सोमवार, 30 जून 2014

कालेधन पर एक्शन में आई एसआईटी!

एजेंसियों को आंकड़े साझा करने के निर्देश
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
विदेशों में भारतीयों का जमा कालाधन को वापस लाने की कवायद में जुटी मोदी सरकार द्वारा गठित एसआईटी भी पूरी तरह से कार्यवाही को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए सक्रिय हो गई है। जहां सरकार ने स्विट्जरलैंड को गोपनीय खातों की जानकारी देने का अनुरोध किया है, वहीं एसआईटी ने विभिन्न जांच एजेंसियों को कालेधन से जुड़े आंकड़े साझा करने के निर्देश जारी कर दिये हैं।
मोदी सरकार ने सत्ता संभालने के बाद सबसे पहला कदम कालेधन पर ही उठाया था, जिसने पहली कैबिनेट में कालेधन की जांच के लिए विशेष जांच दल का गठन करने का ऐलान किया था। मोदी सरकार की ओर से गठित एसआईटी का भी एक माह पूरा हो गया है और कालेधन पर भारत सरकार के इस दौरान स्विस बैंकों में जमा कालेधन के मुद्दे पर हुए पत्राचार और वार्ताओं के बीच स्विट्जरलैंड की ना-नुकर के खेल में एसआईटी भी पूरी तरह से हरकत में नजर आ रही है। रविवार को ही एसआईटी ने देश की विभिन्न जांच एजेंसियों से इस प्रकार की चोरी व आपराधिक वित्तीय धोखाधड़ी से जुड़े मामलों के आंकड़ो का ब्यौरा मांगा है और निर्देश दिये हैं कि वे ऐसे वित्तीय मामलों की जांच के आंकड़ों को साझा करना सुनिश्चित करें, ताकि कालेधन की कार्यवाही पर आगे बढ़ा जा सके। एसआईटी का मानना है कि आंकड़ो को साझा करने से ऐसी कर चोरी जैसी गतिविधियों पर अंकुश भी लग सकेगा। सूत्रों के अनुसार एसआईटी के अध्यक्ष जस्टिस एमबी शाह ने उन 11 विभागों यानि एजेंसियों से इन मामलों का ब्यौरा मांगा है, जो एसआईटी के पैनल में शामिल हैं। इससे पहले वित्त मंत्रालय ने भी स्विट्जरलैंड के कालाधन जमा करने वाले भारतीयों के नाम बताने से इंकार करने की खबर के बीच एक बार फिर से स्विट्जरलैंड सरकार से अनुरोध किया है कि वह उन भारतीयों के नाम और खातों का ब्यौरा उपलब्ध कराए जिनकी काली कमाई स्विस बैंकों में जमा है।
इसलिए तलब किये आंकड़े
सूत्रों के अनुसार एसआईटी ने दल में शामिल जांच एजेंसियों के पैनल से इन आंकड़ो को कालेधन की जांच को आगे बढ़ाने के मकसद से इसलिए मांगा है ताकि कालेधन की मात्रा का अनुमान लगाने और यह पता लगाया जा सके कि देश में कालाधन कैसे पनप रहा है, जिसमें कर या शुल्क चोरी, विदेशी विनिमय कानून का उल्लंघन, आय से अधिक आमदनी, देश-विदेश में बेनामी संपत्तियां कुछ ऐसे तरीके शामिल हो सकतें हैं। सूत्रों के अनुसार एसआईटी की कालेधन की जांच पर जल्द होने वाली बैठक में इन आंकड़ो के आधार पर जांच की दिशा तय की जाएगी। गौरतलब है कि इसी प्रकार भारतीय रिजर्व बैंक ने भी हालिया दिनों में सभी बैंकों व वित्तीय संस्थानों को इस उच्च स्तरीय समिति की ओर से मांगी गई सभी सूचनाओं को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए जारी किये थे।
ठिकाने लगने लगा कालाधन!
सूत्रों के अनुसार जैसे-जैसे केंद्र में मोदी की सरकार कालेधन पर तेजी से हरकत में कार्यवाही को अंजाम देने में भारत व स्विट्जरलैंड के बीच इस मुद्दे पर सहयोग की बढ़ती उम्मीदों को पंख लगते दिखे, तो स्विस बैंकों में जमा कालेधन के खातेदारों में अपनी मूल पहचान छिपाने के लिए सोने और हीरे के व्यापार की कमाई का जरिया सिर चढ़ाने की रणनीति अपनानी शुरू कर दी है। वित्तीय मामलों के जानकारों की माने तो कालेधन के पीछे के वास्तविक खातेदारों की पहचान छिपाने के लिए हीरा व्यापार, सोने व अन्य आभूषणों का निर्यात, शेयर बाजार के सौदे एवं नई पीढ़ी की वर्चुअल करंसी के धन हस्तांतरण के तरीकों को पिछले दिनों से अंजाम दिया जा रहा है। स्विट्जरलैंड के ये सरकारी आंकड़ें भी इस बात को पुष्ट करते नजर आ रहे हैं, जिसमें इस साल के शुरूआत से यहां से भारत के साथ करीब 6 अरब स्विस फ्रैंक यानि करीब 40 हजार करोड़ रुपये मूल्य के सोने का व्यापार हुआ है। इन आंकड़ों के कारण इस बात की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता, कि कालेधन को ठिकाने लगाने की गतिविधियों का दौर थमा नहीं है।
30June-2014

रविवार, 29 जून 2014

लोस में हार से सबक सीखने में जुटी कांग्रेस !


फिर से कुलाचे मारने को मचल रही कांग्रेस!
चिंतन-मंथन के बीच पार्टी के भीतर उठे सवालों पर शुरू हुई बहस
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र की सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के कारणों पर मंथन करने में जुटी है। इस चिंतन और मंथन के बाद कांग्रेसमें संगठनात्मक रूप से बड़े पैमाने पर ऐसा फेरबदल होने के आसार है, जिसमें पार्टी को नए कलेवर के साथ मजबूत करके राजनीतिक पटल पर खड़ा किया जा सके। इसी कवायद में कांग्रेस पार्टी कुलाचे मार रही है।
सोलहवीं लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार पर कांग्रेस पार्टी में चल रहे चिंतन-मंथन के बीच ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी के धर्मनिरपेक्षता को लेकर पार्टी की नीतियों का जिम्मेदार ठहराने के बाद शनिवार को कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाने से कांग्रेस में बवाल मचा हुआ है। हालांकि कांग्रेस हाईकमान ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता एके एंटोनी की अध्यक्षता में एक अनौपचारिक समिति गठित करके चुनावी शिकस्त के कारणों को तलाशने का काम शुरू कर दिया है। इस समिति में मुकुल वासनिक, आरसी खूंटिया और अविनाश पांडे जैसे विश्वासपात्र नेताओं को शामिल किया गया है। इस मुहिम में यह समिति अभी तक दिल्ली, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल,ओडिशा आदि कुछ राज्यों की कांग्रेस कमेटियों के साथ बैठकें करके तथ्यों को जुटाया जा चुका है। सूत्रों के अनुसार यह समिति राज्यों की पार्टी ईकाईयों से चुनावों में हुई हार और गड़बड़ियों के अलावा चुनावी रणनीतियों में रही खामियों का पता लगाने के लिए बातचीत कर रही है। कांग्रेस के सूत्रों की माने तो राज्यों की ईकाईयों और वरिष्ठतम नेताओं से लगातार संपर्क करके चुनावी हार के कारणों के तथ्य जुटाने का काम कर रही है, जिसे संसद के बजट सत्र से पहले पूरा कर लिये जाने की उम्मीद जताई गई है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस की चुनावी हार से सबक लेकर पार्टी को नए सिरे से व्यापक फेरबदल के साथ संगठनात्मक रूप से भी मजबूत खड़ा करने की कवायद चल रही है। संगठनात्मक रूप से केंद्रीय, राज्य और जिला स्तर पर संगठनात्मक ढांचे में आमूलचूल बदलाव होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि कांग्रेस हाईकमान संगठनात्मक बदलाव का काम एंटोनी की अध्यक्षता वाली कमेटी की रिपोर्ट के बाद शुरू करेगी। सूत्रों के अनुसार कमेटी उन पहलुओं को भी ध्यान में रखकर चल रही है, जहां कांग्रेसी नेताओं की पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण कांग्रेस की चुनावों में दुर्दशा हुई है।
वरिष्ठ नेताओं पर भी गिरेगी गाज
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने लोकसभा चुनावों में पार्टी के अत्यंत निराशाजनक प्रदर्शन को गंभीरता से लिया है। चुनावी नतीजो के बाद ही सोनिया गांधी ने हार के कारणों का पता लगाने के लिए कमर कस ली थी और पिछले माह ही कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में पार्टी ने सोनिया गांधी को संगठनात्मक बदलाव के लिए अधिकृत कर दिया था, जिसमें उन्होंने केंद्र से लेकर निचले स्तर तक संगठनात्मक बदलाव के संकेत दे दिये थे और एंटनी की अध्यक्षता में समिति का गठन कर दिया था। पार्टी को फिर से नए कलेवर में मजबूती से खड़ा करने की कवायद में पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। पार्टी हाईकमान के तेवरों से जाहिर है कि समिति की रिपोर्ट के बाद वरिष्ठ नेताओं पर भी गाज गिरना तय है।
कई बार दिखा कांग्रेस का छद्म धर्मनिरेपक्ष चेहरा
राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि कांग्रेस के जिम्मेदार और वरिष्ठतम नेता एके एंटोनी ने पार्टी के धर्मनिरपेक्षता पर दिया गया बयान कोई औपचारिक नहीं है, जो हार के कारणों का पता लगाने के लिए पार्टी के लोगों से तथ्य जुटाने में लगे हैं। ऐसे में इस बयान से राजनीतिक में नई बहस छिड़ना स्वाभाविक भी है। राजनीतिकार मानते हैं कि यदि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार पर मंथन किया जाए तो उसके एक कारणों में यह तथ्य भी शुमार करना जरूरी हो जाएगा कि कांग्रेस पर मुस्लिमों के प्रति सहानुभूति की रणनीति का लेबल लगने से अन्य समुदाय में उसका संदेश विपरीत गया है। चुनाव से पहले कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की यह रणनीति एक बार नहीं कई मामलों में सामने आई है, जबकि मुजμफरनगर दंगों के मामले पर ही गौर करें तो दंगे में सभी तबके प्रभावित होते हैं लेकिन पार्टी ने एक ही तबके के आंसू पौंछने पर ज्यादा जोर दिया है। इसके अलावा असम हिंसा, शाहबानो प्रकरण, बटला हाउस एनकाउंटर, सोमनाथ मंदिर का निर्माण या फिर रामजन्म भूमि प्रकरण हो जैसे अनेक मौके सामने आए,जहां कांग्रेस पार्टी की कांग्रेस की छद्म धर्मनिरपेक्षता साफ तौर से नजर आई।
29June-2014

शनिवार, 28 जून 2014

बजट सत्र से पहले नए सांसद पढेंगें संसदीय पाठ!

