार है, जिन्होंने संस्कृत भाषा को साहित्य में सर्वोपरि रखा और संपूर्ण गीता उन्हें कंठस्थ है, जिसमें उनकी स्वलिखित गीता का संदेश पिछले दो दशक से ज्यादा समय से आकशवाणी से प्रसारण होता आ रहा है। साहित्य में श्रेष्ठ लेखनी के धनी डा. महावीर प्रसाद शर्मा ‘शास्त्री’ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर के अनुभवों को साझा किया और समाज को यह संदेश दिया कि संस्कृत के बिना संस्कार संभव नहीं हैं। 
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सुविख्यात साहित्यकार एवं संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान डॉ. महावीर प्रसाद शर्मा का जन्म 21 सितम्बर 1945 को जींद जिले के गाँव कालवन पंडित जयदेव मिश्र के घर में हुआ। उनके दादा शिवदत्त बड़े विद्वान थे, तो ऋषिकुल ब्रह्मचर्य आश्रम बरनाला में आचार्य थे, जहां डा. महावीर शर्मा शिक्षा दीक्षा हुई। इसलिए उन्हें संस्कृत और साहित्य संस्कारों में मिला है। उनका परिवार संस्कृत भाषा को चार पीढ़ियों से संजोए हुए है। चूंकि उनके पिता जयदेव मिश्र भी संस्कृत के विद्वान रहे और उनके चाचा साधुराम फाजिल्का के एक संस्कृत कॉलेज में प्रधानाचार्य थे। पिता को प्रेरणास्रोत मानते हुए उन्होंने अपनी लगन, मेहनत व जुनून और संस्कृत भाषा में गहन रुचि से उनकी अपनी अपनी खुद की पहचान बनाई। उन्होंने बताया कि उस जमाने में अष्टाध्यायी, अमरकोश और भट्टीकाव्य इन तीनों को प्रमुखता से पढाया जाता था। उसी प्रणाली से में पढ़ाई की है तो जाहिर सी बात है कि पहले संस्कृत और बाद में उन्होंने हिंदी सीखी। बकौल आचार्य महावीर शर्मा उन्होंने छात्रावस्था में ही लिखना शुरू कर दिया था। जनवरी 1965 में उन्होंने अध्यापन कार्य शुरू किया और सितंबर 2003 में संस्कृत के लेक्चरर पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने बताया कि आकाशवाणी कुरुक्षेत्र के निदेशक श्रीवर्धन कपिल उनके मित्र थे, जिनका मार्ग दर्शन मिला और जिन्होंने आकाशवाणी की ओर से उज्जैन में 26 जनवरी पर आयोजित होने वाले सर्वभाषा कवि सम्मेलन के लिए उन्हें मौका दिया। इस राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन में देशभर से 22 भाषाओं के कवि भाग ले रहे थे। हरियाणा से इस मंच पर माधव कौशिक और डॉ चंद्र त्रिखा भी थे। यहीं से उन्हें अहसास हुआ कि साहित्य क्या है और साहित्य में हरियाणा कहां है। इसके बाद साहित्य क्षेत्र में सक्रिय होकर उन्होंने साल 1994 में पहला खंडकाव्य 'हरियाणा गौरवम्' लिखा, जो हरियाणा साहित्य अकादमी के अनुदान से प्रकाशित हुआ। बकौल डा. महावीर उनके पास संन्यासी सत्यानन्द सिद्धांत कौमुदी पढने आते थे, जिनसे उन्होंने बांग्ला भाषा सीखी गीताजलि पढ़ी, जिसकी 103 कविताओं का उन्होंने काव्यानुवाद संस्कृत में किया। इस दौरान उन्हें ऐसे विद्वान की कमी महसूस हुई जो संस्कृत और बांग्ला दोनों भाषा जानता हो। ऐसे विद्वान के रुप में एक मूर्धन्य साहित्यकार एवं हिमाचल के राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री का पता चला, तो उन्होंने उन्हें पत्र लिखकर पुस्तक की भूमिका लिखने का अनुरोध किया, तो उन्होंने सहमति के बाद उसकी भूमिका लिखी और उनकी संस्कृत में गीतांजलि का काव्यनुवाद पुस्तक का प्रकाशन हुआ, जिसे अकादमी ने पुरस्कृत भी किया गया। उन्होंने बताया कि झारखंड के साहबगंज में हुए एक कवि सम्मेलन में वहां पहुंचे कुछ कवियों ने हरियाणवी लेखन के बारे में जानने का प्रयास किया तो उनकी बात ऐसी घर कर गई, लेकिन प्रेरणा भी मिली, जिसकी बदौलत उन्होंने वहां से आते ही 500 पृष्ठीय ‘जै हरयाणा महाकाव्य’ लिख डाला, जिसके बाद उन्होंने हरियाणवी भाषा में चार पांच पुस्तकों की रचना कर ड़ाली। मसलन उनकी प्रकाशित चालीस पुस्तकों में 25 संस्कृत व 5 हरियाणवी बोली में हैं और इनमें से उनकी सात पुस्तकों पर शोधार्थियों द्वारा पीएचडी भी की जा चुकी है। उन्होंने सुखमणि साहब का संस्कृत में एक हजार श्लोकों का अनुवाद भी किया। उन्होंने बताया कि वह संस्कृत में भवभूति, जगन्नाथ, बाणभट्ट हिंदी में जय शंकर प्रसाद, हरिवंश राय बच्चन, रामधारी सिंह दिनकर, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से बेहद प्रभावित हैं। पिछले बीस साल से आकाशवाणी पर शास्त्री जी का रोजाना शाम 6:10 पर गीता का संदेश भी आता है। दिल्ली संस्कृत अकादमी समेत अखिल भारतीय स्तर पर भी उनकी श्रेष्ठ लेखनी के लिए उन्हें कई बार पुरस्कृत किया गया है। उन्हें गीता कंठस्थ है और आकाशवाणी केंद्र से 15 वर्ष से स्वलिखित गीता संदेश का प्रसारण हो रहा है। 
संस्कृत साहित्य सृजन भी जरुरी 
प्रसिद्ध साहित्यकार डा. महावीर शर्मा ने इस आधुनिक युग में साहित्य के सामने पेश आ रही चुनौतियों को लेकर कहा कि जिस प्रकार आज लोग संस्कृत से दूर हो रहे हैं। इसलिए यह एक चिंता का विषय है कि संस्कृत जो हमारी प्राचीन भाषा है भी लुप्त होने के कगार पर है, जिसे बचाने की आवश्यकता है। संस्कृत नहीं बचेगी तो संस्कार भी न बचेंगे। उनका स्पष्ट मत है कि संस्कृत के बिना संस्कार नहीं है और संस्कार के बिना साहित्य अधूरा है। वैसे भी साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। ऐसे में समाज को दिशा देने वाले साहित्य जिसमें संस्कृत भाषा में भी रचनाएं लिखने की जरुरत हैं। जहां तक साहित्य के प्रति कम होती अभिरुचि का सवाल है इसका कारण है कि पहले कविताएं और कहानियां इतनी लंबी होती थी, जो आज लघु कविता और लघु कथाओं का रुप लेने लगी हैं। इस तकनीकी मोबाइल के जमाने में उपन्यास से लेकर अन्य बड़ी रचनाओं के पाठकों में आ रही कमी का भी यही कारण है। लेखन खत्म होता जा रहा है और आज साहित्य की विधाओं में कोई छंद व ताल तक नजर नहीं आता। जबकि अलंकर छंदो का ज्ञान साहित्य को विशिष्टता प्रदान करता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्य की विविध विधाओं में उनकी अब तक प्रकाशित 40 पुस्तकों में हिंदी भाषा में मिताक्षरा (काव्य-संग्रह), आओ कविता एक बनाए(बालसाहित्य), झरने का गीत (बाल काव्य संग्रह); हरियाणवी में जै हरियाणा, राणीभाद्री (महाकाव्य), एक रपैय्या एक ईट (सम्पूर्ण नाटक), धनी होणे का मन्तर, इसी तरह संस्कृत भाषा में हरियाणा गौरवनम्, ऋतंवदा, हरियाणा वाणी विलासः, कल्पना चावला, माया ब्रह्मस्तुतिः (खंड-काव्य), वैराग्य वीर चरितम्, मैक्स-मूलरचरितम्, लोक कवि मांगे राम चरितम्, श्री गुरु रविदास विजय चरितम् तथा भगवद् वाल्मीकि चरितम् आदि पुस्तके अल्लेखनीय हैं। गीतांजलि, मधुशाला, जपजी साहेब, सुखमनीसाहेब, शृणुराधिके का संस्कृत भाषा में अनुवाद किया। डा. शर्मा की रानी मादरी, बंदा बैरागी, मैक्समुलर, वीर सावरकर, देवर्षि नारद जैसी रचनाएं कालजयी हैं। भगवान वाल्मीकि चरित्र पर उन्होंने अपने जीवन का सातवां महाकाव्य भी लिखा है। 
पुरस्कार व सम्मान 
पंडित लख्मीचंद अवार्ड, पं. माधव प्रसाद मिश्र सम्मान, सर्वोत्तम लेखक सम्मान, महर्षि वेद व्यास सम्मान, आश्व कवि पुरस्कार, पंडित लख्मीचंद अवार्ड, महर्षि वाल्मीकि सम्मान, हरियाणा संस्कृत गौरव सम्मान, पं. माधव प्रसाद मिश्र सम्मान, हरियाणा साहित्य अकादमी और संस्कृत अकादमी के विशिष्ट लेखक सम्मान, महर्षि व्यास सम्मान, महर्षि वाल्मीकि सम्मान, पंडित लख्मीचन्द सम्मान, हरियाणा संस्कृत गौरव सम्मान, पं. माधव प्रसाद मिश्र सम्मान से सम्मानित, उत्तर प्रदेश सरकार ने भी उन्हें 'कालिदास सम्मान से सम्मानित किया है। इसके अलावा उन्हें दिल्ली संस्कृत अकादमी समेत अखिल भारतीय स्तर पर भी अनेक पुरस्कारों के साथ देशभर में विभिन्न साहित्यिक और सामाजिक संस्थाओं द्वारा हजारों पुरस्कार देकर सम्मानित किया जा चुका है। 
राष्ट्रीय स्तर पर हरियाणा का प्रतिनिधित्व 
पिता जयदेव मिश्र को अपना प्रेरणास्रोत मानने वाले महवीर प्रसाद शास्त्री राष्ट्रीय स्तर पर दो बार हरियाणा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उन्होंने अखिल भारतीय सर्वभाषा कवि सम्मेलन में भाग लिया। जो साल में सिर्फ एक बार ही होता है। सम्मेलन की खास बात यह है कि यह 22 भाषाओं में होता है और 22 कवि ही भाग लेते हैं। इसमें एक व्यक्ति जीवन में केवल एक बार ही हिस्सा ले सकता है, लेकिन उन्होंने इसमें दो बार भाग लेने का गौरव पाया। एक बार बतौर कवि दूसरी बार ट्रांसलेटर के तौर पर सम्मेलन में जाने का मौका मिला। 
11Dec-2023

