सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

चौपाल: लोक कला व संस्कृति की जड़ो को समझना जरुरी: डा. अल्पना सुहासिनी

लेखन के लिए साहित्य पढ़ना बेहद ज़रूरी 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. अल्पना सुहासिनी 
पिता: निर्दोष हिसारी 
जन्म: हिसार (हरियाणा) 
शिक्षा:बीए ऑनर्स (हिन्दी), एमए(हिन्दी), पीएचडी(हिन्दी) संप्रत्ति: लेखिका, गजलकार, अभिनय एवं मंच संचालिका, संपर्क: राजनगर एक्सटेंशन, गाजियाबाद (यूपी), ईमेल-2011alpana@gmail.com 
By- ओ.पी. पाल
रियाणवी लोक कला एवं संस्कृति को संजोने के मकसद से समाज को नई दिशा देने वाले साहित्यकारों, फिल्म एवं रंगमंच कलाकारों, गीतकारों की महत्वपूर्ण भूमिका किसी से छिपी नहीं है। ऐसे ही व्यक्तित्व की धनी डा. अल्पना सुहासिनी भी अपनी गजल और गीत लेखन के साथ-साथ अभिनय और मंच संचालन की फनकार के रुप में बड़ी पहचान बन चुकी है। फीचर फिल्मों, लघु फिल्मों तथा वेब सिरीज में अपने अभिनय से वह हरियाणा में बिगड़ते सामाजिक ताना बाना जैसी सामाजिक बुराईयों को उजागर कर साहित्य, कला व संस्कृति की मूल जड़ो को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दो पर लेखन करने में जुटी कवियत्रि, पत्रकार, लेखिका और गजलकार डा. अल्पना सुहासिनी ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान कई ऐसे अनछुए पहलुओं को साझा किया, जो खासतौर से इस आधुनिक युग में हरियाणवी सिनेमा, लोक कला व संस्कृति का सबब बनेगी। 
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रियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार निर्दोष हिसारी के परिवार में जन्मी डा. अल्पना सुहासिनी को बचपन में ही किताबों का साथ मिला, जिनकी माता श्रीमती कुसुम निर्दोष भी शिक्षित महिला हैं, जिन्होंने पिता के संसार छोड़ने के बाद पढ़ने और आगे बढ़ने की सूझबूझ दी। अल्पना के दादा कालूराम लोहमारोड़ भी समाज के बेहद प्रतिष्ठित एवम सम्मानित व्यक्तित्व थे। पिता का एक प्रबंध काव्य प्रकशित हो चुका है, एक उपन्यास व्याकुल लहरें और एक गीत ग़ज़ल संग्रह भी उनके देहावसान के बाद प्रकशित करवाया गया। डा. अल्पना ने बताया कि बचपन से ही वह अपने दादा और पिता की ऊंगली पकड़कर विभिन्न सभाओं और आयोजनों में जाने लगी थी। पांच भाई बहनों में सबसे छोटी थी। जब वह आठवीं कक्षा मे थी तो उनके पिता के देहावसान के बाद उनकी साहित्यिक विरासत को उनके भाई सदोष ने संभाला और उसे सेहजने का काम किया। इस प्रकार उसमें भी साहित्यिक अभिरुचि पैदा हुई। जबकि प्रारंभिक शिक्षा के दौरान जब वह केडी शास्त्री स्कूल में पढ़ रही थी तो वह भाषण, वाद विवाद प्रतियोगिता आदि सभी सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेती थी। जब वह नवीं कक्षा में अपने स्कूल से बाहर एक प्रतियोगिता में गई, तो परिवार में सभी ने मिठाई खिलाकर उसे प्रोत्साहित करके हौंसला बढ़ाने का काम किया। इसके बाद वह राजकीय महाविद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रही थी तो वहां भी उसने मंचों पर इन गतिविधियों को जारी रखा, जहां शिक्षकों ने इतना प्रोत्साहन दिया कि कॉलेज में नाटक के लिए ऑडिशन में उनका चयन मुख्य किरदार के लिए हो गया। जब वह नाटक प्रतियोगिता में शामिल हुआ तो उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनय का अवार्ड मिला। इससे बढ़े आत्मविश्वास ने उन्हें रंगमंच और अभिनय के प्रति हौंसला दिया। इसी दौरान उनका आकाशवाणी हिसार में पहली आकस्मिक उद्घोषिका के तौर पर चयन हो गया। वह हिसार में एक दैनिक समचार पत्र में पहली महिला पत्रकार भी बनी और उपसंपादक के पद तक कार्य किया। 
