रविवार, 30 अक्तूबर 2016

समुद्री कारोबार में चीन से आगे भारत!

घाटे के दौर से गुजर रहे हैं दुनियाभर के बंदरगाह
भारत ने कमाया छह हजार करोड़ रुपये का मुनाफा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश के समुद्री कारोबार की सेहत सुधारने की दिशा में बंदरगाहों के अत्याधुनिक विकास की परियोजनाओं का नतीजा सामने आने लगा है। मसलन जहां दुनियाभर के बंदरगाह घाटे के दौर से गुजर रहे है, वहीं भारत के बंदरगाहों से भारत को छह हजार करोड़ का मुनाफा हुआ है। भारत ने चीन जैसे देश को भी बंदरगाह के विकास और कारोबार में पीछे छोड़ दिया है।
केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय भारत के बंदरगाहों को मुनाफे में आने की उपलब्धि के मद्देनजर देश में बंदरगाहों के विस्तार की योजना बना रहा है। मसलन देश में प्रमुख 12 बंदरगाहों के अत्याधुनिक विकास और उनकी समुद्री कारोबार क्षमता बढ़ाने के साथ ही छह और बंदरगाह बनाने की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। मंत्रालय के अनुसार मौजूदा दौर में जहां दुनियाभर के बंदरगाह घाटे के दौर से गुजर रहे हैं, वहीं भारत के बंदरगाहों ने छह हजार करोड़क का मुनाफा कमाते हुए इस क्षेत्र में 2.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है, जो केंद्र सरकार की परियोजनाओं का नतीजा माना जा रहा है। मंत्रालय के अनुसार सागरमाल कार्यक्रम के जरिए बंदरगाहों के विकास और उसके कारोबार में भारत ने सकल घरेलू उत्पाद के मामले में चीन को भी पीछे धकेल दिया है। इस मामले में इस क्षेत्र में भारत का जीडीपी 19 प्रतिशत है, तो चीन 12.5 प्रतिशत जीडीपी दर पर सिमट गया। यही नहीं बंदरगाह के जीडीपी योगदान में इंडोनेशिया 15.72 प्रतिशत और ब्रिटेन 13.43 प्रतिशत की दर से चीन से आगे हैं। मसलन दुनियाभर के बंदरगाहों की जीडीपी में भारत सबसे ऊपर आ चुका है।
वरदान बनी सागरमाला
मंत्रालय के अनुसार बंदरगाहों के विकास में चलाई जा रही सागरमाला परियोजना जैसे महत्वकांक्षी कार्यक्रम ने भारत के माल ढुलाई के मॉडल को ही बदलना शुरू कर दिया है, जिसमें बंदरगाहों और उनके संपर्क मार्ग जैसे बुनियादी ढांचों के लिए सागरमाला कार्यक्रम ने सस्ती माल ढुलाई और समुद्री कारोबार के आर्थिक घाटे को मुनाफे में बदलने के संकेत सामने आने लगे हैं। सागरमाला कार्यक्रम के तहत भारत का वर्ष 2025 तक 35 से 40 हजार करोड़ रुपये तक माल ढुलाई की बचत करके बंदरगाहों का मुनाफा बढ़ाने का लक्ष्य है। मंत्रालय के अनुसार सागरमाल कार्यक्रम के तहत तटीय मार्ग के माध्यम से कोयले की आवाजाही 2025 तक 129 मिलियन टन प्रतिवर्ष करने का लक्ष्य है, जो मौजूदा वित्तीय वर्ष 2016 में 27 लाख टन प्रतिवर्ष से बढ़कर और मोडल मिश्रण में अंतदेर्शीय जलमार्ग और तटीय शिपिंग की हिस्सेदारी बढ़ाने के 6 से 12 प्रतिशत तक बढने का अनुमान है। मंत्रालय इस कार्यक्रम के तहत हुए एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि तटीय शिपिंग और अंतदेर्शीय जलमार्ग सड़क और रेल परिवहन की तुलना में करीब 70 प्रतिशत सस्ता है। जलमार्ग का उपयोग कच्चे माल और तैयार उत्पादों हिल के लिए एक महत्वपूर्ण क्षमता निहित है। इस दिशा में तटीय शिपिंग के जरिए इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, पीओएल और खाद्यान्न के रूप में अन्य वस्तुओं की भी ढुलाई की जा रही है, जिसकी क्षमता वर्ष 2025 तक अतिरिक्त 80-85 बारे करोड़ टन की सीमा तक बढ़ाने का लक्ष्य है।
बेहतर विकल्प होगा जलमार्ग
देश में सड़क और रेल मार्ग के अलावा राष्ट्रीय जल परिवहन परियोजना माल ढुलाई की क्षमता बढ़ाएगी, जिसके लिए केंद्र सरकार ने देश में 111 नदियों को जलमार्ग में तब्दील करके जल परिवहन के रूप में एक किफायती विकल्प पर काम करना शुरू किया है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जल मार्ग को देश के परिवहन व्यवस्था में एक बेहतर कदम करार देते हुए कहते आ रहे हैं कि इस कदम से देश विदेश में माल भेजने के मद में होने वाले खर्च में भारी कमी आएगी और माल ढुलाई क्षमता में इजाफा होगा। हालांकि फिलहाल देश में पांच अंतर्राज्यीय जलमार्ग है, जिनके विस्तार के लिए 106 नए जलमार्ग शुरू करने की योजना को आगे बढ़ाया गया है। इसका मकसद सड़क व रेल मार्ग पर बढ़ते यातायात के बोझ को कम करना भी है। सरकार ने देश में 2000 वाटर पोर्ट्स बनाने की योजना तैयार की है।
30Oct-2016

राग दरबार: उल्टा चोर कोतवाल को डांटे..

संघर्ष विराम का उल्लंघन
भारत के खिलाफ आतंकवाद और फिर संघर्ष विराम का उल्लंघन कर आए दिन सीमा पर गोलाबारी, फायरिंग करने की हरकत से बाज आने को तैयार नहीं पाकिस्तान के लिए ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ वाली कहावत सटीक बैठती है। मसलन अंतर्राष्टÑीय स्तर पर आतंकवाद का हिमायती के रूप में पहचाने जा रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का भारत को संघर्ष विराम का उल्लंघन करने का आरोप लगाकर दी जा रही चेतावनी इसी बात को साबित करती है। पाकिस्तान की ओर से अरसे से भारतीय सीमा पर निरंतर होते आ रहे ‘संघर्ष विराम’ उल्लंघन की जिस बात को दुनिया जान चुकी है, अब उसका ठींकरा पाकिस्तान अपने आपको ‘एक शांतिप्रिय देश’ साबित करने के प्रयास में भारत के सिर फोड़ने का प्रयास कर रहा है। मसलन चोरी और ऊपर से सीना जोरी पर उतारी पाकिस्तान यहां तक हिमाकत करने से नहीं चूका कि पाक के धैर्य की भी कोई सीमा है। विदेश और रक्षा मामलों के विशेषज्ञों का पाकिस्तान के इस पैंतरे पर यही कहना है कि दुनियाभर के नक्शे पर आतंकवाद के पनाहगार के रूप में पहचाने जा चुके पाक के इस पैंतरे पर कोई विश्वास करने वाला नहीं है, भले ही वह भारत को संघर्ष विराम का उल्लंघन करने के आरोप पर सजा दिलाने की गीदड़ भभगी देता रहे। कश्मीर राग अलापने वाले पाकिस्तान की नीयत इतनी ही पाक साफ होती तो पहले वह आतंकवादियों के खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत दिखाए, जो उसी के घर में आग लगाने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। विशेषज्ञ तो यही मान रहे है कि सीमा पर तनाव के बीच संघर्ष विराम के उल्लंघन और आतंकवादी घुसपैठ की कौशिशों को भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा मुहंतोड़ जवाब देने से अपने भारी नुकसान से हतप्रभ पाक पीएम शरीफ जो दावं अजमाने का प्रयास कर रहा है उसमें उसे अपनो से ही उल्टे मुहं की ही खाना पड़ेगी, जो भारत के खिलाफ अपनी नापाक हरकते करने की आदत में शुमार हो चुके पाक को भारी पड़ना तय है, इसलिए पाक की ऐसी धमकी इसी कहावत का पर्याय है कि ‘उल्टे चोर कोतवाल को डांटे..!
तो आज भी जावड़ेकर हैं पर्यावरण मंत्री...
मोदी कैबिनेट में फेरबदल को गुजरे करीब पांच महीने हो चुके हैं। सभी मंत्रियों ने अपने-अपने विभाग की जिम्मेदारी भी संभाल ली है। लेकिन बावजूद इसके सरकार में कई मंत्री ऐसे हैं जिन्हें उनके पुराने विभागों के नाम से ही आज भी जाना-पहचाना जा रहा है। यह वाकया बीते दिनों म्यांमार की लोकतंत्र समर्थित नेता आंग सान सू की के भारत दौरे के वक्त सामने आया। पड़ोसी मेहमान का राष्टÑपति भवन में औपचारिक स्वागत किया जाना था। इसके लिए राष्टÑपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर मौजूद थे। मेहमान के आगमन के साथ ही उनका परिचय मंत्रियों के करवाते वक्त प्रोटोकाल अधिकारी ने जावड़ेकर को एचआरडी के बजाय केंद्रीय पर्यावरण मंत्री बताकर परिचय करवा दिया। इसे जावड़ेकर ने तुरंत ठीक कर अपना नया परिचय उनके सामने रखा। परिचय की इस भूलचूक में और कुछ हुआ हो या नहीं लेकिन पर्यावरण के रूप में काम करने को लेकर जावड़ेकर की बनी पहचान तो जरूर उजागर हो गई।
नेता का सबसे बड़ा धर्मसंकट
उत्तर प्रदेश की सियासत में देश के राजनितिक पहलवान माने जाने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव परिवारिक कलह को लेकर शायद पहली बार सबसे बड़े धर्मसंकट के दौर में हैं। कारण साफ है कि एक ओर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पिता होने के नाते मुलायम सिंह यादव ने बेटे को कुनबे के कई दूसरे लोगों को पार करके मुख्यमंत्री पद पर बैठाया। तो दूसरी ओर नेताजी की परछाई कहे जाने वाले शिवपाल यादव ने अपना जीवन मुलायम सिंह का हनुमान बनकर काट दिया है। या कुछ यूं कहिए कि झगडालू सियासी जमात में अभी भी पुराने संस्कार कुछ हद तक हैं। फिलहाल समाजवादी पार्टी का चेहरा अखिलेश हैं और मोहरा शिवपाल। इस सियासी संकट में देखा जाए तो समाजवादी विचारधारा से भले डिग गये पर व्यवहार बिल्कुल पुराना। एका, आरोप-प्रत्यारोप, टूट और फिर मिलन सब कुछ पहले जैसा। फिर भी फिलहाल यह कलह सुलझती नजर नहीं आई, लेकिन इसके प्रयास में ढकी-छिपी बातें जरूर सामने आ रही हैं। फिर भी देखा जाए तो विधायक दल का संख्या बल अखिलेश यादव के साथ है और इसी वजह से मुलायम सिंह कोई कठोर फैसला लेने के बजाए धर्मसंकट में फंसे हुए हैं, जिनकी राजनीतिक सूझबूझ का आकलन करना हर किसी की समझ से परे है। राजनीतिकारों की माने तो ऐसे राजनीतिक संकट में शिवपाल यादव ने आगामी चुनाव में गठजोड़ की सुगबुगहाट तेज करके संकेत दिये हैं, तो अखिलेश अलग रहा पकड़ सकते हैं। यही तो है नेता का सबसे बड़ा धर्मसंकट..।
-ओ.पी. पाल व कविता जोशी
30Oct-2016

शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

अब एक कदम दूर केन-बेतवा परियोजना!

पर्यावरणीय मंजूरी मिलते ही शुरू होगा काम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सूखे और बाढ़ तथा जल संकट जैसी समस्या की चुनौती से निपटने के इरादे से अटल बिहारी वाजपेयी की नदियों को आपस में जोड़ने वाली महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के तहत केन-बेतवा लिंक परियोजना इतिहास रचने के मुहाने पर है, जिसे वन्यजीव से हरी झंडी मिलने के बाद अब पर्यावरणीय मंजूरी का इंतजार बाकी है।
दरअसल मोदी सरकार ने देश में नदियों को आपस में जोड़ने की 30 परियोजनाओं को रडार पर रखा हुआ है, जिसमें इस परियोजना को फास्ट्र टेÑक पर लाने के बाद मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के लिए वरदान बनने जा रही करीब 9393 करोड़ की केन-बेतवा लिंक परियोजना देश की ऐसी पहली परियोजना होगी, जिससे देश में सूखे और बाढ़ की समस्या के साथ जल संकट को दूर करने में मदद मिलेगी। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना की दोनों राज्यों की सरकारों द्वारा सभी औपचारिकताएं पिछले साल ही पूरी हो चुकी हैं और डीपीआर के अनुसार परियोजना शुरू करने का पूरा खाका भी पहले से ही तैयार है। परियोजना की मंजूरी देने में वन्य एवं पर्यावरण मंत्रालय की वन्यजीव समिति रोड़ा बनी रही, जिससे खफा केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती को अनशन करने तक की चेतावनी देनी पड़ी। शायद उमा के इन तेवरों को देख मंत्रालय के तर्को को स्वीकार करते हुए अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही वन्यजीव समिति ने अपनी मंजूरी देकर इस परियोजना की राह आसान कर दी। अब केवल पर्यावरणीय मंजूरी का इंतजार है, जिसके लिए नई समिति गठित करने की प्रक्रिया के बाद हरी झंडी मिलने की उम्मीद है। इसके लिए केंद्रीय मंत्री उमा भारती उत्साहित है कि पर्यावरणीय मंजूरी मिलते ही जल्द ही केन-बेतवा परियोजना लांच कर दी जाएगी। इस परियोजना के शुरू होने से मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में जल संकट से जूझ रहे बुंदेलखंड क्षेत्र के 70 लाख लोगों की खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होगा, जिन्हें पर्याप्त पानी, फसलों की सिंचाई और रोजगार की समस्या से भी निजात मिलेगी।
क्या होगा परियोजना का खाका
मंत्रालय के अनुसार मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश की इस केन-बेतवा परियोजना के तहत लिंक नहर की कुल लंबाई 221 किलोमीटर होगी, जिसमें दो किलोमीटर की सुरंग भी बनेगी। बरसात में केन नदी से आने वाले पानी को रोकने के लिए खजुराहो के निकट गंगऊ वियर से ढाई किलोमीटर दूर दौधन बांध बनेगा। 77 मीटर ऊंचे इस बांध की क्षमता 2953 मीट्रिक घन मीटर होगी। बांध पर 78 मेगावाट क्षमता की दो विद्युत उत्पादन इकाइयां भी स्थापित होंगी। इनमें एक उत्पादन इकाई बांध पर और दूसरी दो किलोमीटर दूर बनने वाली सुरंग के पास स्थापित होगी। यहां से आने वाला पानी बरुआसागर झील में मिलने के बाद बेतवा नदी में पहुंचेगा।
खासबात है कि परियोजना के तहत 1700-1700 मिलियन घन मीटर पानी मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश को मिलेगा। इस परियोजना से जहां मध्यप्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़ एवं पन्ना जिले की 3,69,881 हेक्टेयर भूमि, तो वहीं उत्तर प्रदेश के महोबा, बांदा व झांसी जिले की 2,65,780 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई क्षमत में वृद्धि होगी, जिसमें झांसी जिले की 6,35,661 हेक्टेयर कृषि भूमि भी शामिल है। इसके अलावा इस परियोजना के मार्ग में पड़ने वाली 13.42 लाख जनसंख्या को 49 मिलियन क्यूबिक मीटर पेयजल की उपलब्धता से लोगों की प्यास भी बुझेगी।
राष्ट्रीय मॉडल तैयार
मंत्रालय के अनुसार एमपी व यूपी के बुंदेलखंड की महत्वाकांक्षी केन-बेतवा लिंक परियोजना ने अपना कागजी सफर पूरा कर लिया है। राष्ट्रीय विकास अभिकरण ने हाल ही में इस परियोजना का राष्ट्रीय मॉडल भी तैयार कर लिया है। 18/20 फीट के इस मॉडल को इस माह के अंत तक झांसी लाया जाएगा। झांसी में इस मॉडल को राजघाट कालोनी स्थित नदी बेतवा परिषद कार्यालय प्रांगण में जन मानस के अवलोकनार्थ रखा जाएगा। संबंधित विभाग के अफसरों ने परियोजना का शिलान्यास दिसंबर या नए साल की शुरूआत में होने की उम्मीद है। केंद्रीय जल संसाधन राज्य मंत्री संजीव बालियान ने कहा कि केन-बेतवा लिंक परियोजना का निर्माण पर्यावरीय मंजूरी मिलते अगले दिसंबर में ही शुरू कर दिया जाएगा। पर्यावरण विभाग वाइल्ड लाईफ से एनओसी मिलना शेष रह गया है, जो किसी भी क्षण अपेक्षित है। केन बेतवा नदी जोड़ो परियोजना बुन्देलखण्ड अंचल के लिए दैवीय वरदान साबित होगी, क्योंकि इसके पूर्ण हो जाने पर इस अंचल को सूखा और बाढ़ की विभीषिका से मुक्ति मिल जायेगी।
29Oct-2016

