सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

साक्षात्कार: साहित्य के बिना व्यक्ति में संवेदनशीलता असंभव: डा. शमीम शर्मा

हरियाणा एन्साइक्लोपीडिया के दस खंडों का संपादन करने में दिया अहम योगदान 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. शमीम शर्मा 
जन्म तिथि: 17 मार्च 1959 
जन्म स्थान: गांव जुम्बा, जिला मलोट (पंजाब) 
शिक्षा: एमए (स्वर्णपदक प्राप्त), एमफिल (स्वर्णपदक प्राप्त) पीएचडी (हिन्दी) कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र। 
संप्रत्ति: कुशल प्रशासक, पूर्व प्राचार्या, यूजीसी में नैक समिति की मनोनीत सदस्य। 
BY--ओ.पी. पाल 
रियाणा साहित्य जगत में महिला साहित्यकार एवं शिक्षाविदों में डा. शमीम शर्मा एक ऐसा इकलौता नाम है, जिन्होंने महिला सशक्तिकरण और सामाजिक सरोकार के मुद्दों पर संवेदनशील लेखन ही नहीं किया, बल्कि समाज की बेटियों को बेटो की तर्ज पर उनमें शिक्षा और नीडरता के भाव का संचार करने की मुहिम चलाकर समाज की विचारधारा को सकारात्मकता की राह दिखाई। देश में हरियाणा एन्साइक्लोपीडिया के दस खंडों का संपादन करने और उत्तर भारत में हिंदी भाषा में ‘आत्मकथा’ लिखने और हरियाणवी भाषा में हास्य ग्रंथ लिखने वाली पहली महिला लेखिका के रुप में उनका अकेला नाम सामने है। समाज में सभ्यता और संस्कृति तथा सामाजिकता की अलख जगाने में जुटी डा. शमीम शर्मा ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक एवं सामाजिक सेवा सफर के ऐसे अनछुए पहलुओं को भी उजागर किया, जिसमें उनका यह भी मानना है कि किसी भी व्यक्ति को संवेदनशील होने के लिए साहित्य से बेहतर कोई माध्यम नहीं हो सकता। 
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रियाणा में नारी शक्ति की परिचायक बनी डा. शमीम शर्मा का जन्म 17 मार्च 1959 को पंजाब में मलोट जिले के जुम्बा गांव में उस जमाने के सुप्रसिद्ध साहित्यकारों में शुमार चर्चित रचनाकार पूरन मुद्गल और श्रीमती रवि कांता के घर में हुआ था। मसलन उन्हें बचपन से ही परिवार में साहित्यिक संस्कार मिले हैं। डा. शर्मा ने बताया कि उनके पिता पूरन मुद्गल हरियाणा के वरिष्ठ साहित्यकारों में बहुत अच्छे साहित्यकार, कवि और समीक्षक के रूप में पहचाने जाते थे। बचपन में पिता के साथ ही वह कवि सम्मेलनों में जाती थी। उन्होंने बताया कि जब वह 16 साल की थी और दसवीं करने के बाद एसपी यूनिवर्सिटी करने के बाद बीए प्रथम वर्ष में दाखिला लिया, तो अपने आपको आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपनी पढ़ाई पर फोकस करने के साथ एमए और एमफिल करके स्वर्ण पदक तक हासिल किये। लघुकथा पर एमफिल और हरियाणा से लघुकथा पर सर्वप्रथम पीएचडी करने वाली डा. शमीम शर्मा शायद देश की पहली महिला साहित्यकार हैं? उन्होंने अपने अधिकांश लेखन में नारियों पर फोकस रखते हुए समाज को यही संदेश देने का प्रयास किया, कि बेटियां भी बेटों से कम नहीं हैं। चूंकि उन्होंने साक्षरता मिशन 1994 में बहुत काम किया और इस दौरान गांवों में जाने पर बेटियों के साथ हो रहे सामाजिक शोषण और भेदभाव को भी देखा। महिला सशक्तीकरण और उनके सामाजिक और शिक्षा क्षेत्र में उत्थान पर लेखन एवं सामाजिक सेवा में जुटी डा. शमीम शर्मा ने हरियाणा उच्चतर शिक्षा विभाग में हरकी देवी महिला कॉलेज की प्राचार्या के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली और अब वह हिसार के एक छोटे से गांव भिवानी रोहिला में महिला शिक्षा की अलख जगाने के मकसद से एक महिला कॉलेज का संचालन कर रही हैं, जिसकी नीवं उन्होंने 16 साल की उम्र में ही रख दी थी। डा. शमीम ने बताया कि उन्होंने हरियाणा में बेटियों को समाजिक, शिक्षा और भेदभाव की जंजीरों से जकड़ी उनकी स्वतंत्रता के लिए रचनाएं लिखी और उनकी रचनाओं में सामाजिक विसंगतियों के प्रमुख फोकस में महिलाओं की स्थिति और उनके उत्थान पर ज्यादा है। उन्होंने बताया कि उन्होंने 1980 के दौरान ऐसे समय में अपनी पहली रचना के रुप में कुरुक्षेत्र की पत्रिका कुरुशंक में लघुकथा विशेषांक का संपादन किया। 
हरियाणा साहित्य को नया आयाम 
हरियाणा के साहित्य जगत को नया आयाम देने में शमीम शर्मा का सबसे महत्वपूर्ण योगदान हरियाणा इन्साइक्लोपीडिया के दस 10 खंडों का संपादन करने में है। साहित्य के क्षेत्र में ऐसा विश्वकोष लिखने का हरियाणा में उनका यह कार्य महज 18 माह के भीतर माउंट एवरेस्ट की चोटी फतह करने से कम नहीं था। यह इसलिए भी अहम है कि ऐसा इन्साइक्लोपीडिया अभी तक देश के किसी अन्य राज्य में नहीं लिखा गया है। यही नहीं शायद वे उत्तर भारत में ऐसी अकेली महिला रचनाकार है जिन्होंने हिंदी में ‘आत्मकथा’ लिखी हो। साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने हरियाणवी भाषा में हास्य संग्रह लिखकर उस धारणा को भी तोड़ा है कि हास्य व्यंग्य केवल पुरुष का ही काम है। साहित्यकार, शिक्षिका, प्राचार्या व प्रशासक के रुप में चार दशक के अनुभव के साथ उन्होंने अब तक 45 बार से भी ज्यादा रक्तदान करके उन्हेंने नर और नारियों के अलग अलग दृष्टिकोण रखने वाले समाज को नारी शक्ति की पहचान करने की भी सीख दी है। ‘युवा महिला केंद्र’ एवं ‘जज़्बा’ की संस्थापक प्रधान के रुप में सामाजिक कार्यो में जुटी डा. शमीम शर्मा का आज के आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को लेकर एक अलग ही विचार है। उन्होंने कहा कि खासकर आज की युवा यदि साहित्य से जुड़ी हो तो प्रेम करने वाले प्रेम के टुकड़े टुकड़े करने उन्हें फेंकने का कृत्य न करते होते। इसलिए युवा पीढ़ी को साहित्य से जोड़ना आवश्यक है, जो उन्हें सामाजिकता और संस्कृति की सीख दे सकता है। उनका कहना है कि वर्तमान में इतना भागा दौड़ी का समय में बड़ी रचनाओं के पाठक कम है। इसलिए साहित्य की लघु कथा, लघु निबंध और कविता एक सशक्त माध्यम है, जो वर्तमान समय में व्यक्ति के बहुत निकट भी है।
प्रकाशित पुस्तकें 
प्रसिद्ध साहित्यकार डा. शमीम शर्मा की प्रकाशित 19 पुस्तकों से कहीं ज्यादा उनके द्वारा किया गया हरियाणा एन्साइक्लोपीडिया के 10 खंडों का सम्पादन सुर्खियों में है। जबकि कुरुशंख (लघुकथा विशेषांक का सम्पादन), कुरुक्षेत्र हस्ताक्षर (लघुकथा संग्रह), अजन्मी बेटी की चिट्ठी (विचारोत्तेजक आलेख), पंचनाद (संतों की वाणी में क्रान्ति चेतना) सम्पादन, हिन्दुस्तान के ससुर (महिला सशक्तीकरण संबंधी आलेख), चैपाल के मखौल (हरियाणवी हास्य), चैपाल के मखौल भाग-दो (हरियाणवी हास्य) चैपाल के चाल़े (हरियाणवी हास्य), चैपाल पै ताऊ (हरियाणवी हास्य), चैपाल पै टाब्बर टोल़(हरियाणवी हास्य), चैपाल पै रोडवेज़ (हरियाणवी हास्य), थैंक्यू अल्ट्रासाउंड (महिला सशक्तीकरण संबंधी आलेख), हिन्दुस्तान के ससुर (महिला सशक्तीकरण संबंधी आलेख सुर्खियों में हैं। इसके अलावा उन्होंने एक बिटिया तो जरूरी है (लघुकथा संग्रह), रोशनी हैं हम (कविता संग्रह), मंगल सूत्र और मेडल (महिला सशक्तीकरण पर आधारित निबन्ध), कोरोना की चिंगारियां (विचारपरक निबन्ध) बेटे बेटियों में खूब फर्क है (समसामयिक विषयों पर आधारित निबन्ध), दो नम्बर वाली लक्ष्मी (विचारोत्तेजक आलेख), जादूभरा साथ (कविता संग्रह), एक है शमीम (आत्मकथा) जैसी पुस्तकों की रचना की है। Marbles To Marvels ;Translation of my autobiography in English by Raman Mohan), वहीं तीन साल तक चैपाल (पाक्षिक पत्र) का सम्पादन भी किया।  ‘दैनिक ट्रिब्यून’ चण्डीगढ़ एवं ‘हिन्दी मिलाप’ हैदराबाद में पिछले दो दशक से साप्ताहिक कॉलम में स्तम्भ लेखन रही हैं। 
सम्मान एंव पुरस्कार 
हरियाणा साहित्य अकादमी ने डा. शमीम शर्मा को साल साल 2017 के लिये श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान से नवाजा है। इससे अलावा उन्हें साहित्य सेवा में हरियाणा साहित्य अकादमी विशिष्ट साहित्यसेवी पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। जबकि केंद्रीय साहित्य अकादमी दिल्ली से हरियाणवी भाषा पर काम करने के लिए उन्हें ‘भाषा सम्मान’ से नवाजा गया। वहीं हरियाणा एन्साइक्लोपीडिया के दस खण्डों के सम्पादन हेतु हरियाणा सरकार ने एक लाख रुपये की राशि से पुरस्कृत कर सम्मान दिया। समाज सेवा कार्यो में उत्कृष्टता हेतु कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय मदर टेरेसा द्वारा स्वर्ण पदक मिला, तो वहीं 2001 की जनगणना में सराहनीय सहयोग के लिए राष्ट्रपति के रजत पदक का सम्मान मिला। उन्हें 45 से ज्यादा बार रक्तदान करने और ऐसे कार्यो में उल्लेखनीय कार्य करने हेतु कई बार सम्मानित किया जा चुका है। 
27Feb-2023

