गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

सपा के अंतर्कलह से आहत है जनता परिवार!

एकजुटता पर फिर मंथन करने की तैयारी में दल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
जनता परिवार की खंडित ताकत को मजबूत करने वाले मुलायम ही आज अपने परिवार में एक भस्मासुर की भूमिका में नजर आ रहे हैं, तो डा. राम मनोहर लोहिया के सिद्धांतों की दुहाई देकर समाजवाद को संजीवनी देकर एकजुट करने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की पार्टी और परिवार में अंतर्कलह जनता परिवार के सभी दलों के लिए आहत होना स्वाभाविक है। माना जा रहा है कि जनता परिवार जल्द ही समाजवादी दलों की एकजुटता के लिए बैठक बुलाकर मंथन करने की तैयारी में हैं।
सपा प्रमुख की अगुवाई में जनता परिवार के अलग-अलग रास्तो पर बंटे दलों को एकजुट करके एक संयुक्त राजनीतिक पार्टी बनाने की कवायद को सपा में पिछले कई माह से चल रही आंतरिक कलह परेशानी का सबब बनी हुई है। क्योंकि समाजवादी पार्टी ही जनता परिवार की खंडित ताकत को समय-समय पर संजीवनी देने का प्रयास किया है और सपा प्रमुख इसके अलावा कई दलों के लिए खैवनहार साबित हुए हैं। ऐसे में लोहिया के सिद्धांतों को बरकरार रखने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव भले ही समाजवाद की नई परिभाषा गढ़ते हुए जनता परिवार को एकजुट करने की मिसाल पेश की हो, लेकिन खुद की पार्टी और परिवार के खुलेआम तलवारें खींचने की चरम पर पहुंची कलह जनता परिवार के दलों और सदस्यों को आहत कर रही है। सपा के घटनाक्रम पर हरिभूमि की जनता परिवार के दलों के नेताओं से बातचीत की है, जिनकी टीस जनता परिवार की एकजुटता में सपा की कलह साफतौर से झलकती नजर आई।
धर्मनिरपेक्षता के कमजोर होने की टीस
जद-यू के वरिष्ठ नेता व प्रवक्ता केसी त्यागी सपा परिवार में चल रही लड़ाई से इसलिए आहत नजर आए कि सपा के इस अंदरूनी संग्राम से धर्मनिरपेक्षता का संघर्ष मजबूत होने से पहले ही कमजोर हो जाएगा। त्यागी ने सपा परिवार में चल रहे घटनाक्रम को दुखदायी करार देते हुए कहा कि हालांकि उम्मीद है कि मुलायम इस परिवारिक मामले को सहजता से सुलझा लेंगे, लेकिन जनता परविार की एकता के लिए इस संदेश सकारात्मक नहीं है। राकांपा के वरिष्ठ नेता व प्रवक्ता डीपी त्रिपाठी भी मुलायम परिवार की कलह को लेकर आश्चर्यचकित है जिनका कहना है कि सपा जनता परिवार के लिहाज से एक महत्वपूर्ण राजनीतिक दल है और पूरा जनता परिवार चाहता है कि वह आंतरिक मामले से बाहर आकर धर्मनिरपेक्ष ताकतों को शक्तिशाली बनाने की मुहिम को आगे बढ़ाएं। इसी प्रकार रालोद नेता जयंत चौधरी ने भी सपा के घर में चल रही लड़ाई पर अफसोस व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे पारिवारिक मामले में जनता परिवार को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है जिसके लिए मुलायम खुद सक्षम है। इससे पहले राजद प्रमुख लालू यदव ऐसी ही उम्मीद पहले लगाकर अपनी टीस उजागर कर चुके हैं। वहीं इनेलो सांसद दुष्यंत चौटाला भी सपा परिवार के बीच चल रही आंतरिक जंग को लेकर चिंता में नजर आए, जिनका कहना है कि यह पारिवारिक मामला होने के कारण किसी अन्य का हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा। हां जनता परिवार की एकता के लिए जल्द ही एक बैठक बुलाकर इस बात पर मंथन किया जा सकता है कि जनता परिवार की एकजुटता की अगुवाई वाली सपा के प्रमुख जल्द ही इस मामले को नहीं सुलझाते तो इससे समाजवादी की एकजुटता ओर धर्मनिरपेक्षता की शुरू की गई लड़ाई ज्यादा कमजोर होगी।
खतरे में जनता परिवार की एकता