तीस जून से होगा दो दिन का ओरियंटेशन प्रोग्राम
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
भारतीय संसद में पहली बार निर्वाचित होकर आने वाले सांसदों को संसदीय प्रणाली और उनके नियमों का प्रशिक्षण देने की परंपरा के तहत 16वीं लोकसभा में नए सांसदों को संसदीय पाठ पढ़ाने के लिए दो दिन का ओरियंटेशन प्रोग्राम आयोजित किया जाएगा, ताकि सात जुलाई से शुरू होने वाले बजट सत्र में वे सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने के कायदे-कानूनों और संसदीय प्रणाली का ज्ञान हासिल कर सकें।
संसद के दोनों सदनों में पहली बार निर्वाचित या मनोनीत होकर आने वाले सांसदों के लिए उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था का जिम्मा संभालते आ रहे संसद क ब्यूरो आॅफ पार्लियामेंट्री स्टडीज एवं टेÑनिंग डिपार्टमेंट इस कार्यक्रम को आयोजित करती रही है। सोलहवीं लोकसभा में संसदीय इतिहास में पहली बार 315 यानि 58 प्रतिशत सांसद पहली बार निर्वाचित होकर लोकसभा में दाखिल हुए हैं। लोकसभा सचिवालय के सूत्रों की माने तो संसद के भीतर पिछले कई सत्रों में तार-तार होती रही संसदीय गरिमा के मद्देनजर नए सांसदों को सभी कायदे-कानूनों का ज्ञान कराना जरूरी हो जाता है। लिहाजा 30 जून व एक जुलाई को नए सांसदों को दो दिन के इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में संसदीय पाठ पढ़ाया जाएगा। ऐसे कार्यक्रमों में नए सांसदों को विशेषज्ञों के अलावा लोकसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और वरिष्ठतम सांसदों द्वारा संसदीय परंपराओं और नियम कायदों की जानकारी दी जाती है। इसमें नए सांसदों को प्रभावशाली जनप्रतिनिध बनाने की कवायद होती है तो वहीं सदन के भीतर उनका आचरण कैसा होना चाहिए, संसदीय भाषाओं में एक सांसद का कैसा व्यवहार होना चाहिए जैसी जानकारी तो दी ही जाती है, वहीं सदन में किसी मुद्दे को किस नियम और कैसे उठाया जाना है, प्रश्नकाल, वाद-विवाद में हिस्सा लेने के नियमों की जानकारी भी उन्हें दी जाती है।
संसदीय परिपाटी जानेंगे सदस्य
संसद में नये सदस्यों के लिए ओरिएंटेशन कार्यक्रम एक सतत् प्रक्रिया है जिसमें नये सदस्यों को भारतीय राजनीति में लोकसभा की भूमिका, सदस्यों के योगदान, कर्तव्य और दायित्व के अलावा संसदीय परिपाटी व प्रक्रिया के अलावा शिष्टाचार, आचार संहिता और विशेषाधिकार आदि नियमों की जानकारी देने के अलावा सांसद की भूमिका और भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के लिए योगदान, सदस्य की सुविधाएं और विशेषाधिकार का एक अवलोकन, संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीएलएडीएस), कानून बनाने की प्रक्रिया, समिति प्रणाली, राजनीति में आचार संहिता जैसे विषयों के बारे में भी ज्ञान दिया जाएगा। वहीं नए सदस्यों को यह भी अवगत कराया जाएगा कि प्रश्नकाल, शून्यकाल, चर्चा या वाद-विवाद, विधेयकों, संसदीय समितियों, सांसद निधि और उसके विभिन्न योजनाओं में उपयोग, सदस्यों को दी जाने वाली सुख-सुविधाओं की क्या प्रक्रिया है और सदन में सदस्यों की क्या भूमिका होनी चाहिए।
क्लास में दिखेंगी हस्तियां
हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी पहली बार सांसद बने हैं, लेकिन लोकसभा सचिवालय के सूत्रों का मानना है कि केंद्रीय कैबिनेट के सदस्यों के लिए इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने की कम ही संभावना है, फिर भी यदि कोई मंत्री इस कार्यक्रम में संसदीय प्रणाली की जानकारी लेना चाहेगा तो उनके लिए विकल्प खुला होगा। यह प्रोग्राम विशेषतौर से सांसदों के लिए आयोजित किया जाता है। प्रशिक्षण के लिए चलने वाली इस दो दिन की क्लास में फिल्मी हस्तियां हेमामालिनी, मुनमुन सेन, परेश रावल, बाबुल सुप्रियो, मनोज तिवारी, किरण खेल, अभिनेता से नेता चिराग पासवान, भगवंत मान के अलावा कई हस्तियों के चेहरे नजर आएंगे। इस बार संसदीय इतिहास में युवा सांसदों की तादात ज्यादा दिखेंगी।
26June-2014

उम्मीदों की नजरों से गुजरेगा मोदी सरकार का बजट!

मीठी व कड़वी गोलियों से संतुलन बनाने पर होगा जोर
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र में आई मोदी सरकार के लिए देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना बेहद चुनौतीपूर्ण काम होगा, जिसके लिए अगले महीने संसद सत्र के बजट सत्र में सरकार बजट पेश करते समय मिठी व कड़वी गोलियों का संतुलन बनाने का प्रयास करने का प्रयास करेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरकार का एजेंडा तय करने के बाद जिस तरह से कुछ सख्त फैसलों का सामना करने के संकेत दिये हैं उससे देश की जनता की बजट पर नजरें उम्मीद भरी होंगी।
संसद के सात जुलाई से शुरू होने वाले बजट सत्र पर देश की उम्मीदें अभी से इंतजार की घड़िया गिनने लगी हैं। हालांकि रेलवे के किराए में बढ़ोतरी के बाद सरकार इसी बात के संकेत दे रही है कि देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करना कठिन काम है, लेकिन सरकार अपने एजेंडे को विकास की जंग मानकर चल रही है। आम बजट में स्वयं प्रधानमंत्री नर्रेन्द्र मोदी ने देश के सामने पहले ही स्पष्ट संकेत दिये हैं कि अच्छा करने के लिए जनता को कुछ सख्त फैसलों का भी सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। वहीं दस जुलाई को पेश किये जाने वाले आम बजट के बारे में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को माना है कि उनकी सरकार को विरासत में मिली जर्जर अर्थव्यवस्था को संभालना चुनौतीपूर्ण काम से कम नहीं है। इसलिए सरकार देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए ऐसे उपाय करने का प्रयास कर रही है जो समय की मांग भी है। उन्होंने कहा कि पिछले दो साल में आर्थिक वृद्धि की दर नरम रही है, इसलिए कुछ ऐसे कदम उठाना भी जरूरी होगा जो देश को सख्त फैसले का संदेश दे सकते हैं। जेटली का कहना है कि पिछले दो साल आर्थिक वृद्धि दर 5 प्रतिशत से नीचे रही है और इसी कारण राजस्व संग्रह प्रभावित रहा है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने पिछले तीन-चार हμतों में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज करने और इसमें निवेशकों का भरोसा बहाल करने और संबद्ध पक्षों के साथ बातचीत कर इसे पटरी पर लाने की योजना बनाने का काम कर रही है। देश उच्च मुद्रास्फीति, विशेष तौर पर ऊंची खाद्य मुद्रास्फीति के दबाव और उच्च राजकोषीय घाटे से जूझ रहा है, जिसे दुरस्त करना भी सरकार का काम होगा। ऐसे में जब सरकार संसद में बजट पेश करेगी, तो देश की नजरें उम्मीदों के साथ उस पर लगी रहेंगी। देश उच्च मुद्रास्फीति, विशेष तौर पर ऊंची खाद्य मुद्रास्फीति के दबाव और उच्च राजकोषीय घाटे से जूझ रहा है।
आयकर छूट का दायरा बढ़ना तय
मोदी सरकार के एजेंडे में अच्छे दिनों की आस में आयकर में मिलने वाली छूट का दायरा बढ़ने के संकेत लगातार मिल रहे हैं, जिसमें महिलाओं खासकर नौकरीपेशा महिलाओं को ज्यादा टैक्स का फायदा दिया जा सकता है। वित्तमंत्री अरुण जेटली भी ऐसे संकेत दे रहे हैं। सूत्रों की माने तो दो लाख की आय पर आयकर छूट के दायरे को बढ़ाया जा सकता है, इसमें महिलाओं खासकर नौकरीपेशा करने वाली महिलाओं को आयकर में ज्यादा छूट मिलने की संभावनाएं हैं। मोदी सरकार भी पहले की तरह में पुरुषों की तुलना में ज्यादा महिलाओं को आयकर छूट देने की व्यवस्था बहाल रखने के पक्ष में है। सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार देश के टैक्स स्लैब में ज्यादा राहत देने के लिए बदलाव की योजना बना रही है। मसलन सरकार इसके लिए टैक्स स्लैब्स को नए सिरे से तय कर सकती है। वहीं सरकार वरिष्ठ नागरिकों को आयकर में मिलने वाली छूट में आयुसीमा 65 से घटाकर 60 साल करने का संकेत भी दे रही है। वहीं सरकार डायरेक्ट टैक्स कोड बिल-2013 के कुछ प्रस्तावों पर भी विचार कर रही है।
रेलवे को घाटे से उबारने का प्रयास
मोदी सरकार के आठ जुलाई को पेश होने वाले रेल बजट में देश की रेल को विश्वस्तरीय बनाने की कवायद में कई महत्वपूर्ण फैसलों का ऐलान किया जा सकता है, जिसमें बहुप्रतीक्षित बुलेट ट्रेन चलाने के प्रस्ताव के साथ तेज रμतार वाली गाड़ियां चलाने की घोषणा तय होने के संकेत मोदी सरकार के एजेंडे में हैं। सू़त्रों के अनुसार रेलवे 300 किलोमीटर की रμतार से चलने वाली बुलेट ट्रेनों को खास रूट पर चलाने की शुरूआत करने का ऐलान करेगी, तो वहीं 130 से 150 किलोमीटर की रμतार से चलने वाली ट्रेनों को वर्तमान रेल लाइनों पर चलाने का भी निर्णय किया सकता है। रेलवे के सूत्रों के अनुसार रेल मंत्री डीवी सदानंद गौडा इन प्रस्तावों को मूर्त रूप देने की जुगत में लगे हुए हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा देश में तेज रफतार ट्रेनों का एक चतुर्भुज बनाने की है और यात्रियों को विश्वस्तरीय सुविधाएं देने पर जोर दिया जा रहा है।
एफडीआई की मंजूरी से मिलेगा बल
क्ेंद्र सरकार भारतीय रेलवे को विश्वस्तरीय बनाने की रणनीति पर काम कर रही है, जिसमें मुंबई से अहमदाबाद और पुणे के बीच बुलेट ट्रेन चलाना रेलवे की वरीयता सूची में ऊपर है। यदि इस क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति मिल जाएगी, तो रेलवे की परियोजनाओं को ज्यादा बल मिलेगा और मोदी सरकार की रेलवे को घाटे से उबारने के साथ-साथ विश्वस्तरीय सुविधाओं को मुहैया कराने वाली योजनाओं को भी शुरू किया जा सकेगा।
25June-2014

बुधवार, 18 जून 2014

सियासी तकरार के घेरे में आए राज्यपाल!