यहां से मिला अभिनय का हौंसला
अभिनय के रुप में मंचन की कला का विस्तार कॉलेज में हो रहा था और उसी दौरान उन्होंने हरियाणवी लोक साहित्य एवं संस्कृति विषयक डिप्लोमा ज्वॉइन किया और उसमें पिंगला भरथरी स्वांग का मंचन किया, जिसमें उन्हें पिंगला के सशक्त क़िरदार को निभाने का मौका मिला। डिप्लोमा के शिक्षकों के मार्गदर्शन में बहुत कुछ सीखने को मिला। जहां तक फ़िल्मों में अभिनय करने का सवाल है तो उसका श्रेय बॉलीवुड अभिनेता एवं निर्देशक यशपाल शर्मा को जाता है, जिन्होंने फिचर फिल्म ‘एस पी चौहान’ में अभिनय करने का पहला अवसर दिया। जबकि लेखन के क्षेत्र में पीएचडी के दौरान महाकवि डॉ. कुंवर बेचैन का सान्निध्य मिला और उन्होंने ही लेखन हेतु प्रोत्साहित किया और कुछ साहित्यिक संस्थाओं से भी जोड़ा। हालांकि भाई सदोष हिसारी भी निरंतर लेखन हेतु प्रोत्साहित करते रहते थे। जबकि साहित्यिक गुरु दीपक नगाइच रोशन के मार्गदर्शन में उन्होंने ग़ज़ल की बारीकियों को जानने और समझने का अवसर मिला। वहीं शादी के बाद उनके पति राजीव नागर और बच्चों दिव्यांश व कनिष्का ने भी उनके अभिनय, लेखन, गजल गायन या मंच संचालन के लिए हमेशा सहयोग देकर आगे बढ़ते रहने के लिए प्रोत्साहित करने का ही काम किया है। 
स्वस्थ्य कला लोकप्रियता का सबब 
डा. सुहासिनी का मानना है कि आधुनिक युग में भी साहित्य, संस्कृति और कला कभी लुप्त नहीं हो सकती, क्योंकि ये मूल जड़ो से जुड़ी होती है। इनका स्वरुप बदल सकता है, लेकिन सोशल मीडिया में साहित्य व कला के क्षेत्र विश्वास और रुझान बढ़ा है। हां आज युवा पीढ़ी बिना पठन पाठन के ही जल्द से जल्द लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास कर रही है, जो इस त्वरित प्रक्रिया की चाहत घातक साबित हो रही है। साहित्य या कला समर्पण व मेहनत मांगता है, जिसके लिए साहित्य, लोक कला व संस्कृति की बारीकियों को समझना जरुरी है। हालांकि आज के युवा कला की विभिन्न विधाओं में कला का आजीविका से तालमेल बिठाकर चल रहे हैं। लेकिन कला के क्षेत्र में अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए लोक गीतो, लोक नृत्य के लिए युवाओं को इनकी जड़ो को पहचान करके आगे बढ़ना चाहिए। जहां तक लोक कला के नाम पर द्विअर्थी गीतों व नृत्य का सवाल है उसमें हरियाणा में बढ़ते सिनेमा के दौर में बेहद सुधार है, जिसकी धूम विदेशों में सुनाई देने लगी है। उनका कहना है कि लेखकों, कलाकारों या गीतकारों को आगे बढ़ने के लिए स्वस्थ प्रस्तुतियों से इस क्षेत्र में आ रही विसंगतियों को दूर करने के लिए आगे बढ़ने का प्रयास करना जरुरी है। 
आदर्श अभिनय की पक्षधर 