चौपाल: सजीव फोटोग्राफी की कला को संजोते अनिल कुमार

फोटो एवं वीडियोग्राफी कला की विभिन्न विधाओं के प्रदर्शन से बनाई पहचान 
                        व्यक्तिगत परिचय
नाम: अनिल कुमार 
जन्मतिथि: 27 मार्च 1973 
जन्म स्थान: रोहतक(हरियाणा) 
शिक्षा: अंडर ग्रेज्युएट संप्रत्ति: सिनेमेटोग्राफर, फिल्म शूटिंग 
पता: 375ए, सेक्टर-2, रोहतक(हरियाणा), मोबा. 9896117058  
BY--ओ.पी. पाल 
रियाणवी संस्कृति, लोक कला और सभ्यता को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान देने में जुटे लोक कलाकार और संस्कृतिकर्मी समाज को भी नई दिशा देने में योगदान दे रहे हैं। जहां हरियाणवी चित्रकार सामाजिक, सांस्कृतिक एवं सभ्यता के रंगों के जादू को कैनवास पर बिखरकर अपनी संस्कृति को संजोने और संवर्धन कर रहे हैं, वहीं कुछ फोटोग्राफी के माध्यम से अपनी चित्रों के माध्यम से परंपरागत से लेकर आधुनिक युग तक की संस्कृति की अलख जगाने में भी पीछे नहीं हैं। ऐसी तस्वीर को अपने कैमरे में कैद करने की कला के क्षेत्र में लोकप्रियता हासिल करने वालों में रोहतक के कैमरामैन अनिल कुमार भी शामिल है, जिन्होंने फोटोग्राफी के साथ सिनेमेटोग्राफर के रुप में फिल्मों, टेलीविजन शो, विज्ञापनों और अन्य रचनात्मक फोटो और वीडियो को जीवंत करने का प्रयास किया है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रचनात्मकता को तकनीकी क्षमताओं के साथ जोड़ने का प्रयास करने वाले सिनेमेटोग्राफर अनिल कुमार ने अपनी इस कला के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे अनुछुए पहलुओं का भी जिक्र किया है, जिसमें फोटो व वीडियोग्राफी की कला से सकारात्मक संदेश समाज को सकारात्मक ऊर्जा देने का बेहतर माध्यम हो सकता है। 
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बॉलीवुड से लेकर हरियाणवी फिल्मों, टीवी शो, वेबसीरिज, मैग्जीनों के अलावा सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर होने वाले सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी का जादू बिखरने वाले अनिल कुमार का जन्म 27 मार्च 1973 को रोहतक में हरनारायण और बिमला देवी के घर में हुआ। परिवार में वैसे तो किसी प्रकार का साहित्यिक या लोक कला संस्कृति का माहौल नहीं था, लेकिन पिता को फोटोग्राफी का शोंक था, जिनके प्रोत्साहन से उसकी रुची फोटोग्राफी में होती चली गई। रोहतक में प्राइमरी स्कूली शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने साल 1995 में इंटरनेशनल स्कूल ऑफ फोटोग्राफी दिल्ली से फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी में डिप्लोमा हासिल किया। बकौल अनिल कुमार डिप्लोमा हासिल करने के बाद उन्हें देश के लोकप्रिय फोटोग्राफर का सानिध्य मिला। उनके प्रोत्साहन उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की फैशन, फूड, इंटिरियल से जुड़ी मैग्जीनों यानी पत्रिकाओं के अलावा ट्रेवल्स, वाइल्ड लाइफ नेचर, इंडस्ट्रीज के अलावा अन्य कार्मिश्यल क्षेत्र में फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी में महारत हासिल की है। उन्होंने बताया कि फिल्मों की शूटिंग के दौरान स्टोरी और गानों को शूट करके पूरी कवरेज करने का मौका भी मिलता रहा है। यही नहीं फोटोग्राफी के जरिए फिल्मों के ब्रोशर की डिजाइनिंग करके उनको कैमरे में शूट करने का भी अनुभव हासिल किया है। उन्होंने बताया कि हरियाणा विश्वविद्यालयों के यूथ फेस्टिवल में बेस्ट फोटो और वीडियोग्राफी के चयन के लिए उन्हें ज्यूरी की जिम्मेदारी निभाने का भी मौका मिला है। वहीं वे हरियाणी कला संस्कृति पर आधारित वेब सीरिज और सीरियलों की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी के माध्यम से शूट करते आ रहे हैं। इस आधुनिक युग में फोटो और वीडियोग्राफी में बदलाव को लेकर उनका कहना है कि डिजिटलीकरण के इस युग में नई-नई तकनीकों के साथ होते विस्तार की वजह से यह कला विस्तृत तो हुई है, लेकिन इसके लिए तकनीकी प्रशिक्षण के बिना इस क्षेत्र में काम करना आसान नहीं है। खासतौर सिनेमेटोग्राफी में तो किसी भी फिल्म के विजुअल लुक को बनाने के लिए रचनात्मकता को तकनीकी क्षमताओं के साथ जोड़ना एक टेढ़ी खीर से कम नहीं है। बकौल इसका कारण एक सिनेमेटोग्राफर ऑन-शूट और ऑफ-शूट दृश्य की रचना तय करने के लिए डायरेक्टर के निर्देशन पर काम करता है। उसी के आधार पर सिनेमेटोग्राफर के काम के माध्यम से ही पूरी फिल्म या किसी भी शॉट का विज़ुअल इफेक्ट तय किया जाता है। मसलन सिनेमेटोग्राफर का काम किसी कहानी को स्क्रिप्ट से लेकर पर्दे पर जीवित करना ही इस कला की निपुणता और क्षमता तय करता है। इसलिए कैमरा, लाइटिंग और फिल्म निर्देशन के मामले में तकनीकी प्रशिक्षण आवश्यक है। जहां तक इस क्षेत्र में युवा पीढ़ी को प्रोत्साहन की जरुरत है तो उसके लिए बदलती तकनीक के साथ फोटो कला की विधाओं के लिए तकनीकी प्रशिक्षण हासिल करना आवश्यक है। 
इन फिल्म शूटिंग में दिखाई कला 
एक सिनेमेटोग्राफर के तौर पर फोटो कलाकार अनिल कुमार को बॉलीवुड फिल्म वीरे की वेडिंग, वेलापंती के अलावा केसरी बुकारिया के निर्देशन में बनी फिल्म ‘भूत अंकल तूसी ग्रेट हो’ में भी उन्हें वीडियो और फोटो कवरेज करने का मौका मिला है। वहीं हरियाणवी फिल्म ‘रोहतक कब्जा’, 48 कोस तथा स्टेज एप के लिए हरियाणा बनाम बिहार जैसी हरियाणवी फिल्म को शूट करने की जिम्मेदारी निभाई है। फोटो व वीडियो कला के क्षेत्र में अनिल कुमार ने रूबरु मिस सुपर मॉडल इंटरनेशन, मिस्टर इंटरनेशनल, मिस इंडिया और मिस्टर इंडिया के अलावा सुपर मॉडल वर्ल्डवाइज, फेस ऑफ ब्यूटी इंटरनेशनल में भी उनकी फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की कला सुर्खियों में रही है। वहीं उन्होंने एले कॉस्मोपॉलिटन डिज़ाइन और इंटीरियर, इंडिया टुडे प्लस इंडिया टुडे, डेकोर डिस्कवर इंडिया ब्राइड एंड होम आदि के लिए कुछ मैगज़ीन के लिए भी फोटो व वीडियो शूट किये हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
फोटो एवं वीडियो की सजीव कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए अनिल कुमार को पिछले तीन साल में ही 15 इंडरनेशनल अवार्ड मिल चुके हैं। इनमें प्रमुख रुप से टॉप अवार्ड यूनिवर्सल कलर फोटो, बेस्ट इमेज, यूनिवर्सल ब्लैक एंड व्हाइट, कलर ऑफ यूनिवर्सल, थियेटर टॉप कलेक्शन, कलर टॉप अवार्ड के अलावा डिजाइनल इंटीरियल शामिल हैं। वहीं लोककला संस्कृति पर आधारित सरकारी और गैर सरकारी सांस्कृतिक मंचों के अलावा इंडया टूडे, इंडिया टाटा आदि संस्थाओं की कॉमर्शियल मैग्जीन के कवर फोटो और वीडियोग्राफी के लिए भी अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं।
04Dec-2023

साक्षात्कार: साहित्य में नारी विमर्श पर साधना करती कवियत्री रश्मि बजाज

महिलाओं पर अंग्रेजी के समालोचक ग्रंथ से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान 
                  व्यक्तिगत परिचय 
नाम: रश्मि बजाज 
जन्मतिथि: 5 अक्टूबर 1965 
जन्म स्थान: भिवानी (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए (अंग्रेज़ी), पीएचडी(अंग्रेज़ी) 
संप्रत्ति: स्वैच्छिक सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष(अंग्रेज़ी),वैश्य कॉलेज भिवानी, स्वतंत्र-लेखन एवं कवियत्री।
संपर्क : भिवानी, मोबा. 9896661415,‍ rashmibajaj5@gmail.com
BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में हरियाणा की संस्कृति और सभ्यता के संवर्धन करने में जुटे लेखकों, साहित्यकारों एवं लोक कलाकारों ने सामाजिक सरोकार के मुद्दों को उजागर करते हुए समाज को नई दिशा देने का प्रयास किया है। ऐसे ही साहित्यिक साधकों में महिला साहित्यकार एवं प्रसिद्ध कवियत्री रश्मि बजाज ने नारी विमर्श को फोकस में रखते हुए सामाजिक विषमताओं पर अपनी बेबाक कलम चलाई है। उन्होंने कविताओं के माध्यस में महिलाओं को जागृत करते हुए यह साबित करने का प्रयास किया है कि यदि महिलाएं अपनी अंतशक्ति को पहचान लें, तो वे समाज का सकारात्मक रुप से कायाकल्प कर सकती हैं। अपने समालोचना ग्रंथ ‘विमेन इंडो एगलियन पोएट्स-ए क्रिटीक’ से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाली द्विभाषी (हिंदी व अंग्रेजी) कवियत्री, लेखक, समालोचक, साहित्यकर्मी और शिक्षाविद् रश्मि बजाज ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे अनछुए पहलुओं का जिक्र किया, जिसमें उनके लेखन का नजरिया नारी सशक्तिकरण की दिशा में महिलाओं के प्रति अवधारणा का सकारात्मक स्वरुप का सबब बन सकता है। 
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रियाणा की प्रसिद्ध महिला साहित्यकार रश्मि बजाज का जन्म 5 अक्टूबर 1965 को छोटी काशी के नाम से पहचाने जाने वाले शहर भिवानी में रोशनलाल बजाज एवं पुष्पलता बजाज के घर में हुआ। पिता संस्कृत के विद्वान एवं प्रोफेसर थे, जबकि माता उस समय की भिवानी की पहली स्नातक महिला थी। मसलन परिवार में बचपन से ही रश्मि को शिक्षित-साहित्यिक माहौल मिला। जब घर में साहित्यिक बैठके हों और उसमें पिता के आत्मीय मित्रों, जिनमें हरियाणा के वरिष्ठ कवि उदयभानु हंस एवं उर्दू शायर सतनाम सिंह ‘खुमार’ जैसे विद्वान हों, तो भला परिवार में साहित्यिक माहौल किसी भी बच्चे में रमना स्वाभाविक है और ऐसा ही रश्मि के साथ है, जिसमें हंस जी की रुबाईयां तथा मुक्तक,खुमार साहब की गजलें और शेर उस समय उनके बचपन के साथी बनते चले गये, जिस आयु मे बच्चे चंपक, चंदा मामा और नंदन पढ़ते थे, लेकिन रश्मि को गंभीर चर्चाएं एवं रचनाएं सुनना ज्यादा अच्छा लगता था। इसी माहौल का असर रहा होगा कि उसने महज नौ साल की उम्र में ही अपनी पहली दार्शनिक कविता ‘जीवन क्या है-खेल कैरम का’ लिखी, जो भिवानी के एक स्थानीय अखबार में प्रकाशित हुई। उनका विद्यार्थी जीवन भी बेहतर रहा है, जहां उन्होंने यूनिवर्सिटी टॉपर,,गोल्ड मेडलिस्ट, ऑल राउंड बेस्ट एवार्डी बनकर अपनी साधना का परिचय दिया। कालेज में पहुंचने पर उनकी कविता के लेखन में सामाजिक सरोकार एवं स्त्री-मुद्दे विषय-वस्तु झलकने लगा और पितृसत्तात्मक, लैंगिक भेदभावपूर्ण समाज में एक लड़की के लेखन में स्त्री-चेतना एक महत्वपूर्ण बिंदु बन गई। अपने कॉलेज आदर्श महिला महाविद्यालय की अध्यापिकाओं द्वारा दिए गए प्रशिक्षण एवं उनके तथा कॉलेज गवर्निंग बॉडी द्वारा दिये गये स्नेह एवं प्रोत्साहन ने उनकी प्रतिभा के पल्लवन में बहुत योगदान दिया। उन्होंने बताया कि जब वह यूनिवर्सिटी रिफ्रेशर कोर्स में समर हिल, शिमला में ट्रेनिंग ले रही थी, तो उसी दौरान शिमला के इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़ में कवि गोष्ठी में उनका पहला औपचारिक काव्य-पाठ हुआ, जिसमें प्रोफेसर चमन लाल,रमणिका गुप्ता,मोहन नैमिष राय, सुशीला टौंकभोरे एवं अन्य नामचीन साहित्यकार मौजूद थे। यह उनके लिए एक अविस्मरणीय क्षण था, जिसमें उन्होंने बड़े संकोच और धड़कते दिल से अपनी अब बहुचर्चित स्त्रीवादी कविता ‘मृत्योर्मा जीवनं गमय’को वहां पढ़ा, जिसके लिए मिली चौतरफा मिली शुभकामनाओं ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया। साहित्य जगत में उनकी अंग्रेज़ी आलोचना पुस्तक ‘विमेन इंडो-एंग्लियन पोएट्स’ यूएस लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस द्वारा सर्वश्रेष्ठ प्रकाशनों में चयनित हुई, जो अपने क्षेत्र का बहु-उद्धृत मील का पत्थर ग्रंथ साबित हुआ। वहीं उनके नारी विमर्श संबन्धी पांच काव्य संग्रह राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित कृतियों में शामिल रहे, जिन पर अनेक शोध प्रबंधों एवं शोध पत्रों के शोध स्रोत सामने आए। उनकी कविताएं विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं। उनकी कविताओं का अनुवाद अन्तर्राष्ट्रीय संकलनों के अलावा आलेख, रचनाएं नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। शोध-पत्र एवं समालोचनात्मक लेख प्रतिष्ठित साहित्यिक शोध-पत्रिकाओं में सम्मिलित अंतर्राष्ट्रीय राष्ट्रीय गोष्ठियों का भी हिस्सा बने। उनकी आमंत्रित मुख्य वक्ता के रूप में दूरदर्शन एवं रेडियो-केंद्रों से साक्षात्कार, वार्ताएं, कविताएं, संगीत प्रसारित स्तरीय कवि सम्मेलनों में भागीदारी रही है। 2022 में प्रकाशित ‘कहत कबीरन’ संग्रह की चर्चाए वं कविता ‘सुनो तसलीमा’ का पाठ प्रतिष्ठित प्रतिष्ठित चैनल के ‘साहित्य तक’ में सम्मिलित होना भी उनकी बड़ी उपलब्धियों में शामिल रहा। रश्मि बजाज भारत सरकार की संयुक्त हिंदी सलाहकार समिति की सदस्या भी हैं। 
महिलाओं पर रचनाओं का फोकस 
सुप्रसिद्ध कवियत्री रश्मि बजाज की साहित्यिक रचनाओं के फोकस में स्त्री रही है। पहले चरण के काव्य-संग्रहों में स्त्री-मुद्दे एवं स्त्रीवाद ही मूल स्वर रहे हैं, जहां सारा संघर्ष स्त्री को मनुष्य के रूप में प्रतिष्ठित करने का है और एक लैंगिक समता मूलक समाज बनाने का रहा, तो उन्होंने अपनी कविताओं के लेखन और काव्यपाठ के जरिए भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, स्त्री विरोधी मानसिकता, अत्याचार, अन्याय और स्त्री व पुरुष में भेदभाव जैसी नारियों से जुड़ी समस्याओं और सामाजिक कुरीतियों तीखे प्रहार करके समाज को सकारात्मक ऊर्जा देने का प्रयास किया है। हालांकि उनके विस्तृत होते काव्य-कृतियों का फलक में सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक मुद्दों पर व्यापक चिंता एवं चिंतन,गहरा सरोकार विकसित होता नजर आता है। साहित्यिक साधना में उनका यह भी लक्ष्य है, जिसमें वे एक ऐसी सहृदय सभ्यता, संस्कृति का निर्माण करने में योगदान दें, जहां नवमनु, नव सृष्टि जन्म लें सके। उनकी हिंदी की लयात्मक मुक्त छंद कविताओं, तालबद्ध गीतिकाओं के अतिरिक्त उर्दू शेरो-शायरी में अभिव्यक्त होती है एक बेहतर इंसान, बेहतर समाज, बेहतर दुनिया बनाने की प्रबल इच्छा रही है। आज कल अध्यात्म में भी उनकी रुचि बढ़ रही है और उनका मानना है कि अध्यात्म व्यष्टि एवं समष्टि के समग्र उत्थान का एक अत्यंत सशक्त माध्यम है। संगीत एवं गायन भी उनकी रुचि के क्षेत्र हैं, लोकसंगीत एवं भक्ति संगीत के कार्यक्रमों में भी उन्होंने प्रस्तुतियां दी हैं। 
साहित्य सृजन में गिरावट 
आज के आधुनिक युग में साहित्य में सृजन के स्तर में गिरावट को लेकर रश्मि बजाज का कहना है कि आजकल लेखकों एवं पुस्तकों की सुनामी सी आई हुई है, लेकिन हर व्यक्ति या तो लेखक है या लेखक बनने को है किंतु गुणवत्ता की दृष्टि से स्थिति अधिक संतोषजनक नहीं। समकालीन हिंदी समीक्षा का फलक कुछ गिने-चुने रचनाकारों तथा चंद प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित कृतियों तक ही सीमित होकर रह गया है। इसी वजह से स्तरीय कृतियां प्रकाशित नहीं हो पा रहीं हैं और न ही कोई मौलिक साहित्यिक दृष्टि अथवा दर्शन समक्ष नहीं आ पा रहा है। उम्मीद है कि इस मंथन-काल के बाद मौलिक दृष्टि एवं सृजन अवश्य उभरकरसबके समक्ष आएगा। जहां तक युवा पीढ़ी का साहित्य से दूर होना है उसके पीछे अब इंटरनेट व संचार-तकनीक के माध्यम है, जिसके जरिए समकालीन परिदृश्य में साहित्य की पारंपरिक विधाएं नई टेक्नोलॉजी, संचार-माध्यमों द्वारा प्रस्तुति एवं संप्रेषण पा रही हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स-यू-ट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सएप, पॉडकास्ट इत्यादि एक सशक्त माध्यम के रूप में समक्ष आ रहे हैं। साहित्य-उत्सवों एवं पुस्तक-मेलों में बड़ी संख्या में युवा पाठकों की सक्रिय भागीदारी रहती है। इंटरनेट से मिली प्रारंभिक जानकारी लेकर वे पुस्तकों में अधिक सजीव रुचि लेते हैं। इसके अतिरिक्त अमेजॉन,फ्लिपकार्ट तथा प्रकाशकों से नेट के ज़रिए खरीदे जाने वाली पुस्तकों का एक बहुत बड़ा बाज़ार है एवं ई-बुक्स, ‘किंडल’ बुक्स, नॉटनल आदि पब्लिशिंग प्लेटफार्म पाठक को वैश्विक पुस्तक बाज़ार से सीधा जोड़ रहे हैं। आज के लेखक के कंधों पर बड़ी ज़िम्मेदारी है कि वह अपने लेखन द्वारा नकारात्मकता ग्रस्त, मूल्यहीन, दिशाभ्रमित मानव-समाज को सकारात्मकता एवं सात्विक-मूल्यों का संदेश देने वाली रचनाओं का सृजन करें। 
प्रकाशित पुस्तकें 
महिला साहित्यकार एवं द्विभाषी कविता लेखक रश्मि बजाज की अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित सात पुस्तकों में छह काव्य-संग्रह: मृत्योर्मा जीवनम् गमय, निर्भय हो जाओ द्रौपदी, सुरबाला की मधुशाला, स्वयंसिद्धा, जुर्रत ख्वाब देखने की, कहत कबीरन सुर्खियों में हैं। उनकी अंग्रेज़ी आलोचना पुस्तक ‘विमेन इंडो-एंग्लियन पोएट्स’ यूएस लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस द्वारा सर्वश्रेष्ठ प्रकाशनों में चयनित हुई, जो अपने क्षेत्र का बहु-उद्धृत मील का पत्थर ग्रंथ साबित हुआ। वहीं जल्द ही पाठकों के बीच आने वाले अंग्रेज़ी के महत्वपूर्ण आलोचना-ग्रंथ ‘समकालीन वैश्विक साहित्य में अध्यात्म’ का संपादन जारी है। उनकी अंग्रेज़ी की कविताएं प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय काव्य-संकलनों, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा शोध-प्रपत्रों में शोध-विषय वस्तु के रूप में सम्मिलित हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
कवियत्री रश्मि बजाज को साहित्य सेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए 'पंडित माधव मिश्र साहित्य सम्मान', 'हंस राज्यस्तरीय कविता पुरस्कार', 'साहित्य शिरोमणि सम्मान', 'डॉ राजेंद्र प्रसाद साहित्य सम्मान' 'हरियाणा साहित्य सम्मान'. 'मनु मुक्त मानव अकादमी सम्मान', 'लाजवंती सीताराम साहित्य पुरस्कार', 'वुमन अचीवर्स अवार्ड', 'स्त्री रत्न', 'स्त्री शक्ति', 'आदर्श शिक्षक', 'बेस्ट कल्चरल इंचार्ज अवार्ड' तथा अन्य अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक पुरस्कारों, सम्मानों द्वारा अलंकृत किया जा चुका है। 
27Nov-2023