मंडे स्पेशल: सौर ऊर्जा से रोशन होने लगा हरियाणा

सरकार की मनोहर ज्योति योजना से बिजली खर्च में कमी गरीब परिवारों को योजना में दी जा रही है प्राथमिकता 
ओ.पी. पाल.रोहतक। हरियाणा में बिजली के वैकल्पिक स्रोत के रुप में राज्य सरकार सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन दे रही है, ताकि आमजन बिजली के खर्चे कम करके अपने जरुरत की बिजली खुद ही पैदा कर सके। बिजली के खर्चे को कम करने की दिशा में राज्य में चलाई जा रही मनोहर ज्योति योजना के तहत सोलर पैनल लगावाने के लिए सब्सिड़ी भी मुहैया करा रही है। प्रदेश में 4560 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है, जिसमें से सरकार की योजना के तहत सरकारी भवनों और निजी घरो व भवनों की छतों पर स्थापित सोलर पैनल के जरिए 990.67 मेगावाट क्षमता सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है। प्रदेश में कृषि सिंचाई के लिए कृषि वाटर पंप लगाने के मकसद से नहरों के किनारे भी सोलर पैनल लगाने की योजना है। सरकार को उम्मीद है कि आने वाले समय में वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत बिजली की समस्या के समाधान का सबब बनेंगे। 
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रियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पिछले सप्ताह ही पिछले आठ साल में बिजली सुधार के लिए योजनाओं को बड़ी उपलब्धि करार दिया और कहा कि सरकार के प्रयासो की बदौलत राज्य में लाइन लॉसिस 25 प्रतिशत से घटकर 13.43 प्रतिशत रह गया है। इस नतीजे की पृष्ठभूमि में प्रदेश में बिजली उत्पादन की बढ़ोतरी के साथ वैकल्पिक स्रोतों को प्रोत्साहन देने वाली योजनाएं भी शामिल है। केंद्र सरकार देशभर में वैकल्पिक उर्जा के रुप में सौर ऊर्जा को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए राज्यों को सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए केंद्रीय सहायता भी दे रही है, जिसमें किसानों के लिए कृषि वाटर पंप के लिए पीएम कुसुम योजना के तहत प्रोत्साहित किया जा रहा है, तो स्ट्रीट लाइटो के रोशन करने के लिए अटल ज्योति योजना चलाई जा रही है। हरियाणा सरकार ने भी राज्य में बिजली की समस्या दूर करने की दिशा में बिजली के वैकल्पिक स्रोत के रुप में लोगों को घरो की छतों पर सोलर पैनल लगवाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है, जिसके लिए प्रदेश में 2017 से आरंभ की गई मनोहर ज्योति योजना को कार्यान्वित किया जा रहा है। इस योजना के लिए राज्य सरकार किलोवाट के हिसाब से सोलर पैनल पर आने वाले खर्च पर 20 से 40 प्रतिशत तक सब्सिडी भी मुहैया करा रही है। यही नहीं राज्य सरकार खेतों में पानी की समस्या दूर करने और हर क्षेत्र में सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए सोलर पंप योजना और किसानों को सोलर पैनल जैसी योजना भी चला रही है। केंद्र सरकार की नीति के तहत देश के ऊर्जा शहरों की सूची में हरियाणा का पंचकूला सौर ऊर्जा शहर के रुप में विकसित किया जा चुका है। 
वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन में बढ़ोतरी 
प्रदेश में बिजली व्यवस्था के सुधार की दिशा में ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को लेकर हरियाणा सरकार ने हरियाणा जैव-ऊर्जा नीति 2018 अधिसूचित की थी। इसी प्रकार सरकार सौर ऊर्जा जैसे बिजली के कई केंद्र सरकार की गैर परंपरारिक नीति के तहत कई योजनाएं चला रही है। प्रदेश में बीते साल के अंत तक 1301.05 मेगावाट बिजली का उत्पादन ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतो से हुआ है। इसमें सौर ऊर्जा से 990.67 मेगावाट, लघु पन विद्युत से 73.50 मेगावाट और बायो विद्युत से 258.88 मेगावाट क्षमता बिजली स्थापित की गई। प्रदेश में घरों की छतों के अलावा अकेले सरकारी भवनों की छतो पर लगे सोलर पैनलों से भी पिछले पांच साल में 358.83 मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन होने लगा है। प्रदेश में ठोस अपिष्ट से सोनीपत में एक मात्र ऊर्जा संयंत्र से भी आठ मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है। 
सोलर पैनल पर सब्सिडी
मनोहर ज्योति योजना के तहत सोलर पैनल लगवाने पर 22,500 का खर्च आ रहा है। इसके खर्च में सरकार योजना के तहत 15,000 की सब्सिडी की राशि संबन्धित उपभोक्ता के बैंक खाते में भेज रही है। यानी अपने घर की छतो पर सोलर पैनल लगवाने वालो को केवल 7500 का ही भुगतान करना पड़ रहा है। इस योजना के तहत लोग सूचीबद्ध की गई कंपनियों से सोलर पैनल लगवा सकते हैं। इस पर लोगों को 3 किलोवाट का सोलर पैनल लगवाने पर 40 प्रतिशत और 3 किलोवाट से दस किलोवाट का सोलर पैनल लगवाने पर 20 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाएगी। 
बीपीएल परिवार को प्राथमिकता 
प्रदेश सरकार इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले, अनुसूचित जाति परिवार, बिजली रहित जगह में रहने वाले शहरी व ग्रामीण परिवार, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों वाला ग्रामीण परिवार जैसे वर्ग को प्राथमिकता दे रही है। इस श्रेणी को योजना के तहत सोलर पंप लगवाने के लिए 40 से 65 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है। हालांकि सरकार की मनोहर ज्योति योजना का लाभ पाने के लिए कोई भी आवेदन कर सकता है। एक परिवार केवल एक बार ही मनोहर ज्योति योजना का लाभ उठा सकता है। सरकार इस योजना के माध्यम से हर घर बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना रही है। मसलन इस योजना में सोलर पैनल लगवाने के लिए केवल एक बार ही खर्च करना है और कोई मासिक बिल का झंझट भी नहीं है। 
क्या है सोलर पैनल 
मनोहर ज्योति योजना में सोलर पैनल लगाए जाते हैं उनमें लिथियम 80 एएच की बैटरी होगी। यह सूरज की किरणों के पैनल पर पड़ने से चार्ज होगी और बिजली का उत्पादन होगा। योजना के तहत घर की छत पर 150 वाट का सोलर पैनल लगाया जाएगा, जो तीन एलईडी लाइट, एक पंखा और एक मोबाइल चार्जर के लिए काफी है। इस योजना के तहत प्रदेश में घरो की छतों पर सोलर पैनल लगाए जा रहे हैं। 
कुसुम योजना से किसानों को लाभ 
केंद्र सरकार की प्रदेश में कार्यान्वित प्रधानमंत्री कुसुम योजना से सोलर वाटर पंप से पिछले तीन साल में हरियाणा के 40218 किसानों को सिंचाई का लाभ मिला है। इसमें साल 2020-21 में 8166, 2021-22 में 23798 तथा 2022-23 के दौरान पिछले दिसंबर के अंत तक 8254 किसानों को खतों में सिंचाई के लिए 268.1 मेगावाट सौर ऊर्जा का लाभ मिला है। इस योजना के लिए केंद्र सरकार से इन तीन सालों में हरियाणा सरकार को 314.70 करोड़ रुपये की राशि जारी की जा चुकी है। 
योजना के लिए जरुरी दस्तावेज 
सरकारी की इस योजना का लाभ प्रदेश के मूल निवासी को ही दिया जाएगा। इसके लिए योजना के तहत सोलर पैनल लगवाने वालों को आवेदन करते समय आधार कार्ड, बैंक खाता, निवास प्रमाण पत्र, बिजली का बिल, बीपीएल राशनकार्ड, पासपोर्ट साइज फोटो, मोबाइल नंबर जैसे दस्तावेज उपलब्ध कराना जरुरी है। इस योजना के लिए ऑनलाइन आवेदन सरल पोर्टल हरियाणा की आधिकारिक वेबसाइट पर किया जा सकता है। 
  27Feb-2023

सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

चौपाल: लोक कला व संस्कृति की जड़ो को समझना जरुरी: डा. अल्पना सुहासिनी

लेखन के लिए साहित्य पढ़ना बेहद ज़रूरी 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. अल्पना सुहासिनी 
पिता: निर्दोष हिसारी 
जन्म: हिसार (हरियाणा) 
शिक्षा:बीए ऑनर्स (हिन्दी), एमए(हिन्दी), पीएचडी(हिन्दी) संप्रत्ति: लेखिका, गजलकार, अभिनय एवं मंच संचालिका, संपर्क: राजनगर एक्सटेंशन, गाजियाबाद (यूपी), ईमेल-2011alpana@gmail.com 
By- ओ.पी. पाल
रियाणवी लोक कला एवं संस्कृति को संजोने के मकसद से समाज को नई दिशा देने वाले साहित्यकारों, फिल्म एवं रंगमंच कलाकारों, गीतकारों की महत्वपूर्ण भूमिका किसी से छिपी नहीं है। ऐसे ही व्यक्तित्व की धनी डा. अल्पना सुहासिनी भी अपनी गजल और गीत लेखन के साथ-साथ अभिनय और मंच संचालन की फनकार के रुप में बड़ी पहचान बन चुकी है। फीचर फिल्मों, लघु फिल्मों तथा वेब सिरीज में अपने अभिनय से वह हरियाणा में बिगड़ते सामाजिक ताना बाना जैसी सामाजिक बुराईयों को उजागर कर साहित्य, कला व संस्कृति की मूल जड़ो को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दो पर लेखन करने में जुटी कवियत्रि, पत्रकार, लेखिका और गजलकार डा. अल्पना सुहासिनी ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान कई ऐसे अनछुए पहलुओं को साझा किया, जो खासतौर से इस आधुनिक युग में हरियाणवी सिनेमा, लोक कला व संस्कृति का सबब बनेगी। 
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रियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार निर्दोष हिसारी के परिवार में जन्मी डा. अल्पना सुहासिनी को बचपन में ही किताबों का साथ मिला, जिनकी माता श्रीमती कुसुम निर्दोष भी शिक्षित महिला हैं, जिन्होंने पिता के संसार छोड़ने के बाद पढ़ने और आगे बढ़ने की सूझबूझ दी। अल्पना के दादा कालूराम लोहमारोड़ भी समाज के बेहद प्रतिष्ठित एवम सम्मानित व्यक्तित्व थे। पिता का एक प्रबंध काव्य प्रकशित हो चुका है, एक उपन्यास व्याकुल लहरें और एक गीत ग़ज़ल संग्रह भी उनके देहावसान के बाद प्रकशित करवाया गया। डा. अल्पना ने बताया कि बचपन से ही वह अपने दादा और पिता की ऊंगली पकड़कर विभिन्न सभाओं और आयोजनों में जाने लगी थी। पांच भाई बहनों में सबसे छोटी थी। जब वह आठवीं कक्षा मे थी तो उनके पिता के देहावसान के बाद उनकी साहित्यिक विरासत को उनके भाई सदोष ने संभाला और उसे सेहजने का काम किया। इस प्रकार उसमें भी साहित्यिक अभिरुचि पैदा हुई। जबकि प्रारंभिक शिक्षा के दौरान जब वह केडी शास्त्री स्कूल में पढ़ रही थी तो वह भाषण, वाद विवाद प्रतियोगिता आदि सभी सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेती थी। जब वह नवीं कक्षा में अपने स्कूल से बाहर एक प्रतियोगिता में गई, तो परिवार में सभी ने मिठाई खिलाकर उसे प्रोत्साहित करके हौंसला बढ़ाने का काम किया। इसके बाद वह राजकीय महाविद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रही थी तो वहां भी उसने मंचों पर इन गतिविधियों को जारी रखा, जहां शिक्षकों ने इतना प्रोत्साहन दिया कि कॉलेज में नाटक के लिए ऑडिशन में उनका चयन मुख्य किरदार के लिए हो गया। जब वह नाटक प्रतियोगिता में शामिल हुआ तो उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनय का अवार्ड मिला। इससे बढ़े आत्मविश्वास ने उन्हें रंगमंच और अभिनय के प्रति हौंसला दिया। इसी दौरान उनका आकाशवाणी हिसार में पहली आकस्मिक उद्घोषिका के तौर पर चयन हो गया। वह हिसार में एक दैनिक समचार पत्र में पहली महिला पत्रकार भी बनी और उपसंपादक के पद तक कार्य किया। 
यहां से मिला अभिनय का हौंसला
अभिनय के रुप में मंचन की कला का विस्तार कॉलेज में हो रहा था और उसी दौरान उन्होंने हरियाणवी लोक साहित्य एवं संस्कृति विषयक डिप्लोमा ज्वॉइन किया और उसमें पिंगला भरथरी स्वांग का मंचन किया, जिसमें उन्हें पिंगला के सशक्त क़िरदार को निभाने का मौका मिला। डिप्लोमा के शिक्षकों के मार्गदर्शन में बहुत कुछ सीखने को मिला। जहां तक फ़िल्मों में अभिनय करने का सवाल है तो उसका श्रेय बॉलीवुड अभिनेता एवं निर्देशक यशपाल शर्मा को जाता है, जिन्होंने फिचर फिल्म ‘एस पी चौहान’ में अभिनय करने का पहला अवसर दिया। जबकि लेखन के क्षेत्र में पीएचडी के दौरान महाकवि डॉ. कुंवर बेचैन का सान्निध्य मिला और उन्होंने ही लेखन हेतु प्रोत्साहित किया और कुछ साहित्यिक संस्थाओं से भी जोड़ा। हालांकि भाई सदोष हिसारी भी निरंतर लेखन हेतु प्रोत्साहित करते रहते थे। जबकि साहित्यिक गुरु दीपक नगाइच रोशन के मार्गदर्शन में उन्होंने ग़ज़ल की बारीकियों को जानने और समझने का अवसर मिला। वहीं शादी के बाद उनके पति राजीव नागर और बच्चों दिव्यांश व कनिष्का ने भी उनके अभिनय, लेखन, गजल गायन या मंच संचालन के लिए हमेशा सहयोग देकर आगे बढ़ते रहने के लिए प्रोत्साहित करने का ही काम किया है। 
स्वस्थ्य कला लोकप्रियता का सबब 
डा. सुहासिनी का मानना है कि आधुनिक युग में भी साहित्य, संस्कृति और कला कभी लुप्त नहीं हो सकती, क्योंकि ये मूल जड़ो से जुड़ी होती है। इनका स्वरुप बदल सकता है, लेकिन सोशल मीडिया में साहित्य व कला के क्षेत्र विश्वास और रुझान बढ़ा है। हां आज युवा पीढ़ी बिना पठन पाठन के ही जल्द से जल्द लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास कर रही है, जो इस त्वरित प्रक्रिया की चाहत घातक साबित हो रही है। साहित्य या कला समर्पण व मेहनत मांगता है, जिसके लिए साहित्य, लोक कला व संस्कृति की बारीकियों को समझना जरुरी है। हालांकि आज के युवा कला की विभिन्न विधाओं में कला का आजीविका से तालमेल बिठाकर चल रहे हैं। लेकिन कला के क्षेत्र में अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए लोक गीतो, लोक नृत्य के लिए युवाओं को इनकी जड़ो को पहचान करके आगे बढ़ना चाहिए। जहां तक लोक कला के नाम पर द्विअर्थी गीतों व नृत्य का सवाल है उसमें हरियाणा में बढ़ते सिनेमा के दौर में बेहद सुधार है, जिसकी धूम विदेशों में सुनाई देने लगी है। उनका कहना है कि लेखकों, कलाकारों या गीतकारों को आगे बढ़ने के लिए स्वस्थ प्रस्तुतियों से इस क्षेत्र में आ रही विसंगतियों को दूर करने के लिए आगे बढ़ने का प्रयास करना जरुरी है। 
आदर्श अभिनय की पक्षधर 
फिल्मो या वेबसीरिज में अभिनय को लेकर डा. सुहासिनी का स्पष्ट कहना है कि उनका प्रयास रहा है कि अपने आदर्शो व असूलो पर आगे बढ़ते हुए ईमानदारी से काम किया जाए। अभिनय में भी यही प्रयास है कि स्क्रीन पर ऐसा कोई दृश्य न हो जो परिवार के साथ न देखा जा सके और वह भविष्य में भी ऐसा स्तरीय और प्रभावशाली किरदार करना चाहती हैं, जिसकी अमिट छाप छोड़ सके। उन्होंने हरियाणवी फिल्म दादा लखमी में लखमी की पत्नी का किरदार निभाया। इससे पहले हरियाणा में महिलाओं की दशा, लैंगिक भेदभाव, ऑनर किलिंग, भ्रूण हत्या, सामाजिक भेदभाव जैसी समस्या को लेकर बनाई गई वेबसीरिज ‘ओपरी पराई’ में उन्होंने एक टिपिकल सास का किरदार निभाया। इसे सामाजिक रूढिवादिता और अंधविश्वास पर चोट करते हुए समाज को जागृत करने का प्रयास था। इसी प्रकार यशपाल की निर्मित वेब सीरिज ‘कॉलेज कांड; में उनका किरदार चुनौती पूर्ण था, जिसमें उन्होंने यशपाल शर्मा की पत्नी की भूमिका में अभिनय किया। उन्होंने फीचर फिल्म ‘छलांग’ के अलावा लघु फिल्म हथियार में भी इसी प्रकार के आदर्श किरदार की भूमिका में काम किया। उन्होंने बताया कि उन्हें मार्च में आने वाली बॉलीवुड फिल्म में रणबीर कपूर, श्रद्धा कपूर जैसे कलाकारों के साथ रणबीर कपूर के दोस्त की मां के किरदार में अभिनय करने का मौका मिला है। 
मंच संचालन की महारथी
डा. अल्पना सुहासिनी ने बड़े से बड़े आयोजनों का संचालन करने में महारथ हासिल की है। बॉलीवुड इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, हरियाणा इंटरनेशनल, काशी इंडियन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल जैसे आयोजन में उन्हें अनेक बार मंच संचालिका की जिम्मेदारी मिली है। दूरदर्शन हिसार के उद्घाटन समारोह में तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री सुषमा स्वराज के सम्मुख मंच संचालन करने का भी उन्हें सौभाग्य मिला। नेशनल थियेटर फेस्टिवल रंग उत्सव हिसार में अनेक बार संचालन किया। वहीं अनेक कवि सम्मेलन और मुशायरे के मंच संचालन की कमान उन्हें सौंपी जाती रही हैं। यही नहीं डा. सुहासिनी पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता व अन्य सामाजिक एवं रचनात्मक गतिविधियों के मंच का संचालन भी करती आ रही हैं। मंच संचालिका के रुप में उन्हें अनेक सम्मान और पुरस्कार भी मिले हैं। 
साहित्य क्षेत्र में भी लोकप्रिय 
साहित्य के क्षेत्र में भी गजल व गीत लिखकर उन्होंने अपनी एक पहचान बनाई है, जिसके तहत उन्होंने लेखन के लिए पठन और पाठन को सतत् सक्रीयता बनाते हुए उन्होंने अपनी लिखित 80 गजलों को लेकर ‘तेरे मेरे लब की बात’ शीर्षक से गजल संग्रह के रुप में पुस्तक लिखी है। अब वे गीत संग्रह लिखने की तैयारी में है। गजलकार के रुप में अपनी रचनाओं में उन्होंने सामाजिक विसंगतियों, राजनीति, महिलाओं जैसे मुद्दों पर फोकस रखा है। उनका कहना है कि गजल के श्रृंगारी मिथक को दुष्यंत ने तोड़कर नया आयाम देकर रचनाकारों को प्रोत्साहित किया है। वहीं साहित्य के क्षेत्र में उन्हें कुंवर बेचैन, मुनव्वर जैसे कवियों के साथ मंच साझा करने का सौभाग्य मिला है। डा. सुहासिनी दिल्ली दूरर्शन और अनेक टीवी चैनलों के अलावा राष्ट्रीय सांस्कृतिक साहित्यिक मंचो, जश्नेअदब और आकाशवाणी पर काव्य पाठ भी कर चुकी हैं। उनकी कविताएं, लेख और गजले अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुई हैं। 
20Feb-2023

