सोमवार, 29 जनवरी 2024

साक्षात्कार: समाज और व्यक्तिगत विकास में साहित्य की अहम भूमिका: डॉ. रमाकांता

लोक साहित्य, लोक कला व संस्कृति के संवर्धन से समाज को दी नई दिशा 
             व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. रमाकांता शर्मा
जन्मतिथि: 15 जुलाई 1948 
जन्म स्थान: घरौंडा (करनाल), हरियाणा 
शिक्षा: एमए, पीएचडी (हिन्दी), पीएचडी(संगीत), बीएड (गोल्डमैडल),एलएलबी। 
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त खंड शिक्षा अधिकारी, सेवानिवृत्त सहायक प्रोफेसर, हिन्दी विभाग बीएमयू, रोहतक। 
संपर्क: 1014/20, दुर्गा कॉलोनी, रोहतक, मोबा-9896213549, ईमेल-ramapro28@gmail.com 
 By—ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में सामाजिक सभ्यता एवं संस्कृति को लेकर साहित्य साधना में जुटे ऐसे साहित्यकारों, कवियों और लेखकों में ऐसे चुनिंदा ही विद्वान है, जिन्होंने हरियाणा की संस्कृति और सभ्यता को नई दिशा देने साहित्य साधना के साथ लोक साहित्य और लोक कला व संस्कृति के संवर्धन के लिए योगदान दिया है। उनमें हरियाणा की सुप्रसिद्ध महिला साहित्यकार एवं आकाशवाणी की ग्रेडिड लोक गायिका डा. रमाकांता पिछले चार दशकों से समाज को एक सकारात्मक रुप से नई दिशा देने का प्रयास में गुणवत्ता के आधार पर साहित्य सृजन करती आ रही हैं। लोक साहित्य में समाहित संगीत, नाट्य, नृत्य तथा लोक गीतों के संकलन और शोध कार्य में जुटी काव्य एवं गीत लेखक डा. रमाकांता ने अपने लोक साहित्य एवं काव्य लेखन के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे तथ्यों का जिक्र किया है, जिससे कहा जा सकता है कि समाज और व्यक्तिगत विकास में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका है। 
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रियाणा की महिला साहित्यकार डॉ. रमाकांता का जन्म 15 जुलाई 1948 को करनाल जिले के घरौंडा में डा. जयदेव प्रसाद और शांति देवी प्रभाकर के घर में हुआ। उनका परिवार में पूरी तरह से साहित्यिक माहौल था, जहां उनकी माता ग्रामीण क्षेत्र की पढ़ी लिखी महिला थी और बड़ी बहन उर्मिलकांता शर्मा उस समय पंजाब भाषा विभाग की प्रसिद्ध कवयित्री थी, जो विभाग में सभी प्रतियोगिता में हिंदी कविताओं में पुरस्कार हासिल करती रही है। साल 1956 में जब रमाकांता कक्षा तीन में थी, तो उन्होंने खुद लिखी एक कविता स्वतंत्रता दिवस पर पढ़ी तो उसे विद्यालय के मुख्याध्यापक ने पुरस्कार के रुप में एक चांदी का रुपया ईनाम में दिया, जो आज भी जीवन की सबसे अमूल्य सम्मान को उन्होंने अभी तक धरोहर के रुप में सुरक्षित रखा हुआ है। इसके बाद वह स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर काव्य प्रतियोगिताएं जीती और स्वरचित कविताएं तत्कालीक कॉलेज मैग्जीन तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई तो उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। रमाकांता ने बताया कि उन्होंने हिंदी, पंजाबी और उर्दू भाषाओं में काव्यपाठ किया। नौकरी में आने के बाद उन्होंने कला(फाइन आर्ट) तथा संगीत विषय का अध्यापन किया, वैसे भी विरासत में मिले साहित्यिक माहौल के कारण बचपन से कला, संगीत व साहित्य से रहे संबन्ध के कारण उन्होंने असंख्य गीत व कविताएं लिखी, जो आज भी सुने जाते हैं। उनके साहित्यिक विद्या काव्य सृजन है, लेकिन उन्होंने प्राय: गद्य व पद्य सभी विधाओं में साहित्य सृजन