बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

साक्षात्कार: समाजिक संस्कार में साहित्य की अहम भूमिका: डा. सुरेन्द्र गुप्त

सकारात्मक सोच की दृष्टि साहित्यिक रचनाओं का किया विस्तार 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. सुरेन्द्र गुप्त 
जन्मतिथि: 05 मई 1943 
जन्म स्थान: कालका, जिला पंचकूला, हरियाणा। 
शिक्षा: एमए, पीएचडी.(हिन्दी), स्नातकोत्तर डिप्लोमाःअनुवाद(पंजाब विवि चण्डीगढ़) एवं पत्रकारिता (कुरुक्षेत्र विवि कुरुक्षेत्र)। 
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त सहायक निदेशक (राजभाषा) एवं पूर्व सदस्य ग्रन्थ अकादमी पंचकूला। 
संपर्क: आर.एन-7, महे नगर, अम्बाला छावनी-133001, मोबा. 9416250279, ईमेल: surindergupta1943@gmail.com 

BY:ओ.पी. पाल 
हिंदी साहित्य जगत में हिंदी के संवर्धन के लिए अपनी रचनाओं का सृजन करते आ रहे लेखक एवं वरिष्ठ साहित्यकार डा. सुरेन्द्र गुप्त पिछले चार दशकों से भी ज्यादा समय से साहित्य साधना में जुटे हैं। सामाजिक सरोकार से जुड़ी किसी भी घटना को यथार्थ के धरातल पर उतारने के लिए उन्होंने हमेशा सकारात्मक सोच की दृष्टि साहित्यिक रचनाओं का विस्तार किया है। भले ही ऐसी घटनाओं का परिप्रेक्ष्य राजनीतिक, सामाजिक, शिक्षण, धर्म, बदलते संस्कार, अथवा टूटते घर-परिवारों या फिर रिश्तों में आई कड़वाहट ही क्यों न हो। भाषा और संवाद को रचनाओं की रीढ़ मानने वाले लेखक डा. गुप्त ने राजभाषा हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिए डाक विभाग की नौकरी के दौरान भी अहम योगदान दिया है। लघुकथा, कहानी, उपन्यास तथा व्यंग्यात्मक जैसी विधाओं की रचना करते आ रहे साहित्यकार डा. सुरेन्द्र गुप्त ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक सफर को लेकर कुछ ऐसे तथ्यों को भी उजागर किया, जिसमें उन्होंने माना कि आदर्शोन्मुखी, संवेदनशील, स्वस्थ जीवन मूल्यों और राष्ट्रीय मूल्यों को स्थापित करने वाली कालजयी रचना ही सामाजिक संस्कारों के प्रति चेतना जागृत कर सकती है। 
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हरियाणा के साहित्यकारों व लेखकों में सुपरिचित हिंदी के विद्वान एवं साहित्यकार डा. सुरेन्द्र गुप्ता का जन्म 05 मई 1943 को पंचकूला जिले के कालका में लाला मंगत राम के परिवार में हुआ। उनके पिता दुकानदार थे और परिवार में लेखन या साहित्यिक माहौल कतई नहीं था। कालका से ही उन्होंने दसवीं और राजकीय महाविद्यालय चण्डीगढ़ से इण्टरमिडिएट किया। इंटर के बाद डाक विभाग शिमला में उनकी डाक लिपिक के पद पर नौकरी लग गई। नौकरी के दौरान ही उन्होंने शिमला (हि.प्र.) में संचालित हो रहे पंजाब विश्वविद्यालय चण्डीगढ़ के संध्याकालीन महाविद्यालय से बीए किया। उसके बाद विभागीय अनुमति लेकर किसी प्रकार हिंदी से एमए की डिग्री हासिल कर ली। एमए के बाद उनकी पोस्टिंग हिमाचल प्रदेश के सोलन में उप डाकपाल के पद पर हो गई। पंजाब विश्वविद्यालय चण्डीगढ़ में पंजीकरण कराकर उन्होंने पीएचडी के लिए शोध कार्य किया। डा. गुप्त ने बतया कि पीएचडी के लिए ‘स्वातन्त्र्योत्तर उपन्यास साहित्य में राजनीतिक चेतना की अभिव्यक्ति’ विषय पर शोध कार्य के दौरान उन्हें सैंकड़ों उपन्यास पढ़ने को मिले। इससे उन्हें उपन्यास लिखने की प्रेरणा भी मिली और एक तरह से यहीं से उनके लेखकीय बीजों का रोपण हुआ। सोलन में ही उनकी मुलाकात प्राणी विभाग में कार्यरत रवीन्द्रनाथ बैनर्जी से हुई, जिनसे उन्होंने बंगला भाषा भी सीखी