राज्यपाल बदलाव की राह में कानूनी भूमिका सीमित
रोड़ा बन सकती है सुप्रीम कोर्ट की दलील
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र में भले ही नई सरकार आते ही कांग्रेसनीत यूपीए सरकार द्वारा नियुक्त करीब तीन दर्जन राज्यपालों पर तलवार लटक गई हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का एक फैसला इन राज्यपालों को हटाने में रोड़ा साबित हो सकता है। हालांकि केंद्र में सत्ता दल पिछली सरकारों में नियुक्त राज्यपालों को हटाने की पंरपरा को यूपीए सरकार का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस ने ही हवा दी थी।
केंद्र में राजग की मोदी सरकार के आते ही वैसे तो यूपीए सरकार के नियुक्त किये गये राज्यपालों पर हटने की तलवार लटक चुकी थी और राजग सरकार के नोटिसों के बाद राज्यपालों के इस्तीफे का दौर भी शुरू हो गया है। वहीं राज्यपालों को हटाए जाने की प्रक्रिया के सियासी पारे को वही चढ़ाने में लगे हैं जिनके शासनकाल में राजनीतिक प्रतिशोध को तरजीह देकर एक-दूसरी सरकार के नियुक्त राज्यपालों को हटाने की परंपरा को हवा दी थी। दरअसल जब यूपीए सरकार ने केंद्र की सत्ता संभालते ही वर्ष 2004 में राजग की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा नियुक्त किये गये राज्यपालों विष्णुकांत शास्त्री,कैलाशपति मिश्र, बाबू परमानंद और केदारनाथ साहनी को हटाया था। यूपीए सरकार की इस कार्यवाही के कारण राजग व यूपीए के बीच तकरार हुआ और राज्यपालों को हटाने की मुहिम को भाजपा नेता बीपी सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आया। इस मामले के कोर्ट में जाने के बाद यूपीए सरकार ने राज्यपालों को हटाने का पूरा बचाव किया था और तर्क दिया था कि राष्ट्रपति अपनी सिफारिश वापस लेने के कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है। इसके बावजूद मई 2010 के महीने में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की ओर से एक फैसला आया, जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल को हटाने के लिए केंद्र सरकार के पास पर्याप्त कारण होने चाहिए। यह फैसला सुनाते हुए शीर्ष अदालत एक न्यायिक सावधानी की व्यवस्था दी कि वह महज उस आधार पर हस्तक्षेप नहीं करेगा कि उसे हटाने के आदेश की कुछ और भी वजहें हैं या हटाने के कारण पर्याप्त नहीं है। ऐसे में हटाए गए राज्यपालों के लिए न्यायिक समीक्षा का रास्ता आसान नहीं रह जाता।
संविधानविदों की राय
पूर्व अटार्नी जरनल सोली सोराबजी की माने तो राज्यपालों को हटाने के मामले में अदालत की भूमिका बेहद सीमित है। अदालत तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब हटाए गये राज्यपाल यह साबित करेगा कि उसे दुर्भावनावश हटाया गया है। उनका कहना है कि किसी मुद्दे पर हरेक पक्ष का अलग-अगल दृष्टिकोण हो सकता है। इस दृष्टिकोण को देखने के लिए अदालत के पास कोई मापक नहीं हो सकता। वहीं सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील रहे अधिवक्ता हर्षवीर प्रताप शर्मा का कहना है कि कोर्ट ने राज्यपालों को हटाने के आदेश को न्यायिक समीक्षा के योग्य माना है, लेकिन राज्यपाल की नियुक्ति पूरी तरह  से राजनैतिक है, इसलिए उनके हटाए जाने की स्थिति में कोर्ट की भूमिका वाकई बहुत सीमित हो जाती है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 156.1 में राज्यपाल को हटाने की कोई प्रक्रिया नहीं दी गई है। इस फैसले में केवल सिफारिश वापस लेने का उल्लेख किया गया है। इसलिए राज्यपालों को हटाने के मामले में किसी भी केंद्र सरकार के सामने कोई अड़चन नहीं होनी चाहिए।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
मोदी सरकार के राज्यपालों को हटाने के कदम की आलोचना करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलामनबी आजाद ने इस फैसले को राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया और कहा कि इस तानाशाही कदम के गंभीर परिणाम होंगे। आजाद ने सरकार को उच्चतम न्यायालय के मई 2010 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि केन्द्र सरकार को सत्ता बदलने के साथ मनमाने ढंग से राज्यपालों को हटाने की हिदायत नहीं है। उन्होंने कहा कि राजग सरकार अपने चुनावी वादों को पूरा करने के बजाय राजनीतिक प्रतिशोध में रमकर देश का ध्यान बंटाने का प्रयास कर रही है। आजाद ने इस तरह के कदम को लोकतांत्रिक परंपराओं और संवैधानिक औचित्य के खिलाफ करार दिया है। उधर सपा के राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल ने राज्यपालों को हटाने के बारे में आरोप लगाया कि केंद्र राज्यों में आरएसएस और भाजपा नेताओं को राज्यपाल बनाकर देश का भगवाकरण करने का प्रयास कर रही है, जो लोकतंत्र के लिए घातक है। जबकि भाजपा नेता सुशील मोदी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले और पूर्व के उदाहरणों के मद्देनजर राजग सरकार को वरीयता के आधार पर राज्यपालों के इस्तीफे लेने चाहिए।
18June-2014

सरकार के कड़े फैसलों से सुधरेगी आर्थिक सेहत!

बजट सत्र पर रहेगी देश की नजर, सरकार के सामने कड़ी चुनौती
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश की आर्थिक सेहत को सुधारने की दिशा में मोदी सरकार ने गरीबी दूर करने और महंगाई रोकने की प्राथमिकता के साथ जिस एजेंडे को लागू करने की मंशा जताई है उसमें उनके गोवा में कुछ कड़े फैसले लेने के संकेत देना एक सच्चाई है। अगले माह संसद के बजट सत्र में सरकार का फैसला कर,सब्सिडी, डीजल, रसोई गैस और खाद्य उत्पादन जैसी कल्याण कारी योजनाओं को लेकर कड़े फैसले आ सकते हैं। विशेषज्ञ भी मान चुके हैं कि देश की आर्थिक सेहत को सुधारने के लिए सरकार को कड़े फैसले लेने भी जरूरी हो जाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को आईएनएस विक्रमादित्य समर्पित करने के बाद गोवा में आर्थिक व्यवस्था सुधारने के लिए जिस प्रकार के संकेत दिये हैं उनके बिना आर्थिक व्यवस्था पटरी पर लाना भी संभव नहीं है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि पिछली सरकार उनके लिए खाली खजाने के साथ जैसी स्थिति छोड़कर गई है उसके लिए देश की आर्थिक स्थिति के बुरे हाल को दुरस्त करने के लिए समय भी लगेगा और देशहित में जनता को कड़े फैसलों का भी सामना करना पड़ सकता है। सूत्रों के अनुसार अगले माह संसद के बजट सत्र पर पूरे देश की नजरें होंगी और सरकार के सामने भी मुश्किलों का पहाड़ होगा। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि सरकार बजट में आयकर की सीमा को दो लाख से बढ़ाकर आयकर दाताओं को राहत दे सकती है और कुछ नए कर लगाने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। इसमें सरकार सेवाकर के दायर में भी बढ़ोतरी करने का कदम उठा सकती है। वहीं बजट में तेल, खाद्य और खाद को दी जा रही करीब तीन लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी में फिलहाल 15 से 20 फीसदी तक कटौती करने का ऐलान भी हो सकता है। रसोई गैस में सालाना दी जाने वाले करीब 45 हजार करोड़ रुपये की सब्सिडी घटाना भी सरकार की मजबूरी बन सकती है। पेट्रोलियम उत्पादों में इराक के हाल के संकट का साया भी बजट पर पड़ना तय माना जा रहा है। इसके लिए तेल कंपनियों को दाम तय करने की छूट में संशोधन किया जा सकता है। जबकि खाद्य सुरक्षा कानून, मनरेगा और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के खर्च का आकलन करके भी कुछ संशोधन किये जाने की
संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
मोदी को करना पड़ेगा सूखे की चुनौती का सामना
आर्थिक विशेषज्ञों की माने तो मौजूदा कमजोर मानसून भी केंद्र सरकार आर्थिक सेहत सुधारने के प्रयास में बाधक बन सकता है और सरकार को कड़े फैसले लिए बिना आर्थिक नीतियों पर आगे बढ़ना होगा, जो सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही देश अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का महात्वाकांक्षी योजनाओं का खाका तैयार करा लिया हो, लेकिन कमजोर मानसून के कारण प्रभावित होने वाले उत्पादनों के कारण महंगाई पर काबू करना बड़ी चुनौती होगी। ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार खाद्य वितरण को दुरुस्त करने के साथ कुछ वस्तुओं के निर्यात पर भी रोक लगाना भी जरूरी होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक मार्च के मुकाबले में उद्योगों के उत्पादन में विकास दर 2.9 फीसदी बढ़कर 3.4 होना सरकार की कुछ चिंताओं को दूर करता है। ऐसे हालात में मोदी सरकार के लिए देश की आर्थिक सेहत को सुधारने की कवायद किसी मुश्किल से कम नहीं होगा।
16June-2014

रविवार, 15 जून 2014

संसद में क्षेत्रीय भाषाओं के रूपांतर की कवायद!


सरकार की प्राथमिकता में हैं भारतीय भाषाओं को सुदृढ़ करना
सपा प्रमुख ने सदन में की अनुवाद करने की वकालत
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार की भारतीय भाषाओं को सुदृढ़ करने का वादा किया है, तो सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया और संसद में भारतीय भाषाओं के अनुवाद की व्यवस्था कराने की भी मांग की थी। शायद इसी का प्रभाव है कि लोकसभा सचिवालय ने लोकसभा में क्षेत्रीय भाषाओं के रूपांतरण की प्रक्रिया को अंजाम देना शुरू कर दिया है।
लोकसभा सचिवालय ने सोलहवीं लोकसभा के पहले संसद सत्र के संपन्न होने के महज तीन दिन बाद ही सरकार की मंशा को भांप लिया है और नौ द्विभाषियों यानि भाषांतरों की भर्ती करने के लिए आवेदन जारी कर दिया है। लोकसभा सचिवालय के भर्ती प्रकोष्ठ से मिली जानकारी के मुताबिक अंग्रेजी,हिंदी, बोडो, डोगरी, गुजराती, कश्मीरी, कोनकानी, संथाली व सिन्धि भाषाओं के रूपांतर के लिए रिक्तियों को भरने का काम शुरू कर दिया है और इसी माह तीस जून तक आवेदन आमंत्रित भी कर लिये हैं। केंद्र की सत्ता में आई राजग सरकार में ज्यादातर हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं और मोदी सरकार ने अपने पांच साल के एजेंडे में भी इस बात को शामिल किया है कि उनकी सरकार भारतीय भाषाओं को सुदृढ़ करने का काम करेगी। यह बात राष्टÑपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा के दौरान संसद के दोनों सदनों में कुछ दलों के सदस्यों ने भी उठाई थी। संसद सत्र के अंतिम दिन भारतीय भाषाओं के मामले पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कुछ जोरदार तरीके से ही उठाया था। उन्होंने कहा था कि हम चाहते हैं कि देशभर में ही नहीं संसद के सदनों में भी विदेशी भाषाओं की जगह भारतीय भाषाएं चलनी चाहिए, चाहे तमिल, तेलगू, कन्नड या फिर बंगला ही क्यों न हो ऐसी भाषाओं के आम बोलचाल में आने से ही भारतीय भाषाओं के अस्तित्व को बचाया जा सकता है। अपनी पार्टी में देसी भाषा को ही बढ़ावा देने का दावा करते हुए मुलायम सिंह ने कहा था कि हम भारतीय हैं तो देसी भाषा ही बोली जानी चाहिए।
भाषांतर का सुझाव
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ही एक ऐसे सांसद थे, जिन्होंने राष्टÑपति अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भाषा के मामले को प्रमुखता से उठाया था। उन्होंने हिंदी भाषा का ही प्रयोग करने वाली लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की ओर इशारा करके इस मांग को भी पुरजोर के साथ उठाया कि सदन में भारतीय भाषाओं के अनुवाद की व्यवस्था की जाए, जो एक भारतीय संसद में ऐतिहासिक कदम साबित होगा। उनका तर्क था कि अपनी भाषा में अभिव्यक्ैित का प्रभाव अलग ही होता है, लेकिन उसे दूसरा भी अपनी भाषा में सुन सके इसके लिए एक-दूसरी भाषा का अनुवाद की व्यवस्था सदन में होना जरूरी है। उन्होंने तो यहां तक कहा कि व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो देश के कोने-कोने में गांव देहात में बैठे लोग भी संसद में भारतीय भाषाओं में सुन सके।
मौजूदा व्यवस्था
संसद के दोनों सदनों में अभी तक भाषांतर की जो व्यवस्था है उसमें यदि कोई सांसद अपनी क्षेत्रीय भाषा में बोलता है तो उसका भाषांतर केवल हिंदी व अंग्रेजी में ही होता है या फिर जिस भाषा में सांसद बोल रहा है वहीं सुनाई दे सकता है। यदि सभी क्षेत्रीय भाषाओं के लिए अनुवाद की व्यवस्था हो जाएगी तो उसके बाद भले ही सदन में कोई सांसद किसी भी भाषा में बोल रहा हो, तो सदन में बैठे अन्य सांसद या कोई भी व्यक्ति उसे अपनी भाषा में सुन सकेगा। भारतीय भाषाओं को मजबूत करने की दिशा में शायद लोकसभा सचिवालय ने गंभीरता से अंजाम देने की शुरूआत की है, जिसमें फिलहाल नौ भाषांतरों की निुयक्ति करने के कदम उठाए हैं।

