सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

साक्षात्कार: समीक्षात्मक लेखन से साहित्य सृजन करती डा. रेनु भाटिया

कहानी, कविताएं एवं निबंध जैसी विधाओं में रचनाओं को दिया विस्तार 
             व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. रेनु भाटिया 
जन्मतिथि: 01 अक्टूबर 1964 
जन्म स्थान: यमुनानगर(हरियाणा) 
शिक्षा: बीए (हिन्दी ऑनर्स), एमए(हिन्दी), एमफिल, पीएचडी.। 
संप्रत्ति:कार्यवाहक प्राचार्या, जीवीएम कन्या महा विद्यालय, सोनीपत। 
संपर्क: 946671648 
By-ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में लेखक एवं साहित्यकार गद्य एवं पद्य के रुप में साहित्य सृजन करते हुए सामाजिक सरोकारों और संस्कृति के संवर्धन करते आ रहे हैं। हरियाणा की संस्कृति एवं परंपराओं को लेकर भी लेखकों ने अपनी विभिन्न विधाओं में अपनी रचनाओं के जरिए समाज को सकारात्मक विचाराधारा के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया है। ऐसे ही लेखकों में शिक्षाविद् एवं महिला लेखक डा. रेनु भाटिया सामाजिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में सृजनात्मक गतिविधियों के साथ ही साहित्यिक सेवा करने में जुटी हुई है। डा. रेनु कहानी, कविताएं एवं निबंध जैसी विधाओं में साहित्य सृजन करते हुए महान साहित्यकारों एवं कवियों की रचनाओं का समीक्षात्म्क विश्लेषण करके साहित्य के क्षेत्र को नया आयाम देने का प्रयास कर ही है। अपने शिक्षा एवं साहित्यिक सफर को लेकर महिला साहित्यकार डा. रेनु भाटिया ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें आज के युग में साहित्य के बदलते स्वरुप में भी साहित्य के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए लेखक देश व समाज को नई दिशा दे सकते हैं। 
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रियाणा की महिला साहित्यकार, समीक्षक और आलोचक डा. रेनु भाटिया का जन्म यमुनानगर में 01 अक्टूबर 1964 को मध्यवर्गीय पंजाबी परिवार के कुलदीप राय कपूर व श्रीमती गीता कपूर के घर में हुआ। उनके दादा रेलवे में पाकिस्तान के लायलपुर और चनूमोट में स्टेशन मास्टर थे। जब देश का विभाजन हुआ, तो रेलवे से सेवानिवृत्ति होने पर उनका परिवार हरियाणा के यमुनानगर में स्थायी रुप से बस गया। पिता कुलदीप राय कपूर भी रेलवे में नौकरी करते थे और माता ग्रहणी थी। माता व पिता दोनों को साहित्यिक पुस्तकें एवं पत्र पत्रिकाएं पढ़ने का शौक था। पिता शेरो शायरी करते थे पर न कभी संकलित किया न छपवाया। बकौल रेनु भाटिया, बचपन से ही राजन इकबाल, लोट पोट, नंदन, चंपक जैसी पत्रिकाएं पढ़ने की आदत उन्हें भी पड़ गई थी। जब वह कक्षा नौ में थी, तो जगाधरी में रेलवे की लाइब्रेरी से पिता ने प्रेमचंद साहित्य लाकर दिया, जिसे उन्होंने कहानी की तरह पढ़ा और उसके बाद उसे साहित्य में ऐसी अभिरुचि हुई कि फिर कभी रुकना नहीं हुआ। शिक्षा के दौरान परीक्षाओं के बाद छुट्टियां होती थी, तो पिता प्रेमचंद और यशपाल भिवानी का साहित्य लाकर देते और उन्होंने उसे कहानी की तरह पढ़कर साहित्य को समझना शुरु किया। स्कूली शिक्षा के बाद जब वह बीए हिंदी ऑनर्स में कर रही थी, तो उसका साहित्य से नाता जुड़ गया और लेखन का कार्य भी शुरु कर दिया। इसी लेखन का परिणाम रहा कि महाविद्यालय में उन्होंने लेखन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर खूब पुरस्कार बटोरे। हिन्दी प्राध्यापिकाएं वीना आजमानी, डा. आशा कपूर एवं डा. साल्वान आदि ने लेखन के लिए प्रेरित किया तथा माता पिता एवं मित्रगणों का भी उन्हें ऐसा प्रोत्साहन मिला कि वह लेखन को विस्तार देने में जुट गई। उनकी पहली रचना ‘मॉं’ निबंध के रुप में महाविद्यालय की पत्रिका में प्रकाशित हुई और उसे इसके लिए पुरस्कृत भी किया गया। इससे लेखन के प्रति उनके आत्मविश्वास का बढ़ना स्वाभाविक था। इसके बाद वह कहानी, कविता लेखन भी करने लगी। उनकी रचनाओं के लेखन का फोकस सामाजिक सरोकार और हिंदी साहित्य के संवर्धन पर रहा है। साहित्यिक पुस्तकों के पठन पाठन को उन्होंने अपने जीवन का हिस्सा मानते