किया है। उनके विस्तृत लेखन क्षेत्र में कहानी, कविता, लघुकथा, नाटक, आलोचना, समीक्षा अनुवाद तथा संपादन जैसी विधाएं शामिल हैं, जिसकी बदौलत उनकी हरियाणवी भाषा, हरियाणवी संस्कृति (लोक साहित्य) तथा हिंदी गद्य व पद्य में करीब तीन दर्जन पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। वे इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि लेखन के गुण जन्मजात भी होते हैं, जिन्हें बाद में परिमार्जित कर आकार दिया जाता है। ऐसे ही जन्मजात गुण उचित वातावरण में उनके लिए भी वरिष्ठ साहित्यकारों के सानिध्य तथा मार्ग दर्शन में पुस्फुटित हुए। आजादी के अमृत महोत्सव काल में उन्होंने कुछ नाटक, निबंध, कहानियां और रचनाएं लिखी, जिनमें हरियाणवी कहानियां भी शामिल हैं। इसी बीच एक लघुकविता संग्रह अन्तत: का प्रकाशन भी हुआ और दूसरा भी तैयार है। आजकल वे साहित्य सृजन के अधूरे कार्यो को पूरा करने में व्यस्त हैं। उनका कहना है कि अपनी रचनाओं में से किसी एक को अपनी प्रिय रचना कहना कठिन है। उन्होंने प्रत्येक काव्य सृजन पर लेखक की प्रसूत पीडा को अनुभव किया है। कई कागजों पर शब्द उकेरे, काटे, फाडे, व्यथित भी हुई। तब कहीं जाकर सृजन फलीभूत हुआ, इसलिए उन्हें अपने सभी रचनाएं प्रिय हैं। डा. रमाकांता न प्रसिद्ध साहित्यकारों की लघुकथा तथा कहानियों की पुस्तकों का हरियाणवी में अनुवाद भी किया है। वहीं उन्होंने स्वयं अपनी कुछ हिंदी लघुकथाओं का मैथिली, पंजाबी तथा बुंदेली में अनुवाद किया है। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी में अनुवाद का संपादन भी किया। उन्होंने 250 लघुकथाओं, 50 कहानियों, करीब 20 नाटक तथा करीब 500 कविताओं का सृजन कर पाठकों को नई दिश देने का प्रयास किया है। उन्होंने कत्थक नृत्य, संगीत प्रकार सितार, संगीत प्रभाकर तबला आदि में संगीत प्रभाकर भी किया है। 
दूरदर्शन व आकाशवाणी पर कला का प्रदर्शन 
साहित्यकार एवं लोक कलकार के रुप में डा. रमाकांता ने हरियाणवी संस्कृति संवर्धन की दिशा में लोक पर्व, ऋतुमास उत्सवों की वीडियोग्राफी एवं वृत्तचित्र में भी लोकगीत लेखन, संकलन, गायन और संगीत निर्देशन की भूमिका भी निभाई है। इनमें हरियाणा सरकार की योजनाओं के प्रचार व प्रसार के लिए तैयार वृत्तचित्रों में नृत्य, अभिनय और गायन से संस्कृति के क्षेत्र में अपना योगदान देने वाली रमाकांता ने दूरदर्शन पर प्रयोजित ‘बोल हमारे गीत तुम्हारे’ तथा ‘अजब-अजुबे’ शीर्षक से प्रयोजित कार्यकमों के 13-13 एपीसोड में गीत लेखन और गायन की कला की छटाएं भी बिखेरी हैं। वहीं हरियाणवी संस्कृति पर आधारित सुरंग, द गैस्ट तथा थाल जैसी वेबसीरिज तथा लघुफिल्मों में अभिनय की भूमिका भी निभाई है। यही नहीं उन्होंने क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र पटियाला के सहयोग से लोकनृत्यों की प्रस्तुति में तीन दशक तक गायिका तथा कोरियोग्राफर के रुप में अपनी भूमिका निभाई है। उनके हरियाणवी लोकगीतों का साल 1980 से प्रसारण हो रहा है। 
आधुनिक युग में साहित्य सुखद 