15June-2014

राग दरबार- असरदार मोदी सरकार

राग दरबार
संसद में अपने पहले ही भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐसे छाए कि पूरा देश मानकर चल रहा है कि पिछली सरकारों के मुकाबले मोदी की सरकार में दम लगता है, जिन्होंने हर काम को जनांदोलन बनाने का संकल्प लेकर देश की व्यवस्था को बदलने की बात कही है। यानि केंद्र की पिछली सरकार से तुलना में नरेंद्र मोदी की सरकार सक्रिय नजर आ रही है। घरेलू और विदेश दोनों मोर्चो पर सरकार तेजी से कदम बढ़ाती दिखायी दे रही है। अन्ना आंदोलन, रामदेव आंदोलन, दामिनी कांड जैसे मौकों पर दंभपूर्ण बयानों के अलावा पिछली सरकार के मंत्री कुछ भी करते नजर नहीं आ रहे थे। इसी वजह से यूपीए सरकार का इकबाल ही खत्म हो गया था, इसके कारण जनता ने सरकार ही नहीं बदल डाली, बल्कि मोदी सरकार में कार्यसंस्कृति भी बदलती नजर आ रही है। कुछ सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि जिस प्रकार मोदी सरकार ने नर्मदा पर सरदार सरोवर डैम की ऊंचाई बढ़ाने का आनन-फानन में त्वरित निर्णय क्षमता की बानगी दी है। उससे लगता है मोदी सरकार और उसके मंत्री भी हरकत में असरदार नजर आ रहे हैं। राजनीतिक मोर्चे पर भी पीएम मोदी ने टीम इंडिया की भावना से काम करने का इरादा जताकर अपनी तरफ से टकराव की जगह संवाद की राह पर चलने का संदेश दिया है।
मोदी के मुरीद
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सुझावों व संदेशों का असर किसी पर हो न हो, पर पहली बार संसद की दहलीज पार करने वाले भाजपाई सांसद तो उनके मुरीद हो गए हैं। अब तक कहां वह मोदी जी को टीवी या फिर चुनावी मंच पर ही देखते रहे और अब उनके साथ संसद में बैठने को मिल रहा। सत्र के दौरान कई सांसद तो केवल यह देखने और पता करने में दिलचस्पी लेते दिखे कि मोदी जी जो कुर्ता पहनते हैं वह किस कपड़े का है। मतलब कि खादी, रेशम,सूती अथवा लिनेन। मोदी जी के चूड़ीदार पायजामे की तरह दिल्ली में पायजामा कहां मिल सकता है। पूर्वांचल के एक सांसद महोदय ने तो एक पत्रकार मित्र के साथ जाकर मोदी जी के बारे में लिखी हर वह किताब खरीदी जो हिंदी में उपलब्ध मिली। इतना ही नही उनकी रूचि इस बात में थी कि कामकाज में लगातार जुटे रहने के बावजूद मोदी जी का चेहरा खिला खिला कैसे दिखता है।
हंस की चाल की फांस
यह पुरानी कहावत ‘हंस की चाल चला कौवा, अपनी चाल भी भूल गया’ हाल ही में संपन्न हुए नई सरकार के पहले संसद सत्र में उस समय चरितार्थ हुई, जब एक सांसद ने लोकसभा में शपथ लेते हुए सदन की वाह-वाह लूटनी चाही, लेकिन वे उलझते नजर आए। हुआयूं कि सोलहवीं लोकसभा के लिए नवनिर्वाचित सांसदों की शपथ लेने का सिलसिला शुरू हुआ तो दिल्ली के एक सांसद ने जब बगैर पढ़े धारा प्रवाह हिन्दी में कंठस्थ शपथ लेते देखा और वाह-वाही लूटी, तो उसी पार्टी के एक सांसद ने उससे ज्यादा लोकप्रियता हासिल करने की गरज से उस दिन के बजाए अगले दिन शपथ लेने का मन बनाया। मसलन सदन में लोकप्रियता हासिल करने में जैसे उन्होंने उस रात संस्कृत में शपथ लेने वाले प्रपत्र का खूब अध्ययन किया होगा और अगले दिन जब माननीय बिना प्रपत्र लिये संस्कृत में शपथ लेने लगे तो बीच में ही अटक गये और आखिर उन्हें संस्कृत भाषा का मुद्रित पृष्ठ लेकर ही शपथ लेना पड़ा। इस पर उनके सदन की वाह-वाही लूटने के बजाए साथी सदस्यों की चुटकियों का सामना करना पड़ा। एक सांसद ने तो उनसे यहां तक कहा कि अब आप कौन सी पार्टी में हैं। राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि संस्कृत में ही शपथ लेना चाहते तो वह उस दिन भी ले सकते थे, लेकिन उन पर तो कठंस्थ संस्कृत में शपथ लेने का भूत चढ़ा था और वह भी मजाक साबित हुआ।
लद गये धर्मनिरपेक्षता के दिन
केंद्र में भाजपानीत राजग सरकार को सत्ता सौंपने के लिए जनता द्वारा ठुकराए गए धर्मनिरपेक्षता का चोला पहले नेता इन दिनों अब कुछ इस तरह छाती पीट रहे हैं कि मानो मोदी सरकार मुसलिम पर्सनल लॉ खत्म करने वाली है। कामन सिविल कोड की मांग भाजपा या मोदी सरकार के किसी मंत्री ने नहीं, बल्कि पीसीआई प्रमुख जस्टिस काटजू ने की है। काटजू की राजनीतिक प्रतिबंद्धता किसी से छिपी नहीं है। कश्मीर में धारा 370 पर मोदी सरकार के राज्यमंत्री ने बयान दिया, तो उन्हें सरकार या भाजपा संगठन से कोई समर्थन तक नहीं मिला। ऐसे में जाहिर है कि नरेंद्र मोदी की सरकार विवादित मुद्दों को परे रखकर विकास और सुशासन के मुद्दे पर आगे बढ़ने की मंशा से शासन करने का प्रयास कर रही है। हालांकि कुछ कांग्रेसी नेता ऐसे कटाक्ष करने से भी नहीं चूक रहे हैं कि भाजपा की अब पूर्ण बहुमत की सरकार है तो उसे अयोध्या में राममंदिर बनवा देना चाहिए। ऐसे में सवाल है कि क्या ऐसा बयान देने वाले नेताओं में अपनी कांग्रेस पार्टी से इस आशय का प्रस्ताव पास करवाने की हिम्मत रखते हैं, यदि नहीं तो फिर मोदी सरकार को क्यों उकसाकर धर्मनिरपेक्षता का दामन क्यों थामे हुए जबकि इस देश में सेक्युलर बनाम कम्युनल का खेल को देश की जनता खारिज कर चुकी है।
अय्यर की समझ
लोकसभा चुनाव और उससे पहले कुछ राजनीतिक नेताओं की बदजुबानी की आदत जनता के दिये सबक से भी शायद बदली नहीं है, तभी तो केंद्र में आई मोदी की नई सरकार के संकल्प और इरादों पर कटाक्ष करने में कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री मणिशंकर अय्यर पीछे नहीं रहे। अभी तो नई सरकार की शुरूआत है जिसके इरादों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलकर कांग्रेस नेता ने ऐसी बचकानी हरकत को अंजाम दिया कि मोदी को नया लड़का कहकर कहा जोझ में वह कुछ भी बोल जाता है अभी उसे समझ नहीं है। राजनीति में अय्यर के बड़बोलेपन से सभी वाकिफ है और इसी की चर्चा कर रहे हैं कि अय्यर को अभी सरकार के काम को देखने के लिए कम से कम सब्र तो करना चाहिए।
--नेशनल ब्यूरो

शनिवार, 14 जून 2014

उत्तर प्रदेश विभाजन की ओर बढ़े मोदी सरकार के कदम!

