सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

चौपाल: कला और सांस्कृतिक संवर्धन का पर्याय है फल्गु उत्सव

पुरखों के पिंडदान करने की परंपरा का केंद्र बना है फल्गु तीर्थ 
By-ओ.पी. पाल 
रियाणा में कुरुक्षेत्र के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शुमार फल्गु तीर्थ का फल्गु उत्सव आज हरियाणवी लोक कला एवं संस्कृति के संवर्धन के केंद्र के रुप में पहचाना जाने लगा है। मसलन कैथल जिले के गांव फरल स्थित फल्गु तीर्थ की महत्ता इतनी बढ़ गई है कि वार्षिक फल्गु उत्सव से हरियाणा कला परिषद् के माध्यम से सीधे हरियाणा सरकार भी जुड़ गई और इस वर्ष के उत्सव में हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने भागीदारी की है। फल्गु तीर्थ स्थल पर वर्ष 2011 में शुरु हुए फल्गु उत्सव में एक दशक से ज्यादा समय लगातार हरियाणा एवं आसपास के राज्यों के साहित्यकार एवं लोक कलाकार सामाजिक सरोकार से जुड़े संदेशों के साथ अपनी प्रस्तुतियां देकर परंपरागत कलाओं और संस्कृति के प्रति समाज को दिशा देने का प्रयास करते आ रहे हैं। हरिभूमि संवाददाता ने फल्गु उत्सव में प्रस्तुति देने आए लोक कलाकारों, साहित्यकारों एवं कवियों ने बताया कि आज फल्गु उत्सव परंपरा कला और संस्कृति को जीवंत रखने की दिशा में एक बड़ा प्रयास साबित हुई। 
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रियाणा के कुरुक्षेत्र का नाम दुनियाभर में उन स्थानों में अग्रगण्य है, जहां सबसे पहले मानव सभ्यता का विकास होना माना गया है। कुरुक्षेत्र यानी कुरुओ का क्षेत्र। कुरूक्षेत्र की 48 कोस पवित्र भूमि हरियाणा के कुरूक्षेत्र, कैथल, करनाल, जीन्द एवं पानीपत जिलों में फैली हुई है। वामन पुराण के अनुसार घने वनों से आच्छादित कुरूक्षेत्र भूमि में काम्यक वन, अदिति वन, व्यास वन, फल्कीवन, सूर्यवन वन, मधुवन तथा शीतवन यानी सात वन थे। पावन नदियों सरस्वती और दृषद्वती के जल से पोषित फल्कीवन, जो महर्षि श्री फल्क की तपोभूमि होने के कारण वन प्रदेश फल्कीवन कहलाया। कालांतर में फल्कीवन से फल्गु तीर्थ के कारण ही फल्कीवन का नाम फरल गांव पड़ा, जो वर्तमान में गाँव फरल जिला कैथल में स्थित है। कुरुक्षेत्र के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक फल्गु तीर्थ का यह तीर्थ स्थान पितृकर्म के लिए विश्वभर में विख्यात है। जिसका वर्णन महाभारत, वामन पुराण मत्स्य पुराण तथा नारद पुराण में उपलब्ध होता है। फल्गु उत्सव के संयोजक के रुप में साहित्यकार और संस्कृति साधक दिनेश शर्मा ने बताया कि इस तीर्थ स्थल पर फल्गु मंदिर सुधार समिति द्वारा परिकल्पित 'फल्गु उत्सव' का उद्देश्य इस उत्सव को वार्षिक फल्गु मेले का स्थान देना है, जिससे कला और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के साथ फल्गु तीर्थ को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकेगा। हरियाणा सरकार के प्रबंधन में फल्कीवन अर्थात फल्गु तीर्थ पर पितृपक्ष में सोमवती अमावस्या पर विशाल मेले का आयोजन होता आ रहा है, जहां अपने पूर्वजों के निमित पिंड दान करने के लिए देश–विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। लेकिन विड़ंबना यह है कि राज्य सरकार