फिल्मो या वेबसीरिज में अभिनय को लेकर डा. सुहासिनी का स्पष्ट कहना है कि उनका प्रयास रहा है कि अपने आदर्शो व असूलो पर आगे बढ़ते हुए ईमानदारी से काम किया जाए। अभिनय में भी यही प्रयास है कि स्क्रीन पर ऐसा कोई दृश्य न हो जो परिवार के साथ न देखा जा सके और वह भविष्य में भी ऐसा स्तरीय और प्रभावशाली किरदार करना चाहती हैं, जिसकी अमिट छाप छोड़ सके। उन्होंने हरियाणवी फिल्म दादा लखमी में लखमी की पत्नी का किरदार निभाया। इससे पहले हरियाणा में महिलाओं की दशा, लैंगिक भेदभाव, ऑनर किलिंग, भ्रूण हत्या, सामाजिक भेदभाव जैसी समस्या को लेकर बनाई गई वेबसीरिज ‘ओपरी पराई’ में उन्होंने एक टिपिकल सास का किरदार निभाया। इसे सामाजिक रूढिवादिता और अंधविश्वास पर चोट करते हुए समाज को जागृत करने का प्रयास था। इसी प्रकार यशपाल की निर्मित वेब सीरिज ‘कॉलेज कांड; में उनका किरदार चुनौती पूर्ण था, जिसमें उन्होंने यशपाल शर्मा की पत्नी की भूमिका में अभिनय किया। उन्होंने फीचर फिल्म ‘छलांग’ के अलावा लघु फिल्म हथियार में भी इसी प्रकार के आदर्श किरदार की भूमिका में काम किया। उन्होंने बताया कि उन्हें मार्च में आने वाली बॉलीवुड फिल्म में रणबीर कपूर, श्रद्धा कपूर जैसे कलाकारों के साथ रणबीर कपूर के दोस्त की मां के किरदार में अभिनय करने का मौका मिला है। 
मंच संचालन की महारथी
डा. अल्पना सुहासिनी ने बड़े से बड़े आयोजनों का संचालन करने में महारथ हासिल की है। बॉलीवुड इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, हरियाणा इंटरनेशनल, काशी इंडियन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल जैसे आयोजन में उन्हें अनेक बार मंच संचालिका की जिम्मेदारी मिली है। दूरदर्शन हिसार के उद्घाटन समारोह में तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री सुषमा स्वराज के सम्मुख मंच संचालन करने का भी उन्हें सौभाग्य मिला। नेशनल थियेटर फेस्टिवल रंग उत्सव हिसार में अनेक बार संचालन किया। वहीं अनेक कवि सम्मेलन और मुशायरे के मंच संचालन की कमान उन्हें सौंपी जाती रही हैं। यही नहीं डा. सुहासिनी पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता व अन्य सामाजिक एवं रचनात्मक गतिविधियों के मंच का संचालन भी करती आ रही हैं। मंच संचालिका के रुप में उन्हें अनेक सम्मान और पुरस्कार भी मिले हैं। 
साहित्य क्षेत्र में भी लोकप्रिय 
साहित्य के क्षेत्र में भी गजल व गीत लिखकर उन्होंने अपनी एक पहचान बनाई है, जिसके तहत उन्होंने लेखन के लिए पठन और पाठन को सतत् सक्रीयता बनाते हुए उन्होंने अपनी लिखित 80 गजलों को लेकर ‘तेरे मेरे लब की बात’ शीर्षक से गजल संग्रह के रुप में पुस्तक लिखी है। अब वे गीत संग्रह लिखने की तैयारी में है। गजलकार के रुप में अपनी रचनाओं में उन्होंने सामाजिक विसंगतियों, राजनीति, महिलाओं जैसे मुद्दों पर फोकस रखा है। उनका कहना है कि गजल के श्रृंगारी मिथक को दुष्यंत ने तोड़कर नया आयाम देकर रचनाकारों को प्रोत्साहित किया है। वहीं साहित्य के क्षेत्र में उन्हें कुंवर बेचैन, मुनव्वर जैसे कवियों के साथ मंच साझा करने का सौभाग्य मिला है। डा. सुहासिनी दिल्ली दूरर्शन और अनेक टीवी चैनलों के अलावा राष्ट्रीय सांस्कृतिक साहित्यिक मंचो, जश्नेअदब और आकाशवाणी पर काव्य पाठ भी कर चुकी हैं। उनकी कविताएं, लेख और गजले अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुई हैं। 
20Feb-2023

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