सोमवार, 20 नवंबर 2023

चौपाल: सामाज को संस्कृति से जोड़ने का माध्यम है सिनेमा: बिन्दा

बॉलीवुड व हरियाणवी फिल्मों बहुआयामी कलाओं से मिली खास पहचान 
               व्यक्तिगत परिचय 
नाम: वीरेन्द्रपाल बिंदा जन्मतिथि: 15 जनवरी 1981 जन्म स्थान: गांव मकडौली कलां, रोहतक(हरियाणा) 
शिक्षा: बीकॉम(ग्रेज्युएट) 
संप्रत्ति: अभिनेता,निर्देशक, लेखक, एडीटर 
संपर्क: अन्ना हजारे मार्किट, रोहतक, मोबा. 7082575925 
BY--ओ.पी. पाल 
 हरियाणवी संस्कृति, सभ्यता, रीतिरिवाज और बोली देश विदेशों में मिसाल बनती जा रही है, जिसकी पृष्ठभूमि में सूबे के लोक कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों और साहित्यकारों की साधना का अहम योगदान माना गया है। अपनी संस्कृति और लोक कलाओं के संवर्धन में अलग अलग विधाओं में समाज को नई दिशा देने में जुटे ऐसे कलाकारों में रोहतक के वीरेन्द्र पाल बिन्दा भी एक ऐसे बहुआयामी कलाकार हैं, जिन्होंने सामाज में व्याप्त कुरीतियों को अपने गीतो और फिल्मों में अभिनय के जरिए बेबाक उजागर किया है। फिल्मी गीतों के अलावा वेब सीरिज, वृत्तचित्रों का लेखन, निर्देशन, अभिनय और संपादन के क्षेत्र में पिछले दो दशकों से सक्रीय कलाकार वीरेन्द्र पाल बिन्दा ने फिल्म क्षेत्र के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में कई ऐसे पहलुओं का जिक्र किया है, जिसमें वह समाज, खासतौर से युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ने के लिए सिनेमा को सबसे बेहतर माध्यम मानते हैं।
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रियाणवी फिल्मों मे अभिनय, निर्देशक, गीतकार और पटकथा लेखक के रुप में पहचान बनाने वाले कलाकार वीरेन्द्र पाल बिन्दा का जन्म रोहतक शहर से सटे गांव मकडौली कलां में एक किसान एवं ब्राह्मण परिवार में समेराम व प्रकाशी देवी के घर में 15 जनवरी 1981 को हुआ। परिवार में आध्यात्मिक माहौल के अलावा किसी प्रकार की लोक कला या साहित्यिक माहौल नहीं था। वीरेन्द्र की प्राथमिक शिक्षा गांव में ही हुई, जबकि उन्होंने स्नातक जाट कॉलेज रोहतक से की। बचपन से ही उन्हें कब्बड़ी खेलने का शौंक था और वे स्कूल व कॉलेज के अलावा राष्ट्रीय स्तर तक कब्बड़ी खेलते रहे हैं। लेकिन उन्हें खेल से ज्यादा गीत लेखन, गायन और अभिनय जैसी कला के प्रति अभिरुचि हुई। वीरेन्द्र का कहना है कि जब वे मैट्रिक करने के बाद उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो फिल्में देखने और गाने सुनने के बाद उन्हें महसूस हुआ कि वह भी एक्टिंग और गायन कर सकते हैं। गीत व गाने लिखने और गायन की अभिरुचि के चलते साल 2001 में उन्होंने पहला धार्मिक गीत लिखा, जिसके बाद साल 2003 में उनकी एलबम छोरी छैल छबीली आई, जिसमें उन्होंने निर्देशन के साथ गायन भी किया। इसके बाद हरियाणवी फिल्म तड़पन का निर्देशन किया, जिसके अलावा उन्होंने दर्जनों हरियाणवी फिल्म, सीरियल और वेबसीरिज में पटकथा और गीत भी लिखते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि अब तक वे 500 से भी ज्यादा गीतों का लेखन और फिल्मों, वृत्तचित्र की पटकथाओं व कहानियों का संपादन भी करते आ रहे हैं। साल 2012 में वीएम इंटरनेशनल चैनल के बैनर तले उन्होंने सीरियल मैं लडूंगी, वारिश कौन तथा चक्कर चौधर का निर्माण किया। जबकि साल 2014 में उन्होंने सिनेमा के लिए गैंगरेप पर आधारित हिंदी बॉलीवुड फिल्म ‘एनसीआर’ का निर्देशन किया, इस दौरान सामने आए आर्थिक और अन्य समस्याओं के कारण उन्हें बेहद संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ा, लेकिन वह पीछे नहीं हटे और यह फिल्म साल 2019 के दौरान मुंबई में रिलीज हुई, जिसका डिस्ट्रीब्यूसन आल इंडिया हुआ। जिसका नतीजा भी सकारात्मक मिला। इस फिल्म में जोगेन्द्र कुंडू, सपना चौधरी, अंजली राघव, शिखा राघव, शिवानी राघव आदि कलाकारों के किरदार ने कई राज्यों में धूम मचाई। इस फिल्म में भी उन्होंने अभिनय और गीत लेखन के साथ गायक की भी भूमिका निभाई। यह फिल्म दिल्ली, यूपी, हरियाणा, राजस्थान जैसे कई राज्यों के सिनेमाघरों में चली और उन्हें यहां से फिल्म निर्माण व निर्देशन के साथ अभिनय के रुप में भी एक बड़ी पहचान मिली। इस फिल्म का निर्माण समाज में नारी के प्रति अपराधों के खिलाफ अलख जगाने के मकसद से किया गया। पिछले करीब दो दशक से फिल्म क्षेत्र में सक्रीय वीरेन्द्र पाल बिंदा अब तक 500 से ज्यादा फिल्मी गीतों, वेब सीरिज व वृत्तचित्रों की पटकथा का लेखन, निर्देशन, अभिनय और संपादन कर चुके हैं। 
सामाजिक सरोकार पर फोकस 
हरियाणा के फिल्म निर्देशक एवं अभिनेता वीरेन्द्र पाल का कहना है कि उनकी हिंदी व हरियाणवी फिल्मों की पटकथा में समाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे रहे। इसकी पृष्ठभूमि में उनका मकसद समाज को अपनी संस्कृति, सभ्यता, रीति रिवाज, वेशभूषा के प्रति सजग करना और खासतौर से भ्रूण हत्या, लिंग अनुपात, ऑनर किलिंग, महिलाओं के प्रति अपराधों, नशाखोरी जैसी सामाजिक कुरीतियों को उजागर करना रहा है। उनका कहना है कि सामाज को सकारात्मक विचारधारा के प्रति जागरुक करने का सिनेमा से बेहतर कोई माध्यम नहीं हो सकता, क्योंकि उनकी फिल्मों की कहानियों का अंतिम दृश्य, समाज को सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अपनी संस्कृति से जुड़े संदेश देते हुए एक सबक देता नजर आता है। 
हरियाणा से बॉलीवुड तक पहचान 
सिनेमा हिंदी फिचर फिल्म ‘एनसीआर’ फिचर हिंदी व हरियाणवी में वेबसीरिज अन्यायी, हरियाणवी फिल्म तड़प के अलावा हरियाणवी कॉमेडी फिल्मों रांड्या का कुनबा, ब्याह का रौला, चाय पै लड़ाई, गजबण कुत्ते नै खा ली, उल्हाणा औट लिया, कह दे ना मानू, गजबण फसगी रांड्यां कै, एंडी मर्द, रांड्यां की बहु, बहू साझे की, खींच दे मीटर नै, पोल पाटगी रांड्यां की, एंडी खानदानी, रांड्यां की होली, सिर में भड़क, चरचरी भाभी, कूण में लावैगी, शनिचर चढ़ग्या, सुथरी बहू, दो लूटेरे, बावला पाना, कब्बड़ी, चक्कर चौधर का, मैं लडूंगी और वारिश कौन जैसी फिल्मों में अभिनेता, निर्देशक और लेखक की भूमिका निभाई। सीडी फिल्मों पंचायती फैसला, मेरा इंतजार करना, तड़पन और बनिया बना खलनायक में निभाई गई उनकी भूमिका भी चर्चाओं में रही। हास्य वेबसीरिज के जरिए भी उन्होंने समाज को सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया है। 
सम्मान व पुरस्कार 
हरियाणवी संस्कृति के संवर्धन को लेकर समाज को नई दिशा देने के लिए सामाजिक सरोकार पर आधारित फिल्मों, वेबसीरिज, धारावाहिक के क्षेत्र में समाज में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए वीरेन्द्र पाल बिंदा को देश के विभिन्न राज्यों में कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। इनमें प्रमुख रुप से नॉर्दन फिल्कार एसोसिएशन से फिल्म निर्देशक व निर्माता पुरस्कार के अलावा फाइन डिजिटल पुरस्कार जैसे अनेक सम्मान शामिल हैं। 
20Nov-2023

शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

साक्षात्कार: हिंदी साहित्य को नया आयाम देते साहित्यकार यशपाल

राष्ट्र, सामाजिक, विज्ञान व अध्यात्म पर काव्य लेखन ने दी पहचान 
                       व्यक्तिगत परिचय 
नाम: यशपाल सिंह ‘यश’ 
जन्मतिथि: 01 अप्रैल 1956 
जन्म स्थान: गांव भंगेला, जिला मुजफ्फरनगर(यूपी)
शिक्षा: बीएससी, एमए(अंग्रेजी साहित्य), सीएआईआईबी, आहार विज्ञान और पोषण में स्नातकोत्तर डिप्लोमा। संप्रत्ति: सेवानिवृत्त (उप महाप्रबंधक, आईडीबीआई बैंक) 
संपर्क:गुड़गांव(हरियाणा), ईमेल : yeshpalsinghyash@gmail.com, 
फोन : 8920190892, 0124-4018533
 -- BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा के लेखक एवं साहित्यकार साहित्य, संस्कृति एवं सभ्यता को जीवंत रखने के लिए समाज को नई दिशा देने के लिए साहित्य साधना से अहम योगदान दे रहे हैं। ऐसे ही लेखकों में यशपाल सिंह ‘यश’ उन साहित्यकारों में शुमार है, जिन्होंने अपनी कविताओं और गजलों के लेखन व काव्य पाठ से सामाजिक सरोकार के मुद्दों से पाठकों व श्रोताओं को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहने का संदेश देने का प्रयास किया है। वहीं उन्होंने विज्ञान और अध्यात्म को गद्य और काव्य विधा के माध्यम से साहित्य को को भी नया आयाम दिया। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान साहित्यकार एवं कवि यश्यापाल सिंह ‘यश’ ने अपने साहित्यिक सफर में के दौरान उस अप्रत्याशित लेखन का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने श्रीमद् भागवत गीता का दोहों में रुपांतरित ग्रंथ लिखकर समाज को बेहतर इंसान के साथ भारतीय संस्कृति, परंपरा और अखंड राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव दिया है। 
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विता एव गजल विधा के साहित्यकार यशपाल सिंह ‘यश’ का जन्म 01 अप्रैल 1956 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में खतौली तहसील के गांव भंगेला में एक किसान परिवार में हुआ। पिता किसान होते हुए भी अच्छे पढ़े लिखे ग्रेजुएट थे और माता कभी स्कूल नहीं गई, लेकिन एक गृहणी के रुप में बच्चों को संस्कारित करने में पीछे नहीं रही। परिवार में किसी भी तरह का कोई साहित्यिक माहौल नहीं रहा और न ही कोई लेना देना था, लेकिन माता पिता ने उन्हें हमेशा पढ़ाने पर ध्यान दिया और उन्होंने विज्ञान में स्नातक करने के बाद अंग्रेजी साहित्य में एमए किया। जबकि दिल्ली में सीएआईआईबी, आहार विज्ञान और पोषण में स्नातकोत्तर डिप्लोमा तथा खाद्य और पोषण में प्रमाणपत्र कोर्स किया और परिवार के साथ गुरुग्राम में रहने लगे। चूंकि उन्हें पढ़ने लिखने का शौंक बचपन से ही था। इसलिए साहित्य के प्रति एक लगाव होने की वजह से कभी-कभी कुछ अंग्रेजी कविताएं लिखने लगे। बैंक की सेवा में आने के उपरांत बैंक की पत्रिका के लिए हिंदी में कुछ लेख, कविताएं इत्यादि लिखना शुरु हुआ तो बैंक के हिंदी विभाग द्वारा प्रोत्साहन के कारण और बैंक के अन्य सहकर्मियों द्वारा सराहना मिलने लगी। इससे बढे आत्मवविश्वास ने उनके कविता लेखन को विस्तार दिया। बैंक में नौकरी करते हुए वे दिल्ली के अलावा चंडीगढ़ आदि कई शहरों में रहे। बकौल यशपाल उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि वे एक साहित्यकार बनेंगे, लेकिन कविताएं लिखने और सुनाने पर एक बार उनके घनिष्ठ मित्र देवेन्द्र भाटिया ने उन्हें लेखन के प्रति गंभीर और संवेदनशील होने की सलाह दी, जिसके बाद उनके एक अन्य मित्र और राजभाषा अधिकारी प्रदीप अग्रवाल ने उन्हें जो परामर्श सहयोग दिया, तो उनका पहला काव्य संग्रह ‘मंजर गवाह हैं’ के रूप में प्रकाशित हुआ, जिसका लोकार्पण उनकी उप महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त के दिन यानी 31 मार्च 2016 को बैंक के दिल्ली कार्यालय में ही हुआ। सेवानिवृत्ति के बाद वह कविताएं लिखने में जुट गये और यदा-कदा जब भी मौका मिला तो सार्वजनिक मंच से कविता पाठ भी किया। उनके सामने एक और रोचक मोड़ तब आया, जब एक यात्रा के दौरान डॉ. राधाकृष्णन द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता गीता पर लिखी हुई पुस्तक को पढ़ते-पढ़ते उनके मन में विचार आया कि क्यों न भगवद्गीता गीता को दोहों में रूपांतरित किया जाए। जबकि उस समय तक उन्हें दोहे का शिल्प भी पूरी तरह ज्ञात नहीं था। फिर भी वह यात्रा शुरू की और इसकी परिणीति ‘संपूर्ण भगवद्गीता दोहों में’ एक पुस्तक लिखी, जिसने उन्हें बड़ी पहचान दी। यशपाल सिंह यश ने बताया कि शुरुआत में सामाजिक मुद्दों पर ही इस लिए ज्यादा लिखते थे, लेकिन बाद में विज्ञान और अध्यात्म के लेखन ने भी उन्हें ऐसी पहचान दी कि चंद्रयान-2 पर लिखी गई उनकी कविता ‘प्यारे विक्रम’ का प्रसारण तो दूरदर्शन से भी हुआ। यही नहीं उनकी विज्ञान, अध्यात्म और सामाजिक सरोकार पर लिखी गई कविताओं का दूरदर्शन तथा आकाशवाणी से प्रसारण हुआ है। वहीं उनके लेखों और कविताओं का विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन भी होता आ रहा है। साइंस एंड पोएटरी यूट्यूब चैनल से भोजन, स्वास्थ्य और विज्ञान संबंधित चर्चाएं का प्रसारण भी उनकी उपलब्धियों में शामिल हैं। 
यहां से मिली बड़ी पहचान
भारत सरकार के विज्ञान प्रसार विभाग एक फोन ने उनके लेखन को ऐसा नया आयाम दिया कि उन्होंने विज्ञान कविताएं भी लिखना शुरु किया और ‘अंतररष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव’ में विज्ञान पर लिखी कविताएं पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यहां से उन्हें कविता लिखने और सुनाने के लिए बड़ी पहचान मिली। इसी विज्ञान कवि सम्मेलन में वे प्रख्यात साहित्यकार पंडित सुरेश नीरव के संपर्क में आए, जिन्होंने प्रोत्साहन देते हुए उनका आत्मविश्वास बढ़ाया और उनकी साहित्यिक संस्था अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के तत्वावधान में कई ऑनलाइन तथा ऑनलाइन काव्य गोष्ठियों में सम्मिलित हुआ, जहां बहुत से साहित्यकारों से परिचय हुआ। उनके साहित्यिक सफर में एक और ऐसा रोचक मोड़ तब आया, कि डॉ. राधाकृष्णन द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता गीता पर लिखी हुई पुस्तक को पढ़ते-पढ़ते उनके मन में विचार आया कि क्यों न भगवद्गीता गीता को दोहों में रूपांतरित किया जाए। जबकि उस समय तक उन्हें दोहे का शिल्प भी पूरी तरह ज्ञात नहीं था। फिर भी वह यात्रा शुरू की और इसकी परिणीति ‘संपूर्ण भगवद्गीता दोहों में’ एक पुस्तक लिखी, जिसने उन्हें बड़ी पहचान दी। उनकी कविताओं की विभिन्न विधाओं के लेखन एवं काव्य पाठ से उन्हें देश-विदेश में श्रोताओं ने सराहना मिली। 
हिंदी साहित्य पर आधुनिकता की छाया 
इस आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को लेकर यशपाल सिंह यश का कहना है कि साहित्य अच्छी है, लेकिन जहां तक हिंदी साहित्य की बात है, उन्हें लगता है कि वह पिछड़ता जा रहा है। साहित्य लिखा जा रहा है, बहुत अच्छा भी लिखा जा रहा है लेकिन हिंदी साहित्य में रुचि बहुत कम रह गई है। हिंदी साहित्य के पाठक कम इसलिए हो रहे हैं कि सारी हिंदी की पत्रिकाएं बंद हो रही हैं। उनका मानना है कि किसी भी समाज का मध्यम वर्ग उसके चिंतन और संस्कृति की दिशा तय करता है। आज भारत में मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ रहे हैं और हिंदी पढ़ना, सीखना अब उनकी प्राथमिकता में नहीं है। अगर समाज का यह वर्ग हिंदी से दूर हो जाएगा तो निश्चित रूप से ही हिंदी साहित्य को पाठकों की कमी रहेगी। जहां तक युवा पीढ़ी में साहित्य की रुचि कम होना है, उसके लिए उन्हें गंभीर साहित्य को पढ़ने के लिए विशेष प्रेरणा और प्रोत्साहन देने की जरुरत है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
हरियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार ने अभी तक कविता संग्रह 'मंजर गवाह हैं', 'आँखिन देखी' तथा 'जीवन गरम चाय की प्याली' प्रकाशित हुआ है। सबसे बड़ी उपलब्धियों में श्रीमद भगवद्गीता का दोहों में रुपांतरण के रुप में उनका ‘संपूर्ण भगवद्गीता दोहों में’ नामक ग्रंथ इसी साल प्रकाशित हुआ है। इसके अलावा उनका विज्ञान कविताओं का एक संग्रह के प्रकाशन के लिए भारत सरकार के विज्ञान प्रसार विभाग द्वारा स्वीकृति प्रदान की है, जो जल्द ही पाठकों के सामने होगा। इसके अलावा सामाजिक सरोकार, स्वस्थ्य, भोजन, विज्ञान संबन्धित आलेख व कविताएं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
साहित्य को विज्ञान और अध्यात्म से जोड़कर नया आयाम देने वाले लेखक एवं कवि यशपाल सिंह यश को भारत सरकार के विज्ञान प्रसार ने सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट देकर सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें साहित्य भूषण सम्मान, ‘समझ’ साहित्यिक संस्था नागदा, साहित्य विभूति सम्मान तथा अखिल भारतीय सर्व भाषा संस्कृति समन्वय समिति के संस्कृति समन्वय सम्मान जैसे अनेक पुरस्कारों से विभिन्न साहित्यिक और सामाजिक मंचों से सम्मान मिल चुका है।
06Nov-2023

