सोमवार, 29 जनवरी 2024

साक्षात्कार: समाज और व्यक्तिगत विकास में साहित्य की अहम भूमिका: डॉ. रमाकांता

लोक साहित्य, लोक कला व संस्कृति के संवर्धन से समाज को दी नई दिशा 
             व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. रमाकांता शर्मा
जन्मतिथि: 15 जुलाई 1948 
जन्म स्थान: घरौंडा (करनाल), हरियाणा 
शिक्षा: एमए, पीएचडी (हिन्दी), पीएचडी(संगीत), बीएड (गोल्डमैडल),एलएलबी। 
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त खंड शिक्षा अधिकारी, सेवानिवृत्त सहायक प्रोफेसर, हिन्दी विभाग बीएमयू, रोहतक। 
संपर्क: 1014/20, दुर्गा कॉलोनी, रोहतक, मोबा-9896213549, ईमेल-ramapro28@gmail.com 
 By—ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में सामाजिक सभ्यता एवं संस्कृति को लेकर साहित्य साधना में जुटे ऐसे साहित्यकारों, कवियों और लेखकों में ऐसे चुनिंदा ही विद्वान है, जिन्होंने हरियाणा की संस्कृति और सभ्यता को नई दिशा देने साहित्य साधना के साथ लोक साहित्य और लोक कला व संस्कृति के संवर्धन के लिए योगदान दिया है। उनमें हरियाणा की सुप्रसिद्ध महिला साहित्यकार एवं आकाशवाणी की ग्रेडिड लोक गायिका डा. रमाकांता पिछले चार दशकों से समाज को एक सकारात्मक रुप से नई दिशा देने का प्रयास में गुणवत्ता के आधार पर साहित्य सृजन करती आ रही हैं। लोक साहित्य में समाहित संगीत, नाट्य, नृत्य तथा लोक गीतों के संकलन और शोध कार्य में जुटी काव्य एवं गीत लेखक डा. रमाकांता ने अपने लोक साहित्य एवं काव्य लेखन के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे तथ्यों का जिक्र किया है, जिससे कहा जा सकता है कि समाज और व्यक्तिगत विकास में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका है। 
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रियाणा की महिला साहित्यकार डॉ. रमाकांता का जन्म 15 जुलाई 1948 को करनाल जिले के घरौंडा में डा. जयदेव प्रसाद और शांति देवी प्रभाकर के घर में हुआ। उनका परिवार में पूरी तरह से साहित्यिक माहौल था, जहां उनकी माता ग्रामीण क्षेत्र की पढ़ी लिखी महिला थी और बड़ी बहन उर्मिलकांता शर्मा उस समय पंजाब भाषा विभाग की प्रसिद्ध कवयित्री थी, जो विभाग में सभी प्रतियोगिता में हिंदी कविताओं में पुरस्कार हासिल करती रही है। साल 1956 में जब रमाकांता कक्षा तीन में थी, तो उन्होंने खुद लिखी एक कविता स्वतंत्रता दिवस पर पढ़ी तो उसे विद्यालय के मुख्याध्यापक ने पुरस्कार के रुप में एक चांदी का रुपया ईनाम में दिया, जो आज भी जीवन की सबसे अमूल्य सम्मान को उन्होंने अभी तक धरोहर के रुप में सुरक्षित रखा हुआ है। इसके बाद वह स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर काव्य प्रतियोगिताएं जीती और स्वरचित कविताएं तत्कालीक कॉलेज मैग्जीन तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई तो उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। रमाकांता ने बताया कि उन्होंने हिंदी, पंजाबी और उर्दू भाषाओं में काव्यपाठ किया। नौकरी में आने के बाद उन्होंने कला(फाइन आर्ट) तथा संगीत विषय का अध्यापन किया, वैसे