इस आधुनिक युग में साहित्य की चुनौतियों को लेकर डा. रमाकांता का मानना है कि समकालीन साहित्य में वर्तमान सृजन श्रंखला में कुछ नई उपलब्धयाँ लेखकों के नाम दर्ज हुई है। वहीं लोककथाओं का प्रचार-प्रसार तथा प्रकाशन खूब हुआ है और अनुवाद तथा संपादन के कार्य में भी वृद्धि र्हु। दूसरी ओर आजकल लेखक अपनी रचनाओं की समीक्षा तथा आलोचना को महत्व दे रहे हैं। सांझा संग्रह प्रकाश का प्रचलन भी बढ़ा है। हाल ही में लघुकविता के क्षेत्र में भी सराहनीय कार्य हुआ है। साहित्य के क्षेत्र में यह कार्य साहित्यकारों के लिए सुखद ही माना जाएगा। लेखक और पाठक संबन्धों के बारे में डा. रमाकांता का मानना है कि आज के कुछ लेखक, विशेषकर कवि, अपने साथ पांच सात गुर्गे रखते हैं, जो गोष्ठियों में उनकी कविताओं या गजल की प्रत्येक पंक्ति पर वाह वाह कर तालियां बजाते हैं। यही कारण है कि पाठक ही श्रोता हैं, इससे पाठकों को रुष्ठ होना स्वाभाविक है। लेकिन उनके लेखन की पोल शीघ्र ही खुल जाती है। पाठक है जब जानता है और समझता है। इसलिए लेखक और उसके व्यक्तिगत जीवन में अंतर नहीं होना चाहिए अर्थात करनी और कथनी समान होना जरुरी है। लेखक का व्यक्तित्व ही तो सृजन में काफी सीमा तक प्रतिबिंबित होता है। यही अंतर ही लेखक की सफलता को निर्धारित करता है। यानी उत्कृष्ट साहित्य पाठक के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन ला सकता है। रमाकांता का नवोदित लेखकों को संदेश है कि सोना तपकर कुंदन बनता है। इसलिए अच्छा साहित्य पढ़े और रचनाएं लिखें। लेखकर कभी पूर्ण नहीं हो। इसके लिए वरिष्ठ लेखकों का मार्गदर्शन उन्हें उनकी रुचिकर विद्या में निपुण बना सकता है। 
सामाजिक सरोकारों में निहित है साहित्य 
साहित्य समाज का दर्पण भी है तथा ज्योति अर्थात मार्गदर्शक भी है। साहित्य समाज के सरोकारों को ही अपना विषय बनाता है। सामाजिक अनियमितताओं का पाठकों से परिचय करवाता है तथा उसके मूल कारणों पर प्रकाश डालता हुआ समाधान का भी संकेत देता है। समाज विहीन साहित्य की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। समाज और व्यक्तिगत विकास में साहित्य की महत्वपूर्ण सहभागिता है। समाज में उस क्षेत्र विशेष की संस्कृति फलती फूलती है। संस्कृति समाज के लोगों के लिए नैतिक मूल्यों को निर्धारित करता है, जिसका निर्वहन करना प्रत्येक मनुष्य के लिए अनिवार्य है। सुसंस्कृत समाज के लोगों का व्यक्तित्व उस समाज के अनुसार ही निर्मित होता है। समाज, परिवार और व्यक्ति तीन मुख्य स्तंभ हैं, जो अनन्यो आश्रित हैँ। साहित्य में जीवन बिंबो को ही दर्शाया जाता है। जीवन से इतर साहित्य नीरस होता है। डा. रमाकांता का मानना है कि साहित्य के विषय तो वही है, किंतु उनका विस्तार सिमट गया है। उपन्यास से लघुकथा, महाकाव्य से लघुकविता की यात्रा इस का उदाहरण है। विमर्श में विषय को पतेर के समान पतला कर दिया जाता है। विमर्श लेखन में लेखक अपने लेखन से न्याय नहीं कर पाता। अतिवादी होने के कारण साहित्य की समृद्धि प्रभावित होती है। निसंदेह यह सामयिक प्रवाह है, समाज की अनिवार्यता नहीं। 
पुस्तक प्रकाशन 
हरियाणा की महिला साहित्यकार डॉ. रमाकांता ने अपने लेखन क्षेत्र में कहानी, कविता, लघुकथा, नाटक, आलोचना, समीक्षा अनुवाद, सम्पादन जैसी विधाओं का दिशा दी है। हिंदी साहित्य क्षेत्र में उन्होंने हिन्दी उपन्यासों में असामान्य पात्र, मधुकांत की एकादश शैक्षिक कहानियाँ, नाथ संप्रदाय का अध्ययन, मधुकांत की व्यंग्यात्मक कहानियों की समीक्षा, लघु कथा संग्रह कथा मंजरी, कविता संग्रह काव्य-कुंज, कविताएं बालगीत, काव्य संग्रह वन्दन माटी का, बाल एवं किशोर साहित्य,• सांझा कहानी संग्रह और महक रिश्तों की जैसी कृतियां पाठकों के सामने पेश की हैं। हरियाणवी संस्कृति को लेकर उनके लोक साहित्य में म्हारी रीत, म्हारे गीत, जकड़ी के रंग जीवन के संग, भारतीय