और कुछेक कहानियों का बंगला से हिंदी में अनुवाद किया। उनका स्थानांतरण चंडीगढ़ हुआ तो उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय चण्डीगढ़ से एक वर्षीय अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी कर लिया। इसके बाद अम्बाला स्थित डाक विभाग के सर्किल कार्यालय में उनकी पोस्टिंग हिन्दी सुपरवाइजर के पद पर हो गई, तो कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा करने का मौका मिला। डा. सुरेन्द्र गुप्त ने हिन्दी अनुवादक तथा वरिष्ठ हिन्दी अनुवादक के अलावा राजभाषा हिन्दी अधिकारी पदों पर कार्य किया और 26 साल से ज्यादा सरकारी नौकरी करने के बाद सहायक निदेशक राजभाषा के पद से सेवानिवृत्त हुए। उनकी एक एकांकी पहली रचना 'नौकरी' शीर्षक से शिमला के सायंकालीन महाविद्यालय की पत्रिका में प्रकाशित हुई। इसी पत्रिका में एक कहानी 'खूनी कौन' प्रकाशित हुई। 1970-80 के दशक में उनकी एक दर्जन से अधिक कहानियां पंजाब से निकलने वाले अखबारों में प्रकाशित हुईं। इससे साहित्य के प्रति लेखन के लिए उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। इसके बाद उनकी पहली पहली लघुकथा 'सारिका' में प्रकाशित हुई। उन्हीं दिनों अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिताओं में एक लघुकथा 'बोझ' द्वितीय तथा 'कीमत' को सांत्वना पुरस्कार प्राप्त हुआ, तो मनोबल बढ़ा और उनकी एक रचना रचना 'युगबोध' कथाबिम्ब में में प्रकाशित हुई। इसके बाद उनके द्वारा लिखित कहानियों, लघुकथाओं तथा व्यंग्य रचनाओं के विभिन्न राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने का सिलसिल चलता रहा। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार डा. सुरेन्द्र गुप्त की कृतियों में लघुकथा संग्रह ‘प्रसाद’ तथा ‘यहां सब चलता है’, कहानी संग्रह ‘छत खुले आसमान की’ तथा व्यंग्य संग्रह ‘जांच अभी जारी है’ के अलावा इससे पहले अनुवादित पुस्तक ‘प्रशान्तचन्द्र महलनवीस’ तथा ‘बाल गन्धर्व’प्रकाशित हो चुकी है। जबकि लघुकथा संग्रह समय की सड़क पर तथा निबंध विविधा नामक पुस्तक प्रकाशाधीन है। उनके लघुकथा संग्रह ‘यहां सब चलता है’ तथा व्यंग्य संग्रह ‘जांच अभी जारी है’ को हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ कृति पुरस्कार मिल चुका है। वहीं डायमंड बुक्स की ‘भारत कथा माला’ के अंतर्गत ‘हरियाणा की 21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां’ में उनकी कहानी ‘उपहार’ भी शामिल हुई। ‘लघुकथाकार सुरेन्द्र गुप्त’ पर कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय में एमफिल की उपाधि हेतु शोध भी किया गया है। पिछले बीस वर्षों से अम्बाला छावनी से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘शुभ तारिका’ में भारत से प्रकाशित हो रही पत्र-पत्रिकाओं की नियमित रूप से समीक्षा कर रहे हैं। वहीं उनके द्वारा की गई करीब दो दर्जन पुस्तकों की समीक्षा भी अखबारों में प्रकाशित हो चुकी हैं। पंजाबी साहित्य की विख्यात पत्रिका ‘मिनी’ में लघुकथा ‘बचे खुचे दिन’ का पंजाबी में अनुवाद रचना प्रकाशित हई। हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी की पत्रिका ‘शब्द बूंद ’ में ‘लघुकथा अपना तेवर बदल रही है’ का पंजाबी में अनुवाद प्रकाशित। उनकी राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में कहानियों, लघुकथाओं, कवितों तथा व्यंग्य आदि समेत तीन सौ से ज्यादा रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अलावा