भी विरासत में मिले साहित्यिक माहौल के कारण बचपन से कला, संगीत व साहित्य से रहे संबन्ध के कारण उन्होंने असंख्य गीत व कविताएं लिखी, जो आज भी सुने जाते हैं। उनके साहित्यिक विद्या काव्य सृजन है, लेकिन उन्होंने प्राय: गद्य व पद्य सभी विधाओं में साहित्य सृजन किया है। उनके विस्तृत लेखन क्षेत्र में कहानी, कविता, लघुकथा, नाटक, आलोचना, समीक्षा अनुवाद तथा संपादन जैसी विधाएं शामिल हैं, जिसकी बदौलत उनकी हरियाणवी भाषा, हरियाणवी संस्कृति (लोक साहित्य) तथा हिंदी गद्य व पद्य में करीब तीन दर्जन पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। वे इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि लेखन के गुण जन्मजात भी होते हैं, जिन्हें बाद में परिमार्जित कर आकार दिया जाता है। ऐसे ही जन्मजात गुण उचित वातावरण में उनके लिए भी वरिष्ठ साहित्यकारों के सानिध्य तथा मार्ग दर्शन में पुस्फुटित हुए। आजादी के अमृत महोत्सव काल में उन्होंने कुछ नाटक, निबंध, कहानियां और रचनाएं लिखी, जिनमें हरियाणवी कहानियां भी शामिल हैं। इसी बीच एक लघुकविता संग्रह अन्तत: का प्रकाशन भी हुआ और दूसरा भी तैयार है। आजकल वे साहित्य सृजन के अधूरे कार्यो को पूरा करने में व्यस्त हैं। उनका कहना है कि अपनी रचनाओं में से किसी एक को अपनी प्रिय रचना कहना कठिन है। उन्होंने प्रत्येक काव्य सृजन पर लेखक की प्रसूत पीडा को अनुभव किया है। कई कागजों पर शब्द उकेरे, काटे, फाडे, व्यथित भी हुई। तब कहीं जाकर सृजन फलीभूत हुआ, इसलिए उन्हें अपने सभी रचनाएं प्रिय हैं। डा. रमाकांता न प्रसिद्ध साहित्यकारों की लघुकथा तथा कहानियों की पुस्तकों का हरियाणवी में अनुवाद भी किया है। वहीं उन्होंने स्वयं अपनी कुछ हिंदी लघुकथाओं का मैथिली, पंजाबी तथा बुंदेली में अनुवाद किया है। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी में अनुवाद का संपादन भी किया। उन्होंने 250 लघुकथाओं, 50 कहानियों, करीब 20 नाटक तथा करीब 500 कविताओं का सृजन कर पाठकों को नई दिश देने का प्रयास किया है। उन्होंने कत्थक नृत्य, संगीत प्रकार सितार, संगीत प्रभाकर तबला आदि में संगीत प्रभाकर भी किया है। 
दूरदर्शन व आकाशवाणी पर कला का प्रदर्शन 
साहित्यकार एवं लोक कलकार के रुप में डा. रमाकांता ने हरियाणवी संस्कृति संवर्धन की दिशा में लोक पर्व, ऋतुमास उत्सवों की वीडियोग्राफी एवं वृत्तचित्र में भी लोकगीत लेखन, संकलन, गायन और संगीत निर्देशन की भूमिका भी निभाई है। इनमें हरियाणा सरकार की योजनाओं के प्रचार व प्रसार के लिए तैयार वृत्तचित्रों में नृत्य, अभिनय और गायन से संस्कृति के क्षेत्र में अपना योगदान देने वाली रमाकांता ने दूरदर्शन पर प्रयोजित ‘बोल हमारे गीत तुम्हारे’ तथा ‘अजब-अजुबे’ शीर्षक से प्रयोजित कार्यकमों के 13-13 एपीसोड में गीत लेखन और गायन की कला की छटाएं भी बिखेरी हैं। वहीं हरियाणवी संस्कृति पर आधारित सुरंग, द गैस्ट तथा थाल जैसी वेबसीरिज तथा लघुफिल्मों में अभिनय की भूमिका भी निभाई है। यही नहीं उन्होंने क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र पटियाला के सहयोग से लोकनृत्यों की प्रस्तुति में तीन दशक तक गायिका तथा कोरियोग्राफर के रुप में अपनी भूमिका निभाई है। उनके हरियाणवी लोकगीतों का साल 1980 से प्रसारण हो रहा है। 