लोक गीतों में हरियाणा का योगदान, हरियाणवी लोक गीतों का पारम्परिक सम्बन्ध, रीत तथा गीत, लघुकथा संग्रह माल्लक दैक्खै सै, नाटक संग्रह कोथली, हरियाणा प्रदेश के पर्वोत्सव एवं ऋतुमास गीत, हरियाणा प्रदेश के जन्म तथा विवाह संस्कार, कल और आज, हरियाणा प्रदेश के लोक नृत्य, एकांकी संग्रह हौंसला, काव्य संग्रह बटुआ बाँर हरियाणवी षोडश संस्कार पुस्तकें शामिल हैं। डा. रमाकांता ने नृत्य सरोवर (सुमन पांचाल) हरियाणा कला एवं सांस्कृति विभाग,पंचकूला, पौराणिक सांग सरिता (सांग संग्रह) रलदू राम, अजायब निवासी रोहतक तथा लोकगीतों में सांस्कृति एवं सौंदर्यात्मक तत्व, डॉ० ज्योत्सना की पुस्तकों का संपादन भी किया। जबकि मेरी छँटवा कहानियाँ, मधुदीप, दिल्ली और अलबेड्ढे कहानियाँ, डा. मधुकांत, रोहतक का अनुवाद भी किया है। 
सम्मान एवं पुरस्कार 
हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठकृति पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ महिला साहित्यकार एवं लेखक डा. रमाकांता शर्मा को कई दर्जन पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्हें प्रमुख रुप से भारत भूषण सम्मान, महादेवी वर्मा कविता गौरव सम्मान, काव्य पाठ सम्मान, हिन्दी साहित्य श्री सम्मान, हिन्दी साहित्यरत्न सम्मान, अमूल्य वृद्ध सम्मान, साहित्य सोम सम्मान पत्र, विवेकानन्द शिक्षारत्न सम्मान, डॉ० राधाकृष्णन सम्मान, रक्तदान सृजन सेवा सम्मान, वूमैन पॉवर अवार्ड, ‘श्रमिका श्री‘ सम्मान, प्रज्ञा साहित्यिक सम्मान, प्रज्ञा साहित्य सृजन सम्मान, साहित्य चेतना यात्रा सम्मान, निर्मला स्मृति हिन्दी साहित्य रत्न सम्मान, सरतीदेवी मित्तल स्मृति सम्मान, लाजवन्ती चावला स्मृति साहित्य रत्न सम्मान, अवन्तिक शाकुन्तलम् सम्मान, कमन्डेशन सर्टि फिकेट, प्रशंसा-पत्र (अध्यापक दिवस तथा शिक्षक दिवस सम्मान पत्र से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा हरियाणा के तत्कालिक राज्यपाल द्वारा उन्हें रैडक्रास में समाजसेवा के उत्कृष्ट कार्यों के लिए सेवाकल में तीन बार तथा स्काऊट एंड गर्लगाइडज को राष्ट्रपति गाइडज बनाने सहयोग हेतु सम्मानित किया जा चुका है। 
29Jan-2024

सोमवार, 22 जनवरी 2024

चौपाल: हरियाणवी संस्कृति को संजोते हरियाणवी हास्य अभिनेता राजकुमार

कविता लेखक एवं हास्य कवि के रुप में भी बनी पहचान          व्यक्तिगत परिचय 
नाम: राजकुमार धनखड़ 
जन्मतिथि: 01 जनवरी 1978 
जन्म स्थान: गांव कासनी, जिला झज्जर(हरियाणा)
शिक्षा: एमए(संगीत), बीए, 
संप्रत्ति: कविता लेखन, गायन और अभिनय 
संपर्क: गांव कासनी, जिला झज्जर, मोबा. 9416178925
By-ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोककला और संस्कृति की पहचान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जीवंत रखने के मकसद से हरियाणवी लेखक, लोक कलाकार विभिन्न विधाओं में अपनी संस्कृति और परंपराओं के संवर्धन करने में जुटे हैं। ऐसे ही हरियाणवी फिल्मों व नाटकों में अभिनय, स्टेज संचालक और प्रसिद्ध हास्य कलाकार राजकुमार धनखड़ ने हरियाणवी संस्कृति को संजोने के लिए एक हास्य अभिनेता के रुप में लोकप्रियता हासिल की है। कविता लेखन के अलावा उन्होंने सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं को हास्य शैली में अपनी कला के माध्यम से प्रस्तुत करके समाज को सकारात्मक रुप से अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश दिया है। हरियाणवी फिल्मों में हास्य अभिनेता के किरदार और कविता लेखन के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में राजकुमार धनखड़ ने कई ऐसे अनुछुए पहलुओं का जिक्र किया है, जिसमें उनकी कला की अलग अलग विधाओं में हरियाणवी संस्कृति का समावेश सर्वोपरि रहा है। 
