सोमवार, 2 अक्तूबर 2023

चौपाल: सिनेमा के माध्यम से हरियाणवी संस्कृति को दिशा देते रामपाल

हरियाणवी फिल्म जगत के स्वप्नदृष्टा बनकर लोकप्रिय हुए बल्हारा 
                व्यक्तिगत परिचय 
नाम: रामपाल बल्हारा 
जन्मतिथि: 2 मार्च, 1954 
जन्म स्थान बहुअकबर पुर, जिला रोहतक 
शिक्षा:एमडी यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट, ग्रेजुएशन जाट कॉलेज रोहतक। 
संप्रत्ति:सेवानिवृत्त] फिल्म समारोह निदेशालय(I&B), नई दिल्ली 
BY-ओ.पी. पाल 
रियाणवी लोक कलाकारों ने संस्कृति को विभिन्न मंचों के माध्यम से देश विदेश तक पहचान दी है। लेकिन रामपाल बल्हारा फिल्म जगत के उन लोकप्रिय चेहरों में शुमार है, जिन्होंने हरियाणवी सिनेमा को स्थापित करके हरियाणवी फिल्मों के सूखे को खत्म किया और सिनेमा के माध्यम से हरियाणवी संस्कृति के प्रचार और विकास प्रोत्साहित करने की दिशा में हरियाणवी फिल्म विकास निगम की स्थापना करने में अहम भूमिका निभाई है, जो हरियाणा सरकार के एक निकाय के रुप में कर रहा है। इसी का नतीजा है कि आज हरियाणवी फिल्मों में अपनी कला का प्रदर्शन करके बॉलीवुड तक हरियाणवी संस्कृति की अलख जगा रहे हैं। रामपाल बल्हारा के हरियाणवी फिल्म जगत को मिल रहे अहम योगदान में उनकी किस्मत को लेकर एक ऐसी दिलचस्प कहानी भी है, जिसमें परिवार की इच्छा और हिदायतों के बाद उनकी किस्मत का चक्र फिल्म क्षेत्र में चलता आ रहा है और उनकी लोकप्रियता बुलंदिया छू रही हैं। एक फिल्म निर्देशक और अभिनेता के रुप में रामपाल बल्हारा ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में अपने बचपन से लेकर सिनेमा तक के सफर में कई ऐसे अनुछुए पहलुओ को उजागर किया है, जिसमें फिल्मों के माध्यम से समाज को सकारात्मक ऊर्जा भी मिलती है। 
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रियाणवी फिल्मों को प्रोत्साहन देने वाले रामपाल बल्हारा का जन्म जन्म रोहतक के गांव बहु अकबरपुर में 2 मार्च 1954 को एक सामान्य कृषक परिवार ईश्वर सिंह और हुकमो देवी के यहां हुआ। उनके परिवार में किसी भी तरह का साहित्यिक या लोक संस्कृति का माहौल नहीं रहा। हां उनका परिवार आर्य समाजी होने के कारण उन्हें बचपन में अच्छे संस्कार मिले। आर्य समाज मंदिर में जाने स उन पर इसी संस्कृति का असर रहा। परिवार में नाचना, गाना, या किसी प्रकार के संगीत कतई स्वीकार्य नहीं था। इसलिए उनका स्कूल जाना और वहां से खेतों में जाकर काम करना। गांव में पढ़ते समय आर्य समाज मंदिर का पुनर्निर्माण हु और सुधार समिति बनी। जब रामपाल कालेज में एमए कर रहे थे, तो वहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नाटक व गायन में हिस्सा लेकर अभिनय करने लगे। उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री बनारसीदास गुप्ता जैसी हस्तियों के समक्ष उन्होंने नाटकों में अपने अभिनय किया, तो उन्हें इस कला के लिए आत्मबल मिला और ऐसे में अभिनय को जब बेहतर माना जाने लगे तो छात्रों, शिक्षकों और प्रबन्धनों में सम्मान के साथ एक पहचान बनना स्वाभाविक ही है। उन्होंने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से अंग्रेजी विषय में स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण की। बीएड और एमए के दौरान गुडगांव में उनका अभिनय पहली बार सार्वजनिक हुआ। बकौल रामपाल बल्हारा, उन्होंने एक दिलस्प पहलू का जिक्र करते हुए कहा कि जब वह स्कूल से कॉलेज जाने लगा, तो पिता कहा कि कालेज