रविवार, 15 जून 2014

संसद में क्षेत्रीय भाषाओं के रूपांतर की कवायद!


सरकार की प्राथमिकता में हैं भारतीय भाषाओं को सुदृढ़ करना
सपा प्रमुख ने सदन में की अनुवाद करने की वकालत
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार की भारतीय भाषाओं को सुदृढ़ करने का वादा किया है, तो सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया और संसद में भारतीय भाषाओं के अनुवाद की व्यवस्था कराने की भी मांग की थी। शायद इसी का प्रभाव है कि लोकसभा सचिवालय ने लोकसभा में क्षेत्रीय भाषाओं के रूपांतरण की प्रक्रिया को अंजाम देना शुरू कर दिया है।
लोकसभा सचिवालय ने सोलहवीं लोकसभा के पहले संसद सत्र के संपन्न होने के महज तीन दिन बाद ही सरकार की मंशा को भांप लिया है और नौ द्विभाषियों यानि भाषांतरों की भर्ती करने के लिए आवेदन जारी कर दिया है। लोकसभा सचिवालय के भर्ती प्रकोष्ठ से मिली जानकारी के मुताबिक अंग्रेजी,हिंदी, बोडो, डोगरी, गुजराती, कश्मीरी, कोनकानी, संथाली व सिन्धि भाषाओं के रूपांतर के लिए रिक्तियों को भरने का काम शुरू कर दिया है और इसी माह तीस जून तक आवेदन आमंत्रित भी कर लिये हैं। केंद्र की सत्ता में आई राजग सरकार में ज्यादातर हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं और मोदी सरकार ने अपने पांच साल के एजेंडे में भी इस बात को शामिल किया है कि उनकी सरकार भारतीय भाषाओं को सुदृढ़ करने का काम करेगी। यह बात राष्टÑपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा के दौरान संसद के दोनों सदनों में कुछ दलों के सदस्यों ने भी उठाई थी। संसद सत्र के अंतिम दिन भारतीय भाषाओं के मामले पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कुछ जोरदार तरीके से ही उठाया था। उन्होंने कहा था कि हम चाहते हैं कि देशभर में ही नहीं संसद के सदनों में भी विदेशी भाषाओं की जगह भारतीय भाषाएं चलनी चाहिए, चाहे तमिल, तेलगू, कन्नड या फिर बंगला ही क्यों न हो ऐसी भाषाओं के आम बोलचाल में आने से ही भारतीय भाषाओं के अस्तित्व को बचाया जा सकता है। अपनी पार्टी में देसी भाषा को ही बढ़ावा देने का दावा करते हुए मुलायम सिंह ने कहा था कि हम भारतीय हैं तो देसी भाषा ही बोली जानी चाहिए।
भाषांतर का सुझाव
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ही एक ऐसे सांसद थे, जिन्होंने राष्टÑपति अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भाषा के मामले को प्रमुखता से उठाया था। उन्होंने हिंदी भाषा का ही प्रयोग करने वाली लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की ओर इशारा करके इस मांग को भी पुरजोर के साथ उठाया कि सदन में भारतीय भाषाओं के अनुवाद की व्यवस्था की जाए, जो एक भारतीय संसद में ऐतिहासिक कदम साबित होगा। उनका तर्क था कि अपनी भाषा में अभिव्यक्ैित का प्रभाव अलग ही होता है, लेकिन उसे दूसरा भी अपनी भाषा में सुन सके इसके लिए एक-दूसरी भाषा का अनुवाद की व्यवस्था सदन में होना जरूरी है। उन्होंने तो यहां तक कहा कि व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो देश के कोने-कोने में गांव देहात में बैठे लोग भी संसद में भारतीय भाषाओं में सुन सके।
मौजूदा व्यवस्था
संसद के दोनों सदनों में अभी तक भाषांतर की जो व्यवस्था है उसमें यदि कोई सांसद अपनी क्षेत्रीय भाषा में बोलता है तो उसका भाषांतर केवल हिंदी व अंग्रेजी में ही होता है या फिर जिस भाषा में सांसद बोल रहा है वहीं सुनाई दे सकता है। यदि सभी क्षेत्रीय भाषाओं के लिए अनुवाद की व्यवस्था हो जाएगी तो उसके बाद भले ही सदन में कोई सांसद किसी भी भाषा में बोल रहा हो, तो सदन में बैठे अन्य सांसद या कोई भी व्यक्ति उसे अपनी भाषा में सुन सकेगा। भारतीय भाषाओं को मजबूत करने की दिशा में शायद लोकसभा सचिवालय ने गंभीरता से अंजाम देने की शुरूआत की है, जिसमें फिलहाल नौ भाषांतरों की निुयक्ति करने के कदम उठाए हैं।

15June-2014

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