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हरियाणवी हास्य अभिनेता राजकुमार धनखड़ का जन्म 01 जनवरी 1978 को झज्जर जिले के गांव कासनी में आजाद सिंह और श्रीमती शिलवती देवी के घर में हुआ। उनके साधारण परिवार में किसी प्रकार के लेखन, साहत्य या संस्कृति का कोई माहौल नहीं रहा। वहीं राजकुमार की प्राथमिक शिक्षा भी गांव के सरकारी स्कूल में हुई तथा वे दसवीं कक्षा तक गांव में पढ़े हैं। गांव के सरकारी स्कूल में ही कभी कभार होने वाले किसी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उन्हें थोड़ा बहुत बोलने का मौका मिलता रहा। बकौल राजकुमार जब वह पांचवी या छठी कक्षा में थे तो उन्होंने एक दो कविताएं लिखी थी और उन्होंने एक हास्य नाटिका में भी हिस्सा लिया, जिसमें उनका अभिनय सभी को भा गया। स्कूल के छात्र जीवन में ही उनके लेखन और अभिनय की एक प्रकार से शुरुआत हो गई। परिवार में उसकी साहित्य या संस्कृति का किसी ने कोई हस्तक्षेप भी नहीं किया, बल्कि हौंसला अफजाई ही की। दसंवी उत्तीर्ण करने के बाद वह उन्होंने नेहरू कॉलेज झज्जर में 11वीं कक्षा में प्लस वन और प्लस टू विज्ञान संकाय के छात्र के रुप दाखिला ले लिया, इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि क्योंकि देहात के बच्चे होने के कारण साइंस साइड होने की वजह से प्लस टू में वह फेल हो गए, हालांकि एक्टिंग व संगीत का शौंक तो उन्हें था ही और उनके विज्ञान विभाग के पास ही स्कूल में संगीत विभाग भी था, इसलिए खाली समय में वह संगीत विभाग के दरवाजे पर खड़ा होकर बहुत कुछ समझने लगा था। इसके बाद उन्होंने जाट कालेज रोहतक से आर्ट साइड में इंटरमिडिएट पास की और उच्च शिक्षा के लिए वह फिर से नेहरू कॉलेज झज्जर में प्रवेश कर गये, जहां से उन्होंने म्यूजिक के साथ बीए पास किया। फिर महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक में म्यूजिक विषय से एमएए पास की। इसलिए उनका गायन का भी क्षेत्र बढ़ गया। हालांकि इससे पहले प्लस वन और प्लस टू विज्ञान संकाय की शिक्षा के दौरान उन्होंने कॉलेज में यूथ फेस्टिवल आदि गतिविधियों के तहत टैलेंट शो में भाग लेते रहे और हरियाणवी स्किट में भी भागीदारी की। इसके बाद उन्होंने इंटर कॉलेज की विभिन्न प्रतियोगिताओं में भी हिस्सेदारी की। मसलन छात्र जीवन में ही राजकुमार की लेखन, अभिनय और हास्य गायन में अभिरुचि हो गई। वह गीत व कविताएं लिखने के साथ विभिन्न कंपटीशन में हिस्सेदारी करके इस क्षेत्र में आगे बढ़ते गये। उनकी गोधू का ब्याह, गोधू की ससुराल और गोधू की फैमिली जैसी सभी कविताएं या गीत हंसी मजाक से भरी होती थी। उनके अभिनय का प्रमुख फोकस हास्य के साथ ज्यादातर चरित्र सामाजिक सरोकार, हरियाणवी लोक कला, संस्कृति और हरियाणवी भाषा के संवर्धन पर रहा है। 
इन फिल्मों में अभिनय से जीता दिल 
