रविवार, 15 जून 2014

राग दरबार- असरदार मोदी सरकार

राग दरबार
संसद में अपने पहले ही भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐसे छाए कि पूरा देश मानकर चल रहा है कि पिछली सरकारों के मुकाबले मोदी की सरकार में दम लगता है, जिन्होंने हर काम को जनांदोलन बनाने का संकल्प लेकर देश की व्यवस्था को बदलने की बात कही है। यानि केंद्र की पिछली सरकार से तुलना में नरेंद्र मोदी की सरकार सक्रिय नजर आ रही है। घरेलू और विदेश दोनों मोर्चो पर सरकार तेजी से कदम बढ़ाती दिखायी दे रही है। अन्ना आंदोलन, रामदेव आंदोलन, दामिनी कांड जैसे मौकों पर दंभपूर्ण बयानों के अलावा पिछली सरकार के मंत्री कुछ भी करते नजर नहीं आ रहे थे। इसी वजह से यूपीए सरकार का इकबाल ही खत्म हो गया था, इसके कारण जनता ने सरकार ही नहीं बदल डाली, बल्कि मोदी सरकार में कार्यसंस्कृति भी बदलती नजर आ रही है। कुछ सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि जिस प्रकार मोदी सरकार ने नर्मदा पर सरदार सरोवर डैम की ऊंचाई बढ़ाने का आनन-फानन में त्वरित निर्णय क्षमता की बानगी दी है। उससे लगता है मोदी सरकार और उसके मंत्री भी हरकत में असरदार नजर आ रहे हैं। राजनीतिक मोर्चे पर भी पीएम मोदी ने टीम इंडिया की भावना से काम करने का इरादा जताकर अपनी तरफ से टकराव की जगह संवाद की राह पर चलने का संदेश दिया है।
मोदी के मुरीद
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सुझावों व संदेशों का असर किसी पर हो न हो, पर पहली बार संसद की दहलीज पार करने वाले भाजपाई सांसद तो उनके मुरीद हो गए हैं। अब तक कहां वह मोदी जी को टीवी या फिर चुनावी मंच पर ही देखते रहे और अब उनके साथ संसद में बैठने को मिल रहा। सत्र के दौरान कई सांसद तो केवल यह देखने और पता करने में दिलचस्पी लेते दिखे कि मोदी जी जो कुर्ता पहनते हैं वह किस कपड़े का है। मतलब कि खादी, रेशम,सूती अथवा लिनेन। मोदी जी के चूड़ीदार पायजामे की तरह दिल्ली में पायजामा कहां मिल सकता है। पूर्वांचल के एक सांसद महोदय ने तो एक पत्रकार मित्र के साथ जाकर मोदी जी के बारे में लिखी हर वह किताब खरीदी जो हिंदी में उपलब्ध मिली। इतना ही नही उनकी रूचि इस बात में थी कि कामकाज में लगातार जुटे रहने के बावजूद मोदी जी का चेहरा खिला खिला कैसे दिखता है।
हंस की चाल की फांस
यह पुरानी कहावत ‘हंस की चाल चला कौवा, अपनी चाल भी भूल गया’ हाल ही में संपन्न हुए नई सरकार के पहले संसद सत्र में उस समय चरितार्थ हुई, जब एक सांसद ने लोकसभा में शपथ लेते हुए सदन की वाह-वाह लूटनी चाही, लेकिन वे उलझते नजर आए। हुआयूं कि सोलहवीं लोकसभा के लिए नवनिर्वाचित सांसदों की शपथ लेने का सिलसिला शुरू हुआ तो दिल्ली के एक सांसद ने जब बगैर पढ़े धारा प्रवाह हिन्दी में कंठस्थ शपथ लेते देखा और वाह-वाही लूटी, तो उसी पार्टी के एक सांसद ने उससे ज्यादा लोकप्रियता हासिल करने की गरज से उस दिन के बजाए अगले दिन शपथ लेने