मंडे स्पेशल: विज्ञान व तकनीकी क्षेत्र में करियर बनाने में आगे छोरियां

‘विज्ञान ज्योति योजना’ के दायरे में आए प्रदेश के छह जिले 
राज्य सरकार के प्रोत्साहन आत्मनिर्भर की राह पर महिलाएं 
ओ.पी. पाल.रोहतक। हरियाणा में महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए राज्य सरकार ने अनेक योजनाओं को पटरी पर रफ्तार दे रखी है। ऐसी ही योजनाओ में केंद्र की ‘विज्ञान ज्योति योजना’ प्रदेश की छात्राओं को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ाने में कारगर साबित हो रही है। योजना के तीसरे चरण में प्रदेश के छह जिलों में लागू इस योजना के तहत दूसरी योजना के मुकाबले विज्ञान एवं तकनीकी विषय पाठ्क्रम में 97.31 फीसदी छात्राओं का इजाफा हुआ है। ऐसी छात्राओं को राज्य सरकार आर्थिक मदद के अलावा नीट व जेईई जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु छात्राओं को निशुल्क पुस्तकों मुहैया कराकर उन्हें प्रोत्साहन दे रही है। राज्य सरकार ने जवाहर नवोदय विद्यालयों में चलाई जा रही इस योजना की तर्ज पर आईटीआई और राजकीय मॉडल संस्कृति स्कूलों में छात्राओं की शिक्षा को प्रोत्साहन दे रही है। 
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केंद्र सरकार की महिला सशक्तिकरण की दिशा में चलाई जा रही योजनाओं में विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में भी लड़कियों और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में ‘विज्ञान ज्योति योजना’ तीसरे चरण में प्रवेश कर चुकी है। आजादी के 75वें साल में अमृत महोत्सव काल में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में केंद्र सरकार ने इस योजना के दायरे को दो गुना करते हुए देश के 200 जिलों में शुरू कर दिया है। वहीं हरियाणा में भी इस योजना का दायरा बढ़कर दो गुना यानि रोहतक समेत छह जिलों के जवाहर नवोदय विद्यालयों में कार्यान्वित हो रही है। इस योजना में सरकार का मकसद विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में लड़कियों की रुचि बढ़ाने तथा एसटीईएम अर्थात विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित विषयों के माध्यम से उन्हें सशक्त बनाना है, जिसमें उनके अपने करियर बनाने में मदद मिल रही है। इस योजना के तहत नौवीं से 12 वीं कक्षा की मेधावी लड़कियों के लिए स्कूल स्तर पर विज्ञान व तकनीकी विषयों में अभिरुचि पैदा करना है, ताकि उन्हें सशक्त बनाकर देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में एसटीईएम पाठ्यक्रम में शामिल विषयो की पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। यही नहीं केंद्र सरकार विज्ञान व तकनीकी विषयों के अध्ययन या शोध के लिए किसी शीर्ष संस्थान में पहुंचने पर छात्राओं को वित्तीय सहायता देने के लिए भी योजना तैयार कर चुका है। सरकार का लक्ष्य देश में ‘विज्ञान ज्योति योजना’ के तहत 2020-25 के दौरान 550 जिलों से 100 छात्राओं की पहचान करना है। ऐसी छात्राओं का चयन उनके पर्सेंटाइल के आधार पर करने का प्रावधान है। 
प्रदेश में 1072 फीसदी छोरियां आई आगे 
केंद्र सरकार ने दिसंबर 2019 में देश के 50 जिलों के जवाहर नवोदय विद्यालयों से विज्ञान ज्योति की शुरुआत की थी, जिसमें हरियाणा का एक जिला शामिल किया गया था और इस पहले चरण में केवल 50 छात्राओं ने ही विज्ञान व तकनीकी विषयों में रुचि लेकर सरकार की पहल को आगे बढ़ाया। जबकि दूसरे चरण की योजना में राज्य दो ओर जिले बढ़कर तीन हो गये, जिनके साथ योजना का लाभ लेने वाली छात्राओं की संख्या बढ़कर 297 तक पहुंच गई। राज्य में विज्ञान व तकनीकी क्षेत्र में अपना करियर बनाने में आगे आ रही छोरियों को देखते हुए तीसरे चरण की योजना का राज्य में दायर बढ़कर छह जिलों में हो गया, जिसमें फिलहाल छात्राओं की संख्या 586 तक पहुंची है, जो पहले चरण की योजना के मुकाबले 1072 फीसदी आंकी गई है। 
प्रोत्साहन राशि देने की पहल 
हरियाणा सरकार ने इस योजना के दायरे में आगे आ रही लड़कियों को देखते हुए प्रदेश में कौशल विकास एवं औद्योगिक प्रशिक्षण विभाग के माध्यम से आईटीआई में लड़कियों को ज्यादा से ज्यादा संख्या बढ़ाने की दिशा में एक नई योजना शुरू की। सरकार की पहल में प्रावधान किया गया है कि यदि प्रदेश की लड़कियां आईटीआई में निर्धारित 27 कोर्स में दाखिला लेती हैं, तो उन्हें 500 रुपए प्रतिमाह प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। सरकार ने यह कदम इन ट्रेड में महिला प्रशिक्षणार्थियों के दाखिले को बढ़ाने के लिए उठाया है, ताकि प्रदेश की औद्योगिक इकाईयों में भी ज्यादा से ज्यादा महिला कर्मचारियों को काम करने के मौके मिल सकें। गौरतलब है कि हरियाणा राज्य में सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में 84 ट्रेड चलाई जा रही हैं। महिलाएं इनमें से करीब 25 से 30 ट्रेड में ही ज्यादा दाखिला लेती हैं, जबकि दूसरी ट्रेड में भी रोजगार के अवसर होते हैं। 
क्या है विज्ञान ज्योति योजना 
केंद्र प्रायोजित विज्ञान ज्योति कार्यक्रम की शुरुआत दिसंबर 2019 को देश में 50 जवाहर नवोदय विद्यालयों से हुई थी, जिनका दायरा हर चरण के साथ बढ़ाया जा रहा है। इस योजना के माध्यम से हरियाणा सरकार भी लड़कियों को विज्ञान में रुचि लेने और करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है, जिसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की इस पहल के तहत एसटीईएम में अपना करियर बनाने के लिए मेधावी लड़कियों को समान अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इस योजना या कार्यक्रम का मकसद उच्च शिक्षा हासिल करने और आत्मनिर्भर बनने के लिए छात्राओं को प्रोत्साहित करना है। शहरी क्षेत्र ही नहीं ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाली छात्राओं को भी विज्ञान के क्षेत्र में स्कूल से कॉलेज और उसके बाद शोध से लेकर नौकरी तक आगे बढ़ाया जा रहा है। 
ऐसे चल रही गतिविधियां
विज्ञान ज्योति कार्यक्रम से जुड़ी गतिविधियों में छात्राओं व अभिभावक परामर्श, प्रयोगशालाओं और ज्ञान केंद्रों का दौरा, पार्टनर रोल मॉडल इंटरैक्शन, विज्ञान शिविर, शैक्षणिक सहायता कक्षाएं, संसाधन सामग्री वितरण और टिंकरिंग गतिविधियां चलाई जा रही हैं। यही नहीं छात्राओं को ऑनलाइन शैक्षणिक सहायता से संबंधित गतिविधियों में वीडियो कक्षाएं, अध्ययन सामग्री, दैनिक अभ्यास की समस्याएं और किसी भी तरह की शंकाओं का समाधान करने के लिए सुव्यवस्थित तरीके से सत्र आयोजित किये जा रहे हैं। 
परीक्षा तैयारियों में निशुल्क पुस्तकें 
हरियाणा में शिक्षा के प्रति महिलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार राज्य स्तर पर भी कई योजनाओं को कार्यान्वित कर रही है। नवोदय विद्यालय समिति के सहयोग से चलाए जा रहे विज्ञान ज्योति कार्यक्रम के अलावा राज्य सरकार प्रदेश के जवाहर नवोदय विद्यालय के साथ ही राजकीय मॉडल संस्कृति स्कूल की मेधावी छात्राओं को प्रतियोगी परीक्षाओं में भी मदद कर रही है। ऐसी छात्राओं को सरकार परीक्षा की तैयारियों के लिए उन्हें निशुल्क पुस्तकें और अन्य पाठ्य सामग्री का निशुल्क वितरण करा रही है। 
20Feb-2023

बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

साक्षात्कार: समाजिक संस्कार में साहित्य की अहम भूमिका: डा. सुरेन्द्र गुप्त

सकारात्मक सोच की दृष्टि साहित्यिक रचनाओं का किया विस्तार 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. सुरेन्द्र गुप्त 
जन्मतिथि: 05 मई 1943 
जन्म स्थान: कालका, जिला पंचकूला, हरियाणा। 
शिक्षा: एमए, पीएचडी.(हिन्दी), स्नातकोत्तर डिप्लोमाःअनुवाद(पंजाब विवि चण्डीगढ़) एवं पत्रकारिता (कुरुक्षेत्र विवि कुरुक्षेत्र)। 
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त सहायक निदेशक (राजभाषा) एवं पूर्व सदस्य ग्रन्थ अकादमी पंचकूला। 
संपर्क: आर.एन-7, महे नगर, अम्बाला छावनी-133001, मोबा. 9416250279, ईमेल: surindergupta1943@gmail.com 