फिल्म और थियेटर के क्षेत्र में हास्य अभिनेता के रुप में करीब 25 साल का अनुभव रखने वाले हरियाणवी अभिनेता राजकुमार को हिंदी, हरियाणवी, अंग्रेजी और पंजाबी भाषा का ज्ञान है। इस दौरान उन्होंने फिल्म शहीद-ए-हरियाणा, तेरा मेरा वादा, सेल्यूट, हंसा, कर्म जैसी फिल्मों में अभिनय करके लोकप्रियता हासिल की। उन्होंने उन्होंने वेब सीरीज शिविर बनवास, मेरे यार की शादी 1 और 2, देसी थाना, हरियाणा में लंदन, दिल हो गया लापता, कॉलेज कांड, बवाल, विदेशी बहू और गुलाब चूरमा जैसे में भी हास्य अभिनय से दर्शकों पर राज किया है। दो वेब सीरीज में उनके साथ फिल्म निर्देशक यशपाल शर्मा भी शामिल रहे हैं। यही उन्हें कवि सम्मेलन में भी भाग लेने का मौका मिला, जिसके बाद राष्ट्रीय युथ फेस्टिवल में एक कवि के तौर पर हास्य कविताओं को सुनाने का मौका मिलने से उनका संपर्क अंतरराष्ट्रीय स्तर के कवि सुरेंद्र शर्मा, प्रताप फौजदार, शैलेश लोढ़ा जैसे कवियों से हुआ, जिनसे सराहना भी मिली। हरियाणवी फिल्मों के निर्देशक अरविंद स्वामी, हरियाणवी फिल्मों के संगीतकार भाल सिंह बल्हारा जैसे कलाकारों संगीतकारों से मुलाकात भी उसके क्षेत्र में प्रोत्साहन का सबब बना। 
यहां से मिली मंजिल 
हरियाणवी हास्य अभिनेता और गीतकार राजकुमार धनखड़ ने बताया कि कॉलेज पास आउट होते ही उन्हें पहली बार हरियाणवी स्किट में भाग लेने का मौका मिला, यह स्किट कॉलेज पास आउट होते ही निर्देशक के रुप में राजेश फौगाट करवाते थे। इसलिए इस क्षेत्र में उनके गुरु फौगाट ही रहे, लेकिन अफसोस है कि दुर्भाग्यवश वह आज इस दुनिया में नहीं हैं। महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक में संगीत विषय में एमए की शिक्षा के दौरान वहां जनार्दन शर्मा, जगबीर राठी, आनंद शर्मा जैसे लोगो के संपर्क में आया तो उनसे इस क्षेत्र में बहुत कुछ सीखने को मिला। इसका परिणाम यह रहा कि वह इंटर यूनिवर्सिटी तक गए और राष्ट्रीय स्तर तक हमारी हरियाणवी स्किट द्वितीय स्थान पर रहे। इसका कारण भी भाषा रही, जहां हरियाणवी को हिंदी में कन्वर्ट कर लिया गया था। उन्होंने बताया कि फिर भी उसके लिए यह पहली उपलब्धि से कम नहीं थी, जहां राष्ट्रीय स्तर पुरस्कार हासिल हुआ। जगबीर राठी के प्रोत्साहन से यहां इस क्षेत्र में कई तरह के अनुभव हुए, जिनकी बदौलत अलग अलग स्थानों पर राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में चुटकला और हास्य प्रतियोगिताओं में उन्हें एक हास्य अभिनेता और कलाकार के रुप में पहचान मिली। 
सम्मान व पुरस्कार 
हरियाणा की समृद्ध लोककला एवं संस्कृति के क्षेत्र में लेखन की विधा में कलाकार राजकुमार धनखड़ को तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया ने साल 2012 में फौजी जाट मेहर सिंह अवार्ड से सम्मानित किया। गीत, कविता और रागनी लेखन विद्या में उत्कृष्ट योगदान के लिए इस पुरस्कार में इक्यावन हजार रुपये, प्रशस्ति पत्र तथा अंग वस्त्र प्रदान किया जाता है। इसके अलावा उन्हें वर्ष 1997 में राज्य स्तरीय चुटकुला प्रतियोगिता में चुटकुला सम्राट सम्मान, वर्ष 1998 में जिला रोहतक रेड क्रॉस की तरफ से प्रशस्ति पत्र, वर्ष 2001 में अंतर विश्वविद्यालय युवा महोत्सव राष्ट्रीय स्तर पर द्वितीय पुरस्कार तथा वर्ष 2015 में ओस्का समिति दिल्ली द्वारा युवा कवि सम्मान से नवाजा गया है। वहीं विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यक मंचों से उन्हें बहुत से पुरस्कार मिल चुके हैं। 
22Jan-2024

सोमवार, 8 जनवरी 2024

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने रखी पतंजलि गुरुकुलम की आधारशिला

 नई शिक्षा नीति में वैदिक शिक्षा व नैतिक मूल्यों का समावेश: रक्षामंत्री 
बदलते भारत में गुरु शिष्य परंपरा गुरुकुल शिक्षा पद्धति से संभव: रामदेव 