हुए अपने रचना संसार को विस्तार दिया है। उन्होंने साल 1987 में वे सोनीपत के जीवीएम कन्या महाविद्यालय में हिंदी विभाग की अध्यक्ष के रुप प्रध्यापन का कार्यभार संभाला और साल 2021 से वे महाविद्यालय की कार्यवाहक प्रचार्या के पद कार्यरत हैं। एक शिक्षिका के रुप में उन्होंने केवल अपनी श्रेष्ठता से ख्याति अर्जित नहीं की, बल्कि महाविद्यालय की विविध गतिविधियों खासतौर से युवा समारोह, वूमैन सैल, जनसंपर्क अधिकारी, एंटी रैंगिंग सेल, ची फ सुपरिटेंडन, एकेडमिक अफेयर, लिटरेरी सोसायटी, रिसर्च जैसे क्षेत्र के प्रभारी की जिम्मेदारी भी संभाली है। वहीं महाविद्यालय की छात्राओं को साहित्यिक लेखर एवं साहित्यिक प्रतियोगिताओं का निर्देशन भी किया। वह महाविद्यालय की पत्रिका ‘आलोक स्तम्भिका’ की सौलह वर्षो तक मुख्य संपादिका भी रही हैं। डा. रेनु भाटिया 21वीं सदी का कथा साहित्य स्नातक स्तर अध्ययन समिति व स्नातकोत्तर स्तर अध्ययन समिति, हिंदी विभाग महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक की सदस्या भी रहीं हैं। उनके निर्देशन में तीन छात्राओं ने एमफिल डिग्री के लिए शोध कार्य भी किया है। महाविद्यालय के हिन्दी विभाग में डीजीएचई के सौजन्य से दो नेशनल स्तर के आयोजन भी कराया है। वहीं इतिहास, पर्यावरण, हिंदी साहित्य ,मनोविज्ञान, भक्ति साहित्य आदि विविध संगोष्ठियों और कार्यशालाओं में प्रतिभागिता के साथ शोध पत्र की प्रस्तुति भी की। उनके आलेख, कहानी, कविताएं राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। वहीं आकाशवाणी रोहतक से उनकी वार्ताएं भी प्रसारित हो चुकी हैं। 
युवाओं की रुचि का साहित्य जरुरी
आज के आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को लेकर डा. रेनु भाटिया का मानना है कि आज भी साहित्य अपनी उन्नत विकसित अवस्था में है और हिंदी साहित्य तो राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीयस्तर पर लिखा और पढ़ा जा रहा है, केवल इसका समय के मुताबिक स्वरुप बदला है। ऐसा भी नहीं है कि साहित्य के पाठकों में कमी आई हो, इसके पाठक इंटरनेट युग में सोशल मीडिया पर उपलब्ध साहित्य पढ़ रहा है। साहित्य में युवा वर्ग भी अभिरूचि ले रहा है, लेकिन युवाओं की रुचि के केंद्र बदला है, जिसमें वह गंभीर एवं संस्कृतनिष्ठ भाषा में रचित साहित्य को पढ़ने की अपेक्षा आम बोल चाल की भाषा को ज्यादा पसंद करता है। युवा पीढ़ी के इस सहज साहित्य सृजन को स्वीकृति करने की आवश्यकता है, जिसके बाद युवा वर्ग को साहित्य से प्रत्यक्ष रुप से जोड़ना संभव है। इसके लिए शिक्षण संस्थाओं की भी अहम भूमिका हो सकती है। वहीं साहित्यकारों और लेखकों को भी ऐसी रचनाओं का विस्तार करने की जरुरत है, जिसमें समाज व युवाओं को एक सकारात्मक दिशा मिल सके। इसके लिए भूमंडलीकरण के युग में अपने मापदंडों को बदलने की भी आवश्यकता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
महिला साहित्यकार डा. रेनु भाटिया की सभी पुस्तकें समीक्षा पर आधारित हैं, जिनमें अज्ञेय: विवेचन, रसखान: काव्य में प्रेमा भक्ति, तरूण: काव्य में सौन्दर्य चेतना, कुरुक्षेत्र: समीक्षा वातायन, कामायनी: दिग्दर्शन एवं आधुनिक कबीर: बाबा नागार्जुन तथा निराला काव्य विमर्श शामिल हैं। उनकी एक पुस्तक ‘सलीब’ नाटक के रुप में प्रकाशित हुई है। कविताएं लिखती हैं लेकिन अभी तक काव्य संग्रह प्रकाशित नहीं हो पाया है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र से सम्मानित डा. रेनु भाटिया को राष्ट्रीय स्तरीय कला संस्था अवन्तिका द्वारा राष्ट्रीय गौरव सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के जनगणना कार्य निदेशालय हरियाणा से भी उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें मानव अधिकार संरक्षण संघ सोनीपत से राष्ट्रीय निर्माता अवार्ड, सारथी जनसेवा चैरीटिबल ट्रस्ट सोनीपत के ग्रेट वोमेन अवार्ड के अलावा विभिन्न साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं से अनेक सम्मान मिल चुके हैं। 
09Oct-2023

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