राज्य के बड़े आकार को बेहतर शासन में रोड़ा मान रहा है केंद्र
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था से चिंतित केंद्र सरकार ने सूबे के विभाजन के लिए अपने कदम आगे बढ़ाने शुरू कर दिये हैं? मोदी सरकार मानती है कि यूपी में बिगड़ती कानून व्यवस्था राज्य का बड़ा आकार होना भी एक बड़ा कारण है। इससे पहले बसपा के शासनकाल में मायावती सरकार ने राज्य विभाजन की कवायद की थी, लेकिन सरकार के प्रस्ताव को केंद्र की यूपीए सरकार ने वापस कर दिया था।
केंद्र में आई नई राजग सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा पहले से ही छोटे राज्यों की पक्षधर है और अब जब यूपी में पिछले एक सप्ताह के भीतर तीन भाजपा नेताओं की हत्या और महिलाओं के साथ गैंग रेप की घटनाएं बढ़ी हैं तो यूपी की 80 में से 73 सीट जीतकर आई भाजपा की चिंता स्वाभाविक है। करीब 20 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले उत्तर प्रदेश के बंटवारे की मांग अरसे से चली आ रही है। छोटे राज्यों के पक्षधरों का भी मानना है कि इससे राज्य के विकास में तेजी आएगी और हर हिस्से को उसका वाजिब हक मिल पाएगा। उत्तर प्रदेश में फिलहाल देश में सबसे ज्यादा यानी 75 जिले और 18 मंडल हैं। सूत्रों के अनुसार चूंकि गृह मंत्रालय स्वयं यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके राजनाथ सिंह के पास है तो उन्होंने राज्य में बिगड़ती जा रही कानून व्यवस्था की समीक्षा कराई है, जिसमें राज्य का बड़ा आकार होना शासन की बेहतर व्यवस्था न होना माना जा रहा है। गृह मंत्रालय भी मान रहा है कि राज्य का विभाजन किया जाना चाहिए। गृह मंत्रालय के सूत्र भी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि मंत्रालय में यूपी विभाजन के प्रस्ताव पर गंभीरता के साथ विचार किया जा रहा है और स्वयं गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी एक दिन पहले उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक एल. बनर्जी और राज्य के मुख्य गृह सचिव दीपक सिंघल के साथ राज्य की कानून और व्यवस्था की स्थिति पर चर्चा कर चुके हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी कानून व्यवस्था को लेकर प्रधानमंत्री से मुलाकात तक की है। केंद्र में नई सरकार आने के बाद उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था के साथ बिजली की किल्लत को भी राजनीतिक विशेषज्ञ सपा की चुनावों में हुई हार की परिणिति करार दे रहे है। मसलन सूबे की समाजवादी पार्टी सरकार के चरित्र पर चौतरफा उंगलियां उठ रही हैं। ऐसे में हालांकि केंद्र सरकार राज्य में कानून व्यवस्था को लेकर तभी हस्तक्षेप करने पर विचार कर सकती है जब स्थिति बद से बदतर न हो जाए।
माया सरकार ने किया था प्रस्ताव
यदि उत्तर प्रदेश के विभाजन पर केंद्र सरकार गंभीरता से विचार करती है तो इससे वर्ष 2011 में राज्य में बसपा सरकार के प्रस्ताव को बल मिल सकता है,जब 21 नवंबर 2011 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 15वीं विधानसभा का आखिरी सत्र में राज्य विभाजन का प्रस्ताव पारित कराया था, जिसमें यूपी का पूर्वांचल, बुंदेलखंड पश्चिम प्रदेश व अवध प्रदेश के रूप में चार राज्य बनाने का प्रस्ताव था। इस प्रस्ताव को जब केंद्र की यूपीए सरकार को भेजा गया तो 20 दिसंबर 2011 को केंद्र सरकार ने उसे खारिज कर वापस कर दिया था। गृह मंत्रालय ने राज्य बंटवारे के सुझाव का आधार पूछते हुए सवालों की एक सूची भी मायावती को भेजी थी। केंद्र ने माया के इस प्रस्ताव को वापस करते समय जो सवाल किये थे उनमें राज्य सरकार से पूछा गया था कि बंटवारे के सुझाव का आधार क्या है? प्रस्तावित राज्यों की सीमाएं क्या होंगी? किन शहरों को राजधानी बनाया जाएगा? उत्तर प्रदेश में तैनात आईएएस अफसरों का बंटवारा कैसे होगा? मौजूदा प्रशासनिक इकाइयों को नए राज्यों के बीच कैसे बांटा जाएगा? उत्तर प्रदेश पर जो कर्ज है, उसका क्या होगा? क्या इस बात का अध्ययन किया गया कि बंटवारा आर्थिक रूप से कितना व्यावहारिक होगा? ऐसे सवालों के साथ इस प्रस्ताव को केंद्र ने ठुकरा दिया था। ऐसे में सवाल है कि क्या मोदी सरकार यदि विभाजन के प्रस्ताव पर विचार करेगी तो उसके क्या-क्या कदम होंगे।
14June-2014

गुरुवार, 12 जून 2014

कोई गरीब भूखा ना सोए-महंगाई रोकना व गरीबी हटाना सरकार की प्राथमिकता : मोदी

उम्मीदों के दूत बनकर दुनिया को दिखाएंगे ताकत: मोदी
ओ.पी.पाल
. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीबों की सुने-गरीबों के लिए जीने का मंत्र देते हुए कहा कि सरकार की प्राथमिकताएं गरीबों को सशक्त बनाने की होगी। उन्होंन सभी दलों के सदस्यों से उम्मीदों का दूत बनकर देश के कौशल से सभी तरह की व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए सहयोग की अपील की, ताकि हम सीना तानकर दुनिया को भारत की ताकत का अहसास करा सकें। उन्होंने उच्च सदन में भी इसी तरह के संकल्प को दोहराया।
लोकसभा में सोमवार को राष्ट्रपति अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि राष्ट्रपति के मुख से निकले शब्दों केंद्र सरकार के लिये पवित्र बंधन हैं जिन्हें पूरा करने के लिए उनकी सरकार कोई कोताही नहीं बरतेगी। उन्होंने कहा कि मतदान होने तक हम सब उम्मीदवार थे, लेकिन सदन में आने के बाद हम सब उम्मीदों के रखवाले हो गये हैं और उम्मीदों के दूत बनकर सभी को देश की व्यवस्था बदलनी होगी। सदन में अपने पहले भाषण में नरेन्द्र मोदी ने देश से गरीबी हटाने और महंगाई मिटाने को सरकार की पहली प्राथमिकता बताते हुए कहा कि यदि सरकार गरीबों के हित में काम नहीं करती तो देश की जनता उसे कभी माफ नहीं करेगी। उन्होंने अपनी सरकार की पांच साल की प्राथमिकताओं का जिक्र करते हुए कहा कि इस सदन में विभिन्न दलों के अनुभवी सदस्य हैं और परियोजनाओं में आने वाली कठिनाईयों व चुनौतियों से निपटने के लिए उन सबका सहयोग लिये बिना आगे नहीं बढ़ेगी। उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय के सिद्धांत पर अंत्योदय का कल्याण अपनी पहली प्राथमिकता बताया। मोदी ने इन सबके लिए सभी दलों के सहयोग की अपेक्षा की। सदन में राष्ट्रपति अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सदन में विभिन्न दलों द्वारा सरकार के एजेंडे पर उठाए गये सवालों और आलोचनाओं का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऐसी शालीनता से जवाब दिया कि पूरा सदन खामोशी के साथ उनके भाषण को सुनता रहा, जिसमें मोदी ने विपक्षी दलों को कई घटनाओं को लेकर नसीहत तक भी दी। उन्होंने साफ किया चर्चा के दौरान अभिभाषण में दिखाये गये सपनों को पूरा करने पर सदस्यों की चिंताएं स्वाभाविक हैं, क्योंकि अभी तक ऐसा कभी हो नहीं सका है, लेकिन दुनिया में इस सवा करोड़ के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में प्रयास किए जाएं तो कुछ भी असंभव नहीं है। इसके लिए हम सभी को मिलकर काम करना होगा। उन्होंने साफ संकेत दिया कि भारत की ताकत को दुनिया के सामने रखना है और हमें आंख में आंख डालकर और सीना तान कर दुनिया के लोगों को भारत की ताकत का अहसास करना ही होगा।
ऐसे होंगे सपने पूरे
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सदन को विश्वास दिलाया कि उनकी आशंकाओं को दूर करके जनता द्वारा तीन दशक बाद दिये गये जनादेश पर वे खरा उतरने का प्रयास करेंगे और इसके लिए सदन में सभी को आपसी समन्वय बनाकर संसद की मर्यादाओं को भी कायम रखने की जरूरत होगी। उन्होंने नारियों के सम्मान को बरकरार रखने के लिए राजनेताओं को नसीहत दी कि वे बलात्कार के प्रति रवैये में बदलाव लाए और ऐसी घटनाओं का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने की आदत को बदले। क्योंकि ऐसे विश्लेषण महिलाओं की मर्यादा के साथ खिलवाड़ करते हैं। उन्होंने कहा कि नारी का सम्मान और सुरक्षा देश के सवा करोड़ लोगों की प्राथमिकता होनी चाहिए। रेलवे की दुर्दशा की चुटकी लेते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि रेलवे की आदत यह है कि वह लकीर की फकीर है। यदि टमाटर और मार्बल भेजना हो तो वह मार्बल पहले भेजती है। उन्होंने कहा कि देश में ऐसा महौल बनना चाहिए कि हर इंसान अपने काम को देश के लिए करने की सोच पैदा करें, चाहे वह अफसर हो या कोई दास्तकार या किसान या फिर नौजवान।
गांधी की 150वीं जयंती बने मिसाल
नरेन्द्र मोदी ने कहा कि देश के विकास के मिशन को एक जनांदोलन बनाकर हमें पांच साल बाद महात्मा गांधी की 150वीं जयंती स्वच्छता के रूप में मनाने का निर्णय लिया है, जिसके लिए देश की व्यवस्था को स्वच्छ बनाना होगा और हम इस संकल्प को पूरा कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि हम देश के लिए शहीद तो नहीं हो सके, लेकिन देश के लिए जी तो सकते हैं ऐसा सकंल्प होना चाहिए।
स्किल्ड इंडिया बने भारत
नरेन्द्र मोदी ने कहा कि अभी तक हमारी पहचान स्कैम इंडिया की बनी हुई है, लेकिन हमें अब इसे स्किल इंडिया में बदलना होगा। इसके लिए हमें विकास को उसी तरह से जन आंदोलन बनाने की जरूरत है, जैसे महात्मा गांधी ने आजादी को जन आंदोलन बनाकर देश को स्वतंत्रत कराने में बहुत बड़ा काम किया था। देश के किसी भी कोने में किसी विचारधारा की सरकार क्यों न हो, उसकी अच्छाइयों का आदर करें, यही देश का मॉडल होना चाहिए। उन्होंने गुजरात मॉडल पर हुई आलोचनाओं पर कहा कि हम चाहते हैं कि मॉडल देश के राज्यों की स्पर्धा बने, तभी देश का विकास एक आंदोलन बन जाएगा।
गरीबी हटाने का हथियार शिक्षा
प्रधानमंत्री ने गरीब को गरीबी से बाहर लाने की प्राथमिकता को दोहराते हुए एक प्रकार से चेतावनी दी कि यदि हम सरकार गरीबों के लिए नहीं चलाते हैं,तो ये देश की जनता हमें कभी माफ नहीं करेगी। सरकार गरीबों के लिए होनी चाहिए। क्या सरकार सिर्फ पढ़े-लिखे लोगों के लिए हो। क्या सरकार सिर्फ गिने-चुने लोगों के लिए हो। उन्होंने कहा कि गांवों में सेटेलाइट के माध्यम से शिक्षा देनी होगी। सरकार का प्रयास होगा कि हर गरीब को रोटी मिले और हर परिवार का अपना घर हो, ताकि 75वें साल में भारत शान से कह सके कि यहां कोई गरीब नहीं है। मोदी ने कहा कि सरकार का दायित्व होता है कि वह गरीबों की सुने और गरीबों के लिए जिए। महंगाई को दूर करने का हमने वायदा किया है। हम इस दिशा में प्रामाणिकता से प्रयास करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
भारत जवान-चीन बूढ़ा
मोदी ने अपने भाषण में कहा कि देश की 65 प्रतिशत आबादी 35 साल आयु वर्ग की है यानि भारत जवान है और हमारा पडोसी चीन लगातार बूढ़ा होता जा रहा है। यह शुभ संकेत है कि विश्व को मैन पावर की आवश्यकता है तो ऐसे में भारत के नौजवानों के हाथों में हुनर होना जरूरी है। वहीं हमें स्कील्ड डवलेपमेंट को प्राथमिता देनी होगी। इसलिए यह भी जरूरी हो जाता है कि दुनिया को अपनी नौजवान शक्ति से परिचय कराना होगा। उन्होंने एक महापुरूष का उदाहरण देते हुए कहा कि जिंदगी का गुजारा करने के लिए हाथों में हुनर भी होना चाहिए।
सॉयल हेल्थ कार्ड
मोदी ने कहा कि हम सदियों से कहते हैं कि हमारा देश कृषि प्रधान और गांवों का देश हैं। यह नारे तो अच्छे लगते हैं, लेकिन क्या हम अपने गांवों के जीवन को बदल पाए हैं? जहां आज परिवार बढ़ने के कारण खेती की जमीन घट रही है और जमीन की उर्वरक शक्ति भी कमजोर हो रही है। ऐसे में गुजरात में किये गये प्रयोका पूरे देश में लागू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड दिये जाएंगे और मिट्टी की जांच के लिए प्रयोगशालाएं खोली जाएग। साथ ही कृषि वैज्ञानिकों को रिसर्च के लिए जागरूक किया जाएगा, ताकि कम जमीन में उत्पादन ज्यादा हो सके। उनका कहना है कि शहर की ओर हो रहे पलायन को रोकने के लिए यदि गांव के जीवन में हम बदलाव ला सकें, तो किसी का अपना गांव छोड़ने का मन नहीं करेगा। क्या गांव के अंदर हम उद्योगों का जाल खड़ा नहीं कर सकते?
सामूहिक बल पर जोर
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि देश के विकास की परियोजनाओं पर हमें संख्या बल को नजर अंदाज करके सामूहिक बल पर चलना होगा। इस सामूहिक बल से ही अहंकार से भी बचा जा सकेगा और बचना भी चाहिए। सभी का विजन देश होना जरूरी है। देश के विकास के लिए हर योजना पर सभी दलों के सहयोग की अपील करते हुए उन्होंने कहा कि वे संख्या बल पर ध्यान देने के बजाए देश के विकास पर ज्यादा ध्यान दें।
जानते थे पर नीयत नहीं थी
प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति अभिभाषण में रेखांकित सरकार के वायदे पर की गई टिप्पणियों कि वह पिछले भाषणों की प्रति है और उसे तोड़ मरोड़कर तैयार किया गया है। उन्होंने चर्चा के दौरान ऐसी टिप्पणियां करने वाले सदस्यों की चुटकी लेते हुए कहा कि इसका मतलब साफ है कि उन्हें भी पहले से पता था कि देश के विकास में क्या हो सकता है लेकिन उनके करने की नीयत नहीं थी।
12June-2014