सोमवार, 30 अक्तूबर 2023

चौपाल: संस्कृति के संवर्धन में जुटी लोक गायिका ईशा पांचाल

 ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’जैसे भजन से छोटी उम्र में ही संगीत में मिली बड़ी पहचान
                  व्यक्तिगत परिचय 
नाम: ईशा पांचाल 
जन्मतिथि: 20 जून 2003 
जन्म स्थान: गांव रुखी, जिला सोनीपत(हरियाणा)
शिक्षा: स्नातक, संगीत गायन में मास्टर डिग्री           (अध्ययनरत) 
संप्रत्ति: लोक संस्कृति गायक कलाकार, छात्रा 
संपर्क: गांव रुखी, सोनीपत(हरियाणा), मोबा. 7082575925 
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BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा के लोक कलाकार अपनी विभिन्न विधाओं से हरियाणवी लोक संस्कृति का संवर्धन एवं संरक्षण करने में जुटे हैं। ऐसे ही नवोदित लोक कलाकारों में लोक गायिका ईशा पांचाल ने छोटी सी उम्र में आध्यात्मिक गीत लेखन और गायन में जो लोकप्रियता हासिल की है, उसकी गूंज देश-विदेश में भी सुनाई देती है। लोक संगीत के क्षेत्र में भजन गायकी के साथ ही उसने देशभक्ति, सामाजिक, तीज त्यौहार और सरकारी योजनाओं के अभियानों में भी अपनी गायन शैली की ऐसी छाप छोड़ी है कि यूथ ट्यूब चैनलों पर उसके भजन गीतों को सुनकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहते हुए वह अपनी कला से समाज को अपनी संस्कृति से जोड़ने में जुटी हुई है। भारत गौरव अवार्ड से सम्मानित ईशा पांचाल ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपनी लोक गायन शैली को लेकर कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिससे यह साबित होता है कि लोक कला संगीत एवं संस्कृति के बिना समाजिक तानाबाना अधूरा है। 
रियाणा की युवा गीतकार ईशा पांचाल का जन्म 20 जून 2003 को सोनीपत जिले के गांव रुखी में एक साधारण किसान चांद सिंह व लक्ष्मी देवी के घर में हुआ। इनका परिवार आध्यात्मिक है, लेकिन संगीत या किसी कला से कोई ताल्लुक नहीं रखता। परिवार में आध्यात्मिक माहौल के बीच ही उनकी माता भजन आदि गुनगुनाती रहती हैं तो उसका प्रभाव ईशा पर भी पड़ता नजर आया। इसी कारण आज अध्यात्मिक, सामाजिक व देशभक्ति गायन में ईशा जिस प्रकार आगे बढ़ रही है उसके पीछे उनकी माता व बहन अन्नू के प्रोत्साहन की अहम भूमिका हैं, जो कुछ भजन या गीत लिखती है, उन्हें संगीत देने का काम ईशा करती आ रही है। वह संगीत को सुर ताल देने के लिए हारमोनियम जैसे वाद्य यंत्र में भी निपुण है। बकौल ईशा जब वह छह साल की थी तो तब उसने गुरुकुल में भी गायन सीखा, लेकिन कक्षा नौ में वह डॉ. स्वरूप सिंह गवर्नमेंट मॉडल संस्कृति स्कूल सांघी में पढ़ने चली गई, जहां उनके संगीत गुरु सोमेश जांगड़ा ने एक भजन ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’ सिखाया, जिसे संगीत देकर उसने गाना शुरु किया, तो यह भजन इतना लोकप्रिय हुआ कि उससे बेहद प्रसिद्धि मिली। जब वह दसवीं कक्षा में ही थी कि उनके आध्यात्मिक गायन पहला भजन ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’ देश के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भी बेहद पसंद आया। इसके अलावा उनके अन्य भजन व गीत ऐसे हैं, जिन्होंने उसे देश ही नहीं विदेशों में भी लोक गीतकार के रुप में पहचान दी है। हरियाणा के अलावा देश के उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, मुंबई, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में धार्मिक आयोजन में उसके मंगल गीत सुनने की हमेश श्रोताओं से मांग आती रहती हैं। इसी कारण बढ़ते आत्मविश्वास और हौंसलों ने उसे आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा मिल रही है। यही कारण है कि कला संस्कृति के क्षेत्र में गीतकार के रुप में अपने भजन गायकी के सफर को सुहाना बनाने के मकसद से वह स्नातक करने के बाद फिलहाल वह एमडीयू यूनिवर्सिटी रोहतक से संगीत गायन में ही एमडीयू यूनिवर्सिटी रोहतक में मास्टर डिग्री(एमए) कर रही हैं। जहां तक संगीत गायन के क्षेत्र में परेशानियों को लेकर ईशा का मानना है कि जब कोई भी व्यक्ति नया सीखने और करने की राह पर चलता है, तो अड़चने या उतार चढ़ाव हर किसी के सामने आना स्वाभाविक है, लेकिन उसने पीछे मुड़ने के बजाए ‘सूर्य की तरह चमकना है तो सूर्य की तरह जलना पड़ेगा, मुश्किल तो हर राह होती हैं मेरे दोस्त, गर मंजिल पानी हैं तो तुझे बिना रुके चलना पड़ेगा..जैसी पक्तियों को चरितार्थ करने का ही प्रयास किया। उनके भजन संगीत का मुख्य फोकस आध्यात्म के जरिए समाज को अपनी संस्कृति से जोड़ने पर रहा है, लेकिन उनका देशभक्ति, सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर भी गीत लेखन और गायन के जरिए समाज और लोगों को कला संस्कृति को विकसित करने के लिए आगे रहने का संदेश देना प्रमुख मकसद है। हालांकि आज की कला संस्कृति पहले से कहीं ज्यादा विकसित हैं और हर बच्चा, बूढ़ा, जवान अपनी कला को लोगो तक पहुंचाने में सक्षम हैं। ईशा की दृष्टि में आज का युग बेहद खूबसूरत और कलात्मक भी है। 
लोकप्रिय भजन व गीत 
लोक गीतकार ईशा पांचाल के प्रसिद्ध भजनों में ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’ के अलावा उड़जा उड़जा काले काम, सुबह सवेरे लेकर तेरा नाम प्रभु, काला काकाल कहवै गुजरी और सुदामा कैसे आये आदि हैं। इसके अलावा वह देशभक्ति के गीत भी लिखकर जारी कर चुकी हैं, तो वह समाजिक जागरुकता के लिए भी भजन व गीतों को लांच करके खूब सुर्खियां बटोर रही है। ईशा के हरियाणवी संस्कृति पर आधारित अब तक 200-250 भजन अलग अलग कंपनियों के माध्यम से आ चुके हैं इन सभी भजनों में हरियाणा की संस्कृति, समाज में फैली कुरीतियों एवं देश की समस्याओं के अलावा देश भक्ति पर आधारित गीतों से यही प्रयास किया गया है कि अपनी संस्कृति को विकसित करने के लिए समाज सजग रहे। फिलहाल हरियाणवी संस्कृति पर संस्कार टीवी पर भी काम चल रहा है। साल 2020 में मुंबई में भजनों का एक प्रोजेक्ट भी किया गया है। 
धार्मिक कार्यो का हुआ विस्तार 
हरियाणा की प्रसिद्ध भजन गायक ईशा पांचाल का कहना है कि इस इस आधुनिक युग में भी लोक कला संस्कृति के क्षेत्र में अध्यात्मिक संगीत या धार्मिक कार्यों का प्रचलन का बेहद विस्तारित हो रहा है। इसमें आज की युवा पीढ़ी भी कहीं ज्यादा रुचि लेकर अध्यात्मिक गतिविधियों से जुड़ रही है। मगर एक बहुत गंभीर समस्या यह देखने में आ रही हैं, कि युवा वर्ग को सही दिशा निर्देश नहीं मिल रहा है। मसलन बच्चो को माता पिता का सानिध्य मिलना और अपने बच्चों को छूट देना अच्छी बात हैं, लेकिन अभिभावकों को यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि उनका बच्चा की किस माहौल में रह रहा है और उनका संग कैसे बच्चों से है। इसलिए माता पिता को बच्चों की रुचि के अनुसार सकारात्मक रुचि दिखानी चाहिए। 
पुरस्कार व सम्मान 
लोक संगीतकार सुश्री ईशा पांचाल को भारत गौरव अवॉर्ड के अलावा बेस्ट सिंगर अवॉर्ड, महिला सशक्तिकरण अवॉर्ड जैसे अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। एक बार राष्ट्रीय स्तर और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत दो बार राज्य स्तर पर हरियाणा लोक गीत में प्रथम स्थान मिल चुका है। यूथ रेडक्रास कैंपों में सोलो संगीत में अव्वल स्थान पाने वाली ईशा और उसकी टीम की भजन गायन शैली इतनी प्रभावशाली है कि साल 2017 में एमडीयू रोहतक में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी ईशा व उसकी टीम को सम्मानित कर चुके हैं। इसके अलावा इस लोक गायिका को मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के हाथो भी सम्मानित होने का सौभाग्य मिला है। 
30Oct-2023

बुधवार, 25 अक्तूबर 2023

साक्षात्कार: कालजयी कृतियों के रचनाकार हास्य कवि डा. तेजिन्द्र

साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सामाजिक कार्यो में निरंतर सक्रिय 
                      व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. तेजिंद्र (तेजिंद्र पाल सिंह) 
जन्मतिथि: 01 मई 1963 
जन्म स्थान: कैथल (हरियाणा)। 
शिक्षा: एमए( हिंदी, अंग्रेज़ी, इतिहास), बीएड.एमफ़िल (हिंदी), पीएचडी(हिंदी)। 
संप्रत्ति: स्वतंत्र लेखन, सेवानिवृत्त प्राध्यापक (इतिहास)। 
 संपर्क: म.न. 859, सेक्टर-19 भाग-2 हुडा, कैथल (हरियाणा)। मोबा. 94166 58454 
BY--ओ.पी. पाल 
रियाणा की संस्कृति, सभ्यता,सामाजिक रीति रिवाज तथा परंपराओं के संरक्षण देने वाले लेखकों में कवि डा. तेजिन्द्र ऐसे साहित्यकार है, जिन्होंने भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों कालों की महत्वपूर्ण अनुभूतियों से प्रेरित होकर अपनी कालजयी कृतियों का रचना संसार रचा है। उन्होंने एक हास्य-व्यंग्य कवि के रुप में लोकप्रियता हासिल की, लेकिन साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सामाजिक कार्यो में सक्रियता भी उनकी एक संवेदनशील व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी के रुप को प्रकट करती है। कवि कर्म और काव्य में सामाजिक चेतना की दिशा में उनकी हंसिकाओं की ऐसी बानगी रही, कि उन्होंने राजनीति, समाज को अपनी रचित हास्य व्यंग्य कविताओं से बेबाक कटाक्ष करने में कभी संकोच नहीं किया। वहीं बाल मनोहार के लिए बाल कविता संग्रह में उनकी काव्य रचनाओं में ऐसी सलरता, सहजता, बोगम्यता एव ध्वन्यात्मकता जैसे विशेष गुण विद्यमान हैं, जिन्हें बच्चे सरलता से कंठस्थ कर सकते हैं। इतिहास के प्राध्यापक पद से सेवानिवृत्त साहित्यकार, कवि एवं लेखक डा. तेजिन्द्र ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे अनुछुए पहलुओं को भी उजागर किया है, जिससे में रचना संसार में विचरण करने वाला कोई भी व्यक्ति साहित्यिक साधना कर सकता है। 
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रियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं हास्य कवि डा. तेजिन्द्र का जन्म 01 मई 1963 को कैथल(ननिहाल) में जगदीश राम व मामो देवी के यहां हुआ था, जो हिंदी, अंग्रेजी और इतिहास यानी तीन विषयों में स्नातकोत्तर और बीएड के अलावा हिंदी में पीएचडी की उपाधि हासिल कर चुके हैं। राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय राजौंद, ज़िला कैथल में प्राध्यापक (इतिहास) से 30 अप्रैल 2021 को सेवानिवृत्त डा. तेजिन्द्र मूल रूप से कुरुक्षेत्र जिले के गांव दूधला के रहने वाले हैं। जब उनके दादा रामजीलाल का देहांत हुआ तो उनके पिता के सौतेले मामा बासोराम दादी और पिता, ताऊ व चाचा को लेकर अपने कैथल जिले के गाँव क्योड़क आ गये। फिर मामा के देहांत के बाद दादी ने सिलाई का काम करके पिता समेत अपने तीनों पुत्रों का पालन-पोषण किया। सख्त स्वभाव की दादी सनातन धर्म में विश्वास रखने के साथ्ज्ञ अनुशासन प्रिय थीं। बकौल तेजिन्द्र दादी निर्मला बचपन में उन्हें कहानियां सुनाती थी, वहीं घर में अखबार और पत्रिकायें भी आतीं थीं, तो उनमें प्रकाशित कवितायें और कहानियाँ पढ़ने में उनकी रुचि रही और घर में ट्रांजिस्टर पर प्रसारित होने वाले भजन, धार्मिक गीत और रामायण की चौपाइयाँ भी दादी उन्हें सुनतीं थीं। हर रविवार को रेडियो पर बच्चों के कार्यक्रम में कविता, गीत और कहानी भी सुनने को मिलती रही। इससे उन्हें बचपन में ही घर के भीतर आध्यात्मिक और साहित्यिक माहौल मिला। यही कारण था कि स्कूली शिक्षा के दौरान ही उनकी साहित्य के प्रति अभिरुचि हो गई थी। वे पाठ्यक्रम में साहित्यिक सामग्री पढ़ते थे। कालेज में पुस्तकालय में अख़बार और पत्रिकायें पढ़ता रहता था। हरियाणा के प्रसिद्ध कवि ओम प्रकाश आदित्य की कवितायें मुझे अच्छी लगतीं थीं और उनकी कवितायें पढ़ते-पढ़ते मन में आया कि वह भी कुछ लिख सकते हैं। तेजिन्द्र के पिता स्वयं उर्दू शायरी के शौकीन थे। जब वह कैथल जिले के राजकीय उच्च विद्यालय क्योड़क, ज़िला कैथल में पढ़ते थे, जहां उनके पिता क्लर्क थे। डा. तेजिन्द्र ने बताया कि स्कूल में होने वाली बाल सभाओं में भी वे कवितायें सुनाते थे और कॉलेज में शिक्षा ग्रहण करते हुए उन्होंने लेखन कार्य भी शुरू कर दिया। वह प्रतिदिन गाँव क्योड़क से कैथल के आरकेएसडी कालेज में पढ़ने के लिये आते थे और उस समय बसों के आवागमन में बड़ी परेशानी होने लगी तो इन्हीं परिस्थितियों पर उन्होंने कुछ पंक्तियां लिखकर महससू किया कि उनकी कविता तैयार हो गई। वे पंक्तियाँ अपनी बड़ी बहन को दिखाईं, तो वह आश्चर्यचकित लहजे में बोली ये कविता आपने लिखी? कालेज के मित्रों ने भी उनकी कविता देखकर खुश हुए। इसके बाद उन्होंने अपनी लेखन यात्रा आरम्भ कर दी और यहीं से उनकी कविताओं का जन्म हुआ और उनकी पहली रचना सार्वजनिक हुई। उनके द्वारा कविताएं लिखने का धीरे-धीरे कालेज में उनके प्राध्यापकों डा. भगवान दास निर्मोही, डा. राणा प्रताप गन्नौरी, प्रोफ़ेसर अमृत लाल मदान, प्रो विजय दत्त शर्मा, प्रो. जेसी शर्मा, डा. एस.डी. मिश्रा आदि को भी पता चला। सभी ने उन्हें निरंतर लेखन करने के लिए प्रेरित किया। प्रो. अमृत लाल मदान तो आज भी उनके मार्गदर्शक हैं। 
सामयिक घटनाओं पर फोकस 
डा. तेजिन्द्र की रचनाओं का फोकस किसी विशेष मुद्दे पर नहीं, बल्कि घटनाओं को देखकर उनकी कलम चलती आ रही है। हालाकि वे समाज और देश में हर किसी को प्रभावित करने वाली घटनाओं पर भी उनकी कलम चली है और उन्होंने आतंकवाद के दौर में पंजाब के आतंकवाद पर कवितायें लिखीं। बच्चों के लिए बाल कविताओं के फोकस और हास्य और व्यंग्य में क्षणिकाओं के लेखन ने उन्हें हास्य कवि के रुप में एक विशेष पहचान दी है। डा. तेजिन्द्र साहित्य सभा कैथल में वर्ष 1987 से सदस्य और वर्ष 2002 से प्रेस सचिव पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। जबकि 2017 से अखिल भारतीय साहित्य परिषद् हरियाणा की कैथल ईकाई के ज़िला संयोजक एवं जिलाध्यक्ष का पदभार भी संभाल रहे हैं। वे अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति हरियाणा के जिला कैथल के सदस्य भी हैं। 
हाशिए पर जा रहा है साहित्य 
आधुनिक युग में प्रचुर मात्रा में साहित्य लिखा जा रहा है और प्रकाशित भी हो रहा है। कविता, कहानी और उपन्यास विधा के साहित्य का प्रकाशन अधिक मात्रा में हो रहा है। आज जिस तेजी से पुस्तकें लिखी और प्रकाशित हो रहीं हैं, उतना पढ़ा नहीं जा रहा है। इसी प्रकार काव्य-गोष्ठियों में भी प्राय: वे लोग अधिक होते हैं जो खुद कवि और श्रोता की भूमिका में होते हैं। इसका कारण यही है कि आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया की चकाचौंध में साहित्य हाशिये पर आ गया है और सोशल मीडिया ने तो कवियों की बाढ़ ला दी है। इसलिए साहित्य में मात्रात्मक वृद्धि तो हुई है, लेकिन गुणात्मक विस्तार देखने को नहीं मिलता। साहित्य के पाठकों की कमी होने का भी प्रमुख कारण टेलिविज़न और सोशल मीडिया का अधिक प्रसार होना है। वहीं छात्र भी पुस्तकालयों में जाकर अपनी प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं की तैयारी में जुटे रहते हैं और साहित्य पढ़ने का उन्हें समय तक नहीं है। आज के युवाओं को साहित्य के प्रति प्रेरित करने के लिए साहित्यकारों को उनकी रुचि के साहित्य का सृजन करने की जरुरत है। युवाओं को साहित्य से जोड़ने से ही सामाजिक विचारधारा को भी सकारात्मक ऊर्जा दी जा सकेगी। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार डा. तेजिन्द्र पाल सिंह की अब तक प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख रुप से काव्य संग्रह तिनका-तिनका, आतंक के दायरे में, भावना, बाल कविता संग्रह, मोबाइल बाँग लगाता है, लघु शोध प्रबंध ग़ज़ल के आईने में:गुलशन मदान, शोध-प्रबंध हिंदी ग़ज़ल एवं अन्य काव्य-विधायें, एकल नाटक अमर शहीद सरदार भगत सिंह शामिल हैं। कविता के अलावा वे लघुकथा आलेख, भूमिका, समीक्षा, शोध-आलेख भी लिखते आ रहे हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
साहित्य सेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए डा. तेजिन्द्र को हरियाणा के अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, दिल्ली व कर्नाटक आदि राज्यो की विभिन्न सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं से दो दर्जन से भी ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इन पुरस्करों में प्रमुख रुप से साहित्य गौरव सम्मान, बीसवीं शताब्दी रत्न सम्मान, वरिष्ठ प्रतिभा सम्मान, शांतिदेवी स्मृति साहित्य-रत्न सम्मान, ज्ञानोदय साहित्य सेवा सम्मान, शब्द सेतु नवल सम्मान, अभ्युदय श्री सम्मान, एक्सीलेंस अवार्ड शामिल हैं। इसके अलावा उन्हें हरियाणा प्रदूषण बोर्ड की सलोगन प्रतियोगिता में भी सम्मान मिला है। 
  23Oct-2023

सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

चौपाल: कला और सांस्कृतिक संवर्धन का पर्याय है फल्गु उत्सव

पुरखों के पिंडदान करने की परंपरा का केंद्र बना है फल्गु तीर्थ 
By-ओ.पी. पाल 
रियाणा में कुरुक्षेत्र के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शुमार फल्गु तीर्थ का फल्गु उत्सव आज हरियाणवी लोक कला एवं संस्कृति के संवर्धन के केंद्र के रुप में पहचाना जाने लगा है। मसलन कैथल जिले के गांव फरल स्थित फल्गु तीर्थ की महत्ता इतनी बढ़ गई है कि वार्षिक फल्गु उत्सव से हरियाणा कला परिषद् के माध्यम से सीधे हरियाणा सरकार भी जुड़ गई और इस वर्ष के उत्सव में हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने भागीदारी की है। फल्गु तीर्थ स्थल पर वर्ष 2011 में शुरु हुए फल्गु उत्सव में एक दशक से ज्यादा समय लगातार हरियाणा एवं आसपास के राज्यों के साहित्यकार एवं लोक कलाकार सामाजिक सरोकार से जुड़े संदेशों के साथ अपनी प्रस्तुतियां देकर परंपरागत कलाओं और संस्कृति के प्रति समाज को दिशा देने का प्रयास करते आ रहे हैं। हरिभूमि संवाददाता ने फल्गु उत्सव में प्रस्तुति देने आए लोक कलाकारों, साहित्यकारों एवं कवियों ने बताया कि आज फल्गु उत्सव परंपरा कला और संस्कृति को जीवंत रखने की दिशा में एक बड़ा प्रयास साबित हुई। 
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रियाणा के कुरुक्षेत्र का नाम दुनियाभर में उन स्थानों में अग्रगण्य है, जहां सबसे पहले मानव सभ्यता का विकास होना माना गया है। कुरुक्षेत्र यानी कुरुओ का क्षेत्र। कुरूक्षेत्र की 48 कोस पवित्र भूमि हरियाणा के कुरूक्षेत्र, कैथल, करनाल, जीन्द एवं पानीपत जिलों में फैली हुई है। वामन पुराण के अनुसार घने वनों से आच्छादित कुरूक्षेत्र भूमि में काम्यक वन, अदिति वन, व्यास वन, फल्कीवन, सूर्यवन वन, मधुवन तथा शीतवन यानी सात वन थे। पावन नदियों सरस्वती और दृषद्वती के जल से पोषित फल्कीवन, जो महर्षि श्री फल्क की तपोभूमि होने के कारण वन प्रदेश फल्कीवन कहलाया। कालांतर में फल्कीवन से फल्गु तीर्थ के कारण ही फल्कीवन का नाम फरल गांव पड़ा, जो वर्तमान में गाँव फरल जिला कैथल में स्थित है। कुरुक्षेत्र के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक फल्गु तीर्थ का यह तीर्थ स्थान पितृकर्म के लिए विश्वभर में विख्यात है। जिसका वर्णन महाभारत, वामन पुराण मत्स्य पुराण तथा नारद पुराण में उपलब्ध होता है। फल्गु उत्सव के संयोजक के रुप में साहित्यकार और संस्कृति साधक दिनेश शर्मा ने बताया कि इस तीर्थ स्थल पर फल्गु मंदिर सुधार समिति द्वारा परिकल्पित 'फल्गु उत्सव' का उद्देश्य इस उत्सव को वार्षिक फल्गु मेले का स्थान देना है, जिससे कला और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के साथ फल्गु तीर्थ को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकेगा। हरियाणा सरकार के प्रबंधन में फल्कीवन अर्थात फल्गु तीर्थ पर पितृपक्ष में सोमवती अमावस्या पर विशाल मेले का आयोजन होता आ रहा है, जहां अपने पूर्वजों के निमित पिंड दान करने के लिए देश–विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। लेकिन विड़ंबना यह है कि राज्य सरकार सोमवती अमावस्या पर मेले को अभी तक साल 1991 से 2018 तक सात मेले ही आयोजित कर पाई है और अगला मेला साल 2028 में प्रस्तावित है। सनातन परंपराओं के जानकारों के अनुसार मेलों के बीच आने वाला वर्षो का अंतर भावी पीढ़ी तक संस्कार और संस्कृति के पूर्ण प्रेषण में बाधक है। इस मेले के लंबे अंतराल के मद्देनजर पिछले करीब छह दशक से प्राचीन श्री फल्क ऋषि मंदिर की देखरेख करते आ रहे मंदिर के उपासक जयगोपाल शर्मा और उनके परिवार के मार्गदर्शन में फल्गु मंदिर सुधार समिति के माध्यम से वर्ष 2011 से हर वर्ष पितृपक्ष में फल्गु उत्सव आयोजित करता आ रहा है। इसमें समाजसेवी सुभाष गर्ग, दिल्ली के समाजसेवी विजय सिंगला, कुरूक्षेत्र के समाजसेवी जयभगवान सिंगला, उत्सव प्रबंधक मुकेश शर्मा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग कर रहे हैं। इस उत्सव संयोजन समिति सचिव दिनेश शर्मा का कहना है कि कला और संस्कृति संवर्धन के इस प्रयास की सार्थकता और प्रामाणिकता यही है कि हरियाणा में विभिन्न सरकारी नौकरियों के लिए ली जाने वाली परीक्षाओं में भी ‘फल्गु उत्सव कब और कहाँ आयोजित होता है? जैसे सवाल पूछे जाते हैं। 
लोक कला और संस्कृति का संगम 
फल्गु मंदिर सुधार समिति द्वारा हर साल निरंतर आयोजित किये जाए रहे फल्गु उत्सव में अलग अलग विधाओं की कलाओं से जुड़े साहित्यकर्मी और लोक कलाकार हरियाणवी रागनी, लोकनृत्य, लोककला, सांग, भजन, कवि सम्मेलन, नाटक, कहानी मंचन जैसी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के जरिए समाज को अपनी परंपराओं और संस्कृति से जुड़े रहने का सकारात्मक संदेश देते आ रहे हैं। इस उत्सव में देश के शिक्षा, कला और संस्कृति जगत की विशिष्ट विभूतियां अतिथि के रूप में उपस्थित रहती हैं। उत्सव में सारा गाँव पारिवारिक आयोजनों की तरह ही भागीदारी करता है। ऐसे कलाकारों में अब तक साहित्य एवं लोक कलाओं से जुड़े सैकड़ो विभूतियां उत्सव में हिस्सा लेकर अपनी कलाओं की छटाएं बिखेरते रहे हैं। हाल में 30 सितंबर से 2 अक्टूबर तक हुए तीन दिवसीय फल्गु उत्सव में लोकगायन संध्या, लोककला संध्या और लोककाव्य संध्या में सुविख्यात कवियों और कलाकारों ने कलाओं और संस्कृतियों के संगम की धाराएं प्रवाहित की। इस दौरान लोककला से जुड़े कलाकारों सांरगी वादक इंदर लांबा, बीन वादक हरपाल नाथ, हरियाणवी रागनी गायको विकास हरियाणवी, सुरेश भाणा, अमित मलिक, अमित बरोदा के अलावा राष्ट्रीय कवियों महेंद्र अजनबी, चरणजीत चरण, विनीत पाण्डेय, कृष्ण गोपाल सोलंकी आदि ने हिस्सेदारी की। 
लोककला व साहित्य की दृष्टि में उत्सव 
फल्गु उत्सव को मार्गदर्शन प्रदान करने वाले महानुभावों का चिंतन भी इस फल्गु तीर्थ को लेकर संदर्भ में महत्वपूर्ण है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ चंद्र त्रिखा के कहते हैं कि एक सांस्कृतिक चेतना का नाम फल्गु उत्सव है, जिससे जुडकर और तीर्थ के दर्शन करना एक सुखद अनुभूति से कम नहीं है। देश में हिन्दी मंच संचालन के शिखर पुरुष जैनेन्द्र सिंह की माने तो फल्गु उत्सव अपनी कला, संस्कृति और परंपराओं को समर्पित एक सकारात्मक सफल प्रयास है, जो समाज के लिए प्रेरणा का कार्य करता है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के संयुक्त सचिव डॉ जी एस चौहान का मानना है कि शिक्षा और सांस्कृतिक चेतना का नाम फल्गु उत्सव है, जो युवाओं को भारतीय परंपराओं, संस्कार तथा संस्कृति के गौरव से परिचित करवाता है। वरिष्ठ नाट्यकर्मी एवं संगीत नाटक अकादमी चंडीगढ़ के अध्यक्ष सुदेश शर्मा का कहना है कि हरियाणा कला परिषद् के उपाध्यक्ष रहते हुए 2016 में इस उत्सव से जुड़ना संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयासों में स्वयं का सार्थक योगदान प्रतीत होता है। उनका सपना है कि ये उत्सव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाए। लोककलाओं से जुड़े कलाकारों इंदर लांबा, हरपाल नाथ, राजकुमार जंगम आदि ने माना कि फल्गु उत्सव लोककलाओं के प्रचार- प्रसार का बेहतरीन कार्य करता है। लुप्त होती लोककलाओं का सरंक्षण करता है और कलाकारों के लिए रोजगार का अवसर पैदा करता है। हरियाणवी रागनी गायकों विकास हरियाणवी, सुरेश भाणा, अमित मलिक, अमित बरोदा के अनुसार यह हरियाणा का श्रेष्ठ और मर्यादित सांस्कृतिक आयोजन है, जो पारिवारिक वातावरण में संस्कृति के प्रसार का सच्चा प्रयत्न है। वहीं राष्ट्रीय कवियों महेंद्र अजनबी, चरणजीत चरण, विनीत पाण्डेय की बात मानें तो ऐसे पावन स्थान पर संस्कृति के साथ हिन्दी के प्रसार के लिए कवि सम्मेलन अपने आप में ही विशेष हो जाता है क्योंकि तीर्थ स्थान स्वयमेव जागृत संस्कृति होते हैं और समाज में संस्कार बनाए रखते हैं। इंद्रप्रस्थ अध्ययन केंद्र दिल्ली के अध्यक्ष विनोद शर्मा विवेक, कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के मानद सचिव उपेन्द्र सिंहल, लंदन में बसे रोहतक निवासी विश्व प्रसिद्ध रेडियो कलाकार रवि शर्मा, राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित अंतरराष्ट्रीय लोक कलाकार तथा हरियाणा कला परिषद् हिसार मण्डल के अतिरिक्त निदेशक महाबीर गुड्डू ने भी ने भी हरियाणा सरकार और समिति को ऐसे अद्भुत के लिए हरियाणा सरकार, हरियाणा कला परिषद् और उत्सव आयोजन समिति को साधुवाद दिया। 
महाभारत में फल्गु तीर्थ का उल्लेख 
इस पावन तीर्थ पर श्री फल्क ऋषि के मन्दिर के साथ-साथ अनेक सुन्दर मन्दिर हैं। यहां सरोवर के घाट के पास अष्टकोण आधार पर निर्मित 17वीं शताब्दी की मुगल शैली में बना शिव मन्दिर है, जो लगभग 30 फुट ऊंचा है। यहां स्थित सरोवर की लम्बाई 800 फुट और चैडाई 300 फुट है। मुगल शैली में एक और शिव मन्दिर है जो लगभग 20 फुट ऊंचा है तथा आकार में वर्गाकार है। वर्ग की एक भुजा 9 फुट 6 इंच है। यहीं एक अन्य मन्दिर जो राधा-कृष्ण का भी है जो नागर शैली में बना हुआ है। जिसका शिखर शंकु आकार का है। इन सभी उपरोक्त वर्णित मन्दिरों में निर्माण के दौरान लाखौरी ईटों से किया गया है एवं परवर्ती काल में इनका जीर्णोद्धार आधुनिक ईटों के द्वारा किया गया है। घाट के पास ही एक अत्यन्त प्राचीन वट वृक्ष है। जिसे लोग श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। इसी क्षेत्र में पणिश्वर तीर्थ स्थित है। जिसका उल्लेख महाभारत के अनुशासन पर्व के दसवें अध्याय में पाणिखात के नाम से प्राप्त होता है। 
16Oct-2023