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

सपा के अंतर्कलह से आहत है जनता परिवार!

एकजुटता पर फिर मंथन करने की तैयारी में दल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
जनता परिवार की खंडित ताकत को मजबूत करने वाले मुलायम ही आज अपने परिवार में एक भस्मासुर की भूमिका में नजर आ रहे हैं, तो डा. राम मनोहर लोहिया के सिद्धांतों की दुहाई देकर समाजवाद को संजीवनी देकर एकजुट करने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की पार्टी और परिवार में अंतर्कलह जनता परिवार के सभी दलों के लिए आहत होना स्वाभाविक है। माना जा रहा है कि जनता परिवार जल्द ही समाजवादी दलों की एकजुटता के लिए बैठक बुलाकर मंथन करने की तैयारी में हैं।
सपा प्रमुख की अगुवाई में जनता परिवार के अलग-अलग रास्तो पर बंटे दलों को एकजुट करके एक संयुक्त राजनीतिक पार्टी बनाने की कवायद को सपा में पिछले कई माह से चल रही आंतरिक कलह परेशानी का सबब बनी हुई है। क्योंकि समाजवादी पार्टी ही जनता परिवार की खंडित ताकत को समय-समय पर संजीवनी देने का प्रयास किया है और सपा प्रमुख इसके अलावा कई दलों के लिए खैवनहार साबित हुए हैं। ऐसे में लोहिया के सिद्धांतों को बरकरार रखने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव भले ही समाजवाद की नई परिभाषा गढ़ते हुए जनता परिवार को एकजुट करने की मिसाल पेश की हो, लेकिन खुद की पार्टी और परिवार के खुलेआम तलवारें खींचने की चरम पर पहुंची कलह जनता परिवार के दलों और सदस्यों को आहत कर रही है। सपा के घटनाक्रम पर हरिभूमि की जनता परिवार के दलों के नेताओं से बातचीत की है, जिनकी टीस जनता परिवार की एकजुटता में सपा की कलह साफतौर से झलकती नजर आई।
धर्मनिरपेक्षता के कमजोर होने की टीस
जद-यू के वरिष्ठ नेता व प्रवक्ता केसी त्यागी सपा परिवार में चल रही लड़ाई से इसलिए आहत नजर आए कि सपा के इस अंदरूनी संग्राम से धर्मनिरपेक्षता का संघर्ष मजबूत होने से पहले ही कमजोर हो जाएगा। त्यागी ने सपा परिवार में चल रहे घटनाक्रम को दुखदायी करार देते हुए कहा कि हालांकि उम्मीद है कि मुलायम इस परिवारिक मामले को सहजता से सुलझा लेंगे, लेकिन जनता परविार की एकता के लिए इस संदेश सकारात्मक नहीं है। राकांपा के वरिष्ठ नेता व प्रवक्ता डीपी त्रिपाठी भी मुलायम परिवार की कलह को लेकर आश्चर्यचकित है जिनका कहना है कि सपा जनता परिवार के लिहाज से एक महत्वपूर्ण राजनीतिक दल है और पूरा जनता परिवार चाहता है कि वह आंतरिक मामले से बाहर आकर धर्मनिरपेक्ष ताकतों को शक्तिशाली बनाने की मुहिम को आगे बढ़ाएं। इसी प्रकार रालोद नेता जयंत चौधरी ने भी सपा के घर में चल रही लड़ाई पर अफसोस व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे पारिवारिक मामले में जनता परिवार को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है जिसके लिए मुलायम खुद सक्षम है। इससे पहले राजद प्रमुख लालू यदव ऐसी ही उम्मीद पहले लगाकर अपनी टीस उजागर कर चुके हैं। वहीं इनेलो सांसद दुष्यंत चौटाला भी सपा परिवार के बीच चल रही आंतरिक जंग को लेकर चिंता में नजर आए, जिनका कहना है कि यह पारिवारिक मामला होने के कारण किसी अन्य का हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा। हां जनता परिवार की एकता के लिए जल्द ही एक बैठक बुलाकर इस बात पर मंथन किया जा सकता है कि जनता परिवार की एकजुटता की अगुवाई वाली सपा के प्रमुख जल्द ही इस मामले को नहीं सुलझाते तो इससे समाजवादी की एकजुटता ओर धर्मनिरपेक्षता की शुरू की गई लड़ाई ज्यादा कमजोर होगी।
खतरे में जनता परिवार की एकता
गौरतलब है कि करीब दो साल पहले सपा प्रमुख मुलायम सिंह की पहल पर जनता परिवार के तितर-बितर दलों जद-यू, राजद, जदएस,रालोद, इनेलो को एकजुट करके राष्ट्रीय स्तर पर एक संयुक्त राजनीतिक दल बनाने की कवायद तेजी के साथ शुरू की गई थी,जिसका मकसद गैरभाजपा व गैर कांग्रेस की नीतियों का विरोध करके धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई को मजबूत करना था। इस परिवार में जनता परिवार में बीजू जनता दल और ऐसे अन्य दलों को भी साथ लेने की तैयारी की गई, लेकिन कई महत्वपूर्ण फैसलों के बावजूद संयुक्त राजनीतिक दल और उसके चुनाव चिन्ह को लेकर मामला अधर में लटका रहा, जिसकी राह करीब चार माह पहले यूपी चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में शुरू हुई परिवारिक कलह ने फिलहाल रोक दी है। राजनीतिकारों की माने तो यदि सपा की आंतरिक रार ऐसे ही चलती रही तो जनता परिवार में शामिल दलों की भी राहें अलग-अलग हो सकती है और उनकी एकता होने से पहले ही खतरे में पड़ सकती है।
ऐसे शुरू हुई थी मुहिम
देश की धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई को मजबूत करने के मकसद से 23 जनवरी 1977 को जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस की नीतियों और रणनीतियों के तंग आकर जनता पार्टी का गठन किया था, जिसके बाद इस जनता पार्टी से कई दलों की शाखाएं फूट-फूटकर अलग राहे पकड़ती नजर आई। मसलन देश की राजनीतिक में एक बड़ा बदलाव सामने आया और जनता पार्टी के उस दौर से निकलने के बाद हुए बिखराव ने कई नई सियासी पार्टियों को जन्म दिया। नतीजतन जनता दल, जद-यू , बीजद, जद-एस,सपा, राजद समेत और भी कई दल क्षेत्रीय राजनीति के क्षितिज पर उभरते नजर आए। यह जरूर है कि कुछ दलों के सितारे बुलंदियों तक पहुंचे और कुछ फिके पड़ने के कारण अन्य दलों के साथ विलय का सहारा बने। ऐसे ही दलों में यूपी जैसे बड़े सूबे में सपा ने सत्ता की हनक, धमक और चकाचौंध का लुत्फ लिया, लेकिन सियासत के शबाब में मुखिया मुलायम सिंह के पैंतरे ने एक परिवारिक संग्राम को हवा दी,जिसका पटाक्षेप होने का इंतजार है।
रार के बीच महागठबंधन की सुगबुगाहट
उत्तर प्रदेश के ‘समाजवादी कुनबे’ में छिड़ी वर्चस्व की जंग के बीच सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की अगुवाई में एक महागठबंधन बनने की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है और आगामी पांच नवम्बर को पार्टी के रजत जयन्ती कार्यक्रम में इस सिलसिले में कोई अहम एलान हो सकता है। सपा के प्रान्तीय अध्यक्ष शिवपाल यादव ने आज पार्टी राज्य मुख्यालय पर संवाददाताओं से संक्षिप्त बातचीत में सभी लोहियावादी और चौधरी चरण सिंह वादी लोगों को एक मंच पर लाने की जरूरत बतायी।
उन्होंने कहा, हम किसी भी कीमत पर साम्प्रदायिक शक्तियों को हराना चाहते हैं। इसके लिये लोहियावादी और चौधरी चरणसिंहवादी लोगों को एक मंच पर लाना होगा। इस बीच, सपा के सूत्रों ने बताया कि आगामी पांच नवम्बर को आयोजित होने वाले पार्टी के रजत जयन्ती समारोह में शिरकत के लिये चौधरी चरण सिंह के पुत्र राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह, जनता दल यूनाइडेट के अध्यक्ष बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जनता दल सेक्युलर प्रमुख पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा समेत सभी प्रमुख समाजवादी तथा चरणसिंहवादी नेताओं को निमंत्रण भेजा गया है। सूत्रों का यह भी कहना है कि सपा आगामी पांच नवम्बर को होने वाले कार्यक्रम में अपना शक्ति प्रदर्शन करना चाहती है और इस मौके पर महागठबंधन का एलान होने के मजबूत संकेत हैं।यह घटनाक्रम ऐसे वक्त हुआ है जब समाजवादी परिवार में चाचा शिवपाल सिंह यादव और उनके भतीजे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बीच वर्चस्व का टकराव चरम पर है।
27Oct-2016

बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

सड़क खराब हुई, तो इंजीनियरों की खैर नहीं!

सड़क हादसों के आधार पर तय होगी सड़कों की गुणवत्ता
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सरकार के अनेक ठोस कदमों के बावजूद सड़कों पर होने वाले हादसों और उनमें होने वाली मौतों में कमी को लेकर दुनियाभर में कलंक जैसी फजीहत झेल रही सरकार ने दो टूक शब्दों में कह दिया है कि सड़क निर्माण की गुणवत्ता के लिए सड़क निर्माण क्षेत्र में कार्यरत इंजीनियर जिम्मेदार होंगे। ऐसे इंजीनियरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई अमल में लाने के साथ ही सुरक्षित सड़कों के लिए बेहतर काम करने वालों को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जाएगा।
दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत में सबसे ज्यादा सड़क हादसों को लेकर केंद्र सरकार चिंतित है, जिसके लिए अगले दो साल में इन हादसों को 50 फीसदी कम करने के लक्ष्य पर कई योजनाओं के जरिए अनेक ठोस कदम उठाए गये हैं। देश के विभिन्न राज्यों में सडक सुरक्षा को लेकर सड़क निर्माण में जुटे वर्ग व कंपनियों की कार्यशालाएं आयोजित करने के बाद मंगलवार को यहां नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर सड़क सुरक्षा के इंजीनियरिंग उपायो पर एक कार्यशाला में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क निर्माण क्षेत्र के इंजीनियरों को नसीहत देते हुए दो टूक शब्दो में कह दिया है कि सड़क निर्माण की गुणवत्ता खराब निकलने के लिए इंजीनियरों और उनसे संबन्धित अधिकारियों को सीधे जिम्मेदार ही नहीं ठहराया जाएगा, बल्कि उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई अमल में लायी जाएगी। सड़क सुरक्षा में निर्माण की गुणवत्ता को अगले साल मार्च में होने वाली समीक्षा में सड़क हादसों की स्थिति के आधार पर तय किया जाएगा। गडकरी ने कहा कि सरकार का लक्ष्य स्पष्ट है कि देश में सड़क हादसों में लोेगों आकस्मिक मौतों पर अंकुश लगाना है। इसके लिए सुरक्षित सड़क निर्माण प्राथमिकता है। गडकरी ने कहा कि केंद्र सरकार ने सभी परियोजना निदेशकों और राजमार्ग परियोजनाओं के क्षेत्रीय अधिकारियों को अधिकार दिये हैं कि वे स्थानीय स्तर की समस्या को समझकर सड़क निर्माण के डिजाइन तैयार करने के लिए एक संवेदनशील, समझदार, समयबद्ध अपनाने और उन्मुख दृष्टिकोण के तहत ब्लैक स्पॉट या अन्य मार्गो को दुरस्त करने में आगे आएं। उन्होंने कहा कि सरल एवं सुनियोजित डिजाइन जैसे कि रोड डिवाइडर की समुचित ऊंचाई सड़कों पर सुरक्षा सुनिश्चित करने में अत्यंत कारगर साबित हो सकती है। गडकरी ने सभी परियोजना निदेशकों और राजमार्ग परियोजनाओं के क्षेत्रीय अधिकारियों से सड़क दुर्घटनाओं की समस्या से निपटने के लिए एक संवेदनशील, समयबद्ध एवं परिणाम उन्मुख अवधारणा अपनाने के साथ-साथ दुर्घटना वाले ब्लैक स्पॉट्स को एक मिशन के रूप में दुरुस्त करने की अपील की है।
जल्द आएगा सड़क सुरक्षा बिल
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बताया कि सड़कों पर होने वाले हादसों को लेकर यातायात नियमों को सख्त बनाने और सामने आ रहे अन्य कारणों पर शिकंजा कसने के लिए संसद में लंबित नया सड़क सुरक्षा विधेयक जल्द ही पारित कराने का प्रयास किया जा रहा है,जिसके अगले महीने संसद के शीतकालीन सत्र में पारित होने की उम्मीद है। इस कानून में एक बहु-आयामी रणनीति के तहत उपाय किये गये हैं। सरकार ने इस काननू में इंजीनियरों और सड़क निर्माण कंपनियों से सड़कों की सुरक्षा, उसके उपयोग कर्ताओं के हितों और आॅटो मोबाइल इंजीनियरिंग, वाहन चालकों की क्षमता जैसे ऐसे सभी बिंदुओं को नए सड़क सुरक्षा कानून में संशोािधत प्रावाधानों के तहत शामिल किया है, जिनके जरिए देश में सड़क हादसों और उनके कारण असामयिक मौत का शिकार हो रहे लोगों क जान बचाई जा सके। उन्होंने साफ कहा कि इसके लिए सड़कों के सुरक्षित डिजाइन के तहत निर्माण सबसे जरूरी है, जिसके लिए सड़क निर्माण के लिए डिजाइन तैयार करने ओर निर्माण की गुणवत्ता उच्च कोटि की रखने की जिम्मेदार इंजीनियरों और संबन्धित लोगों की है।
मिशन मोड़ पर दुरस्त होंगे ब्लैक स्पॉट
देशभर में दुर्घटनाग्रस्त क्षेत्रों को ब्लैक स्पॉट के रूप में चिन्हित करके सड़कों को सुरक्षित डिजाइन के तहत दुरस्त करने के लिए मिशन मोड शुरू किया गया है। सरकार ने राज्य सरकारों की पुलिस के जरिए संभावित दुर्घटनाग्रस्त इलाकों को ब्लैक स्पॉट के रूप में चिन्हित करने का काम पूरा कर लिया है, जिसमें करीब 380 ऐसे स्थान हैं जहां इन ब्लैक स्पॉट को मिशन मोड पर सुरक्षित डिजाइन के रूप दुरस्त करने का काम जारी है।
26Oct-2016

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

..तो राज्यसभा में बदल जाएगा सपा का नेतृत्व?