बुधवार, 11 जून 2014

नई सरकार के साथ बदला राज्यसभा का नजारा


ओ.पी.पाल. नई दिल्ली।
सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार ने जहां लोकसभा की सूरत बदल दी है, वहीं उच्च सदन का भी नजारा बदला हुआ नजर आया। मसलन जहां चुनाव से पूर्व कांग्रेस बैठती थी, वहां अब भाजपा के सदस्य और विपक्ष वाली सीटों पर कांग्रेस के सदस्य बैठे नजर आए।
लोकसभा चुनाव के बाद राज्यसभा की पहली बैठक सोमवार को राष्ट्रपति अभिभाषण के बाद शुरू हुई, तो उच्च सदन का नजारा एकदम बदला हुआ था। चुनाव से पहले विपक्षी खेमे वाली सीटों पर जहां प्रतिपक्ष नेता अरुण जेटली बैठते थे, वहां कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलामनबी आजाद प्रतिपक्ष नेता के रूप में बैठे दिखे। सदन में कभी भाजपा के उपनेता रविशंकर के स्थान पर कांग्रेस के डा. कर्णसिंह, एम. वैंकया नायडू के स्थान पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन बैठे नजर आए, जबकि नजमा हेपतुल्ला के स्थान पर एके एंटोनी बैठे थे। जबकि सत्ताधारी भाजपा के वित्तमंत्री अरुण जेटली जो सदन के नेता भी बन गये हैं वो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के स्थान पर बैठे हुए नजर आए। उनके बगल वाली सीट पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बैठे हुए थे। अन्य दलों की सीटों में कोई अंतर नहीं देखा गया। सदन में कांग्रेस और अन्य दलों के सदस्यों ने सदन में पहुंचे भाजपा के मंत्री बने राज्यसभा सदस्यों अरुण जेटली, एम.वेंकैया नायडू, नजमा हेपतुल्ला व पीयूष गोयल को बधाई दी। मोदी समेत सभी भाजपा सदस्यों ने सदन के अन्य दलों के स्वागत करने पर अभिवादन किया। बसपा सुप्रीमो मायावती ने नजमा हेपतुल्ला से हाथ मिलाया और बधाई दी, वहीं अन्य दलों के सदस्यों ने भी नजमा को बधाई दी।
मोदी से मिलने की होड़
राज्यसभा की बैठक जैसे ही स्थगित की गई तो विपक्षी खेमे में बैठे कांग्रेस नेताओं ने सत्ता खेमे में आकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने का सिलसिला शुरू किया, तो एक के बाद एक नेता उनसे हाथ मिलाकर बधाई देने के लिए आतुर नजर आए। भाकपा के सीताराम येचुरी व डी राजा, अन्नाद्रमुक के डा.मैत्रीयन के साथ कांग्रेस के आनंद शर्मा, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव शुक्ला, गुलाम नबी आजाद, एके रहमान, डा. संजय सिंह आदि नेताओं के साथ अन्य विभिन्न दलों के सदस्यों ने मोदी से हाथ मिलाकर उन्हें बधाई दी। यहां तक कि ज्यादातर नए सदस्यों ने शपथ लेने के बाद मोदी और जेटली से हाथ मिलाया। वहीं कांग्रेस के दिग्गज दिग्विजय सिंह ने शपथ लेने के बाद दूर से ही सिर हिलाकर नरेन्द्र मोदी को नमस्कार किया। जबकि सदन में यह नजारा भी देखा गया कि तृणमूल के सदस्यों ने मोदी से दूरी बनाए रखने का प्रयास किया। इसके बाद मोदी को सभापति कक्ष में बुला लिया गया, जिसे देखते हुए कांग्रेस समेत विभिन्न दलों के कुछ सदस्य भी सभापति कक्ष में जाते देखे गये।
10June-2014

रविवार, 8 जून 2014

सादगी की मिसाल पेश करने में जुटी मोदी की सरकार!

मंत्री से मिलना है तो पहले मोबाइल जमा कराना होगा
ओ.पी.पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार ने एक पखवाड़े के कार्यकाल के दौरान जिस रμतार से काम करना शुरू किया है, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल, सांसदों और नौकरशाहों को सीधे जनता तक संवाद कायम रखने के लिए जिस तरह के मंत्र दिये हैं, वहीं अपनी टीम को पारदर्शिता के साथ फूंक-फूंककर कदम रखने की सलाह देते हुए साफ निर्देश दिये गये हैं कि वे किसी भी आगंतुक से मिलने या बातचीत करने से पहले उसका फोन कक्ष से बाहर जमा करवाकर ही मिलें।
मोदी की इस हिदायत की पुष्टि के लिए हरिभूमि संवाददाता ने कुछ मंत्रालयों में जाकर मंत्रियों के कक्षों का जायजा लिया, जहां ज्यादातर मंत्रियों ने बड़े-बड़े शब्दों में आगंतुकों के लिए सूचना चस्पा कर दिया है कि मिनिस्टर के कक्ष में मोबाइल फोन ले जाना वर्जित है। इस तरह के अनुदेश मोदी सरकार ने विवादों से बचने के लिए किये हैं ताकि कोई मंत्री के साथ होने वाली बातचीत को रिकार्ड न कर लें। जबकि मोदी सरकार ने जब से सत्ता संभाली है तभी से प्रधानमंत्री सरकार में सादगी की मिसाल कायम करने के मंत्र देते दिखाई दे रहे हैं, चाहे वह विभिन्न मंत्रालयों में काम करने वाले नौकरशाह ही क्यों न हों। पारदर्शिता, शिष्टाचार, संवाद, समन्वय एवं संपर्क जैसे गुरूमंत्र के साथ मोदी सरकार काम को तेजी से आगे बढ़ाने में ऐसे जुटी है, ताकि अफसरशाही का ढर्रे में भी आमूलचूल परिवर्तन आ जाए। मंत्रिपरिषद के एक सदस्य की माने तो मोदी ने अपनी टीम के मंत्रियों को गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद यह सतर्कता बरतने के भी निर्देश दिये हैं कि वे अपनी गाड़ियों पर लालबत्ती व सायरन का प्रयोग करने से बचे तो बेहतर होगा। सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री ने मंत्रियों को अपना निजी स्टाफ रखने के लिए भी रिश्तेदारों से दूरी बनाने की हिदायत दी है और निजी सचिव या अतिरिक्त निजी सचिव रखने के लिए आने वाले आवेदनों व बायोडाटाओं को पीएमओ भेजने की हिदायत भी दी है। सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा है कि देश में अभी तक शासन करती रही सरकारों के मुकाबले राजग सरकार एक ऐसी मिसाल कायम करें जिसमें सादगी और सरकार का कामकाज होता नजर आए।
बदल सकता है तीन दशक का नियम
सूत्रों के अनुसार देश के विकास की गति को बढ़ाने के लिए सुशासन के मंत्र में नौकरशाह और केंद्रीय कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़ने की संभावना प्रबल हैं और पांच दिन के काम वाले सप्ताह को छह दिन का किया जा सकता है। मसलन केंद्रीय कर्मचारियों के कार्यालय में जहां काम के घंटे बढ़ाए जाने की संभावना है, वहीं उनके लिए माह के दूसरे शनिवार को छोड़कर अन्य सभी शनिवार को कार्यालय में आकर काम करने का नियम लागू किया जा सकता है। इस नियम को 1985 में राजीव गांधी ने बदला था, जिन्होंने केंद्रीय कर्मचारियों के लिए शनिवार को भी अवकाश घोषित कर दिया था, जो अभी तक चल रहा है। ऐसे में मोदी सरकार काम की गति को बढ़ाने की दिशा में डिपार्टमेंट आफ पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग से एक कैबिनेट नोट तैयार करा रही है, जिसे कैबिनेट में मंजूरी देने के साथ केंद्रीय कर्मचारियों को केवल रविवार को ही अवकाश मिलेगा। 
08June-2014