BY:ओ.पी. पाल 
हिंदी साहित्य जगत में हिंदी के संवर्धन के लिए अपनी रचनाओं का सृजन करते आ रहे लेखक एवं वरिष्ठ साहित्यकार डा. सुरेन्द्र गुप्त पिछले चार दशकों से भी ज्यादा समय से साहित्य साधना में जुटे हैं। सामाजिक सरोकार से जुड़ी किसी भी घटना को यथार्थ के धरातल पर उतारने के लिए उन्होंने हमेशा सकारात्मक सोच की दृष्टि साहित्यिक रचनाओं का विस्तार किया है। भले ही ऐसी घटनाओं का परिप्रेक्ष्य राजनीतिक, सामाजिक, शिक्षण, धर्म, बदलते संस्कार, अथवा टूटते घर-परिवारों या फिर रिश्तों में आई कड़वाहट ही क्यों न हो। भाषा और संवाद को रचनाओं की रीढ़ मानने वाले लेखक डा. गुप्त ने राजभाषा हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिए डाक विभाग की नौकरी के दौरान भी अहम योगदान दिया है। लघुकथा, कहानी, उपन्यास तथा व्यंग्यात्मक जैसी विधाओं की रचना करते आ रहे साहित्यकार डा. सुरेन्द्र गुप्त ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक सफर को लेकर कुछ ऐसे तथ्यों को भी उजागर किया, जिसमें उन्होंने माना कि आदर्शोन्मुखी, संवेदनशील, स्वस्थ जीवन मूल्यों और राष्ट्रीय मूल्यों को स्थापित करने वाली कालजयी रचना ही सामाजिक संस्कारों के प्रति चेतना जागृत कर सकती है। 
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हरियाणा के साहित्यकारों व लेखकों में सुपरिचित हिंदी के विद्वान एवं साहित्यकार डा. सुरेन्द्र गुप्ता का जन्म 05 मई 1943 को पंचकूला जिले के कालका में लाला मंगत राम के परिवार में हुआ। उनके पिता दुकानदार थे और परिवार में लेखन या साहित्यिक माहौल कतई नहीं था। कालका से ही उन्होंने दसवीं और राजकीय महाविद्यालय चण्डीगढ़ से इण्टरमिडिएट किया। इंटर के बाद डाक विभाग शिमला में उनकी डाक लिपिक के पद पर नौकरी लग गई। नौकरी के दौरान ही उन्होंने शिमला (हि.प्र.) में संचालित हो रहे पंजाब विश्वविद्यालय चण्डीगढ़ के संध्याकालीन महाविद्यालय से बीए किया। उसके बाद विभागीय अनुमति लेकर किसी प्रकार हिंदी से एमए की डिग्री हासिल कर ली। एमए के बाद उनकी पोस्टिंग हिमाचल प्रदेश के सोलन में उप डाकपाल के पद पर हो गई। पंजाब विश्वविद्यालय चण्डीगढ़ में पंजीकरण कराकर उन्होंने पीएचडी के लिए शोध कार्य किया। डा. गुप्त ने बतया कि पीएचडी के लिए ‘स्वातन्त्र्योत्तर उपन्यास साहित्य में राजनीतिक चेतना की अभिव्यक्ति’ विषय पर शोध कार्य के दौरान उन्हें सैंकड़ों उपन्यास पढ़ने को मिले। इससे उन्हें उपन्यास लिखने की प्रेरणा भी मिली और एक तरह से यहीं से उनके लेखकीय बीजों का रोपण हुआ। सोलन में ही उनकी मुलाकात प्राणी विभाग में कार्यरत रवीन्द्रनाथ बैनर्जी से हुई, जिनसे उन्होंने बंगला भाषा भी सीखी और कुछेक कहानियों का बंगला से हिंदी में अनुवाद किया। उनका स्थानांतरण चंडीगढ़ हुआ तो उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय चण्डीगढ़ से एक वर्षीय अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी कर लिया। इसके बाद अम्बाला स्थित डाक विभाग के सर्किल कार्यालय में उनकी पोस्टिंग हिन्दी सुपरवाइजर के पद पर हो गई, तो कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा करने का मौका मिला। डा. सुरेन्द्र गुप्त ने हिन्दी अनुवादक तथा वरिष्ठ हिन्दी अनुवादक के अलावा राजभाषा हिन्दी अधिकारी पदों पर कार्य किया और 26 साल से ज्यादा सरकारी नौकरी करने के बाद सहायक निदेशक राजभाषा के पद से सेवानिवृत्त हुए। उनकी एक एकांकी पहली रचना 'नौकरी' शीर्षक से शिमला के सायंकालीन महाविद्यालय की पत्रिका में प्रकाशित हुई। इसी पत्रिका में एक कहानी 'खूनी कौन' प्रकाशित हुई। 1970-80 के दशक में उनकी एक दर्जन से अधिक कहानियां पंजाब से निकलने वाले अखबारों में प्रकाशित हुईं। इससे साहित्य के प्रति लेखन के लिए उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। इसके बाद उनकी पहली पहली लघुकथा 'सारिका' में प्रकाशित हुई। उन्हीं दिनों अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिताओं में एक लघुकथा 'बोझ' द्वितीय तथा 'कीमत' को सांत्वना पुरस्कार प्राप्त हुआ, तो मनोबल बढ़ा और उनकी एक रचना रचना 'युगबोध' कथाबिम्ब में में प्रकाशित हुई। इसके बाद उनके द्वारा लिखित कहानियों, लघुकथाओं तथा व्यंग्य रचनाओं के विभिन्न राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने का सिलसिल चलता रहा। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार डा. सुरेन्द्र गुप्त की कृतियों में लघुकथा संग्रह ‘प्रसाद’ तथा ‘यहां सब चलता है’, कहानी संग्रह ‘छत खुले आसमान की’ तथा व्यंग्य संग्रह ‘जांच अभी जारी है’ के अलावा इससे पहले अनुवादित पुस्तक ‘प्रशान्तचन्द्र महलनवीस’ तथा ‘बाल गन्धर्व’प्रकाशित हो चुकी है। जबकि लघुकथा संग्रह समय की सड़क पर तथा निबंध विविधा नामक पुस्तक प्रकाशाधीन है। उनके लघुकथा संग्रह ‘यहां सब चलता है’ तथा व्यंग्य संग्रह ‘जांच अभी जारी है’ को हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ कृति पुरस्कार मिल चुका है। वहीं डायमंड बुक्स की ‘भारत कथा माला’ के अंतर्गत ‘हरियाणा की 21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां’ में उनकी कहानी ‘उपहार’ भी शामिल हुई। ‘लघुकथाकार सुरेन्द्र गुप्त’ पर कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय में एमफिल की उपाधि हेतु शोध भी किया गया है। पिछले बीस वर्षों से अम्बाला छावनी से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘शुभ तारिका’ में भारत से प्रकाशित हो रही पत्र-पत्रिकाओं की नियमित रूप से समीक्षा कर रहे हैं। वहीं उनके द्वारा की गई करीब दो दर्जन पुस्तकों की समीक्षा भी अखबारों में प्रकाशित हो चुकी हैं। पंजाबी साहित्य की विख्यात पत्रिका ‘मिनी’ में लघुकथा ‘बचे खुचे दिन’ का पंजाबी में अनुवाद रचना प्रकाशित हई। हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी की पत्रिका ‘शब्द बूंद ’ में ‘लघुकथा अपना तेवर बदल रही है’ का पंजाबी में अनुवाद प्रकाशित। उनकी राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में कहानियों, लघुकथाओं, कवितों तथा व्यंग्य आदि समेत तीन सौ से ज्यादा रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अलावा आकाशवाणी रोहतक एवं कुरुक्षेत्र से उनके लेख, कहानियों, कविताओं तथा लघुकथाओें का प्रसारण होता रहा है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा के रचनाकार डा. सुरेन्द्र गुप्त को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2021 के लिए एक लाख रुपये के ‘विशेष हिन्दी सेवी सम्मान’ से नवाजा है। इससे पहले उन्हें साल 2016 में साहित्य मण्डल श्रीनाथ (राजस्थान) द्वारा ‘हिन्दी लाओ देश बचाओ’ समारोह में हिन्दी साहित्य भूषण की मानद उपाधि दी जा चुकी है। वहीं पंजाब साहित्य अकादमी से विशिष्ट अकादमी सम्मान, हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन सिरसा का श्री अशोक दीवान स्मृति सम्मान, अखिल भारतीय राष्ट्रभाषा विकास संगठन गाजियाबाद का ‘लघुकथा शिल्पी सम्मान’ दिया जा चुका है। उन्हें सचार मन्त्रालय, हरियाणा डाक सर्किल से डाक सेवा एवार्ड-1998 भी नवाजा गया। जबकि साल 1986 में अखिल भारतीतय लघुकथा प्रतियोगिता में ‘मोहन लाल स्मृति’ पुरस्कार तथा साल 1985 में भारतीय युवा साहित्यकार परिषद पटना में द्वितीय पुरस्कार दिया गया। डा. गुप्ता को ‘यहां सब चलता है’ लघुकथा संग्रह को ‘शब्द प्रवाह’ उज्जैन ने तृतीय पुरस्कार एवं ‘शब्द भूषण’ की मानद उपाधि दी गई। 
हिन्दी संवर्धन में विशेष योगदान 
साहित्यकार डा. सुरेन्द्र गुप्त ने करीब ढाई दशक तक हरियाणा डाक सर्किल के कार्यालयों में राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महत्तवपूर्ण योगदान दिया। हरियाणा डाक सर्किल में प्रयोग किए जाने वाले 300 के लगभग फार्म और प्रोफार्मों का हिन्दी में अनुवाद करके विभाग में राजभाषा को प्रोत्साहित किया। वहीं हरियाणा डाक विभाग कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का गठन, उनकी कार्यावली और कार्यवृत्त द्विभाषी रूप में जारी करने में भी उनका योगदान है। विभागीय स्टॉफ को राजभाषा में कार्य करने के लिए प्रेरित तथा प्रशिक्षित करने के लिए कार्यशालाओं, टिप्पण-आलेखन प्रतियोगिताओं, पुरस्कार वितरण, हिन्दी पखवाड़े तथा हिन्दी सप्ताह आदि समारोहों का आयोजन भी कराया। 
अच्छे साहित्य का सृजन जरुरी 
आधुनिक युग में साहित्य के सामने आई चुनौतियों को लेकर डा. सुरेन्द्र गुप्त का कहना है कि आज का लेखक रातो-रात लेखक बनना चाहता है और आज लेखक समाज या राष्ट्र के लिए लोकरंजन रचनाओं का सृजन करने के बजाए केवल साहित्यिक दायरों में ही अपनी दुदंभी बजाकर नाम कमाने में लगा है या कुछ पुस्तकें लिखकर पुरस्कार लेने की फिराक में रहता है। लेकिन जब तक लेखक समाज व राष्ट्र के लिए प्रेरणादायक रचनाओं का सृजन नहीं करेगा, तब तक समाज में स्वस्थ मूल्यों और सांस्कृतिक मूल्यों को स्थापित करना तथा खासतौर से युवा पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने के लिए राष्ट्रीय चेतना को जागृत करना असंभव है। आज बढ़ते इंटरनेट व सोशलमीडिया तथा बाजारीकरण के कारण साहित्य लेखन में आई गिरावट के साथ साहित्य के पाठक भी निश्चित रुप से कम हुए हैं। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आज की युवा पीढ़ी भटक गई और उनमें अपराध प्रवृत्ति बढ़ रही है। जबकि यह सत्य है कि समाजिक संस्कार अच्छा साहित्य पढ़ने से ही मिलते हैं। ऐसे में लेखकों व साहित्यकारों का भी दायित्व है कि वह अच्छे साहित्य का सृजन करके लुप्त हो रही सभ्यता और संस्कृति के प्रति समाज को नई दिशा देने का काम करे।
13Feb-2023