रेवती हो सकते हैं सपा संसदीय दल के नेता
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
यूपी में विधानसभा चुनाव से पहले अपने चरम पर समाजवादी पार्टी की कलह का ग्रास बने सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव की अब राज्यसभा में भी सीट बदल जाएगी। सपा से निष्कासित सांसद रामगोपाल के स्थान पर अब उच्च सदन में सपा संसदीय दल के नेता के रूप में रेवती रमन और बेनी प्रसाद के नाम की अटकले लगाई जा रही है। इस औपचारिकता के लिए सपा राज्यसभा के सभापति को एक पत्र भेजने जा रही है।
संसद का शीतकालीन सत्र आगामी 16 नवंबर से शुरू होने जा रहा है और उससे पहले यूपी की सियासत की सुर्खियों में चरम पर सपा की आपसी कलह के चलते समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. राम गोपाल यादव को पार्टी से बर्खास्त कर छह साल के लिए निष्कासित कर दिया है। सपा के सूत्रों के अनुसार पार्टी रामगोपाल की राज्यसभा की सदस्यता भी वापस लेने पर विचार कर रही है। राज्यसभा के नियम के अनुसार इसके लिए समाजवादी पार्टी को अधिकृत रूप से राज्यसभा को रामगोपाल के पार्टी से निष्कासन और सदस्यता वापस लेने के लिए पत्र देना होगा। सूत्रोें के अनुसार समाजवादी पार्टी इसकी औपचारिकता पूरी करने के लिए राज्यसभा चेयरमैन को पत्र लिखने की तैयारी कर रही है। राज्यसभा को सपा को यह भी सूचना देना होगा कि रामगोपाल यादव के स्थान पर सदन में पार्टी नेता कौन होगा। सूत्रों के अनुसार प्रो. रामगोपाल यादव फिलहाल उच्च सदन में सपा संसदीय दल के नेता हैं और नरेश अग्रवाल उप नेता हैं। रामगोपाल के स्थान पर पार्टी सूत्रों के अनुसार राज्यसभा सांसद रेवती रमण सिंह और बेनी प्रसाद के नाम की चर्चा चल रही है। राज्यसभा में समाजवादी पार्टी तीसरे नंबर का दल है, जिसके 19 सदस्य हैं। यदि पार्टी किसी सुलहवश प्रो. रामगोपाल के निष्कासन को वापस लेती है तो सदन में उनकी सीट को लेकर कोई बदलाव नहीं होगा।
राज्यसभा सदस्य बने रहेंगे
राज्यसभा के पूर्व महासचिव एवं संविधान विशेषज्ञ डा. योगेन्द्र नारायण ने उच्च सदन के नियमों की जानकारी देते हुए कहा कि यदि समाजवादी पार्टी प्रो. रामगोपाल यादव के पार्टी से निष्कासन की जानकारी देती है तो भी वे सदन की सदस्यता से निष्कासित नहीं होंगे, बल्कि उन्हें एक निर्दलीय सदस्य के रूप में अलग सीट आवंटित की जाएगी। मसलन उनकी सीट सपा के खेमे में नहीं होगी और उनकी सीट सपा के उस सदस्य को दे दी जाएगी, जिसे पार्टी सदन में अपना नेता की अधिकृत घोषणा करके सदन को लिखित में सूचना देगी। राज्यसभा के नियमों के अनुसार प्रो. रामगोपाल यादव निर्वाचित होकर सदन का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, भले ही वह पार्टी के टिकट पर निर्वाचित हुए हों, लेकिन राज्यसभा की सदस्यता उनके द्वारा स्वयं इस्तीफा देने के बाद ही समाप्त की जा सकती है, न कि संबन्धित राजनीतिक दल की सिफारिश पर।
पार्टी से निष्कासन
गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी में चल रही परिवारिक कलह के कारण यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का पक्ष लेने वाले राज्यसभा सांसद प्रो. रामगोपाल यादव को रविवार को सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने पार्टी गतिविधियों के खिलाफ साजिश करके सांप्रदायिक ताकतों के साथ मिलने के आरोप में बर्खास्त कर छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था। सपा प्रमुख मुलायम के हवाले से प्रो. रामगोपाल यादव को इस कार्यवाही की जानकारी एक पत्र के जरिए सपा प्रदेशाध्यक्ष शिवपाल यादव ने दी थी।
25Oct-2016

सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

विदेशी तकनीक से मजबूत होगा बुनियादी ढांचा!

सड़क व बंदरगाह के साथ हाईस्पीड ट्रेन में भी मदद करेगा जर्मनी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश के बुनियादी ढांचे को विश्वस्तरीय मजबूत बनाने की दिशा में विदेशी तकनीक का इस्तेमाल करने पर बल दिया है। खासतौर पर देश के सड़क, रेल, जल परिवहन के साथ बंदरगाह क्षेत्र की परियोजनाओं में सुरक्षा व गुणवत्ता को प्राथमिकात देने हेतु अंतर्राष्ट्रीय मानक अपनाने का फैसला किया है। इस बुनियादी ढांचे में भारत ने जर्मनी से समझौता कर लिया है, जो हाईस्पीड ट्रेन के अलावा सड़क व बंदरगाह क्षेत्र में तकनीकी व वित्तीय मदद करेगा।
केद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार हाल ही में बंदरगाहों तक रेल लाइन नेटवर्क बिछाने में सहयोग के लिए जर्मनी के साथ हुए एक समझौते के तहत देश के बंदरगाहों के आधुनिक विकास और बंदरगाहों तक सड़क व रेल संपर्क बनाने की योजनाओं को आगे बढ़ाया जाएगा। मसलन अब सरकार ने सभी प्रमुख बंदरगाहों के रेल संपर्क में सुधार करने के लिए जर्मनी की तकनीक अपनाने का फैसला किया गया है। हालांकि इस साल अप्रैल में हुए समुद्री भारत शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय पोर्ट रेल निगम लिमिटेड और जर्मन रेल डॉयचे बान के बीच भारतीय बंदरगाहों की रेल पोर्ट कनेक्टिविटी और बंदरगाह पर रेल सुविधाओं के आधुनिकीकरण में सहयोग हेतु एक महत्वपूर्ण करार पर हस्ताक्षर किये जा चुके हैं। इस करार के तहत देश में बंदरगाहों में रेल संपर्क में सुधार के लिए भारत और जर्मनी ने भारतीय पोर्ट रेल निगम लिमिटेड द्वारा कार्यान्वित की जा रही एक लाख करोड़ रुपये की परियोजना का लक्ष्य पूरा हो सकेगा। इसके अलावा जर्मनी सड़क व जल परिवहन के क्षेत्र में भी तकनीकी मदद देने का तैयार है।
पुराने वाहनों में ईको फ्रेंडली तकनीक
सड़क मंत्रालय के अनुसार देश में सड़क पर दौड़ते वाहनों के प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए पुराने वाहनों को हटाने की योजना में भी जर्मनी मदद करने के लिए तैयार हो गया है। भारत ऐसे पुराने वाहनों को स्क्रैप में बदलने के लिए केंद्रीय सड़क मंत्रालय ने व्हीकल स्क्रैप पॉलिसी में जर्मनी की तकनीकी मदद लेने का फैसला किया है। जर्मनी भी भारत में पुराने वाहनों को स्क्रैप कराने के लिए पूरी तरह से तैयार है। मसलन अब ईको फ्रेंडली तरीके के साथ वाहनों को स्क्रैप करके प्रदूषण की समस्या से निपटा जाएगा। सरकार ने पिछले साल मार्च में 15 साल पुराने वाहनों को हटाने के लिए वॉलंट्री व्हीकल μलीट मॉडेर्नाइजेशन प्रोग्राम यानि वीवीएमपी का नामक अभियान शुरू किया था।
केंद्र व राज्यों का मिलेगा आर्थिक फायदा
सूत्रों के अनुसार भारत और जर्मनी के इस तकनीकी सहयोग से अभी तक स्क्रैपिंग पॉलिसी हेतु 14 हजार करोड़ की लागत आने का अनुमान है। इसमें करीब 28 मिनियन वाहनों को स्क्रैप किया जाना है। इस पॉलिसी को अंतिम रूप मिलते ही इसे लागू कर दिया जाएगा, जिससे एक साल में व्यर्थ होने वाले करीब 3.2 बीलियन लीटर तेल के रूप में वाहन उपयोगकर्ताओं 25 से 30 प्रतिशत तक के र्इंधन की बचत होने का अनुमान लगया गया है। यहीं नहीं इस तकनीक से राज्यों में आॅटो इंडस्ट्री की ग्रोथ 22 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना प्रबल होगी। केंद्र सरकार इससे 4 हजार करोड़ का फायदा लेगी और 10 हजार करोड़ का फायदा राज्य सरकारों को होगा।
हाई स्पीड ट्रेन का विस्तार
मैसूर-बंगलूर-चेन्नई हाईस्पीड ट्रेन के प्रस्तावित अध्ययन को विजयवाड़ा तक विस्तार करने के साथ वाहनों की तकनीक में जर्मनी मदद देगा। एक करार के तहत जर्मनी ने मैसूर से बेंगलुरु व चेन्नई होते हुए विजयवाड़ा तक हाईस्पीड ट्रेन गलियारे के निर्माण हेतु अपने खर्च पर अध्ययन करने का फैसला किया है। जिसके लिए भारतीय रेल व जर्मन रेल का एक संयुक्त कार्यदल जल्द ही काम शुरू कर देगा। यह दल देश में अतिरिक्त ट्रेनों की यात्री व मालवहन क्षमता बढ़ाने, ऊर्जा खपत में कमी लाने, कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने तथा स्टेशनों का विकास करने का भी तकनीकी अध्ययन करेगा। यही नहीं रेल दुर्घटनाओं को पूरी तरह खत्म करने के मकसद से भारतीय रेल व जर्मन रेल का यह संयुक्त कार्यदल अध्ययन करेगा। इसके लिए रेल संरक्षण प्रणालियां समझने के लिए भारतीय दल जर्मनी का दौरा भी करेगा।
24Oct-2016

रविवार, 23 अक्तूबर 2016

यूपी मिशन: मुनाफे की सियासत के मोड़ पर भाजपा!

सपा, कांग्रेस व बसपा की कमजोरियों पर होगा दांव
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भारतीय जनता पार्टी देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में सत्ता हासिल करने के लिए हर उस दांव को मजबूत कर रही है, जिसमें सपा, कांग्रेस या बसपा की कमजोरियां छिपी है। मसलन युवाओं, महिलाओं और जातीय यानि सामाजिक समीकरणों को साधने के
साथ राज्य में विकास के मुद्दे को सामने लाकर फिलहाल चुनावी सियासत में भाजपा अन्य दलों में सेंधमारी करने के मामले में भारी पड़ती नजर आ रही है।
उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव की बढ़ती तपिश में भाजपा, कांग्रेस, बसपा जैसे प्रमुख दल सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी को बेदखल करने के इरादे से अपनी चुनावी रणनीति का ताना-बाना बुनने में जी-जान से जुटे हुए हैं। केंद्र की सत्ता में होने के कारण भाजपा प्रदेश में ताबड़तोड़ बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की मुहिम में सड़क और पुल निर्माण की परियोजनाओं को भी पटरी पर उतारने में पीछे नहीं है। राज्य में सत्तारूढ़ सपा की अखिलेश सरकार भी चुनावी सियासत के मद्देनजर हरेक कैबिनेट बैठकों में सरकारी कर्मचारियों से लेकर अंतिम छोर पर बैठे आम आदमी को लुभाने के लिए योजनाओं को बाहर निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हों, चाहे वह स्मार्ट फोन देने का ही निर्णय क्यों न हो। लेकिन सत्तारूढ़ सपा के अंदरूनी विवाद पहली बार मुलायम परिवार में सिर चढ़कर बोल रहा है, जिसका फायदा लेने में भाजपा की रणनीति कांग्रेस या बसपा से ज्यादा धारधार साबित हो रही है। भाजपा ने हरहाल में यूपी की सत्ता कब्जाने की सियासत में विकास के एजेंडे को लांखते हुए श्रीराम मंदिर निर्माण या जातीय समीकरणों को साधने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी और कांग्रेस, सपा, बसपा में सेंधमारी करके उनके दिग्गज और बागी चेहरों को कमल थामने के लिए मजबूर करना शुरू कर दिया है। हाल में कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष और कई महत्वपूर्ण पदो पर रही दिग्गज रीता बहुगुणा जोशी को ब्राह्मण चेहरे के रूप में अपने खेमे में शामिल कर भाजपा ने कांग्रेस की रणनीति पर बड़ी चोट कर हैरान कर दिया। इससे पहले ऐसे ही बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्या, बसपा के ब्रजेश पाठक जैसे कई बडे चेहरों को अपनी चुनावी रणनीति से प्रभावित किया है।
उम्मीदवारों का ऐसे होगा चयन
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने जिस प्रकार की चुनावी रणनीति तय की है, उसमें प्रत्याशी बनाने के लिए भाजपा ने पांच मानक तय करके उन्हीं पर फोकस करने का फैसला किया है। इन मानको में प्रत्याशी के जीतने की संभावना, सामाजिक व निजी पृष्ठभूमि, पार्टी के प्रति निष्ठा खासकर दूसरे दलों से आए नेता, युवा व प्रभावी नेतृत्व व सामाजिक व जातीय समीकरणों की अनुकूलता शामिल हैं। भाजपा ने संभावित उम्मीदवार के विभिन्न सोशल साइट पर पार्टी व राजनीतिक मुद्दों की सक्रियता का भी आकलन करना भी शुरू करा दिया हैै। यही कारण है कि इस बार ज्यादातर नए चेहरों में युवाओं, महिलाओं और चुनावी क्षेत्र में सामाजिक छवि तथा जनाधार वाली पृष्ठभूमि वालों को भाजपा का टिकट मिलने की ज्यादा संभावना है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुमत से बड़ा आंकड़ा हासिल करने के लक्ष्य पर चल रही भाजपा ने टिकट वितरण में फूंक फूंककर कदम आगे बढ़ा रही है। जाहिर है कि भाजपा मेें इस बार किसी सिफारिश के बजाय तय किये गये मानदंडो पर खरा उतरने वाला ही भाजपा का उम्मीदवार होगा। सूत्रों के अनुसार भाजपा ने पार्टी के किसी भी बड़े या प्रमुख नेताओं के बेटे या बेटियों या पत्नी या पति को टिकट न देने की रणनीति साफ कर दी है।
तो इन पर गाज गिरना तय
भाजपा के सूत्रों की माने तो पार्टी के इन तय मानदंड व नियम के आधार पर उन दावेदारों पर गाज गिरना तय है, जो वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में जमानत जब्त करा चुके हैं। जमानत गंवाने के दायरे में ऐसे भाजपा के 229 उम्मीदवार शामिल हैं। हालांकि मौजूदा 47 विधायकों पर दांव अजमाया जा सकेगा, लेकिन कुछ को बदलने की भी अटकले हैं। सूत्रों के अनुसार भाजपा यूपी चुनाव में युवा और सामाजिक समीकरणों के लिहाज से ज्यादातर नए चेहरे सामने लाने की रणनीति बना रही है। भाजपा की इस रणनीति में आरएसएस की टीमें भी बूथ स्तर पर सक्रिय हैं, जिनकी रिपोर्ट के आधार पर टिकट तय किया जाना है।
23Oct-2016