शुक्रवार, 6 जून 2014

देशी भाषाओं के संगम से चमक उठी हिंदी की बिंदी


लोकसभा में दिखा क्षेत्रीय भाषाओं का संगम
ओ.पी.पाल 
सोलहवीं लोकसभा में नवनिर्वाचित सांसदों के शपथ ग्रहण समारोह में विदेशी भाषा अंग्रेजी पर मातृभाषा हिंदी और भारत की अन्य क्षेत्रीय भाषाएं हावी रही। मसलन सदन में शपथ लेने के लिए अंग्रेजी भाषा का इस बार बहुत कम सांसदों ने प्रयोग किया। यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और इसी प्रकार ज्यादतर सांसदों ने मातृभाषा को ही तरजीह दी। हालांकि सदन में देश के विभिन्न राज्यों की क्षेत्रीय भाषा का भी हिंदी के साथ संगम देखने को मिला।
नई लोकसभा के पहले सत्र के दूसरे दिन गुरूवार को सदन में निर्वाचित होकर आए सांसदों को शपथ दिलाई गई। शपथ ग्रहण की शुरूआत ही मातृभाषा हिंदी से हुई जिसमें पहले तीन प्रमुख सांसदों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लालकृष्ण आडवाणी व कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने हिंदी में ही सत्यानिष्ठा के नाम पर सदन की शपथ ली। प्रमुख सांसदों में केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान, छत्तीसगढ के सांसद एवं राज्यमंत्री विष्णुदेव साय और सुदर्शन भगत ने भी सत्यनिष्ठा के नाम पर शपथ ली। पश्चिम बंगाल के तृणमूल सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने भी हिंदी में शपथ ली। जबकि केंद्रीय मंत्री डी.वी. सदानंद गौड़ा,अनंत कुमार, जी.एम. सिद्धेश्वर ने कन्नड़, सबार्नंद सोनोवाल ने असमिया और जुएल उरांव ने उड़िया भाषा में शपथ ग्रहण की। शिरोमणि अकाली दल की सांसद एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने पंजाबी में शपथ ली। मोदी टीम के ज्यादातर मंत्रियों ने हिंदी में ही शपथ ग्रहण की। जबकि महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने अंग्रेजी में शपथ ली। बिहार से भाजपा सांसद कीर्ति आजाद, हुकुमदेव नारायण यादव और वीरेन्द्र कुमार चैधरी ने मैथिली में शपथ ली, जबकि चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर लोक जनशक्ति पार्टी में शामिल हुए और खगड़िया से चुने गये चैधरी महबूब अली कैसर ने अंग्रजी में शपथ ली। दिल्ली से निर्वाचित भाजपा सांसदों प्रवेश साहिब सिंह वर्मा, मीनाक्षी लेखी और महेश गिरी ने संस्कृत तथा मनोज तिवारी व रामबीर विधूडी ने हिंदी के अलावा डा. उदित राज ने अंग्रेजी में शपथ ग्रहण की। गुजरात के ज्यादातर सांसदों ने गुजराती में शपथ ली, जबकि फिल्म अभिनेता से राजनीतिक पारी खेलने आए परेश रावल ने हिंदी में शपथ ग्रहण की।
संस्कृति से सराबोर सदन 
लोकसभा में सदस्यों के शपथ ग्रहण के दौरान जहां देशभर के विभिन्न क्षेत्रों से निर्वाचित होकर आए सांसदों ने अलग-अलग भाषाओं में जुबानों का रंग बिखेरा है, वहीं सदन भारत की मिली-जुली संस्कृति से भी सराबोर होता नजर आया। ऐसे सांसदों में बिहार से चुनकर आए कीर्ति आजाद, दिल्ली के मनोज तिवारी अपनी परंपरागत वेशभूषा में दिखाई दिये तो, दिल्ली के ही सांसद प्रवेश वर्मा पगड़ी बांधे हुए थे। इसी प्रकार राजस्थान के सांसद भी क्षेत्री परिधानों में नजर आए। इस पारंपरिक पारिधान की झलक में गुजरात के दो सांसद देवूसिंह जैसिंगभाई चैहान और मोहनभाई कल्याणजी भाई कुंडारिया पारंपरिक गुजराती पारिधान और पगड़ी पहने थे, जो समूचे सदन के लिए आकर्षण का केंद्र बने रहे। अपनी क्षेत्रीयता की पहचान वाले रंग बिरंगे पारंपरिक पारिधान पहनकर आये ऐसे सांसदों में राजस्थानी और गुजराती पगडियों समेत अन्य क्षेत्रीयता की पहचान बताने वाले अलग अलग राज्यों के पारंपरिक पारिधान भी सदन में दिखाई दिया।
जब भाजपा सांसद ने लगाए ठुमके
लोकसभा में शपथ ग्रहण करने के बाद गुजरात की सुंदरनगर सीट से जीतकर आए भाजपा सांसद देवजी भाई फतेहपुरा की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था, जिन्होंने संसद परिसर में जमकर ठुमके लगाए। फतेहपुरा पारंपरिक गुजराती वेश-भूषा में केसरिया पगड़ी पहन कर पहुंचे थे। इन्होंने संसद परिसर में सांसदों एवं लोगों का जमकर मनोरंजन किया। ऐसे माहौल में भोजपुरी अभिनेता और गायक से सांसद बने मनोज तिवारी ही पीछे कहां रहे उनहोंने भी संसद परिसर में भोजपुरी गीत गुनगुनाए।
06June-2014

गुरुवार, 5 जून 2014

जहां वो थे अब वहां आए हम...

निजाम के साथ ही बदला लोकसभा का नजारा
ओ.पी.पाल. नई दिल्ली।
नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में राजग सरकार के सत्ता में आने पर पूरे एक दशक बाद लोकसभा में फिर पक्ष व विपक्ष के पाले बदले, तो निजाम के साथ ही सदन में पूरा का पूरा नजारा बदला-बदला सा नजर आया। मसलन जहां कांग्रेस और उसके सहयोगी बैठते थे, वहां अब भाजपा और उसके सहयोगी दल के सांसद बैठे हुए थे। जबकि कांग्रेस अपने साथी दलों के साथ विपक्ष के पाले में सिमटी नजर आई।
हालांकि लोकतंत्र की प्रक्रिया है जो लोकसभा के निजाम को बदलती रही है, लेकिन इस बार सोलहवीं लोकसभा के चुनावी नतीजों ने भाजपा को बहुमत के साथ लोकसभा में प्रवेश कराया। सोलहवीं लोकसभा के पहले सत्र में पहले दिन हालांकि किसी भी सांसद की सीट का आबंटन नहीं हुआ, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अलावा गृह मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री राम विलास पासवान भाजपा के वरिष्ठ नेताओं राजग के कार्यकारी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी के साथ सत्ता पक्ष की अगली सीट पर विराजमान थे। जबकि कुछ राज्य मंत्री सबसे पिछली सीटों पर भी बैठें नजर आए। विपक्षी पाले में अगली सीट पर सोनिया व खडगे के अलावा वीरप्पा मोइली और केएच मुनियप्पा बैठे थे। जबकि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी विपक्षी बेंचों पर सबसे पीछे वाली पंक्ति में बैठे नजर आए। पिछली लोकसभा में कई बार प्रतिपक्ष की नेता रही सुषमा स्वराज ने एक बार नहीं कई बार यूपीए सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि अगले चुनाव में उनके स्थान पर हम बैठने वाले हैं और उनका यह दावा नई लोकसभा की बैठक में साफतौर से चरितार्थ होती दिखाई दी।
इस अंदाज में आए नरेन्द्र मोदी
लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने से करीब पांच मिनट पहले ही क्रीम कलर का कुर्ता और चूड़ीदार पायजामा पहने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदन में पहुंचे,जहां सत्ता पक्ष के सदस्यों ने मेजें थपथपाकर उनका स्वागत किया। इसके बाद मोदी ने सदन में अन्य दलों के सदस्यों का भी अभिवादन अपने ही अंदाज में किया। अपनी सीट पर बैठने से पहले सदन में वेल के चारों तरफ विपक्ष तक पहुंचे, जहां सबसे पहले अन्नाद्रमुक के नेता एम थम्बीदुरई के साथ बैठे सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के पास पहुंचकर उन दोनों से हाथ मिलाया। उसके बाद बीजद के अर्जुन चरण सेठी और तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय समेत विभिन्न दलों के सांसदों का हाथ हिलाकर अभिवादन किया। जब वे मलिकार्जुन खडगे के पास जा रहे थे तो उनसे पहले ही सदन में अपनी सीट की ओर जाने के बजाए हरे रंग की साड़ी पहने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तेजी के साथ सामने आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ बढ़ी और दोनों ने हाथ जोड़कर एक-दूसरे को नमस्कार व अभिवादन किया। इसके बाद मोदी ने विपक्ष के अगली सीट पर बैठे सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे से हाथ मिलाया।
मुलायम के अलावा ये नहीं
सोलहवीं लोकसभा में पहले दिन जहां पिछली लोकसभा के सदस्य फिर से निर्वाचित होकर आए उनमें सपा प्रमख मुलायम सिंह भी शामिल है और वो ही अपनी पिछले बार वाली सीट पर बैठे नजर आए, जबकि ज्यादातर नेताओं की सीटें बदली नजर आई। 15वीं लोकसभा में सत्ता व विपक्ष के अलावा बीच वाली पंक्तियों की अग्रिम सीटों पर बैठेने वाली कई सियासी हस्तियां इस बार सदन में किसी न किसी कारण से हिस्सा नहीं बन पाई। इनमें भाकपा के गुरूदास गुप्ता ने जहां चुनाव नहीं लड़ा, वहीं माकपा के वासुदेव आचार्य इस बार तृणमूल कांग्रेस की मुनमुन सेन से चुनाव हार गये हैं। वहीं जदयू के शरद यादव, भाजपा के निष्कासित नेता जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा जैसे नेता भी नजर नहीं आएंगे। सोलहवीं लोकसभा में अन्य दलों के सांसद उन्हीं स्थानों पर बैठे देखे गये, जहां वे पिछली बार बैठा करते थे। मसलन नई लोकसभा की बुधवार को शुरू हुई पहली बैठक में सदन के भीतर का नजारा एकदम बदला हुआ दिखाई दिया।
लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए करूंगा काम: मोदी
प्रधानमंत्री मोदी ने 16वीं लोकसभा के पहले सेशन की बुधवार को शुरुआत से पूर्व संसद भवन परिसर में संवाददाताओं से कहा, ' देश की जनता ने अभूतपूर्व संख्या में मतदान कर और जन प्रतिनिधियों को आशीर्वाद देकर 16वीं लोकसभा को चुना है।' उन्होंने कहा, 'मैं देश के लोगों को आश्वासन देता हूं कि भारत के आम नागरिकों की उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए लोकतंत्र के इस मंदिर में सभी प्रयास किए जाएंगे।' अपने संक्षिप्त संबोधन में मोदी ने देश के नागरिकों को अपनी शुभकामनाएं भी दीं। 
05June-2014

बुधवार, 4 जून 2014

नई सरकार व सांसदों के स्वागत के लिए तैयार संसद

सोलहवीं लोकसभा का पहला संसद सत्र आज से
ओ.पी.पाल
. नई दिल्ली।
सोलहवीं लोकसभा के पहले संसद सत्र में केंद्र में बनी भाजपानीत राजग की नई सरकार और नए सांसदों के स्वागत के लिए संसद में सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं,लेकिन नई सरकार का संसद की लोकसभा में पहले ही दिन दुर्भाग्यवश ऐसी घड़ी में प्रवेश हो रहा है, जिसके कारण पहले सत्र का पहला ही दिन केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की श्रद्धांजलि देने तक ही सीमित रहेगा।
नरेन्द्र मोदी की नई सरकार के सत्ता संभालते ही भाजपा और उसके सहयोगी दलों का जश्न व उत्साह संसद का पहला सत्र शुरू होने से एक दिन पहले मंगलवार को मातक का रूप धारण कर गया, जहां केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गोपीनाथ मुंडे की सड़क हादसे में मौत होने से समूची सरकार और राजनीतिक दल शोक में डूबे हुए हैं। सोलहवीं लोकसभा का पहला सत्र बुधवार चार जून से आरंभ होने की अधिसूचना पहले ही जारी हो चुकी है, इसलिए इस तारीख को चाहते हुए भी केंद्र सरकार टाल नहीं सकी। केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंगलवार शाम को बैठक भी हुई जिसमें कैबिनेट ने पूरे देश की ओर से शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की और श्रद्धांजलि अर्पित की। इसी के साथ फैसला किया गया कि लोकसभा की बैठक नीयत समय से शुरू होगी, लेकिन इस बैठक के पहले दिन निर्वाचित सांसदों का शपथग्रहण नहीं होगा। मसलन लोकसभा की बैठक में केवल दिवंगत केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे को श्रद्धांजलि दी जाएगी और उसे अगले दिन तक स्थगित कर दिया जाएगा। भारतीय संसद के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि नई सरकार का संसद में पहले दिन की कार्यवाही स्थगित की गई हो। सूत्रों के अनुसार अब लोकसभा सांसदों का शपथ ग्रहण पांच जून की बैठक से शुरू होगा। सांसदों को शपथ दिलाने का एजेंडे में चार व पांच जून का कार्यक्रम था, लेकिन दुर्भाग्यवश पहले दिन के शपथग्रहण को स्थगित किया जा रहा है।
स्वागत को तैयार लोकसभा
देश में नई सरकार के पहले संसद सत्र की तैयारियां पहले से ही की जा रही थी। लोकसभा सचिवालय द्वारा सदन और मंत्रियों के कार्यालयों की साजसज्जा का काम तेजी के साथ जारी था, जिसमें फर्नीचर, कालीन और अन्य साज-सज्जा के सामन को बदला गया है। संसद के गलियारे में भी जहां पत्थर क्षतिग्रस्त थे उन्हें बदलकर नया लगा दिया गया है। इसके बावजूद मंगलवार को भी संसद के विभिन्न कक्षों में यूपीए सरकार के मंत्रियों की नेमप्लेट लगी देखी गई। हालांकि सूत्रो का कहना है कि संसद में मंगलवार की देर रात तक भी साज-सज्जा और मंत्रियों के कक्षों तथा अन्य कक्षों की कायापलट पूरी कर ली जाएगी।
अभी नहीं हैं आवंटित कक्ष
लोकसभा सचिवालय के अनुसार संसद भवन में मंत्रियों के कक्षों का आवंटन अभी नहीं हुआ है। ऐसे कुछ ही कक्ष हैं जो संबन्धित विभागो के मंत्रियों को दिये जाने हैं और इन कक्षों की साज-सज्जा का काम पूरा कर लिया गया है। ऐसे कक्षों में पीएमओ, संसदीय कार्य मंत्री, आवासीय समिति कक्ष और अन्य समितियों के कक्ष नीयत हैं, जिन्हें बदलने की आवश्यकता तभी होगी, जब संबन्धित मंत्री चाहेंगे। फिर भी लोकसभा सचिवालय के स्तर से नई सरकार और नए सांसदों के स्वागत की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
ये है संसद सत्र का एजेंडा
केंद्र की नई सरकार के पहले सत्र की बैठक का संचालन अस्थायी लोकसभा अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं सांसद कमलनाथ करेंगे, जिन्हें राष्टÑपति प्रणब मुखर्जी ने मोदी सरकार की सिफारिश पर नियुक्त किया है। सोलहवीं लोकसभा के 4 से 11 जून तक आयोजित प्रथम संसदीय सत्र के पहले दो दिन नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाई जानी थी। छह जून को लोकसभा के अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा, जबकि सात व आठ जून का शनिवार व रविवार होने के कारण अवकाश रहेगा। नौ जून को राष्टÑपति प्रणब मुखर्जी संयुक्त सदनों लोकसभा व राज्यसभा की संयुक्त बैठक को संबोधित करेंगे। दस और ग्यारह जून को राष्ट्रपति के अभिभाषण धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा होगी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों सदनों में राष्टÑपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा का जवाब देंगे।
04June-2014

