बुधवार, 25 अक्तूबर 2023

साक्षात्कार: कालजयी कृतियों के रचनाकार हास्य कवि डा. तेजिन्द्र

साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सामाजिक कार्यो में निरंतर सक्रिय 
                      व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. तेजिंद्र (तेजिंद्र पाल सिंह) 
जन्मतिथि: 01 मई 1963 
जन्म स्थान: कैथल (हरियाणा)। 
शिक्षा: एमए( हिंदी, अंग्रेज़ी, इतिहास), बीएड.एमफ़िल (हिंदी), पीएचडी(हिंदी)। 
संप्रत्ति: स्वतंत्र लेखन, सेवानिवृत्त प्राध्यापक (इतिहास)। 
 संपर्क: म.न. 859, सेक्टर-19 भाग-2 हुडा, कैथल (हरियाणा)। मोबा. 94166 58454 
BY--ओ.पी. पाल 
रियाणा की संस्कृति, सभ्यता,सामाजिक रीति रिवाज तथा परंपराओं के संरक्षण देने वाले लेखकों में कवि डा. तेजिन्द्र ऐसे साहित्यकार है, जिन्होंने भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों कालों की महत्वपूर्ण अनुभूतियों से प्रेरित होकर अपनी कालजयी कृतियों का रचना संसार रचा है। उन्होंने एक हास्य-व्यंग्य कवि के रुप में लोकप्रियता हासिल की, लेकिन साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सामाजिक कार्यो में सक्रियता भी उनकी एक संवेदनशील व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी के रुप को प्रकट करती है। कवि कर्म और काव्य में सामाजिक चेतना की दिशा में उनकी हंसिकाओं की ऐसी बानगी रही, कि उन्होंने राजनीति, समाज को अपनी रचित हास्य व्यंग्य कविताओं से बेबाक कटाक्ष करने में कभी संकोच नहीं किया। वहीं बाल मनोहार के लिए बाल कविता संग्रह में उनकी काव्य रचनाओं में ऐसी सलरता, सहजता, बोगम्यता एव ध्वन्यात्मकता जैसे विशेष गुण विद्यमान हैं, जिन्हें बच्चे सरलता से कंठस्थ कर सकते हैं। इतिहास के प्राध्यापक पद से सेवानिवृत्त साहित्यकार, कवि एवं लेखक डा. तेजिन्द्र ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे अनुछुए पहलुओं को भी उजागर किया है, जिससे में रचना संसार में विचरण करने वाला कोई भी व्यक्ति साहित्यिक साधना कर सकता है। 
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रियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं हास्य कवि डा. तेजिन्द्र का जन्म 01 मई 1963 को कैथल(ननिहाल) में जगदीश राम व मामो देवी के यहां हुआ था, जो हिंदी, अंग्रेजी और इतिहास यानी तीन विषयों में स्नातकोत्तर और बीएड के अलावा हिंदी में पीएचडी की उपाधि हासिल कर चुके हैं। राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय राजौंद, ज़िला कैथल में प्राध्यापक (इतिहास) से 30 अप्रैल 2021 को सेवानिवृत्त डा. तेजिन्द्र मूल रूप से कुरुक्षेत्र जिले के गांव दूधला के रहने वाले हैं। जब उनके दादा रामजीलाल का देहांत हुआ तो उनके पिता के सौतेले मामा बासोराम दादी और पिता, ताऊ व चाचा को लेकर अपने कैथल जिले के गाँव क्योड़क आ गये। फिर मामा के देहांत के बाद दादी ने सिलाई का काम करके पिता समेत अपने तीनों पुत्रों का पालन-पोषण किया। सख्त स्वभाव की दादी सनातन धर्म में विश्वास रखने के साथ्ज्ञ अनुशासन प्रिय थीं। बकौल तेजिन्द्र दादी निर्मला बचपन में उन्हें कहानियां सुनाती थी, वहीं घर में अखबार और पत्रिकायें भी आतीं थीं, तो उनमें प्रकाशित कवितायें और कहानियाँ पढ़ने में उनकी रुचि रही और घर में ट्रांजिस्टर पर प्रसारित होने वाले भजन, धार्मिक गीत और रामायण की चौपाइयाँ भी दादी उन्हें सुनतीं थीं। हर रविवार को रेडियो पर बच्चों के कार्यक्रम में कविता, गीत और कहानी भी सुनने को मिलती रही। इससे उन्हें बचपन में ही घर के भीतर आध्यात्मिक और साहित्यिक माहौल मिला। यही कारण था कि स्कूली शिक्षा के दौरान ही उनकी साहित्य के प्रति अभिरुचि हो गई थी। वे पाठ्यक्रम में साहित्यिक सामग्री पढ़ते थे। कालेज में पुस्तकालय में अख़बार और पत्रिकायें पढ़ता रहता था। हरियाणा के प्रसिद्ध कवि ओम प्रकाश आदित्य की कवितायें मुझे अच्छी लगतीं थीं और उनकी कवितायें पढ़ते-पढ़ते मन में आया कि वह भी कुछ लिख सकते हैं। तेजिन्द्र के पिता स्वयं उर्दू शायरी के शौकीन थे। जब वह कैथल जिले के राजकीय उच्च विद्यालय क्योड़क, ज़िला कैथल में पढ़ते थे, जहां उनके पिता क्लर्क थे। डा. तेजिन्द्र ने बताया कि स्कूल में होने वाली बाल सभाओं में भी वे कवितायें सुनाते थे और कॉलेज में शिक्षा ग्रहण करते हुए उन्होंने लेखन कार्य भी शुरू कर दिया। वह प्रतिदिन गाँव क्योड़क से कैथल के आरकेएसडी कालेज में पढ़ने के लिये आते थे और उस समय बसों के आवागमन में बड़ी परेशानी होने लगी तो इन्हीं परिस्थितियों पर उन्होंने कुछ पंक्तियां लिखकर महससू किया कि उनकी कविता तैयार हो गई। वे पंक्तियाँ अपनी बड़ी बहन को दिखाईं, तो वह आश्चर्यचकित लहजे में बोली ये कविता आपने लिखी? कालेज के मित्रों ने भी उनकी कविता देखकर खुश हुए। इसके बाद उन्होंने अपनी लेखन यात्रा आरम्भ कर दी और यहीं से उनकी कविताओं का जन्म हुआ और उनकी पहली रचना सार्वजनिक हुई। उनके द्वारा कविताएं लिखने का धीरे-धीरे कालेज में उनके प्राध्यापकों डा. भगवान दास निर्मोही, डा. राणा प्रताप गन्नौरी, प्रोफ़ेसर अमृत लाल मदान, प्रो विजय दत्त शर्मा, प्रो. जेसी शर्मा, डा. एस.