मंडे स्पेशल: हरियाणा में यातायात पुलिस व्यवस्था की सूरत बदलने की तैयारी

राज्य में सड़क हादसों पर अंकुश लगाने पर गंभीर हुई सरकार 
प्रदेश के हर जिले में अलग से नियुक्त होगा डीएसपी(यातायात) स्तर का अधिकारी 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में बदहाल यातयात व्यवस्था के कारण बढ़ते सड़क हादसों पर अंकुश लगाने के लिए हरियाणा सरकार ने एक ऐसा खाका तैयार किया है, जिसमें महाराष्ट्र की तर्ज पर यातायात पुलिस व्यवस्था में बदलाव करने का प्रस्ताव है। सरकार ने मौजूदा साल 2023 में सड़कों पर होने वाले हादसों में 20 फीसदी करने का लक्ष्य तय किया है। यह सरकार भी मानती है कि यातायात नियमों का उल्लंघन हादसों का बड़ा कारण है और प्रदेश में वाहनों के चालकों द्वारा यातायात नियमों की अनुपालना कराने के लिए यातायात पुलिस की कमी है। अब प्रदेश में नई यातायात पुलिस व्यवस्था में सरकार ने पुलिस अधीक्षक(यातायात) स्तर के अधिकारियों और जिला स्तर पर डीएसपी(यातायात) की नियुक्ति करने का निर्णय लिया है। सवाल यह भी है कि महाराष्ट्र की तर्ज पर प्रदेश की यातायात पुलिस व्यवस्था करने के लिए प्रदेश के नेशनल हाइवे और एक्सप्रेस वे जैसे मार्गो पर जुटाए जाने वाले संसाधनों की व्यवस्था कैसे करेगी, जब कि प्रदेश में यातायात पुलिस बल की पर्याप्त संख्या तक नहीं है। हालांकि हरियाणा सरकार ने हाल ही में प्रदेश में पुलिस के नए पदों को सृजित करने की मंजूरी दी है, लेकिन उसमें यह नहीं बताया गया कि यातायात पुलिस व्यवस्था के लिए कितने पद होंगे। 
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हरियाणा सरकार ने प्रदेश में नेशनल हाइवे, एक्सप्रेस वे और राजमार्गो के विस्तार के साथ यातायात पुलिस व्यवस्था में बदलाव का निर्णय लिया है। प्रदेश में बढ़ते सड़क हादसों को रोकने की दिशा में राज्य में अलग से यातायात एडीजी/आईजी तैनात है, जिसने राज्य सरकारो को महाराष्ट्र की तर्ज पर प्रदेश में नई यातायात पुलिस व्यवस्था लागू करने के लिए एक रिपोर्ट दी है। उस रिपोर्ट के आधार पर ही गृहमंत्री अनिल विज ने हरियाणा की यातायात पुलिस व्यवस्था में बदलाव का ऐलान किया। इसका मकसद केवल प्रदेश में सड़कों पर हो रहे सड़क हादसों पर अंकुश लगाकर बढ़ रही मौतों को रोकना है। सरकार ने महाराष्ट्र की तर्ज पर यातायात पुलिस व्यवस्था बदलने के लिए प्रशासनिक स्तर का खाका तो खींच लिया है, लेकिन इस व्यवस्था में संसाधन जुटाने की जानकारी का खुलासा नहीं किया। 
क्या है नई यातायात व्यवस्था का खाका 
राज्य के गृहमंत्री अनिल विज ने राज्य में सड़क हादसों की चुनौती से निपटने के लिए पिछले महीने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और परिवहन अधिकारियों की बैठक में प्रदेश की यातायात की नई व्यवस्था के लिए तैयार खाका में प्रस्तावित योजना पर चर्चा की। प्रदेश की यातायात पुलिस प्रणाली को लागू करने के लिए आईजी यातायात प्रभारी होगा। और यातायात व्यवस्था में पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारियों को लगाया जाएगा। इस योजना के तहत एक पुलिस अधीक्षक चार या पांच जिलों का नियंत्रण करेंगे और हर जिले में अलग से डीएसपी यातायात नियुक्त किये जाएंगें। जबकि डीएसपी के अधीन एसएचओ यातायात होगा। यही नहीं परिवहन विभाग सभी जिलों में अनुबंध के आधार पर रोड सेफ्टी एसोसिएट्स नियुक्त करेगा। 
इस साल 20 फीसदी हादसे कम करने का लक्ष्य 
हरियाणा की बेहाल होती यातायात व्यवस्था के कारण बीते 2022 में 9951 सड़क हादसों में 4516 लोगों की असामयिक मौत हुई और इससे करीब दोगुना 8447 लोग घायल हुए हैं। सरकार के परिवहन विभाग ने मौजूदा साल 2023 में 20 फीसदी दुर्घटनाएं कम करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए परिवहन विभाग सभी जिलों में अनुबंध आधार पर रोड सेफ्टी एसोसिएट्स अनुबंध आधार पर नियुक्त करेगा। राज्य सरकार ने सड़कों पर ब्लैक स्पॉट चिन्हित करने के निर्देश दिये हैं। वहीं ट्रैक्टर ट्राली आदि वाहनों पर रिफ्लेक्टर और लावारिस पशुओं की सींगों पर रिफ्लेक्टिव टेप जल्द से जल्द लगाने को कहा गया है। 
संसाधन जुटाने की चुनौती 
रोड़ सेफ्टी विशेषज्ञों की माने तो महाराष्ट्र की यातायात पुलिस प्रणाली के तहत भले ही हरियाणा सरकार यातायात व्यवस्था को नया रूप देने का प्रयास कर रही हो, लेकिन राज्य में महाराष्ट्र की तरह यातायात पुलिस के लि संसाधन जुटाना भी एक चुनौती से कम नहीं होगा। मसलन इसके लिए हाइवे व एक्सप्रेसवे अथवा अन्य मुख्य सड़कों पर यातायात पुलिस वाहनों की ज्यादा जरुरत है। इन संसाधनों के बाद ही यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाले अनियंत्रित चालकों पर अंकुश लगाना संभव हो सकेगा। महाराष्ट्र की तर्ज पर राज्य में यातायात पुलिस को इंटरसेप्टर वाहनों की आवश्यकता है। यातायात पुलिस बल को ऐसे वाहन भी हाइवे व एक्सप्रेस वे या अन्य प्रमुख राजमार्ग उतारने होंगे, जिनमें स्पीडगन माउंटिंग फैसिलिटी (ट्राइपॉड) प्रणाली स्थापित हो। ऐसे तकनीकयुक्त संसाधनों के साथ यातायात पुलिस पर स्पीड गन ऑपरेशन पर कोई असर नहीं पड़ता है। ऐसे ऑपरेशन के लिए सीसीटीवी कैमरे, ब्रेथ एनालाइजर, ई-चालान की व्यवस्था भी करनी होगी। हाईवे पर यातायात योजना और यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की जिम्मेदारी यातायात पुलिस को ही देनी होगी। 
नियमों का उल्लंघन करने में नहीं आई कमी 
केंद्र सरकार ने 2019 में नया मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम लागू किया था, जिसमें यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाले वाहनों व उनके चालकों पर भारी भरकम जुर्माने और सजा जैसे कड़े प्रावधान भी किये गये। वहीं कानून की अधिसूचना में सड़कों पर रेसिंग करते हुए पकड़े जाने वालों के लिए शुल्क पहले अपराध के लिए 5000 और दूसरे अपराध और उसके बाद हर बार के लिए 10,000 रुपये तक का प्रावधान है। इसके अलावा गलत नंबर प्लेट, बिना लाइसेंस, बीमा, प्रदूषण जैसे दस्तावेजों के बिना वाहन चलाने वालों पर भी कड़ी कार्रवाई व जुर्माना लागू है। इसके बावजूद यातायात नियमों का आय दिन उल्लंघन करने वाले वाहनों में कोई कमी नहीं आई है। 
गडकरी ने की थी सिफारिश 
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने देश में सड़क हादसों में कमी लाने के लिए सभी राज्य सरकारों को पत्र लिखकर महाराष्ट्र की तर्ज पर पुलिस प्रणाली लागू करने की सिफारिश की थी। हरियाणा में आईजी (यातायात) ने महाराष्ट्र की तर्ज पर एसपी स्तर के अधिकारियों की यातायात पुलिस में तैनाती करने का प्रस्ताव बनाकर सरकार को भेजा है। उसी के तहत हरियाणा में बढ़ते हादसों से चिंतित सरकार ने नई यातायात पुलिस व्यवस्था लागू करने की तैयारी कर ली है। 
बेहाल है राज्य की यातायात व्यवस्था 
हरियाणा की यातायात व्यवस्था बहुत ढीली चल रही है, जो दिन पर बदहाल होती यातायात व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने आईजी ट्रैफिक का पद सृजित किया था, लिन उनके पास शक्ति न के बराबर है। मसलन ये आईजी एक एसएचओ का तबादला करने का भी अधिकार नहीं रखते, क्योंकि एसएचओ और डीएसपी जिले में पुलिस अधीक्षकों के अधीन आते हैं। पुलिस अधीक्षकों के माध्यम से ही आईजी को निर्देश देने पड़ते हैं। वर्तमान में राज्य के हालात कुछ ऐसे हैं कि सड़क हादसे रोकना चुनौती बन गया है। हाईवे पर लोग अंधाधुंध गाड़ियां चला रहे हैं। एक्सप्रेस-वे की तरह हाई स्पीड चालान की व्यवस्था नहीं है। पुलिस चालान करती है, तो लोग पुलिस से ही भिड़ने को तैयार जाते हैं। इसलिए सरकार चंडीगढ़ व दिल्ली जैसी ट्रैफिक पुलिस जैसी ही व्यवस्था को हरियाणा में लागू करने का प्रयास कर रही है। 
जल्द लागू होगी नई व्यवस्था: विज 
हरियाणा में यातायात की व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए प्रदेश के गृहमंत्री अनिल विज ने नई योजना बनाने का ऐलान किया। इसके लिए सरकार ने यातायात पुलिस व्यवस्था को नए स्वरुप में लाने के लिए पुलिस विभाग में कई तरह के बदलाव भी किये जाएंगे। प्रदेश में जल्द ही अलग से यातायात पुलिस अधीक्षकों को नई व्यवस्था लागू करने का प्रयास है। सरकार की मंशा यही है कि प्रदेश में सड़क हादसों पर अंकुश लगाकर सड़कों पर हो रही बेवजह लोगों की मौतों को रोका जाए। 
 13Feb-2023

सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

चौपाल: हरियाणवी रागनी गायन शैली की अलख जगाते सते फरमानिया




युवाओं को लोक कला व संस्कृति से जोड़ना जरुरी 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: सते फरमानियां 
जन्मतिथि: 14 जून, 1957 
जन्म स्थान: गांव फरमाना जिला सोनीपत(हरियाणा)। 
शिक्षा: दसवीं, 
 संप्रत्ति: लोक गायक, रागनी 
BY-- ओ.पी. पाल 
रियाणवी गायन शैली के प्राचीन इतिहास में लोक गायकी की परंपरा को पुनर्जीवित करने की दिशा में सूबे के लोक गायकों की अहम भूमिका है। ऐसे ही रागनी गायक सते फरमानियां हरियाणवी लोककला व संस्कृति को समर्पित होकर अपनी आवाज को बुलंद कर रहे हैं। सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे हो, या फिर देशभक्ति, अध्यात्मिक अथवा लोक संस्कृति को प्रोत्साहन देने के मकसद से वह अपनी रागनी गायन शैली को विस्तार देने में जुटे हैं। अपने सूबे की लोक कला व संस्कृति को एक गायक के रुप में फरमानिया देश के दूसरे राज्यों तक पहुंचाने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। परिवार में पुराने जमाने से लोक गायकी और गाने बजाने की इस परंपरा को विस्तार देने के लिए वे युवाओं को भी गायकी और बैंजू जैसे वाद यंत्रों की शिक्षा देते रहे हैं। लोक गायक सते फरमानिया ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपनी रागनी गायन शैली के सफर को लेकर माना कि इस बदलते युग में संस्कृति से दूर होते जा रहे युवाओं को अपनी लोक कला व संस्कृति के प्रति प्रेरित करना समाजहित में अनिवार्य है। 
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रियाणवी लोक कला व संस्कृति को नया आयाम देने में जुटे सते फ़रमानिया का जन्म 14 जून 1957 को ज़िला सोनीपत के फ़रमाना गाँव में सुल्तान सिंह के परिवार में हुआ। सते की प्राइमरी शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई, लेकिन वह दसवीं तक की ही शिक्षा प्राप्त कर सके। चूंकि पिता उस जमाने में उस जमाने में प्रसिद्ध सांगी व लेखकों के बीच बाजेभगत के शिष्य थे। इसलिए उन्हें भी बचपन से ही गाने का शौक़ लगा। वैसे भी उस जमाने में मनोरंजन के लिए न टीवी थे और न रेडियो, देहात इलकों में केवल सांग एक मनोरंजन का साधन होता था। चूंकि परिवार में गाने बजाने का माहौल मिला और उनके बड़े भाई मगल सैन तबले की मास्टर डिग्री के लोक सम्पर्क विभाग में ढोलक व तबला वादक थे। जब वह 6-7 साल के थे, तो पिता ने गांव के ही राजकीय प्राथमिक पाठशाला में पहली कक्षा में दाखिला करा दिया। उसकी सुरीली आवाज के कारण स्कूल में उसे एक अन्य साथी के साथ प्रार्थना कराने की जिम्मेदारी दी गई। उस जमाने में हर शनिवार को स्कूलों में बाल सभाएं होती थी, जिसके लिए संगीत के ज्ञानी हिंदी के शिक्षक सूरज मल ने हम दोनों के नाम भी लिख लिये। उसी दौरान साल 1964-65 में भारत और चीन का युद्ध बंद हुआ था, तो बाल सभा में उसने देशभक्ति से प्रेरित ‘जहाज, टैंक, तलवार, तोप और टौमी गन मशीन, चलो मेरे भाईयों 'लड़न चलेंगे चीन’ गीत गाया। यह गीत स्कूल के बच्चों व सभी स्टाफ को बेहद भाया। सते ने बताया कि एक बार साल 1968-69 में उनके फ़रमाना गाँव में धनपत सिंह निंदाना का सांग हुआ, जब वह मुश्किल से दस ग्यारह के थे, तो गांव के लोगों ने उसे भी पडोस के ही सुंदर के साथ मंच पर खड़ा कर सांग में रागनी गाने का पहली बार मौका दिया। पहली बार मंच से रागनी में बोल के साथ सुर और ताल के साथ उनकी रागनी ने ऐसा रंग जमाया कि गांव वालों ने जहां उन्हें ईनाम दिया, वहीं सांगी धनपप निंदाना ने हम दोनों को साथ रखने की मांग की, लेकिन पिता ने साफ इंकार कर दिया। उसके बाद जब गांव या आसपास के गांव में सांग होता था, तो उन्हें हरियाणा के नामी कलाकारों और प्रसिद्ध सांगियों के साथ रागनी गाने के लिए बुलाया जाने लगा। पुरोधाओं को दे रहे पहचान 
लोक गायक सते फरमानिया ने बताया कि दूसरी पीढ़ी के लोक कलाकारों ने अपनी संस्कृति को संजोने का काम किया और वे भी अब तक अपनी लोक कला व संस्कृति के प्रति समर्पित हैं। साल 1999 में उनकी सिंचाई विभाग में मकैनिकल डिपार्ट मैन्ट में बहादुरगढ़ माईनर पर नौकरी लग गई। इसके बावजूद भी वह रात्रि में होने वाले सांस्कृतक कार्यक्रमों व प्रतियोगिताओं में टीम के साथ इस कला का प्रदर्शन करते रहे हैं। उनकी गायकी में हरियाणा के लोक संस्कृति और लोक गायकी में ऐतिहासिक परंपरा को जन्म देने वाले बाजे भगत, प. लख्मीचन्द, मेहर सिंह और अपने गुरु कवि उदय जैसे पुरोधाओं को पहचान दे रहे हैं, जिनकी रचनाओं के आधार पर मंच और कैसेट्स के माध्यम से एलबम बनाकर समाज को भी नई दिशा देने के लिए सामने रख रहे हैं। हरियाणा में बिगड़ते सामाजिक ताने बाने की सुधार की दिशा में उन्होंने भ्रूण हत्या, नशाबंदी, खेती किसानी और अन्य सामाजिक विसंगतियों को लेकर लिखी गई रचनाओं को रागनियों और गाने बजाने में समाज के समक्ष रखा है। 
परिवार से मिली कला 
लोक कलाकार फरमानियां ने बताया कि उनकी इस कला के पीछे उनके पिता द्वारा सुरताल के साथ गायकी में हारमोनियम, बैंजू व ढ़ोलक जैसे संगीत यंत्रों की दी गई सीख ही है। उनकी रागनियों की गायकी में बोल के साथ बैंजू से धुन निकालने की कला ने भी उन्हें लोक गायकी में इस मुकाम तक पहुंचाया। विरासत में मिली इस कला को वे आगे बढ़ा रहे हैं। इस पुश्तैनी कला को इस आधुनिक युग में गायकी का शौक रखने वाला उनका बेटा कोहली फरमानिया भी नए आयाम के साथ इस परंपरा को आगे बढ़ा रहा है, जो संगीत विषय में स्नातक करने के बाद इस कला की तकनीकी शिक्षा ले रहा है। सते फरमानियां युवाओं को बैंजू सिखाकर उन्हें इस लोक गायकी की शिक्षा भी दे रहे हैं। 
स्पर्धा में भी दिखाया जलवा 
उन्होंने बताया कि साल 1979-80 में संगीत की प्रतिस्पर्धाओं के दौर में अपनी संगीत टीम के साथ हिस्सा लेते रहे हैं। वैसे भी हर साल स्कूलों में होने वाले वार्षिक कार्यक्रमों में खेलों के अलावा रात्रि के समय मनोरंजन के रुप में सांग के कंपीटिशन होते थे, जिसके लिए सात लड़कों के साथ उनके स्कूल की संगीत की टीम भी बनी। उनके शिक्षक ने खुद दो गीत लिखकर टीम को तैयारी कराई। जब एक ग्रुप सांग का एक्शन सांग हुआ, तो 8-10 टीमों में उसमें उनके स्कूल की संगीत टीम अव्वल साबित हुई। राज्यस्तर की प्रतियोगिता में राजकीय उच्च विद्यालय गुड़गाँव भी उनकी संगीत टीम का अच्छा प्रदर्शन रहा और द्वितीय स्थान हासिल किया। 
युवाओं को लोक कला की प्रेरणा जरुरी 
इस आधुनिक युग में लोक कला व गीतों की स्थिति को लेकर सते फरमानिया का कहना है कि बदलते परिवेश में श्रोताओं को पिछले सात दशक की रागनी की ही तर्ज मिलती है, जिसके कारण आज के लोग अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। जबकि आज के गीतों में लह, सुर, ताल का लेसमात्र भी भान नहीं होता। यही कारण है कि युवा पीढ़ी की लोक गायकी व लोक कलाओं में रुचि नहीं है, जिसका समाज पर गहरा असर पड़ना स्वाभाविक है। ऐसे में युवाओं को अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक करने की जरुरत है, क्योंकि हमारी प्राचीन संस्कृति ही हमारी घरोहर है, जिसके लिए युवाओं को प्रेरित करना भी अनिवार्य है। दरअसल आज लोक गायकों का लह, सुर व ताल का बेहद कम बौध है। यही देखा जा रहा है कि हरेक बात के दो मतलब निकलते हैं और जैसी किसी की विचारधारा है उसी आधार पर वह उसका अर्थ लगा लेता है। मंचो से कविता या लोकगीतों में ऐसी फुहड़ता नजर आने लगी है, जिसे कोई परिवार एक साथ बैठक कर देख या सुन नहीं सकता। इसलिए लोकगीतों में आ रही इस गिरावट के लिए समाजिक हितों और संस्कृति को प्राथमिकता के साथ लेखकों व गायकों को इस क्षेत्र में सक्रीय होने की जरुरत है।
06Feb-2023

मंडे स्पेशल: प्रदेश में महिलाओं को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने की कवायद

गरीब महिलाओं के उत्थान का सबब बनती महिला समृद्धि योजना 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग को सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा देने के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है। राज्य सरकार ने आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में गरीबों के उत्थान एवं उनकी आय को बढ़ाने हेतु स्वरोजगार के लिए हरियाणा अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के माध्यम से ऐसी योजनाओं को गति दे रही है। इसमें प्रदेश की अनुसूचित जाति की गरीब महिलाओं के सामाजिक व आर्थिक उत्थान पर फोकस करते हुए खासतौर से महिला समृद्धि योजना भी है। इस योजना के तहत ऐसी महिलाओं को स्वरोजगार करने हेतु बेहद सस्ती दरों पर सरकार द्वारा ऋण मुहैया कराया जा रहा है। वहीं सरकार इस योजना में महिलाओं को अनुदान राशि का लाभ भी दे रही है। सरकार की यह योजना ऐसे स्वयं का रोजगार खोलने की इच्छुक महिलाओं के सामने आने वाली आर्थिक परेशानी से निजात दिलाने में सहायक सिद्ध हो रही है। सरकार का मकसद है कि इस ऋण की सहायता से प्रदेश की महिलाएं छोटा-मोटा काम शुरू करके स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ परिवार की आर्थिक तौर पर मदद कर सकेंगी। 
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हरियाणा की मनोहर सरकार प्रदेश को औद्योगिक हब बनाने की दिशा में बेरोजगार युवकों के अलावा महिला सशक्तिकरण को भी प्रोत्साहन दे रही है। इसके लिए प्रदेश की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अपना रोजगार या घर में कुटीर उद्योग या अन्य कामकाज के लिए अलग अलग योजनाएं शुरू की गई हैं। सरकार का मकसद प्रदेश में गरीबी की रेखा जीवन यापन करने वाले परिवारों की महिलाओं को स्वरोजगार देकर उन्हें आर्थिक रुप से समृद्ध करना है। ऐसी ही योजनाओं में अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए एक खास हरियाणा महिला समृद्धि योजना भी शामिल है। हरियाणा अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के माध्यम से अनुसूचित जाति की गरीब महिलाओं के लिए अपना रोजगार खोलने के इस अमृतकाल में अब पांच के बजाए चार प्रतिशत की ब्याज दर पर 60 हजार रुपए तक का ऋण दिया जा रहा है। इसके अलावा सरकार बीपीएल परिवार से जुड़ी ऐसी पात्र महिलाओं को इस ऋण पर 10 हजार तक का अनुदान भी दिया जाएगा। हरियाणा अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान स्वरोजगार जैसी ऐसी योजनाओं के तहत 3068 लाभार्थियों को 21.68 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता मुहैया करवाई है, जिसमें 182.06 लाख रुपये की सब्सिडी तथा 78.45 लाख रुपये मार्जिन मनी के रूप में दी गई राशि भी शामिल है। 
इस रोजगार के लिए मिलेगा कर्ज 
महिला समृद्धि योजना के तहत राज्य की महिलाओं को पापड़, अचार व मंगोड़ी बनाने, बांस की टोकरी व कुर्सी बनाने, चाय की दुकान, सिलाई की दुकान, चूड़ी की दुकान, कॉस्मेटिक की दुकान, कपड़े की दुकान, ब्यूटी पार्लर व बुटीक खोलने और डेयरी फार्मिंग शुरू करने जैसे रोजगार के लिए अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम से साठ हजार तक का ऋण दिया जा रहा है। हालां कि इस योजना के तहत इसके अलावा अन्य व्यवहार्य व्यवसाय खोलने के लिए भी महिलाए ऋण ले सकती हैं। 
क्या है पात्रता और शर्तें 
हरियाणा महिला समृद्धि योजना के लिए सरकार ने कुछ पात्रता और शर्तें भी निर्धारित की गई है, जिन्हें पूरा करने पर ही इस योजना का लाभ दिया जाएगा। इन पात्रता और शर्तो में केवल हरियाणा राज्य की मूल निवासी अनुसूचित जाति की 18 वर्ष से 45 वर्ष तक आयु वाली महिलाओं का पंजीकरण किया जाएगा। योजना के लिए आवेदक महिला की वार्षिक आय की सीमा खत्म कर दी गई है। लेकिन महिला के किसी भी बैंक में अपना खाता, जो उसके आधार से लिंक होना अनिवार्य है। 
बैंक से सस्ता कर्ज 
सरकार की इस योजना में स्वरोजगार के लिए दिया जा रहे ऋण पर ब्याज की बेहद कम है। जबकि बैंक से ऋण लिया जाता है तो उसमें लगभग 9 प्रतिशत या 9.50 प्रतिशत तक की ऊंची दर से सालभर में 5400 रुपये का ब्याज देना पड़ता। लेकिन महिला समृद्धि योजना के तहत लिए गए ऋण की ब्याज दर मात्र 5 प्रतिशत भी मानी जाए तो वार्षिक ब्याज दर बेहद कम है। लेकिन सरकार ने इस अमृतकाल में ब्याज दर घटाकर चार प्रतिशत कर दी है तो इस योजना में ऋण लेने पर लाभार्थी को सालभर में केवल 2400 रुपये का ब्याज देना पड़ेगा। वहीं सरकार इस ऋण पर दस हजार की सब्सिडी भी दे रही है। बैंक के मुकाबले निगम के सरकार की इस योजना के तहत ऋण लेने पर यदि प्रति माह के हिसाब से देखें तो इस योजना के तहत सिर्फ 200 रुपए प्रति माह ही ब्याज देना होगा। 
ये चाहिए दस्तावेज 
हरियाणा महिला समृद्धि योजना के लिए आवेदक महिलाओं को आधार कार्ड, मूल निवास प्रमाण-पत्र, आयु प्रमाण-पत्र, आय प्रमाण-पत्र, बीपीएल राशन कार्ड, जाति प्रमाण-पत्र, परिवार पहचान-पत्र, बैंक अकाउंट विवरण, स्थाई मोबाइल नंबर जैसे दस्तावेजों के अलावा पासपोर्ट साइज फोटो जमा कराने होंगे। इस योजना के लिए ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों तरीके से आवेदन करने का विकल्प दिया गया है। 
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महिलाओं को आत्मनिर्भर करना सरकार का मकसद: मुख्यमंत्री 
 हरियाणा के मुख्यमंत्री ने शनिवार को कहा कि प्रदेश सरकार अंत्योदय परिवारों को मुख्यधारा में लाने के मकसद अनेक योजनाओं को चलाई जा रही है। प्रदेश सरकार गरीब परिवारों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने हेतु रोजगार के साथ स्वरोजगार को प्रोत्साहित कर रही है। अंत्योदय परिवार रोजगार संबंधी योजनाओं का अधिक लाभ उठा सकें। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में गरीबों के उत्थान एवं उनकी आय को बढ़ाने हेतु स्वरोजगार स्थापित करने के लिए राज्य सरकार कई योजनाओं के तहत अनुसूचित जाति की महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें स्वरोजगार दिलाकर आर्थिक रुप से समृद्ध बनाने का काम कर रही है। इसके अलावा हरियाणा सरकार अनुसूचित जातियों से संबंधित लोगों को कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र, औद्योगिक, व्यापार एवं कारोबार क्षेत्र तथा पेशेवर एवं स्व-रोजगार जैसी विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत सस्ती दरों पर ऋण मुहैया करा रही है ताकि वे अपना कारोबार व स्व-रोजगार स्थापित कर सकें।
06Feb-2023

शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

बजट: भारतीय रेलवे को विश्वस्तरीय बनाने की बढ़ी उम्मीदें

राष्ट्रीय रेल योजना 2030 के लक्ष्य का खाका किया तैयार 
महत्वकांक्षी योजनाओं के साथ बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर बल 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। केंद्रीय बजट में रेलवे को पूंजीगत व्यय के लिए बजट में आवंटित 2.41 लाख करोड़ रुपए की राशि अभी तक की सबसे अधिक राशि है। इस आवंटन से भारतीय रेलवे की राष्ट्रीय रेल योजना 2030 के लक्ष्य के तहत चल रही कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को पंख लगने की उम्मीदें बढ़ी है, तो वहीं नए रेलवे ट्रैक, वैगन, ट्रेनें, रेलवे का विद्युतीकरण, सिग्नल जैसे बुनियादी ढांचा में परिवर्तनकारी बदलाव वाली परियोजनाओं में भी तेजी आना स्वाभाविक है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी बजट के बाद माना है कि रेलवे के इतिहास में पहली बार रेलवे को योजनाओं के प्रस्ताव के हिसाब से धनराशि का आवंटन हुआ है। रेलवे को आवंटित किये गये 2.41 लाख करोड़ रुपए के बजट में रेलवे के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए 10 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। वहीं अब रेलवे को उम्मीद है कि भारतीय रेलवे यात्रियों की आकांक्षाओं को भी पूरा करते हुए रेलवे का कायाकल्प करने में तेजी से आगे बढ़ेगा। रेल मंत्री के अनुसार केंद्र से रेलवे को मिले बजट की राशि को यात्रियों को विश्वस्तरीय और बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने के लिए इस्तेमाल करने पर फोकस होगा। इस दिशा में रेलवे ने राजधानी, शताब्दी, दुरंतो, हम सफर और तेजस जैसी एक हजार से ज्यादा ट्रेनों के कोचों का नवीकरण करने की भी योजना है। 
इन परियोजनाओं पर फोकस 
केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी रेलवे परियोजना में बुलेट ट्रेन परियोजनाओं में शामिल मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना का काम अधर में था, जिस पिछले कुछ महीनों में गुजरात के आठ जिलों और दादरा और नगर हवेली से गुजरने वाले समानांतर के निर्माण कार्य शुरू कराया गया है। रेलवे को मिले बजट से अब इस परियोजना को 2027 में पूरा होने की उम्मीद है। जब एक दशक से ज्यादा समय से चल रही रेलवे की उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक परियोजना अंतिम चरणों में है, जिसके तहत चिनाब नदी पर दुनिया का सबसे ऊंचा सिंगल-आर्क रेलवे पुल का निर्माण अंतिम चरणों में है, जिससे कश्मीर घाटी को शेष भारत से रेल नेटवर्क के जोड़ा जा सकेगा। ऐसी परियोजनाओं में दिल्ली से मेरठ के बीच वर्ष 2025 में रैपिड ट्रेन का चलाने का लक्ष्य है, जिसमें तीन खंडों में काम को पूरा करने के लक्ष्य के तहत साहिबाबाद से दुहाई डिपो के बीच 17 किलोमीटर लंबे पहले खंड पूरा हो चुका है, जिसे ओवरहेड इक्विपमेंट लाइन के इंस्टालेशन का काम पूरा होते ही आगामी मार्च में चालू कर दिया जाएगा। रेलवे की उन नई योजनाओं के लिए भी 75 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त फंड दिया गया है, जो अगले वित्त वर्ष में शुरू की जाएंगी। 
पूर्वोत्तर में रेल नेटवर्क 
रेलवे की पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने के लिए बैराबी-सैरांग परियोजना में नई लाइन रेलवे परियोजना पर काम जारी है। पूर्वोत्तर भारत में अतिरिक्त 51.38 किमी रेलवे ट्रैक बनाने का लक्ष्य है। इस परियोजना से देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विशेष रूप से मिजोरम में संचार और वाणिज्य के मामले में एक नए युग की शुरूआत होगी। इसी प्रकार अरुणाचल प्रदेश में 10 हजार फुट से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर भालुकपोंग-तवांग लाइन पूर्वोत्तर के महत्वपूर्ण परियोजनाओं में शामिल है, इससे भारत चीन तनाव के बीच सेना की व्यापक जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा। 
हरियाणा में भी बनेगी वंदेभारत 
रेलवे का अगले तीन साल में 400 वंदेभारत ट्रेन पटरी पर उतारने का लक्ष्य है। बजट में वंदे भारत एक्स्प्रेस के स्लीपर वर्जन हेतु 1800 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसलिए भारत की स्वदेशी तकनीक आईसीएफ चेन्नई और रायपुर के अलावा अब वंदे भारत ट्रेनों का निर्माण हरियाणा के सोनीपत, गुजरात के लातूर और यूपी के रायबरेली में भी होगा। रेल मंत्री का दावा है कि अगले अगस्त से देश में हर माह कम से कम सात या आठ वंदेभारत ट्रेन का उत्पादन किया जाए। अभी तक देश में आठ 8 वंदे भारत ट्रेनें चलाई जा चुकी हैं। 
अमृत भारत योजना 
रेलवे की अमृत भारत स्टेशन योजना के तहत देश के बड़े स्टेशनों समेत 1275 स्टेशनों का आधुनिकीकरण करने की योजना है। वहीं रेलवे लाइनों का होगा विद्युतीकरण करने के लक्ष्य पूरा करने के मुहाने पर खड़ा है। रेलवे ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में दो हजार किलोमीटर लंबी नई रेल लाइन बिछाने की योजना है। । वंदे भारत ट्रेन चलाई जाएगी। रेल मंत्रालय ने बजट में ढाई लाख करोड़ रुपए का बजट आवंटित करने की मांग की थी।
हैरिटेज सर्किट में दौड़गी हाइड़ोजन ट्रेन 
केंद्र सरकार के बजट में ऊर्जा के नए वैकल्पिक फोकस में रेलवे की हाइड्रोजन ट्रेन के निर्माण और उसे हैरिटेज सर्किट में चलाने की योजना का भी ऐलान हुआ है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बजट के बाद ऐलान किया कि भारत में डिजाइन और निर्मित हाइड्रोजन ट्रेन इसी साल दिसंबर 2023 तक आ जाएगी। रेलवे की हाइड्रोजन ईंधन से 35 ट्रेन चलाने की योजना है। इस ट्रेन को पहले कालका-शिमला जैसे हेरिटेज सर्किट पर चलाने के बाद अन्य हैरिटेज सर्किट में चलाया जाएगा। हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए बिजली के लिए रेलवे की अल्ट्रा मेगा सोलर प्लांट स्थापित करने की योजना भी है। 
माल ढुलाई पर जोर 
रेलवे का बजट में मिली संतोषजनक राशि मिलने के बावजूद माल ढुलाई में भी तेजी लाने जो रहेगा। कोयला, इस्पात, उर्वरक व खाद्यान्न के साथ अन्य सामान की एक कोने से दूसरे कोने तक ढुलाई के लिए सौ महत्वपूर्ण परिवहन अवसंरचना परियोजनाओं की पहचान की गई है। इनके लिए 75 हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। इनमें से 15 हजार करोड़ निजी क्षेत्र से आएंगे। 
शताब्दी और राजधानी ट्रेनों की जगह लेंगी ये ट्रेनें 
दरअसल वंदे भारत ट्रेनों के चेयर कार संस्करण धीरे-धीरे शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेनों की जगह लेंगे और ट्रेन के स्लीपर संस्करण राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों की जगह लेंगे. रेलवे के मुताबिक वंदे भारत एक्सप्रेस के स्लीपर वर्जन के कोच एल्युमिनियम के बने होंगे और इसे अधिकतम 220 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलाने के लिए डिजाइन किया जाएगा. हालांकि सफर के लिए यह स्लीपर ट्रेन 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलेगी। 04Feb-2023