सोमवार, 2 जून 2014

बिजली संकट पर केंद्र व यूपी सरकार में रार !

ऊर्जा मंत्री ने कहा, फोन तक नहीं उठाते अखिलेश
ओ.पी.पाल
. नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश में बिजली संकट पर सियासत इस कदर गरमाती जा रही है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। जहां अखिलेश सरकार का आरोप है कि केंद्र राज्य के हिस्से की पूरी बिजली नहीं दे रहा है, जबकि केंद्र सरकार ने यूपी के बिजली संकट से निपटने के लिए राज्य सरकार को उपाय ही नहीं सुझाए, बल्कि बिजली संकट से निपटने के लिए यूपी सरकार की पूरी मदद करने का आश्वासन देते हुए केंद्र ने कहा कि एक-दो दिन में ही एनटीपीसी से यूपी को 325 मेगावाट बिजली की आपूर्ति शुरू कर दी जाएगी।
लोकसभा चुनाव के बाद से उत्तर प्रदेश में बिजली का संकट इतना गहरा गया है कि गर्मी के दिनों में आम जनता में हा-हाकार मचा हुआ है और विभिन्न जिलों में लोग आंदोलन के लिए सड़कों पर हैं। ऐसे में यूपी के बिजली संकट पर केंद्र सरकार ने यूपी में बिजली की उपलब्धता और आपूर्ति की समीक्षा करके अखिलेश सरकार को इस समस्या से निपटने के उपाय भी सुझाए हैं। लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस बिजली किल्लत का सारा दोष केंद्र के मत्थे मंढने में लगे हुए हैं। इधर केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि इस समस्या का समधान करने के लिए उन्होंने जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से फोन पर बात करने का प्रयास किया तो सूबे के मुख्यमंत्री ने फोन उठाने की जहमत तक नहीं समझी। फोन पर संदेश का जवाब भी अखिलेश यादव देने को तैयार नहीं हैं, बल्कि इसके विपरीत आरोप-प्रत्यारोप के दौर को तेज करते हुए अखिलेश सरकार आरोप लगा रही है कि केंद्र की अनदेखी की वजह से ही राज्य में बिजली की किल्लत हो रही है। ऐसे में बिजली समस्या पर केंद्र और यूपी सरकार आमने-सामने है। यूपी सरकार के बिजली संकट के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराने के जवाब में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल का आरोप है कि यूपी की सपा सरकार बिजली संकट को सुलझाने के बजाए इस मुद्दे पर सियासत कर रही है। गोयल ने यहां तक कह दिया है कि अखिलेश सरकार लोकसभा चुनाव में मिली हार का गुस्सा जनता पर निकाल रही है।
जल्द मिलेगी 325 मेगावाट बिजली
केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक यूपी की बिजली समस्या को दूर करने की दिशा में यूपी सरकार की मदद करने के लिए एनटीपीसी से इसी सप्ताह के भीतर 325 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करने की व्यवस्था की है। ऐसे में सूबे की सरकार को बिजली संकट के लिए केंद्र सरकार के सिर ठींकरा फोडने का प्रयास नहीं करना चाहिए। यूपी सरकार के पास इतना कोयला नहीं है कि वो बिजली का उत्पादन कर सके।
उधार बिजली मांगी
यूपी के बिजली संकट पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अब नया पासा फिर केंद्र सरकार के पाले में फेंक दिया और रविवार को ही कहा कि उनकी सरकार ने पहले ही कोयला संकट को विद्युत उत्पादन में बाधक करार दे दिया था और कोयला देना केंद्र का काम है। अब अखिलेष यादव ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह यूपी को डेढ़ साल के लिए पर्याप्त बिजली उधार के रूप में दे, ताकि बिजली संकट से निपटा जा सके। अखिलेश यादव ने कहा कि 2016 तक राज्य में बिजली की स्थिति सुधार ली जाएगी और भरपूर उत्पादन का लक्ष्य पूरा कर लिया जाएगा। इस उधारी को यूपी भरपूर विद्युत उत्पादन होते ही दोगुनी बिजली केंद्र को वापस कर देगा। अखिलेश ने यह तर्क भी दिया है कि भाजपा को उत्तर प्रदेश ने 71 लोकसभा सीटें दी है इसलिए केंद्र सरकार की जनता की बिजली समस्या से निपटने की जिम्मेदारी भी बनती है।
आंधी-तूफान का भी असर
एक तो गर्मी उस पर बत्ती गुल यानी करेले पर नीम चढ़ा। यूपी में इस समय बिजली कटौती की समस्या अपने चरम पर है। हाल ही में दिल्ली और उत्तर भारत के कुछ प्रदेशों में आए तूफान के बरपे कहर ने बिजली संकट के लिए आग में घी डालने का काम किया यानि इसके प्रभाव से यह संकट और ज्यादा बढ़ता नजर आया। आलम यह हो गया कि इस भीषण गर्मी के दौरान उत्तर प्रदेश में पिछले दस दिनों से 12 से 14 घंटे की बिजली कटौती की जा रही है। इसके बावजूद जिन जिलों से सपा के सांसद निर्वाचित हुए हैं वहां इस बिजली संकट का तनिक भी प्रभाव नहीं है।
02June-2014

रविवार, 1 जून 2014

यूपी बिजली समस्या पर केंद्र ने सुझाया समाधान

बिजली कटौती चुनावी हार का बदला तो नहीं!
ओ.पी. पाल

लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद उत्तर प्रदेश में बरप रहे बिजली संकट पर जब यूपी सरकार ने इसका ठींकरा केंद्र सरकार के मत्थे मंढने का प्रयास किया तो केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश में बिजली संकट और बिजली आपूर्ति की स्थिति की समीक्षा की। वहीं यूपी सरकार के लिए बिजली समस्या का समाधान सुझाया है।
उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद उत्तर प्रदेश में आजमगढ़,मैनपुरी, फिरोजाबाद, कन्नौज व फिरोजाबाद जिलों की 24 घंटे आपूर्ति के छोड़कर अन्य सभी जिलों में बिजली की किल्लत बढ़ी है। अचानक बिजली की अघोषित कटौती से हा-हाकार मचा हुआ है जिसके लिए सूबे की सरकार केंद्र पर दोष मंढ रही है, जबकि राजनीतिकारों का मानना है कि सपा सरकार जनता से पार्टी के खत्म हुए जनाधार का बदला लेने पर तुली है, अन्यथा यह बिजली संकट आजमगढ़, मैनपुरी, फिरोजाबाद, कन्नौज व फिरोजाबाद में क्यों नहीं है जहां 24 घंटे बिजली की आपूर्ति हो रही है। बिजली की समस्या को लेकर अधिकांश जिलों में आंदोलन भी चल रहे हैं। सूबे में बिजली समस्या को लेकर मचे हा-हाकार को केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया है और केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने यूपी में बिजली की उपलब्धता और आपूर्ति की समीक्षा की है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार उत्तर प्रदेश में बिजली की चरम मांग 12,700 मेगावाट है, जिसमें से करीब 10,700 मेगावाट की आपूर्ति की जा रही है। मौजूदा समय में करीब 2 हजार मेगावाट बिजली की कमी सामने आई है। राज्य में 500 मेगावाट के विद्युत संयंत्र को भी बहाल कर लिया गया है और यह पूरी तरह से बिजली का उत्पादन कर रहा है। 600 मेगावाट का एक अन्य निजी क्षेत्र का अंपारा-सी संयंत्र आयातित कोयले की खरीद न होने के कारण से काम नहीं कर रहा। इस संयंत्र को कोल इंडिया से 90 प्रतिशत से ज्यादा की कोयला आपूर्ति की जाती है और यह प्लांट को दी गई अनुमति के अनुरूप है। सेंट्रल जेंनरेटिंग पॉवर स्टेशन (सीजीपीएस) से उत्तर प्रदेश को दी जाने वाली बिजली की उपलब्धता भी सामान्य है। राज्य, गैस-आधारित स्टेशनों अंटा, ओरैया और दादरी से अपने आवंटन के समान बिजली नहीं ले रहा है और राज्य वितरण इकाईयों द्वारा करीब 300 मेगावाट की मांग को शीघ्र ही उपलब्ध कराया जा सकता है। अन्य राज्य तापीय इकाईयों की कोयला भंडार स्थिति भी उचित एवं पर्याप्त है।
ये हो सकता है समाधान
केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार उत्तर प्रदेश में बिजली का आंतरिक उत्पादन करीब 10,100 मेगावाट है जिसमें वर्तमान में सिर्फ 4,500-5,500 मेगावाट ही उपलब्ध है और इस कमी को पूरा करने के लिए राज्य सरकार चाहे तो बेहतर सुधार कर सकता है। विद्युत के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र के अन्य राज्यों से भी मांग की जा सकती है और वहां इसके लिए कोई पारेषण बाध्यता भी नहीं है। इसके अलावा एनटीपीसी के झज्जर संयंत्र में भी 337 मेगावाट विद्युत उपलब्ध है जिसे राज्य अपील करके प्राप्त कर सकता है। चुनाव के दौरान, उत्तर प्रदेश में एनटीपीसी के झज्जर संयंत्र से 3 मई से 15 मई, 2014 तक के  लिए 277 मेगावाट बिजली खरीदी थी। इन स्रोतों के अलावा अपनी बिजली की कमी को पूरा करने के लिए उत्तर प्रदेश विद्युत आदान-प्रदानों के माध्यम से पर्याप्त खरीद सकता है, यह सूबे की सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर है।
01June-2014