सोमवती अमावस्या पर मेले को अभी तक साल 1991 से 2018 तक सात मेले ही आयोजित कर पाई है और अगला मेला साल 2028 में प्रस्तावित है। सनातन परंपराओं के जानकारों के अनुसार मेलों के बीच आने वाला वर्षो का अंतर भावी पीढ़ी तक संस्कार और संस्कृति के पूर्ण प्रेषण में बाधक है। इस मेले के लंबे अंतराल के मद्देनजर पिछले करीब छह दशक से प्राचीन श्री फल्क ऋषि मंदिर की देखरेख करते आ रहे मंदिर के उपासक जयगोपाल शर्मा और उनके परिवार के मार्गदर्शन में फल्गु मंदिर सुधार समिति के माध्यम से वर्ष 2011 से हर वर्ष पितृपक्ष में फल्गु उत्सव आयोजित करता आ रहा है। इसमें समाजसेवी सुभाष गर्ग, दिल्ली के समाजसेवी विजय सिंगला, कुरूक्षेत्र के समाजसेवी जयभगवान सिंगला, उत्सव प्रबंधक मुकेश शर्मा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग कर रहे हैं। इस उत्सव संयोजन समिति सचिव दिनेश शर्मा का कहना है कि कला और संस्कृति संवर्धन के इस प्रयास की सार्थकता और प्रामाणिकता यही है कि हरियाणा में विभिन्न सरकारी नौकरियों के लिए ली जाने वाली परीक्षाओं में भी ‘फल्गु उत्सव कब और कहाँ आयोजित होता है? जैसे सवाल पूछे जाते हैं। 
लोक कला और संस्कृति का संगम 
फल्गु मंदिर सुधार समिति द्वारा हर साल निरंतर आयोजित किये जाए रहे फल्गु उत्सव में अलग अलग विधाओं की कलाओं से जुड़े साहित्यकर्मी और लोक कलाकार हरियाणवी रागनी, लोकनृत्य, लोककला, सांग, भजन, कवि सम्मेलन, नाटक, कहानी मंचन जैसी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के जरिए समाज को अपनी परंपराओं और संस्कृति से जुड़े रहने का सकारात्मक संदेश देते आ रहे हैं। इस उत्सव में देश के शिक्षा, कला और संस्कृति जगत की विशिष्ट विभूतियां अतिथि के रूप में उपस्थित रहती हैं। उत्सव में सारा गाँव पारिवारिक आयोजनों की तरह ही भागीदारी करता है। ऐसे कलाकारों में अब तक साहित्य एवं लोक कलाओं से जुड़े सैकड़ो विभूतियां उत्सव में हिस्सा लेकर अपनी कलाओं की छटाएं बिखेरते रहे हैं। हाल में 30 सितंबर से 2 अक्टूबर तक हुए तीन दिवसीय फल्गु उत्सव में लोकगायन संध्या, लोककला संध्या और लोककाव्य संध्या में सुविख्यात कवियों और कलाकारों ने कलाओं और संस्कृतियों के संगम की धाराएं प्रवाहित की। इस दौरान लोककला से जुड़े कलाकारों सांरगी वादक इंदर लांबा, बीन वादक हरपाल नाथ, हरियाणवी रागनी गायको विकास हरियाणवी, सुरेश भाणा, अमित मलिक, अमित बरोदा के अलावा राष्ट्रीय कवियों महेंद्र अजनबी, चरणजीत चरण, विनीत पाण्डेय, कृष्ण गोपाल सोलंकी आदि ने हिस्सेदारी की। 
लोककला व साहित्य की दृष्टि में उत्सव 
फल्गु उत्सव को मार्गदर्शन प्रदान करने वाले महानुभावों का चिंतन भी इस फल्गु तीर्थ को लेकर संदर्भ में महत्वपूर्ण है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ चंद्र त्रिखा के कहते हैं कि एक सांस्कृतिक चेतना का नाम फल्गु उत्सव है, जिससे जुडकर और तीर्थ के दर्शन करना एक सुखद अनुभूति से कम नहीं है। देश में हिन्दी मंच संचालन के शिखर पुरुष जैनेन्द्र सिंह की माने तो फल्गु उत्सव अपनी कला, संस्कृति और परंपराओं को समर्पित एक सकारात्मक सफल प्रयास है, जो समाज के लिए प्रेरणा का कार्य करता