दुनिया के कई देश हमारी चुनाव प्रणाली पर लट़टू

देशों ने मतदाता जागरूता पर पारित किया प्रस्ताव
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हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में निष्पक्ष और स्वस्थ चुनाव कराने की दिशा में चुनाव सुधार के लिए अपनाई जा रही नई-नई चुनाव प्रणाली और प्रक्रियाओं को दुनिया के अन्य देशों को भी भाने लगी है। भारतीय चुनाव प्रक्रिया को लेकर करीब 28 देशों ने ऐसी प्रणालियों को साझा ही नहीं किया, बल्कि भारतीय चुनाव आयोग द्वारा मतदाता जागरूकता को लेकर लाये गये एक संकल्प प्रस्ताव का सर्मथन करते हुए उसे पारित भी किया है।
संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर भारत निर्वाचन आयोग द्वारा हाल ही में चुनाव के प्रति मतदाता जागरूकता को लेकर आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे करीब 28 देशों के चुनाव आयोगों और चुनाव निकाय संस्थाओं के उच्चाधिकारियों व प्रतिनिधियों ने भारत में अपनाई जा रही चुनाव प्रणालियों को अन्य देशों से बेहतर करार दिया। दरअसल यहां भारत निर्वाचन आयोग की मेजबानी में चले दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में मतदाता जागरूकता और नैतिक मतदान, मतदाता प्रशिक्षण और नैतिक भागीदारी, समावेशी, सूचित तथा नैतिक सहभागिता हेतु मतदाता शिक्षा के अलावा 27वीं सदी में निर्वाचन की महत्ता जैसे पांच प्रमुख विषयों पर मंथन किया गया। इस सम्मेलन में अनिवार्य मतदान को खुद भारत ने ही नकार दिया, लेकिन इन विषयों को आगे बढ़ाने पर लगभग सभी देशों के साथ सहमति बनाई और सभी देशों के चुनाव प्रबंधन निकायों द्वारा सर्वोत्तम प्रथाओं, नीतियों और मतदाता शिक्षा की पहल को साझा करने की पहल की। सभी देशों ने स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिचित करने के लिए एक तंत्र विकसित करने, सीएसओ, मीडिया और प्रभावी मतदाता को लागू करने जैसी अन्य संबंधित संगठनों के साथ साझेदारी शिक्षा कार्यक्रम, मतदाता शिक्षा की पहुंच बढ़ाने के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के प्रभावी उपयोग कार्यक्रम के साथ मतदाता जागरूकता पर बल दिया, जिसके लिए पर्याप्त धन और मानव संसाधन के आवंटन सर्वोत्तम प्रथाओं और तौर तरीकों का आदान-प्रदान भी हुआ। सम्मेलन में प्रमुख रूप से चुनाव सुधार की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एकरूपता लाने पर जोर दिया गया और ज्यादा से ज्यादा मतदान सुनिश्चित करने की दिशा में मतदाता जागरूकता पर बल दिया गया। इस सम्मेलन में प्रवासी भारतीय मतदाताओं की दिक्कतों और उनके अधिकारों आदि के विषय में कराए गये एक सर्वेक्षण को भी सभी देशों ने साझा किया। सम्मेलन के अंत में आमसहमति के आधार पर समावेशी सूचना और नैतिक चुनावी भागीदारी को मजबूत बनाने हेतु एक संकल्प प्रस्ताव पारित किया गया। इस सम्मेलन का मुख्य मकसद मतदाताओं में जागरूकता, मतदान में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना, चुनाव प्रक्रिया को दुरस्त बनाने के लिए चुनाव सुधार की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना शामिल है। इस सम्मेलन में पाकिस्तानप, अफगानिस्तान, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, फिजी, जाजिर्या, इंडोनेशिया, इराक, केन्या, लेसोथो, मलेशिया, मॉरीशस, माल्द्वीप, मैक्सिको, नेपाल, फिलीपिंस, र्शीलंका, थाईलैंड, युगांडा, नांबिया जैसे देशों ने हिस्सा लिया।
प्रदर्शनी का आकर्षण
सम्मेलन के दौरान मतदाता शिक्षा पर ग्लोबल नॉलेज नेटवर्क ऑन वोटर एजुकेशन, वॉइज डॉटनेट का भी शुभारंभ करने के आलवा मतदाता शिक्षा उपकरण तथा मतदान प्रक्रिया एवं सामग्रियों पर एक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। एक प्रदर्शनी के जरिए प्रदर्शित भी किया गया है। इस प्रदर्शनी में हालांकि सभी देशों ने अपनी चुनाव प्रक्रियाओं का प्रदर्शन किया है, लेकिन भारत की प्रदर्शनी और चुनाव प्रणाली सभी देशों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। इस प्रदर्शनी में सूचनात्मक सामग्री, मॉडल मतदान केंद्र, ईवीएम पर लाइव वोटिंग के प्रावधान, मतदाता शिक्षा उपकरण और सामग्री के अलावा फोटो, वीडियो, 3डी मॉडल, ईसीआई द्वारा विकसित इंटरैक्टिव स्वीप अभियान का भी प्रदर्शन किया गया है।
23Oct-2016

राग दरबार: सबके सामने मोदी का दिल...

जानते सबकुछ हैं, लेकिन मानते नहीं.
देश की राजनीति ही कुछ ऐसी है कि जानते सबकुछ हैं, लेकिन मानते नहीं..। मसलन मौजूदा सुरतेहाल में देश के विकास, सुरक्षा, आतंकवाद, सामाजिक समरसता, भ्रष्टाचार के अलावा अंतर्राष्टÑीय मुद्दों पर कौन खरा उतर रहा है यह सबकी नजर में है। तभी तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना करने वाली पार्टियों के समझदार नेता अपने दलों में अलग-थलग देख अपना दामन छुड़ाने में लगे हैं। मोदी की आलोचना करने वालों की फेहरिस्त में शामिल रही यूपी कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी का पलटा मारना ऐसी ही देशभक्त वाली सियासत का जीताजागता उदाहरण सामने आया है, जो देश की सुरक्षा और सैनिकों के अपनी पार्टी के स्यापो द्वारा किये जा रहे अपमान को सहन नहीं कर पायी। मोदी के सुरक्षा के मामले पर आतंकवाद के खिलाफ इस कड़े फैसले से प्रभावित हुई रीता ने उन फैसलों का भी समर्थन करना शुरू कर दिया है, जिसकी कांग्रेस संस्कृति में रहते आलोचना करती रही है। मसलन केंद्र की राजग सरकार के इन दो साल से ज्यादा शासनकाल में सत्ता में आने से पहले किये गये कई वादों पर प्रधानमंत्री के रूप में मोदी कसौटी पर खरे उतरते नजर आ रहे हैँ। एक ताजा उदाहरण ने तो मोदी से स्वार्थ की सियासत करने वालों को चौंका ही दिया, जिसमें सरकार ने रक्षा संबंधी सूचना लीक करने के आरोपों से घिरे अपनी ही पार्टी के वरुण गांधी के खिलाफ कार्यवाही तेज करते हुए साबित कर दिया है। राजनीतिकारों की माने तो मोदी के जमाने में देश की राजनीति भी करवट बदली और तीस साल बाद केंद्र में एक बार फिर पूर्ण बहुमत वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने अपनो के अलावा नौकरशाही को पारदर्शी व जवाबदेह बनाए रखने के लिए कई अहम कदम उठाए हैं, जिनके सकारात्मक प्रभाव सामने आने लगे हैं। कालेधन पर चली आ रही बहस में जितना इस सरकार ने अघोषित रकम बाहर निकलवाई है ऐसा अब तक कोई सरकार नहीं कर सकी। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसमें मोदी के दिल और उनके साहस को पूरा देश देख चुका है कि वह अपने फैसलों पर किस कदर अड़िग है, लेकिन उनके खिलाफ सिसासी दल हैं कि सबकुछ जानते हुए भी मानने को तैयार नहीं हैं।
कैबिनेट की मीटिंग से नहीं होंगे लीक...
कैबिनेट की मीटिंग को सरकार की शीर्ष बैठकों में शुमार किया जाता है, जिसमें सरकार अपने तमाम अहम फैसले लेती है। लेकिन अगर बैठक से पहले ही इसमें लिए जाने वाले अहम फैसलों की सूचना पब्लिक हो जाए तो हड़कंप मचना लाजÞमी है। ऐसा ही कुछ घटनाक्रम बीते कुछ समय से मौजूदा सत्तासीन सरकार की केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठकों के दौरान भी देखने को मिल रहा था। इसमें किसी मामले पर कैबिनेट की सहमति से पहले ही सूचना सार्वजनिक हो रही थी। इसके संकेत मिलते ही पीएम एक्शन मोड में आ गए और उन्होंने सभी कैबिनेट मंत्रियों को निर्देंश दिया कि वो बैठक के दौरान अपने मोबाइल फोन बैठक स्थल से बाहर जमा करेंगे और फिर अंदर दाखिल होंगे। पीएम के इस कदम से आने वाले वक्त में ही यह तस्वीर साफ हो जाएगी कि कैबिनेट की मीटिंग से सूचनाएं लीक होंगी या उनपर लगाम लगेगी।
बैठकों से कैसे जीतेंगे चुनाव...
वर्तमान में कांग्रेस पार्टी की खस्ता हालत को लेकर पार्टी के कार्यालय में चर्चा जोरो पर है। चाहे बड़ा नेता हो या छोटा कार्यकर्ता सब इसी सोच में लगे हुए है कि पार्टी फिर कैसे खड़ी हो सकती है। नेताओं का मनाना है कि यूपी के चुनाव पार्टी के लिए अहम है। यूपी चुनाव को लेकर पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी यूपी के नेताओ की लगातार बैठके भी ले रहे है। लेकिन पार्टी के कई नेता बैठकों पर अलग ही राय रखते है। उनका मानना है कि बंद कमरे में दो से तीन घंटे बैठक करने से कोई चुनाव नहीं जीते जाते। आज पार्टी की जो देशभर में जो स्थिति है कि उसके लिए बड़े नेता से लेकर कार्यकर्ताओ को जमीन पर उतरना होगा। लोगों की नब्ज को समझना होगा। इसके बाद ही पार्टी मजबूत स्थिति में पहुुंच सकेंगी। बैठक करने से मैदान की स्थिति को समझा नहीं जा
सकता।
-ओ.पी.पाल, कविता जोशी व राहुल
23Oct-2016

शनिवार, 22 अक्तूबर 2016

मिशन मोड़ पर आई सिंचाई परियोजनाएं!

नाबार्ड ने केंद्र को सौंपी 1500 करोड़ की रकम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश के कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहन देने की दिशा में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत लंबित 99 सिंचाई परियोजनाओं को मिशन मोड़ पर शुरू करते हुए तीन साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा है। इन परियोजनाओं को पूरा करके 76 लाख हेक्टेयर से भी ज्यादा सिंचाई क्षमता सृजित करने हेतु सरकार ने नाबार्ड का वित्तीय सहारा लिया है, जिसने केंद्र सरकार को पहली किश्त के रूप में 1500 करोड़ रुपये की रकम सौंप दी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कृषि और किसानों की अर्थव्यवस्था में सुधार की दिशा में देश में दो दशक पहले शुरू की गई त्वरित सिंचाई कार्यक्रम की लंबित सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई परियोजना का ऐलान किया था। इसके तहत केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गत 27 जुलाई चयनित की गई 99 प्राथमिकता वाली इन परियोजनाओं को पूरा करने और नाबार्ड के माध्यम से धन की व्यवस्था के लिए एक मिशन की स्थापना को अपनी मंजूरी दी गई थी। इसमें विभिन्न राज्यों में सूखा एवं बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिए लंबित 99 परियोजनाओं के लिए करीब 77 हजार करोड़ रुपये की लागत का अनुमान लगाया गया। इसके लिए पिछले महीने नाबार्ड और केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के बीच हुए करार के तहत नाबार्ड ने देश के इतिहास में पहली बार सिंचाई परियोजनाओं के लिए ऋण के रूप में शुक्रवार को केंद्रीय वित्त मंत्रालय के जरिए जल संसाधन मंत्रालय को 1500 करोड़ रुपये का चेक सौंप दिया है। इस संबन्ध में केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सरंक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने बताया कि इस रकम को नौ राज्यों में जरूरत के हिसाब से भेजने की प्रक्रिया तत्काल प्रभाव से शुरू कर दी गई है। उन्होंने बताया कि इन लंबित सिंचाई परियोजनाओं को दिसंबर 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसके तहत 76 लाख हेक्टेयर से भी ज्यादा सिंचाई क्षमता का सृजन हो सकेगा। इन परियोजनाओं को पूरा करने के बारे में उन्होंने कहा के इस साल 23 और वर्ष 2017-18 में 31 तथा बाकी बची 45 सिंचाई परियोजनाओं को दिसंबर 2019 तक पूरा कर लिया जाएगा।
देश में यह पहली बार
केंद्रीय मंत्री सुश्री उमा भारती ने कहा कि देश के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि देश के कृषि और किसानों के लिए केंद्र सरकार इस परियोजनाओं को पूरा करने में नाबार्ड आर्थिक मदद के लिए आगे आया है, जिसमें वित्त मंत्रालय, निति आयोग और कृषि मंत्रालय और अन्य संबन्धित मंत्रालयों व विभागों ने एक मेगा योजना के तहत ऐसी योजना तैयार की है। देश में सिंचाई परियोजना को पहली बार मिशन मोड पर लाया गया है। पहली बार ही केंद्र के अलावा राज्यों को भी नाबार्ड ऋण मुहैया कराएगा। उनका दावा है कि जब सिंचाई क्षमता का विकास होगा तो निश्चित तौर पर गांवों से शहर की ओर पलायन में भी कमी आएगा और देश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान भी बढ़ेगा। उन्होेंने इस सिंचाई परियोजना की विशेषताएं गिनाते हुए कहा कि जहां इस परियोजना के दायरे में देशभर के वे सभी जिले शामिल किये गये हैं, जहां सूखा या बाढ़ के कारण किसान आर्थिक रूप से कमजोर हो रहा है। इसके लिए सरकार ने पहले ही एक सर्वे कराने के बाद ही इस परियोजना को पटरी पर उतारा गया है।
छग के पांच जिलों में तीन परियोजना
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत छत्तीसगढ़ के मनियारी टैंक, केलो तथा खरुंग नामक तीन सिंचाई परियोजनाओं को प्राथकिता में रखा है, जिसमें बिलासपुर में दो, रायगढ़ जांजगीर, चंपा में इस योजना को कार्यान्वित करके सिंचाई क्षमता में वृद्धि करने की योजना है। इसके मध्य प्रदेश में ऐसी 14 सिंचाई परियोजनाएं शुरू की जा रही है, जिसमें राज्य के कई दर्जन जिलों में इसका कार्यान्वयन किया जाएगा।
22Oct-2016

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

सड़क सुरक्षा पर राज्य सरकारें भी हुई गंभीर!