गौरतलब है कि करीब दो साल पहले सपा प्रमुख मुलायम सिंह की पहल पर जनता परिवार के तितर-बितर दलों जद-यू, राजद, जदएस,रालोद, इनेलो को एकजुट करके राष्ट्रीय स्तर पर एक संयुक्त राजनीतिक दल बनाने की कवायद तेजी के साथ शुरू की गई थी,जिसका मकसद गैरभाजपा व गैर कांग्रेस की नीतियों का विरोध करके धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई को मजबूत करना था। इस परिवार में जनता परिवार में बीजू जनता दल और ऐसे अन्य दलों को भी साथ लेने की तैयारी की गई, लेकिन कई महत्वपूर्ण फैसलों के बावजूद संयुक्त राजनीतिक दल और उसके चुनाव चिन्ह को लेकर मामला अधर में लटका रहा, जिसकी राह करीब चार माह पहले यूपी चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में शुरू हुई परिवारिक कलह ने फिलहाल रोक दी है। राजनीतिकारों की माने तो यदि सपा की आंतरिक रार ऐसे ही चलती रही तो जनता परिवार में शामिल दलों की भी राहें अलग-अलग हो सकती है और उनकी एकता होने से पहले ही खतरे में पड़ सकती है।
ऐसे शुरू हुई थी मुहिम
देश की धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई को मजबूत करने के मकसद से 23 जनवरी 1977 को जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस की नीतियों और रणनीतियों के तंग आकर जनता पार्टी का गठन किया था, जिसके बाद इस जनता पार्टी से कई दलों की शाखाएं फूट-फूटकर अलग राहे पकड़ती नजर आई। मसलन देश की राजनीतिक में एक बड़ा बदलाव सामने आया और जनता पार्टी के उस दौर से निकलने के बाद हुए बिखराव ने कई नई सियासी पार्टियों को जन्म दिया। नतीजतन जनता दल, जद-यू , बीजद, जद-एस,सपा, राजद समेत और भी कई दल क्षेत्रीय राजनीति के क्षितिज पर उभरते नजर आए। यह जरूर है कि कुछ दलों के सितारे बुलंदियों तक पहुंचे और कुछ फिके पड़ने के कारण अन्य दलों के साथ विलय का सहारा बने। ऐसे ही दलों में यूपी जैसे बड़े सूबे में सपा ने सत्ता की हनक, धमक और चकाचौंध का लुत्फ लिया, लेकिन सियासत के शबाब में मुखिया मुलायम सिंह के पैंतरे ने एक परिवारिक संग्राम को हवा दी,जिसका पटाक्षेप होने का इंतजार है।
रार के बीच महागठबंधन की सुगबुगाहट
उत्तर प्रदेश के ‘समाजवादी कुनबे’ में छिड़ी वर्चस्व की जंग के बीच सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की अगुवाई में एक महागठबंधन बनने की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है और आगामी पांच नवम्बर को पार्टी के रजत जयन्ती कार्यक्रम में इस सिलसिले में कोई अहम एलान हो सकता है। सपा के प्रान्तीय अध्यक्ष शिवपाल यादव ने आज पार्टी राज्य मुख्यालय पर संवाददाताओं से संक्षिप्त बातचीत में सभी लोहियावादी और चौधरी चरण सिंह वादी लोगों को एक मंच पर लाने की जरूरत बतायी।
उन्होंने कहा, हम किसी भी कीमत पर साम्प्रदायिक शक्तियों को हराना चाहते हैं। इसके लिये लोहियावादी और चौधरी चरणसिंहवादी लोगों को एक मंच पर लाना होगा। इस बीच, सपा के सूत्रों ने बताया कि आगामी पांच नवम्बर को आयोजित होने वाले पार्टी के रजत जयन्ती समारोह में शिरकत के लिये चौधरी चरण सिंह के पुत्र राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह, जनता दल यूनाइडेट के अध्यक्ष बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जनता दल सेक्युलर प्रमुख पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा समेत सभी प्रमुख समाजवादी तथा चरणसिंहवादी नेताओं को निमंत्रण भेजा गया है। सूत्रों का यह भी कहना है कि सपा आगामी पांच नवम्बर को होने वाले कार्यक्रम में अपना शक्ति प्रदर्शन करना चाहती है और इस मौके पर महागठबंधन का एलान होने के मजबूत संकेत हैं।यह घटनाक्रम ऐसे वक्त हुआ है जब समाजवादी परिवार में चाचा शिवपाल सिंह यादव और उनके भतीजे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बीच वर्चस्व का टकराव चरम पर है।
27Oct-2016

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