में जाकर फिल्मे देखकर बच्चे बिगड़ जाते हैं और उन्होंने इस वादे के साथ ही कालेज में दाखिले की हामी भरी कि वह फिल्में नहीं देखेगा, क्योंकि गांव का एक लड़का इसी प्रकार बिगड़ने से बदनाम हुआ था। इसका कारण यह भी था कि गांवों में फिल्मों को देखना बुरा माना जाता है। लेकिन जब परीक्षा पास करने के बाद साल 1978 में उन्हें केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण विभाग में नौकरी मिली तो उन्हें फिल्म समारोह निदेशालय, विज्ञान भवन नई दिल्ली में नियुक्त किया गया। उनका काम फिल्मे देखना और कलाकारों व दर्शकों से बातचीत करना था। लेकिन वह सोचने लगा कि एक गांव का कृषक को ऐसे नौकरी मिली, जिसके लिए पिता जी और परिवार को नफरत थी और फिल्मों से हमेशा उसे बचने को कहते रहे। फिर भी उन्होंने इस माहौल में अपने को बदलते हुए अपने आपको तैयार किया, जहां फिल्में भी देखने को मिल रही थी और पैसा भी। फिल्म समारोह निदेशालय के तहत रामपाल बल्हारा 1978 से 1993 तक फिल्म अवॉर्ड और जूरी समन्वयक रहे और 1995 में उन्हें राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) में निर्माण प्रबंधक नियुक्त कर दिया गया। इस दौरान उन्होंने नेशनल फिल्म फेस्टिवल तथा इंडियन पेनोरमा (इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया) में अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया। लेकिन उन्हें इस बात पर हैरानी थी कि उनके समक्ष अलग अलग भाषाओं की फिल्में आती थी, लेकिन हरियाणा की कोई फिल्म उनके स्क्रीनिंग के लिए नहीं आई। इस दौरान उन्हें आर्मी फिल्म डिवजन में जाने का मौका मिला, जहां प्रोजेक्टर हरियाणा का ही जयंत प्रभाकर था उनसे मिला और यह बात उन्होंने उनसे कही, तो उन्होंने बल्हारा को बताया कि उनके पिता ने एक कहानी तो लिखी हुई है, लेकिन वह मुंबई जाने से डर रहे हैं। जयंत प्रभाकर से मिले और हरियाणवी फिल्म चन्द्रावल के निर्माण के लिए सभी औपचारिकताएं पूरी कराई। जयंत प्रभाकर निर्देशित चन्द्रावल में रामपाल बल्हारा ने मुख्य सहायक निर्देशक और निर्माण नियंत्रक (प्रोडक्शन कंट्रोलर) का कार्यभार संभाला, जिसके बाद प्रभाकर की कई हरियाणवी फिल्मों में वे निर्देशक के मुख्य सहायक रहे और इन फिल्मों में अभिनय भी किया। एनएफडीसी से प्रबंधक (फिल्म निर्माण) के पद से साल 2014 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी वे हरियाणवी फिल्मों के निर्माण और उनमें अभिनय के रुप में सक्रीय हैं। उन्होंने हरियावी फिल्म विकास परिषद (एचएफडीसी) की स्थापना कराई। वे हरियाणवी इनोवेटिव फिल्म एसोसिएशन (हाइफा) के ये जनरल सेक्रेट्री हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वे मैराथन में भी हिस्सा लेकर कई पुरस्कार अर्जित कर चुके हैं। 
फिल्म क्षेत्र में चमकी किस्मत 
प्रसिद्ध कलाकार कलाकार रामपाल बल्हारा 1978 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत फिल्म महोत्सव निदेशालय 1995 तक रहे, जहां उनका कार्य प्रोफ़ाइल राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के लिए राष्ट्रीय फिल्म जूरी का गठन करना, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के लिए फिल्म प्रविष्टियों को आमंत्रित करना, जूरी स्क्रीनिंग की व्यवस्था करना और संचालन करना, वार्षिक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार ब्रोच की छपाई कराना था। राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कार प्रस्तुति