वाहन चालकों और श्रमिकों को मिलेगा प्रशिक्षण
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सड़क सुरक्षा को लेकर केंद्र सरकार की चिंता में धीरे-धीरे राज्य भी गंभीर नजर आने लगे हैं। मसलन देश में सुरक्षित सड़क निर्माण तथा सड़कों पर दौड़ते वाहनों के चालकों की कौशल क्षमता बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार के कौशल विकास कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए राज्य सरकारें भी सामने आ गई हैं।
दरअसल केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने देश में सड़क परियोजनाओं में निर्माण की गुणवत्ता और सुरक्षित तकनीक को अपनी प्राथमिकता में शामिल किया है। देश में लगातार बढ़ते सड़क हादसों पर अंकुश लगाने के लिए मंत्रालय ने जहां सड़क के बुनियादी ढांचे को आधार बनाने का निर्णय लिया, वहीं सड़कों पर चलने वाले वाहनों के चालकों की कौशल क्षमता को दायरे में शामिल किया। इसके लिए केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क निर्माण के लिए काम करने वाले श्रमिको और चालकों के प्रशिक्षण हेतु इसी साल एक कौशल विकास कार्यक्रम की शुरूआत की है, जिसमें केंद्रीय कौशल विकास मंत्रालय के साथ करार करके सड़क मंत्रालय ने पिछले तीन माह में इस दिशा में कई दिशानिर्देश जारी करके राज्यों से प्रस्ताव मांगे हैं। इस कार्यक्रम के तहत सड़क निर्माण में लगे श्रमिकों और वाहनों के चालकों को प्रशिक्षण देकर उनका कौशल विकास करना शामिल है। मंत्रालय के अनुसार इस कार्यक्रम के लिए अभी तक नौ राज्यों के परिवहन निगमों से वाहन चालकों के प्रशिक्षण हेतु 55 प्रस्ताव हासिल हुए हैं। ये निगम अपने संचालित प्रशिक्षण केंद्रों में वाहन चालकों को प्रशिक्षण देकर कौशल विकास कार्यक्रम को अंजाम देंगे।
श्रमिको को यहां मिलेगा प्रशिक्षण
मंत्रालय के अनुसार इस कार्यक्रम के तहत राजमार्ग निर्माण के श्रमिकों के प्रशिक्षण की समीक्षा के लिए छूट ग्राहियों की सेवा ली जा रही है। इनके अलावा परियोजना स्थल के ठेकेदारों, आईटीआई तथा भारतीय राजमार्ग इंजीनियर्स अकादमी द्वारा श्रमिकों को प्रशिक्षण देने का प्रस्ताव है। केंद्र के हाल ही में जारी दिशानिर्देश के अनुसार सौ करोड़ रुपये और इसके अधिक की परियोजना के लिए प्रशिक्षण कार्य परियोजना प्रमुख द्वारा चलाया जाएगा। यह प्रशिक्षण कार्य प्रशिक्षण महानिदेशक द्वारा अधिकृत प्रशिक्षण केन्द्रों पर चलाये जाएंगे। परियोजना स्थल के निकट के संस्थानों को वरीयता दी जाएगी। परियोजना प्रमुख और कार्यपालक अभियंता को यह सुनिश्चित करना होगा, कि प्रशिक्षण एनएसक्यूएफ के दिशा-निदेर्शों के अनुरूप दिया जा रहा है या नहीं।
प्रशिक्षण केंद्रों को अनुदान
मंत्रालय के अनुसार सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने केन्द्र तथा सभी राज्यों के संबंधित विभाग के अधिकारियों और एजेसियों को निर्देश दिये हैं कि इस कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण सुविधाएं स्थापित करने हेतु निजी प्रवर्तकों को भी आंमत्रित किया जा रहा है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय प्रत्येक राज्य के सड़क परिवहन निगम को प्रशिक्षण एवं कौशल प्रशिक्षण और प्रत्येक निजी प्रवर्तक को प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित के लिए एक-एक करोड़ रुपये का अनुदान दे रही है। इसमें निजी प्रवर्तकों को यह अनुदान परियोजना की उचित समीक्षा और एनएसडीसी या मान्यता प्राप्त वित्तीय संस्थान की मंजूरी के बाद दिया जाएगा। केंद्र सरकार की योजना है कि इस तरह के प्रशिक्षण केंद्रों में प्रशिक्षण लेने वाले श्रमिको और चालकों को दैनिक न्यूनतम परिश्रामिक के आधार पर छात्रवृत्ति देने का भी प्रावधान किया गया है, जिसका पूरा खर्च केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की सड़क सुरक्षा निधि के जरिए वहन किया जाएगा। जबकि प्रशिक्षण लागत का खर्च कौशल विकास मंत्रालय की प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना कोष से होगा।
21Oct-2016

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

भिक्षावृत्ति की समस्या से निपटने की तैयारी!

अभावग्रस्त लोगों की सुरक्षा में आएगा मॉडल कानून
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार देश में अभावग्रस्त और भिक्षावृत्ति की समस्या से निपटने के लिए अभावग्रस्त (संरक्षण, देखभाल और पुनर्वास) विधेयक जैसे मॉडल कानून लाने की तैयारी में है। जिसके मसौदे पर विशेषज्ञों और राज्यों से राय मांगी जा रही है।
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने बुधवार को इस विधेयक के मसौदे को लेकर विधायी परामर्श के लिए एक बैठक में विशेषज्ञों और विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने मंत्रालय द्वारा तैयार किये गये अभावग्रस्त (संरक्षण, देखभाल और पुनर्वास) व्यक्तियों के लिए मॉडल विधेयक-2016 के बारे में विस्तार से विचार विमर्श किया गया। बैठक की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय मंत्री गहलोत ने कहा कि इस मॉडल कानून के जरिए सरकार का अभावग्रस्त और भिक्षावृत्ति की समस्या से निपटना प्रमुख मकसद है। सरकार चाहती है कि इस समस्या से निपटने के लिए दंडात्मक तौर तरीकों के बजाए ऐसे अभावग्रस्त लोंगों की सुरक्षा,देखभाल, सहायता, आश्रय, प्रशिक्षण और अन्य सेवाएं मुहैया कराकर उनका पुनर्वास कराया जाए। जिसके लिए एक आदर्श कानून बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है। इसीलिए मंत्रालय द्वारा तैयार किये गये इस मॉडल कानून संबन्धी विधेयक के मसौदे पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अलावा सामाजिक विशेषज्ञों की राय जरूरी है, जिनसे ऐसे विधान को अपनाने का आव्हान किया जा रहा है। इस बैठक में राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रशासनों के समाज कल्याण विभाग के प्रतिनिधि वरिष्ठ अधिकारियों, संबंधित मंत्रालयों व विभागों के प्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकतार्ओं, विधि आयोग, बार काउंसिल और बेसहारा लोगों के कल्याण के लिए कार्यरत प्रतिष्ठित गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी मंथन किया।
विशेषज्ञों की राय पर मसौदा
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की सचिव श्रीमती अनीता अग्निहोत्री ने इस विधेयक की मुख्य विशेषताओं के बारे में बताया कि मंत्रालय के इस दृष्टिकोण में मंत्रालय ने राज्य प्रतिनिधियों और भिक्षावृत्ति के क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ आयोजित राष्ट्रीय परामर्श बैठकों में भी मंथन किया है और मंत्रालय के सामने सामने आई सिफारिशों के आधार पर अभावग्रस्त व्यक्तियों के लिए मॉडल कानून का मसौदा तैयार किया गया है। इस विधेयक का उद्देश्य अभावग्रस्त व्यक्तियों सामाजिक सुरक्षा के तहत पहचान करने के लिए इस प्रयास को आगे बढ़ाने हेतु एजेंसियों की स्थापना करने पर विचार किया जा रहा है।
राज्य ने भी बनाए कानून
मंत्रालय के अनुसार इस दिशा में 20 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों ने या तो अपने कानून तैयार किए हैं या अन्य राज्यों द्वारा बनाए गए कानूनों को अपनाया है। इसलिए इन कानूनों के प्रावधान और इन्हें लागू करने की स्थिति विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। इसी प्रकार भिखारियों के पुनर्वास के प्रयास भी एक समान नहीं है। अधिकांश राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने बम्बई भिक्षावृत्ति निरोधक कानून 1959 को अपना रखा है जिसके तहत भिक्षावृत्ति अपराध है।
देश में बढ़ रही है भिक्षावृत्ति
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भिखारियों और खानाबदोशों की जनसंख्या लगभग 4.13 लाख आंकी गई थी, जिनमें 3.72 लाख गैर कामगार श्रेणी और 41,453 सीमांत श्रमिक श्रेणी के शामिल है। जबकि मंत्रालय के पास फिलहाल बेसहारा लोगों की जनसंख्या के बारे में कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं हैं।
20Oct-2016

अनिवार्य मतदान व्यवहारिक नहीं: जैदी

मतदाता जागरूकता पर अंतर्राष्ट्रीय मंथन शुरू
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भारतीय निर्वाचन आयोग की मेजबानी में बुधवार को यहां शुरू हुए मतदाता जागरूकता पर शुरू हुए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में दुनिया के 28 देशों ने चुनाव प्रक्रिया को दुरस्त करने के लिए मंथन मंथन शुरू कर दिया है। सम्मेलन में मतदाता जागरूकता पर बल देते हुए भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त डा. नसीम जैदी ने कहा कि मतदान को अनिवार्य बनाने का विचार किसी भी तरह व्यवहारिक नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर भारत निर्वाचन आयोग की मेजबानी में मतदाता जागरूकता पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में बोलते हुए भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त डा. नसीम जैदी ने भारत में मतदान को अनिवार्य बनाने को लेकर पिछले कई सालों से चल रही राजनीतिक बहस और मांग को एक सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अनिवार्य मतदान व्यवहारिक नहीं है, लेकिन मतदान के प्रति मतदाताओं को जागरूक करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि लोकसभा में इसी तरह की मांग को सरकार ने भी खारिज कर दिया था। जैदी ने कहा इससे पहले यूपीए के शासनकाल में भी इस अनिवार्य मतदान चर्चा का विषय रहा है, लेकिन ऐसा विचार इतना व्यावहारिक नहीं लगता। इस मौके पर भारत के चुनाव आयुक्त ए.के. जोती और ओपी रावत के अलावा उप चुनाव आयुक्त उमेश सिन्हा अन्य देशों के सामने भारतीय चुनाव प्रक्रिया की प्रस्तुतिकरण भी पेश किया।
लोकसभा में हुई थी चर्चा
मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा इसी साल फरवरी में बजट सत्र के दौरान भाजपा सांसद जनार्दन सिंह सीग्रीवाल द्वारा लोकसभा में लाये गये ऐसे एक निजी विधेयक पर चर्चा हो चुकी है, जिसका जवाब देते हुए तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने मतदान को अनिवार्य बनाने को अव्यवहारिक करार देते हुए कहा था कि कि लोकतंत्र में मतदाताओं की सक्रिय भागीदारी जरूरी है लेकिन मतदान एक स्वैच्छिक अधिकार है और किसी को इसके लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। ऐसा करना मानवाधिकार का उल्लंघन होगा। किसी को मतदान न करने के लिए दंडित करना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ होगा। यहीं नहीं विधि आयोग ने मार्च महीने में चुनाव सुधारों पर अपनी रिपोर्ट में अनिवार्य मतदान की सिफारिश नहीं करने का फैसला किया था। विधि आयोग ने इसे कई कारणों से अत्यंत अनुपयुक्त बताया था।
दुनिया के 32 देशों में अनिवार्य मतदान
केंद्र सरकार का मत है कि भले ही ब्राजील समेत दुनिया के 32 देशों में अनिवार्य मतदान की व्यवस्था है, लेकिन भारत जैसे विविधताओं से भरे लोकतांत्रिक देश में ऐसा संभव नहीं है। कानून मंत्री ने कहा कि लोकतंत्र में मतदाताओं की सक्रिय भागीदारी जरूरी है, लेकिन मतदान एक स्वैच्छिक अधिकार है और किसी को इसके लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। इस सम्मेलन में भारत और ब्राजील समेत 28 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं।
एक साथ चुनाव की कवायद
मुख्य चुनाव आयुक्त जैदी ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के बारे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कवायद पर कहा कि इस बारे में चुनाव आयोग ने एक संसदीय समिति और कानून मंत्रालय को बताया है कि जब राजनीतिक दल सर्वसम्मति से संविधान में संशोधन करें और नयी ईवीएम खरीदने जैसी आयोग की कुछ मांगों को पूरा किया जाए, तो ऐसा संभव हो सकता है। मई में इस मुद्दे पर कानून मंत्रालय को अपने जवाब में आयोग ने कहा था कि वह प्रस्ताव का समर्थन करता है, लेकिन इसमें 9000 करोड़ रुपये से अधिक लागत आएगी। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल मार्च को भाजपा के पदाधिकारियों की एक बैठक में पांच साल में एक बार लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने की वकालत की।
रास आई भारत की चुनाव प्रणाली
इस सम्मेलन के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त जैदी ने पिछले एक दशक में हुए चुनाव सुधार के बारे में अपनाई गई चुनाव प्रणाली और प्रक्रियाओं की जानकारी दी, जिसे इस दौरान एक प्रदर्शनी के जरिए प्रदर्शित भी किया गया है। इस प्रदर्शनी में हालांकि सभी देशों ने अपनी चुनाव प्रक्रियाओं का प्रदर्शन किया है, लेकिन भारत की प्रदर्शनी और चुनाव प्रणाली सभी देशों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। इस प्रदर्शनी में सूचनात्मक सामग्री, मॉडल मतदान केंद्र, ईवीएम पर लाइव वोटिंग के प्रावधान, मतदाता शिक्षा उपकरण और सामग्री के अलावा फोटो, वीडियो, 3डी मॉडल, ईसीआई द्वारा विकसित इंटरैक्टिव स्वीप अभियान का भी प्रदर्शन किया गया है।
20Oct-2016

बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

लोकतांत्रिक मोर्चे पर अंतिम क्षणों में जागा पाक !