रविवार, 15 अक्तूबर 2023

पी-20 शिखर सम्मेलन: संसदीय अध्यक्षों ने की वैश्विक मुद्दों पर सार्थक चर्चा

मानव केंद्रित विकास में सामूहिक लक्ष्य हासिल पर प्रतिबद्धता: ओम बिरला 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। भारत की अध्यक्षता में जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद सभी सदस्य देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों ने राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में दो दिन तक चले पी-20 शिखर सम्मेलन में चार सत्रों के दौरान एसडीजी, हरित ऊर्जा, महिला नेतृत्व वाले विकास और डिजिटल सार्वजनिक इन्फ्रस्ट्रक्चर जैसे वैश्विक मुद्दों पर सार्थक चर्चा की गई। 
नई दिल्ली में द्वारका स्थित ‘यशोभूमि’ इंडिया इंटरनेशनल कन्वेंशन एंड एक्सपो सेंटर (आईआईसीसी) में 13-14 अक्टूब यानी दो दिन तक चले पी-20 शिखर सम्मेलन में के दौरान जी-20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों समेत करीब 30 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और सार्थक चर्चा की। भारत की जी-20 अध्यक्षता के तहत पी-20 शिखर सम्मेलन के समापन भाषण में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि पी-20 शिखर सम्मेलन की सफलता में योगदान देने के लिए जी20 देशों की संसदों और आमंत्रित देशों के पीठासीन अधिकारियों देशों द्वारा संयुक्त वक्तव्य को सर्वसम्मति से स्वीकार करने से पी-20 प्रक्रिया और मजबूत हुई है। बिरला ने ‘एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य के लिए संसद’ विषय पर पी-20 शिखर सम्मेलन की सफलता में योगदान देने के लिए सभी देशों और उनके प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को धन्यवाद दिया। उन्होंने पिछले दो दिनों के दौरान हुए विचार-विमर्श ने जी-20 के संसदीय आयाम के महत्व को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है और यह भी स्थापित किया है कि किस प्रकार हमारी संसदें एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य के सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। भारत की पी-20 अध्यक्षता के समापन पर लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पी-20 की अध्यक्षता ब्राजील की संसद को सौंप दी है और ब्राजील को उनकी आगामी जी-20 अध्यक्षता के लिए बधाई भी दी है। 
वैश्विक चुनौतियों पर गंभीर 
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सम्मेलन में कई सदस्यों ने विचार-विमर्श के लिए चयनित विकास एजेंडा से अलग हटकर कीजियो-पोलिटिकल घटनाएं और आर्थिक जैसे मुद्दे और वैश्विक चुनौतियों का भी उल्लेख किया। वहीं कुछ अन्य सदस्यों के बहु-पक्षवाद को मजबूत करने, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने और सप्लाइ चेन के रेजि-लीएन्स जैसे मुद्दों पर बिरला ने कहा कि हम संघर्षों और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करते हुए अंतरराष्ट्रीय शांति, समृद्धि और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए उत्प्रेरक के रूप में प्रासंगिक मंचों पर संसदीय राजनय और परस्पर संवाद जारी रखेंगे। संसद अध्यक्षों ने भविषय में अपने पूर्ण एजेंडा और अपनी साझा प्रतिबद्धताओं के पी-20, जी-20 और उससे आगे बढ़ाने का संकल्प दोहराया। 
बिरला की द्विपक्षीय मुलाकात 
पी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अंतर-संसदीय संघ (आईपीयू) के प्रेसिडेंट दुआर्ते पचेको, रूसी संघ की फेडरल असेंबली की फेडरेशन काउंसिल की स्पीकर, श्रीमती वेलेंटीना मतवियेंको, यूरोपीय संसद की वाइस प्रेजिडेंट सुश्री निकोला बीयर, तुर्की की ग्रैंड नेशनल असेंबली के स्पीकर श्री कुर्तुलमस, सिंगापुर की संसद के स्पीकर, महामहिम श्री सियाह कियन पेंग, नीदरलैंड की सीनेट के प्रेसिडेंट, श्री जान एंथोनी ब्रुइजन, दक्षिण अफ्रीका की अपने समकक्ष पीठासीन अधिकारी, महामहिम सुश्री नोसिविवे नोलुथांडो मापिसा-नकाकुला और मेक्सिको के चैंबर ऑफ डेप्युटीज़ की प्रेसिडेंट सुश्री मार्सेला गुएरा कैस्टिलो आदि के साथ अलग-अलग मुलाकात कर द्विपक्षीय बैठकें भी की हैं। 
ब्राजील को बधाई दी 
आपकी मेजबानी करना मेरे और मेरी टीम के लिए प्रसन्नता का विषय है। मुझे आशा है कि भारत में आपका प्रवास सुखद रहा होगा। उन्होंने सभी सदस्य देशों से आग्रह किया कि आप अपने प्रवास के दौरान भारत के समृद्ध इतिहास और बहुरंगी संस्कृति का पूर्ण आनंद लें। वह आपके पुनः भारत आगमन पर आपका स्वागत करने और जनकल्याण के विषयों पर अपनी चर्चा को आगे जारी रखने के लिए उत्सुक हैं। उन्होंने इस अवसर पर ब्राजील को उनकी आगामी जी-20 अध्यक्षता के लिए बधाई देते हुए उनकी सफलता की कामना भी की। 
15Oct-2023

शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

P-20 शिखर सम्मेलन: महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से संसदीय परंपरा भी समृद्ध होगी: मोदी

संयुक्त संसदीय प्रयासों से निकलेगा चुनौतियों का समाधान: ओम बिरला 
प्रधानमंत्री ने किया पी20 शिखर सम्मेलन का उद्घाटन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नौवें जी20 देशों के संसदीय अध्यक्षों के पी20 शिखर सम्मेलन में कहा कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम विधायी क्षेत्र में संतुलित नीति निर्माण के लिए आदर्श परिस्थिति सृजित कर महिलाओं के सम्मान को समग्र रूप में बल प्रदान करेगा। वहीं भारत जैसी लोकतांत्रिक देश की संसदीय परंपरा को कहीं ज्यादा समृद्ध की जा सकेगी। यहां नई दिल्ली में शुक्रवार को शुक्रवार को नौवें जी20 देशों के संसदीय अध्यक्ष सम्मेलन (पी20) के उद्घाटन करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत हर क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता को बढ़ावा दे रहा है। संसद के विशेष सत्र में पारित किए गये नारी शक्ति वंदन कानून में महिलाओं को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई हिस्सेदारी देने के प्रावधान है, जिससे महिलाओं के सशक्त होने के साथ संसदीय परंपरा को और भी समृद्ध करने में मदद मिलेगी। उन्होंने काह कि भारत की स्थानीय स्व-शासी संस्थाओं में लगभग 50 प्रतिशत निर्वाचित प्रतिनिधि महिलाएं हैं। मोदी ने कहा कि सहभागिता वाले लोकतंत्र में महिलाओं की अधिक संख्या होना महत्वपूर्ण है। 
आतंकवाद दुनिया के लिए एक चुनौती 
पीएम मोदी ने कहा कि आतंकवाद जहां भी होता, किसी भी कारण, किसी भी रूप में होता वह मानवता के खिलाफ होता है। ऐसे में आतंकवाद को लेकर हम सभी को सख्ती बरतनी होगी। आतंकवाद की परिभाषा को लेकर आम सहमति ना बन पाना बहुत दुखद है और आज भी यूएन भी इसका इंतजार कर रहा है। दुनिया के इसी रवैया का फायदा मानवता के दुश्मन उठा रहे हैं। दुनिया भर के प्रतिनिधियों को सोचना होगा की आतंकवाद के खिलाफ हम कैसे काम कर सकते हैं। आतंकवाद को लेकर हम सभी को लगातार सख्ती बरतने की अपील करते हुए कहा कि भारत कई वर्षों से सीमा पार आतंकवाद का सामना कर रहा है और करीब दो दशक पहले आतंकवादियों ने हमारी संसद को उस समय निशाना बनाया था, जब संसद का सत्र चल रहा था। आज भी आतंकवाद दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसलिए दुनिया की संसदों और उनके प्रतिनिधियों को आतंकवाद के खिलाफ साथ मिलकर लड़ाई लड़ने के लिए काम करने पर विचार करना होगा। 
आम चुनाव देखने का दिया निमंत्रण 
पीएम मोदी ने कहा भारत में हम लोग आम चुनाव को सबसे बड़ा पर्व मानते हैं। 1947 में आज़ादी मिलने के बाद से अब तक भारत में 17 आम चुनाव और 300 से अधिक विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव ही नहीं कराता, बल्कि इसमें लोगों की भागीदारी भी बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि 2019 का आम चुनाव मनाव इतिहास की सबसे बड़ी मानव कसरत थी। इसमें 60 करोड़ वोटर ने हिस्सा लिया। तब भारत में 91 करोड़ पंजीकृत मतदाता थे, जो पूरे यूरोप की कुल आबादी से अधिक है। भारत की यह लोकतंत्र प्रक्रिया यह दिखाती है कि भारत में लोगों का संसदीय प्रक्रियाओं में कितना भरोसा है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत चुनावों के दौरान पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए 25 वर्षों से अधिक समय से ईवीएम का उपयोग कर रहा है। 2024 में, आम चुनावों के दौरान लगभग 100 करोड़ या एक बिलियन मतदाता अपना वोट डालने जा रहे हैं। वह सभी प्रतिनिधियों को अगले आम चुनाव देखने के लिए भारत आने के लिए आमंत्रित करते हैं। 
समकालीन चुनौतियों के समाधान पर मंथन का मंच 
पी20 शिखर सम्मेलन में लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि बिरला ने कहा कि यह सम्मेलन लोकतांत्रिक मूल्यों, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वैश्विक महत्व के विषयों और समकालीन चुनौतियों के समाधान के लिए संयुक्त संसदीय प्रयासों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इसका यह भी कारण है कि भारत की अध्यक्षता में हाल ही में संपन्न हुए जी20 शिखर सम्मेलन में नई दिल्ली लीडर्स डेक्लरैशन को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया, जो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के वैश्विक दृष्टिकोण और सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों की वैश्विक मुद्दों पर प्रतिबद्धता और एकजुटता को दर्शाता है। बिरला ने कहा कि भारत की जी-20 की अध्यक्षता समावेशी, आकांक्षी, कार्य-उन्मुख, निर्णायक और जन-केंद्रित रही है। 
कोरिया की स्पीकर के साथ द्विपक्षीय भेंट 
लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पी20 शिखर सम्मेलन के अवसर पर कोरिया गणराज्य की नेशनल असेंबली के स्पीकर किम जिन-प्यो से भेंट की। बिरला ने उन्हें बताया कि वर्ष 2023 भारत और कोरिया दोनों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस वर्ष दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों के 50 वर्ष पूरे हुए हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारत और कोरिया गणराज्य के बीच बहुआयामी रणनीतिक साझेदारी है। राजनीति, व्यापार, निवेश, रक्षा, संस्कृति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क जैसे विभिन्न क्षेत्रों में हमारे संबंध मजबूत हुए हैं। बिरला ने इस बात का उल्लेख भी किया कि बौद्ध भिक्षुओं की यात्राओं और ज्ञान और विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम से बौद्ध धर्म ने दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने भारत और कोरिया गणराज्य के बीच संसदीय सहयोग को और बढ़ाए जाने पर जोर दिया। 
14Oct-2023

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

भारत के ‘लाइफ’ मिशन की जी20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों ने की सराहना