गुरुकुल पुनः अपने अतीत के गौरव को प्राप्त करेगा: आचार्य बालकृष्ण 
ओ.पी. पाल, हरिद्वार। पतंजलि योगपीठ के 29वें स्थापना दिवस, महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200वीं जयन्ती एवं गुरुकुल ज्वालापुर के संस्थापक पूज्य स्वामी दर्शनानन्द की जयन्ती पर देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को ज्वालापुर में ‘पतंजलि गुरुकुलम्’ व आचार्यकुलम् का शिलान्यास किया। राजनाथ ने लुप्त होती देवभाषा संस्कृत के संवर्धन पर बल देते हुए कहा कि गुरुकुल इस बदलते भारत के लिए ऐसी शिक्षा पद्धति में अहम भूमिका निभाएंगें। 
समारोह में राजनाथ ने कहा कि गुरुकुलों में शिक्षा के साथ-साथ समाज में शुचिता व नैतिकता का पाठ भी पढ़ाया जाता था। उन्होंने कहा कि मैकाले ने एक षड्यंत्र के तहत ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित की जिसने हमारी गुरुकुलीय परम्परा को लगभग समाप्त ही कर दिया था। किन्तु योगगुरु स्वामी रामदेव जैसे तपस्वी महापुरुष ने गुरुकुल की परम्परा को पुनः गौरव प्रदान करते हुए पतंजलि गुरुकुलम् की आधारशिला रखी। उन्होंने उम्मीद जताई कि स्वामी रामदेव के दिशानिर्देशन में संचालित पतंजलि गुरुकुलम् भारतीय संस्कृति व सनातन की ध्वजवाहक बनेगा। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति सनातन को जीवंत रखने इस देश के गुरुओं का बहुत बड़ा योगदान है। 1500 वर्ष पूर्व नालंदा व तक्षशिला विश्वविद्यालय उसी गुरुकुलीय परम्परा के श्रेष्ठ उदाहरण हैं जहाँ से पूरा विश्व शिक्षा के क्षेत्र में दीप्तमान होता था। स्वामी जी भी उसी दिशा में कार्य कर रहे हैं तथा गुरुकुलों की स्थापना कर महर्षि दयानंद के स्वप्न को साकार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पतंजलि ने योग जैसा ग्रंथ संस्कृत में लिखा है, संस्कृत भाषा हमारी देव भाषा होने के साथ वैज्ञानिक भाषा भी है, इसलिए संसकृति के साथ लुप्त होती संस्कृत भाषा के संवर्धन में गुरुकुल अहम भूमिका निभा सकते हैं। राजनाथ सिंह ने कहा कि गुरुकुल शिक्षा प।ति के साथ ही हमें आधुनिक शिक्षा की जरुरत है, इसलिए गुरुकुल शिक्षा में वैदिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा की आवश्यकता है। इसी लिए नई शिक्षा नीति को नैतिक मूल्यों के समावेश के साथ लागू किया गया है। 
मानव सेवा को समर्पित अर्थ साम्राज्य 
इस अवसर पर स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा कि हमने गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त कर मानव सेवा के लिए विशाल अर्थ साम्राज्य स्थापित किया। अभी 500 करोड़ की लागत से पतंजलि गुरुकुलम् तथा आचार्यकुलम् तैयार करने की योजना है तथा साथ ही अगले 5 सालों में 5 से 10 हजार करोड़ रुपए शिक्षा के अनुष्ठान में खर्च करने का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि जो देश से पाया, उसे इस देश को वापस लौटाना है। हमने महर्षि दयानंद के पदचिन्हों पर चलकर योगधर्म से राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि रखा है। महर्षि दयानंद ने एक ओर वेद धर्म, सनातन धर्म की बात की तो वहीं दूसरी ओर राष्ट्र धर्म के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले बलिदानी तैयार किए। पतंजलि गुरुकुल सनातन के ध्वजवाहक तैयार करेगा जो पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करेंगे। 
नए कीतिमान स्थापित करेगा गुरुकुल 
पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण जी ने कहा कि पूज्य स्वामी दर्शनानंद जी ने अल्प संसाधनों से यह संस्था प्रारंभ कर एक स्वप्न देखा था जिसे श्रद्धेय स्वामी रामदेव जी महाराज साकार कर रहे हैं। इस संस्था ने अपनी युवावस्था के गौरव को देखा है। कहीं न कहीं यह संस्था अपनी वृद्धावस्था की तरफ जा रही थी किन्तु श्रद्धेय स्वामी जी के तप व पुरुषार्थ से यह पुनः अपने अतीत के गौरव को समेटे हुए वैभव प्राप्त करेगी। अतीत में देखें तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, राष्ट्रपति तथा पाँच प्रधानमंत्रियों ने भी गुरुकुल ज्वालापुर की भूमि को प्रणाम किया है, भविष्य में इस भूमि से नए-नए कीर्तिमान स्थापित किए जाएँगे जिसके साक्षी दुनिया के प्रतिष्ठित लोग होंगे। 
एमपी में गुरुकुल स्थापित करने की पेशकश 
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि त्रेता में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम तथा द्वापर में योगेश्वर कृष्ण ने गुरुकुलों में शिक्षा ग्रहण की। स्वामी रामदेव जी उसी गौरवशाली गुरुकुलीय परम्परा के संवाहक बन गुरुकुलीय परम्परा को गौरव प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने नई शिक्षा नीति के माध्यम से भविष्य की पीढ़ी को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का प्रण लिया है। हमारा लक्ष्य विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास है। हमें मानवीयता के उत्कृष्ट मापदण्ड स्थापित करने हैं। उन्होंने स्वामी जी को मध्य प्रदेश के उज्जैन में गुरुकुल स्थापित करने तथा मध्य प्रदेश से पतंजलि के सभी प्रकल्पों को संचालित करने के लिए आमंत्रित किया। 
देश में बहेगी संस्कृति की गंगा 
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि गुरुकुल एक विशिष्ट शब्द है जहाँ गुरु शिष्य को कुलवाहक मानकर शिक्षित कर उसका मार्ग प्रशस्त करता है। स्वामी रामदेव जी महाराज महर्षि दधिचि के समान अपना सर्वस्व देश व समाज की सेवा में न्यौछावर कर रहे हैं। यह गुरुकुल बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी प्रदान करेगा जिससे वे आदर्श नागरिक बनकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में योगदान देंगे। यह गुरुकुल व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना साकार करेगा। पतंजलि की गंगोत्री से भारतीय संस्कृति की गंगा बहेगी। 
ये भी रहे शामिल 
समारोह में केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी, एमिटी ग्रुप के चेयरमैन डॉ. अशोक चौहान, बाबा बालकनाथ महाराज, लक्ष्मण गुरु जी, अखाड़ा परिषद अध्यक्ष स्वामी रविन्द्रपुरी जी महाराज, महामण्डलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद जी महाराज, स्वामी यतीश्वरानंद, सांसद सत्यपाल सिंह, धनसिंह रावत, रमेश पौखरियाल ‘निशंक’, शोभित गर्ग, मदन कौशिक, प्रणव सिंह ‘चैम्पियन’, सुरेश चन्द्र आर्य, आचार्य स्वदेश, विनय आर्य, दयानंद चौहान, स्वामी आर्यवेश, आचार्या सुमेशा, आचार्या सुकामा, सुशील चौहान, स्वामी सम्पूर्णानंद सहित आर्य समाज के लगभग सभी विद्वान, भजनोपदेशक और संन्यासी महापुरुष, हरिद्वार के सभी पूज्य आचार्य महामण्डलेश्वर व संत महात्मा, गुरुकुल ज्वालापुर की महासभा व प्रबंधकारिणी सभा के समस्त अधिकारी व सदस्यगण तथा पतंजलि से सम्बद्ध सभी ईकाइयों के इकाई प्रमुख, अधिकारी, कर्मचारी तथा संन्यासी भाई-बहन उपस्थित रहे। 
07Jan-2024