मतदाता जागरूकता पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आज से
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता जागरूकता पर कल बुधवार से आरंभ हो रहे दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में दुनिया के 28 देश चुनाव प्रक्रिया को दुरस्त करने के लिए मंथन करेंगे। पहले लोकतांत्रिक मोर्चे पर ना-नुकर करते पाकिस्तान ने अंतिम क्षणों में अपना इरादा बदला और एक कनिष्ठ अधिकारी को भारत भेजने का निर्णय लिया।
संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर भारत निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता जागरूकता के साथ चुनावों में पारदर्शिता लाने के लिए कल बुधवार यानि 19 अक्टूबर से 20 अक्टूबर तक नई दिल्ली में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है, जिसमें 28 देशों के चुनाव आयोग और पांच अंतर्राष्ट्रीय चुनाव निकाय संबन्धी संस्थाएं हिस्सा ले रहे हैं। चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का मकसद चुनाव प्रक्रिया को दुरस्त करना और मतदान की सुनिश्चितता के लिए मतदाताओं को जागरूक करने की रणनीति तैयार करना है। इस सम्मेलन में हिस्सा ले रहे सभी देश अपने अपने देशों की चुनाव प्रक्रियाओं ओर अनुभव को एकदूसरे के साथ साझा करेंगे। वहीं भारत के विभिन्न राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों और वरिष्ठ अधिकारी भी इस सम्मेलन का हिस्सा होंगे। सम्मेलन के एक दिन पहले चुनाव आयोग के प्रवक्ता ने यह जानकारी दी है कि पाकिस्तान के चुनाव आयोग से निदेशक जनसंपर्क एवं राजनीतिक वित्त अल्ताफ अहमद सम्मेलन में हिस्सा लेने भारत आ रहे हैं। जबकि बलूचिस्तान न्यायमूर्ति सेवानिवृत्त शकील अहमद बलोच जैसे वरिष्ठ अधिकारी को प्रतिनिधित्व इस सम्मेलन में प्रतिनिधित्व करना था। गौरतलब है कि उरी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया है। इस कवायद में उसके मुल्क में होने वाले तमाम अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का भी बहिष्कार किया है। नतीजतन सार्क सम्मेलन रद्द करना पड़ा था।
चुनाव प्रक्रिया दुरस्त करने पर होगा मंथन
भारत के उप चुनाव आयुक्त उमेश सिन्हा के अनुसार भारत ने करीब 40 देशों के निर्वाचन आयोगों को इस सम्मेलन में पंजीकरण कराने के लिए आॅनलाइन निमंत्रण दिया था। सिन्हा के अनुसार करीब तीन महीने पहले निमंत्रण पत्र आॅनलाइन भेजे गए थे और सभी देशोें के चुनाव आयोगों को अपनी भागीदारी के लिए आॅनलाइन पंजीकरण कराने को कहा गया था, लेकिन निर्धारित तिथि तक पाकिस्तान ने इस सम्मेलन में प्रतिनिधित्व करने के लिए पंजीकरण नहीं कराया। सिन्हा के अनुसार करीब तीन महीने पहले निमंत्रण पत्र आॅनलाइन भेजे गए थे और सभी देशोें के चुनाव आयोगों को अपनी भागीदारी के लिए आॅनलाइन पंजीकरण कराने को कहा गया था।
एजेंडे में पांच विषय शामिल
उप चुनाव आयुक्त उमेश सिन्हा के अनुसार इस अंतर्राष्ट्रीय मंच से दुनियाभर में निष्पक्ष और स्वस्थ्य चुनाव प्रक्रिया के तहत पारदर्शिता लाने पर मंथन किया जाएगा। सम्मेलन में चुनाव सुधारों के लिए प्रमुख रूप से पांच विषय को एजेंडे में शामिल किया गया है। इसमें मतदाताओं में जागरूकता, मतदान में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना, चुनाव प्रक्रिया को दुरस्त बनाने के लिए चुनाव सुधार की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना शामिल है। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में विस्तार से होने वाली चर्चा के बाद एक रेगुलेशन का प्रस्ताव भी पारित किया जाएगा, ताकि दुनियाभर में चुनाव प्रक्रिया में एकरूपता का समावेश किया जा सके। सम्मेलन में अफगानिस्तान, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, फिजी, जार्जिया, इंडोनेशिया, इराक, केन्या, लेसोथो, मलेशिया, मॉरीशस, माल्द्वीप, मैक्सिको, नेपाल, फिलीपिंस, श्रीलंका, थाईलैंड, युगांडा, नांबिया जैसे देश प्रतिनिधित्व करेंगे।
19Oct-2016

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2016

इसी सप्ताह तय होंगी जीएसटी कर की दरें!

जीएसटी परिषद की तीन दिवसीय बैठक आज से
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
आगामी एक अप्रैल से जीएसटी कानून लागू करने की कवायद में जुटी केंद्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में जीएसटी विधेयक पारित करने की तैयारी में है। इसी मकसद से कल मंगलवार से यहां शुरू होने वाली जीएसटी परिषद की तीन दिवसीय बैठक में जीएसटी कर की दरें तय किया जाना है और राज्यों की नई प्रणाली के फार्मूले पर भी आम सहमति बनाए जाने की संभावना है।
संसद के अगले महीने 16 नवंबर से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार की प्राथमिकता जीएसटी विधेयक को पारित कराने की होगी। इसका मकसद है कि सरकार आगामी नए वित्तीय वर्ष यानि एक अप्रैल से हरसंभव जीएसटी कानून लागू करना चाहती है। कल मंगलवार को यहां केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में शुरू होने वाली जीएसटी परिषद की तीन दिवसीय बैठक को इस लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। दरअसल इस बैठक में परिषद को जीएसटी दरों का फैसला करना है। जीएसटी परिषद इस बैठक के एजेंडे में राज्यों को नयी प्रणाली में राजस्व हानि पर क्षतिपूर्ति के फामूर्ले जैसे कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों का समाधान भी तय किया जाना है। इससे पहले वित्त मंत्रालय जीएसटी परिषद में सभी मुद्दों पर आमसहमति बनाने के लिए 22 नवंबर की समयसीमा निर्धारित कर चुकी है, ताकि अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था में व्यापक बुनियादी सुधार के प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली को देशभर में एक अप्रैल 2017 से लागू करने का लक्ष्य हासिल किया जा सके।
बैठक पर टिकी होंगी नजरे
जीएसटी परिषद की इस महत्वपूर्ण बैठक में होने वाले फैसलों पर देशभर खासरकार उद्योगजगत की नजरें लगी होंगी। इसका कारण साफ है कि जीएसटी की दर निर्धारित किए जाने की दृष्टि में तय होने वाली जीएसटी कर की दरें लोगों की जिंदगी को प्रभावित करने का काम करेंगी। जीएसटी परिषद की पिछले महीने हुई बैठक में बीस लाख रुपये सालाना कारोबार करने वाली कंपनियों को जीएसटी से छूट देने का फैसला किया है। वहीं इस छूट की सीमा को पहाड़ी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों के 11 राज्यों में दस लाख रुपये निर्धारित की गई थी। गत 30 सितंबर को परिषद इस छूट के लिए तैयार किये गये नियमों के मसौदे को अंतिम रूप दे चुकी है। जीएसटी कानून के तहत सेवाओं तथा वस्तुओं की आवाजाही को सुगम बनाने की कवायद में वित्त मंत्री अरुण जेटली पहले ही कह चुके हैं कि देश के एक कोने से दूसरे कोने तक वस्तुओं को ले जाने का खर्च कम होगा और एक देश और एक कर की समान व्यवस्था कायम की जा सकेगी।
जटिल मुद्दो पर होगी चर्चा
वित्त मंत्रालय के सूत्रों की माने तो जीएसटी परिषद की मंगलवार को शुरू हो रही इस महत्वपूर्ण बैठक में केंद्र सरकार द्वारा नई व्यवस्था में 11 लाख सेवा कर देने वाले को अपने जिम्मे रखने के जटिल मुद्दे पर भी विचार विमर्श भी किया जाएगा। वहीं इस बैठक में मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम की अध्यक्षता वाली समिति के अधिकतर वस्तुओं और सेवाओं के लिये जीएसटी की मानक दर 17 से 18 प्रतिशत रखने का सुझाव पर भी मंथन होना तय है, जिसमें समिति ने कम कर वाली वस्तुओं पर जीएसटी 12 प्रतिशत और कार, पान मसाला और तंबाकू जैसी विलासिता की वस्तुओं पर 40 प्रतिशत मानक दर प्रस्ताव किया था। मूल्यवान धातुओं पर 2 से 6 प्रतिशत के दायरे में दर की सिफारिश की गयी है। वित्त मंत्रालय प्रमुख मुद्दों पर आम सहमति बनाने की कोशिश करेगा, ताकि उसके बाद केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) तथा समन्वित जीएसटी (आईजीएसटी) को 16 नवंबर से शुरू संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सके।
18Oct-2016

कावेरी जल विवाद: तकनीकी समिति ने सुप्रीम कोर्ट में सौंपी रिपोर्ट

तकनीकी रिपोर्ट के आधार पर आज होगी सुनवाई
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट बहुचर्चित कावेरी विवाद पर कल मंगलवार को फिर सुनवाई करेगी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्र सरकार की गठित तकनीकी रिपोर्ट पर गौर किया जाएगा। इसलिए सोमवार को तकनीकी समिति ने अपनी तकनीकी रिपोर्ट में सामाजिक और अन्य तकनीकी पहलुओं का आकलन करके रिपोर्ट तैयार की है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 4 अक्टूबर को जारी निर्देश पर केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष जीएस झा की अगुवाई में एक उच्च स्तरीय तकनीकी विशेषज्ञ दल का गठन किया था। इस दल ने कावेरी बेसिन की वास्तविक स्थिति का आकलन के लिए कावेरी बेसिन का दौरा करने के बाद अपनी रिपोर्ट को कोर्ट के निर्देशानुसार तैयार करके सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी है, जो कल मंगलवार को सुनवाई के दौरान सामने आएगी। सुप्रीम कोर्ट ने 4 अक्तूबर को कावेरी मैनेजमेंट बोर्ड बनाने के मामले को 18 अक्टूबर तक टाल दिया था। कल जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अमिताव रॉय और जस्टिस एएम खानविलकर की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी।
रिपोर्ट में सामाजिक पहलू
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार इस तकनीकी समिति ने जो रिपोर्ट सोमवार को सौंपी है उसमें कावेरी जल विवाद के कारणों के साथ सामाजिक और तकनीकी पहलुओं पर विचार कर निष्कर्ष निकाला गया है। समिति ने सामाजिक पहलू के तहत पाया है कि कर्नाटक और तमिलनाडु में पानी की कमी को लेकर किसान बदहाल हैं। किसान और मछुवारे बेरोजगारी और आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। कर्नाटक के मंड्या जिले में बड़ी संख्या में खुदकुशी के मामले सामने आये हैं। कर्नाटक सरकार ने कावेरी बेसिन के 48 तालुका में से 42 तालुका को केंद्र सरकार के गाइडलाइन के तहत सूखा घोषित किया है।
समिति ने दिये सुझाव
सरकार की विशेषज्ञ तकनीकी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों राज्यों को तमिलनाडु और पुडुचेरी में सिंचाई के लिए लोगों के हित के लिए काम करने पर बल दिया। वहीं कर्नाटक के विकास के बारे में गंभीरता से विचार करने को कहा है, जिसके लिए राज्य के लोगों को इस बाबत जागरूक करने पर बल दिया गया है। तमिलनाडु सरकार की खेती को दी जाने वाली सब्सिडी की सुविधा तभी सफल हो सकती है, जब फसल के समय पूरा पानी उपलब्ध हो। समिति ने कहा कि पीने के पानी के लिए बंटवारे सिस्टम में बेहतरी लाने की जरूरत है। पानी के बहाव और कटाव के लिए आॅटोमैटिक वॉटर मैनजेमेंट सिस्टम लगाने की जरूरत है। सम्बन्धित राज्यों के सिंचाई प्रबंधन को किसानों के बीच पानी के बराबर बंटवारे की जरूरत है।
तकनीकी में सुधार पर बल
समिति की रिपोर्ट में पानी के वितरण के लिए जो तकनीक लगाई गई है वो पुरानी है। इसलिए किसानों को दिए जाने वाले पानी का तरीका एक सदी पुराना है। समिति ने इस तकनीक में सुधार करके पानी की कमी को दूर करने और नई तकनीक का इस्तेमाल करने पर जोर दिया है। पानी के बंटवारे के लिए पाइप का इस्तेमाल करना चाहिए। समुद्र के तट के इलाकों में भूमिगत जल का इस्तेमाल नहीं हो सकता क्योंकि समुद्र की वजह से पानी नमकीन हो जाता है इसलिए मैटुर जलाशय से ही सिंचाई संभव है।
18Oct-2016

सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

जल्द ही हाइवे पर लैंडिंग कर सकेंगे विमान!