आकाशवाणी रोहतक एवं कुरुक्षेत्र से उनके लेख, कहानियों, कविताओं तथा लघुकथाओें का प्रसारण होता रहा है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा के रचनाकार डा. सुरेन्द्र गुप्त को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2021 के लिए एक लाख रुपये के ‘विशेष हिन्दी सेवी सम्मान’ से नवाजा है। इससे पहले उन्हें साल 2016 में साहित्य मण्डल श्रीनाथ (राजस्थान) द्वारा ‘हिन्दी लाओ देश बचाओ’ समारोह में हिन्दी साहित्य भूषण की मानद उपाधि दी जा चुकी है। वहीं पंजाब साहित्य अकादमी से विशिष्ट अकादमी सम्मान, हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन सिरसा का श्री अशोक दीवान स्मृति सम्मान, अखिल भारतीय राष्ट्रभाषा विकास संगठन गाजियाबाद का ‘लघुकथा शिल्पी सम्मान’ दिया जा चुका है। उन्हें सचार मन्त्रालय, हरियाणा डाक सर्किल से डाक सेवा एवार्ड-1998 भी नवाजा गया। जबकि साल 1986 में अखिल भारतीतय लघुकथा प्रतियोगिता में ‘मोहन लाल स्मृति’ पुरस्कार तथा साल 1985 में भारतीय युवा साहित्यकार परिषद पटना में द्वितीय पुरस्कार दिया गया। डा. गुप्ता को ‘यहां सब चलता है’ लघुकथा संग्रह को ‘शब्द प्रवाह’ उज्जैन ने तृतीय पुरस्कार एवं ‘शब्द भूषण’ की मानद उपाधि दी गई। 
हिन्दी संवर्धन में विशेष योगदान 
साहित्यकार डा. सुरेन्द्र गुप्त ने करीब ढाई दशक तक हरियाणा डाक सर्किल के कार्यालयों में राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महत्तवपूर्ण योगदान दिया। हरियाणा डाक सर्किल में प्रयोग किए जाने वाले 300 के लगभग फार्म और प्रोफार्मों का हिन्दी में अनुवाद करके विभाग में राजभाषा को प्रोत्साहित किया। वहीं हरियाणा डाक विभाग कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का गठन, उनकी कार्यावली और कार्यवृत्त द्विभाषी रूप में जारी करने में भी उनका योगदान है। विभागीय स्टॉफ को राजभाषा में कार्य करने के लिए प्रेरित तथा प्रशिक्षित करने के लिए कार्यशालाओं, टिप्पण-आलेखन प्रतियोगिताओं, पुरस्कार वितरण, हिन्दी पखवाड़े तथा हिन्दी सप्ताह आदि समारोहों का आयोजन भी कराया। 
अच्छे साहित्य का सृजन जरुरी 
आधुनिक युग में साहित्य के सामने आई चुनौतियों को लेकर डा. सुरेन्द्र गुप्त का कहना है कि आज का लेखक रातो-रात लेखक बनना चाहता है और आज लेखक समाज या राष्ट्र के लिए लोकरंजन रचनाओं का सृजन करने के बजाए केवल साहित्यिक दायरों में ही अपनी दुदंभी बजाकर नाम कमाने में लगा है या कुछ पुस्तकें लिखकर पुरस्कार लेने की फिराक में रहता है। लेकिन जब तक लेखक समाज व राष्ट्र के लिए प्रेरणादायक रचनाओं का सृजन नहीं करेगा, तब तक समाज में स्वस्थ मूल्यों और सांस्कृतिक मूल्यों को स्थापित करना तथा खासतौर से युवा पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने के लिए राष्ट्रीय चेतना को जागृत करना असंभव है। आज बढ़ते इंटरनेट व सोशलमीडिया तथा बाजारीकरण के कारण साहित्य लेखन में आई गिरावट के साथ साहित्य के पाठक भी निश्चित रुप से कम हुए हैं। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आज की युवा पीढ़ी भटक गई और उनमें अपराध प्रवृत्ति बढ़ रही है। जबकि यह सत्य है कि समाजिक संस्कार अच्छा साहित्य पढ़ने से ही मिलते हैं। ऐसे में लेखकों व साहित्यकारों का भी दायित्व है कि वह अच्छे साहित्य का सृजन करके लुप्त हो रही सभ्यता और संस्कृति के प्रति समाज को नई दिशा देने का काम करे।
13Feb-2023

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