आधुनिक युग में साहित्य सुखद 
इस आधुनिक युग में साहित्य की चुनौतियों को लेकर डा. रमाकांता का मानना है कि समकालीन साहित्य में वर्तमान सृजन श्रंखला में कुछ नई उपलब्धयाँ लेखकों के नाम दर्ज हुई है। वहीं लोककथाओं का प्रचार-प्रसार तथा प्रकाशन खूब हुआ है और अनुवाद तथा संपादन के कार्य में भी वृद्धि र्हु। दूसरी ओर आजकल लेखक अपनी रचनाओं की समीक्षा तथा आलोचना को महत्व दे रहे हैं। सांझा संग्रह प्रकाश का प्रचलन भी बढ़ा है। हाल ही में लघुकविता के क्षेत्र में भी सराहनीय कार्य हुआ है। साहित्य के क्षेत्र में यह कार्य साहित्यकारों के लिए सुखद ही माना जाएगा। लेखक और पाठक संबन्धों के बारे में डा. रमाकांता का मानना है कि आज के कुछ लेखक, विशेषकर कवि, अपने साथ पांच सात गुर्गे रखते हैं, जो गोष्ठियों में उनकी कविताओं या गजल की प्रत्येक पंक्ति पर वाह वाह कर तालियां बजाते हैं। यही कारण है कि पाठक ही श्रोता हैं, इससे पाठकों को रुष्ठ होना स्वाभाविक है। लेकिन उनके लेखन की पोल शीघ्र ही खुल जाती है। पाठक है जब जानता है और समझता है। इसलिए लेखक और उसके व्यक्तिगत जीवन में अंतर नहीं होना चाहिए अर्थात करनी और कथनी समान होना जरुरी है। लेखक का व्यक्तित्व ही तो सृजन में काफी सीमा तक प्रतिबिंबित होता है। यही अंतर ही लेखक की सफलता को निर्धारित करता है। यानी उत्कृष्ट साहित्य पाठक के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन ला सकता है। रमाकांता का नवोदित लेखकों को संदेश है कि सोना तपकर कुंदन बनता है। इसलिए अच्छा साहित्य पढ़े और रचनाएं लिखें। लेखकर कभी पूर्ण नहीं हो। इसके लिए वरिष्ठ लेखकों का मार्गदर्शन उन्हें उनकी रुचिकर विद्या में निपुण बना सकता है। 
सामाजिक सरोकारों में निहित है साहित्य 
साहित्य समाज का दर्पण भी है तथा ज्योति अर्थात मार्गदर्शक भी है। साहित्य समाज के सरोकारों को ही अपना विषय बनाता है। सामाजिक अनियमितताओं का पाठकों से परिचय करवाता है तथा उसके मूल कारणों पर प्रकाश डालता हुआ समाधान का भी संकेत देता है। समाज विहीन साहित्य की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। समाज और व्यक्तिगत विकास में साहित्य की महत्वपूर्ण सहभागिता है। समाज में उस क्षेत्र विशेष की संस्कृति फलती फूलती है। संस्कृति समाज के लोगों के लिए नैतिक मूल्यों को निर्धारित करता है, जिसका निर्वहन करना प्रत्येक मनुष्य के लिए अनिवार्य है। सुसंस्कृत समाज के लोगों का व्यक्तित्व उस समाज के अनुसार ही निर्मित होता है। समाज, परिवार और व्यक्ति तीन मुख्य स्तंभ हैं, जो अनन्यो आश्रित हैँ। साहित्य में जीवन बिंबो को ही दर्शाया जाता है। जीवन से इतर साहित्य नीरस होता है। डा. रमाकांता का मानना है कि साहित्य के विषय तो वही है, किंतु उनका विस्तार सिमट गया है। उपन्यास से लघुकथा, महाकाव्य से लघुकविता की यात्रा इस का उदाहरण है। विमर्श में विषय को पतेर के समान पतला कर दिया जाता है। विमर्श लेखन में लेखक अपने लेखन से न्याय नहीं कर पाता। अतिवादी होने के कारण साहित्य की समृद्धि प्रभावित होती है। निसंदेह यह सामयिक प्रवाह है, समाज की अनिवार्यता नहीं। 