सरकार की 22 राजमार्गो को रनवे में बदलने की योजना
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भारत व पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच आखिर भारत को सेना की ताकत बढ़ाने की योजना को केंद्र सरकार ने अमल लाने का फैसला कर लिया है, जिस पर रक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर सड़क परिवहन मंत्रालय ने देश में ऐसे 22 राष्टÑीय राजमार्गो की पहचान की है, जिन्हें रनवे में तब्दील किया जाएगा। ऐसे हाइवे को युद्ध या दैवीय आपदा जैसे संकट की स्थिति में भारतीय वायु सेना रनवे के रूप में इस्तेमाल करके जरूरी विमानों की उड़ान और लैंडिंग कर सकेगी।
दरअसल ऐसा एक प्रस्ताव करीब डेढ़ साल पहले भारतीय वायु सेना ने केंद्र सरकार को दिया था, जिसमें केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय तथा रक्षा मंत्रालय मिलकर कुछ चुनिंदा हाइवेज का चौड़ा करके रनवे के रूप में तब्दील करना शामिल था। इसके लिए दोनों मंत्रालयों के अधिकारियों की एक समिति भी गठित की गई थी, जिसे ऐसे राजमार्ग खंडों के लिए औपचारिकताएं तय करने की जिम्मेदारी दी गई थी। जो रनवे या हवाई पटटी के रूप में बदले जा सकते हैं। अभी तक समिति ने ऐसे 22 हाइवे चिन्हित करके मंत्रालय को रिपोर्ट दी है, जिसमें ऐसे राजमार्ग खंडों की व्यावहार्यता, उनकी लंबाई व अन्य मुद्दों का भी आकलन भी किया है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि इस प्रस्ताव को अमलीजामा पहनाने के लिए जल्द ही दोनों मंत्रालय के अधिकारियों की एक बैठक होगी, जिसमें इस प्रस्ताव की रणनीति तय करके इस महत्वपूर्ण परियोजना को अंतिम रूप दिया जाएगा। प्रस्ताव में अधिकांश हाइवे वायु सेना के नक्शे में शामिल कर लिये जाएंगे। इसी मकसद से पिछले साल यमुना एक्सप्रेसवे पर मिराज-2000 की सफल लैंडिंग करवाकर एक सफल परीक्षण किया जा चुका है।
पाक से सटे हाइवे पर फोकस
भारतीय वायु सेना खासकर पाकिस्तान से जंग जैसे हालात बनने पर देश के हाईवेज का इस्तेमाल करना चाहती है। वायु सेना चाहती है कि देश के चुनिंदा हाईवे ऐसे हों जहां से फाइटर जेट्स लैंडिंग और टेकआॅफ कर सकें। इसके लिए वायुसेना ने एनएचएआई के साथ बातचीत करके प्रस्ताव को आगे बढ़ाने पर जोर दिया है। सूत्रों के अनुसार ऐसी सडकों या राजमार्गो को खासकर राजस्थान,गुजरात और पंजाब में विकसित करने की योजना है, जहां सर्वाधिक हाइवे को रनवे में तब्दील करने के लिए पहचाना गया है। दरअसल इन राज्यों की सीमा पाकिस्तान से लगती है। सूत्रों के अनुसार गठित की गई दोनों मंत्रालय की समिति द्वारा चिन्हित किये गये ज्यादातर राजस्थान, पंजाब और गुजरात के राजमार्गों वह कुछ प्रमुख सड़को पर फोकस किया है, जिनमें जरूरी बदलाव कर उन्हें रनवे की तरह इस्तेमाल किया जा सकेगा।
इसलिए जरूरी हुई योजना
भारत-पाक के बीच वर्ष 1971 के युद्ध की एक रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी वायुसेना के कुछ विमान आगरा तक आ गए थे। हालांकि वे बम बरसाने में नाकाम रहे, जिन्हें भारतीय वायुसेना उन्हें खदेडने में कामयाब रही थी। पिछले कई दशकों से भारत-पाक की आतंकवाद के कारण तनातनी को देखते हुए भारतीय सेना एवं सुरक्षा एजेंसियों को महसूस हुआ कि देश के भीतर लडाकू विमान उतारने के लिए विकल्प होना जरूरी है। जिस तरह से अन्य कई देशों में हाइवे को रनवे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है उसी तरह भारत में सेना को ताकत देना जरूरी है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि दुश्मन के हमले के वक्त रोड को भी रनवे बनाना पड सकता है। दूसरे देशों में ऐसे परीक्षण होते रहते हैं, पर भारत में आगरा में यह पहला मौका था, जब रोड पर लडाकू विमान की लैंडिंग कराई गई। पाक ने खुद पहले से ही ऐसे दो मार्गो को इमरजेंसी रनवे घोषित किया हुआ है
अमेरिका के साथ बनी थी योजना
सूत्रों के अनुसार इस योजना को मोदी सरकार के आमंत्रण पर अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत भ्रमण के दौरान तैयार की गई थी। आगरा के भ्रमण के दौरान अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों तथा भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की एक संयुक्त बैठक के दौरान ऐसी योजना का खाका बनाने में यह भी निर्णय लिया गया था, कि जरूरत पड़ने पर यमुना एक्सप्रेस-वे को रनवे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय इस प्रस्ताव पर रक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर पहले से ही काम कर रहा है। लेकिन भारत-पाक के मौजूदा तनाव के बीच केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इसके जल्द परियोजना का रूप देने की दिशा में कहा कि राजमार्ग खंडों का विकास ऐसी तकनीक और तौर तरीकों से किया जाएगा, जिन्हें चौड़ा कर हवाई पटटी बनाई जा सके, इससे दुर्गम इलाकों में सड़क के साथ हवाई संपर्क की सुविधा भी मिल सकेगी।
17Oct-2016

रविवार, 16 अक्तूबर 2016

आतंकवाद: पाकिस्‍तान चौथा खतरनाक देश

दुनिया में 13वें पायदान पर शामिल भारत
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
आतंकवाद को पनाह देते आ रहे पाकिस्तान की दुनियाभर में आलोचना हो रही है, जिसकी आंच से खुद पाकिस्तान की तबाही के अंदेशा को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। दुनियाभर के देशों पर मंडरा रहे आतंकी जैसे खतरों की जद में पाकिस्तान को चौथेअसुरक्षित देश के रूप में आंका गया है, जबकि पाकिस्तान के आतंकवाद को लेकर नापाक इरादों के बावजूद भारत का असुरक्षित देशों की फेहरिस्त में तेरहवां स्थान माना गया है।
उरी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का मामला दुनिया की सुर्खियों में है, जिसमें आतंकवाद का सहारा लेकर भारत के खिलाफ पाकिस्तान की नापाक हरकतों की दुनियाभर में आलोचना हो रही है और वह आतंकवाद पर अलग-थलग पड़ता नजर आ रहा है। ऐसे में पाकिस्तान के लिए सुरक्षा को लेकर करारा झटका लगना स्वाभाविक है, जब सुरक्षित और असुरक्षित देशों को लेकर एक अंतर्राष्टÑीय सर्वे रिपोर्ट में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की यूनिट लस्ट ग्लोबल ट्रैवल एंड टूरिज्म ने पाकिस्तान को दुनिया का चौथा सबसे असुरक्षित देश माना गया है। वहीं ऐसे असुरक्षित देशों के लिए जारी रैंकिंग भारत 13वें पायदान पर है, लेकिन भारत उन 20 सबसे सुरक्षित देशों की सूची में भी शामिल नहीं है, जिसमें सबसे सुरक्षित देशों में फिनलैंड दुनिया का पहले पायदान पर आने वाला देश है। इस सर्वे रिपोर्टें पाकिस्तान को सेμटी एंड सिक्युरिटी लिस्ट में 3.04 नंबर हासिल हुए हैं, जबकि फिनलैंड को 6.7 नंबर मिले हैं। पाकिस्तान के लिए यह पहला झटका नहीं है, इससे पहले अमेरिकी इंटेलीजेंस थिंकटैंक इंटेलसेंटर ने अपनी एक लिस्ट ‘कंट्री थ्रेट इंडेक्स’ में पाकिस्तान को दुनिया का 5वां सबसे खतरनाक देश करार दिया था।
खतरनाक देश
रिपोर्ट में रैंकिंग के आधार पर पंद्रह सबसे खतरनाक देशों में पहले पायदान पर नाइजीरिया है, जिसके बाद कोलंबिया, यमन,पाकिस्तान, वेनेजुएला, इजिप्ट, ग्वाटेमाला, अल-सल्वाडोर, होंडुरास, थाईलैंड, केन्या, लेबनान, भारत, फिलीपींस और जमैका माने गये हैं।
दुनिया के सबसे सुरक्षित देश
इस सर्वे रिपोर्ट की रैंकिंग के अनुसार दस सबसे सुरक्षित देशों में फिनलैंड, कतर, यूएई, आइसलैंड,5. आॅस्ट्रिया, लग्जमबर्ग, न्यूजीलैंड,सिंगापुर, ओमान और पुर्तगाल शामिल है।
16Oct-2016

राग दरबार:महिलाओं के अधिकार पर स्यापा क्यों?

मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी..
भारत में एक समानता का माहौल बनाने की कवायद में जुटी मोदी सरकार जीएसटी की तरह ही धर्मनिरपेक्षता को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है, भले ही सरकार को विपक्षी दलों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा हो। ऐसी ही कवायद मे समान नागरिक संहिता यानि सिविल कोड़ लागू करने की तैयारी चल रही है। सिविल कोड़ और खासकर तीन तलाक के मुद्दे पर अचानक तेज हुई सियासी बहस में एक देश-एक कानून लागू करने की सरकार की और से जारी इस कवायद के विरोध में उतरे मुस्लिम संगठनों खासकर आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा रायशुमारी कर रहे विधि आयोग के उन 16 सवालों का बहिष्कार करने का ऐलान किया है, जिसमें एक साथ तीन तलाक का मुद्दा भी शामिल है। इन मुस्लिम संगठनों के विपरीत 95 फीसदी से भी ज्यादा मुस्लिम महिलाएं खासतौर पर तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार की द्वारा सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा दिये गये हलफनामें को उचित ठहराने का इसलिए साहस किया है, क्यों कि वे ऐसे शरियत कानून में हो रहे अन्याय से छुटकारा पाने को बेताब हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सरकार के खिलाफ उगले जहर पर इस मुद्दे पर केंद्र का बचाव करते हुए कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने तर्क दिया कि जब एक दर्जन से अधिक इस्लामी देश कानून बनाकर इस चलन का विनियमन कर सकते हैं, तो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश के लिए इसे किस प्रकार गलत माना जा सकता है। ऐसे मे सामजिक एवं कानून के जानकारों में चर्चा है कि भारत के संवैधानिक इतिहास में पहली बार किसी केंद्र सरकार द्वारा मुस्लिमों में बहुविवाह, निकाह हलाला और एक साथ तीन तलाक के चलन का उच्चतम न्यायालय में विरोध के समर्थन में मुस्लिम महिलाएं सक्रिय होकर आगे आ गई तो सरकार के ऐसे मामलों में देश में एक कानून लागू करने का काम आसान हो जाएगा। ऐसे में वही कहावत चरितार्थ होती नजर आएगी कि जब मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी...।
भंवरजाल में केजरी सरकार
दिल्ली में ईमानदारी का चोला ओढ़कर सत्ता पर काबिज हुई आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार की की पोल ऐसे खुलती जा रही है, शायद दिल्ली में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी भारत के इतिहास में ऐसा पहली सत्तारूढ दल है जिसके मंत्री और विधायकों को आपराधिक या अन्य गैरकानूनी मामलों में फंसते आ रहे हैं और करीब एक दर्जन को जेल की हवा भी खानी पड़ी। रही सही कसर खुद केजरीवाल सरकार ने पूरी करते हुए ऐसी संवैधानिक मुसीबत को गले लगा लिया है, जिससे लगता है कि 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में 67 का आंकड़ा हासिल करने का इतिहास बनाने के बावजूद आप की सरकार अपने कार्यकाल को शायद ही पूरा कर पाए। सीएम केजरीवाल द्वारा नियुक्त किये गये संसदीय सचिव के लाभ का पद देने पर जल्द ही 21 विधायकों को अयोग्यता ठहराया जा सकता है। इनके अलावा राष्टÑपति 27 ऐसे ही और आप विधायकों की जांच के लिए एक याचिका चुनाव आयोग को भेजी है, जिन्हें लाभ के पद के रूप में रोगी कल्याण समितियों का अध्यक्ष बनाया हुआ है। राजनीतिक चर्चा यही है कि यदि चुनाव आयोग ने आप के इन करीब 45 विधायकों को अयोग्य करार दे दिया तो आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार का पतन तय है।
राजनीति जिंदा रहनी जरूरी ?...
राजनीति और नेता का मानो चोली दामन का साथ है। कुछ भी हो जाए दोनों साथ-साथ ही चलते रहेंगे। इन्हे एक-दूसरे का पूरक भी कहा जाता है। बात चाहे सर्जिकल स्ट्राइक की हो या सरकार द्वारा किए गए किसी नीतिगत फैसले की। हर बात पर राजनीति नहीं होगी, ऐसा संभव नहीं है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राजनीति हुई जिसमें कोई सबूत मांग रहा था तो कोई कुछ और कह रहा था। फिर इसके बाद सरकार के नीतिगत फैसलों को लेकर ट्वीटर पर तू-तू-मैं-मैं का दौर शुरू हो गया। चारों तरफ बस क्रेडिट लेने की होड़ मच जाती है, कोई कहता है मैंने अच्छा काम किया तो दूसरा कहता कि मैंने किया। क्या करें इसी का नाम तो राजनीति है। नहीं करेंगे तो काम कैसे चलेगा। राजनीति का जिंदा रहना भी जरूरी है।
-ओ.पी. पाल व कविता जोशी
16Oct-2016

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

विदेशी तकनीक की तर्ज पर होगा जल प्रबंधन!