डी. मिश्रा आदि को भी पता चला। सभी ने उन्हें निरंतर लेखन करने के लिए प्रेरित किया। प्रो. अमृत लाल मदान तो आज भी उनके मार्गदर्शक हैं। 
सामयिक घटनाओं पर फोकस 
डा. तेजिन्द्र की रचनाओं का फोकस किसी विशेष मुद्दे पर नहीं, बल्कि घटनाओं को देखकर उनकी कलम चलती आ रही है। हालाकि वे समाज और देश में हर किसी को प्रभावित करने वाली घटनाओं पर भी उनकी कलम चली है और उन्होंने आतंकवाद के दौर में पंजाब के आतंकवाद पर कवितायें लिखीं। बच्चों के लिए बाल कविताओं के फोकस और हास्य और व्यंग्य में क्षणिकाओं के लेखन ने उन्हें हास्य कवि के रुप में एक विशेष पहचान दी है। डा. तेजिन्द्र साहित्य सभा कैथल में वर्ष 1987 से सदस्य और वर्ष 2002 से प्रेस सचिव पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। जबकि 2017 से अखिल भारतीय साहित्य परिषद् हरियाणा की कैथल ईकाई के ज़िला संयोजक एवं जिलाध्यक्ष का पदभार भी संभाल रहे हैं। वे अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति हरियाणा के जिला कैथल के सदस्य भी हैं। 
हाशिए पर जा रहा है साहित्य 
आधुनिक युग में प्रचुर मात्रा में साहित्य लिखा जा रहा है और प्रकाशित भी हो रहा है। कविता, कहानी और उपन्यास विधा के साहित्य का प्रकाशन अधिक मात्रा में हो रहा है। आज जिस तेजी से पुस्तकें लिखी और प्रकाशित हो रहीं हैं, उतना पढ़ा नहीं जा रहा है। इसी प्रकार काव्य-गोष्ठियों में भी प्राय: वे लोग अधिक होते हैं जो खुद कवि और श्रोता की भूमिका में होते हैं। इसका कारण यही है कि आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया की चकाचौंध में साहित्य हाशिये पर आ गया है और सोशल मीडिया ने तो कवियों की बाढ़ ला दी है। इसलिए साहित्य में मात्रात्मक वृद्धि तो हुई है, लेकिन गुणात्मक विस्तार देखने को नहीं मिलता। साहित्य के पाठकों की कमी होने का भी प्रमुख कारण टेलिविज़न और सोशल मीडिया का अधिक प्रसार होना है। वहीं छात्र भी पुस्तकालयों में जाकर अपनी प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं की तैयारी में जुटे रहते हैं और साहित्य पढ़ने का उन्हें समय तक नहीं है। आज के युवाओं को साहित्य के प्रति प्रेरित करने के लिए साहित्यकारों को उनकी रुचि के साहित्य का सृजन करने की जरुरत है। युवाओं को साहित्य से जोड़ने से ही सामाजिक विचारधारा को भी सकारात्मक ऊर्जा दी जा सकेगी। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार डा. तेजिन्द्र पाल सिंह की अब तक प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख रुप से काव्य संग्रह तिनका-तिनका, आतंक के दायरे में, भावना, बाल कविता संग्रह, मोबाइल बाँग लगाता है, लघु शोध प्रबंध ग़ज़ल के आईने में:गुलशन मदान, शोध-प्रबंध हिंदी ग़ज़ल एवं अन्य काव्य-विधायें, एकल नाटक अमर शहीद सरदार भगत सिंह शामिल हैं। कविता के अलावा वे लघुकथा आलेख, भूमिका, समीक्षा, शोध-आलेख भी लिखते आ रहे हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
साहित्य सेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए डा. तेजिन्द्र को हरियाणा के अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, दिल्ली व कर्नाटक आदि राज्यो की विभिन्न सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं से दो दर्जन से भी ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इन पुरस्करों में प्रमुख रुप से साहित्य गौरव सम्मान, बीसवीं शताब्दी रत्न सम्मान, वरिष्ठ प्रतिभा सम्मान, शांतिदेवी स्मृति साहित्य-रत्न सम्मान, ज्ञानोदय साहित्य सेवा सम्मान, शब्द सेतु नवल सम्मान, अभ्युदय श्री सम्मान, एक्सीलेंस अवार्ड शामिल हैं। इसके अलावा उन्हें हरियाणा प्रदूषण बोर्ड की सलोगन प्रतियोगिता में भी सम्मान मिला है। 
  23Oct-2023

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