है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के संयुक्त सचिव डॉ जी एस चौहान का मानना है कि शिक्षा और सांस्कृतिक चेतना का नाम फल्गु उत्सव है, जो युवाओं को भारतीय परंपराओं, संस्कार तथा संस्कृति के गौरव से परिचित करवाता है। वरिष्ठ नाट्यकर्मी एवं संगीत नाटक अकादमी चंडीगढ़ के अध्यक्ष सुदेश शर्मा का कहना है कि हरियाणा कला परिषद् के उपाध्यक्ष रहते हुए 2016 में इस उत्सव से जुड़ना संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयासों में स्वयं का सार्थक योगदान प्रतीत होता है। उनका सपना है कि ये उत्सव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाए। लोककलाओं से जुड़े कलाकारों इंदर लांबा, हरपाल नाथ, राजकुमार जंगम आदि ने माना कि फल्गु उत्सव लोककलाओं के प्रचार- प्रसार का बेहतरीन कार्य करता है। लुप्त होती लोककलाओं का सरंक्षण करता है और कलाकारों के लिए रोजगार का अवसर पैदा करता है। हरियाणवी रागनी गायकों विकास हरियाणवी, सुरेश भाणा, अमित मलिक, अमित बरोदा के अनुसार यह हरियाणा का श्रेष्ठ और मर्यादित सांस्कृतिक आयोजन है, जो पारिवारिक वातावरण में संस्कृति के प्रसार का सच्चा प्रयत्न है। वहीं राष्ट्रीय कवियों महेंद्र अजनबी, चरणजीत चरण, विनीत पाण्डेय की बात मानें तो ऐसे पावन स्थान पर संस्कृति के साथ हिन्दी के प्रसार के लिए कवि सम्मेलन अपने आप में ही विशेष हो जाता है क्योंकि तीर्थ स्थान स्वयमेव जागृत संस्कृति होते हैं और समाज में संस्कार बनाए रखते हैं। इंद्रप्रस्थ अध्ययन केंद्र दिल्ली के अध्यक्ष विनोद शर्मा विवेक, कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के मानद सचिव उपेन्द्र सिंहल, लंदन में बसे रोहतक निवासी विश्व प्रसिद्ध रेडियो कलाकार रवि शर्मा, राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित अंतरराष्ट्रीय लोक कलाकार तथा हरियाणा कला परिषद् हिसार मण्डल के अतिरिक्त निदेशक महाबीर गुड्डू ने भी ने भी हरियाणा सरकार और समिति को ऐसे अद्भुत के लिए हरियाणा सरकार, हरियाणा कला परिषद् और उत्सव आयोजन समिति को साधुवाद दिया। 
महाभारत में फल्गु तीर्थ का उल्लेख 
इस पावन तीर्थ पर श्री फल्क ऋषि के मन्दिर के साथ-साथ अनेक सुन्दर मन्दिर हैं। यहां सरोवर के घाट के पास अष्टकोण आधार पर निर्मित 17वीं शताब्दी की मुगल शैली में बना शिव मन्दिर है, जो लगभग 30 फुट ऊंचा है। यहां स्थित सरोवर की लम्बाई 800 फुट और चैडाई 300 फुट है। मुगल शैली में एक और शिव मन्दिर है जो लगभग 20 फुट ऊंचा है तथा आकार में वर्गाकार है। वर्ग की एक भुजा 9 फुट 6 इंच है। यहीं एक अन्य मन्दिर जो राधा-कृष्ण का भी है जो नागर शैली में बना हुआ है। जिसका शिखर शंकु आकार का है। इन सभी उपरोक्त वर्णित मन्दिरों में निर्माण के दौरान लाखौरी ईटों से किया गया है एवं परवर्ती काल में इनका जीर्णोद्धार आधुनिक ईटों के द्वारा किया गया है। घाट के पास ही एक अत्यन्त प्राचीन वट वृक्ष है। जिसे लोग श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। इसी क्षेत्र में पणिश्वर तीर्थ स्थित है। जिसका उल्लेख महाभारत के अनुशासन पर्व के दसवें अध्याय में पाणिखात के नाम से प्राप्त होता है। 
16Oct-2023

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