हंगरी से हुए करार को भी मिली हरी झंडी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की देश में जल संरक्षण और प्रबंधन की दिशा में उठाए जा रहे कदमों के तहत खासकर कृषि क्षेत्र में विदेशी तकनीक की तर्ज पर जल संबन्धी योजनाओं को चलाया जाएगा, ताकि देश में बाढ़ और सूखे की स्थिति के हालातों से भी निपटा जा सके।
केंद्र सरकार की भारत में जल संकट के साथ बाढ़ और सूखे की स्थिति से निपटने के लिए कई परियोजनाएं पटरी पर है, जिनकी दशा और दिशा को विदेशी तकनीक से रμतार देने का प्रयास किया जा रहा है। हंगरी की पेयजल व सिंचाई के लिए इस्तेमाल के लिए 'क्लीन वॉटर एंड ग्रीन एनर्जी इनकोरपेशन' की तकनीक को भारत में इस्तेमाल करने का रास्ता तय किया जा रहा है। खासकर हंगरी के 'वन ड्रॉप मोर क्रॉप' (एक बूंद से अधिक फसल) के नारे के अनुकूल तकनीकी को देश के कृषि क्षेत्र में वरदान बनाने का प्रयास है। इसी दिशा में गुरुवार को यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल जल प्रबंन्धन क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग के लिए हंगरी के साथ होने वाले समझौते को मिलली मंजूरी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस करार के तहत दोनों ही देशों के बीच समानता और आपसी हितों के आधार पर जल प्रबंधन के क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाया जाएगा। वहीं हंगरी व भारत के सार्वजनिक एवं निजी संगठनों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के विकास को प्रोत्साहन मिलना तय है। करार के जरिए जल संसाधनों के विकास एवं प्रबंधन के क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रतिनिधिमंडलों के बीच संयुक्त गतिविधियों एवं आपसी आदान-प्रदान से दोनों देशों को फायदा मिलेगा। इससे पहले जल सरंक्षण और जल प्रबंधन के क्षेत्र में इजरायल के साथ भी आपसी सहयोग की नीति अपनाई गई है। जल प्रबंधन के क्षेत्र में इजरायल और हंगरी की तकनीक दुनिया के लिए एक सबक बनी हुई है, जिसके जरिए किसी भी देश में जल संबन्धी समस्याओं का समाधान संभव है।
कृषि क्षेत्र के विकास पर बल
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार सरकार की प्राथमिकता है कि कृषि विकास के लिए जल संरक्षण और अपशिष्ट जल प्रबंधन की योजना में विदेशी तकनीक के इस्तेमाल ऐसी तमाम जल संबन्धी योजनाओं में किया जाए, जिससे जल संकट को दूर किया जा सके। हंगरी और इजरायल की की तकनीक के जरिए देश में नदी बेसिन प्रबंधन, एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन, जल आपूर्ति, सिंचाई प्रौद्योगिकी नवाचार, बाढ़ और सूखा प्रबंधन में समझौते से दोनों देशों के लोगों के सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियों में सुधार करने के लक्ष्य हासिल करना आसान हो जाएगा। वहीं संयुक्त गतिविधियों और जल संसाधनों के विकास तथा प्रबंधन के क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रतिनिधिमंडलों व विशेषज्ञों के आपसी आदान-प्रदान से दोनों देशों को लाभ होगा। सरकार की प्राथमिकता है कि कृषि विकास के लिए जल संरक्षण और अपशिष्ट जल प्रबंधन की योजना में विदेशी तकनीक के इस्तेमाल ऐसी तमाम जल संबन्धी योजनाओं में किया जाए, जिससे जल संकट को दूर किया जा सके।
क्या है विदेशी तकनीक
जल संरक्षण के तहत कृषि सिंचाई के लिए इजरायल में गंदे पानी को शोध संयंत्रों के बाद वैज्ञानिक तकनीक के बाद सिंचाई में प्रयोग किया जा रहा है, जबकि नीदरलैंड के अलावा हंगरी जैसे कई देशों में कम लागत पर ज्यादा जल का उपयोग करने के लिए भी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। नीदरलैंड अपशिष्ट जल को शुद्ध जल में तब्दील करने की तकनीक का भरपूर उपयोग कर रहा है। इसी प्रकार हंगरी ने भी अपने देश में जल संरक्षण और उसके उपयोग में तकनीक का सहारा लेकर चुनौतियों का मुकाबला करके अन्य देशों के सामने मिसाल पेश की है। इसलिए केंद्र सरकार को भारत में जहां तक कृषि विकास और सिंचाई क्षेत्र में ऐसे देशों की तकनीक रास आ रही है। गौरतलब है कि इजरायल की तकनीक मध्य प्रदेश और हंगरी की तकनीक पंजाब में अपनाई जा रही है। इसके पूरे देश में अपनाने के लिए ही सरकार ने इजरायल और हंगरी की जल प्रबंधन क्षेत्र की तकनीकों को साझा करके कृषि विकास के साथ देश के विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने का प्रयास तेज किये हैं।
14Oct-2016

सिविल कोड पर छिड़ी बहस-विरोध में उतरे मुस्लिम संगठन

देशहित में नहीं है यूनिफार्म सिविल कोड: पर्सनल लॉ
ट्रिपल तलाक का विरोध करना भी गलत: रहमानी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार द्वारा देश में समान नागरिक संहिता यानि यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने की मुहिम का विरोध करते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि यह देशहित में नहीं होगा। सरकार के प्रयास से गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा होने का खतरा है। पर्सनल लॉ बोर्ड ने ट्रिपल तलाक के विरोध को भी गलत करार दिया है।
आॅल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना मोहम्मद वली रहमानी के नेतृत्व में गुरुवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में नौ मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने के लिए केंद्र सरकार के प्रयासों का विरोध किया। वहीं इन संगठनों ने ट्रिपल तलाक का किया जा रहा विरोध भी संविधान के मौलिक अधिकार के खिलाफ है, जो पूरी तरह से गलत है। पर्सनल लॉ बोर्ड के रहमानी ने समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग द्वारा तैयार की गई प्रश्नावली को खारिज करते हुए कहा कि वे एक भी सवाल का जवाब नहीं देंगे। बल्कि अन्य मुस्लिम समुदाय और संगठनों से भी अपील की जा रही है कि वे विधि आयोग की इस प्रश्नावली का बहिष्कार करें। उन्होंने कहा कि विधि आयोग की इस प्रश्नावली का वास्तविक मकसद मुस्लिम पर्सनल लॉ को समाप्त करना है और यह प्रश्नावली लोगों को भ्रमित करने के लिए तैयार की गई है। रहमानी ने आरोप लगाया कि संविधान के अनुच्छेद 44 का उल्लेख कर समान नागरिक संहिता को संवैधानिक दर्जा देने की कोशिश की गई है, जो नीति निर्देशक तत्वों के खिलाफ है और इसे लागू नहीं किया जा सकता है। जबकि भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार के अनुच्छेद 25 के तहत हर व्यक्ति को अपने मन पसंद धर्म को चुनने, उसका प्रचार करने और उसे अपनाने का अधिकार है। समय-समय पर अदालतों ने भी अपने फैसलों में कहा है कि व्यक्ति का मौलिक अधिकार सर्वोच्च है। यदि केंद्र सरकार नीति निर्देशक तत्व को लागू करने के लिए वाकई गंभीर है तो उसे सबको शिक्षा देने, सबको स्वास्थ्य सुविधाएं देने और नशाबंदी को लागू करना चाहिए, जो सीधे जनता की बेहतरी के लिए हैं।
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड
यूनिफॉर्म सिविल कोड या समान नागरिक संहिता का मतलब है, कि भारत के सभी नागरिक वो चाहे किसी भी धर्म और जाति के हों उनके लिए समान कानून रहेगा। समान नागरिक संहिता एक धर्मनिरपेक्ष कानून होता है, जो सभी धर्मों के लोगों के लिये समान रूप से लागू होगा। यह कानून भी किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होगा। फिलहाल हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं यानि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में हिन्दू और मुस्लिमों के लिए अलग-अलग कानून हैं और अलग तरीके से लागू होते हैं। केंद्र सरकार की यह कवायद यदि अंजाम तक पहुंची तो देश में समान नागरिक संहिता यानि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जायेगा।
क्या है सरकार का मकसद
केंद्र सरकार का इस कानून के तहत देश में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए एक ही तरह का कानून अनिवार्य करने का मकसद है, जो सभी धर्म और संप्रादाय पर लागू होगा। मसलन इस कानून के लागू होने के बाद भारत में हर धर्म के लोगों के लिए शादी, तलाक,गोद लेना और जायदाद के बंटवारे जैसे मामलों में एक ही कानून लागू होगा। केंद्र सरकार ने गत जुलाई में देश में समान आचार संहिता लागू करने के मुद्दे पर विधि आयोग से अध्ययन कराने और इसके लागू करने संबन्धी एक रिपोर्ट तैयार करने को भी कहा था, जिसमें केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने विधि आयोग को पत्र लिखकर मामले में विस्तृत रिपोर्ट की मांग थी। इसीलिए विधि आयोग ने पर्सलन लॉ बोर्ड समेत सभी समुदायों के संगठनों को एक प्रश्नावली भेजकर उनके जवाब के रूप में राय मांगी है।
मुस्लिम महिलाओं ने कहा
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कुछ दूसरे मुस्लिम संगठनों की ओर से तीन तलाक एवं समान नागरिक संहिता से जुड़ी विधि आयोग की प्रश्नावली के बहिष्कार का ऐलान किए जाने के बाद मुस्लिम महिला कार्यकर्ताओं ने बोर्ड और इन संगठनों पर निशाना साधते हुए कहा कि ये लोग मुसलमानों के प्रतिनिधि नहीं हैं और उनका रुख धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक है।भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह-संस्थापक जकिया सोमान ने कहा,विधि आयोग ने सिर्फ तीन तलाक की बात नहीं कही है। उसने हिंदू महिलाओं के संपत्ति के अधिकार और ईसाई महिलाओं के तलाक से संबंधित मामलों की भी बात की है। इसलिए आयोग पर सवाल खड़े करना अनुचित है। जकिया ने आरोप लगाया, पर्सनल लॉ बोर्ड में बैठे लोग मुसलमानों के प्रतिनिधि नहीं हो सकते। यह बोर्ड महज एक एनजीओ है और देश में हजारों एनजीओ हैं। इसलिए इनकी बात को मुस्लिम समुदाय की बात नहीं कहा जा सकता। मुझे लगता है कि इनका रूख धार्मिक नहीं बल्कि पूरी तरह से राजनीतिक है। महिलाओं की मांग कुरान के मुताबिक है और उन्हें उनका हक मिलना ही चाहिए।
14Oct-2016

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

पाक को झटका देगी चाबहार बंदरगाह परियोजना!

भारत, ईरान और अफगानिस्तान ने की समीक्षा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भारत के ईरान और अफगानिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ते दोस्ताना सबन्ध पाकिस्तान को रास नहीं आ रहे हैं। खासकर ईरान में प्रस्तावित चाबहार बंदरगाह परियोजना को लेकर वह सबसे ज्यादा बेचैन है, लेकिन पाक के नापाक कारनामों से उसके पडोसी होने के बावजूद ईरान और अफगानिस्तान ने भारत की पाक को अलग-थलग करने के समर्थन में पाकिस्तान को चाबहार परियोजना के मद्देनजर गहरा झटका देने की तैयारी कर ली है।
भारत ने मौजूदा तनाव के बीच पकिस्तान को एक और गहरा सदमा पहुंचाने की तैयारी में लंबित पड़ी चाबहार बंदरगाह परियोजना को आगे बढ़ाने की नीति तेज कर दी है। दरअसल हाल ही में केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी के निमंत्रण पर अफगानिस्तान के परिवहन मंत्री डा. मोहमदुल्लाह बताश और ईरान के सड़क एवं शहरी विकास मंत्री डा. अब्बास अहमद अखौंडी भारत पहुंचे थे, जहां त्रिपक्षीय समीक्षा बैठक करके चाबहार परियोजना के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने पर सहमति बनाई गई। मंत्रालय के अनुसार इस बैठक में अंतर्राष्ट्रीय परिवहन और ट्रांजिट कॉरिडोर की स्थापना के लिए त्रिपक्षीय समझौते के अमल पर भी चर्चा की गई। चाबहार परियोजना पर इसी साल पीएम मोदी और ईरान के राष्ट्रपति की मौजूदगी में एक समझौते पर हस्ताक्षर किये जा चुके हैं। मंत्रालय के अनुसार तीनों देशों के बीच हुई चर्चा के दौरान क्षेत्रीय कनेक्टिविटी हुए एक केंद्र के रूप में चाबहार परियोजना से जुड़े मुद्दों पर फैसला किया गया कि चाबहार बंदरगाह को लेकर जागरुकता फैलाने के लिए इसी साल के भीतर एक कनेक्टिविटी समारोह का आयोजन किया जाएगा। ताकि तीनों देश समझौते के अनुमोदन पर आंतरिक प्रक्रियाओं को पूरा करके इस परियोजना को शुरू किया जा सके। बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि समझौते के शीघ्र कार्यान्वयन की दिशा में परिवहन पारगमन, बंदरगाह, सीमा शुल्क प्रक्रियाओं और कौंसुलर मामलों से संबंधित प्रोटोकॉल विकसित किया जाएगा। वहीं एक महीने के भीतर चाबहार में तीनों देशों के वरिष्ठ अधिकारियों के एक विशेषज्ञ स्तरीय बैठक भी होगी, जिसमें तीनो देशों की आर्थिक वृद्धि और विकास से व्यापार का पुनर्गठन होगा। गौरतलब है कि इस समझौते में भारत और अफगानिस्तान के अधिकार क्षेत्रों में सामानों तथा यात्रियों के लाने-ले जाने तथा आने-जाने के लिए आवश्यक और कानूनी रूपरेखा का प्रावधान है।
इसलिए चिढ़ा है पाकिस्तान
भारत जब भी किसी पड़ोसी देश या क्षेत्रीय ताकत से दोस्तना संबंध बनाता है या रणनीतिक सहयोग करता है, तो उससे पाकिस्तान की बेचैनी बढ़ जाती है। भारत, ईरान और अफगानिस्तान के लिए व्यापार की दृष्टि से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह परियोजना से पाकिस्तान को पूरी तरह अलग-थलग पड़ने का खतरा नजर आ रहा है। मसलन भारत और पाकिस्तान इस क्षेत्र में मजबूत प्रतिद्वंद्वी माने जाते हैं जिसकी दो तीन वजह पाकिस्तान को ज्यादा परेशान कर रही हैं। अभी तक पाकिस्तान के जरिए अफगानिस्तान तक पहुंचने वाली भारतीय चीजें चाबहार परियोजना के पूरा होते ही ईरानी बंदरगाह के जरिए अफगानिस्तान तक सीधे पहुंचना शुरू हो जाएंगी। इसी परियोजना के जरिए भारतीय सामान सेंट्रल एशिया और पूर्वी यूरोप तक सामान भेज सकता है। पाकिस्तान को यह खतरा है कि व्यापार में भारत-ईरान-अफगानिस्तान का सहयोग, रणनीति और अन्य क्षेत्रों में भी बढ़ेगा और इसके पाकिस्तान के लिए नकारात्मक नतीजे निकलेंगे।
चीन भी है बेचैन
भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह परियोजना को जहां पाकिस्तान अपने लिए खतरा मान रहा है, क्योंकि इस परियोजना के जरिए पाकिस्तान को ठेंगा दिखाते हुए भारत मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक पहुंचेगा। ऐसे में पाकिस्तान से नजदीकी बढ़ाने के बाद चीन ने भी प्रतिद्वंद्वता जाहिर करते हुए पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट बनाना शुरू किया है। दरअसल चीन ग्वादर के सहारे अरब सागर तक अपनी पहुंच बनाने का प्रयास कर रहा है। भारत की पाक को सबक सिखाने के लिए ऐसी भी योजना है कि मध्य एशिया से पाइप लाइन के जरिए तेल और गैस भी भारत तक आए, लेकिन पाकिस्तान के अविश्वास के कारण पाइपलाइन शुल्क और उसकी सुरक्षा को लेकर खतरा हो सकता है। ऐसे में चाबहार के जरिए र्इंधन जहाजो के जरिए र्इंधन पहुंचाने के लिए यह परियोजना अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होगी।
यह भी हुआ निर्णय
इस समीक्षा बैठक के दौरान अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) बनाने पर भी भी भारत और ईरान ने बल दिया। वहीं निर्णय लिया गया कि चाबहार-जाहेदन रेलवे और चाबहार फ्री जोन में निवेश सहित अन्य परियोजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी लायी जाए, बल्कि दोनों देशों ने क्षेत्रीय कनेक्टिविटी से संबंधित नई परियोजनाओं के बारे में भी विचार-विमर्श किया। भारत इस बंदरगाह में भारत ने चाबहार में करीब 10 करोड़ डॉलर का निवेश कर चुका और 50 करोड़ डॉलर के और निवेश करने वाला है। इसके अलावा ईरान और भारत के बीच कई क्षेत्रों में करोड़ों डॉलर के द्विपक्षीय समझौते भी किये जा चुके हैं।
13Oct-2016