पुस्तक प्रकाशन 
हरियाणा की महिला साहित्यकार डॉ. रमाकांता ने अपने लेखन क्षेत्र में कहानी, कविता, लघुकथा, नाटक, आलोचना, समीक्षा अनुवाद, सम्पादन जैसी विधाओं का दिशा दी है। हिंदी साहित्य क्षेत्र में उन्होंने हिन्दी उपन्यासों में असामान्य पात्र, मधुकांत की एकादश शैक्षिक कहानियाँ, नाथ संप्रदाय का अध्ययन, मधुकांत की व्यंग्यात्मक कहानियों की समीक्षा, लघु कथा संग्रह कथा मंजरी, कविता संग्रह काव्य-कुंज, कविताएं बालगीत, काव्य संग्रह वन्दन माटी का, बाल एवं किशोर साहित्य,• सांझा कहानी संग्रह और महक रिश्तों की जैसी कृतियां पाठकों के सामने पेश की हैं। हरियाणवी संस्कृति को लेकर उनके लोक साहित्य में म्हारी रीत, म्हारे गीत, जकड़ी के रंग जीवन के संग, भारतीय लोक गीतों में हरियाणा का योगदान, हरियाणवी लोक गीतों का पारम्परिक सम्बन्ध, रीत तथा गीत, लघुकथा संग्रह माल्लक दैक्खै सै, नाटक संग्रह कोथली, हरियाणा प्रदेश के पर्वोत्सव एवं ऋतुमास गीत, हरियाणा प्रदेश के जन्म तथा विवाह संस्कार, कल और आज, हरियाणा प्रदेश के लोक नृत्य, एकांकी संग्रह हौंसला, काव्य संग्रह बटुआ बाँर हरियाणवी षोडश संस्कार पुस्तकें शामिल हैं। डा. रमाकांता ने नृत्य सरोवर (सुमन पांचाल) हरियाणा कला एवं सांस्कृति विभाग,पंचकूला, पौराणिक सांग सरिता (सांग संग्रह) रलदू राम, अजायब निवासी रोहतक तथा लोकगीतों में सांस्कृति एवं सौंदर्यात्मक तत्व, डॉ० ज्योत्सना की पुस्तकों का संपादन भी किया। जबकि मेरी छँटवा कहानियाँ, मधुदीप, दिल्ली और अलबेड्ढे कहानियाँ, डा. मधुकांत, रोहतक का अनुवाद भी किया है। 
सम्मान एवं पुरस्कार 
हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठकृति पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ महिला साहित्यकार एवं लेखक डा. रमाकांता शर्मा को कई दर्जन पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्हें प्रमुख रुप से भारत भूषण सम्मान, महादेवी वर्मा कविता गौरव सम्मान, काव्य पाठ सम्मान, हिन्दी साहित्य श्री सम्मान, हिन्दी साहित्यरत्न सम्मान, अमूल्य वृद्ध सम्मान, साहित्य सोम सम्मान पत्र, विवेकानन्द शिक्षारत्न सम्मान, डॉ० राधाकृष्णन सम्मान, रक्तदान सृजन सेवा सम्मान, वूमैन पॉवर अवार्ड, ‘श्रमिका श्री‘ सम्मान, प्रज्ञा साहित्यिक सम्मान, प्रज्ञा साहित्य सृजन सम्मान, साहित्य चेतना यात्रा सम्मान, निर्मला स्मृति हिन्दी साहित्य रत्न सम्मान, सरतीदेवी मित्तल स्मृति सम्मान, लाजवन्ती चावला स्मृति साहित्य रत्न सम्मान, अवन्तिक शाकुन्तलम् सम्मान, कमन्डेशन सर्टि फिकेट, प्रशंसा-पत्र (अध्यापक दिवस तथा शिक्षक दिवस सम्मान पत्र से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा हरियाणा के तत्कालिक राज्यपाल द्वारा उन्हें रैडक्रास में समाजसेवा के उत्कृष्ट कार्यों के लिए सेवाकल में तीन बार तथा स्काऊट एंड गर्लगाइडज को राष्ट्रपति गाइडज बनाने सहयोग हेतु सम्मानित किया जा चुका है। 
29Jan-2024

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