P-20 शिखर सम्मेलन: पर्यावरण संरक्षण का व्यापक दृष्टिकोण है मिशन 'लाइफ': ओम बिरला 
पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली की हमारी लंबी यात्रा में मिशन लाइफ एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है: हरिवंश 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। पीएम मोदी की पहल पर ‘लाइफ: पर्यावरण के लिए जीवनशैली' विषय पर पी-20 के संसदीय मंच की बैठक में जी20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों भारत के ‘लाइफ’ मिशन की सराहना की। पी-20 शिखर सम्मेलन का शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विधिवत उद्घाटन करेंगे। इस शिखर सम्मेलन में वैश्विक मुद्दों और उनके समाधान को लेकर चर्चा की जाएगी। जी-20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों का पी20 शिखर सम्मेलन से पहले गुरुवार को नई दिल्ली में यशोभूमि, द्वारका में ‘लाइफ: पर्यावरण के लिए जीवनशैली' विषय पर संसदीय मंच की बैठक हुई। 
जी-20 की अध्यक्षता कर रहे भारत की मेजबानी में पिछले महीने हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद जी20 सदस्य देशों की संसद के पीठासीन अधिकारियों का पी20 शिखर सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। इस सम्मेलन से पहले गुरुवार को भारत के पीएम मोदी की पहल पर ‘लाइफ: पर्यावरण के लिए जीवनशैली' विषय पर पी-20 के संसदीय मंच की बैठक हुई। इस बैठक में जी20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों भारत के ‘लाइफ’ मिशन की सराहना की। इससे पहले बैठक शुरु होने पर लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बैठक शुरु होने पर जी20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों का ‘लोकतंत्र की जननी’ भारत में स्वागत किया और शिखर सम्मेलन-पूर्व कार्यक्रम ‘लाइफ’ में उनकी भागीदारी के लिए आभार व्यक्त किया। बिरला ने कहा कि वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन और इसका प्रभाव सम्पूर्ण विश्व के साझे भविष्य के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि यह स्वाभाविक है कि भारत की पहल पर पी-20 सम्मेलन के दौरान पर्यावरण संबंधी मुद्दों को सर्वसम्मति से चर्चा के केंद्र में रखा गया है। 
दुनिया को चुनौतियों से निपटने के प्रयास जरुरी 
ओम बिरला ने जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि आज के समय में कोई भी देश जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से अछूता नहीं है। दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस प्रयास के साथ जलवायु परिवर्तन का डटकर मुकाबला करना समय की मांग है। पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तुत लाइफ (पर्यावरण के लिए जीवन शैली) की अवधारणा के बारे में बिरला ने कहा कि मिशन लाइफ स्टाइल पर्यावरण संरक्षण का एक व्यापक दृष्टिकोण है जो प्रत्येक व्यक्ति को रिड्यूस, रीयूज और रीसाइक्लिंग करने की प्रेरणा देता है। इस मिशन ने दुनिया को जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वास्थ्य सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा आदि जैसी समकालीन चुनौतियों से निपटने का एक नया मार्ग दिया है, जो अब एक वैश्विक आंदोलन बन गया है। 
विश्व के पथ प्रदर्शक बनने पर बल बैठक में राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश ने कहा कि मिशन लाइफ पर्यावरण अनुकूल जीवन की हमारी लंबी यात्रा में बहुत महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने सांसदों से आग्रह किया कि वे पर्यावरण के संरक्षक और पर्यावरण अनुकूल विश्व के पथ प्रदर्शक बनें। हरिवंश ने कहा कि सामूहिक प्रयासों से एक ऐसे विश्व का निर्माण होगा जहां जनजीवन और हमारी पृथ्वी फले फूलेगी। इस मौके पर भारत की जी-20 प्रेसीडेंसी के शेरपा अमिताभ कांत के अलावा जी 20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों ने भी चर्चा के दौरान अपने विचार व्यक्त किये। 
ये होगा पी-20 सम्मेलन का एजेंडा 
इस दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य के लिए संसद’ के दर्शन के अनुरूप समकालीन महत्व के जिन विषयों पर जी-20 देशों की संसदों के अध्यक्ष विचार-विमर्श करेंगे, उनमें सतत विकास लक्ष्यों के लिए एजेंडा 2030:उपलब्धियां दर्शाना, प्रगति में तेजी लाना,हरित भविष्य के लिए सतत ऊर्जा परिवर्तन, महिला-पुरुष समानता को मुख्यधारा में लाना-महिला विकास से महिलाओं के नेतृत्व में विकास तक और और सार्वजनिक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से लोगों के जीवन में परिवर्तन जैसे विषय प्रमुख हैं। 
13Oct-2023

सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

साक्षात्कार: समीक्षात्मक लेखन से साहित्य सृजन करती डा. रेनु भाटिया

कहानी, कविताएं एवं निबंध जैसी विधाओं में रचनाओं को दिया विस्तार 
             व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. रेनु भाटिया 
जन्मतिथि: 01 अक्टूबर 1964 
जन्म स्थान: यमुनानगर(हरियाणा) 
शिक्षा: बीए (हिन्दी ऑनर्स), एमए(हिन्दी), एमफिल, पीएचडी.। 
संप्रत्ति:कार्यवाहक प्राचार्या, जीवीएम कन्या महा विद्यालय, सोनीपत। 
संपर्क: 946671648 
By-ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में लेखक एवं साहित्यकार गद्य एवं पद्य के रुप में साहित्य सृजन करते हुए सामाजिक सरोकारों और संस्कृति के संवर्धन करते आ रहे हैं। हरियाणा की संस्कृति एवं परंपराओं को लेकर भी लेखकों ने अपनी विभिन्न विधाओं में अपनी रचनाओं के जरिए समाज को सकारात्मक विचाराधारा के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया है। ऐसे ही लेखकों में शिक्षाविद् एवं महिला लेखक डा. रेनु भाटिया सामाजिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में सृजनात्मक गतिविधियों के साथ ही साहित्यिक सेवा करने में जुटी हुई है। डा. रेनु कहानी, कविताएं एवं निबंध जैसी विधाओं में साहित्य सृजन करते हुए महान साहित्यकारों एवं कवियों की रचनाओं का समीक्षात्म्क विश्लेषण करके साहित्य के क्षेत्र को नया आयाम देने का प्रयास कर ही है। अपने शिक्षा एवं साहित्यिक सफर को लेकर महिला साहित्यकार डा. रेनु भाटिया ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें आज के युग में साहित्य के बदलते स्वरुप में भी साहित्य के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए लेखक देश व समाज को नई दिशा दे सकते हैं। 
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रियाणा की महिला साहित्यकार, समीक्षक और आलोचक डा. रेनु भाटिया का जन्म यमुनानगर में 01 अक्टूबर 1964 को मध्यवर्गीय पंजाबी परिवार के कुलदीप राय कपूर व श्रीमती गीता कपूर के घर में हुआ। उनके दादा रेलवे में पाकिस्तान के लायलपुर और चनूमोट में स्टेशन मास्टर थे। जब देश का विभाजन हुआ, तो रेलवे से सेवानिवृत्ति होने पर उनका परिवार हरियाणा के यमुनानगर में स्थायी रुप से बस गया। पिता कुलदीप राय कपूर भी रेलवे में नौकरी करते थे और माता ग्रहणी थी। माता व पिता दोनों को साहित्यिक पुस्तकें एवं पत्र पत्रिकाएं पढ़ने का शौक था। पिता शेरो शायरी करते थे पर न कभी संकलित किया न छपवाया। बकौल रेनु भाटिया, बचपन से ही राजन इकबाल, लोट पोट, नंदन, चंपक जैसी पत्रिकाएं पढ़ने की आदत उन्हें भी पड़ गई थी। जब वह कक्षा नौ में थी, तो जगाधरी में रेलवे की लाइब्रेरी से पिता ने प्रेमचंद साहित्य लाकर दिया, जिसे उन्होंने कहानी की तरह पढ़ा और उसके बाद उसे साहित्य में ऐसी अभिरुचि हुई कि फिर कभी रुकना नहीं हुआ। शिक्षा के दौरान परीक्षाओं के बाद छुट्टियां होती थी, तो पिता प्रेमचंद और यशपाल भिवानी का साहित्य लाकर देते और उन्होंने उसे कहानी की तरह पढ़कर साहित्य को समझना शुरु किया। स्कूली शिक्षा के बाद जब वह बीए हिंदी ऑनर्स में कर रही थी, तो उसका साहित्य से नाता जुड़ गया और लेखन का कार्य भी शुरु कर दिया। इसी लेखन का परिणाम रहा कि महाविद्यालय में उन्होंने लेखन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर खूब पुरस्कार बटोरे। हिन्दी प्राध्यापिकाएं वीना आजमानी, डा. आशा कपूर एवं डा. साल्वान आदि ने लेखन के लिए प्रेरित किया तथा माता पिता एवं मित्रगणों का भी उन्हें ऐसा प्रोत्साहन मिला कि वह लेखन को विस्तार देने में जुट गई। उनकी पहली रचना ‘मॉं’ निबंध के रुप में महाविद्यालय की पत्रिका में प्रकाशित हुई और उसे इसके लिए पुरस्कृत भी किया गया। इससे लेखन के प्रति उनके आत्मविश्वास का बढ़ना स्वाभाविक था। इसके बाद वह कहानी, कविता लेखन भी करने लगी। उनकी रचनाओं के लेखन का फोकस सामाजिक सरोकार और हिंदी साहित्य के संवर्धन पर रहा है। साहित्यिक पुस्तकों के पठन पाठन को उन्होंने अपने जीवन का हिस्सा मानते हुए अपने रचना संसार को विस्तार दिया है। उन्होंने साल 1987 में वे सोनीपत के जीवीएम कन्या महाविद्यालय में हिंदी विभाग की अध्यक्ष के रुप प्रध्यापन का कार्यभार संभाला और साल 2021 से वे महाविद्यालय की कार्यवाहक प्रचार्या के पद कार्यरत हैं। एक शिक्षिका के रुप में उन्होंने केवल अपनी श्रेष्ठता से ख्याति अर्जित नहीं की, बल्कि महाविद्यालय की विविध गतिविधियों खासतौर से युवा समारोह, वूमैन सैल, जनसंपर्क अधिकारी, एंटी रैंगिंग सेल, ची फ सुपरिटेंडन, एकेडमिक अफेयर, लिटरेरी सोसायटी, रिसर्च जैसे क्षेत्र के प्रभारी की जिम्मेदारी भी संभाली है। वहीं महाविद्यालय की छात्राओं को साहित्यिक लेखर एवं साहित्यिक प्रतियोगिताओं का निर्देशन भी किया। वह महाविद्यालय की पत्रिका ‘आलोक स्तम्भिका’ की सौलह वर्षो तक मुख्य संपादिका भी रही हैं। डा. रेनु भाटिया 21वीं सदी का कथा साहित्य स्नातक स्तर अध्ययन समिति व स्नातकोत्तर स्तर अध्ययन समिति, हिंदी विभाग महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक की सदस्या भी रहीं हैं। उनके निर्देशन में तीन छात्राओं ने एमफिल डिग्री के लिए शोध कार्य भी किया है। महाविद्यालय के हिन्दी विभाग में डीजीएचई के सौजन्य से दो नेशनल स्तर के आयोजन भी कराया है। वहीं इतिहास, पर्यावरण, हिंदी साहित्य ,मनोविज्ञान, भक्ति साहित्य आदि विविध संगोष्ठियों और कार्यशालाओं में प्रतिभागिता के साथ शोध पत्र की प्रस्तुति भी की। उनके आलेख, कहानी, कविताएं राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। वहीं आकाशवाणी रोहतक से उनकी वार्ताएं भी प्रसारित हो चुकी हैं। 
युवाओं की रुचि का साहित्य जरुरी
आज के आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को लेकर डा. रेनु भाटिया का मानना है कि आज भी साहित्य अपनी उन्नत विकसित अवस्था में है और हिंदी साहित्य तो राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीयस्तर पर लिखा और पढ़ा जा रहा है, केवल इसका समय के मुताबिक स्वरुप बदला है। ऐसा भी नहीं है कि साहित्य के पाठकों में कमी आई हो, इसके पाठक इंटरनेट युग में सोशल मीडिया पर उपलब्ध साहित्य पढ़ रहा है। साहित्य में युवा वर्ग भी अभिरूचि ले रहा है, लेकिन युवाओं की रुचि के केंद्र बदला है, जिसमें वह गंभीर एवं संस्कृतनिष्ठ भाषा में रचित साहित्य को पढ़ने की अपेक्षा आम बोल चाल की भाषा को ज्यादा पसंद करता है। युवा पीढ़ी के इस सहज साहित्य सृजन को स्वीकृति करने की आवश्यकता है, जिसके बाद युवा वर्ग को साहित्य से प्रत्यक्ष रुप से जोड़ना संभव है। इसके लिए शिक्षण संस्थाओं की भी अहम भूमिका हो सकती है। वहीं साहित्यकारों और लेखकों को भी ऐसी रचनाओं का विस्तार करने की जरुरत है, जिसमें समाज व युवाओं को एक सकारात्मक दिशा मिल सके। इसके लिए भूमंडलीकरण के युग में अपने मापदंडों को बदलने की भी आवश्यकता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
महिला साहित्यकार डा. रेनु भाटिया की सभी पुस्तकें समीक्षा पर आधारित हैं, जिनमें अज्ञेय: विवेचन, रसखान: काव्य में प्रेमा भक्ति, तरूण: काव्य में सौन्दर्य चेतना, कुरुक्षेत्र: समीक्षा वातायन, कामायनी: दिग्दर्शन एवं आधुनिक कबीर: बाबा नागार्जुन तथा निराला काव्य विमर्श शामिल हैं। उनकी एक पुस्तक ‘सलीब’ नाटक के रुप में प्रकाशित हुई है। कविताएं लिखती हैं लेकिन अभी तक काव्य संग्रह प्रकाशित नहीं हो पाया है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र से सम्मानित डा. रेनु भाटिया को राष्ट्रीय स्तरीय कला संस्था अवन्तिका द्वारा राष्ट्रीय गौरव सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के जनगणना कार्य निदेशालय हरियाणा से भी उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें मानव अधिकार संरक्षण संघ सोनीपत से राष्ट्रीय निर्माता अवार्ड, सारथी जनसेवा चैरीटिबल ट्रस्ट सोनीपत के ग्रेट वोमेन अवार्ड के अलावा विभिन्न साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं से अनेक सम्मान मिल चुके हैं। 
09Oct-2023