के लिए पुरस्कार प्रस्तुति समारोह आयोजित करना भी उनके जिम्मे था। इस अवधि के दौरान उन्होंने भारत के वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव यानी आईएफएफआई के लिए फिल्म महोत्सव निदेशालय में अलग-अलग प्रोफाइल, भारतीय पैनोरमा के लिए फिल्मों का चयन और विभिन्न सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों में भागीदारी के लिए विदेशों में भारतीय फिल्मों के नामांकन करने भी भूमिका भी संभाली। ये किस्मत का ही खेल है कि जिनके पिता और परिवार उन्हें फिल्मों से दूर रहने की हिदायत देते रहे, उन्होंने फिल्म क्षेत्र में ही बड़ी पहचान बनाई, जिससे परिजन भी हैरान तो रहे लेकिन बेटे की लोकप्रियता से उससे कहीं ज्यादा खुश हैं। 
एनएफडीसी में किया फिल्मों का निर्माण 
उन्होंने बताया कि जब 1995 में उन्हें राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) में निर्माण प्रबंधक के पद नियुक्त किया गया, तो निगम तत्वावधान में उन्होंने हिन्दी फिल्म ट्रेन टू पाकिस्तान (1998), हरियाणवी फिल्म लाडो (2000), कश्मीरी फिल्म बब (2001), उड़िया फिल्म मगुनिरा शगडा (2001) में निर्माण नियंत्रक के रूप में अपने कार्य को अंजाम दिया। एनएफडीसी के तहत ही रामपाल ने इग्नू ज्ञानदर्शन, डीडी स्पोर्ट्स, डीडी न्यूज, डीडी मेट्रो, डीडी-3 के लिए जारी कार्यक्रमों की सुपरविजिंग की तथा विभिन्न सरकारी मंत्रालयों के रेडियो-टीवी पर सामाजिक जागरुकता के कार्यक्रमों में निर्माण समन्वयक के तौर पर कार्य संभाला। मसलन फीचर फिल्म के निर्माण के अलावा केंद्र सरकार के लिए कई प्रचार टीवी विज्ञापन भी तैयार किए हैं। इनमें जागो ग्राहक जागो, सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, एमजी नेर्गा, एमएसएमई, आधार, वयस्क शिक्षा, सर्व शिक्षा अभियान, पीएनडीटी, सड़क सुरक्षा और पानी बचाएं जैसे अनेक प्रोजक्ट शामिल हैं। इसी दौरान उन्होंने 1987 में हरियावी फिल्म विकास परिषद (एचएफडीसी) की स्थापना की और एचएफडीसी के बैनर तले प्रथम हरियाणवी फिल्म महोत्सव का आयोजन किया, जिसमें लगभग 30 फिल्मों ने प्रतियोगिता में भाग लिया। 
यहां से मिली मंजिल 
श्री बल्हारा ने बताया कि फिल्म फेस्टिवल में काम करने के दौरान उनकी मुलाकात रक्षा मंत्रालय के आर्मी फिल्म और फोटो डिवीजन में प्रोजेक्टर के रुप में काम करने वाले जयंत प्रभाकर से हुई और उन्होंने एक हरियाणवी फिल्म बनाने की योजना बनाई और चंद्रावल के निर्माण का विचार हमारे दिमाग में आया और जयंत प्रभाकर ने फिल्म का निर्देशन किया और उन्होंने उनके साथ इस फिल्म में सहायक निर्देशक, कलाकार और प्रोडक्शन कंट्रोलर के रुप में कार्य किया। चंद्रावल की शानदार सफलता के बाद रामपाल बल्हारा हरियाणवी फिल्म लाडो बसंती, गुलाबो, छोटी साली, जर जोरु और जमीन में भी मुख्य सहायक, निर्देशक और प्रोडक्शन कंट्रोलर के साथ अभिनय के रुप में कई किरदार निभाए। उन्होंने हरियाणवी फिल्म ‘दादा लखमी’ और पंजाबी-हरियाणवी में निर्मित फीचर फिल्म ‘सैल्यूट’ में भी निर्माण समन्वयक के साथ एक अभिनेता के रुप में भी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद एक हिंदी फीचर फिल्म एसपी चौहान में एक छोटी सी चरित्र भूमिका निभाई है। जबकि उन्होंने एक अन्य स्टेज ऐप वेब श्रृंखला के तहत कॉलेज कांड, ओपरी पराई व बवाल में प्रोडक्शन हेड और चरित्र के रूप में भी काम किया है। 
02Oct-2023

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