का मन बनाया। मसलन सदन में लोकप्रियता हासिल करने में जैसे उन्होंने उस रात संस्कृत में शपथ लेने वाले प्रपत्र का खूब अध्ययन किया होगा और अगले दिन जब माननीय बिना प्रपत्र लिये संस्कृत में शपथ लेने लगे तो बीच में ही अटक गये और आखिर उन्हें संस्कृत भाषा का मुद्रित पृष्ठ लेकर ही शपथ लेना पड़ा। इस पर उनके सदन की वाह-वाही लूटने के बजाए साथी सदस्यों की चुटकियों का सामना करना पड़ा। एक सांसद ने तो उनसे यहां तक कहा कि अब आप कौन सी पार्टी में हैं। राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि संस्कृत में ही शपथ लेना चाहते तो वह उस दिन भी ले सकते थे, लेकिन उन पर तो कठंस्थ संस्कृत में शपथ लेने का भूत चढ़ा था और वह भी मजाक साबित हुआ।
लद गये धर्मनिरपेक्षता के दिन
केंद्र में भाजपानीत राजग सरकार को सत्ता सौंपने के लिए जनता द्वारा ठुकराए गए धर्मनिरपेक्षता का चोला पहले नेता इन दिनों अब कुछ इस तरह छाती पीट रहे हैं कि मानो मोदी सरकार मुसलिम पर्सनल लॉ खत्म करने वाली है। कामन सिविल कोड की मांग भाजपा या मोदी सरकार के किसी मंत्री ने नहीं, बल्कि पीसीआई प्रमुख जस्टिस काटजू ने की है। काटजू की राजनीतिक प्रतिबंद्धता किसी से छिपी नहीं है। कश्मीर में धारा 370 पर मोदी सरकार के राज्यमंत्री ने बयान दिया, तो उन्हें सरकार या भाजपा संगठन से कोई समर्थन तक नहीं मिला। ऐसे में जाहिर है कि नरेंद्र मोदी की सरकार विवादित मुद्दों को परे रखकर विकास और सुशासन के मुद्दे पर आगे बढ़ने की मंशा से शासन करने का प्रयास कर रही है। हालांकि कुछ कांग्रेसी नेता ऐसे कटाक्ष करने से भी नहीं चूक रहे हैं कि भाजपा की अब पूर्ण बहुमत की सरकार है तो उसे अयोध्या में राममंदिर बनवा देना चाहिए। ऐसे में सवाल है कि क्या ऐसा बयान देने वाले नेताओं में अपनी कांग्रेस पार्टी से इस आशय का प्रस्ताव पास करवाने की हिम्मत रखते हैं, यदि नहीं तो फिर मोदी सरकार को क्यों उकसाकर धर्मनिरपेक्षता का दामन क्यों थामे हुए जबकि इस देश में सेक्युलर बनाम कम्युनल का खेल को देश की जनता खारिज कर चुकी है।
अय्यर की समझ
लोकसभा चुनाव और उससे पहले कुछ राजनीतिक नेताओं की बदजुबानी की आदत जनता के दिये सबक से भी शायद बदली नहीं है, तभी तो केंद्र में आई मोदी की नई सरकार के संकल्प और इरादों पर कटाक्ष करने में कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री मणिशंकर अय्यर पीछे नहीं रहे। अभी तो नई सरकार की शुरूआत है जिसके इरादों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलकर कांग्रेस नेता ने ऐसी बचकानी हरकत को अंजाम दिया कि मोदी को नया लड़का कहकर कहा जोझ में वह कुछ भी बोल जाता है अभी उसे समझ नहीं है। राजनीति में अय्यर के बड़बोलेपन से सभी वाकिफ है और इसी की चर्चा कर रहे हैं कि अय्यर को अभी सरकार के काम को देखने के लिए कम से कम सब्र तो करना चाहिए।
--नेशनल ब्यूरो

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